Odisha State Board BSE Odisha 10th Class Hindi Solutions Chapter 2 बोध Textbook Exercise Questions and Answers.
BSE Odisha Class 10 Hindi Solutions Chapter 2 बोध
प्रश्न और अभ्यास (ପ୍ରଶ୍ନ ଔର୍ ଅଭ୍ୟାସ)
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में दीजिए:
(ନିମ୍ନଲିଖୂ ପ୍ରଶ୍ନୋ କେ ଉତ୍ତର୍ ଦୋ-ତୀନ୍ ବାକେଁ ମେଁ ଦୀଜିଏ : )
(ନିମ୍ନଲିଖତ ପ୍ରଶ୍ନଗୁଡ଼ିକର ଉତ୍ତର ଦୁଇ-ତିନୋଟି ବାକ୍ୟରେ ଦିଅ : )
(क) पण्डित चन्द्रधर हमेशा क्यों पछताया करते थे?
(ପଣ୍ଡିତ ଚନ୍ଦ୍ରଧର ହମେଶା ଜ୍ୟୋ ପଛତାୟା କରତେ ଥେ ?)
उत्तर:
पण्डित चन्द्रधर अपनी नौकरी के बारे में सोचते हुए पछताया करते थे कि कहाँ से इस जंजाल में आ फँसे। पंडितजी का मानना था कि यदि वे किसी अन्य विभाग में नौकरी करते तो हाथ में चार पैसे होते अर्थात् जिदंगी आराम से गुजरता परंतु इस शिक्षकता की नौकरी न खाने का सुख, न पहनने का आराम।
(ख) पण्डितजी क्यों कहा करते थे कि ‘हमसे तो मजूर ही भले’?
(ପଣ୍ଡିତ୍ କୈ କହା କର୍ତେ ଥେ କି ‘ହମ୍ ତୋ ମୟୂର ହୀ ଭଲେ’ ?)
उत्तर:
पंडितजी अपने रोजगार और पेशे की तुलना दूसरों से करते थे। पंडितजी का मासिक बेतन के रुप में सिर्फ पंद्रह रूपये मिलते थे। यह भी इधर आए, उधर गायब। उन्हें न खाने का सुख, न पहनने का आराम। इसलिए पंडितजी कहा करते थे, कि हमसे तो मजूर ही भले। जो उनसे अच्छी जिंदगी जीत हैं। कम से कम मजूर अपनी मजूरी तो घर में रोज लाते हैं। उससे से मजदूरों की जिंदगी आराम से कटती। पंडितजी अपने पड़ोसियों की ठाट-बाट देखकर जलते और अपने भाग्य को कोसते थे।
(ग) ठाकुर अतिबल सिंह और मुंशी बैजनाथ के लिए बाजार में कैसे अलग भाव था?
(ଠାକୁର ଅତିବଲ୍ ସିଂହ ଔର୍ ପୁଂଶୀ ବୈଜନାଥ୍ କେ ଲିଏ ବାଜାର୍ ମେଁ କୈସେ ଅଲ୍ଗ୍ ଭାୱ ଥା?)
उत्तर:
ठाकुर अतिबल सिंह और मुंशी बैजनाथ के लिए बाजार में अलग भाव था। बह चार पैसे की चीज टके में लाते थे। उन लोगों को लकड़ी ईंधन, जलावन मुफ्त में मिलता था। उ लोगों की पद और रोष दाब को देखते ही बनिए सलाम करते थे।
(घ) ठाकुर साहब और मुंशीजी की कृपा के बदले में पण्डितजी को क्या करना पड़ता था?
(ଠାକୁର ସାହବ୍ ଔର୍ ମୁଁଶୀଜୀ କୀ କୃପା କେ ବଦଲେ ମେଁ ପଣ୍ଡିତଜୀ କୋ କ୍ୟା କନା ପଡ଼ତା ଥା ?)
उत्तर:
ठाकुर साहब और मुंशीजी की कृपा के बदले में पंडितजी को ठाकुर साहब के दो और मुंशीजी के तीन लड़कों की निगरानी करनी पड़ती। मुंशी जी कहते यह लड़के अवारा हुए जाते हैं, जरा इनका ख्याल रखिए। ठाकुर साहब और मुशीजी की कृपा के बदले में पंडितजी को कभी-कभी दूध-दही के दर्शन हो जाते, कभी आचार – चटनी चख लेते। केवल इतना ही नहीं बाजार से चीजें भी सस्ती लाते।
(ङ) अपनी दुरवस्था से निकलनेके लिए पण्डितजी ने क्या किया?
(ଅପନୀ ଦୁରବସ୍ଥା ସେ ନିକଲ୍ନେ କେ ଲିଏ ପଣ୍ଡିତ୍ ନେ କ୍ୟା କିୟା ?)
उत्तर:
अपनी दुरवस्था से निकलने के लिए पंडितजी ने बड़े-बड़े यत्न किये थे। उन्होंने बड़े – बड़े अफसरों को पत्र लिखे, उनकी खुशामदें कीं पर आशा पुरी न होती थी।
(च) पण्डितजी पर अफसर लोग क्यों खुश थे?
(ପଣ୍ଡିତ୍ ପର୍ ଅଫସର୍ ଲୋର୍ କ୍ୟା ଖୁଶ୍ ଥେ ?)
उत्तर:
पंडितजी अपने काम में त्रुटि न होने देते थे। ठीक समय पर विद्यालय जाते, देर करके आते, मन लगाकर पढ़ाते थे। इससे उनके अफसर लोग खुश थे। उनकी कर्म निष्ठता और अच्छे व्यवहार के लिए साल में कुछ इनाम देते और वेतन वृद्धि का जब कभी अवसर आता तो अफसर उसका विशेष ध्यान रखते।
(छ) पहले मुसाफिर ने ठाकुर अतिवल सिंह को गाड़ी में क्यों नहीं बैठने दिया?
(ପହଲେ ମୁସାଫିର୍ ନେ ଠାକୁର୍ ଅତିବଲ୍ ସିଂହ କୋ ଗାଢ଼ୀ ମେଁ କେଁ ନହୀ ବୈଠନେ ଦିୟା ?)
उत्तर:
पहले मुसाफिर ने ठाकुर अतिबल सिंह को गाड़ी में इसलिए नहीं बैठने दिया क्योंकि ठाकुर साहब ने खुफिया फरोसी का अपराध उसके ऊपर लगाया था और नकद २५ रुपये लेकर उसके दरवाजे से टले थे।
(ज) ठाकुर साहब ने दूसरे मुसाफिर का क्या बिगाड़ा था?
(ଠାକୁର୍ ସାହବ୍ ନେ ଦୂସ୍ରେ ମୁସାଫିର୍ କା କ୍ୟା ବିଗାଡ଼ା ଥା ?)
उत्तर:
ठाकुर साहब ने दूसरे मुसाफिर को कल के मेले में कई डंड़े लगाए थे। मेले में दूसरा मुसफिर चुपचाप तमशा देखरहा था मगर ठाकुर साहब ने आकर उसका कचूमर निकाल दिया था। मार खाने के बाद भी वह चुप रहा था।
(झ) डाक्टर चोखेलाल मुंशी बैजनाथ से क्यों नाराज था?
(ଡାକ୍ଟର୍ ଚୋଖେଲାଲ୍ ମୁଁଶୀ ବୈଜନାଥ ସେ କ୍ୟା ନାରାଜ୍ ଥା ?) ,
उत्तर:
डॉक्टर चोखेलाल मुंशी बैजनाथ से नाराज था क्योंकि जब वह तहसील में लगान जमा कराने जाता था साल में दो बार उसकी देखभाल जाना पड़ता है। मुंशी जी डाँक्टर अपना हक वसूल कर लेते है। मुंशी जी न देते तो शाम तक खड़े रहते थे। स्याहा न हो। फिर जनाब कभी गाड़ी नाव पर, कभी नाव गाड़ी पर और फिर दस रूपये देते पड़े।
(ञ) पण्डित चन्द्रधर को नींद क्यों नहीं आयी?
(ପଣ୍ଡିତ ଚନ୍ଦ୍ରଧର କୋ ନୀନ୍ଦ କୈ ନହୀ ଆୟୀ?)
उत्तर:
सब लोग तो खा-पीकर सो गये। किन्तु पंडितजी चन्द्रधर का नींद नहीं आयी। उनकी विचार शक्ति इस यात्रा की घटनाओं को याद करने लगी। उस दिन की रेलगाड़ी की रगड़-झगड़ और चिकित्सालय की नोच-खसोट के सामने कृपाशंकर की सहायता और शालीनता अधिक प्रकाशमय दिखायी देती थी। इस तरह पंड़ितजी ने आज शिक्षक का गौरव समझा।
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों में दीजिए :
(ନିମ୍ନଲିଖୂ ପ୍ରଶ୍ନ କେ ଉତ୍ତର୍ ଏକ ୟା ଦୋ ୱାର୍କୋ ମେଁ ଦୀଜିଏ : )
(ନିମ୍ନଲିଖତ ପ୍ରଶ୍ନଗୁଡ଼ିକର ଉତ୍ତର ଗୋଟିଏ ବା ଦୁଇଟି ବାକ୍ୟରେ ଦିଅ ।)
(क) पण्डित चन्द्रधर ने कहाँ मुदर्रिसी की थी?
“(ପଣ୍ଡିତ୍ ଚନ୍ଦ୍ରଧର ନେ କହାଁ ମୁଦରିସୀ କୀ ଥୀ ?)
उत्तर:
पण्डित चन्द्रधर ने एक अपर प्राइमरी में मुदर्रिसी की थी।
(ख) पण्डित जी के पड़ोस में कौन-कौन रहते थे?
(ପଣ୍ଡିତ୍ ଜୀ କେ ପଡ଼ୋସ୍ ହେଁ କୌନ୍-କୌନ୍ ରହତେ ଥେ ?)
उत्तर:
पण्डित जी के पड़ोस में मुंशी बैजनाथ और ठाकुर अतिबल सिंह रहते थे।
(ग) सन्ध्या को कचहरी से आने पर मुंशी बैजनाथ क्या करते थे?
(ସନ୍ଧ୍ୟା କୋ କଚହରୀ ସେ ଆନେ ପର ମୁଁଶୀ ବୈଜନାଥ କ୍ୟା କର୍ତେ ଥେ ?)
उत्तर:
सन्ध्या को कचहरी से आने पर मुंशी बैजनाथ बच्चों को पैसे और मिठाइयाँ देते थे। शराब- कबाब का मजा लेते थे।
(घ) ठाकुर साहब शाम को क्या करते थे?
(ଠାକୁର ସାହବ୍ ଶାମ୍ କୋ କ୍ୟା କର୍ତେ ଥେ ?)
उत्तर:
ठाकुर साहब शाम को आराम कुर्सी पर लेटे खुशबूदार खमीरा पीते थे।
(ङ) दोनों महाशयों को आते-जाते देखकर बनिये क्या करते थे?
(ଦୋର୍ଡୋ ମହାଶୟୈ କୋ ଆତେ-ଜାତେ ଦେଖ୍କର୍ ବନିୟେ କ୍ୟା କରତେ ଥେ ?)
उत्तर:
दोनों महाशयों को आते-जाते देखकर बनिये उठकर सलाम करते थे।
(च) पण्डित जी अपने भाग्य को क्यों कोसते थे?
(ପଣ୍ଡିତ୍ ଜୀ ଅପନେ ଭାଗ୍ୟ କୋ କୈ କୋସ୍ ଥେ ?)
उत्तर:
पण्डितजी मुंशी बैजनाथ और ठाकुर अतिबल सिंह के ठाट-बाट को देखकर कुढ़ते और अपने भाग्य को कोसते थे।
(छ) मुंशी जी ने पण्डितजी को किसका ख्याल रखनेको कहा और क्यों?
(ମୁଁଶୀ ଜୀ ନେ ପଣ୍ଡିତ୍ କୋ କିସ୍କା ଖ୍ୟାଲ ରଖ୍ କୋ କହା ଔର୍ କେଁ ?)
उत्तर:
मुंशीजी ने पण्डितजी को उनके लड़कों का ख्याल रखने को कहा क्योंकि वे आवारा हुए थे जा रहे।
(ज) ऊसर की खेती किसे कहा गया है?
(ଊସର୍ କୀ ଖେତୀ କିସେ କହା ଗୟା ହୈ ?)
उत्तर:
शिक्षा विभाग की वेतन वृद्धि को ऊसर की खेती कहा गया है।
(झ) पहले मुसाफिर पर ठाकुर साहब ने कौन-सा अपराध लगाया था और कितने रुपये लेकर वे टले थे?
(ପହଲେ ମୁସାଫିର୍ ପର୍ ଠାକୁର ସାହବ୍ ନେ କୌନ୍-ସା ଅପରାଧ୍ ଲଗାୟା ଥା ଔର୍ କିମ୍ ରୂପୟେ ଲେକର୍ ୱେ ଟଲେ ଥେ ?)
उत्तर:
पहले मुसाफिर पर ठाकुर साहब ने खुफिया फरोसी का अपराध लगाया था और २५ रुपए लेकर वे टले थे।
(ञ) दूसरे मुसाफिर ने ठाकुर साहब से नीचे बैठ जाने की बात करते हुए क्या कहा?
(ଦୂସ୍ରେ ମୁସାଫିର୍ ନେ ଠାକୁର୍ ସାହବ୍ ସେ ନୀଚେ ବୈଠ୍ ଜାନେ କୀ ବାତ୍ କର୍ତେ ହୁଏ କ୍ୟା पीटा?)
उत्तर:
दूसरे मुसाफिर ने ठाकुर साहब से नीचे बैठ जाने की बात करते हुए कहा कि- इसमें कौन सी हेठी हुई जाती है। यह थाना थोड़े ही है कि आपके रोब में दाग लग जाएगा।
(ट) कृपाशंकर ने बिल्हौर से कौन-सी परीक्षा पास की और अयोध्या में किस पद पर तैनात हुआ था?
(କୃପାଶଙ୍କର୍ ନେ ବିଲ୍ର ସେ କୌନ୍-ସୀ ପରୀକ୍ଷା ପାସ୍ କୀ ଔର୍ ଅୟୋଧ୍ୟା ମେଁ କିସ୍ ପଦ୍ ପର୍ ତୈନାତ୍ ହୁଆ ଥା ?)
उत्तर:
कृपाशंकर ने बिल्हौर से आकर इन्ट्रेस की परीक्षा पास की और अयोध्या में म्युनिसिपालटी में नौकरी की थी।
(ठ) पण्डित जी को किस बात का बोध हुआ?
(ପଣ୍ଡିତ୍ ଜୀ କୋ କିସ୍ ବାତ୍ କା ବୋଧ ହୁଆ ?)
उत्तर:
पण्डित जी को शिक्षक पद की महानता का बोध हुआ।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-एक शब्द में दीजिए:
(ନିମ୍ନଲିଖୂ ପ୍ରଶ୍ନ କେ ଉତ୍ତର୍ ଏକ ୟା ଦୋ ୱାର୍କୋ ମେଁ ଦୀଜିଏ : )
(ନିମ୍ନଲିଖତ ପ୍ରଶ୍ନଗୁଡ଼ିକର ଉତ୍ତର ଗୋଟିଏ ବା ଦୁଇଟି ବାକ୍ୟରେ ଦିଅ । )
(क) ‘बोध’ कहानी किसने लिखी है?
(‘ବୋଧ୍’ କହାନୀ କିସ୍ ଲିଖୀ ହୈ ?)
उत्तर:
प्रेमचंद
(ख) पण्डित चन्द्रधर ने अपर प्राइमरी में कौन-सी नौकरी की थी?
