Odisha State Board BSE Odisha 7th Class Hindi Solutions Chapter 11 बना दो मधुर मेरा जीवन (कविता) Textbook Exercise Questions and Answers.
BSE Odisha Class 7 Hindi Solutions Chapter 11 बना दो मधुर मेरा जीवन (कविता)
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
(i) कवि मातृभूमि हेतु क्या करना चाहता है ?
उत्तर:
कवि मातृभूमि हेतु बिना किसी संकोच के अपना तन, मन, और धन अर्पित कर देना चाहता है ।
(ii) कवि अपने मन को क्या बनाना चाहता है ?
उत्तर:
कवि अपने मन को संसार के सुख-दु:ख का आईना बनाना चाहता है । अर्थात् वह सब लोगों के सुखदु:ख को अपना सुख-दु:ख समझता है ।
(iii) कवि कब मरण-बरण करना चाहता है ?
उत्तर:
कवि लोगों की आँखों के आँसू पोंछते हुए यानी उनके दुःख को दूर करते हुए मृत्यु को वरण करना चाहता है । इस नेक कार्य में उसे अपनी मौत भी स्वीकार है।
(iv) कवि अपनी फौलादी बाँहों से क्या करना चाहता है ?
उत्तर:
कवि अपनी फौलादी बाँहो से बिना रुके, अपने निश्चय पर अटल रहते हुए अन्याय का दमन करना चाहता है ।
(v) कवि अपनी रसना के लिए क्या चाहता है ?
उत्तर:
कवि अपनी रसना यानी जिह्वा से मधुर वचन बोलना चाहता है । इसलिए वह चाहता है कि उसकी रसना में मधुर वचन का प्रवेश हो जाय ।
(vi) कवि का हृत्तन्त्री की तान से क्या हो जाएगा ?
उत्तर:
कवि की हृत्तन्त्री की तान से बिना कान वाले साँप का फन नीचे झुक जाएगा।
(vii) यह धरती कैसे स्वर्ग-भुवन बन जाएगी ?
उत्तर:
कवि के प्रेम, परोपकार की भावना और सेवा से यह धरती स्वर्ण भुवन बन जाएगी ।
2. पाठ के आधार पर शून्यस्थानों को भरिए :
बना दो ऐसा …………
………… हेतु ………… कर दूँ ………… अर्पण
………… गीत से । कर सकूँ सदा ………… |
उत्तर:
बना दो ऐसा मेरा जीवन कि मातृभूमि हेतु बेहिचक कर दूँ तन मन धन अर्पण अप्रतिहत, अविचल गीत कर सकूँ सदा अन्याय-दमन
3. समझिए और लिखिए ।
मातृभूमि, अर्पण, सरस, अमृत, मेरा, दर्पण, अश्रु, मरण-वरण, अप्रतिहत, रसना, मधुर, हृत्तंत्री, प्रेम, धरती, स्वर्ग
उत्तर:
छात्र अध्यापक की सहायता से शब्दों के अर्थ समझे और स्वयं लिखें ।
4. एक ही अर्थ वाले अनेक शब्द होते हैं। ये पर्यायवाची शब्द कहलाते हैं ।
उत्तर:
- सुमन – फूल,पुष्प,कुसुम
- मातृभूमि – जन्मभूमि
- अर्पण – प्रदान
- सरस – अच्छा
- अमृत – सुधा
- मेरा – अपना
- दर्पण – आईना
- अश्रु – आँसू
- मरण-वरण – मृत्यु को स्वीकार करना
- अप्रतिहत – अबाध
- रसना – जीभ
- मधुर – मीठा
- हत्तत्री – स्नेहभरी बात, हृदय के तार
- प्रेम – प्यार
- धरती – पृथ्वी
- स्वर्ग – देवलोक
भाषा-कार्य :
5. नीचे दिए गए शब्दों के समान अर्थ वाले पर्यायवाची शब्द लिखिए :
उत्तर:
- पवित्र – शुचि
- विषधर – साँप
- परहित – परोपकार
- रसना – जीभ
- शुचि – शुद्ध
- सुरभि – सुगंध
6. नीचे कुछ शब्द दिये गये है । देखिए :
मातृ + भूमि = मातृभूमि
छल + हीन = छलहीन
अश्रु + कण = अश्रुकण
हत् + तंत्री = हृत्तंत्री
स्वर्ग + भुवन = स्वर्गभुवन
इस प्रकार-के पाँच शब्द सोचकर लिखिए ।
उत्तर:
पुण्य + भूमि = पूण्यभूमि
हृदय + हीन = हृदयहीन
जल + कण = जलकण
विष + धर = विषधर
पर + हित = परहित
7. विलोम शब्द लिखिए :
उत्तर:
शब्द — विलोम
सरल — कठिन
छलहीन — छलयुक्त
मधुर — तिक्त
अन्याय — न्याय
हित — अहित
8. इस कविता को कंठस्थ करके कक्षा में सुनाइए ।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।
भावबोध :
बन ……….. अमृत – कण =
मैं फूल जैसा कोमल और सुन्दर बन सबको खुश कर दूँ। सुगंध बन सबको अमृत का स्वाद चखाऊँ।
जग………… दर्पण =
संसार के सुख से सुखी और दुःख से मैं दुःखी बनूँ। सबके साथ सहानुभूति रखूँ।
हृत्तंत्री की………… नतफन =
मैं अपनी स्नेहभरी बतों से, प्यार से किसी की न सुनने वाले दुष्ट व्यक्ति को भी विनम्र बना दूँ ।
अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
(i) कवि अमृतकणों को कहाँ बाँटना चाहता है ?
