Odisha State Board BSE Odisha 9th Class Hindi Solutions Poem 4 फिर महान बन Textbook Exercise Questions and Answers.
BSE Odisha Class 9 Hindi Solutions Poem 4 फिर महान बन
प्रश्न और अभ्यास (ପ୍ରଶ୍ନ ଔର୍ ଅଭ୍ୟାସ)
1. निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर एक या दो बाक्यों में दीजिए :
(ନିମ୍ନଲିଖତ ପ୍ରଶ୍ନ କା ଉତ୍ତର୍ ଏକ୍ ୟା ଦୋ ବାର୍କୋ ର୍ମେ ଦିଜିଏ )।
(ନିମ୍ନଲିଖୂ ପ୍ରଶ୍ନଗୁଡ଼ିକର ଉତ୍ତର ଗୋଟିଏ ବା ଦୁଇଟି ବାକ୍ୟରେ ଦିଅ )
(क) कवि ने मनुष्य से क्या बनने को कहा?
ମନୁଷ୍ୟ କୋ କିସ୍ ପ୍ରକାର କା ମନ ମିଲା ହୈ ? ଉସେ ୱହ କ୍ୟା କର ସକତା ହୈ ? (ମନୁଷ୍ୟକୁ କେଉଁ ପ୍ରକାରର ମନ ମିଳଛି ? ସେଥିରେ ସେ କ’ଣ କରିପାରିବ ?)
उत्तर:
कवि ने मनुष्य से महान / श्रेष्ठ बनने को कहा।
(ख) मनुष्य को किस प्रकार मन मिला है?
(ମହାନ୍ ମନୁଷ୍ କି ସ୍ସେ କହତେ ହେଁ? କେଉଁ ପ୍ରକାର ମନ ମିଳିଛି ?)
उत्तर:
मनुष्य को अपार प्रेम से भरा मन मिला है।
(ग) मनुष्य को महान बनने के लिए क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए?
(ମନୁଷ୍ୟ କୋ ମହାନ୍ ବନେ କେ ଲିଏ କ୍ୟା କନା କନା ଚାହିଏ ଔର୍ କ୍ୟା ନେହୀ କର୍ନା ଚାହିଏ ? ମନୁଷ୍ୟ କୋ ମହାନ୍ ବନେ କେ ଲିଏ କ୍ୟା)
(ମାନବକୁ ଶ୍ରେଷ୍ଠ ହେବା ପାଇଁ କ’ଣ କରିବା ଉଚିତ୍ ଓ କ’ଣ ନକରିବା ଉଚିତ ?)
उत्तर:
विश्व आज तृषित है।
(घ) कवि मनुष्य से क्या न बनने को कहा है?
(ମନୁଷ୍ୟ କୋ ମହାନ୍ ବନ୍ନେ କେ ଲିଏ କବି ନେ କ୍ୟା ପ୍ରେରଣା ଦୀ ହୈ ?)
(ମନୁଷ୍ୟକୁ ଶ୍ରେଷ୍ଠ ହେବାପାଇଁ କବି କ’ଣ ପ୍ରେରଣା ଦେଇଛନ୍ତି ?)
उत्तर:
कवि मनुष्य से कृपण / कंजूस / लोभी न बनने को कहा है?
(ङ) जो शत्रु को क्षमा प्रदान नहीं करता, उसकी जीत किसके समान है?
କିସୀ କୀ ଜୀତ ହାର କେ ସମାନ ଜ୍ୟୋ ହୋନୀ ଚାହିଏ ? (କାହାର ବିଜୟ ପରାଜୟ ସହ ସମାନ ହେବା ଉଚିତ୍)
उत्तर:
उत्तर:
जो मनुष्य शत्रु को क्षमा प्रदान नहीं करते उसकी जीत पराजय के समान है। वे अपने हृदय में विजय का स्वाद जानता है मगर पराजय की पीड़ा जानता नहीं है।
2. निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर एक या दो बाक्यों में दीजिए:
(ନିମ୍ନଲିଖତ ପ୍ରଶ୍ନୋ କା ଉତ୍ତର୍ ଏକ୍ ୟା ଦୋ ବାର୍କୋ ର୍ମେ ଦିଜିଏ)।
(ନିମ୍ନଲିଖ ପ୍ରଶ୍ନଗୁଡ଼ିକର ଉତ୍ତର ଗୋଟିଏ ବା ଦୁଇଟି ବାକ୍ୟରେ ଦିଅ )
(क) कवि ने मनुष्य से क्या बनने को कहा?
