+2 1st Year Sanskrit Optional Solutions Chapter 4 ଚନ୍ଦ୍ରଭୂପତିକଥା Question Answer

Odisha State Board Plus Two First Year Sanskrit Optional Solutions Chapter 4 ଚନ୍ଦ୍ରଭୂପତିକଥା Textbook Exercise Questions and Answers.

Plus Two First Year Sanskrit Optional Chapter 4 ଚନ୍ଦ୍ରଭୂପତିକଥା Question Answer

अतिसंक्षेपेण उत्तरं लिखत

(क) बन्धनीमध्यात् शुद्धम् उत्तरं चित्वा लिखत-

Question 1.
कस्मिंश्चिन्नगरे ___________________ नाम भूपतिः प्रतिवसति स्म। (विक्रमः, चन्द्र:, सूर्यः)
Answer:
चन्द्र:

Question 2.
तस्मिन् राजगृहे लघुकुमारवाहनयोग्यं ___________________ अस्ति। (गजयूथम्, हयय्थम्, मेषयुथम्)
Answer:
मेषयुथम्

Question 3.
मेषः ___________________ प्रविशति। (मन्दिरे, गृहे, महानसे)
Answer:
महानसे

Question 4.
मेषसूपकारकलहोऽयं ___________________ क्षयाय भविष्यति। (मेषाणां, वानराणां, नराणां)
Answer:
वानराणां

Question 5.
___________________ प्रचुरः अयं मेषः। (उणी, केशा, दन्ता)
Answer:
उणी

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Question 6.
अयं मेषः स्वल्पेनापि ___________________ प्रज्वलिष्यति। (वारिणा वायुना, वह्निना)
Answer:
वह्निना

Question 7.
___________________ अश्वानां बह्रिदाहदोष: प्रशाम्यति। (गजवसया, वानरवसया, मृगवसया)
Answer:
वानरवसया

Question 8.
वानरवसया ___________________ वह्निदाहदोषः प्रशाम्यति। (अश्वानां, मूषिकाणां मृगाणां)
Answer:
अश्वानां

Question 9.
मदोद्धताः वानराः ___________________ गन्तुं न इच्छन्ति। (वृक्षं, वनं, गृहं)
Answer:
वनं

Question 10.
जाज्जन्यमान शरीर: मेष: ___________________ प्रलुठतः। (जले, शय्यायां, क्षितौ)
Answer:
क्षितौ

Question 11.
तस्य अश्रद्धेयं श्रुत्वा मदोद्धता वानराः प्रहस्य प्रोचुः। (वदनम्, रोदनम्, वचनम्)
Answer:
वचनम्

Question 12.
ते धन्याः ये कुलक्षयं न पश्यन्ति। (उरुभनं, देशभङ्गं, केशभनं)
Answer:
देशभङ्गं

Question 13.
वानरयूथपः कुलक्षयं ज्ञात्वा परं उपागतः। (हर्षम्, विषादम्, प्रसादम्)
Answer:
विषादम्

Question 14.
भ्रमता वृद्धवानरेण समासादितम्। (मन्दिर:, समुद्र:, सरः)
Answer:
सरः

Question 15.
नूनमंत्र ___________________ दुष्टग्राह्येण भाव्यम्। (स्थलान्ते, जलान्ते, जनपदान्ते)
Answer:
जलान्ते

Question 16.
वानरः ___________________ जलं पिवति। (पात्रेण, हस्तेन, नालेन)
Answer:
नालेन

Question 17.
जलमध्यात् ___________________ निष्क्रमति। (देव, राक्षसः, मानवः)
Answer:
राक्षसः

Question 18.
अत्र यः सलिले ___________________ करोति स मे भक्ष्यः। (प्रवेशं, निवेशं, स्नानं)
Answer:
प्रवेशं

Question 19.
राक्षस: ___________________ अधारयत्। (कुण्डलम्, मुकुटम्, रत्नमाला)
Answer:
रत्नमाला

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Question 20.
बाह्यतः ___________________ मां दूषयति। (सर्प, व्याघ्रः, शृगालः)
Answer:
शृगालः

Question 21.
अस्ति कुत्रचिदरण्ये गुप्ततरं महत्सरो ___________________। (धनदनिर्मितम्, वरदानिर्मितम्, शारदानिर्मितम्)
Answer:
धनदनिर्मितम्

Question 22.
तत्र सूर्येऽर्धेदिते ___________________ य: निमज्जति स रत्नमालाभूषितकण्ठो निःसरति। (चन्द्रवासरे, रविवासरे, शुक्रवासरे)
Answer:
रविवासरे

Question 23.
वानरोऽपि राज्ञा दोलादिरूदेन ___________________ आरोपितः सुखेन आनीयते। (स्वोत्सङ्ग, स्वस्कन्ध, दुरश्वेन)
Answer:
स्वोत्सङ्ग

Question 24.
अस्ति मे भूपतिना सहात्यन्तं ___________________। (मित्रताम्, वैरम्, द्वेषम्)
Answer:
वैरम्

Question 25.
रत्नमालादीप्त्या ___________________ अपि तिरस्करोति। (चन्द्रम्, पृथिवीम्, सूर्यम्)
Answer:
सूर्यम्

Question 26.
वानर: ___________________ समये राजानमुवाच। (प्रभात, प्रत्युष, सायं)
Answer:
प्रत्युष

Question 27.
राज्यस्थ ___________________ ईहते। (धनम्, जनम्, स्वर्गम्)
Answer:
स्वर्गम्

Question 28.
अर्धोदिते सूर्येऽत्र प्रविष्टानां ___________________भवति। (बृद्धि:, सिद्धि:, समृद्धिः)
Answer:
सिद्धि:

Question 29.
कृते ___________________ कुर्यात्। (अनुवृत्तिं, निवृतिं, प्रतिकृतिं)
Answer:
प्रतिकृतिं

Question 30.
दुष्टे ___________________ समाचरेत्। (शिष्टं, दुष्टं, रुष्टं)
Answer:
दुष्टं

Question 31.
राजा शोकाविष्टः ___________________ एकाकी यथायातमार्गेण निष्क्रान्तः। (वसति:, ददाति, पदाति:)
Answer:
पदाति:

Question 32.
नानास्वादितं तोयं साधु भो ___________________। (हटनागर, वटवानर, तटशूकर)
Answer:
वटवानर

(ख) अतिसंक्षेपेण उत्तरं लिखत-

Question 1.
कस्मिंश्चिन्नगरे कः नाम भूपतिः प्रतिवसति स्म?
Answer:
ଚନ୍ଦ୍ର

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Question 2.
भूपतेः चन्द्रस्य पुत्राः कीदृशक्रीड़ारता आसन्?
Answer:
ବାନରକ୍ରୀଡ଼ାପ୍ରିୟ

Question 3.
तस्मिन् राजगृहे लघुकुमारबाहनयोग्यं किम् अस्ति?
Answer:
ମେଣ୍ଢାପଲଟିଏ

Question 4.
मेष: निःशङ्कं कुत्र प्रविश्य यत् पश्यति तत्सर्वं भक्षयति?
Answer:
ରୋଷେଇଘରେ

Question 5.
के मेषान् ताड़यन्ति?
Answer:
ରୋଷେୟାମାନେ

Question 6.
मेषसूपकारकलहोऽयं केषां क्षयाय भविष्यति?
Answer:
ବାନରମାନଙ୍କର

Question 7.
यदि वस्तुनोऽभावात् कदाचिदुल्मुकेन ताड़यिष्यन्ति तदेर्णोप्रचुरोऽयं कः स्वल्पेनापि वह्निना प्रज्वलिष्यति?
Answer:
ମେଣ୍ଢାଟି

Question 8.
अश्वकुटी कस्य हेतोः ज्वलिष्यति?
Answer:
ପ୍ରଚୁର ତୃଣହେତୁ

Question 9.
कया अश्वानां वह्निदाहदोषः प्रशाम्यति?
Answer:
ବାନରମାନଙ୍କର ଚର୍ବି ବା ମଜ୍ଜାଦ୍ଵାରା

Question 10.
वानरवसया अश्वानां कः प्रशाम्यति?
Answer:
ଅଗ୍ନିଦାହଦୋଷ

Question 11.
एवं निश्चित्य सर्वान् कान् आहूय यूथपतिः रहसि प्रोवाच?
Answer:
ବାନରମାନଙ୍କୁ

Question 12.
कलहन्तानि कानि?
Answer:
ବଡ଼ ବଡ଼ ଗୃହମାନ

Question 13.
कुवाकयान्तं च किम्?
Answer:
ବନ୍ଧୁତା

Question 14.
भवतो वृद्धभावात् किं संजातम्?
Answer:
ବୁଦ୍ଧି ବିଭ୍ରାଟ

Question 15.
नित्यशः का स्रवति?
Answer:
ଲାଳ

Question 16.
तान् वानरान् परित्यज्य स यूथाधिपः कुत्र गतः?
Answer:
ବନକୁ

Question 17.
राजा तदाकर्ण्य कम् आदिष्टवान्?
Answer:
ସମସ୍ତ ବାନରଙ୍କୁ ବଧ କରିବାକୁ

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Question 18.
राजा सविषादः कान् आहूतवान्?
Answer:
ଶାଳିହୋତ୍ରନିଦାନ ଜାଣିଥ‌ିବା ବୈଦ୍ୟମାନଙ୍କୁ

Question 19.
वानरयूथपः ज्ञातिक्षयं ज्ञात्वा परं कम् उपागतः?
Answer:
ବିଷାଦଭାବକୁ

Question 20.
भ्रमता वृद्धवानरेण कीदृशं सरः समासादितम्?
Answer:
ପଦ୍ମଲତାମଣ୍ଡିତ

Question 21.
केषां पदपङ्क्ति प्रवेशोऽस्ति?
Answer:
ମନୁଷ୍ୟମାନଙ୍କର

Question 22.
मनुष्याणां पदपङ्क्ति प्रवेशोऽस्ति न किम्?
Answer:
ବାହାରି ଆସିବାର

Question 23.
नूनमत्र जलान्ते केन भाव्यम्?
Answer:
ଦୁଷ୍ଟଗ୍ରାହ୍ୟ ବା କୁମ୍ଭୀରଟିଏ

Question 24.
किम् आदाय दूरस्थोऽपि जलं पिवामि?
Answer:
ପଦ୍ମନାଡ଼ଟିଏ

Question 25.
जलमध्यात् कः निष्क्रान्तः?
Answer:
ରାକ୍ଷସ

Question 26.
कीदृश: राक्षस: जलमध्यात् निष्क्रान्तः?
Answer:
ରତ୍ନମାଳାରେ ବିଭୂଷିତ କଣ୍ଠବିଶିଷ୍ଟ

Question 27.
अत्र सलिले यः प्रवेशं करोति स मे कः?
Answer:
ଖାଦ୍ୟ

Question 28.
अस्ति मे भूपतिना सहात्यन्तं किम्?
Answer:
ଶତ୍ରୁତା

Question 29.
तं भूपतिं केन लोभयित्वात्र सरसि प्रवेशयामि?
Answer:
ବାକ୍‌ତୁରୀଦ୍ୱାରା

Question 30.
का दीप्त्या सूर्यमपि तिरस्करोति?
Answer:
ରତ୍ନମାଳା

Question 31.
रत्नमाला दीप्त्या कमपि तिरस्करोति?
Answer:
ସୂର୍ଯ୍ୟଙ୍କୁ

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Question 32.
क्वापि कीदृशं सरोऽस्ति?
Answer:
ରତ୍ନମାଳା ଥ‌ିବା

Question 33.
भूपतिना सह रत्नमालालोभेन सर्बे के प्रस्थिता:?
Answer:
ସ୍ତ୍ରୀ ଓ ଚାକରମାନେ

Question 34.
शती किम् इच्छति?
Answer:
ହଜାରେ ମୁଦ୍ରା

Question 35.
कस्य केशाः जीर्यन्ते?
Answer:
ଜରାଗ୍ରସ୍ତ ବ୍ୟକ୍ତିର

Question 36.
एका का तरुणायते?
Answer:
ତୃଷ୍ଣା

Question 37.
तत्सरः समासाद्य वानरः कदा राजानमुवाच?
Answer:
ପ୍ରତ୍ୟୁଷକାଳରେ

Question 38.
अथ प्रविष्टास्ते लोकाः सर्वे केन भक्षिता:?
Answer:
ରାକ୍ଷସଦ୍ବାରା

Question 39.
वानरः सत्वरं कम् आरुह्य राजानमुवाच?
Answer:
ବୃକ୍ଷକୁ

Question 40.
हिंसिते किं कुर्यात्?
Answer:
ପ୍ରତିହିଂସା

(ग) उत्कलभाषया अनुवादं कुरुत-

Question 1.
कस्मिंश्चिन्नगरे चन्द्रो नाम भूपतिः प्रतिवसति स्म।
Answer:
କୌଣସି ଏକ ନଗରରେ ଚନ୍ଦ୍ର ନାମକ ରାଜା ବାସ କରୁଥିଲେ ।

Question 2.
अथ तस्मिन् राजगृहे लघुकुमारवाहनयोग्यं मेषयूथमस्ति।
Answer:
ସେହି ରାଜପ୍ରାସାଦରେ ଛୋଟରାଜକୁମାରମାନଙ୍କର ବାହନଯୋଗ୍ୟ ମେଣ୍ଢାପଲଟିଏ ଥିଲା ।

Question 3.
सोऽपि वानरयूथपस्तद् दृष्ट्वा व्यचिन्तयत्।
Answer:
ସେ ବାନର ଦଳପତି ମଧ୍ୟ ତାହା ଦେଖ୍ ଚିନ୍ତାକଲା ।

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Question 4.
मेषसूपकारकलहोऽयं वानराणां क्षयाय भविष्यति।
Answer:
ମେଣ୍ଢା ଓ ରୋଷେୟାମାନଙ୍କର ଏହି କଳି ବାନରମାନଙ୍କର ବିନାଶ ନିମନ୍ତେ କାରଣ ହେବ।

Question 5.
यद्वानरवसया अश्वानां वह्निदाहदोषः प्रशाम्यति।
Answer:
ଯେ ବାନରମାନଙ୍କର ଚର୍ବି ବା ମଜ୍ଜାଦ୍ଵାରା ଅଶୁମାନଙ୍କର ଅଗ୍ନିଦାହ ଦୋଷ ଶାନ୍ତ ହେବ।

Question 6.
एवं निश्चित्य सर्वान् वानररानहूय रहसि प्रोवाच।
Answer:
ଏହିପରି ସ୍ଥିରକରି ସେ ସମସ୍ତ ବାନରମାନଙ୍କୁ ଡାକି ଏକାନ୍ତରେ କହିଲା।

Question 7.
भवतो वृद्धभावाद् वुद्धिवैकल्यं संजातं येनैतद्ब्रवीषि।
Answer:
ଯେହେତୁ ଏହା କହୁଛ, ତୁମର ବାର୍ଦ୍ଧକ୍ୟ ହେତୁ ବୁଦ୍ଧି ବିଭ୍ରମ ହେଲାଣି।

Question 8.
एवमभिधाय सर्वांस्तान् परित्यज्य स यूथाधिपोऽटव्यां गतः।
Answer:
ଏହିପରି କହି ସମସ୍ତ ବାନରମାନଙ୍କୁ ଛାଡ଼ି ସେ ବାନରଦଳପତି ବନକୁ ଚାଲିଗଲା।

Question 9.
अत्रान्तरे राजा सविषाद: शालिहात्रज्ञान् वैद्यानहूय प्रोवाच।
Answer:
ଏହାପରେ ରାଜା ବିଷାଦର ସହ ଶାଳିହୋତ୍ରନିଦାନ ଜାଣିଥିବା ବୈଦ୍ୟମାନଙ୍କୁ ଡାକି କହିଲେ।

Question 10.
तेऽपि शास्त्राणि विलोक्य प्रोचुः।
Answer:
ସେମାନେ ବି ଶାସ୍ତ୍ରଗୁଡ଼ିକୁ ଦେଖୁ କହିଲେ।

Question 11.
अथ तेन वृद्धवानरेण कुत्रचित् पिपासाकुलेन भ्रमता पद्मिनीखण्डमण्डितं सरः समासादितम्।
Answer:
ଏହାପରେ ତୃଷାରେ ବ୍ୟାକୁଳ ହୋଇ ସେଇ ବୃଦ୍ଧ ବାନରଟି ବୁଲୁ ବୁଲୁ ପଦ୍ମଲତାବିମଣ୍ଡିତ ପୁଷ୍କରିଣୀଟିଏ ପାଇଲା।

Question 12.
ततचिन्तितं नूनमत्र जलान्ते दृष्टग्राहेण भाव्यम्।
Answer:
ତାହାପରେ ଚିନ୍ତାକଲା ନିଶ୍ଚିତ ଏହି ଜଳ ମଧ୍ଯରେ ଦୁଷ୍ଟ କୁମ୍ଭୀରଟିଏ ଥାଇପାରେ।

Question 13.
तत् पद्मिनीनालमादाय दूरस्थोऽपि जलं पिवामि।
Answer:
ତେଣୁ ପଦ୍ମନାଡ଼ଟିଏ ଆଣି ଦୂରରୁ ଥାଇ ଜଳ ପାନ କରିବି।

Question 14.
भो अत्र यः सलिले प्रवेशं करोति स मे भक्ष्य इति।
Answer:
ହେ ! ଯିଏ ଏହି ଜଳରେ ପ୍ରବେଶ କରେ ସେ ମୋର ଖାଦ୍ୟ।

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Question 15.
तन्नास्ति धूर्ततरस्त्वत्समोऽन्यो यत्पानीयमनेन विधिना पिवसि।
Answer:
ଯେହେତୁ ତୁମେ ଜଳ ଏହି ଉପାୟରେ ପିଉଛ ତେଣୁ ତୁମ ପରି ଅତିଚତୁର ଅନ୍ୟ କେହି ନାହିଁ।

Question 16.
वानर आह-अस्ति मे भूपतिना सहात्यन्तं वैरम्।
Answer:
ବାନର କହିଲା – ମୋର ରାଜାଙ୍କ ସହ ଘୋର ଶତ୍ରୁତା ଅଛି।

Question 17.
अस्ति कुत्रचिदरण्ये गुप्ततरं महत्सरो धनदनिर्मितम्।
Answer:
କୌଣସି ଏକ ବନରେ କୁବେରଙ୍କ ନିର୍ମିତ ଅତିଗୁପ୍ତ ବଡ଼ ପୁଷ୍କରିଣୀଟିଏ ଅଛି।

Question 18.
रत्नमालासनाथं सरोऽस्ति क्वापि?
Answer:
କେଉଁଠି ରତ୍ନମାଳାଥୁବା ପୁଷ୍କରିଣୀଟିଏ ଅଛି କି?

Question 19.
तथानुष्ठिते भूपतिना सह रत्नमालालोभेन सर्वे कलत्रभृत्याः प्रस्थिताः।
Answer:
ସେହିପରି କରନ୍ତେ ରାଜାଙ୍କ ସହ ରତ୍ନମାଳା ଲୋଭରେ ସ୍ତ୍ରୀ ଓ ଚାକର ସମସ୍ତେ ପ୍ରସ୍ଥାନ କଲେ ।

Question 20.
देव! अर्धोदिते सूर्येऽत्र प्रविष्टानां सिद्धिर्भवति।
Answer:
ହେ ଦେବ ସୂର୍ଯ୍ୟ ଅର୍ଥ ଉଦିତ ହେଲେ ଏହି ପୁଷ୍କରିଣୀରେ ପ୍ରବିଷ୍ଟ ଲୋକର ସିଦ୍ଧି ହୋଇଥାଏ।

Question 21.
अथ प्रविष्टास्ते लोकाः सर्वे भक्षिता राक्षसेन।
Answer:
ଏହାପରେ ରାକ୍ଷସ ପୁଷ୍କରିଣୀରେ ପ୍ରବେଶ କରିଥିବା ସମସ୍ତ ଲୋକଙ୍କୁ ଭକ୍ଷଣ କଲା।

Question 22.
तत्त्वया मम कुलक्षयः कृतो मया पुनस्तवेति।
Answer:
ତେଣୁ ତୁମେ ମୋର ବଂଶନାଶ କଲ, ମୁଁ ବି ତୁମର କୁଳ ବା ବଂଶ ନାଶ କଲି।

संक्षेपेण उत्तरं लिखत-

Question 1.
चन्द्रभूपतेः पुत्राः नित्यं किं कुर्वन्ति?
Answer:
ଚନ୍ଦ୍ରଭୂପତିଙ୍କର ପୁତ୍ରମାନେ ପ୍ରତିଦିନ ରାଜପ୍ରାସାଦରେ ବାନରମାନଙ୍କ ସହିତ କ୍ରୀଡ଼ାରେ ରତ ରହୁଥିଲେ ଓ ସେମାନଙ୍କୁ ପ୍ରତିଦିନ ଅନେକ ପ୍ରକାରର ଖାଦ୍ୟଦ୍ରବ୍ୟ ଦେଇ ପୋଷଣ କରୁଥିଲେ। ସେହି ରାଜପୁରୀରେ ଛୋଟ ରାଜକୁମାରମାନଙ୍କର ବାହନଯୋଗ୍ୟ ଏକ ମେଷପଲ ମଧ୍ୟ ଥିଲା । ଏମାନଙ୍କ ସହ ପୁତ୍ରମାନେ କ୍ରୀଡ଼ାରତ ଥିଲେ ।

Question 2.
वानरयूथाधिपः वानरान् किमध्यापयति स्म?
Answer:
ବାନରଯୂଥାଧୂପତି ଶୁକ୍ର, ବୃହସ୍ପତି ଓ ଚାଣକ୍ୟଙ୍କର ନୀତିଶାସ୍ତ୍ରମାନ ଜାଣିଥିଲେ ଓ ତଦନୁସାରେ କାର୍ଯ୍ୟ କରୁଥିଲେ। ଏହିସବୁ ନୀତିଶାସ୍ତ୍ରମାନ ସେ ବାନରମାନଙ୍କୁ ମଧ୍ୟ ଶିକ୍ଷା ଦେଉଥିଲେ।

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Question 3.
मेष: महानसे किं करोति?
Answer:
ରାଜଉଆସରେ ଥ‌ିବା ମେଣ୍ଢାପଲ ମଧ୍ୟରୁ ଏକ ମେଣ୍ଢା ନିଜର ଜିହ୍ବାଲାଳସା ହେତୁରୁ ଦିନରାତି ରନ୍ଧନଶାଳାରେ ପଶି ଯାହାକିଛି ଦେଖୁଥିଲା, ତାହା ଖାଇଯାଉଥିଲା।

Question 4.
मेषसूपकारयोः कलहविषये वानरयूथपस्य का चिन्ता जाता?
Answer:
ମେଣ୍ଢା ଓ ପାଚକମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ହେଉଥ‌ିବା କଳହ ବିଷୟରେ ବାନରଯୂଥର ଅଧୂପତି ଚିନ୍ତାକଲା ଯେ– ଅହୋ, ମେଷ ଓ ପାଚକଙ୍କର ଏହି କଳହ ଶେଷରେ ବାନରମାନଙ୍କର ବିନାଶର କାରଣ ହେବ ଏଥ‌ିରେ ତିଳେମାତ୍ର ସନ୍ଦେହ ନାହିଁ । ମେଷ ଅନ୍ନଭୋଜନ ପାଇଁ ଲୋଲୁପ ଓ ପାଚକମାନେ ନିତାନ୍ତ କ୍ରୋଧୃତ ହୋଇ ତାଙ୍କୁ ଯାହା ପାଉଛନ୍ତି ସେଥ‌ିରେ ପିଟୁଛନ୍ତି । ଯଦି କେବେ ଜଳନ୍ତା କାଠରେ ପିଟିବେ ତେବେ ପ୍ରଚୁର ଲୋମ ଥିବା ମେଷଟି ଜଳିଉଠିବ ଓ ନିକଟସ୍ଥ ଅଶ୍ୱଶାଳାରେ ପ୍ରବେଶ କରିବ ସେଠାରେ ପ୍ରଚୁର ତୃଣ ଥ‌ିବାରୁ ତାହା ଜଳିଉଠିବ । ଅଶ୍ଵମାନେ ମଧ୍ୟ ପୋଡ଼ିଯିବେ । ଅଶୁମାନଙ୍କର ଦାହଦୋଷ ପ୍ରଶମିତ ପାଇଁ ଶେଷରେ ମାଙ୍କଡ଼ମାନେ ହିଁ ମରାଯିବେ । ଏହିପରି ଚିନ୍ତା ବାନରଯୂଥପତିର ଜାତ ହୋଇଥିଲା ।

Question 5.
मदोद्धता वानराः यूधाधिपं किं प्रोचुः?
Answer:
ବାନରଯୂଥପତି ମେଷ ଓ ସୂପକାର କଳହରୁ ବାନରମାନଙ୍କର ବିନାଶ ଆଶଙ୍କା କରି ରାଜପ୍ରାସାଦ ଛାଡ଼ି ଚାଲିଯିବାକୁ ସମସ୍ତ ବାନରମାନଙ୍କୁ କହିଲା । ତାହାର ଏପରି ଅପ୍ରିୟ ବଚନ ଶୁଣି ମଦୋଦ୍ଧତ ବାନରମାନେ ଉଚ୍ଚହାସ୍ୟ କରି କହିଲେ– ‘‘ଓ ! ବାର୍ଦ୍ଧକ୍ୟ ହେତୁରୁ ତୁମର ବୁଦ୍ଧି ବିଚଳିତ ହେଲାଣି । ସେଥ‌ିପାଇଁ ଏପରି କହୁଛ । ଏହି ରାଜପ୍ରାସାଦରେ ସ୍ଵର୍ଗ ସମାନ ସୁଖଭୋଗ, ରାଜପୁତ୍ରମାନଙ୍କ ସ୍ୱହସ୍ତରେ ପ୍ରଦତ୍ତ ବିବିଧ ଅମୃତତୁଲ୍ୟ ଭୋଜ୍ୟଦ୍ରବ୍ୟ ତ୍ୟାଗକରି ଆମେମାନେ ବନ ମଧ୍ୟରେ କଷାୟ, କଟୁ, ତିକ୍ତ, କ୍ଷାର, ରୁକ୍ଷ ଫଳ ଖାଇପାରିବୁ ନାହିଁ ।’’

Question 6.
अश्वाः कथं दग्धशरीरः संजाताः?
Answer:
ପାଚକମାନଙ୍କଦ୍ୱାରା ଜଳନ୍ତା କାଷ୍ଠଖଣ୍ଡର ପ୍ରହାର ଖାଇ ମେଷଟି ଜ୍ଵଳନ୍ତ ଶରୀରରେ ଚିତ୍କାର କରି କରି ନିକଟବର୍ତ୍ତୀ ଅଶ୍ୱଶାଳାରେ ପ୍ରବେଶ କଲା । ସେଠାରେ ସେ ତୃଣପୂର୍ବ ଭୂମିରେ ଲୋଟିବାରୁ ସର୍ବତ୍ର ଏପରି ଅଗ୍ନିଶିଖା ଉଠିଲା ଯେ କେତେକ ଅଶ୍ଵ ଚକ୍ଷୁ ହରାଇ ମୃତ୍ୟୁମୁଖରେ ପଡ଼ିଲେ । କେତେକ ଅଶ୍ବ ବନ୍ଧନ ଛିନ୍ନକରି ଅର୍ଦ୍ଧଦଗ୍‌ଧ ଶରୀରରେ ହେସ୍ରାରାବ କରି ଇତସ୍ତତଃ ଧାଇଁବାକୁ ଲାଗିଲେ । ଏହିପରିଭାବେ ଅଶ୍ଵମାନେ ଦଗ୍ଧଶରୀରଯୁକ୍ତ ହୋଇଥିଲେ।

Question 7.
शालिहात्रेण अश्वदाहोपशमनविषये किमुक्तम्?
Answer:
ଶାଳିହୋତ୍ରଶାସ୍ତ୍ରଜ୍ଞ ବୈଦମାନେ ଅଶ୍ୱମାନଙ୍କର ଦାହଜନିତ ବ୍ୟଥାର ଉପଶମ ଉପାୟ ବିଷୟ ଶାସ୍ତ୍ର ଦେଖୁ କହିଲେ– ମହାରାଜ ! ଏ ବିଷୟରେ ଭଗବାନ୍ ଶାଳିହୋତ୍ର କହିଛନ୍ତି ଯେ– ‘‘ସୂର୍ଯ୍ୟୋଦୟ ହେଲେ ଅନ୍ଧକାର ଯେପରି ଦୂର ହୋଇଯାଏ । ବାନରମାନଙ୍କର ମେଦଦ୍ଵାରା ଅଶ୍ଵମାନଙ୍କର ଦାହଜନିତ ରୋଗ ସେହିପରି ବିନଷ୍ଟ ହୋଇଯାଏ । ତେଣୁ ଅତି ଶୀଘ୍ର ଏହି ଚିକିତ୍ସା କରାଯାଉ, ଯେପରିକି ଅଶୁମାନେ ଅଗ୍ନିଦାହ ଯୋଗୁଁ ମୃତ୍ୟୁମୁଖରେ ନ ପଡ଼ନ୍ତି।’’

Question 8.
वानरयूथपः कथं चन्द्रभूपतेः अपकृत्यं कर्त्तुम् ऐच्छत्?
Answer:
ବାନରଯୂଥପତି ପୁତ୍ର, ପୌତ୍ର, ଭ୍ରାତୃକ୍ଷୁତ୍ର, ଭାଗିନେୟ ପ୍ରଭୃତିଙ୍କର ମରଣ ଦେଖୁ ଗଭୀର ବିଷାଦରେ ମଗ୍ନ ହୋଇ ଅନାହାରରେ ରହି ବନରୁ ବନାନ୍ତର ଭ୍ରମଣ କରିବାକୁ ଲାଗିଲା । ଏହାପରେ ସେ ଏ ଅଧମ ରାଜାର ପ୍ରତିଶୋଧ ନେଇ କିପରି ତା’ର ଏବଂ ତା’ବଂଶର ଅନିଷ୍ଟ ସାଧନ କରିବ ସେ ବିଷୟରେ ଚିନ୍ତା କରିବାକୁ ଲାଗିଲା ।

Question 9.
राक्षसः किमर्थं वानरं धूर्त्ततर इत्युक्तवान्?
Answer:
ବୃଦ୍ଧ ବାନର ବନ ମଧ୍ୟରେ ପିପାସାକୁଳ ହୋଇ ଭ୍ରମଣ କରୁ କରୁ କମଳ ପରିପୂର୍ଣ୍ଣ ଏକ ସରୋବର ଦେଖୁଲା । ସେଠାରେ ସେ ବନବାସୀଜନଙ୍କର ପ୍ରବେଶ କରିବାର ପଦଚିହ୍ନ ଦେଖୁଲା ହେଲେ ଫେରିବାର ପଦଚିହ୍ନ ଦେଖୁଲା ନାହିଁ । ଏଥୁରୁ ସେ ଅନୁମାନ କଲା ଯେ କେହି ଦୁଷ୍ଟପ୍ରାଣୀ ପୁଷ୍କରିଣୀ ମଧ୍ୟରେ ରହିଛି । ତେଣୁ ଏକ ପଦ୍ମନାଡ଼ ଆଣି ଦୂରରେ ରହି ସେହି ପଦ୍ମନାଡ଼ ସାହାଯ୍ୟରେ ଜଳପାନ କଲା । ବାନରର ଏତାଦୃଶ କଳକୌଶଳକୁ ଦେଖୁ ପୁଷ୍କରିଣୀ ମଧ୍ୟରେ ଥିବା ରାକ୍ଷସ ତାକୁ ଅତ୍ୟନ୍ତ ଧୂର୍ଜ୍ଜତର ବା ଚତୁର ବୋଲି କହିଥିଲା।

Question 10.
रत्नमालाविषये वानरः नरपतिं किम् अवदत्?
Answer:
ରତ୍ନମାଳା ବିଷୟରେ ବାନର ରାଜାକୁ କହିଲା– ଗୋଟିଏ ଅରଣ୍ୟ ମଧ୍ୟରେ ଏକ ଅତି ଗୁପ୍ତ ସରୋବର ଅଛି । ତାହାକୁ ସ୍ବୟଂ କୁବେର ନିର୍ମାଣ କରିଅଛନ୍ତି । ରବିବାର ଦିନ ସୂର୍ଯ୍ୟୋଦୟ ସମୟରେ ଯଦି କେହି ଉକ୍ତ ସରୋବରରେ ବୁଡ଼ ପକାଏ ତେବେ ସେ କୁବେରଙ୍କ ପ୍ରସାଦରୁ ଏହିପରି ରତ୍ନମାଳାରେ କଣ୍ଠକୁ ସୁଶୋଭିତ କରି ଜଳରୁ ବାହାରି ଆସିବ ।

Question 11.
सरसि प्रविष्टाः जनाः कुत्र गता:?
Answer:
ଲୋକମାନେ ଜଳରେ ପ୍ରବେଶ କରନ୍ତେ ସରୋବର ମଧ୍ୟରେ ଥ‌ିବା ରାକ୍ଷସ ସମସ୍ତଙ୍କୁ ଭକ୍ଷଣ କଲା । ସେମାନେ ଅନେକବେଳ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଜଳରୁ ନ ବାହାରିବାରୁ ରାଜା ବିଳମ୍ବର କାରଣ ପଚାରନ୍ତେ ବାନର କହିଲା– ଆରେ ଦୁଷ୍ଟ ରାଜା ! ଜଳ ମଧ୍ୟରେ ଥ‌ିବା ରାକ୍ଷସ ତୋର ପରିଜନକୁ ଖାଇସାରିଛି ।

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 4 ଚନ୍ଦ୍ରଭୂପତିକଥା

Question 12.
वानरेण भूपतिः कथं न विनाशित:?
Answer:
ବାନର ନିଜର କୁଳକ୍ଷୟଜନିତ ପ୍ରତିଶୋଧ ନେବାପାଇଁ ରାଜାଙ୍କର ସମସ୍ତ ପରିଜନକୁ ରାକ୍ଷସଦ୍ବାରା ମରାଇଥିଲା । ହେଲେ ସ୍ବୟଂ ରାଜା ବାନରର ପ୍ରଭୁ ହୋଇଥିବାରୁ ତାଙ୍କୁ ଜଳ ମଧ୍ୟରେ ପ୍ରବେଶ କରାଇଲା ନାହିଁ, ଅର୍ଥାତ୍ ମାରିଲା ନାହିଁ ।

दीर्घप्रश्नोत्तराणि

Question 1.
चन्द्र भूपतिकथासारं निजभाषया वर्णयत।
Answer:
ଗୋଟିଏ ନଗରରେ ଚନ୍ଦ୍ର ନାମକ ଜଣେ ରାଜା ବାସ କରୁଥିଲେ । ତାଙ୍କର ପୁତ୍ରମାନେ ବାନରମାନଙ୍କ ସହିତ କ୍ରୀଡ଼ାରେ ରତ ରହୁଥିଲେ ଓ ସେମାନଙ୍କୁ ପ୍ରତିଦିନ ଅନେକପ୍ରକାର ଖାଦ୍ୟଦ୍ରବ୍ୟ ଦେଇ ପୁଷ୍ଟ କରୁଥିଲେ । ଏହି ବାନରଯୂଥର ଅଧୂତି ଶୁକ୍ର, ବୃହସ୍ପତି ଓ ଚାଣକ୍ୟଙ୍କର ନୀତିଶାସ୍ତ୍ରମାନ ଜାଣିଥୁଲା ଓ ତଦନୁସାରେ କାର୍ଯ୍ୟ କରୁଥିଲା । ସେ ବାନରମାନଙ୍କୁ ମଧ୍ୟ ଶିକ୍ଷା ଦେଉଥିଲା । ସେହି ରାଜପୁରୀରେ ଛୋଟ ରାଜକୁମାରମାନଙ୍କର ବାହନଯୋଗ୍ୟ ଗୋଟିଏ ମେଷପଲ ଥିଲା । ସେହି ମେଷପଲ ମଧ୍ୟରୁ ଗୋଟିଏ ମେଷ ଜିହ୍ବାଲାଳସା ହେତୁରୁ ଦିବାରାତ୍ର ରନ୍ଧନଶାଳାରେ ପଶି ଯାହାକିଛି ଦେଖୁଥିଲା, ତାହା ଖାଇଯାଉଥିଲା । ପାଚକମାନେ କାଷ୍ଠ, ମୃତ୍ତିକାନିର୍ମିତ ପାତ୍ର, କାଂସ୍ୟପାତ୍ର ବା ତାମ୍ରପାତ୍ର ଯାହାକିଛି ପାଉଥିଲେ ସେଥ‌ିରେ ତାକୁ ପିଟୁଥିଲେ ।

ବାନରଯୂଥର ଅଧୂପତି ଏହା ଦେଖ୍ ଚିନ୍ତା କରିବାକୁ ଲାଗିଲା – ଅହୋ, ମେଷ ଓ ପାଚକଙ୍କର ଏହି କଳହ ଶେଷରେ ବାନରମାନଙ୍କର ବିନାଶର କାରଣ ହେବ । ଏ ମେଷଟି ଅନ୍ନଭୋଜନ ପାଇଁ ଲୋଲୁପ ଓ ପାଚକମାନେ ନିତାନ୍ତ କ୍ରୁଦ୍ଧ ହୋଇ ଯାହାକିଛି ନିକଟରେ ଦେଖୁଛନ୍ତି ସେଥ‌ିରେ ତାକୁ ପିଟୁଛନ୍ତି । ଯଦି କେବେ ପାଖରେ ଅନ୍ୟ କିଛି ନପାଇ ପାଚକମାନେ ଜଳନ୍ତା କାଷ୍ଠଖଣ୍ଡରେ ତାକୁ ପ୍ରହାର କରନ୍ତି ତେବେ ମେଷର ଦେହରେ ଥ‌ିବା ପ୍ରଚୁର ଲୋମରେ ସାମାନ୍ୟ ଅଗ୍ନି ଲାଗିଲେ ମଧ୍ୟ ପ୍ରଜ୍ବଳିତ ହୋଇଉଠିବ । ତା’ପରେ ସେ ନିକଟବର୍ତ୍ତୀ ଅଶ୍ମଶାଳାରେ ପ୍ରବେଶ କରିବ । ଅଶ୍ୱଶାଳାରେ ପ୍ରଚୁର ତୃଣ ଥ‌ିବାରୁ ତାହା ଜଳି ଉଠିବ । ଫଳରେ ଅଶ୍ଵମାନେ ଅଗ୍ନିରେ ପୋଡ଼ିଯିବେ । ଶାଳିହୋତ୍ର ଅଶ୍ୱଶାସ୍ତ୍ରରେ କହିଅଛନ୍ତି – ବାନରର ଚର୍ବିଦ୍ଵାରା ଅଶୁମାନଙ୍କର ଅଗ୍ନିଦାହ ପ୍ରଶମିତ ହୁଏ । ଏହିପରି ଦିନେ ଅବଶ୍ୟ ଘଟିବ । ଏକଥା ନିଶ୍ଚିତ ।

ଏହିପରି ବିଚାର କରି ସେ ବାନର ଯୂଥପତି ସବୁ ବାନରଙ୍କୁ ଡାକି ଏକାନ୍ତରେ କହିଲା –

ପାଚକମାନଙ୍କର ମେଷ ସହିତ ଯେଉଁ କଳହ ଚାଲିଛି, ତାହା ପରିଣାମରେ ଆମ ବାନରମାନଙ୍କର ଯେ କ୍ଷୟସାଧନ କରିବ ଏଥୁରେ ସନ୍ଦେହ ନାହିଁ । ୧ ।

ଯେଉଁ ଗୃହରେ ପ୍ରତିଦିନ ଅକାରଣରେ କଳହ ଲାଗିଥାଏ, ପ୍ରାଣ ରଖୁବାକୁ ଇଚ୍ଛା ଥିଲେ, ସେ ଗୃହକୁ ତ୍ୟାଗକରି ଚାଲିଯିବା ଉଚିତ । ୨ ।

ଆହୁରି ମଧ୍ୟ କଳହ ହେତୁ ଗୃହର, କୁବାକ୍ୟ ହେତୁ ବନ୍ଧୁତ୍ଵର, ଦୁଷ୍ଟରାଜାଙ୍କ ହେତୁରୁ ରାଜ୍ୟର ଓ କୁକର୍ମ ହେତୁରୁ ମନୁଷ୍ୟର ଯଶର ବିନାଶ ଘଟିଥାଏ । ୩ ।

ଅତଏବ ଆମ ସମସ୍ତଙ୍କର ବିନାଶ ହେବା ପୂର୍ବରୁ ଏ ରାଜନଅରକୁ ଛାଡ଼ି ବନକୁ ପଳାଇଯିବା । ତାହାର ଏହି ଅପ୍ରିୟ ବଚନ ଶୁଣି ମନ୍ଦୋଦ୍ଧତ ବାନରମାନେ ଉଚ୍ଚ ହାସ୍ୟ କରି କହିଲେ, ‘ଓ ! ବାର୍ଦ୍ଧକ୍ୟ ହେତୁରୁ ତୁମର ବୁଦ୍ଧି ବିଚଳିତ ହେଲାଣି । ସେଥ‌ିପାଇଁ ଏପରି କହୁଛ । କୁହାଯାଇଅଛି –

ବାଳକ ଓ ବୃଦ୍ଧ ଉଭୟଙ୍କର ମୁଖ ଦନ୍ତହୀନ; ଉଭୟଙ୍କ ମୁଖରୁ ସର୍ବଦା ଲାଳ ଝରୁଥାଏ । କୌଣସି ବିଷୟରେ ଏ ଦୁହିଁଙ୍କର ବିଶେଷତଃ ବୃଦ୍ଧର ବୁଦ୍ଧି ସ୍ତୁରେ ନାହିଁ । ୪ ।

ଏଠାରେ ସ୍ଵର୍ଗ ସମାନ ସୁଖଭୋଗ, ରାଜପୁତ୍ରମାନଙ୍କ ସ୍ୱହସ୍ତପ୍ରଦତ୍ତ ବିବିଧ ଅମୃତତୁଲ୍ୟ ଭୋଜ୍ୟଦ୍ରବ୍ୟ ତ୍ୟାଗକରି ଆମେମାନେ ବନ ମଧ୍ୟରେ କଷାୟ, କଟୁ, ତିକ୍ତ, କ୍ଷାର, ରୁକ୍ଷ ଫଳ ଖାଇପାରିବୁ ନାହିଁ ।’’ ଏହା ଶୁଣି ବାନରପତି ଅଶ୍ରୁପ୍ଲାବିତ ନେତ୍ରରେ କହିଲା – ଆରେ ରେ ମୂର୍ଖ ! ତୁମେମାନେ ଏ ସୁଖର ପରିଣାମ ଜାଣିପାରି ନାହିଁ । ପାପକର୍ମର ରସାସ୍ଵାଦନ ସଦୃଶ ଏ ସୁଖର ପରିଣାମ ବିଷମୟ ହେବ । କୁଳର ବିନାଶ ମୁଁ ନିଜେ ଦେଖୁପାରିବି ନାହିଁ । ମୁଁ ବର୍ତ୍ତମାନ ବନକୁ ଚାଲିଯାଉଛି । କୁହାଯାଇଛି – ମିତ୍ର ବିପଦଗ୍ରସ୍ତ ହେବା, ନିଜର ସ୍ଥାନ ଅନ୍ୟଦ୍ଵାରା ଉପୀଡ଼ିତ ହେବା, ଦେଶଭଙ୍ଗ, କୁଳକ୍ଷୟ – ଏସବୁ ଯେଉଁମାନେ ଦେଖନ୍ତି ନାହିଁ, ସେମାନେ ଧନ୍ୟ । ୫ ।

ପୃଥପତି ଏହା କହି, ସମସ୍ତ ବାନରଙ୍କୁ ତ୍ୟାଗକରି ବନକୁ ଚାଲିଗଲା ।
ସେ ଯିବାପରେ ଦିନେ ସେହି ମେଷଟି ରନ୍ଧନଶାଳାରେ ପ୍ରବେଶ କଲା । ପାଚକ ଅନ୍ୟ କିଛି ନପାଇ ଜଳନ୍ତା କାଷ୍ଠଖଣ୍ଡରେ ତାକୁ ପ୍ରହାର କରିବାରୁ ସେ ଜ୍ଵଳନ୍ତ ଶରୀରରେ ଚିତ୍କାର କରି କରି ନିକଟବର୍ତୀ ଅଶ୍ୱଶାଳାରେ ପ୍ରବେଶ କଲା । ସେଠାରେ ସେ ତୃଣପୂର୍ଣ୍ଣ ଭୂମିରେ ଲୋଟିବାରୁ ସର୍ବତ୍ର ଏପରି ବହ୍ନିଶିଖା ଉଠିଲା ଯେ କେତେକ ଅଶ୍ଵ ଚକ୍ଷୁ ହରାଇ ମୃତ୍ୟୁମୁଖରେ ପଡ଼ିଲେ । କେତେକ ଅଶ୍ୱ ବନ୍ଧନ ଛିନ୍ନକରି ଅର୍ଦ୍ଧଦଗ୍‌ଧ ଶରୀରରେ ବ୍ରେଷାରାବ କରି ଇତସ୍ତତଃ ଧାଇଁବାକୁ ଲାଗିଲେ । ଏହା ଫଳରେ ଲୋକମାନେ ବ୍ୟାକୁଳ ହୋଇପଡ଼ିଲେ ।

ଏହି ଅବସ୍ଥାରେ ରାଜା ବିଷଣ୍ଣ ହୋଇ ଶାଳିହୋତ୍ର ଶାସ୍ତ୍ରଜ୍ଞ ବୈଦ୍ୟମାନଙ୍କୁ ଡକାଇ କହିଲେ, ‘‘ଏହି ଅଶ୍ୱମାନଙ୍କର ଦାହଜନିତ ବ୍ୟଥାର ଉପଶମ ପାଇଁ କୌଣସି ଉପାୟ କୁହନ୍ତୁ ।’’ ସେମାନେ ଶାସ୍ତ୍ର ଦେଖୁ କହିଲେ, ମହାରାଜ ! ଏ ବିଷୟରେ ଭଗବାନ୍ ଶାଳିହୋତ୍ର କହିଅଛନ୍ତି –

ସୂର୍ଯ୍ୟୋଦୟ ହେଲେ ଅନ୍ଧକାର ଯେପରି ଦୂର ହୋଇଯାଏ, ବାନରମାନଙ୍କର ମେଦଦ୍ବାରା ଅଶ୍ଵମାନଙ୍କର ଦାହଜନିତ ରୋଗ ସେହିପରି ବିନଷ୍ଟ ହୋଇଯାଏ । ୬ ।

ତେଣୁ ଅତିଶୀଘ୍ର ଏହି ଚିକିତ୍ସା କରାଯାଉ, ଯେପରିକି ଅଶୁମାନେ ଅଗ୍ନିଦାହ ଯୋଗୁଁ ମୃତ୍ୟୁମୁଖରେ ନ ପଡ଼ନ୍ତି । ରାଜା ଏହା ଶୁଣି ସମସ୍ତ ବାନରଙ୍କୁ ବଧ କରିବାପାଇଁ ଆଦେଶ ଦେଲେ । ଅଧୂକ କହିବା ନିଷ୍ପ୍ରୟୋଜନ, ଯଷ୍ଟି, ପ୍ରସ୍ତର ପ୍ରଭୃତି ସାହାଯ୍ୟରେ ସମସ୍ତ ବାନର ନିହତ ହେଲେ ।

ବାନର ଯୂଥପତି ପୁତ୍ର, ପୌତ୍ର, ଭ୍ରାତୁମ୍ପୁତ୍ର, ଭାଗିନେୟ ପ୍ରଭୃତିଙ୍କର ମରଣ ଦେଖୁ ଗଭୀର ବିଷାଦରେ ମଗ୍ନହୋଇ ଅନାହାରରେ ରହି ବନରୁ ବନ୍ୟନ୍ତର ଭ୍ରମଣ କରିବାକୁ ଲାଗିଲା । ସେ ମନେ ମନେ ଚିନ୍ତାକଲା, ମୁଁ ଏ ଅଧମ ରାଜାର ପ୍ରତିଶୋଧ ନେଇ କିପରି ତା’ର ଅନିଷ୍ଟସାଧନ କରିବି । କୁହାଯାଇଛି –

ଏ ସଂସାରରେ ଯେଉଁ ଲୋକ ଭୟ ହେତୁରୁ ଅଥବା ଲୋଭ ହେତୁରୁ ନିଜ ନିଜ କୁଳ ପ୍ରତି ଶତ୍ରୁର ଅତ୍ୟାଚାରକୁ ସହିଯାଏ, ସେ ପୁରୁଷମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ନିତାନ୍ତ ଅଧମ ଅଟେ । ୭ ।

ଏହାପରେ ସେହି ବୃଦ୍ଧ ବାନର ପିପାସାକୁଳ ହୋଇ ଭ୍ରମଣ କରୁ କରୁ କମଳ ପରିପୂର୍ଣ୍ଣ ଗୋଟିଏ ପୁଷ୍କରିଣୀ ନିକଟରେ ପହଞ୍ଚିଲା । ସେ ସୂକ୍ଷ୍ମଭାବରେ ନିରୀକ୍ଷଣ କରି ଦେଖିଲା ଯେ ବନବାସୀ ମନୁଷ୍ୟମାନଙ୍କର ସରୋବରରେ ପ୍ରବେଶ କରିବାର ପଦଚିହ୍ନମାନ ଅଛି, କିନ୍ତୁ ଫେରି ଆସିବାର ପଦଚିହ୍ନ ନାହିଁ । ତହୁଁ ସେ ଚିନ୍ତାକଲା – ଏହି ପୁଷ୍କରିଣୀରେ ନିଶ୍ଚୟ ଗୋଟିଏ ଦୁଷ୍ଟ କୁମ୍ଭୀର ଅଛି । ତେଣୁ ପଦ୍ମନାଡ଼ ଆଣି ଦୂରରେ ରହି ସେହି ପଦ୍ମନାଡ଼ ସାହାଯ୍ୟରେ ଜଳପାନ କରିବି । ସେହିପରି ଜଳପାନ କରନ୍ତେ ଗଳାରେ ରନୁମାଳା ପରିଧାନ କରିଥିବା ଗୋଟିଏ ରାକ୍ଷସ ପୁଷ୍କରିଣୀ ମଧ୍ଯରୁ ବାହାରି ଆସି କହିଲା, ଯେ କେହି ଏହି ପୁଷ୍କରିଣୀର ଜଳମଧ୍ୟରେ ପ୍ରବେଶ କରେ, ମୁଁ ତାକୁ ଭକ୍ଷଣ କରେ । କିନ୍ତୁ ଏପରି କୌଣସି ଚତୁର ଲୋକ ନାହିଁ, ଯେ କି ତୁମ ଭଳି ଏ ଉପାୟରେ ଜଳପାନ କରିବ ।

ତେଣୁ ମୁଁ ତୁମ ଉପରେ ସନ୍ତୁଷ୍ଟ ହୋଇଅଛି । ମନର ଅଭିଳାଷ ଅନୁସାରେ ବର ପ୍ରାର୍ଥନା କର । ବାନର କହିଲା, ତୁମର ଭୋଜନ କରିବାର ଶକ୍ତି କେତେ ? ରାକ୍ଷସ ଉତ୍ତର ଦେଲା, ଜଳରେ ପ୍ରବେଶ କଲେ ଶତ, ସହସ୍ର, ଅୟୁତ, ଲକ୍ଷ ପ୍ରାଣୀଙ୍କୁ ମଧ୍ୟ ଭୋଜନ କରିପାରିବି । ମାତ୍ର ବାହାରେ ଥିଲାବେଳେ ମୋତେ ସାମାନ୍ୟ ଶୃଗାଳ ମଧ୍ୟ ଅପମାନିତ କରିପାରେ । ବାନର କହିଲା, ଜଣେ ରାଜା ସହିତ ମୋର ଘୋର ଶତ୍ରୁତା ଅଛି । ଯଦି ତୁମେ ମୋତେ ତୁମର ଏହି ରହାରଟି ଦେବ, ତାହାହେଲେ ମୁଁ ମୋର କଥା ଚାତୁରୀରେ ଲୋଭ ଦେଖାଇ ସେ ରାଜାକୁ ତା’ର ପରିବାର ସହିତ ଏହି ପୁଷ୍କରିଣୀରେ ପ୍ରବେଶ କରାଇବି । ରାକ୍ଷସ ତାହାର ଏହି ଶ୍ରଦ୍ଧେୟ ବାକ୍ୟ ଶୁଣି ରହାରଟି ଦେଇ କହିଲା, ହେ ମିତ୍ର ! ଯାହା ଉଚିତ ମନେକରୁଛ, ତାହା କର ।

ବାନର ମଧ୍ଯ ରହାରରେ ନିଜର କଣ୍ଠଦେଶକୁ ସୁଶୋଭିତ କରି ବୃକ୍ଷ ଓ ରାଜପ୍ରାସାଦମାନଙ୍କ ଉପରେ ଭ୍ରମଣ କରିବାରୁ ଲୋକେ ତାହାକୁ ଦେଖୁ ପଚାରିଲେ, ହେ ବାନରଯୂଥପତି ! ତୁମେ ଏତେ କାଳ ହେଲା କେଉଁଠାରେ ଥିଲ ? ଏଡ଼େ ସୁନ୍ଦର ରମାଳା କାହୁଁ ପାଇଲ ? ଏହାର ତେଜ ସୂର୍ଯ୍ୟକିରଣକୁ ମଧ୍ଯ ତିରସ୍କାର କରୁଛି । ବାନର କହିଲା, ଗୋଟିଏ ଅରଣ୍ୟ ମଧ୍ୟରେ ଏକ ଅତି ଗୁପ୍ତ ସରୋବର ଅଛି । ତାହାକୁ ସ୍ଵୟଂ କୁବେର ନିର୍ମାଣ କରିଅଛନ୍ତି । ରବିବାର ଦିନ ସୂର୍ଯ୍ୟୋଦୟ ସମୟରେ ଯଦି କେହି ଉକ୍ତ ସରୋବରରେ ବୁଡ଼ପକାଏ ତେବେ ସେ କୁବେରଙ୍କ ପ୍ରସାଦରୁ ଏହିପରି ରନ୍‌ମାଳାରେ କଣ୍ଠକୁ ସୁଶୋଭିତ କରି ଜଳରୁ ବାହାରିଆସେ ।

ଏହାପରେ ରାଜା ଏହା ଶୁଣିପାରି ସେହି ବାନରକୁ ଡାକି ପଚାରିଲେ, ହେ ପୃଥାଧୂପ ! ଏ କଥା କ’ଣ ସତ୍ୟ ? ରନ୍‌ମାଳାରେ ପରିପୂର୍ଣ ପୁଷ୍କରିଣୀ କେଉଁଠାରେ ଅଛି ? ବାନର କହିଲା, ହେ ପ୍ରଭୁ ! ପ୍ରତ୍ୟକ୍ଷରେ ମୋ ଗଳାରେ ପଡ଼ିଥିବା ଏହି ରନ୍‌ମାଳା ଦେଖୁ ଆପଣଙ୍କର ବିଶ୍ଵାସ ହେବ । ତେଣୁ ଯଦି ଆପଣଙ୍କର ରନ୍ଧମାଳାର ପ୍ରୟୋଜନ ଥାଏ, ତାହାହେଲେ କାହାରିକୁ ମୋ ସଙ୍ଗେ ପଠାନ୍ତୁ ଯେ ଦେଖାଇଦେବି । ଏହା ଶୁଣି ରାଜା କହିଲେ, ସେପରି ହେଲେ ମୁଁ ନିଜେ ମୋର ସମସ୍ତ ପରିବାର ସହିତ ଯିବି । ତେବେ ଅନେକ ରନ୍‌ମାଳା ପାଇପାରିବୁ । ବାନର କହିଲା, ତାହାହିଁ କରନ୍ତୁ । ସେହିପରି କରାଯିବାରୁ ରନ୍ଥମାଳା ପାଇବା ଲୋଭରେ ରାଜାଙ୍କ ସହିତ ସବୁ ପନ୍ଥୀ ଓ ଭୃତ୍ୟ ପ୍ରଭୃତି ଚାଲିଲେ । ରାଜା ଦୋଳାରେ ବସି ଗଲେ । ବାନରକୁ ମଧ୍ୟ ରାଜାଙ୍କ କ୍ରୋଡ଼ରେ ବସାଇ ଅତି ସୁଖରେ ପ୍ରୀତିପୂର୍ବକ ନିଆଗଲା । ତେଣୁ ଯଥାର୍ଥରେ କୁହାଯାଇଛି –

‘‘ହେ ତୃଷ୍ଣାଦେବି ! ତୁମକୁ ନମସ୍କାର । ତୁମେ ଧନବନ୍ତ ଲୋକକୁ ମଧ୍ଯ ଅକରଣୀୟ କାର୍ଯ୍ୟରେ ନିୟୋଜିତ କରୁଛ; ଦୁର୍ଗମ ସ୍ଥାନରେ ମଧ୍ୟ ଭ୍ରମଣ କରାଉଅଛି’’ | ୮ |

ପୁଣି ମଧ୍ଯ – ଯେ ଶତମୁଦ୍ରାର ଅଧିକାରୀ, ସେ ସହସ୍ର ପାଇବାକୁ ଲାଳାୟିତ । ଯାହାର ସହସ୍ରମୁଦ୍ରା ଅଛି ସେ ଲକ୍ଷମୁଦ୍ରା କାମନା କରୁଅଛି । ଯେ ଲକ୍ଷାଧୂପତି ସେ ରାଜ୍ୟ ଅଭିଳାଷ କରୁଅଛି ଓ ଯେ ରାଜପଦରେ ପ୍ରତିଷ୍ଠିତ ହୋଇଅଛି ସେ ସ୍ୱର୍ଗକାମନା କରୁଅଛି । ୯ ।

ଜରାକ୍ରାନ୍ତ ବ୍ୟକ୍ତିର କେଶ ଶୁକ୍ଳ ହୋଇଯାଏ, ଦନ୍ତଗୁଡ଼ିକ ଝଡ଼ିପଡ଼ନ୍ତି, ଚକ୍ଷୁ ଦୃଷ୍ଟିଶକ୍ତି ହରାଏ, କର୍ମ ଶୁଣିପାରେ ନାହିଁ । କିନ୍ତୁ କେବଳ ତୃଷ୍ଣା ହିଁ ତରୁଣ ହେଉଥାଏ । ୧୦ ।

ଏହାପରେ ସେହି ପୁଷ୍କରିଣୀ ନିକଟରେ ଉପସ୍ଥିତ ହୁଅନ୍ତେ ବାନର ପ୍ରଭାତ କାଳରେ ରାଜାଙ୍କୁ କହିଲା, ଏଠାରେ ଅଧେ ସୂର୍ଯ୍ୟୋଦୟ ହେଲାବେଳକୁ ଯେଉଁମାନେ ଏହି ପୁଷ୍କରିଣୀରେ ପ୍ରବେଶ କରନ୍ତି, ସେମାନେ ସିଦ୍ଧିଲାଭ କରନ୍ତି । ତେଣୁ ସମସ୍ତେ ଏକ ସଙ୍ଗରେ ଜଳରେ ପ୍ରବେଶ କରନ୍ତୁ । ଆପଣ ପରେ ମୋ ସହିତ ଜଳରେ ପ୍ରବେଶ କରିବେ । ତାହାହେଲେ ମୁଁ ଆପଣଙ୍କୁ ପୂର୍ବଦୃଷ୍ଟ ସ୍ଥାନକୁ ନେଇ ପ୍ରଚୁର ରନ୍ଧମାଳା ଦେଖାଇଦେବି ।

ଏହାପରେ ଲୋକମାନେ ଜଳରେ ପ୍ରବେଶ କରନ୍ତେ ରାକ୍ଷସ ସେ ସମସ୍ତଙ୍କୁ ଭକ୍ଷଣ କଲା । ସେମାନେ ଅନେକବେଳ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଜଳରୁ ନ ବାହାରିବାରୁ ରାଜା ବାନରକୁ କହିଲେ, ହେ ପୃଥପତି ! ମୋର ଲୋକମାନେ ଏତେ ବିଳମ୍ବ କରୁଛନ୍ତି କାହିଁକି? ଏହା ଶୁଣିଲାମାତ୍ରେ ବାନର ତତ୍‌କ୍ଷଣାତ୍‌ ଏକ ବୃକ୍ଷକୁ ଆରୋହଣ କରି ରାଜାଙ୍କୁ କହିଲା, ଆରେ ଦୁଷ୍ଟ ରାଜା ! ଜଳ ମଧ୍ୟରେ ଥ‌ିବା ରାକ୍ଷସ ତୋର ପରିଜନମାନଙ୍କୁ ଖାଇସାରିଛି । ମୁଁ କୁଳକ୍ଷୟଜନିତ ବୈରସାଧନ କରିଛି । ଏବେ ଯାଆ । ତୁ ମୋର ପ୍ରଭୁ ଥୁଲୁ ବୋଲି ତୋତେ ଜଳରେ ପ୍ରବେଶ କରାଇଲି ନାହିଁ । କଥ୍ତ ଅଛି –

କେହି ଉପକାର କଲେ ତା’ର ପ୍ରତ୍ଯୁପକାର ଓ ଅପକାର କଲେ ତା’ର ପ୍ରତ୍ୟପକାର କରିବ; କେହି ହିଂସା କଲେ ତା’ର ପ୍ରତିହିଂସା କରିବ; ଦୁଷ୍ଟ ସହିତ ଦୁଷ୍ଟ ଆଚରଣ କରିବ । ଏଥ‌ିରେ ମୁଁ କୌଣସି ଦୋଷ ଦେଖ୍ପାରୁନାହିଁ । ୧୧।

ତୁ ମୋର କୁଳକ୍ଷୟ କରିଥୁଲୁ; ମୁଁ ସେହିପରି ତୋର କୁଳକ୍ଷୟ କଲି । ଏହା ଶୁଣି ରାଜା କୋପାବିଷ୍ଟ ହୋଇ ପାଦରେ ଚାଲି ଚାଲି ଯେଉଁ ମାର୍ଗରେ ଆସିଥିଲେ ସେହି ମାର୍ଗରେ ଫେରିଗଲେ । ରାଜା ଚାଲିଯିବା ପରେ ରାକ୍ଷସ ତୃପ୍ତ ହୋଇ ଜଳ ମଧ୍ୟରୁ ବାହାରି ଆନନ୍ଦରେ କହିଲା–

ହେ ବାନର ତୁମେ ଧନ୍ୟ ! ପଦ୍ମନାଡ଼ ସାହାଯ୍ୟରେ ଜଳ ପିଇ ତୁମ ଶତ୍ରୁକୁ ବିନାଶ କରିଅଛ; ମୋତେ ମିତ୍ର କରିପାରିଛ ଓ ରନ୍ଥମାଳାକୁ ମଧ୍ୟ ହରାଇ ନାହଁ । ୧୨ ।

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 4 ଚନ୍ଦ୍ରଭୂପତିକଥା

Question 2.
चन्द्रभूपतिकथातः का शिक्षा लभ्यते?
Answer:
‘ଚନ୍ଦ୍ରଭୂପତିକଥା’ରୁ ମୁଖ୍ୟତଃ ଯେଉଁ ନୀତିଶିକ୍ଷା ମିଳେ ତାହା ହେଇଛି –
‘‘ଯୋ ଲୌଲ୍ୟାତ୍ କୁରୁତେ କର୍ମ ନୈବୋଦର୍କମବେକ୍ଷତେ ।
ବିଡ଼ମ୍ବନାମବାପ୍ଲୋତି ସ ଯଥା ଚନ୍ଦ୍ରଭୂପତିଃ ।।’’

ଅର୍ଥାତ୍, ଯେଉଁ ଲୋକ ଲୋଭପରବଶ ହୋଇ କାର୍ଯ୍ୟ କରେ ଓ ତା’ର ପରିଣାମ ବିଷୟରେ ଚିନ୍ତାକରେ ନାହିଁ, ସେ ଚନ୍ଦ୍ରଭୂପତି ପରି ବିଡ଼ମ୍ବନା ପ୍ରାପ୍ତ ହୁଏ । ରତ୍ନମାଳା ଲୋଭରେ ଚନ୍ଦ୍ରଭୂପତି ନିଜର ପରିବାର ସୃଜନମାନଙ୍କୁ ହରାଇଥିଲା । ବାନରଯୂଥପତି ସ୍ବବଂଶକ୍ଷକ୍ଷର ପ୍ରତିଶୋଧ ନେଇଥିଲା । ପୁନଶ୍ଚ ଏହି ବିଷୟରୁ ଯେଉଁ ଅନ୍ୟାନ୍ୟ ଶିକ୍ଷାମାନ ମିଳେ ତାହା ହେଉଛି –

  • ଦୁଇଜଣଙ୍କର କଳହ ତୃତୀୟ ବ୍ୟକ୍ତିର ହାନି ବା କ୍ଷତି ଘଟାଇଥାଏ । ଯେପରିକି ପାଚକ ଓ ମେଷମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ କଳହର ପରିଣାମସ୍ଵରୂପ ଶେଷରେ ବାନରମାନଙ୍କର କ୍ଷୟସାଧନ ହୋଇଥିଲା।
  • ଅକାରଣରେ ଯେଉଁ ଗୃହରେ କଳହ ହୁଏ, ପ୍ରାଣ ରକ୍ଷଣ ନିମନ୍ତେ ସେ ଗୃହକୁ ତ୍ୟାଗ କରିବା ଉଚିତ ।
  • ବାର୍ଦ୍ଧକ୍ୟ ହେତୁରୁ ବୃଦ୍ଧର ବୁଦ୍ଧିସ୍ଫୁରଣ ହୁଏ ନାହିଁ ବୋଲି ଯେଉଁ ଧାରଣା ରହିଛି ତାହା ଅମୂଳକ ।
  • ପାପକର୍ମର ରସାସ୍ଵାଦନ ସଦୃଶ ସୁଖର ପରିଣାମ ବିଷମୟ ହୁଏ ।
  • ମିତ୍ରର ବିପଦ, ସ୍ବସ୍ଥାନ ଅନ୍ୟଦ୍ୱାରା ଉପୀଡ଼ିତ ହେବା, ଦେଶଭଙ୍ଗ କୁଳକ୍ଷୟ– ଏସବୁ ନ ଦେଖୁଥ‌ିବା ବ୍ୟକ୍ତି ଧନ୍ୟ ଅଟେ।
  • ବାନରମାନଙ୍କର ମେଦଦ୍ୱାରା ଅଶ୍ଵମାନଙ୍କର ଦାହଜନିତ ଦୋଷ ଦୂରହେବା କଥା ଶାଳିହୋତ୍ରଙ୍କଦ୍ୱାରା କୁହାଯାଇଛି ।
  • ଏ ସଂସାରରେ ଯେଉଁ ଲୋକ ଭୟ ହେତୁରୁ ଅଥବା ଲୋଭ ହେତୁରୁ ନିଜ ନିଜ କୁଳ ପ୍ରତି ଶତ୍ରୁର ଅତ୍ୟାଚାରକୁ ସହିଯାଏ, ସେ ପୁରୁଷମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ନିତାନ୍ତ ଅଧମ ଅଟେ ।
  • ତୃଷ୍ଣା ବା ଲୋଭ ଧନବନ୍ତକୁ ମଧ୍ଯ ଅକରଣୀୟ କାର୍ଯ୍ୟରେ ନିୟୋଜିତ କରେ ଓ ଦୁର୍ଗମ ସ୍ଥାନରେ ମଧ୍ୟ ଭ୍ରମଣ କରାଇଥାଏ । ତୃଷ୍ଣା ମନ ମଧ୍ୟରେ ଅଧିକ ପାଇବାର ଆଶା ବଢ଼ାଏ । ସବୁକିଛି ବୃଦ୍ଧତ୍ଵକୁ ପ୍ରାପ୍ତ ହୁଏ ହେଲେ ତୃଷ୍ଣା ହିଁ ତରୁଣ ହେଉଥାଏ ।
  • କେହି ଉପକାର କଲେ ତା’ର ପ୍ରତ୍ଯୁପକାର ଓ ଅପକାର କଲେ ତା’ର ପ୍ରତ୍ୟପକାର କରିବ, କେହି ହିଂସା କଲେ ତା’ର ପ୍ରତିହିଂସା କରିବ; ଦୁଷ୍ଟ ସହିତ ଦୁଷ୍ଟ ଆଚରଣ କରିବ । ଏଥ‌ିରେ କିଛି ଦୋଷ ନଥାଏ ।

ଏହିଭଳି ବିବିଧ ପ୍ରକାର ଶିକ୍ଷଣୀୟ ପ୍ରସଙ୍ଗମାନ ଉକ୍ତ ବିଷୟରେ ଉଲ୍ଲେଖ ହୋଇଛି।

Question 3.
वानरयूथपतेः वैशिष्ट्यं प्रतिपाद्यताम्।
Answer:
ବାନରଯୂଥପତି ଶୁକ୍ର, ବୃହସ୍ପତି ଓ ଚାଣକ୍ୟଙ୍କର ନୀତିଶାସ୍ତ୍ରମାନ ଜାଣିଥିଲା ଓ ତଦନୁସାରେ କାର୍ଯ୍ୟ ମଧ୍ୟ କରୁଥିଲା । ସେ ବାନରମାନଙ୍କୁ ମଧ୍ୟ ଶିକ୍ଷା ଦେଉଥିଲା । ମେଷ ଓ ସୂପକାରଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ପ୍ରତିଦିନ ହେଉଥିବା କଳହକୁ ଦେଖୁ ବାନରଯୂଥପତି ଏହା ବାନରମାନଙ୍କର କ୍ଷୟସାଧନ କରିବ ବୋଲି ଅନୁମାନ କରିଛି । ଏଥ‌ିପାଇଁ ବାନରଯୂଥପତି ସମସ୍ତ ବାନରମାନଙ୍କୁ ରାଜଭବନ ପରିତ୍ୟାଗ କରି ଚାଲିଯିବା ପାଇଁ ନିର୍ଦ୍ଦେଶ ଦେଇଛି । ହେଲେ କେହି ତା’ କଥା ନ ଶୁଣିବାରୁ ସେ ଏକାକୀ ନିଜ କୁଳର କ୍ଷୟ ଦେଖୁବାକୁ ଇଚ୍ଛାନକରି ଦୁଃଖ୍ତମନା ହୋଇ ବନ ମଧ୍ଯକୁ ଚାଲିଯାଇଛି । ସେ ଯିବାପରେ ତା’ର ଅନୁମାନ ସତ୍ୟରେ ପରିଣତ ହୋଇଛି ଓ ବାନରକୁଳର ବିନାଶ ଘଟିଛି । ବାନରଯୂଥପତି ସ୍ବବଂଶର ବିନାଶ ଦେଖୁ ଗଭୀର ବିଷାଦମନା ହୋଇ ଅନାହାରରେ ବନକୁ ବନାନ୍ତର ଭ୍ରମଣ କରି ଅଧମ ରାଜାର ପ୍ରତିଶୋଧ ନେବାପାଇଁ ଚିନ୍ତାକରିଛି ।

ଏଥିରୁ ପ୍ରତୀୟମାନ ହୁଏ ଯେ ବାନରଯୂଥପତି ଅତ୍ୟନ୍ତ ବୁଦ୍ଧିମାନ୍ ଥିଲା । ବନ ମଧ୍ୟରେ ସେ ଏକ ସରୋବର ନିକଟରେ ପହଞ୍ଚିଛି । ସେଠାରେ ସେ ମନୁଷ୍ୟମାନଙ୍କର ଯିବାର ପାଦଚିହ୍ନ ଦେଖୁଛି ମାତ୍ର ଫେରିବାର ପାଦଚିହ୍ନ ଦେଖୁ ନପାରି ସେଠାରେ ଏକ ଦୁଷ୍ଟ କୁମ୍ଭୀର ଥିବାର ଅନୁମାନ କରି ଏକ ପଦ୍ମନାଡ଼ରେ ଜଳପାନ କରିଛି । ଏହା ଦେଖୁ ସରୋବରସ୍ଥ ରାକ୍ଷସ ରତ୍ନମାଳା ଧାରଣ କରି ପ୍ରତ୍ୟକ୍ଷ ହୋଇ ବାନରଯୂଥପତି ପ୍ରତି ସନ୍ତୋଷହୋଇ ବର ପ୍ରାର୍ଥନା କରିବାକୁ କହିଛି । ରାକ୍ଷସଠାରୁ ରତ୍ନମାଳା ନେଇ ରାଜାଙ୍କୁ ଲୋଭଦେଖାଇ ସପରିବାରେ ପୁଷ୍କରିଣୀକୁ ଅଣାଇଛି ଓ ଶେଷରେ ରାକ୍ଷସଦ୍ବାରା ଭକ୍ଷଣ କରାଇଛି । ଏହିପରିଭାବେ ବାନରଯୂଥପତି ନିଜର କୁଳକ୍ଷୟଜନିତ ପ୍ରତିଶୋଧ ନେଇଛି । ଦୁଷ୍ଟ ସହ ସେ ଦୁଷ୍ଟ ଆଚରଣ ହିଁ କରିଛି ।

ଶେଷରେ ରାକ୍ଷସ ବାନରଯୂଥପତିର ପ୍ରଶଂସା କରି କହିଛି –
“ ହତଃ ଶତଃ କୃତଂ ମିତ୍ର ରତ୍ନମାଳା ନ ହାରିତା ।
ନାଳେନାସ୍ୱାଦିତଂ ତୋୟଂ ସାଧୁ ଭୋ ବଟବାନର! ॥’’

ଅର୍ଥାତ୍ ହେ ବାନର ତୁମେ ଧନ୍ୟ ! ପଦ୍ମନାଡ଼ ସାହାଯ୍ୟରେ ଜଳ ପିଇ ତୁମ ଶତ୍ରୁକୁ ବିନାଶ କରିଅଛ, ମୋତେ ମିତ୍ର କରିପାରିଛ ଓ ରତ୍ନମାଳାକୁ ମଧ୍ଯ ହରାଇ ନାହିଁ । ବାନରଯୂଥପତିର ଏତାଦୃଶ ବୈଶିଷ୍ଟ୍ୟ ଅତ୍ୟନ୍ତ ଶିକ୍ଷଣୀୟ ହୋଇପାରିଛି ।

+2 1st Year Sanskrit Optional Chapter 4 ଚନ୍ଦ୍ରଭୂପତିକଥା Summary

ଲେଖକ ପରିଚୟ – କଥାସାହିତ୍ୟର ଅମୂଲ୍ୟ ଗ୍ରନ୍ଥ ହେଉଛି ‘ପଞ୍ଚତନ୍ତ୍ର’ । ଏହାର ଲେଖକ ହେଉଛନ୍ତି ଉତ୍କଳୀୟ ବିଦ୍ୱାନ୍ ବିଷ୍ଣୁଶର୍ମା । ସେ ବ୍ରାହ୍ମଣ କୁଳରେ ଜନ୍ମିଥିଲେ । ରାଜା ଅମରଶକ୍ତିଙ୍କର ତିନୋଟି ପୁତ୍ରଙ୍କୁ ଛଅମାସ ମଧ୍ଯରେ ନୀତିଶାସ୍ତ୍ରରେ ଅଭିଜ୍ଞ କରିବାପାଇଁ ପ୍ରତିଶ୍ରୁତି ଦେଇଥିଲେ, ତଥା ପଶ୍ଚିତ କରାଇ ଦେଇଥିଲେ । ଏଥୁରୁ ତାଙ୍କର ଗଭୀର ପାଣ୍ଡିତ୍ୟର ପରିଚୟ ମିଳୁଛି । ତାଙ୍କର ସମୟ ପଞ୍ଚମ ବା ଷଷ୍ଠ ଶତାବ୍ଦୀ ବୋଲି ସମାଲୋଚକମାନେ ମତ ଦିଅନ୍ତି ଏବଂ ସେ ଓଡ଼ିଶାର ବିଦ୍ବାନ୍ ବୋଲି କହିଥା’ନ୍ତି । ସ୍ଵରଚିତ ଗ୍ରନ୍ଥରେ ଛାତ୍ରମାନଙ୍କୁ ଶିକ୍ଷାଦେବାର ଉପଯୁକ୍ତ କୌଶଳ ତାଙ୍କୁ ଜଣାଥିବାରୁ ସେ ଉତ୍ତମ ଶିକ୍ଷକରୂପେ ତଦାନୀନ୍ତନ ସମାଜରେ ସୁପରିଚିତ ଥିଲେ ।

ବିଷୟ ପ୍ରବେଶ – ଆଲୋଚିତ ଗଳ୍ପଟି କଥାସାହିତ୍ୟ ‘ପଞ୍ଚତନ୍ତ୍ର’ର ଅଂଶବିଶେଷ । ୫ଟି ତନ୍ତ୍ର ବା ବିଭାଗକୁ ନେଇ ‘ପଞ୍ଚତନ୍ତ୍ର’ର ରଚନା କରାଯାଇଛି । ଏହି ପାଞ୍ଚଗୋଟି ବିଭାଗ ହେଲା –

  • ମିତ୍ରଭେଦ
  • ମିତ୍ରସଂପ୍ରାପ୍ତି
  • କାକୋଲ୍ହ କୀୟ
  • ଲବ୍‌ଧପ୍ରଣାଶ ଓ
  • ଅପରୀକ୍ଷିତକାରକ।

‘ମିତ୍ରଭେଦ’ରେ ୨୨ ଗୋଟି, ‘ମିତ୍ରସଂପ୍ରାପ୍ତି’ରେ ୮ ଗୋଟି, ‘କାକୋଲ୍ କୀୟ’ରେ ୧୭ ଗୋଟି, ‘ଲବ୍‌ଧପ୍ରଣାଶ’ରେ ୧୪ ଗୋଟି ଓ ‘ଅପରୀକ୍ଷିତକାରକ’ରେ ୧୫ ଗୋଟି କାହାଣୀ ବିଦ୍ୟମାନ । ଏହି ଗ୍ରନ୍ଥରେ ଅତ୍ୟନ୍ତ ସରଳ ଭାଷାରେ ବିଭିନ୍ନ ପଶୁପକ୍ଷୀଙ୍କର କାହାଣୀ ମାଧ୍ୟମରେ ନୀତିଶିକ୍ଷା ପ୍ରଦାନ କରାଯାଇଅଛି । ଆଲୋଚିତ ‘ଚନ୍ଦ୍ରଭୂପତିକଥା’ ‘ପଞ୍ଚତନ୍ତ୍ର’ର ପଞ୍ଚମ ତନ୍ତ୍ର ‘ଅପରୀକ୍ଷିତକାରକ’ର କାହାଣୀ ଯାହାର ପ୍ରାରମ୍ଭ ଏହିପ୍ରକାର କରାଯାଇଛି; ଯଥା – ଲୋକେ ଲୋଭଗ୍ରସ୍ତ ହେଲେ ବିଡ଼ମ୍ବିତ ହୋଇ କଷ୍ଟଭୋଗ କରିଥା’ନ୍ତି । କଥ୍ତ ଅଛି –

‘‘ଯୋ ଲୌଲ୍ୟାତ୍ କୁରୁତେ କର୍ମ ନୈବୋଦର୍କମବେକ୍ଷତେ ।
ବିଡ଼ମ୍ବନାମବାସ୍ତୋତି ସ ଯଥା ଚନ୍ଦ୍ରଭୂପତିଃ ।’’

ଅର୍ଥାତ୍ ଯେଉଁ ଲୋକ ଲୋଭପରବଶ ହୋଇ କାର୍ଯ୍ୟ କରେ ଓ ତା’ର ପରିଣାମ ବିଷୟରେ ଚିନ୍ତା କରେ ନାହିଁ, ସେ ଚନ୍ଦ୍ରଭୂପତି ପରି ବିଡ଼ମ୍ବନା ପ୍ରାପ୍ତ ହୁଏ ।

ସାରକଥା – ଗୋଟିଏ ନଗରରେ ଚନ୍ଦ୍ର ନାମକ ଜଣେ ରାଜା ବାସ କରୁଥିଲେ । ତାଙ୍କର ପୁତ୍ରମାନେ ବାନରମାନଙ୍କ ସହିତ କ୍ରୀଡ଼ାରେ ରତ ରହୁଥିଲେ ଓ ସେମାନଙ୍କୁ ପ୍ରତିଦିନ ଅନେକପ୍ରକାର ଖାଦ୍ୟଦ୍ରବ୍ୟ ଦେଇ ପୁଷ୍ଟ କରୁଥିଲେ । ଏହି ବାନରୟୂଥର ଅଧୂପତି ଶୁକ୍ର, ବୃହସ୍ପତି ଓ ଚାଣକ୍ୟଙ୍କର ନୀତିଶାସ୍ତ୍ରମାନ ଜାଣିଥୁଲା ଓ ତଦନୁସାରେ କାର୍ଯ୍ୟ କରୁଥିଲା । ସେ ବାନରମାନଙ୍କୁ ମଧ୍ୟ ଶିକ୍ଷା ଦେଉଥିଲା । ସେହି ରାଜପୁରୀରେ ଛୋଟ ରାଜକୁମାରମାନଙ୍କର ବାହନଯୋଗ୍ୟ ଗୋଟିଏ ମେଷପଲ ଥିଲା । ସେହି ମେଷପଲ ମଧ୍ୟରୁ ଗୋଟିଏ ମେଷ ଜିହ୍ବାଲାଳସା ହେତୁରୁ ଦିବାରାତ୍ର ରନ୍ଧନଶାଳାରେ ପଶି ଯାହାକିଛି ଦେଖୁଥିଲା, ତାହା ଖାଇଯାଉଥିଲା । ପାଚକମାନେ କାଷ୍ଠ, ମୃତ୍ତିକାନିର୍ମିତ ପାତ୍ର, କାଂସ୍ୟପାତ୍ର ବା ତାମ୍ରପାତ୍ର ଯାହାକିଛି ପାଉଥିଲେ ସେଥିରେ ତାକୁ ପିଟୁଥିଲେ ।

ବାନରଯୂଥର ଅଧୂପତି ଏହା ଦେଖୁ ଚିନ୍ତା କରିବାକୁ ଲାଗିଲା – ଅହୋ, ମେଷ ଓ ପାଚକଙ୍କର ଏହି କଳହ ଶେଷରେ ବାନରମାନଙ୍କର ବିନାଶର କାରଣ ହେବ । ଏ ମେଷଟି ଅନ୍ନଭୋଜନ ପାଇଁ ଲୋଲୁପ ଓ ପାଚକମାନେ ନିତାନ୍ତ କ୍ରୁଦ୍ଧ ହୋଇ ଯାହାକିଛି ନିକଟରେ ଦେଖୁଛନ୍ତି ସେଥୁରେ ତାକୁ ପିଟୁଛନ୍ତି । ଯଦି କେବେ ପାଖରେ ଅନ୍ୟ କିଛି ନପାଇ ପାଚକମାନେ ଜଳନ୍ତା କାଷ୍ଠଖଣ୍ଡରେ ତାକୁ ପ୍ରହାର କରନ୍ତି ତେବେ ମେଷର ଦେହରେ ଥିବା ପ୍ରଚୁର ଲୋମରେ ସାମାନ୍ୟ ଅଗ୍ନି ଲାଗିଲେ ମଧ୍ୟ ପ୍ରଜ୍ଜ୍ୱଳିତ ହୋଇଉଠିବ । ତା’ପରେ ସେ ନିକଟବର୍ତ୍ତୀ ଅଶ୍ୱଶାଳାରେ ପ୍ରବେଶ କରିବ । ଅଶ୍ୱଶାଳାରେ ପ୍ରଚୁର ତୃଣ ଥିବାରୁ ତାହା ଜଳି ଉଠିବ । ଫଳରେ ଅଶ୍ଵମାନେ ଅଗ୍ନିରେ ପୋଡ଼ିଯିବେ । ଶାଳିହୋତ୍ର ଅଶ୍ମଶାସ୍ତ୍ରରେ କହିଅଛନ୍ତି – ବାନରର ଚର୍ବିଦ୍ଵାରା ଅଶୁମାନଙ୍କର ଅଗ୍ନିଦାହ ପ୍ରଶମିତ ହୁଏ । ଏହିପରି ଦିନେ ଅବଶ୍ୟ ଘଟିବ । ଏକଥା ନିଶ୍ଚିତ ।

ଏହିପରି ବିଚାର କରି ସେ ବାନର ଯୂଥପତି ସବୁ ବାନରଙ୍କୁ ଡାକି ଏକାନ୍ତରେ କହିଲା –

ପାଚକମାନଙ୍କର ମେଷ ସହିତ ଯେଉଁ କଳହ ଚାଲିଛି, ତାହା ପରିଣାମରେ ଆମ ବାନରମାନଙ୍କର ଯେ କ୍ଷୟସାଧନ କରିବ ଏଥିରେ ସନ୍ଦେହ ନାହିଁ । ୧ ।

ଯେଉଁ ଗୃହରେ ପ୍ରତିଦିନ ଅକାରଣରେ କଳହ ଲାଗିଥାଏ, ପ୍ରାଣ ରଖୁବାକୁ ଇଚ୍ଛା ଥିଲେ, ସେ ଗୃହକୁ ତ୍ୟାଗକରି ଚାଲିଯିବା ଉଚିତ । ୨ ।

ଆହୁରି ମଧ୍ୟ – କଳହ ହେତୁ ଗୃହର, କୁବାକ୍ୟ ହେତୁ ବନ୍ଧୁତ୍ଵର, ଦୁଷ୍ଟରାଜାଙ୍କ ହେତୁରୁ ରାଜ୍ୟର ଓ କୁକର୍ମ ହେତୁରୁ ମନୁଷ୍ୟର ଯଶର ବିନାଶ ଘଟିଥାଏ । ୩ ।

ଅତଏବ ଆମ ସମସ୍ତଙ୍କର ବିନାଶ ହେବା ପୂର୍ବରୁ ଏ ରାଜନଅରକୁ ଛାଡ଼ି ବନକୁ ପଳାଇଯିବା । ତାହାର ଏହି ଅପ୍ରିୟ ବଚନ ଶୁଣି ମନ୍ଦୋଦ୍ଧତ ବାନରମାନେ ଉଚ୍ଚ ହାସ୍ୟ କରି କହିଲେ, ‘‘ଓ ! ବାର୍ଦ୍ଧକ୍ୟ ହେତୁରୁ ତୁମର ବୁଦ୍ଧି ବିଚଳିତ ହେଲାଣି । ସେଥ‌ିପାଇଁ ଏପରି କହୁଛ । କୁହାଯାଇଅଛି –

ବାଳକ ଓ ବୃଦ୍ଧ ଉଭୟଙ୍କର ମୁଖ ଦନ୍ତହୀନ; ଉଭୟଙ୍କ ମୁଖରୁ ସର୍ବଦା ଲାଳ ଝରୁଥାଏ । କୌଣସି ବିଷୟରେ ଏ ଦୁହିଁଙ୍କର ବିଶେଷତଃ ବୃଦ୍ଧର ବୁଦ୍ଧି ସ୍ତୁରେ ନାହିଁ । ୪ ।

ଏଠାରେ ସ୍ଵର୍ଗ ସମାନ ସୁଖଭୋଗ, ରାଜପୁତ୍ରମାନଙ୍କ ସ୍ୱହସ୍ତପ୍ରଦତ୍ତ ବିବିଧ ଅମୃତତୁଲ୍ୟ ଭୋଜ୍ୟଦ୍ରବ୍ୟ ତ୍ୟାଗକରି ଆମେମାନେ ବନ ମଧ୍ୟରେ କଷାୟ, କଟୁ, ତିକ୍ତ, କ୍ଷାର, ରୁକ୍ଷ ଫଳ ଖାଇପାରିବୁ ନାହିଁ ।’’ ଏହାଶୁଣି ବାନରପତି ଅଶ୍ରୁପ୍ଲାବିତ ନେତ୍ରରେ କହିଲା – ଆରେ ରେ ମୂର୍ଖ ! ତୁମେମାନେ ଏ ସୁଖର ପରିଣାମ ଜାଣିପାରି ନାହଁ । ପାପକର୍ମର ରସାସ୍ଵାଦନ ସଦୃଶ ଏ ସୁଖର ପରିଣାମ ବିଷମୟ ହେବ । କୂଳର ବିନାଶ ମୁଁ ନିଜେ ଦେଖିପାରିବି ନାହିଁ । ମୁଁ ବର୍ତ୍ତମାନ ବନକୁ ଚାଲିଯାଉଛି । କୁହାଯାଇଛି – ମିତ୍ର ବିପଦଗ୍ରସ୍ତ ହେବା, ନିଜର ସ୍ଥାନ ଅନ୍ୟଦ୍ୱାରା ଉପୀଡ଼ିତ ହେବା, ଦେଶଭଙ୍ଗ, କୁଳକ୍ଷୟ – ଏସବୁ ଯେଉଁମାନେ ଦେଖନ୍ତି ନାହିଁ, ସେମାନେ ଧନ୍ୟ । ୫ ।

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 4 ଚନ୍ଦ୍ରଭୂପତିକଥା

ଯୂଥପତି ଏହା କହି, ସମସ୍ତ ବାନରଙ୍କୁ ତ୍ୟାଗକରି ବନକୁ ଚାଲିଗଲା ।

ସେ ଯିବାପରେ ଦିନେ ସେହି ମେଷଟି ରନ୍ଧନଶାଳାରେ ପ୍ରବେଶ କଲା । ପାଚକ ଅନ୍ୟ କିଛି ନପାଇ ଜଳନ୍ତା କାଷ୍ଠଖଣ୍ଡରେ ତାକୁ ପ୍ରହାର କରିବାରୁ ସେ ଜ୍ଵଳନ୍ତ ଶରୀରରେ ଚିତ୍କାର କରି କରି ନିକଟବର୍ତ୍ତୀ ଅଶ୍ଵଶାଳାରେ ପ୍ରବେଶ କଲା । ସେଠାରେ ସେ ତୃଣପୂର୍ଣ୍ଣ ଭୂମିରେ ଲୋଟିବାରୁ ସର୍ବତ୍ର ଏପରି ବହ୍ନିଶିଖା ଉଠିଲା ଯେ କେତେକ ଅଶ୍ବ ଚକ୍ଷୁ ହରାଇ ମୃତ୍ୟୁମୁଖରେ ପଡ଼ିଲେ । କେତେକ ଅଶ୍ୱ ବନ୍ଧନ ଛିନ୍ନକରି ଅର୍ଦ୍ଧଦଗ୍‌ଧ ଶରୀରରେ ଫ୍ରେଷାରାବ କରି ଇତସ୍ତତଃ ଧାଇଁବାକୁ ଲାଗିଲେ । ଏହା ଫଳରେ ଲୋକମାନେ ବ୍ୟାକୁଳ ହୋଇପଡ଼ିଲେ ।

ଏହି ଅବସ୍ଥାରେ ରାଜା ବିଷଣ୍ଣ ହୋଇ ଶାଳିହୋତ୍ର ଶାସ୍ତ୍ରଜ୍ଞ ବୈଦ୍ୟମାନଙ୍କୁ ଡକାଇ କହିଲେ, ‘‘ଏହି ଅଶ୍ୱମାନଙ୍କର ଦାହଜନିତ ବ୍ୟଥାର ଉପଶମ ପାଇଁ କୌଣସି ଉପାୟ କୁହନ୍ତୁ ।’’ ସେମାନେ ଶାସ୍ତ୍ର ଦେଖୁ କହିଲେ, ମହାରାଜ ! ଏ ବିଷୟରେ ଭଗବାନ୍ ଶାଳିହୋତ୍ର କହିଅଛନ୍ତି –

ସୂର୍ଯ୍ୟୋଦୟ ହେଲେ ଅନ୍ଧକାର ଯେପରି ଦୂର ହୋଇଯାଏ, ବାନରମାନଙ୍କର ମେଦଦ୍ବାରା ଅଶୁମାନଙ୍କର ଦାହଜନିତ ରୋଗ ସେହିପରି ବିନଷ୍ଟ ହୋଇଯାଏ । ୬ ।

ତେଣୁ ଅତିଶୀଘ୍ର ଏହି ଚିକିତ୍ସା କରାଯାଉ, ଯେପରିକି ଅଶୁମାନେ ଅଗ୍ନିଦାହ ଯୋଗୁଁ ମୃତ୍ୟୁମୁଖରେ ନ ପଡ଼ନ୍ତି । ରାଜା ଏହା ଶୁଣି ସମସ୍ତ ବାନରଙ୍କୁ ବଧ କରିବାପାଇଁ ଆଦେଶ ଦେଲେ । ଅଧୂକ କହିବା ନିଷ୍ପ୍ରୟୋଜନ । ଯଷ୍ଟି, ପ୍ରସ୍ତର ପ୍ରଭୃତି ସାହାଯ୍ୟରେ ସମସ୍ତ ବାନର ନିହତ ହେଲେ ।

ବାନର ଯୂଥପତି ପୁତ୍ର, ପୌତ୍ର, ଭ୍ରାତୁଷ୍ଟୁତ୍ର, ଭାଗିନେୟ ପ୍ରଭୃତିଙ୍କର ମରଣ ବିଷୟ ଜାଣି ଗଭୀର ବିଷାଦରେ ମଗ୍ନହୋଇ ଅନାହାରରେ ରହି ବନରୁ ବନାନ୍ତର ଭ୍ରମଣ କରିବାକୁ ଲାଗିଲା । ସେ ମନେ ମନେ ଚିନ୍ତାକଲା, ମୁଁ ଏ ଅଧମ ରାଜାର ପ୍ରତିଶୋଧ ନେଇ କିପରି ତା’ର ଅନିଷ୍ଟସାଧନ କରିବି । କୁହାଯାଇଛି –

ଏ ସଂସାରରେ ଯେଉଁ ଲୋକ ଭୟ ହେତୁରୁ ଅଥବା ଲୋଭ ହେତୁରୁ ନିଜ ନିଜ କୁଳ ପ୍ରତି ଶତ୍ରୁର ଅତ୍ୟାଚାରକୁ ସହିଯାଏ, ସେ ପୁରୁଷମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ନିତାନ୍ତ ଅଧମ ଅଟେ । ୭ |
ଏହାପରେ ସେହି ବୃଦ୍ଧ ବାନର ପିପାସାକୁଳ ହୋଇ ଭ୍ରମଣ କରୁ କରୁ କମଳ ପରିପୂର୍ଣ୍ଣ ଗୋଟିଏ ପୁଷ୍କରିଣୀ ନିକଟରେ ପହଞ୍ଚିଲା । ସେ ସୂକ୍ଷ୍ମଭାବରେ ନିରୀକ୍ଷଣ କରି ଦେଖୁଲା ଯେ ବନବାସୀ ମନୁଷ୍ୟମାନଙ୍କର ସରୋବରରେ ପ୍ରବେଶ କରିବାର ପଦଚିହ୍ନମାନ ଅଛି, କିନ୍ତୁ ଫେରି ଆସିବାର ପଦଚିହ୍ନ ନାହିଁ । ତହୁଁ ସେ ଚିନ୍ତାକଲା – ଏହି ପୁଷ୍କରିଣୀରେ ନିଶ୍ଚୟ ଗୋଟିଏ ଦୁଷ୍ଟ କୁମ୍ଭୀର ଅଛି । ତେଣୁ ପଦ୍ମନାଡ଼ ଆଣି ଦୂରରେ ରହି ସେହି ପଦ୍ମନାଡ଼ ସାହାଯ୍ୟରେ ଜଳପାନ କରିବି । ସେହିପରି ଜଳପାନ କରନ୍ତେ ଗଳାରେ ରନ୍ଧମାଳା ପରିଧାନ କରିଥିବା ଗୋଟିଏ ରାକ୍ଷସ ପୁଷ୍କରିଣୀ ମଧ୍ୟରୁ ବାହାରି ଆସି କହିଲା, ଯେ କେହି ଏହି ପୁଷ୍କରିଣୀର ଜଳ ମଧ୍ୟରେ ପ୍ରବେଶ କରେ, ମୁଁ ତାକୁ ଭକ୍ଷଣ କରେ । କ

ିନ୍ତୁ ଏପରି କୌଣସି ଚତୁର ଲୋକ ନାହିଁ, ଯେ କି ତୁମ ଭଳି ଏ ଉପାୟରେ ଜଳପାନ କରିବ । ତେଣୁ ମୁଁ ତୁମ ଉପରେ ସନ୍ତୁଷ୍ଟ ହୋଇଅଛି । ମନର ଅଭିଳାଷ ଅନୁସାରେ ବର ପ୍ରାର୍ଥନା କର । ବାନର କହିଲା, ତୁମର ଭୋଜନ କରିବାର ଶକ୍ତି କେତେ ? ରାକ୍ଷସ ଉତ୍ତର ଦେଲା, ଜଳରେ ପ୍ରବେଶ କଲେ ଶତ, ସହସ୍ର, ଅୟୁତ, ଲକ୍ଷ ପ୍ରାଣୀଙ୍କୁ ମଧ୍ୟ ଭୋଜନ କରିପାରିବି । ମାତ୍ର ବାହାରେ ଥିଲାବେଳେ ମୋତେ ସାମାନ୍ୟ ଶୃଗାଳ ମଧ୍ୟ ଅପମାନିତ କରିପାରେ । ବାନର କହିଲା, ଜଣେ ରାଜା ସହିତ ମୋର ଘୋର ଶତ୍ରୁତା ଅଛି । ଯଦି ତୁମେ ମୋତେ ତୁମର ଏହି ରହାରଟି ଦେବ, ତାହାହେଲେ ମୁଁ ମୋର କଥାଚାତୁରୀରେ ଲୋଭ ଦେଖାଇ ସେ ରାଜାକୁ ତା’ର ପରିବାର ସହିତ ଏହି ପୁଷ୍କରିଣୀରେ ପ୍ରବେଶ କରାଇବି । ରାକ୍ଷସ ତାହାର ଏହି ଶ୍ରଦ୍ଧେୟ ବାକ୍ୟ ଶୁଣି ରହାରଟି ଦେଇ କହିଲା, ହେ ମିତ୍ର ! ଯାହା ଉଚିତ ମନେକରୁଛ, ତାହା କର ।

ବାନର ମଧ୍ଯ ରହାରରେ ନିଜର କଣ୍ଠଦେଶକୁ ସୁଶୋଭିତ କରି ବୃକ୍ଷ ଓ ରାଜପ୍ରାସାଦମାନଙ୍କ ଉପରେ ଭ୍ରମଣ କରିବାରୁ ଲୋକେ ତାହାକୁ ଦେଖୁ ପଚାରିଲେ, ହେ ବାନର ଯୂଥପତି ! ତୁମେ ଏତେ କାଳ ହେଲା କେଉଁଠାରେ ଥିଲ ? ଏଡ଼େ ସୁନ୍ଦର ରନ୍ଥମାଳା କାହୁଁ ପାଇଲ ? ଏହାର ତେଜ ସୂର୍ଯ୍ୟକିରଣକୁ ମଧ୍ଯ ତିରସ୍କାର କରୁଛି । ବାନର କହିଲା, ଗୋଟିଏ ଅରଣ୍ୟ ମଧ୍ୟରେ ଏକ ଅତି ଗୁପ୍ତ ସରୋବର ଅଛି । ତାହାକୁ ସ୍ଵୟଂ କୁବେର ନିର୍ମାଣ କରିଅଛନ୍ତି । ରବିବାର ଦିନ ସୂର୍ଯ୍ୟୋଦୟ ସମୟରେ ଯଦି କେହି ଉକ୍ତ ସରୋବରରେ ବୁଡ଼ ପକାଏ ତେବେ ସେ କୁବେରଙ୍କ ପ୍ରସାଦରୁ ଏହିପରି ରମାଳାରେ କଣ୍ଠକୁ ସୁଶୋଭିତ କରି ଜଳରୁ ବାହାରିଆସେ ।

ଏହାପରେ ରାଜା ଏହା ଶୁଣିପାରି ସେହି ବାନରକୁ ଡାକି ପଚାରିଲେ, ହେ ଯୂଥାଧୂପ ! ଏ କଥା କ’ଣ ସତ୍ୟ ? ରନ୍‌ମାଳାରେ ପରିପୂର୍ଣ ପୁଷ୍କରିଣୀ କେଉଁଠାରେ ଅଛି ? ବାନର କହିଲା, ହେ ପ୍ରଭୁ ! ପ୍ରତ୍ୟକ୍ଷରେ ମୋ ଗଳାରେ ପଡ଼ିଥିବା ଏହି ରନ୍ଥମାଳା ଦେଖୁ ଆପଣଙ୍କର ବିଶ୍ୱାସ ହେବ । ତେଣୁ ଯଦି ଆପଣଙ୍କର ରମାଳାର ପ୍ରୟୋଜନ ଥାଏ, ତାହାହେଲେ କାହାରିକୁ ମୋ ସଙ୍ଗେ ପଠାନ୍ତୁ ଯେ ଦେଖାଇଦେବି । ଏହା ଶୁଣି ରାଜା କହିଲେ, ସେପରି ହେଲେ ମୁଁ ନିଜେ ମୋର ସମସ୍ତ ପରିବାର ସହିତ ଯିବି । ତେବେ ଅନେକ ରନ୍ଧମାଳା ପାଇପାରିବୁ । ବାନର କହିଲା, ତାହାହିଁ କରନ୍ତୁ । ସେହିପରି କରାଯିବାରୁ ରନ୍‌ମାଳା ପାଇବା ଲୋଭରେ ରାଜାଙ୍କ ସହିତ ସବୁ ପତ୍ନୀ ଓ ଭୃତ୍ୟ ପ୍ରଭୃତି ଚାଲିଲେ । ରାଜା ଦୋଳାରେ ବସି ଗଲେ । ବାନରକୁ ମଧ୍ୟ ରାଜାଙ୍କ କ୍ରୋଡ଼ରେ ବସାଇ ଅତି ସୁଖରେ ପ୍ରୀତିପୂର୍ବକ ନିଆଗଲା । ତେଣୁ ଯଥାର୍ଥରେ କହ୍ଲାଯାଇଛି –

‘‘ହେ ତୃଷ୍ଣାଦେବି ! ତୁମକୁ ନମସ୍କାର । ତୁମେ ଧନବନ୍ତ ଲୋକକୁ ମଧ୍ଯ ଅକରଣୀୟ କାର୍ଯ୍ୟରେ ନିୟୋଜିତ କରୁଛ; ଦୁର୍ଗମ ସ୍ଥାନରେ ମଧ୍ୟ ଭ୍ରମଣ କରାଉଅଛି’’ || ୮ ||

ପୁଣି ମଧ୍ୟ – ଯେ ଶତମୁଦ୍ରାର ଅଧିକାରୀ, ସେ ସହସ୍ର ପାଇବାକୁ ଲାଳାୟିତ । ଯାହାର ସହସ୍ରମୁଦ୍ରା ଅଛି ସେ ଲକ୍ଷମୁଦ୍ରା କାମନା କରୁଅଛି । ଯେ ଲକ୍ଷାଧୂପତି ସେ ରାଜ୍ୟ ଅଭିଳାଷ କରୁଅଛି ଓ ଯେ ରାଜପଦରେ ପ୍ରତିଷ୍ଠିତ ହୋଇଅଛି ସେ ସ୍ୱର୍ଗକାମନା କରୁଅଛି । ୯ ।

ଜରାକ୍ରାନ୍ତ ବ୍ୟକ୍ତିର କେଶ ଶୁକ୍ଳ ହୋଇଯାଏ, ଦନ୍ତଗୁଡ଼ିକ ଝଡ଼ିପଡ଼ନ୍ତି, ଚକ୍ଷୁ ଦୃଷ୍ଟିଶକ୍ତି ହରାଏ, କର୍ଣ୍ଣ ଶୁଣିପାରେ ନାହିଁ; କିନ୍ତୁ କେବଳ ତୃଷ୍ଣା ହିଁ ତରୁଣ ହେଉଥାଏ । ୧୦ ।

ଏହାପରେ ସେହି ପୁଷ୍କରିଣୀ ନିକଟରେ ଉପସ୍ଥିତ ହୁଅନ୍ତେ ବାନର ପ୍ରଭାତ କାଳରେ ରାଜାଙ୍କୁ କହିଲା, ଏଠାରେ ଅଧେ ସୂର୍ଯ୍ୟୋଦୟ ହେଲାବେଳକୁ ଯେଉଁମାନେ ଏହି ପୁଷ୍କରିଣୀରେ ପ୍ରବେଶ କରନ୍ତି, ସେମାନେ ସିଦ୍ଧିଲାଭ କରନ୍ତି । ତେଣୁ ସମସ୍ତେ ଏକ ସଙ୍ଗରେ ଜଳରେ ପ୍ରବେଶ କରନ୍ତୁ । ଆପଣ ପରେ ମୋ ସହିତ ଜଳରେ ପ୍ରବେଶ କରିବେ । ତାହାହେଲେ ମୁଁ ଆପଣଙ୍କୁ ପୂର୍ବଦୃଷ୍ଟ ସ୍ଥାନକୁ ନେଇ ପ୍ରଚୁର ରନ୍ଧମାଳା ଦେଖାଇଦେବି ।

ଏହାପରେ ଲୋକମାନେ ଜଳରେ ପ୍ରବେଶ କରନ୍ତେ ରାକ୍ଷସ ସେ ସମସ୍ତଙ୍କୁ ଭକ୍ଷଣ କଲା । ସେମାନେ ଅନେକବେଳ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଜଳରୁ ନ ବାହାରିବାରୁ ରାଜା ବାନରକୁ କହିଲେ, ହେ ଯୂଥପତି ! ମୋର ଲୋକମାନେ ଏତେ ବିଳମ୍ବ କରୁଛନ୍ତି କାହିଁକି ? ଏହା ଶୁଣିଲାମାତ୍ରେ ବାନର ତତ୍‌କ୍ଷଣାତ୍ ଏକ ବୃକ୍ଷକୁ ଆରୋହଣ କରି ରାଜାଙ୍କୁ କହିଲା, ଆରେ ଦୁଷ୍ଟ ରାଜା ! ଜଳ ମଧ୍ୟରେ ଥିବା ରାକ୍ଷସ ତୋର ପରିଜନମାନଙ୍କୁ ଖାଇସାରିଛି । ମୁଁ କୁଳକ୍ଷୟଜନିତ ବୈରସାଧନ କରିଛି । ଏବେ ଯାଆ । ତୁ ମୋର ପ୍ରଭୁ ଥୁଲୁ ବୋଲି ତୋତେ ଜଳରେ ପ୍ରବେଶ କରାଇଲି ନାହିଁ । କଥାତ ଅଛି –

କେହି ଉପକାର କଲେ ତା’ର ପ୍ରତ୍ଯୁପକାର ଓ ଅପକାର କଲେ ତା’ର ପ୍ରତ୍ଯୁପକାର କରିବ; କେହି ହିଂସା କଲେ ତା’ର ପ୍ରତିହିଂସା କରିବ; ଦୁଷ୍ଟ ସହିତ ଦୁଷ୍ଟ ଆଚରଣ କରିବ । ଏଥିରେ ମୁଁ କୌଣସି ଦୋଷ ଦେଖିପାରୁ ନାହିଁ । ୧୧ ।

ତୁ ମୋର କୁଳକ୍ଷୟ କରିଥିଲୁ; ମୁଁ ସେହିପରି ତୋର କୁଳକ୍ଷୟ କଲି । ଏହା ଶୁଣି ରାଜା କୋପାବିଷ୍ଟ ହୋଇ ପାଦରେ ଚାଲି ଚାଲି ଯେଉଁ ମାର୍ଗରେ ଆସିଥିଲେ ସେହି ମାର୍ଗରେ ଫେରିଗଲେ। ରାଜା ଚାଲିଯିବା ପରେ ରାକ୍ଷସ ତୃପ୍ତ ହୋଇ ଜଳ ମଧ୍ୟରୁ ବାହାରି ଆନନ୍ଦରେ କହିଲା –

ହେ ବାନର ତୁମେ ଧନ୍ୟ ! ପଦ୍ମନାଡ଼ ସାହାଯ୍ୟରେ ଜଳ ପିଇ ତୁମ ଶତ୍ରୁକୁ ବିନାଶ କରିଅଛ; ମୋତେ ମିତ୍ର କରିପାରିଛ ଓ ରନ୍ଥମାଳାକୁ ମଧ୍ୟ ହରାଇ ନାହଁ । ୧୨ ।

Text – 1

कस्मिंश्चिन्नगरे ……………………………….. तेनाशु ताड़यन्ति।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – କବିଂଶ୍ଚିନ୍ନଗରେ = କୌଣସି ଏକ ନଅରରେ । ଭୂପତିଃ = ରାଜା । ବାନରକ୍ରୀଡ଼ାରତା = ମାଙ୍କଡ଼ମାନଙ୍କ ସହ କ୍ରୀଡ଼ାରତ । ବାନରଯୂଥମ୍ = ମାଙ୍କଡ଼ପଲକୁ । ନିତ୍ୟମ୍ = ପ୍ରତିଦିନ । ପୁଷ୍ଟିମ୍ = ପୋଷଣ । ଅଥ = ଏହାପରେ । ବାନରଯୂଥାଧୂପ = ବାନରଦଳପତି । ଔଶନସମ୍ = ଶୁକ୍ର । ବାର୍ହସ୍ପତ୍ୟମ୍ = ବୃହସ୍ପତିପ୍ରଣୀତ ଧର୍ମଶାସ୍ତ୍ର । ଅଧ୍ୟାପୟତି ସ୍ମ = ପଢ଼ାଉଥିଲେ । ରାଜଗୃହେ = ରାଜପ୍ରାସାଦରେ । ଲଘୁ = ହ୍ରସ୍ଵ ବା ଛୋଟ । ମେଷଯୂଥମ୍ = ମେଣ୍ଢାପଲ । ଜିହ୍ବାଲୌଲ୍ୟାତ୍ = ଭୋଜନ ଲୋଭରୁ । ଅହର୍ନିଶମ୍ = ଦିନରାତି । ନିଃଶଙ୍କମ୍ = ବିନା ଭୟରେ ବା ନିର୍ଭୟରେ । ମହାନସେ = ରୋଷଶାଳାରେ । ଯତ୍ = ଯାହା । ସୂପକାରା ରୋଷେଇଆମାନେ । ମୃଣ୍ମୟମ୍ = ମାଟିର । ଭାଜନମ୍ = ପାତ୍ର । ଆଶୁ = ଶୀଘ୍ର । ତାଡ଼ୟନ୍ତି = ମାରନ୍ତି ବା ପିଟନ୍ତି ।

ଅନୁବାଦ – କୌଣସି ଏକ ନଗରରେ ଚନ୍ଦ୍ର ନାମକ ଜଣେ ରାଜା ବାସ କରୁଥିଲେ । ତାଙ୍କର ପୁତ୍ରମାନେ ମାଙ୍କଡ଼ମାନଙ୍କ ସହ କ୍ରୀଡ଼ାରତ ରହୁଥିଲେ ଓ ସେମାନଙ୍କୁ ପ୍ରତିଦିନ ଅନେକପ୍ରକାରର ଖାଦ୍ୟଦ୍ରବ୍ୟ ଦେଇ ପରିପୁଷ୍ଟ କରୁଥିଲେ । ଏହାପରେ ବାନରମାନଙ୍କର ଦଳପତି ଯିଏକି ଶୁକ୍ର, ବୃହସ୍ପତି ଓ ଚାଣକ୍ୟଙ୍କର ନୀତିଶାସ୍ତ୍ରମାନ ଜାଣିଥିଲା ଓ ତାକୁ ସମସ୍ତଙ୍କୁ ମଧ୍ୟ ଶିଖାଉଥିଲା । ଏହାପରେ ସେହି ରାଜପ୍ରାସାଦରେ ଛୋଟ ରାଜକୁମାରମାନଙ୍କର ବାହନଯୋଗ୍ୟ ଏକ ମେଣ୍ଢାପଲ ଥିଲା । ସେମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ଏକ ମେଣ୍ଢା ଜିହ୍ବାଲାଳସା ହେତୁରୁ ଦିନରାତି ରନ୍ଧନଶାଳାରେ ପଶି ଯାହା ଦେଖୁଥିଲା ତାହାସବୁ ଖାଇଯାଉଥିଲା । ସେହି ରୋଷେଇଆମାନେ କାଷ୍ଠ, ମାଟିପାତ୍ର, କଂସାପାତ୍ର ବା ତମ୍ବାପାତ୍ର ଯାହାକିଛି ପାଉଥିଲେ ସେଥ‌ିରେ ତାକୁ ଶୀଘ୍ର ପିଟୁଥିଲେ ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – କଟିଂଷ୍ଟିନ୍ନଗରେ = କସ୍ମିନ୍ + ଚିତ୍ + ନଗରେ । ନିତ୍ୟମେବାନେକଭୋଜନଭର୍ଯ୍ୟାଦିର୍ଭି = ନିତ୍ୟମ୍ + ଏବ + ଅନେକଭୋଜନଭକ୍ଷ୍ୟ + ଆଦିଭିଂ । ବାନରଯୂଥାଧୂପଃ = ବାନରଯୂଥ + ଅଧ୍ୟାପଃ । ମତବିତ୍ତଦନୁଷ୍ଠାତା = ମତବିତ୍ + ତତ୍ + ଅନୁଷ୍ଠାତା । ସର୍ବାନପ୍ୟଧ୍ୟାପୟତି = ସର୍ବାନ୍ + ଅପି + ଅଧ୍ୟାପୟତି । ମେଷଯୂଥମସ୍ତି = ମେଷଯୂଥମ୍ + ଅସ୍ତି । ତନ୍ମଧାଦେକ = ତତ୍ + ମଧ୍ୟାତ୍ + ଏକଃ । ଜିହ୍ବାଲୌଲ୍ୟାଦହର୍ନିଶମ୍ = ଜିହ୍ବାଲୌଲ୍ୟାତ୍ + ଅହର୍ନିଶମ୍ । ତେନାଶୁ = ତେନ + ଆଶୁ ।