(ପଣ୍ଡିତ୍ ଚନ୍ଦ୍ରଧର୍ ନେ ଅପର୍ ପ୍ରାଇମରୀ ମେଁ କୌନ୍-ସୀ ନୌକରୀ କୀ ଥୀ ?)
उत्तर:
शिक्षक
(ग) कौन सदा पछताया करते थे कि कहाँ से इस जंजाल में आ फँसे?
(କୌନ୍ ସଦା ପଛତାୟା କରତେ ଥେ କି କହାଁ ସେ ଇସ୍ ଜଞ୍ଜାଳ ମେଁ ଆ ମୁଁସେ ?)
उत्तर:
पण्डित चन्द्रधर
(घ) महीने भर प्रतीक्षा करने के बाद पण्डित जी को कितने रुपये देखने को मिलते थे?
(ମହୀନେ ଭର୍ ପ୍ରତୀକ୍ଷା କର୍ନେ କେ ବାଦ୍ ପଣ୍ଡିତ୍ ଜୀ କୋ କିତ୍ ରୂପୟେ ଦେଖୁନେ କୋ ମିଲ ଥେ ?)
उत्तर:
पंद्रह रुपए
(ङ) तहसील में सियाहेनवीस कौन था?
(ତହସୀଲ୍ ମେଁ ସିୟାହେନବୀସ୍ କୌନ୍ ଥା ?)
उत्तर:
मुंशी बैजनाथ
(च) ठाकुर साहब आराम कुर्सी पर लेटकर क्या पीते थे?
(ଠାକୁର ସାହବ୍ ଆରାମ୍ କୁର୍ସୀ ପର୍ ଲେଟକର୍ କ୍ୟା ପୀତେ ଥେ ?)
उत्तर:
खुशबूदार खमीरा
(छ) मुंशी जी को कौन-सा व्यसन था?
(ମୁଁଶୀ ଜୀ କୋ କୌନ୍-ସା ବ୍ଯସନ୍ ଥା ?)
उत्तर:
शराब-कबाव
(ज) अफसर लोग किस पर खुश थे?
(ଅଫସର୍ ଲୋଗ୍ କିସ୍ ପର୍ ଖୁଶ୍ ଥେ ?)
उत्तर:
पण्डित चन्द्रधर
(झ) वेतन वृद्धि को किसकी खेती कहा गया है ?
(ବେତନ୍-ବୃଦ୍ଧି କୋ କିସ୍ ଖେତୀ କହା ଗୟା ହୈ ?)
उत्तर: ऊसर
(ञ) कौन-से महीने में मुंशी बैजनाथ और ठाकुर अतिबल सिंह अयोध्या की यात्रा के लिए निकले थे?
(କୌନ୍-ସେ ମହୀନେ ମେଁ ପୁଂଶୀ ବୈଜନାଥ ଔର୍ ଠାକୁର୍ ଅତିବଲ୍ ସିଂହ ଅଯୋଧ୍ୟା କୀ ଯାତ୍ରା କେ ଲିଏ ନିକ୍ ଥେ ?)
उत्तर:
सावन के महीने
(ट) दोनों महाशयों ने कितने सप्ताह की छुट्टी ली?
उत्तर:
एक सप्ताह
(ठ) बिल्हौर से कितने बजे गाड़ी छूटती थी?
(ବିଲ୍ହୌର ସେ କିତନେ ବଜେ ଗାଢ଼ୀ ଛୁତୀ ଥୀ ?)
उत्तर:
रात एकबजे
(ड) डाक्टर चोखेलाल कहाँ के रहनेवाले थे?
(ଡାକ୍ଟର୍ ଚୋଖେଲାଲ୍ କହାଁ କେ ରହନେୱାଲେ ଥେ ?)
उत्तर:
बिल्हौर
(ढ) किसकी विनय और नम्रता ने सब को मुग्ध कर लिया?
(କିସ୍ ବିନୟ ଔର୍ ନମ୍ରତା ନେ ସବ୍ କୋ ମୁଗ୍ଧ କର୍ ଲିୟା?)
उत्तर:
कृपाशंकर
(ण) शिक्षक का गौरव किसने समझा?
(ଶିକ୍ଷକ୍ କା ଗୌର କିସ୍ ସମ୍ ?)
उत्तर:
पण्डित चन्द्रधर
(त) सभी लोग अयोध्या में कितने दिन रहे?
(ସଭୀ ଲୋଗ୍ ଅୟୋଧ୍ୟା ମେଁ କିତ୍ ଦିନ୍ ରହେ ?)
उत्तर:
तीन दिन
4. निम्नलिखित अवतरणों का अर्थ स्पष्ट कीजिए:
(ନିମ୍ନଲିଖ୍ ଅବତରଣୋ କା ଅର୍ଥ ସ୍ପଷ୍ଟ କୀଜିଏ : )
(ନିମ୍ନଲିଖ୍ ଅବତରଣଗୁଡ଼ିକର ଅର୍ଥ ସ୍ପଷ୍ଟ କର : )
(क) हमसे तो मजूर ही भले।
(ହମ୍ ତୋ ମୟୂର୍ ହୀ ଭଲେ ।)
उत्तर:
हमसे तो …………………………….. भले।
यह वाक्य पण्डित चन्द्रधर ने अपने को कोसते हुए कहा है। क्योंकि पंद्रह रुपए महीने वेतन में न खाने का सुख था न पहनते का आराम। एक मजदूर इससे कहीं अच्छा है।
(ख) परन्तु इस विभाग की वेतन वृद्धि ऊसर की खेती है।
(ପରନ୍ତୁ ଇସ୍ ଵିଭାଗ୍ କୀ ୱେତନ୍-ବୃଦ୍ଧି ଉସର୍ କୀ ଖେତୀ ହୈ ।)
उत्तर:
परंतु इस ……………………….. खेती है ।
शिक्षा विभाग एक खारी जमीन के समान है जिसमें पानी बरसने पर घास तक नहीं अगती अर्थात् इस बिभाग में वेतन बृद्धि नहीं के बराबर है।
(ग) कभी गाड़ी नाव पर, कभी नाव गाड़ी पर।
(କଭୀ ଗାଡ଼ୀ ନାୱ ପର୍, କଭୀ ନାୱେ ଗାଢ଼ୀ ପର୍ ।)
उत्तर:
कभी गाड़ी………………………… .गाड़ी पर।
उपरोक्त बाक्य डॉक्टर चोखेलाल ने मुंशी बैजनाथ को कहा। क्योंकि तहसील में जब डॉक्टर चोखेलाल लगान जमा कराने गया था तब मुंशी बैजनाथ ने उसे डाँटकर अपना हक वसूल कर लिया था। अब वे मरीज बनकर अस्पताल में आए तो डॉक्टर उनको डाँटकर उनसे दस रूपये फीस वसूल करते हैं।
(घ) पण्डित जी ने आज शिक्षक का गौरव समझा।
(ପଣ୍ଡିତ୍ ଜୀ ନେ ଆଜ୍ ଶିକ୍ଷକ୍ କା ଗୌର ସମ୍ଝା ।)
उत्तर:
पण्डित जी ने ………………………… गौरव समझा।
पंडित जी शिक्षक की नौकरी से नाखुश थे। शिक्षक की नौकरी करके वे पंद्रह रुपए महीने पाते थे। जो कि उनके घर के मासिक खर्च के लिए काफि नहीं था। इसलिए हमेशा वे अपने को कोसते रहते थे। लेकिन अयोध्या यात्रा की घटनाएँ तथा उनके छात्र कृपाशंकर की सहायता और शालीनता ने उनको शिक्षक पद की महानता का ज्ञान कराया और पण्डित जी ने शिक्षक गौरव को समझा।
5. रिक्त स्थानों को भरिए:
(ରିକ୍ତ ସ୍ଥାନୌ କୋ ଭରୀଏ : )
(ଶୂନ୍ୟସ୍ଥାନ ପୂରଣ କର : )
(क) …………………. पैसे की चीज टके में लाते।
उत्तर:
चार
(ख) ईश्वर ने उन्हें इतनी …………………. दे रखी थी।
उत्तर:
प्रभुता
(ग) आपने आकर मेरा ……………………….. निकाल दिया।
उत्तर:
कचूमर
(घ) दारोगा जी ने ………………….. कर एक डोली का प्रबन्ध किया।
उत्तर:
दौड़-धूप
(ङ) मेरे पिता कुछ दिनों बिल्हौर के …………………….. रहे थे।
उत्तर:
डाक मुंशी
6. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिये गये विकल्यों में से चुनकर लिखिए:
(ନିମ୍ନଲିଖୂ ପ୍ରଶ୍ନୋ କେ ଉତ୍ତର୍ ଦିୟେ ଗୟେ ବିକର୍ଡୋ ମେ ସେ ଚୁକର୍ ଲିଗ୍ : )
(क) पण्डित चन्द्रधर को कितने रुपये मासिक वेतन मिलता था?
(i) दस
(ii) पचास
(iii) पन्द्रह
(iv) सौ
उत्तर:
(iii) पन्द्रह
(ख) मुंशी बैजनाथ के कितने लड़के थे?
(i) दो
(ii) चार
(iii) तीन
(iv) पाँच
उत्तर:
(iii) तीन
(ग) ‘ इसमें कौन-सी हेठी हुई जाती है’। यह वाक्य किसने कहा?
(i) पहले मुसाफिर ने
(ii) पण्डित चन्द्रधर ने
(iii) दूसरे मुसाफिर ने
(iv) मुंशी बैजनाथ ने
उत्तर:
(iii) दूसरे मुसाफिर ने
(घ) ‘आपके खून का प्यासा हूँ’ का अर्थ है-
(i) खून पीना चाहता हूँ
(ii) प्यास बुझाना चाहता हूँ
(iii) वध करना चाहता हूँ
(iv) मार-पीट करना चाहता हूँ
उत्तर:
(iii) वध करना चाहता हूँ
(ङ) ‘पण्डित जी ने आज शिक्षक का गौरव समझा’ का आशय है
(i) शिक्षकता का महत्त्व अधिक है।
(ii) सबसे बड़ी नौकरी शिक्षक की है।
(iii) दूसरी नौकरियों का कोई महत्त्व नहीं है।
(iv) शिक्षक बनने में वेतन अधिक मिलता है।
उत्तर:
(i) शिक्षकता का महत्त्व अधिक है।
भाषा-ज्ञान (ଭାଷା-ଜ୍ଞାନ)
1. निम्नलिखित वाक्यों को पढ़िए:
(क) पण्डित चन्द्रधर ने एक अपर प्राइमरी में मुदर्रिसी की थी।
(ख) पण्डित जी के पड़ोस में दो महाशय और रहते थे।
(ग) ठाकुर साहब शाम को आराम कुरसी पर लेट जाते थे।
(घ) गाड़ी में जगह की बड़ी कमी थी।
(ङ) ठाकुर साहब क्रोध से लाल हो रहे थे।
(च) ठाकुर साहब ने बाल-बच्चों को वहाँ से निकालकर दूसरे कमरे में बैठाया।
पहले वाक्य में (ପ୍ରଥମ ବାକ୍ୟରେ) ‘पण्डित चन्द्रधर ने’, ‘एक अपर प्राइमरी में’, ‘मुदर्रिसी’;
दूसरे वाक्य में (ଦ୍ଵିତୀୟ ବାକ୍ୟରେ) ‘पण्डितजी के’, ‘पड़ोस में’;
तीसरे वाक्य में (ତୃତୀୟ ବାକ୍ୟରେ) ‘ठाकुर साहब’, ‘शाम को ‘, आराम कुरसी पर ‘ ;
चौथे वाक्य में(ଚତୁର୍ଥ ବାକ୍ୟରେ ‘गाड़ी में’, ‘जगह की’;
पाँचवे वाक्य में (ପଞ୍ଚମ ବାକ୍ୟରେ) ‘ठाकुर साहब’, ‘क्रोध से’;
छठे वाक्य में (ଷଷ୍ଠ ବାକ୍ୟରେ) ‘ठाकुर साहब ने ‘,
‘बाल-बच्चों को’, ‘वहाँ से निकलकर’, ‘दूसरे कमरे में – आदि पद संज्ञा-शब्द के रूप हैं। इनका संबंध क्रमश: ‘की थी’, ‘रहते थे’, ‘लेट जाते थे’, बड़ी कमी थी’, ‘हो रहे थे’, ‘बैठाया’ आदि क्रियाओं से सूचित हो रहा है (ଆଦି କ୍ରିୟାଦ୍ବାରା ସୂଚିତ ହେଉଅଛି)। इसलिए ये शब्द कारक हैं (ଏଣୁ ଏସବୁ କାରକ ଅଟନ୍ତି ।)।
याद रखिए: संज्ञा व सर्वनाम शब्दों का वाक्य के अन्य शब्दों से, क्रिया से संबध बतानेवाले शब्द- रूपों को कारक कहते हैं।
(ମନେରଖ: ବିଶେଷ୍ୟ ଏବଂ ସର୍ବନାମ ଶବ୍ଦର ବାକ୍ୟର ଅନ୍ୟ ଶବ୍ଦ ସହିତ କ୍ରିୟା ସହିତ ସମ୍ବନ୍ଧ ସୂଚିତ କରୁଥିବା ଶବ୍ଦରୂପକୁ କାରକ କହନ୍ତି ।)
साथ-साथ विभक्ति या परसर्ग को भी जानिए
(ଏଥ୍ ସହିତ ବିଭକ୍ତି ବା ପରସର୍ଗକୁ ମଧ୍ଯ ଜାଣ)
ऊपर दिये गये वाक्यों में संज्ञाओं का क्रिया से संबंध बतानेके लिए कुछ चिह्नों जैसे-ने, के, को, पर, की, से आदि का प्रयोग किया गया है। इन चिह्नों को विभक्ति – चिह्न कहते हैं।
(ଉପରେ ଦିଆଯାଇଥବା ବାକ୍ୟଗୁଡ଼ିକରେ ବିଶେଷ୍ୟର କ୍ରିୟା ସହିତ ସମ୍ବନ୍ଧ ସୂଚିତ କରୁଥିବା କିଛି ଚିହ୍ନ ଯେପରି ने, के, को, पर, की, से ଆଦିର ପ୍ରୟୋଗ କରାଯାଇଅଛି। ଏହି ଚିହ୍ନସବୁକୁ ବିଭକ୍ତି ଚିହ୍ନ କୁହାଯାଏ ।)
याद रखिए: वाक्य में प्रयुक्त संज्ञा को, कर्म, आदि में विभक्त करनेवाले या कारकों का रूप प्रकट करने के लिए प्रयोग में आनेवाले शब्द – चिह्नों को विभक्ति कहते हैं।
(ମନେରଖ: ବାକ୍ୟରେ ବ୍ୟବହୃତ ବିଶେଷ୍ୟକୁ, କର୍ମ ଆଦିରେ ବିଭକ୍ତ କରୁଥିବା ବା କାରକର ରୂପକୁ ଦର୍ଶାଇବା ପାଇଁ ବ୍ୟବହୃତ ଶବ୍ଦ ଚିହ୍ନକୁ ବିଭକ୍ତି କୁହାଯାଏ ।)
संज्ञा, सर्वनाम आदि शब्दों के बाद अर्थात् अंत में जुड़नेके कारण विभक्ति को ‘परसर्ग’ भी कहा जाता है। कभी-कभी कुछ वाक्यों में कुछ शब्दों के साथ विभक्ति का प्रयोग नहीं होता।
(ବିଶେଷ୍ୟ, ସର୍ବନାମ ଆଦି ଶବ୍ଦ ପରେ ଅର୍ଥାତ୍ ଶେଷରେ ଲାଗୁଥିବା ବିଭକ୍ତିକୁ ‘ପରସର୍ଗ’ ମଧ୍ୟ କୁହାଯାଏ ।
जैसे- ‘ठाकुर साहब क्रोध से लाल हो रहे थे।’
इस वाक्य में ‘ठाकुर साहब’ के बाद किसी विभक्ति या परसर्ग का प्रयोग नहीं हुआ है। ऐसे वाक्यों में शब्द-क्रम या अर्थ के आधार पर क्रिया से संज्ञा का संबंध स्पष्ट होता है।
(ଏହି ବାକ୍ୟରେ ‘ठाकुर साहब’ ଶବ୍ଦ ପରେ କୌଣସି ବିଭକ୍ତି ବା ପରସର୍ଗର ବ୍ୟବହାର ହୋଇନାହିଁ । ଏପରି ବାକ୍ୟରେ ଶବ୍ଦ-କ୍ରମ ବା ଅର୍ଥକୁ ଆଧାର କରି କ୍ରିୟାରୁ ବିଶେଷ୍ୟର ସମ୍ବନ୍ଧ ସ୍ପଷ୍ଟ ହୋଇଥାଏ ।)
2. विभक्ति- संबंधी अशुद्धियों पर ध्यान दीजिए:
(ବିଭକ୍ତି ସମ୍ବନ୍ଧୀୟ ଅଶୁଦ୍ଧି ଉପରେ ଧ୍ୟାନ ଦିଅ)
(i) सज्ञा शब्द के साथ विभक्ति का प्रयोग होने पर इसे अलग लिखा जाता है।
जैसे- ‘ठाकुर साहब ने बाल-बच्चों को दूसरे कमरे में बैठाया’।
इस वाक्य में ‘ठाकुर साहब’, ‘बाल-बच्चों’ और ‘कमरे’ संज्ञा शब्द हैं और इनके साथ प्रयुक्त क्रमशः ‘ने’, ‘की’ और ‘में’ आदि विभक्तियों का प्रयोग अलग हुआ है।
(ଏହି ବାକ୍ୟରେ ‘ठाकुर साहब’, ‘बाल-बच्चों ବ୍ୟବହୃତ କ୍ରମଶ: ବିଶେଷ୍ୟ ଶବ୍ଦ ଅଟେ ଏବଂ ଏହା ସହିତ ଆଦି ବିଭକ୍ତି ସବୁର ବ୍ୟବହାର ଅଲଗା ହୋଇଅଛି ।)
(ii) सर्वनाम के साथ विभक्ति का प्रयोग होने पर इसे मिलाकर लिखा जाता है।
(ସର୍ବନାମ ସହିତ ବିଭକ୍ତିର ପ୍ରୟୋଗ ହେଲେ ଏହାକୁ ମିଶାଇ ଲେଖାଯାଏ ।)
जैसे- ‘मैंने आपका क्या बिगाड़ा है’?