(ନିମ୍ନଲିଖତ ପ୍ରଶ୍ନୋ କା ଉତ୍ତର୍ ଏକ୍ ୟା ଦୋ ବାର୍କୋ ର୍ମେ ଦିଜିଏ) ।
(ନିମ୍ନଲିଖ ପ୍ରଶ୍ନଗୁଡ଼ିକର ଉତ୍ତର ଗୋଟିଏ ବା ଦୁଇଟି ବାକ୍ୟରେ ଦିଅ )
उत्तर:
विजय का सुमन शूल बनता है।
(ख) मनुष्य को किस प्रकार मन मिला है?
(ମନୁଷ୍ୟ କୋ କିସ୍ ପ୍ରକାର ମନ୍ ମିଲା ହୈ ?)
(ମନୁଷ୍ୟକୁ କେଉଁ ପ୍ରକାର ମନ ମିଳିଛି ?)
उत्तर:
पाप से घृणा महान है।
(ज) किस पर सदैव गर्व न करना चाहिए?
(କିସ୍ର୍ ସଦୈବ୍ ଗର୍ବ ନ କର୍ନା ଚାହିଏ ?)
(କାହାଉପରେ ସର୍ବଦା ଅହଙ୍କାର ନ କରିବା ଉଚିତ୍ ?)
उत्तर:
दर्पशक्ति पर सदैव गर्व न करना चाहिए।
(झ) ‘फिर महान बन’ कविता के कवि का नाम क्या है?
(‘ଫିର୍ ମହାନ ବନ୍’ କବିତା କେ କବି କା ନାମ୍ କ୍ୟା ହୈ ?)
(ଫିର୍ ମହାନ୍ ବନ୍’ କବିତାର କବିଙ୍କର ନାମ କ’ଣ ?)
उत्तर:
‘फिर महान बन’ कविता के कवि नरेन्द्र शर्मा है।
(अ) ‘फिर महान बन’ कविता का मूल भाब क्या है?
(‘ଫିର୍ ମହାନ୍ ବନ୍’ କବିତା କା ମୂଲ୍ ଭାୱ କ୍ୟା ହୈ ?)
(‘ଫିର୍ ମହାନ ବନ୍’ କବିତାର ମୂଳ ଭାବ କ’ଣ ?)
उत्तर:
‘फिर महान बन’ कविता का मूल भाव यह है कि अपने कर्त्तब्य पर सचेतन होना चाहिए।
3. पाठ के आधार पर निम्नलिखित रिक्त स्थानो को भरिये
फिर महान ……………. ।
शत्रु को न ………………… सके ………………. प्रदान जो,
जीत क्यों उसे न ………………. के समान हो?
दुष्ट ………….. मानते न दुष्ट ……………… से,
……………… घृणा महान ………………….. न …………….. से।
………….. पर संदैव गर्व करना न, ………………।
उत्तर:
फिर महान बन।
शत्रु को न कर सके क्षमा प्रदान जो,
जीत क्यों उसे न हार के समान हो?
