Odisha State Board BSE Odisha 10th Class Hindi Solutions Poem 2 मनुष्यता Textbook Exercise Questions and Answers.
BSE Odisha Class 10 Hindi Solutions Poem 2 मनुष्यता
प्रश्न और अभ्यास (ପ୍ରଶ୍ନ ଔର୍ ଅଭ୍ୟାସ)
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में दीजिए:
(ନିମ୍ନଲିଖୂ ପ୍ରଶ୍ନୋ କେ ଉତ୍ତର ଦୋ-ତୀନ୍ ୱାଜ୍ୟୋ ମେଁ ଦୀଜିଏ : )
(ନିମ୍ନଲିଖତ ପ୍ରଶ୍ନଗୁଡ଼ିକର ଉତ୍ତର ଦୁଇ-ତିନୋଟି ବାକ୍ୟରେ ଦିଅ : )
(क) कवि ने कैसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है?
(କବିନେ କୈସୀ ମୃତ୍ୟୁ କୋ ସୁମୃତ୍ୟୁ କହା ହୈ ?)
उत्तर:
जो मरने के बाद भी अमर हो जाएँ, ऐसी मृत्यु को कवि ने सुमृत्यु कहा है। जीवन में जो सत्कर्म छुप छुप है? करता है उसे ही सुमृत्यु मिलता है क्योंकि उसके अच्छे कर्म के कारण उसे सब याद करते हैं। इसलिए जो व्यक्ति दूसरों के काम आता है, वह कभी नहीं मरता
(ख) यहाँ कोई अनाथ नहीं है ऐसा कवि ने क्यों कहा है ?
(ୟହାଁ କୋଈ ଅନାଥ୍ ନହୀ ହୈ ଐସା କବିନେ କ୍ୟା କହା ହୈ ?)
उत्तर:
यहाँ कोई अनाथ नहीं है क्योंकि ईश्वर जो तीनों लोकों के नाथ हैं, वे सदैव सबके साथ होते हैं। वे गरीबों पर दया करनेवाले परम दयालु हैं। वे दीनबंधु हैं। सबकी मदद करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं।
(ग) ‘मनुष्य मात्र बंधु है’ से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
(‘ମନୁଷ୍ୟ ମାତ୍ର ବନ୍ଧୁ ହୈ’ ସେ ଆପ୍ କ୍ୟା ସମସ୍ତେ ହେଁ ? ସ୍ପଷ୍ଟ କୀଜିଏ। )
उत्तर:
मनुष्य के लिए प्रत्येक मनुष्य बंधु है, परम मित्र है। इसे हमें समझना होगा। यही हमारा विवेक है। एक ही भगवान हम सबके पिता हैं।
2. निम्नलिखित पंक्तियों के भाव दो-तीन वाक्यों में स्पष्ट कीजिए:
(ନିମ୍ନଲିଖତ୍ ପଂକ୍ତିକ୍ଷ୍ନୌ କେ ଭାବ ଦୋ-ତୀନ ୱାର୍କୋ ମେଁ ସ୍ପଷ୍ଟ କୀଜିଏ 🙂
(ନିମ୍ନଲିଖ ପଂକ୍ତିଗୁଡ଼ିକର ଅର୍ଥ ଦୁଇ ତିନୋଟି ବାକ୍ୟରେ ସ୍ପଷ୍ଟ କର ।)
(क) ‘मनुष्य मात्र बंधु है’ यही बड़ा विवेक है,
पुराण पुरुष स्वयंभू पिता प्रसिद्ध एक है॥
‘ମନୁଷ୍ୟ ମାତ୍ର ବନ୍ଧୁ ହୈ ୟହୀ ବଡ଼ ୱିକ ହୈ,
ପୁରାଣ ପୁରୁଷ୍ ସ୍ଵୟଂଭୂ-ପିତା ପ୍ରସିଦ୍ଧ ଏକ୍ ହୈ ॥
उत्तर:
‘मनुष्य मात्र प्रसिद्ध एक है॥
इसमें कवि कहते हैं कि प्रत्येक मनुष्य बंधु है, परममित्र है। इसे हमें समझना चाहिए। यही हमारा विवेक है। एक ही भगवान हम सबके पिता हैं। वे पुराण प्रसिद्ध पुरूष हैं। वे ईश्वर हैं।
(ख) रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में।
सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में॥
ରହୋ ନ ଭୂଲ୍ କେ କଭୀ ସନାଥ୍ ଜାନ ଆପ୍ ମଦାନ୍ଧ ତୁଚ୍ଛ ବିତ୍ତ ମେଁ।
(ସନାଥ୍ ଜାନ ଆପ୍ କରୋ ନ ଗର୍ବ ଚିଭ୍ ମେଁ ॥)
उत्तर:
रहो न भूल ……………….. गर्व चित्त में॥
कवि कहते हैं कि संपत्ति के लोभ में पड़कर हमें गर्व से इठलाना नहीं चाहिए। अपने मित्र और परिवार आदि लोगों को देखकर भी अपने को बलवान नहीं मानना चाहिए क्योंकि इस संसार में कोई भी अनाथ. या गरीब नहीं होता। अंह भाव मनुष्य की मनुष्यता को नष्ट कर देता है।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द/एक वाक्य में दीजिए:
(ନିମ୍ନଲିଖୂ ପ୍ରଶ୍ନୋ କେ ଉତ୍ତର୍ ଏକ୍ ଶବ୍ଦ ଏକ୍ ୱାକ୍ୟ ମେଁ ଦୀଜିଏ : )
(ନିମ୍ନଲିଖ ପ୍ରଶ୍ନଗୁଡ଼ିକର ଉତ୍ତର ଗୋଟିଏ ଶବ୍ଦ ଗୋଟିଏ ବାକ୍ୟରେ ଦିଅ : )
(क) कवि किससे न डरने की बात कर रहे हैं?