उत्तर:
क़वि अमृत कणों को जन-जन में बाँटना चाहता है। वह चाहता है कि सभी मानव सुखी एवं मानवीय उच्च भावनाओं से युक्त हों ।
(ii) कवि अपने मन को किसका दर्पण बनाना चाहता है ?
उत्तर:
कवि अपने मन को जग के सुख-दुःख का दर्पण बनाना चाहता है ।
(iii) कविता का मूलभाव स्पष्ट कीजिए :
उत्तर:
इस कविता में कवि ईश्वर से कुछ वरदान माँगता है। वह अपना जीवन देश के निमित्त निस्संकोच भाव से बलिदान कर देना चाहता है । वह जन-जन के दुःख-दर्द को महसूस करता है और उसे मिटाना चाहता है । वह अपने हृदय की मधुर तान से घृणा को प्रेम में बदलना चाहत है । वह धरती को स्वर्ण के समान बनाने की अभिलाषा प्रकट करने के साथसाथ अपना तन-मन-धन सब कुछ अर्षित कर देना चाहता है ।
2. सही जोड़े मिलाइए :
‘क’ — ‘ख’
कर दूँ तन — मरण वरण
शुचि सरल — अन्याय दमन
अश्रु कण करूँ — मन धन अर्पण
कर सकूँ सदा — हो जाय नतफन
अकर्ण बिषधर — छलहीन सरस
उत्तर:
‘क’ — ‘ख’
कर दूँ तन — मन धन अर्पण
शुचि सरल — छलहीन सरस
अश्रु कण करूँ — मरण वरण
कर सवूँ सदा — अन्याय दमन
अकर्ण बिषधर — हो जाय नतफन
3. निम्नलिखित प्रश्नों के सही उत्तर पर (✓) का निशान लगाइए :
(i) कविता ‘बना दो मधुर मेरा जीवन’ के कवि हैं-
(क) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
(ख) भवानी प्रसाद मिश्र
(ग) राधाकान्त मिश्र
(घ) रामधारी सिंह ‘दिनकर’
उत्तर:
(ग) राधाकान्त मिश्र
(ii) कवि देशहित में किसका अर्पण नहीं करना चाहता है ?
(क) तन
(ख) मन
(ग) धन
(घ) दुःख
उत्तर:
(घ) दुःख
(iii) ‘फौलादी बाहें’ किनके प्रतीक हैं ?
(क) मजबूत इरादों के
(ख) कमजोरी के
(ग) कायरता के
(घ) खुशी के
उत्तर:
(क) मजबूत इरादों के
(iv) ‘अर्कण’ किसे कहा गया है ?