दुष्ट हार मानते न दुष्ट नेम से,
पाप से घृणा महान है न प्रेम से।
दर्प-शक्ति पर सदैव गर्व करना न, मन।
1. उदाहरण के अनसार निम्नलिखित शब्दो के समानार्थक शब्द लिखिए:
(ଉଦାହରଣ ଅନୁସାରେ ନିମ୍ନଲିଖ୍ ଶବ୍ଦଗୁଡ଼ିକର ପ୍ରତିଶବ୍ଦ ବା ସମାନାର୍ଥକ ଶବ୍ଦ ଲେଖ : )
महान, सुमन, मनुष्य, अपार, प्रेम, प्यास, जीव, वक्ष, नेम, विश्व
उदाहरण:
महान – विशिष्ट, सुमन – पुष्प
उत्तर:
मनुष्य – इनसान, मानव
अपार – असीम
प्रेम – प्यार
प्यास – तृषा
जीव – प्राणी
वक्ष – छाती
नेम – नियम
विश्व – संसार
कृपण – कंजूस
क्षमा – माफी
शत्रु – दुश्मन
हार – पराजय
भूल – तुटि, गलत
दर्प – गर्व
दुष्ट – नटखट
गर्व – घमंड, अहंकार
2. उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित शब्दों के विलोम/विपरीत शब्द लिखिए:
(ଉଦାହରଣ ଅନୁସାରେ ନିମ୍ନଲିଖ୍ ଶବ୍ଦଗୁଡ଼ିକର ବିପରୀତ ଶବ୍ଦ ଲେଖ : )
उदाहरण: प्रेम – घृणा, शत्रु – मित्र
उत्तर:
महान – तुच्छा
कृपण – दानी
मनुष्य – राक्षस
दुष्ट – शांत
क्षमा – दंड़
प्रदान – आदान
जीत – हार
समान – असमान
विजय – पराजय
पाप – पुण्य
3. निम्नलिखित शब्दों के वचन बदलिए:
(ନିମ୍ନଲିଖ୍ ଶବ୍ଦଗୁଡ଼ିକର ବଚନ ବଦଳାଅ : )
उदाहरण: मनुष्य – मनुष्य,
तुझे, जीव, शत्रु, कवि
उत्तर:
तुझे – तुम्हें
शत्रु – शत्रु
जीव – जीव
कवि – कवि
4. आप भी एक कविता लिखने की कोशिश करें:
उत्तर:
छात्र-छात्रा खुद लिखिए।
अति संक्षिप्त उत्तरमूलक प्रश्नोत्तर
A. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दीजिए।
प्रश्न 1.
‘फिर महान बन’ कविता के कवि का नाम क्या है?
उत्तर:
‘फिर महान बन’ कविता के कवि का नाम नरेंद्र शर्मा है।
प्रश्न 2.
कवि नरेंद्र शर्मा की कविता में क्या देखने को मिलते हैं?
उत्तर:
कवि नरेंद्र शर्मा की कविता में मानव प्रेम, प्रकृति-सौंदर्य के सरल और सजीव चित्र देखने को मिलते हैं।
प्रश्न 3.
मनुष्य किसकी संतान है?
उत्तर:
मनुष्य अमृत की संतान है।
प्रश्न 4.
मनुष्य श्रेष्ठ प्राणी के रूप में क्यों परिचित है?
उत्तर:
मनुष्य अपनी महानता के कारण श्रेष्ठ प्राणी के रूप में परिचित है।
प्रश्न 5.
मनुष्य आज अपना क्या भूल गया है?
उत्तर:
मनुष्य आज अपना कर्त्तव्य भूल गया है।
प्रश्न 6.
कवि ने इस कविता में क्या सलाह दी हे?
उत्तर:
कवि ने इस कविता में मनुष्य को अपने कर्त्तव्य पर सचेतन होने के लिए सलाह दी है।
प्रश्न 7.
कवि की चेतावनी क्या है?
उत्तर:
मनुष्य की मनुष्यता का पाठ पढ़ाने के लिए, संसार को स्वर्ग बनाने के लिए यह कवि की चेतावनी है।
प्रश्न 8.
कवि ने ‘मनुष्य ‘को क्या प्रेरणा दी है?
उत्तर:
कवि ने मनुष्य को फिर महान बनने की प्रेरणा दी है।
प्रश्न 9.
मनुष्य को किस प्रकार का मन मिला है?
उत्तर:
मनुष्य को अपार प्रेम से भरा मन मिला है।
प्रश्न 10.
विश्व आज क्या है?
उत्तर:
विश्व आज तृषित है।
प्रश्न 11.
किससे घृणा महान है?
उत्तर:
पाप से घृणा महान है।
प्रश्न 12.
किस पर सदैव गर्व नहीं करना चाहिए?