इस वाक्य में ‘मैं’ और ‘आप’ सर्वनाम शब्द हैं। इनके साथ प्रयुक्त क्रमशः ‘ने’ और ‘का’ प्रयोग मिलकर हुआ है।
(iii) वाक्य में ‘ने’ के प्रयोग पर ध्यान देना आवश्यक है।
(ବାକ୍ୟରେ ‘ने’ ର ପ୍ରୟୋଗ ଉପରେ ଧ୍ୟାନ ଦେବା ଆବଶ୍ୟକ ।)
जैसे- ‘मैंने कुछ का कुछ लिख दिया है।’ ठीक है। पर यह कहना कि ‘मैं कुछ का कुछ लिख दिया हूँ’ गलत है।
ଯେପରି ‘मैंने कुछ का कुछ लिख दिया है। ଠିକ୍ ଅଟେ । କିନ୍ତୁ ‘मैं कुछ का कुछ लिख दिया हू ଏପରି କହିବା ଭୁଲ୍ ଅଟେ ।)
(iv) कुछ जगह ‘ने’ के प्रयोग की आवश्यकता नहीं है।
(କେତେକ ସ୍ଥାନରେ ‘ने’ ର ବ୍ୟବହାରର ଆବଶ୍ୟକତା ହୁଏ ନାହିଁ ।)
जैसे- ‘सब लोग खा-पीकर सोये’। ठीक है ( ଠିକ ଅଛି)।
पर यह कहना कि (କିନ୍ତୁ ଏହା କହିବା ସେ) ‘सब लोगों ने खा-पीकर सोये’ गलत है’ (ତୁଲ୍ଅଟେ)
(v) कभी-कभी ‘ने’ के प्रयोग को सही नहीं माना जाता।
(ବେଳେବେଳେ ‘ने’ ର ବ୍ୟବହାରକୁ ଠିକ୍ କୁହାଯାଏ ନାହିଁ ।)
जैसे- ‘सब लोग खा-पीकर सोये’।
यहाँ ‘ने’ का प्रयोग गलत है। (ଏଠାରେ ‘ने’ ର ପ୍ରୟୋଗ ଭୂଲ ଅଟେ ।)
अतः यह कहना ठीक होगा (ଏଣୁ ଏହା କହିବା ଠିକ୍ ହେବ)
‘उसे कटक जाना था’
(vi) वाक्य में ‘को’ विभक्ति के प्रयोग पर ध्यान दें
ବାକ୍ୟରେ ‘को’ ବିଭକ୍ତିର ବ୍ୟବହାର ଉପରେ ଧ୍ୟାନ ଦିଅ ।)
- वह अपने भाग्य को कोस रहा है। (सही)
- वह अपना भाग्य कोस रहा है। (गलत)
- पुस्तक लाओ। (सही)
- पुस्तक को लाओ। (गलत)
- सबको भगवान् की पूजा करनी चाहिए। (सही)
- सबको भगवान को पूजना चाहिए। (गलत)
- राम कहीं काम से गया है। (सही)
- राम कहीं काम को गया है। (गलत)
(vii) वाक्य में ‘से’ विभक्ति के सही प्रयोग को समझें
ବାକ୍ୟରେ ‘से’ ବିଭକ୍ତିର ଠିକ୍ ବ୍ୟବହାରକୁ ବୁଝି ।)
- राम देर से स्कूल जाता है। (सही)
राम देर को स्कूल जाता है। (गलत) - इसी बहाने हम चले आये। (सही)
इसी बहाने से हम चले आये। (गलत) - सबको नमस्ते कहियेगा। (सही)
सबसे नमस्ते कहियेगा। (गलत) - वह मुझ पर नाराज है। (सही)
वह मुझ से नाराज है। (गलत) - सीता साइकिल से कॉलेज आती है। (सही)
सीता साइकिल में कॉलेज आती है। (गलत)
(viii) बाक्य में ‘में’ विभक्ति का प्रयोग देखें
(ବାକ୍ୟରେ ‘में’ ବିଭକ୍ତିର ବ୍ୟବହାର ଉପରେ ଦୃଷ୍ଟି ଦିଅ )
- राम दिन में एक बार भी नहीं मिला। (सही)
राम दिन भर एक बार भी नहीं मिला। (गलत) - कल रात पण्डित जी को नींद नहीं आयी। (सही)
कल रात में पण्डित जी को नींद नहीं आयी। (गलत) - परस्पर सहयोग होना चाहिए। (सही)
परस्पर में सहेयाग होना चाहिए। (गलत) - प्रक्षी पेड़ पर बैठा है। (सही)
पक्षी पेड़ में बैठा है। (गलत)
अभ्यास कार्य (ଅଭ୍ୟାସ କାର୍ଯ୍ୟ)
1. निम्नलिखित वाक्यों में रेखांकित पदों के कारक बताइए:
(ନିମ୍ନଲିଖ୍ ୱାର୍କୋ ମେଁ ରେଖାଙ୍କିତ୍ ପର୍ବୋକେ କାରକ ବତାଇଏ : )
(ନିମ୍ନଲିଖିତ ବାକ୍ୟମାନଙ୍କରେ ରେଖାଙ୍କିତ ପଦର କାରକର ନାମ କୁହ : )
(क) खुले मैदान में, रेत पर पड़े रहने के सिवा और कोई उपाय न था।
उत्तर:
खुले मैदान में …………………… अधिकरण करक
रेत पर ………………….. अधिकरण कारक
(ख) मुझे भी तुमसे मिल कर बड़ा आनन्द हुआ।
उत्तर:
मुझे ………………………. कर्त्ता कारक
तुमसे …………………. करण कारक
(ग) मेरा परम सौभाग्य है कि आपकी कुछ सेवा करने का अवसर मिला।
उत्तर:
मेरा परम ……………………संबंध कारक
आपकी …………………. सम्बंध कारक
(घ) रेलगाड़ी की रगड़-झगड़ और चिकित्सालय की नोच-खसोट के सम्मुख कृपाशंकर की सहायता और शालीनता प्रकाशमय दिखायी देती थी।
उत्तर:
रेल गाड़ी की ………………….. संबंध कारक
चिकित्सालय की ………………… संबंध कारक
कृपाशंकर की सहायता ………………. संबंध कारक
2. निम्नलिखित वाक्यों के खाली स्थानों को उपयुक्त परसर्गों से पूरा कीजिए :
(ନିମ୍ନଲିଖ୍ ୱାର୍କୋ କେ ଖାଲୀ ସ୍ଥାର୍ଡୋ କୋ ଉପୟୁକ୍ତ ପରସଗୋଁ ସେ ପୂରା କୀଜିଏ : )
(ନିମ୍ନଲିଖୂ ବାକ୍ୟଗୁଡ଼ିକର ଶୂନ୍ୟସ୍ଥାନଗୁଡ଼ିକୁ ଉପଯୁକ୍ତ ପରସର୍ଗଦ୍ଵାରା ପୂରଣ କର : )
(क) अब तक हाथ …………… चार पैसे होते, आराम …………………… जीवन व्यतीत होता।
उत्तर:
में, से
(ख) मैं ……………………. तुम्हारे साथ रियायत …………..थी।
उत्तर:
ने, की
(ग) आपने ………….. सूरत न देखी होगी, पर आपके डंडे …………. देखी है।
उत्तर:
मेरी, ने
(घ) खुले मैदान ………………. रेत ………………. खड़े थे।
उत्तर:
में, पर।
3. निम्नलिखित शब्दों से भाववाचक संज्ञा बनाइए:
(ନିମ୍ନଲିଖ୍ ଶବ୍ଦା ସେ ଭାୱଚକ୍ ସଂଜ୍ଞା ବନାଇଏ : )
(ନିମ୍ନଲିଖ୍ ଶବ୍ଦମାନଙ୍କର ଭାବବାଚକ ବିଶେଷ୍ୟ ଲେଖ : )
पण्डित – बुरा
मौजूद – अच्छा
प्रभु – विनम्र
शालीन – महान्
उत्तर:
पण्डित – पाण्डित्य / पण्डिताई
मौजूद – मौजूदगी
प्रभु – प्रभुता
शालीन – शालीनता
बुरा – बुराई
अच्छा – अच्छाई
विनम्र – विनम्रता
महान् – महानता
4. रेखांकित पदों के संज्ञा – भेद लिखिए:
(ରେଖାଙ୍କିତ ପଦୌ କେ ସଂଜ୍ଞା ଭେଦ୍ ଲିଗ୍ : )
(ରେଖାଙ୍କିତ ପଦଗୁଡ଼ିକର ବିଶେଷ୍ୟ ରୂପ ଲେଖ : )
(क) जरा जबान सँभाल कर बातें कीजिए|
उत्तर:
जातिवाचक
(ख) इन दोनों दुष्टों ने उनका असबाब फेंक दिया।
उत्तर:
जातिवाचक
(ग) प्रत्येक स्टेशन पर कोयला – पानी ले लेते थे।
उत्तर:
द्रव्यबाचक
(घ) लोगों की जान में जान आयी।
उत्तर:
जातिवाचक
(ङ) कृपाशंकर ने पण्डित जी के चरण छुए।
उत्तर:
व्यक्तिवाचक
(च) मेले-ठेले में एक फालतू आदमी से बड़े काम निकलते हैं।
उत्तर:
जातिवाचक
5. रेखांकित पदों के कारक बताइए:
(ରେଖାଙ୍କିତ ପଦୌ କେ ସଂଜ୍ଞା ଭେଦ୍ ଲିଗ୍ : )
(ରେଖାଙ୍କିତ ପଦଗୁଡ଼ିକର ବିଶେଷ୍ୟ ରୂପ ଲେଖ : )
(क) मुसाफिर ने क्रोधपूर्ण नेत्रों से देखा।
उत्तर:
करणकारक
(ख) दारोगा जी ने अपने मित्र की बुरी दशा देखी।
उत्तर:
संबधकारक
(ग) वे लोग खुले मैदान में, रेत पर पड़े रहे।
उत्तर:
अधिकरणकारक
(घ) कृपाशंकर ने कई कुली बुलाये।
उत्तर:
कतीकारक
(ङ) वे लोग मुंशी जी को एक पेड़ के नीचे उठा ले गये।
उत्तर:
कर्मकारक
याद रखिए: कारक आठ प्रकार के होते हैं- कर्त्ता कारक, कर्म कारक, करण कारक, संप्रदान कारक, अपादान कारक, संबंध कारक, अधिकरण कारक और संबोधन कारक।
(ମନେରଖ: କାରକ ଆଠ ପ୍ରକାର । କର୍ତ୍ତାକାରକ, କର୍ମକାରକ, କରଣ କାରକ, ସମ୍ପ୍ରଦାନ କାରକ, ଆପାଦାନ କାରକ, ସମ୍ବନ୍ଧ କାରକ, ଅଧ୍ଵକରଣ କାରକ ଏବଂ ସମ୍ବୋଧନ କାରକ ।)
6. निम्नलिखित वाक्यों में से कारक छाँटिए और उनके नाम भी लिखिए:
(ନିମ୍ନଲିଖତ୍ ବାର୍କେ ମେଁ ସେ କାରକ୍ ଛାଟିଏ ଔର୍ ଉକେ ନାମ ଭୀ ଲିଖୁଏ : )
(ନିମ୍ନଲିଖ୍ ବାକ୍ୟଗୁଡ଼ିକରୁ କାରକ ପୃଥକ୍ କରି ତାହାର ନାମ ଲେଖ । )
(i) मुंशी जी को शराब – कबाब का व्यसन था।
उत्तर:
मंशी जी को – कर्त्ताकारक
शराब-कबाब का – संबंधकारक
(ii) माता ने बच्चे को सुलाया।
उत्तर:
माता ने – कती कारक
बच्चे को – कर्मकारक
(ii) ठाकुर साहब गाड़ी से उतरने लगे।
ठाकुर साहब – कतीकारक
उत्तर:
गाड़ी से – करणकारक
(iv) लोग आदर से डाक्टर कहा करते थे ।
लोग – कर्तीकारक
उत्तर:
आदर से – करणकारक
Very Short & Objective Type Questions with Answers
A. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दीजिए।
प्रश्न 1.
अयोध्या जाने में क्या अड़चन थी?
उत्तर:
बरसात के दिनों में बच्चों और स्त्रीयों को दूर की यात्रा पर ले जाने की अड़चन (असुविधा ) थी।
प्रश्न 2.
तीसरा स्टेशन आने पर ठाकुर साहव ने क्या किया?
उत्तर:
तीसरा स्टेशन आने पर ठाकुर साहव ने बाल-बच्चों को वहाँ से निकलकर दूसरे कमरे में विठाया।
प्रश्न 3.
प्रत्येक स्टेशन पर मुंशीजी क्या करते थे?
उत्तर:
प्रत्येक स्टेशन पर मुंशीजी जेव से वोतल निकाल कर कोयल – पानी ले लेते थे।
प्रश्न 4.