ସମାସ – ଭୂପତିଃ = ଭୁନଃ ପତିଃ (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍ତ୍ଵପୁରୁଷ) । ବାନରକ୍ରୀଡ଼ାରତଃ = ବାନରଃ କ୍ରୀଡ଼ାରତା (୩ୟା ତତ୍ତ୍ଵପୁରୁଷ) । ବାନରଯୂଥମ୍ = ବାନରାମାଂ ଯୂଥମ୍ (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍ତ୍ଵପୁରୁଷ) । ବାନରଯୂଥାଧୂପଃ = ବାନରାଣା ଯୂଥମ୍ (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍‌ପୁରୁଷ) ତସ୍ୟ ଅଧୂପ (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍‌ପୁରୁଷ) । ରାଜଗୃହେ = ରାଜ୍ଞ ଗୃହମ୍, ତସ୍ମିନ୍ (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍‌ପୁରୁଷ) । ଜିହ୍ଵାଲୌଲ୍ୟାତ୍ = ଜିହ୍ବାୟା ଲୌଲ୍ୟମ୍, ତସ୍ମାତ୍ (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍‌ପୁରୁଷ) । ଅହର୍ନିଶମ୍ = ଅହଃ ଚ ନିଶା ଚ (ଇତରେତର ବୃଦଃ) । ସୂପକାରା = ସୂପଂ କରୋତି ଇତି, ତେ (ଉପପଦ ତତ୍‌ପୁରୁଷ) । କାଂସ୍ୟପାତ୍ରମ୍ = କାଂସ୍ୟ ନିର୍ମିତଂ ପାତ୍ରମ୍ (ମଧ୍ୟପଦଲୋପୀ କର୍ମଧାରୟ) । ତାମ୍ରପାତ୍ରମ୍ = ତାମ୍ର ନିର୍ମିତଂ ପାତ୍ରମ୍ (ମଧ୍ୟପଦଲୋପୀ କର୍ମଧାରୟ)।

ସକାରଣବିଭକ୍ତି – ଚନ୍ଦ୍ର = ନାମ ଅବ୍ୟୟ ଯୋଗେ ୧ମା । ଭୂପତିଃ, ପୁତ୍ରା, ଯଃ, ସ, ମେଷଯୂଥମ୍, ଏକଃ, ତେ, ସୂପକାରା = କଉଁରି ୧ମା । ପୁଷ୍ଟି, ତାନ୍, ସର୍ବାନ୍, ସର୍ବଂ, କାଷ୍ଠ, ମୃଣ୍ମୟଭାଜନଂ, କାଂସ୍ୟପାତ୍ର, ତାମ୍ରପାତ୍ରମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା । ଅନେକଭୋଜନଭର୍ଯ୍ୟାଦିଭି, ତେନ = କରଣେ ୩ୟା । ତନ୍ମଧ୍ୟାତ୍ = ଅପାଦାନେ ୫ମୀ । ଜିହ୍ବାଲୌଲ୍ୟାତ୍ = ହେତୌ ୫ମୀ। ତସ୍ୟ = ସମ୍ବନ୍ଧ ୬ଷ୍ଠୀ । ନଗରେ, ତସ୍ମିନ୍, ରାଜଗୃହେ, ମହାନସେ = ଅଧିକରଣେ ୭ମୀ ।

ପ୍ରକୃତିପ୍ରତ୍ୟୟ – ପୁଷ୍ଟିମ୍ = ପୂଷ୍ + ଭିନ୍ । ପ୍ରବିଶ୍ୟ = ପ୍ର + ବିଶ୍ + ଲ୍ୟାପ୍।

Text – 2

सोऽपि वानरयूथपस्तद् ………………………….. रहसि प्रोवाच।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ଅପି = ମଧ୍ୟ । ବାନରଯୂଥପ = ବାନରମାନଙ୍କର ଦଳପତି । ଦୃଷ୍ଟା = ଦେଖୁ । ବ୍ୟଚିନ୍ତୟତ୍ = ଚିନ୍ତାକଲା । କ୍ଷୟାୟ = ନାଶ ନିମନ୍ତେ । ଲମ୍ପଟ = ଆସକ୍ତ । ମେଷ = ମେଣ୍ଢା । ମହାକୋପା = ମହାରାଗୀ । ପ୍ରହରନ୍ତି = ପିଟନ୍ତି । ଆସନ୍ତ = ସମୀପବର୍ତୀ । ଉଲ୍ଲେ କେନ = ଜଳନ୍ତା କାଠଖଣ୍ଡଦ୍ବାରା । ଭଣ୍ଡା = ଲୋମ । ବହ୍ନିନା = ଅଗ୍ନିଦ୍ଵାରା । ଦସ୍ୟମାନଃ = ଜଳୁଥିବା। କୁଟ୍ୟାମ୍ = କୁଟୀରକୁ । ତତଃ = ତାହାପରେ । ଶାଳିହୋତ୍ରେଣ = ଅଶ୍ଵଚିକିତ୍ସକଦ୍ବାରା । ପୁନଃ = ପୁଣି । ବସୟା = ମାଂସଜାତ ଦେହସ୍ଥ ଧାତୁ ବିଶେଷଦ୍ଵାରା । ପ୍ରଶାମ୍ୟତି = ଶାନ୍ତ ହେବ । ନୂନମ୍ = ନିଶ୍ଚୟ । ଏବମ୍ = ଏହିପରି । ସର୍ବାନ୍ = ସମସ୍ତଙ୍କୁ । ଆହୂୟ = ଡାକି । ରହସି = ଏକାନ୍ତରେ । ପ୍ରୋବାଚ = କହିଲା ।

ଅନୁବାଦ – ସେହି ମାଙ୍କଡ଼ମାନଙ୍କର ଦଳପତି ମଧ୍ୟ ତାହା ଦେଖୁ ଚିନ୍ତାକଲା, ଆହେ ! ମେଣ୍ଢା ଓ ପାଚକମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ଏହି କଳହ ମାଙ୍କଡ଼ମାନଙ୍କର ବିନାଶର ନିମିତ୍ତ ହେବ, ଯେହେତୁ ଏହି ମେଣ୍ଟାଟି ଅନ୍ନାସ୍ବାଦ ନିମନ୍ତେ ଆସକ୍ତ ଏବଂ ପାଚକମାନେ ଅତ୍ୟନ୍ତ କ୍ରୂର ବା କ୍ରୋଧୀ, ଯେକୌଣସି ବସ୍ତୁଦ୍ବାରା ପିଟିପାରନ୍ତି । ଯଦି କେବେ କୌଣସି ବସ୍ତୁ ଅଭାବରୁ ଜଳନ୍ତା କାଠଖଣ୍ଡଦ୍ୱାରା ବାଡ଼େଇବେ ତେବେ ପ୍ରଚୁର ଲୋମଯୁକ୍ତ ଏହି ମେଣ୍ଟାଟି ଅତିଅଳ୍ପ ଅଗ୍ନିଦ୍ଵାରା ମଧ୍ୟ ପ୍ରଜ୍ଜ୍ୱଳିତ ହୋଇଉଠିବ । ତାହା ଜ୍ବଳମାନ ହୋଇ ପୁନଶ୍ଚ ଘୋଡ଼ାଶାଳା ନିକଟରେ ପ୍ରବେଶ କରିବ । ଘୋଡ଼ାଶାଳାରେ ପ୍ରଚୁର ଘାସ ଥିବାରୁ ତାହା ଜଳିଉଠିବ । ଫଳରେ ଘୋଡ଼ାମାନେ ନିଆଁରେ ପୋଡ଼ିଯିବେ । ଅଶୁମାନଙ୍କର ଚିକିତ୍ସକ (ଶାଳିହୋତ୍ର)ଙ୍କଦ୍ୱାରା ପୁଣି ଏହା କୁହାଯାଇଛି ଯେ, ମାଙ୍କଡ଼ମାନଙ୍କର ବସାଦ୍ୱାରା (ମାଂସାଶ୍ରିତ ଦେହସ୍ଥ ଧାତୁବିଶେଷ) ଘୋଡ଼ାମାନଙ୍କର ଅଗ୍ନିଜନିତ ଜ୍ଵଳନଦୋଷ ଶାନ୍ତ ହେବ ବା ପ୍ରଶମିତ ହେବ । ତେଣୁ ଏହିପରି ଦିନେ ଅବଶ୍ୟ ଘଟିବ । ଏହିପରି ନିଶ୍ଚିତ କରି (ମାଙ୍କଡ଼ମାନଙ୍କର ଦଳପତି) ସମସ୍ତ ମାଙ୍କଡ଼ମାନଙ୍କୁ ଡାକି ଏକାନ୍ତରେ କହିଲା।

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 4 ଚନ୍ଦ୍ରଭୂପତିକଥା

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ସୋଽପି = ନଃ + ଅପି । ବାନରଯୂଥପସ୍ତଦ୍ = ବାନରଯୂଥପଃ + ତଦ୍ । ବ୍ୟଚିନ୍ତୟତ୍ = ବି + ଅଚିନ୍ତୟତ୍ । ମେଷସୂପକାରକଳହୋଽୟମ୍ = ମେଷସୂପକାରକଳହଃ + ଅୟମ୍ । ଯତୋଽସ୍ବାଦଲମ୍ପଟୋଽୟମ୍ = ଯତଃ + ଅନ୍ନ + ଆସ୍ବାଦଲମ୍ପରଃ + ଅୟମ୍ । ମହାକୋପାଣ୍ଡ = ମହାକୋପଃ + ଚ । ଯଥାସନ୍ନବସ୍ତୁନା = ଯଥା + ଆସନ୍ନବସ୍ତୁନା । ବସ୍ତୁନୋଽଭାବାତ୍ = ବସ୍ତୁନଃ + ଅଭାବାତ୍ । କଦାଚିଦୁଲୁ କେନ = କଦାଚିତ୍ + ଉଲ୍ଲେ କେନ । ତଦୋଣ୍ଡାପ୍ରଚୁରୋଽୟମ୍ = ତଦା + ଭଣ୍ଡାପ୍ରଚୁରଃ + ଅୟମ୍ । ସ୍ଵଜେନାପି = ସ୍ଵନ + ଅପି । ତଦ୍ଦନ୍ଦ୍ୟମାନଃ = ତତ୍ + ଦସ୍ୟୁମାନଃ । ପୁନରଶୁକୁଟ୍ୟାମ୍ = ପୁନଃ + ଅଶ୍ଵକୁଟ୍ୟାମ୍ । ସାପି = ସା + ଅପି । ତୃଣପ୍ରାଚୁର୍ଯ୍ୟାଜ୍ବଳିଷ୍ୟତି = ତୃଣପ୍ରାଚୁର୍ଯ୍ୟାତ୍ + ଜ୍ଜ୍ବଳିଷ୍ୟତି । ତତୋଽଶ୍ୱ = ତତଃ + ଅଶ୍ୱା । ବହ୍ନିଦାହମବାପ୍‌ସ୍ୟନ୍ତି = ବହ୍ନିଦାହମ୍ + ଅବାପ୍‌ସ୍ୟନ୍ତ । ପୁନରେତଦୁକ୍ତମ୍ = ପୁନଃ + ଏତତ୍ + ଉକ୍ତମ୍ । ଯଦ୍ମାନରବସୟା = ଯତ୍ + ବାନରବସୟା । ତନ୍ତୁନମେତନ = ତତ୍ + ନୂନମ୍ + ଏତେନ । ଭାବ୍ୟମିତ୍ର = ଭାବ୍ୟମ୍ + ଅତ୍ର । ନିଶ୍ଚୟ = ନିଃ + ଚୟ । ବାନରାନାହ୍‌ୟ = ବାନରାନ୍ + ଆହୂୟ । ପ୍ରୋବାଚ = ପ୍ର + ଉବାଚ।

ସମାସ – ମେଷସୂପକାରକଳହଃ = ମେଷ ଚ ସୂପକାରଃ ଚ (ଦ୍ବଦୁଃ) ତ କଳହଃ (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍ତ୍ଵପୁରୁଷ) । ମହୋକୋପା = ମହାନ୍ କୋପଃ, ତେ (କର୍ମଧାରୟ) । ଅଶ୍ଵକୁଟ୍ୟାମ୍ = ଅଶ୍ୱିନାଂ କୁଟୀ, ତସ୍ୟାମ୍ (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍‌ପୁରୁଷ) । ବହ୍ନିଦାହମ୍ = ବହ୍ନିନା ଦାହମ୍ (ତୃତୀୟା ତତ୍‌ପୁରୁଷ) । ବାନରବସୟା = ବାନରାମାଂ ବସା, ତୟା (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍‌ପୁରୁଷ)।

ସକାରଣବିଭକ୍ତି – ବାନରଯୂଥପଃ, ଅୟଂ, ମେଷ, ସୂପକାରାଃ, ମହାକୋପା, ଉଶ୍ୱପ୍ରଚୁରଃ, ଦସ୍ୟମାନଃ, ଅଶ୍ୱ = କଉଁରି ୧ ମା । ଏତତ୍, ବହ୍ନିଦାହଦୋଷ = ଉକ୍ତ କର୍ମଣି ୧ ମା । ସା = ଅପି ଅବ୍ୟୟ ଯୋଗେ ୧ମା । ଅହୋ ! = ସମ୍ବୋଧନେ ୧ମ । ବହ୍ନିଦାହମ୍, ସର୍ବାନ୍, ବାନରାନ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା । ଆସନ୍ନବସ୍ତୁନା, ଉଲୁ କେନ, ସ୍ଵନ, ବହ୍ନିନା, ଏତେନ = କରଣେ ୩ୟା । ଶାଳିହୋତ୍ରେଣ, ବାନରବସୟା = ଅନୁସ୍ତେ କଉଁରି ୩ୟା । କ୍ଷୟାୟ = ନିମିତ୍ତାର୍ଥେ ୪ର୍ଥୀ । ଅଭାବାତ୍, ତୃଣପ୍ରାଚୁର୍ଯ୍ୟାତ୍ = ହେତେ ୫ମୀ । ବାନରାଣା, ବସ୍ତୁନଃ = ସମ୍ବନ୍ଧ ୬ଷ୍ଠୀ । ଅଶ୍ଵକୁଟିଂ, ସମୀପବର୍ଜିନ୍ୟାମ୍ = ଅଧିକରଣେ ୭ମୀ।

ପ୍ରକୃତିପ୍ରତ୍ୟୟ – ଦୃଷ୍ଟି = ଦୃଶ୍ + ଷ୍ଟ୍ରାଚ୍ । ଆସନ୍ନ = ଆ + ସଦ୍ + କ୍ତ । ଦଶ୍ୟମାନଃ = ଦହ୍ + ଶାନବ । ଉକ୍ତମ୍ = ବଚ୍ + କ୍ତ । ଦୋଷ = ଦୁଷ୍ + ଘଞ୍ଚ୍ ନିଶ୍ଚିତ୍ୟ = ନିଃ + ଚି + ଲ୍ୟାପ୍।

Text – 3

ଶ୍ଳୋକ :
यत्-
मेषेण सूपकाराणां कलहो यत्र जायते।
स भविष्यत्यसंदिग्धं वानराणां क्षयावहः ॥ १ ॥

ଯତ୍ –
ମେଷେଣ ସୂପକାରାଣା କଳହୋ ଯତ୍ର ଜାୟତେ ।
ସ ଭବିଷ୍ୟତ୍ୟସଂଦିଗ୍ଧ ବାନରାମାଂ କ୍ଷୟାବହିଃ ॥ ୧ ||

ଅନ୍ବୟ – ସୂପକାରାମାଂ ମେଷେଣ କଳତଃ ଯତ୍ର ଜାୟତେ, ସ୍ୱ ବାନରାଣା କ୍ଷୟାବହିଃ ଭବିଷ୍ୟତି (ଅତ୍ର) ଅସଂଦିଗ୍‌ମ୍ । ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ସୂପକାରାଣାମ୍ = ପାଚକମାନଙ୍କର । ମେଷେଣ ମେଷ ସହିତ । କଳତଃ = କଳି । ଯତ୍ର = ଯେଉଁଠି । ଜାୟତେ = ଜାତ ହୋଇଛି ବା ଚାଲିଛି । ବାନରାଣାମ୍ = ବାନରମାନଙ୍କର । କ୍ଷୟାବହିଃ = କ୍ଷୟସାଧନ । ଅସଂଦିଗ୍‌ଧର୍ମ = ଏଥ‌ିରେ ସନ୍ଦେହ ନାହିଁ ।

ଅନୁବାଦ – ଯେଣୁ ପାଚକମାନଙ୍କର ମେଷ ସହିତ ଯେଉଁ କଳହ ଚାଲିଛି, ତାହା ପରିଣାମରେ ଆମ ବାନରମାନଙ୍କର ଯେ କ୍ଷୟସାଧନ କରିବ ଏଥ‌ିରେ ସନ୍ଦେହ ନାହିଁ ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – କଳହୋ ଯତ୍ର = କଳହଃ + ଯତ୍ର । ଭବିଷ୍ୟତ୍ୟସଂଦିଗ୍‌ଧମ୍ = ଭବିଷ୍ୟତି + ଅସଂଦିଗ ଧମ୍ । କ୍ଷୟାବହିଃ = କ୍ଷୟ + ଆବହିଃ ।

ସମାସ – ଅସଂଦିଗ୍‌ଧମ୍ = ନ ସଂଦିଗ୍‌ଧମ୍ (ନତ୍ ତତ୍‌ପୁରୁଷ) । କ୍ଷୟାବହିଃ = କ୍ଷୟମ୍ ଆବହତି ଇତି (ଉପପଦ ତପୁରୁଷ) ।

ସକାରଣ ବିଭକ୍ତି – ସ୍ୱ, କଳତଃ = କଉଁରି ୧ ମା । ସୂପକାରାଣା, ବାନରାଣାମ୍ = ଶେଷ ୬ଷ୍ଠୀ । ମେଷେଣ = ସହାର୍ଥେ ୩ୟା ।

Text – 4

ଶ୍ଳୋକ :
तस्मात्स्यात् कलहो यत्र गृहे नित्यमकारणः।
तद्गृहं जीवितं वाञ्छन् दूरतः परिवर्जयेत् ॥ २ ॥

ତସ୍ମାସ୍ୟାତ୍ କଳହୋ ଯତ୍ର ଗୃହେ ନିତ୍ୟମକାରଣ ।
ତଦ୍‌ଗୃହଂ ଜୀବିତଂ ବାଞ୍ଛନ୍ ଦୂରତଃ ପରିବର୍ଜୟେତ୍ ॥ ୨ ||

ଅନ୍ବୟ – ତସ୍ମାତ୍ ଯତ୍ର ଗୃହେ ନିତ୍ୟମ୍ ଅକାରଣଂ କଳତଃ ସ୍ୟାତ୍ । ଜୀବିତଂ ବାଞ୍ଛନ୍ (ନରଃ) ତଦ୍‌ଗୃହଂ ଦୂରତଃ ପରିବର୍ଜୟେତ୍ । ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ତସ୍ମାତ୍ = ସେହି ହେତୁରୁ । ଯତ୍ର = ଯେଉଁଠାରେ । ଗୃହେ = ଘରେ । ନିତ୍ୟମ୍ = ପ୍ରତିଦିନ । ଅକାରଣ = ବିନା କାରଣରେ । ସ୍ୟାତ୍ = ହୋଇପାରେ । ଜୀବିତମ୍ = ଜୀବନ । ବାଞ୍ଛନ୍ = ଇଚ୍ଛା ଥିଲେ । ତଦ୍‌ଗୃହମ୍ = ସେହି ଘରକୁ । ଦୂରତଃ = ଦୂରରୁ । ପରିବର୍ଜୟେତ୍ = ପରିତ୍ୟାଗ କରିବା ଉଚିତ ।

ଅନୁବାଦ – ସେହେତୁ ଯେଉଁ ଗୃହରେ ପ୍ରତିଦିନ ଅକାରଣରେ କଳହ ଲାଗିଥାଏ, ପ୍ରାଣ ରଖୁବାକୁ ଇଚ୍ଛା ଥିଲେ, ସେ ଗୃହକୁ ତ୍ୟାଗକରି ଚାଲିଯିବା ଉଚିତ ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ତସ୍ମାସ୍ୟାତ୍ = ତସ୍ମାତ୍ + ସ୍ୟାତ୍ । କଳହୋ ଯତ୍ର = କଳହଃ + ଯତ୍ର । ନିତ୍ୟମକାରଣ = ନିତ୍ୟମ୍ + ଅକାରଣ । ତଦ୍‌ଗୃହମ୍ = ତତ୍ + ଗୃହମ୍ ।

ସମାସ – ଅକାରନଃ = ନ କାରଣ (ନଵ ତତ୍ତ୍ଵପୁରୁଷ) । ତଦ୍‌ଗୃହମ୍ = ତସ୍ୟ ଗୃହମ୍, ତତ୍ (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍‌ପୁରୁଷ) ।

ସକାରଣବିଭକ୍ତି – ତସ୍ମାତ୍ = ହେତୌ ୫ମୀ । ଗୃହେ = ଅଧିକରଣେ ୭ମୀ । ଅକାରନଃ, କଳହଃ କଉଁରି ୧ମା । ଜୀବିତଂ, ବାଞ୍ଛନ୍ = କଉଁରି ୧ମା । ତଦ୍‌ଗୃହମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା । ଦୂରତଃ = ଅପାଦାନେ ୫ମୀ ।

ପ୍ରକୃତିପ୍ରତ୍ୟୟ – ଜୀବିତମ୍ = ଜୀବ୍ + ଶତ୍ରୁ । ବାଞ୍ଛନ୍ = ବାଞ୍ଚ୍ + ଶତୃ ।

Text – 5

ଶ୍ଳୋକ :
तथा च-
कलहान्तानि हर्म्याणि कुवाक्यान्तं च सौहृदम्।
कुराजान्तानि राष्ट्राणि कुकर्मान्तं यशो नृणाम् ॥ ३॥

ତଥା ଚ-
କଳହାନ୍ତାନି ହର୍ମାଣି କୁବାକ୍ୟନ୍ତ ଚ ସୌହୃଦମ୍ ।
କୁରାଜାନ୍ତାନି ରାଷ୍ଟ୍ରାଣି କୁକର୍ମାନ୍ତ ଯଶୋ ନୃଣାମ୍ ॥ ୩ ॥

ଅନ୍ବୟ – କଳହାନ୍ତାନି ହର୍ମାଣି କୁବାକ୍ୟାନ୍ତ ସୌହୃଦଂ କୁରାଜାନ୍ତାନି ରାଷ୍ଟ୍ରାଣି, କୁକର୍ମାନ୍ତ ନୃଣା ଯଶଃ ଚ (ବିନଶ୍ୟତି) । ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ହର୍ମାଣି = ଗୃହମାନ । ସୌହୃଦମ୍ = ବନ୍ଧୁତ୍ଵ । ରାଷ୍ଟ୍ରାଣି = ରାଜ୍ୟମାନ । ନୃଣାମ୍ = ମନୁଷ୍ୟମାନଙ୍କର । ଯଶଃ = କୀର୍ତି ।

ଅନୁବାଦ – କଳହ ହେତୁ ଗୃହର, କୁବାକ୍ୟ ହେତୁ ବନ୍ଧୁତ୍ଵର, ଦୁଷ୍ଟରାଜାଙ୍କ ହେତୁରୁ ରାଜ୍ୟର ଓ କୁକର୍ମ ହେତୁରୁ ମନୁଷ୍ୟମାନଙ୍କ ଯଶର ବିନାଶ ଘଟିଥାଏ ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – କଳହାନ୍ତାନି = କଳହ + ଅନ୍ତାନି । କୁବାକ୍ୟାନ୍ତମ୍ = କୁବାକ୍ୟ + ଅନ୍ତମ୍ଭ । କୁରାଜାନ୍ତାନି = କୁରାଜ + ଅନ୍ତାନି । କୁକର୍ମାନ୍ତମ୍ = କୁକର୍ମ + ଅନ୍ତମ୍ । ଯଶୋନ୍ଧଣାମ୍ = ଯଶଃ + ନୃଣାମ୍ ।

ସମାସ – କୁବାକ୍ୟମ୍ = କୁତ୍ସିତଂ ବାକ୍ୟମ୍‌ (କର୍ମଧାରୟ) । କୁକର୍ମ = କୁତ୍ସିତ କର୍ମ (କର୍ମଧାରୟ) । କୁରାଜା କୁତ୍ସିତ ରାଜା (କର୍ମଧାରୟ ) ।

ସକାରଣବିଭକ୍ତି – କଳହାନ୍ତାନି, ହର୍ମାଣି, କୁରାଜାନ୍ତାନି, ରାଷ୍ଟ୍ରାଣି = କର୍ଭରି ୧ମା । ସୌହୃଦମ୍, ଯଶଃ = କଉଁରି ୧ମା । ନୃଣାମ୍ = ଶେଷ ୬ଷ୍ଠୀ ।

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 4 ଚନ୍ଦ୍ରଭୂପତିକଥା

Text – 6

तन्न यावत् सर्वेषां …………………………….. ये नैतद्ब्रवीषि।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ଯାବତ୍ = ଯେ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ । ସର୍ବେଷାମ୍ = ସମସ୍ତଙ୍କର । ସଂକ୍ଷୟ = ବିନାଶ । ତାବତ୍ = ସେ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ । ସଂତ୍ୟଜ୍ୟ = ସଂପୂର୍ଣ୍ଣ ତ୍ୟାଗକରି । ବନମ୍ = ବଣକୁ । ଅଥ = ଏହାପରେ । ବଚନମ୍ = କଥାକୁ । ଅଶ୍ରଦ୍ଧେୟମ୍ = ଅପ୍ରିୟ । ଶୁଦ୍ୱା = ଶୁଣି । ମଦୋଦ୍ଧତା = ଦୁଷ୍ଟପ୍ରବୃତ୍ତିଯୁକ୍ତ । ପ୍ରହସ୍ୟ = ହସି ହସି । ପ୍ରୋଚୁ = କହିଲା । ବୁଦ୍ଧିବୈକଲ୍ୟାମ୍ = ବୁଦ୍ଧି ବିଚଳିତ । ସଂଜାତମ୍ = ହୋଇଅଛି ।

ଅନୁବାଦ – ତେଣୁ ଯେପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ସମସ୍ତଙ୍କର ବିନାଶ ନ ହୋଇଛି ସେ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଏହି ରାଜଗୃହକୁ ପରିତ୍ୟାଗ କରି ବଣକୁ ଚାଲିଯିବା । ଏହାପରେ ତାହାର ଏହି ଅପ୍ରିୟ ବଚନ ଶୁଣି ମନ୍ଦୋଦ୍ଧତ ବାନରମାନେ ଉଚ୍ଚସ୍ୱରରେ ହସି କହିଲେ – ଆହେ ! ତୁମର ବୃଦ୍ଧତ୍ଵ ହେତୁ ବୁଦ୍ଧି ବିଚଳିତ ହୋଇଅଛି ଯଦ୍ବାରା ଏପରି କହୁଅଛି ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ତନ୍ତ୍ର = ତତ୍ + ନ । ତାବଦେତଦ୍ରାଜଗୃହମ୍ = ତାବତ୍ + ଏତତ୍ + ରାଜଗୃହମ୍ । ତତ୍ତସ୍ୟ = ତତ୍ + ତସ୍ୟ । ବଚନମଶ୍ରଦ୍ଧେୟମ୍ = ବଚନମ୍ + ଅଶ୍ରଦ୍ଧେୟମ୍ । ପ୍ରୋତୁଃ = ପ୍ର + ଉ । ଯେନୈତଦ୍‌ବ୍ରବୀର୍ଷି = ଯେନ + ଏତତ୍ + ବ୍ରବୀଷି ।

ସମାସ – ସଂକ୍ଷୟ = ସମ୍ୟକ୍ କ୍ଷୟ (ପ୍ରାଦି ତତ୍ତ୍ଵପୁରୁଷ) । ରାଜଗୃହମ୍ = ରାଜ୍ଞ ଗୃହଂ, ତମ୍ (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍ତ୍ଵପୁରୁଷ) । ଅଶ୍ରଦ୍ଧେୟମ୍ = ନ ଶ୍ରଦ୍ଧେୟମ୍ (ନୡ ତତ୍‌ପୁରୁଷ) । ମନ୍ଦୋଦ୍ଧତା = ମଦେନ ଉଦ୍ଧତଃ, ତେ (ତୃତୀୟା ତତ୍‌ପୁରୁଷ) । ବୃଦ୍ଧଭାବାତ୍ = ବୃଦ୍ଧସ୍ୟ ଭାବ, ତସ୍ମାତ୍ (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍ତ୍ଵପୁରୁଷ) । ବୁଦ୍ଧିବୈକଲ୍ୟାମ୍ = ବୁଦ୍ଧେ ବୈକଲ୍ୟମ୍ (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍‌ପୁରୁଷ) ।

ସକାରଣବିଭକ୍ତି – ସଂକ୍ଷୟ, ମଦୋଦ୍ଧତା, ବାନରା = କର୍ଭରି ୧ ମା । ଭୋ ! = ସମ୍ବୋଧନେ ୧ମା । ରାଜଗୃହଂ, ବନଂ, ବଚନଂ, ଅଶ୍ରଦ୍ଧେୟମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା । ଯେନ = କରଣେ ୩ୟା । ବୃଦ୍ଧଭାବାତ୍ = ହେତୌ ୫ମୀ । ସର୍ବେଷା, ତସ୍ୟ, ଭବତଃ = ସମ୍ବନ୍ଧ ୬ଷ୍ଠୀ ।

ପ୍ରକୃତି ପ୍ରତ୍ୟୟ – ସଂତ୍ୟଜ୍ୟ = ସମ୍ + ତ୍ୟଜ୍ + ଲ୍ୟାପ୍ । ବଚନମ୍ = ବଚ୍ + ଲ୍ୟୁଟ୍ । ଶୁଡ଼ା = ଶୁ + ସ୍କାଚ୍ । ପ୍ରହସ୍ୟ = ପ୍ର + ହସ୍ + ଲ୍ୟାପ୍ । ସଂଜାତମ୍ = ସମ୍ + ଜନ୍ + କ୍ତ ।

Text – 7

ଶ୍ଳୋକ :
उक्तं च-
वदनं दशनैर्हीनं लाला स्रवति नित्यशः ।
न मतिः स्फुरति क्वापि वाले वृद्धे विशेषतः ॥ ४ ॥

ଉଲଂ ଚ –
ବଦନଂ ଦଶନୈହୀନଂ ଲାଳା ସୁବତି ନିତ୍ୟଶଃ ।
ନ ମତିଃ ସ୍ଫୁରତି କ୍ୱାପି ବାଳେ ବୃଦ୍ଧ ବିଶେଷତଃ ॥ ୪ ॥

ଅନ୍ୱୟ – (ବାଳବୃଦ୍ଧ) ବଦନଂ ଦଶନିଃ ହୀନଂ, ନିତ୍ୟଶଃ ଲାଳା ସୁବତି । କ୍ବାପି (ବିଷୟ) ବିଶେଷତଃ ବାଳେ ବୃଦ୍ଧ (ଚ) ମତିଃ ନ ସ୍ଫୁରତି ।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ବଦନମ୍ = ମୁଖ । ଦର୍ଶନଃ = ଦାନ୍ତଦ୍ବାରା । ନିତ୍ୟଶଃ = ସର୍ବଦା । ସୁବତି = ଝରିଥାଏ । ମତିଃ = ବୁଦ୍ଧି । ସ୍ଫୁରତି = ସ୍ଫୁରଣ ହୁଏ ।

ଅନୁବାଦ – କୁହାଯାଇଛି – (ବାଳକ ଓ ବୃଦ୍ଧ ଉଭୟଙ୍କର ) ମୁଖ ଦନ୍ତହୀନ, ଉଭୟଙ୍କର ମୁଖରୁ ସର୍ବଦା ଲାଳ ଝରୁଥାଏ । କୌଣସି ବିଷୟରେ ମଧ୍ୟ ଏ ଦୁହିଁଙ୍କର ବିଶେଷତଃ ବାଳକଠାରେ ଓ ବୃଦ୍ଧଠାରେ ବୁଦ୍ଧି ସ୍ତୁରେ ନାହିଁ ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ଦଶନୈହୀନମ୍ = ଦଶନିଃ + ହୀନମ୍ । କ୍ଵାପି = କୃ + ଅପି ।

ସକାରଣବିଭକ୍ତି – ବଦନଂ, ଲାଳା, ମଶଃ = କଉଁରି ୧ମ । ଦଶତିଃ = ହୀନ ଯୋଗେ ୩ୟା । ବାଳେ, ବୃଦ୍ଧି = ଅଧିକରଣେ ୭ମୀ ।

ପ୍ରକୃତିପ୍ରତ୍ୟୟ – ମତିଃ = ମନ୍ + ସ୍କ୍ରିନ୍ ।

Text – 8

न वयं स्वर्गसमानो ……………… वनं यास्यामि।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ବୟଂ = ଆମ୍ଭେମାନେ । ନାନାବିଧାନ୍ = ଅନେକ ପ୍ରକାରର । ରାଜପୁତ୍ରୈ = ରାଜପୁତ୍ରଙ୍କଦ୍ବାରା । ପରିତ୍ୟଜ୍ୟ = ପରିତ୍ୟାଗ କରି । ଅଟବ୍ୟାମ୍ = ଅରଣ୍ୟରେ । କ୍ଷାରମ୍ = ଲବଣଯୁକ୍ତ । ତିକ୍ତମ୍ = ରାଗ । ରୂକ୍ଷ = କର୍କଶ ବା ଚିକ୍‌କଣ – ରହିତ । ଶ୍ରୁତ୍ଵା = ଶୁଣି । ପରିଣାମମ୍ = ଫଳାଫଳକୁ । କୁଳକ୍ଷୟମ୍ = ବଂଶନାଶ । ସ୍ଵୟମ୍ = ନିଜେ । ସାଂପ୍ରତମ = ବର୍ତ୍ତମାନ । ଯାସ୍ୟାମି = ଚାଲିଯିବି ।

ଅନୁବାଦ – ଏଠାରେ ସ୍ବର୍ଗ ସମାନ ସୁଖଭୋଗକୁ, ରାଜପୁତ୍ରମାନଙ୍କ ସ୍ୱହସ୍ତରେ ପ୍ରଦତ୍ତ ବିବିଧ ଅମୃତତୁଲ୍ୟ ଭୋଜ୍ୟଦ୍ରବ୍ୟ ତ୍ୟାଗ କରି ଆମେମାନେ ବନ ମଧ୍ୟରେ କଷାୟ, କଟୁ, ତିକ୍ତ, କ୍ଷାର, ରୂକ୍ଷ ଫଳମାନ ଖାଇପାରିବୁ ନାହିଁ । ତାହା ଶୁଣି ଅଶ୍ରୁପ୍ଲାବିତ ଦୃଷ୍ଟିରେ ସେ ( ବାନର ଅଧୂପତି) କହିଲା – ଆରେ ରେ ମୂର୍ଖ ! ତୁମେମାନେ ଏ ସୁଖର ପରିଣାମ ଜାଣିନାହଁ ? ପାପକର୍ମର ରସାସ୍ଵାଦନ ସଦୃଶ ଏ ସୁଖର ପରିଣାମ ବିଷମୟ ହେବ । ତେଣୁ କୁଳର ବିନାଶ ମୁଁ ନିଜେ ଦେଖିପାରିବି ନାହିଁ, ବର୍ତ୍ତମାନ ବଣକୁ ଚାଲିଯାଉଛି ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ତମ୍ରାଟବ୍ୟାମ୍ = ତତ୍ର + ଅଟବ୍ୟାମ୍ । ତତ୍ତ୍ଵତ୍ୱାଶୁକଳୁଷାମ୍ = ତତ୍ + ଶୁକ୍ଳା + ଅଶୁକଳୁଷାମ୍ । ୟୂୟମେତସ୍ୟ ୟୂୟମ୍ + ଏତସ୍ୟ । ପାପର ସାସ୍ଵାଦନ ପ୍ରାୟମେତ ସୁଖମ୍ = ପାପର ସ + ଆସ୍ବାଦନ ପ୍ରାୟମ୍ + ଏତତ୍ + ସୁଖମ୍ । ବିଷବଦ୍ଭବିଷ୍ୟତି = ବିଷବତ୍ + ଭବିଷ୍ୟତି । ତଦହମ୍ = ତତ୍ + ଅହମ୍ । ନାବଲୋକୟିଷ୍ୟାମି = ନ + ଅବଲୋକୟିଷ୍ୟାମି ।

ସମାସ – ରାଜପୁ : = ରାଜ୍ଞ ପୁନଃ, ତୈ (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍‌ପୁରୁଷ) । ସ୍ଵହସ୍ତଦଭାନ୍ = ସ୍ୱସ୍ୟ ହସ୍ତୀ ( ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍ତ୍ଵପୁରୁଷ), ତାଭ୍ୟ ଦତ୍ତମ୍, ତାନ୍ (୩ୟା ତତ୍ତ୍ଵପୁରୁଷ) । ଅଶୁକଳୁଷାମ୍ = ଅଶ୍ରୁଭି କଳୁଷ, ତାମ୍ (ତୃତୀୟା ତତ୍‌ପୁରୁଷ) । କୁଳକ୍ଷୟମ୍ = କୁଳସ୍ୟ କ୍ଷୟମ୍ (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍ତ୍ଵପୁରୁଷ) ।

ସକାରଣବିଭକ୍ତି – ବୟଂ, ସ୍ୱ, ସୂୟଂ, ଅହମ୍ = କଉଁରି ୧ ମା । ରେ ରେ ମୂର୍ଖ =ସମ୍ବୋଧନେ ୧ମା । ସ୍ୱର୍ଗସମାଦୋପଭୋଗାନ୍, ନାନାବିଧାନ୍, ଭକ୍ଷବିଶେମାନ୍, ସ୍ଵହସ୍ତଦତ୍ତାନ୍, ଅମୃତକଳ୍ପାନ୍, ଫଳାନି, ଦୃଷ୍ଟି, ପରିଣାମଂ, କୁଳକ୍ଷୟଂ, ବନମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା । ରାଜପୁତ୍ରୈ = କରଣେ ୩ୟା । ଏତସ୍ୟ, ସୁଖସ୍ୟ = ସମ୍ବନ୍ଧ ୬ଷ୍ଠୀ । ଅଟବ୍ୟା, ପରିଣାମେ ଅଧ୍ଵରଣେ ୭ମୀ ।

ପ୍ରକୃତିପ୍ରତ୍ୟୟ – ଭୋଗ = ଭୁଞ୍ଜ୍ + ଘଣ୍ଟ୍ । ବିଶେଷ = ବି + ଶିଷ୍ + ଘଞ୍ଚେ । ପରିତ୍ୟଜ୍ୟ = ପରି + ତ୍ୟଜ୍ + ଲ୍ୟପ୍ । ଶ୍ରୁତ୍ଵା = ଶୁ + ସ୍କାଚ୍ । ଦୃଷ୍ଟିମ୍ = ଦୃଶ୍ + ଭିନ୍ । କୃତ୍ୱା = କୃ + କ୍ଲାବ୍‌।

Text – 9

ଶ୍ଳୋକ :
उक्तं च- मित्रं व्यसनसंप्राप्तं स्वस्थानं परपीडितम्।
धन्यास्ते ये न पश्यन्ति देशभङ्ग कुलक्षयम् ॥ ५ ॥

ଉକ୍ତ ଚ – ମିତ୍ର ବ୍ୟସନସଂପ୍ରାପ୍ତ ସ୍ଵସ୍ଥାନଂ ପରପୀଡ଼ିତମ୍ ।
ଧନ୍ୟାସ୍ତେ ଯେ ନ ପଶ୍ୟନ୍ତି ଦେଶଭଙ୍ଗ କୁଳକ୍ଷୟମ୍ ॥ ୫ ॥

एवमभिधाय सर्वांस्तान् परित्यज्य स यूथाधिपोऽटव्यां गतः।

ଅନ୍ବୟ – ମିତ୍ର ବ୍ୟସନସଂପ୍ରାଫ୍ର ସ୍ଵସ୍ଥାନଂ ପରପୀଡ଼ିତଂ କୁଳକ୍ଷୟମ୍ – ଯେ ନ ପଶ୍ୟନ୍ତ ତେ ଧନ୍ୟା।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ମିତ୍ରମ୍ = ବନ୍ଧୁ । ବ୍ୟସନ = ଦୁଃଖ ବା ବିପଦ । ପର = ଅନ୍ୟ ବା ଶତ୍ରୁ । କୁଳକ୍ଷୟମ୍ = ବଂଶନଷ୍ଟ । ଯେ = ଯେଉଁମାନେ । ତେ = ସେମାନେ । ଏବମ୍ = ଏହିପରି । ଅଭିଧାୟ = କହି । ପୃଥାଧୂପ = ଦଳପତି ।

ଅନୁବାଦ – ବନ୍ଧୁ ବିପଦରେ ପଡ଼ିବା, ନିଜର ସ୍ଥାନ ଅନ୍ୟଦ୍ଵାରା ଉପୀଡ଼ିତ ହେବା, ଦେଶଭଙ୍ଗ, କୁଳକ୍ଷୟ – ଏସବୁ ଯେଉଁମାନେ ଦେଖନ୍ତି ନାହିଁ, ସେମାନେ ଧନ୍ୟ । ଏହିପରି କହି ସେହି ସମସ୍ତ ବାନରମାନଙ୍କୁ ପରିତ୍ୟାଗ କରି ସେ ଦଳପତି ଅରଣ୍ୟକୁ ଚାଲିଗଲା ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ଧନ୍ୟାସ୍ତେ = ଧନ୍ୟା + ତେ । ଏବମଭିଧାୟ = ଏବମ୍ + ଅଭିଧାୟ । ଯୂଥାଧୂପୋଽଟବ୍ୟାମ୍ = ପୃଥ + ଅଧୂପଃ + ଅଟବ୍ୟାମ୍ ।

ସମାସ – ସ୍ୱସ୍ଥାନମ୍ = ସ୍ଵସ୍ୟ ସ୍ଥାନମ୍ (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍ତ୍ଵପୁରୁଷ) । ପରପୀଡ଼ିତମ୍ = ପରେଣ ପୀଡ଼ିତମ୍ (ତୃତୀୟା ତତ୍‌ପୁରୁଷ) । ଦେଶଭଙ୍ଗମ୍ = ଦେଶସ୍ୟ ଭଙ୍ଗମ୍ (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍‌ପୁରୁଷ) । କୁଳକ୍ଷୟମ୍ = କୁଳସ୍ୟ କ୍ଷୟମ୍ (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍ତ୍ଵପୁରୁଷ) । ଯୂଥାଧୂପଃ = ଯୂଥସ୍ୟ ଅଧୂପ (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍‌ପୁରୁଷ) ।

ସକାରଣବିଭକ୍ତି – ଯେ, ତେ = କଉଁରି ୧ ମା । ମିତ୍ର, ବ୍ୟସନସଂପ୍ରାପ୍ତ, ସ୍ଵସ୍ଥାନଂ, ପରପୀଡ଼ିତ୍ୟ, ଦେଶଭଙ୍ଗ, କୁଳକ୍ଷୟମ୍ : କର୍ମଣି ୨ୟା । ଅଟବ୍ୟାମ୍ = ଅଧୂକରଣେ ୭ମୀ ।

ପ୍ରକୃତିପ୍ରତ୍ୟୟ – ପ୍ରାପ୍ତମ୍ = ପ୍ର + ଆପ୍ + କ୍ତ । ଗତଃ = ଗମ୍ + କ୍ତ । ଅଭିଧାୟ = ଅଭି + ଧା + ଲ୍ୟାପ୍ । ପରିତ୍ୟଜ୍ୟ = ପରି + ତ୍ୟଜ୍ + ଲ୍ୟାପ୍ ।

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 4 ଚନ୍ଦ୍ରଭୂପତିକଥା

Text – 10

अथ तस्मिन् गते ……………………………… जनसमूहमाकुलीचक्रुः।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ଅଥ = ଏହାପରେ । ଅହନି = ଦିନରେ । ମେଷ = ମେଣ୍ଢା । ମହାନସେ = ରୋଷେଇଶାଳରେ । ସୂପକାରେଣ = ପାଚକଦ୍ବାରା । କିଂଚିତ୍ କିଛି । ସମାସାଦିତମ୍ = ପାଇବା । ତାଲ୍ୟମାନମ୍ = ବାଡ଼େଇ । ଅଶ୍ଵକୁଟ୍ୟାମ୍ = ଅଶ୍ୱଶାଳାକୁ । ପ୍ରବିଷ୍ଟ = ପ୍ରବେଶ କଲା । କ୍ଷିତୌ = ଭୂମିରେ । ପ୍ରଭୁପତଃ = ଲୋଟିବାରୁ । ପଞ୍ଚତ୍ୱମ୍ = ମୃତ୍ୟୁକୁ । ତ୍ରୋଟୟିତ୍ୱ = ଫିଟାଇ ବା ଛିଡ଼ାଇ । ଇତଶ୍ଚେତଶ୍ଚ = ଏଣେତେଣେ । ତ୍ରେଷାୟମାଣା = ଘୋଡ଼ାଦ୍ଵାରା କରାଯାଉଥ‌ିବା ଶବ୍ଦ ।

ଅନୁବାଦ – ଏହାପରେ ସେ ଚାଲିଯା’ନ୍ତେ ଦିନେ ସେହି ମେଣ୍ଟାଟି ରନ୍ଧନଶାଳାରେ ପ୍ରବେଶ କଲା । ପାଚକ ଅନ୍ୟ କିଛି ନପାଇ ଜଳନ୍ତା କାଷ୍ଠଖଣ୍ଡରେ ତାକୁ ପ୍ରହାର କରିବାରୁ ସେ ଜ୍ଵଳନ୍ତ ଶରୀରରେ ଚିତ୍କାର କରି କରି ନିକଟବର୍ତ୍ତୀ ଅଶ୍ୱଶାଳାରେ ପ୍ରବେଶ କଲା । ସେଠାରେ ସେ ତୃଣପୂର୍ଣ୍ଣ ଭୂମିରେ ଲୋଟିବାରୁ ସର୍ବତ୍ର ଏପରି ଅଗ୍ନିଶିଖା ଉଠିଲା ଯେ କେତେକ ଅଶ୍ଵ ଚକ୍ଷୁ ହରାଇ ମୃତ୍ୟୁମୁଖରେ ପଡ଼ିଲେ । କେତେକ ଅଶ୍ବ ବନ୍ଧନ ଛିନ୍ନକରି ଅର୍ଦ୍ଧଦଗ୍‌ଧ ଶରୀରରେ ବ୍ରେଷାରାବ କରି ଏଣେତେଣେ ଧାଇଁବାକୁ ଲାଗିଲେ । ଏହାଫଳରେ ଲୋକମାନେ ବ୍ୟାକୁଳ ହୋଇପଡ଼ିଲେ ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ଗତେଽନ୍ୟ ସ୍ମିନ୍ନହନି = ଗତେ + ଅନ୍ୟସ୍ଥିନ୍ + ଅହନି । ନାନ୍ୟତ୍ = ନ + ଅନ୍ୟତ୍ । ତାବଦର୍ଧଜ୍ଜ୍ବଳିତକାଷ୍ଟେନ = ତାବତ୍ + ଅର୍ଧଜ୍ବଳିତକାଷ୍ଟେନ । ଶବ୍ଦାୟମାନୋଽଶ୍ଵକୁଟ୍ୟାମ୍ = ଶବ୍ଦାୟମାନଃ + ଅଶ୍ଵକୁଟ୍ୟାମ୍ । ପ୍ରତ୍ୟାସନ୍ନବର୍ଲିନ୍ୟାମ୍ = ପ୍ରତି + ଆସନ୍ନବର୍ଷିନ୍ୟାମ୍ । ସର୍ବତ୍ରାପି = ସର୍ବତ୍ର + ଅପି । ବହ୍ନିଜ୍ଵାଳାସ୍ତଥା = ବହ୍ନିଜ୍ୱାଳା + ତଥା । କେଚିଦଶଃ = କେଚିତ୍ + ଅଶ୍ୱ । ଇତଶ୍ଵେତଶ୍ଚ = ଇତଃ + ଚ + ଇତଃ + ଚ । ସର୍ବମପି = ସର୍ବମ୍ + ଅପି । ଜନସମୂହମାକୁଳୀଚତୁଃ = ଜନସମୂହମ୍ + ଆକୁଳୀଚତୁଃ ।

ସମାସ – ସୂପକାରେଣ = ସୂପିଂ କରୋତି ଇତି, ତେନ (ଉପପଦ ତତ୍‌ପୁରୁଷ) । ଅଶ୍ଵକୁଟ୍ୟାମ୍ = ଅଶ୍ୱସ୍ୟ କୁଟୀ, ତସ୍ୟାମ୍ (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍‌ପୁରୁଷ) । ବହ୍ନିଜ୍ୱାଳା = ବହିଃ ଜ୍ଵାଳା (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍ତ୍ଵପୁରୁଷ) । ଜନସମୂହମ୍ = ଜନାନାଂ ସମୂହଃ, ତମ୍ (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍ତ୍ଵପୁରୁଷ) ।

ସକାରଣବିଭକ୍ତି – ସ୍ୱ, ମେଷ, ଅଶ୍ଳୀ, ସ୍ଫୁଟିତଲୋଚନା, ଅର୍ଦ୍ଧଦଗ୍‌ଧଶରୀରା, ଶ୍ଳେଷାୟମାଣା, ଧାବମାନଃ = କଉଁରି ୧ ମା । ତାତ୍ସ୍ୟମାନଃ, ଜାଜ୍ୱଲ୍ୟମାନଶରୀରଃ = ଉକ୍ତ କର୍ମଣି ୧ ମା । ସୂପକାରେଣ, ଅର୍ଧଜ୍ବଳିତକାଷ୍ଟେନ = ଅନୁସ୍ତେ କଉଁରି ୩ୟା । ପଞ୍ଚତ୍ୱ, ଜନସମୂହଂ, ବନ୍ଧନାନି = କର୍ମଣି ୨ୟା । ପ୍ରଭୁପତଃ = ଅପାଦାନେ ୫ମୀ । ତସ୍ୟ = ସମ୍ବନ୍ଧ ୬ଷ୍ଠୀ । ତସ୍ମିନ୍, ଗତେ = ଭାବେ ୭ମୀ । ଅନ୍ୟସ୍ମିନ୍, ଅହନି, ମହାନସେ, ଅଶ୍ବକୁଟିଂ, ଆସନ୍ନବର୍ଷିନ୍ୟା, ତୃଣପ୍ରାଚୁର୍ଯ୍ୟଯୁକ୍ତାୟାଂ, କ୍ଷିତୌ = ଅଧ୍ଵରଣେ ୭ମୀ ।

ପ୍ରକୃତି ପ୍ରତ୍ୟୟ – ପ୍ରବିଷ୍ଟ = ପ୍ର + ବିଶ୍ + କ୍ତ । ସମାସାଦିତମ୍ = ସମ୍ + ଆ + ସଦ୍ + ଣିଚ୍ + କ୍ତ । ଗତଃ = ଗମ୍ + କ୍ତ । ତ୍ରୋଟୟିତ୍ୱ = ତ୍ରୁଟ୍ + ଣିଚ୍ + କ୍ସାଚ୍ । ଧାବମାନଃ = ଧାବ୍‌ + ଶାନଚ୍ ।

Text – 11

अत्रान्तरे राजा ……………………………….. शालिहोत्रेण यत्-

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ଅଶ୍ରାନ୍ତରେ = ଏହାପରେ । ସବିଷାଦଃ = ଦୁଃଖପୂର୍ଣ୍ଣ । ଶାଳିହୋତ୍ରଜ୍ଞାନ୍ = ଘୋଡ଼ାମାନଙ୍କର ଚିକିତ୍ସକମାନଙ୍କୁ । ଆହୂୟ = ଡାକି । ପ୍ରୋଚ୍ୟତାମ୍ = କୁହନ୍ତୁ । ଉପାୟ = କୌଶଳ । ତେ = ସେମାନେ । ଅପି = ମଧ୍ୟ । ବିଲୋକ୍ୟ = ଦେଖ୍ । ଅତ୍ର = ଏଠାରେ ।

ଅନୁବାଦ – ଏହି ଅବସରରେ ରାଜା ବିଷଣ୍ଣ ହୋଇ ଶାଳିହୋତ୍ରଶାସ୍ତ୍ରଜ୍ଞ ବୈଦ୍ୟମାନଙ୍କୁ ଡକାଇ କହିଲେ – ଆହେ ! ଏହି ଅଶ୍ଵମାନଙ୍କର ଦାହଜନିତ ବ୍ୟଥାର ଉପଶମ ପାଇଁ କୌଣସି ଉପାୟ କୁହ । ସେମାନେ ମଧ୍ୟ ଶାସ୍ତ୍ରମାନ ଦେଖୁ କହିଲେ – ହେ ମହାରାଜ ! ଏ ବିଷୟରେ ଭଗବାନ୍ ଶାଳିହୋତ୍ର କହିଅଛନ୍ତି ଯେ –

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ଅତ୍ରାନ୍ତରେ = ଅତ୍ର + ଅନ୍ତରେ । ବୈଦ୍ୟାନାହ୍‌ୟ = ବୈଦ୍ୟାନ୍ + ଆହୂୟ । ପ୍ରୋଚ୍ୟତାମେଷାମଶ୍ଵାନାମ୍ = ପ୍ରୋଚ୍ୟତାମ୍ + ଏଷାମ୍ + ଅଶ୍ବିନାମ୍ । କଣ୍ଟିଦ୍ଦାହୋପଶ୍ଚିମନୋପାୟଃ = କଶ୍ଚିତ୍ + ଦାହ + ଉପଶମନ + ଉପାୟ । ତେଽପି = ତେ + ଅପି । ପ୍ରୋକ୍ତମତ୍ର = ପ୍ରୋକ୍ତମ୍ + ଅତ୍ର ।

ସମାସ – ସବିଷାଦଃ = ବିଷାଦେନ ସହ ବର୍ତ୍ତମାନଃ (ସହାର୍ଥ ବହୁବ୍ରୀହିଃ) ।

ସକାରଣବିଭକ୍ତି – ରାଜା, ତେ = କଉଁରି ୧ ମା । ଭୋ !, ଦେବ ! = ସମ୍ବୋଧନେ ୧ମା । ଶାଳିହୋତ୍ରଜ୍ଞାନ୍, ବୈଦ୍ୟାନ୍, ଶାସ୍ତ୍ରାଣି = କର୍ମଣି ୨ୟା । ଭଗବତା, ଶାଳିହୋତ୍ରେଣ = ଅନୁସ୍ତେ କଉଁରି ୩ୟା । ଏଷାମ୍, ଅଶ୍ଵାନାମ୍ = ସମ୍ବନ୍ଧ ୬ଷ୍ଠୀ । ବିଷୟ = ଅଧିକରଣେ ୭ମୀ ।

ପ୍ରକୃତିପ୍ରତ୍ୟୟ – ବିଷାଦ = ବି + ଷଦ୍ + ଘଞ୍ଜ୍ । ବିଲୋକ୍ୟ = ବି + ଲୋକ୍ + ଲ୍ୟାପ୍ । ପ୍ରୋକ୍ତମ୍ = ପ୍ର + ବଚ୍ + କ୍ତ ।

Text – 12

ଶ୍ଳୋକ :
कपीनां मेदसा दोषो वह्निदाहसमुद्भवः।
अश्वानां नाशमभ्येति तमः सूर्य्योदये यथा ॥ ६ ॥

କପୀନାଂ ମେଦସା ଦୋଷେ ବହ୍ନିଦାହସମୁଦ୍‌ଭବାଃ ।
ଅଶ୍ଵାନାଂ ନାଶମସ୍ତେତି ତମଃ ସୂର୍ଯ୍ୟୋଦୟେ ଯଥା || ୬ ||

ଅନ୍ବୟ – ସୂର୍ଯ୍ୟୋଦୟେ ଯଥା ତମ ନାଶମ୍ ଅଭ୍ୟତି, (ତଥା) କପୀନାଂ ମେଦସା ଅଶ୍ଵାନାଂ ବହ୍ନିଦାହସମୁଦ୍‌ଭବାଃ ଦୋଷ ନାଶମ୍ ଅଜ୍ୟୋତି ।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ଯଥା = ଯେପରି । ତମଃ = ଅନ୍ଧକାର । ନାଶମ୍ = ନଷ୍ଟ । ଅଭ୍ୟତି = ହୋଇଥାଏ । କପୀନାମ୍ = ମାଙ୍କଡ଼ମାନଙ୍କର । ମେଦସା = ମେଦଦ୍ୱାରା ।

ଅନୁବାଦ – ସୂର୍ଯ୍ୟୋଦୟ ହେଲେ ଅନ୍ଧକାର ଯେପରି ଦୂର ହୋଇଥାଏ, ବାନରମାନଙ୍କର ମେଦଦ୍ଵାରା ଅଶୁମାନଙ୍କର ଦାହଜନିତ ରୋଗ ସେହିପରି ବିନଷ୍ଟ ହୋଇଥାଏ ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ନାଶମଜ୍ୟୋତି = ନାଶମ୍ + ଅଭ୍ୟତି ।

ସମାସ – ସୂର୍ଯ୍ୟୋଦୟେ = ସୂର୍ଯ୍ୟସ୍ୟ ଉଦୟଃ, ତସ୍ମିନ୍ (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍‌ପୁରୁରଃ) ।

ସକାରଣବିଭକ୍ତି – ବହ୍ନିଦାହସମୁଦ୍‌ଭବାଃ, ଦୋଷୀ = କଉଁରି ୧ ମା । ମେଦସା = କରଣେ ୩ୟା । ଅଶ୍ୱିନାଂ, କପୀନାମ୍ = ସମ୍ବନ୍ଧ ୬ଷ୍ଠୀ । ସୂର୍ଯ୍ୟୋଦୟେ = ଅଧୀକରଣେ ୭ମୀ ।

ପ୍ରକୃତିପ୍ରତ୍ୟୟ – ଦୋଷୀ = ଦୁଷ୍ + ଘଞ୍ଚ।

Text – 13

तत्क्रियताम् ……………………………….. व्यापादिता इति।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ଦ୍ରାଗ୍ = ଶୀଘ୍ର । ଆକର୍ୟ୍ଯ = ଶୁଣି । ଆଦିଷ୍ଟବାନ୍ = ଆଦେଶ ଦେଲେ । ଲଗୁଡ଼ = ବାଡ଼ି । ପାଷାଣ = ପଥର । ବ୍ୟାପାଦିତା = ମରିଗଲେ ।

ଅନୁବାଦ – ତେଣୁ ଅତିଶୀଘ୍ର ଏହି ଚିକିତ୍ସା କରାଯାଉ, ଯେପରିକି ଅଶୁମାନେ ଅଗ୍ନିଦାହ ଯୋଗୁଁ ମୃତ୍ୟୁମୁଖରେ ନ ପଡ଼ନ୍ତି । ସେ ମଧ୍ୟ ତାହା ଶୁଣି ସମସ୍ତ ବାନରମାନଙ୍କୁ ମାରିବାପାଇଁ ଆଦେଶ ଦେଲେ । ଅଧୂକ କହିବା ନିଷ୍ପ୍ରୟୋଜନ । ସେ ସମସ୍ତ ବାନରମାନେ ମଧ୍ୟ ବିଭିନ୍ନ ଅସ୍ତ୍ର, ବାଡ଼ି, ପଥରାଦିଦ୍ୱାରା ନିହତ ହେଲେ ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ତକ୍ରିୟତାମେତଚିକିତ୍ସିତମ୍ = ତତ୍ + କ୍ରିୟତାମ୍ + ଏତତ୍ + ଚିକିତ୍ସିତମ୍ । ଯାବନୈତେ = ଯାବତ୍ + ନ + ଏତେ । ସୋଽପି = ଡଃ + ଅପି । ତଦାକର୍ୟ୍ଯ ତତ୍ + ଆକର୍ୟ୍ୟ । ସର୍ବେଽପି = ସର୍ବେ + ଅପି । ବିବିଧାୟୁଧଲଗୁଡ଼ପାଷାଣାଦିଭିବ୍ୟାପାଦିତା = ବିବଧ + ଆୟୁଧଲଗୁଡ଼ପାଷାଣ + ଆଦିଭଃ + ବ୍ୟାପାଦିତା ।

ସମାସ – ଦାହଦୋଷେଣ = ଦାହଜନିତ ଦୋଷୀ, ତେନ (ମଧ୍ୟପଦଲୋପୀ କର୍ମଧାରୟ) । ବାନରବଧମ୍ = ବାନରାମାଂ ବଧମ୍ (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍ତ୍ଵପୁରୁଷ) ।

ସକାରଣବିଭକ୍ତି – ଏତେ, ବାନରାଃ = କଉଁରି ୧ମା । ସ୍ୱ, ସର୍ବେ = ଅପି ଅବ୍ୟୟ ଯୋଗେ ୧ମା । ବଧମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା । ଦାହଦୋଷଣ, ବିବିଧାୟୁଧଲଗୁଡ଼ପାଷାଣାଦିଭି, ଅଟବ୍ୟାମ୍ = କରଣେ ୩ୟା ।

ପ୍ରକୃତିପ୍ରତ୍ୟୟ – ଆକର୍ୟ୍ଯ = ଆ + କଣ୍ଠ + ଲ୍ୟାପ୍ । ଆଦିଷ୍ଟବାନ୍ = ଆ + ଦିଶ୍ + କ୍ତବତୁ । ବ୍ୟାପାଦିତଃ = ବି + ଆ + ପଦ୍ + ଣିଚ୍ + କ୍ତ ।

Text – 14

अथ सोऽपि ………………………………. करिष्यामि? उक्तंच-

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ଅଥ = ଏହାପରେ । ଅପି = ମଧ୍ୟ । ସୁତ = ପୁତ୍ର । ସଂକ୍ଷୟମ୍ = ମୃତ୍ୟୁ । ବିଷାଦମ୍ = ଦୁଃଖକୁ । ବନାଦ୍ : ବଣରୁ । ପର୍ଯ୍ୟଟତି = ଭ୍ରମଣ କରିଛି । ଅପସଦସ୍ୟ = ଅଧମର । ଅପକୃତ୍ୟମ୍ = ଅନିଷ୍ଟକୁ ।

ଅନୁବାଦ – ଏହାପରେ ସେ ବାନରଦଳପତି ମଧ୍ୟ ସେହି ପୁଅ, ନାତି, ଭାଇର ପୁଅ, ଭଉଣୀ ପୁଅ ଆଦିଙ୍କର ନିଧନକୁ ଜାଣି ଅତ୍ୟନ୍ତ ଦୁଃଖୁତ ହେଲା । ସେ ଆହାର ତ୍ୟାଗକରି ବଣରୁ ବଣକୁ ବୁଲିଛି ଓ ଚିନ୍ତା କରିଛି, କିପରି ମୁଁ ସେହି ଅଧମ ରାଜାର ପ୍ରତିଶୋଧ ନେଇ ତା’ର ଅନିଷ୍ଟ ସାଧନ କରିବି ? କୁହାଯାଇଛି –

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ସୋଽପି = ନଃ + ଅପି । ବାନରଯୂଥପସ୍ତମ୍ଭ = ବାନରଯୂଥପଃ + ତମ୍ । ବିଷାଦମୁପାଗତଃ = ବିଷାଦମ୍ + ଉପାଗତଃ । ତ୍ୟକ୍ତାହାରକ୍ରିୟ = ତ୍ୟକ୍ତ + ଆହାରକ୍ରିୟା । ବନାଦ୍‌ନମ୍ = ବନାତ୍ + ବନମ୍ । ଅଚିନ୍ତୟଜ = ଅଚିନ୍ତୟତ୍ + ଚ । କଥମହମ୍ = କଥମ୍ + ଅହମ୍ । ନୃପାପସଦସ୍ୟାମୃଣତାକୃତ୍ୟେନାପକୃତ୍ୟମ୍ ନୃପ + ଅପସଦସ୍ୟ + ଅନ୍ଧଣତା + ଅକୃତ୍ୟେନ + ଅପକ୍ବତ୍ୟମ୍ ।

ସର୍ମାସ – ବାନରଯୂଥପଃ = ବାନରାଣା ପୃଥୀ (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍‌ପୁରୁଷ), ତଂ ପାତି ଇତି (ଉପପଦ ତତ୍‌ପୁରୁଷ) । ତ୍ୟକ୍ତାହାରକ୍ରିୟଃ = ତ୍ୟକ୍ତା ଆହାରକ୍ରିୟା ଯେନ ଡଃ (ବହୁବ୍ରୀହିଃ) ।

ସକାରଣବିଭକ୍ତି – ବାନରଯୂଥପଃ, ସ୍ୱ, ତ୍ୟକ୍ତଆହାରକ୍ରିୟା, ଅହମ୍ = କଉଁରି ୧ମା । ତଂ, ସଂକ୍ଷୟଂ, ବିଷାଦଂ, ବନଂ, ଅପକୃତ୍ୟମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା । ବନାତ୍ = ଅପାଦାନେ ୫ମୀ । ତସ୍ୟ = ସମ୍ବନ୍ଧ ୬ଷ୍ଠୀ ।

ପ୍ରକୃତିପ୍ରତ୍ୟୟ – ଜ୍ଞାତ୍ମା = ଜ୍ଞା + ସ୍କାଚ୍ । ତ୍ୟକ୍ତା = ତ୍ୟଜ୍ + କ୍ତ ।

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 4 ଚନ୍ଦ୍ରଭୂପତିକଥା

Text – 15

ଶ୍ଳୋକ :
मर्षयेद्धर्षणां योऽत्र वंशजां परनिर्मिताम्।
भयद्वा यदि वा कामात् स ज्ञेयः पुरुषाधमः ॥ ७ ॥

ମର୍ଷୟେଦ୍ଧର୍ଷଣଂ ଯୋଽତ୍ରବଂଶଂ ପରନିର୍ମିତାମ୍ ।
ଭୟଦ୍‌ ଯଦି ବା କାମାତ୍ ସ ଜ୍ଞେୟଃ ପୁରୁଷାଧମଃ ॥ ୭॥

ଅନ୍ୱୟ – ଅତ୍ର ଯଃ ଭୟାତ୍ ବା କାମାତ୍ ବା ଯଦି ବଂଶଜା ପରନିର୍ମିତାଂ ଧର୍ଷଣା ମର୍ଷୟେତ୍ ଡଃ ପୁରୁଷାଧମଃ ଜ୍ଞେୟଃ । ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ଅତ୍ର = ଏଠାରେ (ସଂସାରରେ) । ଭୟାତ୍ = ଭୟ ହେତୁରୁ । କାମାତ୍ = କାମ ହେତୁରୁ । ବଂଶଜାମ୍ = ନିଜର ବଂଶଜମାନଙ୍କର । ପର = ଶତ୍ରୁ । ଧର୍ଷଣାମ୍ = ଅତ୍ୟାଚାରକୁ । ମର୍ଷୟେତ୍ = ସହିଯାଇପାରେ । ଜ୍ଞେୟଃ = ବୋଲାଏ ବା ଜଣାପଡ଼େ ।

ଅନୁବାଦ – ଏ ସଂସାରରେ ଯେଉଁ ଲୋକ ଭୟ ହେତୁରୁ ଅଥବା ଲୋଭ ହେତୁରୁ ନିଜ ନିଜ କୁଳ ପ୍ରତି ଶତ୍ରୁର ଅତ୍ୟାଚାରକୁ ସହିଯାଏ, ସେ ପୁରୁଷମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ନିତାନ୍ତ ଅଧମରୂପେ ପରିଗଣିତ ହୁଏ ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ମର୍ଷୟେଦ୍ଧର୍ଷଣାମ୍ = ମର୍ଷୟେତ୍ + ଧର୍ଷଣାମ୍ । ଯୋଽତ୍ର = ଯଃ + ଅତ୍ର । ଭୟାଦ୍‌ବା = ଭୟାତ୍ + ବା । ପୁରୁଷାଧମଃ = ପୁରୁଷ + ଅଧମଃ ।

ସମାସ – ପରନିର୍ମିତାମ୍ = ପରଃ ନିର୍ମିତଃ, ତେଷାମ୍ (ତୃତୀୟା ତତ୍‌ପୁରୁଷ) ।

ସକାରଣବିଭକ୍ତି – ଯଃ, ସ୍ୱ, ପୁରୁଷାଧମଃ = କଉଁରି ୧ ମା । ଭୟାତ୍, କାମାତ୍ = ହେତୌ ୫ମୀ । ଧର୍ଷଣା, ବଂଶଜଂ, ପରନିର୍ମିତାମ୍ = ସମ୍ବନ୍ଧ ୬ଷ୍ଠୀ ।

ପ୍ରକୃତିପ୍ରତ୍ୟୟ – ଜ୍ଞେୟଃ = ଜ୍ଞା + ଯତ୍ !

Text – 16

अथ तेन वृद्धवानरेण ……………………… तत् कर्त्तव्यमिति।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ପିପାସା = ତୃଷା । ସରଃ = ପୁଷ୍କରିଣୀ । ପଦପଂକ୍ତି = ପାଦଚିହ୍ନ । ନିଷ୍କ୍ରମଣମ୍ = ଲେଉଟିବା ବା ଫେରିବା । ନୂନମ୍ = ନିଶ୍ଚୟ । ପଦ୍ମିନୀନାଳମ୍ = ପଦ୍ମନାଡ଼ । ନିଷ୍କ୍ରମ = ବାହାରି । ସଲିଳେ = ଜଳରେ । ମେ = ମୋର । ଧୂନଃ = ଶଠ । ତୁଷ୍ଟ = ସନ୍ତୁଷ୍ଟ । ବାଞ୍ଛମ୍ = ଇଚ୍ଛିତ । କପି = ମାଙ୍କଡ଼ । ବାହ୍ୟତଃ = ବାହାରୁ । ଆହ = କହିଲା । ବୈରମ୍ = ଶତ୍ରୁତା । ଭୂପତିମ୍ = ରାଜାଙ୍କୁ । ବାକ୍ସପ୍ରପଞ୍ଚେନ = କଥା ଛଳରେ । ଶ୍ରୁତ୍ୱା = ଶୁଣି । ଦତ୍ତା = ଦେଇ ।

ଅନୁବାଦ – ଏହାପରେ ସେହି ବାନର ତୃଷାତୁର ହୋଇ ଭ୍ରମଣ କରୁ କରୁ କମଳ ପରିପୂର୍ଣ୍ଣ ଏକ ପୁଷ୍କରିଣୀ ନିକଟରେ ପହଞ୍ଚିଲା । ସେ ସୂକ୍ଷ୍ମଭାବରେ ନିରୀକ୍ଷଣ କରି ଦେଖୁଲା ଯେ ବନବାସୀ ମନୁଷ୍ୟମାନଙ୍କର ସରୋବରରେ ପ୍ରବେଶ କରିବାର ପାଦଚିହ୍ନ ରହିଛି; କିନ୍ତୁ ଫେରିଆସିବାର ପାଦଚିହ୍ନ ନାହିଁ । ତେଣୁ ସେ ଚିନ୍ତାକଲା ଯେ ନିଶ୍ଚୟ ଏଠାରେ ଜଳ ମଧ୍ଯରେ ଏକ ଦୁଷ୍ଟଗ୍ରାହ ରହିଅଛି । ତେଣୁ ପଦ୍ମନାଡ଼ ଧରି ଦୂରରୁ ରହି ଜଳପାନ କରିବି । ସେହିପରି କରନ୍ତେ ସେ ମଧ୍ୟରୁ ଏକ ରାକ୍ଷସ ବାହାରି କଣ୍ଠରେ ରନ୍ଧମାଳା ଧାରଣ କରି ତାକୁ କହିଲା – ଆହେ ଏଠାରେ ଯେ ପାଣି ମଧ୍ୟରେ ପ୍ରବେଶ କରେ ସେ ମୋର ଭକ୍ଷଣୀୟ ହୋଇଥାଏ । କିନ୍ତୁ ଏପରି କୌଶଳୀ ଚତୁର ଲୋକ ନାହିଁ, ଯେକି ତୁମ ଭଳି ଏ ଉପାୟରେ ଜଳପାନ କରିବ, ତେଣୁ ମୁଁ ସନ୍ତୁଷ୍ଟ । ମନର ଇଚ୍ଛାନୁସାରେ ବର ପ୍ରାର୍ଥନା କର । ମାଙ୍କଡ଼ କହିଲା – ଆହେ ! ତୁମର ଭୋଜନ କରିବାର ଶକ୍ତି କେତେ ? ସେ କହିଲା ଜଳରେ ପ୍ରବେଶ କରୁଥିବା ଶତ, ସହସ୍ର, ଅୟୁତ, ଲକ୍ଷ ପ୍ରାଣୀଙ୍କୁ ମଧ୍ୟ ଭକ୍ଷଣ କରିପାରେ, ବାହାରୁ ଶୃଗାଳ ମଧ୍ୟ ମୋତେ ଅପମାନିତ କରିଥାଏ । ବାନର କହିଲା, ଜଣେ ରାଜା ସହିତ ମୋର ଘୋର ଶତ୍ରୁତା ରହିଛି । ଯଦି ଏହି ରମାଳାଟିକୁ ମୋତେ ପ୍ରଦାନ କରିବ ତେବେ ସପରିବାର ମଧ୍ୟ ସେହି ରାଜାଙ୍କୁ କଥାଛଳରେ ଲୋଭ ଦେଖାଇ ଏହି ପୁଷ୍କରିଣୀରେ ଯେପରି ପ୍ରବେଶ କରିବେ ସେହିପରି କରିବି । ସେ ରାକ୍ଷସ ମଧ୍ୟ ତା’ର ଶ୍ରଦ୍ଧାପୂର୍ଣ୍ଣ ବଚନ ଶୁଣି ରନ୍ଥମାଳାଟି ଦେଇ କହିଲା – ହେ ମିତ୍ର ! ଯାହା ଉଚିତ ମନେକରୁଛ, ତାହା କରିବା ଉଚିତ ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ପିପାସାକୁଳେନ = ପିପାସା + ଆକୁଳେନ । ତଦ୍‌ବସୂକ୍ଷେକ୍ଷିକୟାବଲୋକୟତି = ତତ୍ + ଯାବତ୍ + ସୂକ୍ଷ୍ମ + ଇକ୍ଷିକୟା + ଅବଲୋକୟତି । ତାବଦ୍‌ବନଚର = ତାବତ୍ + ବନଚର । ପଦପଂକ୍ତିପ୍ରବେଶୋଽସ୍ତି = ପଦପଂକ୍ତିପ୍ରବେଶଃ + ଅସ୍ତି । ତତଶ୍ଚିନ୍ତିତମ୍ = ତତଃ + ଚିନ୍ତିତମ୍ । ନୂନମତ୍ର = ନୂନମ୍ + ଅତ୍ର । ପଦ୍ମିନୀନାଳମାଦାୟ = ପଦ୍ମିନୀନାଳମ୍ + ଆଦାୟ । ଦୂରସ୍ପୋଽପି ଦୂରହଃ + ଅପି । ତଥାନୁଷ୍ଠିତେ = ତଥା + ଅନୁଷ୍ଠିତେ । ତନ୍ମଧ୍ୟାଦ୍ରାକ୍ଷକଃ = ତତ୍ + ମଧ୍ୟାତ୍ + ରାକ୍ଷମଃ । ରମାଳାବିଭୂଷିତକଣ୍ଠସ୍ତମୁବାଚ = ରତ୍ନମାଳାବିଭୂଷିତକଣ୍ଠ + ତମ୍ + ଉବାଚ । ତନ୍ନାସ୍ତି = ତତ୍ + ନ + ଅସ୍ଥି । ଧୂର୍ରତରତ୍ୱମୋଽନ୍ୟା = ଧୂରତରଃ + ତ୍ଵତ୍ଵସମଃ + ଅନ୍ୟ । ଯତ୍ପାନୀୟମନେନ = ଯତ୍ + ପାନୀୟମ୍ + ଅନେନ । ତତସ୍ତୁଷ୍ଟୋଽହମ୍ = ତତଃ + ତୁଷ୍ଟ + ଅହମ୍ । କପିରାହ = କପି + ଆହ । ଶୃଗାଳୋଽପି = ଶୃଗାଳ + ଅପି । ସହାତ୍ୟନ୍ତମ୍ = ସହ + ଅତ୍ୟନ୍ତମ୍ଭ । ଯଦ୍ୟନାମ୍ = ଯଦି + ଏନାମ୍ । ସୋଽପି = ପଃ + ଅପି । ବଚସ୍ତସ୍ୟ = ବତଃ + ତଥ୍ୟ । କର୍ତ୍ତବ୍ୟମିତି କର୍ତ୍ତବ୍ୟମ୍ + ଇତି ।

ସମାସ – ବୃଦ୍ଧିବାନରେଣ = ବୃଦ୍ଧ ବାନରଃ, ତେନ (କର୍ମଧାରୟ) । ପିପାସାକୁଳେନ = ପିପାସୟା ଆକୁଳ, ତେନ (ତୃତୀୟା ତତ୍ତ୍ଵପୁରୁଷ) । ବନଚର = ବନେ ଚରତି ଇତି (ଉପପଦ ତତ୍ତ୍ଵପୁରୁଷ) । ଜଳାନ୍ତେ = ଜଳସ୍ୟ ଅନ୍ତଃ, ତସ୍ମିନ୍ (ଷଷ୍ଠୀ ତପୁରୁଷ ) । ଦୂରସ୍ଥ = ଦୂରେ ତିଷ୍ଠତି ଇତି (ଉପପଦ ତତ୍‌ପୁରୁରଃ) । ଭୂପତିନା = ଭୂନଃ ପତିଃ, ତେନ (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍‌ପୁରୁଷ) । ରନ୍ଧମାଳାମ୍ = ରନ୍‌ସ୍ୟ ମାଳା, ତାମ୍ ( ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍‌ପୁରୁଷ) । ସପରିବାରମ୍ = ପରିବାରେଣ ସହ ବର୍ତ୍ତମାନମ୍ (ସହାର୍ଥ ବହୁବ୍ରୀହିଃ) । ବାକ୍ସପ୍ରପଞ୍ଚେନ = ବାସ୍ୟା ପ୍ରପଞ୍ଚମ୍, ତେନ (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍ତ୍ଵପୁରୁଷ) ।

ସକାରଣବିଭକ୍ତି – ପଦପଂକ୍ତିପ୍ରବେଶଃ, ରାକ୍ଷସ୍ୱ, ଯଃ, ସ୍ୱ, ଅହଂ, କପି, ଭକ୍ଷଣଶନ୍ତଃ, ବାନରଃ = କଉଁରି ୧ମା । ଭୋ !, ଭୋ ମିତ୍ର ! = ସମ୍ବୋଧନେ ୧ମା । ପଦ୍ମିନୀଖଣ୍ଡମଣ୍ଡିତଃ, ସରଃ = ଉକ୍ତ କର୍ମଣି ୧ ମା । ଦୂରସ୍ଥ, ଶୃଗାଳୀ, ସ = ଅପି ଅବ୍ୟୟ ଯୋଗେ ୧ମା । ପଦ୍ମିନୀ ନାନଂ, ଜଳଂ, ପ୍ରବେଶଂ, ମାଂ, ଏକାଂ, ରନୁମାଳା, ତଂ, ଭୂପତଂ, ଶ୍ରଦ୍ଧେୟଂ, ବତଃ = କର୍ମଣି ୨ୟା । ତେନ, ବୃଦ୍ଧବାନରେଣ = ଅନୁସ୍ତେ କଉଁରି ୩ୟା । ପିପାସାକୁଳେନ, ଭ୍ରମତା, ଦୁଷ୍ଟଗ୍ରାହେଣ, ଅନେନ, ବିଧ, ବାକ୍ସପ୍ରପଞ୍ଚେନ = କରଣେ ୩ୟା । ଭୂପତିନା = ସହ ଯୋଗେ ୩ୟା । ମେ = ସଂପ୍ରଦାନେ ୪ର୍ଥୀ । ତନ୍ମଧ୍ୟାତ୍ = ଅପାଦାନେ ୫ମୀ । ମନୁଷ୍ୟାମାଂ, ତେ = ସମ୍ବନ୍ଧ ୬ଷ୍ଠୀ । ଅନୁଷ୍ଠିତେ = ଭାବେ ସପ୍ତମୀ । ଜଳାନ୍ତେ, ସଲିଳେ, ସରସି = ଅଧୂକରଣେ ୭ମୀ ।

ପ୍ରକୃତିପ୍ରତ୍ୟୟ – ସମାସାଦିତମ୍ = ସମ୍ + ଆ + ସଦ୍ + ଣିଚ୍ + କ୍ତ । ନିଷ୍କ୍ରମ୍ୟ = ନିଃ + କ୍ରମ୍ + ଲ୍ୟାପ୍ । ପାନୀୟମ୍ = ପା + ଆନୀୟର୍ । ତୁଷ୍ଟୀ = ତ୍ରୁଷ୍ + କ୍ତ । ଶକ୍ତି = ଶକ୍ + ଭିନ୍ । ପ୍ରବିଷ୍ଟ = ପ୍ର + ବିଶ୍ + କ୍ତ । ଲୋଭୟିତ୍ୱ = ଲୁଭ୍ + ଣିଚ୍ + କ୍ଵାଚ୍ । ଶୁଦ୍ଧା = ଶୁ + କ୍ଵାଚ୍ । ଦତ୍ତା = ଦା + ଷ୍ଟ୍ରାଚ୍ ! କର୍ତ୍ତବ୍ୟମ୍ = କୃ + ତଥ୍ୟ।

Text – 17

वानरोऽपि …………………………….. निःसरति।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ଜନଃ = ଲୋକମାନଙ୍କଦ୍ବାରା । ଯୂଥପ ! = ହେ ଦଳପତି ! କୁତ୍ର = କେଉଁଠାରେ । ଲଜ୍ଜା = ପାଇଲେ । ତିରସ୍କରୋତି = ନିନ୍ଦା କରିଥାଏ । ଗୁପ୍ତତରମ୍ = ଗୋପନୀୟ । ମହରଃ = ବଡ଼ ପୁଷ୍କରିଣୀ । ଧନଦଃ = କୁବେର । ନିମଜ୍ଜତି = ବୁଡ଼େ ବା ଡୁବେ । ନିଃସରତି = ବାହାରେ ।

ଅନୁବାଦ – ବାନର ମଧ୍ଯ ରହାରରେ ନିଜର କଣ୍ଠଦେଶକୁ ସୁଶୋଭିତ କରି ବୃକ୍ଷ ଓ ରାଜପ୍ରାସାଦମାନଙ୍କ ଉପରେ ଭ୍ରମଣ କରିବାରୁ ଲୋକେ ତାହାକୁ ଦେଖୁ ପଚାରିଲେ, ହେ ବାନରଯୂଥପତି ! ତୁମେ ଏତେ କାଳ ହେଲା କେଉଁଠି ଥିଲ ? ଏଡ଼େ ସୁନ୍ଦର ରନ୍ଥମାଳା କେଉଁଠୁ ପାଇଲ ? ଏହାର ତେଜ ସୂର୍ଯ୍ୟକିରଣକୁ ମଧ୍ଯ ତିରସ୍କାର କରୁଛି । ବାନର କହିଲା – ଗୋଟିଏ ଅରଣ୍ୟ ମଧ୍ୟରେ କୁବେରଦ୍ଵାରା ନିର୍ମିତ ଏକ ଅତି ଗୁପ୍ତ ସରୋବର ଅଛି । ରବିବାର ଦିନ ସୂର୍ଯ୍ୟୋଦୟ ସମୟରେ ଯଦି କେହି ଉକ୍ତ ସରୋବରରେ ବୁଡ଼ ପକାଏ ତେବେ ସେ କୁବେରଙ୍କ ପ୍ରସାଦରୁ ଏହିପରି ରନ୍‌ମାଳାରେ କଣ୍ଠକୁ ସୁଶୋଭିତ କରି ଜଳରୁ ବାହାରି ଆସେ ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ବାନରୋଽପି = ବାନରଃ + ଅପି । ଜନୈର୍ଦ୍ଧିଷ୍ଟ = ଜନିଃ + ଦୃଷ୍ଟୀ । ପୃଷ୍ଟଣ୍ଟ = ପୃଷ୍ଟୀ + ଚ। ଭବାନିୟନ୍ତମ୍ = ଭବାନ୍ + ଇୟନ୍ତମ୍ । ଭବତେଦୂଗ୍ରନ୍ଥମାଳା = ଭବତା + ଇଦୃକ୍ + ରମାଳା । ସୂର୍ଯ୍ୟମପି = ସୂର୍ଯ୍ୟମ୍ + ଅପି । କୁତ୍ରଚିଦରଣ୍ୟ = କୁତ୍ରଚିତ୍ + ଅରଣ୍ୟ । କଣ୍ଟିନିମମ୍ମତି = କଶ୍ଚିତ୍ + ନିମଜ୍ଜତି ।

ସମାସ – ବୃକ୍ଷପ୍ରାସାଦେଷୁ = ବୃକ୍ଷ ଚ ପ୍ରାସାଦଃ ଚ, ତେଷୁ (ଦ୍ବନ୍ଦ୍ବ) । ମହସରଃ = ମହାନ୍‌ ସରଃ ( କର୍ମଧାରୟ) । ଧନଦନିର୍ମିତମ୍ = ଧନଂ ଦଦାତି ଇତି, ଧନଦଃ (ଉପପଦ ତତ୍‌ପୁରୁଷ), ତେନ ନିର୍ମିତମ୍ (ତୃତୀୟା ତତ୍‌ପୁରୁଷ) । ରବିବାସରେ = ରବି ନାମ ବାସରଃ, ତସ୍ମିନ୍ (ମଧ୍ୟପଦଲୋପୀ କର୍ମଧାରୟ) ।

ସକାରଣବିଭକ୍ତି – ରମାଳାବିଭୂଷିତକଣ୍ଠ, ଭବାନ୍, ଯା, ବାନରଃ, ମହତ୍ଵରଃ, ଯଃ, କଃ = କଉଁରି ୧ମା । ଭୋ ଯୂଥପ ! = ସମ୍ବୋଧନେ ୧ମା । ବାନରଃ = ଅପି ଅବ୍ୟୟ ଯୋଗେ ୧ମା । ରନ୍‌ମାଳା = ଉକ୍ତ କର୍ମଣି ୧୩ । ସୂର୍ଯ୍ୟ, ଗୁପ୍ତତରମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା । ଜନୈ, ଭବତା = ଅନୁସ୍ତେ କଉଁରି ୩ୟା । ବୃକ୍ଷପ୍ରାସାଦେଷୁ, ଦୀପ୍ତି, ଅରଣ୍ୟ, ରବିବାସରେ = ଅଧିକରଣେ ୭ମୀ । ସୂର୍ଯ୍ୟ, ଅର୍ବୋଦିତେ = ଭାବେ ୭ମୀ ।

ପ୍ରକୃତିପ୍ରତ୍ୟୟ – ଭ୍ରମନ୍ = ଭ୍ରମ୍ + ଶତୃ । ଦୃଷ୍ଟି = ଦୃଶ୍ + କ୍ତ । ପୃଷ୍ଠ = ପ୍ରଚ୍ଛ + କ୍ତ । ସ୍ଥିତଃ = ସ୍ଥା + କ୍ତ । ଲଜ୍ଜା = ଲଭ୍ + ୬ + ଟାପ୍ । ନିର୍ମିତମ୍ = ନିର୍ + ମା + ଲୁ ।

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 4 ଚନ୍ଦ୍ରଭୂପତିକଥା

Text – 18

अथ भूभुजा तदाकर्ण्य …………………………………. साध्विदमुच्यते-

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ଭୂଭୁଜା = ରାଜା । ତଦାକର୍ଯ୍ୟ = ତାହା ଶୁଣି । ସମାହୂତଃ = ଡକାହେଲା । ସରଃ = ପୁଷ୍କରିଣୀ । କହିଃ = ମାଙ୍କଡ଼ । ପ୍ରତ୍ୟୟଃ = ବିଶ୍ୱାସ । ପ୍ରେଷୟ = ପଠାଅ । ତଚ୍ଛତ୍ମା = ତାହା ଶୁଣି । ନୃପତିଃ = ରାଜା । ଆହ = କହିଲେ । ସପରିଜନଃ = ପରିବାର ସହିତ । ଏଷ୍ୟାମି = ଆସିବି । ପ୍ରଭୃତା = ପ୍ରଚୁର । ତଥାନୁଷ୍ଠିତେ = ସେପରି କରନ୍ତେ । କଳତ୍ର = ପନ୍ଥୀ ।

ଅନୁବାଦ – ଏହାପରେ ରାଜା ଏହା ଶୁଣିପାରି ସେହି ବାନରକୁ ଡାକି ପଚାରିଲେ, ହେ ଯୂଥାଧୂପ ! ଏ କଥା କ’ଣ ସତ୍ୟ ? ରନ୍‌ମାଳାରେ ପରିପୂର୍ଣ୍ଣ ପୁଷ୍କରିଣୀ କେଉଁଠାରେ ଅଛି ? ବାନର କହିଲା, ହେ ପ୍ରଭୁ ! ପ୍ରତ୍ୟକ୍ଷରେ ମୋ ଗଳାରେ ପଡ଼ିଥ‌ିବା ଏହି ରନ୍ଥମାଳା ଦେଖୁ ଆପଣଙ୍କର ବିଶ୍ଵାସ ହେବ । ତେଣୁ ଯଦି ଆପଣଙ୍କର ରନ୍ଧମାଳାର ପ୍ରୟୋଜନ ଥାଏ, ତାହାହେଲେ କାହାକୁ ମୋ ସଙ୍ଗେ ପଠାନ୍ତୁ ଯେ ଦେଖାଇଦେବି । ଏହା ଶୁଣି ରାଜା କହିଲେ, ସେପରି ହେଲେ ମୁଁ ନିଜେ ମୋର ସମସ୍ତ ପରିବାର ସହିତ ଯିବି ଯଦ୍ବାରା ଅନେକ ରନ୍ଥମାଳା ପାଇପାରିବୁ । ବାନର କହିଲା, ହେ ପ୍ରଭୁ ! ଏହିପରି କରନ୍ତୁ । ସେହିପରି କରାଯା’ନ୍ତେ ରନ୍ଗମାଳା ପାଇବା ଲୋଭରେ ରାଜାଙ୍କ ସହିତ ସମସ୍ତ ପନ୍ଥୀ ଓ ଭୃତ୍ୟ ପ୍ରଭୃତି ଚାଲିଲେ । ବାନର ମଧ୍ଯ ରାଜାଙ୍କଦ୍ୱାରା କ୍ରୋଡ଼ରେ ବସାଇ ଅତି ସୁଖରେ ପ୍ରୀତିପୂର୍ବକ ନିଆଗଲା । ଅଥବା ଯଥାର୍ଥରେ କୁହାଯାଇଛି –

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ତଦାକର୍ୟ୍ଯ = ତତ୍ + ଆକର୍ୟ୍ୟ । ପୃଷ୍ଟଶ୍ଚ = ପୃଷ୍ଟୀ + ଚ । ଯୂଥାଧୂପ = ଯୂଥ + ଅଧୂପ । ସତ୍ୟମେତତ୍ = ସତ୍ୟମ୍ + ଏତତ୍ । ସରୋଽ = ସରଃ + ଅସ୍ଥି । କ୍ଵାପି = କୃ + ଅପି । କପିରାହ = କହିଃ + ଆହ । ପ୍ରତ୍ୟୟସ୍ତେ ପ୍ରତ୍ୟୟଃ + ତେ । ତଦ୍ୟଦି = ତତ୍ + ଯଦି । ତନ୍ମୟା = ତତ୍ + ମୟା । କମପି = କମ୍ + ଅପି । ତଛୁଡା଼ = ତତ୍ + ଶୁଦ୍ଧା । ନୃପତିରାହ = ନୃପତିଃ + ଆହ । ଯଦେବମ୍ = ଯଦି + ଏବମ୍ । ତଦହମ୍ = ତତ୍ + ଅହମ୍ । ସ୍ବୟମେଷ୍ୟାମି = ସ୍ବୟମ୍ + ଏଷ୍ୟାମି । ତଥାନୁଷ୍ଠିତେ = ତଥା + ଅନୁଷ୍ଠିତେ । ବାନରୋଽପି = ବାନରଃ + ଅପି । ସ୍ମୋସଙ୍ଗ = ସ୍କୃ + ଉତ୍ସଙ୍ଗ । ପ୍ରୀତିପୂର୍ବମାନୀୟତେ = ପ୍ରୀତିପୂର୍ବମ୍ + ଆନୀୟତେ । ସାଧ‌ିଦମୁଚ୍ୟତେ = ସାଧୁ + ଇଦମ୍ + ଉଚ୍ୟତେ ।

ସମାସ – ଭୂଭୁଜା = ଭୁବଂ ଭୁଜନ୍ତି ଇତି, ତେନ (ଉପପଦ ତତ୍ତ୍ଵପୁରୁଷ) । ଯୂଥାଧୂପ = ପୃଥକ୍ୟ ଅଧ୍ଯ (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍ତ୍ଵପୁରୁଷ) । ମତ୍କଣ୍ଠସ୍ଥିତୟା = ମମ କଣ୍ଠୀ (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍‌ପୁରୁଷ), ତସ୍ମିନ୍ ସ୍ଥିତଃ, ତୟା (ସପ୍ତମୀ ତତ୍ତ୍ଵପୁରୁଷ) । ନୃପତିଃ = ନୃଣା ପତିଃ (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍ତ୍ଵପୁରୁଷ) । ସପରିଜନଃ = ପରିଜନେନ ସହ ବର୍ତ୍ତମାନଃ (ସହାର୍ଥ ବହୁବ୍ରୀହିଃ) । ଭୂପତିନା = ଭୁବ ପତିଃ, ତେନ (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍‌ପୁରୁଷ) । ରମାଳାଲୋଭେନ = ରସ୍ୟ ମାଳା (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍‌ପୁରୁଷ), ତସ୍ୟା ଲୋଭଃ, ତେନ (ସପ୍ତମୀ ତତ୍ତ୍ଵପୁରୁଷ) । କଳତ୍ରଭୃତି = କଳରଂ ଚ ଭୃତ୍ୟ ଚ, ତେ (ଦ୍ବନ୍ଦ୍ବ) । ସ୍ମୋସଙ୍ଗ = ସ୍ୱସ୍ୟ ଉତ୍ସଙ୍ଗ ( ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍‌ପୁରୁଷ) ।

ସକାରଣବିଭକ୍ତି – କିଂ, ସତ୍ୟ, ଏତତ୍, ସରଃ, କପି, ଏଷ, ନୃପତିଃ, ଅହଂ, ସପରିଜନଃ, ପ୍ରଭୃତା, ରମାଳା, ବାନରଃ, ସର୍ବେ, କଳତ୍ରଭୃତ୍ୟା = କର୍ଭରି ୧ ମା । ଭୋ !, ଯୂଥାଧୂପ !, ସ୍ବାମିନ୍ ! = ସମ୍ବୋଧନେ ୧ମା । ବାନରଃ = ଅପି ଅବ୍ୟୟ ଯୋଗେ ୧ମା । ସ୍ୱ, ବାନରଃ, ସ୍ଵସ୍ଵଭଙ୍ଗ, ଆରୋପିତଃ = ଉକ୍ତ କର୍ମଣି ୧ ମା । ଭୂଭୁଜା, ରାଜ୍ଞା = ଅନୁସ୍ତେ କଉଁରି ୩ୟା । ପ୍ରତ୍ୟକ୍ଷତୟା, ମତ୍କଣ୍ଠସ୍ଥିତୟା, ରନ୍‌ମାଳୟା, ରନ୍‌ମାଳାଲୋଭେନ, ଦୋଳାଧ୍ଵରୂଢ଼େନ, ଯେନ = କରଣେ ୩ୟା । ସୁଖେନ = ପ୍ରକୃତ୍ୟାଦିତ୍ୟ ଉପସଂଖ୍ୟାନମ୍ ଯୋଗେ ୩ୟା । ମୟା, ଭୂପତିନା = ସହ ଯୋଗେ ୩ୟା । ଅନୁଷ୍ଠିତେ = ଭାବେ ୭ମୀ ।

ପ୍ରକୃତି ପ୍ରତ୍ୟୟ – ଆକର୍ୟ୍ଯ = ଆ + କର୍ଣ୍ଣ + ଲ୍ୟାପ୍ । ସମାହୂତଃ = ସମ୍ + ଆ + ହେ + କ୍ତ । ପୃଷ୍ଟୀ = ପ୍ରଚ୍ଛ + କ୍ତ । ସତ୍ୟମ୍ = ସତ୍ + ଯତ୍ । ଶୁଦ୍ଧା = ଶୁ + ସ୍କାଚ୍ । ଲୋଭଃ = ଲୁଭ୍ + ଘଞ୍ଚେ । ପ୍ରସ୍ଥିତଃ = ପ୍ର + ସ୍ଥା + କ୍ତ ।

Text – 19

ଶ୍ଳୋକ :
तृष्णे देवि नमस्तुभ्यं यया वित्तान्विता अपि।
अकृत्येषु नियोज्यन्ते भ्राम्यन्ते दुर्गमेष्वपि ॥ ८ ॥

ତୃଷେ ଦେବି ନମସ୍ତୁଭ୍ୟ ଯୟା ବିଭାନ୍ବିତା ଅପି ।
ଅକୃତ୍ୟେଷୁ ନିୟୋଜ୍ୟନ୍ତେ ଭ୍ରାମ୍ୟନ୍ତେ ଦୁର୍ଗମେଶ୍ୱପି ॥ ୮॥

ଅନ୍ବୟ – ତୃଷେ ଦେବି ! ତୁଭ୍ୟ ନମଃ । ବିଭାନ୍ବିତା ଅପି ଯୟା ଅକୃତ୍ୟେଷୁ ନିୟୋଜ୍ୟନ୍ତେ ଦୁର୍ଗମେଷୁ ଅପି ଭ୍ରାମ୍ୟନ୍ତେ ।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ତୁଭ୍ୟମ୍‌ = ତୁମକୁ । ବିଭାନ୍ବିତା = ଧନବନ୍ତ ଲୋକମାନେ । ଅପି = ମଧ୍ୟ । ଯୟା = ଯାହାଦ୍ୱାରା । ଅକୃତ୍ୟେଷୁ = ଅକରଣୀୟ କାର୍ଯ୍ୟରେ । ନିୟୋଜ୍ୟନ୍ତେ = ନିଯୁକ୍ତ ହୋଇଥା’ନ୍ତି । ଦୁର୍ଗମେଷୁ = ଦୁର୍ଗମ ସ୍ଥାନରେ । ଗ୍ରାମ୍ୟନ୍ତେ = ଭ୍ରମଣ କରିଥା’ନ୍ତି ।

ଅନୁବାଦ – ହେ ତୃଷ୍ଣାଦେବି ! ତୁମକୁ ନମସ୍କାର । ଯାହାଙ୍କଦ୍ୱାରା ଧନ୍ତବନ୍ତ ଲୋକମାନେ ମଧ୍ୟ ଅକରଣୀୟ କାର୍ଯ୍ୟରେ ନିୟୋଜିତ ହୋଇଥା’ନ୍ତି ଓ ଦୁର୍ଗମ ସ୍ଥାନରେ ମଧ୍ୟ ଭ୍ରମଣ କରିଥା’ନ୍ତି ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ନମସ୍ତୁଭ୍ୟମ୍ = ନମଃ + ତୁଭ୍ୟମ୍ । ବିଭାନ୍ବିତା = ବିତ୍ତ + ଅନ୍ବିତା । ଦୁର୍ଗମେଷ୍ଠପି = ଦୁର୍ଗମେଷୁ + ଅପି ।

ସମାସ – ବିଭାନ୍ବିତଃ = ବିଭେନ ଅଦ୍ଵିତଃ, ତେ (ତୃତୀୟା ତତ୍‌ପୁରୁଷ) । ଅକୃତ୍ୟେଷୁ = କୃତ୍ୟ, ତେଷୁ (ନଞ୍ଜ୍ ତପୁରୁଷ) ।

ସକାରଣବିଭକ୍ତି – ବିଭାନ୍ବିତା = ଉକ୍ତ କର୍ମଣି ୧ମା । ତୃଷେ, ଦେବି ! = ସମ୍ବୋଧନେ ୧ମା । ତୁଭ୍ୟମ୍ = ନମଃ ଯୋଗେ ୪ର୍ଥୀ । ଅକୃତ୍ୟେଷୁ, ଦୁର୍ଗମେଷୁ = ଅଧିକରଣେ ୭ମୀ ।

Text – 20

ଶ୍ଳୋକ :
तथाच – इच्छति शती सहस्रं सहस्री लक्षमीहते।
लक्षाधिपस्तथा राज्यं राज्यस्थः स्वर्गमीहते ॥ ९ ॥

ତଥା ଚ – ଇଚ୍ଛତି ଶତୀ ସହସ୍ର ସହସ୍ତୀ ଲକ୍ଷମୀହତେ ।
ଲକ୍ଷାଧୂପସ୍ତଥା ରାଜ୍ୟ ରାଜ୍ୟସ୍ଥ ସ୍ୱର୍ଗମୀହତେ ॥ ୯ ॥

ଅନ୍ୱୟ – ଶତୀ ସହସ୍ର ଇଚ୍ଛତି, ସହସ୍ତୀ ଲକ୍ଷମ୍ ଈହତେ ତଥା ଲକ୍ଷାଧୂପଃ ରାଜ୍ୟ (ଈହତେ), ରାଜ୍ୟସ୍ଥ ସ୍ବର୍ଗମ୍ ଈହତେ । ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ଶତୀ = ଶତମୁଦ୍ରାର ଅଧିକାରୀ । ସହସ୍ରମ୍ = ହଜାରକୁ । ଇଚ୍ଛତି = ଇଚ୍ଛାକରେ । ଈହତେ = ଇଚ୍ଛାକରେ । ରାଜ୍ୟସ୍ଥ = ରାଜପଦରେ ପ୍ରତିଷ୍ଠିତ।

ଅନୁବାଦ – ସେହିପରି – ଯେ ଶତମୁଦ୍ରାର ଅଧିକାରୀ, ସେ ସହସ୍ର ପାଇବାକୁ ଇଚ୍ଛାକରେ, ‘ଯାହାର ସହସ୍ର ମୁଦ୍ରା ଅଛି ସେ ଲକ୍ଷମୁଦ୍ରା କାମନା କରୁଅଛି । ପୁନଶ୍ଚ ଯେ ଲକ୍ଷାଧୂପତି ସେ ରାଜ୍ୟ ଅଭିଳାଷ କରୁଅଛି ଓ ଯେ ରାଜପଦରେ ପ୍ରତିଷ୍ଠିତ ହୋଇଅଛି ସେ ସ୍ୱର୍ଗକାମନା କରୁଅଛି ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ଲକ୍ଷମିଚ୍ଛତି = ଲକ୍ଷମ୍ + ଇଚ୍ଛତି । ଲକ୍ଷାଧ୍ଵସ୍ତଥା = ଲକ୍ଷାଧୂପଃ + ତଥା । ସ୍ୱର୍ଗମୀହତେ = ସ୍ବର୍ଗମ୍ + ଈହତେ ।

ସମାସ – ଶତୀ = ଶତମ୍ ଇଚ୍ଛତି ଇତି (ଉପପଦ ତତ୍ତ୍ଵପୁରୁଷ) । ସହସ୍ତୀ = ସହସ୍ରମ୍ ଇଚ୍ଛତି ଇତି (ଉପପଦ ତତ୍ତ୍ଵପୁରୁଷ ) । ରାଜ୍ୟସ୍ଥ = ରାଜ୍ୟ ତିଷ୍ଠତି ଇତି (ଉପପଦ ତତ୍‌ପୁରୁଷ) ।

ସକାରଣବିଭକ୍ତି – ଶତୀ, ସହସ୍ତୀ, ଲକ୍ଷାଧୂପ, ରାଜ୍ୟସ୍ଥ = କଉଁରି ୧ ମା । ସହସ୍ର, ଲକ୍ଷମଂ, ରାଜ୍ୟ, ସ୍ଵର୍ଗମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା ।

Text – 21

ଶ୍ଳୋକ :
तथा च- जीर्य्यन्ते जीर्य्यतः केशा दन्ता जीर्य्यन्ति जीर्य्यतः ।
जीर्य्यतश्चक्षुषी श्रोत्रे तृष्णेका तरुणायते ॥ १० ॥

ଜୀର୍ଯ୍ୟନ୍ତେ ଜୀର୍ଯ୍ୟତଃ କେଶ ଦନ୍ତା ଜୀର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଜୀର୍ଯ୍ୟତଃ ।
ଜୀର୍ଯ୍ୟତଣ୍ଢ କ୍ଷୁଷୀ ଶ୍ରୋତ୍ରେ ତୃଷ୍ଣିକା ତରୁଣାୟତେ ॥ ୧୦ ||

ଅନ୍ବୟ – ଜୀର୍ଯ୍ୟତଃ କେଶା ଜୀର୍ଯ୍ୟନ୍ତେ, ଜୀର୍ଯ୍ୟତଃ ଦନ୍ତା ଜୀର୍ଯ୍ୟନ୍ତ । କୀର୍ଯ୍ୟତଃ ଚକ୍ଷୁଷୀ (ଜୀର୍ଯ୍ୟନ୍ତେ) (ଜୀର୍ଯ୍ୟତଃ) ଶ୍ରୋତ୍ରେ (କୀର୍ଯ୍ୟନ୍ତି) । ଏକା ତ୍ରିଷ୍ଣା ତରୁଣାୟତେ ।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – କୀର୍ଯ୍ୟତଃ = ଜରାକ୍ରାନ୍ତ ବ୍ୟକ୍ତିର । କୀର୍ଯ୍ୟନ୍ତେ = ଶୁକ୍ଳ ହୋଇଯାଏ । ତରୁଣାୟତେ ତରୁଣ ହୋଇଥାଏ ।

ଅନୁବାଦ – ଜରାକ୍ରାନ୍ତ ବ୍ୟକ୍ତିର କେଶ ଶୁକ୍ଳ ହୋଇଯାଏ, ଦନ୍ତଗୁଡ଼ିକ ଝଡ଼ିପଡ଼ନ୍ତି, ଚକ୍ଷୁ ଦୃଷ୍ଟିଶକ୍ତି ହରାଏ, କର୍ଷ ଶୁଣିପାରେ ନାହିଁ, କିନ୍ତୁ କେବଳ ତୃଷ୍ଣା ହିଁ ତରୁଣ ହୋଇଥାଏ ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ଜୀର୍ଯ୍ୟତଶ୍ଚକ୍ଷୁଷୀ = ଜୀର୍ଯ୍ୟତଃ + ଚକ୍ଷୁଷୀ । ତୃଷ୍ଣିକା = ତୃଷ୍ଣା + ଏକା ।

ସକାରଣବିଭକ୍ତି – କେଶଃ, ଦନ୍ତା, ଏକା, ତୃଷ୍ଣା = କଉଁରି ୧ ମା । ଜୀର୍ଯ୍ୟତଃ = ସମ୍ବନ୍ଧ ୬ଷ୍ଠୀ । ଚକ୍ଷୁଷୀ, ଶ୍ରୋତ୍ରେ = ଅଧିକରଣେ ୭ମୀ ।

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 4 ଚନ୍ଦ୍ରଭୂପତିକଥା

Text – 22

अथ तत्सरः ………………………………….. दर्शयामि।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ଅଥ = ଏହାପରେ । ସମାସାଦ୍ୟ = ନିକଟରେ ପହଞ୍ଚି । ପ୍ରତ୍ୟୁଷ = ପ୍ରଭାତ । ଉବାଚ = କହିଲା । ଅପି = ମଧ୍ୟ । ଏବ = ହିଁ । ଯେନ = ଯଦ୍ବାରା । ଆସାଦ୍ୟ = ପାଇ । ପ୍ରଭୂତଃ = ପ୍ରଚୁର ।

ଅନୁବାଦ – ଏହାପରେ ସେହି ପୁଷ୍କରିଣୀ ନିକଟରେ ପହଞ୍ଚି ବାନର ପ୍ରଭାତ ସମୟରେ ରାଜାଙ୍କୁ କହିଲା । ହେ ମହାରାଜ ! ଏଠାରେ ଅଧେ ସୂର୍ଯ୍ୟୋଦୟ ହେଲାବେଳକୁ ଯେଉଁମାନେ ଏହି ପୁଷ୍କରିଣୀରେ ପ୍ରବେଶ କରନ୍ତି, ସେମାନେ ସିଦ୍ଧିଲାଭ କରନ୍ତି । ତେଣୁ ସମସ୍ତ ଲୋକ ଏକାଠି ହିଁ ପ୍ରବେଶ କରନ୍ତୁ, ପୁନଶ୍ଚ ତୁମେ ମୋ ସହିତ ପ୍ରବେଶ କରିବ, ତାହାହେଲେ ମୁଁ ଆପଣଙ୍କୁ ପୂର୍ବଦୃଷ୍ଟ ସ୍ଥାନକୁ ନେଇ ପ୍ରଚୁର ରତ୍ନମାଳା ଦେଖାଇଦେବି ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ସମାସାଦ୍ୟ = ସମ୍ + ଆସାଦ୍ୟ । ରାଜାନମୁବାଚ = ରାଜାନମ୍ + ଉବାଚ । ଅର୍ଥୋଦିତେ = ଅର୍ଷ + ଉଦିତେ । ସୂର୍ଯ୍ୟତ୍ର = ସୂର୍ଯ୍ୟୋ + ଅତ୍ର । ସିଦ୍ଧିର୍ଭବତି = ସିଦ୍ଧି + ଭବତି । ସର୍ବୋଽପି = ସର୍ବ + ଅପି । ଏକଦୈବ = ଏକଦା + ଏବ । ପୁନର୍ମୟା = ପୁନଃ + ମୟା । ପ୍ରଭୃତ୍ୟସ୍ତେ = ପ୍ରଭୂତଃ + ତେ ।

ସମାସ – ପୂର୍ବଦୃଷ୍ଟ = ପୂର୍ବ ଦୃଷ୍ଟ (କର୍ମଧାରୟ) ।

ସକାରଣବିଭକ୍ତି – ସରଃ, ବାନରଃ, ସିଦ୍ଧା, ଜନଃ = କଉଁରି ୧ ମା । ଦେବ ! = ସମ୍ବୋଧନେ ୧ମା । ସର୍ବ = ଅପି ଅବ୍ୟୟ ଯୋଗେ ୧ମା । ରାଜାନମ୍, ସ୍ଥାନମ୍, ରତ୍ନମାଳା = କର୍ମଣି ୨ୟା । ଯେନ = କରଣେ ୩ୟା । ତୃୟା = ଅନୁକ୍ତ କର୍ଜରି ୩ୟା । ମୟା = ସହ ଯୋଗେ ୩ୟା । ତେ = ସଂପ୍ରଦାନେ ୪ର୍ଥୀ । ପ୍ରବିଷ୍ଟାନାମ୍ = ସମ୍ବନ୍ଧ ୬ଷ୍ଠୀ । ପ୍ରତ୍ୟୁଷସମୟେ = ଅଧିକରଣେ ୭ମୀ । ଅର୍ଥୋଦିତେ, ସୂର୍ଯ୍ୟ = ଭାବେ ୭ମୀ ।

ପ୍ରକୃତିପ୍ରତ୍ୟୟ – ସମାସାଦ୍ୟ = ସମ୍ + ଆ + ସଦ୍ + ଲ୍ୟାପ୍ । ସିଦ୍ଧି = ସିଧ୍ + ଭିନ୍ । ପ୍ରବେଷ୍ଟବ୍ୟମ୍ = ପ୍ର + ବିଶ୍ + ତବ୍ୟମ୍ । ଦୃଷ୍ଟି = ଦୃଶ୍ + କ୍ତ । ସ୍ଥାନମ୍ = ସ୍ଥା + ଲୁଟ୍ ।

Text – 23

अथ प्रबिष्टास्तेः ………………………… नात्र प्रवेशितः।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ତଚ୍ଛତ୍ମା = ତାହା ଶୁଣି । ସତୁରମ୍ = ଶୀଘ୍ର । ଆରୁହ୍ୟ = ଚଢ଼ି । ପରିଜନଃ = ପରିବାର ଲୋକେ, ଆତ୍ମୀୟ ଜନ । ବୈରମ୍ = ଶତ୍ରୁ । ମତ୍ସ୍ୟ = ମନେକରି ।

ଅନୁବାଦ – ଏହାପରେ (ଜଳ ମଧ୍ୟରେ) ପ୍ରବେଶ କରିଥିବା ସେହି ସମସ୍ତ ଲୋକମାନଙ୍କୁ ରାକ୍ଷସ ଭକ୍ଷଣ କଲା । ଏହାପରେ ବହୁସମୟ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ସେମାନେ ନ ଫେରିବାରୁ ରାଜା ବାନରକୁ କହିଲେ– ଆହେ ଦଳପତି ! ମୋର ଲୋକମାନେ ଏତେ ବିଳମ୍ବ କରୁଛନ୍ତି କାହିଁକି ? ତାହା ଶୁଣି ବାନର ଅତିଶୀଘ୍ର ଗଛକୁ ଚଢ଼ିଯାଇ ରାଜାଙ୍କୁ କହିଲା– ଆହେ ଦୁଷ୍ଟ ରାଜା ! ରାକ୍ଷସ ଜଳ ମଧ୍ୟରେ ତୁମର ସମସ୍ତ ପରିଜନଙ୍କୁ ଭକ୍ଷଣ କରିଛି, କୁଳକ୍ଷୟଜନିତ ଶତ୍ରୁତା ମୋଦ୍ଵାରା ସାଧୁତ ହୋଇଛି । ତେଣୁ ଏବେ ଯାଅ । ତୁମେ ମୋର ପ୍ରଭୁ ଅଟ ବୋଲି ତୁମକୁ ଜଳ ମଧ୍ୟରେ ପ୍ରବେଶ କରାଇଲି ନାହିଁ ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ପ୍ରବିଷ୍ଟାସ୍ତେ = ପ୍ରବିଷ୍ଟା + ତେ । ବାନରମାହ = ବାନରମ୍ + ଆହ । ପୃଥାଧୂପ = ଯୂଥ + ଅଧୂପ । କିମିତି = କିମ୍ + ଇତି । ତଚ୍ଛତ୍ମା = ତତ୍ + ଶୁଦ୍ଧା । ବୃକ୍ଷମାରୁହ୍ୟ = ବୃକ୍ଷମ୍ + ଆରୁହ୍ୟ । ରାଜାନମୁବାଚ = ରାଜାନମ୍ + ଉବାଚ । ରାକ୍ଷସେନାରଃ = ରାକ୍ଷସେନ + ଅନ୍ତଃ । ଋକ୍ଷିତସ୍ତେ = ଊକ୍ଷିତଃ + ତେ । ତଦ୍‌ଗମ୍ୟତାମ୍ = ତତ୍ + ଗମ୍ୟତାମ୍ । ସ୍ଵାମୀତି = ସ୍ଵାମୀ + ଇତି । ନାତ୍ର = ନ + ଅତ୍ର ।

ସମାସ – ନରପତେ ! = ନରାନାଂ ପତିଃ, ସମ୍ବୋଧନେ ( ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍‌ପୁରୁଷ) । କୁଳକ୍ଷୟଜମ୍ = କୁଳସ୍ୟ କ୍ଷୟଂ (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍‌ପୁରୁଷ) ତସ୍ମିନ୍ ଜାୟତେ ଇତି (ଉପପଦ ତତ୍ତ୍ଵପୁରୁଷ) ।

ସକାରଣବିଭକ୍ତି – ରାଜା, ଜନଃ, ବାନରଃ, ତ୍ଵମ୍ = କଉଁରି ୧ ମା । ତେ, ଲୋକା, ସର୍ବେ, ପରିଜନଃ, କୁଳକ୍ଷୟଜମ୍, ବୈରମ୍ = ଉଲ୍ଲେ କର୍ମଣି ୧ ମା । ଭୋ ଯୂଥାଧୂପ !, ଭୋ ଦୁଷ୍ଟନରପତେ ! = ସମ୍ବୋଧନେ ୧ମା । ବାନରମ୍, ବୃକ୍ଷମ୍, ରାଜାନମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା । ସତ୍ଵରମ୍ = କ୍ରିୟା ବିଶେଷଣେ ୨ୟା । ରାକ୍ଷସେନ, ସଲିଳସ୍ଥିତେନ, ମୟା = ଅନୁସ୍ତେ କଉଁରି ୩ୟା । ମେ = ସମ୍ବନ୍ଧ ୬ଷ୍ଠୀ । ତେଷୁ, ଚିରାୟମାଶେଷୁ = ଭାବେ ୭ମୀ ।

ପ୍ରକୃତିପ୍ରତ୍ୟୟ – ପ୍ରବିଷ୍ଟ = ପ୍ର + ବିଶ୍ + କ୍ତ । ଶୁଦ୍ଧା = ଶୁ + କ୍ଳାଚ୍ । ଆରୁନ୍ୟ = ଆ + ରୁହ୍ + ଲ୍ୟାପ୍ । ଦୁଷ୍ଟ ଦୁଷ୍ + କ୍ତ । ସାଧୁମ୍ = ସାଧ୍ + ଣିଚ୍ + କ୍ତ । ମତ୍ସ୍ୟ = ମନ୍ + ସ୍କାଚ୍ ।

Text – 24

ଶ୍ଳୋକ :
उक्तं च-
कृते प्रतिकृतिं कुर्य्यात् हिंसिते प्रतिहिंसितम्।
न तत्र दोषं पश्यामि दुष्टे दुष्टं समाचरेत् ॥ ११ ॥

କୃତେ ପ୍ରତିକୃତଂ କୁର୍ଯ୍ୟାତ୍ ହିଂସିତେ ପ୍ରତିହିଂସିତମ୍ ।
ନ ତତ୍ର ଦୋଷ ପଶ୍ୟାମି ଦୁଷ୍ଟ ଦୁଷ୍ଟ ସମାଚରେତ୍ || ୧୧ ||

ଅନ୍ବୟ – କୃତେ ପ୍ରତିକୃତଂ କୁର୍ଯ୍ୟାତ୍ ହିଂସିତେ ପ୍ରତିହିଂସିତଂ (କୁର୍ଯ୍ୟାତ୍‌) । ଦୁଷ୍ଟ ଦୁଷ୍ଟ ସମାଚରେତ୍ ତତ୍ର ଦୋଷ ନ ପଶ୍ୟାମି ।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – କୃତେ = ଉପକାରରେ । ପ୍ରତିକୃତିମ୍ = ପ୍ରତ୍ୟୁପକାର । କୁର୍ଯ୍ୟାତ୍ = କରିବା ଉଚିତ । ସମାଚରେତ୍ = ସମ୍ୟକ୍ ଆଚରଣ କରିବା ଉଚିତ।

ଅନୁବାଦ – କେହି ଉପକାର କଲେ ତା’ର ପ୍ରତ୍ୟୁପକାର ଓ ଅପକାର କଲେ ତା’ର ପ୍ରତ୍ୟପକାର କରିବା ଉଚିତ, କେହି ହିଂସା କଲେ ତା’ର ପ୍ରତିହିଂସା କରିବା ଉଚିତ । ଦୁଷ୍ଟ ସହିତ ଦୁଷ୍ଟ ଆଚରଣ କରିବା ଉଚିତ । ଏଥ‌ିରେ (ମୁଁ) କୌଣସି ଦୋଷ ଦେଖୁନାହିଁ ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସକାରଣବିଭକ୍ତି – ଦୁଷ୍ଟ, ପ୍ରତିକୃତି, ପ୍ରତିହିଂସିତାଂ, ଦୋଷମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା । କୃତେ, ହିଂସିତେ, ଦୁଷ୍ଟ = ଅଧିକରଣେ ୭ମୀ ।

ପ୍ରକୃତିପ୍ରତ୍ୟୟ – କୃତିମ୍ = କୃ + ସ୍କ୍ରିନ୍ । ଦୋଷମ୍ = ଦୁଷ୍ + ଘଞ୍ଜ୍ । ଦୁଷ୍ଟମ୍ = ଦୁଷ୍ + କ୍ତ ।

Text – 25

तत्त्वया ……………………………. सानन्दमिदमाह-

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – କୁଳକ୍ଷୟଃ = ବଂଶନାଶ । ପୁନଃ = ପୁଣି । ଆକର୍ୟ୍ଯ = ଶୁଣି । ଶୋକାବିଷ୍ଟ = ମନଦୁଃଖରେ । ଯଥାଯାତମାର୍ଗେଣ = ଯେଉଁ ବାଟରେ ଯାଇଥିଲେ । ନିଷ୍ଠାନ୍ତଃ = ଫେରିଲେ । ତୃପ୍ତ = ଆନନ୍ଦିତ ହେଲା । ନିଷ୍କ୍ରମ = ବାହାରି । ସାନନ୍ଦମ୍ = ଆନନ୍ଦର ସହିତ । ଆହ = କହିଲା ।

ଅନୁବାଦ – ତୁ ମୋର ବଂଶନାଶ କରିଥିଲୁ, ମୁଁ ସେହିପରି ତୋର ବଂଶନାଶ କଲି । ଏହା ଶୁଣି ରାଜା କୋପାବିଷ୍ଟ ହୋଇ ପାଦରେ ଚାଲି ଚାଲି ଯେଉଁ ମାର୍ଗରେ ଆସିଥିଲେ ସେହି ମାର୍ଗରେ ଫେରିଗଲେ । ରାଜା ଚାଲିଯିବା ପରେ ରାକ୍ଷସ ତୃପ୍ତ ହୋଇ ଜଳ ମଧ୍ୟରୁ ବାହାରି ଆନନ୍ଦରେ କହିଲା –

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ପୁନସ୍ତବେତି = ପୁନଃ + ତବ + ଇତି । ଅଥୈତଦାକର୍ୟ୍ଯ = ଅଥ + ଏତତ୍ + ଆକର୍ଯ୍ୟ । ଶୋକାବିଷ୍ଟ = ଶୋକ + ଆଦିଷ୍ଟ । ପଦାତିରେକାକୀ = ପଦାତିଃ + ଏକାକୀ। ରାକ୍ଷସପ୍ତା = ରାକ୍ଷତଃ + ତୃପ୍ତ । ଜଳାନିଷ୍କ୍ରମ୍ୟ ଜଳାତ୍ + ନିଷ୍କ୍ରମ । ସାନନ୍ଦମିଦମାହ = ସାନନ୍ଦମ୍ + ଇଦମ୍ + ଆହ ।

ସମାସ – କୁଳକ୍ଷୟୀ = କୁଳସ୍ୟ କ୍ଷୟଃ ( ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍‌ପୁରୁଷ) । ଶୋକାବିଷ୍ଟ = ଶୋକେନ ଆବିଷ୍ଟୀ (ତୃତୀୟା ତତ୍ତ୍ଵପୁରୁଷ) । ସାନନ୍ଦମ୍ = ଆନନ୍ଦେନ ସହ ବର୍ତ୍ତମାନମ୍ ( ସହାର୍ଥ ବହୁବ୍ରୀହିଃ) ।

ସକାରଣବିଭକ୍ତି – ରାଜା, ଶୋକାବିଷ୍ଟ, ପଦାତିଃ, ଏକାକୀ, ରାକ୍ଷସ = କଉଁରି ୧ ମା । କୁଳକ୍ଷୟ = ଉକ୍ତ କର୍ମଣି ୧ମା । ତୃୟା, ମୟା = ଅନୁସ୍ତେ କଉଁରି ୩ୟା । ମାର୍ଗଣ = ମାର୍ଗବାଚକ ଶବ୍ଦଯୋଗେ ୩ୟା । ଜଳାତ୍ = ଅପାଦାନେ ୫ମୀ । ତସ୍ମିନ୍, ଭୂପତୌ, ଗତେ = ଭାବେ ୭ମୀ।

ପ୍ରକୃତିପ୍ରତ୍ୟୟ – କୃତଃ = କୃ + କ୍ତ । ଆକର୍ୟ୍ଯ = ଆ + କର୍ଣ୍ଣ + ଲ୍ୟାପ୍ । ଆବିଷ୍ଟ = ଆ + ବିଶ୍ + କ୍ତ । ନିଦ୍ରାତଃ = ନିଃ + କ୍ରମ୍ + କ୍ତ । ତୃପ୍ତ = ତୃପ୍ + କ୍ତ । ନିଷ୍କ୍ରମ୍ୟ = ନିଃ + କ୍ରମ୍ + ଲ୍ୟାପ୍ ।

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 4 ଚନ୍ଦ୍ରଭୂପତିକଥା

Text – 26

हतः शत्रुः कृतं मित्रं रत्नमाला न हारिता ।
नानास्वादितं तोयं साधु भो बटवानर ! ॥ १२ ॥

ହତଃ ଶତ୍ରୁ କୃତଂ ମିରଂ ରତ୍ନମାଳା ନ ହାରିତା ।
ନାଳେନାସ୍ୱାଦିତଂ ତୋୟଂ ସାଧୁ ଭୋ ବଟବାନର ! ॥ ୧୨ ॥

ଅନ୍ୱୟ – ଭୋ ବଟବାନର ! ସାଧୁ, ନାଳେନ ତୋୟମ୍ ଆସ୍ବାଦିତଂ, ଶତଃ ହତଃ, ମିତ୍ର କୃତମ୍, ରତ୍ନମାଳା ନ ହାରିତା (ଚ୍ଚ)।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ସାଧୁ = ଉତ୍ତମ ବା ଧନ୍ୟ । ନାଳେନ = ପଦ୍ମନାଡ଼ଦ୍ଵାରା । ତୋୟମ୍ = ଜଳ । ଆସ୍ଵାଦିତମ୍ = ପିଇଅଛି । ହତଃ = ମରାଯାଇଛି । ନ ହାରିତା = ହରାଇ ନାହିଁ ।

ଅନୁବାଦ – ହେ ବାନର ତୁମେ ଧନ୍ୟ ! ପଦ୍ମନାଡ଼ ସାହାଯ୍ୟରେ ଜଳ ପିଇ ତୁମ ଶତ୍ରୁକୁ ବିନାଶ କରିଅଛ । ମୋତେ ମିତ୍ର କରିପାରିଛି ଓ ରତ୍ନମାଳାକୁ ମଧ୍ଯ ହରାଇ ନାହଁ ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ନାଳେନାସ୍ୱାଦିତମ୍ = ନାଜେନାସ୍ୱାଦିତମ୍ = ନାଳେନ + ଆସ୍ଵାଦିତମ୍ ।

ସମାସ – ରତ୍ନମାଳା = ରତ୍ନସ୍ୟ ମାଳା (ଷଷ୍ଠୀ ତତ୍‌ପୁରୁଷ) ।

ସକାରଣବିଭକ୍ତି – ଭୋ ବଟବାନର ! , ସାଧୁ ! = ସମ୍ବୋଧନେ ୧ମା । ଶତ୍ରୁ, ମିତ୍ର, ରତ୍ନମାଳା = ଉକ୍ତ କର୍ମଣି ୧ ମା । ଆସ୍ଵାଦିତଂ, ତୋୟମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା । ନାଜେନ = କରଣେ ୩ୟା ।

ପ୍ରକୃତିପ୍ରତ୍ୟୟ – ହତଃ = ହନ୍ + କ୍ତ । କୃତମ୍ = କୃ + କ୍ତ । ହାରିତା = ଦୃ + ଣିଚ୍ + କ୍ତ + ଟାପ୍ ।

BSE Odisha 10th Class Odia Solutions Chapter 14 କାଠ

Odisha State Board BSE Odisha 10th Class Odia Solutions Chapter 14 କାଠ Textbook Exercise Questions and Answers.