(କଞ୍ଜି କିସ୍ ନ ଡର୍ନେ କୀ ବାତ୍ କର୍ ରହେ ହୈ ?)
उत्तर:
कवि मृत्यु से न डरने की बात कर रहे हैं।
(ख) कवि कैसी मृत्यु को प्राप्त करने का परामर्श दे रहे हैं?
(କ କୈସୀ ମୃତ୍ୟୁ କୋ ପ୍ରାପ୍ତ କର୍ନେ କା ପରାମର୍ଶ ଦେ ରହେ ହୈ ?)
उत्तर:
कवि सुमृत्यु को प्राप्त करने का परामर्श दे रहे हैं।
(ग) कवि मनुष्य की किस पशु प्रवृत्ति की बात कर रहे हैं?
(କ ମନୁଷ୍ୟ କୀ କିସ୍ ପଶୁପ୍ରବୃତ୍ତି କୀ ବାତ୍ କର୍ ରହେ ହୈ ?)
उत्तर:
कवि मनुष्य की, परन्तु जिस प्रकार अपने आप चरते रहते हैं, पशु प्रवृत्ति की बात कर रहे हैं।
(घ) मनुष्य क्या पाकर मदांध हो जाता है?
(ମନୁଷ୍ୟ କ୍ୟା ପାକର୍ ମଦାଦ୍ ହୋ ଜାତା ହୈ ?)
उत्तर:
मनुष्य संपत्ति पाकर मदांध हो जाता है।
(ङ) सनाथ होने का घमण्ड क्यों नहीं करना चाहिए?
(ସନାଥ୍ ହୋନେ କା ଘମଣ୍ଡ୍ କୈ ନହୀ କର୍ନା ଚାହିଏ ?)
उत्तर:
सनाथ होने का घमण्ड नहीं करना चाहिए क्योंकि तीनों लोकों के नाथ सदैव सबके साथ रहते हैं।
(च) भाग्यहीन कौन है?
(ଭାଗ୍ୟହୀନ୍ କୌନ୍ ହୈ ?)
उत्तर:
अधीर होकर अंहकारी बन जानेवाला व्यक्ति भाग्यहीन है।
(छ) संसार में मनुष्य का बंधु कौन है?
(ସଂସାର୍ ମେଁ ମନୁଷ୍ୟ କା ବନ୍ଧୁ କୌନ୍ ହୈ ?)
उत्तर:
संसार में मनुष्य का बंधु दीनबंधु यानि ईश्वर है।
(ज) पुराण पुरुष हमारे क्या हैं?
(ପୁରାଣୁ ପୁରୁଷ୍ ହମାରେ କ୍ୟା ହେଁ ?)
उत्तर:
पुराण पुरुष हम सबके पिता हैं।
(झ) वेद किसका प्रमाण देते हैं?
(ବେଦ୍ କିସ୍ ପ୍ରମାଣ୍ ଦେତେ ହୈ ?)
उत्तर:
वेद अंतरैक्य अर्थात् अंतर की एकता का प्रमाण देते हैं।
(ञ) कौन बंधु की व्यथा हरण कर सकता है?
(କୌନ୍ ବନ୍ଧୁ କୀ ବ୍ୟଥା ହରଣ କର୍ ସକ୍ତା ହୈ ?)