नशा होने पर मुंशीजी शाम को क्या करते थे?
उत्तर:
नशा होने पर मुंशीजी हरमोनियम बजाते थे।
प्रश्न 5.
जिस कमरे में ठाकुर थे वहाँ कितने लोग थे और वे क्या कर रहे थे?
उत्तर:
जिस कमरे में ठाकुर थे उसमें केवल चार लोग थे जो लेटे हुए थे।
प्रश्न 6.
किसकी विनय और नम्रता ने सब को मुग्ध कर लिया?
उत्तर:
कृपाशंकर की विनय और नम्रता ने सब को मुग्ध कर लिया।
प्रश्न 7.
सन्ध्या को कचहरी से आने पर मुंशी बैजनाथ क्या करते थे?
उत्तर:
सन्ध्या को कचहरी से आने पर मुंशी बैजनाथ बच्चों को पैसे और मिठाइयाँ देते थे।
B. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द / एक पद में दीजिए।
प्रश्न 1.
मुंशीजी को किसका व्यसन था?
उत्तर:
शराब-कबाब का
प्रश्न 2.
पंडितजी को शिक्षक के पद की क्या ज्ञात हुई?
उत्तर:
महानता
प्रश्न 3.
लोग किसे आदर से डॉक्टर कहा करते थे?
उत्तर:
चोखेलाल को
प्रश्न 4.
‘बोध’ कहानी के लेखक का नाम क्या है?
उत्तर:
प्रेमचंद
प्रश्न 5.
बैजनाथ क्या करते थे?
उत्तर:
सियाहेनवीस का काम
प्रश्न 6.
किसने ठाकुर साहब से कहा, “मैं तो आपके खून का प्यासा हूँ।”
उत्तर:
मजूर को
प्रश्न 7.
पंडित चन्द्रधर अपनी तुलना में किसको भला मानते थे?
उत्तर:
प्राइमरी में मुदार्रिसी
प्रश्न 8.
पंडित चन्द्रधर क्या करते थे?
उत्तर:
दूसरे मुसाफिर
प्रश्न 9.
‘इसमें कौन-सी हेठी हुई जाती है’ यह वाक्य किसने कहा.
उत्तर:
दूसरे मुसाफिर ने
प्रश्न 10.
ठाकुर अतिबल सिंह अपने मित्रों के साथ कहाँ की यात्रा के लिए निकल पडे?
उत्तर:
अयोध्या
प्रश्न 11.
डॉक्टर चोखेलाल कहाँ के रहनेवाले थे?
उत्तर:
बिल्हौर
प्रश्न 12.
किसकी विनय और नम्रता ने सबको मुग्धकर लिया?
उत्तर:
कृपाशंकर
प्रश्न 13.
मुंशी जी को किसमें अस्पताल ले जाया गया?
उत्तर:
गाड़ी में
प्रश्न 14.
पंडितजी पर कौन खुश थे?
उत्तर:
अफसर लोग
प्रश्न 15.
दूसरा मुसाफिर मेले में क्या कर रहा था?
उत्तर:
तमाशा देख रहा था
C. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।
प्रश्न 1.
पंडितजी ने आज ………………………… का गौरव समझा।
उत्तर:
शिक्षक
प्रश्न 2.
बिल्हौर से जाने वाली गाड़ी में ……………………. की बड़ी कमी थी।
उत्तर:
जगह
प्रश्न 3.
मुंशी बैजनाथ तहसील में …………………………. पद पर थे।
उत्तर:
सियाहेनवीस
प्रश्न 4.
अफसर लोग ………………………. पर खुश थे।
उत्तर:
पंड़ित चन्द्रधर पर
प्रश्न 5.
पंडित चन्द्रधर को ……………………. रुपये मासिक वेतन मिलता था।
उत्तर:
पन्द्रह
प्रश्न 6.
पंडित चन्द्रधर शर्मा पेशे में ……………………. थे।
उत्तर:
शिक्षक
प्रश्न 7.
ठाकुर साहब शाम को पीते ……………………… हैं।
उत्तर:
खमीरा
प्रश्न 8.
ठाकुर साहब गाड़ी से ……………………… गिर पड़े।
उत्तर:
धक्के से
प्रश्न 9.
पंडित जी के पुराने शिष्य का नाम ……………………. था।
उत्तर:
कृपाशंकर
प्रश्न 10.
‘बोध’ शब्द का अर्थ …………………….. है।
उत्तर:
ज्ञान
प्रश्न 11.
कृपाशंकर ………………………. बात को अपना सौभाग्य मानते हैं।
उत्तर:
शिक्षक के दर्शन
प्रश्न 12.
अतिथियों के भोजन के लिए कृपाशंकर के घर में ………………….. बना।
उत्तर:
पूरियाँ
प्रश्न 13.
दारोगा जी ने दौड़-धूप कर एक ……………………. का प्रबन्ध किया।
उत्तर:
डोली
प्रश्न 14.
सभी लोग अयोध्या में ………………….. दिन रहे।
उत्तर:
तीन
प्रश्न 15.
अयोध्या में नदी की तरफ से आनेवाले आदमी ……………………. थे।
उत्तर:
कृपाशंकर
D. ठिक् या भूल लिखिए।
प्रश्न 1.
मुंशी बैजनाथ सजल नेत्रों से पंडित जी के चरण छुए।
उत्तर:
भूल
प्रश्न 2.
मुंशीजी को शराब – कबाब का व्यसन था।
उत्तर:
ठिक्
प्रश्न 3.
ठाकुर अतिबल सिंह शिक्षक पद पर थे।
उत्तर:
भूल
प्रश्न 4.
डाकमुंशी दौड़-धूप कर डोली का प्रबंध किया?
उत्तर:
भूल
प्रश्न 5.
मुंशी, ठाकुर और पंडित अयोध्या यात्रा कर रहे थे।
उत्तर:
ठिक्
प्रश्न 6.
वेतन वृद्धि को पदोन्नति की खेती कहा गया है।
उत्तर:
भूल
प्रश्न 7.
मुंशी बैजनाथ और ठाकुर अतिबल सिंह ने एक-एक सप्ताह की छुट्टी ली।
उत्तर:
ठिक्
प्रश्न 8.
बिल्लौर से रात दो बजे गाड़ी छूटती थी।
उत्तर:
भूल
प्रश्न 9.
मुंशीजी को बैलगाड़ी में लादकर लाया गया।
उत्तर:
भूल
प्रश्न 10.
गाड़ी में पंडित जी ठाकुर साहब के साथ थे
उत्तर:
ठिक्
प्रश्न 11.
चन्द्रधर शिक्षक की नौकरी से पछताते थे।
उत्तर:
ठिक्
प्रश्न 12.
ठाकुर साहब कुर्सी पर बैठकर चाय पीते थे।
उत्तर:
भूल
Multiple Choice Questions (mcqs) with Answers
सही उत्तर चुनिए : (MCQs)
1. मुंशीजी को किसका व्यसन था?
(A) शराब – कबाब का
(B) गाने का
(C) नाचते रहने का
(D) खाने का
उत्तर:
(A) शराब – कबाब का
2. पंड़ित जी को शिक्षक के पद की क्या ज्ञात हुई?
(A) महानता
(B) हीनता
(C) प्रवीणता
(D) दीनता
उत्तर:
(A) महानता
3. लोग किसे आदर से डॉक्टर कहा करते थे?
(A) प्यारेलाल को
(B) मोतीलाल को
(C) चमनलाल को
(D) चोखेलाल को
उत्तर:
(D) चोखेलाल को
4. पंडित चन्द्रधर अपनी तुलना में किसको भला मानते थे?
(A) सज्जन को
(B) अफसर को
(C) सूदखोर को
(D) मजूर को
उत्तर:
(D) मजूर को
5. पंडितजी ने आज …………… का गौरव समझा।
(A) सेवक
(B) नम्रता
(C) शिक्षक
(D) पद
उत्तर:
(C) शिक्षक
6. पंडित चन्द्रधर क्या करते थे?
(A) हेड कान्स्टबुल का काम
(B) प्राइमरी में मुदार्रिसी
(C) सियाहेनवीस का काम
(D) हारमोनियम बजाते थे
उत्तर:
(B) प्राइमरी में मुदार्रिसी
7. किसने ठाकुर साहब से कहा, “मैं तो आपके खून का प्यासा हूँ।”
(A) पंडित ने
(B) पहले मुसाफिर ने
(C) दूसरे मुसाफिर ने
(D) नौकर ने
उत्तर:
(C) दूसरे मुसाफिर ने
8. ठाकुर अतिबल सिंह अपने मित्रों के साथ कहाँ की यात्रा के लिए निकल पडे?
(A) अयोध्या
(B) लखनऊ
(C) बनारस
(D) बिल्हौर
उत्तर:
(A) अयोध्या
9. बिल्हौर से जाने वाली गाड़ी में ……………. की बड़ी कमी थी।
(A) हवा
(B) पानी
(C) जगह
(D) लोगों
उत्तर:
(C) जगह
10. पंडितजी के शिष्य का नाम था:
(A) बैजनाथ
(B) कृपाशंकर
(C) चन्द्रधर
(D) चोखेलाल
उत्तर:
(B) कृपाशंकर
11. किसने ठाकुर साहब से कहा कि मैं आपके खून का प्यासा हूँ?
(A) पहला मुसाफिर
(B) दूसरा मुसाफिर
(C) बैजनाथ
(D) चोखेलाल
उत्तर:
(B) दूसरा मुसाफिर
12. मुंशी जी को किसमें अस्पताल ले जाया गया?
(A) डोली में
(B) गाड़ी में
(C) मोटर में
(D) रिक्शे में
उत्तर:
(B) गाड़ी में
13. पंडित जी पर कौन खुश थे?
(A) अफसर लोग
(B) मुंशी जी
(C) दारोगा साहब
(D) उनके छात्र
उत्तर:
(A) अफसर लोग
14. दूसरा मुसाफिर मेले में क्या कर रहा था?
(A) तमाशा देख रहा था
(B) बदमाशी कर रहा था
(C) शराब पीता था
(D) जुआ खेलता था
उत्तर:
(A) अफसर लोग
15. ‘बोध’ कहानी के लेखक का नाम क्या है?
(A) प्रेमचंद
(B) जयशंकर प्रसाद
(C) गुलाब राय
(D) महादेवी वर्मा
उत्तर:
(A) प्रेमचंद
16. ठाकुर अतिबल सिंह किस पद पर थे?
(A) चपरासी
(B) शिक्षक
(C) कान्स्टेबुल
(D) सियाहेनवीस
उत्तर:
(C) कान्स्टेबुल
17. पंडित चन्द्रधर को कितने रूपये मासिक वेतन मिलता था?
(A) पचास
(B) पन्द्रह
(C) दस
(D) सौ
उत्तर:
(B) पन्द्रह
18. मुंशी बैजनाथ के कितने लड़के थे?
(A) दो
(B) चार
(C) तीन
(D) पाँच
उत्तर:
(C) तीन
19. ‘इसमें क़ौन-सी हेठी हुई जाती है’ यह वाक्य किसने कहा?
(A) पहले मुसाफिर ने
(B) पंडित चन्द्रधर ने
(C) दूसरे मुसाफिर ने
(D) मुंशी बैजनाथ ने
उत्तर:
(C) दूसरे मुसाफिर ने
20. पंडित जी के पड़ोस में कितने महाशय और रहते थे?
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार
उत्तर:
(B) दो
21. मुंशी बैजनाथ तहसील में किस पद पर थे?
(A) सियाहेनवीस
(B) कान्सटेबुल
(C) तहसीलदार
(D) चपरासी
उत्तर:
(A) सियाहेनवीस
22. ठाकुर साहब शाम को खुशबूदार ……………… पीते थे?
(A) दही
(B) चाय
(C) खमीरा
(D) शराब
उत्तर:
(C) खमीरा
23. मुंशीजी को कौन-सा व्यसन था?
(A) सतंरज खेलना
(B) शराब-कबाब
(C) सिगारेट पीना
(D) जूआ खेलना
उत्तर:
(B) शराब-कबाब
24. उनके ……………… को देखकर पंड़ितजी अपने भाग्य को कोसते?
(A) ठाट-बाट
(B) बालबच्चे
(C) घरबार
(D) खानापान
उत्तर:
(A) ठाट-बाट
25. लोग किन पर बड़ी कृपा रखते थे?
(A) पंडित जी पर
(B) उमाशंकर जी पर
(C) लेखक जी पर
(D) अधिकारी जी पर
उत्तर:
(A) पंडित जी पर
26. ‘आपके खून का प्यासा हू’ का अर्थ है ……………….
(A) खून पीना चाहता हूँ
(B) प्यास बुझाना चाहता हूँ
(C) वध करना चाहता हूँ
(D) मार पीट करना चाहता हूँ
उत्तर:
(D) मार पीट करना चाहता हूँ
27. अफसर लोग किस पर खुश थे?