BSE Odisha Class 10 Odia Solutions Chapter 14 କାଠ

ପାଠ୍ୟପୁସ୍ତକସ୍ଥ ପ୍ରଶ୍ନାବଳୀର ଉତ୍ତର

ନିର୍ଦ୍ଦିଷ୍ଟ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନୋତ୍ତର

Question ୧।
ଚିରାକାଠ କିଣିବା ଅପେକ୍ଷା ଗୋଦାମରୁ କେଉଁ କାଠ କିଣିବା ଲାଭଜନକ ହେବ ବୋଲି ଲେଖକ ନିଷ୍ପଭି ନେଲେ ?
Answer:
ଚିରାକାଠ କିଣିବା ଅପେକ୍ଷା ଗୋଦାମରୁ ଗୋଟିଏ ଗଡ଼ ବା ମୁଣ୍ଡାକାଠ କିଣି ଚିରାଇବା ଲାଭଜନକ ହେବ ବୋଲି ଲେଖକ ନିଷ୍ପଭି ନେଲେ।

Question ୨।
କେଉଁ କାଠଗୋଦାମରୁ କାଠ ଅଣାଯାଇଥିଲା ?
Answer:
ଭାରତ କାଠ ଗୋଦାମରୁ କାଠ ଅଣାଯାଇଥିଲା

Question ୩।
କିଣାଯାଇଥିବା କାଠର ନାମ କ’ଣ ?
Answer:
କିଣାଯାଇଥ‌ିବା କାଠର ନାମ ଧଅ କାଠ ।

Question ୪ ।
ଲେଖକ କେଉଁ ରାଜ୍ୟର ଲୋକ ବୋଲି କହିଛନ୍ତି ?
Answer:
ଲେଖକ ଜଙ୍ଗଲ ରାଜ୍ୟର ଲୋକ ବା ଜଙ୍ଗଲ ଅଞ୍ଚଳରେ ଜନ୍ମହୋଇ ବଢ଼ିଥିବା ଲୋକ ବୋଲି କହିଛନ୍ତି ।

Question
ହଠାତ୍ କିଏ ଭୋ ଭୋ ହୋଇ ଭୁକି ଉଠିଲା ?
Answer:
ହଠାତ୍ ଲେଖକଙ୍କର ପୋଷା କୁକୁର ମୋତି ଭୋ ଭୋ ହୋଇ ଭୁକି ଉଠିଲା ।

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Question ୬।
ଗୁଦାମରେ କୁଇଣ୍ଟାଲ କାଠ କାଟିବାକୁ କେତେ ଦିଆଯାଏ ?
Answer:
ଗୁଦାମରେ କୁଇଣ୍ଟାଲ କାଠ କାଟିବାକୁ ଦୁଇ ଟଙ୍କା ଦିଆଯାଏ ।

Question ୭ ।
କାଠୁରିଆର ଘର କେଉଁଠି ?
Answer:
କାଠୁରିଆର ଘର ମୟୂରଭଞ୍ଜର ବେତନଟା ପାଖରୋ

Question ୮।
କାଠୁରିଆର ଛୁଆମାନେ ପାଠ ନ ପଢ଼ିଲେ କ’ଣ କରିବେ ?
Answer:
କାଠୁରିଆର ଛୁଆମାନେ ପାଠ ନ ପଢ଼ିଲେ ସଡ଼କ କାମ ଓ ଜମିଚାଷ ସହିତ, ବାବୁମାନଙ୍କର ଘରକାମ କରିବେ ।

Question ୯୮
କାଠୁରିଆକୁ ହିତକଥା ନ ପଚାରି ବା ନ ଶୁଣାଇ ଲେଖକ କ’ଣ ଦେଖିବାକୁ ଲାଗିଲେ ?
Answer:
କାଠୁରିଆକୁ ହିତକଥା ନ ପଚାରି ବା ନ ଶୁଣାଇ ଲେଖକ କାଠକଟା ଚାତୁରୀ ସହିତ, ନିଜ ସୁବିଧା ଅନୁଯାୟୀ, କିପରି କାଠ ଚିରାହେବ ଦେଖିବାକୁ ଲାଗିଲେ ।

Question ୧୦ ।
କିଏ ଡେଇଁ ପଡ଼ି ଆଧୁନିକ କ୍ଳିଷ୍ଟ ଅବୋଧ କବିତାକୁ ତନ୍ତ୍ର ତନ୍ତ୍ର ବିଶ୍ଳେଷର କରି ଅନ୍ତର୍ନିହିତ ସାରତତ୍ତ୍ଵ ପ୍ରକଟ କରନ୍ତି ?
ଭ-
ପୋଖତ ସମାଲୋଚକ ଡେଇଁ ପଡ଼ି ଆଧୁନିକ କ୍ଳିଷ୍ଟ ଅବୋଧ କବିତାକୁ ତନ୍ନତନ୍ନ ବିଶ୍ଳେଷଣ କରି ଅନ୍ତର୍ନିହିତ

Question ୧୧ ।
କାଠୁରିଆ ଅତ୍ୟନ୍ତ ଆଗ୍ରହରେ ଗ୍ରନ୍ଥିକ ଶିରାଳ କାଠକୁ ଛିନ୍ନଭିନ୍ନ କରି କ’ଣ ବାହାର କରିଦେଉଥିଲା ?
Answer:
କାଠୁରିଆ ଅତ୍ୟନ୍ତ ଆଗ୍ରହରେ ଗ୍ରନ୍ଥିକ ଶିରାଳ କାଠକୁ ଛିନ୍ନଭିନ୍ନ କରି ମଞ୍ଜ ବାହାର କରି ଦେଉଥିଲା ।

Question ୧୨ ।
କେତେ ଘଣ୍ଟା ଭିତରେ କାଠୁରିଆ ଅଧାଅଧ୍ କାଠ ଚିରିଦେଲା ?
Answer:
ଘଣ୍ଟାଏ ଦେଢ଼ ଘଣ୍ଟା ଭିତରେ କାଠୁରିଆ ଅଧାଅଧ୍ କାଠ ଚିରିଦେଲା ।

Question ୧୩।
କାଠୁରିଆଠୁଁ କ’ଣ ଆଦାୟ କରିବାକୁ ଲେଖକ ଜଗି ବସିଥିଲେ ?
Answer:
କାଠୁରିଆଠୁଁ ଉପଯୁକ୍ତ କାମ ଆଦାୟ କରିବାକୁ ଲେଖକ ଜଗି ବସିଥିଲେ ।

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Question ୧୪ ।
ଚିରାକାଠଗୁଡ଼ିକ ଛୋଟ ଛୋଟ ଥ‌ିବା ସତ୍ତ୍ବେ ଲେଖକ କାଠୁରିଆକୁ କ’ଣ କହିଲେ ?
Answer:
ଚିରାକାଠଗୁଡ଼ିକ ଛୋଟ ଛୋଟ ଥିବା ସତ୍ତ୍ବେ ଲେଖକ କାଠୁରିଆକୁ ତାଙ୍କ ଛୋଟ ଚୁଲିରେ ଜଳିବା ମୁତାବକ ଆହୁରି

Question ୧୫ ।
ପ୍ରତିଥର ଚୋଟ ସାଙ୍ଗକୁ କାଠୁରିଆ ପାଟିରୁ କେଉଁ ଶବ୍ଦ ବାହାରୁଥାଏ ?
Answer:
ପ୍ରତିଥର ଚୋଟ ସାଙ୍ଗକୁ କାଠୁରିଆ ପାଟିରୁ ପରିଶ୍ରମଜନିତ ଏଁ ଏଁ ଶବ୍ଦ ବାହାରୁଥାଏ ।

Question ୧୬ ।
କୁରାଢ଼ିଟି କେତେ କିଲ ଲୁହାରେ ତିଆରି ହୋଇଥିଲା ?
Answer:
କୁରାଢିଟି ଦୁଇ କିଲ ଲହାରେ ତିଆରି ହୋଇଥିଲା।

Question ୧୭ ।
ଲେଖକ ଦେଖି କାଠୁରିଆର କ’ଣ ଏକାଠି ଲାଗିଯାଇଛି ?
Answer:
ଲେଖକ ଦେଖ‌ିଲେ କାଠୁରିଆର ପେଟ ପିଠି ଏକାଠି ଲାଗିଯାଇଛି ।

Question ୧୮।
କାଠୁରିଆ ସକାଳୁ କ’ଣ ପିଇ ଆସିଥିଲା ?
Answer:
କାଠୁରିଆଟି ଅଭାବୀ ଲୋକ ହୋଇଥିବାରୁ, ସେ ସକାଳୁ କେବଳ ତୋରାଣି କଂସାଏ ପିଇ ଆସିଥିଲା ।

Question ୧୯ ।
ରୋଷେଇ ଘରଆଡ଼ୁ ମହକ ଶୁଙ୍ଘି ଲେଖକ୍ କ’ଣ ଖାଇବାକୁ ଘର ଭିତରକୁ ଗଲେ ?
Answer:
ରୋଷେଇ ଘରଆଡ଼ୁ ମହକ ଶୁଙ୍ଘି ଲେଖକ ମୁଢ଼ି ସହିତ କଷାମାଂସ ଖାଇବାକୁ ଘର ଭିତରକୁ ଗଲେ ।

Question ୨୦ ।
ଚାକର ପିଲାଟିର ନାଁ କ’ଣ ?
Answer:
ଚାକର ପିଲାଟିର ନାଁ ଚୈତନ ।

Question ୨୧ ।
କାହା ପାଦରେ ଚେନାଚୋପରା କାଠସବୁ ଫୁଟିଯିବ ବୋଲି ଲେଖକ କହିଲେ ?
Answer:
ତାଙ୍କ ପୋଷା କୁକୁର ମୋତି ପାଦରେ ବ୍ଲେଚୋପରା କାଠସବୁ ଫୁଟିଯିବ ବୋଲି ଲେଖକ କହିଲେ ।

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Question ୨୨ ।
କାଠୁରିଆ ହାତକୁ ଦିଖଣ୍ଡ ଦି’ଟଙ୍କିଆ ନୋଟ ବଢ଼ାଇଦେଇ ଲେଖକ ତାକୁ କେତେ ପଇସା ମାଗିଲେ ?
Answer:
କାଠୁରିଆ ହାତକୁ ଦିଖଣ୍ଡ ଦି’ଟଙ୍କିଆ ନୋଟ ବଢ଼ାଇ ଦେଇ ଲୋକ ତା’କୁ ଚାରିଅଣା ପଇସା ମାଗିଲେ ।

Question ୨୩ ।
ଲେଖକଙ୍କ କେଉଁ ପଦିଏ କଥାରେ କାଠୁରିଆ ଲାଲ ଲାଲ ଆଖୁ ଚାହିଁଲା ?
Answer:
ଲେଖକ କାଠୁରିଆକୁ ତା’ ଉପରେ ତାଙ୍କର ବିଶ୍ଵାସ ନାହିଁ ବୋଲି କହିବାରୁ, କାଠୁରିଆ ଲାଲ୍ ଲାଲ୍ ଆଖ୍ୟାରେ ଚାହିଁଲା ।

Question ୨୪ ।
କାଠୁରିଆ ଲେଖକଙ୍କ ପ୍ରତି କି ଭାବ ରଖୁଥ‌ିବା କଥା ଲେଖକ ଭାବିଥିଲେ ?
Answer:
କାଠୁରିଆ ଲେଖକଙ୍କ ପ୍ରତି ଆଉ ଗୋଟାଏ ଧଅ କାଠଗଡ଼ ରହିଗଲାର ଭାବ ରଖୁଥିବା କଥା ଲେଖକ ଭାବିଥିଲେ ।

Question ୨୫ ।
କାହା ହାତରେ ନୋଟ୍ ଦିଟା କାଠୁରିଆ ପାଖକୁ ଲେଖକ ପଠାଇ ଦେଇ କବାଟ ବନ୍ଦ କରିଦେଲେ ?
Answer:
ଚୈତନ ହାତରେ ନୋଟ୍ ଦିଟା କାଠୁରିଆ ପାଖକୁ ଲେଖକ ପଠାଇ ଦେଇ କବାଟ ବନ୍ଦ କରିଦେଲେ ।

ପରୀକ୍ଷା ଉପଯୋଗୀ ଅତିରିକ୍ତ ପ୍ରଶ୍ନୋତ୍ତର

(A) ।ଗୋଟିଏ ବାକ୍ୟରେ ଉତ୍ତର ଦିଅ ।

Question ୧।
ଗାଳ୍ପିକ କେଉଁଠାରୁ ଓ କେତେ ପରିମାଣର ଗଣ୍ଡିକାଠ ଆଣିଲେ ?
Answer:
ଗାଳ୍ପିକ ଭାରତ କାଠ ଗୋଦାମରୁ ଦୁଇ କୁଇଣ୍ଟାଲ ଗଣ୍ଡି କାଠ ଆଣିଲେ ।

Question ୨ ।
ଗୋଦାମବାଲା କାଠ ବିଷୟରେ ଗାଳ୍ପିକଙ୍କୁ କ’ଣ ସୂଚନା ଦେଲା ?
Answer:
ଗୋଦାମବାଲା କାଠ ବିଷୟରେ କହିଲା ଯେ, ଏହି ଧଅ ମୁଣ୍ଡା କାଠ ଧୂଆଁ ନହୋଇ ବାରୁଦ ପରି ଜଳିବ ।

Question ୩ ।
ଗାଳ୍ପିକ ଧଅ କାଠକୁ କାହିଁକି ପସନ୍ଦ କଲେ ?
Answer:
ଗାଳ୍ପିକ ଜଙ୍ଗଲ ରାଜ୍ୟର ଲୋକ ହୋଇଥିବାରୁ ଧଅ କାଠ ଘରଦ୍ଵାର କଳା ନ ହୋଇ ଫୁର୍ ଫୁର୍ ହୋଇ ଜଳିବ ବୋଲି ପସନ୍ଦ କଲେ ।

Question ୪।
ଗାଳ୍ପିକ କାହିଁକି ଚିରା କାଠ ଅପେକ୍ଷା ଗଡ଼ କାଠ କଣିବା ପାଇଁ ନିଷ୍ପତି ନେଲେ ?
Answer:
ଗାଳ୍ପିକ ଚିରା କାଠ ଅପେକ୍ଷା ଗୋଦାମରୁ ଗଡ଼କାଠ ଆଣି ଚିରିଲେ ତାଙ୍କ ପାଇଁ ଲାଭଜନକ ହେବ ବୋଲି ନିଷ୍ପତ୍ତି ନେଲେ ।

Question ୫।
ମୋତି ଭୋ ଭୋ ଭୁକି ଉଠିଲା କାହିଁକି ?
Answer:
ଗୋଟିଏ ଦରବୁଢ଼ା କାଠ ଚିରାଳି କାନ୍ଧରେ କୁରାଢ଼ି ପକାଇ ସଡ଼କରୁ ଗାଳ୍ପିକଙ୍କ ଆଡ଼କୁ ଢଳି ଢଳି ଆସୁଥ‌ିବାର ଦେଖୁ ମୋତି ଭୋ ଭୋ ହୋଇ ଭୁକି ଉଠିଲା ।

Question ୬ ।
ଗାଳ୍ପିକ ସାନ୍ତାଳଙ୍କ ବିଷୟରେ ମନେ ମନେ କ’ଣ ଭାବିଲେ ?
Answer:
ବର୍ଷ ବର୍ଷ ଧରି ସାନ୍ତାଳମାନଙ୍କ ପାଇଁ କୋଟି କୋଟି ଟଙ୍କା ଖର୍ଚ୍ଚ ହୋଇଥିଲେ ମଧ୍ୟ ଏମାନେ ଭାଷାକୁ ଭଲ ଭାବରେ ଶିଖ୍ ପାରିଲେ ନାହିଁ ବୋଲି ଗାଳ୍ପିକ ମନେ ମନେ ଭାବିଲେ ।

Question ୭ ।
ଗାଳ୍ପିକ ଖତେଇ ହୋଇ କାଠ ଚିରାଳିର ଗଳା
Answer:
ଗାଳ୍ପିକ ଖତେଇ ହୋଇ କାଠ ଚିରାଳିର ଗଳା କହିଲେ, ‘‘ହଁ ହଁ, କାଟିବି, କାଟିବି; କେତେ ନେବୁ ?””

Question ୮ ।
କାଠ ଚିରାଳି କେତେ ଟଙ୍କାରେ କାଠ କାଟିବା ପାଇଁ ଗାଳ୍ପିକଙ୍କୁ କହିଛି ?
Answer:
କାଠ ଚିରାଳି ଗୋଦାମ ଦରରେ ଦୁଇ କୁଇଣ୍ଟାଲ୍ କାଠକୁ ଚିରିଦେଲେ ଚାରି ଟଙ୍କା ନେବ ବୋଲି ଗାଳ୍ପିକଙ୍କୁ କହିଛି ।

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Question ୯ ।
ଲେଖକଙ୍କର କାଠ ଚିରାଳିଙ୍କ ଉପରେ ସନ୍ଦେହ ହେଲା କାହିଁକି ?
Answer:
କାଠ ଚିରାଳିର ବୟସ୍କ ଓ ଚେହେରାରୁ ତା’ର ପାରିବା ପଣିଆ ଉପରେ ଲେଖକଙ୍କର ସନ୍ଦେହ ହେଲା ।

Question ୧୦ ।
କାଠ ଚିରାଳି ଏହି କାଠ ଚିରିବାରେ ତା’ର କ୍ଷତି ହେବ ବୋଲି କାହିଁକି କହିଛି ?
Answer:
କାଠଟି ମଞ୍ଜ, ଗଣ୍ଠିଆ, ଚେମେଡ଼ା, ଟାଣ ଧଅ କାଠ ହୋଇଥିବାରୁ ତାକୁ କାଟିବାକୁ ଅଧିକ ପରିଶ୍ରମ ଓ ଅଧ୍ଵ ସମୟ ଲାଗିବ, ତେଣୁ ସେ ତା’ର କ୍ଷତି ବୋଲି କହିଲା ।

Question ୧୧ ।
ବାବୁ କାଠଟିକୁ ଛୋଟ ଓ ପତଳା କରି କାଟିବାକୁ କହିଲେ କାହିଁକି ?
Answer:
ବାବୁଙ୍କର ଚୁଲି ସାନ ହୋଇଥିବାରୁ ବଡ଼ କାଠ ଜଳାଇବା କଷ୍ଟ ହେବ, ତେଣୁ ସେ କାଠଟିକୁ ଛୋଟ ଓ ପତଳା କରି କାଟିବାକୁ କହିଥିଲେ ।

Question ୧୨ ।
‘କାଠ’ ଗଳ୍ପରେ କେଉଁ କଥା ପ୍ରଦର୍ଶିତ ହୋଇଛି ?
Answer:
‘କାଠ’ ଗଳ୍ପରେ ଆଧୁନିକ ମଣିଷର ସ୍ୱାର୍ଥ ଓ ଶଠତାର ଚିତ୍ର ଏବଂ ସମାଜର ନିମ୍ନବର୍ଗର ଲୋକଙ୍କର ସରଳତା ଓ ସ୍ଵାଭିମାନର ସ୍ଵରୂପ ପ୍ରଦର୍ଶିତ ହୋଇଛି ।

Question ୧୩ ।
କାଠ କାଟିବା ଅବସରରେ କାଠୁରିଆ ବାବୁଙ୍କୁ କ’ଣ ପ୍ରକାଶ କରିଛି ?
Answer:
କାଠ କାଟିବା ଅବସରରେ କାଠୁରିଆ ତା’ର ଜୀବନରେ ଘଟିଯାଇଥିବା ଘଟଣାକୁ ସରଳ ଭାଷାରେ ପ୍ରକାଶ କରିଛି ।

Question ୧୪ ।
କାଠ ଚିରାଳିଟି କିପରି ନିଜକୁ ପ୍ରସ୍ତୁତ କରି କୁରାଢ଼ି ଧଇଲା ?
Answer:
କାଠ ଚିରାଳି ଦୁଇ ପରସ୍ତ କରି ଘୋଡ଼ିହୋଇଥବା ଅଳ୍ପ ଓସାର ନାଲିଧଡ଼ିର ଶାଢ଼ିଟାକୁ ଦେହରୁ କାଢ଼ି ପାଖ ବେଗୁନିଆଁ ଗଛ ଡାଳରେ ଲଟକାଇ କାନିର ଗଣ୍ଠି ଫିଟାଇ ଦୋକତା ଚୂନ ବାହାର କରି କଳରେ ଜାକି କୁରାଢ଼ି ଧରିଲା ।

Question ୧୫ ।
ଏକାଦିନରେ କାଠ ଚିରାଳିର କିଏ ସବୁ ମରିଗଲେ ?
Answer:
କାଠ ଚିରାଳିର ଡଗର ଡାଗର ପୁଅ ଦୁଇଟା, ଏହାର ଆଗ ସ୍ତ୍ରୀଟା ଏକାଦିନରେ ମରିଗଲେ ।

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Question ୧୬ ।
କାଠି ଚିରାଳିର ରୁଦ୍ର ମୂର୍ତ୍ତି ଦେଖୁ ସେଇ ମୁହୂର୍ତ୍ତରେ ଗାଳ୍ପିକ କ’ଣ ଉପଲବ୍ଧି କଲେ ?
Answer:
କାଠି ଚିରାଳିର ରୁଦ୍ର ମୂର୍ତ୍ତି ଦେଖୁ ସେଇ ମୁହୂର୍ତ୍ତରେ ଗାଳ୍ପିକ ତାକୁ ସଜାଗ ସଚେତନ କରି ଉସୁକାଇ ବଡ଼ ଭୁଲ କରିଛନ୍ତି ବୋଲି ଉପଲବ୍ଧି କଲେ ।

Question ୧୭ ।
କାଠ ଚିରାଳିଟି ଗାଳ୍ପିକଙ୍କ ଉପରେ ଉତ୍ୟକ୍ତ ଓ ଉତ୍‌କ୍ଷିପ୍ତ ହେବ କାହିଁକି ?
Answer:
ଯେତେବେଳେ କାଠ ଚିରାଳିଟି ବୁଝିପାରିବ ଯେ ଗାଳ୍ପିକଙ୍କ ଆଚରଣ ଓ ବ୍ୟବହାରରେ ଆତ୍ମୀୟତା ବା ଆନ୍ତରିକତା ନ ଥାଇ କେବଳ ନିଜର ସ୍ୱାର୍ଥ ଓ ପ୍ରତାରଣା ଥିଲା, ସେ ସେତେବେଳେ ଗାଳ୍ପିକଙ୍କ ଉପରେ ଉତ୍ୟକ୍ତ ଓ ଉତ୍‌କ୍ଷିପ୍ତ ହେବ ।

Question ୧୮ ।
ଗାଳ୍ପିକକୁ କ’ଣ ଭାବି କାଠୁରିଆ ଚିରି ଦୁଇ ଫାଳ କରିଦେବ ?
Answer:
ଗାଳ୍ପିକଙ୍କୁ ଆଉ ଗୋଟେ ଧଅ କାଠଗଡ଼ ଭାବି ଦୁଇ କେଜିଆ କୁରାଢ଼ିରେ ହୁଏତ ତାଙ୍କ ଛାତି ମୁଣ୍ଡକୁ ଚିରି ଦୁଇ ଫାଳ

(B) ।ଗୋଟିଏ ପଦ ବା ଶବ୍ଦରେ ଉତ୍ତର ଦିଅ ।

Question ୧।
‘କାଠ’ ଗଳ୍ପର ଗାଳ୍ପିକଙ୍କ ନାମ କ’ଣ ?
Answer:
ପ୍ରଫେସର ବସନ୍ତ କୁମାର ଶତପଥୀ

Question ୨ ।
ଗାଳ୍ପିକ ବସନ୍ତ କୁମାର ଶତପଥୀ କେଉଁ ଗଳ୍ପ ସଂକଳନ ପାଇଁ ଓଡ଼ିଶା ସାହିତ୍ୟ ଏକାଡେମୀ ପୁରସ୍କାର ପାଇଥିଲେ ?
Answer:
ଆଣ୍ଟିରୋମାଣ୍ଟିକ ଗଳ୍ପ ସଂକଳନ ପାଇଁ

Question ୩ ।
କାଠ ଚିରାଳି ପାଟିରେ କ’ଣ ପକାଇ କାଠ କାଟିବାକୁ ବାହାରିଥିଲା ?
Answer:
ଦୋକତା ଚୂନ

Question ୪।
ଗାଳ୍ପିକ କାଠ ଗୋଦାମରୁ କେଉଁ ଗାଡ଼ିରେ କାଠ ଆଣିଥିଲେ ?
Answer:
ଠେଲା ଗାଡ଼ିରେ

Question ୫ ।
କେତେ ସମୟ ମଧ୍ୟରେ ଅଧାଅଧ୍ କାଠ ଚିରିଦେଲା ?
Answer:
ଘଣ୍ଟାଏରୁ ଦେଢ଼ଘଣ୍ଟା ଭିତରେ

Question ୬ ।
କେଉଁଥରେ କାଠୁରିଆ କୁରାଢ଼ିର ମୁନକୁ ପଜାଉଥୁଲା
Answer:
ଗୋଟେ ଜିମା ପଥରରେ

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Question ୭ ।
ଲେଖକ କାଠୁରିଆକୁ କ’ଣ ଖାଇବାକୁ ଦେଲେ ?
Answer:
ଦୁଇ ଦିନର ବାସି ରୁଟି

Question ୮ ।
କାଠ ଚିରାଳିକୁ କେଉଁ ଲୋଟାରେ ଚୈତନ ପାଣି ପିଇବାକୁ ଦେଇଥୁଲା ?
Answer:
ଆଲୁମିନିୟମ ପାଇଖାନା ଲୋଟାରେ

Question ୯ ।
ଟୁକୁରା କାଠର ମୂଲ୍ୟ ପ୍ରାୟ କେତେ ହେବ ?
Answer:
ପ୍ରାୟ ଆଠ ଅଣା

Question ୧୦।
ଲୋଟାକୁ କାଠୁରିଆ କେଉଁଥରେ ମାଜି ଚିକ୍ ଚିକ୍ କରିଥିଲା ?
Answer:
ପାଉଁଶରେ

Question ୧୧ ।
କାହିଁକି ବଜାରରେ ଟଙ୍କା ଭଙ୍ଗାଇ ପାରିବ ନାହିଁ ବୋଲି କାଠୁରିଆ କହିଥିଲା ?
Answer:
ରବିବାର ବଜାର ବନ୍ଦ ଥ‌ିବାରୁ

Question ୧୨ ।
ଗାଳ୍ପିକ କାହାର ରୁଦ୍ର ମୂର୍ତ୍ତି ଦେଖୁଲେ ?
Answer:
ପଖାଳ ମୁଠାଏ

Question ୧୩ ।
କାଠଗଡ଼ଟି ଗୋଦାମରେ କେତେ ବର୍ଷ ହେଲା ପଡ଼ି ରହିଥିଲା ?
Answer:
ଦୁଇବର୍ଷ

Question ୧୪ ।
ଗାଳ୍ପିକଙ୍କ କୁକୁରର ନାମ କ’ଣ ?
Answer:
ମୋତି

Question ୧୫ ।
ଲେଖକଙ୍କ ପୁଅ ଆଉ କେତେ ଅଣା କାଠ ଚିରାଳିକୁ ଦେବା କଥା କହିଲା ?
Answer:
ଚାରିଅଣା

Question ୧୬ ।
ଲେଖକଙ୍କ ପୁଅ କେଉଁଠି ଠିଆ ହୋଇଥିଲା ?
Answer:
ଦରଜା ପାଖରେ

Question ୧୭ ।
କାଠଗଡ଼ରେ କାଠ ଚିରାଳିର ପ୍ରଥମ ଚୋଟଟି ପ୍ରାୟ କେତେ ଇଞ୍ଚ ଭିତରକୁ ପଶିଗଲା ?
Answer:
ପ୍ରାୟ ଦୁଇ ଇଞ୍ଚ

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Question ୧୮ ।
କାମ ସରିଲାପରେ ବାବୁ କେତେ ଟଙ୍କିଆ ନୋଟି ଆଣି ଦେଲେ ?
Answer:
ଦୁଇଖଣ୍ଡ ଦୁଇ ଟଙ୍କିଆ ନୋଟ୍

Question ୧୯ ।
କେଉଁ କାଠକୁ ସଜାଡ଼ି ରଖୁବାକୁ ବାବୁ ବରାତ କରିଛନ୍ତି ?
Answer:
ବୃକ୍ଷ ରାକ୍ଷସ

Question ୨୦ ।
ପୂର୍ବଥର କଟାଇଥିବା କାଠ ମାସକ ଜାଗାରେ କେତେ ଦିନ ଯାଇଥିଲା ?
Answer:
ଅଠେଇଶ ଦିନ

Question ୨୧ ।
ସାନ୍ତାଳ ଜାତ ଜମି ଜାଗା ଖୋଳିତାଡ଼ି ଯାହା କରିଥିଲେ କେଉଁମାନେ ତାକୁ ନେଇଗଲେ ବୋଲି କାଠି ଚିରାଳିଟି କହିଲା ?
Answer:
ଗାଳ୍ପିକଙ୍କ ଭଳି ହାଟୁଆମାନେ

Question ୨୨ ।
କାଠ ଚିରାଳିର ସ୍ତ୍ରୀ ଆଉ ଛୁଆ ଦୁଇଟା କ’ଣ ଖାଇ କାମକୁ ଗଲେ ?
Answer:
ପଖାଳ ମୁଠାଏ

Question ୨୩ ।
କାଠ କଟାଳି କେତେ ଟଙ୍କାରେ କାଠ କାଟିବା ପାଇଁ ରାଜି ହେଲା ?
Answer:
ତିନିଟଙ୍କା ବାରଅଣାରେ

Question ୨୪ ।
‘କାଠ କାଟିବୁ ବାବୁ’ ଏ କଥା କିଏ ପଚାରିଲା ?
Answer:
କାଠ ଚିରାଳି

(C) ଶୂନ୍ୟସ୍ଥାନ ପୂରଣ କର ।

Question ୧।
ଦୁଇ କୁଇଣ୍ଟାଲ କାଠ ଘର ସାମନା ପଡ଼ିଆରେ …………………. ରେ ଆଣି ପକାଗଲା ।
Answer:
ଠେଲାଗାଡ଼ିରେ

Question ୨।
……………………… କାଠ ଗୋଦାମରୁ କାଠ କିଣାଗଲା ।
Answer:
ଭାରତ

Question ୩।
କାଠ କୁଇଣ୍ଟାଲ ପ୍ରତି ଦର …………………… ଥିଲା ।
Answer:
ବାର ଟଙ୍କା

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Question ୪ ।
ଲେଖକ କାଠ ଗୋଦାମରୁ …………………. କାଠ କିଶିଥ୍ ଲୋ
Answer:
ଧଅ

Question ୫।
………………………… ମାନଙ୍କର ହାଣ୍ଡିଆ ଖୁଆ, କୁକୁଡ଼ା ଲଢ଼େଇ, ଧୂମୂଷା ମାଦଳ ନ ସରିବା ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ କାଠ ଚିରା ହୋଇପାରିବ ନାହିଁ ।
Answer:
ସାନ୍ତାଳ

Question ୬ ।
କାଠ ଠାରୁ ………………………… ଚୁଲା ଶସ୍ତା ହେବ ବୋଲି ଗାଳ୍ପିକ କହିଛନ୍ତି ।
Answer:
ଗ୍ୟାସ

Question ୭।
ଗୋଦାମବାଲା ………………… ଆଡ଼େ ଦୋକାନ ଚାବି ଦେଇ ଯାଇଥିଲା ।
Answer:
ପାହାଡ଼

Question ୮ ।
କାଠ କଟାଳିର ଘର …………………….. ଜିଲ୍ଲାରେ ଅବସ୍ଥିତ ।
Answer:
ମୟୂରଭଞ୍ଜ

Question ୯ ।
କାଠ କଟାଳିର କୁରାଢ଼ି ……………………… କିଲୋ ଲୁହାରେ ତିଆରି କରିଛି ।
Answer:
ଦୁଇ

Question ୧୦ ।
କାଠୁରିଆ ……………………….. ଗଛରୁ ଓଢ଼ଣି ଆଣି କୁରାଢ଼ି କାନ୍ଧରେ ପକାଇ ପାଉଣା ପାଇଁ ଛିଡ଼ା ହେଲା ।
Answer:
ବେଗୁନିଆ ।

(D) ଠିକ୍ ଉକ୍ତି ପାଇଁ (✓) ଓ ଭୁଲ୍ ଉକ୍ତି ପାଇଁ (✗) ଲେଖ ।

୧ । କାଠ ଚିରାଳି ଶେଷରେ ଚାରି ଅଣା ନେବାକୁ ରାଜି ହେଲା ।
୨ । ମୋତି ଭୋ ଭୋ ଭୁକି ଉଠିଲା ।
୩ । ଶାଳ ଗଛରୁ ଓଢ଼ଣି ଆଣି କୁରାଢ଼ି କାନ୍ଧରେ ପକାଇ ଛିଡ଼ା ହେଲା ପାଉଣାର ଆଶାରେ ।
୪। ମର ଡଗର ଡାଗର ପୁଅ ଦୁଇଟା ଆର ଆଗ ତିର୍ଲାଟା ଏକାଦିନରେ ମରିଗଲେ ।
୫। କାଠ ଚିରାଳିକୁ ଗାଳ୍ପିକ ମୁଢ଼ି, କଷା ମାଉଁସ ଖାଇବାକୁ ଦେଲେ ।
୬ । ଢିଲା ଆଉ ଛୁଆ ଦୁଇଟା ପଖାଳ ମୁଠାଏ ଖାଇ କରି ସଡ଼ପ କାମକୁ ଗଲେ ।
୭ । ଗାଳ୍ପିକ କାଠ କୁଇଣ୍ଟାଲ ବାର ଟଙ୍କା ଦାମ୍‌ରେ କିଣିଲେ ।
୮ । ଗାଳ୍ପିକ ବର୍ଷାଦିନ ସକାଳୁଆକୁ ଉପଭୋଗ କରୁଥିଲେ ।
୯ । ଆଦିବାସୀ କାଠ ଚିରାଳି ସରଳ ମଣିଷଟିଏ ।
୧୦ । ବିଶ୍ଵାସୀ ମଣିଷକୁ ଅବିଶ୍ୱାସୀ କହିଲେ, ତାର ଦେହ ଚହଲିଯାଏ ।
Answer:
୧ । କାଠ ଚିରାଳି ଶେଷରେ ଚାରି ଅଣା ନେବାକୁ ରାଜି ହେଲା । (✗)
୨ । ମୋତି ଭୋ ଭୋ ଭୁକି ଉଠିଲା ।(✓)
୩ । ଶାଳ ଗଛରୁ ଓଢ଼ଣି ଆଣି କୁରାଢ଼ି କାନ୍ଧରେ ପକାଇ ଛିଡ଼ା ହେଲା ପାଉଣାର ଆଶାରେ । (✗)
୪। ମର ଡଗର ଡାଗର ପୁଅ ଦୁଇଟା ଆର ଆଗ ତିର୍ଲାଟା ଏକାଦିନରେ ମରିଗଲେ । (✓)
୫। କାଠ ଚିରାଳିକୁ ଗାଳ୍ପିକ ମୁଢ଼ି, କଷା ମାଉଁସ ଖାଇବାକୁ ଦେଲେ । (✗)
୬ । ଢିଲା ଆଉ ଛୁଆ ଦୁଇଟା ପଖାଳ ମୁଠାଏ ଖାଇ କରି ସଡ଼ପ କାମକୁ ଗଲେ । (✓)
୭ । ଗାଳ୍ପିକ କାଠ କୁଇଣ୍ଟାଲ ବାର ଟଙ୍କା ଦାମ୍‌ରେ କିଣିଲେ । (✓)
୮ । ଗାଳ୍ପିକ ବର୍ଷାଦିନ ସକାଳୁଆକୁ ଉପଭୋଗ କରୁଥିଲେ । (✗)
୯ । ଆଦିବାସୀ କାଠ ଚିରାଳି ସରଳ ମଣିଷଟିଏ । (✓)
୧୦ । ବିଶ୍ଵାସୀ ମଣିଷକୁ ଅବିଶ୍ୱାସୀ କହିଲେ, ତାର ଦେହ ଚହଲିଯାଏ । (✗)

(E) ସ୍ତମ୍ଭ ମିଳନ କର ।

Question 1
‘କ’ ସ୍ତମ୍ଭର ଶବ୍ଦ ସହିତ ‘ଖ’ ସ୍ତମ୍ଭର ସମ୍ପର୍କ ଥିବା ଶବ୍ଦକୁ ଯୋଡ଼ି ଲେଖ ।

‘କ’ ସ୍ତମ୍ଭ ‘ଖ’ ସ୍ତମ୍ଭ
ଧୁମୁଷା ଶାତ
କଣିକଶି କାଠ
ଧଅ କିତାବ
ହିସାବ ମାଦଳ
ଭଗର ଭାଗର ପୁଅ

Answer:

‘କ’ ସ୍ତମ୍ଭ ‘ଖ’ ସ୍ତମ୍ଭ
ଧୁମୁଷା ମାଦଳ
କଣିକଶି ଶାତ
ଧଅ କାଠ
ହିସାବ କିତାବ
ଭଗର ଭାଗର ପୁଅ

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Question 2
‘କ’ ସ୍ତମ୍ଭର ଶବ୍ଦ ସହିତ ‘ଖ’ ସ୍ତମ୍ଭର ସମ୍ପର୍କ ଥିବା ଶବ୍ଦକୁ ଯୋଡ଼ି ଲେଖ ।

‘କ’ ସ୍ତମ୍ଭ ‘ଖ’ ସ୍ତମ୍ଭ
ଧକକାଠ କୁକୁରପାଦ
ଭାରତ ଏଲୁମିନିୟମ୍ ତିଆରି
ନାଲି ଧଡି କାଠ ଖୋଦାମ
ମୋଟା ଶାଢ଼ି
ଚେନାଚେପରା ବାରୁଦ ପରି ଜଳିବା

Answer:

‘କ’ ସ୍ତମ୍ଭ ‘ଖ’ ସ୍ତମ୍ଭ
ଧକକାଠ ବାରୁଦ ପରି ଜଳିବା
ଭାରତ କାଠ ଖୋଦାମ
ନାଲି ଧଡି ଶାଢ଼ି
ମୋଟା ଏଲୁମିନିୟମ୍ ତିଆରି
ଚେନାଚେପରା କୁକୁରପାଦ

ଗାଳ୍ପିକ ପରିଚୟ ।

ଗାଳ୍ପିକ ବସନ୍ତ କୁମାର ଶତପଥୀ ସାହିତ୍ୟ ଜଗତର ଜଣେ ଅନନ୍ୟ ପ୍ରତିଭା । ସାହିତ୍ୟର ବିଭିନ୍ନ ବିଭାଗରେ ନିଜର ରୁଦ୍ଧିମନ୍ତ ରଚନା ପାଇଁ ସେ ବେଶ୍ ସୁପରିଚିତ । ମୟୂରଭଞ୍ଜ ଜିଲ୍ଲାର ବାରିପଦା ସହରର ଅନତିଦୂରରେ ପାନ୍ଧଡ଼ା ନାମକ ଗ୍ରାମରେ ସେ ୧୯୧୩ ମସିହା ଜୁନ୍ ମାସ ୨୬ ତାରିଖରେ ଜନ୍ମଗ୍ରହଣ କରିଥିଲେ । ସେ ଅତ୍ୟନ୍ତ ଦୁର୍ଦ୍ଦିନମୟ ଜୀବନ ଜୀବିକାର ଝଡ଼ଝଞ୍ଜା ମଧ୍ଯରେ ଇଂରାଜୀ ସାହିତ୍ୟରେ ସ୍ନାଡକୋତ୍ତର ଡିଗ୍ରୀ ହାସଲ କରି ବାରିପଦା ରାଜାଙ୍କ ଅଧସ୍ତନ କର୍ମଚାରୀ ଭାବରେ ଚାକିରି ଜୀବନ ଆରମ୍ଭ କରିଥିଲେ । ୧୯୪୯ ମସିହାରେ ମୟୂରଭଞ୍ଜ ଜିଲ୍ଲାର ଓଡ଼ିଶା ସହ ମିଶ୍ରଣ ‘ହେବାରୁ ତାଙ୍କୁ ‘ଭଞ୍ଜ ପ୍ରଦୀପ’ର ସମ୍ପାଦନା ଦାୟିତ୍ଵ ମିଳିବା ସହ ଇଂରାଜୀ ସାହିତ୍ୟର ଅଧ୍ୟାପକ ଭାବରେ ସେ କାର୍ଯ୍ୟରେ ଯୋଗ ଦେଇଥିଲେ । ସୁନାମଧନ୍ୟ ବାଲେଶ୍ଵରର ଫକୀରମୋହନ କଲେଜରୁ ଅଧ୍ୟାପକ ଭାବେ ଅବସର ନେବା ପରେ ନିଜର ଦକ୍ଷତା ଓ କର୍ତ୍ତବ୍ୟ ନିଷ୍ଠା ପାଇଁ ସୋର କଲେଜରେ ପୁନର୍ବାର ଅଧ୍ୟକ୍ଷ ହେବାର ସୌଭାଗ୍ୟ ଅର୍ଜନ କରିପାରିଥିଲେ ।

ପ୍ରଫେସର ବସନ୍ତ କୁମାର ଶତପଥୀ ଇଂରାଜୀ ଅଧ୍ୟାପକ ଓ ପରେ ପରେ ଅଧ୍ୟକ୍ଷ ଭାବରେ କାର୍ଯ୍ୟଭାର ତୁଲାଇଲାବେଳେ ନିଜକୁ ଜଣେ ବିଶିଷ୍ଟ ଶିକ୍ଷାବିତ୍, ପ୍ରଶାସକ ତଥା ଛାତ୍ରବତ୍ସଳ ଶିକ୍ଷକ ଭାବେ ପ୍ରମାଣିତ କରିଥିଲେ । ସାହିତ୍ୟ ସାଧନା କ୍ଷେତ୍ରରେ ସେ ନିଜକୁ ବ୍ରତୀ କରିପାରିଥିଲେ । ତାଙ୍କର ଗଳ୍ପସମ୍ଭାର ଚରିତ୍ରଗୁଡ଼ିକରେ ନିବିଡ଼ ମାନବିକତାର ମଧୁର ସମନ୍ଵୟ ସହ ସମ୍ବେଦନଶୀଳତାର ଚିତ୍ର ବେଶ୍ ପ୍ରଭାବଶାଳୀ ଓ ଆବେଗଧର୍ମୀ ଥିଲା । ସ୍ଵକୀୟ କଥାଶୈଳୀ ଓ ମନସ୍ତାତ୍ତ୍ଵିକ ସୂକ୍ଷ୍ମତା ତାଙ୍କ ଗଳ୍ପରେ ମାର୍ମିକ ଭାଷାରେ ପରିବେଷିତ ହୋଇପାରିଥିଲା ।ଶିକ୍ଷା ଓ ଶିକ୍ଷାୟତନ ମଧ୍ୟରେ ବାନ୍ଧି ନ ହୋଇ ପ୍ରଫେସର ବସନ୍ତ କୁମାର ଶତପଥୀ ନିଜକୁ ସାହିତ୍ୟ ସାଧନା ମଧ୍ୟରେ ନିମଗ୍ନ ରଖ୍ ରଚନା କରିଛନ୍ତି ଅନେକ କାଳଜୟୀ ସୃଷ୍ଟି । ସେ ଥିଲେ ଏକାଧାରାରେ ଜଣେ ଅଧ୍ୟାପକ, ଗାଳ୍ପିକ, ଲେଖକ, ସମାଲୋଚକ, ନାଟ୍ୟକାର ଓ କଥାକାର ।

ତାଙ୍କ ରଚିତ ଗଳ୍ପଗୁଡ଼ିକ ମଧ୍ୟରେ ‘ଗୋଟାଏ ଆଳୁ’’, ‘ଗଙ୍ଗା ଓ ଗାଙ୍ଗୀ’’, ‘ଆକାଶୀଫୁଲ’’, ‘ନୀଡ଼ାଶ୍ରୟୀ’’, ‘‘ହାଇଦ୍ରାବାଦ ‘ଅଙ୍ଗୁର’’, ‘ମାଂସାସୀମାନଙ୍କ ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ’’, ‘ଅଜାଗା ଘାଆ’’, ‘ମେଜର ଅପରେସନ’’, ‘ଗରିବ ହଟାଓ’’ ଓ ଅନ୍ୟାନ୍ୟ ଗଳ୍ପ’ ଓ ‘ପୁଅ ପାଇଁ ଝିଅ’ ପ୍ରଭୃତି ଅତ୍ୟନ୍ତ ସମାଜ ଉପଯୋଗୀ ସୃଷ୍ଟି । ନାଟକ ଓ ଏକାଙ୍କିକା ରଚନା କ୍ଷେତ୍ରରେ ମଧ୍ୟ ସେ ବେଶ୍ ପାଠକୀୟ ଶ୍ରଦ୍ଧାଭାଜନ ହୋଇପାରିଥିଲେ । ବ୍ୟାସକବି ଫକୀରମୋହନ ସେନାପତିଙ୍କ ସାହିତ୍ୟକୃତି ଉପରେ ତାଙ୍କର ଆଲୋଚନା ମଧ୍ୟ ଅତି ଉଚ୍ଚକୋଟୀର ହୋଇପାରିଥିଲା । କଥାକାର ତଥା ଗାଳ୍ପିକ ପ୍ରଫେସର ବସନ୍ତ କୁମାର ଶତପଥୀ ‘ ‘ଆଣ୍ଟିରୋମାଣ୍ଟିକ୍‌’ ଗଳ୍ପ ସଂକଳନ ପାଇଁ ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟ ଏକାଡ଼େମୀ ଦ୍ଵାରା ପୁରସ୍କାର ଲାଭ କରିପାରିଥିଲେ ।

କବିତାର ପ୍ଠଷ୍ଠଭୂମି

ଆଜିର ଦୈନନ୍ଦିନ ଜୀବନରେ ଘଟୁଥ‌ିବା ପ୍ରବହମାନ ଘଟଣାବଳୀ ଚକ୍ରରେ ପ୍ରତ୍ୟକ୍ଷ ଓ ପରୋକ୍ଷରେ ଅବହେଳିତ, ନିସ୍ପେଷିତ, ଲୁଣ୍ଠିତ ଓ ଅତ୍ୟାଚାରିତ ସମାଜର ନିମ୍ନବର୍ଗ ବ୍ୟକ୍ତିମାନଙ୍କର ସରଳତାର ସୁଯୋଗ ନେଇ କିଭଳି ଆଧୁନିକ ଉଚ୍ଚବର୍ଗ ସ୍ବାର୍ଥ ଓ ଶଠତାଦ୍ୱାରା ତାଙ୍କୁ ପ୍ରତାରିତ କରେ ଏବଂ ଚାପା ଗୁଞ୍ଜରିତ ହେଉଥ‌ିବା ନିମ୍ନବର୍ଗର ସ୍ବାଭିମାନର ନିଚ୍ଛକ ପ୍ରତିକ୍ରିୟା କିପରି ଅବଲୋକତ ହୁଏ, ତାହା କଥାକାର ଗାଳ୍ପିକ ପ୍ରଫେସର ବସନ୍ତ କୁମାର ଶତପଥୀ ଅତି ଚମତ୍କାର ଭାବରେ ମାର୍ମିକ କଥ୍ତ ଭାଷାରେ ଉପସ୍ଥାପନ କରିଛନ୍ତି । ଗାଳ୍ପିକ ଅତି ସୁନ୍ଦର ଭାବରେ କଥାବସ୍ତୁ ମାଧ୍ୟମରେ ଉଚ୍ଚବର୍ଗ ଓ ନିମ୍ନବର୍ଗର କଥୋପକଥନରୁ ସାମ୍ପ୍ରତିକ ସମାଜର ବାସ୍ତବିକ ଚରିତ୍ରର ଚିତ୍ରଣ କରିଛନ୍ତି । ଉଚ୍ଚବର୍ଗ ନିମ୍ନବର୍ଗ ପ୍ରତି ଥିବା ହୀନ ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟ ପ୍ରଣୋଦିତ ବ୍ୟବହାର କିଭଳି ମାଟି ମାଆର ନିପଟ ଏକ ଆଦିବାସୀ ସମାଜର ଏକ କାଠ ହଣାଳି |ଚିରାଳିର ମନୋଭାବରେ ଗଭୀର ରେଖାପାତ କଲା ଏବଂ ତା’ ଅନ୍ତରର ଅଭିବ୍ୟକ୍ତି ମାଧ୍ୟମରେ ନିଜର ସଜୋଟପଣିଆ ଓ ସ୍ବାଭିମାନସମୃଦ୍ଧ ବ୍ୟକ୍ତିର ପରିଚୟ ଦେଲା, ତାହା କଥାକାର ତଥା ବିଶିଷ୍ଟ ଗାଳ୍ପିକଙ୍କ ଗଳ୍ପ ‘‘କାଠ’’ରେ ଏକ ଜ୍ଵଳନ୍ତ ଉଦାହରଣ ହୋଇପାରିଛି ।

BSE Odisha 10th Class Odia Solutions Chapter 14 କାଠ

ଗତ୍ତର ସାରକଥା:

‘କାଠ’ ଗଳ୍ପରେ କଥାକାର ବସନ୍ତ କୁମାର ଶତପଥୀ, ତଥାକଥ୍ତ ସଭ୍ୟ ଓ ନିଜକୁ ଚାଲାକ ବୋଲାଉଥ‌ିବା ମଣିଷଙ୍କର ସୁବିଧାବାଦୀ ଚିନ୍ତାଧାରାକୁ ସୁନ୍ଦର ଭାବରେ ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛନ୍ତି । ଅପରପକ୍ଷରେ ଯେଉଁମାନେ ପରିଶ୍ରମ କରି ବଞ୍ଚିବାର ସାମର୍ଥ୍ୟ ସଂଗ୍ରହ କରନ୍ତି, ସେମାନଙ୍କ ହୃଦୟରେ ରହିଥ‌ିବା ସରଳ ଭାବକୁ, ସେ ଅତି ସୁନ୍ଦର ଭାବରେ ପ୍ରକାଶ କରିଛନ୍ତି । ଖଟି ଖାଉଥ‌ିବା, ପରିଶ୍ରମ କରି ଦୁଇ ପଇସା ରୋଜଗାର କରୁଥିବା ମଣିଷମାନେ, ଦିହ ମେହନତ କରି ବଞ୍ଚନ୍ତି, ହେଲେ ସେମାନଙ୍କର ସ୍ୱାଭିମାନକୁ ସେମାନେ କେବେହେଲେ ତଳେ ପକାଇଦେବାକୁ ଚାହାଁନ୍ତି ନାହିଁ । ସହଜ ସରଳଭାବରେ ପରିଶ୍ରମ
କରି ମୂଲ ମାଗନ୍ତି, ଠକି କିମ୍ବା ଧପେଇ ନେବାକୁ ଉଚିତ ମନେକରନ୍ତି ନାହିଁ । ଯେତେବେଳେ ସେମାନଙ୍କୁ କେହି ମୂଲଚାଲ କରି ଠକିବାକୁ ଚାହେଁ, ସେତେବେଳେ ସେମାନେ ସବୁକିଛି ଛାଡ଼ିଦେଇ ଯିବାକୁ ସୁଦ୍ଧା ପଛାନ୍ତି ନାହିଁ । ଗଳ୍ପଟିରେ ଗାଳ୍ପିକ ସାମ୍ପ୍ରତିକ ସଭ୍ୟ ମଣିଷମାନଙ୍କର ସଂକୀର୍ଣ୍ଣ ବିଚାରବୋଧକୁ ଦେଖାଇଦେବାକୁ ଚେଷ୍ଟା କରିଛନ୍ତି । ଗଳ୍ପପୁରୁଷ ଯାଇଛନ୍ତି ଜାଳେଣି କାଠ କିଣିବାପାଇଁ । ବହୁ ହିସାବ କିତାବ ଓ ତର୍କ ବିତର୍କ ପରେ ନିଷ୍ପତ୍ତି ନେଇଛନ୍ତି, ଚିରାକାଠ ଅପେକ୍ଷା ଗୋଦାମରୁ ଗଡ଼ ବା କାଠମୁଣ୍ଡା କିଣି ଆଣି ଚିରିଲେ ତାଙ୍କ ପାଇଁ ଲାଭଜନକ ହେବ । ସେହି ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ

ସେ ଗୋଦାମରୁ ଦୁଇ କୁଇଣ୍ଟାଲ ବିଶିଷ୍ଟ ଗଣ୍ଡିକାଠ ଆଣି ଘରପାଖ ପଡ଼ିଆରେ ପକାଇ ଦେଇଛନ୍ତି । ସେହି କାଠଗଣ୍ଡି କିଣିବା ପୂର୍ବରୁ ଗୋଦାମବାଲା କହିଛି, ସେହି କାଠଟି ଦୁଇ ବର୍ଷ ତଳର କାଠ । ଶୁଖି ଠଣ୍ ଠଣ୍ ହୋଇଯାଇଛି । ସେହି କାଠକୁ ନେଇ ଚିରାଇଦେଲେ, ଭଲ ଜାଳେଣି ହେବ । ବାରୁଦ ପରି ଜଳିବ । ଅନ୍ୟ କାଠ କମ୍ ପଇସା ହେଲେ ବି, କଞ୍ଚା ପଡ଼ିବ, ଭଲ ଜଳିବ ନାର୍ହି ବରଂ ଧୂଆଁ ହେବା

ଗଳ୍ପପୁରୁଷ ଥିଲେ ଜଙ୍ଗଲ ରାଜ୍ୟରେ ଜନ୍ମିଥିବା ଓ ବଢ଼ିଥିବା ମଣିଷ । ସେ ଜାଣିଛନ୍ତି କେଉଁ କାଠ କିପରି ଜଳିବ । ଅଧିକ ପଇସା ପଛେ ପଡ଼ୁ ଯେଉଁ କାଠ ଭଲ ଜଳିବ, ଧୂଆଁ ହେବ ନାହିଁ, ଘର ଅଳନ୍ଧୁ ହେବ ନାହିଁ, ସେହିଭଳି ଶୁଖୁଲା ଗଣ୍ଡିକାଠକୁ ସେ ବାଛିଛନ୍ତି । କାଠ ସପ୍ତାହ ହେଲା ଆସିଲେ ବି ଚିରିଲାବାଲାଙ୍କର ଦେଖା ନଥିଲା । କାରଣ ଯେଉଁ ଆଦିବାସୀ ସାନ୍ତାଳମାନେ କାଠ ଚିରନ୍ତି, ସେମାନେ ହାଣ୍ଡିଆଖିଆ, କୁକୁଡ଼ା ଲଢ଼େଇ, ଧୂମୂଷା ମାଦଳ ପର୍ବ ନସରିବା ଯାଏ କାମ କରିବାକୁ ଆସନ୍ତି ନାହିଁ । ତେଣୁ ସପ୍ତାହେ କାଳ କାଠ ଚିରାଳି ଲୋକଟିଏ ମିଳିବା କଷ୍ଟକର ହୋଇଛି । ଘରେ ଜାଳେଣି କାଠ ମଧ୍ଯ ସରିଯାଇଥାଏ । କାଠ ଚିରାହେଲେ ଚୁଲି ଜଳିବ ।

ସେଦିନ ଥାଏ ରବିବାର । ବାବୁ ଶୀତଦିନିଆ ସକାଳକୁ ବେଶ୍ ଉପଭୋଗ କରୁଥା’ନ୍ତି । ବାରଣ୍ଡାରେ ଆରାମ ଚେୟାର ପକାଇ, ଖରାଆଡ଼କୁ ପିଠିକରି ଖବରକାଗଜ ପଢୁଥା’ନ୍ତି । ଖବରକାଗଜରୁ ଆଦିବାସୀଙ୍କ ପାଇଁ ଗତ ତିରିଶ ବର୍ଷ ଭିତରେ କ’ଣ କ’ଣ ଉନ୍ନତିମୂଳକ କାର୍ଯ୍ୟ ହୋଇଛି, ତାହାର ବିବରଣୀ ଉପରେ ଆଖବୁଲେଇ ନେଉଥା’ନ୍ତି । ସେହି ସମୟରେ ମୋତି ଭୁକିବାରୁ, ସେ ଚମକି ପଡ଼ିଛନ୍ତି । ଦେଖୁଛନ୍ତି, ବୁଢ଼ା କାଠଚିରାଳିଟିଏ ତାଙ୍କରି ଆଡ଼କୁ ଆସୁଛି । ସିଧା ଆସି ପଚାରିଛି, କାଠ ଚିରିବା ପାଇଁ । ତାହାର କଥା କହିବାର ସହଜ ସରଳ ଶୈଳୀ ବାବୁଙ୍କୁ ପସନ୍ଦ ଆସିନାହିଁ । ତେଣୁ ସେ ଖତେଇ ହେବା ଭଳି କହିଛନ୍ତି, କାଠ କାଟିଲେ କେତେ ପଇସା ନେବୁ ।

ଆଦିବାସୀ କାଠଚିରାଳି ସରଳ ମଣିଷଟିଏ । ସେ ବୁଝିପାରେନି ସଭ୍ୟ ମଣିଷର ବ୍ୟଙ୍ଗବିସ୍ତୂପକୁ । ବରଂ ସହଜ ସରଳଭାବେ ଦୁଇ କୁଇଣ୍ଟାଲ୍ କାଠ ଚିରିଦେଲେ, ଚାରି ଟଙ୍କା ନେବ ବୋଲି କହିଛି । ସେହି କାଠ ବଜାରରେ ଚିରିଲେ ଯେଉଁ ଚାରିଟଙ୍କା ପାଇଥା’ନ୍ତା, ସେହି ଚାରି ଟଙ୍କା ନେବାକୁ କହିଛି । ବାବୁ କିନ୍ତୁ କାଠଚିରାଳିର ପରିଶ୍ରମର ମୂଲଚାଲ କରିଛନ୍ତି । ବିଭିନ୍ନ ପ୍ରକାର ହିସାବ କିତାବ କରି, ତିନି ଟଙ୍କା ଆଠଅଣ ନେବାକୁ କହିଛନ୍ତି । କାଠଚିରାଳିଟି ସରଳ ଭାବରେ ନିଜର ପରିସ୍ଥିତି କଥା ସୂଚିତ କରିଛି । ବାବୁଙ୍କୁ ବୁଝାଇବାକୁ ଚେଷ୍ଟା କରିଛି । କହିଛି, ଗୋଦାବବାଲା ନ ଥ‌ିବାରୁ ସେ ଏଠାକୁ ଆସିଛି ନୋହିଲେ ସେ ଆସିନଥା’ନ୍ତା ।

ଏହି ସମୟରେ ବାବୁଙ୍କ କଲେଜ ପଢୁଆ ପୁଅ କହିଛି, ଆଉ ଚାରି ଅଣା ଅଧିକ ନେଇ କାଠ ଚିରିଦେବାକୁ । ଏଥରେ ବାବୁ ବିରକ୍ତି ପ୍ରକାଶ କରିଛନ୍ତି ପୁଅ ଉପରେ । ତଥାପି ସେତିକିରେ ଅର୍ଥାତ୍ ତିନିଟଙ୍କା ବାରଅଣାରେ କାଠ ଚିରିଦେବାକୁ କହିଛନ୍ତିା ମୂଲଚାଲପରେ କାଠୁରିଆଟି କାଠ କାଟିଛି । ବୟସ ଓ ପାରିବା ପଣିଆରେ ସନ୍ଦେହ ହେଲେ ବି ସେ ତା’ର ଅଭ୍ୟସ୍ତ ଶୈଳୀରେ କାଠ ଚିରିଛି । କାଠ ଚିରିବାବେଳେ କାଠ ଚେମଡ଼ା, ଟାଣୁଆ, ଚିରିଲେ ହାତ ଫୁଟୁକା ହୋଇଯିବ ବୋଲି କହିଛି । କାଠଚିରାର ଫାଳ ବଡ଼ ହେବାରୁ ବାବୁ ଆହୁରି ଛୋଟ କରିବାକୁ କହିଛନ୍ତି, ଠିକ୍ ରୂପେ କାମ ନେବାକୁ ଚେଷ୍ଟା କରିଛନ୍ତି। ବାବୁଙ୍କର ଏପରି କଥାକୁ କାଠୁରିଆ ତାତ୍ସଲ୍ୟ କରିଛି । ସେ ସବୁ ଜାଣିଛି ବୋଲି ସଫେଇ ଦେଇ କହିଛି ।

କାଠ ଚିରିବା ଅବସରରେ, କାଠୁରିଆ ତା’ର ପରିଚୟ ଦେଇଛି । ଜୀବନରେ ଘଟିଯାଇଥବା ଦୁଃଖଦ ଘଟଣାକୁ ସହଜ ସରଳ ଭାବରେ ବଖାଣି ବସିଛି । ନିଜକୁ ବାବୁଙ୍କଠାରୁ ସାମାନ୍ୟ ବଡ଼ କରି ପ୍ରମାଣିତ କରିବାକୁ ଚାହିଁଛି । ତା’ ବିଚାରରେ ସେମାନଙ୍କ ପରିଶ୍ରମ ପାଇଁ ବାବୁମାନେ ସବୁ ସୁଖ ପାଉଛନ୍ତି । ବାବୁ, ଛୁଆଙ୍କୁ ପାଠ ପଢ଼ାଇବା କଥା ପଚାରିବାରୁ, ସେ ‘କହିଛି, ତାଙ୍କ ପିଲା ପାଠ ପଢ଼ିଲେ ବାବୁଙ୍କର କାମ କରିବାପାଇଁ ଲୋକ ମିଳିବେ ନାହିଁ । ବାବୁଙ୍କ ସହିତ କାଠଚିରାଳିଟି ସୁଖ ଦୁଃଖ ହୋଇଛି । ନିଜର ସହଜ ସରଳ ବିଚାରବୋଧକୁ ପ୍ରକାଶ କରିଛି । ତା’ର ଚଳଣିରେ ସେ ଖୁସିଥୁଲା ଭଳି ମନେହେ।ଇଛି

କାଠକୁ ଠିକ୍ ରୂପେ ବାଗେଇ ସାଗେଇ ଘଣ୍ଟାଏ ଦେଢ଼ଘଣ୍ଟାରେ କାଠୁରିଆ ଅଧାଅଧ୍ ଚିରିଦେଇଛି । ଲୋକଟି ଥକି ପଡ଼ିଲେ ବି ବାବୁ ତା’ଠାରୁ ଆହୁରି ଆହୁରି କାମ ଆଦାୟ କରିବାକୁ ଚେଷ୍ଟା କରୁଥା’ନ୍ତି । ଏପରିକି କୌତୂହଳବଶତଃ କୁରାଢ଼ିକୁ ଟେକି, କାଠ ଚିରିବାକୁ ଯାଇ ଅସଫଳ ହେଲେ ବି କାଠୁରିଆକୁ ପାରିଶ୍ରମିକ ଦେବାକୁ ସେ ଚାହିଁ ନାହାନ୍ତି । କାଠୁରିଆ କିନ୍ତୁ ସବୁକାମ ଠିକ୍ଠିକ୍ କରିବାର ପ୍ରୟାସ କରୁଥାଏ।

ବାବୁ ଦେଖୁଲେ କାଠୁରିଆର ପେଟ ପିଠିକୁ ଲାଗିଯାଉଛି । ତାକୁ ଖାଇବା କଥା ପଚାରିଛନ୍ତି ବାବୁ । ହେଲେ ଭଲ କରି ଗଣ୍ଡା ଖାଇବାକୁ ଦେବାକୁ ଚାହିଁ ନାହାଁନ୍ତି । ବରଂ ଦୁଇଦିନର ବାସିରୁଟି, ଯେଉଁ ରୁଟି ତାଙ୍କ ପୋଷାକୁକୁର ଖାଇବ ନାହିଁ, ସେହି ରୁଟି ଖାଇବାକୁ ଦେଇଛନ୍ତି । ଏଲୁମିନିୟମ୍ ପାଇଖାନା ଲୋଟାରେ ପାଣି ପିଇବାକୁ ଦେଇଛନ୍ତି । ସେହି ରୁଟି ଖାଇ, ପାଇଖାନା ଲୋଟାରେ ପାଣି ପିଇ ମଧ୍ୟ ସେ କିଛି ଭାବିନାହିଁ ବରଂ ସେହି ଲୋଟାକୁ ପାଉଁଶ ପକାଇ ମାଜି ଚିକ୍‌ଚିକ୍ କରିଦେଇଛି । ବାବୁ ଗଲେ ଭାତ ଖାଇବାକୁ । ଦେଖାଇ ଦେଇଗଲେ କାଠସବୁ କାଠଘରେ ସଜାଡ଼ି ରଖିବାକୁ । ବାବୁ ରବିବାରର ଗରିଷ୍ଠ ଭୋଜନ ଖାଇ, ସିଗାରେଟ୍ ଖଣ୍ଡେ ଧରି ଗଲେ କାଠ ଦେଖିବାକୁ । ସବୁ ଠିକ୍ ରହିଥିବା ଦେଖିଛନ୍ତି । ଛୋଟ ଛୋଟ କାଠକୁ ସଜାଡ଼ି ରରାଦ କରିଛନ୍ତି।

ସବୁକାମ ସରିଲା ପରେ ବାବୁ ଆଣି ଦେଇଛନ୍ତି, ଦିଖଣ୍ଡ ଦି’ଟଙ୍କିଆ ନୋଟ୍ । ଚାରିଅଣା ପଇସା ଫେରାଇବାକୁ କହିଛନ୍ତି । କାଠୁରିଆଟି ନିଜର ଅସାମର୍ଥ୍ୟ ପ୍ରକାଶ କରିଛି । ତଥାପି ବଜାରରୁ ଭଙ୍ଗେଇ ଆଣି ଚାରିଅଣା ପଇସା ଦେବାକୁ ବାବୁ ବାଧ୍ୟ କରିଛନ୍ତି । କାଠୁରିଆଟି କହିଛି, ଭବିଷ୍ୟତରେ ମୁଁ କାଠଚିରି ପଇସା ଶୁଝିଦେବ । ମାତ୍ର ବାବୁ କହିଛନ୍ତି, ‘ତୁ ଆସିବୁ ନ ଆସିବୁ କି ବିଶ୍ଵାସ’ ।

ବିଶ୍ଵାସୀ ମଣିଷକୁ ଅବିଶ୍ୱାସ କହିଲେ, ତା’ର ମୁଣ୍ଡ ଚହଲିଯାଏ । ସେ ଜାଣିପାରେ ସଭ୍ୟ ମଣିଷର ଶୋଷଣର କଥାକୁ । ତେଣୁ କାଠୁରିଆ ଆଖି ଲାଲ୍ ଲାଲ୍ କରି କହିଛି – “କି କହିଲୁ ବାବୁ ! କି ବିଶ୍ଵାସ ! ଏତେବେଳେଯାଏଁ ମତେ ଟେକାଟେକି କରି, ଭୁଲେଇ ବୁଲେଇ ତୋର ସବୁକାମ ଆଦାୟ କରିନେଲୁ। ମର ଜମିଜାଇଗା ବି ସବୁ ତମରମାନେ ନେଲା, ମର ନ କରିବା କାମ ବି କରିଦେଲି । ଦୁଇଟା ଶୁଖିଲା ରୁଟିଦେଲୁ ଯେ ଭାବିଛୁ ଢେର ଦେଲୁ । କହୁଛି କି ବିଶ୍ଵାସ ! ଆମର କି ମଣିଷ ନାଇଁ ବଣର ଭାଲୁ ହେଇଛି ? ପଇସାରେ ବଡ଼ ନୁକି ଦେଖେଇ ହେଉଛୁ । ମୁଁ ତୋର ଚାଲାକି ସବୁ ବୁଝିଛି । ନେ ତର ପଇସା ।”

ନୋଟ ଦୁଇଟାକୁ ବାବୁଙ୍କ ଆଡ଼କୁ କାଠୁରିଆ ଫୋପାଡ଼ି ଦେଇ, ଥମଥମ୍ କରି ଫାଟକ ପାରହୋଇ ସଡ଼କ ଧରିଛି । ବାବୁ କାଠୁରିଆର ବ୍ୟବହାରରେ ଡରିଯାଇଛନ୍ତି । ସେ ଜାଣି ପାରିଛନ୍ତି, ତାକୁ ଏପରି କଥା କହି, ସେ ଭୁଲ୍ କରିଛନ୍ତି । କାଠୁରିଆ ହୁଏତ ଅଘଟଣ ଘଟାଇ ଦେବ ବୋଲି ଆଶଙ୍କା କରିଛନ୍ତି । ସେ ଆତଙ୍କିତ ହୋଇ ଚୈତନ ହାତରେ ନୋଟ ଦୁଇଟି ତାକୁ ଦେବାକୁ ଧରେଇ ଦେଇ, ଘର ଭିତରକୁ ଚାଲିଯାଇଛନ୍ତି । ସର୍ବାଙ୍ଗ ତାଙ୍କର ଝାଳରେ ବୁଡ଼ିଯାଇଛି ।

BSE Odisha 10th Class Odia Solutions Chapter 14 କାଠ

କାଠିନ ଶବ୍ଦାର୍ଥ ଓ ଟିପ୍ପଶା

  • ଧଅ କାଠ – ଏକ ଧ୍ଵସର ବର୍ଣ୍ଣର ନିଦା କାଠ
  • ହସ୍ତାଏ – ଏକ ସପ୍ତାହ
  • ଧ୍ୱମୂଷା ମାଦଳ – ଏକ ବାଦ୍ୟଯନ୍ତ୍ର
  • ଫାଳ ଏ – କାଠଗଣ୍ଡିର ଆଧା
  • କଣିକଶି ଶାତ – ହାଡ଼ଭଙ୍ଗା ଶାତ
  • ଖଢେଇ – ମୁହଁକୁ ବିକୃତ କରି ଦେଖାଇବା
  • ଗୁଟେ – ଗୋଟାଏ
  • ଗେସ ଗୁଲି – ଗ୍ୟାସ ଚୁଲି
  • କାଠୁଆ – କାଠ ଚିଚାଳି
  • ନୁକ – ଲୋକ
  • ନାର୍ଗ – ପାଇଁ
  • ତର – ତୋର
  • ଦରଜା – କବାଟ
  • ନାଭ – ଲାଭ
  • ମର – ମୋର
  • ନୁକ ସାନ୍ – କ୍ଷତି
  • ବାଝୁଆ -ମଞ୍ଜ କାଠ
  • ଏଗା – ଏଗୁଡ଼ା
  • ତାତ୍ସଲ୍ୟ କରି – ପରିହାସ କରି
  • ରକମ – ପ୍ରକାର
  • କେତଡ଼ – ଗହୁତ/କେତେ କେତେ
  • ତଗର ଭାଗର – ୪ /୫ ବର୍ଷର ଛୋଟ ଖେଳୁଆଡ଼ ବୟସର ପିଲା
  • ଆରମ ଆଗ ନିର୍ଲାଟା – ଏହା ପୂର୍ବ ସ୍ରାଟା
  • ଦେନା – ଦେଲା
  • ମତପ୍ କାମ – ରାସ୍ତ୍ରୀ କାମ
  • ତିରିଲା – ପ୍ତା
  • କଟେଇ – ଅସ୍ତ୍ରୋପଚାର
  • ଧ୍ ମେଇ – ଧାରେ ଧାରେ
  • ଚାତୁରା – କଳା କୌଶଳ
  • ଠିକିରି ପଡ଼ିବା – ଛିଟିକି ପଡ଼ିବା
  • ନୁହା – ଲୁହା
  • ଗୁଦାମ – ଗୋଦାମ
  • ଦୁଇ କିଲ ଆର ଅଧେ – ଅଢେଇ କିଲେ।
  • ଶେଷ ପ୍ରସ୍ତ – ଛାନିଆ ଶେଷ ପର୍ଯ୍ୟୟ କାମ
  • ଧଇଲା – ଆରମ୍ଭ କଲା
  • ତାଦ୍ଦଣ୍ଡେ – ସଙ୍ଗେ ସଙ୍ଗେ/ତତ୍ କ୍ଷଣାତ୍
  • ଭିଶି – ଖେଳେଇ ହୋଇ/ ବିଛାଡ଼ି ହୋଇ
  • ଗରନା – ଝାତୁ
  • ଚେଳଚେପାରା – ଛୋଟ ଛୋଟ ଖଣ୍ଡ ଓ ଚୋପା ଚୋପରା
  • ବିନା ଓଜର ଆପତ୍ତିରେ – ବିନା ପ୍ରତିବାଦରେ
  • ପାଉଶା – ପାରିଶ୍ରମିକ / ମଜୁରି
  • ଭଙ୍ଗେଇ – ଖୁଚୁରା
  • ରଇବାର – ରବିବାର
  • ଦୁକାନ – ଦୋକାନ
  • ସଞ୍ଚତ – ଗଛିତ
  • ଆମଥମ -ରାଗରଗ
  • ଏକମୁହଁ – ଏକତରଫା
  • ରୁଦ୍ର ମୂର୍ତ୍ତ – ଭୟଙ୍କର
  • ଉପଲବ୍ଜି – ବୁଝିଲି
  • ଉତକ୍ତ – ରାଗିଯିବା

+2 1st Year Sanskrit Optional Solutions Chapter 3 ମୁଦ୍ରିକା ପ୍ରାପ୍ତି Question Answer

Odisha State Board Plus Two First Year Sanskrit Optional Solutions Chapter 3 ମୁଦ୍ରିକା ପ୍ରାପ୍ତି Textbook Exercise Questions and Answers.

Plus Two First Year Sanskrit Optional Chapter 3 ମୁଦ୍ରିକା ପ୍ରାପ୍ତି Question Answer

अतिसंक्षेपेण उत्तरं लिखत-

(क) बन्धनीमध्यात् शुद्धम् उत्तरं चित्वा लिखत-

Question 1.
‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्’ नाटकस्य रचयिता ___________________। (व्यास:, कालिदासः, मुरारि)
Answer:
कालिदासः

Question 2.
‘मुद्रिकाप्राप्ति:’ नाटकस्य ___________________ अङ्कात् आनीतः। (पञ्चम, षष्ठ, सप्तम)
Answer:
षष्ठ

Question 3.
प्रसीदन्तु प्रसीदन्तु मे ___________________। (महोदयाः, महाशयाः, भावमिश्रा:)
Answer:
भावमिश्रा:

Question 4.
राज्ञा ते ___________________ दत्तः। (दण्डः, परिग्रहः, मुद्रिका)
Answer:
परिग्रहः

Question 5.
अहं खलु ___________________ निवासी धीवरः। (शक्रावतार, गङ्गा, हिमालय)
Answer:
शक्रावतार

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 3 ମୁଦ୍ରିକା ପ୍ରାପ୍ତି

Question 6.
धीवरः ___________________ कुटुम्वभरणम् अकरोत्। (कृषिकार्यै:, मत्स्यवन्धनोपायैः, पशुपालनैः)
Answer:
मत्स्यवन्धनोपायैः

Question 7.
एकस्मिन् दिवसे मया ___________________ प्राप्तः। (रोहितमत्स्यकः, झषः, कर्कट:)
Answer:
रोहितमत्स्यकः

Question 8.
मत्स्यस्य उदराभ्यन्तरे ___________________ प्रेक्षितम्। (हारं, अङ्गुलीयकं, नूपुरं)
Answer:
अङ्गुलीयकं

Question 9.
प्रविशतु ___________________ स्वामिप्रसादार्थम्। (भावमिश्र, महोदय, आवुत्त:)
Answer:
आवुत्त:

Question 10.
राजा धीवरं ___________________ प्रदत्तम्। (अङ्गुलीयकं, पारितोषिकं, हारं)
Answer:
पारितोषिकं

Question 11.
धीवरः शूलादवतीर्य्य ___________________ स्कन्धे समारोपितः। (हस्ति, अश्व, मनुष्य)
Answer:
हस्ति

Question 12.
तस्य दर्शनेन भक्त कोऽपि ___________________ जनः स्मृतः। (वन्धु, अभिमत:, अन्ध)
Answer:
अभिमत:

Question 13.
राजा मुहूर्तं प्रकृति गम्भीरोऽपि ___________________ आसीत्। (पर्युत्सुकमना, दुःखमना, आनन्दमना)
Answer:
पर्युत्सुकमना

Question 14.
इतः अर्द्ध युष्माकमपि ___________________ मूल्यं भवतु। (रत्नः, सुमन:, हारं)
Answer:
सुमन:

Question 15.
___________________ कर्म न विवर्जनीयम्। (चौर:, क्षौर:, कौलिकं)
Answer:
कौलिकं

(ख) अतिसंक्षेपेण उत्तरं लिखत-

Question 1.
कं ताड़यित्वा रक्षिणौ प्रविशतः?
Answer:
ପୁରୁଷକୁ

Question 2.
दृश ब्राह्मण इति राज्ञा ते परिग्रहो दत्त?
Answer:
ସୁନ୍ଦର ବ୍ରାହ୍ମଣ

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 3 ମୁଦ୍ରିକା ପ୍ରାପ୍ତି

Question 3.
धीवरः कुत्र अवसत्?
Answer:
ଶକ୍ରାବତାରତୀର୍ଥରେ

Question 4.
धीवर: जालवड़िशमत्स्यबन्धनोपायैः किं करोति?
Answer:
ପରିବାର ପ୍ରତିପୋଷଣ

Question 5.
कीदृशः कर्म न विवर्जनीयम्?
Answer:
କୌଳିକକର୍ମ

Question 6.
श्रोत्रियः कुत्र दारुणः भवति?
Answer:
ପଶୁବଧ କାର୍ଯ୍ୟରେ

Question 7.
एकस्मिन्दिवसे धीवरः किं प्राप्तः?
Answer:
ରୋହିମାଛଟିଏ

Question 8.
यदा रोहित: खण्डशः कृतः तस्य उदराभ्यन्तरे किं प्रेक्षितम्?
Answer:
ଅଙ୍ଗୁଳୀୟକ ବା ମୁଦି

Question 9.
सूचक ! इह कुत्र अप्रमत्तौ मां प्रतिपालयतम्?
Answer:
ଗୋପୁରଦ୍ବାରରେ

Question 10.
अग्रहस्तौ मे इमं कं व्यापादयितुं स्फुरत:?
Answer:
ଗ୍ରନ୍ଥିଛେଦକକୁ

Question 11.
अस्माकमीश्वरः किं धृत्वा आगच्छति?
Answer:
ରାଜାଙ୍କ ଆଦେଶପତ୍ର

Question 12.
अधुना धीवरः केषां वलिर्भवतु?
Answer:
ଶାଗୁଣା ଓ ବିଲୁଆଙ୍କର

Question 13.
जालोपजीविकः कुत्र गत्वा प्रतिनिवृत्तः?
Answer:
ଯମାଳୟକୁ

Question 14.
एतद् भक्ती अङ्गुलीयकमूल्यसस्मितं किं ते दत्तम्?
Answer:
ପୁରସ୍କାର

Question 15.
धीवरः राज्ञा तथा अनुगृहीतः यथा कस्मात् अवतार्य हस्तिस्कन्धे समारोपितः?
Answer:
ଶୂଳିରୁ

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 3 ମୁଦ୍ରିକା ପ୍ରାପ୍ତି

Question 16.
कस्य दर्शनेन भर्ती को ऽप्यभिमतो जनः स्मृतः?
Answer:
ମୁଦ୍ରିକାର

Question 17.
भट्टारक ! इतः अर्धं युष्माकमपि किं भवतु?
Answer:
ଫୁଲକିଣାର ମୂଲ୍ୟ

Question 18.
धीवरः रक्षिणां महत्तरः कः संवृत्तः?
Answer:
ପ୍ରିୟମିତ୍ର

(ग) उत्कलभाषया अनुवादं कुरुत-

Question 1.
नामीदृशस्य अकार्यस्य कारकः।
Answer:
ମୁଁ ଏପରି ଅକର୍ମ କରେ ନାହିଁ ।

Question 2.
अहं खलु शक्रावतारवासी धीवरः।
Answer:
ମୁଁ ଶକ୍ରବତାରତୀର୍ଥରେ ବାସ କରୁଥିବା ଧୀବର ଅଟେ |

Question 3.
विशुद्ध इदानीमस्य आजीवः।
Answer:
ବଡ଼ ପବିତ୍ର ଜୀବିକାଟିଏ ।

Question 4.
एकस्मिन् दिवसे मया रोहितमत्स्यकः प्राप्तः।
Answer:
ଏକଦିନେ ମୁଁ ରୋହିମାଛଟିଏ ପାଇଲି ।

Question 5.
पश्चादहं विक्रयार्थं दर्शयन्नेव गृहीतो भावमिश्रः ।
Answer:
ପରେ ଏହାକୁ ବିକ୍ରୟ ପାଇଁ ଦେଖାଉଥ‌ିବାବେଳେ ଆପଣମାନେ ମୋତେ ଧରିନେଲେ ।

Question 6.
तदित: राजकुलमेव गच्छामः।
Answer:
ତେଣୁ ଏଠୁ ଚାଲ ରାଜଭବନକୁ ଯିବା ।

Question 7.
सूचक ! इह गोपुरद्वारे अप्रमत्तौ प्रतिपालयतं माम्, यावत् राजकुलं प्रविश्य निष्क्रमामि।
Answer:
ସୂଚକ ! ଏହି ଗୋପୁରଦ୍ଵାରରେ ସାବଧାନ ହୋଇ ମୋତେ ରାଜଭବନକୁ ଯାଇ ବାହାରି ଆସିବାଯାଏ ପ୍ରତୀକ୍ଷା କଉ।

Question 8.
ननु अवसरोपसर्पणीया राजानो भवन्ति।
Answer:
ଅବସର ଦେଖୁ ରାଜାଙ୍କ ପାଖକୁ ଯିବାକୁ ହୋଇଥାଏ ।

Question 9.
स्फुरतो मे अग्रहस्तौ इमं ग्रन्थिच्छेदकं व्यापादयितुम्।
Answer:
ଏହି ଗଣ୍ଠିକଟାକୁ ମାରିଦେବାକୁ ମୋ ହାତର ଅଗ୍ରଭାଗଦ୍ଵୟ ସ୍ଫୁରଣ ହେଉଛି ।

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 3 ମୁଦ୍ରିକା ପ୍ରାପ୍ତି

Question 10.
मुञ्च तं जालोपजीविकम्।
Answer:
ସେ ଧୀବରକୁ ଛାଡ଼ିଦିଅ।

Question 11.
यमवसतिं गत्वा प्रतिनिवृत्तः खल्वेषः।
Answer:
ଇଏ ଯମାଳୟକୁ ଯାଇ ଫେରିଆସିଲା ।

Question 12.
एष खलु राज्ञा तथा अनुगृहीतः यथा शूलादवतार्य हस्तिस्कन्धे समारोपितः।
Answer:
ରାଜା ଏହାକୁ ଏପରି ଅନୁଗୃହୀତ କଲେ ଯେପରି ଶୂଳିରୁ ଓହ୍ଲାଇ ଆଣି ହାତୀ କାନ୍ଧରେ ବସାଇଦେଲେ ।

Question 13.
तस्य दर्शनेन भत्री कोऽप्यभिमतो जनः स्मृतः।
Answer:
ତା’ର ଦର୍ଶନ ମାତ୍ରକେ ରାଜା କୌଣସି ଜଣେ ପ୍ରିୟ ବ୍ୟକ୍ତିକୁ ସ୍ମରଣ କଲେ ।

Question 14.
ननु भणामि अस्य मत्स्यशत्रोः कृते।
Answer:
ବରଂ କହିବି ଏହି ଧୀବର ନିମିତ୍ତ ।

Question 15.
इतः अर्द्ध युष्माकमपि सुमनोमूल्यं भवतु।
Answer:
ଏଥରୁ ଅଧେ ଆପଣମାନଙ୍କର ଫୁଲକିଣାର ମୂଲ୍ୟ ହେଉ ।

Question 16.
साम्प्रतमस्माकं महत्तर प्रियवयस्यः संवृत्तोऽसि।
Answer:
ବର୍ତ୍ତମାନ ତୁମେ ଆମର ବଡ଼ ପ୍ରିୟମିତ୍ର ହୋଇଗଲା।

संक्षेपेण उत्तरं लिखत-

Question 1.
कथं राजपुरुषाः धीवरं राजानं निकषा आनीतवन्त:?
Answer:
ଧୀବର ଏକ ରୋହିମାଛର ପେଟରୁ ପାଇଥିବା ସୁବର୍ଣ୍ଣ ମୁଦ୍ରିକାକୁ ବିକିବାପାଇଁ ଯେତେବେଳେ ବଜାରରେ ଦେଖାଉଥିଲା ସେତେବେଳେ ତାହା ରାଜା ଦୁଷ୍ୟନ୍ତଙ୍କର ନାମାଙ୍କିତ ମୁଦ୍ରିକା ହୋଇଥିବାରୁ ତାକୁ ଦେଖୁ ରାଜପୁରୁଷମାନେ ଧୀବରକୁ ଚୋର ବୋଲି ଭାବି ଧରିଥିଲେ । ରାଜରକ୍ଷୀ ଧୀବରକୁ ବାନ୍ଧିନେଇ ରାଜଶ୍ୟାଳକଙ୍କ ମାଧ୍ୟମରେ ରାଜା ଦୁଷ୍ୟନ୍ତଙ୍କ ନିକଟକୁ ନେଇ ଆସିଥିଲେ ।

Question 2.
कथं धीवरः राजपुरुषैः धृत:?
Answer:
ଗଙ୍ଗାନଦୀ ତୀରରେ ମାଛମାରି କୁଟୁମ୍ବ ଭରଣପୋଷଣ କରୁଥିବା ଏକ ଧୀବର ଥରେ ରୋହିମାଛଟିଏ ଧରି ତାକୁ ଖଣ୍ଡ ଖଣ୍ଡ କରି କାଟିବାବେଳେ ସେଥୁରୁ ଏକ ଉଜ୍ଜ୍ଵଳ ରନୁମୁଦ୍ରିକାଟିଏ ପାଇଲା । ଏହାପରେ ଏହାକୁ ବିକ୍ରି କରିବାପାଇଁ ନେଇ ବଜାରରେ ଦେବା ସମୟରେ ରାଜରକ୍ଷୀମାନେ ତାକୁ ଧରିଥିଲେ । କାରଣ ସେହି ମୁଦ୍ରିକାଟିରେ ରାଜାଙ୍କର ନାମ ଉଲ୍ଲେଖ ଥିଲା । ଏଣୁ ଚୋର ବୋଲି ଭାବି ରାଜକର୍ମଚାରୀମାନେ ଧୀବରକୁ ବାନ୍ଧି ନେଇଗଲେ । ଏହିପରିଭାବେ ସେ ଧୀବରଟି ରାଜପୁରୁଷଙ୍କଦ୍ୱାରା ଧରାହେଲା ।

Question 3.
कथं धीवर: दोषमुक्तः?
Answer:
ମତ୍ସ୍ୟ ଉଦରରୁ ପାଇଥ‌ିବା ମୁଦ୍ରିକାଟିକୁ ଯେତେବେଳେ ଧୀବର ବିକ୍ରି କରିବାପାଇଁ ବଜାରକୁ ଗଲା ସେତେବେଳେ ସେ ରାଜକର୍ମଚାରୀମାନଙ୍କଦ୍ୱାରା ଧରାଗଲା । ସେମାନେ ତାକୁ ବାନ୍ଧିନେଇ ରାଜା ଦୁଷ୍ୟନ୍ତଙ୍କ ନିକଟକୁ ନେଇଗଲେ । ମୁଦ୍ରିକାଟିରେ ରାଜା ଦୁଷ୍ୟନ୍ତଙ୍କର ନାମୋଲ୍ଲେଖ ଥିବାରୁ ତାକୁ ନେଇ ରାଜଶ୍ୟାଳକ ଯେତେବେଳେ ରାଜାଙ୍କୁ ଦେଲେ, ସେତେବେଳେ ରାଜା ତାହା ଦେଖୁ ତାଙ୍କର ପୂର୍ବସ୍ମୃତି ଫେରିପାଇଲେ । ଶକୁନ୍ତଳାଙ୍କ କଥା ମନେପକାଇ ସ୍ତମ୍ଭୀଭୂତ ହୋଇଯାଇ ଉତ୍କଣ୍ଠିତ ହେଲେ । ଏହାକୁ ଦେଇଥ‌ିବା ଧୀବରକୁ ପାରିତୋଷିକ ଓ ଉପହାର ଦେଇ ଦୋଷମୁକ୍ତ କରିବାକୁ ଆଦେଶ ଦେଲେ । ରାଜାଜ୍ଞା ପାଇ ରାଜଶ୍ୟାଳକ ଧୀବରକୁ ବନ୍ଧନମୁକ୍ତ କଲେ ଓ ଧୀବରଟି ଦୋଷମୁକ୍ତ ହେଲା ।

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 3 ମୁଦ୍ରିକା ପ୍ରାପ୍ତି

Question 4.
कथं राजा दुष्यन्तः पर्युत्सुकमना आसीत्?
Answer:
ଯେତେବେଳେ ରାଜାଶ୍ୟାଳକ ଧୀବରଠାରୁ ରାଜାଙ୍କର ନାମାଙ୍କିତ ମୁଦ୍ରିକା ନେଇ ଦୁଷ୍ୟନ୍ତଙ୍କୁ ପ୍ରଦାନ କଲେ ସେତେବେଳେ ଏହା ଦେଖିବାମାତ୍ରକେ ସେ ସ୍ତମ୍ଭୀଭୂତ ହୋଇଯାଇଥିଲେ । କିଛି ସମୟ ଚିନ୍ତାକରି ସେ ଉତ୍କଣ୍ଠିତ ହୋଇଥିଲେ । କାରଣ ଏହା ତାଙ୍କୁ ତାଙ୍କର ପ୍ରିୟତମା ପତ୍ନୀ ଶକୁନ୍ତଳାଙ୍କୁ ସ୍ମରଣ କରାଇଥିଲା । ଏଣୁ ସେ ଉତ୍କଣ୍ଠମନା ହୋଇଥିଲେ ।

Question 5.
धीवरराजंपुरुषयोः मध्ये कथं मित्रता संजात?
Answer:
ରାଜରକ୍ଷୀ ରାଜଦ୍ଵାରରେ ଧୀବରକୁ ଧରି ତାକୁ ମାରିବାକୁ ସଜବାଜ ହେଉଥ‌ିବାବେଳେ ରାଜଶ୍ୟାଳକ ହାତରେ ଆଜ୍ଞାପତ୍ର ସହ ଉପହାର ଓ ପାରିତୋଷିକ ଆଣି ଧୀବର ଦୋଷମୁକ୍ତ ବୋଲି କହି ତାହା ତାଙ୍କୁ ପ୍ରଦାନ କରିଥିଲେ । ଧୀବରର ରାଜାଙ୍କର ଏତାଦୃଶ ଉପକାର ସାଧନ ଓ ପୁରସ୍କାର ପ୍ରାପ୍ତିଯୋଗୁ ତା’ ସହ ମିତ୍ରତା କରିବାପାଇଁ ରାଜପୁରୁଷ ଇଚ୍ଛାକଲେ । ଏହାପରେ ମିତ୍ରତାର ସାକ୍ଷୀ ସ୍ଵରୂପ ଶୁଣ୍ଢିଶାଳାରେ ଯାଇ ପ୍ରବେଶ କରିଥିଲେ । ଏହିପରି ଭାବେ ସେମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ମିତ୍ରତା ହୋଇଥିଲା ।

Question 6.
कीदृशं कर्म न विवर्जनीयम्?
Answer:
ଯେଉଁ ବ୍ୟକ୍ତିର ଯାହା କୌଳିକ କର୍ମ ତାହା ସେ କେବେ ବର୍ଜନ କରିବା ଉଚିତ ନୁହେଁ । ସେ କର୍ମ ଯେତେ ନିନ୍ଦନୀୟ ହେଉ ପଛେ । ଯେପରି ପଶୁମାରଣ ଅତୀବ ଦାରୁଣ ବା କଷ୍ଟଦାୟକ ହେଲେ ମଧ୍ୟ ଯଜ୍ଞକାଳରେ ଶ୍ରୋତ୍ରିୟବେଦଜ୍ଞ ବ୍ରାହ୍ମଣଦ୍ୱାରା ଏହା କରାଯାଇଥାଏ ।

दीर्घप्रश्नोत्तराणि

Question 1.
‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्’ नाटके मुद्रिकाप्राप्तिः प्रसङ्गम् आलोचयत ।
ଊ – ସଂସ୍କୃତ ସାହିତ୍ୟରେ ମହାକବି କାଳିଦାସଙ୍କ ବିରଚିତ ‘ଅଭିଜ୍ଞାନଶାକୁନ୍ତଳମ୍’ ନାଟକର ଷଷ୍ଠ ଅଙ୍କରେ ମୁଦ୍ରିକାପ୍ରାପ୍ତି ପ୍ରସଙ୍ଗ ବର୍ଣ୍ଣିତ ହୋଇଛି । ପୁରୁବଂଶର ମହାପ୍ରଦୀପ ରାଜା ଦୁଷ୍ୟନ୍ତ ମୃଗୟାବସରରେ କଣ୍ଢାଶ୍ରମରେ ଅପ୍‌ସରାସମ୍ଭୁତା ମେନକାକନ୍ୟା ଶକୁନ୍ତଳାକୁ ଦେଖୁ ତାଙ୍କର ରୂପରେ ବିମୋହିତ ହୋଇ ତାଙ୍କୁ ଗାନ୍ଧର୍ବ ବିବାହ କରିଥିଲେ। ପୁନଶ୍ଚ ରାଜ୍ୟକୁ ପ୍ରତ୍ୟାବର୍ତ୍ତନ କଲାବେଳେ ସେ ସ୍ୱନାମାଙ୍କିତ ମୁଦ୍ରିକାକୁ ଶକୁନ୍ତଳାଙ୍କୁ ପ୍ରଦାନ କରିଥିଲେ। ଶକୁନ୍ତଳା ଦୁଷ୍ୟନ୍ତଙ୍କ କଥା ଚିନ୍ତାକରୁଥିବାବେଳେ ମହାକୋପି ଦୁର୍ବାସାଙ୍କର ଅଭିଶାପରେ ସେ ବିସ୍ମୃତ ହୋଇଗଲେ । ଅଭିଜ୍ଞାନ ଦର୍ଶନରେ ପୁନଃ ସ୍ମରଣ ହେବାକଥା କହି ଦୁର୍ବାସା ଚାଲିଯାନ୍ତେ ଏକଥାକୁ ସଖୀମାନେ ଜାଣିଥିଲେ।

ମହର୍ଷି କଣ୍ଠଙ୍କଦ୍ୱାରା ଶକୁନ୍ତଳା ରାଜା ଦୁଷ୍ୟନ୍ତଙ୍କ ନିକଟକୁ ପ୍ରେଷିତା ହେବାବେଳେ ମାର୍ଗରେ ଦୁର୍ଭାଗ୍ୟବଶତଃ ଶକ୍ରାବତାର ତୀର୍ଥରେ ସ୍ନାନ କଲାବେଳେ ଶକୁନ୍ତଳାଙ୍କ ହସ୍ତରୁ ମୁଦ୍ରିକାଟି ଚ୍ୟୁତ ହୋଇ ଜଳମଧ୍ଯରେ ପଡ଼ିଗଲା । ଏହାପରେ ସେହି ମୁଦ୍ରିକାଟିକୁ ଏକ ରୋହୀମାଛ ଗିଳିଦେଲା । ସେହି ନଦୀତଟରେ ଏକ ଧୀବର ମାଛମାରି ନିଜର ଜୀବିକା ନିର୍ବାହ କରୁଥିଲା । ଥରେ ତା’ର ଜାଲରେ ସେହି ମାଛଟି ପଡ଼ିଲା । ତାକୁ କାଟିବାରୁ ତା’ ପେଟଭିତରୁ ଉଜ୍ଜ୍ବଳ ମୁଦ୍ରିକାଟି ମିଳିଲା । ଧୀବର ଏହାକୁ ନେଇ ବଜାରରେ ବିକ୍ରି କରୁଥ‌ିବାବେଳେ ରାଜକର୍ମଚାରୀଙ୍କଦ୍ଵାରା ଧରାପଡ଼ିଥିଲା । ରାଜଶ୍ୟାଳକ ରକ୍ଷୀଙ୍କ ଦ୍ବାରା ଧୀବରକୁ ବାନ୍ଧିନେଇ ତାଠାରୁ ସେ ମୁଦ୍ରିକାଟି ନେଇ ରାଜା ଦୁଷ୍ୟନ୍ତଙ୍କ ନିକଟକୁ ଗଲେ । ରାଜଦ୍ୱାରରେ ରାଜଶ୍ୟାଳକ ରକ୍ଷୀଙ୍କ ହସ୍ତରେ ଧୀବରକୁ ରଖୁ ରାଜନିର୍ଦ୍ଦେଶ ପାଇଁ ଦୁଷ୍ୟନ୍ତଙ୍କ ନିକଟକୁ ଗଲେ ।

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 3 ମୁଦ୍ରିକା ପ୍ରାପ୍ତି

ଏହାପରେ ରାଜା ଦୁଷ୍ୟନ୍ତ ରାଜଶ୍ୟାଳକଙ୍କଠାରୁ ସେ ମୁଦ୍ରିକା ବିଷୟ ଶୁଣି ତାକୁ ଦେଖିବା ମାତ୍ରକେ ତାଙ୍କର ସବୁକଥା ଅର୍ଥାତ୍ ଶକୁନ୍ତଳାଙ୍କ ସହ ବିବାହ ବିଷୟ ମନେପଡ଼ିଗଲା । ଚକ୍ଷୁ ତାଙ୍କର ଲୋତକାପ୍ଲତ ହୋଇଗଲା । କିଛି ସମୟ ସ୍ଥିର ଓ ନିଶ୍ଚୟ ରହି ଗମ୍ଭୀର ହୋଇଗଲେ ଓ ଉତ୍କଣ୍ଠିତ ମଧ୍ଯ ହେଲେ । ଏହାପରେ ଖୁସିରେ ଏହାକୁ ପାଇଥିବା ଧୀବର ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ, ତା’ର ପାରିତୋଷିକ ଓ ଉପହାର ପ୍ରଦାନ କଲେ । ରାଜଶ୍ୟାଳକ ମଧ ସେସବୁ ଆଣି ଧୀବରକୁ ପ୍ରଦାନ କରିଥିଲେ ଏବଂ ଧୀବର ରାଜାଙ୍କର ଉପକାର କରିଥିବାରୁ ତା’ସହିତ ମିତ୍ରତା କରିବାପାଇଁ ଇଚ୍ଛା କଲେ । ସେ ଧୀବର ମଧ୍ୟ ନିଜର ଅର୍ଥରୁ ପୂଜାପାଇଁ କିଛି ଦେବାକୁ ଇଚ୍ଛା କଲା । ଏହାପରେ ସମସ୍ତେ ବନ୍ଧୁତାର ସାକ୍ଷୀସ୍ଵରୂପ ମଦ୍ୟପାନ ନିମନ୍ତେ ଶୁଣ୍ଢିଶାଳାରେ ପ୍ରବେଶ କଲେ ।

ଏଣୁ ମହାକବି କାଳିଦାସ ଯେପରି ଭାବେ ନାଟକରେ ଏ ବିଷୟକୁ ଉପସ୍ଥାପନ କରିଛନ୍ତି ତାହା ସମସ୍ତଙ୍କର ବେଶ୍ ହୃଦୟଗ୍ରାହୀ ହୋଇପାରିଛି । ଏହି ମୁଦ୍ରିକାହିଁ ରାଜା ଦୁଷ୍ୟନ୍ତଙ୍କର ଶକୁନ୍ତଳା ଓ ପୁତ୍ର ସର୍ବଦମନର ପ୍ରାପ୍ତିର ମାଧ୍ୟମ ତଥା ଅଭିଜ୍ଞାନ ହୋଇଛି । ଏହାକୁ ଆଧାରକରି ନାଟକର ନାମକରଣ ମଧ୍ଯ ‘ଅଭିଜ୍ଞାନଶାକୁନ୍ତଳମ୍’ ରଖାଯାଇଛି ।

+2 1st Year Sanskrit Optional Chapter 3 ମୁଦ୍ରିକାପ୍ରାପ୍ତି Summary

ଲେଖକ ପରିଚୟ – ଏହା ମହାକବି କାଳିଦାସଙ୍କ ବିରଚିତ ‘ଅଭିଜ୍ଞାନଶାକୁନ୍ତଳମ୍’ ନାଟକର ଷଷ୍ଠ ଅଙ୍କରୁ ଆନୀତ । ସଂସ୍କୃତ ସାହିତ୍ୟରେ କାଳିଦାସ ମହାକବିଭାବେ ପରିଚିତ । ବିକ୍ରମାଦିତ୍ୟଙ୍କର ରାଜସଭାର କବି ଭାବେ ସେ ପ୍ରତିଷ୍ଠିତ ହୋଇଥିଲେ । ଭାରତର ଉଜ୍ଜୟିନୀ ନିବାସୀରୂପେ ସେ ପରିଚିତ । ତାଙ୍କର ସମୟ ପ୍ରଥମ ଶତକ ବୋଲି ଉଲ୍ଲେଖ ମିଳେ । ତାଙ୍କର ପ୍ରମୁଖ କାବ୍ୟକୃତିଗୁଡ଼ିକ ହେଲା – ‘ରଘୁବଂଶମ୍’ ଓ ‘କୁମାରସମ୍ଭବମ୍’ ମହାକାବ୍ୟ, ‘ମେଘଦୂତମ୍’ ଓ ‘ଋତୁସଂହାରମ୍’ ଗୀତିକାବ୍ୟ ବା ଖଣ୍ଡକାବ୍ୟ ଏବଂ ‘ଅଭିଜ୍ଞାନଶାକୁନ୍ତଳମ୍’, ‘ମାଳବିକାଗ୍ନିମିତ୍ରମ୍’ ଓ ‘ବିକ୍ରମୋର୍ବଶୀୟମ୍’ ଆଦି ନାଟକ ।

ବିଷୟ ପ୍ରବେଶ – କାଳିଦାସ ବିରଚିତ ‘ଅଭିଜ୍ଞାନଶାକୁନ୍ତଳମ୍’ ନାଟକରେ ସାତଟି ଅଙ୍କ ରହିଛି । ଏହାର ଷଷ୍ଠ ଅଙ୍କରେ ‘ମୂଦ୍ରିକାପ୍ରାପ୍ତି’ ବିଷୟ ବର୍ଣ୍ଣିତ ହୋଇଛି । ଶକ୍ରାବତାର ତୀର୍ଥରେ ସ୍ନାନକାଳରେ କଣ୍ଠସୁତା ଶକୁନ୍ତଳାଙ୍କ ହସ୍ତରୁ ବ୍ୟତା ଅଙ୍ଗୁଳୀୟକ ଧୀବରଦ୍ଵାରା ମତ୍ସ୍ୟଉଦରରୁ ପ୍ରାପ୍ତ ହୋଇଛି । ବିକ୍ରୟ ସମୟରେ ରକ୍ଷୀମାନଙ୍କଦ୍ୱାରା ଦେଖାଯାଇ ରାଜା ଦୁଷ୍ୟନ୍ତଙ୍କ ସମ୍ମୁଖକୁ ନିଆଯାଇଛି । ରାଜା ଦୁଷ୍ୟନ୍ତ ମୁଦ୍ରିକା ଦର୍ଶନ କରି ଅଭିପ୍ରେତ ଶକୁନ୍ତଳାଙ୍କୁ ସ୍ମରଣ କରିପାରିଛନ୍ତି ଏବଂ ଉପଯୁକ୍ତ ପାରିତୋଷିକ ଓ ପୁରସ୍କାରଦ୍ୱାରା ଧୀବରକୁ ସମ୍ମାନିତ କରିଛନ୍ତି । ଏହି କଥା ଅତିସୁନ୍ଦରଭାବେ ‘ମୁଦ୍ରିକାପ୍ରାପ୍ତି’ ବିଷୟରେ ବର୍ଣ୍ଣିତ ହୋଇଛି ।

୧। ତତଃ ପ୍ରବିଶତି ନାଗରିକ …………………. ବିଶୁଦ୍ଧ ଇଦାନୀମାଜୀବ ।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ତାଡ଼ୟିତ୍ୱ = ମାଡ଼ଦେଇ । କୁମ୍ଭୀରକ = ଚୋର । ଅଙ୍ଗୁଳୀୟକମ୍ = ମୁଦ୍ରିକା । ସମାସାଦିତମ୍ = ପ୍ରାପ୍ତହେଲା । ପ୍ରତିଗ୍ରହଃ = ପୁରସ୍କାର । ଆବୃତ୍ତ = ଭିଣୋଇ । କୁଟୁମ୍ବ = ପରିବାର ।

ଅନୁବାଦ – (ତାହାପରେ ନଗରରକ୍ଷକ, ରାଜଶ୍ୟାଳ ଓ ପଛରେ ବନ୍ଧାହୋଇଥିବା ଜଣେ ପୁରୁଷଙ୍କୁ ଧରି ଦୁଇଜଣ ରକ୍ଷୀଙ୍କ ପ୍ରବେଶ)

ଦୁଇ ରକ୍ଷୀ – (ପୁରୁଷଟିକୁ ମାଡ଼ଦେଇ) ଆରେ ଚୋର, କହ କେଉଁଠାରୁ ଏହି ରାଜକୀୟ ମୁଦ୍ରିକା ଯହିଁରେ ମଣିସଂଯୋଜନପୂର୍ବକ (ରାଜାଙ୍କ) ନାମ ମୁଦ୍ରିତ ହୋଇଛି, ତୋଦ୍ୱାରା ପ୍ରାପ୍ତ ହେଲା ।

ଧୀବର – (ଉଭୟ ନାଟକସହ) ମହାଶୟମାନେ ପ୍ରସନ୍ନ ହୁଅନ୍ତୁ । ମୁଁ ଏପରି କର୍ମ କରେ ନାହିଁ ।

ପ୍ରଥମ – ତେବେ କ’ଣ ଉପଯୁକ୍ତ ବ୍ରାହ୍ମଣ ବୋଲି (ଭାବି) ରାଜାଙ୍କଦ୍ୱାରା ଉପହାର ଦତ୍ତ ହୋଇଛି ।

ପୁରୁଷ – ଶୁଣନ୍ତୁ ବର୍ତ୍ତମାନ । ମୁଁ ଶକ୍ରାବତାର ମଧ୍ଯରେ ବାସ କରୁଥିବା ଜଣେ ଧୀବର ।

ଦ୍ଵିତୀୟ – ଆରେ ଚୋର ! କ’ଣ ଆମଦ୍ୱାରା ଜାତିକଥା ପଚରାଯାଇଛି?