उत्तर:
बंधु ही बंधु की व्यथा हरण कर सकता है।
भाषा-ज्ञान (ଭାଷା-ଜ୍ଞାନ)
1. उपयुक्त विभक्ति-चिह्नों से शून्य स्थान भरिए:
(ଉପଯୁକ୍ତ ବିଭକ୍ତି ଚିହ୍ନ ପ୍ରୟୋଗ କରି ଶୂନ୍ୟସ୍ଥାନ ପୂରଣ କର : )
(से, में, के, का, को, के, लिए)
(क) फलानुसार कर्म ………………… अवश्य वाह्य भेद हैं।
उत्तर:
के
(ख) वेद अंतरैक्य ……………….. प्रमाण हैं।
उत्तर:
में
(ग) वही मनुष्य है जो मनुष्य ……………….. मरे।
उत्तर:
के लिए
2. निम्नलिखित शब्दों के लिंग बताइए:
(ନିମ୍ନଲିଖତ୍ ଶବ୍ଦା କେ ଲିଙ୍ଗ୍ ବତାଇଏ : )
(ନିମ୍ନଲିଖ୍ ଶବ୍ଦଗୁଡ଼ିକର ଲିଙ୍ଗ ନିରୂପଣ କର : )
प्रवृत्ति, अंतरिक्ष, मृत्यु, विचार, व्यथा, अनर्थ
उत्तर:
प्रवृत्ति – स्रीरिंग
मृत्यु – स्रीलिंग
व्यथा – स्रीलिंग
अंतरिक्ष – पुंलिंग
विचार – पुंलिंग
अनर्थ – पुंलिंग
3. निम्नलिखित शब्दों के प्रयोग से एक-एक वाक्य बनाइए:
(ନିମ୍ନଲିଖ୍ ଶବ୍ଦା କେ ପ୍ରୟୋଗ ସେ ଏକ୍-ଏକ୍ ୱାକ୍ୟ ବନାଇଏ : )
(ନିମ୍ନଲିଖତ ଶବ୍ଦଗୁଡ଼ିକୁ ପ୍ରୟୋଗ କରି ଗୋଟିଏ-ଗୋଟିଏ ବାକ୍ୟ ଗଠନ କର ।)
विवेक, प्रवृत्ति, मर्त्य, बंधु, व्यथा
उत्तर:
विवेक – हमें विवेक से काम लेना है।
प्रवृत्ति – मनुष्य की प्रवृत्ति पशु प्रवृत्ति जैसी नहीं होनी चाहिए।
मर्त्य – मर्त्य में जो भी ज़न्म लेता है, उसको एक न एक दिन अवश्य मरना पड़ता है।
बंधु – ईश्वर गरीबों के बंधु हैं।
व्यथा – मेरे पैर में चोट के कारण व्यथा हो रही है।
Very Short & Objective Type Questions with Answers
A. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दीजिए।
प्रश्न 1.
‘मनुष्यता’ कविता के रचयिता कौन हैं?
उत्तर:
‘मनुष्यता’ कविता के रचयिता श्री मौथिलीशरण गुप्त हैं।
प्रश्न 2.
कवि गुप्तजी के अनुसार कौन सा कार्य वहुत बड़ा अनर्थ है?
उत्तर:
कबि गुप्तजी के अनुसार एक भाई यदि दूसरे भाई के दुःख को दूर न करे तो यह बड़ा अनर्थ है।
प्रश्न 3.
दयालु दीनबन्धु के विशाल हाथ होने का क्या अर्थ है?
उत्तर:
विशाल हाथ होने का अर्थ है कि ईश्वर अपनी सभी सन्तानों को दुःख में सहायता पहुँचा ही देते हैं।
B. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द/एक पद में दीजिए।
प्रश्न 1.
कवि के अनुसार कौन साथ होने से कोई अनाथ नहीं हो सकता?
उत्तर:
त्रिलोकनाथ
प्रश्न 2.
मैथिलीशरण गुप्त के अनुसार, अतीव भाग्यहीन कौन है?
उत्तर:
अधीर भाव जो करे
प्रश्न 3.
यहाँ कोई अनाथ क्यों नहीं है?
उत्तर:
क्योंकि सबके साथ त्रिलोकनाथ हैं
प्रश्न 4.
कवि के विचार से मर्त्य में किससे नहीं डरना चाहिए?
उत्तर:
मृत्यु से
प्रश्न 5.
पशु प्रवृत्ति किसे कहते हैं?
उत्तर:
जो आप ही आप चरे
प्रश्न 6.
दयालु दीनबंधु के हाथ कैसा हैं?
उत्तर:
विशाल
प्रश्न 7.
महान मनुष्य किसे कहा जा सकता है?
उत्तर:
जो मनुष्य के लिए मरे
प्रश्न 8.
परमेश्वर किसके पिता है?
उत्तर:
हम सब के
प्रश्न 9.
‘मैथिलीशरण गुप्त’ किस कविता के रचयिता हैं?