(A) कृपाशंकर पर
(B) पंड़ित चन्द्रधर पर
(C) चोखेलाल पर
(D) ठाकुर अतिबल सिंह पर
उत्तर:
(B) पंड़ित चन्द्रधर पर
बोध का साराश
पंड़ित चन्द्रधर शर्मा उच्च प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक है। मासिक पन्द्रह रुपये के वेतन के व्यतित न कोई ऊपरी आय और न कोई प्रमोसन। मगर हमेशा विद्यार्थीयों को अच्छा इनसान बनाने में लगरहे। मुंशी वैजनाथ, पंड़ित जी और ठाकुर अतिबल सिंह पड़ोसी थे। दोनों की नौकरी पंड़ितजी से कम थी। पड़ोसियों का ठाठ देखकर निराशा और कुंठा होती थी। दोनों अपने पदों का दुरुपयोग करके अच्छी खासी ऊपरी आमदानी बना लेते थे। कई लोगों से अन्याय का पैसा वसूला कर रहे थे। ठाकुर साहब और मुंशीजी पंड़ित को सदा कुछ न कुछ खाने की चीजें देते रहते थे। पर बदल में अपने आवारा लड़कों को पढ़ने भेजते थे। मगर शिक्षक के काम से प्रसन्न होकर अफसर प्रमोसन न कर कभी कुछ ईनाम देते थे। मुहल्ले के लोग पंड़ित जी से खुश थे। विद्यालय के लड़के उनका सम्मान करते थे।
एकबार सावन में ठाकुर साहव और मुंशीजी ने अयाध्या जाना तय किया। उनके छोटे-मोट काम के लिए पंडितजी को मुफ्त में ले गए। पंडितजी मुफ्त अयोध्या दर्शन का अवसर को हात में न छोड़कर राजी हो गए। बिल्हौर से रात एक बजे गाड़ी छूटी। भगदड़ में मुंशी और ठाकुर अलग अलग डिब्बे में चढ़ गए। भीड़ भरी रेल के डिब्बे में जगह नहीं मिली। ठाकुर ने एक सोये आदमी को उठाने चाहे तो वे झगड़ने लगे। दूसरा सोया हुआ यात्री भी ठाकुर को सताया। पंडितजी ठाकुर के साथ थे। अगले स्टेसन पर ठाकुर बाल- बच्चो सहित दूसरे डिब्बे में चले गए। दोनों बदमाशें ने उनका सामान प्लेटफार्म पर फेक दिया और ठाकुर को धक्का मार गिरा दिया।
मुंशी ज्यादा पीने की वजह से बिमार हो गए। लखनऊ के वाद एक स्टेशन पर उत्तर गए। ठाकुर ने मित्र की बुरी दशा देख कर उत्तर गए। डाक्टर खोजना शुरू हो गया। वहाँ छोटा अस्पताल के डाक्टर विल्हौर के जानकर चैन मिला। लेकिन डाक्टर भी मुंशी द्वारा सताया गया था। अंत में डॉक्टर जी की दवा खाकर कुछ फायदा हुआ। रात को तबियत ठीक हुए तो गाड़ी में बैठे। जैसे तैसे अयोध्या पहुँचे। कहीं भी ठहरने की जगह नहीं थी। औरतों और बाल-बच्चों के साथ बाहर खुले में डेरा डालना पड़ा। अचानक पंडित जी का पुराना छात्र कृपाशंकर मिल गया। पंडित जी को देखकर वह वहुत प्रसन्न हुआ।
इस दशा देखकर कृपांशकर सबको अपने मकान में ले गया। अच्छा भोजन बनवाया। वह खुशी-खुशी सबकी सेवा में लगा रहा। उसकी विनम्रता ने सबका मन मोह लिया। कष्टों से भरी मुश्किल यात्रा में पंड़ितजी को कृपाशंकर की सहायता और शालीनता चमकती हुई नजर आ रही थी। तीनों दिनों तक कृपाशंकर ने सबको प्रत्येक धाम के दर्शन करवाये। स्टेशन तक छोड़ने गया। घर पहुँचने पर पंडित जी के स्वाभाव में परिवर्तन हो गया था। उन्हे इस बात का बोध हो गया कि उनका कम वेतन वाला शिक्षण महान कार्य है। आज उन्हें शिक्षक होने का गौरव और पद की महानता समझ में आई।
ବିଷୟବସ୍ତୁର ସାରାଂଶ:
ପଣ୍ଡିତ ଚନ୍ଦ୍ରଧର ଶର୍ମା ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟର ଶିକ୍ଷକ। ମାସିକ ପନ୍ଦର ଟଙ୍କା ଦରମା ବ୍ୟତୀତ ଉପୁରି ଆୟ କିଛି ନାହିଁ। ପଦୋନ୍ନତି ନାହିଁ। ସର୍ବଦା ଛାତ୍ରଛାତ୍ରୀମାନଙ୍କୁ ଭଲ ମଣିଷ ଗଢ଼ିବାପାଇଁ ଚେଷ୍ଟିତ। କିନ୍ତୁ ତାଙ୍କଠାରୁ କମ୍ ଶିକ୍ଷିତ ଓ ବେତନ କମ୍ ଥିଲେ ମଧ୍ୟ ଦୁଇଜଣ ପଡ଼ୋଶୀଙ୍କର ଜାକଜମକ ଦେଖ୍ ଭାରି ହତାଶ ଓ କୁଣ୍ଠିତ ହେଉଥା’ନ୍ତି। ଦୁଇ ପଡ଼ୋଶୀ ବନ୍ଧୁ ହେଉଛନ୍ତି ଅତିବଳ ସିଂହ ଓ ମୁନ୍ସୀ ବୈଜନାଥ। ସିଂହବାବୁ ଥାନାରେ ହେଡ଼ କନେଷ୍ଟବଳ ଥିଲେ ଓ ମୁନ୍ସୀଜୀ ତହସିଲ ଅଫିସରେ କିରାଣି ଥିଲେ। ସେମାନଙ୍କର ଘରେ ସମସ୍ତ ବିଳାସପୂର୍ଣ୍ଣ ଜିନିଷ ଥିଲା। ସମଗ୍ର ଅଞ୍ଚଳରେ ସେମାନଙ୍କର ଖାତିର ଥିଲା। ବହୁ ଲୋକଙ୍କଠାରୁ ଅନ୍ୟାୟରେ ପଇସା ଅସୁଲ କରୁଥିଲେ। ବିଶେଷତଃ ନିଜ ପଦର ଦୁରୁପଯୋଗ କରି ଖୁବ୍ ଉପୁରି ଆୟ କରୁଥିଲେ। ଠାକୁର ଓ ମୁନ୍ସୀ ଦୁହେଁ ପଣ୍ଡିତଙ୍କୁ ସଦାବେଳେ କିଛି ନା କିଛି ଖାଦ୍ୟବସ୍ତୁ ଦେଉଥିଲେ। କିନ୍ତୁ ତା’ର ପ୍ରତିବଦଳ ସ୍ଵରୂପ ତାଙ୍କର ଦୁଇ ପୁଅକୁ ମାଗଣାରେ ଶିକ୍ଷାଦାନ କରୁଥିଲେ।
ଥରେ ଶ୍ରାବଣ ମାସରେ ଠାକୁର ଓ ମୁନ୍ସୀ ଦୁହେଁ ଅଯୋଧ୍ୟା ଯିବାକୁ ସ୍ଥିର କଲେ। ତାଙ୍କ ସହିତ ଛୋଟ ମୋଟ କାମ ପାଇଁ ପଣ୍ଡିତଙ୍କୁ ମାଗଣାରେ ନେବାକୁ ସ୍ଥିର କଲେ। ପଣ୍ଡିତ ପ୍ରଥମେ ଯିବାକୁ ଇଚ୍ଛାପ୍ରକାଶ କରୁନଥିଲେ; କିନ୍ତୁ ଅଯୋଧ୍ୟା ଦର୍ଶନର ସୁଯୋଗକୁ ହାତଛଡ଼ା ନକରି ତାଙ୍କ ସହିତ ଯିବାକୁ ରାଜି ହେଲେ। ହୌରରୁ ରାତି ଗୋଟାଏ ବେଳେ ଗାଡ଼ି ଛାଡ଼ିଲା ରେଳଗାଡ଼ି ଏତେ ଭିଡ଼ ଥିଲା ଯେ ଟିକେ ବସିବାକୁ ଜାଗା ନଥିଲା। ଠାକୁର ଜଣେ ଶୋଇଥିବା ଲୋକକୁ ଉଠାଇବାକୁ ଚାହିଁଲେ। ସେହି ଲୋକ ଠାକୁରଙ୍କୁ ୨୫ ଟଙ୍କା ଲାଞ୍ଚ ଦେଇଥିଲା, ସେ ତାହାର ପ୍ରତିଶୋଧ ନେଇଥିଲା। ଏହିପରି ଦୁଇଜଣ ସହଯାତ୍ରୀ ଠାକୁରଙ୍କୁ ଅପମାନିତ କରି ଡବାରୁ ତଡ଼ିଦେଲେ। ଲକ୍ଷ୍ନୌ ପରେ ଗୋଟିଏ ଷ୍ଟେସନରେ ଓହ୍ଲେଇଲେ। ଗାଡ଼ି ଛାଡ଼ି ଡାକ୍ତର ପାଖକୁ ନେବାକୁ ପଡ଼ିଲା। ଡାକ୍ତର ସାହେବ ମଧ୍ୟ ମୁନ୍ସୀର ଅନ୍ୟାୟଦ୍ଵାରା ପୀଡ଼ିତ ଲୋକ ଥିଲେ। ସେ ସେଠାରେ ଭଲ ଫିସ୍ ଅସୁଲ କରି ମୌକାର ଫାଇଦା ଉଠାଇଲେ। ଔଷଧ ଖାଇବା ପରେ ମୁନ୍ସୀ କିଛି ସୁସ୍ଥ ହେଲେ। ରାତିରେ ମୁନ୍ସୀଙ୍କର ସ୍ଵାସ୍ଥ୍ୟ ଭଲ ହେଲାପରେ ପୁଣି ଅଯୋଧ୍ୟା ଯାତ୍ରା କଲେ।
ଅଯୋଧ୍ୟାରେ ପହଞ୍ଚିବା ପରେ ସେଠାରେ ରହିବା ପାଇଁ ଆଦୌ ଜାଗା ମିଳିଲା ନାହିଁ। ବାଧ୍ୟ ହୋଇ ଗୋଟିଏ ସ୍ବଚ୍ଛ ଜାଗା ଦେଖୁ ତଳେ ବାଲିରେ ବସିଲେ। ଏହି ସମୟରେ ମେଘ ଓ ଘଡ଼ଘଡ଼ି ମାରୁଥାଏ। ପିଲାମାନେ କାନ୍ଦିଲେ ଓ ସ୍ତ୍ରୀଲୋକମାନେ ଭୟଭୀତ ହୋଇଥିଲା। ସେଠାରେ ପଣ୍ଡିତଙ୍କର ଜଣେ ପୁରୁଣା ଛାତ୍ର କୃପାଶଙ୍କର ଦେଖା ହୋଇଥିଲା। ସେ ସମସ୍ତଙ୍କୁ ନିଜ ଘରକୁ ନେଇଗଲେ ଏବଂ ଆତିଥ୍ୟ ସତ୍କାର କଲେ। କୃପାଶଙ୍କର ହାତଯୋଡ଼ି ସମସ୍ତଙ୍କ ସେବାରେ ଲାଗି ରହିଲା। ତାହାର ଦର୍ଶନ କରାଇଲା। ଶେଷରେ ସେମାନଙ୍କୁ ଷ୍ଟେସନ୍ରେ ଛାଡ଼ିବାକୁ ଆସିଲା। ଅଶ୍ରୁପୂର୍ଣ୍ଣ ନେତ୍ରରେ ସେ ପଣ୍ଡିତଜୀଙ୍କ ପାଦ ଧୂଳି ସ୍ପର୍ଶ କଲା। ଘରେ ପହଞ୍ଚି ପଣ୍ଡିତ ମହାଶୟଙ୍କର ସ୍ଵଭାବରେ ପରିବର୍ତ୍ତନ ଘଟିଲା। ତାଙ୍କୁ ବୋଧ ହୋଇଥିଲା ଯେ ସେ ଯେଉଁ କମ୍ ଦରମା ବିଶିଷ୍ଟ ଶିକ୍ଷଣ କାର୍ଯ୍ୟ କରୁଛନ୍ତି ତାହାହିଁ ସର୍ବୋତ୍ତମ। ଶେଷରେ ସେ ଶିକ୍ଷକ ହେବାର ଗୌରବ ଓ ପଦ ମର୍ଯ୍ୟାଦାର ମହାନତା ବୁଝି ପାରିଲେ।
पंडित चन्द्रधर…………………. ही भले।
ଓଡ଼ିଆ ଅନୁବାଦ:
ପଣ୍ଡିତ ଚନ୍ଦ୍ରଧର ଗୋଟିଏ ଉଚ୍ଚ ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟରେ ଶିକ୍ଷକତା କରୁଥିଲେ। ସର୍ବଦା ଅନୁତାପ କରୁଥୁଲେ କାହିଁକି ଏହି ଜଞ୍ଜାଳରେ ପଶିଲେ। ଯଦି ଅନ୍ୟ କୌଣସି ବିଭାଗରେ ଚାକିରି କରିଥା’ନ୍ତେ ତେବେ ବର୍ତ୍ତମାନ ହାତରେ କିଛି ପଇସା ଥାଆନ୍ତ। ସୁଖରେ ଜୀବନ ବିତୁଥା’ନ୍ତା। ଏଠାରେ ମାସିକ ବେତନ ପନ୍ଦର ଟଙ୍କା ଏହା ଆସୁଛି, ଚାଲିଯାଉଛି ! ନା ଖାଇବା, ନା ପିନ୍ଧିବାରେ ସୁଖ ଅଛି ତାହାଠାରୁ ମଜୁରୀ ହିଁ ଭଲ
पंडित जी …………………. समझते थे।
ଓଡ଼ିଆ ଅନୁବାଦ:
ପଣ୍ଡିତଙ୍କର ଦୁଇଜଣ ପଡ଼ୋଶୀ ଥିଲେ। ଜଣେ ଠାକୁର ଅତିବଳ ସିଂହ, ସେ ଥାନାର ହେଡ଼ କନେଷ୍ଟବଳ ଥିଲେ। ଅନ୍ୟ ଜଣେ ମୁନ୍ସୀ ବୈଜନାଥ। ସେ ତହସିଲ ଅଫିସର କିରାଣି ଥିଲେ। ଦୁହିଁଙ୍କର ଦରମା ପଣ୍ଡିତଙ୍କଠାରୁ କମ୍ ଥିଲେ ମଧ୍ୟ ଦୁହେଁ ଭାରି ଆଡ଼ମ୍ବରରେ ଚଳୁଥିଲେ। ସନ୍ଧ୍ୟାବେଳେ ସେମାନେ କଚେରୀରୁ ଫେରୁଥିଲେ। ପିଲାମାନଙ୍କୁ ପଇସା ଓ ମିଠାଇ ଦିଅନ୍ତି। ଦୁହିଁଙ୍କ ପାଖରେ ପିଲାମାନେ ଏପଟ ସେପଟ ହେଉଥିଲେ। ତାଙ୍କ ଘରେ ବିଳାସତାର ସମସ୍ତ ଜିନିଷ ଥିଲା। ଠାକୁର ସାହାବ ସନ୍ଧ୍ୟାରେ ଆରାମ ଚୌକିରେ ବସି ଖମିରାଯୁକ୍ତ ତମାଖୁ ପିଉଥିଲେ। ମୁନ୍ସୀଙ୍କର ମଦ-ଭଜା ମାଂସର ଅଭ୍ୟାସ ଥିଲା। ନିଜେ ସୁ-ସଜ୍ଜିତ ଘରେ ବସି ବୋତଲ ବୋତଲ ମଦ ପିଉଥିଲେ। ମଦ ପିଇ ହାରମୋନିୟମ ବଜାନ୍ତି। ସାରା