ଶ୍ୟାଳ – ସୂଚକ, କହୁ କହୁ, ସବୁକଥା କ୍ରମ ଅନୁସାରେ, ଏହାକୁ ମଝିରେ ବାଧା ଦିଅନାହିଁ ।

ଉଭୟେ – ଆବୁର ( ଭିଣୋଇ) ଙ୍କର ଯାହା ଆଜ୍ଞା । (ଧୀବରକୁ) କୁହ ।

ଧୀବର – ମୁଁ ଜାଲ ଏବଂ ବନଶୀ ଆଦି ସାହାଯ୍ୟରେ ମାଛଧରି କୁଟୁମ୍ବ ଭରଣ କରେ ।

ଶ୍ୟାଳ – (ହସି) ବଡ଼ ବିଶୁଦ୍ଧ ବୃତ୍ତି ତ !

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ପୁରୁଷମାଦାୟ = ପୁରୁଷମ୍ + ଆଦାୟ । ନାହମୀଦୃଶସ୍ୟ = ନ + ଅହମ୍ + ଇଦୃଶସ୍ୟ । ଅସ୍ମାଭିର୍ବସତଃ = ଅସ୍ଵାଭଃ + ବସତଃ । ଜାତିଶ୍ଚ = ଜାତିଃ + ଚ । ସର୍ବମନୁକ୍ରମେଣ = ସର୍ବମ୍ + ଅନୁକ୍ରମେଣ । ଯଦାବୁତ୍ତ = ଯତ୍ + ଆବୁତ୍ତ ।

ସମାସ – ନାଗରିକଃ = ନଗରଂ ରକ୍ଷତି ଇତି (ଉପପଦ ତତ୍) । ଅକାର୍ଯ୍ୟସ୍ଯ = ନ କାର୍ଯ୍ୟ, ତଥ୍ୟ (ନଞ୍ଜ୍ ତତ୍) । ଅନୁକ୍ରମେଣ = କ୍ରମଂ ପଶ୍ଚାତ୍, ତେନ (ଅବ୍ୟୟୀଭାବ ) । ମତ୍ସ୍ୟବନ୍ଧନାପାୟୈ = ମଧ୍ୟାନାଂ ବନ୍ଧନଂ, ତସ୍ୟ ଉପାୟ, ଡଃ (୬ଷ୍ଠୀ ତତ୍) । କୁଟୁମ୍ବଭରଣମ୍ = କୁଟୁମ୍ବସ୍ୟ ଭରଣମ୍ (୬ଷ୍ଠ ତତ୍) ।

ସକାରଣବିଭକ୍ତି – କୁମ୍ଭାଳକ ! = ସମ୍ବୋଧନେ ୧ମା । ତ୍ରୟା = ଅନୁସ୍ତେ କଉଁରି ୩ୟା । ତେ = ସମ୍ପ୍ରଦାନେ ୪ର୍ଥୀ । ମାମ୍ = ‘ଅନ୍ତରା’ ଯୋଗେ ୨ୟା । କୁଟୁମ୍ବଭରଣମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା ।

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ପ୍ରକୃତିପ୍ରତ୍ୟୟ – ବଦ୍ଧମ୍ = ବଧୂ + କ୍ତ । ଆଦାୟ = ଆ + ଦା + ଲ୍ୟାପ୍ । ସମାସାଦିତମ୍ = ସମ୍ + ଆ + ସଦ୍ + କ୍ତ । କାର୍ଯ୍ୟ = କୃ + ଯତ୍ । ଦରଃ = ଦା + କ୍ତ । ଭରଣମ୍ = ଭର୍ + ଲୁଟ୍ ।

୨। ଧୀବର …………….. ଶ୍ରୋତ୍ରିୟଃ ।

ଶ୍ଳୋକ – ସହଜ କିଳ ଯଦ୍‌ବିନିନ୍ଦିତଂ ନ ତୁ ତତ୍ କର୍ମ ବିବର୍ଜନୀୟମ୍
ପଶୁମାରଣକର୍ମଦାରୁନଃ ଅନୁକମ୍ପା ମୃଦୁକୋଽପିଶ୍ରୋତ୍ରିୟଃ ॥

ଅନ୍ବୟ – ବିନିନ୍ଦିତମପି ଯତ୍ କର୍ମ ସହଜଂ, ତତ୍ ନହି ବିବର୍ଜନୀୟମ୍, କିଳ ଶ୍ରୋତ୍ରିୟ ଅନୁକମ୍ପା ମୃଦୁଃ ଅପି ପଶୁମାରଣ କର୍ମଦାରୁନଃ (ଭବତି) ।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ବିବର୍ଜନ = ପରିତ୍ୟାଗ । ଶ୍ରୋତ୍ରିୟଃ = ବ୍ରାହ୍ମଣ । ଅନୁକମ୍ପା = ଦୟା । ମୃଦୁକଃ = କୋମଳ । ଦାରୁନଃ = କଷ୍ଟ ।

ଅନୁବାଦ – ଧୀବର (ପୁରୁଷ) – ପ୍ରଭୁ ଏପରି କୁହନ୍ତୁ ନାହିଁ । (ଅନ୍ୟଦ୍ଵାରା) ବିନିନ୍ଦିତ ହେଲେ ହେଁ, ଯାହାର ଯେଉଁ କର୍ମ ସହଜ (ଅର୍ଥାତ୍ ଜନ୍ମସହ ଆଗତ) ତାହା ବର୍ଜନ କରିବା ଉଚିତ ନୁହେଁ । ଶ୍ରୋତ୍ରିୟ (ବୈଦିକ ବ୍ରାହ୍ମଣ) ଦୟାଭାବ ନେଇ କୋମଳ ହୋଇଥିଲେ ହେଁ, (ଯଜ୍ଞରେ) ପଶୁମାରଣ କର୍ମରେ ନିଷ୍ଠୁର ଅଟନ୍ତି ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ଅନୁକମ୍ପାମୃଦୁକୋଽପି = ଅନୁକମ୍ପାମୂଦୁକଃ + ଅପି ।

ସମାସ – ପଶୁମାରଣମ୍ = ପଶୁନାଂ ମାରଣମ୍‌ (୬ଷ୍ଠୀ ତତ୍) ।

ସକାରଣବିଭକ୍ତି – ଶ୍ରୋତ୍ରିୟ = କଉଁରି ୧ ମା । ପଶୁମାରଣମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା ।

ପ୍ରକୃତିପ୍ରତ୍ୟୟ – ବିବର୍ଜନୀୟମ୍ = ବି + ବର୍ଜ + ଅନୀୟ । ମାରଣମ୍ = ମୃ + ଲୁଟ୍ ।

୩। ନାଗରିକଶ୍ୟପଃ …………………… ମୁଖ୍ୟ ବା ଦ୍ରକ୍ଷ୍ୟସି ।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ରୋହିତମତ୍ସ୍ୟ = ରୋହିମାଛ । ପ୍ରେକ୍ଷେ = ଦେଖନ୍ତେ । ଭାସୁରମ୍ = ଉଜ୍ଜ୍ଵଳ । ମୁଵତ = ଛାଡ଼ । ବିକ୍ରୟାୟ = ବିକ୍ରୟ ନିମନ୍ତେ । ବିସୁଗନ୍ଧୀ = ଦୁର୍ଗନ୍ଧଯୁକ୍ତ । ନିବେଦ୍ୟ = ଜଣାଇ । ଚିର = ବିଳମ୍ବ । ସୁମନମଃ = ଫୁଲମାଳ । ପିନନ୍ଧୁମ୍ = ପିନ୍ଧାଇବାକୁ । ଗୃଧ୍ର = ଶାଗୁଣା । ଶୁନଃ = କୁକୁରର ।

ଅନୁବାଦ – ଶ୍ୟାଳ – ତା’ପରେ?

ଧୀବର – ଏକ ଦିବସରେ ରୋହିମାଛଟିଏ ଖଣ୍ଡଖଣ୍ଡ କରି କାଟିଲି । ଯେତେବେଳେ ତା’ ପେଟ ଭିତରକୁ ଚାହିଁଲି ସେତେବେଳେ ଏହି ରମ୍ବୋଜ୍ଜ୍ବଳ ମୁଦ୍ରିକାଟି ଦେଖୁଲି । ପରେ ଏହାକୁ ବିକ୍ରୟ ନିମିତ୍ତ ଦେଖାଇବାବେଳେ ଆପଣମାନଙ୍କଦ୍ୱାରା ଗୃହୀତ ହେଲି । ମୋତେ ମାରନ୍ତୁ ବା ଛାଡ଼ନ୍ତୁ, ଏହାହିଁ ଏହାର ଆଗମ ବୃତ୍ତାନ୍ତ (ପ୍ରାପ୍ତି ଘଟଣା) ।

ଶ୍ୟାଳ – ଜାନୁକ, (ଏ ଲୋକଟି) ଯେ ଆମ ଗନ୍ଧଯୁକ୍ତ । ଗୋଧ୍ଵକ୍ଷକ ଏବଂ ମତ୍ସ୍ୟବନ୍ଧନକାରୀ, ଏହା ନିଃସନ୍ଦେହ । ଏହାର ମୁଦ୍ରିକା ଦର୍ଶନ ବିଷୟ ବିଚାରଣୀୟ । ମୁଁ ରାଜକୁଳକୁ ହିଁ ଯିବି ।
ରକ୍ଷାଦ୍ଵୟ – ତାହାହେଉ । ଚାଲରେ ଗଣ୍ଠିକଟା ଚାଲ୍ । (ସମସ୍ତଙ୍କର ପରିକ୍ରମଣ)

ଶ୍ୟାଳ – ସୂଚକ ଏହି ରାଜଦ୍ବାରରେ ଅପ୍ରମତ୍ତ (ସାବଧାନ) ରହି, ଏ ମୁଦ୍ରିକା ଯେପରି ମିଳିଛି, ରାଜାଙ୍କୁ ଜଣାଇ ତାଙ୍କଠାରୁ ଆଦେଶ ଲାଭକରି ବାହାରି ଆସିବା ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ମୋତେ ଅପେକ୍ଷା କର ।

ଉଭୟେ – ରାଜାଙ୍କର ପ୍ରସାଦନନିମିତ୍ତ ଆବୁତ୍ତ (ପୁର) ପ୍ରବେଶ କରନ୍ତୁ । (ଶ୍ୟାଳ ନିଶ୍ରାନ୍ତ)

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ସୂଚକ – ଆବୁତ୍ତ ତ ବିଳମ୍ବ କରୁଛନ୍ତି ।

ଜାନୁକ – ଅବସର ଦେଖୁ ତ ରାଜାମାନଙ୍କ ପାଖକୁ ଯିବା ଉଚିତ ।

ସୂଚକ – ମୋ ହାତର ଅଗ୍ରଭାଗଦ୍ଵୟ ବଧ ନିମିତ୍ତ ଫୁଲମାଳ ପିନ୍ଧାଇ ଦେବାଲାଗି ଫରକି ଉଠୁଛି ।

ଧୀବର – ଅକାରଣରେ ଆପଣ ମୋର ହନ୍ତା ହୋଇପାରିବେ ନାହିଁ ।

ଜାନୁକ – (ଚାହିଁ) ହେଇ ଆମ ପ୍ରଭୁ ରାଜାଙ୍କ ଆଦେଶ ଲାଭକରି ପତ୍ରହସ୍ତ ହୋଇ ଏଇ ଆଡ଼କୁ ମୁଖକରିବା ଦିଶିଲେଣି । (ଏବେ)ତୁ ଗୃଧ୍ରର ବଳି ହେବୁ ଅଥବା କୁକୁର ମୁଖ ଦେଖିବୁ । (ପ୍ରବେଶ କରି)

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ତତସ୍ତତଃ = ତତଃ + ତତଃ । ଉଦରାଭ୍ୟନ୍ତରେ = ଉଦର + ଅଭ୍ୟନ୍ତରେ । ତାବଦେତଦ୍ = ତାବତ୍ + ଏତଦ୍ । ପଶ୍ଚାଦିହ = ପଶ୍ଚାତ୍ + ଇହ । ଦର୍ଶୟନ୍ତେବ = ଦର୍ଶୟନ୍ + ଏବ । ତାବଦେତସ୍ୟ = ତାବତ୍ + ଏତସ୍ୟ । ମତ୍ସ୍ୟଦରାଭ୍ୟନ୍ତରଗତିମିତି = ମତ୍ସ୍ୟ + ଉଦର + ଅଭ୍ୟନ୍ତରଗତମ୍ + ଇତି । ଇଦାନୀମେତସ୍ୟ = ଇଦାନୀମ୍ + ଏତସ୍ୟ । = ଖଳୁ + ଆବୁରଃ । ବଳିଭବତୁ = ବହିଃ + ଭବତୁ ।

ସମାସ – ମତ୍ସ୍ୟଦର = ମତ୍ସ୍ୟସ୍ୟ ଉଦର (୬ଷ୍ଠୀ ତତ୍) । ରାଜକୁଳମ୍ = ରାଜ୍ଞ କୁଳମ୍ (୬ଷ୍ଠୀ ତତ୍) । ରାଜଶାସନମ୍ = ରାଜ୍ଞ ଶାସନମ୍ (୬ଷ୍ଠୀ ତତ୍) ।

ସକାରଣବିଭକ୍ତି – ଦିବସେ = ଅଧିକରଣେ ୭ମୀ । ମୟା = ଅନୁକ୍ତ କର୍ଭରି ୩ୟା । ରାଜକୁଳମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା । ଗୋପୁରଦ୍ଵାରେ = ଅଧିକରଣେ ୭ମୀ ।

ପ୍ରକୃତିପ୍ରତ୍ୟୟ – ପ୍ରାପ୍ତ = ପ୍ର + ଆପ୍ + କ୍ତ । ପ୍ରବିଶ୍ୟ = ପ୍ର + ବିଶ୍ + ଲ୍ୟାପ୍ । ପରିକ୍ରମ୍ୟ = ପରି + କ୍ରମ୍ + ଲ୍ୟପ୍ । ବିଲୋକ୍ୟ = ବି + ଲୁକ୍ + ଲ୍ୟାପ୍ ।

୪। ନାଗରିକ ଶ୍ୟାଳ ………….. ସମାରୋପିତଃ ।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ମୁଞ୍ଚ = ଛାଡ଼ । ଜାଲୋପଜୀବିକମ୍ = ଧୀବରକୁ । ସାମ୍ପ୍ରତମ = ବର୍ତ୍ତମାନ । ଉତିଷ୍ଠ = ଉଠ । ପାରିତୋଷିକମ୍ = ପୁରସ୍କାର । ଗୃହୀଣ = ଗ୍ରହଣ କର । କଟକମ୍ = ସୁବର୍ଣ୍ଣ ବା ଅର୍ଥ । ଶୂଳାତ୍ = ଶୂଳିରୁ । ଅବତାର୍ଯ୍ୟ = ଓହ୍ଲାଇ । ସମାରୋପିତଃ = ବସାଇଦେଲା ।

ଅନୁବାଦ – ଶ୍ୟାଳ – ଶୀଘ୍ର, ଶୀଘ୍ର ଏହାକୁ – (ଏହିପରି ଅନେକ କହି)

ଧୀବର – ଆହେ ନିହତ ହେଲି ।

ଶ୍ୟାଳ – ସେହି ଜାଲଜୀବୀକୁ ଛାଡ଼ିଦିଅ । ଏହାର ମୁଦ୍ରିକାପ୍ରାପ୍ତି କଥା ସତ୍ୟ । ଯେପରି ଆମ ସ୍ଵାମୀ କହିଲେ ।

ସୂଚକ – ଯାହା ଆବୁତ୍ତ କହୁଛନ୍ତି । ଏଲୋକ ଯମଗୃହରେ ପ୍ରବେଶକରି ଫେରିଆସିଛି ।

ଧୀବର – ପ୍ରଭୁ ! ବର୍ତ୍ତମାନ ମୋର ଜୀବିକା ତୁମଦ୍ୱାରା କିଣାଗଲା ବା ଅପହୃତ ହେଲା । (ଏହିପରି କହି ପାଦତଳେ ପଡ଼ିଗଲା)

ଶ୍ୟାଳ – ଉଠ । ରାଜା ମୁଦ୍ରିକାର ମୂଲ୍ୟ ପରିମାଣରେ ଏହି ପାରିତୋଷିକ ମଧ୍ୟ ଦିଆଇଛନ୍ତି । ତେଣୁ ତାହା ଗ୍ରହଣ କର । (ଧୀବରକୁ ଅର୍ଥ ପ୍ରଦାନ କଲେ)

ଧୀବର – (ଆନନ୍ଦ ସହ ପ୍ରଣାମପୂର୍ବକ ପ୍ରତିଗ୍ରହଣ କରି) ଅନୁଗୃହୀତ ହେଲି ।

ଜାନୁକ – ଏହା ନିଶ୍ଚୟ ରାଜାଙ୍କର ସେପରି ଅନୁଗ୍ରହ ଯେପରି ଶୂଳିରୁ ଓହ୍ଲାଇଆଣି ହାତୀ କାନ୍ଧରେ ଆରୋପିତ ହେଲା ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ହତୋଽସ୍ମି = ହତଃ ଅସ୍ଥି । ଖମ୍ବେଷ = ଖଳୁ + ଏଷ । ଶୂଳାଦବତାର୍ଯ୍ୟ = ଶୂଳାତ୍ + ଅବତାର୍ଯ୍ୟ

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 3 ମୁଦ୍ରିକା ପ୍ରାପ୍ତି

ସମାସ – ଜାଲୋପଜୀବିକମ୍ = ଜାଲମ୍ ଉପଜୀବିକଂ ଯସ୍ୟ ସ, ତମ୍ (ବହୁବ୍ରୀହିଃ) । ଯମବସତିମ୍ = ଯମସ୍ୟ ବସତିମ୍ (୬ଷ୍ଠୀ ତତ୍) । ହସ୍ତିସ୍କନ୍ଧ = ହସ୍ତୀ ସ୍କନ୍ଧ, ତସ୍ମିନ୍ (୬ଷ୍ଠ ତତ୍) ।

ସକାରଣବିଭକ୍ତି – ଜାଲୋପଜୀବିକମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା । ଯମବସତିମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା । ଧୀବରାୟ = ସମ୍ପ୍ରଦାନେ ୪ର୍ଥୀ । ଶୂଳାତ୍ = ଅପାଦାନେ ୫ମୀ । ହସ୍ତିସ୍କନ୍ଧ = ଅଧିକରଣେ ୭ମୀ ।

ପ୍ରକୃତିପ୍ରତ୍ୟୟ – ହତଃ = ହଜ୍‌ + କ୍ତ । ଉପପନଃ = ଉପ + ପଦ୍ + କ୍ତ । ଗତ୍ମା = ଗମ୍ + କ୍ସାଚ୍ । ନିବୃତ୍ତ = ନି + ବୃତ୍ + କ୍ତ । ଅନୁଗୃହୀତ = ଅନୁ + ଗ୍ରହ୍ + ଣିଚ୍ + କ୍ତ । ଅବତାର୍ଯ୍ୟ = ଅବ + ତୃବ୍ + ଣିଚ୍ + ଲ୍ୟାପ୍ । ସମାରୋପିତଃ = ସମ୍ + ଆ + ରୋପ୍ + ଣିଚ୍ + କ୍ତ ।

୫। ସୂଚକ ………………… ନିଷ୍ଠାନ୍ତା ସର୍ବେ ।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ପାରିତୋଷିକ = ପୁରସ୍କାର । ମହାର୍ହ = ମହାମୂଲ୍ୟ । ଅଭିମତଃ = ପ୍ରିୟ । ସ୍ଵତଃ = ମନେପଡ଼ିବା । ପର୍ଯ୍ୟସ୍ତୁକମନା = ବ୍ୟସ୍ତମନା । ସୁମନଃ = ଫୁଲମାଳ ।

ଅନୁବାଦ – ସୂଚକ – ଆବୁତ୍ତ ! ପୁରସ୍କାରରୁ ଜଣାପଡୁଛି, ମହାମୂଲ୍ୟ ରନୁମୁଦ୍ରିକାଟି ରାଜାଙ୍କର ଆଦରଣୀୟ ଥିଲା ।

ଶ୍ୟାଳ – ସେଥ‌ିରେ ଥିବା ମୂଲ୍ୟବାନ୍ ରନ୍ ଯେ ରାଜାଙ୍କଦ୍ୱାରା ସମାଦୃତ ତାହା ମୁଁ ମନେ କରୁନାହିଁ ।

ଉଭୟେ – ପୁଣି କ’ଣ?

ଶ୍ୟାଳ – ତା’ର ଦର୍ଶନରେ ରାଜାଙ୍କଦ୍ୱାରା କେହିଜଣେ ପ୍ରିୟଲୋକ ମନେପଡ଼ିଲେ । ଯେହେତୁ ସେ ପ୍ରକୃତି ଗମ୍ଭୀର ହେଲେହେଁ ମୁହୂର୍ଭକ ପାଇଁ ଲୋତକପୂର୍ଣନୟନ ହୋଇଗଲେ ।

ସୂଚକ – ରାଜା ଆବୃତ୍ତଙ୍କଦ୍ଵାରା ସେବିତ ହେଲେ ।

ଜାନୁକ – ବରଂ କୁହ, ଏହି ମତ୍ସ୍ୟଜୀବୀଙ୍କ ଭର୍ଭା (ଧୀବର) ନିମିତ୍ତ ।

ଧୀବର – ହଜୁର୍ ! ଏଥୁ ଅଧେ ଆପଣମାନଙ୍କର ପୁଷ୍ପର ମୂଲ୍ୟ ହେଉ ।

ଜାନୁକ – ଧୀବର ! ବର୍ତ୍ତମାନ ତୁମେ ଅଧ‌ିକ ମହତ୍ଵ ଓ ମୋର ପ୍ରିୟବନ୍ଧୁ ହୋଇଗଲ । (ସମସ୍ତେ ନିଷ୍ଠାନ୍ତ)

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ପୁନସ୍ତର୍କୟାମି = ପୁନଃ + ତର୍କୟାମି । କୋଽପ୍ୟଭିମତଃ = କଃ + ଅପି + ଅଭିମତଃ । ଶୋଚିତଶ୍ଚ = ଶୋଚିତଃ + ଚ । ସଂବୃତ୍ତୋଽସି = ସଂବୃରଃ + ଅସି ।

ସମାସ – ମହାରଢ଼େନ = ମହାର୍ହ ରନଂ, ତେନ (କର୍ମଧାରୟ) । ସୁମନୋମୂଲ୍ୟମ୍ = ସୁମନମଃ ମୂଲ୍ୟମ୍ (୬ଷ୍ଠ ତତ୍ତ୍ଵ) ।

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 3 ମୁଦ୍ରିକା ପ୍ରାପ୍ତି

ସକାରଣବିଭକ୍ତି – ପାରିତୋଷିକେଣ = କରଣେ ୩ୟା । ମହାର୍ହରଡ୍ରେନ = କରଣେ ୩ୟା । ଦର୍ଶନେନ = କରଣେ ୩ୟା । ମତ୍ସ୍ୟଶକ୍ରୋ = ‘କୃତ୍’ଯୋଗେ ୬ଷ୍ଠୀ ।

ପ୍ରକୃତିପ୍ରତ୍ୟୟ – ଭବିତବ୍ୟମ୍ = ଭୂ + ଣିଚ୍ + ତଥ୍ୟ । କୃତ୍ରା = କୃ + କ୍ସାଚ୍ । ସ୍ଵତଃ = ସ୍କୃ + କ୍ତ । ସଂବୃକଃ = ସମ୍ + ବୃତ୍ + ଲୁ ।

+2 1st Year Sanskrit Optional Solutions Chapter 2 ପରହିତସାଧନମ୍ Question Answer

Odisha State Board Plus Two First Year Sanskrit Optional Solutions Chapter 2 ପରହିତସାଧନମ୍ Textbook Exercise Questions and Answers.

Plus Two First Year Sanskrit Optional Chapter 2 ପରହିତସାଧନମ୍ Question Answer

अतिसंक्षेपेण उत्तरं लिखत

(क) बन्धनीमध्यात् शुद्धम् उत्तरं चित्वा लिखत-

Question 1.
‘परहितसाधनम्’ कथा _____________________ ग्रन्यात् समुद्धृता। (द्वात्रिंशत्पुत्तलिका, पञ्चतन्त्रम्, कथासरित्सागर)
Answer:
द्वात्रिंशत्पुत्तलिका

Question 2.
अस्यां कथायां नरपतेः _____________________ सुगुणानां वर्णनं कृतम्। (शूद्रकस्य, त्रिविक्रमसेनस्य, विक्रमादित्यस्य)
Answer:
विक्रमादित्यस्य

Question 3.
सिंहासनं समारोदुकामं _____________________ एका पुत्तलिका कथयति। (विक्रमादित्यम्, भोजम्, त्रिविक्रमसेनम्)
Answer:
भोजम्

Question 4.
विक्रमे राज्यं कुर्वति भूमण्डले _____________________ नासन्। (सज्जनाः, पिशुना:, ब्राह्मणा:)
Answer:
पिशुना:

Question 5.
विक्रमादित्य राज्यभारं _____________________ निक्षिप्तवान्। (पुत्रेषु, सैन्येषु, मन्त्रिषु)
Answer:
मन्त्रिषु

Question 6.
विक्रमादित्य _____________________ वेषेण देशान्तरं निर्गतः। (योगी, भिक्षुकः, सन्न्यासी)
Answer:
योगी

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 2 ପରହିତସାଧନମ୍

Question 7.
पर्यटन् स एकस्मिन् दिवसे _____________________ प्राविशत्। (जलमध्ये, गुहायां, महारण्यमध्ये)
Answer:
महारण्यमध्ये

Question 8.
विक्रमादित्य _____________________ एकम् आश्रित्य रात्रौ स्थितः। (गृहम्, मन्दिरम्, वृक्षमूलम्)
Answer:
वृक्षमूलम्

Question 9.
तस्य वृक्षस्य उपरि _____________________ नामा कश्चिद् वृद्धः पक्षिराज आसीत्। (जरद्गवः, चिरञ्जीवी, जतुकर्णि)
Answer:
चिरञ्जीवी

Question 10.
पक्षिसावका: सायम् एकैकं _____________________ आदाय तस्मै वृद्धाय प्रयच्छन्ति स्म। (फलम्, पत्रम्, पुष्पम्)
Answer:
फलम्

Question 11.
अस्ति _____________________ शैवालघोषः नाम पर्वतः। (दक्षिणदेशे, पूर्वदेशे, उत्तरदेशे)
Answer:
उत्तरदेशे

Question 12.
अस्ति उत्तरदेशे _____________________ नाम पर्वतः। (मणिकर्ण, हिमालय, शैवालघोषः)
Answer:
शैवालघोषः

Question 13.
तस्य समीपे _____________________ नगरम् अस्ति। (पलाश, काशी, उज्जयिनी)
Answer:
पलाश

Question 14.
तस्मिन् पर्वते कश्चित् _____________________ निवसति स्म। (यक्ष:, राक्षसः, किन्नरः)
Answer:
राक्षसः

Question 15.
तस्य राक्षसस्य नाम _____________________। (अकासुरः, वकासुरः, अघासुरः)
Answer:
वकासुरः

Question 16.
वयं तुभ्यमाहारार्थं प्रतिदिनमेकं _____________________ दास्यामः। (शिशुं कन्यां, मानवं)
Answer:
मानवं

Question 17.
अद्य मम मित्रस्य कस्यचिद् _____________________ वार: समायातः। (क्षत्रियस्य, भिक्षुकस्य, ब्राह्मणस्य)
Answer:
ब्राह्मणस्य

Question 18.
तस्य ब्राह्मणस्य एक एव _____________________। (पुत्रः, कन्या, पिता)
Answer:
पुत्रः

Question 19.
_____________________ प्रयच्छति चेत् भायी विधवा जायते। (पुत्रं, कन्यां, आत्मानं)
Answer:
आत्मानं

Question 20.
_____________________ ददाति चेत् आश्रमभ्रंशो भवति। (पत्नीं, पुत्रं, आत्मानं)
Answer:
पत्नीं

Question 21.
राजा तत्र नगरे _____________________ समीपं गतः। (मन्दिरं, वध्यशिला, प्रासादं)
Answer:
वध्यशिला

Question 22.
_____________________ वध्यशिलायाम् उपविष्टः। (राजा, ब्राह्मण:, राक्षसः)
Answer:
राजा

Question 23.
राक्षसः राजानं _____________________ इति सम्वोधितम्। (महाभाग !, महासत्त्व !, वोधिसत्त्व !)
Answer:
महासत्त्व !

Question 24.
शिलायां प्रतिदिनं य उपविशति, स मदागमनात् पूर्वमेव _____________________। (शेते, म्रियते, अगच्छत्)
Answer:
म्रियते

Question 25.
मया _____________________ एतत् शरीरं दीयते स्वेच्छया। (परार्थम्, त्वदर्थम्, मदर्थम्)
Answer:
परार्थम्

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 2 ପରହିତସାଧନମ୍

Question 26.
तव एतत् शरीरं _____________________। (घृण्यम्, श्लाध्यम्, खर्वम्)
Answer:
श्लाध्यम्

Question 27.
भो महासत्त्व ! त्वं सर्वस्य _____________________ असि। (मित्रम्, आर्त्तिहरः, प्राणदाता)
Answer:
आर्त्तिहरः

Question 28.
यदि प्रसन्नं तर्हि अद्य प्रभृति _____________________ परित्यज। (आहार, पशुभक्षणं, मनुष्यभक्षणं)
Answer:
मनुष्यभक्षणं

Question 29.
_____________________ तदा प्रभृति जीवमारणं तत्याज। (ब्राह्मण:, राजा, राक्षस:)
Answer:
राक्षस:

Question 30.
राजा पुत्तलिकावचनं शृत्वा _____________________ अभवत्। (स्तब्धम्, उपहसितम्, तुष्णीम्)
Answer:
तुष्णीम्

(ख) अतिसंक्षेपेण उत्तरं लिखत-

Question 1.
एकदा क: राज्यभारं मन्त्रिषु निधाय देशान्तरं निर्गतः?
Answer:
ବିକ୍ରମାଦିତ୍ୟ

Question 2.
विक्रमादित्यः राज्यभारं केषु निधाय देशान्तरं निर्गत:?
Answer:
ମନ୍ତ୍ରମାନଙ୍କଠାରେ

Question 3.
सूर्यस्तं दृष्ट्रा विक्रमादित्यः कदा वृक्षमूलमाश्रित्य स्थित:?
Answer:
ରାତିରେ

Question 4.
वृक्षस्य उपरि कः आसीत्?
Answer:
ବୃଦ୍ଧପକ୍ଷୀରାଜ

Question 5.
वृद्धपक्षिराजस्य नाम किमासीत्?
Answer:
ଚିରଞ୍ଜୀବୀ

Question 6.
चिरञ्जीविन: पुत्रा: पौत्राश्च सायंकाले एकैकं किम् आदाय तस्मै वृद्धाय प्रायच्छन्?
Answer:
ଫଳ

Question 7.
उत्तरदेशे को नाम पर्वतः अस्ति?
Answer:
ଶୈବାଳଘୋଷ

Question 8.
कुत्र शैवालघोषः नाम पर्वतः अस्ति?
Answer:
ଉତ୍ତରଦେଶରେ

Question 9.
कस्य समीपे पलाशनगरमस्ति?
Answer:
ଶୈବାଳଘୋଷ ପର୍ବତର

Question 10.
शैवालघाषपर्वते स्थितस्य राक्षसस्य नाम किम्?
Answer:
ବକାସୁର

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 2 ପରହିତସାଧନମ୍

Question 11.
जना: प्रतिदिनं केन प्रकारेण एकैकं मानुषं तस्मै राक्षसाय प्रयच्छन्ति?
Answer:
ଘରପାଳି ଅନୁସାରେ

Question 12.
एकदा कस्य वारः समायातः?
Answer:
ବ୍ରାହ୍ମଣର

Question 13.
ब्राह्मणस्य कति पुत्राः आसन्?
Answer:
ଗୋଟିଏ ପୁଅ

Question 14.
ब्राह्मणः पुत्रं ददाति चेत् किं भवति?
Answer:
ସନ୍ତାନନାଶ

Question 15.
ब्राह्मण: पत्नीं ददाति चेत् किं भवति?
Answer:
ଗୃହସ୍ଥାଶ୍ରମର ବିନାଶ

Question 16.
ब्राह्मण: आत्मानं प्रयच्छति चेत् किं जायते?
Answer:
ଭାର୍ଯ୍ୟା ବିଧବା ହେବ

Question 17.
कः सुहृदः दुःखेन स्वयं दुःखी भवति?
Answer:
ପ୍ରକୃତ ବନ୍ଧୁ

Question 18.
क: विहारवार्थविद् भवति?
Answer:
ରାଜା ବିକ୍ରମାଦିତ୍ୟ

Question 19.
राजा ब्राह्मणं स्वगृहं सम्प्रेष्य कुत्र उपविष्टः?
Answer:
ବଧ୍ୟଶିଳାରେ

Question 20.
राक्षसः वदति – भो महासत्त्व ! त्वं पुनः कीदृशो दृश्यसे?
Answer:
ହସହସମୁଖ

Question 21.
परार्थं शरीरं प्रयच्छतः तव शरीरं किम्?
Answer:
ପ୍ରଶଂସନୀୟ

Question 22.
राक्षसः तदा प्रभृति किं तत्याज?
Answer:
ଜୀବବଧ |ମନୁଷ୍ୟଭକ୍ଷଣ

Question 23.
राजा कुत्र प्रत्यगत्?
Answer:
ନିଜ ନଗରୀକୁ

Question 24.
पुत्तलिका भोजराजमब्रवीत् – त्वयि एवं के गुणाः विद्यन्ते?
Answer:
ପରୋପକାର ଓ ଦୟାଦି

(ग) उत्कलभाषया अनुवादं कुरुत-

Question 1.
विक्रमे राज्यं कुर्वति भूमण्डले पिशुना: तस्कराः पापकर्मनिरता नासन्।
Answer:
ରାଜା ବିକ୍ରମାଦିତ୍ୟ ରାଜତ୍ଵ କଲାବେଳେ ପୃଥିବୀରେ ଦୁର୍ଜନ, ଚୋର ଓ ପାପୀମାନେ ନଥିଲେ ।

Question 2.
एकदा विक्रमादित्यो राज्यभारं मन्त्रिषु निधाय स्वयं योगिवषेण देशान्तरं निर्गतः।
Answer:
ଥରେ ବିକ୍ରମାଦିତ୍ୟ ମନ୍ତ୍ରୀମାନଙ୍କଠାରେ ରାଜ୍ୟଭାର ଅର୍ପଣ କରି ନିଜେ ଯୋଗୀବେଶରେ ବିଦେଶକୁ ଚାଲିଗଲେ ।

Question 3.
तद् दृष्ट्वा स वृक्षमूलमेकमाश्रित्य रात्रौ स्थितः।
Answer:
ତାହା ଦେଖୁ ରାତିରେ ସେ ଏକ ବୃକ୍ଷମୂଳକୁ ଆଶ୍ରୟକରି ରହିଲେ ।

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 2 ପରହିତସାଧନମ୍

Question 4.
तस्य वृक्षस्य उपरि चिरञ्जीविनामा कश्चिद् वृद्धः पक्षिराज आसीत्।
Answer:
ସେହି ବୃକ୍ଷ ଉପରେ ଚିରଞ୍ଜୀବୀ ନାମକ କୌଣସି ଏକ ବୃଦ୍ଧ ପକ୍ଷିରାଜ ଥିଲା।

Question 5.
‘भोः पुत्राः ! युष्माभिः नानादेशान् पर्यटद्भिः किं चित्रं दृष्टम्’?
Answer:
‘ହେ ପୁତ୍ରମାନେ ! ବିଭିନ୍ନ ଦେଶ ଭ୍ରମଣକରି ତୁମେମାନେ କି ବିଚିତ୍ର କଥା ଦେଖୁଲ’?

Question 6.
अस्ति उत्तरदेशे शैवालघोषः नाम पर्वतः।
Answer:
ଉତ୍ତର ଦେଶରେ ଶୈବାଳଘୋଷ ନାମକ ପର୍ବତଟିଏ ଅଛି।

Question 7.
वयं तुभ्यमाहारार्थं प्रतिदिनमेकं मानवं दास्यामः।
Answer:
ଆମ୍ଭେମାନେ ତୁମକୁ ଖାଇବାପାଇଁ ପ୍ରତିଦିନ ଗୋଟିଏ ଲେଖାଏଁ ମନୁଷ୍ୟ ଦେବୁ।

Question 8.
तदनन्तरं तत्रत्या जना: प्रतिदिनं गृहक्रमेण एकैकं मानुषं तस्मै प्रचच्छन्ति।
Answer:
ତାହାପରେ ସେଠିକାର ଲୋକମାନେ ପ୍ରତ୍ୟହ ଘରପାଳି ଅନୁସାରେ ଜଣେ ଜଣେ କରି ମନୁଷ୍ୟକୁ ତାକୁ ଦେଉଥା’ନ୍ତି।

Question 9.
अद्य मम मित्रस्य कस्यचिद् ब्राह्मणस्य वारः समायातः।
Answer:
ଆଜି ମୋର କୌଣସି ଏକ ବ୍ରାହ୍ମଣବନ୍ଧୁର ପାଳି ପଡ଼ିଲା ।

Question 10.
पुत्रं ददाति चेत् सन्ततिच्छेदो भवति।
Answer:
ଯଦି ପୁତ୍ରକୁ ଦେବ ତେବେ ସନ୍ତାନନାଶ ହେବ।

Question 11.
आत्मानं प्रयच्छति चेत् भार्याी विधवा जायते।
Answer:
ଯଦି ନିଜକୁ ପ୍ରଦାନ କରେ ତେବେ ଭାର୍ଯ୍ୟା ବିଧବା ହୋଇଯିବ।

Question 12.
पत्नीं ददाति चेत् आश्रमभ्रंशो भवति।
Answer:
ସ୍ତ୍ରୀକୁ ଯଦି ଦେବ ତେବେ ଗୃହସ୍ଥାଶ୍ରମର ବିନାଶ ହୋଇଯିବ।

Question 13.
पक्षिणो वचः श्रुत्वा विहङ्गरवार्थविद् राजा तत्र नगरे वध्यशिलासंमीपं गतः।
Answer:
ପକ୍ଷୀଟିର କଥା ଶୁଣି ପକ୍ଷିସ୍ୱରାର୍ଥଜ୍ଞ ରାଜା ସେହି ନଗରରେ ଥିବା ବଧ୍ୟଶିଳା ନିକଟକୁ ଗଲେ ।

Question 14.
त्वं पुनः प्रहसितवदनो दुश्यसे।
Answer:
ତୁମେ ପୁଣି ହସହସ ମୁଖ ଦେଖାଯାଉଛି ।

Question 15.
भो महासत्व ! त्वं सर्वस्य आर्त्तिहरः असि।
Answer:
ହେ ମହାପ୍ରାଣ ! ତୁମେ ସମସ୍ତଙ୍କର ଦୁଃଖହରଣକାରୀ ଅଟେ।

Question 16.
परार्थ शरीरं प्रयच्छतः तव एव एतत् शरीरं श्लाध्यम्।
Answer:
ପର ପାଇଁ ଶରୀର ଦାନକରୁଥିବା ତୁମର ଏହି ଦେହ ପ୍ରଶଂସନୀୟ ଅଟେ।

Question 17.
राक्षसः तदा प्रभृति जीवमारणं तत्याज।
Answer:
ରାକ୍ଷସ ସେହିଦିନଠାରୁ ଜୀବବଧ ତ୍ୟାଗକଲା ।

संक्षेपेण उत्तरं लिखत-

Question 1.
विक्रमादित्य : रात्रौ कुत्र स्थित:?
Answer:
ଏକଦା ଭୋଜରାଜ ବିକ୍ରମାଦିତ୍ୟ ଦେଶାନ୍ତରରେ ଯାଇ ଏକ ବନମଧ୍ୟରେ ପ୍ରବେଶ କଲେ । ବୁଲି ବୁଲି ସାରାଦିନ ତାଙ୍କର ଅତିବାହିତ ହେଲା । ବଣମଧ୍ଯରେ ସୂର୍ଯ୍ୟ ଅସ୍ତ ହୋଇଯିବାରୁ ରାତ୍ରି ଆସିବାମାତ୍ରକେ ସେ ସେହିଠାରେ ଏକ ବୃକ୍ଷମୂଳରେ ରାତ୍ରି ଯାପନ କଲେ ।

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 2 ପରହିତସାଧନମ୍

Question 2.
चिरञ्जीवी क:?
Answer:
ଚିରଞ୍ଜୀବୀ ହେଉଛି ପକ୍ଷୀମାନଙ୍କର ରାଜା । ସେ ଅତ୍ୟନ୍ତ ବୃଦ୍ଧ ଅଟେ । ବଣମଧ୍ୟରେ ଭୋଜରାଜ ବିକ୍ରମାଦିତ୍ୟ ଯେଉଁ ବୃକ୍ଷମୂଳରେ ରାତ୍ରିଯାପନ କରୁଥିଲେ, ସେହି ବୃକ୍ଷ ଉପରେ ସେ ନିବାସ କରୁଥିଲା । ପକ୍ଷୀମାନେ ବଣରେ ଉଡ଼ିବୁଲି ତା’ପାଇଁ ଯେଉଁ ଫଳ ଆଣୁଥିଲେ ତାକୁ ଖାଇ ସେ ଜୀବନ ନିର୍ବାହ କରୁଥିଲା ।

Question 3.
पक्षिणः चिरञ्जीविना किं पृष्ठा?
Answer:
ବନମଧ୍ୟରେ ଏକ ବୃକ୍ଷ ଉପରେ ବୃଦ୍ଧ ପକ୍ଷୀରାଜ ଚିରଞ୍ଜୀବୀ ନିବାସ କରୁଥିଲା । ତା’ର ପୁଅ ଓ ନାତିମାନେ ନିଜ ଉଦର ପୂର୍ଣ୍ଣକରିବା ପରେ ଯାହା ଫଳ ଆଣି ଦେଉଥିଲେ ସେଥ‌ିରେ ସେ ଜୀବନ କଟାଉଥିଲା । ତା’ପରେ ରାତିରେ ଚିରଞ୍ଜୀବୀ ଆନନ୍ଦରେ ବସି ସେହି ପକ୍ଷୀମାନଙ୍କୁ ପଚାରିଲା – ହେ ପୁତ୍ରମାନେ ! ତୁମ୍ଭେମାନେ ତ ନାନାଦେଶ ବୁଲୁଛି ତେବେ ଆଶ୍ଚର୍ଯ୍ୟ କଥା କ’ଣ ଦେଖୁଲ ? ଏହିପରି ପ୍ରଶ୍ନ ଚିରଞ୍ଜୀବୀ ପକ୍ଷୀମାନଙ୍କୁ କରିଥିଲା ।

Question 4.
शैवालघोषे कः प्रतिवसति स्म? असौ प्रत्यहं किं करोति?
Answer:
ଉତ୍ତରପ୍ରଦେଶରେ ଶୈବାଳଘୋଷ ନାମକ ପର୍ବତଟିଏ ଥିଲା । ସେହି ପର୍ବତରେ ବକାସୁର ନାମକ ରାକ୍ଷସ ନିବାସ କରୁଥିଲା । ସେ ପ୍ରତିଦିନ ପର୍ବତ ନିକଟସ୍ଥ ପଲାଶନଗର ସମସ୍ତ ଲୋକମାନଙ୍କୁ କି ପୁରୁଷ, ସ୍ତ୍ରୀ, ପିଲା ସମସ୍ତଙ୍କୁ ମନଇଚ୍ଛା ଭକ୍ଷଣ କରୁଥିଲା । ବକାସୁରର ଏପରି କାର୍ଯ୍ୟରେ ନଗରବାସୀ ଅତ୍ୟନ୍ତ ଦୁଃଖ୍ତ ହୋଇପଡ଼ିଲେ ।

Question 5.
ब्राह्मणः राक्षसाय भोजनदानावसरे किम् अचिन्तयत्?
Answer:
ନଗରବାସୀ ପ୍ରତିଦିନ ପାଳିକରି ଜଣକୁ ରାକ୍ଷସର ଭକ୍ଷଣ ନିମନ୍ତେ ପଠାଉଥିଲେ । ଥରେ ଜଣେ ବ୍ରାହ୍ମଣର ପାଳିପଡ଼ିଲା । ତହୁଁ ସେ ଚିନ୍ତାକଲା ଯେ ଯଦି ମୋର ଏକମାତ୍ର ପୁତ୍ରକୁ ଦେଉଛି ତେବେ ନିଃସନ୍ତାନ ହୋଇଯିବି । ଯେବେ ନିଜକୁ ଅର୍ପଣ କରୁଛି ତେବେ ସ୍ତ୍ରୀ ବିଧବା ହୋଇଯିବ । ପୁଣି ଯଦି ସ୍ତ୍ରୀକୁ ଦେଉଛି ତେବେ ମୋର ସଂସାର ଉଚ୍ଛନ୍ନ ହୋଇଯିବ । ଏହିପରି ନାନାକଥା ଚିନ୍ତାକରି ବ୍ରାହ୍ମଣ ଦୁଃଖର ସହିତ ରାକ୍ଷସର ଭୋଜନ ନିମନ୍ତେ ବଧଶିଳା ଆଡ଼କୁ ଚାଲିଲା ।

Question 6.
परहितसाधनमाश्रित्य सुहृदः लक्षणं निर्णयत।
Answer:
ଅନ୍ୟର ହିତସାଧନ ନିମନ୍ତେ ଯେ ନିଜ ଜୀବନକୁ ବଳି ଦେବାକୁ ସକ୍ଷମ ହୋଇଥାଏ ସେ ହିଁ ପ୍ରକୃତ ବନ୍ଧୁ । କାରଣ ରାଜା ପକ୍ଷୀମାନଙ୍କର କଥା ଶୁଣି ବ୍ରାହ୍ମଣକୁ ଗୃହକୁ ପଠାଇ ନିଜେ ବଧଶିଳାରେ ବସିପଡ଼ିଲେ । ଏ ପ୍ରସଙ୍ଗରେ ପକ୍ଷୀମାନଙ୍କ ମୁଖରେ ଯଥାର୍ଥ ଉକ୍ତି ଯେ – “अहो ! अयमेव सुहृत्, य सुहृदो दुःखेन स्वयं दुःखी भवति।”

Question 7.
विक्रमादित्य कथं महासत्त्व इति राक्षसेन उक्तम्?
Answer:
ରାକ୍ଷସ ବକାସୁର ଯେତେବେଳେ ବଧଶିଳା ନିକଟକୁ ଆସିଲା ସେତେବେଳେ ଦେଖିଲା ଯେ ଜଣେ ପୁରୁଷ ସହର୍ଷଉତ୍‌ଫୁଲ୍ଲିତ ବଦନରେ ବସିଛି । ତାକୁ ଦେଖୁ ରାକ୍ଷସ ଆଶ୍ଚର୍ଯ୍ୟାନ୍ବିତ ହେଲା ଏବଂ ମହାସତ୍ତ୍ଵ ବୋଲି ସମ୍ବୋଧନ କଲା, କାରଣ ରାକ୍ଷସର ଆସିବା ପୂର୍ବରୁ ଯିଏ ସେହି ବଧଶିଳାରେ ବସିଥାଏ ସେ ମରିଯାଏ । ଏଥିରେ ରାକ୍ଷସ ସନ୍ତୁଷ୍ଟ ହୋଇ ବରଯାଚନା ପାଇଁ କହିଥିଲା । ବିକ୍ରମାଦିତ୍ୟଙ୍କର ଏତାଦୃଶ ତ୍ୟାଗ ଓ ଦୟାର ଭାବନା ତାଙ୍କୁ ମହାସତ୍ତ୍ଵ ନାମରେ ନାମିତ କରିଥିଲା, ଯାହାକି ରାକ୍ଷସଦ୍ବାରା ଅଭିହିତ ହୋଇଥିଲା ।

Question 8.
वध्यशिलायाम् उपविष्टः राजा राक्षसं किम् अब्रवीत्?
अथवा
राजा वररूपेण राक्षसं किमयाचत?
Answer:
ରାକ୍ଷସ ବଧଶିଳାରେ ଉପବେଶନ କରିଥିବା ରାଜାଙ୍କୁ ଦେଖୁ ତାଙ୍କର ତ୍ୟାଗ ଓ ଦୟାର ଭାବନା ଦେଖୁ ମୃତ୍ୟୁକାଳରେ ବି ହରଷମୁଖ ଦେଖୁ ତାଙ୍କୁ ମହାସତ୍ତ୍ଵ ବୋଲି ସମ୍ବୋଧନ କରି ସନ୍ତୁଷ୍ଟ ହୋଇ ବରଯାଚନା କରିବାପାଇଁ କହିଲା । ରାଜା କିନ୍ତୁ ପ୍ରଥମେ ବଧଶିଳାରେ ବସି ତାଙ୍କୁ ଭକ୍ଷଣ କରିବାକୁ କହିଲେ, ମୁଁ ପର ନିମନ୍ତେ ଏ ଶରୀର ପ୍ରଦାନ କରୁଅଛି । ପରେ ବରଯାଚନା କରି ରାକ୍ଷସକୁ ଜୀବମାରଣ ନକରିବାପାଇଁ କହିଥିଲେ । ସେହିଦିନଠାରୁ ସେ ରାକ୍ଷସ ମଧ୍ୟ ଆଉ ଜୀବମାରଣ କଲା ନାହିଁ ।

Question 9.
वासुरं नागरिका: किं प्रतिश्रुतवन्तः?
Answer:
ଉତ୍ତରପ୍ରଦେଶର ଶୈବାଳଘୋଷ ପର୍ବତରେ ବକାସୁର ନାମକ ଏକ ରାକ୍ଷସ ରହୁଥିଲା । ସେ ନିକଟସ୍ଥ ପିଲାଶନଗରର ଲୋକମାନଙ୍କୁ ମନଇଚ୍ଛା ଭକ୍ଷଣ କରୁଥିଲା । ଥରେ ସେହି ନଗରବାସୀ ସେ ବକାସୁରକୁ ପ୍ରତିଶ୍ରୁତି ଦେଇ କହିଲେ – ‘ହେ ବକାସୁର ! ତୁମେ ମନଇଚ୍ଛା ସମ୍ମୁଖରେ ପଡୁଥିବା ଯେକୌଣସି ବ୍ୟକ୍ତିକୁ ଖାଅନାହିଁ । ଆମ୍ଭେମାନେ ତୁମର ଆହାର ନିମନ୍ତେ ପ୍ରତିଦିନ ଗୋଟିଏ କରି ମଣିଷ ଦେବୁ ।’ ଏହିପରି କହି ପ୍ରତିଦିନ ଜଣ ଜଣକୁ ପାଳିକରି ନଗରବାସୀ ତା’ ନିକଟକୁ ପଠାଉଥିଲେ ।

Question 10.
राजानं दृष्ट्वा कथं राक्षस: विस्मितोऽभवत्?
Answer:
ବଧଶିଳା ଉପରେ ପ୍ରଫୁଲ୍ଲିତବଦନଯୁକ୍ତ ରାଜାଙ୍କୁ ଦେଖୁ ରାକ୍ଷସ ବିସ୍ମିତ ହୋଇଥିଲା କାରଣ ଏଥ‌ିପୂର୍ବରୁ ଯେ ଶିଳା ଉପରେ ବସୁଥିଲା ସେ ରାକ୍ଷସର ଆସିବା ପୂର୍ବରୁ ହିଁ ମୃତ୍ୟୁବରଣ କରୁଥିଲା । ହେଲେ ରାଜାଙ୍କ କ୍ଷେତ୍ରରେ ଏହାର ବ୍ୟତିକ୍ରମ ରାକ୍ଷସ ଦର୍ଶନ କଲା, ଏଣୁ ଆଶ୍ଚର୍ଯ୍ୟାନ୍ବିତ ହେଲା ।

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 2 ପରହିତସାଧନମ୍

Question 11.
पक्षिणां वचः शृत्वा राजा किम् अकरोत्?
Answer:
ଯେତେବେଳେ ପକ୍ଷୀମାନେ ଶୈବାଳଘୋଷ ପର୍ବତନିବାସୀ ରାକ୍ଷସର ଜୀବମାରଣ କଥା କହୁଥିଲେ, ସେହି ବୃକ୍ଷମୂଳରେ ଥାଇ ରାଜା ସେ ସମସ୍ତ କଥା ଶୁଣୁଥିଲେ । ଆଉ ସେ ବ୍ରାହ୍ମଣର ଏପରି ଦୁଃଖାବସ୍ଥାକୁ ଅନୁଭବକରି ପରମଦୟାର୍ଦ୍ରଚିତ୍ତ ରାଜା ବିକ୍ରମାଦିତ୍ୟ ତତ୍‌କ୍ଷଣେ ସେ ନଗରନିକଟସ୍ଥ ବଧଶିଳା ନିକଟକୁ ଗଲେ ଓ ବ୍ରାହ୍ମଣକୁ ଅଭୟବାଣୀ ଶୁଣାଇ ନିଜେ ଯାଇ ସେହି ବଧଶିଳା ଉପରେ ରାକ୍ଷସର ଭୋଜନ ନିମନ୍ତେ ବସିପଡ଼ିଲେ । ଏଥୁରୁ ରାଜାଙ୍କର ତ୍ୟାଗଶୀଳତାର ପରିଚୟ ମିଳେ ।

Question 12.
कथं राक्षसेन कथितम् “अहं तृष्टोऽस्मि”?
Answer:
ବଧଶିଳା ଉପରେ ପରମତ୍ୟାଗୀ ରାଜାଙ୍କୁ ପ୍ରଫୁଲ୍ଲିତ ବଦନଯୁକ୍ତ ଦେଖୁ ତାଙ୍କର ପରାର୍ଥନିମନ୍ତେ ଶରୀର ତ୍ୟାଗ ବିଷୟକୁ ଶୁଣି ରାକ୍ଷସ ବକାସୁର କହିଲା – ‘ହେ ମହାସତ୍ତ୍ୱ ! ତୁମେ ସମସ୍ତଙ୍କର ପ୍ରାଣରକ୍ଷକ ଅଟ । ପରପାଇଁ ପ୍ରଦାନ କରୁଥିବା ତୁମର ଏ ଶରୀର ଅତ୍ୟନ୍ତ ପ୍ରଶଂସନୀୟ । ଏଣୁ ମୁଁ ସନ୍ତୁଷ୍ଟ ହେଲି । ତେଣୁ ତୁମେ ବର ମାଗ ।

दीर्घप्रश्नोत्तराणि

Question 1.
“परहतिसाधनम्” इति कथाप्रसङ्गात् राजा विक्रमादित्यस्य त्यागं दयाञ्च प्रदर्शयत्।
अथवा
विक्रमादित्यः कथं राक्षससम्मुखं गत्वा आत्मानं विसर्जयितुं स्थिरिकृतवान्?
Answer:
ସିଂହାସନରେ ଆରୁଢ଼ହେବାକୁ ଯିବାବେଳେ ଏକ କଣ୍ଢେଇ ଏକଥା କହିଥିଲା । ରାଜା ବିକ୍ରମାଦିତ୍ୟ ଥିଲେ ସୁଶାସକ । ତାଙ୍କ ରାଜ୍ୟଶାସନ କାଳରେ ରାଜ୍ୟରେ ମିଥ୍ୟାବାଦୀ, ଚୌର ଓ ପାପୀ ନଥିଲେ । ଥରେ ରାଜା ରାଜ୍ୟଭାର ମନ୍ତ୍ରୀଙ୍କୁ ଦେଇ ସନ୍ନ୍ୟାସୀ ବେଶରେ ବିଦେଶକୁ ବାହାରିଲେ । ବୁଲିବୁଲି ଯାଇ ସନ୍ଧ୍ୟାକାଳରେ ଘୋର ଅରଣ୍ୟରେ ପହଞ୍ଚିଲେ । ସେ ରାତ୍ରିଯାପନ ପାଇଁ ଏକ ବୃକ୍ଷମୂଳେ ବସିଲେ । ସେହି ଗଛରେ ଚିରଞ୍ଜୀବୀ ନାମକ ବୃଦ୍ଧ ପକ୍ଷୀରାଜ ରହୁଥିଲା । ତା’ର ପିଲାମାନେ ବିଭିନ୍ନ ସ୍ଥାନକୁ ଯାଇ ଆହାରକରି ଗୋଟିଏ ଗୋଟିଏ ଫଳ ଆଣି ତାକୁ ଦେଉଥିଲେ । ଚିରଞ୍ଜୀବୀ ପକ୍ଷୀମାନଙ୍କୁ ସେମାନେ ବୁଲୁଥିବାବେଳେ କ’ଣ ଆଶ୍ଚର୍ଯ୍ୟକଥା ଦେଖ‌ିଲେ ବୋଲି ପଚାରନ୍ତେ ଏକ ପକ୍ଷୀ ଯାହା କହିଲା, ସେ କଥାକୁ ବୃକ୍ଷମୂଳେ ରାଜା ଶୁଣୁଥିଲେ ।

ପକ୍ଷୀଟି କହିଲା – ଉତ୍ତରପ୍ରଦେଶରେ ଶୈବାଳଘୋଷ ନାମକ ପର୍ବତଟିଏ ଅଛି । ତା’ ନିକଟରେ ପଲାଶନଗର ରହିଛି । ସେହି ପର୍ବତରେ ଥ‌ିବା ଏକ ରାକ୍ଷସ ଯା’ର ନାଁ ବକାସୁର ସେ ପ୍ରତିଦିନ ନଗରକୁ ଆସି ତା’ଆଗରେ ଯେ ପଡୁଥିଲା, ତାକୁ ଭକ୍ଷଣ କରୁଥିଲା । ଥରେ ନଗରବାସୀ ଲୋକେ କହିଲେ – ‘‘ହେ ବକାସୁର ! ତୁମେ ଏପରି କରନାହିଁ, ଆମ୍ଭେମାନେ ତୁମର ଆହାର ନିମନ୍ତେ ପ୍ରତିଦିନ ଗୋଟିଏ କରି ମଣିଷ ଆଣିଦେବୁ ।’’

ତା’ପରେ ସେ ନଗରବାସୀ ପ୍ରତିଦିନ ପାଳି ଅନୁସାରେ ପ୍ରତିଘରୁ ଜଣ ଜଣଙ୍କୁ ନେଇ ତାଙ୍କୁ ଦେଉଥାନ୍ତି । ଏହିପରି ଅନେକ ଦିନ ଗଡ଼ିଗଲା । ଦିନେ ଏକ ବ୍ରାହ୍ମଣର ପାଳି ପଡ଼ିବାରୁ ସେ ବ୍ୟଥ୍‌ତ ବା ଦୁଃଖୁତ ହେଲା, କାରଣ ତା’ର ଏକମାତ୍ର ପୁତ୍ର, ତାକୁ ଯଦି ସେ ଦିଏ ତେବେ ତା’ର କୁଳ ନାଶ ଯିବ । ସେ ଯଦି ନିଜେ ଯାଏ ତେବେ ସ୍ତ୍ରୀ ବିଧବା ହୋଇଯିବ । ସ୍ତ୍ରୀକୁ ଯଦି ଦିଏ ତେବେ ଘର ଉଜୁଡ଼ିଯିବ । ଏକଥା ଭାବି ବ୍ରାହ୍ମଣ ବର୍ଷଶିଳା ନିକଟକୁ ଗଲା ।

ଏହି ସମୟରେ ଏକଥା ଶୁଣି ରାଜା ବିକ୍ରମାଦିତ୍ୟ ସେହି ନଗରର ବର୍ଧଶିଳା ନିକଟକୁ ଗଲେ । ସେଠାରେ ବ୍ରାହ୍ମଣକୁ ଦେଖୁ ତାକୁ ଅଭୟବାଣୀ ଶୁଣାଇ ଘରକୁ ପଠାଇଦେଲେ ଓ ନିଜେ ବଧଶିଳା ଉପରେ ବସିଗଲେ । ବକାସୁର ଆସି ପ୍ରଫୁଲ୍ଲିତ ହରଷମନା ଲୋକଟିଏ ଦେଖୁ ପଚାରିଲା – ‘‘ହେ ମହାସତ୍ତ୍ୱ ! ଏଠାକୁ ଯେ ଆସେ ସେ ମୋ ଆସିବାପୂର୍ବରୁ ହିଁ ମରିଯାଏ । ହେଲେ ତୁମେ ଏତେ ହସହସ ମୁଖରେ ଏଠାରେ ବସିଛ । ତୁମେ କିଏ ?’’

ଏହାପରେ ରାଜା କହିଲେ, ମୁଁ ଅନ୍ୟ ପାଇଁ ସ୍ଵଇଚ୍ଛାରେ ଶରୀର ପ୍ରଦାନ କରୁଛି । ତେଣୁ ମୋ ମନରେ ଆଦୌ ଗ୍ଳାନି ନାହିଁ । ତୁମେ ମଧ୍ଯ ତୁମର ଇଚ୍ଛା ପୂରଣ କର ବା ମୋତେ ଭକ୍ଷଣ କର। ଏହାପରେ ରାକ୍ଷସ କ୍ଷଣିଏ ରହି ଭାବିଲା ଓ କହିଲା – ହେ ମହାସତ୍ତ୍ୱ ! ତୁମେ ସମସ୍ତଙ୍କର ଦୁଃଖହରଣକାରୀ ଓ ତୁମର ଏ ଶରୀର ପ୍ରଶଂସନୀୟ । ମୁଁ ତୁମ ଉପରେ ସନ୍ତୁଷ୍ଟ ହେଲି ଏଣୁ ବର ମାଗ । ଏହା ଶୁଣି ରାଜା କହିଲେ – ‘ହେ ରାକ୍ଷସ ! ତୁମେ ମନୁଷ୍ୟ ଭକ୍ଷଣ ତ୍ୟାଗ କର ।’ ତାପରେ ରାକ୍ଷସ ସେହିଦିନଠାରୁ ଜୀବମାରଣ ତ୍ୟାଗ କଲା । ରାଜା ସ୍ଵନଗରୀକୁ ପ୍ରତ୍ୟାବର୍ତ୍ତନ କଲେ ।

ଏହିପରି ଭାବେ ତ୍ୟାଗପୂତ ଚରିତ୍ର ବିଶିଷ୍ଟ ପରମ ଉପକାରୀ ଦୟାଶୀଳ ରାଜା ବିକ୍ରମାଦିତ୍ୟ ପୁତ୍ତଳିକାଠାରୁ କଥା ଶୁଣି ନୀରବ ରହିଲେ ଓ ସିଂହାସନରେ ଉପବେଶନ କଲେ । ଏହାଥିଲା ରାଜାଙ୍କର ଚାରିତ୍ରିକ ଗୁଣ ଓ ମହତ୍ତ୍ଵର ଚରମ ତଥା ପରମ ନିଦର୍ଶନ ।

+2 1st Year Sanskrit Optional Chapter 2 ପରହିତସାଧନମ୍ Summary

ବିଷୟ ପ୍ରବେଶ – ‘‘ପରହିତସାଧନମ୍’’ ଏହି ନାମଧେୟ କଥା ଦ୍ବାତ୍ରିଂଶତ୍‌ପୁତ୍ତଳିକା ଗ୍ରନ୍ଥରୁ ସମୁଦ୍ଧୃତ । ଏହି କଥାରେ ଭାରତଭୂମଣ୍ଡଳ ବିସ୍ତ୍ରୁତ ପ୍ରଥଯଶା ନରପତି ବିକ୍ରମାଦିତ୍ୟଙ୍କର ସୁଗୁଣ ଚରିତର ବର୍ଣ୍ଣନା କରାଯାଇଛି । ସିଂହାସନରେ ଆରୋହଣ କରିବାକୁ ଉଦ୍ୟତ ହେଉଥୁବା ଭୋଜଙ୍କ ପ୍ରତି ପୁତ୍ତଳିକା (କଣ୍ଢେଇ) ବିକ୍ରମ ଗୁଣକୀର୍ତ୍ତନ ବିନିବେଦିତ ହୋଇଛି । ପ୍ରସ୍ତୁତ କଥାରେ ପରହିତସାଧନର ପରାକାଷ୍ଠା ପ୍ରଦର୍ଶିତ ହୋଇଛି । ଏହି କଥାର ଭାଷା ଅତୀବ ହୃଦ୍ୟ ଏବଂ ଭାବ ଅତୀବ ଗମ୍ଭୀର । ପରହିତ ପରାୟଣା ରାଜାଙ୍କଦ୍ବାରା କୁରରାକ୍ଷସର ଚରିତ୍ର ତଥା ହୃଦୟ ପରିବର୍ତ୍ତନ ହୋଇଅଛି ।

ସାରକଥା – ସିଂହାସନକୁ ଆରୋହଣ କରିବାକୁ ଯାଉଥ‌ିବା ରାଜା ଭୋଜଙ୍କୁ ଏକ କଣ୍ଢେଇ କହିଲା – ରାଜା ! ଶୁଣ । ବିକ୍ରମାଦିତ୍ୟଙ୍କ ରାଜତ୍ୱକାଳରେ ତାଙ୍କ ରାଜ୍ୟରେ କେହିହେଲେ ମିଛୁଆ, ଚୋର ଓ ପାପୀ ନ ଥିଲେ । ଥରେ ସେ ରାଜ୍ୟଭାର ମନ୍ତ୍ରୀଙ୍କୁ ଦେଇ ନିଜେ ଯୋଗୀବେଶରେ ବିଦେଶକୁ ବାହାରିପଡ଼ିଲେ । ବୁଲୁ ବୁଲୁ ସଂଧ୍ୟାସମୟରେ ମହାରଣ୍ୟରେ ପ୍ରବେଶ କଲେ । ସେ ରାତ୍ରିରେ କୌଣସି ଏକ ବୃକ୍ଷମୂଳେ ରହିଲେ । ସେହି ଗଛରେ ଚିରଂଜୀବୀ ନାମକ ଏକ ବୃଦ୍ଧପକ୍ଷୀରାଜ ରହୁଥିଲା । ତା’ର ପୁଅ ଓ ନାତିମାନେ ଅନ୍ୟଦେଶକୁ ଯାଇ ଉଦର ପୂରଣକରି ସଂଧ୍ୟାରେ ତା’ପାଇଁ ଗୋଟିଏ ଗୋଟିଏ ଫଳ ନେଇଆସୁଥିଲେ ଓ ତାଙ୍କୁ ଦେଉଥିଲେ । ରାତିରେ ଆନନ୍ଦରେ ଚିରଂଜୀବୀ ସେମାନଙ୍କୁ ପଚାରିଲା – ତୁମେ ନାନାଦେଶ ବୁଲି କ’ଣ ଆଶ୍ଚର୍ଯ୍ୟ କଥା ଦେଖୁ ?

ଏକ ପକ୍ଷୀ କହିଲା – ଉତ୍ତରପ୍ରଦେଶରେ ଶୈବାଳଘୋଷ ନାମକ ଏକ ପର୍ବତ ଥିଲା । ତା’ ନିକଟରେ ପଲାଶନଗର ଥିଲା । ସେହି ପର୍ବତରେ ବକାସୁର ନାମକ ଏକ ରାକ୍ଷସ ରହୁଥିଲା । ସେ ପ୍ରତିଦିନ ନଗରକୁ ଆସି ତା’ ଆଗରେ ଆସୁଥୁବା ଯେକୌଣସି ମନୁଷ୍ୟ, ସ୍ତ୍ରୀ ବା ବାଳକକୁ ସେ ପର୍ବତକୁ ନେଇ ଖାଉଥିଲା । ଥରେ ନଗରବାସୀ ଲୋକେ ସେ ରାକ୍ଷସକୁ ଏପରି ନ ଖାଇବାପାଇଁ କହି ତାକୁ ପ୍ରତିଦିନ ଆହାର ନିମନ୍ତେ ଗୋଟିଏ ମଣିଷ ଦେବାକୁ ପ୍ରତିଶ୍ରୁତି ଦେଲେ ।

ତା’ପରେ ପାଳିକ୍ରମେ ଲୋକେ ପ୍ରତିଦିନ ଜଣେ ମଣିଷକୁ ଦେଲେ । ଏହିପରି ଅନେକ ଦିନ ଚାଲିଗଲା । ଆଜି ମୋର କୌଣସି ଏକ ବ୍ରାହ୍ମଣ ବନ୍ଧୁର ପାଳି ପଡ଼ିଲା । ତା’ର ଏକ ପୁତ୍ର । ଯଦି ପୁଅକୁ ଦିଏ ତେବେ ସନ୍ତାନହାନି ହେବ । ନିଜେ ଯଦି ଯିବ ତେବେ ପନ୍ଥୀ ବିଧବା ହୋଇଯିବ ଏବଂ ପତ୍ନୀକୁ ଯଦି ଦିଏ ତେବେ ଆଶ୍ରମ ଭ୍ରଂଶ ହୋଇଯିବ । ଏହାହିଁ ମୋର ଦୁଃଖର କାରଣ । ଏକଥା ଶୁଣି ପକ୍ଷୀମାନେ କହିଲେ – ଆରେ ! ଇଏ ହିଁ ପ୍ରକୃତରେ ବନ୍ଧୁ । କାରଣ ଯିଏକି ବନ୍ଧୁର ଦୁଃଖରେ ନିଜେ ଦୁଃଖୀ ହେଉଛି ।

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ପକ୍ଷୀମାନଙ୍କର ଏହି କଥା ଶୁଣି ବିହଙ୍ଗରବାର୍ଥବିତ୍ ରାଜା ଭୋଜ ସେହି ନଗରରେ ବଧଶିଳା ନିକଟକୁ ଗଲେ । ସେଠି ବ୍ରାହ୍ମଣକୁ ଦେଖ୍ ତାଙ୍କୁ ଅଭୟଦେଇ ଘରକୁ ପଠାଇ ନିଜେ ସେ ଶିଳା ଉପରେ ବସିପଡ଼ିଲେ । ସେହି ସମୟରେ ରାକ୍ଷସ ଆସି ପ୍ରଫୁଲ୍ଲିତ ସେ ଲୋକଟିକୁ ଦେଖ୍ ଆଶ୍ଚର୍ଯ୍ୟହୋଇ ପଚାରିଲା – ହେ ମହାସତ୍ତ୍ୱ ! ଏ ଶିଳାରେ ଯେ ପ୍ରତିଦିନ ବସେ ସେ ମୋ ଆସିବା ପୂର୍ବରୁ ହିଁ ମରିଯାଇଥାଏ । ତୁମେ କ’ଣ ଆଜି ହସ ହସ ମୁଖରେ ବସିଥିବାର ଦେଖାଯାଉଛି । ତେବେ କୁହ, ତୁମେ କିଏ ?

ରାଜା କହିଲେ – ‘ମୁଁ ଅନ୍ୟପାଇଁ ନିଜ ଇଚ୍ଛାରେ ଏ ଶରୀର ପ୍ରଦାନ କରୁଛି । ଏଣୁ ମୋ ମନରେ କିଛି ଗ୍ଳାନି ନାହିଁ । ତୁମେ ନିଜ ଇଚ୍ଛା ପୂରଣ କର । ତା’ପରେ ରାକ୍ଷସ ଟିକେ ଭାବି କହିଲା – ‘ହେ ମହାସତ୍ତ୍ୱ ! ତୁମେ ସମସ୍ତଙ୍କର ଦୁଃଖହାରୀ ଅଟ । ଅନ୍ୟପାଇଁ ପ୍ରଦତ୍ତ ଏ ଶରୀର ତୁମର ପ୍ରଶଂସନୀୟ । ମୁଁ ସନ୍ତୁଷ୍ଟ ହେଲି । ବର ମାଗ’ । ରାଜା କହିଲେ – ହେ ରାକ୍ଷସ ! ଯଦି ତୁମେ ପ୍ରସନ୍ନ ହୋଇଛି ତେବେ ଆଜିଠୁ ମନୁଷ୍ୟଭକ୍ଷଣ ତ୍ୟାଗ କର ।’’ ତା’ପରେ ରାକ୍ଷସ ସେହିଦିନଠାରୁ ଜୀବମାରଣ ତ୍ୟାଗ କଲା । ରାଜା ନିଜ ନଗରୀକୁ ଫେରିଗଲେ । ଏକଥା କହି କଣ୍ଢେଇ ଭୋଜରାଜାଙ୍କୁ କହିଲା ତୁମଠି ଯଦି ପରୋପକାର ଗୁଣ ଅଛି ତେବେ ସିଂହାସନରେ ବସ । ରାଜା କିନ୍ତୁ ମୌନ ରହିଲେ ।

୧। ସିଂହାସନଂ ସମାରୋତୁକାମଂ ……………………… ପକ୍ଷୀରାଜ ଆସୀତ୍ ।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ସିଂହାସନଂ = ସିଂହାସନକୁ । ସମାରୋତୁକାମମ୍ = ଆରୋହଣ କରିବାପାଇଁ ଇଚ୍ଛୁକ । ଭୋଜମ୍ = ଭୋଜରାଜଙ୍କୁ । ଏକା ପୁଭଳିକା = ଗୋଟିଏ କଣ୍ଢେଇ । କଥୟତି = କହୁଛି । ଶୁୟତାମ୍ = ଶୁଣନ୍ତୁ । ପିଶୁନଃ = ମିଛୁଆ । ତସ୍କରା = ଚୋର । ନାସନ୍ = ନ ଥିଲେ । ରାଜ୍ୟଭାରମ୍ = ରାଜ୍ୟଶାସନ । ନିଧାୟ ନ୍ୟସ୍ତକରି । ସ୍ବୟମ୍ = ନିଜେ । ଦେଶାନ୍ତରମ୍ = ଅନ୍ୟଦେଶକୁ । ନିର୍ଗତଃ = ଗଲେ । ପର୍ଯ୍ୟଟନ୍ = ବୁଲୁବୁଲୁ । ପ୍ରାବିଶତ୍ = ପ୍ରବେଶକଲେ । ପକ୍ଷୀରାଜଃ = ପକ୍ଷୀମାନଙ୍କର ରାଜା ।

ଅନୁବାଦ – ସିଂହାସନକୁ ଆରୋହଣ କରିବାକୁ ପ୍ରଚେଷ୍ଟା କରୁଥିବା ରାଜା ଭୋଜଙ୍କୁ ଏକ କଣ୍ଢେଇ କହିଲା – ଆହେ ରାଜା ! ଶୁଣ । ବିକ୍ରମାଦିତ୍ୟଙ୍କ ରାଜତ୍ଵ କାଳରେ ରାଜ୍ୟରେ ମିଛୁଆ, ଚୋର, ପାପୀମାନେ ନ ଥିଲେ । ଥରେ ବିକ୍ରମାଦିତ୍ୟ ରାଜ୍ୟଭାର ମନ୍ତ୍ରୀମାନଙ୍କୁ ଦେଇ ନିଜେ ସନ୍ନ୍ୟାସୀ ବେଶରେ ବିଦେଶକୁ ବାହାରିପଡ଼ିଲେ । ଭ୍ରମଣ କରୁ କରୁ ସେ ଦିନେ ଯେତେବେଳେ ମହାବନରେ ପ୍ରବେଶ କଲେ, ସେତେବେଳେ ସୂର୍ଯ୍ୟ ଅସ୍ତ ହୋଇଗଲା । ତାହା ଦେଖୁ ସେ କୌଣସି ଏକ ବୃକ୍ଷମୂଳରେ ରାତିଟି ରହିଲେ । ସେହି ବୃକ୍ଷରେ ଚିରଂଜୀବୀ ନାମକ କୌଣସି ଏକ ବୃଦ୍ଧ ପକ୍ଷୀରାଜ ଥୁଲା ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ନାସନ୍ = ନ + ଆସନ୍ । ସୂର୍ଯ୍ୟୋଽସ୍ତମ୍ଭ = ସୂର୍ଯ୍ୟ + ଅସ୍ତମ୍ଭ । ବୃକ୍ଷମୂଳମେକମାଶ୍ରିତ୍ୟ = ବୃକ୍ଷମୂଳମ୍ + ଏକମ୍ + ଆଶ୍ରିତ୍ୟ । କଶ୍ଚିତ୍ = କଃ + ଚିତ୍ ।

ସମାସ – ସିଂହାସନମ୍ = ସିଂହ ଚିହ୍ନିତ ଆସନମ୍ (ମଧ୍ୟପଦଲୋପୀ କର୍ମଧାରୟ) । ଭୂମଣ୍ଡଳେ = ଭୂବ ମଣ୍ଡଳମ୍, ତସ୍ମିନ୍ (୬ଷ୍ଠୀ ତତ୍) । ମହାରଣ୍ୟମଧ୍ଯ = ମହାନ୍ ଚାସୌ ଅରଣ୍ୟମ୍ (ମଧ୍ୟପଦଲୋପୀ କର୍ମଧାରୟ), ତସ୍ୟ ମଧ୍ୟ (୬ଷ୍ଠୀ ତତ୍) । ବୃକ୍ଷମୂଳମ୍ = ବୃକ୍ଷସ୍ୟ ମୂଳମ୍‌ (୬ଷ୍ଠ ତତ୍) ।

ସକାରଣ ବିଭକ୍ତି – ଭୋ ରାଜନ୍ = ସମ୍ବୋଧନେ ୧ମା । ବିକ୍ରମେ = ଭାବେ ୭ମୀ । ଭୂମଣ୍ଡଳେ = ଅଧିକରଣେ ୭ମୀ । ବୃକ୍ଷମୂଳମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା ।

ପ୍ରକୃତି ପ୍ରତ୍ୟୟ – ନିଧାୟ = ନି + ଧା + ଲ୍ୟାପ୍ । ନିର୍ଗତଃ = ନିଃ + ଗମ୍ + କ୍ତ । ପର୍ଯ୍ୟଟନ୍ = ପରି + ଅଟ୍ + ଶତ୍ରୁ । ଦୃଷ୍ଟା = ଦୃଶ୍ + ଲ୍କାଚ୍ । ସ୍ଥିତଃ = ସ୍ଥା + କ୍ତ ।

୨। ତଥ୍ୟ ପୁତ୍ରା ………… କିଂ ଚିତ୍ର ଦୃଷ୍ଟମ୍ ।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ପୁତ୍ରା ପୌତ୍ରାଣ୍ଟ = ପୁଅ ଓ ନାତିମାନେ । ଦେଶାନ୍ତରଂ ଗର୍ତ୍ତା = ନାନାଦେଶକୁ ଯାଇ । ସ୍ବେଦର ପୂରଣଂ ବିଧାୟ = ନିଜ ପେଟ ପୂରାକରି । ପ୍ରଯଛନ୍ତି = ଦିଅନ୍ତି । ତାନ୍ = ତାଙ୍କୁ । ଅପୃଚ୍ଛନ୍ = ପଚାରିଲେ । ବଚନମ୍ = କଥାକୁ । ଅଶୃଣୋତ୍ = ଶୁଣିଲେ । ପର୍ଯ୍ୟଟନ୍‌ତିଃ = ବୁଲାବୁଲି କରି । ଚିତ୍ରମ୍ = ଆଶ୍ଚର୍ଯ୍ୟକର ଘଟଣା ।

ଅନୁବାଦ – ତା’ର ପୁଅ ଓ ନାତିମାନେ ଅନ୍ୟଦେଶକୁ ଯାଇ ନିଜେ ପେଟପୂରାଇ ଖାଇ ସଂଧ୍ୟାକାଳରେ ଗୋଟିଏ ଗୋଟିଏ କରି ଫଳଧରି ସେହି ବୁଢ଼ାପକ୍ଷୀକୁ ଦେଉଥିଲେ । ତା’ପରେ ରାତିରେ ଚିରଂଜୀବୀ ଆନନ୍ଦରେ ବସି ସେହି ପକ୍ଷୀମାନଙ୍କୁ ପଚାରିଲା – ‘ହେ ପୁତ୍ରମାନେ ! ତୁମ୍ଭେମାନେ ତ ନାନାଦେଶ ବୁଲାବୁଲି କରି କ’ଣ ଆଶ୍ଚର୍ଯ୍ୟ କଥା ଦେଖୁଲ?

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ପୌତ୍ରାଶ୍ଚ = ପୌତ୍ରା + ଚ । ସ୍ଵାଦରପୂରଣମ୍ = ସ୍ବ + ଉଦରପୂରଣମ୍ । ଏକୈକମ୍ = ଏକ + ଏକମ୍ । ଫଳମାଦାୟ = ଫଳମ୍ + ଆଦାୟ । ସୁଖେନୋପବିଷ୍ଟ = ସୁଖେନ + ଉପବିଷ୍ଟ । ରାଜାପି = ରାଜା + ଅପି । ସମାସ – ସ୍ଵାଦରପୂରଣମ୍ = ସ୍ୱସ୍ୟ ଉଦରଂ, ତସ୍ୟ ପୂରଣମ୍ (୬ଷ୍ଠୀ ତତ୍) । ବୃକ୍ଷମୂଳେ = ବୃକ୍ଷସ୍ୟ ମୂଳମ୍, ତସ୍ମିନ୍‌ (୬ଷ୍ଠ ତତ୍) ।

ସକାରଣ ବିଭକ୍ତି – ସ୍ଵାଦରପୂରଣମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା । ତସ୍ମି, ବୃଦ୍ଧାୟ = ଦାନାର୍ଥେ ୪ର୍ଥୀ । ସୁଖେନ ‘ପ୍ରକୃତ୍ୟାଦିତ୍ୟଉପସଂଖ୍ୟାନମ୍’ ସୂତ୍ରଯୋଗେ ୩ୟା । ବୃକ୍ଷମୂଳେ = ଅଧିକରଣେ ୭ମୀ । ବଚନମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା । ଯୁଷ୍ମାଭି = ଅନୁସ୍ତେ କଉଁରି ୩ୟା ।

ପ୍ରକୃତି ପ୍ରତ୍ୟୟ – ଗତ୍ମା = ଗମ୍ + କ୍ଵାଚ୍ । ପୂରଣମ୍ = ପୂର + ଲ୍ୟୁଟ୍ । ବିଧାୟ = ବି’ + ଧା + ଲ୍ୟାପ୍ । ଆଦାୟ = ଆ + ଦା + ଲ୍ୟାପ୍ । ଉପବିଷ୍ଟ = ଉପ + ବିଶ୍ + କ୍ତ । ବଚନମ୍ = ବଚ୍ + ଲୁଟ୍ । ଦୃଷ୍ଟମ୍ = ଦୃଶ୍ + କ୍ତ ।

୩। ତତ୍ର ଏକେନ ପକ୍ଷିଣା ………………….. ମାନବଂ ଦାସ୍ୟାମଃ ।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ଏକେନ ପକ୍ଷିଣା = ଗୋଟିଏ ପକ୍ଷୀ । ଭଣିତମ୍ = କହିଲା । ସମୀପେ = ନିକଟରେ । ତସ୍ମିନ୍ ପର୍ବତେ ଜ୍ଞ ସେହି ପର୍ବତରେ । କଶ୍ଚିତ୍ = କୌଣସି । ପ୍ରତିଦିନମ୍ = ସବୁଦିନ । ସମ୍ମୁଖାୟାତମ୍ = ଆଗକୁ ଆସୁଥ‌ିବା । ଯଃ କଞ୍ଚନମ୍ = ଯେକୌଣସି । ମାନୁଷମ୍ = ମନୁଷ୍ୟକୁ । ନୀତ୍ଵା = ନେଇ । ଭକ୍ଷୟତି = ଖାଇଦିଏ । ଏକଦା = ଥରେ । ଜନୈ = ଲୋକଙ୍କଦ୍ବାରା । ଯଥେଚ୍ଛମ୍ = ନିଜ ମନଇଚ୍ଛା । ପତିତମ୍ = ପଡୁଥିବା । ଆଂକମେବ = ଯେକୌଣସି ଲୋକକୁ । ମାତୃଭକ୍ଷୟ = ଖାଅ ନାହିଁ । ଆହାରାମିଂ = ଭୋଜନ ନିମନ୍ତେ । ଦାସ୍ୟାମଃ = ଦେବୁ ।

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 2 ପରହିତସାଧନମ୍

ଅନୁବାଦ – ସେଠାରେ ଗୋଟିଏ ପକ୍ଷୀ କହିଲା – ‘ହେ ତାତ ! ଶୁଣ । ଉତ୍ତର ପ୍ରଦେଶରେ ଶୈବାଳଘୋଷ ନାମକ ଏକ ପର୍ବତ ଅଛି । ତା’ ନିକଟରେ ପଲାଶନଗର ରହିଛି । ସେହି ପର୍ବତରେ ଥ‌ିବା କୌଣସି ଏକ ରାକ୍ଷସ ପ୍ରତିଦିନ ନଗରକୁ ଆସି ତା’ ଆଗରେ ଆସୁଥ‌ିବା ଯେକୌଣସି ମନୁଷ୍ୟକୁ, ସ୍ତ୍ରୀ ବା ବାଳକକୁ ପର୍ବତକୁ ନେଇ ଖାଇଦିଏ । ଥରେ ନଗରବାସୀ ଲୋକମାନେ ତାକୁ କହିଲେ – ‘ହେ ବକାସୁର ! ତୁମେ ମନଇଚ୍ଛା ସମ୍ମୁଖରେ ପଡୁଥିବା ଯେକୌଣସି ଲୋକକୁ ଖାଅନାହିଁ । ଆମ୍ଭେମାନେ ତୁମ ଆହାର ନିମନ୍ତେ ପ୍ରତିଦିନ ଗୋଟିଏ କରି ମଣିଷ ଦେବୁ ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ପଲାଶନଗରମସ୍ତି = ପଲାଶନଗରମ୍ + ଅସ୍ଥି । କଶ୍ଚିତ୍ = କଃ + ଚିତ୍। ନଗରମାଗତ୍ୟ = ନଗରମ୍ + ଆଗତ୍ୟ । ସମ୍ମୁଖାୟାତମ୍ = ସମ୍ମୁଖ + ଆୟାତମ୍ । କମେବ = କମ୍ + ଏବ । ତୁଭ୍ୟମାହାରାର୍ଥୀ = ତୁଭ୍ୟମ୍ + ଆହାରାର୍ଥମ୍ । ପ୍ରତିଦିନମେକମ୍ = ପ୍ରତିଦିନମ୍ + ଏକମ୍ ।

ସମାସ – ପ୍ରତିଦିନମ୍ = ଦିନଂ ଦିନମ୍ (ଅବ୍ୟୟୀଭାବ) । ଯଥେଚ୍ଛମ୍ = ଇଚ୍ଛାମନତିକ୍ରମ୍ୟ (ଅବ୍ୟୟୀଭାବ) । ଆହାରାର୍ଥମ୍ = ଆହାରାୟ ଇଦମ୍ (ନିତ୍ୟ), ସମ୍ମୁଖପତିତମ୍ = ସମ୍ମୁଖେ ପତିତମ୍ (୭ମୀ ତତ୍ତ୍ଵ) । ନଗରବାସିଭିଂ = ନଗରେ ବସନ୍ତି ଇତି, ତୈ (ଉପପଦ୍ ତତ୍) ।

ସକାରଣ ବିଭକ୍ତି – ଏକେନ ପକ୍ଷିଣା = ଅନୁସ୍ତେ କଉଁରି ୩ୟା । ଶୈବାଳଘୋଷ = ନାମ ଅବ୍ୟୟ ଯୋଗେ ୧ମା । ନଗରବାସିଭି, ଜନଃ = ଅନୁସ୍ତେ କଉଁରି ୩ୟା । ସମ୍ମୁଖପତିତମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା ।

ପ୍ରକୃତି ପ୍ରତ୍ୟୟ – ସ୍ଥିତଃ = ସ୍ଥା + କ୍ତ । ଆଗତ୍ୟ = ଆ + ଗମ୍ + ଲ୍ୟାପ୍ । ଭଣିତମ୍ = ଭଣ୍ + କ୍ତ । ନୀତ୍ଵା = ନୀ + କ୍ସାବ୍ । ପତିତମ୍ = ପତ୍ + ଲୁଟ୍ ।

୪। ତଦନନ୍ତରଂ ତତ୍ରତ୍ୟାଜନା …………………. ସ୍ୱୟଂ ଦୁଃଖୀ ଭବତି ।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ତତ୍ରତ୍ୟା = ସେଠିକାର । ଗୃହକ୍ରମେଣ = ଘର କ୍ରମରେ । ଏକୈକମ୍ = ଜଣ ଜଣ କରି । ମାନୁଷମ୍ = ମଣିଷକୁ । ପ୍ରଯଚ୍ଛତି = ଦେଉଥା’ନ୍ତି । ଅଦ୍ୟ = ଆଜି । କସ୍ୟଚିଦ୍ = କୌଣସି । ବାରଃ = ପାଳି । ସମାୟାତଃ = ଆସିଲା । ଚେତ୍ = ଯଦି । ସନ୍ତତିଛେଦଃ = ସନ୍ତାନହୀନ । ଆତ୍ମନମ୍ = ନିଜକୁ । ଆଶ୍ରମଭ୍ରଂଶୋ = ଘର ଉଜୁଡ଼ିଯିବ । ମହଦୁଃଖସ୍ୟ = ମହାଦୁଃଖର । ଶ୍ରୁତ୍ବା = ଶୁଣି । ପକ୍ଷିଭି = ପକ୍ଷୀଙ୍କଦ୍ବାରା । ସୁହୃତ୍ = ବନ୍ଧୁ । ସ୍ଵୟମ୍ = ନିଜେ ।

ଅନୁବାଦ – ତା’ପରେ ସେଠିକାର ଲୋକେ ପ୍ରତିଦିନ ପାଳି ଅନୁସାରେ ପ୍ରତି ଘରୁ ଜଣେ ମଣିଷକୁ ତାକୁ ଦେଉଥିଲେ । ଏହିପରି ଅନେକ ଦିନ ଚାଲିଗଲା । ଆଜି ମୋର କୌଣସି ଏକ ବ୍ରାହ୍ମଣ ବନ୍ଧୁର ପାଳିପଡ଼ିଲା । ତା’ର ଗୋଟିଏ ମାତ୍ର ପୁତ୍ର । ପୁଅକୁ ଯଦି ଦେଇଦେବ ତେବେ ନିଃସନ୍ତାନ ହୋଇଯିବ । ନିଜେ ଯଦି ଯିବ ତେବେ ସ୍ତ୍ରୀ ବିଧବା ହୋଇଯିବ । ସ୍ତ୍ରୀକୁ ଯଦି ଦିଏ, ତେବେ ଘର ଉଜୁଡ଼ିଯିବ । ଏହାହିଁ ମୋର ଦୁଃଖର ବଡ଼ କାରଣ । ତା’ କଥା ଶୁଣି ସମସ୍ତ ପକ୍ଷୀଗଣ କହିଲେ – “ ଆରେ ! ଇଏ ହିଁ ପ୍ରକୃତରେ ବନ୍ଧୁ, କାରଣ ଯିଏକି ବନ୍ଧୁର ଦୁଃଖରେ ନିଜେ ଦୁଃଖୀ ହୋଇଯାଉଛି ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ତଦନନ୍ତରମ୍ = ତତ୍ + ଅନନ୍ତରମ୍ । ଏକୈକମ୍ = ଏକ + ଏକମ୍ । ଏତଦେବ = ଏତତ୍ + ଏବ । ପକ୍ଷିଭିରୁକ୍ତମ୍ = ପକ୍ଷିରଃ + ଉକ୍ତମ୍ । ଅୟମେବ = ଅୟମ୍ + ଏବ ।

ସମାସ – ମହଦୁଃଖସ୍ୟ = ମହତ୍ ଚାସୌ ଦୁଃଖମ୍, ତସ୍ୟ (କର୍ମଧାରୟ) । ସନ୍ତତିଚ୍ଛେଦଃ = ସନ୍ତତ୍ୟ ଚ୍ଛେଦଃ (୬ଷ୍ଠୀ ତତ୍) । ଆଶ୍ରମଭ୍ରଂଶ = ଆଶ୍ରମସ୍ୟା ଭ୍ରଂଶଃ (୬ଷ୍ଠ ତତ୍) ।

ସକାରଣ ବିଭକ୍ତି – ଆତ୍ମାନମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା । ସର୍ବୋ, ପକ୍ଷିରଃ = ଅନୁନ୍ତେ କଉଁରି ୩ୟା । ଦୁଃଖେନ = କରଣେ ୩ୟା ।

ପ୍ରକୃତି ପ୍ରତ୍ୟୟ – ଗତଃ = ଗମ୍ + କ୍ତ । ସମାୟାତଃ = ସମ୍ + ଆ + ଯା + କ୍ତ । ଛେଦଃ = ଛିଦ୍ + କ୍ତ । ବାରଃ = ବୃ + ଘଞ୍ଜ୍ । କାରଣମ୍ = କୃ + ଲୁଟ୍ । ଶୁଡ଼ା = ଶୃ + ସ୍କାଚ୍ । ଭକ୍ତମ୍ = ବିଚ୍ + କ୍ତ । ଦୁଃଖୀ = ଦୁଃଖ + ଇନି ।

୫। ପକ୍ଷିଣେ ବତଃ ଶୁଦ୍ଧା …………………… କଥୟ କୋ ଭବାନ୍ ।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ପକ୍ଷିଣ = ପକ୍ଷୀମାନଙ୍କ । ବହିଃ = କଥା । ଶୁତ୍ୱ = ଶୁଣି । ବଧଶିଳାସମୀପମ୍ = ବଧଶିଳା ନିକଟକୁ । ନିରୀକ୍ଷ୍ୟ = ଦେଖ୍ । ଅଭୟଂ ଦକ୍ତା = ଅଭୟଦେଇ । ସଂଷ୍ୟ = ପଠାଇଦେଇ । ସମାଗତ୍ୟ = ଆସି । ପ୍ରହସିତବଦନମ୍ = ହସିଲା ମୁଖରେ । ବିସ୍ମିତଃ = ଆଶ୍ଚର୍ଯ୍ୟହୋଇ । ଶିଳାୟାମ୍ = ପଥରରେ । ପ୍ରିୟତେ = ମରିଯାଏ । ତହିଁ = ତେବେ ।

ଅନୁବାଦ – ପକ୍ଷୀମାନଙ୍କର କଥା ଶୁଣି ବିହଙ୍ଗରବବିଦ୍ ରାଜା ଭୋଜ ସେହି ନଗରର ବଧଶିଳା ନିକଟକୁ ଗଲେ । ସେଠାରେ ବ୍ରାହ୍ମଣକୁ ଦେଖ୍ ତାକୁ ଅଭୟ ଦେଇ ତା’ ଘରକୁ ପଠାଇ ବର୍ଷଶିଳାରେ ବସିଗଲେ । ସେହି ସମୟରେ ରାକ୍ଷସ ଆସି ସେଠାରେ ପ୍ରଫୁଲ୍ଲିତ ଲୋକଟିକୁ ଦେଖ୍ ଆଶ୍ଚର୍ଯ୍ୟ ହୋଇ ତାଙ୍କୁ ପଚାରିଲା – ‘‘ହେ ମହାସତ୍ତ୍ୱ ! ଏହି ବଧଶିଳାରେ ପ୍ରତିଦିନ ଯିଏ ବସେ, ସେ ମୋ ଆସିବା ପୂର୍ବରୁ ହିଁ ମରିଯାଏ । ତୁମେ କ’ଣ ଆଜି ହସହସ ମୁଖରେ ବସିଥିବାର ଦେଖାଯାଉଛ । ତେବେ କୁହ, ତୁମେ କିଏ?’’

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ବିହଙ୍ଗରବାର୍ଥବିଦ୍ = ବିହଙ୍ଗରବ + ଅର୍ଥବିଦ୍ । ମଦାଗମନାତ୍ = ମତ୍ + ଆଗମନାତ୍ । ପୂର୍ବମେବ = ପୂର୍ବମ୍ + ଏବ ।

ସମାସ – ବଣ୍ଠଶିଳାସମୀପମ୍ = ବଧଶିଳାୟା ସମୀପମ୍ (୬ଷ୍ଠୀ ଉତ୍) । ଅଭୟମ୍ = ନ ଭୟମ୍ (ନଞ୍ଚ୍ ତତ୍) । ପ୍ରହସିତବଦନମ୍ = ପ୍ରହସିତଂ ବଦନଂ ଯସ୍ୟ ଡଃ (ବହୁବ୍ରୀହିଃ) ।

ସକାରଣ ବିଭକ୍ତି – ନଗରେ = ଅଧିକରଣେ ୭ମୀ । ଅଭୟମ୍ = କର୍ମଣୀ ୨ୟା । ଆଗମନାତ୍ = ପୂର୍ବ ଶବ୍ଦଯୋଗେ ୫ମୀ ।

ପ୍ରକୃତି ପ୍ରତ୍ୟୟ – ଶୁଦ୍ଧା = ଶୁ + ଭ୍ଲାବ୍ । ଗତଃ = ଗମ୍ + କ୍ତ । ବୟଃ = ବଧୂ + ଯତ୍ । ନିରୀକ୍ଷ୍ୟ = ନିଃ + ଈକ୍ଷ + ଲ୍ୟପ୍ । ବଦନମ୍ = ବଦ୍ + ଲୁଟ୍ । ଦଜ୍ଜା = ଦା + କ୍ଵାଚ୍ । ସଷ୍ୟ = ସମ୍ + ପ୍ରେସ୍ + ଲ୍ୟାପ୍ ।

୬। ରାଜାଭଣତି ………………. ସ୍ୱ ନଗରୀ ପ୍ରତ୍ୟଗାତ୍ ।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ପରାର୍ଥମ୍ = ପରପାଇଁ । ଦୀୟତେ = ଦେଉଛି । ସ୍ବେଚ୍ଛାୟା = ନିଜ ଇଚ୍ଛାନୁସାରେ । ଗ୍ଳାନିଃ = ଦୁଃଖ । ସମୀହିତମ୍ = ଇଚ୍ଛା । କ୍ଷଣମ୍ = କିଛି ସମୟ । ମନସି = ମନରେ । ବିଚାର୍ଯ୍ୟ = ବିଚାରକରି । ଅବ୍ରବୀତ୍ = କହିଲା । ଆର୍ଭିହରଃ = ଦୁଃଖହରଣକାରୀ । ପ୍ରଯଚ୍ଛତଃ = ଦେଉଥ‌ିବା । ଶ୍ଵାସ୍ଥ୍ୟମ୍ = ପ୍ରଶଂସନୀୟ । ତୁଷ୍ଟ = ସନ୍ତୁଷ୍ଟ । ବ୍ରଣୀଷ୍ଟ = ମାଗ ! ପ୍ରସନଃ = ଆନନ୍ଦିତ । ଅଦ୍ୟପ୍ରଭୃତି = ଆଜିଠାରୁ । ପରିତ୍ୟଜ = ତ୍ୟାଗକର । ଜୀବମାରଣମ୍ = ଜୀବହତ୍ୟା । ତତ୍ୟାଜ = ତ୍ୟାଗକଲା । ପ୍ରତ୍ୟାଗାତ୍ = ଫେରିଗଲେ ।

ଅନୁବାଦ – ରାଜା କହିଲେ – ମୁଁ ଅନ୍ୟପାଇଁ ନିଜ ଇଚ୍ଛାରେ ଏ ଶରୀର ପ୍ରଦାନ କରୁଛି । ଏଣୁ ମୋ ମନରେ କୌଣସି ଗ୍ଲାନି ନାହିଁ । ତୁନେ ନିଜ ଇଚ୍ଛା ପୂରଣ କର । ତା’ପରେ ରାକ୍ଷସ ଟିକିଏ ସମୟ ମନରେ ଭାବି ରାଜାଙ୍କୁ କହିଲା – ‘‘ହେ ମହାସତ୍ତ୍ୱ ! ତୁମେ ସମସ୍ତଙ୍କ ଦୁଃଖ ହରଣକାରୀ ଅଟ । ଅନ୍ୟପାଇଁ ଶରୀର ପ୍ରଦାନ କରୁଥିବା ତୁମର ହିଁ ଏହି ଶରୀର ପ୍ରଶଂସନୀୟ ଅଟେ । ମୁଁ ସନ୍ତୁଷ୍ଟ ହେଲି । ବର ମାଗ ।’’ ରାଜା କହିଲେ ‘ହେ ରାକ୍ଷସ ! ଯଦି ତୁମେ ପ୍ରସନ୍ନ ହୋଇଛ ତେବେ ଆଜିଠାରୁ ମନୁଷ୍ୟ ଭକ୍ଷଣ ତ୍ୟାଗକର ।’’ ରାକ୍ଷସ ସେହିଦିନଠାରୁ ଜୀବମାରଣ ତ୍ୟାଗ କଲା । ରାଜା ମଧ୍ୟ ନିଜ ନଗରୀକୁ ଫେରିଗଲେ ।

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 2 ପରହିତସାଧନମ୍

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ସ୍ବେଚ୍ଛାୟା = ସ୍ଵ + ଇନ୍ଦ୍ରିୟା । ତ୍ୱମାମୁନଃ = ତୁମ୍ + ଆତ୍ମନଃ । ରାଜାନମବ୍ରବୀତ୍ = ରାଜାନମ୍ + ଅବ୍ରବୀତ୍ । ତୁଷ୍ଟୋଽସ୍ମି = ତୁନଃ + ଅସ୍ଥି ।

ସମାସ – ପରାର୍ଥମ୍ = ପରାୟ ଇଦମ୍ (ନିତ୍ୟ) । ସ୍ଵେଚ୍ଛୟା = ସ୍ଵା ଇଚ୍ଛା, ତୟା (କର୍ମଧାରୟ) । ଆର୍ଭିହରଃ = ଆର୍ଭି ହରତି ଇତି (ଉପପଦତତ୍ତ୍ଵ) । ଜୀବମାରଣମ୍ = ଜୀବସ୍ୟ ମାରଣମ୍‌ (୬ଷ୍ଠୀ ତତ୍) । ସ୍ବନଗରୀମ୍ = ସ୍ଵସ୍ୟ ନଗରୀମ୍ (୬ଷ୍ଠୀ ତତ୍) ।

ସକାରଣ ବିଭକ୍ତି – ସ୍ବେଚ୍ଛାୟା = ‘ପ୍ରକୃତ୍ୟାଦିଭ୍ୟଉପସଂଖ୍ୟାନମ୍’ ସୂତ୍ରଯୋଗେ ୩ୟା । ପ୍ରସନଃ = କର୍ଭରି ୧ମା । ମୟା = ଅନୁଭେ କର୍ଭରି ୩ୟା । ସ୍ଵନଗରୀମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା ।

ପ୍ରକୃତି ପ୍ରତ୍ୟୟ – ଶରୀରମ୍ = ଶୃ + ଈରନ୍ । ଗ୍ଳାନିଃ = ଗ୍ଲୋ + ନି । ବିଚାର୍ଯ୍ୟ = ବି + ଚର୍ + ଣିଚ୍ + ଲ୍ୟାପ୍ । ସମୀହିତମ୍ = ସମ୍ + ଇନ୍ଦ୍ + କ୍ତ । ପ୍ରସନଃ = ପ୍ର + ସଦ୍ + କ୍ତ ।

୭। ଇମାଂ କଥା ……………………. ତୁଷୀମଦ୍ଭବତ୍।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – କଥୟିତ୍ୱ = କହି । ପୁତ୍ତଳିକା = କଣ୍ଢେଇଟି । ଅବ୍ରବୀତ୍ = କହିଲା । ସିଂହାସନେ = ସିଂହାସନରେ । ସମୁପବିଶ = ଉପବେଶନ କର । ତୁଷୀ = ନୀରବ ।

ଅନୁବାଦ – ଏହି କଥା କହି କଣ୍ଢେଇଟି ଭୋଜରାଜଙ୍କୁ କହିଲା – ତୁମଠାରେ ଯଦି ଏପରି ପରୋପକାର, ଦୟା ପ୍ରଭୃତି ଗୁଣ ଅଛି ତେବେ ଏହି ସିଂହାସନରେ ବସ । ରାଜା ନୀରବ ରହିଲେ ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ପରୋପକାରଦୟାଦୟଃ = ପରୋପକାରଦୟା + ଆଦୟଃ । ତୂଷ୍ଣୀମଦ୍ଭବତ୍ = ତୂଷ୍ଣୀମ୍ + ଅଭବତ୍ ।

ସମାସ – ସିଂହାସନେ = ସିଂହ ଚିହ୍ନିତ ଆସନମ୍, ତସ୍ମିନ୍ (ମଧ୍ୟପଦଲୋପି କର୍ମଧାରୟ)।

ସକାରଣବିଭକ୍ତି – ସିଂହାସନେ = ଅଧୂରଣେ ୭ମୀ ।

ପ୍ରକୃତି ପ୍ରତ୍ୟୟ – କଥୟିତ୍ରା = କଥ୍ + ଣିଚ୍ + ଲ୍କାଚ୍ ।

+2 1st Year Sanskrit Optional Solutions Chapter 1 ଉପମନ୍ୟୁକଥା Question Answer

Odisha State Board Plus Two First Year Sanskrit Optional Solutions Chapter 1 ଉପମନ୍ୟୁକଥା Textbook Exercise Questions and Answers.