(क) बहरे को
(ख) साँप को
(ग) गूँगे को
(घ) नेताओं को
उत्तर:
(ख) साँप को
भाषा-कार्य :
4. दिए गए शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए-
सुमन, सुरभि, अश्रु, मरण, रसना, भुवन
उत्तर:
- सुमन – फूल, कुसुम
- सुरभि – सुगंध, खुशबू
- अश्रु – आँसू, नयनजल
- मरण – मृत्यु, मौत
- रसना – जीभ, जिह्वा
- भुवन – संसार,जग
5. कविता से पाँच संज्ञा शब्द चुनकर उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए ।
उत्तर:
- जीवन – हमें जीवन सार्थक बनाना चाहिए।
- सुमन – बाग में अनेक सुमन खिले हुए हैं ।
- मन – मन में पक्का निश्चय करने से कार्य सरल हो जाता है ।
- अश्रु – प्रथम पुरस्कार मिलने पर आलोक की आँखों से खुशी के अश्रु बह निकले ।
- धरती – धरती को प्रदूषणमुक्त बनाना हमारा पहला कर्तव्य है ।
6. दिए गए शब्दों को जोर-जोर से बोलिए और लिखिए।
बेहिचक, अर्पण, मधुरस, शुचि, वरण, अविचल
उत्तर:
छात्र स्वयं करें ।
पाठ का सारांशः
बना दो ऐसा मेरा जीवन ।
कि मातृभूमि हेतु बेहिचक
कर दूँ तन मन धन अर्पण ।
बन सुमन सुरभि मधुरस
शुचि सरल छलहीन सरस
बितरूँ जन-जन में अमृत कण !
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी पाठ्यपुस्तक ‘मेरी हिन्दी पुस्तक-२’ की कविता ‘बना दो मधुर मेरा जीवन’ से ली गई हैं । इन पंक्तियों में कवि ने ईश्वर से अपने जीवन को देशहित में काम आने योग्य बनाने का अनुरोध किया है ।
व्याख्या : कवि मातृभूमि के लिए अपने जीवन को समर्पित कर देना चाहता है । वह अपने जीवन को ऐसा बनाना चाहता है कि देश की खातिर अपना तन-मन-धन सब बिना किसी हिचक के अर्पित कर सके । वह फूलों की सुगंध की तरह अपना प्रभाव जन-जन तक फैलना चाहता है । वह पवित्र, सरल और भोला-भाला बनकर अमृत कणों को सब लोगों तक पहुँचाना चाहता है । इन सब के लिए वह ईश्वर की कृपा चाहता है ।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी पाठ्यपुस्तक ‘मेरी हिन्दी पुस्तक-२’ की कविता ‘बना दो मधुर मेरा जीवन’ से ली गई हैं । इन पंक्तियों में कवि ने ईश्वर से अपने जीवन को देशहित में काम आने योग्य बनाने का अनुरोध किया है ।