ସାହିରେ ତାଙ୍କର ଖାତିର ଥିଲା। ଉଭୟଙ୍କୁ ଯିବା ଆସିବାର ଦେଖିଲେ ଦୋକାନୀ ନମସ୍କାର ପକାଉଥିଲେ। ତାଙ୍କ ପାଇଁ ବଜାରରେ ଅଲଗା ଦର ଥିଲା। ଚାରିପଇସାର ଚିଜ ମାଗଣାରେ ଆଣୁଥିଲେ। କାଠ-ଇନ୍ଧନ ମାଗଣାରେ ମିଳୁଥିଲା। ପଣ୍ଡିତ ତାଙ୍କ ଜାକଜମକ ଦେଖ୍ ନିଜ ଭାଗ୍ୟକୁ ଗାଳି ଦେଉଥିଲେ। ସେମାନେ ଜାଣିନଥିଲେ, ପୃଥିବୀ ସୂର୍ଯ୍ୟର ଚାରିପଟେ ନା ସୂର୍ଯ୍ୟ ପୃଥିବୀର ଚାରିପଟେ ଘୂରୁଛି। ସାଧାରଣ ପଣକିଆ ଜ୍ଞାନ ନଥୁଲା, ସେଥିରେ ପୁଣି ଈଶ୍ବର ଏତେ
ଓ କିଛି ପରିମାଣର ତରକାରୀ ପଠାଉଥିଲେ। କିନ୍ତୁ ପ୍ରତିବଦଳରେ ପଣ୍ଡିତଙ୍କୁ ଠାକୁର ସାହବଙ୍କୁ ଦୁଇ, ମୁନ୍ସୀଙ୍କ ତିନି ପିଲାଙ୍କୁ ପାଠ ପଢ଼ାଇବାକୁ ପଡ଼ୁଥିଲା। ଠାକୁର ସାହବ କହିଲେ ପଣ୍ଡିତ ମହୋଦୟ ପିଲା ସବୁବେଳେ ଖେଳୁଛି, ତାଙ୍କର କିଛି ଖବର ରଖନ୍ତୁ ମୁନ୍ସୀ କହିଲେ ପିଲାମାନେ ବାରବୁଲା ହୋଇଯାଇଛନ୍ତି। ଏମାନଙ୍କୁ ନଜରଦେବେ। ଏହି କଥା ବଡ଼ ଦୟାପୂର୍ବକ କହୁଥିଲେ। ଯେପରି ପଣ୍ଡିତ ତାଙ୍କର ଚାକର। ପଣ୍ଡିତଙ୍କୁ ଏହି ବ୍ୟବହାର ଭଲ ଲାଗୁନଥିଲା। କିନ୍ତୁ କେବଳ ତାହା ନୁହେଁ ବଜାରର ଦ୍ରବ୍ୟ ମଧ୍ୟ ଶସ୍ତାରେ ଆଣୁଥିଲେ। ତେଣୁ ଏହି ଅନୀତିକୁ ଅମୃତ ସମାନ ପାନ କରୁଥିଲେ। ଏହି ଦୁରବସ୍ଥାରୁ ମୁକ୍ତି ପାଇବା ପାଇଁ ସେ ବହୁତ ଚେଷ୍ଟା କରିଥିଲେ। ପ୍ରାର୍ଥନା ପତ୍ର ଲେଖିବା, ଅଫିସରଙ୍କୁ ଖୋସାମଦ କରିବା; କିନ୍ତୁ ଆଶା ପୂର୍ଣ୍ଣ ହେଲା ନାହିଁ।
ଶେଷରେ ହତାଶ ହୋଇ ବସିଲେ; କିନ୍ତୁ ନିଜ କାମରେ ତ୍ରୁଟି ହେଉନଥିଲା। ଠିକ୍ ସମୟରେ ଯାଆନ୍ତି ବିଳମ୍ବରେ ଆସନ୍ତି, ମନଦେଇ ପଢ଼ାନ୍ତି, ଏଥରେ ତାଙ୍କ ଅଫିସର ଖୁସି ହେଉଥିଲେ। ବର୍ଷକୁ କିଛି ପୁରସ୍କାର ଦେଉଥିଲେ ଯଦି କେବେ ସୁଯୋଗ ଆସିଲା, ତାଙ୍କ ଦରମା ବୃଦ୍ଧି ପ୍ରତି ଦୃଷ୍ଟି ଦେଉଥିଲେ। ଏହି ବିଭାଗରେ ସହଜରେ ଦରମା ବଢ଼େ ନାହିଁ। ବସ୍ତିର ଲୋକମାନେ ତାଙ୍କ ଉପରେ ଖୁସି ଥିଲେ। ପିଲାମାନଙ୍କର ସଂଖ୍ୟା ବଢ଼ିଯାଇଥିଲା। ପାଠଶାଳାର ପିଲାମାନେ ତାଙ୍କୁ ସମ୍ମାନ ଦେଉଥିଲେ। କିଏ ତାଙ୍କ ଘରେ ପାଣି, ଛେଳି ପାଇଁ ଡାଳପତ୍ର ଆଣି ଦେଉଥିଲେ। ପଣ୍ଡିତ ଏହାକୁ ବହୁତ ଭାବୁଥିଲେ।
एक बार………………………. रुक सके।
ଓଡ଼ିଆ ଅନୁବାଦ:
ଥରେ ଶ୍ରାବଣ ମାସରେ ଠାକୁର ଓ ମୁନ୍ସୀ ଦୁହେଁ ଅଯୋଧ୍ୟା ଯିବାକୁ ସ୍ଥିର କଲେ। ଏହା ଦୂର ଯାତ୍ରା ଥିଲା। ସପ୍ତାହ ପୂର୍ବରୁ ପ୍ରସ୍ତୁତି ଚାଲିଲା। ବର୍ଷା ଦିନ, ସପରିବାର ଯିବାରେ ବାଧାଥ୍ଲା। ସ୍ତ୍ରୀମାନେ କୌଣସି ପ୍ରକାର ମାନିନଥିଲେ। ଶେଷରେ ଦୁହେଁ ବାଧ୍ୟହୋଇ ଗୋଟିଏ-ଗୋଟିଏ ସପ୍ତାହ ଛୁଟି ନେଲେ ଓ ଅଯୋଧ୍ୟା ଗଲେ। ପଣ୍ଡିତଙ୍କୁ ସାଥ୍ରେ ଯିବାକୁ ବାଧ୍ୟକଲେ। ଛୋଟ ମୋଟ କାମ ପାଇଁ ପଣ୍ଡିତଙ୍କୁ ନେଇଗଲେ କାମ ହୋଇଯିବ। ପଣ୍ଡିତ ଦ୍ବିଧାରେ ପଡ଼ିଲେ, ମନା କରିପାରିଲେ ନାହିଁ। କିନ୍ତୁ ମାଗଣାରେ ଅଯୋଧ୍ୟା ଦର୍ଶନର ସୁଯୋଗ ଦେଖୁ ରାଜି ହେଲେ।
बिल्हौर से……………………… खड़े है।
ଓଡ଼ିଆ ଅନୁବାଦ:
ବିରରୁ ରାତି ଗୋଟାଏ ବେଳେ ଗାଡ଼ି ଛାଡ଼ିଲା, ଲୋକମାନେ ଖୁଆପିଆ ସାରି ଷ୍ଟେସନରେ ଯାଉଥିଲେ। ତରବରରେ ମୁନ୍ସୀଜୀ ପ୍ରଥମେ ବାହାରିଗଲେ। ପଣ୍ଡିତଜୀ ଓ ଠାକୁର ସାହବଙ୍କ ସାଙ୍ଗରେ ଥିଲେ। ଗୋଟିଏ ଘରେ ବସିଲେ। ଏହି ସଙ୍କଟରେ କିଏ କାହାକୁ ରାସ୍ତା ଦେଖାଉଛି। ଗାଡ଼ିରେ ଜାଗା କମ୍ ଥିଲା। କିନ୍ତୁ ଯେଉଁ ଡବାରେ ଠାକୁର ସାହବ “ଥିଲେ, ସେଥୁରେ ମାତ୍ର ଚାରିଜଣ ଲୋକ ଥିଲେ। ସେମାନେ ଶୋଇଥିଲେ। ଠାକୁର ସାହବ ଚାହୁଁଥିଲେ ସେମାନେ ଉଠିଗଲେ ଜାଗା ହୋଇଯିବ। ସେ ଜଣେ ଲୋକଙ୍କୁ ଧମକାଇ କହିଲେ ଉଠି ବସନ୍ତୁ, ଦେଖୁ ନାହଁ ଆମେ ସବୁ ଛିଡ଼ା ହୋଇଛୁ।
मुसाफिर …………………….. पता न लगता।
ଓଡ଼ିଆ ଅନୁବାଦ:
ଯାତ୍ରୀ ଶୋଇକରି କହିଲା କାହିଁକି ଉଠିକି ବସିବୁ? କ’ଣ ତୁମେ ବସିବାପାଇଁ
ଠକୁର : ଆମେ କ’ଣ ଭଡ଼ା ଦେଇନାହୁଁ ?
ଯାହା : ଯାହାଙ୍କୁ ଭଡ଼ା ଦେଇଛ, ତାଙ୍କୁ ଯାଇ ଜାଗା ମାଗ।
ଠକୁର : କିଛି ହୋସରେ (ଚେତନା) କଥା ହୁଅ। ଏହି ଡବାରେ ଦଶ ଜଣ ଯାତ୍ରୀଙ୍କର ବସିବା ପାଇଁ ସ୍ଥାନ ଅଛି।
ଯାହା : ଏହା ଥାନା ନୁହେଁ, ମୁହଁ ସମ୍ଭାଳି କଥାବାର୍ତ୍ତା କରନ୍ତୁ।
ଠକୁର : ତୁମେ କିଏ କି?
ଯାହା : ମୁଁ ସେହି ! ଯାହା ଉପରେ ଆପଣ ମିଥ୍ୟା ଗୁଇନ୍ଦାଗିରିର ଅପରାଧ ଲଗାଇଥିଲେ ଏବଂ ସେଥିପାଇଁ
ଠକୁର : ଆପଣ ମୋ ଦୁଆରୁ ୨୫ ଟଙ୍କା ନେଇ ହଟିଥିଲେ। ଆହା ! ଚିହ୍ନିଲି । କିନ୍ତୁ ମୁଁ ତୁମକୁ ରିହାତି କରିଥିଲି । ଚାଲାଣ କରିଦେଇଥିଲେ ତୁମେ ଦଣ୍ଡ ପାଇଥା’ନ୍ତ।
ଯାହା : ମୁଁ ମଧ୍ଯ ତୁମ ସହିତ ରିହାତି କରି ଗାଡ଼ିରେ ଛିଡ଼ା ହେବାକୁ ହେଉଛି। ଠେଲି ଦେଇଥିଲେ ତଳେ ପଡ଼ିଥାନ୍ତ, ତୁମର ହାଡ଼ମାଂସର ଠିକଣା ମିଳିବ ନଥାନ୍ତା।
इतने में ……………………. बैठ गये।
ଓଡ଼ିଆ ଅନୁବାଦ:
ଏହି ସମୟରେ ଶୋଇଥିବା ଅନ୍ୟଜଣଙ୍କ ସହଯାତ୍ରୀ ଜୋରରେ ଉପହାସ କରି ହସି-ହସି କହିଲା ଦାରୋଗା ସାହବ ମୋତେ କାହିଁକି ଉଠାଇଲ ନାହିଁ। ଠାକୁର ସାହବ କ୍ରୋଧରେ ଲାଲ୍ ପଡ଼ିଯାଇଥିଲେ, ଭାବୁଥିଲେ ଯଦି ଥାନା ହୋଇଥା’ନ୍ତା ତାହା ଜିଭ ଉପାଡ଼ି ଦେଇଥା’ନ୍ତି, କିନ୍ତୁ ସମୟ ଖରାପ ଥିଲା। ସେ ବଳବାନ୍ ଥିଲେ, ଦୁହେଁ ହୃଷ୍ଟପୁଷ୍ଟ ଦେଖାଯାଉଥିଲେ।
ଠାକୁର ବାକ୍ସ ତଳେ ରଖିଦିଆଯିବ, ବାସ୍ ଜାଗା ହୋଇଗଲା।
ଅନ୍ୟ ଜଣେ ଯାତ୍ରୀ କହିଲା ଆପଣ କାହିଁକି ତଳେ ବସିଯାଉ ନାହାନ୍ତି। ଏଥିରେ କ’ଣ ମାନହାନି ହୋଇଯିବ। ଏଇଟା କ’ଣ ଥାନା ଯେ ତୁମ ରୋବାବରେ ଅନ୍ତର ଆସିଯିବ। ଠାକୁର ସାହବ ତାକୁ ଧ୍ୟାନରେ ଦେଖୁ ପଚାରିଲେ କ’ଣ ତୁମର ମୋର ସହିତ କୌଣସି ଶତ୍ରୁତା ଅଛି। ଆଜ୍ଞା ହଁ, ମୁଁ ତ ଆପଣଙ୍କ ଶତ୍ରୁ। ମୁଁ ତୁମ ଚେହେରା ଦେଖ୍ ନଥୁଲି, ଅସୁବିଧା କ’ଣ କଲି। ଆପଣ ମୋର ଚେହେରା ଦେଖ୍ ନଥିବେ; କିନ୍ତୁ ଆପଣଙ୍କର ବାଡ଼ି ଦେଖୁଛି। କାଲି ମେଳାରେ ବାଡ଼ିରେ ମୋତେ ପିଟିଥିଲେ। ମୁଁ ଚୁପ୍ଚାପରେ ତମାସ ଦେଖୁଥିଲି। ଆପଣ ମୋତେ ଖୁବ ବୀତେଇଲେ। ମୁଁ ଚୁପ୍ ରହିଗଲି। ଦୋଷ ନିଜ ଉପରକୁ ନେଇଗଲି।
ଆଜି ତାହାର ଔଷଧ (ପ୍ରତିଶୋଧ) ମିଳିବ। ଏହା କହି ପାଦ ଲମ୍ବେଇ ଦେଲେ ଓ କ୍ରୋଧପୂର୍ଣ୍ଣ ଆଖିରେ ଦେଖିଲେ। ପଣ୍ଡିତଜୀ ଚୁପ୍ଚାପ୍ ଛିଡ଼ା ହୋଇଥିଲେ। ଡର ଥିଲା ଯେ କେତେବେଳେ ମାଡ଼ପିଟି ହୋଇଯିବ। ସୁଯୋଗ ଦେଖ୍ ଠାକୁର ସାହାବଙ୍କୁ ବୁଝାଇଲେ। ଯେଉଁଠି ତୃତୀୟ ଷ୍ଟେସନ ଆସିଲା, ଠାକୁର ସାହେବ ପିଲାମାନଙ୍କୁ ନେଇ ଅନ୍ୟ ଡବାକୁ ଚାଲିଗଲେ। ଏହି ଦୁଇ ଦୁଷ୍ଟଯାତ୍ରୀ ତାଙ୍କର ଜନିଷପତ୍ର ସବୁ ଫିଙ୍ଗିଦେଲେ। ଠାକୁର ସାହବ ଗାଡ଼ିରୁ ଓହ୍ଲାଇବା ସମୟରେ ଦୁହେଁ ଧକ୍କା ମାରିଲେ ଏବଂ ସେ ପ୍ଲାଟଫର୍ମ ତଳେ ପଡ଼ିଗଲେ। ଗାର୍ଡ଼କୁ କହିବାକୁ ଗଲାବେଳକୁ ଇଞ୍ଜିନ୍ ସିଟି (ହଣ୍ଡି) ଦେଲା, ଯାଇ ଗାଡ଼ିରେ ବସିଗଲେ।
उधर मुंशी………………………….. तो लीजिए।
ଓଡ଼ିଆ ଅନୁବାଦ:
ପକେଟରେ ସେପଟେ ମୁନ୍ସୀ ବୈଜନାଥଙ୍କ ଅବସ୍ଥା ଖରାପ ଥଲା। ସାରା ରାତି ଶୋଇପାରିଲେ ନାହିଁ। ଡବାରେ ପାଦ ପକାଇବାକୁ ଜାଗା ନଥିଲା। ବୋତଲ ପୂର୍ଣ କରି ରଖୁଥିଲେ। ପ୍ରତି ଷ୍ଟେସନରେ ଟିକେ ଟିକେ ପିଇ ନେଉଥିଲେ। ପରିଣାମ ହେଲା ଯେ ପାଚନକ୍ରିୟା ଠିକ୍ ଭାବରେ କାମ କଲା ନାହିଁ। ଥରେ ବାନ୍ତି ହେଲା ଏବଂ ପେଟ ବଥା ହେବାକୁ ଲାଗିଲା। ବଡ଼ ଅସୁବିଧାରେ ପଡ଼ିଗଲେ। ଚାହୁଁଥିଲେ ଯେ କୌଣସି ପ୍ରକାରରେ ଶୋଇଯିବା ପାଇଁ; କିନ୍ତୁ ପାଦ ରଖୁବାକୁ ଜାଗା ନଥିଲା। ଲକ୍ଷ୍ନୌ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ତାଙ୍କୁ ଚପାଇବାକୁ ପଡ଼ିବ। ତା’ପରେ ବିବଶ ହୋଇପଡ଼ିଲେ। ଗୋଟିଏ ଷ୍ଟେସନରେ ଓହ୍ଲାଇଲେ। ପ୍ଲାଟଫର୍ମରେ ଶୋଇଗଲେ। ଭାର୍ଯ୍ୟା ମଧ୍ଯ ଛାନିଆ ହେଲେ। ପିଲାମାନଙ୍କୁ ଧରି ଓହ୍ଲାଇ ପଡ଼ିଲେ। ଜିନିଷ ପତ୍ର ଓହ୍ଲାଇଲେ; କିନ୍ତୁ ତରବରରେ ବାକ୍ସଟା ଗାଡ଼ିରେ ରହିଗଲା। ଗାଡ଼ି ଛାଡ଼ିଦେଲା। ଦାରୋଗାବାବୁ ବନ୍ଧୁଙ୍କ ଅବସ୍ଥା ଦେଖୁ ଓହ୍ଲାଇ ପଡ଼ିଲେ।
ବୁଝିଗଲେ ବାବୁ ଆଜି ପ୍ରଚୁର ମଦ ପିଇଛନ୍ତି। ଦେଖିଲେ ମୁନ୍ସୀଙ୍କ ଅବସ୍ଥା ଖରାପ ହୋଇଛି। ଜ୍ଵର, ପେଟଦରଜ, ସ୍ନାୟୁ ଦୁର୍ବଳ ଓ ଝାଡ଼ାବାନ୍ତି। ଭାରି ଭୟ ଲାଗିଲା। ଷ୍ଟେସନ ମାଷ୍ଟର ଦେଖୁ କହିଲେ ତାଙ୍କୁ ହଇଜା ହୋଇଛି। ଆଦେଶ ଦେଲେ, ରୋଗୀକୁ ବାହାରକୁ ନେଇଯାଅ। ବାଧ୍ୟହୋଇ ଲୋକେ ମୁନ୍ସୀଙ୍କୁ ଗୋଟିଏ ଗଛ ତଳକୁ ଉଠାଇ ଆଣିଲେ। ତାଙ୍କ ଭାର୍ଯ୍ୟା କାନ୍ଦିଲେ। ବୈଦ-ଡାକ୍ତର ଖୋଜା ପଡ଼ିଲା। ଜାଣିବାକୁ ପାଇଲେ ଜିଲ୍ଲା ବୋର୍ଡ଼ ତରଫରୁ ସେଠାରେ ଛୋଟ ଡାକ୍ତର ଖାନାଟିଏ ଅଛି। ଲୋକଙ୍କ ଜୀବନ ପଶିଲା ।ସେଠାରେ ଜାଣିବାକୁ ପାଇଲେ ତାଙ୍କ ଗାଁ ବିସ୍ଫୋରର ଜଣେ ଡାକ୍ତର ବାବୁ ରହୁଛନ୍ତି। ଶାନ୍ତି ଲାଗିଲା। ଦାରୋଗା ବାବୁ ଡାକ୍ତରଖାନା ଗଲେ। ଡାକ୍ତର ବାବୁଙ୍କୁ ସମସ୍ତ କଥା ଶୁଣାଇ କହିଲେ ଆପଣ ଆସି ତାକୁ ଟିକେ ଦେଖନ୍ତୁ।
डॉक्टर ………………………. गालियाँ दीं।
ଓଡ଼ିଆ ଅନୁବାଦ:
ଡାକ୍ତରଙ୍କ ନାମ ଚୋଖେ ଲାଲ ଥିଲା। ସେ କମ୍ପାଉଣ୍ଡର ଥିଲେ କିନ୍ତୁ ଲୋକେ ଆଦରରେ ଦେଖିବାର ଆଦେଶ ନାହିଁ
ଦରୋଗା : ତେବେ କ’ଣ ମୁନ୍ସୀଙ୍କୁ ଏଠାକୁ ନେଇ ଆସିବୁ?