उत्तर:
दर्प शक्ति पर सदैव गर्व नहीं करना चाहिए।
B. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में दीजिए।
प्रश्न 1.
विजय का सुमन क्या बनता है?
उत्तर:
प्रश्न 2.
मनुष्य श्रेष्ठ प्राणी के रूप में क्यों परिचित है?
उत्तर:
प्रश्न 3.
कवि ने मनुष्य को क्या बनने को कहा है?
उत्तर:
प्रश्न 4.
कवि मनुष्य से क्या न बनने को कहा है?
उत्तर:
प्रश्न 5.
घृणा किससे महान है?
उत्तर:
प्रश्न 6.
सदैव किस पर गर्व न करना चाहिए?
उत्तर:
प्रश्न 7.
आज कौन तृषित है?
उत्तर:
प्रश्न 8.
आज मनुष्य क्या भूल गया है?
उत्तर:
प्रश्न 9.
किसकी जीत हार के समान मानी जाती है?
उत्तर:
प्रश्न 10.
मानब को किस प्रकार का मन मिला है?
उत्तर:
प्रश्न 11.
‘फिर महान बन’ कविता का मूल भाव क्या है?
उत्तर:
C. रिक्तस्थानों को भरिए।
प्रश्न 1.
……………… अपना कर्त्तव्य भूल गया है।
उत्तर:
मनुष्य
प्रश्न 2.
संसार को ……………. बनाने के लिए शर्मा जी की चेतावनी है।
उत्तर:
स्वर्ग
प्रश्न 3.
विश्व है तृषित, मनुष्य, अब न बन …………….. ।
उत्तर:
कृपण
प्रश्न 4.
‘फिर महान बन’ कविता …………………. कवि ने लिखी है।
उत्तर:
नरेंद्र शर्मा
प्रश्न 5.
मनुष्य को ……………… प्रकार का मन मिला है।
उत्तर:
अपार प्रेम से भरा
प्रश्न 6.
विश्व आज …………… है।
उत्तर:
प्यासा
प्रश्न 7.
जो शत्रु को क्षमा प्रदान नहीं करता, उसकी जीत के समान है।
उत्तर:
पराजय
प्रश्न 8.
जीत का सुमन बनता है।
उत्तर:
काँटा
प्रश्न 9.
“दर्प शक्ति पर सदैव गर्व कर न, मन” – यह पंक्ति कवि की है।
उत्तर:
नरेंद्र शर्मा
प्रश्न 10.
पाप से घृणा
उत्तर:
महान
प्रश्न 11.
दर्प-शक्ति पर सदैव करना न मन।
उत्तर:
गर्व
प्रश्न 12.
अपार प्रेम से भरा मन से मिला।
उत्तर:
मनुष्य
प्रश्न 13.
कवि ने मनुष्य को बनने को कहा।
उत्तर:
श्रेष्ठ
प्रश्न 14.
मनुष्य की संतान है।
उत्तर:
अमृत की
D. सही उत्तर चुनिए।
1. ‘फिर महान बन’ कविता के कवि कौन है?
(A) कबिर दास
(B) सूरदास
(C) नरेन्द्र शर्मा
(D) गिरिधर कविराज
उत्तर:
(C) नरेन्द्र शर्मा
2. ‘फिर महान बन’ के कवि का जन्म कब हुआ ?
(A) सन् 1910
(B) सन् 1912
(C) सन् 1911
(D) सन् 1913
उत्तर:
(D) सन् 1913
3. कवि का जन्म कौन से राज्य में हुआ था?
(A) बिहार
(B) उत्तर प्रदेश
(C) मध्यप्रदेश
(D) झारखंड़
उत्तर:
(B) उत्तर प्रदेश
4. कवि ने किसको फिर महान बनने की प्रेरणा दी है?
(A) पशु को
(B) मनुष्य को
(C) पक्षी को
(D) अपने आपको
उत्तर:
(B) मनुष्य को
5. किसके कारण मनुष्य श्रेष्ठ प्राणी कहलाता है?
(A) दया
(B) महानता
(C) घृणा
(D) बुद्धि
उत्तर:
(B) महानता
6. किस पर सदैव गर्व न करना चाहिए?