व्याख्या : कवि मातृभूमि के लिए अपने जीवन को समर्पित कर देना चाहता है । वह अपने जीवन को ऐसा बनाना चाहता है कि देश की खातिर अपना तन-मन-धन सब बिना किसी हिचक के अर्पित कर सके । वह फूलों की सुगंध की तरह अपना प्रभाव जन-जन तक फैलना चाहता है । वह पवित्र, सरल और भोला-भाला बनकर अमृत कणों को सब लोगों तक पहुँचाना चाहता है । इन सब के लिए वह ईश्वर की कृपा चाहता है ।
ପ୍ରସଙ୍ଗ : ଶଂସିତ ପଦ୍ୟାଶ ଆମ ପାଠ୍ୟ ପୁସ୍ତକ ‘ମେରୀ ହିନ୍ଦୀ ପୁସ୍ତକ-୨’ର ‘ବନା ଦୋ ମଧୁର ମେରା ଜୀବନ’ କବିତାରୁ ନିଆଯାଇଛି। ଏଥିରେ କବି ତାଙ୍କ ଜୀବନକୁ ଦେଶହିତ କାମରେ ଆସିଥୁବା ଭଳି ଯୋଗ୍ୟ କରିଦେବା ପାଇଁ ଈଶ୍ଵରଙ୍କୁ ଅନୁରୋଧ କରିଛନ୍ତି।
ବ୍ୟାଖ୍ୟା : କବି ମାତୃଭୂମି ପାଇଁ ତାଙ୍କ ଜୀବନକୁ ଉତ୍ସର୍ଗ କରିଦେବାକୁ ଚାହିଁଛନ୍ତି। ସେ ତାଙ୍କ ଜୀବନକୁ ଏଭଳି ଭାବରେ ନିର୍ମାଣ କରିବାକୁ ଚାହୁଁଛନ୍ତି ଯେ ଯେପରି ସେ ଦେଶ ପାଇଁ ନିଜର ତନ-ମନ-ଧନ ସବୁ କିଛି ବିନା ଦ୍ବିଧାରେ ଅର୍ପଣ କରିଦେଇ ପାରିବେ । ସେ ପୁଷ୍ପର ସୁଗନ୍ଧ ଭଳି ତାଙ୍କ ପ୍ରଭାବ ପ୍ରତ୍ୟେକ ବ୍ୟକ୍ତି ପାଖରେ ପହ ।ଇଦେବାକୁ ଇଚ୍ଛା ପ୍ରକାଶ କରିଛନ୍ତି। ଏସବୁ ପାଇଁ ସେ ଈଶ୍ଵରଙ୍କୁ କୃପାଭିକ୍ଷା କରିଛନ୍ତି ।
बना दो ऐसा मेरा मन ।
जग के सुख दुःख का दर्पण।
पोंछ जन-जन के नयनों के
अश्रु कण करूँ मरण वरण ।
प्रभो बनाओ ऐसा मेरा तन
किअपनी फौलादी बाँहों से
अप्रतिहत, अविचल गति से
कर सूँ, सदा अन्याय – दमन ।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी पाठ्यपुस्तक ‘मेरी हिन्दी पुस्तक-२’ की कविता ‘बना दो मधुर मेरा जीवन’ से ली गई हैं । इन पंक्तियों में कवि ने परमपिता को अपने मन और तन को समस्त मानव-जाति की सेवा के योग्य बनाने की इच्छा जता रहा है ।
व्याख्या : कवि का मन जन-जन की सेवा के लिए मचल रहा है । वह अपने मन में संसार के सुख-दु:ख दोनों को समेटना चाहता है । अर्थात् सभी लोगों के सुख-दु:ख को वह अपना सुख-दुःख समझता है । वह जन-जन की आँखों के आँसू पोंछना चाहता है । लोगों के दु:ख दूर करते-करते यदि मृत्यु भी आ जाए तो वह उसके लिए सहर्ष तैयार है । वह अपने शरीर को उतना बलिष्ठ बनाने की विनती कर रहा है कि उसकी मजबूत भुजाएँ लोगों के दुःख दूर करने के काम आ सकें । वह बिना रुके, बिना विचलित हुए अन्याय को दूर करने के लिए संकल्पित है ।
ପ୍ରସଙ୍ଗ : ଶଂସିତ ପଦ୍ୟାଶ ଆମ ପାଠ୍ୟ ପୁସ୍ତକ ‘ମେରୀ ହିନ୍ଦୀ ପୁସ୍ତକ-୨’ର ‘ବନା ଦୋ ମଧୁର ମେରା ଜୀବନ’ କବିତାରୁ ନିଆଯାଇଛି । ଏଥିରେ କବି ଇଚ୍ଛା ପ୍ରକଟ କରିଛନ୍ତି ଯେ ପରମପିତା ତାଙ୍କ ଶରୀର ଓ ମନକୁ ସମଗ୍ର ମାନବ-ଜାତି ସେବା ପାଇଁ ଯୋଗ୍ୟ କରିଦିଅନ୍ତୁ ।