उत्तर:
मनुष्यता
प्रश्न 10.
किसका प्रमाण देते है?
उत्तर:
अन्तर की एकता
C. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।
प्रश्न 1.
मनुष्य ……………… पाकर मदांध हो जाता है।
उत्तर:
संपति
प्रश्न 2.
अपने को …………….. जानकर चित्त में गर्व नहीं करना चाहिए।
उत्तर:
सनाथ
प्रश्न 3.
कवि ……………… को प्राप्त होने को कहते हैं।
उत्तर:
सुमृत्यु
प्रश्न 4.
‘आप आप ही चरे’ ………………. प्रवृत्ति है।
उत्तर:
पशु
प्रश्न 5.
‘मनुष्यता’ कविता में मनुष्य को ……………. बनने को कहा गया है।
उत्तर:
महान
प्रश्न 6.
……………….. भाग्यहीन है।
उत्तर:
अहंकारी
प्रश्न 7.
…………… होकर अहंकारी बन जाने वाला व्यक्ति को भाग्यहीन कहा जाता है।
उत्तर:
अधीर
प्रश्न 8.
दुनिया में कोई ………………….. नहीं है?
उत्तर:
अनाथ
प्रश्न 9.
……………… वन्धु की व्यथा हरण कर सकता है।
उत्तर:
वंधु ही
प्रश्न 10.
……………… स्वयंभू है।
उत्तर:
परमात्मा
D. ठिक् या भूल लिखिए।
प्रश्न 1.
भाग्यहीन उसे कहा गया है जो अधीर हो।
उत्तर:
ठिक्
प्रश्न 2.
इस संसार में मनुष्य का बंधु देवता है।
उत्तर:
भूल
प्रश्न 3.
सनाथ होने के बाद भी शर्म नहीं करना चाहिए।
उत्तर:
भूल
प्रश्न 4.
वेद अन्तर की एकता प्रमाण देते हैं।
उत्तर:
ठिक्
प्रश्न 5.
पुराण पुरुष हमारे भाई हैं।
उत्तर:
भूल
प्रश्न 6.
प्रमाणभूत का अर्थ साक्षी है।
उत्तर:
ठिक्
प्रश्न 7.
जो मनुष्य के लिए मरता है, वह महान है।
उत्तर:
ठिक्
प्रश्न 8.
इनसान संपत्ति पाकर विनयी बन जाता है।
उत्तर:
भूल
प्रश्न 9.
अहंकारी व्यक्ति को भाग्यवान कहा गया है।
उत्तर:
भूल
प्रश्न 10.
कवि मृत्यु से न डरने की बात कर रहे हैं।
उत्तर:
ठिक्
Multiple Choice Questions (mcqs) with Answers
सही उत्तर चुनिए : (MCQs)
1. कवि के अनुसार कौन साथ होने से कोई अनाथ नहीं हो सकता?
(A) सच्चा मित्र
(B) विश्वनाथ
(C) अपनी माँ
(D) त्रिलोकनाथ
उत्तर:
(D) त्रिलोकनाथ
2. ‘मनुष्यता’ कविता के कवि हैं
(A) मैथिलीशरण गुप्त
(B) कबीर
(C) रहीम
(D) हरिवंश राय
उत्तर:
(A) मैथिलीशरण गुप्त
3. कवि के विचार से मर्त्य में किससे नहीं डरना चाहिए
(A) तूफान से
(B) तलवार से
(C) मृत्यु से
(D) अहंकार से
उत्तर:
(C) मृत्यु से
4. पशु प्रवृत्ति किसे कहते हैं?
(A) जो दूसरों के लिए मरे
(B) जो आप ही आप चरे
(C) जो साधना करे
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) जो आप ही आप चरे
5. मनुष्य क्या पाकर मदांध हो जाता है?
(A) वित्त
(B) किताबें
(C) यश
(D) चीजें
उत्तर:
(A) वित्त
6. अपने को क्या जानकर चित्त में गर्व नहीं करना चाहिए?
(A) अनाथ
(B) सनाथ
(C) दोनाथ
(D) भोलेनाथ
उत्तर:
(B) सनाथ
7. ‘अतीव भाग्यहीन हैं अधीर भाव जो करे’ – इस पंक्ति में भाग्यहीन है
(A) जो धीर है
(B) जो अधीर है
(C) जो अस्थिर है
(D) जो स्थिर है
उत्तर:
(B) जो अधीर है
8. पुराण पुरुष हमारे क्या हैं?