(A) घमंड़
(B) दर्पशक्ति
(C) घृणा
(D) इनमें से कोई भी नहीं
उत्तर:
(B) दर्पशक्ति
7. संसार को क्या बनाने की कवि की चेष्टा है?
(A) नर्क
(B) धरित्री
(C) स्वर्ग
(D) पवित्र
उत्तर:
(C) स्वर्ग
8. मनुष्य को किस पर सचेतन होना चाहिए?
(A) श्रम
(B) कर्त्तव्य
(C) काम
(D) आलस्य
उत्तर:
(B) कर्त्तव्य
9. मनुष्य किसकी संतान है?
(A) अमृत की
(B) धरणी की
(C) माता की
(D) अंबर की
उत्तर:
(A) अमृत की
10. किस से घृणा महान है?
(A) हत्या
(B) घृणा
(C) पाप
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) पाप
दोहे (ତେ।ହେ)
फिर महान बन, मनुष्य!
फिर महान बन।
मन मिला अपार प्रेम से भरा तुझे,
इसलिए कि प्यास जीब- मात्र कि बुझे,
बिश्व है तृषित, मनुष्य,
अब न बन कृपण।
फिर महान बन !
ଫିର୍ ମହାନ୍ ବନ୍, ମନୁଷ୍ୟ !
ଫିର୍ ମହାନ୍ ବନ୍ ।
ମନ୍ ମିଲା ଅପାର୍ ପ୍ରେମ୍ ସେ ଭରା ତୁଝେ,
ଇସ୍ଏ କି ପ୍ୟାସ୍ ଜୀବ୍-ମାତ୍ର କି ବୁଝେ,
ବିଶ୍ଵ ହୈ ତୃଷିତ୍, ମନୁଷ୍ୟ, ଅଚ୍ ନ ବନ୍ କୃପଣ୍।
ଫିର୍ ମହାନ୍ ବନ୍।
ଅନୁବାଦ:
ପୁନଶ୍ଚ ଶ୍ରେଷ୍ଠ ହୁଅ ମାନବ । ତୋତେ ଅସୀମ ପ୍ରେମର ମନ ମିଳିଛି ତେଣୁ ଶୋଷିଲା ପ୍ରାଣୀର ତୃଷା ମେଣ୍ଟାଅ । ବର୍ତ୍ତମାନ କୃପଣ ନ ହୋଇ ସଂସାରରେ ଥିବା ତୃଷିତ ମନୁଷ୍ୟର ତୃଷାକୁ ମେଣ୍ଟାଅ ଏବଂ ଶ୍ରେଷ୍ଠ ମନୁଷ୍ୟ ରୂପେ ସମାଜରେ ପରିଚିତ ହୁଅ।
शत्रु को न कर सके क्षमा प्रदान जो,
जित क्यों उसे न हार के समान हो?
शूल क्यों न बक्ष पर बने विजय-सुमन!
फिर महान बन।
ଶତ୍ରୁ କୋ ନ କର ସକେ କ୍ଷମା
ଜିତ୍ ଜ୍ୟୋ ଉସେ ନ ହାର୍ କେ ସମାନ୍ ହୋ
ଶୁଲ୍ କେଁ ନ ବକ୍ଷ ପର୍ ବନେ ବିଜୟ-ସୁମନ୍!