ବ୍ୟାଖ୍ୟା : କବିଙ୍କ ମନ ସମସ୍ତ ଜନଙ୍କ ସେବା କରିବା ପାଇଁ ବ୍ୟାକୁଳ ହୋଇଉଠିଛି। ସେ ତାଙ୍କ ମନ ମଧ୍ଯରେ ସଂସାରର ସମସ୍ତ ସୁଖ-ଦୁଃଖ ଉଭୟକୁ ସାଉଁଟି ନେବାକୁ ଇଚ୍ଛା ପ୍ରକାଶ କରିଛନ୍ତି।
ଅର୍ଥାତ୍ ସମସ୍ତଙ୍କ ସୁଖ-ଦୁଃଖକୁ ସେ ନିଜ ସୁଖ-ଦୁଃଖ ବୋଲି ବିବେଚନା କରିଛନ୍ତି । ସେ ପ୍ରତ୍ୟେକ ବ୍ୟକ୍ତିର ଆଖରୁ ଝରୁଥୁବା ଲୋତକ ପୋଛି ଦେବାକୁ ଇଚ୍ଛା କରିଛନ୍ତି । ଲୋକଙ୍କ ଦୁଃଖ ଦୂର କରୁ କରୁ ଯଦି ତାଙ୍କର ମୃତ୍ୟୁ ଉପଗତ ହୁଏ, ତେବେ ସେ ପ୍ରସ୍ତୁତ ରହିଛନ୍ତି। ସେ ଭଗବାନଙ୍କୁ ବିନତୀ ତାଙ୍କ ଶରୀରକୁ ଏତେ ବଳିଷ୍ଠ କରିଦିଅନ୍ତୁ ଯେ ସେଥିପାଇଁ ସହର୍ଷ କରିଛନ୍ତି ଯେ ସେ ତାଙ୍କର ଶକ୍ତ ବାହୁ ଲୋକଙ୍କ ଦୁଃଖ ଦୂର କରିବା କାମରେ ଲାଗି ପାରିବ । ସେ ନଅଟକି ଅବିଚଳିତ ଚି ରେ ଅନ୍ୟାୟ ଦୂର କରିବା ପାଇଁ ସଂକଳ୍ପବଦ୍ଧ ହୋଇଛନ୍ତି ।
देना रसना में मधुर वचन ।
हत्तन्त्री की तान से मेरी
अकर्ण विषधर हो जाय नतफन ।
बना दो मधुर यह जीवन ।
प्रेम, परहित, सेवा से मेरी
धरती बन जाय स्वर्ण-भुवन ।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी पाठ्यपुस्तक ‘मेरी हिन्दी पुस्तक-२’ की कविता ‘बना दो मधुर मेरा जीवन’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवि अपने मधुर वचन के द्वारा कुटिल से कुटिल प्राणी को भी वश में करने तथा अपनी सेवा से धरती को स्वर्णभूमि बनाने की कामना करता है ।
व्याख्या : कवि ईश्वर से अपने जीवन को मधुर बनाने की विनती करते हुए उसकी इच्छा है कि वह पृथ्वी को स्वर्णमयी बना सके । वह अपने प्रेम, परोपकार की भावना और सेवा से धरती को निवास करने योग्य एक अनुपम स्थान बनाने की कामना करता है ।
ପ୍ରସଙ୍ଗ : ଶଂସିତ ପଦ୍ୟାଶ ଆମ ପାଠ୍ୟ ପୁସ୍ତକ ‘ମେରୀ ହିନ୍ଦୀ ପୁସ୍ତକ-୨ ’ର ‘ବନା ଦୋ ମଧୁର ମେରା ଜୀବନ’ କବିତାରୁ ନିଆଯାଇଛି । ଏଥରେ କବି ତାଙ୍କ ମଧୁର ବଚନ ଦ୍ଵାରା କୁଟିଳରୁ କୁଟିଳ ବ୍ୟକ୍ତିକୁ ମଧ୍ୟ ବଶୀଭୂତ କରିବାକୁ ତଥା ସେବା ଦ୍ଵାରା ସଂସାରକୁ ସ୍ଵର୍ଣ୍ଣଭୂମି ରୂପେ ନିର୍ମାଣ କରିବାର କାମନା କରିଛନ୍ତି ।
ବ୍ୟାଖ୍ୟା : କବି ଈଶ୍ଵରଙ୍କଠାରୁ ‘ମଧୁର ବଚନ’ କହିପାରିବାର ଶକ୍ତି ଭିକ୍ଷା କରିଛନ୍ତି । ସେ ଇଚ୍ଛା ପ୍ରକାଶ କରିଛନ୍ତି ଯେ ତାଙ୍କ ହୃଦୟରୁ ନିଃସୃତ ପ୍ରେମମୟ ମଧୁର ବାଣୀ ଦୁର୍ବିନୀତ ସର୍ପକୁ ମଧ୍ଯ ବିନମ୍ର କରିଦେଉ । ଅର୍ଥାତ୍ କବି ଦୁଷ୍ଟ ପ୍ରାଣୀଙ୍କୁ ଈଶ୍ବରଙ୍କୁ ସେ ବିନୀତ ପ୍ରାର୍ଥନା କରିଛନ୍ତି ଯେ ସେ କବିଙ୍କ ଜୀବନକୁ ମଧୁର କରିଦିଅନ୍ତୁ, ତା’ହେଲେ ସେ ପୃଥିବୀକୁ ସ୍ଵର୍ଣ୍ଣମୟୀ ରୂପେ ନିର୍ମାଣ କରିପାରିବେ । ସେ ପ୍ରେମ, ପରୋପକାର ଭାବନା ଓ ସେବା ବୃତ୍ତି ଦ୍ଵାରା ପୃଥିବୀକୁ ବାସ ଉପଯୋଗୀ ଏବଂ ଅନୁପମ ସ୍ଥାନ ଭାବରେ ନିର୍ମାଣ କରିବାର କାମନା କରିଛନ୍ତି।
शब्दार्थ :