(A) चाचा
(B) परचाचा
(C) पिता
(D) मामा
उत्तर:
(C) पिता
9. ‘परन्तु अंतरैक्य है’ इसका प्रमाण देता है
(A) ग्रंथ
(B) कचहरी
(C) साक्षी
(D) वेद
उत्तर:
(D) वेद
10. इस संसार में मनुष्य का बंधु है
(A) भगवान
(B) देवता
(C) मनुष्य
(D) मुनि
उत्तर:
(C) मनुष्य
11. दयालु दीनबंधु के हाथ हैं:
(A) छोटे
(B) मोटे
(C) विशाल
(D) वड़े
उत्तर:
(C) विशाल
12. भाग्यहीन उसे कहा गया है जो
(A) धीर हो
(B) अधीर हो
(C) स्थिर हो
(D) व्याकुल हो
उत्तर:
(B) अधीर हो
13. ‘आप आप ही चरे’ कैसी प्रवृत्ति है?
(A) पशु
(B) मनुष्य
(C) राक्षस
(D) देवता
उत्तर:
(A) पशु
14. कवि गुप्त जी के अनुसार किससे डरना नहीं चाहिए?
(A) मृत्यु से
(B) शेर से
(C) शिक्षक से.
(D) रात से
उत्तर:
(A) मृत्यु से
15. वेद किसका प्रमाण देते हैं ?
(A) अन्तर की एकता
(B) वाहर की एकता
(C) बन्धु की एकता
(D) ग्रन्थ की एकता
उत्तर:
(A) अन्तर की एकता
यह कविता (ଏହି କବିତା)
इस कविता में मनुष्य को महान बनने की प्रेरणा दी गई है। कवि कहते हैं कि जिसने इस धरा पर जन्म लिया है, एक न एक दिन अवश्य मरेगा। इसलिए हमें कभी मृत्यु से नहीं डरना चाहिए। हम ऐसे मरे कि ने के बाद भी अमर हो जाएँ। यदि हम जीवन भर सत्कर्म नहीं करेंगे तो हमें अच्छी मृत्यु नहीं मिलेगी अर्थात् मरने के बाद कोई याद नहीं रखेगा। जो व्यक्ति दूसरों के काम आता है वह कभी मरता नहीं है। क्योंकि वह कभी भी अपने लिए नहीं जीता है। पशु जिस प्रकार अपने आप चरते रहते हैं उसी तरह की प्रवृत्ति मनुष्य में भी कई बार दिखाई देती है जो ठीक नहीं है।
मनुष्य को तो मनुष्य की मदद करने में प्राण दे देना चाहिए। संपत्ति के लोभ में पड़कर हमें गर्व से नहीं इठलाना चाहिए। कुछ अपने मित्र और परिवार आदि लोगों को देखकर भी अपने को बलवान नहीं मानना चाहिए क्योंकि इस संसार में कोई भी अनाथ या गरीब नहीं होता। यहाँ कोई भी अनाथ नहीं हो सकता क्योंकि ईश्वर जो तीनों लोकों के नाथ हैं, वे सदा सबके साथ रहते हैं। क्योंकि ईश्वर दीनबंधु हैं। गरीबों पर दया करने वाले भी हैं परम दयालु हैं। विशाल हाथ वाले हैं अर्थात् वे सबकी मदद करने के लिए सदा तत्पर रहते हैं।