ଚୋଖେଲାଲ : ହଁ, ଆପଣ ଚାହିଁଲେ ନେଇ ଆସିବେ।
ଦାରୋଗା ବାବୁ ଦୌଡ଼ାଦୌଡ଼ି କରି ଗୋଟିଏ ପାଲିଙ୍କି ଯୋଗାଡ଼ କଲେ। ସେଥ୍ରେ ବସାଇ ମୁନ୍ସୀଙ୍କୁ ଡାକ୍ତରଖାନା ଆଣିଲେ। ଯେମିତି ବାରଣ୍ଡାରେ ପାଦ ରଖୁଛନ୍ତି, ଚୋଖେଲାଲ ଧମକାଇ କହିଲେ ବିସୂଚିକା ରୋଗୀ ଉପରକୁ ଯିବାର ଆଦେଶ ନାହିଁ। ବୈଜନାଥ ଚେତନାରେ ଥିଲେ, ସ୍ଵର ଶୁଣି ଚିହ୍ନିଲେ, ଧୀରେ କହିଲେ ଆରେ, ଇଏତ ସେହି ବିଲ୍ହୋର। ଭଲ ନା ଟି। ତହସିଲକୁ ଯିବା ଆସିବା କରନ୍ତି। ବାବୁ ମୋତେ କ’ଣ ଚିହ୍ନିପାରୁ ନାହାଁନ୍ତି।
ଚୋଖେଲାଲ : ହଁ ଆଜ୍ଞା, ଭଲ ଭାବରେ ଚିହ୍ନିପାରୁଛି।
ବୈଜନାଥ : ପରିଚିତ ହୋଇ ଏତେ ନିଷ୍ଠୁରତା ମୋ ଜୀବନ ବାହାରି ଯାଉଛି । ଟିକେ ଦେଖନ୍ତୁ, ମୋର କ’ଣ ହୋଇଛି
ଚେଖେ : ହଁ, ସବୁ କରିଦେବି ଓ ମୋର କାମ କ’ଣ ? ଫିସ୍?
ଦାରୋଗାବାବୁ : ଡାକ୍ତରଖାନାରେ ଫିସ୍ କ’ଣ ମହାଶୟ।
ଚେଖେ : ଏଇ ମୁନସୀ ମୋଠାରୁ ଯେମିତି ଅସୁଲ କରିଥିଲେ, ସେହିପରି ବାବୁ।
ଦାରୋଗୋ : ଆପଣ କ’ଣ କହୁଛନ୍ତି, ମୁଁ କିଛି ବୁଝି ପାରୁ ନାହିଁ।
ଚେଖେ : ମୋ ଘର ବିସ୍ଫୋର। ସେଠାରେ ମୋର କିଛି ଜମି ଅଛି। ବର୍ଷରେ ଦୁଇଥର ତାହାର ଦେଖାଶୁଣା କରିବାକୁ ଯିବାକୁ ପଡ଼େ। ଯେବେ ତହସିଲରେ ରାଜସ୍ଵ ଜମା ଦେଖାଇ ନିଜେ ଅଯଥା ଫିସ୍ ଆଦାୟ କରନ୍ତି। ନ ଦେଲେ ସନ୍ଧ୍ୟା ପଡ଼େ। ନ ହେଲେ ହିସାବ ବହିରେ ଚଢ଼ା ହେବ ନାହିଁ। ଆଜି ଡାକ୍ତର ଜିଦ୍ ଧରିଲେ। ଆପଣ ଜାଣନ୍ତି କେତେବେଳେ ଗାଡ଼ି ଉପରେ ଡଙ୍ଗା ତ କେତେବେଳେ ଡଙ୍ଗା ଉପରେ ଗାଡ଼ି। ମୋର ଫିସ୍ ୧୦ଟଙ୍କା ବାହାର କରନ୍ତୁ। ଦେଖୁ ଔଷଧ ନେବ ନହେଲେ ନିଜ ରାସ୍ତାରେ ଚାଲିଯିବ।
ଦରୋଗା : ଦଶ ଟଙ୍କ। !!
ଚେଖେ : ହଁ ବାବୁ, ଏଠାରେ ରୋଗୀ ରହିବା ପାଇଁ ପ୍ରତିଦିନ ଟଙ୍କା ପୈଠ କରିବାକୁ ପଡ଼େ। ଦାରୋଗା ମନେ ପଡ଼ିଲା। ହତାଶ ହୋଇଗଲେ। ଦାରୋଗାଙ୍କ ପାଖରେ ଅଧିକ ଟଙ୍କା ନଥିଲା। ଯେନେତେନ ପ୍ରକାର ଦଶଟଙ୍କା ବାହାର କରି ଚୋଖେଲାଲଙ୍କୁ ଦେଲେ ସେ ଔଷଧ ଦେଲେ, ଦିନ ତମାମ କିଛି ଲାଭ ହେଲା ନାହିଁ। ରାତିକୁ ଅବସ୍ଥା ସୁଧୁରିଲା। ତାହା ପରଦିନ ଔଷଧର ଆବଶ୍ୟକତା ପଡ଼ିଲା। ମୁନ୍ସୀଙ୍କ ପତ୍ନୀଙ୍କ ଗହଣା ୨୦ ଟଙ୍କାରୁ କମ୍ ନଥୁଲା, ତାହା ବଜାରରେ ବିକ୍ରି ହେଲା। କାମ ଚଳିଗଲା। ସନ୍ଧ୍ୟାରେ ମୁନ୍ସୀ ସୁସ୍ଥ ହେଲେ। ରାତିରେ ଗାଡ଼ିରେ ବସିଲେ ଗାଳିଦେଲେ।
श्री अयोध्या …………………….. जाये कहाँ।
ଓଡ଼ିଆ ଅନୁବାଦ:
ଅଯୋଧ୍ୟାରେ ପହଞ୍ଚି ରହିବାପାଇଁ ଜାଗା ଖୋଜିଲେ। ପଣ୍ଡାଙ୍କ ଘରେ ଜାଗା ନଥିଲା। ଘରେ ଘରେ ଲୋକମାନେ ପୂରି ରହିଥିଲେ। ସାରା ବସ୍ତି ଖୋଜିଲେ ଜାଗା ମିଳିଲା ନାହିଁ। ଶେଷରେ ସ୍ଥିର କଲେ କୌଣସି ଏକ ଗଛ ତଳେ ଅସ୍ଥାୟୀଭାବେ ରହିଯିବା; କିନ୍ତୁ ଯେଉଁ ଗଛ ତଳକୁ ଗଲେ ସେଠାରେ ଯାତ୍ରୀ ବିଶ୍ରାମ ନେଉଥିଲେ ଖୋଲା ପଡ଼ିଆ, ବାଲି ଉପରେ ପଡ଼ି ରହିବା ବ୍ୟତୀତ କୌଣସି ଉପାୟ ନଥିଲା। ଗୋଟିଏ ସ୍ବଚ୍ଛ ଜାଗା ଦେଖ୍ ବିଛଣା ପକାଇଲେ ଓ ଶୋଇଲେ। ଏହି ସମୟରେ ମେଘ ଘୋଟି ଆସିଲା। ବୁନ୍ଦା ପଡ଼ିବାକୁ ଲାଗିଲା, ବିଜୁଳି ଚମକିବାକୁ ଲାଗିଲା। ଗର୍ଜନରେ କାନର ପରଦା ଫାଟି ଯାଉଥିଲା। ପିଲାମାନେ କାନ୍ଦୁଥିଲେ। ସ୍ତ୍ରୀଲୋକମାନେ ଭୟଭୀତ ହୋଇ ଯାଉଥିଲେ। ବର୍ତ୍ତମାନ ଏଠାରେ ରହିବା ଅସହ୍ୟ ଥିଲା, କିନ୍ତୁ ଯିବେ କୁଆଡ଼େ।
अकस्मात, ……………… अवसर मिला।
ଓଡ଼ିଆ ଅନୁବାଦ:
ହଠାତ୍ ନଦୀ ପଟୁ ଜଣେ ଲୋକ ଲଣ୍ଡନ ଧରି ଆସିବାର ଦେଖାଗଲା। ସେ ପାଖରେ ପହଞ୍ଚିଲେ, ପଣ୍ଡିତ ତାଙ୍କୁ ଦେଖିଲେ। ଚେହେରା କିଛି ଚିହ୍ନା-ଚିହ୍ନା ଭଳି ଜଣାପଡ଼ୁଥିଲା; କିନ୍ତୁ ପଣ୍ଡିତ କେଉଁଠି ତାଙ୍କୁ ଦେଖୁଛନ୍ତି ଜାଣି ପାରିଲେ ନାହିଁ। ପାଖକୁ ଯାଇ କହିଲେ ଭାଇ, ଏଠାରେ ଯାତ୍ରୀମାନଙ୍କୁ ରହିବାପାଇଁ ଜାଗା ମିଳିବନି? ସେହି ଲୋକଟି ଅଟକିଗଲା। ପଣ୍ଡିତଙ୍କୁ ଭଲ ଭାବରେ ଦେଖୁ କହିଲା ଆପଣ ପଣ୍ଡିତ ଚନ୍ଦ୍ରଧର ନୁହଁନ୍ତି ତ? ପଣ୍ଡିତ ଖୁସି ହୋଇ କହିଲେ ଆଜ୍ଞା ହଁ । ଆପଣ ମୋତେ କିପରି ଜାଣିଲେ ? ସେହି ମନୁଷ୍ୟ ପଣ୍ଡିତଙ୍କ ଚରଣ ଛୁଇଁ କହିଲା ମୁଁ ଆପଣଙ୍କର ପୁରାତନ ଛାତ୍ର। ମୋର ନାମ କୃପାଶଙ୍କର। ମୋର ପିତା କିଛିଦିନ ବିସ୍ଫୋରରେ ଡାକ-କିରାଣୀ ରହିଥିଲେ। ସେହି ସମୟରେ ମୁଁ ଆପଣଙ୍କ ପାଖରେ ପଢ଼ୁଥିଲି। ପଣ୍ଡିତଙ୍କ ମନେପଡ଼ିଲା। କହିଲେ ଆରେ ତୁମେ ସେହି କୃପାଶଙ୍କର! ସେତେବେଳେ ତୁମେ ଦୁର୍ବଳ ପତଳା ପିଲା ଥିଲା, ଆଠ-ନଅ ବର୍ଷ ହୋଇଥିବ।
କୃପା : ଆଜ୍ଞା ହଁ, ନଅ ବର୍ଷ ହୋଇଥିଲା। ମୁଁ ସେଠାରୁ ଆସି ପ୍ରବେଶିକା ପାସ୍ କଲି, ଏବେ ଅଯୋଧ୍ୟା ମୁନିସିପାଲଟିରେ ଚାକିରି କରୁଛି। କୁହନ୍ତୁ ଆପଣ ଭଲରେ ଅଛନ୍ତି ତ। ସୌଭାଗ୍ୟରୁ ଆପଣଙ୍କ
ପଣ୍ଡିତ : ମୁଁ ମଧ୍ଯ ତୁମକୁ ପାଇ ବହୁତ ଆନନ୍ଦ ହେଲି। ତୁମ ବାପା ଏବେ କେଉଁଠି?
କୃପା : ତାଙ୍କର ଦେହାନ୍ତ ହୋଇଯାଉଛି। ମାତା ସାଥ୍ରେ ଅଛନ୍ତି। ଆପଣ ଏଠାକୁ କେବେ ଆସିଲେ।
ପଣ୍ଡିତ : ଆଜି ଆସିଛୁ। ପଣ୍ଡାଙ୍କ ଘରେ ଜାଗା ମିଳିଲା ନାହିଁ। ବାଧ୍ୟହୋଇ ଏଠାରେ ରାତି କାଟିବାକୁ ଯାଉଛୁ।
କୃପା : ପିଲାମାନେ ସାଙ୍ଗରେ ଅଛନ୍ତି।
ପଣ୍ଡିତ : ନା, ମୁଁ ଏକୁଟିଆ ଆସିଛି। କିନ୍ତୁ ମୋ ସହିତ ଦାରୋଗା ବାବୁ ଓ ତହସିଲ ଅଫିସର କିରାଣି ବାବୁ ଆସିଛନ୍ତି ତାଙ୍କ ପିଲାମାନେ ସାଥ୍ରେ ଅଛନ୍ତି।
କୃପା : ମୋଟ କେତେ ଜଣ ହେବେ?