Plus Two First Year Sanskrit Optional Chapter 1 ଉପମନ୍ୟୁକଥା Question Answer

अतिसंक्षेपेण उत्तरं लिखत

(क) बन्धनीमध्यात् शुद्धम् उत्तरं चित्वा लिखत-

Question 1.
‘उपमन्युकथा’ _______________ ग्रन्यात् आनीतः। (रामायणम्, महाभारतम्, पञ्चतन्त्रम्)
Answer:
महाभारतम्

Question 2.
ऋषेः _______________ उपमन्युः नाम शिष्य आसीत्। (धौम्यस्य, वशिष्ठस्य, विश्वामित्रस्य)
Answer:
धौम्यस्य

Question 3.
ऋषेः धौम्यस्य _______________ नाम शिष्य आसीत्। (आरुणी, नचिकेता, उपमन्युः)
Answer:
उपमन्युः

Question 4.
उपाध्याय: उपमन्युं _______________ रक्षणाय प्रेषयामास। (गो, मेष, छाग)
Answer:
गो

Question 5.
स _______________ गा अरक्षत्। (निशि, सायं, अहनि)
Answer:
अहनि

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 1 ଉପମନ୍ୟୁକଥା

Question 6.
उपमन्युः _______________ गुरुगृहमागम्य तं नमश्चक्रे। (अहनि, दिवसक्षये, रात्रौ)
Answer:
दिवसक्षये

Question 7.
उपाध्याय: उपमन्युं _______________ अपश्यत्। (कृशम्, पीवानम्, खर्वम्)
Answer:
पीवानम्

Question 8.
उपमन्युः _______________ वृत्तिं कल्पयति। (पठनेन, चौर्येण, भैक्ष्येण)
Answer:
भैक्ष्येण

Question 9.
उपाध्याय: सर्वमेव भैक्ष्यम् _______________। (अददात्, अगृह्णात्, अखादत्)
Answer:
अगृह्णात्

Question 10.
_______________ निवेद्य पूर्वमपरं चरामि। (भगवते, गुरवे, विष्णवे)
Answer:
भगवते

Question 11.
वर्त्तमानः _______________ असि। (पापी, लुब्ध:, चौरः)
Answer:
लुब्ध:

Question 12.
अधुना _______________ वृत्तिं कल्पयामि। (भैक्ष्येण, पयसा, अन्नेन)
Answer:
पयसा

Question 13.
उपमन्युः उपाध्यायं प्रत्युवाच भोः _______________ पिवामि। (पय:, फेनं, जलं)
Answer:
फेनं

Question 14.
त्वत् _______________ गुणवन्तः वत्साः प्रभुततरं फेनम् उद्गिरन्ति। (तपसा, पराक्रमेण, अनुकम्पया)
Answer:
अनुकम्पया

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 1 ଉପମନ୍ୟୁକଥା

Question 15.
स तथेति प्रतिश्रुत्य _______________ पुनररक्षत् गाः। (निराहारः, पयः पीत्वा, जलंपीत्वा)
Answer:
निराहारः

Question 16.
उपमन्युः कदाचित् क्षुधार्तो: _______________ पत्राणि अभक्षयत्। (विल्व, दाड़िम्व, अर्क)
Answer:
अर्क

Question 17.
उपमन्युः अर्कपत्रैः भक्षितैः _______________ वभूव। (मुक:, अन्ध:, खञ्ज:)
Answer:
अन्ध:

Question 18.
सः अन्धोऽपि चंक्रम्यमाणः _______________ अपतत्। (गर्ते, भूमौ, कूपे)
Answer:
कूपे

Question 19.
दिनान्ते उपाध्यायः _______________ अवदत्। (शिष्यान्, उपमन्युम्, देवम्)
Answer:
शिष्यान्

Question 20.
मया उपमन्युः सर्वतः _______________। (दृष्ट:, प्रतिषिद्धः, निवारितः)
Answer:
प्रतिषिद्धः

Question 21.
उपमन्युः नियतं _______________ ततः नागच्छति। (उपहसित:, लुप्त:, कुपित:)
Answer:
कुपित:

Question 22.
उपाध्यायः _______________ सार्द्धमरण्यं गतवान्। (उपमन्युना, शिष्यैः, गुरुणा)
Answer:
शिष्यैः

Question 23.
उपमन्युः उपाध्यायस्य _______________ वचनं श्रुत्वा प्रत्युवाच। (कटु, अमृत, आह्वान)
Answer:
आह्वान

Question 24.
उपाध्याय: उपमन्युम् _______________ स्तोतुम् आदिशत्। (ब्रह्मणौ, अश्विनौ, भगवन्तम्)
Answer:
अश्विनौ

Question 25.
अश्विनौ उपमन्युम् _______________ दत्तवन्तौ। (अपूपं, अन्नं, अमृतं)
Answer:
अपूपं

Question 26.
_______________ अनिवेद्य अहम् अपूपं न उपभोक्तुमुत्सहे। (गुरवे, भगवते, भवते)
Answer:
गुरवे

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 1 ଉପମନ୍ୟୁକଥା

Question 27.
अश्विनौ उपमन्योः उपरि _______________ संजातः। (क्रोधितः, प्रीतः, भर्त्सितः)
Answer:
प्रीतः

Question 28.
यथाऽश्विनावाहतुस्तथा त्वं _______________ अवाप्स्यसि। (वरः, चक्षुः, श्रेयः)
Answer:
श्रेयः

Question 29.
सर्वे _______________ ते प्रतिभास्यन्ति। (वेदाः, स्मृतयः, उपनिषदः)
Answer:
वेदाः

Question 30.
उपमन्योः _______________ अतीव शिक्षणीयः। (गुरुभक्ति:, स्तुति:, वृत्ति:)
Answer:
गुरुभक्ति:

(ख) अतिसंक्षेपेण उत्तरं लिखत-

Question 1.
उपमन्युः कस्य शिष्य आसीत्?
Answer:
ଋଷି ଧୌମ୍ୟଙ୍କର

Question 2.
उपमन्युः उपाध्यायवचनात् किमरक्षत्?
Answer:
ଗାଈମାନଙ୍କୁ

Question 3.
उपमन्युः भैक्ष्यं चरित्वा कस्मै न्यवेदयत्?
Answer:
ଗୁରୁଙ୍କୁ

Question 4.
उपमन्युः निशामुखे कुत्र आगम्य नमश्चक्रे?
Answer:
ଗୁରୁଙ୍କ ଆଶ୍ରମକୁ

Question 5.
स गुरो पुरतः स्थित्वा किं चक्रे?
Answer:
ନମସ୍କାର

Question 6.
उपाध्याय: उपमन्युं कीदृशं दृष्टवान्?
Answer:
ହୃଷ୍ଟପୁଷ୍ଟ

Question 7.
अहम् एतासां गवां पयसा किं कल्पयामि?
Answer:
ଜୀବିକା

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 1 ଉପମନ୍ୟୁକଥା

Question 8.
एषामपि वत्सानां किं करोषि?
Answer:
ଜୀବିକାରେ ବାଧା

Question 9.
किं भवान्न पातुमर्हतीति?
Answer:
ଫେଣ

Question 10.
उपमन्युः तथेति प्रतिश्रुत्य कीदृशः पुनः गाः अरक्षत्?
Answer:
ଅନାହାରରେ

Question 11.
उपमन्युः कदाचिदरण्ये क्षुधार्तः किम् अभक्षयत्?
Answer:
ଅରଖପତ୍ରଗୁଡ଼ିକୁ

Question 12.
उपमन्युः अर्कपत्रभक्षितैः कीदृशः वभूव?
Answer:
ଅନ୍ଧ

Question 13.
अन्धः उपमन्युः चङ्क्रम्यमाणः कुत्र अपतत्?
Answer:
କୂଅରେ

Question 14.
उपमन्युः नागते गुरुः कान् अवदत्?
Answer:
ଶିଷ୍ୟମାନଙ୍କୁ

Question 15.
कौ उपमन्युं चक्षुष्मन्तं कृतवन्तौ?
Answer:
ଅଶ୍ବିନୀକୁମାରଦ୍ଵୟ

Question 16.
अश्विनौ उपमन्युं किं दत्तवन्तौ?
Answer:
ପିଠା

Question 17.
उपमन्युः कस्मै अनिनेद्य अपूपं खादितुं नेच्छसि?
Answer:
ଗୁରୁଙ୍କୁ

Question 18.
तवानया गुरुभक्त्या त्वं कीदृशः भविष्यसि?
Answer:
ନେତ୍ରବନ୍ତ

Question 19.
सर्वाणि कानि ते प्रतिभास्यन्ति?
Answer:
ସମସ୍ତ ବେଦ

Question 20.
उपमन्युकथा कस्मात् ग्रन्यात् आनीतः?
Answer:
ମହାଭାରତଗ୍ରନ୍ଥରୁ

(ग) उत्कलभाषया अनुवादं कुरुत-

Question 1.
आसीत् धौम्यस्य ऋषेः शिष्य उपमन्युनाम।
Answer:
ଧୌମ୍ୟ ଋଷିଙ୍କର ଉପମନ୍ୟୁ ନାମକ ଜଣେ ଶିଷ୍ୟ ଥିଲେ।

Question 2.
स चाहनि गा रक्षित्वा दिवसक्षये गुरुगृहमागम्योपाध्यायस्याग्रतः स्थित्वा नमश्चक्रे।
Answer:
ସେ ଦିନରେ ଗୋରୁ ଚରାଇ ସନ୍ଧ୍ୟାରେ ଗୁରୁଙ୍କ ଆଶ୍ରମକୁ ଫେରିଆସି ତାଙ୍କ ଆଗରେ ଉପସ୍ଥିତ ହୋଇ ନମସ୍କାର କରିବାକୁ ଲାଗିଲା।

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 1 ଉପମନ୍ୟୁକଥା

Question 3.
स उपाध्यायं प्रत्युवाच – भो। भैक्ष्येण वृत्तिं कल्पयामीति।
Answer:
ସେ ଗୁରୁଙ୍କୁ ପ୍ରତ୍ୟୁତ୍ତରରେ କହିଲା – ହେ ଗୁରୁଦେବ ! ଭିକ୍ଷାନ୍ନଦ୍ବାରା ମୁଁ ଜୀବିକା ନିର୍ବାହ କରୁଛି ।

Question 4.
अहनि गा रक्षित्वा निशामुखे गुरुकुलमागम्य गुरो: पुरतः स्थित्वा नमश्चक्रे।
Answer:
ଦିନରେ ଗୋରୁ ଚରାଇ ସନ୍ଧ୍ୟାରେ ଗୁରୁଙ୍କ ଆଶ୍ରମକୁ ଆସି ତାଙ୍କ ଆଗରେ ଛିଡ଼ାହୋଇ ନମସ୍କାର କରୁଥିଲା।

Question 5.
सर्वमशेषतस्ते भैक्ष्यं गृह्णामि केनेदानीं वृत्तिं कल्पयसीति।
Answer:
ତୁମର ସମସ୍ତ ଭିକ୍ଷାନ୍ତକୁ ତ ମୁଁ ନେଇଯାଉଛି, ତୁମେ ଏବେ କେମିତି ଜୀବିକା ନିର୍ବାହ କରୁଛ?

Question 6.
तदेषामपि वत्सानां वृत्त्युपरोधं करोष्येवं वर्तमानः।
Answer:
ବର୍ତ୍ତମାନ ତୁମେ ଏହି ବାଛୁରୀମାନଙ୍କର ଜୀବିକାରେ ବାଧାଦେଉଛି।

Question 7.
स तथेति प्रतिशृत्य निराहारः पुनररक्षद् गाः।
Answer:
ସେ ସେହିପରି ହେଉ ବୋଲି ପ୍ରତିଶ୍ରୁତି ଦେଇ ବିନା ଆହାରରେ ପୁଣି ଗାଈ ରଖୁବାକୁ ଲାଗିଲା।

Question 8.
ततः सोऽन्धोऽपि चङ्क्रम्यमाणः कूपेऽपतत्।
Answer:
ତାହାପରେ ସେ ଅନ୍ଧହୋଇ ବୁଲୁବୁଲୁ କୂଅରେ ପଡ଼ିଗଲା।

Question 9.
मयोपमन्युः सर्वतः प्रतिषिद्धः स नियतं कुपितस्ततो नागच्छति चिरगतस्वसौ।
Answer:
ମୁଁ ଉପମନ୍ୟୁକୁ ସବୁଥୁରୁ ନିଷିଦ୍ଧ କରିବାରୁ ସେ ନିଶ୍ଚିତ ରୂପେ ରାଗିଯାଇଛି, ତେଣୁ ବହୁସମୟ ହେଲା ଯାଇଥିଲେ ବି ଆସୁନାହିଁ।

Question 10.
तमुपाध्यायः प्रत्युवाच कथं त्वमस्मिन् कूपे पतित इति।
Answer:
ଗୁରୁ ତାକୁ ପଚାରିଲେ – ବତ୍ସ ! ତୁମେ ଏହି କୂଅରେ କିପରି ପଡ଼ିଲ?

Question 11.
एवमादिभिर्वचनैस्तेनाभिष्टुतावश्विनावाजग्मतुराहतु स्म चैनं प्रीतौ स्व।
Answer:
ଏହିପରି ବାକ୍ୟରେ ସ୍ତୁତହୋଇ ଅଶ୍ବିନୀକୁମାରଦ୍ଵୟ ଆସିଲେ ଓ ଉପମନ୍ୟୁକୁ କହିଲେ – ଆମେ ଦୁହେଁ ତୁମଠାରେ ପ୍ରସନ୍ନ।

Question 12.
स एवमुक्तः प्रत्युवाच – एतत् प्रत्यनुनये भवन्तावश्विनौ नोत्सहेऽहमनिवेद्य गुरवेऽपूपमुपयोक्तुमिति।
Answer:
ସେମାନେ ଏପରି କହନ୍ତେ ସେହି ଉପମନ୍ୟୁ ଉତ୍ତରଦେଲା – ଏଇଥିପାଇଁ ଆପଣ ଦୁହିଁଙ୍କୁ ମୁଁ ଅନୁନୟ କରୁଛି ଯେ ଗୁରୁଙ୍କୁ ନ ଜଣାଇ ଏହି ପିଠାଟିକୁ ଖାଇପାରିବି ନାହିଁ।

Question 13.
सर्वे च ते वेदाः प्रतिभास्यन्ति सर्वाणि च धर्मशास्त्राणीति।
Answer:
ସମସ୍ତ ବେଦ ଓ ଧର୍ମଶାସ୍ତ୍ରଗୁଡ଼ିକ ତୁମକୁ ସ୍ୱତଃ ପ୍ରତିଭାତ ହେବ।

संक्षेपेण उत्तरं लिखत

Question 1.
उपमन्युः कथं जीविकानिर्वाहम् अकरोत्?
Answer:
ଗୁରୁ ସୌମ୍ୟଙ୍କର ଉପମନ୍ୟୁ ନାମରେ ଜଣେ ଶିଷ୍ୟ ଥିଲେ । ସେ ସଦୈବ ଗୋଚାରଣ କରି ବଣମଧ୍ଯରେ ବୁଲୁଥିଲେ ଓ ଭିକ୍ଷାକରି ଜୀବିକା ନିର୍ବାହ କରୁଥିଲେ । ପ୍ରାଚୀନ କାଳରେ ଆଶ୍ରମବ୍ୟବସ୍ଥାରେ ଏପରି ଜୀବିକା ନିର୍ବାହର ଉପାୟ ଅବଲମ୍ବନ କରାଯାଉଥିଲା । ଗୁରୁ ସୌମ୍ୟଙ୍କଦ୍ବାରା ଭିକ୍ଷାଅନ୍ନ ତାଙ୍କୁ ସମର୍ପଣ କରାଯିବାକୁ କୁହାଯାନ୍ତେ, ଉପମନ୍ୟୁ ପ୍ରଥମେ ଭିକ୍ଷାକରି ଗୁରୁଙ୍କୁ ଦେଉଥିଲେ ଓ ଦ୍ବିତୀୟଥର ଭିକ୍ଷାକରି ନିଜର ଜୀବିକା ନିର୍ବାହ କରୁଥିଲେ ।

Question 2.
गुरुः कथम् उपमन्योः भिक्षावृत्तिं निषिद्ध:?
Answer:
ଗୁରୁ ସୌମ୍ୟ ଶିଷ୍ୟ ଉପମନ୍ୟୁର ନିଷ୍ଠା ତଥା ଗୁରୁଭକ୍ତିକୁ ପରୀକ୍ଷା କରି ଜାଣିବାପାଇଁ ତା’ର ଭିକ୍ଷାବୃତ୍ତିକୁ ନିଷିଦ୍ଧ କରିଥିଲେ । ଉପମନ୍ୟୁ ଦିନସାରା ଗୋରୁଚରାଇ ଯେତେବେଳେ ସଂଧ୍ୟାରେ ତାଙ୍କୁ ପ୍ରଣାମ କରିବାକୁ ଆସୁଥିଲା ସେତେବେଳେ ତାକୁ ହୃଷ୍ଟପୁଷ୍ଟ ଦେଖ୍ ତା’ର ଜୀବିକାନିର୍ବାହ ବିଷୟ ପଚାରିଲେ ଏବଂ ସେ ଭିକ୍ଷାନ୍ନଦ୍ୱାରା ଜୀବିକା ନିର୍ବାହ କରୁଥ‌ିବାର ଜାଣି ସମସ୍ତ ଭିକ୍ଷାନ୍ନ ତାଙ୍କୁ ଦେବାପାଇଁ ଓ ଦ୍ୱିତୀୟବାର ଭିକ୍ଷା ନକରିବାପାଇଁ ନିର୍ଦ୍ଦେଶ କରିଥିଲେ । ଏ ସମସ୍ତ ଉପମନ୍ୟୁର ଭକ୍ତିର ପରୀକ୍ଷାପାଇଁ ଉଦ୍ଦିଷ୍ଟ ଥିଲା ।

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Question 3.
उपमन्युः कथम् अर्कपत्राणि अभक्षयत्?
अथवा
क्षुधार्त उपमन्युः किं भक्षयामास?
Answer:
ଗୁରୁ ସୌମ୍ୟଙ୍କଦ୍ବାରା ଉପମନ୍ୟୁର ସମସ୍ତ ପ୍ରକାର ଜୀବିକାନିର୍ବାହ ଉପାୟ ନିଷିଦ୍ଧ ହୁଅନ୍ତେ ଏକଦା ବଣ ମଧ୍ୟରେ ବୁଲୁବୁଲୁ ସେ କ୍ଷୁଧାରେ ଆତୁର ହୋଇ ବିକଳରେ ଅରଖପତ୍ରଗୁଡ଼ିଏ ଖାଇଦେଲା । ଗୁରୁ ଭିକ୍ଷାନ୍ନ ନ ଖାଇବାପାଇଁ ନିର୍ଦ୍ଦେଶ ଦେଲେ ତେଣୁ ଗୁରୁଆଜ୍ଞାକୁ ପାଳନ କରି ଉପମନ୍ୟୁ ଆଉ ଭିକ୍ଷା କଲାନାହିଁ । ହେଲେ ପେଟର ଭୋକ କିନ୍ତୁ ସେ ସହିପାରିଲା ନାହିଁ । ଲୋଭରେ ଭୋକ ବିକଳରେ କ୍ଷୁଧା ନିବାରଣ ପାଇଁ ବଣର ଅର୍କପତ୍ରଗୁଡ଼ିକୁ ଖାଇଦେଲା ।

Question 4.
उपमन्युः कथम् अन्धः अभवत्?
अथवा
उपमन्यो: अन्धत्वस्य किं कारणमासीत्?
Answer:
ଉପମନ୍ୟୁ ଗୋଚାରଣ କରି ଭିକ୍ଷାନ୍ନଦ୍ୱାରା ନିଜର ଜୀବିକାନିର୍ବାହ କରୁଥିଲେ । ଗୁରୁ ଧୌମ୍ୟ ଏକଥା ଜାଣି ତାଙ୍କଠାରୁ ସମସ୍ତ ଭିକ୍ଷାନ୍ନ ନେଇଯାଉଥିଲେ । ପୁନଶ୍ଚ ଉପମନ୍ୟୁ ଦ୍ବିତୀୟବାର ଭିକ୍ଷାନ୍ତରେ ଜୀବିକା ନିର୍ବାହ କଲେ; କିନ୍ତୁ ଗୁରୁ ଏକଥା ଜାଣିବା ପରେ ଅନ୍ୟ ଭିକ୍ଷୁକମାନଙ୍କର ଜୀବିକା ହାନି ହେଉଥୁବାର କହି ତାକୁ ମଧ୍ୟ ନିଷିଦ୍ଧ କଲେ । ସମସ୍ତପ୍ରକାର ଉପାୟ ନିଷିଦ୍ଧ ହେବାପରେ ଏକଦା ଉପମନ୍ୟୁ ବଣ ଭିତରେ ବୁଲୁବୁଲୁ ଭୋକବିକଳରେ ଉଦରପୂର୍ତ୍ତି ନିମନ୍ତେ ଅରଖପତ୍ରଗୁଡ଼ିଏ ଭକ୍ଷଣ କଲେ । ଏଗୁଡ଼ିକ ଅଖାଦ୍ୟ ଓ ବିଷାକ୍ତ ହୋଇଥିବାରୁ ଏହାର ପ୍ରଭାବରେ ଉପମନ୍ୟୁର ଦୃଷ୍ଟିଶକ୍ତି ନଷ୍ଟ ହେଲା ଓ ସେ ଅନ୍ଧ ହୋଇଗଲେ।

Question 5.
उपमन्युः कथं कूपे अपतत्?
Answer:
ଗୁରୁ ସୌମ୍ୟଙ୍କର ଆଦେଶକୁ ପାଳନକରି ସମସ୍ତ ଜୀବିକା ନିର୍ବାହ ଉପାୟରୁ ନିଷିଦ୍ଧ ହେବା ପରେ ଏକଦା ବଣରେ ବୁଲୁବୁଲୁ ତାକୁ ଅତ୍ୟଧିକ ଭୋକ ଲାଗିଲା । ଉଦର କ୍ଷୁଧାର ଜ୍ଵାଳାକୁ ସେ ସହିନପାରି ଅରଖପତ୍ରଗୁଡ଼ିଏ ଭକ୍ଷଣ କରି ଦୃଷ୍ଟିଶକ୍ତି ହରାଇ ଅନ୍ଧ ହୋଇଗଲେ । ଆଶ୍ରମକୁ ପ୍ରତ୍ୟାବର୍ତ୍ତନ କରିବା ନିମନ୍ତେ ମାର୍ଗ ଜାଣିପାରିଲେ ନାହିଁ । ଅବାଟରେ ଯାଇ ଏକ କୂପ ମଧ୍ୟର ପଡ଼ିଗଲେ ।

Question 6.
उपमन्युं न दृष्ट्वा गुरुः शिष्यान् किम् अकथयत्?
अथवा
अस्ताचलावलम्विनि सूर्यो उपाध्यायः शिष्यान् किमवादीत्?
Answer:
ଉପମନ୍ୟୁ ପ୍ରତ୍ୟହ ଗୋଚାରଣ କରି ସଂଧ୍ୟାବେଳେ ଆଶ୍ରମକୁ ଫେରୁଥିଲେ । ହେଲେ ଏକ ଦିନର ଘଟଣା – ସେଦିନ ସଂଧ୍ୟାବେଳ ଗଡ଼ିଗଲା କିନ୍ତୁ ଉପମନ୍ୟୁ ଫେରିଲେ ନାହିଁ । ଏହାପରେ ଗୁରୁ ସୌମ୍ୟ ଅପର ଶିଷ୍ୟମାନଙ୍କୁ ଡାକି କହିଲେ ଯେ, ମୁଁ ଉପମନ୍ୟୁର ଜୀବିକାନିର୍ବାହର ସମସ୍ତ ଉପାୟ ନିଷିଦ୍ଧ କରିଛି, ଏଣୁ ସେ ନିଶ୍ଚୟ କ୍ରୁଦ୍ଧ ହୋଇ ଆସୁନାହିଁ । ତେଣୁ ଚାଲ ତାକୁ ଅନ୍ଵେଷଣ କରିବାକୁ ଯିବା । ଗୁରୁ ଏହିପରି ଶିଷ୍ୟମାନଙ୍କୁ କହି ଉପମନ୍ୟୁକୁ ଖୋଜିବାପାଇଁ ବଣକୁ ଶିଷ୍ୟମାନଙ୍କ ସହ ଗଲେ।

Question 7.
अन्ध उपमन्युः केन प्रकारेण चक्षुष्मान् अभवत्?
Answer:
ବଣ ଭିତରେ ବୁଲୁବୁଲୁ କ୍ଷୁଧାତୁର ଉପମନ୍ୟୁ ଅରଖପତ୍ରଗୁଡ଼ିଏ ଭକ୍ଷଣ କରି ଦୃଷ୍ଟିଶକ୍ତି ହରାଇ ଅନ୍ଧ ହୋଇଗଲା । ବାଟ ନପାଇ ଅବାଟରେ ଯାଇ ଏକ କୂପମଧ୍ଯରେ ପଡ଼ିଗଲା । ଏଣେ ସଂଧ୍ୟା ହୁଅନ୍ତେ ଉପମନ୍ୟୁ ଆଶ୍ରମକୁ ନ ଫେରିବାରୁ ଗୁରୁ ଧୌମ୍ୟ ଶିଷ୍ୟମାନଙ୍କ ସହ ଖୋଜି ଖୋଜି ବଣର ଏକ କୂପରେ ଉପମନ୍ୟୁକୁ ପଡ଼ିଥ‌ିବାର ଦେଖ‌ିଲେ । ତା’ପରେ ତାକୁ ସ୍ୱର୍ଗବୈଦ୍ୟ ଅଶ୍ୱିନୀକୁମାରଦ୍ଵୟଙ୍କୁ ପ୍ରାର୍ଥନା କରିବାକୁ କହିଲେ । ଉପମନ୍ୟୁ ସ୍ତୁତି କରିବାରୁ ଅଶ୍ବିନୀକୁମାରଦ୍ଵୟ ଆବିର୍ଭୂତ ହୋଇ ତାକୁ ଏକ ପିଠା ପ୍ରଦାନ କଲେ । ଗୁରୁଙ୍କ ଆଦେଶ ବିନା ଉପମନ୍ୟୁ ତାକୁ ଭକ୍ଷଣ କରିବେ ନାହିଁ ବୋଲି କହିବାରୁ ତା’ର ଏକନିଷ୍ଠ ଗୁରୁଭକ୍ତିରେ ଅତ୍ୟନ୍ତ ପ୍ରୀତ ହୋଇ ସ୍ୱର୍ଗବୈଦ୍ୟ ଅଶ୍ବିନୀକୁମାରଦ୍ଵୟ ତାଙ୍କୁ ଆଶୀର୍ବାଦ କଲେ ଓ ଚକ୍ଷୁଷ୍ମାନ୍ କରିଦେଲେ।

Question 8.
उपमन्युः कथम् अश्विनीकुमारौ स्तुतवान्?
Answer:
ଅରଖପତ୍ର ଖାଇ ଅନ୍ଧାହୋଇ କୂପମଧ୍ଯରେ ପଡ଼ିଥିବା ଉପମନ୍ୟୁଙ୍କୁ ଦେଖ୍ ଗୁରୁ ତାଙ୍କୁ ସ୍ୱର୍ଗବୈଦ୍ୟ ଅଶ୍ବିନୀକୁମାରଦ୍ୱୟଙ୍କୁ ସ୍ତୁତି କ ରିବାକୁ ନିର୍ଦ୍ଦେଶ ଦେଲେ । ଶିଷ୍ୟ ଉପମନ୍ୟୁ ଗୁରୁଙ୍କର ଉପଦେଶକୁ ପାଳନ କରିବାପାଇଁ ତଥା ଦୃଷ୍ଟିଶକ୍ତି ଫେରିପାଇବା ନିମନ୍ତେ ସ୍ଵର୍ଗବୈଦ୍ୟ ଅଶ୍ବିନୀକୁମାରଦ୍ଵୟଙ୍କୁ ପ୍ରାର୍ଥନା କରିଥିଲେ ।

Question 9.
अश्विनौ कथम् अपूपं दत्तवन्तौ?
अथवा
कथमश्विनौ उपमन्योः उपरि प्रीतौ वभूवतुः?
Answer:
ଯେତେବେଳେ କୂପମଧ୍ୟରେ ଥାଇ ଉପମନ୍ୟୁ ଗୁରୁଙ୍କ ଆଦେଶାନୁସାରେ ଦୃଷ୍ଟିଶକ୍ତି ଫେରିପାଇବାପାଇଁ ସ୍ଵର୍ଗବୈଦ୍ୟ ଅଶ୍ବିନୀକୁମାରଦ୍ୱୟଙ୍କୁ ପ୍ରାର୍ଥନା କଲେ ସେତେବେଳେ ଅଶ୍ବିନୀକୁମାରଦ୍ଵୟ ସେଠାରେ ଉପସ୍ଥିତ ହେଲେ । ଉପମନ୍ୟୁଙ୍କୁ ଆଶୀର୍ବାଦ ଦେଇ ତାଙ୍କର ଗୁରୁଭକ୍ତିରେ ସନ୍ତୁଷ୍ଟ ହୋଇ ତାଙ୍କୁ ଏକ ପିଠା ପ୍ରଦାନ କଲେ ।

Question 10.
उपमन्युः कथम् अपूपं न खादितवान्?
Answer:
ଯେତେବେଳେ କୂପମଧ୍ୟରେ ଥାଇ ଗୁରୁଙ୍କ ଆଦେଶରେ ଉପମନ୍ୟୁ ସ୍ବର୍ଗବୈଦ୍ୟ ଅଶ୍ବିନୀକୁମାରଦ୍ୱୟଙ୍କୁ ସ୍ତୁତିକଲେ, ସେମାନେ ଆବିର୍ଭୂତ ହେଲେ । ଉପମନ୍ୟୁର ପ୍ରଗାଢ଼ ଗୁରୁଭକ୍ତିରେ ସନ୍ତୁଷ୍ଟ ହୋଇ ସେମାନେ ତାକୁ ଏକ ପିଠା ଖାଇବାକୁ ଦେଲେ। କିନ୍ତୁ ସେ ଗୁରୁଙ୍କର ଆଦେଶ ବିନା କିଛିହେଲେ ଭକ୍ଷଣ କରିବନାହିଁ ବୋଲି ମନମଧ୍ୟରେ ପ୍ରତିଜ୍ଞା କରିଥିଲା । ଏଣୁ ଅଶ୍ବିନୀକୁମାରଙ୍କଦ୍ଵାରା ପ୍ରଦତ୍ତ ପିଠାକୁ ସେ ଖାଇଲା ନାହିଁ ।

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 1 ଉପମନ୍ୟୁକଥା

Question 11.
उपमन्योः गुरुभक्त्याः सन्तुष्टौ अश्विनीकुमारौ किम् अवदताम्?
Answer:
ଉପମନ୍ୟୁର ପ୍ରାର୍ଥନାକୁ ସ୍ଵୀକାର କରି ଅଶ୍ବିନୀକୁମାରଦ୍ଵୟ ତାଙ୍କ ନିକଟରେ ଉପସ୍ଥିତ ହେଲେ ଓ ତାଙ୍କୁ ଏକ ପିଠା ଖାଇବାକୁ ଦେଲେ । ହେଲେ ଉପମନ୍ୟୁ ଏହି ପିଠାକୁ ଗୁରୁଙ୍କ ଆଦେଶ ବିନା ଖାଇବ ନାହିଁ ବୋଲି କହିଲା । ଏପ୍ରକାର ଏକନିଷ୍ଠବନ୍ତ ଭକ୍ତିସ୍ୱଭାବଯୁକ୍ତ ଉପମନ୍ୟୁକୁ ଦେଖ୍ ତା’ ଉପରେ ସନ୍ତୁଷ୍ଟ ହୋଇ ସେମାନେ ତାକୁ ଆଶୀର୍ବାଦ ଦେଇ କହିଲେ, ‘ବତ୍ସ ! ଆମ୍ଭେ ଦୁହେଁ ତୁମର ଗୁରୁଭଲ୍ଲିରେ ଅତ୍ୟନ୍ତ ପ୍ରୀତ ହୋଇଅଛୁ । ତୁମେ ଚକ୍ଷୁଲାଭ କରିବ ଓ ତୁମର ଅଶେଷ ମଙ୍ଗଳ ହେବ ।’’

Question 12.
उपमन्युः कथं सर्ववेदशास्त्राणि ज्ञातवान्?
Answer:
କ୍ଷୁଧାତୁର ଉପମନ୍ୟୁ ଅରଖପତ୍ରଗୁଡ଼ିଏ ଖାଇ ଅନ୍ଧହୋଇ କୂପ ମଧ୍ଯରେ ପଡ଼ିଯିବା ପରେ ଗୁରୁଙ୍କ ଆଦେଶକ୍ରମେ ସ୍ବର୍ଗବୈଦ୍ୟ ଅଶ୍ବିନୀକୁମାରଦ୍ଵୟଙ୍କୁ ସ୍ତୁତିକଲେ । ଅଶ୍ବିନୀକୁମାରଦ୍ଵୟ ଉପମନ୍ୟୁର ଭକ୍ତିରେ ପ୍ରୀତହୋଇ ତାକୁ ଏକ ପିଠା ଖାଇବାକୁ ଦେଲେ । ଉପମନ୍ୟୁ ଗୁରୁଙ୍କ ଆଦେଶ ବିନା ଏହାକୁ ଭକ୍ଷଣ ନକରିବାକୁ କହିବାରୁ ପୁନଃ ଆଶୀର୍ବାଦସ୍ଵରୂପ ଚକ୍ଷୁଲାଭ ଓ ମଙ୍ଗଳ କାମନା ଅଶ୍ବିନୀକୁମାରଦ୍ଵୟ କଲେ । ଗୁରୁ ସୌମ୍ୟ ମଧ୍ଯ ଉପମନ୍ୟୁଙ୍କ ଉପରେ ସନ୍ତୁଷ୍ଟ ହୋଇ ତାକୁ ସମସ୍ତ ବେଦବିଦ୍ୟା ଓ ଶାସ୍ତ୍ରଜ୍ଞାନରେ ପାରଙ୍ଗମ ବା ବିଦ୍ବାନ୍ ହେବାପାଇଁ ଆଶୀର୍ବାଦ ଦେଲେ । ଗୁରୁଙ୍କର ଆଶୀର୍ବାଦ ଲାଭକରି ଉପମନ୍ୟୁ ସମସ୍ତ ବେଦଶାସ୍ତ୍ରରେ ଜ୍ଞାନଲାଭ କରିଥିଲେ।

दीर्घप्रश्नोत्तराणि

Question 1.
उपमन्युकथात: उपमन्योः गुरुभक्तिं प्रदर्शयत।
अथवा
उपमन्युकथायाः कथासारं वर्णयित्वा तत्रत्यां नीतिशिक्षां लिखत।
Answer:
ଭାରତୀୟ ସଂସ୍କୃତିର ଐତିହାସିକ କାବ୍ୟରୂପେ ପରିଚିତ ବ୍ୟାସ ବିରଚିତ ମହାଭାରତ ଗ୍ରନ୍ଥର ଏକ ଆଖ୍ୟାନ ହେଉଛି ଉପମନ୍ୟୁକଥା । ଏଥ‌ିରେ ଗୁରୁ ସୌମ୍ୟଙ୍କ ପ୍ରତି ଶିଷ୍ୟ ଉପମନ୍ୟୁର ପ୍ରଗାଢ଼ ଏକନିଷ୍ଠ ଭର୍ତ୍ତି ପ୍ରଦର୍ଶିତ ହୋଇଛି । ପ୍ରାଚୀନ ଭାରତରେ ଗୁରୁଶିଷ୍ୟ ପରମ୍ପରା ଓ ଗୁରୁଭକ୍ତିର ମହାନତା ଏଥ‌ିରେ ବର୍ଣ୍ଣିତ ହୋଇଛି ।

ଋଷି ଧୌମ୍ୟଙ୍କର ଉପମନ୍ୟୁ ନାମରେ ଜଣେ ଅତି ପ୍ରିୟ ଶିଷ୍ୟ ଥିଲେ । ସେ ଦିବସରେ ଗୋଚାରଣ କରି ସନ୍ଧ୍ୟାରେ ଗୁରୁଙ୍କୁ ଆସି ନମସ୍କାର କରୁଥିଲେ । ଥରେ ଗୁରୁ ସୌମ୍ୟ ଶିଷ୍ୟ ଉପମନ୍ୟୁକୁ ହୃଷ୍ଟପୁଷ୍ଟ ଥ‌ିବାର ଦେଖ୍ ତା’ର କାରଣ ପଚାରିଲେ । ଭିକ୍ଷାନଭକ୍ଷଣ କରି ଉପମନ୍ୟୁ ଜୀବିକା ନିର୍ବାହ କରୁଥିବା ଜାଣି ସମସ୍ତ ଭିକ୍ଷାନ୍ନ ଆଣି ତାଙ୍କୁ ଦେବାପାଇଁ ଓ ତାଙ୍କର ଆଦେଶକ୍ରମେ ଭକ୍ଷଣ କରିବାପାଇଁ ନିର୍ଦ୍ଦେଶ ଦେଲେ । ଗୁରୁଆଜ୍ଞାନୁସାରେ ଉପମନ୍ୟୁ ସମସ୍ତ ଭିକ୍ଷାନ ଗୁରୁଙ୍କୁ ଦେଲେ ଓ ଗୁରୁ ସେ ସମସ୍ତ ରଖିଦେଲେ ।

ଏହିପରି ଅନେକ ଦିନ ବିତିଗଲା, ଥରେ ଗୁରୁ ଉପମନ୍ୟୁକୁ ତାଙ୍କର ଜୀବିକା ନିର୍ବାହ ବିଷୟରେ ପ୍ରଶ୍ନକଲେ । ଏହାର ଉତ୍ତରରେ ଉପମନ୍ୟୁ ପ୍ରଥମ ଭିକ୍ଷା ଗୁରୁଙ୍କୁ ଦେବାପରେ ପୁନଶ୍ଚ ଦ୍ବିତୀୟଥର ଭିକ୍ଷା କରି ତଦ୍ୱାରା ଜୀବିକାନିର୍ବାହ କରୁଥିବା ବିଷୟ କହିଲେ । ଏହାଦ୍ଵାରା ଅନ୍ୟ ଭିକ୍ଷୁକମାନଙ୍କର ଜୀବିକାନିର୍ବାହରେ ବାଧା ଉପୁଜିବାର କଥା କହି ଗୁରୁ ଉପମନ୍ୟୁର ସମସ୍ତପ୍ରକାର ଜୀବିକା ନିର୍ବାହର ଉପାୟକୁ ନିଷିଦ୍ଧ କଲେ ।

ଏକଦା ଉପମନ୍ୟୁ ବଣରେ ବୁଲୁଥିବାବେଳେ କ୍ଷୁଧାରେ ଆତୁର ହୋଇ ଅରଖପତ୍ର ଭକ୍ଷଣ କଲେ । ତାହାଦ୍ୱାରା ତାଙ୍କର ଚକ୍ଷୁ ନଷ୍ଟ ହୋଇଗଲା ଓ ସେ ଅନ୍ଧ ହୋଇଗଲେ । ବାଟ ଜାଣିନପାରି ଏକ କୂପ ମଧ୍ଯରେ ପଡ଼ିଗଲେ । ସଂଧ୍ୟା ସମୟରେ ଉପମନ୍ୟୁ ଆଶ୍ରମକୁ ନ ଫେରିବାରୁ ଗୁରୁ ସୌମ୍ୟ ଶିଷ୍ୟମାନଙ୍କ ସହିତ ତାଙ୍କୁ ଅନ୍ଵେଷଣ କରି ବଣ ଭିତରେ ଏକ କୂପ ମଧ୍ଯରେ ପଡ଼ିଥିବାର ଦେଖୁଲେ ଓ ସମସ୍ତ କଥା ଜାଣିପାରିଲେ ଏବଂ ସ୍ଵର୍ଗବୈଦ୍ୟ ଅଶ୍ବିନୀକୁମାରଦ୍ୱୟଙ୍କୁ ପ୍ରାର୍ଥନା କରିବାପାଇଁ ଉପମନ୍ୟୁକୁ ନିର୍ଦ୍ଦେଶ ଦେଲେ ।

ଏହାପରେ ଉପମନ୍ୟୁ ଗୁରୁ ସୌମ୍ୟଙ୍କ ନିର୍ଦ୍ଦେଶକ୍ରମେ ସ୍ଵର୍ଗବୈଦ୍ୟ ଅଶ୍ବିନୀକୁମାରଦ୍ଵୟଙ୍କୁ ପ୍ରାର୍ଥନା କରିବାରୁ ସେ ଦୁହେଁ ଆସି ଉପସ୍ଥିତ ହେଲେ ଓ ଉପମନ୍ୟୁକୁ ଏକ ପିଠା ଖାଇବାକୁ ଦେଲେ । କିନ୍ତୁ ପ୍ରଗାଢ଼ ଗୁରୁଭକ୍ତିରେ ଏକନିଷ୍ଠ ଉପମନ୍ୟୁ ବିନା ଗୁରୁଙ୍କ ଆଦେଶରେ ଏହାକୁ ଭକ୍ଷଣ କରିବେ ନାହିଁ ବୋଲି କହିଲେ । ସ୍ଵର୍ଗବୈଦ୍ୟ ଅଶ୍ବିନୀକୁମାରଦ୍ଵୟ ଉପମନ୍ୟୁର ଏପ୍ରକାର ଗୁରୁଭକ୍ତି ଦେଖୁ ତାଙ୍କ ଉପରେ ସନ୍ତୁଷ୍ଟ ହେଲେ ଓ ଚକ୍ଷୁଷ୍ମାନ୍ ହେବାର ଆଶୀର୍ବାଦ ଦେଲେ ଏବଂ ଅନ୍ତର୍ଦ୍ଧାନ ହୋଇଗଲେ । ଏହାପରେ ଗୁରୁ ଏ ସମସ୍ତ କଥା ଜାଣି ଶିଷ୍ୟ ଉପମନ୍ୟୁକୁ ଅଗାଧ ଜ୍ଞାନର ଅଧିକାରୀ ହେବାପାଇଁ ଆଶୀର୍ବାଦ ଦେଲେ ।

ପ୍ରାଚୀନ ଭାରତୀୟ ସଂସ୍କୃତିରେ ଆଶ୍ରମ ବ୍ୟବସ୍ଥା ତଥା ଗୁରୁକୁଳ ପରମ୍ପରା ଏ ଆଖ୍ୟାନରୁ ଦେଖିବାକୁ ମିଳୁଛି । ତଦାନୀନ୍ତନ କାଳରେ ଗୁରୁଶିଷ୍ୟର ସଂପର୍କର ସେତୁ ଏତେ ମହତ୍ ଥିଲା ଯେ ଭକ୍ତି ଓ ଏକନିଷ୍ଠତା ବଳରେ ସିଦ୍ଧିପ୍ରାପ୍ତି କିପରି ହୁଏ ତାହା ଉପମନ୍ୟୁ କଥା ମାଧ୍ୟମରେ ଜଣାପଡ଼ୁଛି । ଗୁରୁଆଜ୍ଞା ସଦୈବ ପାଳନୀୟ ଏକଥା ଉପମନ୍ୟୁର ଆଦର୍ଶ ଚାରିତ୍ରିକ ଗୁଣ ତଥା ବ୍ୟବହାରରୁ ଶିକ୍ଷା ମିଳୁଛି । ଏଣୁ ଯେପରିଭାବେ କଠିନ ପରୀକ୍ଷାର ସମ୍ମୁଖୀନ ହୋଇ ଶିଷ୍ୟ ଉପମନ୍ୟୁ ଅସୀମ ଧୈର୍ଯ୍ୟ ସହକାରେ ଏକନିଷ୍ଠ ଭକ୍ତି ଗୁରୁଙ୍କ ନିକଟରେ ପ୍ରଦର୍ଶନ କଲେ ତାହା ସର୍ବକାଳରେ ଆଦର୍ଶସ୍ଥାନୀୟ ହୋଇପାରିବ । ଏତାଦୃଶ ଆଦର୍ଶ ଶିଷ୍ୟର କାମନା ସର୍ବକାଳରେ ହେବା ଉଚିତ । ଏ କଥା ମାଧ୍ୟମରେ ଉପମନ୍ୟୁ ଯେଉଁ ଶ୍ରେଷ୍ଠ ଗୁରୁଭକ୍ତିର ଜ୍ଵଳନ୍ତ ଚିତ୍ର ପ୍ରଦର୍ଶନ କରିଛନ୍ତି ତାହା ଚିରସ୍ମରଣୀୟ ହୋଇ ରହିବ । ଭକ୍ତିର ଚରମ ତଥା ପରମ ପରାକାଷ୍ଠାସ୍ଵରୂପ ଆଦର୍ଶ ଉପମନ୍ୟୁର ଜୀବନଚର୍ଯ୍ୟା ଆମ୍ଭମାନଙ୍କର ଏକାନ୍ତ ଶ୍ରେୟ ତଥା ଜ୍ଞେୟ ହେବା ଉଚିତ । ଏଣୁ ଯଥାର୍ଥରେ କୁହାଯାଇଛି ଯେ, ‘ଭକ୍ତା ଦୁଷ୍ୟନ୍ତ ଦୈବତାନି’ ଅର୍ଥାତ୍ ଭକ୍ତିରେ ଦେବତାମାନେ ସନ୍ତୁଷ୍ଟ ହୁଅନ୍ତି ଏବଂ ଗୁରୁ ସେ ତ ଭଗବାନ୍‌ଙ୍କର ଅପର ଅବତାର; ଯଥା –
‘‘ଗୁରୁ ବ୍ରହ୍ମା ଗୁରୁର୍ବିଷ୍ଣୁ ଗୁରୁଦେବ ମହେଶ୍ୱରଃ ।
ଗୁରୁର୍ସାକ୍ଷାତ୍ ପରଂବ୍ରହ୍ମ ତସ୍ମି ଶ୍ରୀଗୁରବେ ନମଃ ॥’’

+2 1st Year Sanskrit Optional Chapter 1 ଉପମନ୍ୟୁକଥା Summary

ଲେଖକ ପରିଚୟ— ମହାଭାରତ ମହର୍ଷି ବ୍ୟାସଙ୍କର ଏକ ଅମର ସୃଷ୍ଟି । ଏହି ମହାଭାରତର ଏକ ପ୍ରସିଦ୍ଧ ଆଖ୍ୟାନ ହେଉଛି ‘ଉପମନ୍ୟୁକଥା’ । ଭଗବାନ୍ ବ୍ୟାସଦେବ ମହର୍ଷି ବଶିଷ୍ଠଙ୍କର ନାତି ଶକ୍ତିଙ୍କର ପୌତ୍ର, ପରାଶରଙ୍କର ପୁତ୍ର ସତ୍ୟବତୀଙ୍କର ଗର୍ଭରୁ ଜାତ ଏବଂ ମହର୍ଷି ଶୁକଦେବଙ୍କର ପିତା ।

‘‘ବ୍ୟାସଂ ବଶିଷ୍ଠନପ୍ତାରଂ ଶନ୍ତଃ ପୌତ୍ରମକଳ୍ମଷମ୍ ।
ପରାଶରାତ୍ମଜଂ ବନ୍ଦେ ଶୁକତାତଂ ତପୋନିଧୂମ୍ ॥’’

ତାଙ୍କର ପ୍ରାଥମିକ ନାମ ‘କୃଷ୍ଣ’ । ତା’ପରେ ତାଙ୍କୁ ବୈପାୟନ ବୋଲି କୁହାଗଲା । କାରଣ ଜନ୍ମ ପରେ ପରେ ତାଙ୍କର ଅବିବାହିତା ଜନନୀ ତାଙ୍କୁ ଗୋଟିଏ ଦ୍ବୀପରେ ଛାଡ଼ିଦେଇଥିଲେ । ସେ ସମସ୍ତ ବେଦକୁ ସଙ୍କଳନ କରିଥିବାରୁ ତାଙ୍କର ନାମ – ‘ବ୍ୟାସ’ ବା ବେଦବ୍ୟାସ ହେଲା । ବ୍ୟାସଙ୍କର ଅଲୌକିକ ପ୍ରତିଭାକୁ ଦେଖୁ ସମସ୍ତ ବିଦ୍ୱାନ୍ ତାଙ୍କୁ ବ୍ରହ୍ମା, ବିଷ୍ଣୁ ଓ ମହେଶ୍ଵରଙ୍କ ସହ ତୁଳନା କରିଛନ୍ତି । ବ୍ୟାସଙ୍କର ସାଧନାଭୂମି ଥିଲା ହିମାଳୟ । ବ୍ୟାସ ହିଁ ସର୍ବଶ୍ରେଷ୍ଠ ଗ୍ରନ୍ଥ ମହାଭାରତର ରଚୟିତା ।

ବିଷୟ ପ୍ରବେଶ– ପ୍ରାଚୀନ ଭାରତୀୟ ସଂସ୍କୃତି ଓ ପରଂପରାକୁ ବିହଙ୍ଗାବଲୋକନ କଲେ ଏଥିରେ ଗୁରୁପୂଜାର ମହନୀୟତା ପରିଲକ୍ଷିତ ହୁଏ । ଗୁରୁଙ୍କର ଶ୍ରେଷ୍ଠତା ବିଷୟରେ ଉଲ୍ଲେଖ ଅଛି ଯେ-

‘‘ଗୁରୁବ୍ରହ୍ମା ଗୁରୁବିଷ୍ଣୁ ଗୁରୁଦେବ ମହେଶ୍ୱରଃ।
ଗୁରୁର୍ସାକ୍ଷାତ୍ ପରଂବ୍ରହ୍ମ ତସ୍ମି ଶ୍ରୀଗୁରୁବେ ନମଃ ॥’’

ଅର୍ଥାତ୍‌ ଗୁରୁ ହିଁ ସାକ୍ଷାତ୍‌ ବ୍ରହ୍ମା, ବିଷ୍ଣୁ ଓ ମହେଶ୍ବର ଅଟନ୍ତି । ଏହାର ପ୍ରମୁଖ କାରଣ ହେଲା— ଗୁରୁଙ୍କ କରୁଣା ଓ ଆଶୀର୍ବାଦ ବିନା ଜ୍ଞାନଲାଭ ଅସମ୍ଭବ । ବେଦ, ଉପନିଷଦ, ମହାଭାରତ ଓ ପୁରାଣମାନଙ୍କରେ ଗୁରୁଭକ୍ତିର ଅନୁପମ ଉଦାହରଣମାନ ଦେଖିବାକୁ ମିଳେ । ପ୍ରସ୍ତୁତ ବା ଆଲୋଚିତ ବିଷୟ ‘ଉପମନ୍ୟୁ କଥା’ ଗୁରୁଭକ୍ତିର ଏକ ଅପୂର୍ବ ଦୃଷ୍ଟାନ୍ତମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ଅନ୍ୟତମ । ଏଥ‌ିରେ ଗୁରୁ ସୌମ୍ୟଙ୍କ ପ୍ରତି ଶିଷ୍ୟ ଉପମନ୍ୟୁଙ୍କର ଭକ୍ତି ଓ ଏକନିଷ୍ଠତା ବର୍ଣିତ ହୋଇଛି । ଏଥ‌ିରେ ଗୁରୁଆଜ୍ଞା ପାଳନ ଜ୍ଞାନପ୍ରାପ୍ତିର ପ୍ରମୁଖ ସାଧନୋପାୟ ଭାବେ ବର୍ଣ୍ଣିତ ହୋଇଛି । ଏହାହିଁ ମହାଭାରତର ଆଖ୍ୟାନ ‘ଉପମନ୍ୟୁ କଥା’ର ପ୍ରମୁଖ ବିଷୟବସ୍ତୁ ।

ସାରକଥା— ଋଷି ଧୌମ୍ୟଙ୍କର ଉପମନ୍ୟୁ ନାମରେ ଜଣେ ଶିଷ୍ୟ ଥିଲେ । ଗୁରୁ ସୌମ୍ୟ ଏକଦା ଉପମନ୍ୟୁଙ୍କୁ ଗାଈ ଚରାଇବାପାଇଁ ବଣକୁ ପଠାଇଲେ । ଉପମନ୍ୟୁ ମଧ୍ଯ ଗୋଚାରଣ କରି ସନ୍ଧ୍ୟାରେ ଆଶ୍ରମକୁ ପ୍ରତ୍ୟାବର୍ତ୍ତନ କରି ଗୁରୁଙ୍କୁ ନମସ୍କାର କଲା । ଏହାପରେ ଗୁରୁ ତାଙ୍କୁ ହୃଷ୍ଟପୁଷ୍ଟ ଥ‌ିବାର ଦେଖୁ ତାଙ୍କୁ ‘ତୁମେ କ’ଣ ଖାଉଛ’ ବୋଲି ପ୍ରଶ୍ନକଲେ । ଏହାର ଉତ୍ତରରେ ଉପମୁନ୍ୟ ‘ଭିକ୍ଷାଲବ୍‌ଧ ଅନ୍ନ ଭକ୍ଷଣ କରୁଛି’ ବୋଲି କହିଥିଲେ । ତାଙ୍କୁ ନ ଜଣାଇ ଭିକ୍ଷାନ୍ନ ଭକ୍ଷଣ କରିବାକୁ ଗୁରୁ ମନାକଲେ । ଏହାପରେ ଗୁରୁଙ୍କ ଆଦେଶକ୍ରମେ ଉପମନ୍ୟୁ ସମସ୍ତ ଭିକ୍ଷାନ୍ତକୁ ନେଇ ଗୁରୁଙ୍କୁ ଅର୍ପଣ କଲେ । ଗୁରୁ ମଧ୍ଯ ଉପମନ୍ୟୁଙ୍କୁ କିଛି ନ ଦେଇ ସବୁତକ ରଖୁଦେଉଥିଲେ । ଏହାସତ୍ତ୍ବେ ମଧ୍ଯ ଉପମନ୍ୟୁ ପୂର୍ବପରି ହୃଷ୍ଟପୁଷ୍ଟ ଥିବାର ଦେଖ୍ ଗୁରୁ ତାଙ୍କୁ ପୁନଶ୍ଚ ତାଙ୍କର ଜୀବିକାନିର୍ବାହ ବିଷୟରେ ଜାଣିବାକୁ ଇଚ୍ଛା ପ୍ରକାଶ କଲେ । ଉପମନ୍ୟୁ ପ୍ରଥମ ଭିକ୍ଷାଲବ୍‌ଧ ଅନ୍ନ ଗୁରୁଙ୍କୁ ଦେଇ ଦ୍ଵିତୀୟବାର ଭିକ୍ଷାନରେ ପରିପୋଷଣ ହେଉଥ‌ିବା କଥା କହିଲେ । ଏକଥା ଶୁଣି ଗୁରୁ କ୍ଷୁବ୍‌ଧ ହେଲେ କାରଣ ଦ୍ବିତୀୟବାର ଭିକ୍ଷାଦ୍ଵାରା ଅନ୍ୟ ଭିକ୍ଷୁକମାନଙ୍କର ଜୀବିକାର୍ଜନରେ ବାଧା ସୃଷ୍ଟି ହେଉଥିବା କଥା ଗୁରୁ ଉପମନ୍ୟୁକୁ କହିଲେ । ଏଥୁରୁ ନିବୃତ୍ତ ହେବାକୁ ମଧ୍ୟ କହିଲେ । ପରନ୍ତୁ ଶିଷ୍ୟ ଉପମନ୍ୟୁ ଗୁରୁଙ୍କର ପ୍ରଦତ୍ତ ଉପଦେଶକୁ ପାଳନ କଲେ ।

ଏହାପରେ ଥରେ ଉପମନ୍ୟୁ କ୍ଷୁଧାର ଜ୍ଵାଳା ସହିନପାରି ବନମଧ୍ୟରେ ବୁଲୁଥ‌ିବା ଅବସ୍ଥାରେ ଗୁଡ଼ିଏ ଅରଖପତ୍ର ଖାଇଦେଲେ । ଏହାକୁ ଭକ୍ଷଣ କରିବାଦ୍ଵାରା ତାଙ୍କର ଦୃଷ୍ଟିଶକ୍ତି ନଷ୍ଟ ହୋଇଗଲା ଓ ସେ ବାଟରେ ଯାଉଥିବା ସମୟରେ ଜାଣିନପାରି ଏକ କୂଅଭିତରେ ପଡ଼ିଗଲେ । ଧୀରେ ଧୀରେ ସୂର୍ଯ୍ୟ ଅସ୍ତ ହୋଇଗଲେ ଓ ସନ୍ଧ୍ୟା ହୋଇଗଲା । ହେଲେ ଉପମନ୍ୟୁ କିନ୍ତୁ ଆଶ୍ରମକୁ ପ୍ରତ୍ୟାବର୍ତ୍ତନ କଲେନାହିଁ । ଏକଥା ଗୁରୁ ସୌମ୍ୟ ଯେତେବେଳେ ଜାଣିଲେ, ଭାବିଲେ ବୋଧହୁଏ ଉପମନ୍ୟୁ ତାଙ୍କ ଉପରେ କ୍ରୋଧୃତ ହୋଇଛି ବା ରାଗିଯାଇଛି ଓ ଆଶ୍ରମକୁ ଆସୁନାହିଁ । ଏଣୁ ସେ ନିଜେ ଅନ୍ୟ ଶିଷ୍ୟମାନଙ୍କ ସହ ବନମଧ୍ୟକୁ ଖୋଜିବାକୁ ଗଲେ ଓ ସେଠାରେ ଉପମନ୍ୟୁର ନାମ ଧରି ଜୋର୍‌ରେ ଡାକିଲେ । ଏହାପରେ ଡାକ ଶୁଣି ଉପମନ୍ୟୁ କୂପ ମଧ୍ଯରେ ପଡ଼ିଥିବା କଥା କହିବାରୁ ଗୁରୁ ଖୋଜି ଖୋଜି ଯାଇ ତାଙ୍କୁ ସେ କୂପମଧ୍ଯରେ ପଡ଼ିଥିବାର ଦେଖ‌ିଲେ । ଏହାପରେ ସମସ୍ତ କଥା ଉପମନ୍ୟୁଠାରୁ ଶୁଣିଲା ପରେ ସ୍ବର୍ଗବୈଦ୍ୟ ଅଶ୍ବିନୀକୁମାରଙ୍କୁ ପ୍ରାର୍ଥନା କରିବାପାଇଁ ଉପଦେଶ ଦେଲେ ।

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 1 ଉପମନ୍ୟୁକଥା

ଗୁରୁଙ୍କ ଆଦେଶକ୍ରମେ ଉପମନ୍ୟୁ ଅଶ୍ବିନୀକୁମାରଙ୍କୁ ପ୍ରାର୍ଥନା କରନ୍ତେ ସେ ଦୁହେଁ ଆବିର୍ଭୂତ ହୋଇ ଉପମନ୍ୟୁକୁ ଏକ ପିଠା ଖାଇବାକୁ ଦେଲେ; ପରନ୍ତୁ ଏହାକୁ ଗୁରୁଙ୍କ ଆଦେଶବିନା ସେ ଖାଇବେ ନାହିଁ ବୋଲି କହିଲେ ଏବଂ ପିଠାଟିକୁ ଖାଇଲେ ନାହିଁ । ତାଙ୍କର ଏ ପ୍ରକାର ଗୁରୁଭଲ୍ଲିରେ ନିଷ୍ଠା ବା ଏକାଗ୍ରତା ଦେଖ୍ ସ୍ୱର୍ଗବୈଦ୍ୟ ଅଶ୍ବିନୀକୁମାର ଆଶୀର୍ବାଦ ଦେଲେ ଓ ଉପମନ୍ୟୁ ତାଙ୍କର ଦୃଷ୍ଟିଶକ୍ତି ଫେରିପାଇଲେ । ଉପମନ୍ୟୁ ସ୍ଵର୍ଗବୈଦ୍ୟଙ୍କର ଆଶୀର୍ବାଦ ଓ ମଙ୍ଗଳ କାମନାର ଶୁଭାଶିଷ ପାଇ କୂପମଧ୍ୟରୁ ବାହାରି ଗୁରୁ ସୌମ୍ୟଙ୍କ ନିକଟରେ ଉପସ୍ଥିତ ହେଲେ । ସମସ୍ତ ଘଟିଥିବା ବୃତ୍ତାନ୍ତକୁ ସେ ଗୁରୁଙ୍କ ସମ୍ମୁଖରେ ବଖାଣିଲେ । ଗୁରୁ ମଧ୍ୟ ଅଶ୍ବିନୀକୁମାରଙ୍କର ଆଶୀର୍ବାଦ ଓ ମଙ୍ଗଳାନୁରୂପ ଆଶୀର୍ବାଦ ଦେଲେ । ଗୁରୁ ସୌମ୍ୟଙ୍କର ଆଶୀର୍ବାଦ ଲାଭ କରି ଶିଷ୍ୟ ଉପମନ୍ୟୁ ପରମ ଜ୍ଞାନର ଅଧିକାରୀ ହୋଇଥିଲେ ।

ଆଲୋଚିତ କଥାରେ ଗୁରୁଭକ୍ତିର ମହନୀୟତା ତଥା ଉପମନ୍ୟୁର ଆଦର୍ଶବାଦିତା ପରିଲକ୍ଷିତ ହୁଏ । ଏଥ‌ିରେ ଯେଉଁ ନୀତିଶିକ୍ଷାମାନ ଉପଲବ୍‌ଧ ହୁଏ ତାହା ହେଲା; ଯଥା—

  • ଗୁରୁଭକ୍ତିଦ୍ଵାରା ଅସାଧ୍ୟ ସାଧୂତ ହୁଏ ।
  • ‘ଆଜ୍ଞା ଗୁରୁଣା ହି ଅବିଚାରଣୀୟା’– ଅର୍ଥାତ୍ ଗୁରୁ ଆଜ୍ଞା ସର୍ବଦା ପାଳନ କରିବା ଉଚିତ ।
  • ବିଦ୍ୟାର୍ଥୀ ବା ଭକ୍ତିମାନ୍ ଶିଷ୍ୟହିଁ ସୁଖ ପ୍ରାପ୍ତ କରିଥାଏ ।
  • ବିପଦ କାଳରେ ଧୈର୍ଯ୍ୟ ତ୍ୟାଗ ଅନୁଚିତ ।
  • ଧୈର୍ଯ୍ୟ ତଥା ଭକ୍ତିଦ୍ୱାରା ସବୁକିଛି ସମ୍ଭବ ହୁଏ ।

୧। ଆସୀତ୍ ଧୌମ୍ୟସ୍ୟ ……………………………… ନମଷ୍ଟ କ୍ରେ ।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ଆସୀତ = ଥିଲା । ଧୌମଷ୍ୟ ରଷେ = ଋଷି ଧୌମ୍ୟଙ୍କର । ଉପନ୍ୟୁର୍ନାମ = ଉପମନ୍ୟୁ ନାମକ । ତମ୍ ଉପାଧ୍ୟାୟଃ = ତାଙ୍କୁ ଗୁରୁ । ପ୍ରେଷୟାମାସ = ପଠାଇଲେ । ଗା = ଗାଈମାନଙ୍କୁ । ଉପାଧ୍ୟାୟ ବଚନାତ୍ = ଗୁରୁଙ୍କ ନିର୍ଦ୍ଦେଶରେ । ଅରକ୍ଷତ = ରଖୁଲେ । ଅହନି = ଦିନରେ । ଦିବସକ୍ଷୟ = ସଂଧ୍ୟା ସମୟରେ । ଗୁରୁଗୃହମାଗମ୍ୟ = ଗୁରୁଗୃହକୁ ଆସି । ଉପାଧ୍ୟାୟସ୍ୟ ଅଗ୍ରତଃ = ଗୁରୁଙ୍କ ଆଗରେ । ସ୍ଥିତ୍ରା = ରହି । ନମଶ୍ଚକ୍ର = ନମସ୍କାର କଲେ ।

ଅନୁବାଦ – ଋଷି ସୌମ୍ୟଙ୍କର ଉପମନ୍ୟୁ ନାମରେ ଜଣେ ଶିଷ୍ୟ ଥିଲେ । ଗୁରୁ ତାଙ୍କୁ ପଠାଇଲେ, ବତ୍ସ ଉପମନ୍ୟୁ ଗାଈମାନଙ୍କୁ ରଖ ବା ଜଗ । ସେ ଗୁରୁଙ୍କ କଥାରେ ଗାଈମାନଙ୍କୁ ରଖିଲେ । ସେ ଦିନରେ ଗାଈ ରଖୁଲେ ଓ ସଂଧ୍ୟାହେଲେ ଗୁରୁଗୃହକୁ ଆସି ତାଙ୍କ ଆଗରେ ଉପସ୍ଥିତ ହୋଇ ନମସ୍କାର କରୁଥିଲେ ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ଆସୀଭୌମ୍ୟସ୍ୟ = ଆସୀତ୍ + ଧୌମ୍ୟସ୍ୟ । ଉପନ୍ୟୁର୍ନାମ = ଉପମନ୍ୟୁ + ନାମ । ତମୁପାଧ୍ୟାୟ = ତମ୍ + ଉପାଧ୍ୟାୟଃ । ବସୋପମନ୍ୟା = ବସ୍ତ୍ର + ଉପମନ୍ୟୁ । ଉପାଧ୍ୟାୟବଚନାଦ୍‌ଗା = ଉପାଧ୍ୟାୟବଚନାତ୍ + ଗା । ଚାହନି = ଚ + ଅହନି । ଗୁରୁଗୃହମାଗମୋପାଧ୍ୟାୟସ୍ୟାଗ୍ରତଃ = ଗୁରୁଗୃହମ୍ + ଆଗମ୍ୟ + ଉପାଧ୍ୟାୟସ୍ୟ + ଅଗ୍ରତଃ । ନମଶ୍ଚକ୍ର = ନମଃ + ଚକ୍ରେ ।

ସମାସ – ଗୋରକ୍ଷଣାୟ = ଗବାଂ ରକ୍ଷଣଂ, ତସ୍ମି (୬ଷ୍ଠ ତତ୍) । ଉପାଧ୍ୟାୟବଚନାତ୍ = ଉପାଧ୍ୟାୟସ୍ୟ ବଚନଂ, ତସ୍ମାତ୍ (୬ଷ୍ଠ ତତ୍) । ଦିବସକ୍ଷୟ = ଦିବସସ୍ୟ କ୍ଷୟଃ, ତସ୍ମିନ୍ (୬ଷ୍ଠୀ ତତ୍) ।

ସକାରଣ ବିଭକ୍ତି – ଧୌମ୍ୟସ୍ୟ, ରଷେ = ଶେଷେ ୬ଷ୍ଠୀ । ଉପମନ୍ୟୁ = ନାମ ଅବ୍ୟୟଯୋଗେ ୧ମ । ଶିଷ୍ୟ = କଉଁରି ୧ ମା । ଉପାଧ୍ୟାୟ = ଉଲ୍ଲେ କର୍ଭରି ୧ମା । ଉପାଧ୍ୟାୟବଚନାତ୍ = ହେତୌ ୫ମୀ । ଦିବସକ୍ଷୟ = ଅଧ୍ଵରଣେ ୭ମୀ । ଗା = କର୍ମଣି ୨ୟା । ଉପାଧ୍ୟାୟସ୍ୟ = ‘ଅଗ୍ରତଃ’ ଯୋଗେ ୬ଷ୍ଠୀ ।

ପ୍ରକୃତି ପ୍ରତ୍ୟୟ – ଶିଷ୍ୟ = ଶାସ୍ + କ୍ୟପ୍ । ଉପାଧ୍ୟାୟଃ = ଉପ + ଅଧ୍ + ଇ + ଘଞ୍ଚ୍ ରକ୍ଷଣମ୍ = ରସ୍ + କ୍ୟୁଟ୍ । ବଚନମ୍ = ବଚ୍ + ମ୍ୟୁଟ୍ । ରକ୍ଷିତ୍ବ = ରକ୍ଷ୍ + କ୍ଵାଚ୍ । କ୍ଷୟ = କ୍ଷି + ଅଚ୍ । ଦିବସ = ଦିବ୍ + ଅସଚ୍ । ସ୍ଥିତ୍ରା = ସ୍ଥା + ସ୍କାଚ୍ । ଚକ୍ରେ = କୃ + ଲିଟ୍, ପ୍ରଥମ ପୁରୁଷ ଏକବଚନ।

୨। ତମୁପାଧ୍ୟାୟ …………………………….. ଭୈକ୍ଷ୍ୟମଗୃହ୍ଣାତ୍‌।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ପୀବାନମ୍ = ହୃଷ୍ଟପୁଷ୍ଟ । ଅପଶ୍ୟତ୍ = ଦେଖ‌ିଲେ । ଉବାଚ = କହିଲେ । ବୃଭିମ୍ = ଜୀବିକା । କଳ୍ପୟସି = ନିର୍ବାହ କରୁଛ । ପୀବାନସି = ହୃଷ୍ଟପୁଷ୍ଟ ହୋଇଛି । ପ୍ରତ୍ୟୁବାଚ = ଉତ୍ତରଦେଲେ । ଭୈକ୍ଷେଣ = ଭିକ୍ଷାଲବ୍ଧ ଅନ୍ନଦ୍ୱାରା । ଅନିବେଦ୍ୟ = ନ ଜଣାଇ । ଭୋକ୍ତବ୍ୟମ୍ = ଭୋଜନ କରିବ । ଉକ୍ସା = କହି । ନ୍ୟବେଦୟତ = ନିବେଦନ କଲେ । ଅଗୃହ୍ଣାତ୍ = ଗ୍ରହଣ କଲେ ବା ନେଇଗଲେ ।

ଅନୁବାଦ – ଗୁରୁ ତାଙ୍କୁ ସୁସ୍ଥସବଳ ହୋଇଥିବାର ଦେଖୁଲେ ଓ ତାହାଙ୍କୁ କହିଲେ ବସ ଉପମନ୍ୟୁ ତୁମେ କିପରି ଜୀବିକା ନିର୍ବାହ କରୁଛ, ହୃଷ୍ଟପୁଷ୍ଟ ଓ ଦୃଢ଼ ହୋଇଛି । ସେ ଗୁରୁଙ୍କୁ ଉତ୍ତର ଦେଲେ – ‘‘ହେ ଗୁରୁଦେବ ! ଭିକ୍ଷାନଦ୍ୱାରା ଜୀବିକା ନିର୍ବାହ କରୁଛି । ଗୁରୁ ତାଙ୍କୁ କହିଲେ – ମୋତେ ନ ଜଣାଇ ତୁମେ ଭିକ୍ଷାନ୍ନ ଭୋଜନ କରିବ ନାହିଁ । ସେ (ଉପମନ୍ୟୁ) ତାହାହିଁ ହେବ ବୋଲି କହି ଭିକ୍ଷା ବୃତ୍ତି କରିସାରି ଗୁରୁଙ୍କୁ ଜଣାଇଲେ । ଗୁରୁ ସେ ସମସ୍ତ ଭିକ୍ଷାନ୍ନ ତା’ଠାରୁ ଗ୍ରହଣ କଲେ ବା ନେଇଗଲେ ।’’

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ପୀବାନମପଶ୍ୟଦୁବାଚ = ପୀବାନ୍‌ + ଅପଶ୍ୟତ୍ + ଉବାଚ । ଦୈନନ୍ = ଚ + ଏନମ୍ । ବସୋପମନ୍ୟା = ବହିଃ + ଉପମନ୍ୟୁ । ପ୍ରତ୍ୟୁବାଚ = ପ୍ରତି + ଉବାଚ । ମତ୍ସ୍ୟମନିବେଦ୍ୟ = ମତ୍ସ୍ୟମ୍‌ + ଅନିବେଦ୍ୟ । ନୋପଭୋକ୍ତବ୍ୟମିତି = ନ + ଉପଭୋକ୍ତବ୍ୟମ୍ + ଇତି । ତଥେକ୍ସା = ତଥା + ଇତି + ଉକ୍ସା । ଚରିତ୍ରୋପାଧ୍ୟାୟାୟ ଚରିତ୍ରା + ଉପାଧ୍ୟାୟାୟ । ନ୍ୟବେଦୟତ୍ = ନି + ଅବେଦୟତ୍ । ଭୈକ୍ଷ୍ୟଗୃହ୍ଣାତ୍ = ଭୈକ୍ଷ୍ୟମ୍ + ଅଗୃହ୍ଣାତ୍ ।

ସମାସ – ଅନିବେଦ୍ୟ = ନ ନିବେଦ୍ୟ (ନଞ୍ଝ ତତ୍) ।

ସକାରଣ ବିଭକ୍ତି – ତମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା । ଉପାଧ୍ୟାୟଃ = ଉକ୍ତ କର୍ଭରି ୧ ମା । କେନ = କରଣେ ୩ୟା । ବୃଷ୍ଟିମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା । ଭୈକ୍ଷେଣ = କରଣେ ୩ୟା । ମହ୍ୟମ୍‌ = ନିବେଦନାର୍ଥେ ୪ର୍ଥୀ । ଭୈକ୍ଷ୍ୟମ୍‌ = ଉକ୍ତ କର୍ମଣି ୧ମା । ତସ୍ମାତ୍ = ଅପାଦାନେ ୫ମୀ ।

ପ୍ରକୃତି ପ୍ରତ୍ୟୟ – ବୃଷ୍ଟିମ୍ = ବୃତ୍ + ସ୍କ୍ରିନ୍ । ନିବେଦ୍ୟ = ନି + ବିଦ୍ + ଲ୍ୟାପ୍ । ଭୋକ୍ତବ୍ୟମ୍ = ଭୁଜ୍ + ତବ୍ୟ । ଉଲ୍କା ବଚ୍ + ଷ୍ଟାଚ୍ । ଚରିତ୍ରା = ଚର୍ + କ୍ସାଚ୍ । ପୀବାନମ୍ = ପୈ + ଶାନବ୍।

୩। ସେ ତଥେ ……………………………………………… ବୃରିଂ କଳ୍ପୟାଗୀତି।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ଅହନି = ଦିନରେ । ନିଶାମୁଖେ = ସନ୍ଧ୍ୟାରେ । ଗୁରୁକୁଳମ୍ = ଗୁରୁଗୃହକୁ । ଆଗମ୍ୟ = ଆସି । ପୁରତଃ ସମ୍ମୁଖରେ । ପୀବାନମ୍ = ହୃଷ୍ଟପୁଷ୍ଟ । କଳ୍ପୟସି = କରୁଛି । ପ୍ରତ୍ୟଭାଷିତ = ଉତ୍ତର ଦେଲା । ନିବେଦ୍ୟ = ଦେଇସାରି । ଅପରଂ ଚରାମି = ପୁଣିଥରେ ଭିକ୍ଷା କରୁଛି ।

ଅନୁବାଦ – ସେ ତାହାହିଁ ହେଉ କହି ପୁଣି ଗାଈମାନଙ୍କୁ ରଖିଲେ । ଦିନରେ ଗାଈ ଚରାଇ ସନ୍ଧ୍ୟାରେ ଗୁରୁଙ୍କ ଘରକୁ ଆସି ତାଙ୍କ ଆଗରେ ଉପସ୍ଥିତ ହୋଇ ନମସ୍କାର କଲେ । ତଥାପି ଗୁରୁ ତାଙ୍କୁ ହୃଷ୍ଟପୁଷ୍ଟ ହୋଇଥିବାର ଦେଖୁ କହିଲେ । ମୁଁ ତ’ ତୁମର ସବୁ ଭିକ୍ଷାନ୍ନକୁ ନେଇଯାଉଛି, ବର୍ତ୍ତମାନ କିପରି ଜୀବିକା ନିର୍ବାହ କରୁଛ । ସେ (ଉପମନ୍ୟୁ) ଉପାଧ୍ୟାୟଙ୍କୁ ଉତ୍ତର ଦେଲେ– ଆପଣଙ୍କୁ ପ୍ରଥମେ ଭିକ୍ଷାନ୍ନ ଦେଇସାରି ଦ୍ବିତୀୟଥର ଭିକ୍ଷା କରୁଛି, ସେଥ‌ିରେ ହିଁ ଜୀବିକା ନିର୍ବାହ କରୁଛି ।

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 1 ଉପମନ୍ୟୁକଥା

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ତଥେତ୍ୟୁଲ୍କା = ତଥା + ଇତି + ଉକ୍ସା । ପୁନରରକ୍ଷଦ୍ଧା = ପୁନଃ + ଅରକ୍ଷତ୍ + ଗା । ନମଷ୍ଟକ୍ରେ = ନମଃ + ଚକ୍ରେ । ତମୁପାଧ୍ୟାୟସ୍ତଥାପି = ତମ୍ + ଉପାଧ୍ୟାୟଃ + ତଥାପି । ଦୃଷ୍ଟୋବାଚ = ଦୃଷ୍ଟା + ଉବାଚ । ସର୍ବମଶେଷତସ୍ତେ = ସର୍ବମ୍ + ଅଶେଷତଃ + ତେ । କେନେଦାନୀମ୍ = କେନ + ଇଦାନୀ । ପ୍ରତ୍ୟଭାଷତ = ପ୍ରତି + ଅଭାଷତ । ପୂର୍ବମପରମ୍ = ପୂର୍ବମ୍ + ଅପରମ୍ ।

ସମାସ – ନିଶାମୁଖେ = ନିଶାୟୀ ମୁଖମ୍ବ, ତସ୍ମିନ୍ (୬ଷ୍ଠୀ ତତ୍) । ଗୁରୁକୁଳମ୍ = ଗୁରୋ କୁଳମ୍, ତତ୍ (୬ଷ୍ଠୀ ତତ୍)।

ସକାରଣ ବିଭକ୍ତି – ଅହନି = ଅଧୀକରଣେ ୭ମୀ । ନିଶାମୁଖେ = ଅଧ୍ଵରଣେ ୭ମୀ । ଗୁରୁକୁଳମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା । ଗୁରୋ = ‘ପୁରତଃ’ ଯୋଗେ ୬ଷ୍ଠୀ । ପୀବାନମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା । ଭୈକ୍ଷ୍ୟମ୍‌ = କର୍ମଣି ୨ୟା । ବୃଷ୍ଟିମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା । ଉପାଧ୍ୟାୟମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା । ଭଗବତେ = ନିବେଦନାର୍ଥେ ୪ ର୍ଥୀ । ତେନ = କରଣେ ୩ୟା ।

ପ୍ରକୃତି ପ୍ରତ୍ୟୟ – ଉଲ୍କା = ବଚ୍ + କ୍ଵାଡ୍ । ରକ୍ଷିତ୍ରା = ରକ୍ଷ୍ + ସ୍କାଚ୍ । ଆଗମ୍ୟ = ଆ + ଗମ୍ + ଲ୍ୟାପ୍ । ଭିତ୍ରା = ସ୍ଥା + କ୍ଵାଚ୍ । ଦୃଷ୍ଟା = ଦୃଶ୍ + କ୍ସାଚ୍ । ବୃରିମ୍ = ବୃତ୍ + ସ୍କ୍ରିନ୍ । ଉକ୍ତ = ବଚ୍ + କ୍ତ । ନିବେଦ୍ୟ = ନି + ବିଦ୍ + ଲ୍ୟାପ୍ ।

୪। ତମୁପାଧ୍ୟାୟଃ ……………………………….. ବୃରିଂ କଳ୍ପୟାମୀତି।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ପ୍ରତ୍ୟବଦତ୍ = କହିଲେ । ନ୍ୟାଯ୍ୟା = ନ୍ୟାୟସଙ୍ଗତ । ବୃତ୍ୟୁପରୋଧମ୍ = ଜୀବିକା ବାଧା । ଲୁବ୍ଧ ଲୋଭୀ । ପୟସା = ଦୁଗ୍ଧଦ୍ବାରା ।

ଅନୁବାଦ – ଗୁରୁ ତାଙ୍କୁ କହିଲେ । ଏହା ନ୍ୟାୟସଙ୍ଗତ ନୁହେଁ, କାରଣ ଏହାଦ୍ଵାରା ଭିକ୍ଷାବୃତ୍ତିକୁ ଜୀବିକାକରି ଚଳୁଥିବା ଲୋକମାନଙ୍କର ଭୋଜନରେ ବାଧାଦେଇ ବର୍ତ୍ତମାନ ତୁମେ ଲୋଭୀ ହୋଇଯାଉଛି । ସେ ସେପରି ଆଉ କରିବ ନାହିଁ ବୋଲି କହି ଓ ଗାଈ ରଖ୍ ପୁଣି ଗୁରୁଙ୍କ ଘରକୁ ଆସି ତାଙ୍କ ଆଗରେ ଠିଆହୋଇ ନମସ୍କାର କଲେ । ଗୁରୁ ବି ତାଙ୍କୁ ହୃଷ୍ଟପୁଷ୍ଟ ଥ‌ିବା ଦେଖୁ ପୁଣି କହିଲେ – ହେ ବସ ଉପମନ୍ୟୁ ! ମୁଁ ତୁମର ସବୁ ଭିକ୍ଷାନ୍ନ ଗ୍ରହଣ କରୁଛି, ତମେ ମଧ୍ଯ ପୁନଶ୍ଚ ଆଉ ଭିକ୍ଷା କରୁନାହଁ, ତଥାପି ହୃଷ୍ଟପୁଷ୍ଟ ଅଛ, କିପରି ଆହାର କରୁଛ । ଗୁରୁ ଏପରି କହିବାରୁ ସେ ପ୍ରତ୍ୟୁତ୍ତର ଦେଲେ – ହେ ଗୁରୁଦେବ ! ଏହି ଗାଈମାନଙ୍କ କ୍ଷୀରଦ୍ଵାରା ଆହାର ବ୍ୟବସ୍ଥା କରୁଛି ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ଗୁରୁବୃତ୍ତିରନ୍ୟଷାମପି = ଗୁରୁବୃତିଃ + ଅନ୍ୟଷାମ୍ + ଅପି । ବୃତ୍ୟୁପରୋଧମ୍ = ବୃଦ୍ଧି + ଉପରୋଧମ୍ । କରୋଷୀତ୍ୟବମ୍ = କରୋଷି + ଇତି + ଏବମ୍ । ଲୁଷୋଽସୀତି = ଲୁନଃ + ଅସି + ଇତି । ତଥେଷ୍ଟ୍ରାକ୍ସା = ତଥା + ଇତି + ଉଲ୍କା । ଅରକ୍ଷଦ୍ରକ୍ଷିତ୍ମା = ଅରକ୍ଷତ୍ + ରକ୍ଷିତ୍ୱ । ପୁନରୁପାଧ୍ୟାୟଗୃହମାଗମ୍ୟୋପାଧ୍ୟାୟସ୍ୟାଗ୍ରତଃ = ପୁନଃ + ଉପାଧ୍ୟାୟଗୃହମ୍ + ଆଗମ୍ୟ +ଉପାଧ୍ୟାୟସ୍ୟ + ଅଗ୍ରତଃ । ତମୁପାଧ୍ୟାୟସ୍ତଥାପି = ତମ୍ + ଉପାଧ୍ୟାୟଃ + ତଥାପି । ପୁନରୁବାଚ = ପୁନଃ + ଉବାଚ । ଚାନ୍ୟଳରସି = `ଚ + ଅନ୍ୟତ୍ + ଚରସି ।

ସମାସ – ଭୈର୍ଯ୍ୟୋପଜୀବିନାମ୍ = ଭୈକ୍ଷେଣ ଉପଜୀବନ୍ତ ଯେ, ତେଷାମ୍ (ଉପପଦ ତତ୍) । ବୃତ୍ୟୁପରୋଧମ୍ = ବୃତ୍ତୀ ଉପରୋଧଃ, ତମ୍ (୬ଷ୍ଠ ତତ୍) ।

ସକାରଣ ବିଭକ୍ତି – ଭୈକ୍ଷ୍ୟାପଜୀବିନାମ୍ = ଶେଷେ ୬ଷ୍ଠୀ । ବୃତ୍ୟୁପରୋଧମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା । କେନ = କରଣେ ୩ୟା । ଗବାମ୍ = ଶେଷ ୬ଷ୍ଠୀ । ପୟସା = କରଣେ ୩ୟା ।

ପ୍ରକୃତି ପ୍ରତ୍ୟୟ – ଉପରୋଧଃ = ଉପ + ରୁଧ୍ + ଘଞ୍ଚ । ବର୍ତ୍ତମାନଃ = ବୃତ୍ + ଶାନଚ୍ । ଲୁବ୍ଧ = ଲୁଭ୍ + କ୍ତ । ଉତ୍ଥା = ବଚ୍ + ଷ୍ଟାଚ୍ । ଦୃଷ୍ଟା = ଦୃଶ୍ + କ୍ଵାଚ୍ । ଜୀବା = ପୈ + କ୍ବନିସ୍‌ ।

୫ । ତମୁବାଚୋପାଧ୍ୟାୟୋ …………………………….. ବୃରିଂ କୟସୀତି ।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ଉପଭୋକ୍ତ୍ରମ୍ = ପିଇବାକୁ । ଅଭ୍ୟନୁଜ୍ଞାତମ୍ = ଅନୁମତିପ୍ରାପ୍ତ । ପ୍ରତିଜ୍ଞାୟ = ପ୍ରତିଜ୍ଞାକରି । ନମଶ୍ଚକ୍ର = ନମସ୍କାର କଲେ । ଅଶ୍ବାସି = ଖାଉଛ । ଚରସି = କରୁଛ । ପୟ = କ୍ଷୀର । ଭୃଶମ୍ = ଅତ୍ୟନ୍ତ ।

ଅନୁବାଦ – ଗୁରୁ ତାଙ୍କୁ କହିଲେ – ମୋଠାରୁ ଅନୁମତି ନପାଇ ତୁମର କ୍ଷୀର ପିଇବା ଉଚିତ ନୁହେଁ । ସେ ସେପରି ଆଉ ହେବନାହିଁ ବୋଲି ପ୍ରତିଜ୍ଞାକରି ଗାଈରଖ୍ ପୁନର୍ବାର ଗୁରୁଙ୍କ ଗୃହକୁ ଆସି ତାଙ୍କ ସମ୍ମୁଖରେ ଠିଆହୋଇ ନମସ୍କାର କଲେ । ଗୁରୁ ତାଙ୍କୁ ହୃଷ୍ଟପୁଷ୍ଟ ଥ‌ିବା ଦେଖ୍ କହିଲେ – ହେ ବତ୍ସ ଉପମନ୍ୟୁ ! ଭିକ୍ଷାନ୍ନ ଖାଉନାହଁ, ପୁନର୍ବାର ଭିକ୍ଷାଚରଣ କରୁନାହଁ, କ୍ଷୀର ବି ପିଉନାହଁ, ପୁଣି ସୁସ୍ଥସବଳ ରହିଛ, ବର୍ତ୍ତମାନ କିପରି ଜୀବନ କଟାଉଛି ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ନୈତନ୍ୟାଯ୍ୟମ୍ = ନ + ଏତତ୍ + ନ୍ୟାଯ୍ୟମ୍‌ । ନାଭ୍ୟନୁଜ୍ଞାତମିତି = ନ + ଅଭି + ଅନୁଜ୍ଞାତମ୍ + ଇତି । ପୁନରୁପାଧ୍ୟାୟଗୃହମୁପେତ୍ୟ = ପୁନଃ + ଉପାଧ୍ୟାୟଗୃହମ୍ + ଉପେତ୍ୟ । ଗୁରୋରଗ୍ରତଃ = ଗୁରୋ + ଅଗ୍ରତଃ । ଦୃଷ୍ଟୋବାଚ = ଦୃଷ୍ଟା + ଉବାଚ । ନାମ୍ନାସି = ନ + ଅଶ୍ୱାସି । ଚାନ୍ୟଚ୍ଚରସି = ଚ + ଅନ୍ୟତ୍ + ଚରସି । କେନେଦାନୀମ୍ = କେନ + ଇଦାନୀମ୍ ।

ସମାସ – ଉପାଧ୍ୟାୟଗୃହମ୍ = ଉପାଧ୍ୟାୟସ୍ୟ ଗୃହମ୍ (୬ଷ୍ଠ ତତ୍) ।

ସକାରଣ ବିଭକ୍ତି – ଗୁରୋ = ‘ଅଗ୍ରତ’ ଯୋଗେ ୬ଷ୍ଠୀ । ଉପାଧ୍ୟାୟ = ଉକ୍ତ କର୍ଭରି ୧ ମା । ଭୈକ୍ଷ୍ୟମ୍‌ = କର୍ମଣି ୨ୟା । କେନ = କରଣେ ୩ୟା । ମୟା = ଅନୁସ୍ତେ କଉଁରି ୩ୟା । ଭବତଃ = କୃଷ୍ଣକର୍ମଣୋ ୬ଷ୍ଠୀ ।

ପ୍ରକୃତି ପ୍ରତ୍ୟୟ – ଉପଭୋକ୍ତମ୍ = ଉପ + ଭୁଜ୍ + ତୁମୁନ୍ । ଅଭ୍ୟନୁଜ୍ଞାତମ୍ = ଅଭି + ଅନୁ + ଜ୍ଞା + କ୍ତ । ପ୍ରତିଜ୍ଞାୟ = ପ୍ରତି + ଜ୍ଞା + ଲ୍ୟାପ୍ । ଉପେତ୍ୟ = ଉପ + ଇଣ୍ + ଲ୍ୟାପ୍ ।

୬ । ସ ଏବମୁକ୍ତ …………………… ଫେନିଂ ନୋପଯୁକ୍ତ ।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ଫେନମ୍ = ଫେଣକୁ । ବୟଃ = ବାଛୁରିମାନେ । ଉଦ୍‌ଗିରନ୍ତି = ପାଟିରୁ ବାହାର କରିଦେଉଛନ୍ତି । ତ୍ୱଦନୁକମ୍ପୟା = ତୁମଠାରେ ଦୟାହେତୁ । ଗୁଣବତଃ = ଗୁଣୀ । ପ୍ରଭୂତିତରମ୍ = ପ୍ରଚୁରତର । ପାତୁମ୍ = ପିଇବାକୁ । ଅର୍ହତି = ସମର୍ଥ ଅଟ । ପ୍ରତିଶ୍ରୁତ୍ୟ = ପ୍ରତିଶ୍ରୁତି ଦେଇ । ନିରାହାରଃ = ଆହାରଶୂନ୍ୟ ହୋଇ । ନ ଉପଭୁକ୍ତ = ପିଇଲେ ନାହିଁ ।

ଅନୁବାଦ – ତାଙ୍କୁ ଏପରି କହିବାରୁ ସେ ଗୁରୁଙ୍କୁ ଉତ୍ତର ଦେଲେ – ‘ହେ ଗୁରୁଦେବ ! ବାଛୁରିମାନେ ମା’ ସ୍ତନରୁ ଯେଉଁ ଫେଣ ବାହାର କରୁଛନ୍ତି ମୁଁ ତାକୁ ହିଁ ପିଉଛି । ଗୁରୁ ତାଙ୍କୁ କହିଲେ – ଏହି ଦୟାଶୀଳ ବାଛୁରିମାନେ ତୁମଠାରେ କୃପାହେତୁ ପ୍ରଚୁରତର ଫେଣ ବାହାର କରୁଛନ୍ତି । ତେଣୁ ତୁମେ ବର୍ତ୍ତମାନ ବାଛୁରିମାନଙ୍କର କ୍ଷୀରପାନରେ ବାଧା ସୃଷ୍ଟି କରୁଥିବାରୁ ଫେଣ ପିଇବା ବି ଉଚିତ ନୁହଁ । ସେ ସେପରି ଆଉ କରିବ ନାହିଁ ବୋଲି ପ୍ରତିଶ୍ରୁତି ଦେଇ ଉପବାସରେ ଗାଈ ରଖିବାକୁ ଲାଗିଲେ । ଏହିପରି ଗୁରୁ ତାଙ୍କୁ ସବୁଥୁରୁ ନିଷେଧ କରନ୍ତେ ସେ ଭିକ୍ଷାନ୍ନ ଖାଇଲେ ନାହିଁ, ପୁନର୍ବାର ଭିକ୍ଷାଚରଣ କଲେନାହିଁ, କ୍ଷୀରପାନ କଲେ ନାହିଁ କି ଫେଣ ମଧ୍ୟ ଗ୍ରହଣ କଲେନାହିଁ ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ଯମିମେ = ଯମ୍ + ଇମେ । କରୋଷେବମ୍ = କରୋଷି + ଏବମ୍ । ପାତୁମର୍ହତୀତି = ପାତୁମ୍ + ଅର୍ହତି + ଇତି । ପୁନରରକ୍ଷଦ୍‌ଗା = ପୁନଃ + ଅରକ୍ଷତ୍ + ଗା । ଚାନ୍ୟଚ୍ଚରତି = ଚ + ଅନ୍ୟତ୍ + ଚରତି ।

ସମାସ – ତ୍ୱଦନୁକମ୍ପୟା = ତ୍ଵୟି ଅନୁକମ୍ପା, ତୟା (୭ମୀ ତତ୍) । ନିରାହାରଃ = ନାସ୍ତି ଆହାରଃ ଯସ୍ୟ ଡଃ (ନଡ୍ ବହୁବ୍ରୀହିଃ) ।

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 1 ଉପମନ୍ୟୁକଥା

ସକାରଣ ବିଭକ୍ତି – ଉକ୍ତ = ଉକ୍ତ କର୍ମଣି ୧ ମା । ବସ୍ତା = କଉଁରି ୧ ମା । ମାତୃଣାମ୍ = ଶେଷେ ୬ଷ୍ଠୀ । ସ୍ତନାତ୍ = ଅପାଦାନେ ୫ମୀ । ତ୍ୱଦନୁକମ୍ପୟା = ହେତୌ ୩ୟା । ଗୁଣବତଃ = କର୍ଭରି ୧ମା । ପ୍ରଭୂତତରମ୍ = କ୍ରିୟାବିଶେଷଣେ ୨ୟା । ବସ୍ତ୍ରାନାମ୍ = ଶେଷ ୬ଷ୍ଠୀ । ନିରାହାରଃ = କଉଁରି ୧ ମା । ଗା = କର୍ମଣି ୨ୟା ।

ପ୍ରକୃତି ପ୍ରତ୍ୟୟ – ଉକ୍ତ = ବଚ୍ + କ୍ତ । ପାତୁମ୍ = ପା + ତୁମୁନ୍ । ପ୍ରତିଶୃତ୍ୟ = ପ୍ରତି + ଶୁ + ଲ୍ୟାପ୍ । ପ୍ରତିସିଦ୍ଧ = ପ୍ରତି + ସିଧ୍ + କ୍ତ । ବର୍ତ୍ତମାନଃ = ବୃତ୍ + ଶାନଚ୍ ।

୭। ସ କଦାଚିଦରଣ୍ୟ ……………………………. ବତ୍ସ ଏହୀତି।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – କ୍ଷୁଧାରଃ = କ୍ଷୁଧାତୁର ହୋଇ । ଅର୍କପତ୍ରାଣି ଅରଖପତ୍ର ଗୁଡ଼ିକୁ । ଅଭକ୍ଷୟତ୍ = ଖାଇଲେ । କ୍ଷାରତିକ୍ତକଟୁରୁକ୍ଷୌ = ଖାରିଆ, ପିତା, ଖଟା ଓ କଡ଼ା ହୋଇଥିବା । ଚକ୍ଷୁସା = ଆଖ୍ । ଉପହତଃ = ନଷ୍ଟ ହୋଇଯିବାରୁ । ଅନାଗତ = ନ ଆସନ୍ତେ । ଅସ୍ତାଚଳାବଲମ୍ବିନି = ଅସ୍ତ ହୁଅନ୍ତେ । ନିୟତମ୍ = ନିଶ୍ଚିତ । କୁପିତଃ = ରାଗି । ଚିରଗତଃ = ବହୁ ସମୟ ହେଲା ଯାଇଥିବା । ଅନ୍ଵେଷୟ = ଖୋଜ । ଆହ୍ଵାନାୟ = ଡାକିବାକୁ ।

ଅନୁବାଦ – ସେ କୌଣସି ଏକ ଦିନେ ବନରେ କ୍ଷୁଧାତୁର ହୋଇ ଅରଖପତ୍ରଗୁଡ଼ିକୁ ଭକ୍ଷଣ କଲେ । ସେହି ଖାରିଆ, ପିତା, ଖଟା ଓ କଡ଼ା ଅରଖପତ୍ର ଭକ୍ଷଣଦ୍ଵାରା ତାଙ୍କ ଆଖ୍ ନଷ୍ଟ ହୋଇଯିବାରୁ ସେ ଅନ୍ଧ ହୋଇଗଲେ । ତା’ପରେ ଅନ୍ଧହୋଇ ବୁଲୁବୁଲୁ କୂଅରେ ପଡ଼ିଗଲେ । ଏହାପରେ ସୂର୍ଯ୍ୟ ଅସ୍ତ ହୁଅନ୍ତେ, ସେ ନ ଆସନ୍ତେ ଗୁରୁ ଅନ୍ୟ ଶିଷ୍ୟମାନଙ୍କୁ କହିଲେ – ମୁଁ ଉପମନ୍ୟୁକୁ ସବୁଥୁରୁ ବାରଣ କଲି । ଏଣୁ ସେ ନିଶ୍ଚୟ ରାଗିକରି ବହୁବେଳୁ ଗଲେ ମଧ୍ୟ ଆସୁନାହିଁ । ତେଣୁ ତୁମ୍ଭେମାନେ ତାଙ୍କୁ ଅନ୍ଵେଷଣ କର । ଏହା କହି ଶିଷ୍ୟମାନଙ୍କ ସହ ବନକୁ ଯାଇ ତାଙ୍କୁ ଡାକିଲେ – ହେ ବସ ଉପମନ୍ୟୁ ! କେଉଁଠି ଅଛ ? ଆସ ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – କ୍ଷୁଧାର୍ଭୋଽର୍କପତ୍ରାଣ୍ୟଭକ୍ଷୟତ୍ = କ୍ଷୁଧାରଃ + ଅର୍କପତ୍ରାଣି + ଅଭକ୍ଷୟତ୍ । ତୈରର୍କପତ୍ରୈର୍ଭକ୍ଷିତିଃ = ତିଃ + ଅର୍କପତ୍ରେ + ଭକ୍ଷିତଃ । ସୋଽନ୍ଦୋଽପି = ଧଃ + ଅଧଃ + ଅପି । ତସ୍ମିନ୍ନନାଗଚ୍ଛତି = ତସ୍ମିନ୍ + ନ + ଅନାଗଚ୍ଛତି । ଶିଷ୍ୟାନବଦଦୁପାଧ୍ୟାୟଃ = ଶିଷ୍ୟାନ୍ + ଅବଦତ୍ + ଉପାଧ୍ୟାୟ । ଚିରଗତସୌ = ଚିରଗତଃ + ତୁ + ଅସୌ । ଏହୀତି = ଆ + ଇହି + ଇତି ।

ସମାସ – କ୍ଷୁଧାରଃ = କ୍ଷୁଧୟା ଆନ୍ତଃ (୩ୟା ତତ୍ତ୍ଵ) । ଅର୍କପତ୍ରାଣି = ଅର୍କସ୍ୟ ପତ୍ରାଣି, ତାନି (୬ଷ୍ଠୀ ତତ୍) । କ୍ଷାରତିକ୍ତକଟୁରୁକ୍ଷୌ = କ୍ଷାରାଣି ଚ ତିକ୍ତାନି ଚ କଟୁନି ଚ ରୁକ୍ଷାଣି ଚ ତିଃ (ଦ୍ବନ୍ଦ୍ବ) । ଅନାଗତ = ନ ଆଗତଃ, ତସ୍ମିନ୍ (ନଡ୍ ତତ୍) । ଅସ୍ତାଚଳାବଲମ୍ବିନି = ଅସ୍ତାଚଳମ୍ ଅବଲମ୍ବତେ ଇତି, ତସ୍ମିନ୍ (ଉପପଦ ତତ୍) । ଚିରଗତଃ = ଚିରଂ ଗତଃ (୨ୟା ତତ୍)।

ସକାରଣ ବିଭକ୍ତି – ଅରଣ୍ୟ = ଅଧୂକରଣେ ୭ମୀ । ଅର୍କପତ୍ରାଣି = କର୍ମଣି ୨ୟା । ଭକ୍ଷିତଃ = ଅନୁନ୍ତେ କଉଁରି ୩ୟା । ଚକ୍ଷୁଷା = ଅଙ୍ଗବିକାରେ ୩ୟା । ଅନାଗତେ = ଭାବେ ୭ମୀ । ଶିଷ୍ୟ = ‘ସାନ୍ଧ୍ୟମ୍’ ଯୋଗେ ୩ୟା ।

ପ୍ରକୃତି ପ୍ରତ୍ୟୟ – ଆନ୍ତଃ = ଆ + ଋ + କ୍ତ । ଭକ୍ଷିତଃ = ଭକ୍ଷ୍ + କ୍ତ । ଉପହତଃ = ଉପ + ହନ୍ + କ୍ତ । ଗଚ୍ଛନ୍ = ଗମ୍ + କ୍ତ । ଉଲ୍କା = ବଚ୍ + କ୍ଵାଚ୍ । ଗଣ୍ଠି = ଗମ୍ + କ୍ଵାଚ୍ ।

୮। ସ ଉପାଧ୍ୟାୟସ୍ୟାହ୍ଵାନବଚନଂ …………………….. କୂପେ ପତିତ ଇତି।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ଶୁଦ୍ଧା = ଶୁଣି । ଭୂପେ = କୂଅରେ । ପ୍ରତ୍ୟୁବାଚ = ପ୍ରତ୍ୟୁତ୍ତର ଦେଲେ । ଭକ୍ଷୟିତ୍ୱ = ଖାଇ । ଚଂକ୍ରମ୍ୟମାତଃ = ଯାଉଯାଉ ।

ଅନୁବାଦ – ସେ ଗୁରୁଙ୍କର ଡାକିବା କଥା ଶୁଣି ଜୋର୍‌ରେ ପ୍ରତ୍ୟୁତ୍ତର ଦେଲା – ମୁଁ ଏହି କୂଅରେ ପଡ଼ିଯାଇଛି । ଗୁରୁ ତାଙ୍କୁ ପଚାରିଲେ – ତୁମେ ଏ କୂଅରେ କିପରି ପଡ଼ିଲ । ସେ ଗୁରୁଙ୍କୁ ଉତ୍ତରଦେଲେ – ଅରଖପତ୍ରଗୁଡ଼ିକୁ ଖାଇ ଚକ୍ଷୁଦ୍ଵୟ ଅନ୍ଧ ହୋଇଯିବାରୁ ମୁଁ ଯାଉ ଯାଉ କୂଅରେ ପଡ଼ିଗଲି ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ପ୍ରତ୍ୟୁବାଚୋଭୈରୟମସ୍କିନ୍ = ପ୍ରତ୍ୟୁବାଚ + ଉଚ୍ଚୈଃ + ଅୟମ୍ + ଅଶ୍ବିନ୍ । ପତିତୋଽହେମିତି = ପତିତଃ + ଅହମ୍ + ଇତି ।

ସମାସ – ଅର୍କପତ୍ରାଣି = ଅର୍କସ୍ୟ ପତ୍ରମ୍, ତାନି (୬ଷ୍ଠ ତତ୍) ।

ସକାରଣ ବିଭକ୍ତି – ରୂପେ = ଅଧିକରଣେ ୭ମୀ ।

ପ୍ରକୃତି ପ୍ରତ୍ୟୟ – ବଚନମ୍ = ବଚ୍ + ଲ୍ୟୁଟ୍ । ଶୁଦ୍ଧା = ଶୁ + କ୍ଳାବ୍ । ପତିତଃ = ପତ୍ + କ୍ତ । ଭକ୍ଷୟିତ୍ରା = ଭକ୍ଷ୍ + ଣିଚ୍ + କ୍ସାଚ୍ ।

୯ । ତମ୍ବୁପାଧ୍ୟାୟଃ …………………….. ତେଽପୂପୋଽଶାନୈନମିତି।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ଅଶ୍ୱିନୌ = ଅଶ୍ୱିନୀକୁମାରଦ୍ଵୟଙ୍କୁ । ସ୍ତୁତୟଃ = ସ୍ତୁତିକର । ଦେବଭିଷଜୌ = ଦେବବୈଦ୍ୟ ଦୁହେଁ । ଚକ୍ଷୁଷ୍ମନ୍ତମ୍ = ନେତ୍ରବନ୍ତ । ଶକ୍ଳୋମି = ସମର୍ଥ । ଶରଣ୍ୟ = ଶରଣାଗତ । ଅପୂପମ୍ = ପିଠାକୁ ।

ଅନୁବାଦ – ଗୁରୁ ତାଙ୍କୁ କହିଲେ – ହେ ବତ୍ସ ! ଅଶ୍ବିନୀକୁମାରଦ୍ଵୟଙ୍କୁ ପ୍ରାର୍ଥନା କର । ସେ ଦେବ ବୈଦ୍ୟଦୁହେଁ ତୁମକୁ ନେତ୍ରବନ୍ତ କରିଦେବେ । ଗୁରୁ ତାଙ୍କୁ ଏପରି କୁହନ୍ତେ ଉପମନ୍ୟୁ ଅଶ୍ବିନୀକୁମାରଦ୍ଵୟଙ୍କୁ ସ୍ତୁତି ଆରମ୍ଭ କଲେ । ଆପଣ ଦୁହିଁଙ୍କୁ ସ୍ତୁତି କରିବାକୁ ମୁଁ ଅସମର୍ଥ । ଚକ୍ଷୁବିହୀନ ଅନ୍ଧହୋଇ ଏହି ଦୁର୍ଗରୂପକ କୂଅରେ ପଡ଼ିଛି । ଶରଣାଗତ ତୁମ ଦୁହିଁଙ୍କ ଶରଣାପନ୍ନ ହେଲି । ଏହିପରି ବଚନରେ ସ୍ତୁତିକରିବାରୁ ସେ ଅଶ୍ବିନୀକୁମାରଦ୍ଵୟ ସନ୍ତୁଷ୍ଟ ହୋଇ କହିଲେ – ଆମ୍ଭେ ତୁମ ଉପରେ ପ୍ରସନ୍ନ ହେଲୁ, ଏହି ପିଠାଟିକୁ ଖାଅ ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – କର୍ରାରାବିତି = କର୍ତ୍ତାରୌ + ଇତି । ସ୍ତୋତୁମୁପଚକ୍ରମେ = ସ୍ତୋତୁମ୍ + ଉପଚକ୍ରମେ । ଦେବାବର୍ଣ୍ଣନୌ = ଦେବେ। + ଅଶ୍ବିନୌ । ପତିତୋଽସ୍ମି = ପତିତଃ + ଅସ୍ଥି । ଏବମାଦିଭିର୍ବଚନୈସ୍ତେନାଭିଷ୍ଣୁତାବଶ୍ଵନାବାଜଗତୁରାହତୁଃ : ଏବମ୍ + ଆଦିଭଃ + ବଚନିଃ + ତେନ + ଅଭିଷ୍ଟୋ + ଏତୌ + ଅଶ୍ୱିନୌଆଜଗତୁଃ + ଆହତୁଃ । ତେଽପୂପୋଽଶାନୈନମିତି = ତେ + ଅପୂରଃ + ଅମ୍ଳାନେ + ଏନମ୍ + ଇତି ।

ସମାସ – ଦେବଭିଷ = ଦେବାନାଂ ଭିଷକ୍, ଚୌ (୬ଷ୍ଠୀ ତତ୍) ।

ସକାରଣ ବିଭକ୍ତି – ଅଶ୍ୱିନୌ = କର୍ମଣି ୨ୟା । ଦେବଭିଷଜୌ = କର୍ଭରି ୧ମ । ଚକ୍ଷୁଷ୍ମନ୍ତମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା । କୂପେ, ଦୁର୍ଗେ = ଅଧୂକରଣେ ୭ମୀ । ବଚନିଃ, ତେନ = କରଣେ ୩ୟା ।

ପ୍ରକୃତି ପ୍ରତ୍ୟୟ – ଚକ୍ଷୁଷ୍ମନ୍ତମ୍ = ଚକ୍ଷୁସ୍ + ମତୃପ୍ । ଉକ୍ତ = ବଚ୍ + କ୍ତ । ସ୍ତୋତୁମ୍ = ସ୍ତୁ + ତୁମୁନ୍ । ପ୍ରପଦ୍ୟ = ପ୍ର + ପଦ୍ + ଲ୍ୟାପ୍ ।

୧୦ । ସ ଏବମୁକ୍ତା …………………………………….. ଗୁରବେ ଽପୂପମୁପଯୋଲ୍ସମିତି।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ଅନ୍ନତ = ମିଥ୍ୟା । ଅପୂପମ୍ = ପିଠାକୁ । ଉତ୍ସହେ = ନେବାକୁ । ପ୍ରତ୍ୟନୁନୟନେ = ପ୍ରତିଅନୁନୟଦ୍ୱାରା । ଗୁରବେ = ଗୁରୁଙ୍କୁ ।

ଅନୁବାଦ – ସେ ଏପରି କୁହନ୍ତେ ଉପମନ୍ୟୁ କହିଲେ – ହେ ଭଗବନ୍, ସତ କୁହନ୍ତୁ, ମୁଁ କିନ୍ତୁ ଏହି ପିଠାଟିକୁ ଗୁରୁଙ୍କୁ ନଜଣାଇ ଖାଇବି ନାହିଁ । ତା’ପରେ ତାଙ୍କୁ ଅଶ୍ବିନୀକୁମାରଦ୍ଵୟ କହିଲେ – ଆମ୍ଭେ ଦୁହେଁ ତୁମ ସମ୍ମୁଖରେ ଗୁରୁଙ୍କଦ୍ୱାରା ଅଭିଷ୍ଟହୋଇ ପିଠା ଦେଉଛୁ । ତୁମେ ଗୁରୁଙ୍କୁ ନ ଜଣାଇ ତାହା ଗ୍ରହଣ କର । ତୁମେ ମଧ୍ୟ ତାହା କରିବ ଯାହା ଗୁରୁଙ୍କଦ୍ୱାରା କୁହାଯାଇଛି । ସେ ଏପରି କହନ୍ତେ ଉପମନ୍ୟୁ ଉତ୍ତରଦେଲେ – ଏପରି ଆପଣଙ୍କ ଅନୁନୟରେ ମୁଁ ଗୁରୁଙ୍କୁ ନ ଜଣାଇ ଏ ପିଠାକୁ ନ ଖାଇ ଗ୍ରହଣ କରୁଛି ।

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ– ନାନୃତମୂଚତୁର୍ଭଗବରୌ = ନ + ଅମୃତମ୍ + ଉଚତୁଃ + ଭଗବର୍ଷେ । ଗୃହମେତମପୂପମୁପଯୋଲୁମୁସହେ = ତୁ + ଅହମ୍ + ଏତମ୍ + ଅପୂପମ୍ + ଉପଯୋକ୍ଟ୍ରମ୍ + ଉତ୍ସହେ । ତତସ୍ତମଶ୍ବିନାଦୂଚତୁଃ = ତତଃ + ତମ୍ + ଅଶ୍ୱିନୌ + ଉଚତୁଃ । ଉପଯୁକ୍ତସ୍ପେନ = ଉପଯୁକ୍ତ + ତେନ । ଭବନ୍ତାବର୍ଣ୍ଣିନୌ = ଭବନୌ + ଅଶ୍ବିନୌ ।

ସମାସ – ଅନିବେଦ୍ୟ = ନ ନିବେଦ୍ୟ (ନଞ୍ଚ୍ ତତ୍) ।

ସକାରଣ ବିଭକ୍ତି – ଅପୂପମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା । ଗୁରବେ = ନିବେଦନାର୍ଥେ ୪ ର୍ଥୀ । ଭବତଃ = ପୁରସ୍ତାତ୍ ଯୋଗେ ୬ଷ୍ଠୀ । ତେନ = ଅନୁନ୍ତେ କଉଁରି ୩ୟା । ଅନୁନୟେ = ଭାବେ ୭ମୀ ।

ପ୍ରକୃତି ପ୍ରତ୍ୟୟ – ଉକ୍ତ = ବଚ୍ + କ୍ତ । ଉପଯୋଲୁମ୍ = ଉପ + ଯୁଜ୍ + ତୁମୁନ୍ । ଅନିବେଦ୍ୟ = ଅ + ନି + ବିଦ୍ + ଲ୍ୟାପ୍ । ଦତ୍ତ = ଦା + କ୍ତ । ଉପଯୁକ୍ତ = ଉପ + ଯୁଜ୍ + କ୍ତ ।

୧୧ । ତମଶ୍ଚିନାବାହତୁଃ …………………………… ଧର୍ମଶାସ୍ତ୍ରାଣୀତି।

ଶବ୍ଦାର୍ଥ – ଆବହତୁ = କହିଲେ । ଗୁରୁଭଲ୍ୟା = ଗୁରୁଭକ୍ତିଦ୍ୱାରା । ଚକ୍ଷୁଷ୍ମାନ୍ = ଚକ୍ଷୁଯୁକ୍ତ । ଶ୍ରେୟଃ = କଲ୍ୟାଣ ବା ମଙ୍ଗଳ। ଲବ୍ଧଚକ୍ଷୁଃ = ଚକ୍ଷୁଲାଭ କଲେ । ଉପାଧ୍ୟାୟସକାଶମ୍ = ଗୁରୁଙ୍କ ନିକଟକୁ । ଅଭ୍ୟବାଦୟତ = ଅଭିବାଦନ କଲେ । ଆଚଚକ୍ଷେ = କହିଲେ । ପ୍ରୀତିମାନ୍ = ପ୍ରୀତ ବା ଖୁସି । ଅବାପ୍‌ସ୍ୟସି = ପ୍ରାପ୍ତହେବ।

ଅନୁବାଦ – ଅଶ୍ବିନୀକୁମାର ଦୁହେଁ କହିଲେ – ହେ ବତ୍ସ ! ଆମ୍ଭେ ଦୁହେଁ ତୁମର ଏହି ଗୁରୁଭକ୍ତିଦ୍ଵାରା ଅତ୍ୟନ୍ତ ପ୍ରୀତ ହେଲୁ। ତୁମେ ନେତ୍ରଯୁକ୍ତ ହେବ ଓ ତୁମର ପରମ କଲ୍ୟାଣ ହେବ। ସେ ଏପରି କୁହନ୍ତେ ଅଶ୍ବିନୀକୁମାରଦ୍ଵୟଙ୍କଦ୍ୱାରା ଚକ୍ଷୁଲାଭକରି ଉପମନ୍ୟୁ ଗୁରୁଙ୍କ ନିକଟକୁ ଆସି ଅଭିବାଦନ ଜଣାଇଲେ ଓ ସବୁକଥା କହିଲେ। ସେ ମଧ୍ୟ ତାହା ଶୁଣି ପ୍ରୀତହୋଇ କହିଲେ – ଅଶ୍ବିନୀକୁମାର ଦୁହେଁ ଯେପରି କହିଲେ ସେପରି ତୁମର କଲ୍ୟାଣ ହେବ । ସମସ୍ତ ବେଦ ଓ ଧର୍ମଶାସ୍ତ୍ର ତୁମକୁ ପ୍ରତିଭାସିତ କରିବ।

CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Solutions Chapter 1 ଉପମନ୍ୟୁକଥା

ବ୍ୟାକରଣ
ସନ୍ଧିବିଚ୍ଛେଦ – ତମସ୍ତିନାବାହତୁଃ = ତମ୍ + ଅଶ୍ବିନୌ + ଆହତୁଃ । ଶ୍ରେୟଶ୍ଚାବାପ୍‌ସୀତି = ଶ୍ରେୟଃ + ଚ + ଅବାପ୍‌ସ୍ୟସି + ଇତି । ଲବ୍ଧଚକ୍ଷୁରୁପାଧ୍ୟାୟସକାଶମାଗମ୍ୟାଭ୍ୟବାଦୟତ = ଲବ୍ଧଚକ୍ଷୁଃ + ଉପାଧ୍ୟାୟସକାଶମ୍ + ଆଗମ୍ୟ + ଅଭ୍ୟବାଦୟତ । ପ୍ରୀତିମାନ୍‌ବଭୂବାହ = ପ୍ରୀତିମାନ୍ + ବଭୂବ + ଆହ।

ସମାସ – ଗୁରୁଭକ୍ତ = ଗୁରୌ ଭକ୍ତି, ତୟା (ସୁପ୍‌ସୁପା) । ଲବ୍ଧଚକ୍ଷୁଃ = ଲବ୍ଧ ଚକ୍ଷୁଷୀ ଯେନ ଡଃ (ବହୁବ୍ରୀହିଃ)। ଉପାଧ୍ୟାୟସକାଶମ୍ = ଉପାଧ୍ୟାୟସ୍ୟ ସକାଶଃ, ତମ୍ (୬ଷ୍ଠ ତତ୍)। ଧର୍ମଶାସ୍ତ୍ରାଣି = ଧର୍ମାଣି ଶାସ୍ତ୍ରାଣି (କର୍ମଧାରୟ)।

ସକାରଣ ବିଭକ୍ତି – ଗୁରୁଭକ୍ତ = ହେତୌ ୩ୟା । ଉପାଧ୍ୟାୟସକାଶମ୍ = କର୍ମଣି ୨ୟା।

ପ୍ରକୃତି ପ୍ରତ୍ୟୟ – ଲବ୍ଧ = ଲଭ୍ + କ୍ତ । ପ୍ରୀତିଃ = ପ୍ରୀଣ୍ + ସ୍କ୍ରିନ୍ । ଆଗମ୍ୟ = ଆ + ଗମ୍ + ଲ୍ୟୁପ୍।

CHSE Odisha +2 1st Year Sanskrit Optional Question Answer Solutions

Plus Two First Year Sanskrit Optional Question Answer – CHSE Odisha Class 11 Sanskrit Optional Question Answer

Plus Two First Year Sanskrit Elective (Optional) Question Answer

ପଦ୍ୟ ବିଭାଗ – କୁମାରସମ୍ଭଵମ୍

  • ଶ୍ଳୋକ ୧-୮୬ (ଅନ୍ବୟ, ଶବ୍ଦାର୍ଥ, ଅନୁବାଦ, ବ୍ୟାଖ୍ୟା ଓ ବ୍ୟାକରଣ)

ଗଦ୍ୟ ବିଭାଗ – ସଂସ୍କୃତ ମନ୍ଦାକିନୀ

ସଂସ୍କୃତ ସାହିତ୍ୟର ଇତିହାସ

  • ବାଲ୍ମୀକି, ବ୍ୟାସ, କାଳିଦାସ, ବ୍ୟାସ, ବିଷ୍ଣୁଶର୍ମା, ପଣ୍ଡିତ ନାରାୟଣ, ଚାଣକ୍ୟ, ଜୟଦେବ, ବିଶ୍ଵନାଥ କବିରାଜ, ମୁରାରି ମିଶ୍ର

** ଅନୁବାଦ
** ବ୍ୟାକରଣ

Plus Two First Year Sanskrit Optional Syllabus

+2 First Year Sanskrit Elective

A. Poetry: Kumarasambhavam of Kalidasa [CANTO V]
कुमारसम्भवम् – पञ्चमः सर्गः

B. Prose: Samskrutamandakini (Gadyabagah)
संस्कृतमन्दाकिनी (गद्यभागः)

  • Chapter 1 उपमन्युकथा (Upamanyukatha)
  • Chapter 2 परहितसाधनम् (Parahitasadhanam)
  • Chapter 3 मुद्रिकाप्राप्ति (Mudrikapraptih)
  • Chapter 4 चन्द्रभूपतिकथा ( Candrabhupatikatha)
  • Chapter 5 ससेमिराकथा (Sasemirakatha)
  • Chapter 6 ध्रुवोपाख्यानम् (Dhruvopakhyanam)
  • Chapter 7 विभीषणस्य रावणं प्राति उपदेशः (Vibhisanasya Ravanam Prati Upadesah)

C. History of Sanskrit Literature

  • Chapter 1 वाल्मीकि (Valmiki)
  • Chapter 2 व्यास (Vyasa)
  • Chapter 3 कालिदास (Kalidasa)
  • Chapter 4 भास (Bhasa)
  • Chapter 5 विष्णुशर्मा (Visnusarma)
  • Chapter 6 पण्डित नारायण (Pandita Narayana)
  • Chapter 7 चाणक्य (Canakya)
  • Chapter 8 जयदेव (Jayadeva)
  • Chapter 9 विश्वनाथकविराज (Visvanathakaviraja)
  • Chapter 10 मुरारि मिश्र (Murari Misra)

D. Translation into Odia/English from the Text (Prose & Poetry)

E. Grammar

1. Grammar from Prose and Poetry

  • समास (Samasa)
  • कारक-विभक्ति (Karakavibhakti)
  • प्रकृति-प्रत्यय (Prakrtipratyaya)

2. Topics from the Grammar Text

  • कृदन्त (Krdanta) – शतृ, शानच् तव्य अनीय, क्त, क्तवतु, क्त्वा, ल्यप्, तुमुन्, क्तिन्, ल्युट् घञ्, खल्
  • तद्धित (Taddhita) – अणू, त्व, तलू, मयटू, इन्, मतुप्, यत्
  • वाच्यपरिवर्तन (Vacyaparivartana)
  • वाक्यरचनम् (Sentence Formation)
  • भ्रमसंशोधन (Correction of Sentences)
  • णिजन्त (Nijanta) – भू, स्था, पठ्, गम्, कृ, दा, ज्ञा, पा, नी

Plus Two First Year Sanskrit Elective (Optional) Questions Pattern and Distribution of Marks

1. Reading Skill [20 Marks]

  • Multiple choice questions from Prose and Poetry (3 + 2) [1 × 5 = 5 Marks]
  • Very short type questions from Prose and Poetry (2 + 3) [1 × 5 = 5 Marks]
  • Short questions from Prose and Poetry (1 + 1) [2 × 2 = 4 Marks]
  • Questions from Prose and Poetry (out of four (4) questions) (1 + 1) [3 × 2 = 6 Marks]

2. Writing Skill [40 Marks]

  • Questions from the Grammar Text [10 Marks]
    • Krdanta [1 × 2 = 2 Marks]
    • Nijanta [1 × 2 = 2 Marks]
    • Vachyaparivartana [1 × 2 = 2 Marks]
    • Vakyarana [1 × 2 = 2 Marks]
    • Bhrama sansodhana [1 × 2 = 2 Marks]
  • Translation of verse into Odia/English from Poetry text (out of two verses) [4 × 1 = 4 Marks]
  • Translation of one passage into Odia/English from Prose text [6 × 1 = 6 Marks]
  • Two questions from Poetry text [5 × 2 = 10 Marks]
  • Two questions from the Prose text (out of four) [5 × 2 = 10 Marks]

3. Literary Text [40 Marks]

  • Questions from text (Prose and Poetry) [10 Marks]
    • Samasa [2 × 2 = 4 Marks]
    • Karaka-vibhakti [1 × 3 = 3 Marks]
    • Prakrti-prataya [1 × 3 = 3 Marks]
  • Explanation of a verse (Poetry) [6 × 1 = 6 Marks]
  • Two short questions from Poetry [4 × 2 = 8 Marks]
  • One long question from Poetry [8 × 1 = 8 Marks]

Total – 100 Marks

N.B. The questions may be answered in Sanskrit, Odia, or English if not otherwise specified.