जो अधीर होकर अहंकारी बन जाते हैं वे तो सच में भाग्यहीन हैं। मनुष्य तो वही है जो मनुष्य की सेवा करे और उसके लिए मरे। मनुष्य के लिए प्रत्येक मनुष्य बंधु है, परम मित्र है। इसे हमें समझना होगा। यही हमारा विवेक है। एक ही भगवान हम सब के पिता हैं। वे पुरातन प्रसिद्ध पुरुष हैं। वे ईश्वर हैं। यह तो सत्य है कि हमें अपने कर्मों के अनुरूप फल भोगना होता है। इसलिए बाहरी तौर पर हम भले ही अलग अलग दिखाई देते हैं पर अंदर से एक हैं। हममें अन्तर की एकता है। वेद ऐसा ही कहते हैं। समाज में अनर्थ तब होता है जब मनुष्य दूसरे को अपना बंधु नहीं मानता। मनुष्य को ही मनुष्य की पीड़ा को दूर करना होगा । इसलिए सही माईने में मनुष्य वह है जो मनुष्य के लिए मरता है।
ଏହି କବିତା:
ଏହି କବିତା ରେ ମଣିଷକୁ ମହାନ୍ ହେବାପାଇଁ ପ୍ରେରଣା ଦିଆଯାଇଅଛି। କବି କହୁଛନ୍ତି ଯିଏ ଏହି ପୃଥିବୀ ପୃଷ୍ଠରେ ଜନ୍ମ ନେଇଛନ୍ତି, ଦିନେ ନା ଦିନେ ତା’ର ମୃତ୍ୟୁ ସୁନିଶ୍ଚିତ। ଏଣୁ ଆମେ କେବେହେଲେ ମୃତ୍ୟୁକୁ ଭୟ କରିବା ନାହିଁ। ଆମେ ଏପରି ଭାବେ ମରିବା ଯେପରି ମୃତ୍ୟୁ ପରେ ମଧ୍ୟ ଅମର ହୋଇ ରହିବା। ଯଦି ଆମେ ସତ୍କର୍ମ ନ କରିବା ତାହାହେଲେ ଆମକୁ ଭଲ ମରଣ ମିଳିବ ନାହିଁ ଅର୍ଥାତ୍ ମଲାପରେ କେହି ଆମକୁ ମନେରଖିବେ ନାହିଁ। ଯେଉଁ ବ୍ୟକ୍ତି ଅନ୍ୟର କାମରେ ଆସେ ସେ କେବେ ମରେ ନାହିଁ, ଯେହେତୁ ସେ କେବେହେଲେ ନିଜ ପାଇଁ ବଞ୍ଚେ ନାହିଁ। ପଶୁ ଯେପରି ଆପଣା
ସାହାଯ୍ୟ କରିବାପାଇଁ ଜୀବନ ଉତ୍ସର୍ଗ କରିବା ଦରକାର।
ବଳବାନ୍ ବୋଲି ଭାବିବା ଠିକ୍ ନୁହେଁ, ଯେହେତୁ ଏହି ସଂସାରରେ କେହି ଅନାଥ ବା ଗରିବ ନୁହଁନ୍ତି। ଏଠାରେ କେହି ଅନାଥ ହୋଇପାରେନା ଯେହେତୁ ଈଶ୍ଵର ତ୍ରିଲୋକର ସ୍ବାମୀ, ସେ ସବୁବେଳେ ସମସ୍ତଙ୍କ ସାଙ୍ଗରେ ରୁହନ୍ତି। ଈଶ୍ଵର ଦୀନବନ୍ଧୁ ଅଟନ୍ତି। ଗରିବମାନଙ୍କୁ ଦୟା କରୁଥିବା ଲୋକ ମଧ୍ୟ ପରମ ଦୟାଳୁ । ସେ ସବୁବେଳେ ସମସ୍ତଙ୍କୁ ସାହାଯ୍ୟ କରିବାକୁ ମଣିଷର ସେବା କରିଥାଏ ଏବଂ ମଣିଷ ପାଇଁ ମରିଥାଏ । ମଣିଷ ପାଇଁ ପ୍ରତ୍ୟେକ ମଣିଷ ବନ୍ଧୁ ଓ ପରମ ମିତ୍ର ଅଟେ । ଏହା ଆମକୁ ବୁଝିବାକୁ ହେବ। ଏହା ଆମର ବିବେକ।
ସେ ଜଣକ ହିଁ ଆମର ପିତା। ସେ ପ୍ରସିଦ୍ଧ ପୁରୁଷ ଅଟନ୍ତି। ସେ ହିଁ ଈଶ୍ଵର। ଏହା ସତ୍ୟ ଯେ ଆମକୁ ଆମର କର୍ମ ଅନୁସାରେ ହିଁ ଫଳ ମିଳିଥାଏ। ବାହାରକୁ ଆମେ ସଭିଏଁ ଅଲଗା ଅଲଗା ଦେଖାଯାଉଥିଲେ ମଧ୍ୟ ଭିତରେ ଆମେ ସଭିଏଁ ଏକ। ସମାଜରେ ଅନର୍ଥ ସେତେବେଳେ ଉପୁଜେ ଯେତେବେଳେ ମଣିଷ ଅନ୍ୟକୁ ନିଜର ବନ୍ଧୁ ବୋଲି ଭାବେ ନାହିଁ, ମଣିଷକୁ ହିଁ ମଣିଷର ଦୁଃଖ ଦୂର କରିବାକୁ ହେବ। ଏଣୁ ପ୍ରକୃତ ଅର୍ଥରେ ମଣିଷ ସେହି ଯିଏ ମଣିଷ ପାଇଁ ମରେ।
विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी,
मरो परंतु यों करो कि याद जो करें सभी।
हुई न यों सुमृत्यु तो वृथा मरे, वृथा जिए,
मरा नहीं वही कि जो जिया न आपके लिए।
वही पशु प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।
हिन्दी व्याख्या:
कवि कहते हैं कि जिसने इस धरा पर जन्म लिया है, वह एक न एक दिन अवश्य मरेगा। इसलिए मृत्यु से कभी डरना नहीं चाहिए, हमारी मृत्यु ऐसी हो कि मरने के बाद भी हम अमर होकर रहें। इसके लिए हमें जीवन में सुकर्म करना होगा, वरना मरने के बाद कोई भी हमें याद नहीं रखेगा। जो व्यक्ति दूसरों के काम आता है, वह कभी भी नहीं मरता। क्योंकि कभी भी अपने लिए जीता ही नहीं। पशु जिस प्रकार अपने आप चरते रहते हैं, उसीप्रकार की प्रवृत्ति मनुष्य में भी कई बार दिखाई देती है जो ठीक नहीं है। मनुष्य को हमेशा मनुष्य की मदद करने में प्राण दे देना चाहिए।
କବିଙ୍କ ମତ ଅନୁସାରେ ଜନ୍ମ ମୃତ୍ୟୁ ଚିରନ୍ତନ ସତ୍ୟ। ଏହି ଧରାଧାମରେ ଯିଏ ଜନ୍ମ ନେଇଛି, ତେଣୁ ଆମେ ମୃତ୍ୟୁକୁ ଭୟ କରିବା ଉଚିତ ନୁହେଁ। ଜୀବନସାରା ଏପରି କାମ ରହିବ। ଅର୍ଥାତ୍ ସତ୍ କର୍ମ କରି ଅମର ରହିବା। ଯଦି କୁକର୍ମ କରିବା ତେବେ ପରେ ଆମକୁ କେହି ମନେ ରଖୁବେ ନାହିଁ। ପଶୁ ଯେପରି ଆପଣା ଛାଏଁ ଭିତରେ ମଧ୍ୟ ଅନେକ ଥର ଦେଖାଯାଏ ଯାହା ଠିକ୍ ନୁହେଁ। ମଣିଷକୁ ମଣିଷ ସାହାଯ୍ୟ ଦିନେ ନା ଦିନେ ତା’ର ମୃତ୍ୟୁ ସୁନିଶ୍ଚିତ। କରିବା ତାହା ମୃତ୍ୟୁ ପରେ ଅମର ହୋଇ ଆମକୁ ଭଲ ମରଣ ହେବ ନାହିଁ। ମୃତ୍ୟୁ ମରିଥା’ନ୍ତି ସେହିପରି ପ୍ରବୃତ୍ତି ମନୁଷ୍ୟ
(ii) रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त सें,
सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।
अनाथ कौन है यहाँ ? त्रिलोकनाथ साथ हैं,
दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।
अतीव भाग्यहीन हैं अधीर भाव जो करे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥
हिन्दी व्याख्या:
कवि कहते हैं कि संपत्ति के लोभ में पड़कर हमें गर्व से इठलाना नहीं चाहिए। मित्र और परिवार आदि लोगों को देखकर कभी भी अपने को बलवान नहीं मानना चाहिए क्योंकि इस संसार कोई भी अनाथ या गरीब नहीं होता। ईश्वर जो तीनों लोकों के नाथ हैं, वे सदैव हमारे साथ रहते हैं। वे दीनबंधु हैं। गरीबों पर दया करनेवाले परम दयालु हैं। वे विशाल हाथ वाले हैं और सबकी मदद करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। जो अधीर होकर अहंकारी बन जाते हैं वे तो वास्तव में भाग्यहीन हैं। मनुष्य वही है जो मनुष्य की सेवा करे और उसके लिए मरे।
ଓଡ଼ିଆ ଅନୁବାଦ:
ଧନ ଲୋଭରେ ପଡ଼ି ଆମେ ଗର୍ବ କରିବା ଠିକ୍ ନୁହେଁ। ନିଜ ପରିବାରବର୍ଗ ଓ ମିତ୍ରକୁ ଦେଖୁ କରି ନିଜକୁ ବଳବାନ ବୋଲି ଭାବିବା ଅନୁଚିତ। କାରଣ ଏହି ସଂସାରରେ କେହି ଗରିବ ବା ଅନାଥ ନୁହଁନ୍ତି। ଏହି ବ୍ୟକ୍ତି ପରମ ଦୟାଳୁ। ଯେ ଅଧର ହୋଇ ଅହଂକାରୀ ହୋଇଯାଏ ସେ ବାସ୍ତବରେ ଭାଗ୍ୟହୀନ ଅଟନ୍ତି। ମଣିଷ ସେହି ଅଟନ୍ତି ଯେ ମଣିଷର ସେବା କରିଥାଏ ଏବଂ ମଣିଷ ପାଇଁ ଜୀବନ ହାରିଥାଏ।
(iii) ‘मनुष्य मात्र बंधु है, यही बड़ा विवेक है,
पुराण पुरुष स्वयं पिता प्रसिद्ध एक है।
फलानुसार कर्म के अवश्य बाह्य भेद हैं।