ପଣ୍ଡିତ : ହଁ, ଦଶଜଣ, କିନ୍ତୁ କମ୍ ଜାଗାରେ ଚଳିଯିବୁ।
କୃପା : ନା ସାହବ, ବହୁତ ଜାଗା ନିଅନ୍ତୁ। ମୋର ବଡ଼ ଘର ଖାଲି ପଡ଼ିଛି। ଚାଲନ୍ତୁ, ଆରାମରେ ଦିନେ, ଦୁଇଦିନ, ତିନିଦିନ ରୁହନ୍ତୁ। ମୋର ପରମ ସୌଭାଗ୍ୟ ଆପଣଙ୍କର କିଛି ସେବା କରିବାର ସୁଯୋଗ ମିଳିଲା
कृपा शंकर ने ………………… कर लिया।
ଓଡ଼ିଆ ଅନୁବାଦ:
କୃପାଶଙ୍କର କେତେକ କୁଲିକୁ ଡାକିଲେ। ଜିନିଷପତ୍ର ଉଠାଇଲେ, ସମସ୍ତଙ୍କୁ ନିଜ ଘରକୁ ନେଇଗଲେ। ପରିଷ୍କାର ପରିଚ୍ଛନ୍ନ ଘର ଥିଲା। ଚାକର ଖୁବ୍ ଶୀଘ୍ର ଖଟିଆ ବିଛାଇଦେଲା। ଘରେ ପୁରୀ ପ୍ରସ୍ତୁତ ହେଲା। କୃପାଶଙ୍କର ହାତଯୋଡ଼ି ସେବକ ପରି ସେବାରେ ଲାଗି ପଡ଼ିଲା। ହୃଦୟ ଉଲ୍ଲାସରେ ମୁଖମଣ୍ଡଳ ଚମକୁଥିଲା। ତାହାର ବିନୟ ଓ ନମ୍ରତା ସମସ୍ତଙ୍କ ହୃଦୟକୁ ମୋହିତ କରିଦେଇଥିଲା।
और सब …………………. चेष्टा नहीं की।
ଓଡ଼ିଆ ଅନୁବାଦ:
ସମସ୍ତେ ଖାଇପିଇ ଶୋଇଲେ। କିନ୍ତୁ ପଣ୍ଡିତ ଚନ୍ଦ୍ରଧରକୁ ନିଦ ଆସିଲା ନାହିଁ। ତାଙ୍କର ସମ୍ମୁଖରେ କୃପାଶଙ୍କରର ସହାୟତା ଓ ଶାଳୀନତା ଉଜ୍ଜ୍ବଳ ଦେଖାଯାଉଥିଲା। ପଣ୍ଡିତ ଆଜି ଶିକ୍ଷକର ଗୌରବ ବୁଝିଲେ। ସେ ଆଜି ଏହି ପଦର ମହାନତା ଜାଣିପାରିଲେ। ସେମାନେ ତିନିଦିନ ଅଯୋଧ୍ୟାରେ ରହିଲେ। କୌଣସି କାମରେ କଷ୍ଟ ହେଲା ନାହିଁ। କୃପାଶଙ୍କର ସେମାନଙ୍କ ସହିତ ରହି ପ୍ରତ୍ୟେକ ଧର୍ମପୀଠ ଦର୍ଶନ କରାଇଥିଲେ। ତୃତୀୟ ଦିନ ସେମାନେ ଘରକୁ ଯିବାକୁ ବାହାରିଲେ, କୃପାଶଙ୍କର ଷ୍ଟେସନ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଛାଡ଼ିବାକୁ ଯାଇଥିଲେ। ଯେଉଁ ସମୟରେ ଗାଡ଼ି ସିଟି (ହଣ୍ଡ) ବାଜିଲା, ଅଶ୍ରୁପୂର୍ଣ୍ଣ ନେତ୍ରରେ କୃପାଶଙ୍କର ପଣ୍ଡିତଙ୍କ ଚରଣ ସ୍ପର୍ଶକରି କହିଲା କେବେ କେବେ ଏହି ସେବକକୁ ମନେ ପକାଉଥିବେ। ଘରେ ପହଞ୍ଚିବାପରେ ପଣ୍ଡିତଙ୍କର ସ୍ଵଭାବରେ ବିରାଟ ପରିବର୍ତ୍ତନ ଘଟିଲା। ସେ ଆଉ କେବେ ନିଜର ବିଭାଗ ବଦଳେଇବାକୁ ଚେଷ୍ଟା କଲେ ନାହିଁ।
शबनार: (ଶରାର୍ଥି)
बोध – ज्ञान, जानकारी(ଜ୍ଞାନ, ସୂଚନା)।
सदा – हमेशा – (ସବୁବେଳେ)।
मुर्दिसी – अध्यापक की नौकरी, शिक्षकता (ଅଧ୍ୟାପକ ଚାକିରୀ, ଶିକ୍ଷକତା)।
जंजाल – झंझठ, बखेड़ा (ଜଞ୍ଜାଳ)।
प्रतीक्षा – इन्तजार (ଅପେକ୍ଷା)।
मजूर – मजदूर (ମୂଲିଆ)।
मुंशी – मुहरिर, कायस्थों की एक उपाधि (ମୁହରିର, କାର୍ଯ୍ୟାଳୟର ଏକ ଉପାଧ୍ ଲେଖନ୍ତି ।)।
तहसील – तहसीलदार का दफ्तर या कचहरी (ତହସିଲଦାରଙ୍କ କାର୍ଯ୍ୟାଳୟ କିମ୍ବା କଚେରୀ)।
सियाहेनवीस – सरकारी खजाने में सियाहा लिखनेवाला (ସରକାରୀ ରାଜସ୍ବର ଆୟ ବ୍ୟୟ ହିସାବ କରିବା ବାଲା ଲୋକ ବା କିରାଣୀ)।
सियाहा – आय-व्यय की बही अथवा रोजनामचा; सरकारी खजाने का वह रजिष्टर जिसमें जमीन से प्राप्त मालगुजारी लिखी जाती है।
खमीरा – कटहल या अन्य फल आदि का सड़ाव जो तम्बाकू में डाला जाता है। (ପଣସ କିମ୍ବା ଅନ୍ୟ ଫଳକୁ ସଡ଼େଇ ତିଆରି କରାଯାଉଥିବା ପଦାର୍ଥ ଯାହା ଧୂଆଁ ପତ୍ର ପିଇବାରେ ବ୍ୟବହୃତ ହୁଏ ।)
कबाब – सीखों पर भूना हुआ मांस (ହାଡ଼ ବା କଣ୍ଟା ନ ଥିବା ମାଂସ)।
रोबदाब – बड़प्पन की धाक, दबदबा (ଆଧୂପତ୍ୟ)।
बनिया – व्यापारी, आटा-दाल आदि बेचनेवाला (ବ୍ୟାପାରୀ, ଡାଲି ଚାଉଳ ଦୋକାନୀ)।
टका – अधन्ना, दो पैसे (ବହୁତ ଶସ୍ତା)।
ठाठ-बाट – आड़म्बर, सजधज, तड़क-भड़क (ଆଡ଼ମ୍ବର, ଜାକଜମକ)।
कुढ़ते – मन ही मन खीझते या चिढ़ते (ଆଡ଼ମ୍ବର, ଜାକଜମକ)।
कोसते – गालियाँ देते (ଗାଳି ଦେଉଥିଲେ)।
पहाड़ – किसी अंक की गुण सूची धिसे बच्चे चाद करते हैं (ପଣକିଆ)।
निगरानी – देखरेख (ତଦାରଖ କରିବା)।
आवारा – व्यर्थ इधर-उधर फेरनेवाला (ବାରବୁଲା)।
गुलाम – नौकर (ଶାକର)
अनुग्रहपूर्ण – दयापूर्वक (କୃପାପୂର୍ବକ)।
उनकी बदौलत – उनके कारण से (ତାଙ୍କ ଯୋଗୁଁ/ତାଙ୍କ କାରଣର୍)।
ऊसर – क्षार मृर्त्तिका या खारी जमीन; वह भूमि जिसमें रेह या लोनी मिट्टी अधिक होनेके कारण पानी बरसने पर भी घास तक नहीं जमती (ଅନୁର୍ବର ଜମି, ଯେଉଁ ଭୂମିରେ ଅଧୂକ ଲୁଣିମାଟି ଥିବାରୁ ବର୍ଷା ହେଲେ ମଧ୍ୟ
ଘାସ ଉଠେ ନାହିଁ )।
मेले-ठेले – भीड़-भाड़ (ଭିଡ଼)।
उतावली – जल्दबाजी (ଶୀଘ୍ରତା)।
असमंजस – दुविधा (ଦ୍ବିଧାଭାବ/କୁଣ୍ଠିତ)।
आफत – विपदा (ବିପଦ)।
खुफिया – गुप्त, छिपा हुआ (ଗୁପ୍ତ, ଛପି ରହିବା)।
भगदड़ – सी – भागनेकी भांति (ଏଣେତେଣେ ଯିବା)।
फरोसी – बेचनेवाला (ବିକାଳି)।
रियायत – छूट, नरमी (ଛାଡ଼, ରିହାତି)।
चालान – किसी अपराधी का पकड़ा जाकर न्याय के लिए न्यायालय में भेजा (ପୁଲିସଦ୍ବାରା ଧୃତ ଅପରାଧୀକୁ ମାଜିଷ୍ଟ୍ରେଟଙ୍କ ନିକଟକୁ ବିଚାରାର୍ଥେ ପ୍ରେରଣ କରିବା (ଚାଲାଣ ))।
खून का प्यासा – जान लेने पर तुला हुआ (ଜୀବନରୁ ମାରିବା)।
प्रभुता – क्षमता (କ୍ଷମତା)।
क्राया – भाड़ा (ଭଡ଼ା)।
ढकेल देना – धक्के से गिरा देना(ଧକା ମାରି ତଳକୁ ପକାଇ ଦେବା)।
ठट्ठा मारकर हँसना – उपहास करना (ଜୀଭ)।
जबान – जीभ(ଉପହାସ କରି ହସିବା)।
हटे-कट्टे – हृष्ट-पृष्ट (ସୁସ୍ଥ ସବଳ)।
सन्दूक -पिटारा, बक्स (ବାକ୍ସ/ପେଟୀ)।
हेठी – तौहीन या मानहानि (ମାନହାନୀ)।
रोब – बड़प्पन की धाक, दबदबा (ରୋବାବ )।
तमाशा – वह दृश्य जिसके देखनेसे मनोरंजन हो(ମନୋରଞ୍ଜନ)।
सूरत – चेहरा (ମୁହଁ)।
कचूमर निकालना – कुचलना या कूटना या पीटना (ଦଳିବା)।
असबाब – वस्तु, सामान (ଜିନିଷପତ୍ର)।
उल्टी – वमन, कै(ବାନ୍ତି)।
पाचन क्रिया – हजमी (ତ୍ରକମା)
हजरत – महाशय (ମହାଶୟ)।
नस – स्नायु (ସ୍ନାୟୁ)।
कै – उल्टी (ବାନ୍ତି)।
दस्त – पतला पायखाना (ପତଳାଝାଡ଼ା)।
खटका – भय, चिन्ता (ଉୟ ଚିନ୍ତା)
हैजा – विशूचिका, दस्त और कै की बीमारी (ବିସୂଚିକା, ଝାଡ଼ା ବାନ୍ତର ରୋଗ)।
हकीम – चिकित्सक (ଚିକିତ୍ସାବିଦ୍)।
ढाढस – आश्वासन, तसल्ती, धैर्य (ଧୈର୍ଯ୍ୟ)।
डोली – एक प्रकार की सवारी जिसे कहार कंधों पर लेकर चलते हैं, पालकी, शिविका (ଏକ ପ୍ରକାର ଯାନ ଯାହାକୁ କାହାର ଜାତିର ଲୋକେ କାନ୍ଧରେ ବୋହିନେଇ ଚାଲନ୍ତି (ପାଲିଙ୍କି, ଶବାରୀ)।
छाती पीटना – हुदय विदीर्ण होना (ଅତ୍ୟନ୍ତ ଦୁଃଖ)।
बरामदा – दालान, बारजा (ବାରଣ୍ଡା, ପିଣ୍ଡା)।
जनाब – महाशय, बड़ों के लिए आद सूचक शब्द (ମହାଶୟ, ବଡ଼ମାନଙ୍କ ପାଇଁ ଆଦର ସୂଚକ ଶବ୍ଦ)।
स्याहा – सरकारी खजानेका वह रजिष्टर जिसमें जमीन से प्राप्त मालगुजारी लिखी जाती है, भूमिकर ( ସରକାରୀ ରାଜସ୍ଵର ଏକ ଖାତା ଯେଉଁଥରେ ଜମିରୁ ମିଳୁଥିବା ସମସ୍ତ ପ୍ରାପ୍ୟଲିପିବଧ (ଖଜଣା), ଭୂମିକର ହୁଏ)।
पंड़ा – देवताओं के सेवक (ସରକାରୀ ରାଜସ୍ଵର ଏକ ଖାତା ଯେଉଁଥରେ ‘ ଜମିରୁ ମିଳୁଥିବା ସମସ୍ତ ପ୍ରାପ୍ୟଲିପିବଧ (ଖଜଣା), ଭୂମିକର ହୁଏ)।
चंगा – स्वस्थ (ପଣ୍ଡା)।
डेरा – पड़ाव, टिकान (ସୁସ୍ଥ)।
चारपाई – खाट, खटिया (ଖଟ, ଛୋଟ ଖଟିଆ)।
नोच-खसोट – झीना-झपटी (ଛଡ଼ା-ଛଡ଼ି, ଯୁକ୍ତିତର୍କ)।
शालीनता – विनम्रता (ବିନୟ )।
लेखक परिचय
प्रेमचन्द का जन्म 31 जुलाई, सन् 1880 को उत्तर प्रदेश के बनारस के पास लमही ग्राम में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। प्रेमचन्द के वचपन का नाम धनपतराय था। उनके पिता अजायब लाल डाक-मुंशी थे। सात वर्ष की उम्र में माता और चौदह वर्ष की उम्र में पिता का देहान्त हो गया। आपने ट्यूशन करके परिवार चलाया। प्रारम्भ में उर्दू-फारसी पढ़ी। फिर मैट्रिक पास किया। स्कूल में बीस रुपये वेतन में शिक्षकता की। पढ़ाते-पढ़ाते आपनी योग्यता को बी.ए. किया। सन 1921 इस्वी में शिक्षा विभाग में डिप्टी इंस्पेक्टर बन गये। महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन से प्रभावित होकर नौकरी छोड़ दी।
प्रेमचन्द पहले उर्दू में लिखा करते थे। वाद में हिन्दी में लिखना शुरु किया। प्रेमचन्द ने लगभग ढाई सौ से ज्यादा कहानियाँ लिखीं; बारह उपन्यास लिखे और कुछ निवन्ध भी। प्रेमचन्द ‘मर्यादा’ और ‘माधुरी’ पत्रिका का संपादन किया। प्रेमचन्द की समस्त कहानियाँ मानसरोवर’ में संकलित की गयी हैं। उनकी कहानियों में किसान मजदूर की गरीब जिन्दगी के साथ मेहनती आदमी का चित्र मिलता है। फिर भी रचनाओं में शोषित, दलित, दुःखी नर-नारियों के साथ पशु-पक्षियों के प्रति भी आत्मीयता तथा संवेदनशीलता मिलती है। प्रेमचन्द की रचनाएँ हैं- कहानी-संग्रह: मान सरोवर (आठ भाग)
उपन्यास : सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, कायाकल्प, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान, मंगल- सूत्र (अपूर्ण) आदि।
निबंध – संग्रह : कुछ विचार।
प्रेमचन्द : विविध प्रसंग।
नाटक : संग्राम, कर्बला, प्रेम की वेदी।
सभी मुखसे मुंशी प्रेमचन्द को हिन्दी साहित्य का कहानी सम्राट कहा जाता है।