CHSE Odisha Class 11 Text Book Solutions

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 5 ବ୍ୟାକରଣ ବିଭାଗ Question Answer

Odisha State Board Plus Two First Year Optional Odia Question Answer Chapter 5 ବ୍ୟାକରଣ ବିଭାଗ Textbook Exercise Questions and Answers.

Plus Two First Year Optional Odia Chapter 5 ବ୍ୟାକରଣ ବିଭାଗ Question Answer

ପାଠ୍ୟପୁସ୍ତକସ୍ଥ ନମୁନା ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ ଓ ଉତ୍ତର

(କ) ୧ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ସମ୍ଭାବ୍ୟ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ । ପ୍ରଦତ୍ତ ଚାରଟି ବିକଳ୍ପ ମଧ୍ୟରୁ ଠିକ ଉତ୍ତରଟି ବାଛ।

Question 1.
ବାକ୍ୟରେ ବ୍ୟବହୃତ ଶବ୍ଦକୁ କ’ଣ କହନ୍ତି?
(କ) ବାକ୍ୟାର୍ଥ
(ଖ) ପଦ
(ଗ) ଅର୍ଥ
(ଘ) ଅକ୍ଷର
Answer:
(ଖ) ପଦ

Question 2.
‘ସେମାନେ କାଲି ଆସିବେ’ ଏହି ବାକ୍ୟରେ ‘ସେମାନେ’ ପଦଟି କ’ଣ?
(କ) ଅବ୍ୟୟ
(ଖ) କ୍ରିୟା
(ଗ) କର୍ରା
(ଘ) ବିଶେଷଣ
Answer:
(ଗ) କର୍ତ୍ତା

Question 3.
ଗଦ୍ୟର ମୌଳିକ ଉପାଦାନ କ’ଣ?
(କ) ବାକ୍ଯ
(ଖ) ପଦ
(ଗ) ଚରଣ
(ଘ) ଧାଡ଼ି
Answer:
(ଖ) ପଦ

Question 4.
କ’ଣ ଭାବନାର ଗନ୍ତାଘର?
(କ) ମଣିଷର ମନ
(ଖ) ବହିର ପୃଷ୍ଠା
(ଗ) ଶିକ୍ଷକଙ୍କ କଥା
(ଘ) ଛାତ୍ରଙ୍କ ଉତ୍ତର
Answer:
(କ) ମଣିଷର ମନ

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 5 ବ୍ୟାକରଣ ବିଭାଗ Question Answer

Question 5.
ଗଠନ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ବାକ୍ୟ କେତେ ପ୍ରକାର?
(କ) ପାଞ୍ଚ
(ଖ) ଦୁଇ
(ଗ) ଚାରି
(ଘ) ତିନି
Answer:
(ଘ) ତିନି

Question 6.
ଭାବ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ବାକ୍ୟ କେତେ ପ୍ରକାର?
(କ) ଚାରି
(ଖ) ତିନି
(ଗ) ପାଞ୍ଚ
(ଘ) ଦୁଇ
Answer:
(କ) ଚାରି

Question 7.
‘‘ରବୀନ୍ଦ୍ରନାଥ ଠାକୁର ‘ଗୀତାଞ୍ଜଳି’ ପାଇଁ ନୋବେଲ ପୁରସ୍କାର ପାଇଥିଲେ ।’’ – ଏହା କି ପ୍ରକାର ବାକ୍ୟ?
(କ) ବିସ୍ମୟସୂଚକ
(ଖ) ଆଦେଶସୂଚକ
(ଗ) ବିବୃତ୍ତିସୂଚକ
(ଘ) ପ୍ରଶ୍ନସୂଚକ
Answer:
(ଗ) ବିବୃରିସୂଚକ

Question 8.
ଦୁଇ ବା ତତୋଧ‌ିକ ଖଣ୍ଡବାକ୍ୟର ସଂଯୋଗରେ ଗଠିତ ବାକ୍ୟକୁ କ’ଣ କହନ୍ତ?
(କ) ସରଳବାକ୍ଯ
(ଖ) ଜଟିଳବାକ୍ୟ
(ଗ) ଯୌଗିକ ବାକ୍ୟ
(ଘ) ଏଥରୁ କେଉଁଟି ନୁହେଁ
Answer:
(ଗ) ଯୌଗିକ ବାକ୍ୟ

Question 9.
ଓ, ଏବଂ, ମାତ୍ର, କିନ୍ତୁ ଇତ୍ୟାଦି ଅବ୍ୟୟ ଯୋଗରେ କି ପ୍ରକାର ବାକ୍ୟ ହୁଏ?
(କ) ଯୌଗିକ ବାକ୍ୟ
(ଖ) ଜଟିଳ ବାକ୍ୟ
(ଗ) ଯୌଗିକ ବାକ୍ୟ
(ଘ) ଏଥୁରୁ କେଉଁଟି ନୁହେଁ
Answer:
(ଘ) ଏଥୁରୁ କେଉଁଟି ନୁହେଁ

Question 10.
କେଉଁଟି ଏକ ଆଶ୍ରିତ ଅବ୍ୟୟ?
(କ) ଯେପରି
(ଖ) ଏବଂ
(ଗ) କିନ୍ତୁ
(ଘ) ମାତ୍ର
Answer:
(ଗ) କିନ୍ତୁ

(ଖ) ନିମ୍ନଲିଖତ ପ୍ରଶ୍ନଗୁଡ଼ିକର ସଂକ୍ଷିପ୍ତ ଉତ୍ତର ଲେଖ । (୧ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ)

Question 1.
ବାକ୍ୟର ସଂଜ୍ଞା ଲେଖ?
Answer:
ଏକ ବା ଏକାଧ୍ଵକ ଶୃଙ୍ଖଳିତ ପଦଦ୍ୱାରା ଉପଯୁକ୍ତ ଭାବ ପ୍ରକାଶ କରୁଥିବା ଅଭିବ୍ୟକ୍ତି ହେଉଛି ବାକ୍ୟ ।

Question 2.
ଏକକ ପଦ ଥାଇ ଗୋଟିଏ ବାକ୍ୟର ଦୃଷ୍ଟାନ୍ତ ଦିଅ ।
Answer:
ହଉ ।

Question 3.
ବାକ୍ୟ ଭିତରେ ଥ‌ିବା ଶବ୍ଦକୁ କ’ଣ କହନ୍ତି?
Answer:
ବାକ୍ୟ ଭିତରେ ଶବ୍ଦକୁ ପଦ କହନ୍ତି ।

Question 4.
ଓଡ଼ିଆ ବାକ୍ୟରେ ସାଧାରଣତଃ କ’ଣ ପ୍ରଥମେ ରହେ?
Answer:
ଓଡ଼ିଆ ବାକ୍ୟରେ ସାଧାରଣତଃ ପ୍ରଥମେ କର୍ଷା ରହେ ।

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 5 ବ୍ୟାକରଣ ବିଭାଗ Question Answer

Question 5.
ଗଠନ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ବାକ୍ୟ କେତେ ପ୍ରକାରର?
Answer:
ଗଠନ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ବାକ୍ୟ ସାଧାରଣତଃ ତିନି ପ୍ରକାର ।

Question 6.
ଭାବ ବା ପ୍ରକାର୍ଯ୍ୟ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ବାକ୍ୟ କେତେ ଭାଗରେ ବିଭକ୍ତ?
Answer:
ଭାବ ଓ ପ୍ରକାର୍ଯ୍ୟ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ବାକ୍ୟ ଚାରି ଭାଗରେ ବିଭକ୍ତ ।

Question 7.
‘‘ଧନୀ ଲୋକମାନେ ଅନ୍ୟକୁ ସାହାଯ୍ୟ କରିବା ଉଚିତ’’ । ଗଠନ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ଏହା କି ପ୍ରକାର ବାକ୍ୟ?
Answer:
ଧନୀ ଲୋକମାନେ ଅନ୍ୟକୁ ସାହାଯ୍ୟ କରିବା ଉଚିତ । ଗଠନ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ଏହା ସରଳ ବାକ୍ୟ ।

Question 8.
‘ମାନ ମହତଠାରୁ ବଡ଼ କିଛି ନାହିଁ?’ – ଭାବ ବା ପ୍ରକାର୍ଯ୍ୟ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ଏହା କି ପ୍ରକାର ବାକ୍ୟ?
Answer:
ମାନମହତଠାରୁ ବଡ଼ କିଛି ନାହିଁ – ଭାବ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ଏହା ବିବୃଭିସୂଚକ ବାକ୍ୟ ।

Question 9.
ଦୁଇଟି ସରଳ ବାକ୍ୟ ସଂଯୋଗରେ କି ପ୍ରକାର ବାକ୍ୟ ଗଠିତ ହୁଏ?
Answer:
ଦୁଇଟି ସରଳବାକ୍ୟର ସଂଯୋଗରେ ଯୌଗିକ ବାକ୍ୟ ଗଠିତ ହୁଏ ।

Question 10.
ପରସ୍ପର ନିର୍ଭରଶୀଳ ଦୁଇ ଖଣ୍ଡବାକ୍ୟ ମିଳନରେ କି ପ୍ରକାର ବାକ୍ୟ ଗଠିତ ହୁଏ?
Answer:
ପରସ୍ପର ନିର୍ଭରଶୀଳ ଦୁଇଖଣ୍ଡବାକ୍ୟର ମିଳନରେ ଜଟିଳ ବାକ୍ୟ ହୁଏ ।

Question 11.
ଗୋଟିଏ ବିସ୍ମୟ ସୂଚକ ବାକ୍ୟର ଦୃଷ୍ଟାନ୍ତ ଦିଅ ।
Answer:
ଡଃ କି ଥଣ୍ଡା ! – ଏକ ବିସ୍ମୟ ସୂଚକ ବାକ୍ୟ ।

Question 12.
ଆଦେଶସୂଚକ ବାକ୍ୟଟିଏ ଲେଖ?
Answer:
ବହିଟା ସେଇଠି ରଖ – ଆଦେଶସୂଚକ ବାକ୍ୟ ।

(ଗ) ନିର୍ଦ୍ଦେଶ ଅନୁସାରେ ଅର୍ଥ ନ ବଦଳାଇ ବାକ୍ୟଗୁଡ଼ିକ ପରିବର୍ତ୍ତନ କର । (୧ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ)

Question 1.
ମନ୍ଦିରମାଳିନୀ ସହର ଭୁବନେଶ୍ଵର ଅତୀବ ସୁନ୍ଦର । (ଜଟିଳ ବାକ୍ୟରେ ପ୍ରକାଶ କର)
Answer:
ଭୁବନେଶ୍ଵର ମନ୍ଦିରମାଳିନୀ, ଏଣୁ ଏହା ଅତୀବ ସୁନ୍ଦର ।

Question 2.
ଯେଉଁ ଅଧ୍ୟାପକ କାଲି ଇତିହାସ ପଢ଼ାଉଥିଲେ, ତାଙ୍କର ଚଷମା ହଜିଯାଇଛି । (ସରଳ ବାକ୍ୟରେ ପ୍ରକାଶ କର)
Answer:
ଇତିହାସ ପଢ଼ାଉଥବା ଅଧ୍ୟାପକଙ୍କ ଚଷମା ହଜିଯାଇଛି ।

Question 3.
ତୁମେ ଯଦି ମୋ ସହିତ ଆସିବ, ତେବେ ମୁଁ ଚାନ୍ଦିପୁର ବେଳାଭୂମି ବୁଲାଇଦେବି । (ଯୌଗିକ ବାକ୍ୟ କର)
Answer:
ତୁମେ ମୋ ସହିତ ଆସିବ ଓ ମୁଁ ତୁମକୁ ଚାନ୍ଦିପୁର ବେଳାଭୂମି ବୁଲାଇ ନେବି ।

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 5 ବ୍ୟାକରଣ ବିଭାଗ Question Answer

Question 4.
କାଲି ସନ୍ଧ୍ୟାରେ ମିତାଲି ପାଠ ନପଢ଼ି ଚେସ୍ ଖେଳିଲା (ଯୌଗିକ ବାକ୍ୟ କର)
Answer:
କାଲି ସନ୍ଧ୍ୟାରେ ମିତାଲି ପାଠ ପଢ଼ିଲା ନାହିଁ, କିନ୍ତୁ ଚେସ୍ ଖେଳିଲା ।

Question 5.
ବେଳ ଥାଉଁ ବନ୍ଧ ବାନ୍ଧିବ ଓ ବିପଦରୁ ରକ୍ଷା ପାଇବ । (ସରଳ ବାକ୍ୟକୁ ପରିବର୍ତ୍ତନ କର)
Answer:
ବେଳ ଥାଉଁ ବନ୍ଧ ବାନ୍ଧି ବିପଦରୁ ରକ୍ଷା ପାଅ ।

Question 6.
ପରୀକ୍ଷାରେ କପି କରିବା କ’ଣ ଧର୍ତ୍ତବ୍ଯ ଅପରାଧ ନୁହେଁ? (ବିବୃଭିସୂଚକ ବାକ୍ୟ କର)
Answer:
ପରୀକ୍ଷାରେ କପି କରିବା ଧର୍ମବ୍ୟ ଅପରାଧ ।

Question 7.
ଗୁରୁଜନମାନଙ୍କୁ ଅସମ୍ମାନ କରିବା ଅନୁଚିତ । (ନାସ୍ତିସୂଚକ ବାକ୍ୟ କର)
Answer:
ଗୁରୁଜନମାନଙ୍କୁ ଅସମ୍ମାନ କରିବା ଉଚିତ ।

Question 8.
ଚାଷ କାର୍ଯ୍ୟକୁ ପୁଣି ଏତେ ଅବହେଳା ! (ପ୍ରଶ୍ନସୂଚକ ବାକ୍ୟରେ ପ୍ରକାଶ କର)
Answer:
ଚାଷ କାର୍ଯ୍ୟକୁ ଏତେ ଅବହେଳା?

Question 9.
ସଚେତନ ହେଲେ ସଡ଼କ ଦୁର୍ଘଟଣା ବଢ଼ିବ ନାହିଁ । (ବିବୃତ୍ତିସୂଚକ ବାକ୍ୟ କର)
Answer:
ସଚେତନ ହେଲେ ସଡ଼କ ଦୁର୍ଘଟଣା ରୋକାଯାଇ ପାରିବ ।

Question 10.
ଉପେନ୍ଦ୍ର ଭଞ୍ଜ ମହାନ କବି । (ବିସ୍ମୟସୂର୍ବକ ବାକ୍ୟ କର)
Answer:
ଉପେନ୍ଦ୍ର ଭଞ୍ଜ କି ମହାନ କବି !

(ଘ) ଦୀର୍ଘ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନ । (୫ ନମ୍ବର-୧୫୦ ଶବ୍ଦ ମଧ୍ୟରେ)

Question 1.
ଗଠନ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ବାକ୍ୟର ପ୍ରକାରଭେଦ ସଦୃଷ୍ଟାନ୍ତ ଦର୍ଶାଅ ।
Answer:
ଗଠନ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ବାକ୍ୟ ସାଧାରଣତଃ ତିନି ପ୍ରକାର । ଯଥା – ସରଳ ବାକ୍ୟ, ଯୌଗିକ ବାକ୍ୟ ଓ ଜଟିଳ ବାକ୍ୟ ।
ଯଥା –
ସରଳ ବାକ୍ୟ – ଯେଉଁ ବାକ୍ୟରେ ଗୋଟିଏ ମାତ୍ର ସମାପିକା କ୍ରିୟା ଥାଏ, ତାହାକୁ ସରଳ ବାକ୍ୟ କହନ୍ତି ।
ଉଦାହରଣ – ମୁଁ ଭୁବନେଶ୍ଵର ଯିବି ।
ସେମାନେ କଲେଜରୁ ଫେରିଲେ ।
ଯୌଗିକ ବାକ୍ୟ – ଦୁଇ ବା ତତୋଧ୍ଵକ ସରଳ ବାକ୍ୟ ସଂଯୋଗରେ ଯେଉଁ ବାକ୍ୟ ଗଠିତ ହୋଇଥାଏ, ତାହାକୁ ଯୌଗିକ ବାକ୍ୟ କୁହାଯାଏ । ଏଠାରେ ଓ, ଏବଂ, କିନ୍ତୁ, ବା, କି, ନ ହେଲେ, ପୁଣି, ସିନା, ମାତ୍ର, ଆଉ ଇତ୍ୟାଦି ଅବ୍ୟୟ ଦ୍ବାରା ବାକ୍ୟଗୁଡ଼ିକ ସଂଯୁକ୍ତ ହୋଇଥାନ୍ତି ।
ଉଦାହରଣ – ମୁଁ ଯିବି ଓ ନାଚ ଦେଖୁଛି ।
ମୁଁ ହାଟକୁ ଗଲି ଓ ପରିବା ଆଣିଲି ।
ଜଟିଳ ବାକ୍ୟ – ପରସ୍ପର ନିର୍ଭରଶୀଳ ଦୁଇ ବା ତତୋଧୀକ ଖଣ୍ଡବାକ୍ୟର ସଂଯୋଗରେ ଗଠିତ ବାକ୍ୟକୁ ଜଟିଳ ବାକ୍ୟ କହନ୍ତି । ଯାହାର–ତାହାର, ଯେବେ–ତେବେ, ଯେତେବେଳେ-ସେତେବେଳେ, ଯାହା-ତାହା, ଯେ-ସେ, ଯଦି – ତାହେଲେ ଇତ୍ୟାଦି ଅଶ୍ରିତ ଅବ୍ୟୟ ଦ୍ବାରା ଜଟିଳ ବାକ୍ୟ ଗଠିତ ହୋଇଥାଏ ।
ଉଦାହରଣ – କଟକରୁ ଯାହା ଆଣିବ, ଏକା ଖାଇବନି, ମୋ ପାଇଁ ରଖୁବ ।
ଅନ୍ୟଠାରୁ ଯେତିକି ଆଶା କର, ଅନ୍ୟ ପ୍ରତି ସେହିପରି ବ୍ୟବହାର କର ।

Question 2.
ପ୍ରକାର୍ଯ୍ୟ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ଉଦାହରଣ ଦେଇ ବାକ୍ୟର ପ୍ରକାରଭେଦ ଉଲ୍ଲେଖ କର ।
Answer:
ପ୍ରକାର୍ଯ୍ୟ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ବାକ୍ୟଗୁଡ଼ିକ ମୁଖ୍ୟତଃ ଚାରିପ୍ରକାର । ଯଥା – ବିବୃତ୍ତିସୂଚକ, ଆଦେଶାର୍ଥକ, ପ୍ରଶ୍ନସୂଚକ ଓ ବିସ୍ମୟସୂଚକ ।
ଯଥା –
କ – ବିବୃତ୍ତିସୂଚକ ବାକ୍ୟ – କୌଣସି ବାକ୍ୟରେ କେବଳ ଏକ ବିବୃତ୍ତି ବା ବକ୍ତବ୍ୟ ସୂଚିତ ହେଲେ, ତାହା ବିବୃତ୍ତି ସୂଚକ ବାକ୍ୟ ହୋଇଥାଏ ।
ଉଦାହରଣ – ବ୍ୟାୟାମ କଲେ ଶରୀର ସୁସ୍ଥ ରହେ ।
ରାଜା ଜଗନ୍ନାଥଙ୍କର ରାଉତ ମାତ୍ର ।

ଖ – ଆଦେଶସୂଚକ ବାକ୍ୟ – ଯେଉଁ ବାକ୍ୟରେ କୌଣସି ବିଷୟରେ ଆଦେଶ ଥାଏ, ତାହା ଆଦେଶସୂଚକ ବାକ୍ୟ ।
ଆଶିଷ ଓ ଅନୁରୋଧ ଥ‌ିବା ବାକ୍ୟ ମଧ୍ୟ ଏହି ପର୍ଯ୍ୟାୟର ।
ଉଦାହରଣ – ଏଇଠି ରଖୁଦିଅ ।
ତୁମେ ସେଠାକୁ ଯାଅ ।

ଗ – ପ୍ରଶ୍ନସୂଚକ ବାକ୍ୟ – ଯେଉଁ ବାକ୍ୟରେ କୌଣସି ବିଷୟରେ ପ୍ରଶ୍ନ ପଚରାଯାଇଥାଏ, ତାହା ପ୍ରଶ୍ନସୂଚକ ବାକ୍ୟ ।
ଉଦାହରଣ – ମାଛ କେତେ ଦାମ୍?
ତୁମେ କାଲି କେଉଁଠାକୁ ଯାଇଥିଲ?

ଘ – ବିସ୍ମୟସୂଚକ ବାକ୍ୟ – ଯେଉଁ ବାକ୍ୟରେ ବିସ୍ମୟ ବା ଆଶ୍ଚର୍ଯ୍ୟ ଭାବ ସୂଚିତ ହୁଏ, ତାହାକୁ ବିସ୍ମୟସୂଚକ ବାକ୍ୟ କହନ୍ତି ।
ଉଦାହରଣ – ଡଃ କି ବର୍ଷା !
ଆହା ! ଭିକାରୀଟି ଶୀତରେ କି କଷ୍ଟ ପାଉଛି ।

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Question 3.
ପାଞ୍ଚଟି ଜଟିଳ ବାକ୍ୟ ଲେଖୁ ସେଗୁଡ଼ିକୁ ସରଳ ଓ ଯୌଗିକ ବାକ୍ୟରେ ପ୍ରକାଶ କର ।
Answer:
କ – ଜଟିଳ ବାକ୍ୟ – ଯେତେବେଳେ ପରୀକ୍ଷା ପାଖେଇ ଆସେ ସେତେବେଳେ ମଦନ ବହିପତ୍ର ଅଣ୍ଡାଳେ ।
ସରଳ ବାକ୍ୟ – ପରୀକ୍ଷା ପାଖେଇ ଆସିଲେ ମଦନ ବହିପତ୍ର ଅଣ୍ଡାଳେ ।
ଯୌଗିକ ବାକ୍ୟ – ପରୀକ୍ଷା ପାଖେଇ ଆସେ, ତେଣୁ ମଦନ ବହିପତ୍ର ଅଣ୍ଡାଳେ ।

ଖ – ଜଟିଳ ବାକ୍ୟ – କଟକରୁ ଯାହା ଆଣିବ, ନିଜେ ଖାଇବ ।
ସରଳ ବାକ୍ୟ – କଟକରୁ ଆଣିଥ‌ିବା ଜିନିଷ ନିଜେ ଖାଇବ ।
ଯୌଗିକ ବାକ୍ୟ – କଟକରୁ ଯାହା ଆଣିବ, ତାହା ନିଜେ ଖାଇବ ।

ଗ – ଜଟିଳ ବାକ୍ୟ – ଆରେ ତମେତ ସିଏ, ଯିଏ କାଲି ମତେ ଧମକାଇଥିଲା ।
ସରଳ ବାକ୍ୟ – କାଲି ତମେ ମତେ ଧମକାଇଥିଲ ।
ଯୌଗିକ ବାକ୍ୟ – କାଲି ତମେ ଆସିଲ ଓ ମତେ ଧମକାଇଥୁଲ ।

ଘ – ଜଟିଳ ବାକ୍ୟ – ସମୟ ଅଛି, ଏବେଠାରୁ ସଚେତନ ହୁଅ ।
ସରଳ ବାକ୍ୟ – ସମୟ ଥାଉଁ ଥାଉଁ ସଚେତନ ହୁଅ ।
ଯୌଗିକ ବାକ୍ୟ – ସମୟ ଅଛି, ଏଣୁ ସଚେତନ ହୁଅ ।

ଙ – ଜଟିଳ ବାକ୍ୟ – ମୁକୁନ୍ଦ ନୁହେଁ, ସେ ପରା କାଲି ଆସିବ ।
ସରଳ ବାକ୍ୟ – ମୁକୁନ୍ଦ କାଲି ଆସିବ ।
ଯୌଗିକ ବାକ୍ୟ – ମୁକନ୍ଦ ପରା କାଲି ଆସିବ ।

Question 4.
ପାଞ୍ଚଟି ବିବୃତ୍ତିସୂଚକ ବାକ୍ୟ ଲେଖୁ ସେଗୁଡ଼ିକୁ ପ୍ରଶ୍ନସୂଚକ ଓ ବିସ୍ମୟସୂଚକ ବାକ୍ୟରେ ପରିବର୍ତ୍ତନ କର ।
Answer:
କ – ବିବୃତ୍ତିସୂଚକ ବାକ୍ୟ : ପରିଶ୍ରମ କଲେ ସୁଫଳ ମିଳେ ।
ପ୍ରଶ୍ନସୂଚକ ବାକ୍ୟ ; ପରିଶ୍ରମ କଲେ କ’ଣ ସୁଫଳ ମିଳେ?
ବିସ୍ମୟସୂଚକ ବାକ୍ୟ : ପରିଶ୍ରମ କଲେ କି ସୁଫଳ ମିଳେ !

ଖ – ବିବୃତ୍ତିସୂଚକ ବାକ୍ୟ : ଦେଶ ମାଟିକୁ ଆଦର କରିବା ଆବଶ୍ୟକ ।
ପ୍ରଶ୍ନସୂଚକ ବାକ୍ୟ : ଦେଶମାଟିକୁ କ’ଣ ଅନାଦର କରିବା ଆବଶ୍ୟକ?
ବିସ୍ମୟସୂଚକ ବାକ୍ୟ : ଦେଶମାଟିକୁ ପୁଣି ଅନାଦର !

ଗ – ବିବୃତ୍ତିସୂଚକ ବାକ୍ୟ : ମିଥ୍ୟାବାଦୀକୁ ସମସ୍ତେ ଘୃଣା କରନ୍ତି ।
ପ୍ରଶ୍ନସୂଚକ ବାକ୍ୟ : ମିଥ୍ୟାବାଦୀକୁ କିଏ ଘୃଣା ନ କରନ୍ତି?
ବିସ୍ମୟସୂଚକ ବାକ୍ୟ : ମିଥ୍ୟାବାଦୀକୁ ପୁଣି ଘୃଣା ନ କରନ୍ତି !

ଘ – ବିବୃତ୍ତିସୂଚକ ବାକ୍ୟ : ମକର ଯାତ୍ରାପାଇଁ ମୟୂରଭଞ୍ଜ ବିଖ୍ୟାତ ।
ପ୍ରଶ୍ନସୂଚକ ବାକ୍ୟ : ମକର ଯାତ୍ରାପାଇଁ କ’ଣ ମୟୂରଭଞ୍ଜ ବିଖ୍ୟାତ?
ବିସ୍ମୟସୂଚକ ବାକ୍ୟ : ମକର ଯାତ୍ରାପାଇଁ ମୟୂରଭଞ୍ଜ ବିଖ୍ୟାତ !

ଙ – ବିବୃତ୍ତିସୂଚକ ବାକ୍ୟ : ଆମ ଶିକ୍ଷକ ଭଲ ଶିକ୍ଷା ଦିଅନ୍ତି ।
ପ୍ରଶ୍ନସୂଚକ ବାକ୍ୟ : ଆମ ଶିକ୍ଷକ କ’ଣ ଭଲ ଶିକ୍ଷା ଦିଅନ୍ତି?
ବିସ୍ମୟସୂଚକ ବାକ୍ୟ : ଆମ ଶିକ୍ଷକ ଭଲ ଶିକ୍ଷା ଦିଅନ୍ତି !

Question 5.
ପାଞ୍ଚଟି ନାସ୍ତିବାଚକ ବାକ୍ୟ ଉଲ୍ଲେଖ କରି ସେଗୁଡ଼ିକୁ ବିବୃତ୍ତିସୂଚକ ଓ ପ୍ରଶ୍ନସୂଚକ ବାକ୍ୟରେ ପରିଣତ କର ।
Answer:
କ – ନାସ୍ତିସୂଚକ ବାକ୍ୟ : ପଣ୍ଡିତ ଗୋପବନ୍ଧୁ ଆଦୌ ଦେଶସେବକ ନଥିଲେ ।
ବିବୃତ୍ତିସୂଚକ ବାକ୍ୟ : ପଣ୍ଡିତ ଗୋପବନ୍ଧୁ ଦେଶସେବକ ଥିଲେ ।
ପ୍ରଶ୍ନସୂଚକ ବାକ୍ୟ : ପଣ୍ଡିତ ଗୋପବନ୍ଧୁ କ’ଣ ଦେଶସେବକ ଥିଲେ ?

ଖ – ନାସ୍ତିସୂଚକ ବାକ୍ୟ : ଅନ୍ଧାରରେ ଅଜଣା ରାସ୍ତାରେ ଚାଲିବା ଆଦୌ ଉଚିତ ନୁହେଁ ।
ବିବୃତ୍ତିସୂଚକ ବାକ୍ୟ : ଅନ୍ଧାରରେ ଅଜଣା ରାସ୍ତାରେ ଚାଲିବା ଅନୁଚିତ ।
ପ୍ରଶ୍ନସୂଚକ ବାକ୍ୟ : ଅନ୍ଧାରରେ କ’ଣ ଅଜଣା ରାସ୍ତାରେ ଚାଲିବା ଉଚିତ?

ଗ – ନାସ୍ତିସୂଚକ ବାକ୍ୟ : ଜ୍ଞାନୀମାନଙ୍କୁ କେହି ଅସମ୍ମାନ କରନ୍ତି ନାହିଁ ।
ବିବୃତ୍ତିସୂଚକ ବାକ୍ୟ : ଜ୍ଞାନୀମାନଙ୍କୁ କେହି ଅସମ୍ମାନ କରନ୍ତି ନାହିଁ ।
ପ୍ରଶ୍ନସୂଚକ ବାକ୍ୟ : ଜ୍ଞାନୀମାନଙ୍କୁ କ’ଣ କେହି ଅସମ୍ମାନ କରନ୍ତି?

ଘ – ନାସ୍ତିସୂଚକ ବାକ୍ୟ : କଷ୍ଟ କଲେବି କୃଷ୍ଣ ମିଳନ୍ତି ନାହିଁ ।
ବିବୃତ୍ତିସୂଚକ ବାକ୍ୟ : କଷ୍ଟ କଲେ କୃଷ୍ଣ ମିଳେ ।
ପ୍ରଶ୍ନସୂଚକ ବାକ୍ୟ ; କଷ୍ଟ କଲେ କି କୃଷ୍ଣ ମିଳନ୍ତି?

ଙ – ନାସ୍ତିସୂଚକ ବାକ୍ୟ : ବର୍ଷାକାଳରେ ରାସ୍ତା ଅବସ୍ଥା ଶୋଚନୀୟ ନୁହେଁ ।
ବିବୃତ୍ତିସୂଚକ ବାକ୍ୟ : ବର୍ଷାକାଳରେ ରାସ୍ତା ଅବସ୍ଥା ଶୋଚନୀୟ ।
ପ୍ରଶ୍ନସୂଚକ ବାକ୍ୟ : ବର୍ଷାକାଳରେ ରାସ୍ତା ଅବସ୍ଥା କେତେ ଶୋଚନୀୟ?

ଛନ୍ଦ

ପ୍ରାଚୀନ କାବ୍ୟକାର ବା କବି, ପଦ୍ୟ ବ୍ୟ କବିତା ରଚନା କରିବା ନିମିତ୍ତ ଏକ ନିର୍ଦ୍ଦିଷ୍ଟ ନିୟମ ବା ଶୈଳୀକୁ ଅନୁସରଣ କରୁଥିଲେ । ଏହି ନିର୍ଦ୍ଦିଷ୍ଟ ଶୈଳୀ ବା ନିୟମକୁ ଛନ୍ଦ କୁହାଯାଏ । ଏହାକୁ ପଦ୍ୟ ରଚନା କରିବାର ବୈଶିଷ୍ଟ୍ୟ ବୋଲି କୁହାଯାଇଥାଏ ।

ଛାନ୍ଦ – ପ୍ରାଚୀନ ପଦ୍ୟ ବା କବିତା ଗୋଟିଏ ଗୋଟିଏ ନିର୍ଦ୍ଦିଷ୍ଟ ଛନ୍ଦରେ ରଚିତ ହୋଇଥିବାରୁ ତାହାକୁ ଛାନ୍ଦ କୁହାଯାଏ ।
ଛନ୍ଦ ମୁଖ୍ୟତଃ ଦୁଇ ପ୍ରକାର; ଯଥା –

  • ମିତ୍ରାକ୍ଷର ଛନ୍ଦ,
  • ଅମିତ୍ରାକ୍ଷର ଛନ୍ଦ ।

ମିତ୍ରାକ୍ଷର ଛନ୍ଦ ଦୁଇଭାଗରେ ବିଭକ୍ତ; ଯଥା— ସମ ଛନ୍ଦ ଓ ବିଷମ ଛନ୍ଦ ।
ପଦ – ଦୁଇ ବା ତତୋଽଧ୍ଵକ ପାଦର ସମଷ୍ଟିରେ ପଦ ଗଠିତ ହୁଏ ।
ପାଦ – ପଦର ପ୍ରତ୍ୟେକ ପଂକ୍ତିକୁ ପାଦ କୁହାଯାଏ ।
ଯତିପାତ – ଛନ୍ଦର ଶୈଳୀକୁ ନେଇ ରଚନା କରାଯାଇଥିବା ପଦ୍ୟକୁ ଗାଇବା ସମୟରେ ପ୍ରତ୍ୟେକ ପାଦର ନିର୍ଦ୍ଦିଷ୍ଟ ଅକ୍ଷର ଉପରେ ବିଶ୍ରାମ ବା ଶ୍ଵାସଘାତ ହୋଇଥାଏ । ଏହି ଶ୍ବାସଘାତକୁ ଯତି ବା ଯତିପାତ କୁହାଯାଏ । ବିଭିନ୍ନ ଛନ୍ଦ ଅନୁସାରେ ପଦ, ପାଦ, ଯତି ଭିନ୍ନ ଭିନ୍ନ ହୋଇଥାଏ ।

ରାଗ : ତାଳ ଓ ଲୟଯୁକ୍ତ କବିତା ଗାନ କରିବାପାଇଁ ବିଭିନ୍ନ ରାଗ ନିର୍ଦ୍ଦେଶ କରାଯାଇଥାଏ । ଯଥା — ପଟ୍ଟ ମଞ୍ଜରୀ, ମାନବଗୋଡ଼ା, ରାମକେରୀ ଇତ୍ୟାଦି ବିଭିନ୍ନ ରାଗ ଅଟେ ।
ନିମ୍ନରେ କେତେକ ଛନ୍ଦ ଓ ଯତିପାତ ଉପରେ ଆଲୋଚନା କରାଯାଉଛି ।

(୧) ଦାଣ୍ଡିବୃତ୍ତ ବା ଛନ୍ଦ – ଏହାର ଦୁଇ ପାଦରେ ଏକପଦ ହୁଏ । ପ୍ରତ୍ୟେକ ପାଦର ଅକ୍ଷର ସଂଖ୍ୟା ସମାନ ନୁହେଁ । ଏହାର ନିର୍ଦ୍ଦିଷ୍ଟ ଭାବରେ ଯତିପାତ ହୁଏନାହିଁ । ତେଣୁ ଗାୟକ ଗାଇବାବେଳେ ନିଜ ସୁବିଧା ଅନୁସାରେ ସ୍ଵର ଲମ୍ବାଇ ବିଶ୍ରାମ ନେଇ ଗାଇଥା’ନ୍ତି। ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟର ପ୍ରାଚୀନ କାବ୍ୟ; ଯଥା— ସାରଳା ଦାସଙ୍କ ‘ମହାଭାରତ’, ବଳରାମ ଦାସଙ୍କ ‘ଦାଣ୍ଡି ରାମାୟଣ’ ଓ ଚୈତନ୍ଯ ଦାସଙ୍କ ‘ବିଷ୍ଣୁଗର୍ଭ ପୁରାଣ’ ଏହି ଦାଣ୍ଡିବୃତ୍ତରେ ରଚିତ ।

ଉଦାହରଣ –
(୧) ଏଥୁ ଅନନ୍ତରେ ଗୋ ପାର୍ବତୀ ଦେବୀ ଶୁଣ
ମାଲ୍ୟବନ୍ତ ପର୍ବତେ ରହିଲେ ରଘୁରାଣ । (ଦାଣ୍ଡି ରାମାୟଣ – ବଳରାମ ଦାସ)

(୨) ଏଥୁ ଅନନ୍ତରେ ଦ୍ରୋଣେ ବିଦ୍ଯାପୁତ୍ରନ୍ତ ହକାରି
ବାବୁ ତୁମ୍ଭେ ଯାଅରେ ମୃଗୟା ବନ ହେରି । (ମହାଭାରତ – ସାରଳା ଦାସ)

(୨) ନଟବାଣୀ ବା ବିଭାସ କେଦାର – ଦୁଇ ପାଦରେ ଏକ ପଦ ହୁଏ । ପ୍ରତ୍ୟେକ ପାଦର ଅକ୍ଷର ସଂଖ୍ୟା ୧୨ ।
ପାଦର ତୃତୀୟ, ଷଷ୍ଠ, ନବମ ଓ ଶେଷ ଅକ୍ଷର ଉପରେ ଯତିପାତ ହୁଏ ।

ଉଦାହରଣ – ସୁଖ ବୋ’ଲି ଯାହା’ ଜନନେ’ତ୍ରେ ଦିଶେ’
ହାତେ ଆ’ ମୁଁ ହାତେ’ ପଡ଼ିବା’ ପାଇଁ ସେ’। (ଚିଲିକା)

(୩) ଚକ୍ରକେଳି – ଦୁଇ ପାଦରେ ଏକ ପଦ ହୁଏ । ପ୍ରତି ପାଦର ଅକ୍ଷର ସଂଖ୍ୟା ଏଗାର ।
ପ୍ରତି ପାଦର ଷଷ୍ଠ ଓ ଶେଷ ଅକ୍ଷରରେ ଯତିପାତ ହୁଏ ।
ଉଦାହରଣ – ‘‘ଆହେ ଦୟାମୟ’ ବିଶ୍ବବିହାରୀ’
ଘେନ ଦୟାବହି’ ମୋର ଗୁହାରୀ’’ (ପ୍ରାର୍ଥନା) (ରାମକୃଷ୍ଣ ନନ୍ଦ)

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(୪) ଭାଗବତ ବାଣୀ/ଗୁଜରୀ/ନବାକ୍ଷରୀ – ଦୁଇ ପାଦରେ ଏକ ପଦ ହୁଏ । ପ୍ରତି ପାଦର ଅକ୍ଷର ସଂଖ୍ୟା ୯ ।
ପ୍ରତି ପାଦର ତୃତୀୟ, ପଞ୍ଚମ ଓ ଶେଷ ଅକ୍ଷରରେ ଯତିପାତ ହୁଏ ।
ଉଦାହରଣ – ‘‘ଗୁରୁଙ୍କୁ ନ ମଣିବ ନର
ଗୁରୁ ହିଁ ସାକ୍ଷାତ ଈଶ୍ଵର ।’’
‘‘ଗୁରୁ ଚରଣ ସେବା କରି
ତାଙ୍କ ବଚନ ଶିରେ ଧରି ।’’
‘‘ଗୁରୁଙ୍କୁ ବିଷ୍ଣୁ ପ୍ରାୟେ ମଣି
ସେବା କରିବ ଦୃଢ଼େ ପୁଣି’’ (ଭାଗବତ – ଜଗନ୍ନାଥ ଦାସ)

(୫) ରାମକେରୀ – ଦୁଇ ପାଦରେ ଏକ ପଦ ହୁଏ । ପ୍ରତିପାଦର ଅକ୍ଷର ସଂଖ୍ୟା ଷୋହଳ । ପ୍ରତି ପାଦର ନବମ, ଏକାଦଶ ଓ ଷୋଡ଼ଶ ଅକ୍ଷର ଉପରେ ଯତିପାତ ହୁଏ ।
ଉଦାହରଣ – ‘‘ଖସି ପଡୁଛି କି ଆକାଶୁ କିଏ ଗଙ୍ଗା ଯମୁନା
ଖୂର ସଙ୍ଗେ ପ୍ରାଣ ଶୋଷିଲେ ନାଶକଲା ପୁତନା ।’’
‘‘ଗହନ କାନନ ବନରେ ଘୋର ବରଷା କାଳ
ଗିରି ବାମ କଲେ ଧରିଲେ ନନ୍ଦ ଯଶୋଦା ବାଳ ।’’
‘‘ଘରେ ନ ରହନ୍ତି ଗଉଡ଼େ ସେ ତ ଅଧମ ଜାତି
ଘେନି ବସ୍ତ୍ରାବୃନ୍ଦ ବାଳକେ ବନେ ବୁଲନ୍ତି ନିତି ।’’

(୬) ବଙ୍ଗଳାଶ୍ରୀ – ଦୁଇ ପାଦରେ ଏକ ପଦ ହୁଏ । ପ୍ରତ୍ୟେକ ପାଦର ଅକ୍ଷର ସଂଖ୍ୟା କୋଡ଼ିଏ ।
ପ୍ରତି ପାଦର ଷଷ୍ଠ, ଦ୍ଵାଦଶ, ଅଷ୍ଟାଦଶ ଓ ଶେଷ ଅକ୍ଷରରେ ଯତିପାତ ହୁଏ ।
ଉଦାହରଣ – ‘‘ସ୍ଵାମୀଗୁରୁ ସ୍ୱାମୀ’ ପରମ ବାନ୍ଧବ’ ’ସ୍ଵାମୀ ସେବା ନାରୀ’ ଧର୍ମ
ସ୍ଵାମୀ ପଦେ ଭକ୍ତି’ ଅର୍ଜନାରେ ମତି’ ଅର୍ପି ତୁ କରିବୁ’ କର୍ମ ।’’ (ପ୍ରଣୟ ବଲ୍ଲରୀ – ଗଙ୍ଗାଧର ମେହେର)

(୭) ଶଙ୍କରାଭରଣ – ଚାରିପାଦରେ ଏକ ପଦ ହୁଏ । ପ୍ରଥମ, ଦ୍ଵିତୀୟ ଓ ଚତୁର୍ଥ ପାଦର ଅକ୍ଷର ସଂଖ୍ୟା ଆଠ ।
୧ମ, ୨ୟ ଓ ୪ର୍ଥ ପାଦର ଅଷ୍ଟମ, ଏକାଦଶ ଓ ଶେଷ ଅକ୍ଷରରେ ଯତିପାତ ହୁଏ । ତୃତୀୟ ପାଦର ଦ୍ୱିତୀୟ, ଷଷ୍ଠ ଓ ଶେଷ ଅକ୍ଷରରେ ଯତିପାତ ହୁଏ ।
ଉଦାହରଣ – ‘‘ନିର୍ମଳ ଚନ୍ଦ୍ର ମଣ୍ଡଳ ଶରଦେ ବିରାଜି
ଦିଶେ ଯଥା ଦର୍ପକ ଦର୍ପଣେ ଥିଲେ ମାଜି
ଚାହିଁ କୁମର କାତର
ଲେଖୁ ଆରମ୍ଭିଲା ବସି ବିନୟ ପତର ।’’
‘‘ଯେତେଦୂରେ ପତ୍ର ପଡ଼ିଥିଲେରେ ନବୀନା
ଚିହ୍ନିକି ନୁହଇ ଆନେ ବୃକ୍ଷ ନାମ କିନା
ବନ୍ଧୁ ତେମନ୍ତ ମୁଁ ତୋର
ସବୁଠାରେ କୁହାଉଛି ସୁନ୍ଦରୀ କୋୟର ।’’

(୮) କଳହଂସ କେଦାର – ଚାରି ପାଦରେ ଏକ ପଦ ହୁଏ । ପ୍ରତ୍ୟେକ ପାଦର ଅକ୍ଷର ସଂଖ୍ୟା ୧୨ । ପ୍ରତି ପାଦର ସପ୍ତମ ଓ ଶେଷ ଅକ୍ଷରରେ ଯତିପାତ ହୁଏ । ବେଳେବେଳେ ୪ର୍ଥ ଧାଡ଼ି ଶେଷରେ ଗୋ, ରେ, ହେ ଆଦି ସମ୍ବୋଧନ ପଦସୂଚକ ବର୍ଣ୍ଣ ମଧ୍ଯ ଥାଏ ।
ଉଦାହରଣ – ‘ଅନନ୍ତ ମହେଶ୍ଵରେ’ ମୋ ପ୍ରାଣ ସାଇଁ
ବୋଲି ରାଜିବ ସଦା’ ଥବି ଅନାଇଁ
ଶିଖାଅ ମୋତେ ସଦା’ ଏ ପୁଣ୍ଯ ବ୍ରତ’
ତୋର ଆଶିଷେ ପୂରୁ’ ମୋ ମନୋରଥ’ । (ପଦ୍ମ – ମଧୁସୂଦନ ରାଓ)

(୯) ଚୋଖ୍ – ଚାରି ପାଦରେ ଏକପଦ ହୁଏ । ପ୍ରଥମ, ଦ୍ଵିତୀୟ ପାଦ ଦୁଇଟି ୨୯ ଅକ୍ଷର ବିଶିଷ୍ଟ । ତୃତୀୟ ପାଦ ୯ ଅକ୍ଷର ବିଶିଷ୍ଟ ଓ ଚତୁର୍ଥ ପାଦ ୧୩ ଅକ୍ଷର ବିଶିଷ୍ଟ । ପ୍ରଥମ ଓ ଦ୍ବିତୀୟ ପାଦର ଷଷ୍ଠ, ଅଷ୍ଟମ, ଚତୁର୍ଦ୍ଦଶ, ଷୋଡ଼ଶ, ଦ୍ୱାବିଂଶ, ଚତୁର୍ବିଂଶ ଓ ଶେଷ ଅକ୍ଷରରେ ଯତିପାତ ହୁଏ । ତୃତୀୟ ପାଦର ଷଷ୍ଠ ଓ ଶେଷ ଅକ୍ଷରରେ ଯତିପାତ ହୁଏ । ଚତୁର୍ଥ ପାଦର ଷଷ୍ଠ ଓ ଅଷ୍ଟମ ଓ ଶେଷ ଅକ୍ଷରରେ ଯତିପାତ ହୁଏ । ମନେରଖୁବାର ସହଜ ଉପାୟ –
ପ୍ରଥମ ଓ ଦ୍ୱିତୀୟ ପାଦର – ୬, ୮, ୧୪, ୧୬, ୨୨, ୨୪, ୨୯ ଅକ୍ଷର ଉପରେ ଯତିପାତ ।
ତୃତୀୟ ପାଦ – ୬, ୯ ଅକ୍ଷର ଉପରେ ଯତିପାତ ।
ଚତୁର୍ଥ ପାଦ – ୬, ୮, ୧୩ ଅକ୍ଷର ଉପରେ ଯତିପାତ।
ଉଦାହରଣ – ‘ବଧୂର ନୁହଇ’ ବୀର’ ବୋଇଲା ତହିଁ ଧୀ’ବର’
ଶୁଣିଲିଣି ପଥ’ରେ ପ’ଥର’ ଅବଳା’
ବାଲିପଡ଼ି ତୋ ଚରଣୁ’ ଆଶଙ୍କା ଉ’ପୁଜେ’ ଏଣୁ’
ନଉକା ନାୟିକା’ ହେଲେ’ ବୁଡ଼ି’ବ ଭେଳା’
ବୃତ୍ତି ଏ ମୋ ପୋଷେ’ କୁଟୁମ୍ବ”
ବସାଇ ନ ଦେବି’ ନାବେ ନ ଧୋଇ ପାଦ’ ।’’ (ବୈଦେହୀଶ ବିଳାସ – କବିସମ୍ରାଟ ଉପେନ୍ଦ୍ର ଭଞ୍ଜ)
‘‘ରସିକ ବିଚାର କରେ, ଦୀପଦାନ କୀର୍ତ୍ତିକରେ
ପ୍ରୟାଗେ ସ୍ନାନ ମକରେ ଯେହୁ ନ କରେ
ମିଶେ କି ସେ ଆଲୋକରେ, ଉତ୍ତମ ରାମା ଅଙ୍କରେ
ଘେନି ବସେ ପଲଙ୍କରେ କି ହିମକରେ
ପୂର୍ବେ ସେବିଥିଲେ ଶଙ୍କରେ
ସେ ଫଳୁ ଧରି ଉରଜ ଶ୍ରୀଫଳେ କରେ’’ (ରସିକ ହାରାବଳୀ – କବିସମ୍ରାଟ ଉପେନ୍ଦ୍ର ଭଞ୍ଜ)

(୧୦) ଆଷାଢ଼ ଶୁକ୍ଳବାଣୀ – ଛଅ ପାଦରେ ଏକ ପଦ ହୁଏ । ପ୍ରଥମ, ଦ୍ଵିତୀୟ, ତୃତୀୟ, ଚତୁର୍ଥ ଓ ଷଷ୍ଠ ପାଦ ଏଗାର ଅକ୍ଷର ବିଶିଷ୍ଟ । ଏହି ପାଦଗୁଡ଼ିକର ଷଷ୍ଠ ଓ ଶେଷ ଅକ୍ଷରରେ ଯତିପାତ ହୁଏ । ପଞ୍ଚମ ପାଦଟି ଛଅ ଅକ୍ଷର ବିଶିଷ୍ଟ । ଏହାର ଶେଷ ଅକ୍ଷର ଉପରେ ଯତିପାତ ହୁଏ ।
ଉଦାହରଣ – ‘‘ଅନଳ ନୁହଇ ଦେହ ଦହଇ’
ଅସ୍ତ୍ର ନୁହଇ ମରମେ ଭେଦଇ’
ନୁହଇ ତ ଜଳ’ ବୁଡ଼ାଏ କୁଳ
ନୁହଇ ମାଦକ’ କରେ ବିହ୍ବଳ’
ନୁହଇ ବଡ଼ଶୀ
ବଳେ ମନ ମୀନ’ କିଏ ଆକର୍ଷି ।’’ (ବିଦଗ୍ଧ ଚିନ୍ତାମଣି – ଅଭିମନ୍ୟୁ ସାମନ୍ତ ସିଂହାର )
‘‘ଯେଣେ ଚାହିଁଲେ ତେଣେ ସେହି ଦିଶେ
ଚକ୍ଷୁ ବୁଜିଲେ ହୃଦରେ ପ୍ରକାଶେ
ନିଦ୍ରା ଅଇଲେ ସ୍ଵପନେ ଦେଖଇ
ଜାଗ୍ରତେ ଥିଲେ ଜ୍ଞାନ ହିଁ ନଥାଇ
କାୟ ମନୋବାକ୍ଯ
ତା ବିନେ ସାର ନଗଣେ ତ୍ରିଲୋକ ।’’
(ବିଦଗ୍ଧ ଚିନ୍ତାମଣି) – ଅଭିମନ୍ୟୁ ସାମନ୍ତସିଂହାର

(୧୧) ରସକୁଲ୍ୟା – ଛଅ ପାଦରେ ଏକ ପଦ ହୁଏ । ପ୍ରଥମ, ଦ୍ୱିତୀୟ ଓ ତୃତୀୟପାଦ ଏଗାର ଅକ୍ଷର ବିଶିଷ୍ଟ । ଏହି ତିନୋଟି ପାଦର ଷଷ୍ଠ ଓ ଶେଷ ଅକ୍ଷରରେ ଯତିପାତ ହୁଏ । ଚତୁର୍ଥ ପାଦ ବାର ଅକ୍ଷର । ଏହାର ଷଷ୍ଠ, ଏକାଦଶ ଓ ଶେଷ ଅକ୍ଷରରେ ଯତିପାତ ହୁଏ । ପଞ୍ଚମ ପାଦ ନଅ ଅକ୍ଷର ବିଶିଷ୍ଟ । ଏହାର ଷଷ୍ଠ, ଅଷ୍ଟମ ଓ ଶେଷ ଅକ୍ଷରରେ ଯତିପାତ ହୁଏ । ଷଷ୍ଠ ପାଦ ଏକୋଇଶ ଅକ୍ଷର ବିଶିଷ୍ଟ । ଏହାର ଷଷ୍ଠ, ଦ୍ବାଦଶ, ଅଷ୍ଟାଦଶ, ବିଂଶ ଓ ଶେଷ ଅକ୍ଷରରେ ଯତିପାତ ହୁଏ ।

ମନେରଖୁବାର ସହଜ ଉପାୟ–
୧ମ, ୨ୟ, ୩ୟ ପାଦ – ୬, ୧୧ ଅକ୍ଷର ଉପରେ ଯତିପାତ
୪ର୍ଥ ପାଦ – ୬, ୧୧, ୧୨ ଅକ୍ଷର ଉପରେ ଯତିପାତ
୫ମ ପାଦ – ୬, ୮, ୯ ଅକ୍ଷର ଅକ୍ଷର ଉପରେ ଯତିପାଦ
୬ଷ୍ଠ ପାଦ – ୬, ୧୨, ୧୮, ୨୦, ୨୧ ଅକ୍ଷର ଉପରେ ଯତିପାତ

ଉଦାହରଣ–
ବିଧାନ ହୋଇଛି ଯା ନାମ ସୀତା
ବର୍ଣ୍ଣନେ ଶୋଭା ଅତି ମଧୁରତା
ବୁଡ଼ି ନେତ୍ର ଅଜ ହେବ ପବିତ୍ର
ବିଶେଷେ କର୍ଷି ଦେଇ ହୃଦକ୍ଷେତ୍ର ସେ
ବୁଣିଲାଣି ସ୍ନେହ ବୀଜ ଯେ
ବିଚାରୁ ଏମନ୍ତ ଜନକ ସମ୍ମତି ଶୁଣିଲେ ସଖୀ ସମାଜ ଯେ— (ବୈଦେହୀଶ ବିଳାସ – କବି ସମ୍ରାଟ ଉପେନ୍ଦ୍ର ଭଞ୍ଜ)

ବେଶକାରୀ ଡାକି ପୀଠେ ବସାଇ
ବେଶ ବିରଚିଲେ ଚିଉ ର ସାଇ
ବିମ୍ବ ଦେଖାଇଲେ ଛାମୁରେ କେହି
ବିମ୍ବାଧରୀ ଆଡ଼ମ୍ବରକୁ ବହି ସେ
ବିବନ୍ଧ କଲେ କୁନ୍ତଳ ଯେ
ବନ୍ଦୀ ହୋଇଲା ମର୍କ କୁ ବେଣୀରେ ବନ୍ଦୀ ହେବେ ମନମୀନେ ଯେ – (ବୈଦେହୀଶ ବିଳାସ – କବି ସମ୍ରାଟ ଉପେନ୍ଦ୍ର ଭଞ୍ଜ)

ପାଠ୍ୟପୁସ୍ତକସ୍ଥ ନମୁନା ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ ଓ ଉତ୍ତର

(କ) ଏକ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ସମ୍ଭାବ୍ୟ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ । ପ୍ରଦତ୍ତ ଚାରୋଟି ବିକଳ୍ପ ମଧ୍ୟରୁ ଠିକ୍ ଉତ୍ତରଟି ବାଛ ।

Question 1.
‘‘ଅକ୍ଷର ଗଣିବ ହସ୍ତରେ । ତେବେ ସେ ଲେଖୁବ ପତରେ’’ – ଏହା କେଉଁ କବିଙ୍କ ରଚନା?
(କ) ସାରଳା ଦାସ
(ଖ) ଉପେନ୍ଦ୍ର ଭଞ୍ଜ
(ଗ) ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
(ଘ) ଦୀନକୃଷ୍ଣ ଦାସ
Answer:
(ଘ) ଦୀନକୃଷ୍ଣ ଦାସ

Question 2.
କବିତାର ଧାଡ଼ିକୁ କ’ଣ କହନ୍ତି?
(କ) ପାଦ
(ଖ) ପଦ
(ଗ) ଶବ୍ଦ
(ଘ) ଅକ୍ଷର
Answer:
(କ) ପାଦ

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Question 3.
କେଉଁଟି ଏକ ରାଗର ନାମ?
(କ) ଛାନ୍ଦମାଳା
(ଖ) ମାଳବଗୌଡ଼ା
(ଗ) ମାଳବ
(ଘ) ମେଳକ
Answer:
(ଖ) ମାଳବଗୌଡ଼ା

Question 4.
ନବାକ୍ଷରୀ ବୃତ୍ତର ଅନ୍ୟନାମ କ’ଣ?
(କ) ଚକ୍ରକେଳି
(ଖ) ରସକୁଲ୍ୟା
(ଗ) ଗୁଜ୍ଜରୀ
(ଘ) ମାଳାଶ୍ରୀ
Answer:
(ଗ) ଗୁଜ୍ଜରୀ

Question 5.
ମିତ୍ରାକ୍ଷର ଛନ୍ଦ କେତେ ଭାଗରେ ବିଭକ୍ତ?
(କ) ଦୁଇ
(ଖ) ତିନି
(ଗ) ଛଅ
(ଘ) ଚାରି
Answer:
(କ) ଦୁଇ

Question 6.
‘ନଟବାଣୀ’ କି ପ୍ରକାର ଛନ୍ଦ?
(କ) ଅମିତ୍ରାକ୍ଷର ଛନ୍ଦ
(ଖ) ବିଷମଛନ୍ଦ
(ଗ) ସମଚ୍ଛନ୍ଦ
(ଘ) ଏଥରୁ କେଉଁଟି ନୁହେଁ
Answer:
(ଗ) ସମଚ୍ଛନ୍ଦ

Question 7.
ଚୋଖ୍ ଛନ୍ଦରେ ପ୍ରତି ପଦରେ କେତେ ପାଦ ଥାଏ?
(କ) ଚାରି
(ଖ) ପାଞ୍ଚ
(ଗ) ଦୁଇ
(ଘ) ଛଅ
Answer:
(କ) ଚାରି

Question 8.
କେଉଁଟି ବିଷମଛନ୍ଦ ନୁହେଁ?
(କ) ରସ୍‌କୁଲ୍ଯା
(ଖ) ବଙ୍ଗଳାଶ୍ରୀ
(ଗ) ଚୋଖ୍
(ଘ) ଶଙ୍କରାଭରଣ
Answer:
(ଖ) ବଙ୍ଗଳାଶ୍ରୀ

Question 9.
ରାଧାନାଥଙ୍କ ‘ଚିଲିକା’ କେଉଁ ଛନ୍ଦରେ ରଚିତ?
(କ) ଚକ୍ରକେଳି
(ଖ) ବଙ୍ଗଳାଶ୍ରୀ
(ଗ) ଚୋଖ୍
(ଘ) ନଟବାଣୀ
Answer:
(ଘ) ନଟବାଣୀ

Question 10.
ଓଡ଼ିଆ କାବ୍ୟକବିତାରେ ବ୍ୟବହୃତ କେଉଁ ଛନ୍ଦଟି ପାରମ୍ପରିକ ନୁହେଁ?
(କ) ଚକ୍ରକେଳି
(ଖ) ଅମିତ୍ରାକ୍ଷର
(ଗ) ନବାକ୍ଷରୀ
(ଘ) ରସକୁଲ୍ଯା
Answer:
(ଖ) ଅମିତ୍ରାକ୍ଷର

(ଖ) ଗୋଟିଏ ବା ଦୁଇଟି ବାକ୍ୟରେ ଉତ୍ତର ଲେଖ । (୧ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ)

Question 1.
ଛନ୍ଦ କହିଲେ କ’ଣ ବୁଝ ?
Answer:
ପଦ୍ୟ ବା କବିତାରଚନାର ଶୃଙ୍ଖଳା ହେଉଛି ଛନ୍ଦ ।

Question 2.
ଛନ୍ଦର ପ୍ରତିଶବ୍ଦ କ’ଣ?
Answer:
ଛନ୍ଦର ପ୍ରତିଶବ୍ଦ ହେଉଛି ବୃତ୍ତ ।

Question 3.
ଛନ୍ଦ ଓ ଛାନ୍ଦ ଭିତରେ କି ପାର୍ଥକ୍ୟ ରହିଛି?
Answer:
ଛନ୍ଦ ହେଉଛି ପଦ୍ୟ ରଚନାର ଶୃଙ୍ଖଳା, ଛନ୍ଦଦ୍ୱାରା କବିତା ଆବଦ୍ଧ ହେଲେ ଛନ୍ଦ ହୁଏ ।

Question 4.
କବିତାର ପାଦ ଓ ପଦ ମଧ୍ଯରେ ପାର୍ଥକ୍ୟ ଦର୍ଶାଅ ।
Answer:
ଦୁଇ ବା ତତୋଽଧୂକ ଧାଡ଼ି ପୂର୍ବଭାବ ବ୍ୟକ୍ତକଲେ ତାହାକୁ ପଦ କୁହାଯାଏ । ମାତ୍ର ପଦ୍ୟ ବା କବିତାର ପ୍ରତିଟି ଧାଡ଼ି ହେଉଛି ପାଦ ।

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Question 5.
ଯତିପାତ କ’ଣ?
Answer:
କବିତା ଆବୃତ୍ତି କରିବା କାଳର ବିରାମ ହେଉଛି ଯତିପାତ ।

Question 6.
କେଉଁ ଛନ୍ଦର ଅନ୍ୟନାମ ବିଭାସକେଦାର?
Answer:
ନଟବାଣୀ ଛନ୍ଦର ଅନ୍ୟନାମ ବିଭାସକେଦାର ।

Question 7.
ଅକ୍ଷର ଓ ମାତ୍ରାକୁ ଭିତ୍ତିକରି କେତେ ପ୍ରକାର ଓ କ’ଣ କ’ଣ ଛନ୍ଦ ହୁଏ?
Answer:
ଅକ୍ଷର ଓ ମାତ୍ରାକୁ ଭିଭିକରି ଛନ୍ଦ ଦୁଇପ୍ରକାର । ଯଥା – ମିତ୍ରାକ୍ଷର ଛନ୍ଦ ଓ ଅମିତ୍ରାକ୍ଷର ଛନ୍ଦ । ମିତ୍ରାକ୍ଷର ସମଚ୍ଛନ୍ଦ ଓ ବିଷମଚ୍ଛନ୍ଦ ଭେଦରେ ଦୁଇଭାଗରେ ବିଭକ୍ତ ।

Question 8.
ଗୁଜରୀ ଛନ୍ଦର ଲକ୍ଷଣ କ’ଣ?
Answer:
ପ୍ରତିପାଦରେ ନଅ ଅକ୍ଷର ଥ‌ିବା ଦୁଇ ପାଦରେ ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ହେଉଥ‌ିବା ଛନ୍ଦ ହେଉଛି ଗୁଜ୍ଜରୀଛନ୍ଦା ।

Question 9.
ଗୁଜରୀ ଛନ୍ଦକୁ କାହିଁକି ଭାଗବତବୃତ୍ତ କୁହାଯାଏ?
Answer:
ଜଗନ୍ନାଥ ଦାସଙ୍କ ରଚିତ ଭାଗବତ ଏଇ ଛନ୍ଦରେ ରଚିତ ହୋଇଥିବାରୁ ଗୁଜରୀ ଛନ୍ଦର ନାମ ଭାଗବତ ବୃତ୍ତ କୁହାଯାଏ ।

Question 10.
ସମଛନ୍ଦ କ’ଣ?
Answer:
ଦୁଇ ବା ଚାରିଚରଣ ବିଶିଷ୍ଟ ପଦର ପ୍ରତିପାଦର ଅକ୍ଷର ସଂଖ୍ୟା ସମାନ ରହିଲେ ସମଚ୍ଛନ୍ଦ ହୁଏ ।

Question 11.
ବିଷମ ଛନ୍ଦର ବୈଶିଷ୍ଟ୍ୟ ଦର୍ଶାଅ ।
Answer:
ପାଦ ଓ ଅକ୍ଷର ସଂଖ୍ୟା ଅସମାନ ଥୁବା ଛନ୍ଦ ହେଉଛି ବିଷମ ଛନ୍ଦ ।

Question 12.
ଗୋଟିଏ ସମଚ୍ଛନ୍ଦର ନାମ ଉଲ୍ଲେଖ କର ।
Answer:
‘ନଟବାଣୀ’ ସମଚ୍ଛନ୍ଦର ଏକ ଦୃଷ୍ଟାନ୍ତ ।

Question 13.
ଶଙ୍କରାଭରଣ କି ପ୍ରକାର ଛନ୍ଦ?
Answer:
ଶଙ୍କରାଭରଣ ହେଉଛି ସମଚ୍ଛନ୍ଦ ।

Question 14.
ଅମ୍ରିତାକ୍ଷର ଛନ୍ଦର ଲକ୍ଷଣ ସୂଚାଅ ।
Answer:
ପଦର ପ୍ରାନ୍ତ ମିଳନ ନଥ‌ିବା ଅଣପାରମ୍ପରିକ ଛନ୍ଦ ହେଉଛି ଅମିତ୍ରାକ୍ଷର ଛନ୍ଦ ।

Question 15.
ବଙ୍ଗଳାଶ୍ରୀ ଛନ୍ଦର କେଉଁ କେଉଁ ଅକ୍ଷରରେ ଯତିପାତ ହୁଏ?
Answer:
ବଙ୍ଗଳାଶ୍ରୀର ଯତିପାତ କ୍ରମ ହେଉଛି –
୬ + ୬ + ୬ + ୨
୬ + ୬ + ୬ + ୨

Question 16.
ଉତ୍କଳ କମଳା ବିଳାସ ଦୀର୍ଘକା
ମରାଳ ମାଳିନୀ ନୀଳାମ୍ବୁ ଚିଲିକା – ଏହା କି ପ୍ରକାର ଛନ୍ଦରେ ରଚିତ?
Answer:
ଉତ୍କଳ କମଳା ବିଳାସ ଦୀର୍ଘକା । ମରାଳମାଳିନୀ ନୀଳାମ୍ବୁ ଚିଲିକା ।
ଏହା ନଟବାଣୀ ଛନ୍ଦରେ ରଚିତ ।

Question 17.
ଚୋଖ୍ ଛନ୍ଦର ପାଦ ସଂଖ୍ୟା କେତେ?
Answer:
ଚୋଖ୍ ଛନ୍ଦରେ ଚାରିପାଦ ଥାଏ ।

Question 18.
କବିସୂର୍ଯ୍ୟ ବଳଦେବ ରଥଙ୍କର ‘ସର୍ପଜଣାଣ’ କବିତାଟି କେଉଁ ଛନ୍ଦରେ ରଚିତ?
Answer:
ପ୍ରଶ୍ନଟି ପାଠ୍ୟ ପ୍ରସଙ୍ଗ ବହିର୍ଭୂତ ।

Question 19.
ସାମ୍ପ୍ରତିକ କବିତାରେ ମୁଖ୍ୟତଃ କେଉଁ ଛନ୍ଦ ବ୍ୟବହୃତ ହେଉଛି?
Answer:
ସାଂପ୍ରତିକ କବିତାରେ ମୁଖ୍ୟତଃ ମୁକ୍ତଛନ୍ଦ ବ୍ୟବହୃତ ହେଉଛି ।

Question 20.
ରସକୁଲ୍ୟା ଛନ୍ଦର ଯତିପାତ ନିୟମ ଲେଖ ।
Answer:
ରସକୁଲ୍ୟା ଛନ୍ଦର ଯତିପାତ ନିୟମ – ଷଷ୍ଠ ଓ ଶେଷ ଅକ୍ଷରରେ ଯତିପାତ ହୁଏ ।

(ଗ) ଦୀର୍ଘ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନ । (୫ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ)

Question 1.
ମିତ୍ରାକ୍ଷର ଓ ଅମିତ୍ରାକ୍ଷର ଛନ୍ଦ ମଧ୍ୟରେ ଥିବା ପାର୍ଥକ୍ୟ ଦୃଷ୍ଟାନ୍ତ ସହ ବୁଝାଇ ଦିଅ ।
Answer:
ମିତ୍ରାକ୍ଷର ଛନ୍ଦ – ଯେଉଁ ସବୁ ଛନ୍ଦରେ ପ୍ରାନ୍ତ ମିଳନ ଥାଏ, ତାହାକୁ ମିତ୍ରାକ୍ଷର କହନ୍ତି । ଏହା ମୁଖ୍ୟତଃ ଦୁଇ ଭାଗରେ ବିଭକ୍ତ । ଯଥା – ସମଛନ୍ଦ ଓ ବିଷମଛନ୍ଦ ।
ଗୁଜ୍ଜରୀ, ଚକ୍ରକେଳି, ନଟବାଣୀ, ବଙ୍ଗଳାଶ୍ରୀ, ଇତ୍ୟାଦି ଏହି ଶ୍ରେଣୀର ଅଟନ୍ତି ।
ଉଦାହରଣ – ମୁଁ ଅଧିକ ଯେ ଲୋଡ଼ନ୍ତି । ଚୋର ସମାନେ ଦଣ୍ଡପା’ନ୍ତି ।
ଏଠାରେ ‘ଛି’ ଓ ‘ନ୍ତ’ ପ୍ରାନ୍ତମେଳ । ତେଣୁ ଯତିପାତ ଠିକ୍ ଅଛି ।
ଅମିତ୍ରାକ୍ଷର ଛନ୍ଦ – ଯେଉଁ ପଦରେ ପ୍ରାନ୍ତ ମିଳନ ନଥାଏ, ତାହାକୁ ଅମିତ୍ରାକ୍ଷର ଛନ୍ଦ କୁହାଯାଏ । ଏହାର ଯତିପାତରେ ମଧ୍ୟ ସେଭଳି କୌଣସି ନିର୍ଦ୍ଦିଷ୍ଟ ନିୟମ ନାହିଁ । ଆବୃତ୍ତି କଲାବେଳେ ପାଠକ ନିଜ ସୁବିଧା ଅନୁସାରେ ଯତି ପକାଇଥାଏ ।
ଉଦାହରଣ–
୧ – ‘ସତେ ହୋଇଥା’ତି ଯେବେ ନୃପତି ନନ୍ଦିନୀ
୨ – ଥାଆନ୍ତା ଶକତି ମମ ଥାଆନ୍ତା ବିଭବ
୩ – କହନ୍ତି ପରାଣେ ପଣ ନାରୀ ଶିକ୍ଷା ଲାଗି
୪ – ବସାନ୍ତି ନାଳନ୍ଦା ସମ ମହାବିଦ୍ୟାଳୟ ।
ଏଇ ଚାରିପାଦ ବିଶିଷ୍ଟ ଛନ୍ଦର କୌଣସିଟି ପାଦରେ ପ୍ରାନ୍ତମେଳ ରହୁନାହିଁ, ଏଣୁ ଏହା ବିଷମଛନ୍ଦ ।

Question 2.
ସମଛନ୍ଦ ଓ ବିଷମଛନ୍ଦ ମଧ୍ୟରେ ଥ‌ିବା ପାର୍ଥକ୍ୟ ସଦୃଷ୍ଟାନ୍ତ ବୁଝାଅ ।
Answer:
‘ସମଛନ୍ଦ – ଦୁଇ ବା ଚାରିପାଦ ବିଶିଷ୍ଟ ପଦର ପ୍ରତି ପାଦରେ ଅକ୍ଷର ସଂଖ୍ୟା ସମାନ ହେଲେ ତାହାକୁ ସମଛନ୍ଦ କୁହାଯାଏ । ଗୁଜରି, ଚକ୍ରକେଳି, ବଙ୍ଗଳାଶ୍ରୀ ଇତ୍ୟାଦି ଏହାର ଦୃଷ୍ଟାନ୍ତ ।
ବିଷମଛନ୍ଦ – ପାଦର ଅକ୍ଷର ସଂଖ୍ୟା ସମାନ ନଥୁଲେ ତାହାକୁ ବିଷମ ଛନ୍ଦ କୁହାଯାଏ । ଚୋଖ୍, ଶଙ୍କରାଭରଣ, ରସକୁଲ୍ୟା ପ୍ରଭୃତି ଏହାର ଦୃଷ୍ଟାନ୍ତ ।

Question 3.
ଚକ୍ରକେଳି ଛନ୍ଦର ଉଦାହରଣ ଦେଇ ତାର ଲକ୍ଷଣ ଉଲ୍ଲେଖ କର ।
Answer:
ଚକ୍ରକେଳି ଛନ୍ଦ – ଏହି ଛନ୍ଦରେ ଦୁଇ ପାଦରେ ଏକ ପଦ ହୁଏ । ପ୍ରତି ପାଦରେ ଅକ୍ଷର ସଂଖ୍ୟା ଏଗାର । ଏହାର ପ୍ରତିପାଦର ଷଷ୍ଠ ଅକ୍ଷର ଓ ଶେଷ ଅକ୍ଷରରେ ଯତିପାତ ହୋଇଥାଏ । ଯଥା –
ଜୟ ଗୋବିନ୍ଦ ଗୋ’କୁଳ ସୁନ୍ଦର’ ।
ଜୟ ରାମ ଅନୁ’ଜ ଦାମୋଦର’ । (ମଥୁରା ମଙ୍ଗଳ) – ଭକ୍ତ ଚରଣ ଦାସ
‘‘ଆହେ ଦୟାମୟ’ ବିଶ୍ଵବିହାରୀ’
ଘେନ ଦୟାବହି’ ମୋର ଗୁହାରୀ’’ (ପ୍ରାର୍ଥନା) (ରାମକୃଷ୍ଣ ନନ୍ଦ)
ଯତିପାତ କ୍ରମ : ୬ + ୫ = ୧୧
୬ + ୫ = ୧୧ ।

Question 4.
ରସକୁଲ୍ୟା ଓ ଆଷାଢ଼ ଶୁକ୍ଳ ଛନ୍ଦର ପାର୍ଥକ୍ୟ ସଦୃଷ୍ଟାନ୍ତ ବୁଝାଇଦିଅ ।
Answer:
ରସକୁଲ୍ୟା ; ଏହି ଛନ୍ଦରେ ଛଅ ପାଦରେ ଏକ ପଦ ହୁଏ । ଏହାର ପ୍ରଥମ, ଦ୍ବିତୀୟ, ତୃତୀୟ ଓ ଚତୁର୍ଥ ପାଦର ଅକ୍ଷର ସଂଖ୍ୟା ଏଗାର । ଏଗୁଡ଼ିକରେ ଷଷ୍ଠ ଓ ଶେଷ ଅକ୍ଷରରେ ଯତିପାତ ହୁଏ । ଏହାର ପଞ୍ଚମ ପାଦ ଆଠ ଅକ୍ଷର ଓ ଶେଷପାଦ ୨୧ ଅକ୍ଷର ବିଶିଷ୍ଟ ।
ଯଥା—
ବିଭୂଷଣ ପୁଷ୍ପ’ ଯା କାନ୍ତି ଜାଣ’
ବିଭୂଷଣ କରି’ କନ୍ୟାକୁ ଆଣ’
ବାରଣ ଶିରେ ପ’ଦ ଦେଇ ଆସୁ’
ବରଣ କରି ରା’ମ ମନ ତୋଷୁ’ ସେ
ବୋଳି ଦେଲେ କଉ’ଶିକୁ’ ଯେ,
ବୋଳିଦେଲା ପ୍ରାୟେ’ ଗୋଳି ଚନ୍ଦନକୁ’ ହୋଇଲେ ରଘୁବଂ’ଶିକ ଯେ ।
ଆଷାଢ଼ଶୁକ୍ଳ : ଏହା ଛଅ ପାଦରେ ଏକ ପଦ ହୋଇଥାଏ । ଏହାର ପ୍ରଥମ, ଦ୍ବିତୀୟ, ତୃତୀୟ, ଚତୁର୍ଥ ଓ ଷଷ୍ଠ ପାଦ ଏଗାର ଅକ୍ଷର ବିଶିଷ୍ଟ । ଏଗୁଡ଼ିକର ପଞ୍ଚମ ଓ ଶେଷ ଅକ୍ଷର ଉପରେ ଯତିପାତ ହୋଇଥାଏ । ପଞ୍ଚମ ପାଦଟି ଛଅ ଅକ୍ଷର ବିଶିଷ୍ଟ ଓ ଏହାର ଶେଷ ଅକ୍ଷରରେ ଯତିପାତ ହୁଏ । ଯଥା –
ଅନଳ ନୁହ’ଇ ଦେହ ଦହଇ’
ଅସ୍ତ୍ର ନୁହଇ’ ମରମ ଭେଦଇ’
ନୁହଇ ତ ଜ’ଳ ବୁଡ଼ାଏ କୁଳ’
ନୁହଇ ମାଦ’କ କରେ ବିହ୍ବଳ’
ନୁହଇ ବଡ଼ଶୀଗା’
ବଳେ ମନ ମୀ’ନ ନିଏ ଆକର୍ଷି’ । (ବିଦଗ୍‌ଧ ଚିନ୍ତାମଣି) – ଅଭିମନ୍ୟୁ ସାମନ୍ତସିଂହାର

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 5 ବ୍ୟାକରଣ ବିଭାଗ Question Answer

Question 5.
ଦୃଷ୍ଟାନ୍ତ ସହ ‘ଚୋଖ୍’ର ବିଶେଷତ୍ଵ ବର୍ଣ୍ଣନା କର ।
Answer:
ଚୋଖ୍ – ଏଥରେ ଚାରିପାଦରେ ଏକ ପଦ ହୋଇଥାଏ । ପ୍ରଥମ ଓ ଦ୍ବିତୀୟ ପାଦ ଅଣତିରିଶ ଅକ୍ଷର ବିଶିଷ୍ଟ, ତୃତୀୟ ପାଦ ନଅ ଅକ୍ଷର ବିଶିଷ୍ଟ । ଚତୁର୍ଥ ପାଦ ତେର ଅକ୍ଷର ବିଶିଷ୍ଟ । ପ୍ରଥମ ଦୁଇଟି ପାଦର ଷଷ୍ଠ, ଅଷ୍ଟମ, ଚତୁର୍ଦ୍ଦଶ, ଷୋଡ଼ଶ, ଦ୍ୱାବିଂଶ, ଚତୁର୍ବିଂଶ ଓ ଶେଷ ଅକ୍ଷରରେ ଯତିପାତ ହୋଇଥାଏ । ତୃତୀୟ ପାଦରେ ଷଷ୍ଠ ଓ ଶେଷ ଅକ୍ଷରରେ ଯତିପାତ ହୁଏ । ଚତୁର୍ଥ ପାଦରେ ଷଷ୍ଠ, ଅଷ୍ଟମ ଓ ଶେଷ ଅକ୍ଷରରେ ଯତିପାତ ହୁଏ ।
– ତୁହି ମା’ ଜନମ’ ଭୂମି’ ପବିତ୍ର ଭାରତ’ ଭୂମି’
ତୋହର ସନ୍ତାନ’ ଆମ୍ଭେ’ ଅର୍ବୁ ସରବେ’
ତୋର ଶ୍ରୀ ଚରଣେ’ ସେବା’ ପାଇଁ ମନ ପ୍ରାଣ’ ଦେବା’
ଗାଇବା ତୋହର’ ନାମ’ ଆନନ୍ଦ ରବେ’
ତୋ ଆନନ୍ଦେ ହୋଇ’ ବା ସୁଖୀ’
କାନ୍ଦିବା ଦୁଃଖରେ’ ତୋର’ ହୋଇଣ ଦୁଃଖୀ’ (ଜନ୍ମଭୂମି) – ମଧୁସୂଦନ ରାଓ
ଏହାର ଯତିପାତକ୍ରମ ହେଉଛି –
୬ + ୨ + ୬ + ୨ + ୬ + ୨ + ୫
୬ + ୨ + ୬ + ୨ + ୬ + ୨ + ୫
୬ + ୩
୬ + ୨ + ୫

+2 1st Year Odia Optional Chapter 5 ବ୍ୟାକରଣ ବିଭାଗ Summary

ବାକ୍ୟର ପ୍ରକାରଭେଦ ଓ ପରିବର୍ତ୍ତନ

(କ) ବାକ୍ୟ ସଂଜ୍ଞା ଓ ସ୍ଵରୂପ:
ସମଗ୍ର ବିଶ୍ଵରେ ମଣିଷ ଏକମାତ୍ର ଜୀବ ଯେକି ଆପଣାର ମନର ଭାବନାକୁ ମୁଖର ଭାଷାରେ ପ୍ରକାଶ କରିପାରେ । ତେବେ ଆପଣାକୁ ପ୍ରକାଶିତ କରିବାର ସର୍ବପ୍ରଧାନ ଉପାଦାନ ହେଲା ବାକ୍ୟ । ପ୍ରତିଟି ବାକ୍ୟ ଗୋଟିଏ ଗୋଟିଏ ସାର୍ଥକ ଓ ସ୍ଵାଧୀନ ଉକ୍ତି । ସାର୍ଥକ କହିବାର ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟ ହେଲା ଏଗୁଡ଼ିକ ନିଜେ ନିଜେ ଗୋଟିଏ ଗୋଟିଏ ନିର୍ଦ୍ଦିଷ୍ଟ ଅର୍ଥପ୍ରକାଶ କରିବାକୁ ସମର୍ଥ । ଏହି ବାକ୍ୟରେ ବ୍ୟବହୃତ ପଦସମୂହକୁ ମନଇଚ୍ଛା ପରିବର୍ତ୍ତନ କଲେ ବା ଭାଙ୍ଗିଲେ ବାକ୍ୟଟି ଆଦୌ ସୁନ୍ଦର ହେବ ନାହିଁ । ତେଣୁ ମନେ ରଖୁବାକୁ ହେବ, କେତେଗୁଡ଼ିଏ ପଦ ମିଳିତ ହୋଇ ମନର ପୂର୍ଣଭାବକୁ ସ୍ଵୟଂ ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣଭାବେ ପ୍ରକାଶ କଲେ ତାହାହିଁ ବାକ୍ୟ ପଦବାଚ୍ୟ ହୁଏ । ସାଧାରଣତଃ ଏକ ବିଶୁଦ୍ଧ ବାକ୍ୟରେ ତିନିଗୋଟି ଲକ୍ଷଣ ଦେଖାଯାଏ; ଯଥା – (କ) ଆକାଙ୍‌କ୍ଷା, (ଖ) ଯୋଗ୍ୟତା, (ଗ) ଆସରି

I. ଆକାଙ୍‌କ୍ଷା
ପୂର୍ଣ୍ଣ ଅର୍ଥବୋଧ ନିମିତ୍ତ ଯଦି ଅନ୍ୟ ପଦ ସହ ମିଳିତ ହେବାପାଇଁ ଅପେକ୍ଷା ରଖେ ତାହାହିଁ ଆକାଙ୍‌କ୍ଷା ।

ଉଦାହରଣ ସ୍ଵରୂପ:

  • ବୃକ୍ଷଟି ବାତ୍ୟାଦ୍ୱାରା,
  • ଅନ୍ଧକାର ରାତ୍ରିରେ ପଥୁକଟି,
  • ଜୀବନରେ ଅନେକ

II. ଯୋଗ୍ଯତା
ବାକ୍ୟରେ ବ୍ୟବହୃତ ହେଉଥ‌ିବା ଶବ୍ଦ ଶବ୍ଦ ମଧ୍ୟରେ ଅର୍ଥଗତ ସମ୍ବନ୍ଧ ଥାଏ । ସମ୍ବନ୍ଧ ନ ରହିଲେ ତାହା ଯଥାର୍ଥ ବାକ୍ୟରୂପ ନିଏ ନାହିଁ ।

ଦୃଷ୍ଟାନ୍ତ ସ୍ଵରୂପ:

  • ଘରଟି ଦଉଡୁ ଅଛି ।
  • ସେ ନିଆଁ ପିଇଲା ।
  • ଗଧ ପର୍ବତରେ ଉଡୁଅଛି ।

ଯଦିଓ ଏହା ଗୋଟିଏ ବାକ୍ୟ; କିନ୍ତୁ ପୂର୍ବ ଅର୍ଥବୋଧ ନୁହେଁ । ବାକ୍ୟଟି ନିମ୍ନୋକ୍ତ ପ୍ରାୟ ହେଲେ ତାହାହିଁ ଯଥାର୍ଥରେ ବାକ୍ୟ ପଦବାଚ୍ୟ ହେବ ।

  • ଘରଟି ଛପର ହେଉଅଛି ।
  • ସେ ନିଆଁ ଲଗାଇଲା ।
  • ଗଧ ପର୍ବତ ଉପରକୁ ଉଠିବାକୁ ଚେଷ୍ଟା କରୁଅଛି ।

[ବି.ଦ୍ର – ସ୍ଥଳବିଶେଷରେ ଦୈବୀଶକ୍ତି ସୂଚନା କରିବାପାଇଁ ଯୋଗ୍ୟତା ଅଭାବରେ ଅସମ୍ଭବ ସମ୍ଭାବନାରେ ମଧ୍ୟ ବାକ୍ୟ ହୋଇଥାଏ ।]

ଉଦାହରଣ ସ୍ଵରୂପ:
ଭଗବାନଙ୍କ ଦୟାରେ ପଙ୍ଗୁ ପର୍ବତ ଲଙ୍ଘନ କରିପାରେ ଓ ଅନ୍ଧ ସବୁ ଦେଖୁପାରେ ।

III. ଆସଭି
ଗୋଟିଏ ବାକ୍ୟରେ ଏକ ପଦ ପାଖରେ ଅନ୍ୟପଦର ଉଚିତ ବସାଣ ବା ପ୍ରକୃଷ୍ଟ ବସାଣହିଁ ଆସରି ନାମରେ ପରିଚିତ । ଏ ବାକ୍ୟଟି ଶ୍ରବଣଦ୍ୱାରା ମଣିଷର ଜ୍ଞାନର ଧାରା କ୍ରମଶଃ ବୃଦ୍ଧି ପାଏ । ପରବର୍ତ୍ତୀ ପଦ କ’ଣ ହେବା ଉଚିତ, ସେ ଜାଣିନିଏ । ତେଣୁ ପଦ ପରେ ଯେଉଁପଦ ବସିଥାଏ, ତା’ର ଉପଯୁକ୍ତ ବିନ୍ୟାସପାଇଁ ଲାଗିପଡ଼େ ।

ଦୃଷ୍ଟାନ୍ତ ସ୍ଵରୂପ:

  • ଗୁଣ ବିଶିଷ୍ଟ ସୃଷ୍ଟି ବିଶ୍ୱସ୍ରଷ୍ଟା ବିଭିନ୍ନ ବିଭିନ୍ନ ବ୍ୟକ୍ତିଙ୍କୁ କରିଅଛନ୍ତି ।
  • ନକରେ ପୁତ୍ର କୁଳାଙ୍ଗାର ଭକ୍ତ ତାକୁ ପିତାମାତାଙ୍କୁ ଯେଉଁ ବୋଲିବାକୁ ହେବ ।

ଏହାର ଯଥାର୍ଥ ଉତ୍ତର ହେବ:

  • ବିଶ୍ୱସ୍ରଷ୍ଟା ବିଭିନ୍ନ ବିଭିନ୍ନ ଗୁଣବିଶିଷ୍ଟ ବ୍ୟକ୍ତିଙ୍କୁ ସୃଷ୍ଟି କରିଅଛନ୍ତି ।
  • ଯେଉଁ ପୁତ୍ର ପିତାମାତାଙ୍କୁ ଭକ୍ତି ନ କରେ ତାଙ୍କୁ କୁଳାଙ୍ଗାର ବୋଲିବାକୁ ହେବ ।

ବାକ୍ୟ ମଧ୍ଯରେ ପଦବିନ୍ୟାସର ସାଧାରଣ ନିୟମ;
ନିୟମ: ‘‘ସାଧାରଣତଃ କର୍ରାପଦ ବାକ୍ୟର ଆରମ୍ଭରେ ଓ ସମାପିକା କ୍ରିୟା ଶେଷରେ ଥାଏ ।’’

ଉଦାହରଣ: ରାମ ଭାତ ଖାଇ ସ୍କୁଲକୁ ଗଲା ।
ତେବେ ପ୍ରଶ୍ନ ଉଠେ, ବାକ୍ୟ ସାଧାରଣତଃ କେତେ ପ୍ରକାର?

(ଖ) ବାକ୍ୟର ପ୍ରକାର ଭେଦ:
ବାକ୍ୟକୁ ଦୁଇଭାଗରେ ବିଭକ୍ତ କରାଯାଇଛି । ଯଥା – ଗଠନଗତ ଓ ଭାବ ବା ପ୍ରକାର୍ଯ୍ୟଗତ ।
ଗଠନଗତ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ବାକ୍ୟ ସାଧାରଣତଃ ତିନି ପ୍ରକାରର; ଯଥା –

  • ସରଳ,
  • ଯୌଗିକ,
  • ଜଟିଳ

ଭାବ ବା ପ୍ରକାର୍ଯ୍ୟଗତ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ବାକ୍ୟ ଚାରି ପ୍ରକାର । ଯଥା – ବିବୃତିସୂଚକ, ଆଦେଶସୂଚକ, ପ୍ରଶ୍ନସୂଚକ ଓ ବିସ୍ମୟସୂଚକ ।

ବାକ୍ୟର ଗଠନଗତ ପ୍ରକାରଭେଦ

(୧) ସରଳ ବାକ୍ୟ (Simple Sentence)
ଯେଉଁ ବାକ୍ୟରେ ଗୋଟିଏ ମାତ୍ର ସମାପିକା କ୍ରିୟା ଥାଏ, ତାହା ‘ସରଳ ବାକ୍ୟ’ ନାମରେ ନାମିତ ।
ଉଦାହରଣ :

  • ସେ ଭୁବନେଶ୍ଵର ଗଲେ ।
  • ରାମ ଭାତ ଖାଇ ଶୋଇଲା ।

(୨) ଯୌଗିକ ବାକ୍ୟ (Compound Sentence)
ଦୁଇ ବା ତତୋଽଧ୍ଵ ପରସ୍ପର ନିରପେକ୍ଷ ସରଳ ବାକ୍ୟର ସଂଯୋଗରେ ଯେଉଁ ବାକ୍ୟ ଗଠିତ ହୋଇଥାଏ, ତାହାକୁ ଯୌଗିକ ବାକ୍ୟ କହନ୍ତି ।

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ଉଦାହରଣ :
ସକାଳ ହେଲା, ସୂର୍ଯ୍ୟ ଉଦିତ ହେଲେ ଏବଂ ପକ୍ଷୀମାନେ ମଧୁର କାକଳିରେ ସକାଳକୁ ସ୍ଵାଗତ କଲେ ।
ସାଧାରଣତଃ ଯୌଗିକ ବାକ୍ୟରେ ସରଳ ବାକ୍ୟଗୁଡ଼ିକ ‘କିନ୍ତୁ’ ଓ ‘ଏବଂ’ ଅବ୍ୟୟ ପଦଦ୍ୱାରା ସଂଯୁକ୍ତ ହୋଇଥା’ନ୍ତି ।

ଅନ୍ୟ ଗୋଟିଏ ଦୃଷ୍ଟାନ୍ତ :
ମୁଁ ହାଟକୁ ଗଲି ଓ ପରିବା ଆଣିଲି । ତା’ପରେ ଭାତ ଖାଇ କଲେଜ ଗଲି ।

(୩) ଜଟିଳ ବାକ୍ୟ (Complex sentence):
ପରସ୍ପର ସାପେକ୍ଷ ଦୁଇ ବା ତତୋଽକ ଖଣ୍ଡ ବାକ୍ୟ ମିଳନରେ ଯେଉଁ ବାକ୍ୟ ଗଢ଼ା ହୋଇଥାଏ, ତାହାକୁ ଜଟିଳ ବାକ୍ୟ କହନ୍ତି । ଏହି ଜଟିଳ ବାକ୍ୟରେ ଗୋଟିଏ ପ୍ରଧାନ ବାକ୍ୟ (Principal Clause) ଥାଏ ଓ ଅନ୍ୟଗୁଡ଼ିକ ଅପ୍ରଧାନ ଖଣ୍ଡବାକ୍ୟ (Subordinate Clause) ସେହି ପ୍ରଧାନ ବାକ୍ୟକୁ ଆଶ୍ରୟ କରି ରହିଥା’ନ୍ତି ।

ଦୃଷ୍ଟାନ୍ତ :

  • କେହି ସୁଦ୍ଧା ସ୍ବପ୍ନରେ ଭାବି ନଥିଲେ, ଶ୍ରୀଜଗନ୍ନାଥର ଦେଶ ମହାବାତ୍ୟାରେ ସମ୍ମୁଖୀନ ହୋଇ ଏପରି ଶ୍ରୀହୀନ ହେବ ।
  • ସାଧାରଣତଃ ଅନ୍ୟର ମଙ୍ଗଳପାଇଁ ଯାହାର ଚିନ୍ତା ଓ ଚେତନା, ତାକୁ ଭଗବାନ୍ ସାହାଯ୍ୟ କରନ୍ତି ।
  • ସୁକର୍ମ କୁରଥିବା ବ୍ୟକ୍ତି ଶ୍ରୀମଦ୍ ଭଗବଦ୍ ଗୀତା ଅନୁଯାୟୀ ନିଜ କର୍ମଫଳ ଉପରେ ଆଶା ରଖୁବା ଉଚିତ ନୁହେଁ ।

(୪) ମିଶ୍ର ବାକ୍ୟ (Mixed Sentence):
ଯେଉଁ ବାକ୍ୟରେ ଯୌଗିକ, ସରଳ, ଜଟିଳ, ସବୁ ଧରଣର ବାକ୍ୟ ମିଶିକରି ରହିଥାଏ, ତାକୁ ‘ମିଶ୍ର ବାକ୍ୟ’ କୁହାଯାଏ ।

ଉଦାହରଣ ସ୍ଵରୂପ:
ଯେତେବେଳେ ଦ୍ରୋଣ ଜାଣିଲେ ବିଚାର ନକରି ଏକଲବ୍ୟ ନିରୀହ କୁକୁରଟିର ମୁହଁକୁ ଶରମାରି ବନ୍ଦ କରି ଦେଇଛି ସେତେବେଳେ ସେ ନିଶ୍ଚଳ ହୋଇଗଲେ; କିନ୍ତୁ ଏକଲବ୍ୟ ଯେ ଧନୁ ବିଦ୍ୟାରେ ଧୂରୀଣ ଏକଥା ତାଙ୍କୁ ଅଛପା ରହିଲାନି ଏବଂ ସେ ଭାବିଲେ, ଏକଲବ୍ୟର ଶକ୍ତି ଊଣାହେବା ଉଚିତ ।

ଭାବ ବା ପ୍ରକାର୍ଯ୍ୟଗତ ପ୍ରକାର ଭେଦ

  • ବିବୃତି ସୂଚକ ବାକ୍ୟ – ଗୋଟିଏ ବିଷୟରେ ନିର୍ଦ୍ଦିଷ୍ଟ ବକ୍ତବ୍ୟ ବା ବିବୃତିଟିଏ ଏହି ଧରଣର ବାକ୍ୟରେ ଦିଆଯାଇଥାଏ । ଏହି ବାକ୍ୟର ବାକ୍ୟ ଶେଷରେ ପୂର୍ଣ୍ଣଛେଦ (।) ଦିଆଯାଏ ।
    ଯଥା – ‘‘ରାଜା ଜଗନ୍ନାଥଙ୍କ ରାଉତ ମାତ୍ର ।’’
  • ଆଦେଶ ସୂଚକ ବାକ୍ୟ – କୌଣସି ବିଷୟରେ ଆଦେଶ ପ୍ରଦାନ କରିବାପାଇଁ ଯେଉଁ ବାକ୍ୟ ବ୍ୟବହୃତ ହୁଏ ତାହା ଆଦେଶ ସୂଚକ ବାକ୍ୟ । ଏହି ବାକ୍ୟର ବାକ୍ୟ ଶେଷରେ ପୂର୍ଣ୍ଣଛେଦ (।) ଦିଆଯାଏ । ଯଥା – ‘‘ଏଥର କଥାମାନି ଥରୁଟିଏ ଭାଗବତ ପଢ଼ି ଆସ’’ ।
  • ପ୍ରଶ୍ନ ସୂଚକ ବାକ୍ୟ – ଯେଉଁ ବାକ୍ୟରେ ଜିଜ୍ଞାସା ସୂଚିତ ହୁଏ ତାହା ପ୍ରଶ୍ନ ସୂଚକ ବାକ୍ୟ । ଏହି ବାକ୍ୟର ବାକ୍ୟ ଶେଷରେ ପ୍ରଶ୍ନବାଚକ ଚିହ୍ନ (?) ଦିଆଯାଏ ।
    ଯଥା- ଏଇଟି କ’ଣ ସେଇ ଅମୃତ ଫଳ?
  • ବିସ୍ମୟ ସୂଚକ ବାକ୍ୟ – କୌଣସି ପ୍ରସଙ୍ଗରେ ଆଶ୍ଚର୍ଯ୍ୟ, ବିସ୍ମୟ, ରହସ୍ୟ, ଅଦ୍ଭୁତ ଭାବପ୍ରକାଶ ପାଇଲେ ସେହି ଭାବପ୍ରକାଶର ବାକ୍ୟଟିକୁ ବିସ୍ମୟସୂଚକ ବାକ୍ୟ କୁହାଯାଏ । ଏହି ବାକ୍ୟର ବାକ୍ୟ ଶେଷରେ ବିସ୍ମୟସୂଚକ ଚିହ୍ନ (!) ଦିଆଯାଏ ।
    ଯଥା – ବାଃ ! କୋଣାର୍କର ପଥର ସତରେ ଗୀତ ଗାଉଛି, ଓ କି ନାଚ ନାଚୁନି ସତେ !!