परंतु अंतरैक्य में प्रमाणभूत वेद हैं।
अनर्थ है कि बंधु ही न बंधु की व्यथा हरे;
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।
हिन्दी व्याख्या:
इसमें कवि कहते हैं कि मनुष्य के लिए प्रत्येक मनुष्य बंधु है, परम मित्र है। इसे हमें समझाना चाहिए। यही हमारा विवेक है। एक ही भगवान हम सबके पिता हैं। वे स्वयं पुराण प्रसिद्ध पुरुष हैं। इस संसार में हमें अपने कर्मों के अनुसार फल मिलता है। इसलिए बाहरी तौर पर हम भले ही अलग-अलग दिखाई देते हैं पर अंदर से एक हैं। हम में अन्तर की एकता है। वेद में ऐसा कहा गया है। समाज में अनर्थ उस समय होता है जब मनुष्य दूसरे को अपना बंधु नहीं मानता है। मनुष्य को ही मनुष्य की पीड़ा को दूर करना होगा। सही अर्थ में मनुष्य वही होता है जो मनुष्य के लिए मरता है।
ଓଡ଼ିଆ ଅନୁବାଦ:
କବିଙ୍କ ମତରେ ମଣିଷ ପାଇଁ ପ୍ରତ୍ୟେକ ମଣିଷ ବନ୍ଧୁ ଓ ପରମ ମିତ୍ର ଅଟେ। ଏହା ଆମକୁ ବୁଝିବାକୁ ହେବ, ଏହାହିଁ ବିବେକ। ଏହା ମଧ୍ୟ ସତ୍ୟ ଯେ ଆମକୁ ଆମର କର୍ମ ଅନୁଯାୟୀ ଫଳ ମିଳିଥାଏ। ଆମେ ସଭିଏଁ ବାହାରକୁ ଅଲଗା-ଅଲଗା ଦେଖାଯାଉଥିଲେ ମଧ୍ୟ ଭିତରେ ସମସ୍ତେ ଏକ ଅଛନ୍ତି। ଯେତେବେଳେ ମଣିଷ ଅନ୍ୟକୁ ନିଜର ବୋଲି ଭାବେ ନାହିଁ, ସେହି ସମୟରେ ସମାଜରେ ଅନେକ ଅନର୍ଥ ସୃଷ୍ଟି ହୁଏ। ମଣିଷକୁ ହିଁ ମଣିଷର ଦୁଃଖ ଲାଘବ କରିବାକୁ ହେବ। ପ୍ରକୃତ ଅର୍ଥରେ ମଣିଷ ସେହି ଯିଏ ମଣିଷ ପାଇଁ ଜୀବନ ଦେଇଥାଏ।
शबनार: (ଶରାର୍ଥି)
मर्त्य धरा/पृथ्वी (ପୃଥବୀ)।
परंतु – किन्तु (ପରନ୍ତୁ )।
मदांध – गर्व से अंध (ଗର୍ବରେ ଅନ୍ଧ)।
आप – खुद (ନିଜେ)।
चित्त – मन (ମନ )।
दीनबंधु – ईश्वर (ଦୀନଙ୍କ ବନ୍ଧୁ )।
अतीव – अत्यन्त (ଅଧ୍ଵ )।
प्रमाणभूत- साक्षी (ସାକ୍ଷୀ)।
बाहूय – बाहारी (ବାହାର )।
पशु प्रवृत्ति – पशु जैसा स्वभाव (ପଶୁ ପରି ସ୍ବଭାବ)।
याद – स्मरण (ମନେପକାଇବା)।
प्रवृत्ति – प्रकृति (ପ୍ରକୃତି )।
वित्त – संपत्ति (ସମ୍ପତ୍ତି)।
सनाथ – परिजन का होत (ସପରିବାର )।
अंतरैक्य – आत्मा की एकता (ଆତ୍ମାର ଏକତା)।
स्वयं – खुद (ନିଜେ )।
व्यथा – कष्ट (କଷ୍ଟ)।
कवि परिचय
मैथिली शरण गुप्त का जन्म चिरगाँव झाँसी में सन् 1886 में हुआ था। उनकी पढ़ाई घर पर ही हुई। उन्होंने हिन्दी के अलावा संस्कृत, बंगला, मराठी और अँग्रेजी में भी अच्छा ज्ञान प्राप्त किया। बचपन से ही वे कविता लिखने लगे थे। अपने जीवन काल में ही वे राष्ट्रकवि के नाम से प्रसिद्ध हुए। गुप्तजी का परिवार रामभक्त था। उन्होंने भारतीय जीवन के आदर्श, इतिहास और संस्कृति को अपने काव्य का आदर्श बनाया। स्नेह, प्रेम, दया, उदारता आदि मानवीय भावों को भी साहित्य के माध्यम से उजागर किया।