ଫିର ମହାନ୍ ବନ୍।
ଅନୁବାଦ;
ଯେଉଁ ବ୍ୟକ୍ତି ଶତ୍ରୁକୁ କ୍ଷମା ପ୍ରଦାନ କରିପାରେନା, ତାହାର ଜୟ ପରାଜୟ ସହ ସମାନ। ଯେପରିକି ଶୂଳ-ବିଦ୍ଧ ହୃଦୟ ବିଜୟକୁ ଫୁଲ ପରି ଗ୍ରହଣ କରିଥାଏ, ତୁ ସେହିପରି ମହାନ୍ ହେବାକୁ ଚେଷ୍ଟାକର।
दुष्ट हार मानते न दुष्ट नेम से,
पाप से घृणा महान है, न प्रेम से
दर्प-शक्ति पर सदैब गर्व कर न, मन।
फिर महान बन।
ଦୁଷ୍ଟ ହାର୍ ମା ନ ଦୁଷ୍ଟ ନେମ୍ ସେ,
ପାପ୍ ସେ ଘୃଣା ମହାନ୍ ହୈ, ନ ପ୍ରେମ୍ ସେ
ଦୁର୍ପ-ଶକ୍ତି ପର୍ ସଦୈବ ଗର୍ବ କର୍ ନ, ମନ୍ ।
ଫିର୍ ମହାନ୍ ବନ୍।
ଅନୁବାଦ:
ଦୁଷ୍ଟ ନିୟମରେ ହାର ମାନିବ, ପାପଠାରୁ ଘୃଣା ମହାନ୍ ଅଟେ ନା ପ୍ରେମରୁ । ନିଜର ଶକ୍ତି ବା କ୍ଷମତା ଉପରେ ସର୍ବଦା ଗର୍ବ କର ନାହିଁ । ପୁନଶ୍ଚ ଶ୍ରେଷ୍ଠ ମନୁଷ୍ୟରେ ପରିଚିତ ହୁଅ ।
शबनार: (ଶରାର୍ଥି)
महान – श्रेष्ठ (ଶ୍ରଷ୍ଠ) ।
अपार – असीम ( ଅସୀମ ବା ସୀମାହୀନ) ।
प्यास – तृषा (ତୃଷା, ଶୋଷ) ।
तृषित – प्यासा (ଶୋଷିଲା) ।
कृपण – कंजूस (କୃପଣ ) ।
विजय सुमन – जीत के फूल (ବିଜୟର ଫୁଲ) ।
शूल – काँटा, पीड़ा (କଣ୍ଟା, ଯନ୍ତ୍ରଣା ବା କଷ୍ଟ) ।
सुमन – पुष्प, फूल, प्रसून, कुसुम (ଫୁଲ, ପୁଷ୍ପ, କୁସୁମ) ।
घृणा – नफरत ( ଘୃଣା) ।
सदैव – सदा, सर्वदा ( ସବୁବେଳେ ) ।
गर्व – घमंड, अभिमान (ଅହଙ୍କାର, ଅଭିମାନ) ।
वक्ष – हृदय (ହୃଦୟ, ଛାତି) ।
नेम – नियम, फायदा, दस्तूर, रीति (ନିୟମ) ।
दर्पशक्ति – घमण्ड (ଗର୍ବ, ଅହଙ୍କାର) ।
कवि परिचय (କବି ପରିଚୟ)।
नरेन्द्र शर्मा का जन्म सन् 1913 ईस्वी को उत्तर प्रदेश के बुलंदर शहर जनपद के जहाँगीरपुर नामक गाँव में हुआ। सन् 1936 ईस्वी में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम. ए. पास किया। साहित्य-सृजन के प्रति उनकी पहले सी ही रुचि रही। छात्र – जीवन में ही ‘भूलझूल’ तथा ‘कर्णफूल’ प्रकाशित हुए। फिर उन्होंने स्वतंत्रता- संग्राम में भाग लिया। जेल गए। कुछ दिनों तक अध्यापक हुए। फिर सिनेमा के लिए गीत लिखे। बाद में मुम्बाई आकाशवाणी केन्द्र में नियुक्त हुए। 1988 में आपका देहान्त हो गया। प्रमुख कविता संकलन हैं : प्रभात फेरी, प्रवासी के गीत, प्रीति कथा, कामिनी, अग्नि शस्य, कदली वन, प्यासा निर्झर, उत्तरजय, बहुत रात गए आदि।
नरेन्द्र शर्मा की कविता में मानव – प्रेम, प्रकृति – सौन्दर्य के सरल और सजीव चित्र मिलते हैं। जड़ वस्तुओं में मानवीय चेतना, करुणा की भावधारा बहती है। बाद में वे समाज के दुःख-दर्द के प्रति आकृष्ट हुए और असुविधाओं को दूर करने की आवाज उठाई ।विद्रोह किया। शर्माजी की भाषा सरल, शुद्ध और भावगर्भक होती है।