(୬) ବାକ୍ୟର ରୂପାନ୍ତରଣ :
ଆମେ ପରସ୍ପର ମଧ୍ୟରେ କଥୋପକଥନ କରିବା ସମୟରେ ବେଳେବେଳେ ଗୋଟିଏ ଭାବକୁ ବିଭିନ୍ନ ଭାବରେ ପ୍ରକାଶ କରିଥାଉ । ଯେପରି,

  • ଶ୍ରେଣୀର ଭଲ ପିଲାଟିକୁ ମୁଁ ଜାଣିଛି ।
  • ଶ୍ରେଣୀର ଯେଉଁ ପିଲାଟି ଭଲ, ତାହାକୁ ମୁଁ ଜାଣିଛି ।

ପ୍ରଥମ ବାକ୍ୟଟି ଦ୍ଵିତୀୟ ବାକ୍ୟଠାରୁ ଗଠନରେ ଭିନ୍ନ । ମାତ୍ର ଉଭୟ ବାକ୍ୟରେ ଅର୍ଥଗତ ସାମ୍ୟ ରହିଛି । ଉପରୋକ୍ତ ବାକ୍ୟ ଦୁଇଟି ପରସ୍ପରର ରୂପାନ୍ତର ଅର୍ଥାତ୍ ଗୋଟିଏ ବାକ୍ୟ ଅନ୍ୟ ଏକ ବାକ୍ୟର ଆଉ ଏକ ରୂପ ବା ରୂପାନ୍ତର । ଯେତେବେଳେ ବାକ୍ୟର ଅର୍ଥ ବଦଳିଯିବ, ସେତେବେଳେ ବାକ୍ୟଟି ବଦଳି ଯାଇଥବା ବାକ୍ୟର ରୂପାନ୍ତର ହେବ ନାହିଁ । ସୁତରାଂ ଅର୍ଥକୁ ଅପରିବର୍ତ୍ତିତ ରଖ୍ ଗୋଟିଏ ବାକ୍ୟକୁ ଅନ୍ୟ ଗୋଟିଏ ରୂପରେ ପ୍ରକାଶ କରାଗଲେ, ତାହାକୁ ବାକ୍ୟର ରୂପାନ୍ତର କୁହାଯାଏ । ରୂପାନ୍ତର ହେବାର ପଦ୍ଧତିକୁ ରୂପାନ୍ତରଣ କୁହାଯାଏ ।

ଗଠନ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ବାକ୍ୟ ପରିବର୍ତ୍ତନ :
ସରଳ ବାକ୍ୟକୁ କିପରି ଯୋଗିକ ବାକ୍ୟରେ ପରିଣତ କରିବ?
ଦୃଷ୍ଟାନ୍ତ : ସିଦ୍ଧାର୍ଥ ରାଜବେଶ ପରିତ୍ୟାଗ କରି ସନ୍ନ୍ୟାସୀ ବେଶ ଧାରଣ କଲେ ।
ପରିବର୍ତ୍ତିତ ଯୋଗିକ ବାକ୍ୟ: ସିଦ୍ଧାର୍ଥ ରାଜବେଶ ପରିତ୍ୟାଗ କଲେ ଓ ସନ୍ୟାସୀ ବେଶ ଧାରଣ କରେ ।
ସରଳ : କବୀର ପୁରୀରେ ଛତା ପୋତିବାରୁ ସମୁଦ୍ର ପାଣି ବେଢ଼ା ଭିତରକୁ ପଶିଲା ନାହିଁ ।
ଯୌଗିକ : କବୀର ପୁରୀରେ ପହଞ୍ଚି ଯେଉଁଠାରେ ଛତା ପୋଲିଲେ, ସେହିଠାରୁ ସମୁଦ୍ର ପାଣି ବେଢ଼ା ଭିତରକୁ ପଶିଲା ନାହିଁ ।

(୧) ସରଳ ବାକ୍ୟକୁ ଜଟିଳ ବାକ୍ୟରେ ରୂପାନ୍ତରିତ କରିବା:
ଦୃଷ୍ଟାନ୍ତ : ଧନୁର୍ଦ୍ଧର ରାମଚନ୍ଦ୍ର ରାବଣଙ୍କୁ ନିଧନ କଲେ । (ସରଳ ବାକ୍ୟ)
ଜଟିଳ ବାକ୍ୟର ଦୃଷ୍ଟାନ୍ତ: ଯେଉଁ ରାମଚନ୍ଦ୍ର ଧନୁର୍ଧାରଣ କରିଥିଲେ, ସେ ରାବଣକୁ ନିଧନ କଲେ ।
ଅନ୍ୟ ଏକ ଦୃଷ୍ଟାନ୍ତ : ପର୍ଶୁରାମ ଏକୋଇଶ ଥର କ୍ଷତ୍ରିୟ ନିଧନ କରିଥିଲେ । (ସରଳ ବାକ୍ୟ)
ଜଟିଳ: ଯେଉଁ ପର୍ଶୁରାମ ପରଶୁ ଧାରଣ କରିଥିଲେ, ସେ ଏକୋଇଶି ବାର ପୃଥ‌ିବୀରୁ କ୍ଷତ୍ରିୟମାନଙ୍କୁ ନିଧନ କରିଥିଲେ ।

(୨) ଯୌଗିକ ବାକ୍ୟକୁ ସରଳ ବାକ୍ୟରେ ପରିଣତ କରିବା:
(କ) ସେ ଚୋରି କଲା ଏବଂ ଦଣ୍ଡ ପାଇଲା । (ଯୌଗିକ)
ସେ ଚୋରି କରି ଦଣ୍ଡ ପାଇଲା । (ସରଳ)

(ଖ) ସେ ଘରକୁ ଗଲା ଓ ଭୋଗ ନେଇ ମନ୍ଦିରକୁ ଗଲା । (ଯୌଗିକ)
ସେ ଘରକୁ ଯାଇ ଭୋଗନେଇ ମନ୍ଦିରକୁ ଗଲା । (ସରଳ)

(୩) ଯୌଗିକ ବାକ୍ୟକୁ ଜଟିଳ ବାକ୍ୟରେ ପରିଣତ କରିବା :
ସନ୍ଧ୍ୟା ହେଲା ଓ ପକ୍ଷୀମାନେ ନିଜ ନିଜର ନୀଡ଼କୁ ଫେରିଆସିଲେ । (ଯୌଗିକ)
ରୂପାନ୍ତରିତ ବାକ୍ୟ : ଯେତେବେଳେ ସନ୍ଧ୍ୟା ହେଲା, ସେତେବେଳେ ପକ୍ଷୀମାନେ ନିଜ ନିଜର ନୀଡ଼କୁ ଫେରିଆସିଲେ । (ଜଟିଳ)

(୪) ଜଟିଳ ବାକ୍ୟକୁ ଯୌଗିକ ବାକ୍ୟରେ ପରିଣତ କରିବା:
ଯଦି ତୁମେ ଏକାଗ୍ର ଚିତ୍ତରେ ଭଗବାନ୍‌ଙ୍କୁ ପ୍ରାର୍ଥନା କରିବ, ତେବେ ସେ ତୁମର ଦୁର୍ଦ୍ଦଶା ଦୂର କରିବେ । (ଜଟିଳ)

ରୂପାନ୍ତରିତ ବାକ୍ୟ :
ଏକାଗ୍ର ଚିତ୍ତରେ ଭଗବାନଙ୍କୁ ପ୍ରାର୍ଥନା କର, ତେବେ ସେ ତୁମର ଦୁର୍ଦ୍ଦଶା ଦୂର କରିବେ ।
ଏକାଧିକ ସରଳ ବାକ୍ୟକୁ ଗୋଟିଏ ସରଳ ବାକ୍ୟରେ ପ୍ରକାଶ କରିବା:
ଦୃଷ୍ଟାନ୍ତ : (କ) ଚନ୍ଦ୍ର ଉଦିତ ହେଲେ । ଆକାଶ ନିର୍ମଳ ଦେଖାଗଲା ।
ଗୋଟିଏ ସରଳ ବାକ୍ୟ: ଚନ୍ଦ୍ରୋଦୟରେ ଆକାଶ ନିର୍ମଳ ଦେଖାଗଲା ।

(ଖ) ସକାଳ ହେଲା । ପକ୍ଷୀମାନେ ଉଡ଼ିଲେ ।
ଗୋଟିଏ ସରଳ ବାକ୍ୟ; ସକାଳ ହେବାରୁ ପକ୍ଷୀମାନେ ଉଡ଼ିଲେ ।

(ଗ) ବାବର ଜଣେ ବୀର ଥିଲେ । ତାଙ୍କୁ ଅଳ୍ପ ବୟସ ହୋଇଥିଲା ।
ସେ ପାନିପଥ ଯୁଦ୍ଧରେ ଜୟୀ ହେଲେ । (ଏଠାରେ ତିନୋଟି ସରଳ ବାକ୍ୟ ଅଛି ।)

(ଘ) ଏହି ବାଳକଟି ବିଦ୍ୟାଳୟରେ ପଢେ । ତାହାର ପିତା ବା ମାତା ନାହାନ୍ତି ।
ସେ ବଡ଼ ଦରିଦ୍ର । ସେ ପ୍ରତ୍ୟହ ବିଦ୍ୟାଳୟକୁ ଆସେ । ସେ ଭଲରୂପେ ପଢ଼େ ।
ରୂପାନ୍ତରିତ ସରଳ ବାକ୍ୟ : ଏହି ପିତୃମାତୃହୀନ ଦରିଦ୍ର ବାଳକଟି ପ୍ରତ୍ୟହ ବିଦ୍ୟାଳୟକୁ ଆସି ଭଲରୂପେ ପଢ଼େ ।

(ଙ) କାଶୀରେ ଅନେକ କବିରାଜ ଅଛନ୍ତି । ସେମାନେ ଉତ୍ତମ ପ୍ରତିଷ୍ଠାଲାଭ କରିଅଛନ୍ତି । ଭାରତର ଚାରିଆଡ଼େ ସେମାନଙ୍କର ନାମ ଶୁଣାଯାଏ । ସେମାନେ ଶହ ଶହ ଛାତ୍ରଙ୍କୁ ଶିକ୍ଷା ଦିଅନ୍ତି । ଯେଉଁ ପ୍ରଣାଳୀରେ ଛାତ୍ରୀମାନଙ୍କୁ ଶିକ୍ଷା ଦିଆଯାଏ, ତାହା ଆୟୁର୍ବେଦରେ ଉଲ୍ଲେଖ ଅଛି । (ଏକାଧ୍ଵ ସରଳ ବାକ୍ୟ)

ରୂପାନ୍ତରିତ ସରଳ ବାକ୍ୟ : କାଶୀରେ ଅନେକ ଲବ୍ଧପ୍ରତିଷ୍ଠ ଭାରତ ବିଖ୍ୟାତ ବଡ଼ ବଡ଼ କବିରାଜ ଶତ ଶତ ଛାତ୍ରମାନଙ୍କୁ ଆୟୁର୍ବେଦୋକ୍ତ ପ୍ରଣାଳୀରେ ଶିକ୍ଷା ଦିଅନ୍ତି।

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 5 ବ୍ୟାକରଣ ବିଭାଗ Question Answer

ନିମ୍ନରେ କେତେକ ସରଳ ବାକ୍ୟ ପ୍ରଦତ୍ତ ହୋଇଛି । ତାକୁ ଯୌଗିକ ବାକ୍ୟରେ ପରିଣତ କରାଯିବ ।

  • ସେ ଧନୀ। ସେ ସୁଖୀ ନୁହନ୍ତି । (ଏକାଧ୍ଯକ ସରଳ ବାକ୍ୟ)
    ସେ ଧନୀ, ମାତ୍ର ସୁଖୀ ନୁହନ୍ତି । (ଯୌଗିକ ବାକ୍ୟ)
  • ସେ ପୁରୀ ଯାଇଥବ । ସେ କଟକ ଯାଇଥିବ । (ଏକାଧିକ ସରଳ ବାକ୍ୟ)
    ସେ ପୁରୀ ଯାଇଥବ କିମ୍ବା କଟକ ଯାଇଥିବ । (ଯୌଗିକ ବାକ୍ୟ)
  • ଚନ୍ଦ୍ରର ନିଜର ଆଲୋକ ନାହିଁ । ଏହା ସୂର୍ଯ୍ୟଠାରୁ ଆଲୋକ ପାଇ ଆଲୋକିତ ହୁଏ । (ଏକାଧିକ ସରଳ ବାକ୍ୟ)
    ଚନ୍ଦ୍ରର ଆଲୋକ ନାହିଁ, ମାତ୍ର ଏହା ସୂର୍ଯ୍ୟଠାରୁ ଆଲୋକପାଇ ଆଲୋକିତ ହୁଏ । (ଯୌଗିକ ବାକ୍ୟ)

ଏକାଧିକ ସରଳ ବାକ୍ୟକୁ ଜଟିଳ ବାକ୍ୟରେ ପରିବର୍ତ୍ତନ କରିବା:
ଉଦାହରଣ:
(କ) ଥରେ ଅଯୋଧ୍ୟାର ରାଜା ଦଶରଥ ପାର୍ଶ୍ଵଚରଠାରୁ ଶୁଣିବାକୁ ପାଇଲେ । ଏକ ଶାଗୁଣାପକ୍ଷୀ ତାଙ୍କର ଚନ୍ଦ୍ରଶାଳା ଉପରେ ବସିଅଛି । ଶ୍ରୀରାମଚନ୍ଦ୍ରଙ୍କର ସେଦିନ ଅଭିଷେକ ହେବାର ଥାଏ । ମନ୍ତ୍ରୀ ଏହା ଅଶୁଭ ବୋଲି ପରାମର୍ଶ ଦେଲେ ।
ଜଟିଳ : ଶ୍ରୀରାମଚନ୍ଦ୍ରଙ୍କ ଅଭିଷେକ ଦିନ ଏକ ଶାଗୁଣାପକ୍ଷୀ (ଜଟାୟୁ) ଅଯୋଧ୍ୟାର ରାଜା ଦଶରଥଙ୍କ ଚନ୍ଦ୍ରଶାଳା ଉପରେ ବସିବାରୁ, ମନ୍ତ୍ରୀ ରାଜାଙ୍କୁ ଏହା ଅଶୁଭ ବୋଲି କହିଲେ ।

(ଖ) ସରଳ ବାକ୍ୟ : ତୁମ୍ଭେ ମୋତେ ଦେଇଥ‌ିବା ଖାତାଟି ନିଅ ।
ଜଟିଳ ବାକ୍ୟ : ତୁମ୍ଭେ ମୋତେ ଖାତାଟିଏ ଦେଇଥଲ, ସେ ଖାତାଟି ନିଅ ।

(ଗ) ଜଟିଳ ବାକ୍ୟ : ସେ କେବଳ ବିଦ୍ଵାନ ନୁହନ୍ତି, ଦୟାଳୁ ମଧ୍ଯ ।
ସରଳ ବାକ୍ୟ : ସେ ବିଦ୍ଵାନ ଓ ଦୟାଳୁ ।

(ଘ) ଏକାଧ୍ଵକ ସରଳ ବାକ୍ୟ : ଶିକ୍ଷକ ସବୁ ଛାତ୍ରକୁ ଉପଦେଶ ଦିଅନ୍ତି । ଅଳ୍ପ ଛାତ୍ର ସେ ଉପଦେଶ ଗ୍ରହଣ କରନ୍ତି ।
ଯୌଗିକ ବାକ୍ୟ : ଶିକ୍ଷକ ସବୁ ଛାତ୍ରଙ୍କୁ ଉପଦେଶ ଦିଅନ୍ତି, ମାତ୍ର ଅଳ୍ପ ଛାତ୍ର ତାହା ଗ୍ରହଣ କରନ୍ତି ।

(ଙ) ଜଟିଳ ବାକ୍ୟ : ସିଂହଟି କ୍ଷୁଧାତୁର ଥିଲା, ତଥାପି ସେ ଆନ୍ଦ୍ରୋକ୍ଲିସ୍‌ ଭକ୍ଷଣ କଲାନାହିଁ ।
ସରଳ ବାକ୍ୟ : ସିଂହଟି କ୍ଷୁଧାତୁର ଥିଲା । ସିଂହଟି ଆବ୍ରୋକ୍ଲିସ୍‌କୁ ଭକ୍ଷଣ କଲାନାହିଁ।

(ଚ) ଜଟିଳ ବାକ୍ୟ : ଅନ୍ୟଠାରୁ ଯେପରି ଆଶା କର, ଅନ୍ୟପ୍ରତି ସେହିପରି ବ୍ୟବହାର କର ।
ଯୌଗିକ ବାକ୍ୟ : ଅନ୍ୟଠାରୁ ଯେପରି ଆଶା କର ତାକୁ ସେପରି ବ୍ୟବହାର କର ।

ଯୌଗିକ ବାକ୍ୟ : ମନୁଷ୍ୟ ହାତକୁ ଧନ ଆସେ ଏବଂ ଅଳ୍ପକାଳ ପରେ ତାହା ହାତରୁ ଚାଲିଯାଏ ।
ସରଳ ବାକ୍ୟ : ମନୁଷ୍ୟ ହାତକୁ ଧନ ଆସେ। ଅଳ୍ପ କାଳ ପରେ ତାହା ଚାଲିଯାଏ ।

ଭାବ ବା ଅର୍ଥ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ବାକ୍ୟ ପରିବର୍ତ୍ତନ :
(ଜ) କୋଣାର୍କର ପ୍ରସ୍ତର ଚିତ୍ର ଅପୂର୍ବ । (ବିବୃତିସୂଚକ ବାକ୍ୟ) ଏକ ବାକ୍ୟଟିକୁ ପ୍ରଶ୍ନସୂଚକ, ବିସ୍ମୟସୂଚକ ବାକ୍ୟରେ ପରିଣତ କର ।
ପ୍ରଶ୍ନ ସୂଚକ ବାକ୍ୟ – କୋଣାର୍କର ପ୍ରସ୍ତର ଚିତ୍ର ଅପୂର୍ବ କି?
ବିସ୍ମୟ ସୂଚକ ବାକ୍ୟ – ବାଃ, କୋଣାର୍କର ପ୍ରସ୍ତର ଚିତ୍ର କି ଅପୂର୍ବ ହୋଇଛି ।

(ଝ) ଓ ମହାଭାରତ ପଢ଼ିବାବେଳେ ହୋଇଛି । (ଏହାକୁ ଆଦେଶ ସୂଚକ ଓ ପ୍ରଶ୍ନ ସୂଚକ ବାକ୍ୟରେ ପରିଣତ କର)
ପ୍ରଶ୍ନ ସୂଚକ ବାକ୍ଯ – ଓ, ମହାଭାରତ, ପଢ଼ିଲା ପରି ହୋଇଛି ତ?
ଆଦେଶ ସୂଚକ – ଓ, ମହାଭାରତ, ପଢ଼ି ପଢ଼ ।

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 3 ମଲାଜହ୍ନ Question Answer

Odisha State Board Plus Two First Year Optional Odia Question Answer Chapter 3 ମଲାଜହ୍ନ Textbook Exercise Questions and Answers.

Plus Two First Year Optional Odia Chapter 3 ମଲାଜହ୍ନ Question Answer

ପାଠ୍ୟପୁସ୍ତକସ୍ଥ ନମୁନା ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ ଓ ଉତ୍ତର

(କ) ୧ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ସମ୍ଭାବ୍ୟ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ ।

Question 1.
ବାପା ବଡ଼ ଶରଧାରେ ସତୀର ଜନ୍ମବେଳର ନାଁ କ’ଣ ଦେଇଥିଲେ?
(କ) ଅନୁପମା
(ଖ) ନିରୁପମା
(ଗ) ସତ୍ୟଭାମା
(ଘ) ପ୍ରିୟତମା
Answer:
(ଗ) ସତ୍ୟଭାମା

Question 2.
କାହାର ନାଁ ସାଙ୍ଗେ ବାହାର ଭିତର କୋଉଟା ତ ଟିକେ ମିଳୁ ନଥୁଲା?
(କ) ସତୀ
(ଖ) ସୌରଭୀ
(ଗ) ଚଇତା
(ଘ) ନାଥନନା
Answer:
(କ) ସତୀ

Question 3.
ସତୀ ଦୁଷ୍ଟପଣର ଗୋଟିଏ ଝିଅ ବୋଲି ସେଆଡ଼କୁ କିଏ ଏକାବେଳକେ ଆଖୁ ବୁଜି ଦେଇଥିଲେ?
(କ) ସାଙ୍ଗସାଥୀ
(ଖ) ବାପାମା
(ଗ) ଗାଁ ଲୋକେ
(ଘ) ବଡ଼ମା
Answer:
(ଖ) ବାପାମା

Question 4.
ବୋଉ ଅଜାଣତରେ ପାନପେଡ଼ିରୁ ବେଶୀକରି ଦି’ଖଣ୍ଡ ପାନ ଭାଙ୍ଗିଦେଇ ସତୀ କୁଆଡ଼କୁ ବାହାରି ପଡ଼ିଲା?
(କ) ଗାଁ ତୋଟା
(ଖ) ଗହୀର ବିଲ
(ଗ) ସାଇଆଡ଼େ ଟିକେ ବୁଲିଆସିବାକୁ
(ଘ) ମାମୁ ଘର
Answer:
(ଗ) ସାଇଆଡ଼େ ଟିକେ ବୁଲିଆସିବାକୁ

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 3 ମଲାଜହ୍ନ Question Answer

Question 5.
ଘର ଝିଅ, ପର ତ ଆଉ ଆସିବେ ନାହିଁ ଆକଟିବାକୁ– ଏକଥା କିଏ କହିଲେ?
(କ) ନାଥନନା
(ଖ) ବୋଉ
(ଗ) ଜମିଦାର
(ଘ) ବାପା
Answer:
(ଘ) ବାପା

Question 6.
ନିଉଛଣା ଜୀବନର ନିର୍ଲଜ କାହାଣୀଗୁଡ଼ିକୁ କାଗଜ ଉପରେ କିଏ ଢାଳି ଦେଇଛି?
(କ) ସତୀ
(ଖ) ନାଥନନା
(ଗ) ବଉଳ
(ଘ) ନିଶି
Answer:
(କ) ସତୀ

Question 7.
ପାଞ୍ଚ ବର୍ଷବେଳୁ, ଭଲକରି ଜ୍ଞାନ ହେବା ଆଗରୁ, ସମସ୍ତେ ତ ଆମ କୁଳରେ ପୁଣି ବାହା ହୁଅନ୍ତି – ଏକଥା କିଏ କହିଛି?
(କ) ସତୀର ବୋଉ
(ଖ) ସତୀ
(ଗ) ନାଥନନା
(ଘ) ଜମିଦାର
Answer:
(ଖ) ସତୀ

Question 8.
ଗାଁର କେଉଁ ପଟେ ଯୋରଟି ଲମ୍ବି ଯାଇଥିଲା?
(କ) ପୂର୍ବ
(ଖ) ପଶ୍ଚିମ
(ଗ) ଉତ୍ତର
(ଘ) ଦକ୍ଷିଣ
Answer:
(ଗ) ଉତ୍ତର

Question 9.
ସତୀ କଇଁଫୁଲ ତୋଳିବା ପାଇଁ କେଉଁ ପାଣିରେ ପଶିଥୁଲା?
(କ) ନଦୀ
(ଖ) ନାଳ
(ଗ) ଯୋର
(ଘ) ପୋଖରୀ
Answer:
(ଗ) ଯୋର

Question 10.
ମରୁନାଇଁ ବୁଡ଼ି ସିଆଡ଼େ, ଅଲକ୍ଷଣୀ ଟୋକୀ ! କିଏ କାହାକୁ କହିଛି?
(କ) ବୋଉ ସତୀକୁ
(ଖ) ନାଥନନା ସତୀକୁ
(ଗ) ଜମିଦାର ସତୀକୁ
(ଘ) ବାପା ସତୀକୁ
Answer:
(କ) ବୋଉ ସତୀକୁ

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 3 ମଲାଜହ୍ନ Question Answer

Question 11.
ସତୀର ବାପାଙ୍କ ନାଁ କ’ଣ?
(କ) ବୈଷ୍ଣବ ଦାଶ
(ଖ) ଅନାଦି ମିଶ୍ର
(ଗ) ଶରତ ପଣ୍ଡା
(ଘ) ଭରତ ପତି
Answer:
(ଖ) ଅନାଦି ମିଶ୍ର

Question 12.
ସତୀର ବାପା ଦାଣ୍ଡଘରେ ବସି କ’ଣ ଲେଖୁଥିଲେ?
(କ) ଚିଠି
(ଖ) ବହି
(ଗ) କବିତା
(ଘ) ପୋଥ୍
Answer:
(ଘ) ପୋଥ୍

Question 13.
ଗୋବର୍ଦ୍ଧନ କାନଗୋଇର ଝିଅ ନାଁ କ’ଣ?
(କ) ରୂପା
(ଖ) ସୁନା
(ଗ) ହୀରା
(ଘ) ମୋତି
Answer:
(ଗ) ହୀରା

Question 14.
ଦିନେ ଦିନେ ଖରାବେଳେ ସତୀ ବୋଉ ପାଖରେ ବସି କ’ଣ ପଢୁଥାଏ?
(କ) ଭାଗବତ
(ଖ) ରାମାୟଣ
(ଗ) ହରିବଂଶ
(ଘ) ଗୋପୀଭାଷା
Answer:
(ଖ) ରାମାୟଣ

Question 15.
ସତୀ ଆଉ ବଉଳ ମିଶି କେଉଁଥିରେ ଡଙ୍ଗା ତିଆରି କରୁଥିଲେ?
(କ) ମାଟିରେ
(ଖ) ସୋଲରେ
(ଗ) କାଗଜରେ
(ଘ) ପତରରେ
Answer:
(ଗ) କାଗଜରେ

Question 16.
ବାହାଘର ପ୍ରସଙ୍ଗ ଗୋଟାଏ ଅମୁହାଁ ଦେଉଳ ବୋଲି କାହାକୁ ଲାଗୁଥୁଲା?
(କ) ସତୀକୁ
(ଖ) ନାଥନନାକୁ
(ଗ) ସଇତାକୁ
(ଘ) ସତୀର ବୋଉକୁ
Answer:
(କ) ସତୀକୁ

Question 17.
କଇଁଫୁଲ ତୋଳିଲାବେଳେ ଯୋର ବନ୍ଧ ଉପରେ ସତୀ କାହାକୁ ଦେଖୁଲା?
(କ) ବାପା
(ଖ) ବୋଉ
(ଗ) ନାଥନନା
(ଘ) ବଉଳ
Answer:
(ଗ) ନାଥନନା

Question 18.
ଗାଁ ଜମିଦାର ସତୀର କେଉଁଠିକି ଯୋଗ୍ୟ ନୁହେଁ ବୋଲି ନାଥନନା ମନ୍ତବ୍ୟ ଦେଲେ?
(କ) ମଥାର ମଣିକୁ
(ଖ) ଗୋଡ଼ ଆଙ୍ଗୁଳିକୁ
(ଗ) ଓଳି ତଳକୁ
(ଘ) ଦେହର ମଳିକୁ
Answer:
(ଖ) ଗୋଡ଼ ଆଙ୍ଗୁଳିକୁ

Question 19.
ଥାଳିଆରୁ ପାନତକ ଉଠାଇ ନେଇ ନାଥନନା କେଉଁଠାକୁ ଫିଙ୍ଗିଦେଲେ?
(କ) ଦୁଆରକୁ
(ଖ) ଦାଣ୍ଡକୁ
(ଗ) ବାରିକୁ
(ଘ) ନଳାକୁ
Answer:
(କ) ଦୁଆରକୁ

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 3 ମଲାଜହ୍ନ Question Answer

Question 20.
କେଉଁଥରେ ସତୀର ସବୁଦିନେ ଶରଧା?
(କ) ଫୁଲରେ
(ଖ) ଖେଳରେ
(ଗ) ନାଚରେ
(ଘ) ରାନ୍ଧଣାରେ
Answer:
(କ) ଫୁଲରେ

Question 21.
କାହାକୁ ଟାଣ ଟାଣ କଥା କହିପକେଇଥିବାରୁ ସତୀର ମନ ଖରାପ ହେଉଥ୍ଲା?
(କ) ବାପାଙ୍କୁ
(ଖ) ନାଥନନାଙ୍କୁ
(ଗ) ବୋଉକୁ
(ଘ) ଜମିଦାରକୁ
Answer:
(ଖ) ନାଥନନାଙ୍କୁ

Question 22.
ସତୀର ବଉଳ କିଏ?
(କ) ଅନୁତାର ସ୍ତ୍ରୀ
(ଖ) ଜମିଦାରଙ୍କ ପୋଇଲି
(ଗ) ନାଥନନାଙ୍କ ଭଉଣୀ
(ଘ)ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ରଙ୍କ ଝିଅ
Answer:
(ଗ) ନାଥନନାଙ୍କ ଭଉଣୀ

Question 23.
ସତୀ ହାତରେ କ’ଣ ଧରି ଚିତା ଲେଖୁବାରେ ଲାଗିଗଲା?
(କ) ଦୀପ
(ଖ) ଡିବି
(ଗ) ଲଣ୍ଡନ
(ଘ) ମହମବତୀ
Answer:
(କ) ଦୀପ

Question 24.
ସତୀର ବଉଳର ନାଁ କ’ଣ?
(କ) ପୁଷି
(ଖ) ଶଶୀ
(ଗ) ନିଶି
(ଘ) ମୂଷି
Answer:
(ଗ) ନିଶି

Question 25.
ବାହାଘର ଦିନଠାରୁ ତା’ ଜୀବନ ଗୋଟିକ ଲାଗି ଏଆଡ଼େ କ’ଣ ଗଢ଼ା ହେଉଛି ବୋଲି ସତୀ କହିଛି?
(କ) ଗଳାହାର
(ଖ) ସୁନାଚୂଡ଼ି
(ଗ) ହୀରାମୁଦି
(ଘ) ଲୁହା ଶିକୁଳି
Answer:
(ଘ) ଲୁହା ଶିକୁଳି

Question 26.
କାହାକୁ ଇନ୍ଦ୍ର ଚନ୍ଦ୍ର ତାଙ୍କ ଜିଦ୍ରରୁ ଟଳେଇ ପାରିବେ ନାହିଁ?
(କ) ସତୀର ବାପାଙ୍କୁ
(ଖ) ନାଥନନାଙ୍କୁ
(ଗ) ଜମିଦାରଙ୍କୁ
(ଘ) ଅତୁତାକୁ
Answer:
(କ) ସତୀର ବାପାଙ୍କୁ

Question 27.
ମୁଁ ତ ଜୀବନ ଥାଉଁ ସତୀକି ସେ ବୁଢ଼ାଟା ସାଙ୍ଗେ ବାହା ଦେଇ ପାରିବି ନାହିଁ – ଏ କଥା କିଏ କହିଛି?
(କ) ସତୀର ବାପା
(ଖ) ସତୀର ବୋଉ
(ଗ) ନାଥନନା
(ଘ) ସତୀର ମାମୁ
Answer:
(ଖ) ସତୀର ବୋଉ

Question 28.
ବରଟା ବୁଢ଼ା ଆଉ ଦୋଭେଇ ବୋଲି ବାହାଘର ଭାଙ୍ଗିଦେବାକୁ କିଏ କହିଲେ?
(କ) ସତୀର ବୋଉ
(ଖ) ନାଥନନା
(ଗ) ସତୀର ବାପା
(ଘ) ସତୀର ବଉଳ
Answer:
(ଖ) ନାଥନନା

Question 29.
ବାହାଘର ସମ୍ବନ୍ଧ ଭାଙ୍ଗିବାକୁ କିଏ ରାଜି ହେଲେ ନାଇଁ?
(କ) ସତୀ
(ଖ) ନାଥନନା
(ଗ) ସତୀର ବାପା
(ଘ) ଜମିଦାର
Answer:
(ଗ) ସତୀର ବାପା

Question 30.
ନାଥନନାଙ୍କ ବୋଉକୁ ସତୀ କ’ଣ ବୋଲି ଡାକୁଥୁଲା?
(କ) ମାଉସୀ
(ଖ) ବଡ଼ମା’
(ଗ) ଅପା
(ଘ) ଆଈ
Answer:
(ଖ) ବଡ଼ମା’

Question 31.
ସତୀର ବର କିପିର ଥିଲା?
(କ) ଦରବୁଢ଼ା, ତ୍ରିପଣ୍ଡ କଳା
(ଖ) ଗୋରା, ସରୁ
(ଗ) ପତଳା, ଡେଙ୍ଗା
(ଘ) ଗେଡ଼ା, କଣା
Answer:
(କ) ଦରବୁଢ଼ା, ତ୍ରିପଣ୍ଡ କଳା

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 3 ମଲାଜହ୍ନ Question Answer

Question 32.
ନାଥନନା ଅଭିମାନ କରି କାହିଁକି ଚାଲି ଯାଇଥିଲେ?
(କ) ସତୀ ତାଙ୍କୁ ନମସ୍କାର ନ କରିବାରୁ
(ଖ) ନାଥନନାଙ୍କ ହାତକୁ ସତୀ ପାନ ନ ଦେବାରୁ
(ଗ) ତାଙ୍କ ଆଗରେ ଗୀତ ନ ଗାଇବାରୁ
(ଘ) ତାଙ୍କ କଥାରେ ନାଚ ନ କରିବାରୁ
Answer:
(ଖ) ନାଥନନାଙ୍କ ହାତକୁ ସତୀ ପାନ ନ ଦେବାରୁ

Question 33.
ରଙ୍ଗଣୀ ଫୁଲଗୁଡ଼ା ସତୀ ଉପରେ ଅଜାଡ଼ି ଦେଇ କ’ଣ ହେବ ବୋଲି ବଉଳ କହିଲା?
(କ) କୁଆଁର ପୁନେଇ ପୂଜା
(ଖ) ମଧୁଶଯ୍ୟା
(ଗ) ଫୁଲହାର
(ଘ) ପିଲାଖେଳ
Answer:
(ଖ) ମଧୁଶଯ୍ୟା

Question 34.
ବରଘର ସତୀକୁ ନେବା ପାଇଁ କ’ଣ ପଠେଇଲେଣି ବୋଲି ବଉଳ କହିଲା?
(କ) ଚିଠି
(ଖ) ଦୂତ
(ଗ) କଣ୍ଟ
(ଘ) ପିଆଦା
Answer:
(ଗ) କଣ୍ଟ

Question 35.
କେଉଁ ଜିନିଷ ପରି ଏ ଝିଅଗୁଡ଼ାଙ୍କୁ ଗୋଟାଏ କାହା ବେକରେ ଛନ୍ଦିଦେଲେ ଏମା’ ମାନଙ୍କର କର୍ତ୍ତବ୍ୟ ସରେ ବୋଲି ସତୀ କହିଛି?
(କ) ଜମିବାଡ଼ି
(ଖ) ଘରଦ୍ବାର
(ଗ) ଠାକୁର ବାସନ
(ଘ) ଘରର ଚଳନ୍ତ ଜିନିଷ
Answer:
(ଘ) ଘରର ଚଳନ୍ତି ଜିନିଷ

Question 36.
କେତେ ବର୍ଷରେ ନାଥର ଘାଟି ଥିଲା ବୋଲି ବଡ଼ମା’ କହିଲେ?
(କ) ବାଇଶ ବର୍ଷରେ
(ଖ) ବାର ବର୍ଷରେ
(ଗ) ବାଉନ ବର୍ଷରେ
(ଘ) ଷାଠିଏ ବର୍ଷରେ
Answer:
(କ) ବାଇଶ ବର୍ଷରେ

Question 37.
ସତୀ କେଉଁଦିନ ନାଥନନାଙ୍କ ଘରକୁ ଯାଇଥିଲା?
(କ) ନାଥନନାଙ୍କ ଜନ୍ମଦିନରେ
(ଖ) କୁଆଁର ପୁନେଇଁରେ
(ଗ) ନିଶିର ବାହାଘରରେ
(ଘ) ନାଥନନାଙ୍କ ବାହାଘରରେ
Answer:
(କ) ନାଥନନାଙ୍କ ଜନ୍ମଦିନରେ

Question 38.
ସତୀ ଦଣ୍ଡକରେ କେତେ ପିଠା ଗଢ଼ି ଥୋଇଦେଲାଣି ବୋଲି ବଡ଼ମା’ କାହାକୁ କହିଲେ?
(କ) ଅପୂର୍ବକୁ
(ଖ) ନେତବୋଉ ଖୁଡ଼ୀଙ୍କି
(ଗ) ନାଥନନାଙ୍କୁ
(ଘ) ବଉଳକୁ
Answer:
(ଖ) ନେତବୋଉ ଖୁଡ଼ୀଙ୍କି

Question 39.
ଭୟ ଆଉ ଭାବନାରେ ଦରମରା ହୋଇ ସତୀ ଦିନରାତି ଖାଲି ବିଛଣାରେ ପଡ଼ି ରହିଲା କାହିଁକି?
(କ) ତା’ର ଶାଶୂଘରକୁ ଯିବା ଆୟୋଜନ ହେବାରୁ
(ଖ) ତାକୁ ଜ୍ଵର ହେବାରୁ
(ଗ) ନାଥନନା ନ ଆସିବାରୁ
(ଘ) ତା’ ବୋଉଙ୍କର ଦେହ ଖରାପ ହେବାରୁ
Answer:
(କ) ତା’ର ଶାଶୂଘରକୁ ଯିବା ଆୟୋଜନ ହେବାରୁ

Question 40.
କାହାକୁ ବଳି ଦେବାକୁ ନେଲାବେଳେ ତା’ ଆଖୁର କରୁଣ ମିନତି କେହି ଶୁଣନ୍ତି ନାହିଁ?
(କ) ସିଂହ ଛୁଆକୁ
(ଖ) ନିରୀହ ଛେଳିଛୁଆକୁ
(ଗ) ବାଘ ଛୁଆକୁ
(ଘ) ମଇଁଷି ଛୁଆକୁ
Answer:
(ଖ) ନିରୀହ ଛେଳିଛୁଆକୁ

Question 41.
କେଉଁଦିନ ସତୀ କାନ୍ଦି କାନ୍ଦି ଅଚେତ ହୋଇପଡ଼ିଥିଲା?
(କ) ତା’ ବାହାଘର ଦିନ
(ଖ) କୁଆଁର ପୁନେଇଁ ଦିନ
(ଗ) ଶାଶୂଘରକୁ ଯିବାଦିନ
(ଘ) ନାଥନନାଙ୍କ ଜନ୍ମଦିନ
Answer:
(ଗ) ଶାଶୂଘରକୁ ଯିବାଦିନ

Question 42.
ସତୀର ସବାରୀ କବାଟ ଫାଙ୍କରେ କାହା ଦିହ ଦିଶୁଥିଲା?
(କ) ତା’ ବାପାଙ୍କର
(ଖ) ତା’ ବୋଉର
(ଗ) ଜମିଦାରଙ୍କର
(ଘ) ନାଥନନାଙ୍କର
Answer:
(ଘ) ନାଥନନାଙ୍କର

Question 43.
ଶାଶୂଘର ଯିବାପାଇଁ ସତୀକୁ କେତେ ସମୟ ଲାଗିଥିଲା?
(କ) ଗୋଟିଏ ରାତି
(ଖ) ଗୋଟିଏ ଦିନ
(ଗ) ଦୁଇଦିନ
(ଘ) ଗୋଟିଏ ଓଳି
Answer:
(କ) ଗୋଟିଏ ରାତି

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Question 44.
ସତୀ ବରର ମୁହଁଯାକ କ’ଣ ସଇଁ ହୋଇ ଯାଇଥିଲା?
(କ) ଅବିର ରଙ୍ଗ
(ଖ) କଟାଦାଗ
(ଗ) ବସନ୍ତର ଦାଗ
(ଘ) ପୋଡ଼ାଦାଗ
Answer:
(ଗ) ବସନ୍ତର ଦାଗ

Question 45.
ସତୀ ତା’ ସ୍ଵାମୀଙ୍କର କ’ଣ ଥିଲା?
(କ) ପ୍ରଥମ ସ୍ତ୍ରୀ
(ଖ) ଦ୍ଵିତୀୟ ସ୍ତ୍ରୀ
(ଗ) ରକ୍ଷିତା
(ଘ) ତୃତୀୟ ସ୍ତ୍ରୀ
Answer:
(ଖ) ଦ୍ବିତୀୟ ସ୍ତ୍ରୀ

Question 46.
ସ୍ଵାମୀଙ୍କ ମୁହଁ ଦେଖିବାପରେ ସତୀ ଯେଉଁ ଲାବଣ୍ୟସିନ୍ଧୁପଖଳା ଚିର ପରିଚିତ ମୁହଁଟି ମନେ ପକାଇଲା ତାହା କାହାର?
(କ) ନାଥନନାଙ୍କର
(ଖ) ତା’ ବାପାଙ୍କର
(ଗ) ତା’ ବଉଳର
(ଘ) ତା’ ବୋଉଙ୍କର
Answer:
(କ) ନାଥନନାଙ୍କର

Question 47.
ଶାଶୁଘରେ ସତୀ ବସିଥିବା କୋଠରୀରେ କ’ଣ ମୋଟେ ନଥିଲା?
(କ) ବିଜୁଳିବତୀ
(ଖ) ଖଟ
(ଗ) ଆଲମାରି
(ଘ) ଜଳାକବାଟି
Answer:
(ଘ) ଜଳାକବାଟି

Question 48.
ସତୀର ସଉତୁଣୀର ପୁଅ ନାଁ କ’ଣ?
(କ) ହଟ
(ଖ) ବଟ
(ଗ) ନଟ
(ଘ) ଜଟ
Answer:
(ଗ) ନଟ

Question 49.
ତା’ ବାପାକୁ କିଏ ଓଷଦ କରିଛି ବୋଲି ନଟ କହିଲା?
(କ) ଧାଈମା’
(ଖ) ନୂଆମା’
(ଗ) ଜେଜେମା
(ଘ) କେହି ନୁହେଁ
Answer:
(କ) ଧାଈମା’

Question 50.
ସତୀର ଶାଶୁଘରେ ପକ୍‌କା କୂଅଟି କେଉଁଠି ଥିଲା?
(କ) ଦାଣ୍ଡପଟେ
(ଖ) ବାଡ଼ିପଟେ
(ଗ) ପିଣ୍ଡାତଳେ
(ଘ) ମଝି ଅଗଣାରେ
Answer:
(ଗ) ପିଣ୍ଡାତଳେ

Question 51.
ଶାଶୂଘରେ ସତୀର ସକାଳ ଓଳିଟା କିପରି କଟେ?
(କ) ଶଶୁର ସେବାରେ
(ଖ) ସ୍ଵାମୀ ସେବାରେ
(ଗ) ଶାଶୁଙ୍କ ସେବାରେ
(ଘ) ପୂଜା କରିବାରେ
Answer:
(ଗ) ଶାଶୁଙ୍କ ସେବାରେ

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Question 52.
ସତୀଠାରୁ ଭଣ୍ଡାର ଘର ଚାବି କିଏ ମାଗିନେଲେ?
(କ) ତା’ ଶାଶୁ
(ଖ) ତା’ ସ୍ଵାମୀ
(ଗ) ନଟ
(ଘ) ସଉରଭୀ
Answer:
(ଖ) ତା’ ସ୍ଵାମୀ

Question 53.
କପିଳେଶ୍ୱରଙ୍କ ପାଖକୁ ଯିବାପାଇଁ କେତେଖଣ୍ଡ ସବାରୀ ଯୋଗାଡ଼ ହୋଇଥିଲା?
(କ) ଖଣ୍ଡ
(ଖ) ଦୁଇଖଣ୍ଡ
(ଗ) ତିନିଖଣ୍ଡ
(ଘ) ପାଞ୍ଚଖଣ୍ଡ
Answer:
(ଗ) ତିନିଖଣ୍ଡ

Question 54.
ସତୀକୁ ଦେଖୁଯିବାକୁ ବାପାସାନ୍ତେ କାହାକୁ ପଠାଇଥିଲେ?
(କ) ନିଧୂଆ
(ଖ) ପାଣୁଆ
(ଗ) ସଇତା
(ଘ) ନାଥୁଆ
Answer:
(ଗ) ସଇତା

Question 55.
ବୁଢ଼ା ଚାକର ସଇତା ସତୀକୁ କେଉଁ ନାଁରେ ସମ୍ବୋଧନ କରୁଥିଲା?
(କ) ସତୀମା’
(ଖ) ବୁଢ଼ିଆ
(ଗ) ବୁଢ଼ୀ
(ଘ) କୁନିମା’
Answer:
(ଗ) ବୁଢ଼ୀ

Question 56.
ନଟର ଜାଆଁଳା ବାଳ କେଉଁ ଠାକୁରଙ୍କ ପାଖରେ ପକାଇବାପାଇଁ ସ୍ଥିର ହୋଇଥିଲା?
(କ) ନୀଳକଣ୍ଠେଶ୍ଵର
(ଖ) ବାଲୁଙ୍କେଶ୍ଵର,
(ଗ) କପିଳେଶ୍ବର
(ଘ) ଭୁବନେଶ୍ବର
Answer:
(ଗ) କପିଳେଶ୍ୱର

Question 57.
ନାଥନନା କେତେ ଟଙ୍କା ଦେଇ ରାତିକ ପାଇଁ ଆଶ୍ରୟ ଦେବାପାଇଁ ସାହୁକୁ କହିଲେ?
(କ) ତିନୋଟି ଟଙ୍କା
(ଖ) ଟଙ୍କାଟିଏ
(ଗ) ଯୋଡ଼ିଏ ଟଙ୍କା
(ଘ) ଚାରି ଟଙ୍କା
Answer:
(ଗ) ଯୋଡ଼ିଏ ଟଙ୍କା

Question 58.
ଜମିଦାରଙ୍କ ଅସଲ ନାଁ କ’ଣ?
(କ) ରାମଚନ୍ଦ୍ର ମିଶ୍ର
(ଖ) ନରହରି ମିଶ୍ର
(ଗ) ସୀତାକାନ୍ତ ମହାନ୍ତି
(ଘ) ଅନୁତ ମିଶ୍ର
Answer:
(ଖ) ନରହରି ମିଶ୍ର

Question 59.
କଟକ ଛାଡ଼ି ନାଥନନା ଓ ସତୀ କେଉଁ ଗାଡ଼ିରେ ଗାଁକୁ ଗଲେ?
(କ) ରେଳଗାଡ଼ି
(ଖ) ବଳଦଗାଡ଼ି
(ଗ) ଶୂନଗାଡ଼ି
(ଘ) ଘୋଡ଼ାଗାଡ଼ି
Answer:
(ଖ) ବଳଦଗାଡ଼ି

Question 60.
ରେଳଗାଡ଼ିରେ ଯାଇ ସତୀ ଓ ନାଥନନା କେଉଁ ସହରରେ ଓହ୍ଲାଇଲେ?
(କ) ପୁରୀ
(ଖ) କଟକ
(ଗ) କଲିକତା
(ଘ) ବାଲେଶ୍ବର
Answer:
(ଖ) କଟକ

Question 61.
ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ରଙ୍କ ସ୍ତ୍ରୀ ସତୀ ସହିତ ପିଲାଦିନେ କ’ଣ ବସିଥିଲେ?
(କ) ବଉଳ
(ଖ) ସଙ୍ଗାତ
(ଗ) ଅଶୋକା
(ଘ) ମକର
Answer:
(ଗ) ଅଶୋକା

Question 62.
ନାଥନନାଙ୍କ ପୂରା ନାଁ କ’ଣ?
(କ) ଗୋପୀନାଥ ପହରାଜ
(ଖ) ଲୋକନାଥ ତ୍ରିପାଠୀ
(ଗ) ଯଦୁନାଥ ମହାପାତ୍ର
(ଘ) ପ୍ରିୟନାଥ ପାଣିଗ୍ରାହୀ
Answer:
(ଖ) ଲୋକନାଥ ତ୍ରିପାଠୀ

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Question 63.
କଟକରେ ସତୀ ପାଖରେ ଥିବା ଚାକରାଣୀର ନାଁ କ’ଣ?
(କ) ପୂରବୀ
(ଖ) ମାଧବୀ
(ଗ) ସାଧବୀ
(ଘ) କରବୀ
Answer:
(ଗ) ସାଧବୀ

Question 64.
ସତୀର ବାପା ବୋଉ ଚାଲିଗଲା ପରେ ବୁଢ଼ା ଚାକର ସଇତା କାହା ଘରେ କାମ କରୁଥିଲା?
(କ) ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ର
(ଖ) ଅଦ୍ଭୁତ ମହାନ୍ତି
(ଗ) ଲୋକନାଥ ତ୍ରିପାଠୀ
(ଘ) ସଦାଶିବ ଦାସ
Answer:
(ଖ) ଅଦ୍ଭୁତ ମହାନ୍ତି

Question 65.
ମୁହଁ ପୋଡ଼ା ବାମୁଣଗୁଡ଼ାକ କେଉଁଠାରେ ନିଶାପ କରୁଛନ୍ତି ବୋଲି ସଇତା କହିଲା?
(କ) ଗାଁ ଚଉପାଢ଼ୀରେ
(ଖ) ଭାଗବତ ଟୁଙ୍ଗୀରେ
(ଗ) ଝୁଲଣ ମଣ୍ଡପରେ
(ଘ) ଗାଁ ଦାଣ୍ଡରେ
Answer:
(ଖ) ଭାଗବତ ଟୁଙ୍ଗୀରେ

Question 66.
ସତୀ ଜୀବନରେ କାହାକୁ ତା’ ନିଜର ବୋଲି ଅନୁଭବ କରିଥିଲା?
(କ) ବଉଳ ନିଶିକୁ
(ଖ) ବୁଢ଼ାଚାକର ସତିଆକୁ
(ଗ) ନାଥନନାଙ୍କୁ
(ଘ) ସ୍ଵାମୀ ନରହରି ମିଶ୍ରଙ୍କୁ
Answer:
(ଗ) ନାଥନନାଙ୍କୁ

Question 67.
ନାଥନନା ଘରେ ବସି କାମ ଚଳିଲା ଭଳି କ’ଣ ଗୋଟାଏ ସଜାଡୁଥିଲେ?
(କ) ବାଟୁଳିଖଡ଼ା
(ଖ) ବନ୍ସୀଖଡ଼ା
(ଗ) ଖେପାଜାଲ
(ଘ) ଫାଶିଜାଲ
Answer:
(ଖ) ବନ୍ସୀଖଡ଼ା

Question 68.
‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସର ଲେଖକ କିଏ?
(କ) କାହ୍ନୁ ଚରଣ ମହାନ୍ତି
(ଖ) ଶାନ୍ତନୁ କୁମାର ଆଚାର୍ଯ୍ୟ
(ଗ) ଗୋପୀନାଥ ମହାନ୍ତି
(ଘ) ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
Answer:
(ଘ) ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ

Question 69.
‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସର ନାୟକ କିଏ?
(କ) ଦାସନନା
(ଖ) ନାଥନନା
(ଗ) ପଞ୍ଚୁନନା
(ଘ) ବୁଢ଼ାନନା
Answer:
(ଖ) ନାଥନନା

Question 70.
‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସର ନାୟିକାର ନାମ କ’ଣ?
(କ) ସତୀ
(ଖ) ନେତୀ
(ଗ) ପ୍ରୀତି
(ଘ) ଗୀତି
Answer:
(କ) ସତୀ

Question 71.
ସତୀର ଶାଶୂଘର ଗାଁ ନାଁ କ’ଣ?
(କ) ଗୋବିନ୍ଦପୁର
(ଖ) ମଦନପୁର
(ଗ) ମୁକୁନ୍ଦପୁର
(ଘ) ବନମାଳିପୁର
Answer:
(ଗ) ମୁକୁନ୍ଦପୁର

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 3 ମଲାଜହ୍ନ Question Answer

Question 72.
ସତୀଠାରୁ ତା’ର ବଉଳ ନିଶିର ବୟସ କେତେ ବର୍ଷ ସାନ ହେବ?
(କ) ଚାରିବର୍ଷ
(ଖ) ବର୍ଷେ
(ଗ) ଦୁଇବର୍ଷ
(ଘ) ତିନିବର୍ଷ
Answer:
(କ) ଚାରିବର୍ଷ

Question 73.
ବୟସରେ ସ୍ଵାମୀ କାହା ସାଙ୍ଗର ହେବେ ବୋଲି ସତୀ ଅନୁମାନ କରିଛି?
(କ) ନାଥନନାଙ୍କ ସାଙ୍ଗର
(ଖ) ବାପାଙ୍କ ସାଙ୍ଗର
(ଗ) ସତିଆ ସାଙ୍ଗର
(ଘ) ଅନୁତା ସାଙ୍ଗର
Answer:
(ଖ) ବାପାଙ୍କ ସାଙ୍ଗର

Question 74.
ସତୀକୁ ଖୋଜୁ ଖୋଜୁ ଅନ୍ଧାରରେ ତା’ର ସ୍ୱାମୀଙ୍କ ମୁଣ୍ଡ କେଉଁଠାରେ ଖୁବ୍ ଜୋର୍‌ରେ ବାଡ଼େଇ ହୋଇଗଲା?
(କ) କାନ୍ଥରେ
(ଖ) କବାଟରେ
(ଗ) ଖଟ ଦିହରେ
(ଘ) ଦୁଆରବନ୍ଧରେ
Answer:
(ଗ) ଖଟ ଦିହରେ

Question 75.
ନଟ ସତୀକୁ କ’ଣ ବୋଲି କହି ଡାକୁଥୁଲା?
(କ) ମାଉସୀ
(ଖ) ନୂଆମା’
(ଗ) ବୋଉ
(ଘ) ଅପା
Answer:
(ଖ) ନୂଆମା’

Question 76.
ସତୀର ଶାଶୁଘରେ ଥିବା ଧାଈମା’ର ନାଁ କ’ଣ?
(କ) ବନଲତା
(ଖ) ତଅପୋଇ
(ଗ) ସଉରଭୀ
(ଘ) ଆଶାଲତା
Answer:
(ଗ) ସଉରଭୀ

Question 77.
ସତୀର ଶାଶୁଙ୍କୁ କେଉଁ କାମରେ ଦଣ୍ଡେ ଫୁରୁସତ୍ ନଥାଏ?
(କ) ଘର କାମରେ
(ଖ) ଠାକୁରପୂଜାରେ
(ଗ) ରନ୍ଧାବଢ଼ାରେ
(ଘ) ଅତିଥ୍ ଚର୍ଚ୍ଚାରେ
Answer:
(ଖ) ଠାକୁରପୂଜାରେ

Question 78.
କେଉଁ ଘୋଡ଼ା ଉପରେ ଚଢ଼ି ନଟ ଖେଳୁଥିଲା?
(କ) ମାଟିଘୋଡ଼ା
(ଖ) କାଠଘୋଡ଼ା
(ଗ) ବେତଘୋଡ଼ା
(ଘ) ଲୁହାଘୋଡ଼ା
Answer:
(କ) ମାଟିଘୋଡ଼ା

Question 79.
ସତୀର ସ୍ଵାମୀ ତାକୁ କେଉଁଘର ଚାବି ମାଗିଲେ?
(କ) ଶୋଇବାଘର
(ଖ) ଭଣ୍ଡାରଘର
(ଗ) ଖମାରଘର
(ଘ) ଠାକୁରଘର
Answer:
(ଖ) ଭଣ୍ଡାରଘର

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 3 ମଲାଜହ୍ନ Question Answer

Question 80.
ସତୀକୁ ଭଣ୍ଡାରଘର ଚାବି କିଏ ଦେଇଥିଲେ?
(କ) ସ୍ଵାମୀ
(ଖ) ଶାଶୁ
(ଗ) ସଉରଭୀ
(ଘ) ଚମ୍ପାମା’
Answer:
(ଖ) ଶାଶୁ

Question 81.
କେତେ ଦିନରେ ଶାଶୂ ପୁରୀରୁ ଫେରିଆସିବେ ବୋଲି ସତୀକୁ କହିଲେ?
(କ) ମାସ ଦୁଇଟାରେ
(ଖ) ମାସ ଛଅଟାରେ
(ଗ) ମାସ ଚାରିଟାରେ
(ଘ) ମାସ ଗୋଟାକରେ
Answer:
(ଘ) ମାସ ଗୋଟାକରେ

Question 82.
ସେଦିନ ରାତିରେ ସାହୁ ନାଥନନା ଓ ସତୀଙ୍କୁ କ’ଣ ଜଳଖୁଆ ଖାଇବାକୁ ଦେଇଥୁଲା?
(କ) ଛେନାଗଜା
(ଖ) ରସଗୋଲା
(ଗ) କ୍ଷୀରଗଜା
(ଘ) ମାଲପୁଆ
Answer:
(ଖ) ରସଗୋଲା

Question 83.
ସତୀର ସ୍ଵାମୀ ସତୀକୁ କେଉଁଠାକୁ ନେଇଯିବାପାଇଁ ନାଥନନାଙ୍କୁ କହିଲେ?
(କ) ସତୀର ବାପଘରକୁ
(ଖ) ସହରର ବେଶ୍ୟାପଡ଼ାକୁ
(ଗ) ଅନାଥାଶ୍ରମକୁ
(ଘ) ମହିଳା ନିକେତନକୁ
Answer:
(ଖ) ସହରର ବେଶ୍ୟାପଡ଼ାକୁ

Question 84.
ସତୀର ଭାବନାରେ କେଉଁ ଜାତିଟା ସବୁଠୁଁ ନିଉଛଣା, ସବୁଠୁଁ ହତଭାଗ୍ୟ?
(କ) ପୁରୁଷ ଜାତିଟା
(ଖ) ମଣିଷ ଜାତିଟା
(ଗ) ନଡ଼ିଆ ତେଲ
(ଘ) ଜଡ଼ାତେଲ
Answer:
(ଗ) ସ୍ତ୍ରୀ ଜାତିଟା

Question 85.
ନାଥନନାଙ୍କ ହାତକୁ ଗରମ ପାଣିରେ ଧୋଇଦେଇ ସତୀ କେଉଁ ତେଲ ପଟିବାନ୍ଧି ଦେଲା?
(କ) ସୋରିଷ ତେଲ
(ଖ) ରାଶିତେଲ
(ଗ) ସ୍ତ୍ରୀ ଜାତିଟା
(ଘ) ଭିକାରୀ ଜାତିଟା
Answer:
(ଗ) ନଡ଼ିଆ ତେଲ

Question 86.
ନାଥନନା ପିଣ୍ଡାରେ ବସି ତାଙ୍କ ପଢ଼ିବା ଦିନର କ’ଣ ସବୁ ସଜାଡ଼ି ରଖୁଥିଲେ?
(କ) ପୁରୁଣା ଖାତା
(ଖ) ପୁରୁଣା ବହି
(ଗ) ପୁରୁଣା ଚିଠି
(ଘ) ପୁରୁଣା ସାର୍ଟିଫିକେଟ୍
Answer:
(କ) ପୁରୁଣା ଖାତା

Question 87.
ଅଚୁତି କେଉଁ ପଦବୀରେ ଥିଲେ?
(କ) ଗାଁ ପଞ୍ଚାୟତର ସରପଞ୍ଚ
(ଖ) ଗ୍ରାମସଭାର ମୁଖ୍
(ଗ) ଗାଁ ଚାଟଶାଳୀର ମାଷ୍ଟର
(ଘ) ଗାଁ ଡାକଘରର ପୋଷ୍ଟମାଷ୍ଟର
Answer:
(ଗ) ଗାଁ ଚାଟଶାଳୀର ମାଷ୍ଟର

Question 88.
ସଇତା ଲୁଗା କାନି ଭିତରୁ କ’ଣ କାଢ଼ି ସତୀକୁ ଦେଲା?
(କ) ଗୋଟିଏ ନୋଟ୍ ବିଡ଼ା
(ଖ) ଖଣ୍ଡେ ଧଳା କାଗଜ
(ଗ) ହଳେ ପେଣ୍ଡୁଫୁଲ
(ଘ) ପଟେ ସୁନା ଶଙ୍ଖା
Answer:
(ଖ) ଖଣ୍ଡେ ଧଳା କାଗଜ

Question 89.
ତା’ ନାଁରେ କିଏ ଏତଲା ଦେବାକୁ ଯାଉଛନ୍ତି ବୋଲି ଅଚୁତା ଶୁଣିଲା?
(କ) ନାଥନନା
(ଖ) ସତୀ
(ଗ) ସଇତା
(ଘ) ପ୍ରଭାକର
Answer:
(କ) ନାଥନନା

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 3 ମଲାଜହ୍ନ Question Answer

Question 90.
ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ର କ’ଣ ଛୁଇଁ ଶପଥ କରିଗଲେ?
(କ) ଭାଗବତ ପୋଥ୍
(ଖ) ମହାପ୍ରସାଦ
(ଗ) ପଇତା
(ଘ) ତୁଳସୀଚଉରା
Answer:
(ଗ) ପଇତା

Question 91.
ସତୀ ସାହିର କାହା ଘରକୁ ଯିବାପାଇଁ ଚାହୁଁଥିଲା?
(କ) ଅଚୁତି ମହାନ୍ତିଙ୍କ ଘରକୁ
(ଖ) ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ରଙ୍କ ଘରକୁ
(ଗ) ସଇତା ଘରକୁ
(ଘ) ଗୋବର୍ଦ୍ଧନ କାନଗୋଇ ଘରକୁ
Answer:
(ଖ) ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ରଙ୍କ ଘରକୁ

Question 92.
ସତୀକୁ ଘରୁ ବାହାର କରିଦେଇ ବ୍ରାହ୍ମଣ ସମାଜ ପାଖରେ କ୍ଷମା ମାଗି କ’ଣ କରିବା ପାଇଁ ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ର ନାଥନନାଙ୍କୁ ପରାମର୍ଶ ଦେଲେ?
(କ) ଆଶୀର୍ବାଦ ନେବା
(ଖ) ଜାତି ହେବା
(ଗ) ପ୍ରଣିପାତ ହେବା
(ଘ) ପଞ୍ଚଗବ୍ୟ କରିବା
Answer:
(ଘ) ପଞ୍ଚଗବ୍ୟ କରିବା

Question 93.
ବ୍ରାହ୍ମଣ ସମାଜ ପାଖରେ କ୍ଷମା ମାଗିନେଇ ଟିକିଏ ପଞ୍ଚଗବ୍ୟ କରିଦେଲେ ଅଡ଼ୁଆ ଛିଡ଼ିଯିବ ବୋଲି ନାଥନନାଙ୍କୁ କିଏ ପରାମର୍ଶ ଦେଲେ?
(କ) ଅଚୁତି ମହାନ୍ତି
(ଖ) ଗୋବର୍ଦ୍ଧନ କାନଗୋଇ
(ଗ) ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ର
(ଘ) ଅଗାଧୁ ମହାପାତ୍ରେ
Answer:
(ଗ) ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ର

Question 94.
କାହାର ଖୁସି ଉପରେ ନ୍ୟାୟର ବାଟ ଗଢ଼ା ହୁଏ?
(କ) ସରପଞ୍ଚର
(ଖ) ଗଉଁତିଆର
(ଗ) ଜମିଦାରର
(ଘ) ମାଲିକର
Answer:
(ଗ) ଜମିଦାରର

Question 95.
ଧାଈମା’ର ନାମ କ’ଣ?
(କ) ମାଳତି
(ଖ) ସୌରଭୀ
(ଗ) ସବିତା
(ଘ) ଗୁରୁବାରି
Answer:
(ଖ) ସୌରଭୀ

Question 96.
ନଟ କିଏ?
(କ) ଜମିଦାରଙ୍କ ପୁଅ
(ଖ) ସତୀର ପୁଅ
(ଗ) ସଇତାର ପୁଅ
(ଘ) ସୌରଭୀର ପୁଅ
Answer:
(କ) ଜମିଦାରଙ୍କ ପୁଅ

Question 97.
ନାଥନନା କଟକରେ କ’ଣ ଖୋଜୁଥିଲେ?
(କ) ଚାକିରି
(ଖ) ଘରଭଡ଼ା
(ଗ) ଘରଡ଼ିହ
(ଘ) ମୋଟରଗାଗଡ଼ି
Answer:
(କ) ଚାକିରି

Question 98.
ସତୀର ବାପା ବୋଉ କିପରି ମଲେ?
(କ) ହଇଜାରେ
(ଖ) ବସନ୍ତରେ
(ଗ) ଦୁର୍ଘଟଣାରେ
(ଘ) ଚିନ୍ତାଗ୍ରସ୍ତ ହୋଇ
Answer:
(କ) ହଇଜାରେ

Question 99.
ନାଥନନାଙ୍କର ହାତ କେମିତି ପୋଡ଼ିଗଲା?
(କ) ଚୂଲି ନିଆଁରେ
(ଖ) ମହମବତୀ ନିଆଁରେ
(ଗ) ତତଲା ପେଜ ପଡ଼ି
(ଘ) ଘର ପୋଡ଼ିରେ
Answer:
(କ) ଚୂଲି ନିଆଁରେ

Question 100.
କେତେବର୍ଷ ଲାଗି ଲାଗି ମଧ୍ୟ ଅନୁତା ଅପର ପ୍ରାଇମେରୀ ପାଶ୍ କରି ପାରିନଥିଲା?
(କ) ୩ ବର୍ଷ
(ଖ) ୪ ବର୍ଷ
(ଗ) ୮ ବର୍ଷ
(ଘ) ୫ ବର୍ଷ
Answer:
(ଘ) ୫ ବର୍ଷ

Question 101.
କାହା ଅନୁଗ୍ରହରୁ ଅଦ୍ଭୁତ ଗାଁ ଚାଟଶାଳୀରେ ଚାକିରି ପାଇ ପାରିଥିଲା?
(କ) ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ର
(ଖ) ଲୋକନାଥ ତ୍ରିପାଠୀ
(ଗ) ଜମିଦାର
(ଘ) ବିଷ୍ଣୁଦାସ
Answer:
(ଖ) ଲୋକନାଥ ତ୍ରିପାଠୀ

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 3 ମଲାଜହ୍ନ Question Answer

Question 102.
ମୋର ତୋ’ ଉପରେ ଷୋଳପଣ ଅଧିକାର – ଏକଥା କିଏ କାହାକୁ କହିଛି?
(କ) ଜମିଦାର ସତୀକୁ
(ଖ) ସତୀର ବାପା ସତୀକୁ
(ଗ) ନାଥନନା ସତୀକୁ
(ଘ) ସୌରଭୀ ନଟକୁ
Answer:
(କ) ଜମିଦାର ସତୀକୁ

Question 103.
ଇହ ପରକାଳରେ ସ୍ଵାମୀଛଡ଼ା ସ୍ତ୍ରୀର ଅନ୍ୟଗତି ନାହିଁ ବୋଲି କେଉଁଠି ଅଛି?
(କ) ଇତିହାସରେ
(ଖ) ଗଣିତରେ
(ଗ) ଶାସ୍ତ୍ରରେ
(ଘ) ବିଜ୍ଞାନରେ
Answer:
(ଗ) ଶାସ୍ତ୍ରରେ

Question 104.
ଡଙ୍ଗା ଭିତରୁ ନଟ ପାଟିକରି କାହାକୁ ଡାକିଲା?
(କ) ନୂଆମା’କୁ
(ଖ) ସୌରଭୀକୁ
(ଗ) ବାପାକୁ
(ଘ) ଧାଈମା’କୁ
Answer:
(କ) ନୂଆମା’କୁ

(ଖ) ୧ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ଏକ ବାକ୍ୟରେ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ ।

Question 1.
ଜନ୍ମ ହେଲାବେଳେ ବାପା ଶରଧାରେ ସତୀର ନାଁ କ’ଣ ଦେଇଥିଲେ?
Answer:
ଜନ୍ମ ହେଲାବେଳେ ବାପା ଶରଧାରେ ସତୀର ନାଁ ସତ୍ୟଭାମା ଦେଇଥିଲେ ।

Question 2.
ବାପା ଦାଣ୍ଡଘରେ ବସି କ’ଣ ଲେଖୁଥିଲେ?
Answer:
ବାପା ଦାଣ୍ଡଘରେ ବସି ପୋଥ୍ ଲେଖୁଥିଲେ ।

Question 3.
ଗୋବର୍ଦ୍ଧନ କାନଗୋଇର ଝିଅ ନାଁ କ’ଣ?
Answer:
ଗୋବର୍ଦ୍ଧନ କାନଗୋଇର ଝିଅ ନାଁ ହୀରା ।

Question 4.
ସେଦିନ ହଠାତ୍ ବନ୍ଧ ଉପରେ ସତୀ କାହାର ପାଟି ଶୁଣି ଚମକି ପଡ଼ିଲା?
Answer:
ସେଦିନ ହଠାତ୍ ବନ୍ଧ ଉପରେ ସତୀ ନାଥନନାର ପାଟି ଶୁଣି ଚମକି ପଡ଼ିଲା ।

Question 5.
ଶୈଶବରେ ସତୀ କେଉଁ ସ୍ୱଭାବର ଥିଲା?
Answer:
ଶୈଶବରେ ସତୀ ଟିକେ ଚଞ୍ଚଳ ଓ ଚପଳ ତଥା ଦୁଷ୍ଟ ସ୍ଵଭାବର ଥିଲା ।

Question 6.
ନାଥନନା କେଉଁ ଛୁଟିରେ ଘରକୁ ଆସିଥିଲେ?
Answer:
ନାଥନନା ଦଶହରା ଛୁଟିରେ ଘରକୁ ଆସିଥିଲେ ।

Question 7.
ବରଘରର ସମ୍ପରି କଥା ଶୁଣି ସତୀ କ’ଣ ଅନୁଭବ କଲା?
Answer:
ବରଘରର ସଂପରି କଥା ଶୁଣି ସତୀ ମନେ ମନେ ଖୁସି ହୋଇଯାଇଛି ତା’ର ଛାତି କୁଣ୍ଢେମୋଟ ହୋଇଯାଇଛି ।

Question 8.
ସତୀର ବର ଦେଖୁବାକୁ କିପରି ବୋଲି ବର୍ଣ୍ଣନା ହୋଇଛି?
Answer:
ସତୀର ବର ଦେଖୁବାକୁ ଦରବୁଢ଼ା, ମୋଟା, କଳା ବୋଲି ବର୍ଣ୍ଣନା ହୋଇଛି ।

Question 9.
ସତୀର ବର ଶରୀରରେ କେଉଁ ଅଳଙ୍କାର ପରିଧାନ କରିଥିଲେ?
Answer:
ସତୀର ବର ଶରୀରରେ ସୁନାହାର ଓ ଖଡୁ ଅଳଙ୍କାର ପରିଧାନ କରିଥିଲେ ।

Question 10.
ସତୀକୁ ପୁଆଣି କରି ବାପା କେଉଁ ମାସରେ ପଠେଇବେ ବୋଲି କହୁଥିଲେ?
Answer:
ସତୀକୁ ପୁଆଣି କରି ବାପା ମାଘମାସରେ ପଠେଇବେ ବୋଲି କହୁଥିଲେ ।

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Question 11.
ସତୀଠାରୁ ତା’ର ବଉଳ ବୟସରେ କେତେ ବର୍ଷ ସାନ ହେବ?
Answer:
ସତୀଠାରୁ ତା’ ବଉଳ ବୟସରେ ୪ ବର୍ଷ ସାନ ହେବ ।

Question 12.
ଦିହଯାକ ଅଷ୍ଟଅଳଙ୍କାର ମଣ୍ଡି ହୋଇଥିବାର ସତୀ କାହାକୁ ଦେଖୁଲା?
Answer:
ଦିହଯାକ ଅଷ୍ଟଅଳଙ୍କାର ମଣ୍ଡି ହୋଇଥିବାର ସତୀ ତା’ ଶାଶୁମା’କୁ ଦେଖୁଲା ।

Question 13.
ସତୀର ଶାଶୂଘରେ ଥିବା ଧାଈମା’ର ନାଁ କ’ଣ?
Answer:
ସତୀର ଶାଶୂଘରେ ଥ‌ିବା ଧାଈମା’ର ନାଁ ସୌରଭୀ ।

Question 14.
ଧାଈମା’ କି କାମ କରେ ବୋଲି ନଟ କହିଲା?
Answer:
ଧାଈମା’ ନଟକୁ ଦୁଧ ପେଇଦିଏ, ଦାଣ୍ଡକୁ ବୁଲେଇନେବା କାମ କରେ ବୋଲି ନଟ କହିଛି ।

Question 15.
ସତୀକୁ ଭଣ୍ଡାର ଘର ଚାବି କିଏ ଦେଲେ?
Answer:
ସତୀକୁ ଭଣ୍ଡାର ଘର ଚାବି ସତୀର ଶାଶୁମା’ ଦେଲେ ।

Question 16.
ଗୋଟାଏ ଭଙ୍ଗା ମାଟି ଘୋଡ଼ା ଉପରେ ଚଢ଼ି କିଏ ଖେଳୁଥିଲା?
Answer:
ଗୋଟିଏ ଭଙ୍ଗା ମାଟି ଘୋଡ଼ା ଉପରେ ଚଢ଼ି ନଟ ଖେଳୁଥିଲା ।

Question 17.
ଭଲ ଘୋଡ଼ାଟିଏ କିଣି ଦେବାପାଇଁ ନଟ କାହାକୁ କହିଲା?
Answer:
ଭଲ ଘୋଡ଼ାଟିଏ କିଣି ଦେବାପାଇଁ ନଟ ନୂଆମା’ ତଥା ସତୀକୁ କହିଲା ।

Question 18.
ସତୀକୁ ଦେଖୁଯିବାପାଇଁ ବାପା ସାନ୍ତେ କାହାକୁ ପଠାଇଥିଲେ?
Answer:
ସତୀକୁ ଦେଖୁଯିବାପାଇଁ ବାପା ସାନ୍ତେ ଘରର ଚାକର ସଇତାକୁ ପଠାଇଥିଲେ ।

Question 19.
ସତୀ ବାପଘରର ବୁଢ଼ା ଚାକର ନାଁ କ’ଣ?
Answer:
ସତୀ ବାପଘରର ବୁଢ଼ା ଚାକର ନାଁ ସଇତା ।

Question 20.
କେଉଁ ଠାକୁରଙ୍କ ପାଖରେ ନଟର ବାଳ ପଡ଼ିବାର ସ୍ଥିର ହୋଇଥିଲା ?
Answer:
କପିଳେଶ୍ଵର ମହାଦେବ ଠାକୁରଙ୍କ ପାଖରେ ନଟର ବାଳ ପଡ଼ିବାର ସ୍ଥିର ହୋଇଥିଲା ।

Question 21.
ନଟର ବାଳ ପକାଇ ଯିବାପାଇଁ କେତେଖଣ୍ଡ ସବାରୀ ଯୋଗାଡ଼ ହୋଇଥିଲା?
Answer:
ନଟର ବାଳ ପକାଇ ଯିବାପାଇଁ ତିନି ଖଣ୍ଡ ସବାରୀ ଯୋଗାଡ଼ ହୋଇଥିଲା ।

Question 22.
ସତୀର ସ୍ଵାମୀଙ୍କ ନାଁ କ’ଣ?
Answer:
ସତୀର ବର ତଥା ସ୍ଵାମୀର ନାଁ ନରହରି ମିଶ୍ର ।

Question 23.
ନାଥନନା ଅନ୍ନପୂର୍ଣ୍ଣା ବୋଲି କାହାକୁ କହିଲେ?
Answer:
ନାଥନନା ଅନ୍ନପୂର୍ଣ୍ଣା ବୋଲି ସତୀକୁ କହିଲେ ।

Question 24.
ହୋଟେଲରେ ଖାଇବାପାଇଁ ସତୀ ନାଥନନାଙ୍କୁ ବାରଣ କରୁଥିଲା କାହିଁକି?
Answer:
ହୋଟେଲରେ ଖାଇବାପାଇଁ ସତୀ ନାଥନନାଙ୍କୁ ବାରଣ କରିବାର କାରଣ କଟକରେ ବସନ୍ତ ବ୍ୟାପିଛି । ତେଣୁ ସେ ନାଥନନାଙ୍କୁ କଟକର ହୋଟେଲରେ ନଖାଇବାକୁ କହିଛି ।

Question 25.
ଶେଷରେ ନାଥନନା ସତୀକୁ ନେଇ ଗାଁକୁ ଯିବାକୁ ସ୍ଥିର କଲେ କାହିଁକି?
Answer:
ନାଥନନାଙ୍କ ପାଖରେ ସଞ୍ଚିତ ଥିବା ସମସ୍ତ ଅର୍ଥରାଶି ଶେଷ ହୋଇଯିବାରୁ ନାଥନନା ସତୀକୁ ନେଇ ଗାଁକୁ ଯିବାକୁ ସ୍ଥିର କଲେ ।

Question 26.
ବଡ଼ମା’ କେଉଁ ମାସରୁ ପୁରୀ ଚାଲିଯାଇଥିଲେ?
Answer:
ବଡ଼ମା’ କାର୍ତ୍ତିକ ମାସରୁ ପୁରୀ ଚାଲିଯାଇଥିଲେ ।

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Question 27.
ନାଥନନା ପିଣ୍ଡାରେ ବସି ତାଙ୍କ ପଢ଼ିବା ଦିନର କ’ଣ ସବୁ ସଜାଡ଼ି ରଖୁଥିଲେ?
Answer:
ନାଥନନା ପିଣ୍ଡାରେ ବସି ତାଙ୍କ ପଢ଼ିବା ଦିନର ବହିସବୁ ସଜାଡ଼ି ରଖୁଥିଲେ ।

Question 28.
ସଇତା କେଉଁ ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ ସତୀକୁ ଦେଖା କରିବାପାଇଁ ନାଥନନାଙ୍କ ଘରକୁ ଆସିଥିଲା?
Answer:
ସଇତା ଅଚୁତି ମହାନ୍ତିର ଚିଠି ଦେବା ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ ସତୀକୁ ଦେଖା କରିବାପାଇଁ ନାଥନନାଙ୍କ ଘରକୁ ଆସିଥିଲା ।

Question 29.
ସଇତା ଲୁଗା କାନି ଭିତରୁ କ’ଣ କାଢ଼ି ସତୀକୁ ଦେଲା?
Answer:
ସଇତା ଲୁଗା କାନି ଭିତରୁ ଖଣ୍ଡେ ଧଳା କାଗଜ କାଢ଼ି ସତୀକୁ ଦେଲା ।

Question 30.
ସାରା ଗାଁରେ କେଉଁ ଦୁଇଜଣ ସତୀର ନିଜର ହୋଇଥିଲେ?
Answer:
ସାରା ଗାଁରେ ସଇତା ଓ ନାଥନନା ଏଇ ଦୁଇଜଣ ସତୀର ନିଜର ହୋଇଥିଲେ ।

Question 31.
ଜମିଦାର ଖୁସି ଉପରେ ନ୍ୟାୟର ବାଟ ଗଢ଼ାହୁଏ ବୋଲି କିଏ ମନେକଲା?
Answer:
ଜମିଦାର ଖୁସି ଉପରେ ନ୍ୟାୟର ବାଟ ଗଢ଼ାହୁଏ ବୋଲି ସତୀ ମନେକଲା ।

Question 32.
ଛୋଟପିଲାଟି ପରି କୋଳକରି କିଏ ନେଇ ସତୀକୁ ବିଛଣାରେ ଶୁଆଇଦେଲେ?
Answer:
ଛୋଟପିଲାଟି ପରି କୋଳକରି ନାଥନନା ନେଇ ସତୀକୁ ବିଛଣାରେ ଶୁଆଇଦେଲେ ।

Question 33.
ସତୀକୁ ଘରୁ ବାହାର କରିଦେବାପାଇଁ ନାଥନନାଙ୍କୁ କିଏ ପରାମର୍ଶ ଦେଲେ?
Answer:
ସତୀକୁ ଘରୁ ବାହାର କରିଦେବାପାଇଁ ନାଥନନାଙ୍କୁ ଅଚ୍ୟୁତି ମହାନ୍ତି ଓ ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ର ପରାମର୍ଶ ଦେଲେ ।

Question 34.
ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ର କ’ଣ ଛୁଇଁ ଶପଥ କରିଗଲେ?
Answer:
ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ର ପଇତା ଛୁଇଁ ଶପଥ କରିଗଲେ ।

Question 35.
ସାଙ୍ଗରେ କାହାକୁ ନେଇ ସାଇଆଡ଼େ ଯିବ ବୋଲି ସତୀ ନାଥନନାଙ୍କୁ ଅନୁରୋଧ କଲା?
Answer:
ସାଙ୍ଗରେ ସଇତାକୁ ନେଇ ସାଇଆଡ଼େ ଯିବ ବୋଲି ସତୀ ନାଥନନାଙ୍କୁ ଅନୁରୋଧ କଲା ।

Question 36.
ସତୀ ସାହିର କାହା ଘରକୁ ଯିବାପାଇଁ ଚାହୁଁଥିଲା?
Answer:
ସତୀ ସାହିର ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ରଙ୍କୁ ଘରକୁ ଯିବାପାଇଁ ଚାହୁଁଥିଲା ।

Question 37.
ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ରଙ୍କ ସ୍ତ୍ରୀ ପିଲାଦିନେ ସତୀ ସହିତ କ’ଣ ବସିଥିଲେ?
Answer:
ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ରଙ୍କ ସ୍ତ୍ରୀ ପିଲାଦିନେ ସତୀ ସହ ଅଶୋକା ବସିଥିଲେ ।

(ଗ) ୨ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ଦୁଇଟି ବାକ୍ୟରେ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ । ଲେଖା ଓ ଲେଖକଙ୍କ ପାଇଁ – ୧ ନମ୍ବର ଓ ଉତ୍ତର ପାଇଁ – ୧ ନମ୍ବର ।

Question 1.
ଦାଣ୍ଡ ପାହାଚ ଉପରେ ଗୋଡ଼ ଦେଲାବେଳେ ପଛରୁ ସତୀକୁ କିଏ ଡାକିଲେ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ଦାଣ୍ଡ ପାହାଚ ଉପରେ ଗୋଡ଼ ଦେଲାବେଳେ ପଛରୁ ସତୀକୁ ତା’ର ବାପା ଡାକିଲେ ।

Question 2.
ବାହାହେବା କଥାଟା ସତୀକୁ କେମିତି ଲାଗେ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ବାହାହେବା କଥାଟା ସତୀକୁ ଭାରି ଅପୂର୍ବ ଲାଗିଲା । ଯେମିତି ଗୋଟିଏ ଅମୁହାଁ ଦେଉଳ ଆଖୁ ଉଢ଼ାଳରେ ସତେ କି କେତେ ଅପୂର୍ବ ଦରବ ଠୁଳ ହୋଇଛି ତା’ ଭିତରେ ।

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Question 3.
ଛଅମାସ ହେଲା ନାଥନନା କୁଆଡ଼େ ଓ କାହିଁକି ଯାଇଥିଲେ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ଛଅ ମାସ ହେବ ନାଥନନା କଟକ ପାଠ ପଢ଼ିବାପାଇଁ ଯାଇଥିଲେ ।

Question 4.
ସତୀର ବିବାହ ପ୍ରସ୍ତାବ ଭାଙ୍ଗି ଦେବାପାଇଁ ନାଥନନା କାହିଁକି କହୁଥିଲେ ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀର ବିବାହ ପ୍ରସ୍ତାବ ଭାଙ୍ଗିଦେବା ପାଇଁ ନାଥନନା କହିବାର କାରଣ ଥିଲା ସତୀର ଯାହା ସାଙ୍ଗରେ ବାହାଘର ଲାଗିଥିଲ! ସେ ଦରବୁଢ଼ା, ମୋଟା ଓ ତ୍ରିପଣ୍ଡକଳା । ତେଣୁ ନାଥନନା ଏଥିରେ ଅରାଜି ହୋଇ ବାହାଘର ଭାଙ୍ଗିଦେବାକୁ କହିଛନ୍ତି ।

Question 5.
ଯମ ଘରକୁ ଯାଉଚି ବୋଲି ସତୀ କାହାକୁ କହିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ଯମଘରକୁ ଯାଉଛି ବୋଲି ସତୀ ତା’ର ସ୍ୱାମୀକୁ କହିଲା ।

Question 6.
ପହିଲି ଦେଖାରେ ଶାଶୂ ସତୀକୁ ତୁନି ତୁନି କ’ଣ କହିଲେ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ପହିଲି ଦେଖାରେ ଶାଶୂ ସତୀକୁ ତୁନି ତୁନି କହିଲେ, ‘ଦେଖୁଛୁ ତ କେମିତି ଏକୁଟିଆ ଘର, ଏତେ ଲାଜକଲେ ଚଳିବ କୋଉଠୁ, ଝିଅ?’

Question 7.
ନଟର ବାଳ ପଡ଼ିବାର ଦୁଇଦିନ ଆଗରୁ ମା’ ପୁରୀ ବାହାରିଗଲେ କାହିଁକି?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ନଟର ବାଳ ପଡ଼ିବାର ଦୁଇଦିନ ଆଗରୁ ମା’ ପୁରୀ ବାହାରିଗଲେ । କାରଣ ସତୀର ଶାଶୂ ଚାହୁଁନଥିଲେ ଯେ ସୌରଭୀ ଦାସୀ ସେମାନଙ୍କ ସାଙ୍ଗରେ ମନ୍ଦିରକୁ ଯାଉ ।

Question 8.
ରେଳଗାଡ଼ି ଦେଖୁ ସତୀର କ’ଣ ମନେହେଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ରେଳଗାଡ଼ି ଦେଖୁ ସତୀର ମନେହେଲା ସତେ ଯେମିତି କୋଉ କାହାଣୀମାଳାର ଅସୁରରାଜା ହଜିଥ‌ିବା ରଜା ଝିଅକୁ ଖୋଜିବାକୁ ଧାଇଁଛି ।

Question 9.
ନାଥନନାଙ୍କ ହାତରେ ଫୋଟକା ହେଲା କିପରି?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀର ଦେହ ଖରାପ ହେବାରୁ ନାଥନନା ନିଜେ ରୋଷେଇ କାମ କରିଛନ୍ତି । ଫଳରେ ଭାତ ଗାଳିବା ସମୟରେ ପେଜ ପଡ଼ି ହାତରେ ଫୋଟକା ହୋଇଯାଇଛି ।

Question 10.
କଟକ ବସାଘରେ ସତୀକୁ ଛାଡ଼ିଦେଇ ନାଥନନା ବଜାରକୁ ଗଲେ କାହିଁକି?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
କଟକ ବସାଘରେ ସତୀକୁ ଛାଡ଼ିଦେଇ ନାଥନନା ରୋଷେଇ ସରଞ୍ଜାମ କିଣିବା ପାଇଁ ବଜାରକୁ ଗଲେ ।

Question 11.
ସତୀ ଓ ନାଥନନା କଟକ ବୁଲି ଆସିଛନ୍ତି ଶୁଣି ପଡ଼ୋଶୀ ସ୍ତ୍ରୀଲୋକ କାବା ହେଲା କାହିଁକି?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ଓ ନାଥନନା କଟକ ବୁଲି ଆସିଛନ୍ତି ଏବଂ କିଛି କାମ ନଥାଇ କିଛି ଦିନ ଏଠାରେ ରହିବେ । ଏହାର ଅର୍ଥ ସେମାନେ ଖୁବ୍ ବିତ୍ତଶାଳୀ ତଥା ବଡ଼ ଜମିଦାର ବୋଲି ଧରିନେଇ ପଡ଼ିଶା ସ୍ତ୍ରୀ ଲୋକଟି କାବା ହୋଇଛି ।

Question 12.
ସତୀ ଧନ୍ୟ ସ୍ଵାମୀଟିଏ ପାଇଚ ବୋଲି କିଏ ମନ୍ତବ୍ୟ ଦେଲେ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ଯେତେବେଳେ ପଡ଼ିଶା ଘର ସ୍ତ୍ରୀ ଲୋକଟିକୁ ନାଥନନା ଓ ନିଜ ବିଷୟରେ କହିଛି ସେତେବେଳେ ସ୍ତ୍ରୀ ଲୋକଟି ନାଥନନାଙ୍କୁ ସତୀର ସ୍ୱାମୀ ବୋଲି ଧରିନେଇ ତାଙ୍କର ଏତାଦୃଶ ସ୍ତ୍ରୀପ୍ରତି ପ୍ରୀତି ଓ ଯତ୍ନଶୀଳ ମନୋଭାବ ଯୋଗୁଁ ଧନ୍ୟ ସ୍ଵାମୀଟିଏ ପାଇଛ ବୋଲି କହିଛି ।

Question 13.
ସତୀକୁ ନେଇ ଗାଁକୁ ଫେରିଯିବା ପାଇଁ ନାଥନନା ନିଷ୍ପତ୍ତି କଲେ କାହିଁକି?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
କଟକ ସହରରେ କିଛି ଦିନ ରହିଲାପରେ ସଞ୍ଚିତ ଅର୍ଥରାଶି ଶେଷ ହୋଇଯାଇଛି । ନାଥନନା ଅନୁଭବ କରିଛନ୍ତି ଯେ ସହରରେ ସତୀକୁ ନେଇ ଚଳିବା ଆଉ ସମ୍ଭବ ନୁହେଁ । ଅନ୍ୟପକ୍ଷରେ ସେ କୌଣସି ଚାକିରି ଯୋଗାଡ଼ କରିପାରି ନାହାନ୍ତି । ତେଣୁ ସତୀକୁ ନେଇ ଗାଁକୁ ଫେରିଯିବା ପାଇଁ ନାଥନନା ନିଷ୍ପଭି କଲେ ।

Question 14.
ଗାଁରେ ପହଞ୍ଚିବା ପରେ ସତୀ ନାଥନନାଙ୍କ ଘରର ଅବସ୍ଥା କିପରି ଥ‌ିବାର ଦେଖୁଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ଗାଁରେ ପହଞ୍ଚିବା ପରେ ସତୀ ଦେଖୁଛି ନାଥନନାଙ୍କ ଘରେ କେହି ନାହାନ୍ତି ଏବଂ ଖୁବ୍ ଅଯତ୍ନ ଅବସ୍ଥାରେ ପଡ଼ିରହିଛି ସେଇ ଘର । ଦୁଆର ଭିତରେ ଆଣ୍ଠୁଏ ଅରମା ହୋଇଛି ।

Question 15.
ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ର କ’ଣ ଛୁଇଁ ଶପଥ କଲେ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ର ନାଥନନାଙ୍କ କଥାରେ ଅପମାନିତ ହୋଇ କ୍ରୋଧରେ ନିଜ ପଇତା ଛୁଇଁ ନାଥନନାଙ୍କୁ ଜାତିରୁ ବହିଷ୍କାର କରିବାର ଶପଥ ନେଇଛନ୍ତି ।

Question 16.
ସତୀକୁ ନିଜ ଘରେ ଦେଖ୍ ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ରଙ୍କ ସ୍ତ୍ରୀ କ’ଣ କହିଲେ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀକୁ ନିଜ ଘରେ ଦେଖ୍ ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ରଙ୍କ ସ୍ତ୍ରୀ, ଯିଏକି ପିଲାବେଳେ ସତୀ ସହ ଅଶୋକା ବସିଥିଲେ, ନଚିହ୍ନିଲା ପରି ହୋଇ ସିଆଡ଼େ ଯା, ସିଆଡ଼େ ଯା, ଠାକୁର ଦେବତା ଘର, ମାରା ହୋଇଯିବ ବୋଲି କହିଛି ।

Question 17.
ନାଥନନାଙ୍କୁ ସମାଜ ବାସନ୍ଦରୁ ମୁକାଳିବା ପାଇଁ ସତୀ କେଉଁ ନିଷ୍ପତ୍ତି ନେଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ନାଥନନାଙ୍କୁ ସମାଜ ବାସନ୍ଦରୁ ମୁକାଳିବାପାଇଁ ସତୀ ଶେଷରେ ନାଥନନାଙ୍କୁ ଛାଡ଼ି ଚାଲିଯିବାକୁ ନିଷ୍ପଭି ନେଲା ।

(ଘ) ୩ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ (୩୦ଟି ଶବ୍ଦ ମଧ୍ୟରେ) ଲେଖା ଓ ଲେଖକଙ୍କ ସୂଚନା ପାଇଁ – ୧ ନମ୍ବର ଓ ଉତ୍ତର ପାଇଁ – ୨ ନମ୍ବର।

Question 1.
ପାଣିରୁ ଉଠି ଆସିବାପରେ ନାଥନନାଙ୍କୁ ଦେଖୁ ସତୀ ଲାଜକଲା କାହିଁକି?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ଖରାବେଳେ କଇଁଫୁଲ ତୋଳିବା ଆଶାରେ ସତୀ ଯୋରରେ ପଶିଛି । ଏହି ସମୟରେ ବନ୍ଧ ଉପରୁ ନାଥନନା ଡାକ ପକାଇଛନ୍ତି । ଏହି ଡାକରେ ସତୀ ପାଣିରୁ ଉଠିଆସିଛି । ମାତ୍ର ପାଣିଲାଗି ଓଦାଲୁଗା ତା’ ଦେହରେ ଜଡ଼ି ଯାଇଛି ଏବଂ ନାଥନନା କେମିତି,ଏକ ଭିନ୍ନ ନଜରରେ ତାକୁ ଦେଖୁଛନ୍ତି । ଫଳରେ ସତୀକୁ ଲାଜ ଲାଗିଛି ।

Question 2.
ପ୍ରଥମ ଦେଖାରେ ଶାଶୂଙ୍କର ରୂପ ସତୀକୁ କିପରି ଲାଗିଥିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ପ୍ରଥମ ଦେଖାରେ ଶାଶୂଙ୍କର ରୂପ ସତୀକୁ ଖୁବ୍ ପ୍ରଭାବିତ କରିଛି । ବୁଢ଼ୀ ହେଲେ ବି ବୟସର କୌଣସି ଲକ୍ଷଣ ତାଙ୍କ ଦେହରେ ପାଇନାହିଁ ସତୀ । ସୁନାପରି ତାଙ୍କ ଦେହ ଦୂରରୁ ଝଟକୁଛି । ମୁହଁଟି ସମୁଜ୍ଜ୍ବଳ ଲାଗିଛି ସତୀକୁ ।

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 3 ମଲାଜହ୍ନ Question Answer

Question 3.
ନଟର କଥା ଶୁଣି ସତୀର ଆଖ୍ ଦି’ଟା ଲୁହରେ ପୂରି ଉଠିଲା କାହିଁକି?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ନଟ ହେଉଛି ସତୀର ସଉତୁଣୀର ପୁଅ; ମାତ୍ର ନଟର ନିଷ୍କପଟ ଭାବନାରେ ସତୀ ଶାଶୂଘରର ଅନେକ କଥା ଶୁଣିଛି । ସୌରଭୀ ଦାସୀର ଅତ୍ୟାଚାର, ଶାଶୁବୁଢ଼ୀ ମା’ର ଅସହାୟତା ଓ ନିଜ ବାପା ଅର୍ଥାତ୍ ସତୀର ସ୍ବାମୀଙ୍କ ଅମନୋଯୋଗିତା କଥା ନଟଠାରୁ ଶୁଣି ସତୀର ଆଖୁ ଦି’ଟା ଲୁହରେ ପୂରି ଉଠିଲା ।

Question 4.
ମୋର ବି କାଳ ଆସିଲା ବୋଲି ସତୀ କେବେ ଓ କାହିଁକି ଭାବିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
‘ମୋର ବି କାଳ ଆସିଲା’ – ଏକଥା ସତୀ ଭାବିବାର କାରଣ ସତୀ ତା’ର ଶାଶୂଘରେ କେବଳ ତା’ ଶାଶୁଙ୍କୁ ହିଁ ତା’ର ସ୍ନେହ ଓ ଶ୍ରଦ୍ଧାର ତଥା ଭକ୍ତିର ଜୀବନ୍ତ ମୂର୍ତି ବୋଲି ଧରିନେଇଛି । କିନ୍ତୁ ସତୀର ଶାଶୁମା’ ଯେଉଁଦିନ ପୁଅ ଉପରେ ଅର୍ଥାତ୍ ସତୀର ସ୍ବାମୀ ଉପରେ ଅଭିମାନ କରି ପୁରୀ ଯିବାକୁ ବାହାରିଛନ୍ତି, ସେତେବେଳେ ସତୀ ମନରେ ଏପରି ଭାବନା ଆସିଛି ।

Question 5.
ସତୀକୁ ନେଇ ନାଥନନା ତା’ ଶାଶୂଘରେ ପହଞ୍ଚିବାପରେ ତା’ର ସ୍ୱାମୀ କ’ଣ କହିଲେ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀକୁ ନେଇ ନାଥନନା ତା’ ଶାଶୂଘରେ ପହଞ୍ଚିବାପରେ ତା’ର ସ୍ଵାମୀ ନରହରି ମିଶ୍ର ଖୁବ୍ ବିରକ୍ତରେ, କ୍ରୋଧରେ ଅନେକ ଅପମାନଜନକ କଥା କହିଛନ୍ତି । କହିଛନ୍ତି ଯେ ସେ ସତୀର ମୁହଁ ଚାହିଁବେ ନାହିଁ । ଏମିତିକି ସତୀକୁ ସହରର ବେଶ୍ୟାପଡ଼ାରେ ଛାଡ଼ି ଦେବାପାଇଁ ମଧ୍ୟ କହିଛନ୍ତି ।

Question 6.
ଚଳନ୍ତା ଗାଡ଼ି ଭିତରେ ମୁଁ କେଉଁ ଅଜଣା ବାଟର ବାଟୋଇ ବୋଲି କିଏ ଓ କାହିଁକି ଭାବିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସ୍ଵାମୀ ଖୁବ୍ ଅପମାନ ଦେଇ ଅସ୍ୱୀକାର କରିବାରୁ ସତୀ କିଛି ଉପାୟ ନପାଇ ନାଥନନା ସହ ରେଳଗାଡ଼ିରେ କଟକ ଯାଇଛି । ରେଳଡ଼ବା ଭିତରେ ସେ ନିଜକୁ ଜଣେ ଅଜଣା ବାଟର ବାଟୋଇ ବୋଲି ଭାବିଛି କାରଣ ତା’ ଜୀବନର ଯାତ୍ରା କେଉଁଆଡ଼େ ଯାଉଛି ବୋଲି ସେ କିଛି ବୁଝିପାରିନାହିଁ ।

Question 7.
କଟକରେ ପହଞ୍ଚିବା ପରେ ସତୀର ମାନସିକ ଅବସାଦ ଦେଖାଦେଲା କାହିଁକି?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
କଟକରେ ପହଞ୍ଚିବା ପରେ ସତୀ ନାଥନନାଙ୍କ ଆଚରଣ ଓ ଚରିତ୍ରକୁ ଭିନ୍ନ ଦୃଷ୍ଟିରେ ବିଚାର କରିଛି । ନାଥନନା ଜାଣିଶୁଣି ତାକୁ ନେଇ କଟକ ଚାଲିଆସିଛନ୍ତି ବୋଲି ସେ ଭାବିଛି । ଫଳରେ ସତୀ କଟକରେ ଖୁବ୍ ମାନସିକ ଅବସାଦରେ ଘାଣ୍ଟି ହୋଇଛି ।

Question 8.
କଟକରେ ଥ‌ିବାବେଳେ ସତୀର ବାପାବୋଉ ସମ୍ପର୍କରେ ନାଥନନାଙ୍କର କ’ଣ କହିଲେ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
କଟକରେ ଥିବା ସମୟରେ ସତୀ ବାରମ୍ବାର ତା’ ବାପା ବୋଉଙ୍କ କଥା ବୁଝିବାକୁ ଚାହିଁଛି । ହେଲେ ନାଥନନା କୌଣସି ନା କୌଣସି ବାହାନା କରି ଏଇ କଥାକୁ ଆଡ଼େଇ ଯାଇଛନ୍ତି । ଶେଷରେ ସତୀର ଜିଦ୍ ଆଗରେ ହାର୍ ମାନିଛନ୍ତି ନାଥନନା ଏବଂ ଯେଉଁ କଥା ଆଉ କାହାଠାରୁ ସତୀ ଶୁଣିବ ବୋଲି ଭାବିଥିଲେ ସେହି କଥା କହିଛନ୍ତି । ସତୀର ବାପାବୋଉ ହଇଜାରେ ମରିଯାଇଛନ୍ତି ବୋଲି ବାଧ୍ୟ ହୋଇ ସେ ସତୀକୁ ଜଣାଇଛନ୍ତି ।

Question 9.
ଗାଁରେ ବ୍ରାହ୍ମଣମାନେ ଭାଗବତ ଟୁଙ୍ଗୀରେ କାହିଁକି ନିଶାପ କରୁଥିଲେ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ଗାଁର ବ୍ରାହ୍ମଣମାନେ ଭାଗବତ ଟୁଙ୍ଗିରେ ସତୀକୁ ଗାଁରୁ ତଡ଼ିବାପାଇଁ ଓ ନାଥନନାଙ୍କୁ ବାଟକୁ ଆଣିବାପାଇଁ ନିଶାପ କରିଛନ୍ତି । ତାହା ପୁଣି ଟାଉଟର ଗାଁ ଚାଟଶାଳୀର ମାଷ୍ଟର୍ ଅଚ୍ୟୁତି ମହାନ୍ତର କଥାରେ ।

Question 10.
ଚିଠି ପଢ଼ିସାରି ଚିରି ଦେବାପାଇଁ ଅନୁତି ମହାନ୍ତି କାହିଁକି ସତୀକୁ କହିଥିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ଗାଁ ଚାଟଶାଳୀର ମାଷ୍ଟର ଟାଉଟର ଅଚ୍ୟୁତି ମହାନ୍ତିର ଆଖ୍ ବେସାହାରା ସ୍ଵାମୀ ପରିତ୍ୟକ୍ତା ସତୀର ପୈତୃକ ସଂପରି ଉପରେ ପଡ଼ିଛି । ସେ ଏହି ସଂପତ୍ତିକୁ ଆୟତ୍ତ କରିବା ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ ନାଥନନା ଓ ସତୀର ସଂପର୍କକୁ ଖରାପ ନଜରରେ ବିଚାର କରିଛି ଏବଂ କୁଚକ୍ରାନ୍ତକରି ଚିଠି ଲେଖୁଛି । ଏଇ ଚିଠି କାଳେ ନାଥନନା ହାତରେ ପଡ଼ିଗଲେ କିଛି ଅସୁବିଧା ହେବ, ତେଣୁ ସେ ଚିଠି ପଢ଼ିସାରି ଚିରି ଦେବାକୁ କହିଛି ।

Question 11.
ତମେ ମତେ ଘରୁ ବାହାର କରିଦିଅ ବୋଲି ସତୀ ନାଥନନାଙ୍କୁ କାହିଁକି କହିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ଅନୁଭବ କରିପାରିଛି ଯେ ନାଥନନା ତା’ ଯୋଗୁ ନାନା ସମସ୍ୟାରେ ପଡୁଛନ୍ତି, ଖୁବ୍ ହଇରାଣ ହରକତ ହେଉଛନ୍ତି । ତେଣୁ ସେ ନାଥନନାଙ୍କୁ କହିଛି ତମେ ମୋତେ ଘରୁ ବାହାର କରିଦିଅ ।

Question 12.
ଖାଲି ଟୋକେଇଟା ଧରି ସଇତା ସେଦିନ ଫେରିଆସିଲା କାହିଁକି?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ନାଥନନାଙ୍କୁ ଏକଘରକିଆ କରିଦେଇଛନ୍ତି ଅନ୍ୟ ବ୍ରାହ୍ମଣମାନେ । ଗାଁବାଲାଙ୍କ କୌଣସି ସାହାଯ୍ୟ ସହଯୋଗ ତାଙ୍କୁ ମିଳିବନି ବୋଲି ରୋକ୍‌ଠୋକ୍ ମନା କରିଦେଇଛନ୍ତି ସେମାନେ । ଯାହାର ପ୍ରମାଣ ଦେବାକୁ ଯାଇ ଗାଁ ବାଲା ପରିବା ପାଇଁ ଆସିଥିବା ଚାକର ସଇତାକୁ କିଛି ନଦେଇ ଫେରାଇ ଦେଇଛନ୍ତି । ତେଣୁ ସଇତା ଖାଲି ଟୋକେଇ ଧରି ଫେରିଆସିଛି ।

Question 13.
ସତୀ ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ରଙ୍କ ଘରକୁ ଯିବାପାଇଁ ଚାହୁଁଛି ଶୁଣି ସଇତା ଆଶ୍ଚର୍ଯ୍ୟ ହେଲା କାହିଁକି?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ଯୋଉ ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ରଙ୍କ ପାଇଁ ସତୀ ଓ ନାଥନନା ଅପମାନିତ ହୋଇ ଏତେ ହଇରାଣ ହରକତ ହେଇଛନ୍ତି, ସତୀ ସେଇ ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ରଙ୍କ ଘରକୁ ଯିବ ବୋଲି ସତୀ ବାହାରିବା ଯୋଗୁ ସଇତା ଆଶ୍ଚର୍ଯ୍ୟ ହେଲା ।

(ଙ) ୫ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ଦୀର୍ଘ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ (୧୫୦ ଶବ୍ଦ ମଧ୍ଯରେ ଉତ୍ତର) ।

Question 1.
ମଲାଜହ୍ନ ଉପନ୍ୟାସର ଶିରୋନାମା ସାର୍ଥକତା ଦର୍ଶାଅ ।
କିମ୍ବା, ନାମକରଣ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ‘ମଲାଜହ୍ନ’ର ଯଥାର୍ଥତା ପ୍ରତିପାଦନ କର ।
କିମ୍ବା, ଉପନ୍ୟାସର ନାମ କାହିଁକି ‘ମଲାଜହ୍ନ’ ରଖାଯାଇଛି ଆଲୋଚନା କର ।
Answer:
ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସ ସାହିତ୍ୟାକାଶରେ ଜଣେ ଉଜ୍ଜ୍ଵଳ ନକ୍ଷତ୍ର ଔପନ୍ୟାସିକ ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ । ଏକମାତ୍ର ଉପନ୍ୟାସ ରଚନା କରି ମଧ୍ୟ ଔପନ୍ୟାସିକର ସ୍ୱତନ୍ତ୍ର ମର୍ଯ୍ୟାଦା ହାସଲ କରିଥିବା ଅନନ୍ୟ ପ୍ରତିଭା ଥିଲେ ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର । କଥାବସ୍ତୁର ସୁନ୍ଦର ଉପସ୍ଥାପନା, ଚରିତ୍ର ଚିତ୍ରଣ ବିଚକ୍ଷଣତା, ଭାଷା ଶୈଳୀର ସରଳତା ତାଙ୍କ ସୃଷ୍ଟିକୁ ଦେଇଥିଲା ଅସାଧାରଣ ଲୋକପ୍ରିୟତା, ଯାହାର ପ୍ରମାଣ ବହନ କରେ ତାଙ୍କର ଅନନ୍ୟ କଳାକୃତି ‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସ । ସ୍ଵାଧୀନତା ପୂର୍ବବର୍ତ୍ତୀ କାଳର ସାମାଜିକ ଘଟଣାର ଏକ ମାର୍ମିକ ଆଲେଖ୍ୟ ଏହି ଉପନ୍ୟାସ । ତେବେ ନାମକରଣ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ବିଚାର କଲେ ଔପନ୍ୟାସିକଙ୍କ ପ୍ରତିଭାର ଝଲକ ଅନୁଭୂତ ହେବ ।

ପ୍ରତ୍ୟେକ ସ୍ରଷ୍ଟା ନିଜ ସୃଷ୍ଟିର ନାମକରଣ କରିଥାଏ । ଏହି ନାମକରଣ ହିଁ ତା’ର ପରିଚୟକୁ ସ୍ୱତନ୍ତ୍ର କରିଥାଏ । ତେବେ ଏହି ନାମକରଣ ପ୍ରୟୋଗରେ ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସ ସାହିତ୍ୟରେ ‘ମଲାଜହ୍ନ’ର ବୈଶିଷ୍ଟ୍ୟ ସ୍ଵୀକାର କରାଯାଇପାରେ । ନାୟିକା ଜୀବନର କରୁଣ କାହାଣୀ ଉପନ୍ୟାସର ଉପଜୀବ୍ୟ ହେଲେ ବି ନାୟିକାର ନାମ ଆଧାରରେ ଏହି ଉପନ୍ୟାସର ନାମକରଣ କରାଯାଇପାରିଥା’ନ୍ତା; ମାତ୍ର ଔପନ୍ୟାସିକ ତତ୍କାଳୀନ ବହୁ ଔପନ୍ୟାସିକଙ୍କ ଗତାନୁଗତିକତାକୁ ଛାଡ଼ି ଏହାର ନାମକରଣକୁ ବିଶେଷ ଗୁରୁତ୍ୱର ସହ ବିଚାର କରିଛନ୍ତି । ଉତ୍କଣ୍ଠିତ ଭାବବ୍ୟଞ୍ଜନା ଔପନ୍ୟାସିକଙ୍କର ନାମାଙ୍କନରେ ସ୍ପଷ୍ଟ ।

ଉପନ୍ୟାସର କଥାବସ୍ତୁ ଅନ୍ତର୍ନିହିତ ଭାବସମ୍ପଦର ପ୍ରତୀକ ହେଉଛି ମଲାଜହ୍ନ । ଏକାଧାରରେ ଏହା ଏକ କଳାତ୍ମକ ରସଚେତନାର ସଫଳ ସାହିତ୍ୟିକ ସଂକେତ । ନିଜର ରସାଳ ଗଦ୍ୟସୃଷ୍ଟିର ଶିରୋନାମାରେ ଚନ୍ଦ୍ର ଶବ୍ଦ ପ୍ରୟୋଗ ନକରି ସେ ଜହ୍ନ ଶବ୍ଦ ପ୍ରୟୋଗ କରି ସତେବା ସାରଲ୍ୟ, ସାର୍ବଜନୀନତା ତଥା ପଦ୍ୟ ପରିବର୍ତ୍ତେ ଗଦ୍ୟଚେତନାର ସୂକ୍ଷ୍ମ ଚତୁର ଦୃଷ୍ଟିଭଙ୍ଗୀର ପରିଚୟ ଦେଇଛନ୍ତି ।

ସତୀର ଜୀବନ-ଜହ୍ନ ମଉଳି ଯାଉଛି । ନାଥନନା ଓ ସତୀ ଉଭୟଙ୍କର ପ୍ରେମ-ଗଗନର ଉଜ୍ଜ୍ବଳ ଜ୍ୟୋତ୍ସ୍ନା ନିଷ୍ପ୍ରଭ ପାଲଟି ଯାଇଛି । ରଜନୀର ଅପୂର୍ବ ଆଗମନୀ ସଙ୍ଗୀତ ଗାଇ ସୁକୁମାରୀ ସତୀ ବୁକୁରେ ଯେଉଁ ମୟୂଖର ଉତ୍ତାଳ ତରଙ୍ଗ ସୃଷ୍ଟି ହୋଇଥିଲା ତାହା ପାହାନ୍ତି ପ୍ରହରର ମଲାଜହ୍ନର ମଳିନତାରେ ହତଶ୍ରୀ ହୋଇପଡ଼ି ସତୀପ୍ରାଣକୁ ସରସତାହୀନ ଅନ୍ଧକାରାଚ୍ଛନ୍ନ କରୁଣତାରେ ଆବୃତ କରି ଦେଇଛି । ମଲାଜହ୍ନ ପରି ଜୀବନରେ ସବୁ ଦୀପ୍ତି ସବୁ ସୁଖ ସୋହାଗକୁ ହରାଇଛି ସତୀ । ବାସ୍ତବିକ ଔପନ୍ୟାସିକଙ୍କ ନାମକରଣର ସାର୍ଥକତା ଅନନ୍ୟ ।

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 3 ମଲାଜହ୍ନ Question Answer

Question 2.
ନାଥନନାଙ୍କ ଚରିତ୍ର ଚିତ୍ରଣ କର ।
କିମ୍ବା, ଲୋକନାଥ ତ୍ରିପାଠୀ ଓରଫ୍ ନାଥନନା ଚରିତ୍ରର ବିଶେଷତ୍ଵ ଆଲୋଚନା କର ।
Answer:
ଆଧୁନିକ ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସ କ୍ଷେତ୍ରରେ ଯେଉଁ କେତେଜଣ ଔପନ୍ୟାସିକ ଖୁବ୍ କମ୍ ଉପନ୍ୟାସ ରଚନା କରି ମଧ୍ୟ ଔପନ୍ୟାସିକର ମୁକୁଟ ପରିଧାନ କରି ପାଠକ ପ୍ରାଣରେ ଏକ ସ୍ଵତନ୍ତ୍ର ଆସନ ପ୍ରତିଷ୍ଠା କରି ପାରିଛନ୍ତି, ସେଇ ପ୍ରତିଭାମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଶୀର୍ଷକରେ ମାତ୍ର ଗୋଟିଏ ଉପନ୍ୟାସ ରଚନା କରି ଚର୍ଚ୍ଚାରେ ଥ‌ିବା ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ ଅନ୍ୟତମ । ସରଳ-ତରଳ-କଳକଳ-ଢଳଢଳ ବର୍ଣ୍ଣନା ଭଙ୍ଗୀରେ ଏକ କରୁଣ ରସାତ୍ମକ ସାମାଜିକ କଥାବସ୍ତୁକୁ ସାର୍ଥକ ରୂପେ ଉପସ୍ଥାପିତ କରି ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଯେ କେବଳ ନିଜ କଳାକାରିଗରୀର ବାହାଦୁରୀ ଦେଖାଇଛନ୍ତି ତାହା ନୁହେଁ, ବରଂ ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସ ସାହିତ୍ୟ ଭଣ୍ଡାରକୁ ଏକ ଅମୂଲ୍ୟ ସୃଷ୍ଟି ପ୍ରଦାନ କରିଯାଇଛନ୍ତି ।

‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସର ନାୟିକା ସତୀର ଚରିତ୍ର ପାଠକ ପ୍ରାଣରେ ଯେମିତି ତା’ର ସ୍ଥିତିକୁ ଜାହିର କରିପାରିଛି ଠିକ୍ ସେମିତି ନାୟକ ନାଥନନା ବି ପାଠକର ଦୃଷ୍ଟି ଆକର୍ଷଣ କରିବାରେ ସଫଳ ହୋଇଛି । ସତୀ ପ୍ରତି ତା’ର ସମ୍ବେଦନଶୀଳ ମନୋଭାବନା, ସମାଜ ପ୍ରତି ତା’ର କର୍ତ୍ତବ୍ୟ ଓ ସର୍ବୋପରି ଏକ ଉତ୍ତମ ପୁରୁଷ ଚରିତ୍ର ଭାବରେ ନାଥନନା ଏକ ଆଦର୍ଶମୟ ଚରିତ୍ର ।

ନାଥନନା ଅର୍ଥାତ ଲୋକନାଥ ତିଆଡ଼ୀ ଯିଏ ପରମ୍ପରାବିରୋଧୀ ନୁହେଁ, ବରଂ ସଂସ୍କାରକ । ସେ ସମାଜର ନୀତିନିୟମ ଭାଙ୍ଗୁଥ‌ିବା ଦୁର୍ଦାନ୍ତ ନୁହେଁ ବରଂ ସମାଜରେ ନବଚେତନାର ଉନ୍ମେଷକାରୀ ସତ୍‌ସାହସୀ । ନିଜ ମନର ମାନସୀ ପ୍ରେମିକା ଉପରେ ହକ୍ ଜାହିର କରୁଥିବା ପ୍ରେମିକ ପୁରୁଷ ନୁହେଁ, ପ୍ରେମଲାଗି ତ୍ୟାଗ ଓ ସହଯୋଗର ହାତ ବଢ଼େଇ ଦେଇଥ‌ିବା ଦରଦୀ ମଣିଷ । ନିଜ ଜୀବନର ସୁଖଶାନ୍ତି ବାଛି ନେଇଥିବା ଜଣେ ସ୍ଵାର୍ଥୀ ମଣିଷ ନୁହେଁ, ବରଂ ଅନ୍ୟମାନଙ୍କ ପାଇଁ ନିଜ ଜୀବନକୁ ଉତ୍ସର୍ଗ କରି ଦେଇଥ‌ିବା ଜଣେ ମହାନ୍ ଚରିତ୍ର ଏଇ ନାଥନନା ।

ସତୀର ବାପା ଅନାଦୀ ମିଶ୍ର ଉପରେ ରାଗିଥିଲେ ବି ହଇଜାବେଳେ ତାଙ୍କୁ ସାହାଯ୍ୟ କରିବାକୁ ଆଗଭର ହୋଇଛନ୍ତି । ସତୀ ପ୍ରତି ଅନ୍ତର୍ମନରେ ଭଲପାଇବା ଥିଲେ ବି ତା’ ବାପାଙ୍କ ଖୁସି ଆଉ ସତୀର ନୀରବତା ଆଗରେ କିଛି କହିନାହାଁନ୍ତି । ଉପଯୁକ୍ତ ଶିକ୍ଷା ମନୁଷ୍ୟର ଅଜ୍ଞାନ ଅନ୍ଧକାରକୁ ଦୂରକରି ତାକୁ ଜ୍ଞାନାଲୋକରେ ଉଦ୍ଭାସିତ କରେ । ଆଦର୍ଶ ଜୀବନ ନିଷ୍ଠା ଓ ନୈତିକ ଚରିତ୍ରବତ୍ତା ମନୁଷ୍ୟର ବୈଶିଷ୍ଟ୍ୟ ନିର୍ଦ୍ଧାରଣ କରେ, ମନୁଷ୍ୟଠାରେ ଦୁର୍ଲଭ ମାନବିକତାର ପରିଚୟ ଦିଏ । ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋରଙ୍କ ଦୃଷ୍ଟିରେ ନାଥନନା ଏକ ଆଦର୍ଶ ଚରିତ୍ର । ସେ ନିଜ ଜୀବନ ବିନିମୟରେ ସତୀ ଜୀବନର ଦୁଃଖମୋଚନ ପାଇଁ ଅଗ୍ରସର ହୋଇଛି । ସମାଜର କୁତ୍ସା ଅପବାଦକୁ ପାଦରେ ଦଳି ସେ ସତୀ ପାଇଁ ଯେଉଁ ସହାନୁଭୂତି ଓ ତ୍ୟାଗକରି ଦେଖାଇଛନ୍ତି ତାହା ନାଥନନା ଚରିତ୍ରର ପ୍ରଧାନ ବିଶେଷତ୍ଵ ।

Question 3.
ସତୀ ଚରିତ୍ରର ବିଶେଷତ୍ଵ ଉଲ୍ଲେଖ କର ।
କିମ୍ବା, ‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସର ମୁଖ୍ୟ ଚରିତ୍ର ସତୀର ଚରିତ୍ର ଚିତ୍ରଣ କର ।
କିମ୍ବା, ସତୀ ଜୀବନର କରୁଣ କାହାଣୀ ହିଁ ‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସ – ଏହି ଉକ୍ତିର ବିଚାର କର ।
କିମ୍ବା, ଭାଗ୍ୟର ଦାରୁଣାଘାତରେ ନାୟିକାର କରୁଣ କାହାଣୀ ହିଁ ମଲାଜହ୍ନର ଉପନ୍ୟାସ – ଆଲୋଚନା କର ।
Answer:
ସ୍ବାଧୀନତା ପୂର୍ବବର୍ତ୍ତୀ ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସ ସାହିତ୍ୟ କ୍ଷେତ୍ରରେ ଯେଉଁ କେତେଜଣ ବିଶିଷ୍ଟ ପ୍ରତିଭା ସେମାନଙ୍କ କୃତିକୁ ନେଇ ଏଯାବତ୍ ଚର୍ଚ୍ଚିତ ଓ ପ୍ରଶଂସିତ ସେମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ଔପନ୍ୟାସିକ ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ ଅନ୍ୟତମ ମହାନ୍ ସାଧକ । ସ୍ଵଳ୍ପ ସୃଷ୍ଟି ମଧ୍ୟରେ ବି ସାହିତ୍ୟ ଜଗତରେ ନିଜ ପାଇଁ ଏକ ସ୍ଵତନ୍ତ୍ରାସନ ପ୍ରତିଷ୍ଠା କରିନେବାରେ ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ସର୍ବାଗ୍ରେ ସ୍ମରଣୀୟ । ତାଙ୍କ ପ୍ରତିଭାର ଜ୍ୟୋତି ବହନ କରେ ‘ମଲାଜହ୍ନ’ର ସଫଳତା । ‘ମଲାଜହ୍ନ’ର ଲୋକପ୍ରିୟତା ବଖାଣେ ତାଙ୍କ କାରିଗରୀର ଗାଥା । ଏହି ଉପନ୍ୟାସର ମୁଖ୍ୟ ଚରିତ୍ର ସତୀର କରୁଣ ଜୀବନ କାହାଣୀ ପାଠକକୁ ଆଜିବି ବାନ୍ଧି ରଖୁବାରେ ବେଶ୍ ସଫଳ ମନେହୁଏ ।

ସତୀର ଚରିତ୍ର ଚିତ୍ରଣରେ ଔପନ୍ୟାସିକଙ୍କର କୃତିତ୍ୱ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ମଲାଜହ୍ନ ଉପନ୍ୟାସର ଲୋକପ୍ରିୟତା ବିଚାର କରାଯାଇପାରେ । ଅନ୍ୟଭାବରେ କହିଲେ ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଏହି ଚରିତ୍ରର ସୁନ୍ଦର ଉପସ୍ଥାପନାରେ ହିଁ ପାଠକକୁ କାହାଣୀ ସହ ଜଡ଼ିତ କରିବାରେ ଅଧିକ ସଫଳ ମନେହୁଅନ୍ତି । ବିଶେଷ କରି ସତୀର ମାନସିକ ଚେତନା ଯେପରି ଭାବରେ ମୁକ୍ତିଲାଭ କରିଛି, ମଲାଜହ୍ନ ଉପନ୍ୟାସରେ ତାହା ବେଶ୍ ଉପଭୋଗ୍ୟ ।

ଉପନ୍ୟାସର ପ୍ରାରମ୍ଭିକ ପର୍ଯ୍ୟାୟରେ ସତୀର ସ୍ଵାଭାବିକ ମାନସିକ ଚେତନା ତଥା ଅନୁରୂପ ଭାବେ ତା’ର କୁମାରୀ- ସୁଲଭ ଚପଳତା ବା ଯୌବନୋଚ୍ଛଳତା ଯେତିକି ଆକର୍ଷଣୀୟ ପରଣତି ପର୍ଯ୍ୟାୟରେ ତା’ର ପ୍ରଣୟ ବିଫଳତା ତଥା ଜୀବନଯାତ୍ରା କକ୍ଷରେ ଅସାରତା ଓ ନୈରାଶ୍ୟଜନିତ ଅସ୍ଵାଭାବିକ କରୁଣ ପ୍ରତିକ୍ରିୟା ସେତିକି ସହାନୁଭୂତି ସଞ୍ଚାରକ । ଗୋଟିଏ ପାଖରେ ସାମାଜିକ ଦୁଃଖ ଯନ୍ତ୍ରଣା ଏବଂ ଅନ୍ୟ ପାଖରେ ମାନସିକ ଘାତପ୍ରତିଘାତ ମଧ୍ଯରେ ବିଫଳ ପୌରାଣିକ ଚରିତ୍ର ସାଜି ସତୀ ଦାମ୍ପତ୍ୟ ଜୀବନର ଅମୃତ ଆସ୍ବାଦନ କରିପାରି ନାହିଁ।

ନିଭୀକତାର ପରିଚୟ ଦେଇ କଳଙ୍କିତ ସମାଜ ବିଧାନକୁ ପଦାଘାତ କରିବା ତା’ପକ୍ଷରେ ଅସମ୍ଭବ । ବାପାବୋଉଙ୍କର ଅବାଧ୍ଯ ଭାବରେ ସ୍ଵାଧୀନ ଝିଅଟେ ସାଜି ନିଜ ଜୀବନର ପନ୍ଥା ନିର୍ବାଚନ କରିନେବା କିମ୍ବା ନାଥନନା ପାଖରେ ନିଜ ମନ ତଳର କଥା ପ୍ରକାଶ କରି ତାଙ୍କ ସହ ଘରକରି ରହିବା ନିଶ୍ଚିତରୂପେ ବିଡ଼ମ୍ବିତ । ସେଇ କାରଣରୁ ସତୀ ଅନ୍ତର୍ମନର ସଂଘର୍ଷ, ତା’ ଚରିତ୍ରର ମାନସିକ ପ୍ରତିକ୍ରିୟା ଉପନ୍ୟାସର ମାର୍ମିକ ଉପାଦାନ ପାଇଁ ଯଥେଷ୍ଟ ।

ଦୁଃଖ ଶୋକ ଯନ୍ତ୍ରଣାର ଅଗ୍ନିଦାହରେ ସୁବର୍ଣ୍ଣସମ ଝଲସି ଉଠିଛି ମଲାଜହ୍ନର ନାୟିକା ସତୀ । ଜୀବନତମାମ୍ ଲୁହ ପିଇ ସମାଜର ତାଡ଼ନାରେ ବିନା ପ୍ରତିବାଦରେ ଅଜଣା କୋଉ ବାଟର ବାଟୋଇ ସାଜି ବାହାରିଯାଇଛି ସତୀ । ବାସ୍ତବିକ ସତୀ ଚରିତ୍ର ଚିତ୍ରଣ ବେଶ୍ ଭାବଗର୍ଭକ ହୋଇପାରିଛି ।

Question 4.
ମଲାଜହ୍ନ ଉପନ୍ୟାସରେ ଜମିଦାର ଚରିତ୍ରର ସ୍ଵରୂପ ଦର୍ଶାଅ ।
କିମ୍ବା, ‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସର ନାୟିକା ସତୀର ସ୍ଵାମୀ ନରହରି ମିଶ୍ରଙ୍କ ସମ୍ବନ୍ଧରେ ଆଲୋଚନା କର ।
Answer:
ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟର ବିକାଶରେ ଉପନ୍ୟାସର ଭୂମିକା ଗୁରୁତ୍ଵପୂର୍ଣ୍ଣ । ଉପନ୍ୟାସ ସାହିତ୍ୟର ଅନ୍ୟତମ ବିଭାଗ ଓ ଏହା ଏକ ଅନନ୍ୟ ଗଦ୍ୟକଳା । ତେବେ ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସ ସାହିତ୍ୟ ଊନବିଂଶ ଶତାବ୍ଦୀରେ ଆରମ୍ଭ ହୋଇ ଯେମିତି ପାଠକର ପ୍ରିୟ ହୋଇପାରିଥିଲା, ସେମିତି ସମାଲୋଚକଙ୍କ ଦୃଷ୍ଟି ଆକର୍ଷଣ କରିପାରିଥିଲା । ତେବେ ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସ ସାହିତ୍ୟର ଉନ୍ମେଷ ଲଗ୍ନରେ ଯେଉଁ ବିଶିଷ୍ଟ ପ୍ରତିଭାମାନଙ୍କ ଉପନ୍ୟାସ ସର୍ବାଧ‌ିକ ଲୋକପ୍ରିୟ ଓ ଚର୍ଚ୍ଚିତ ହୋଇଥିଲା, ସେମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ ଓ ତାଙ୍କର ଏକମାତ୍ର ଉପନ୍ୟାସ ସୃଷ୍ଟି ‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଅନ୍ୟତମ । ଏହି ‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସର ଚରିତ୍ରମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ନରହରି ମିଶ୍ର ଅନ୍ୟତମ । ମୁଖ୍ୟ ଚରିତ୍ର ଅର୍ଥାତ୍ ନାୟିକାର ସ୍ୱାମୀ ଭାବରେ ସେ ଯେମିତି ପାଠକର ଦୃଷ୍ଟି ଆକର୍ଷଣ କରିଛି ଜମିଦାର ଭାବରେ କଠୋର ନିଷ୍ପଭି ଶୁଣାଇଥିବାରୁ ସେତିକି ଘୃଣାର ପାତ୍ର ହୋଇଛି । ଔପନ୍ୟାସିକ ଖୁବ୍ ସୁନ୍ଦର ଭାବରେ ଉକ୍ତ ଚରିତ୍ରଟିର ଉପସ୍ଥାପନ କରିଛନ୍ତି ।

ଔପନ୍ୟାସିକଙ୍କ ଭାଷାରେ ସେ ଖୁବ୍ ମୋଟା, ତ୍ରିପଣ୍ଡ କଳା । ଜମିଦାର ନରହରି ମିଶ୍ରଙ୍କୁ ପାଠକ କୁଚରିତ୍ର ଭାବରେ ହିଁ ଗ୍ରହଣ କରିବାକୁ ବାଧ୍ୟ ହେବ । ପ୍ରଥମ ପତ୍ନୀର ବିୟୋଗ ପରେ ସତୀକୁ ବିବାହ କରିବା, ଯେଉଁ ସତୀ ତା’ ବୟସଠାରୁ ବହୁତ ସାନ ହୋଇଥିବା ସତ୍ତ୍ଵେ ଧନର ଆଭିଜାତ୍ୟ ବଳରେ ତାକୁ ନିଜର କରିବାକୁ ଚେଷ୍ଟା କରିବା, ନାରୀ ଦେହ ପ୍ରତି ଲୋଭରଖ୍ ଘରର ଦାସୀ ସୌରଭୀ ସହ ଅନୈତିକ ସଂପର୍କ ରଖୁବା, ନିଜ ମା’ଙ୍କ ନିଷ୍ପତ୍ତିକୁ ଗ୍ରହଣ ନକରିବା, ଏମିତିକି ନାୟିକା ସତୀର ଚରିତ୍ର ପ୍ରତି ଖୁବ୍ କଟୁ ମନ୍ତବ୍ୟ ରଖୁବା ଆଦି ବର୍ଣ୍ଣନା ଭିତରେ ଔପନ୍ୟାସିକ ଏହି ପୁରୁଷ ଚରିତ୍ର ସଂପର୍କରେ ଅନେକ ବିରୋଧାତ୍ମକ ଭାବନା ହିଁ ସୃଷ୍ଟି କରିଛନ୍ତି । ଏହି ଉପନ୍ୟାସରେ ଜମିଦାର ନରହରି ମିଶ୍ର ତଥା ସତୀର ସ୍ଵାମୀ ଚରିତ୍ରକୁ ଏକ କୁଚରିତ୍ର କହିଲେ ଅତ୍ୟୁକ୍ତି ହେବ ନାହିଁ । ତେବେ ଉତ୍ତମ ଚରିତ୍ରମାନଙ୍କ ମହନୀୟତାର ପରିପ୍ରକାଶ ପାଇଁ ଔପନ୍ୟାସିକଙ୍କ ଏହି ଚରିତ୍ର ସମ୍ବନ୍ଧୀୟ ବର୍ଣ୍ଣନା ହୃଦୟସ୍ପର୍ଶୀ ମନେହୁଏ ।

Question 5.
ମଲାଜହ୍ନ ଉପନ୍ୟାସର ଗୌଣ ଚରିତ୍ରଗୁଡ଼ିକ ଉପରେ ଆଲୋଚନା କର ।
କିମ୍ବା, ‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସ ଉଭୟ ଗୌଣ ଚରିତ୍ର ଓ ମୁଖ୍ୟ ଚରିତ୍ରର ଅପୂର୍ବ ସମାବେଶ – ଆଲୋଚନା କର ।
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ ମାନବ ଜୀବନର ଜୀବନ୍ତ କଳା-କର୍ମ । ତେଣୁ ଉପନ୍ୟାସରେ ଲେଖକ ବିବିଧ ଚରିତ୍ର ଚିତ୍ରଣ କରିଥା’ନ୍ତି । ଚରିତ୍ର ଚିତ୍ରଣ ଉପନ୍ୟାସର ଅନ୍ୟତମ ବଳିଷ୍ଠ ଉପାଦାନ । ଏ ଦିଗରେ ଔପନ୍ୟାସିକଙ୍କ ଭୂମିକା ବେଶ୍ ଗୁରୁତ୍ଵପୂର୍ଣ୍ଣ । ତେବେ ଆଧୁନିକ ସାହିତ୍ୟ ବିକାଶ କାଳରେ ଉପନ୍ୟାସର କଳେବରକୁ ବହୁବର୍ଷା ଓ ବୈଚିତ୍ରପୂର୍ଣ୍ଣ କରିଥିବା ଔପନ୍ୟାସିକମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ ଅନ୍ୟତମ ବଳିଷ୍ଠ ପ୍ରତିଭା । ତାଙ୍କର ଏକମାତ୍ର ଉପନ୍ୟାସ କଳାକୃତି, ଯାହାର ନାମ ‘ମଲାଜହ୍ନ’ । ‘ମଲାଜହ୍ନ’ର ଘାଟନିକ ପ୍ରବାହ ପାଇଁ ଚରିତ୍ର ହେଉଛି ଅପରିହାର୍ଯ୍ୟ ଅଙ୍ଗ । ଏଥରେ ଚରିତ୍ରର ଚମତ୍କାର ଅବତାରଣା ଓ ଯଥାର୍ଥ ପ୍ରୟୋଗ ଉପେନ୍ଦ୍ରଙ୍କର ସୃଷ୍ଟିକର୍ମକୁ ସାର୍ଥକ କରିଛି ।

ଉପନ୍ୟାସରେ ଚିତ୍ରିତ ଚରିତ୍ରକୁ ଆମେ ଦୁଇ ଭାଗରେ ବିଭକ୍ତ କରିଥାଉ; ଯଥା – ମୁଖ୍ୟ ଚରିତ୍ର ବା ପ୍ରଧାନ ଚରିତ୍ର, ଅନ୍ୟଟି ଗୌଣ ଚରିତ୍ର । ଗୌଣ ଚରିତ୍ରଗୁଡ଼ିକ ମୁଖ୍ୟ ଚରିତ୍ରର ଦୀପ୍ତି ଓ ଦ୍ୟୁତିକୁ ପ୍ରକଟନ କରିବାରେ ସାହାଯ୍ୟ କରିଥାନ୍ତି । ‘ମଲାଜହ୍ନ’ର ନାୟିକା ସତୀ ଓ ନାୟକ ନାଥନନାଙ୍କ ବ୍ୟତିରେକ ଅନ୍ୟାନ୍ୟ ଗୌଣଚରିତ୍ରଗୁଡ଼ିକ ସମାଜ ତତ୍‌କାଳୀନ ପ୍ରତିଛବି ଆଙ୍କିବାରେ ସଫଳ ହୋଇଛନ୍ତି । କଥାବସ୍ତୁକୁ ଗତିଶୀଳ କରାଇଛନ୍ତି । କଥାବସ୍ତୁର ପରିଧ‌ିରେ ନିଜ ନିଜର ଅବଦାନ ବାଢ଼ି ଉପେନ୍ଦ୍ରଙ୍କ ସୃଷ୍ଟିକଳ୍ପନାକୁ ନିଶ୍ଚିତରୂପେ ସାଫଲ୍ୟମଣ୍ଡିତ କରିଛନ୍ତି । ଏହି ଚରିତ୍ରଗୁଡ଼ିକ ହେଉଛନ୍ତି – ଗାଁ ଚାଟଶାଳୀର ଟାଉଟର ମାଷ୍ଟର ଅଚ୍ୟୁତି ମହାନ୍ତି, ପୁରୋହିତ ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ର, ବୁଢ଼ା ଚାକର ସଇତା, ସତୀର ଶାଶୂଘର ଦାସୀ ସୌରଭୀ, ଚମ୍ପାମା’, ସତୀର ବୁଢ଼ୀ ଶାଶୁ ଆଦି ।.

ଏମାନେ କେବଳ ଯେ କଥାବସ୍ତୁର ପ୍ରବାହକୁ ପ୍ରଖର କରିଛନ୍ତି ତାହା ନୁହେଁ ବରଂ ନିଜ ନିଜ ଦୀପ୍ତିରେ ପାଠକପ୍ରାଣକୁ ପ୍ରଭାବିତ କରାଇଛନ୍ତି । ଅଚ୍ୟୁତି ମହାନ୍ତିର ଖଳଚକ୍ରାନ୍ତ ଉପନ୍ୟାସକୁ ଯେମିତି ଭିନ୍ନ ମୋଡ଼ ଦେଇଛି ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ରଙ୍କ ମୁରବୀପଣିଆ ସେମିତି ସାମାଜିକ ବ୍ୟବସ୍ଥାର ଚିତ୍ର ଧାରଣ କରିଛି । ବାସ୍ତବିକ ଗୌଣ ଚରିତ୍ରଗୁଡ଼ିକ ଅନନ୍ୟ ।

Question 6.
ମଲାଜହ୍ନ ଉପନ୍ୟାସରେ ବର୍ଷିତ ସହରୀ ଜୀବନର ଚିତ୍ର ବର୍ଣ୍ଣନା କର ।
Answer:
ଔପନ୍ୟାସିକ ଉପନ୍ୟାସର କାହାଣୀ ଓ ଚରିତ୍ରକୁ ପାଠକର ନିକଟତର ତଥା ସୃଷ୍ଟିକୁ ଲୋକପ୍ରିୟ କରିବାପାଇଁ ବାତାବରଣ ବା ପରିବେଶକୁ ଅନୁସରଣ କରେ । ଫଳରେ ଉପନ୍ୟାସରେ ଫୁଟିଉଠେ ସମକାଳୀନ ସମାଜ ଚିତ୍ର, ଗ୍ରାମ୍ୟସଂସ୍କୃତି ଓ ସହରୀ ସଭ୍ୟତାର ଚିତ୍ର । ଏହି ଦୃଷ୍ଟିରୁ ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସ ସାହିତ୍ୟରେ ମଧ୍ୟ ସହରୀ ଜୀବନ ଓ ଗ୍ରାମ ଜୀବନର ମଧୁର ବର୍ଣ୍ଣନା ଖୁବ୍ ସ୍ୱତନ୍ତ୍ର । ସୁତରାଂ ଯଦି ‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସରେ ଏହି ସହରୀ ଜୀବନର ଚିତ୍ର ଗ୍ରାମ୍ୟ ସଂସ୍କୃତିକୁ ସନ୍ଧାନ କରାଯାଏ, ଏହା ନିଶ୍ଚିତ ପାଠକର ନଜରକୁ ଆସିବ । ‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସ ସାହିତ୍ୟ କ୍ଷେତ୍ରରେ ଏକ ଅନନ୍ୟ କଥାଫସଲ । ଏଇ ଗୋଟିଏ ମାତ୍ର ଉପନ୍ୟାସ ହିଁ ଯଥେଷ୍ଟ ଥିଲା ସ୍ରଷ୍ଟା ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସଙ୍କ ପାଇଁ । ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ ଯେଉଁ ଔପନ୍ୟାସିକର ମୁକୁଟ ପିନ୍ଧିଛନ୍ତି ତାହା କେବଳ ଏଇ ଗୋଟିଏ ମାତ୍ର କଥାକଳାସୃଷ୍ଟି ‘ମଲାଜହ୍ନ’ ପାଇଁ ।

ତେବେ ପ୍ରଶ୍ନନୁଯାୟୀ ଏହି ଉପନ୍ୟାସରେ ସହରୀ ଜୀବନର ଚିତ୍ର ରହିଥିଲେ ମଧ୍ୟ ଏହା ସେତେ ଅଧିକ ନୁହେଁ । ଗ୍ରାମ୍ୟ ଜୀବନର ଯେଉଁଭଳି ଚିତ୍ର ଏଥୁରେ ରହିଛି ସହରୀ ଜୀବନର ଚିତ୍ର ତାହା ତୁଳନାରେ ଗୌଣ ମନେହୁଏ । ଲେଖକ ସତୀ ତଥା ନାୟିକା, ସ୍ଵାମୀଦ୍ଵାରା ଅପମାନିତା ତଥା ପରିତ୍ୟଜା ହେଲାପରେ ନାୟକ ନାଥନନାଙ୍କ ସହ କଟକ ଯାଇଛି ଏବଂ ଏହିଠାରୁ ସହରୀ ଜୀବନର ବର୍ଣ୍ଣନା ରହିଛି ।

ନାଥନନା ଓ ସତୀ ଅଳ୍ପଦିନ ହେଲେ ବି କଟକ ସହରରେ ଚଳିଛନ୍ତି, କଟକର ସଂଭ୍ରାନ୍ତ ଜୀବନଧାରାକୁ ଅନୁଭବ କରିଛନ୍ତି । ଏହାର ବର୍ଣ୍ଣନା ଏତେ ଦୀର୍ଘ ନହେଲେ ବି ବେଶ୍ ପ୍ରଭାବଶାଳୀ । କଟକରେ ଗୋଟିଏ ବସାଘର ଅର୍ଥାତ୍ ଭଡ଼ାଘର ନେଇ ନାୟକ ନାୟିକା ରହିବା କାଳରେ, ରୋଷେଇ ସରଞ୍ଜାମ ହାତ ପାହାନ୍ତାରୁ ସୁବିଧାରେ କିଣି ଆଣିବା, ରୋଷେଇ ପାଇଁ ପୂଝାରି ଖୋଜିବା, ହାତରେ ଭାତ ନରାନ୍ଧି ହୋଟେଲରେ ଖାଇବା ଆଦିର ବର୍ଣ୍ଣନା ଖୁବ୍ ପ୍ରାସଙ୍ଗିକ ମନେହୁଏ । ସହରୀ ଜୀବନରେ ସହଜରେ ଚାକିରି ନ ମିଳିବା, ଜଣେ ପୂଝାରି ନପାଇବା ପରି ବାସ୍ତବ ଚିତ୍ର ପାଠକର ଦୃଷ୍ଟି ଆକର୍ଷଣ କରେ ।

Question 7.
ଗ୍ରାମ୍ୟ ପରିବେଶ ବର୍ଣ୍ଣନାରେ ଔପନ୍ୟାସିକ ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସଙ୍କର ନୈପୁଣ୍ୟ ନିର୍ଣ୍ଣୟ କର । କିମ୍ବା, ‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସରେ ଗ୍ରାମ୍ୟ ପରିବେଶର ବର୍ଣ୍ଣନା ବେଶ୍ ଚିତ୍ତାକର୍ଷକ – ଏହି ଉକ୍ତିର ଯଥାର୍ଥତା ପ୍ରତିପାଦନ କର ।
Answer:
ଉପନ୍ୟାସର ଅନ୍ୟତମ ଆକର୍ଷଣ ଏହାର ବର୍ଣ୍ଣନାଚାତୁରୀ । ପରିବେଶ ଓ ପ୍ରକୃତି ବର୍ଣ୍ଣନାରେ ଉପନ୍ୟାସର କଥାବସ୍ତୁକୁ ଜୀବନ୍ତ କରି ଗଢ଼ିତୋଳେ । ଔପନ୍ୟାସିକଙ୍କ ଅନନ୍ୟ କାରିଗରୀର ପରିଚୟ ମଧ୍ଯ ବହନ କରେ ଏହି ବର୍ଣ୍ଣନାଚାତୁରୀ । ଏ କ୍ଷେତ୍ରରେ ଔପନ୍ୟାସିକ ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସଙ୍କ କଳାକାରିଗରୀ ମଧ୍ୟ ସମ୍ମାନଯୋଗ୍ୟ ଓ ପ୍ରଶଂସନୀୟ । ତାଙ୍କର ଏକମାତ୍ର ଉପନ୍ୟାସ ‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଏହାର ଏକ ଉଜ୍ଜ୍ଵଳ ପ୍ରମାଣ । ‘ମଲାଜହ୍ନ’ର କଥାବସ୍ତୁରେ ଏହି ବର୍ଣ୍ଣନାଧର୍ମିତା ପାଠକ ପ୍ରାଣକୁ ପୁଲକିତ କରେ । ବିଶେଷ କରି ଗ୍ରାମ୍ୟ ପରିବେଶର ସୁନ୍ଦର ବର୍ଣ୍ଣନା ପାଠକ ପାଖରେ ଖୁବ୍ ଆଦରଣୀୟ ହୋଇପାରିଛି ।

ଉପନ୍ୟାସର ସାମାଜିକ ପୃଷ୍ଠଭୂମି ସଂଗଠନ ପାଇଁ ଔପନ୍ୟାସିକ ଆନୁଷଙ୍ଗିକ ଭାବେ ପଲ୍ଲୀପ୍ରକୃତିର ନିସର୍ଗ ପ୍ରତିକୃତି ବାଢ଼ିଛନ୍ତି । ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋରଙ୍କ ସୃଷ୍ଟି ଚେତନା ଅନୁରୂପ ଭାବରେ ଗାଁ ଗହଳର ଦୁଇଟି ଅପରିଣତ କିଶୋରକିଶୋରୀଙ୍କ ଜୀବନରେ ପ୍ରେମପାଇଁ ଦୁଃଖଦୁର୍ଗତି ତଥା କାରୁଣ୍ୟର ଚିତ୍ର ଆଙ୍କିବା ଅବକାଶରେ ପଲ୍ଲୀ ପ୍ରାକୃତିକ ପରିବେଷ୍ଟନୀକୁ ଆଶ୍ରୟ କରିଛି। ବାସ୍ତବରେ ପଲ୍ଲୀ ସୁଷମା ପଲ୍ଲୀ ଜୀବନର ସହଚର । ଗ୍ରାମ୍ୟ ପ୍ରକୃତି ଗାଁ ଗହଳର ଜନସାଧାରଣଙ୍କର ହସକାନ୍ଦର ସାଥୀ ତଥା ସୁଖଦୁଃଖର ଆଧାର । ଗାଁଗହଳିର ଘଟଣା ଉପସ୍ଥାପନରେ ପଲ୍ଲୀର ପ୍ରକୃତି ରୂପାୟନ କରିବା ଆଦୌ ଅସଙ୍ଗତ ତଥା ଅପ୍ରାସଙ୍ଗିକ ନୁହେଁ । ଅଧ୍ଵନ୍ତୁ ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋରଙ୍କ ପରିପୁଷ୍ଟ ଲେଖନୀ ଏବଂ ସୁଦୂରପ୍ରସାରୀ କଳ୍ପନାବିଳାସ ପଲ୍ଲୀ ପରିବେଷ୍ଟନୀ ବିନ୍ୟାସ ପାଇଁ ଅନୁକୂଳ ହୋଇପାରିଛି ।

ଉପନ୍ୟାସରୁ ଦୁଇଧାଡ଼ି ଏଠାରେ ପ୍ରସଙ୍ଗକ୍ରମେ ଲେଖାଯାଇପାରେ – ‘ବାରିପଡ଼ିଆର ମଥାନରା ଗଛ ମହୁଡ଼ ଉପରେ ଆମ ଗାଁ ନଡ଼ିଆଗଛଯାକ ପରିଚିତ ବନ୍ଧୁପରି ଯେତେବେଳେ ଗୋଟି ଗୋଟି ହୋଇ ଭଣ୍ଡି ଚାହିଁଲେ X X X ’ ନାଥନନା ଓ ସତୀ କଟକରୁ ଗାଁକୁ ଫେରିବାପରେ ଲେଖକଙ୍କ ଏହି ବର୍ଣ୍ଣନା କେବଳ ଦୁହେଁ ଅନେକ ଏହିଭଳି ଉଦ୍ଧୃତାଂଶ ରହିଛି ଯାହା ଔପନ୍ୟାସିକଙ୍କ ଗ୍ରାମ୍ୟ ପରିବେଶ ବର୍ଣ୍ଣନାର ସାର୍ଥକତା ବହନ କରେ ।

ସେହିପରି ସତୀ ଜମିଦାରକୁ ବିବାହ କରି ଗାଁରୁ ବିଦାୟନେଇ ଗଲାବେଳେ ଲେଖକ ତଥା ଔପନ୍ୟାସିକ ସତୀ ତୁଣ୍ଡରେ ଯାହା ଭାବନା ଉଲ୍ଲେଖ କରିଛନ୍ତି, ତାହା ଔପନ୍ୟାସିକଙ୍କ ବର୍ଣ୍ଣନାଚାତୁରୀର ଏକ ଅନନ୍ୟ ପ୍ରମାଣ ବହନ କରୁଛି । ଔପନ୍ୟାସିକଙ୍କ ଭାଷାରେ – ‘ ବାଟ ଦୁଇପଟେ ପିଲାଦିନ ଚିହ୍ନା ମୋର ଗଛପତ୍ରସବୁ ଯାହା ଛାଇରେ ବସି କେତେ ନିଶୂନ ଦିହରେ ମୋର ନାଥନନାଙ୍କ ସାଙ୍ଗରେ କଟିଯାଇଛି, ଗୋଟି ଗୋଟି ହୋଇ ମୋଠୁ ବିଦା ହୋଇ ଘରକୁ ଚାଲିଗଲେ । ଗାଁ ମୁଣ୍ଡର ସେହି ଗହଳିଆ ତାଳବଣ ଯୋର କୂଳେକୂଳେ ବାଉଁଶ ବଣର ମହକା ଛାଇ ତଳେ ଶିଉଳିଲଗା ସେଇ ବଡ଼ ପଥରଟି, ଗାଧୋଇଲାବେଳେ ନିତି ଯାହା ଉପରେ ଗୋଡ଼ ଘଷ, ସବାରୀର ଅଳ୍ପ ଫାଙ୍କା ବାଟେ ସମସ୍ତେ ମୋତେ ଥରେ ଥରେ ଚାହିଁଦେଲେ ।’’ ଏହିପରି ଅନେକ ଉଦାହରଣ ଯାହା ଉପନ୍ୟାସର ଅଂଶବିଶେଷ ତାହା ପ୍ରମାଣିତ କରିଛି ଔପନ୍ୟାସିକଙ୍କ କଳା-କାରିଗରୀର ସ୍ପର୍ଶ । ‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସର ଏ ବର୍ଣନା ଖୁବ୍ ଚମତ୍କାର ସହ ଜୀବନ୍ତ ମଧ୍ୟ ।

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 3 ମଲାଜହ୍ନ Question Answer

Question 8.
ସତୀର ବୈବାହିକ ଜୀବନ ସମ୍ପର୍କରେ ଆଲୋକପାତ କର ।
କିମ୍ବା, ଶାଶୁଘରେ ସତୀର ଜୀବନଧାରଣ ସମ୍ପର୍କରେ ଆଲୋଚନା କର ।
Answer:
ଆଧୁନିକ ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସର ଉନ୍ମେଷ ଓ ବିକାଶ ପର୍ବରେ ଜଣେ ବହୁ ପରିଚିତ ଓ ପ୍ରତିଷ୍ଠିତ ଔପନ୍ୟାସିକ ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ । ପରାମାଣାତ୍ମକ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ନୁହେଁ ବରଂ ଗୁଣାତ୍ମକ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ଯିଏ ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସ ରଚନା ପରମ୍ପରାରେ ନିଜ ନାଁକୁ ସ୍ଵର୍ଣ୍ଣାକ୍ଷରରେ ଲିପିବଦ୍ଧ କରି ରଖିବାରେ ସଫଳ ହୋଇଛନ୍ତି, ନିର୍ବ୍ବନ୍ଦ୍ବରେ ସେ ହେଉଛନ୍ତି ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର । ସହଜ ସରଳ ପ୍ରକାଶଭଙ୍ଗୀ, ସୁନ୍ଦର କଥାବସ୍ତୁ ଓ ଚମତ୍କାର ଚରିତ୍ରଚିତ୍ରଣ ତାଙ୍କ ଏକମାତ୍ର ଅମୂଲ୍ୟ ସୃଷ୍ଟି ‘ମଲାଜହ୍ନ’କୁ କାଳଜୟୀ କରାଇଛି । ସମାଜର ସମସ୍ୟା ଓ ନାରୀମନର ଅକୁହା କଥାର ଏକ କରୁଣ ରସାତ୍ମକ କାହାଣୀକୁ ନେଇ ଏଇ ଉପନ୍ୟାସ ଆଜି ବି ପାଠକ ପ୍ରାଣରେ ଆଲୋଡ଼ନ ସୃଷ୍ଟି କରିବାରେ ସଫଳ ମନେହୁଏ । ସତୀ ଜୀବନର ଯାତନାଭରା କଥା ହିଁ ଉପନ୍ୟାସର କାହାଣୀ । ବାଲ୍ୟ ବିବାହରେ ସତୀ ମୁକୁନ୍ଦପୁର ଜମିଦାର ଘରକୁ ବୋହୂ ହୋଇଯାଇଛି।

ସଂସାର କ’ଣ, ସ୍ଵାମୀ କ’ଣ, ଶାଶୁଘର କ’ଣ ଏକଥା ବୁଝିବା ଆଗରୁ ସତୀ ଓଢ଼ଣାଟାଣି ନଇଁ ନଇଁ ଶାଶୂଘର ଏରୁଣ୍ଡି ଡେଇଁଛି । ନିଜର ମନତଳ କଥା ମନରେ ରଖୁ, ନିଜ ବରର ରୂପକୁ ଅପସନ୍ଦ କରି ମଧ୍ୟ ନୀରବରେ ନିଜ ମନକୁ ଶାଶୂଘର ଲାଗି ବୁଝେଇଛି । ହେଲେ ସ୍ଵାମୀ ଯେତେବେଳେ ଖଟ ଉପରେ ତା’ସହ ସମ୍ପର୍କ ରଖୁବାକୁ ଚାହିଁଛନ୍ତି ସେ ଏହାକୁ ଗ୍ରହଣ କରିପାରି ନାହିଁ । ପ୍ରତିବାଦରେ ସେ ଛଟପଟ ହୋଇ ସ୍ଵାମୀଠାରୁ ଦୂରେଇଯାଇଛି । ସଂସାର ଦୃଷ୍ଟିରେ ଜମିଦାର ନରହରି ମିଶ୍ର ସିନା ସତୀର ସ୍ଵାମୀ ହୋଇଛନ୍ତି; ମାତ୍ର ସତୀ ନିଜ କାୟମନ-ବାକ୍ୟରେ ତାଙ୍କୁ ସ୍ୱାମୀ ଭାବରେ ଗ୍ରହଣ କରିପାରି ନାହିଁ । ଜମିଦାରଙ୍କ ସୌରଭୀ ଦାସୀ ସହ ଅନୈତିକ ସମ୍ପର୍କକୁ ଆଖ୍ୟାରେ ଦେଖୁ ସେ ତା’ର ସ୍ୱାମୀଙ୍କୁ ଘୃଣା କରିଛି ।

ଅନ୍ୟପକ୍ଷରେ ସତୀର ସଉତୁଣୀ ପୁଅ ନଟର ଦୁଃଖକାହାଣୀ ତାକୁ ପ୍ରଭାବିତ କରିଛି ଏବଂ ଶାଶୁଙ୍କ ସେବା ତାକୁ ଜୀବନ ଧାରଣର ପ୍ରେରଣା ଦେଇଛି । ସତୀ ନିଜ ଜୀବନର ବାକି ସମୟ ଏଇ ଦୁଇଜଣଙ୍କ ପାଇଁ କାଟିଦେବ ବୋଲି ସ୍ଥିର କରିନେଇଛି; ମାତ୍ର ଏହା ବି ପୂର୍ଣ ହୋଇପାରି ନାହିଁ । ବିଧୂର ବିଧାନରେ ସେ ଶାଶୂଘରର ଶେଷ ଅବଲମ୍ବନ ତା’ଶାଶୁମା’ର ସ୍ନେହକୁ ହରାଇଛି, ଯେତେବେଳେ ତା’ଶାଶୂ ନରହରି ମିଶ୍ର ଅର୍ଥାତ୍ ତାଙ୍କ ପୁଅ ଉପରେ ଅଭିମାନ କରି ପୁରୀ ପଳେଇଛନ୍ତି । ଶେଷରେ ସେ ମଧ୍ୟ ଶାଶୂଘରୁ ଦୂରେଇ ଯାଇଛି । ଶାଶୂଘରେ ସୀତର ଦୁର୍ଦ୍ଦଶା ବାସ୍ତବତଃ ବେଶ୍ ମାର୍ମିକ ଓ ହୃଦୟ ବିଦାରକ ।

Question 9.
ମଲାଜହ୍ନ ଉପନ୍ୟାସର ଭାଷା ଓ ଶୈଳୀ ସମ୍ପର୍କରେ ସଂକ୍ଷିପ୍ତ ଆଲୋଚନା କର ।
Answer:
କଥାରେ ଅଛି “Style is the man” । ପ୍ରତ୍ୟେକ ବ୍ୟକ୍ତିର ରୁଚି ଭିନ୍ନ ଭିନ୍ନ । ତେଣୁ ପସନ୍ଦଠାରୁ କାର୍ଯ୍ୟ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଅନେକରେ ଭିନ୍ନତା ପରିଲକ୍ଷିତ ହେବା ସ୍ଵାଭାବିକ । ଏ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ପ୍ରତ୍ୟେକ ସ୍ରଷ୍ଟା ନିଜ ରୁଚି, ନିଜ ଶୈଳୀ ଅନୁସାରେ ନିଜକୁ ଜାହିର କରିଥାଏ । ପ୍ରତ୍ୟେକ ସ୍ରଷ୍ଟାଙ୍କ ଏହି ନିର୍ଦ୍ଦିଷ୍ଟ ଶୈଳୀ ହିଁ ତାଙ୍କ ପ୍ରତିଭାର ଅସଲ ପରିଚୟ । ଏ କ୍ଷେତ୍ରରେ ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ ବାଦ୍ ଯିବେ ବା କିପରି !

ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସ ସାହିତ୍ୟର ଜଣେ ଅନନ୍ୟ ପ୍ରତିଭା ଓ ତାଙ୍କ ରଚିତ ଏକମାତ୍ର ଉପନ୍ୟାସ ‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଯେତିକି ଲୋକପ୍ରିୟ ହୋଇଥିଲା ସେତିକି ପ୍ରତିଷ୍ଠା ଆଣିଦେଇଥୁଲା ସ୍ରଷ୍ଟାଙ୍କୁ । କଥାବସ୍ତୁର ସୁପରିକଳ୍ପନାଠାରୁ ଚରିତ୍ର ଚିତ୍ରଣର ଚମତ୍କାରିତା ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ବର୍ଣ୍ଣନାର ସାବଲୀଳତାରେ ମଲାଜହ୍ନ ଖୁବ୍ ପାଠକାଦୃତ ।

‘ମଲାଜହ୍ନ’ର କଥାବସ୍ତୁ ସହ ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋରଙ୍କ ଅସରନ୍ତି ଭାବୁକତାର ମଧୁର ସମନ୍ବୟ ପାଠକକୁ ରସସିକ୍ତ ସ୍ଵପ୍ନପୁରୀର ସନ୍ଧାନ ଦିଏ । ସରଳ-ତରଳ-ସାବଲୀଳ ଭାଷା ବିନ୍ୟାସ ଔପନ୍ୟାସିକଙ୍କ ସ୍ବତଃସ୍ଫୁର୍ଣ କବିତ୍ଵ ବା ରସସିକ୍ତ ଭାବୁକତାର ଉତ୍କୃଷ୍ଟ ପରିଚାୟକ । ପ୍ରତିଭାବାନ୍ କାବ୍ୟକାର ପରି ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ନିଜ ଉପନ୍ୟାସର କଥାବସ୍ତୁରେ ଭାଷାର ବଣ୍ଠିଳ ଇନ୍ଦ୍ରଧନୁ ସଜାଇଛନ୍ତି । ‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସର ଭାଷା ଉପେନ୍ଦ୍ରଙ୍କ ଲେଖନୀରୁ ଝରିପଡ଼ିଛି ଚିରପ୍ରବାହମାନ ଅମଳ ମନ୍ଦାକିନୀ ପରି ।

ପଦ୍ୟ ହୋଇଥିଲେ ହୁଏତ ‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଏକ ଚମତ୍‌କାର କାବ୍ୟ ହୋଇଥାନ୍ତା । କିନ୍ତୁ ଯେହେତୁ ଏହା ଏକ ଗଦ୍ୟକଳା, ତେଣୁ ଏହାକୁ କିଛି ସମାଲୋଚକ ଗଦ୍ୟକାବ୍ୟ (Prose epic) ବୋଲି ବିଚାର କରନ୍ତି । Ralph foxଙ୍କ ମତକୁ ଯଦି ଏଠାରେ ଉଲ୍ଲେଖ କରାଯାଏ ତେବେ କିଛି ଅପ୍ରସାଙ୍ଗିକ ମନେହେବ ନାହିଁ । ଉପନ୍ୟାସ ସଂପର୍କରେ ମତଦେଇ ସେ ଉଲ୍ଲେଖ କରିଛନ୍ତି – ‘It is the novel that becomes pure peotry”.

ବାସ୍ତବରେ ଏହି ସାମାଜିକ ଉପନ୍ୟାସଟିର ବର୍ଣ୍ଣନାତ୍ମକ ଭାଷାଶୈଳୀ ପାଠକକୁ ଖୁବ୍ ଆକର୍ଷିତ କରିଛି । ପ୍ରକୃତିର ବର୍ଣ୍ଣନାଠାରୁ ଆରମ୍ଭ କରି ନାୟିକାର ମନସ୍ତତ୍ତ୍ୱକୁ ପ୍ରକାଶ କରିବା ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଆଜି ବି ପାଠକର ବେଶ୍ ପ୍ରିୟ ଉପନ୍ୟାସ ହୋଇପାରିଛି ‘ମଲାଜହ୍ନ’ । ପ୍ରସଙ୍ଗକ୍ରମେ ଉପନ୍ୟାସର କେତୋଟି ଧାଡ଼ି ଏଠାରେ ଦୃଷ୍ଟାନ୍ତ ସ୍ଵରୂପ ଉଲ୍ଲେଖ କରାଯାଇପାରେ – ‘ଶରତ୍ ଗଲା ନଈପଠାରେ ତଣ୍ଡିଫୁଟା ମଉଛବ ବଢ଼ାଇ ଦେଇ । ବିଲ ପଡ଼ିଆରେ ଶୁଖୁଲା ନୁଖୁରା ଭୂଇଁ ଉପରେ ପାହାନ୍ତା ପହରର ଗଙ୍ଗଶିଭଳି ଶେଯପରାକ୍ରମେ ସରିଆସିଲା ।’’

Question 10.
ମଲାଜହ୍ନ ଉପନ୍ୟାସ ତତ୍‌କାଳୀନ ସାମାଜିକ ଜୀବନର ବିଶ୍ବସ୍ତ ଦଲିଲ୍ କିପରି ପ୍ରତିପାଦନ କର ।
କିମ୍ବା, ‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସରେ ସମସାମୟିକ ସମାଜଚିତ୍ର କିପରି ପ୍ରତିଫଳିତ ହୋଇଛି ଆଲୋଚନା କର ।
କିମ୍ବା, ଏକ ସାର୍ଥକ ସାମାଜିକ ଉପନ୍ୟାସ ଭାବରେ ‘ମଲାଜହ୍ନ’ର ମୂଲ୍ୟାଙ୍କନ କର ।
କିମ୍ବା, ‘ମଲାଜହ୍ନ ଏକ ସାର୍ଥକ ସାମାଜିକ ଉପନ୍ୟାସ’ – ଉକ୍ତିର ଯଥାର୍ଥତା ପ୍ରତିପାଦନ କର ।
କିମ୍ବା, ଏକ ସମାଜଭିଭିକ କଥାବସ୍ତୁ ଆଧାରରେ ରଚିତ ‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସର ବିଚାର କର ।
Answer:
ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସ ସାହିତ୍ୟର ଉନ୍ମେଷ ପର୍ବରେ ଯେଉଁ କେତେଜଣ ବିଶିଷ୍ଟ ପ୍ରତିଭା ସେମାନଙ୍କ ସ୍ୱଚ୍ଛ ସୃଷ୍ଟି ମଧ୍ୟରେ ନିଜ ପ୍ରତିଭାର ସ୍ୱାତନ୍ତ୍ର୍ୟ ଉପସ୍ଥାପିତ କରିଯାଇଛନ୍ତି, ସେଇ ପ୍ରତିଭାମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ଔପନ୍ୟାସିକ ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ ଅନ୍ୟତମ ସାର୍ଥକ ସ୍ରଷ୍ଟା । ପରିମାଣାତ୍ମକ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ନୁହେଁ, ବରଂ ଗୁଣାତ୍ମକ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ତାଙ୍କର ସିଦ୍ଧି ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସ ପାଠକ ପାଖରେ ଆଜି ବି ଅମଳିନ । ଏକ ସାଧାରଣ ଘଟଣାକୁ ସରସ ସୁନ୍ଦର ଭାବରେ ପାଠକ ଆଗରେ ତୋଳିଧରି କରୁଣ ରସରେ ପାଠକ ପ୍ରାଣକୁ ରସାପ୍ତ କରାଇବାରେ ସେ ଖୁବ୍ ପ୍ରବୀଣ, ଯାହାର ଏକ ଜ୍ଵଳନ୍ତ ପ୍ରମାଣ ‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସ ।

‘ମଲାଜହ୍ନ’ର ରଚନାର ସମୟ ୧୯୨୮ ମସିହା ଅର୍ଥାତ୍ ସ୍ଵାଧୀନତା ପୂର୍ବବର୍ତ୍ତୀ କାଳର । ସେ ସମୟର ସାମାଜିକ ଆବେଦନ ଓ ଘଟଣାବଳୀକୁ ଏଥରେ ନିଚ୍ଛକ ଭାବରେ ଉପସ୍ଥାପିତ କରାଯାଇଛି । ସେ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଏକ ସାର୍ଥକ ସାମାଜିକ ଉପନ୍ୟାସ । ତେବେ ଏହାର ପରିକଳ୍ପନା ଏକ ସମାଜଭିଭିକ କଥାବସ୍ତୁର ଆଧାରରେ । ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ ଲେଖନୀ ଚାଳନା କରିବାବେଳକୁ ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସ ସାହିତ୍ୟରେ ସାମାଜିକ ଉପନ୍ୟାସର ଲୋକପ୍ରିୟତା ବେଶ୍ ସୁଦୃଢ଼ ଥିଲା । ଐତିହାସିକ, ରାଜନୈତିକ, ମନସ୍ତାତ୍ତ୍ଵିକ ଉପନ୍ୟାସ ଅପେକ୍ଷା ପାଠକ ସାମାଜିକ ଉପନ୍ୟାସ ପ୍ରତି ବିଶେଷ ଦୁର୍ବଳତା ପ୍ରକାଶ କରୁଥିଲେ । ସମ୍ଭବତଃ ସେହି କାରଣରୁ ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ସାମାଜିକ ଉପନ୍ୟାସ ରଚନା ପ୍ରତି ବିଶେଷ ଦୃଷ୍ଟି ଦେଇଥିଲେ ।

‘Literature is the mirror of the society’ ଇଂରାଜୀର ଏଇ ଉକ୍ତି ‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସରେ ସାର୍ଥକଭାବେ ରୂପାୟିତ । ୧୯୨୮ ମସିହାବେଳକୁ ସାମାଜିକ ଜୀବନଧାରାର ସମସ୍ୟାକୁ କେନ୍ଦ୍ରକରି ଏହାର ମନୋରମ ପରିକଳ୍ପନା । ଅଶିକ୍ଷା, ନିରକ୍ଷରତା, ବାଲ୍ୟବିବାହ, ଜାତିପ୍ରଥା, ରକ୍ଷଣଶୀଳ ସାମାଜିକ ବିଧ, ପରମ୍ପରା, ଅନ୍ଧବିଶ୍ୱାସ, ହଇଜା ମହାମାରୀ, ଦିଅଁଦେବତାଙ୍କ ପାଖରେ ଅଭିଷେକ ଇତ୍ୟାଦିର ବର୍ଣ୍ଣନା ଉପନ୍ୟାସର ସାମାଜିକତାକୁ ପାଠକ ଆଗରେ ଧରିରଖୁଛି ।

‘ମଲାଜହ୍ନ’ର କଥାବସ୍ତୁ ଉପସ୍ଥାପନା, ଚରିତ୍ର ସଂଯୋଜନାରେ ଔପନ୍ୟାସିକଙ୍କର ସାମାଜିକ ଦୃଷ୍ଟିଭଙ୍ଗୀ ଯେପରି ସ୍ପଷ୍ଟ, ଉପନ୍ୟାସର ପରିବେଶ ରୂପାୟନରେ ସାମାଜିକତାର ସ୍ପର୍ଶ ସେପରି ଉଜ୍ଜ୍ଵଳ । ପଲ୍ଲୀ ପ୍ରକୃତିର ମନୋହର ପ୍ରତିଛବି ଶବ୍ଦର ତୂଳୀରେ ଅଙ୍କନ କରି ଔପନ୍ୟାସିକ ସମାଜ ଚେତନାର ଆଭାସ ଦେଇଛନ୍ତି କହିଲେ ଅତ୍ୟୁକ୍ତି ହେବନାହିଁ । ସୁତରାଂ ଚରିତ୍ର ଚିତ୍ରଣ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ହେଉ ଅବା କଥାବସ୍ତୁର ଉପସ୍ଥାପନା ଦୃଷ୍ଟିରୁ ହେଉ ‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଯେ ଏକ ସାର୍ଥକ ସାମାଜିକ ଉପନ୍ୟାସ ଏଥ‌ିରେ ଦ୍ବିମତ ନାହିଁ ।

ଅଭ୍ୟାସ ପାଇଁ ଅତିରିକ୍ତ ପ୍ରଶ୍ନୋତ୍ତର

(କ) ୧ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ସମ୍ଭାବ୍ୟ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ ।

Question 1.
‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସ କେବେ ରଚନା କରାଯାଇଥିଲା?
(A) ୧୯୨୮
(B) ୧୯୩୬
(C) ୧୯୪୨
(D) ୧୯୫୦
Answer:
(A) ୧୯୨୮

Question 2.
‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସର ମୁଖ୍ୟ ଚରିତ୍ର କିଏ?
(A) ନାଥନନା
(B) ଅନାଦି ମିଶ୍ର
(C) ସତୀ
(D) ବଉଳ
Answer:
(C) ସତୀ

Question 3.
‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଏକ କେଉଁ ପ୍ରକାର ଉପନ୍ୟାସ?
(A) ଐତିହାସିକ
(B) ପୌରାଣିକ
(C) ରାଜନୈତିକ
(D) ସାମାଜିକ
Answer:
(D) ସାମାଜିକ

Question 4.
୪। କୁଆଡ଼େ ବାହାରିଲେ ବୋଉ ଚିଡ଼େ?
(A) ଯାତ୍ରାକୁ
(B) ମାମୁଘରକୁ
(C) ଆଖଡ଼ାକୁ
(D) ବାହାରକୁ
Answer:
(D) ବାହାରକୁ

Question 5.
ସତୀଘର ବାରିପଟ ଆମ୍ବତୋଟାରେ କିଏ ଭାରି ଜୋର୍‌ରେ ଗର୍ଜୁଥାଏ?
(A) ବାଘ
(B) ପବନ
(C) କୁକୁର
(D) ବିଲୁଆ
Answer:
(B) ପବନ

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Question 6.
ସତୀ ଦାଣ୍ଡ ପାହାଚ ଉପରେ ଗୋଡ଼ ଦେଲାବେଳକୁ କିଏ ପଛରୁ ଡାକିଛି?
(A) ବୋଉ
(B) ବଉଳ
(C) ବାପା
(D) ନାଥନନା
Answer:
(C) ବାପା

Question 7.
କିଏ ଶାଶୂଘରୁ ଫେରି ନାହିଁ?
(A) ବଉଳ
(B) କମଳାନାନୀ
(C) ସତୀ
(D) ହୀରା
Answer:
(D) ହୀରା

Question 8.
ବ୍ରାହ୍ମଣ ଘରେ କେତେ ବର୍ଷରେ ବାହାଘର କରି ଦିଆଯାଉଥିଲା?
(A) ୨୦ ବର୍ଷରେ
(B) ୨୫ ବର୍ଷରେ
(C) ୫ ବର୍ଷରେ
(D) ୧୦ ବର୍ଷରେ
Answer:
(C) ୫ ବର୍ଷରେ

Question 9.
ଶରତଋତୁରେ ନଈ ପଠାରେ କ’ଣ ଶୋଭାପାଏ?
(A) ମନ୍ଦାର ଫୁଲ
(B) କାଶତଣ୍ଡୀ ଫୁଲ
(C) ଟଗର ଫୁଲ
(D) କୌଣସିଟି ନୁହେଁ
Answer:
(B) କାଶତଣ୍ଡୀ ଫୁଲ

Question 10.
ସତୀ କେଉଁ ଫୁଲ ପାଇଁ ପାଣିରେ ପଶିଲା?
(A) କଇଁ
(B) ପଦ୍ମ
(C) ସିଙ୍ଗଡ଼ାହାର
(D) ଜଳବିରା
Answer:
(A) କଇଁ

Question 11.
କିଏ ସତୀ ପାଣିରେ ପଶିଥ୍ୟାବାର ଦେଖୁ ପାଟିକଲା?
(A) ବୋଉ
(B) ନାଥନନା
(C) ବାପା
(D) ବଉଳ
Answer:
(B) ନାଥନନା

Question 12.
କାହାକୁ ଦେଖୁ ସତୀ ମନେ ମନେ ରାଗିଲା?
(A) ବଉଳ
(B) ହୀରା
(C) ନାଥନନା
(D) ବୋଉ
Answer:
(C) ନାଥନନା

Question 13.
ପାଣି ଭିତରେ ଠିଆହୋଇ ସତୀ କାହାକୁ ପାର୍ଟି ଫିଟେଇଲା ନାହିଁ?
(A) ବଉଳକୁ
(B) ସାଙ୍ଗକୁ
(C) ଗାଁ ପିଲାଙ୍କୁ
(D) ନାଥନନାଙ୍କୁ
Answer:
(D) ନାଥନନାଙ୍କୁ

Question 14.
ନାଥନନା କେତେ ମାସ ହେବ ଗାଁରେ ନଥିଲେ?
(A) ଛଅମାସ
(B) ଦୁଇମାସ
(C) ଚାରିମାସ
(D) ତିନିମାସ
Answer:
(A) ଛଅମାସ

Question 15.
ନାଥନନା ପାଠ ପଢ଼ିବାପାଇଁ କେଉଁଠିକି ଯାଇଥିଲେ?
(A) ଭୁବନେଶ୍ଵର
(B) କଟକ
(C) କଲିକତା
(D) ତକ୍ଷଶିଳା
Answer:
(B) କଟକ

Question 16.
କେଉଁ ଛୁଟିରେ ନାଥନନା ଘରକୁ ଫେରିଛନ୍ତି?
(A) ଦୋଳ
(B) ଖରାଦିନ
(C) ଦଶହରା
(D) ରଜ
Answer:
(C) ଦଶହରା

Question 17.
ନାଥନନା ଘରକୁ ଆସିଲେ ଆଗେ କାହାକୁ ଖୋଜନ୍ତି?
(A) ବାପାଙ୍କୁ
(B) ବୋଉଙ୍କୁ
(C) ବଉଳକୁ
(D) ସତୀକୁ
Answer:
(D) ସତୀକୁ

Question 18.
ନାଥନନା ଘରକୁ ଆସିଲେ କିଏ ଲୁଚେ?
(A) ସତୀ
(B) ବଉଳ
(C) ନିଶି
(D) ହୀରା
Answer:
(A) ସତୀ

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Question 19.
ବର୍ଷା ହେଲେ ସତୀ କାହା ସହ କାଗଜ ଡଙ୍ଗା ଭସାଏ?
(A) ନାଥନନା
(B) ହୀରା
(C) ବଉଳ
(D) କମଳୀନାନୀ
Answer:
(C) ବଉଳ

Question 20.
କାହା କଷ୍ଟ ଦେଖୁ ସତୀକୁ ଅଡ଼ୁଆ ଲାଗେ?
(A) ବଉଳର
(B) ବେବୀର
(C) ନିଶିର
(D) ନାଥନନାଙ୍କର
Answer:
(D) ନାଥନନାଙ୍କର

Question 21.
ସତୀ ଶାଶୂଘରେ ରାଣୀ ହୋଇ ରହିବ ବୋଲି କିଏ କହିଛି?
(A) ବଡ଼ମା’
(B) ବଉଳ
(C) ବୋଉ
(D) ବାପା
Answer:
(C) ନାଥନନା

Question 22.
କିଏ ଆସିଲେ ବୋଉ ଦଣ୍ଡେଅଧେ କଥାବାର୍ତ୍ତା କରେ?
(A) ମାମୁ
(B) ବାପା
(C) ନାଥନନା
(D) ବଡ଼ଅଜା
Answer:
(B) ବଉଳ

Question 23.
କିଏ ଭାରି ମାମଲତ୍‌କାର ପରି କହିଲା?
(A) ସତୀ
(B) ବାପା
(C) ବଉଳ
(D) ନାଥନନା
Answer:
(D) ନାଥନନା

Question 24.
ଚଉରା ପାଖରେ ସତୀ କ’ଣ ଜାଳେ?
(A) ଘିଅବଳିତା
(B) କର୍ପୂର
(C) ତେଲଦୀପ
(D) ଧୂପବତୀ
Answer:
(A) ଘିଅବଳିତା

Question 25.
କିଏ ଭାରି ଏକଜିଦିଆ ଲୋକ?
(A) ନାଥନନା
(B) ସତୀର ବାପା
(C) ସତୀ
(D) ବଉଳ
Answer:
(B) ସତୀର ବାପା

Question 26.
ବାହାଘର ବେଳେ ସତୀକୁ କିଏ ଗାଧୋଇଦେଲା?
(A) ଭାଉଜ
(B) ବଡ଼ମା’
(C) ବୋଉ
(D) ହୀରାବୋଉ
Answer:
(B) ବଡ଼ମା’

Question 27.
ବଉଳ ସତୀକୁ କାହାକୁ ଚିହ୍ନାଇ ଦେଇଛି?
(A) ବରକୁ
(B) ଶ୍ୱଶୁରକୁ
(C) କୁଣିଆଙ୍କୁ
(D) ନାଥନନାଙ୍କୁ
Answer:
(A) ବରକୁ

Question 28.
କିଏ ଦରବୁଢ଼ା ତ୍ରିପଣ୍ଡକଳା ଆଉ ମୋଟା ମଣିଷ ଥିଲା?
(A) ନାଥନନା
(B) ସତୀର ବଉଳ
(C) ସତୀର ଶ୍ଵଶୁର
(D) ସତୀର ବର
Answer:
(D) ସତୀର ବର

Question 29.
କିଏ ମନେ ମନେ ଖାଲି ଠାକୁରଙ୍କ ନାମ ଜପିଛି?
(A) ସତୀ
(B) ବୋଉ
(C) ବଉଳ
(D) ବଡ଼ମା’
Answer:
(B) ବୋଉ

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Question 30.
ବୋଉ କାହା ପାଇଁ ପାନ ଭାଙ୍ଗିବାକୁ ସତୀକୁ କହିଛନ୍ତି?
(A) ବାପାଙ୍କ ପାଇଁ
(B) କୁଣିଆଙ୍କ ପାଇଁ
(C) ନାଥନନାଙ୍କ ପାଇଁ
(D) ବଡ଼ ମା’ ପାଇଁ
Answer:
(C) ନାଥନନାଙ୍କ ପାଇଁ

Question 31.
ନାଥନନା ଦୁଇବର୍ଷ ହେଲା କୁଆଡ଼େ ପଳେଇଥିଲେ?
(A) ବୁଲିବାକୁ
(B) କଟକ
(C) କଲିକତା
(D) ସୁରଟ
Answer:
(B) କଟକ

Question 32.
କିଏ ପିଲାଟି ଦିନରୁ ଏକଜିଦିଆ ଆଉ ଅଭିମାନୀ?
(A) ସତୀ
(B) ବଉଳ
(C) ହୀରା
(D) ନାଥନନା
Answer:
(D) ନାଥନନା

Question 33.
ବଉଳର ନନା କିଏ?
(A) ନାଥନନା
(B) ନରହରି
(C) ସୁଦେଶ
(D) ସତୀର ବର
Answer:
(A) ନାଥନନା

Question 34.
ଦାଣ୍ଡରେ ବାପାଙ୍କ ପାଟି ଶୁଣି କିଏ ତରତର ହୋଇ ଉଠି ଚାଲିଗଲା?
(A) ସତୀ
(B) ସତୀର ବୋଉ
(C) ନାଥନନା
(D) ବଉଳ
Answer:
(B) ସତୀର ବୋଉ

Question 35.
କାହାଯୋଗୁଁ ସତୀର ସବୁ ଗୋଳମାଳ ହୋଇଯାଉଛି?
(A) ବଉଳ ଯୋଗୁଁ
(B) ବୋଉ ଯୋଗୁଁ
(C) ପର୍ବ ଯୋଗୁଁ
(D) ନାଥନନା ଯୋଗୁଁ
Answer:
(D) ନାଥନନା ଯୋଗୁଁ

Question 36.
କାହାକୁ ଦେଖୁବ ବୋଲି ଜହ୍ନିଫୁଲ ଏତେଦିନଯାକେ ମଉଳି ନଥାଏ?
(A) ସତୀକୁ
(B) ନାଥନନାକୁ
(C) ପୁନେଇଁ ଜହ୍ନକୁ
(D) ବଉଳକୁ
Answer:
(C) ପୁନେଇଁ ଜହ୍ନକୁ

Question 37.
ଜହ୍ନ ରାଇଜର ରାଣୀ କିଏ?
(A) ସତୀ
(B) ବଉଳ
(C) ଜହ୍ନିଫୁଲ
(D) ନିଶି
Answer:
(C) ଜହ୍ନିଫୁଲ

Question 38.
କାହାକୁ ପାନ ଦେଲାବେଳେ ସତୀର ହାତ ଥରିଥିଲା?
(A) ନାଥନନାଙ୍କୁ
(B) ଗାଁ ଭାଇନାକୁ
(C) ବାପାଙ୍କୁ
(D) ପୂଜକଙ୍କୁ
Answer:
(A) ନାଥନନାଙ୍କୁ

Question 39.
ସତୀ ନାଁରେ କିଏ ମିଛ କହିଛି ବୋଲି ସଖୀ ଭାବିଛି?
(A) ବୋଉ
(B) ଗାଁ ଝିଅ
(C) ବଉଳ
(D) ନାଥନନା
Answer:
(C) ବଉଳ

Question 40.
କାହାର ସବୁଦିନେ ଫୁଲରେ ଶରଧା?
(A) ସତୀର
(B) ବଉଳର
(C) ନାଥନନାର
(D) ହୀରାର
Answer:
(A) ସତୀର

Question 41.
କିଏ ସତୀକୁ ଫୁଲ ତୋଳିବାକୁ ଡାକିଛି?
(A) ଗାଁ ନାନୀ
(B) ବଉଳ
(C) ନାଥନନା
(D) ବଡ଼ମା’
Answer:
(B) ବଉଳ

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 3 ମଲାଜହ୍ନ Question Answer

Question 42.
ସତୀର ବାପା ତା’ ବୋଉକୁ କେଉଁ ଗାଁ କଥା କହୁଥିଲେ?
(A) ମୁଜରାବାଦ
(B) ମୁକୁନ୍ଦପୁର
(C) ମୁନାଫାନଗର
(D) ମକନ୍ଦପାଟ
Answer:
(B) ମୁକୁନ୍ଦପୁର

Question 43.
ବଉଳର ବୋଉକୁ ସତୀ କ’ଣ ସମ୍ବୋଧନ କରୁଥିଲା?
(A) ବଉଳମା’
(B) ଚାନ୍ଦବୋଉ
(C) ବଡ଼ମା’
(D) ମିତମା’
Answer:
(C) ବଡ଼ମା’

Question 44.
ସତୀ କାହାଘରେ ପହଞ୍ଚିଲା ବେଳକୁ ବର୍ଷା ଆରମ୍ଭ ହୋଇଗଲାଣି?
(A) ନାଥନନା ଘରେ
(B) ଦୋକାନଘରେ
(C) ବୈଠକଘରେ
(D) ସିନେମାଘରେ
Answer:
(A) ନାଥନନା ଘରେ

Question 45.
କାହାର ମନ ଜମା ଗୋଟାଏ ଜାଗାରେ ଥୟ ନୁହେଁ?
(A) ସତୀର
(B) ନାଥନନାର
(C) ବଉଳର
(D) ବଡ଼ମା’ର
Answer:
(C) ବଉଳର

Question 46.
କିଏ ଘୋଡ଼ାପରି ବୁଲୁଛି ବୋଲି ସତୀ ବଡ଼ମା’ କହିଛି?
(A) ନେତବୋଉ
(B) ନିଶି
(C) ସତୀ
(D) ନାଥନନା
Answer:
(B) ନିଶି

Question 47.
ଯୋର କୂଳେ କୂଳେ କେଉଁ ବଣ ଥିଲା?
(A) କିଆବଣ
(B) ଫୁଲବଣ
(C) ବାଉଁଶବଣ
(D) କଣ୍ଟାବଣ
Answer:
(C) ବାଉଁଶବଣ

Question 48.
ସତୀ କାହା ହାତ ଉପରେ ଆଉଜି ବେଦୀ ଉପରେ ବସିରହିଲା?
(A) ବରର ହାତ
(B) ନଣନ୍ଦ ହାତ
(C) ବ୍ରାହ୍ମଣ ହାତ
(D) ଭଣ୍ଡାରୁଣୀ ହାତ
Answer:
(D) ଭଣ୍ଡାରୁଣୀ ହାତ

Question 49.
ବାହାଘର କର୍ମ ସରିଗଲା ପରେ ସତୀକୁ କିଏ ଆଣି ଆଉ ଗୋଟା ଘରେ ବସାଇ ଦେଇଗଲା?
(A) ଘରର ପୋଇଲୀ
(B) ଶାଶୁମା’
(C) ଭଣ୍ଡାରୁଣୀ
(D) ଦାସବୋହୂ
Answer:
(A) ଘରର ପୋଇଲୀ

Question 50.
କାହା ଥଣ୍ଡା ହାତ ଲାଗି ସତୀର ନିଦ ଭାଙ୍ଗିଗଲା?
(A) ନାଥନନାଙ୍କର
(B) ଶାଶୂର
(C) ସ୍ଵାମୀଙ୍କର
(D) ଦାସୀର
Answer:
(C) ସ୍ଵାମୀଙ୍କର

Question 51.
କିଏ ଦୀପିଟିକୁ ଲିଭାଇ ଦେଇଛି?
(A) ସତୀର ସ୍ଵାମୀ
(B) ସତୀ
(C) ଜଣେ ଦାସୀ
(D) ସୌରଭୀ
Answer:
(B) ସତୀ

Question 52.
ବୁଦ୍ଧି ଆଉ ଦୃଢ଼ତାରେ କାହା ମୁହଁ ସମୁଜ୍ଜ୍ବଳ?
(A) ସତୀର
(B) ସତୀ ସ୍ଵାମୀର
(C) ସତୀ ଶାଶୂର
(D) ଦାସୀର
Answer:
(C) ସତୀ ଶାଶୂର

Question 53.
ଆଗେ ନଟ କାହା ପାଖରେ ଶୋଉଥିଲା?
(A) ବୋଉ
(B) ସୌରଭୀ
(C) ଜେଜେ ମା’
(D) ଦାସୀ
Answer:
(B) ସୌରଭୀ

Question 54.
କିଏ ବିଚାରି ଭାରି ସ୍ନେହରଙ୍କା ବୋଲି ସତୀ ଭାବିଛି?
(A) ସତୀର ସ୍ଵାମୀ
(B) ନଟ
(C) ସତୀର ଶାଶୁ
(D) ଦାସୀ
Answer:
(B) ନଟ

Question 55.
ସତୀ ମୁଣ୍ଡ ଉପରେ କିଏ ବିକଟ ଶବ୍ଦକରି ଉଡ଼ିଗଲା?
(A) କାଉ
(B) ବାଦୁଡ଼ି
(C) ପେଚା
(D) ଚେମେଣିଆଁ
Answer:
(C) ପେଚା

Question 56.
ଶାଶୁଘରେ ସକାଳ ଓଳି ସତୀର କେମିତି କଟିଯାଏ?
(A) ଫୁଲତୋଳାରେ
(B) ଘର ଓଳାରେ
(C) ନଟ ସେବାରେ
(D) ଶାଶୂଙ୍କ ସେବାରେ
Answer:
(D) ଶାଶୂଙ୍କ ସେବାରେ

Question 57.
ସତୀର ଶାଶୁ କୋଉଘର ଚାବି ସତୀ ହାତରେ ଦେଲେ?
(A) ଭଣ୍ଡାର ଘରର
(B) କୋଠଘରର
(C) ଠାକୁର ଘରର
(D) ଖଞ୍ଜାଘରର
Answer:
(A) ଭଣ୍ଡାର ଘରର

Question 58.
ନଟ କ’ଣ କିଣିଦେବା ପାଇଁ ସତୀକୁ କହିଛି?
(A) ପେଁକାଳି
(B) ଘୋଡ଼ା
(C) ଖେଳନା
(D) ସାଇକେଲ
Answer:
(B) ଘୋଡ଼ା

Question 59.
କିଏ ଭାରି କଳିହୁରି ବୋଲି ନଟ କହିଛି?
(A) ନଟର ମା’
(B) ସତୀର ଶାଶୂ
(C) ପୋଇଲି ଚମ୍ପା
(D) ସୌରଭୀ
Answer:
(D) ସଉରଭୀ

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Question 60.
ଘର ଭିତରେ କାହାକୁ ଦେଖୁ ସୌରଭୀ ଚମକି ପଡ଼ିଲା?
(A) ସାପକୁ
(B) ସତୀକୁ
(C) ସତୀର ଶାଶୁକୁ
(D) ଚମ୍ପାକୁ
Answer:
(B) ସତୀକୁ

Question 61.
ସତୀ ବାପଘର ବୁଢ଼ା ଚାକରର ନାଁ କ’ଣ?
(A) ସଇତା
(B) ଶରତ
(C) ମଦନା
(D) ହରିଆ
Answer:
(A) ସଇତା

Question 62.
ସତୀଘର ଗାଁରେ କୋଉ ରୋଗ ବ୍ୟାପିଛି ବୋଲି ସଇତା ସତୀକୁ ଜଣାଇଛି?
(A) ମ୍ୟାଲେରିଆ
(B) ହଇଜା
(C) ଡେଙ୍ଗୁ
(D) ବସନ୍ତ
Answer:
(B) ହଇଜା

Question 63.
କିଏ କଟକ ଯାଇଛି ଡାକ୍ତର ଆଣିବାକୁ?
(A) ସତୀର ବାପା
(B) ନରହରି ମିଶ୍ର
(C) ନଖିଆ ପୁଅ
(D) ନାଥୁଆ ତିଆଡ଼ି
Answer:
(D) ନାଥୁଆ ତିଆଡ଼ି

Question 64.
ମନ୍ଦିରକୁ ଯିବାପାଇଁ କେତୋଟି ସବାରୀ ଦରକାର ବୋଲି ସତୀ ଶୁଣିଛି?
(A) ପାଞ୍ଚଟି
(B) ଦୁଇଟି
(C) ତିନୋଟି
(D) ଚାରୋଟି
Answer:
(C) ତିନୋଟି

Question 65.
ସତୀର ଶାଶୂ କେଉଁଠିକି ଯିବେ ବୋଲି ଜଣେଇଦେଲେ?
(A) ତୀର୍ଥକୁ
(B) ପୁରୀକୁ
(C) ବୃନ୍ଦାବନକୁ
(D) ମଥୁରାକୁ
Answer:
(B) ପୁରୀକୁ

Question 66.
ସତୀର ଶାଶୂଘରେ ତା’ର ଶେଷ ଅବଲମ୍ବନ କିଏ ଥିଲେ?
(A) ଚମ୍ପାଦାସୀ
(B) ସତୀର ସ୍ଵାମୀ
(C) ସତୀର ଶାଶୁ
(D) ସୌରଭୀ ପୋଇଲି
Answer:
(C) ସତୀର ଶାଶୁ

Question 67.
ସତୀକୁ କିଏ ଆଣି ସବାରୀରେ ବସାଇ ଦେଲା?
(A) ସୌରଭୀ
(B) ନୂଆଦାସୀ
(C) ସତୀର ସ୍ଵାମୀ
(D) ଚମ୍ପାମା’
Answer:
(D) ଚମ୍ପାମା’

Question 68.
ନଟ କାହା ପାଖରେ ବସି ମନ୍ଦିରକୁ ଗଲା?
(A) ସତୀ ପାଖରେ
(B) ଚମ୍ପାମା’ ପାଖରେ
(C) ସୌରଭୀ ପାଖରେ
(D) କୌଣସିଟି ନୁହେଁ
Answer:
(C) ସୌରଭୀ ପାଖରେ

Question 69.
ଅନେକ ବାଟ ଆସିଲାପରେ ସବାରୀ କୋଉଠି ରହିଲା?
(A) ଗଛମୂଳରେ
(B) ନଈକୂଳରେ
(C) ଆମ୍ବତୋଟାରେ
(D) ମନ୍ଦିର ପାଖରେ
Answer:
(B) ନଈକୂଳରେ

Question 70.
କାହା ସବାରୀ ସବା ପଛରେ ଯାଇ ପହଞ୍ଚିଲା?
(A) ସତୀ ସ୍ଵାମୀଙ୍କର
(B) ସୌରଭୀର
(C) ଚମ୍ପାମା’ର
(D) କୌଣସିଟି ନୁହେଁ
Answer:
(A) ସତୀ ସ୍ଵାମୀଙ୍କର

Question 71.
ନଟକୁ କିଏ ନୂଆ ପାଟ ପିନ୍ଧାଇଛି?
(A) ସତୀ
(B) ସୌରଭୀ
(C) ସତୀର ସ୍ଵାମୀ
(D) ଚମ୍ପାମା’
Answer:
(D) ଚମ୍ପାମା’

Question 72.
ଭିଡ଼ ଭିତରେ ସତୀ କାହାକୁ ଦେଖୁ ପକେଇଛି?
(A) ନାଥନନାଙ୍କୁ
(B) ବାପାଙ୍କୁ
(C) ଗାଁ ସାଙ୍ଗକୁ
(D) ସଇତାକୁ
Answer:
(A) ନାଥନନାଙ୍କୁ

Question 73.
ବୁଢ଼ା ସାହୁ ଦୋକାନୀ କ’ଣ ଦେଖ୍ ତରଳିଗଲା?
(A) ଛୁରୀ ଦେଖୁ
(B) ଟଙ୍କା ଦେଖୁ
(C) ଫୁଲ ଦେଖ୍
(D) ସତୀକୁ ଦେଖୁ
Answer:
(B) ଟଙ୍କା ଦେଖୁ

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Question 74.
ନରହରି ମିଶ୍ର କିଏ?
(A) ବ୍ରାହ୍ମଣ ପୂଜକ
(B) ଦୋକାନୀ
(C) ସତୀର ସ୍ବାମୀ
(D) ଡାକୁ
Answer:
(C) ସତୀର ସ୍ଵାମୀ

Question 75.
କିଏ ଓଦା ଭୂଇଁରେ ଲଥକରି ଶୋଇପଡ଼ିଲା?
(A) ସାହୁକାର
(B) ଜମିଦାର
(C) ନାଥନନା
(D) ସତୀ
Answer:
(D) ସତୀ

Question 76.
ସତୀ ନାଥନନା ସହ ପୁଣି ଶାଶୂଘରକୁ କେଉଁଥରେ ଫେରିଥିଲା?
(A) ସବାରୀରେ
(B) ମୋଟରଗାଡ଼ିରେ
(C) ବଳଦଗାଡ଼ିରେ
(D) ଚାଲି ଚାଲି
Answer:
(C) ବଳଦଗାଡ଼ିରେ

Question 77.
କିଏ ବାହାର ଆଡ଼କୁ ଚାହିଁ ଗାଡ଼ି ଭିତରେ ବସିଥିଲା?
(A) ସତୀ
(B) ନାଥନନା
(C) ବଉଳ
(D) ସାହୁକାର
Answer:
(B) ନାଥନନା

Question 78.
କିଏ ସତୀର ମୁହଁ ଚାହିଁବ ନାହିଁ ବୋଲି କହିଲା?
(A) ସତୀର ସ୍ଵାମୀ
(B) ସତୀର ବାପା
(C) ଶାଶୁମା’
(D) ନାଥନନା
Answer:
(A) ସତୀର ସ୍ଵାମୀ

Question 79.
ଟୋକେଇରେ କ’ଣ ବୋଝେଇ କରି ନାଥନନା ଆଣି ଥୋଇଛନ୍ତି?
(A) ଘରକରଣା ଜିନିଷ
(B) ଖାଦ୍ୟପଦାର୍ଥ
(C) ଲୁଗାପଟା
(D) ବହିଖାତା
Answer:
(A) ଘରକରଣା ଜିନିଷ

Question 80.
ନାଥନନା ଗଣ୍ଡାଏ ଖାଇଦେଇ କ’ଣ ଖୋଜିବାକୁ ବାହାରିଲେ?
(A) ଚାକରାଣୀ
(B) ଡାକ୍ତର
(C) ପୂଝାରୀ
(D) ଗାଈ
Answer:
(C) ପୂଝାରୀ

Question 81.
କାର୍ତ୍ତିକ ମାସରେ ନାଥନନାଙ୍କ ବୋଉ କୁଆଡ଼େ ଯାଇଥିଲେ?
(A) ଚଣ୍ଡିଖୋଲ
(B) କଟକ
(C) ଭଦ୍ରକ
(D) ପୁରୀ
Answer:
(D) ପୁରୀ

Question 82.
କିଏ ଗାଁଯାକ ଏକାଠି କରି ନାଥନନାଙ୍କୁ ଏକଘରକିଆ କରିବ ବୋଲି ଭାବିଛି?
(A) ନରହରି ମିଶ୍ର
(B) ଅଚ୍ୟୁତି ମହାନ୍ତି
(C) ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ର
(D) ସଇତା
Answer:
(B) ଅଚ୍ୟୁତି ମହାନ୍ତି

Question 83.
ଶେଷରେ ସତୀ କ’ଣ କରିଛି?
(A) ଆତ୍ମହତ୍ଯା
(B) ନିଆଁ ଲଗେଇଦେଇଛି
(C) ଘରଛାଡ଼ି ପଳେଇଛି
(D) ହତ୍ୟା କରିଛି
Answer:
(C) ଘରଛାଡ଼ି ପଳେଇଛି

Question 84.
ସତୀ କାହା ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ ଚିଠି ଲେଖୁଛି?
(A) ସତୀର ସ୍ଵାମୀ
(B) ବଉଳ
(C) ଗାଁ ବାଲା
(D) ନାଥନନା
Answer:
(D) ନାଥନନା

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Question 85.
କିଏ ଚୋର ପରି ଶିକୁଳି ଫିଟାଇ ବାହାରି ଯାଇଥିଲେ?
(A) ସତୀ
(B) ନାଥନନା
(C) ଅଚ୍ୟୁତି ମହାନ୍ତି
(D) ସଇତା
Answer:
(A) ସତୀ

Question 86.
ପିଲାଦିନେ ସତୀ ସାଙ୍ଗରେ କିଏ ଅଶୋକା ବସିଥିଲା?
(A) ନିଶି
(B) ପ୍ରଭାକରଙ୍କ ସ୍ତ୍ରୀ
(C) ହୀରା
(D) ପ୍ରଭାକରଙ୍କ ଭଉଣୀ
Answer:
(B) ପ୍ରଭାକରଙ୍କ ସ୍ତ୍ରୀ

Question 87.
ନାଥନନା ଗାଁବାଲାକୁ କାହାର ଧମକ ଦେଇଛନ୍ତି?
(A) ମାଡ଼ର
(B) ଗୁଣ୍ଡାର
(C) ଛୁରୀର
(D) ଥାନାର
Answer:
(D) ଥାନାର

Question 88.
କାହା କଥା ଭାବି ସତୀକୁ ବିଚିତ୍ର ଲାଗେ?
(A) ନାଥନନା କଥା
(B) ଅଚ୍ୟୁତି ଅବଧାନ କଥା
(C) ପ୍ରଭାକରନନା କଥା
(D) ସଇତା କଥା
Answer:
(A) ନାଥନନା କଥା

(ଖ) ୧ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ଏକ ବାକ୍ୟରେ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ ।

Question 1.
‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସଟି କାହାଦ୍ଵାରା ରଚିତ?
Answer:
‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସଟି ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସଙ୍କଦ୍ୱାରା ରଚିତ ।

Question 2.
ତାଙ୍କର ଅନ୍ୟ ଦୁଇଟି ରଚନାର ନାମ ଲେଖ ।
Answer:
‘ଆଲାଉଦ୍ଦିନ୍’, ‘କାଉଁରୀ’ ଦେଶର ଗୋରୀ’ ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସଙ୍କ ଦ୍ବାରା ରଚିତ ଅନ୍ୟ ଦୁଇଟି ରଚନା ।

Question 3.
ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସଙ୍କ ଅପ୍ରକାଶିତ ଉପନ୍ୟାସର ନାମ କ’ଣ?
Answer:
ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସଙ୍କ ଅପ୍ରକାଶିତ ଉପନ୍ୟାସର ନାମ ‘ଅତୁଠ ବଣିକ’।

Question 4.
୪। ଔପନ୍ୟାସିକ ବ୍ୟତୀତ ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସଙ୍କ ଅନ୍ୟ ପରିଚୟ କ’ଣ?
Answer:
ଔପନ୍ୟାସିକ ବ୍ୟତୀତ ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ ଜଣେ ଚିତ୍ରକର ଓ ଶିଶୁ ସାହିତ୍ୟିକ ଭାବେ ପରିଚିତ ।

Question 5.
ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସଙ୍କ ପିତାଙ୍କ ନାମ କ’ଣ?
Answer:
ଔପନ୍ୟାସିକ ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସଙ୍କ ପିତାଙ୍କ ନାମ ରାୟବାହାଦୁର ରାଜକିଶୋର ଦାସ ।

Question 6.
ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସଙ୍କୁ କିଏ ପୋଷ୍ୟପୁତ୍ର ଭାବରେ ଗ୍ରହଣ କରିଥିଲେ?
Answer:
ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସଙ୍କୁ ମଧୁସୂଦନ ଦାସଙ୍କ ସାନଭାଇ ତଥା ‘ଭୀମାଭୂୟାଁ’ ଉପନ୍ୟାସର ରଚୟିତା ଗୋପାଳବଲ୍ଲଭ ଦାସ ପୋଷ୍ୟପୁତ୍ର ଭାବରେ ଗ୍ରହଣ କରିଥିଲେ ।

Question 7.
ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ କେଉଁ ପତ୍ରିକାର ସମ୍ପାଦକ ଥିଲେ?
Answer:
ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ ‘ବାରୁଣୀ’ ଶୀର୍ଷକ ଏକ ପତ୍ରିକାର ସମ୍ପାଦକ ଥିଲେ ।

Question 8.
‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସ କେବେ ରଚିତ ହୋଇଥିଲା?
Answer:
‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସ ୧୯୨୮ ମସିହାରେ ରଚିତ ହୋଇଥିଲା ।

Question 9.
‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସରେ କାହା ଜୀବନରେ ଦୁଃଖ କାହାଣୀ ବର୍ଣିତ?
Answer:
‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସରେ ନାୟିକା ସତ୍ୟଭାମା ଓରଫ୍ ସତୀ ଜୀବନର ଦୁଃଖ କାହାଣୀ ବର୍ଣ୍ଣିତ ।

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Question 10.
‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସରେ କିଏ ନିଜ ଜୀବନର କଥା ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛି ?
Answer:
‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସରେ ସତୀ ନିଜ ଜୀବନର କଥା ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛି ।

Question 11.
‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଏକ କେଉଁ ପ୍ରକାର ଉପନ୍ୟାସ?
Answer:
‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଏକ ସାମାଜିକ ଉପନ୍ୟାସ ।

Question 12.
‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସର କଥାବସ୍ତୁ କାହା ଉପରେ ପର୍ଯ୍ୟବସିତ?
Answer:
‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସର କଥାବସ୍ତୁ ସତୀ ଜୀବନ ଦୁଃଖଦ କାହାଣୀ ଉପରେ ପର୍ଯ୍ୟବସିତ ।

Question 13.
‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସରେ ଚରିତ୍ର ଦୃଷ୍ଟିରୁ ମୁଖ୍ୟ କିଏ?
Answer:
‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସରେ ଚରିତ୍ର ଦୃଷ୍ଟିରୁ ସତ୍ୟଭାମା ତଥା ନାୟିକା ସତୀ ମୁଖ୍ୟ ।

Question 14.
ସତୀକୁ କେଉଁଆଡ଼େ ବୁଲିବାକୁ ତା’ବୋଉ ମନା କରିଛନ୍ତି?
Answer:
ସତୀକୁ ଦାଣ୍ଡଆଡ଼େ ତଥା ବାହାର ଆଡ଼େ ବୁଲିବାକୁ ତା’ ବୋଉ ମନା କରିଛନ୍ତି ।

Question 15.
ବାପାଙ୍କ ଡାକରେ ସତୀ କ’ଣ ହୋଇ ଠିଆହେଲା?
Answer:
ବାପାଙ୍କ ଡାକରେ ସତୀ ଚମକିପଡ଼ି କାଠପିତୁଳି ପରି ଠିଆହେଲା ।

Question 16.
ବାପା କାହା ପାଇଁ ବରଘର ଖୋଜା ଲଗାଇଥା’ନ୍ତି?
Answer:
ବାପା ସତୀପାଇଁ ବରଘର ଖୋଜା ଲଗାଇଥା’ନ୍ତି ।

Question 17.
କବାଟ କୋଣରୁ ଗୋଡ଼ ଚିପିଚିପି ସତୀ କୁଆଡ଼େ ଚାଲିଗଲା?
Answer:
କବାଟ କୋଣରୁ ଗୋଡ଼ ଚିପିଚିପି ସତୀ ତଳଘର ଆଡ଼େ ଚାଲିଗଲା ।

Question 18.
ସତୀର ବାପା ତା’ ବୋଉଙ୍କୁ କାହିଁକି ବିଗିଡ଼ିଲେ?
Answer:
ସତୀର ବାପା ତା’ ବୋଉଙ୍କୁ ସତୀର ବାହାରେ ବୁଲାବୁଲିକୁ ନେଇ ବିଗିଡ଼ିଲେ ।

Question 19.
କୋଉଁଠି ସକାଳୁ ସଞ୍ଜଯାଏ ମହୁମାଛିଙ୍କ ଭିଡ଼?
Answer:
ସତୀଘର ବାରିପଟ ଫୁଲଫୁଟା ବାତାପି ଗଛରେ ସକାଳୁ ସଞ୍ଜଯାଏ ମହୁମାଛିଙ୍କ ଭିଡ଼ ।

Question 20.
ହୀରା କେଉଁଠୁ ଫେରିନାହିଁ?
Answer:
ଗୋବଦ୍ଧନ କାନଗୋଇର ଝିଅ ହୀରା ତା’ ଶାଶୂଘରୁ ଫେରିନାହିଁ ।

Question 21.
କେଉଁ ଘରେ ଝିଅକୁ ପାଞ୍ଚବର୍ଷ ବୟସ ହେଲାବେଳେ ବାହାଘର କରି ଦିଆଯାଉଥିଲା?
Answer:
ହିନ୍ଦୁଘରେ ବିଶେଷ କରି ବ୍ରାହ୍ମଣଘରେ ଝିଅକୁ ପାଞ୍ଚବର୍ଷ ବୟସ ହେଲାବେଳେ ବାହାଘର କରି ଦିଆଯାଉଥିଲା ।

Question 22.
ଶରତ ଋତୁରେ କେଉଁଠି କାଶତଣ୍ଡୀଫୁଲ ଶୋଭାପାଏ?
Answer:
ଶରତ ଋତୁରେ ନଈପଠାରେ କାଶତଣ୍ଡୀଫୁଲ ଶୋଭାପାଏ ।

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Question 23.
ଗାଁର ଉତ୍ତରପଟେ କ’ଣ ଥିଲା?
Answer:
ଗାଁର ଉତ୍ତରପଟେ ଏକ ଯୋର ଥିଲା ।

Question 24.
କଇଁଫୁଲ ତୋଳିବାକୁ କିଏ ପାଣିରେ ପଶିଲା?
Answer:
କଇଁଫୁଲ ତୋଳିବାକୁ ସତୀ ପାଣିରେ ପଶିଲା?

Question 25.
କଟକକୁ କିଏ ଛଅମାସ ହେବ ପଢ଼ିବାକୁ ଯାଇଥିଲା?
Answer:
କଟକକୁ ନାଥନନା ଛଅମାସ ହେବ ପଢ଼ିବାକୁ ଯାଇଥିଲା ।

Question 26.
ଦଶହରା ଛୁଟିରେ କିଏ ଗାଁକୁ ଫେରିଥିଲା?
Answer:
ଦଶହରା ଛୁଟିରେ ନାଥନନା ଗାଁକୁ ଫେରିଥିଲା ।

Question 27.
ରାଗରେ କାହା ମୁହଁ ଲାଲ୍ ପଡ଼ିଯାଇଥିଲା?
Answer:
ରାଗରେ ସତୀର ମୁହଁ ଲାଲ୍ ପଡ଼ିଯାଇଥିଲା ।

Question 28.
କିଏ ସତୀଘରକୁ ଆସିଲେ ପ୍ରଥମେ ସତୀଙ୍କୁ ଖୋଜନ୍ତି?
Answer:
ନାଥନନା ସତୀଘରକୁ ଆସିଲେ ପ୍ରଥମେ ସତୀକୁ ଖୋଜନ୍ତି ।

Question 29.
କାହାକୁ ଦେଖ‌ିଲେ ସତୀ ଲୁଚି ଯାଉଥିଲା?
Answer:
ନାଥନନାଙ୍କୁ ଦେଖ‌ିଲେ ସତୀ ଲୁଚି ଯାଉଥିଲା ।

Question 30.
କାହା ରାଗ ଦଣ୍ଡକେ ଉଭେଇ ଯାଏ?
Answer:
ସତୀ ବୋଉଙ୍କ ଭାଗ ଦଣ୍ଡକେ ଉଭେଇ ଯାଏ ।

Question 31.
ବର୍ଷା ଆସିଲେ ସତୀ ତା’ ବଉଳ ସହ କ’ଣ କରେ?
Answer:
ବର୍ଷା ଆସିଲେ ସତୀ ତା’ ବଉଳ ସହ କାଗଜରେ ଡଙ୍ଗା କରି ଭସାଏ ।

Question 32.
ନାଥନନାଙ୍କ କଷ୍ଟଦେଖି କାହାକୁ ଅଡ଼ୁଆ ଲାଗେ ?
Answer:
ନାଥନନାଙ୍କ କଷ୍ଟଦେଖି ସତୀକୁ ଅଡ଼ୁଆ ଲାଗେ ।

Question 33.
କିଏ ଦାଣ୍ଡଘରେ ପୋଥ୍ ଲେଖନ୍ତି
Answer:
ସତୀର ପିତା ଅନାଦି ମିଶ୍ର ଦାଣ୍ଡଘରେ ପୋଥ୍ ଲେଖନ୍ତି ।

Question 34.
କାହା ଅଭିମାନ ଚିରକାଳ ରହିଥିଲେ ଭଲ ହୋଇଥା’ନ୍ତା?
Answer:
ନାଥନନାଙ୍କ ଅଭିମାନ ଚିରକାଳ ରହିଥିଲେ ଭଲ ହୋଇଥା’ନ୍ତା ।

Question 35.
କିଏ ରାଣୀ ହୋଇ ରହିବ ବୋଲି ବଉଳ କହିଛି?
Answer:
ସତୀ ରାଣୀ ହୋଇ ରହିବ ବୋଲି ବଉଳ କହିଛି ।

Question 36.
କ’ଣ ଶୁଣି ସତୀର ଛାତି କୁଣ୍ଢେମୋଟ ହୋଇଗଲା?
Answer:
ସତୀର ବରଘର ଧନୀ ଏଇକଥା ଶୁଣି ସତୀର ଛାତି କୁଣ୍ଢେମୋଟ ହୋଇଗଲା ।

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Question 37.
ଇନ୍ଦ୍ର ଚନ୍ଦ୍ର ହେଲେ ବି କାହାକୁ ଟଳେଇ ପାରିବେ ନାହିଁ ?
Answer:
ଇନ୍ଦ୍ର ଚନ୍ଦ୍ର ହେଲେ ବି ସତୀର ବାପାଙ୍କୁ ଟଳେଇ ପାରିବେ ନାହିଁ ।

Question 38.
କେଉଁଠି ସତୀ ଘିଅ ବଳିତା ଜାଳେ?
Answer:
ସତୀ ଚଉରା ପାଖରେ ଘିଅ ବଳିତା ଜାଳେ ।

Question 39.
ନାଥନନା କ’ଣ ପ୍ରତିଜ୍ଞା କଲେ ?
Answer:
ନାଥନନା ଆଉ ସତୀ ଘରକୁ ଆସିବେ ନାହିଁ ବୋଲି ପ୍ରତିଜ୍ଞା କଲେ ।

Question 40.
କ’ଣ ଜାଣିବାକୁ ସତୀର କୌତୂହଳ ହୋଇଛି?
Answer:
ସତୀର ବର କିଏ ବୋଲି ଜାଣିବାକୁ ସତୀର କୌତୂହଳ ହୋଇଛି ।

Question 41.
କିଏ ସତୀକୁ ତା’ର ବରକୁ ଚିହ୍ନାଇ ଦେଇଛି?
Answer:
ବଉଳ ସତୀକୁ ତା’ର ବର କିଏ ବୋଲି ଚିହ୍ନାଇ ଦେଇଛି ।

Question 42.
ସତୀ ବୋଉ ସବୁଦିନେ କାହାକୁ ଜପୁଥିଲା?
Answer:
ସତୀ ବୋଉ ସବୁଦିନେ ଠାକୁରଙ୍କୁ ଜପୁଥିଲା ।

Question 43.
ଅନ୍ଧାର ଭିତରେ କାହା ଗୋରା ଦେହ ନିଆଁ ପରି ଜଳୁଥୁଲା?
Answer:
ଅନ୍ଧାର ଭିତରେ ନାଥନନାଙ୍କ ଗୋରା ଦେହ ନିଆଁ ପରି ଜଳୁଥିଲା ।

Question 44.
ପିଲାଦିନୁ କାହା ସ୍ଵର ଶୁଣି ଶୁଣି ସତୀର ଅଭ୍ୟାସ ହୋଇଯାଇଛି?
Answer:
ପିଲାଦିନୁ ନାଥନନାଙ୍କ ସ୍ବର ଶୁଣି ଶୁଣି ସତୀର ଅଭ୍ୟାସ ହୋଇଯାଇଛି ।

Question 45.
ସତୀ କାହା କଥାରେ ନାଥନନାଙ୍କ ପାଇଁ ପାନ ଭାଙ୍ଗିଛି?
Answer:
ସତୀ ତା’ବୋଉ କଥାରେ ନାଥନନାଙ୍କ ପାଇଁ ପାନ ଭାଙ୍ଗିଛି ।

Question 46.
ଦାଣ୍ଡରେ କାହା ପାଟି ଶୁଣି ସତୀ ବୋଉ ତରତର ହୋଇ ଉଠି ଚାଲିଗଲା?
Answer:
ଦାଣ୍ଡରେ ସତୀ ବାପାଙ୍କ ପାଟିଶୁଣି ସତୀ ବୋଉ ତରତର ହୋଇ ଉଠି ଚାଲିଗଲା ।

Question 47.
କାହା ମୁହଁରେ ବସନ୍ତର ଦାଗ ଥିଲା?
Answer:
ସତୀ ବରର ମୁହଁରେ ବସନ୍ତରୋଗର ଦାଗ ଥିଲା ।

Question 48.
ନିଶି କିଏ ଓ ତା’ର ନନାର ନାମ କ’ଣ?
Answer:
ନିଶି ହେଉଛି ସତୀର ବଉଳ ଓ ତା’ର ନନାଙ୍କ ନାମ ଲୋକନାଥ ତ୍ରିପାଠୀ ଓରଫ୍ ନାଥନନା ।

Question 49.
ଚାନ୍ଦର ଭାରିଜା ବୋଲି ସତୀ କାହାକୁ କହିଛି ।
Answer:
ଚାନ୍ଦର ଭାରିଜା ଜହ୍ନିଫୁଲ ବୋଲି ସତୀ କହିଛି ।

Question 50.
ସତୀ କାହାକୁ ବଡ଼ମା’ ବୋଲି ସମ୍ବୋଧନ କରିଛି?
Answer:
ସତୀ ବଉଳର ବୋଉକୁ ବଡ଼ମା’ ବୋଲି ସମ୍ବୋଧନ କରିଛି ।

Question 51.
କାହାକୁ ଧାଈମା’ ବୋଲି ନଟ କହିଛି?
Answer:
ସଉରଭୀ ଦାସୀକୁ ଧାଈମା’ ବୋଲି ନଟ କହିଛି ।

Question 52.
ସତୀର ସ୍ଵାମୀ ଦେଖିବାକୁ କିପରି ଥିଲା?
Answer:
ସତୀର ସ୍ୱାମୀ ଦରବୁଢ଼ା, ତ୍ରିପଣ୍ଡ କଳା ଓ ଖୁବ୍ ମୋଟା ଥିଲା ।

Question 53.
ନଟ କିଏ?
Answer:
ନଟ ହେଉଛି ସତୀ ସ୍ଵାମୀଙ୍କର ପ୍ରଥମ ସ୍ତ୍ରୀର ପୁଅ ।

Question 54.
ସତୀର ଶାଶୂଘରେ ସକାଳଓଳି କେମିତି କଟୁଥିଲା?
Answer:
ସତୀର ଶାଶୁଘରେ ସକାଳ ଓଳି ତା’ର ବିଧବା ଶାଶୁର ସେବାରେ କଟୁଥିଲା ।

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Question 55.
ସଉରଭୀର ଆଚରଣ କିପରି ବୋଲି ନଟ କହିଥିଲା?
Answer:
ସଉରଭୀ ଦାସୀ ଭାରି କଳିହୁରୀ ବୋଲି ନଟ କହିଥିଲା ।

Question 56.
ସଇତା କିଏ?
Answer:
ସଇତା ହେଉଛି ସତୀ ବାପଘରର ପୁରୁଣା ଚାକର ।

Question 57.
ନାଥୁଆ ତିଆଡ଼ି କାହିଁକି କଟକ ଯାଇଥିଲା ବୋଲି ସଇତା କହିଛି?
Answer:
ନାଥୁଆ ତିଆଡ଼ି ହଇଜାର ଚିକିତ୍ସା ପାଇଁ ଡାକ୍ତର ଆଣିବାକୁ କଟକ ଯାଇଥିଲା ବୋଲି ସଇତା କହିଛି ।

Question 58.
ସତୀ ଶାଶୂଘରେ ବୁଢ଼ୀ ପୋଇଲୀ କିଏ?
Answer:
ସତୀ ଶାଶୂଘରେ ବୁଢ଼ୀ ପୋଇଲି ହେଉଛି ଚମ୍ପା ମା’ ।

Question 59.
ସତୀର ଶାଶୂ ସତୀ ହାତରେ କ’ଣ ଧରେଇଛି?
Answer:
ସତୀର ଶାଶୂ ସତୀ ହାତରେ ଭଣ୍ଡାର ଘରର ଚାବି ଧରେଇଛି ।

Question 60.
କପିଳେଶ୍ଵର ମନ୍ଦିରରେ କ’ଣ ହେବ ବୋଲି ସତୀ ଜାଣିଲା?
Answer:
କପିଳେଶ୍ଵର ମନ୍ଦିରରେ ସତୀର ସଉତୁଣୀର ପୁଅ ନଟର ଜାଆଁଳବାଳ ପଡ଼ିବ ବୋଲି ସତୀ ଜାଣିଲା ।

Question 61.
ସତୀର ଶାଶୁ ଅଭିମାନରେ କେଉଁଠିକି ପଳେଇବେ ବୋଲି ବାହାରିଥିଲେ?
Answer:
ସତୀର ଶାଶୁ ପୁଅ ଉପରେ ଅଭିମାନ କରି ପୁରୀ ପଳେଇବେ ବୋଲି ବାହାରିଥିଲେ ।

Question 62.
କିଏ କିଏ ନଟର ଜାଆଁଳବାଳ ପକେଇବାକୁ କପିଳେଶ୍ଵର ମନ୍ଦିରକୁ ଯାଇଥିଲେ?
Answer:
ସତୀ, ସତୀର ସ୍ୱାମୀ, ଚମ୍ପା ମା’ ଓ ସୌରଭୀ ଦାସୀ ନଟର ଜାଆଁଳବାଳ ପକେଇବାକୁ କପିଳେଶ୍ଵର ମନ୍ଦିର ଯାଇଥିଲେ ।

Question 63.
କେଉଁ ଦିନ ନଟର ଜାଆଁଳବାଳ ପଡ଼ିଥିଲା?
Answer:
ଶିବଙ୍କ ପୁଷ୍ୟାଭିଷେକ ଦିନ କପିଳେଶ୍ଵର ମନ୍ଦିରରେ ନଟର ଜାଆଁଳବାଳ ପଡ଼ିଥିଲା ।

Question 64.
ଡଙ୍ଗାରେ ନଟ ବଡ଼ ପାଟିରେ କ’ଣ କହି କାନ୍ଦି ଉଠିଲା?
Answer:
ଡଙ୍ଗାରେ ନଟ ବଡ଼ ପାଟିରେ ନୂଆମା’ କାହିଁଲେ ବୋଲି କହି କାନ୍ଦି ଉଠିଲା ।

Question 65.
ଗଛ ଡାଳେ ଡାଳେ କ’ଣ ବଜାଇ ପାଗଳା ପବନ ଭିତରେ ଝଡ଼ ଗର୍ଜିଗଲା?
Answer:
ଗଛ ଡାଳେ ଡାଳେ ଯମରାଇଜର ରାମତାଳି ବଜାଇ ପାଗଳା ପବନ ଭିତରେ ଝଡ଼ ଗର୍ଜିଗଲା ।

Question 66.
ପବନରେ ଦେହମୁଣ୍ଡର ଲୁଗା କେମିତି ଉଡୁଥାଏ?
Answer:
ପବନରେ ଦେହମୁଣ୍ଡର ଲୁଗା ପତାକା ପରି ଉଡୁଥାଏ ।

Question 67.
ଦେଉଳବେଢ଼ାକୁ ଲାଗି କ’ଣ ଥିଲା?
Answer:
ଦେଉଳବେଢ଼ାକୁ ଲାଗି ଗୋଟିଏ ଗୁଡ଼ିଆ ଦୋକାନ ଥିଲା ।

Question 68.
ସଇତା ହାତରେ ସତୀ କାହା ପାଖକୁ ଖବର ଦେଇଥିଲା?
Answer:
ସଇତା ହାତରେ ସତୀ ନାଥନନା ପାଖକୁ ଖବର ଦେଇଥିଲା ।

Question 69.
ଭଡ଼ାଘର ଭିତରେ ବସିରହି ସତୀ କ’ଣ ଭାବିବାକୁ ଲାଗିଲା?
Answer:
କଟକର ଭଡ଼ାଘର ଭିତରେ ବସିରହି ସତୀ ଦୁନିଆ ବ୍ରହ୍ମାଣ୍ଡ କଥା ଭାବିବାକୁ ଲାଗିଲା ।

Question 70.
ସତୀର ବାହାଘର ପ୍ରଥମେ କାହା ସାଙ୍ଗରେ ଠିକ୍ ହୋଇଥିଲା?
Answer:
ସତୀର ବାହାଘର ପ୍ରଥମେ ନାଥନନାଙ୍କ ସାଙ୍ଗରେ ଠିକ୍ ହୋଇଥିଲା ।

Question 71.
ସତୀର ବାପା ମା’ଙ୍କର କ’ଣ ହେଲା ?
Answer:
ସତୀର ବାପା ମା’ ହଇଜାରେ ମରିଗଲେ ।

Question 72.
ସାଧବୀ କିଏ?
Answer:
କଟକ ଭଡ଼ାଘରେ ନାଥନନାଙ୍କ ପାଖରେ କାମ କରୁଥିବା ଚାକରାଣୀ ଥିଲା ସାଧବୀ ।

Question 73.
ନାଥନନାଙ୍କ ପୂର୍ଣ୍ଣ ନାମ କ’ଣ ଥିଲା?
Answer:
ନାଥନନାଙ୍କ ପୂର୍ଣ୍ଣ ନାମ ଥିଲା ଲୋକନାଥ ତ୍ରିପାଠୀ ।

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Question 74.
ଅଚୁତି ମହାନ୍ତି କିଏ?
Answer:
ଅଚ୍ୟୁତି ମହାନ୍ତି ସତୀ ଗାଁର ଜଣେ ଖଳ ଚରିତ୍ର, ଯିଏ ଚାଟଶାଳୀର ମାଷ୍ଟର ଥିଲା ।

Question 75.
ସଇତା କାହାକୁ ବୁଢ଼ୀ ବୋଲି ଡାକୁଥୁଲା?
Answer:
ସଇତା ସତୀକୁ ବୁଢ଼ୀ ବୋଲି ଡାକୁଥୁଲା ।

Question 76.
ସତୀର ବାପା ମା’ ମଲାପରେ ସଇତା କାହାଘରେ କାମ କରୁଥିଲା?
Answer:
ସତୀର ବାପା ମା’ ମଲାପରେ ସଇତା ଅଚୁତି ମହାନ୍ତି ଘରେ କାମ କରୁଥିଲା ।

Question 77.
କିଏ ସତୀର ପୈତୃକ ସମ୍ପତ୍ତି ନେବାକୁ ଚକ୍ରାନ୍ତ ରଚିଛି?
Answer:
ସତୀଘର ଗାଁ ଚାଟଶାଳୀର ଶିକ୍ଷକ ଟାଉଟର ଅଚ୍ୟୁତି ମହାନ୍ତି ସତୀର ପୈତୃକ ସମ୍ପଭି ନେବାକୁ ଚକ୍ରାନ୍ତ ରଚିଛି ।

Question 78.
ଅନାଦି ମିଶ୍ର କିଏ?
Answer:
ଆନାଦି ମିଶ୍ର ହେଉଛନ୍ତି ସତୀର ବାପା ।

Question 79.
ଜ୍ଞାନ ହେଲା ଦିନୁ ସତୀ କାହା ପାଖରେ ନିଜ ମନକୁ ଅର୍ପଣ କରିଥିଲା?
Answer:
ଜ୍ଞାନ ହେଲା ଦିନଠୁ ସତୀ ନାଥନନାଙ୍କ ପାଖରେ ନିଜ ମନକୁ ଅର୍ପଣ କରିଥିଲା ।

Question 80.
କିଏ ସତୀକୁ କଥା ନ କହି ପିଣ୍ଢାରେ ଗୁମ୍ମାରି ବସିଥିଲା?
Answer:
ସଇତା ସତୀକୁ କଥା ନକହି ପିଣ୍ଢାରେ ଗୁମ୍ମାରି ବସିଥିଲା ।

Question 81.
ବାଡ଼ିପଟ ତୋଟା ଗହଳିରେ କିଏ ବୋବାଇଲା?
Answer:
ବାଡ଼ିପଟ ତୋଟା ଗହଳିରେ ବିଲୁଆ ବୋବାଇଲା ।

Question 82.
ଗାଁ ପୁରୋହିତଙ୍କ ପୁଅ ନାଁ କ’ଣ?
Answer:
ଗାଁ ପୁରୋହିତଙ୍କ ପୁଅ ନାଁ ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ର ।

Question 83.
ସତୀ ସଇତାକୁ ନେଇ କାହା ଘରକୁ ଯାଇଛି?
Answer:
ସତୀ ସଇତାକୁ ନେଇ ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ରଙ୍କ ଘରକୁ ଯାଇଛି ।

Question 84.
ସତୀ ପିଲାଦିନେ କାହା ସହ ଅଶୋକା ବସିଥିଲା?
Answer:
ସତୀ ପିଲାଦିନେ ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ରଙ୍କ ସ୍ତ୍ରୀ ସହ ଅଶୋକା ବସିଥିଲା ।

Question 85.
ଜୀବନରେ ସତୀ କାହାକୁ କାମନା କରିଛି; ମାତ୍ର ଅଧିକାର କରିନାହିଁ ।
Answer:
ଜୀବନରେ ସତୀ ନାଥନନାଙ୍କୁ କାମନା କରିଛି; ମାତ୍ର ଅଧିକାର କରିନାହିଁ ।

Question 86.
ସତୀ ଗଲାବେଳେ କାହା ମୁହଁ ଦେଖପାରିଲା ନାହିଁ?
Answer:
ସତୀ ଗଲାବେଳେ ନାଥନନାଙ୍କ ମୁହଁ ଦେଖୁପାରିଲା ନାହିଁ ।

Question 87.
ଗଲାବେଳକୁ ସତୀର ବଡ଼ ଇଚ୍ଛା କ’ଣ ଥିଲା?
Answer:
ଗଲାବେଳକୁ ସତୀର ବଡ଼ ଇଚ୍ଛା ଥିଲା ନାଥନନାଙ୍କୁ କହିକି ଯିବାପାଇଁ ।

Question 88.
କାହା ଭଲ ପାଇଁ ସତୀ ବିଦାୟ ନେଇଛି?
Answer:
ନାଥନନାଙ୍କ ଭଲ ପାଇଁ ସତୀ ବିଦାୟ ନେଇଛି ।

Question 89.
ଉପନ୍ୟାସର ପରିଣତି ବେଳକୁ ସତୀ କାହା ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ ଚିଠି ଲେଖୁଛି?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସର ପରିଣତି ବେଳକୁ ସତୀ ନାଥନନାଙ୍କ ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ ଚିଠି ଲେଖୁଛି ।

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 3 ମଲାଜହ୍ନ Question Answer

Question 90.
ସତୀ କେଉଁ କଥା ପଚାରିଲେ ନାଥନନା ବାଆଁରେଇ ଦିଅନ୍ତି?
Answer:
ସତୀ ଗାଁ କଥା ପଚାରିଲେ ନାଥନନା ସବୁଶୁଣି ବାଆଁରେଇ ଦିଅନ୍ତି ।

(ଗ) ୨ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ଦୁଇଟି ବାକ୍ୟରେ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ । ଲେଖା ଓ ଲେଖକଙ୍କ ପାଇଁ ୧ ନମ୍ବର ଓ ଉତ୍ତର ପାଇଁ ୧ ନମ୍ବର ।

Question 1.
‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସ କାହାର ରଚନା ଓ ଏହା କେବେ ଚରନା କରାଯାଇଥିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସ ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସଙ୍କ ରଚନା ଓ ଏହା ୧୯୨୮ ମସିହାରେ ରଚନା କରାଯାଇଥିଲା ।

Question 2.
ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ କେବେ ଓ କେଉଁଠାରେ ଜନ୍ମଗ୍ରହଣ କରିଥିଲେ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ ଫେବୃୟାରୀ ୨୧ ତାରିଖ ୧୯୦୧ ମସିହାରେ କୁମୁଡ଼ା ଜୟପୁରରେ ଜନ୍ମଗ୍ରହଣ କରିଥିଲେ ।

Question 3.
କେଉଁ କଥା ନାୟିକା ପାଇଁ କାଳ ହେଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ପିଲାଟି ଦିନରୁ ନାୟିକାର ଦୁଷ୍ଟ ଆଚରଣ ପ୍ରତି ବାପା ମା’ ଏକଦମ୍ ଆଖୁ ବୁଜି ଦେଇଥବାଟା ହିଁ ପରବର୍ତୀ କାଳରେ ନାୟିକା ପାଇଁ କାଳ ହେଲା ।

Question 4.
ସତ୍ୟଭାମା କେଉଁ କଥାଟିକୁ ହାଡ଼େ ହାଡ଼େ ଅନୁଭବ କରିଛି?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ଉପନ୍ୟାସର ନାୟିକା ସତ୍ୟଭାମା ରାଗ ଅଭିମାନରେ ଜୀବନରେ କରିଥିବା ଭୁଲ କଥାଟିକୁ ହାଡ଼େ ହାଡ଼େ ଅନୁଭବ କରିଛି ।

Question 5.
ବର୍ଷା ପବନ ଦେଖୁ ସତୀର କ’ଣ ମନେହେଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ଉପନ୍ୟାସର ମୁଖ୍ୟ ଚରିତ୍ର ସତୀ ବର୍ଷା ପବନ ଦେଖ୍, ଟିକେ ସାଇଆଡ଼େ ବୁଲି ଯିବାକୁ ମନେକରିଛି । ବୋଉ ଖିଆପିଆ ସାରି ଶୋଇବା ପାଇଁ ଯିବା ଯୋଗୁ ସେ ଏପରି ଚିନ୍ତା କରିଛି ।

Question 6.
ଦାଣ୍ଡଘରେ କିଏ କ’ଣ କରୁଥିଲେ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ଦାଣ୍ଡଘରେ ସତୀର ବାପା ଅନାଦି ମିଶ୍ର ବସି ପୋଥ୍ ଲେଖୁବା କାମ କରୁଥିଲେ ।

Question 7.
କବାଟ କୋଣରୁ ଗୋଡ଼ ଚିପିଚିପି କିଏ କୁଆଡ଼େ ଚାଲିଗଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ବାହାରକୁ ବାହାରିଲା ବେଳେ ତା’ ବାପା ଦେଖୁ ଦେଇଛନ୍ତି । ଫଳରେ ସତୀର ବୋଉଙ୍କୁ ବିରକ୍ତ ହୋଇଛନ୍ତି । ଏତିକିବେଳେ ସତୀ କବାଟ କୋଣରୁ ଗୋଡ଼ ଚିପିଚିପି ତଳଘରକୁ ଚାଲିଯାଇଛି ।

Question 8.
‘ଭାରି କୌତୁକ ସତେ ଏକା’ କାହା ପାଇଁ କେଉଁ କଥା କୌତୁକ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ପାଇଁ ବାହାଘର କଥା ଭାରି କୌତୁକ ସତେ ଏକା ! ଓଢ଼ଣା ପକାଇ କନିଆଁ ହବା । ସମସ୍ତଙ୍କ ଆଗରେ ନଇଁ ନଇଁ ଚାଲିବା କଥା । ଏଇସବୁ କଥା କିଶୋରୀ ସତୀ ମନରେ କୌତୂହଳ ସୃଷ୍ଟି କରିଛି ।

Question 9.
ସତୀ କେଉଁଠି କ’ଣ ପାଇଁ ପଶିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ତାଙ୍କ ଗାଁର ଉତ୍ତରପଟେ ତଥା ତାଙ୍କ ବାରିପଟରେ ବହିଯାଉଥବା ଯୋରରେ କଇଁଫୁଲ ତୋଳି ଆଣିବା ପାଇଁ ପଶିଲା । ଅଶିଣ ମାସର ଖରାବେଳେ କଇଁଫୁଲ ଲୋଭରେ ସେ ଅଣ୍ଟାଏ ପାଣିରେ ପଶିଥିଲା ।

Question 10.
ସତୀ କେତେବେଳେ କାହିଁକି ଚମକି ପଡ଼ିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ କଇଁଫୁଲ ଲୋଭରେ ଖରାବେଳଟାରେ ବାରିପଟ ଯୋରରେ ପଶିଥିଲା । ଏତିକିବେଳେ ହଠାତ୍ ବନ୍ଧ ଉପରେ ନାଥନନା ପାଟି କରିଥିଲା । ନାଥନନାଙ୍କ ପାଟି ଶୁଣି ସତୀ ଚମକି ପଡ଼ିଥିଲା ।

Question 11.
କାହାର କୋଉ ପ୍ରସ୍ତାବ ସତୀକୁ ଅଡ଼ୁଆ ଲାଗିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋଶ ଦାସ
ସତୀ ପାଣିରେ ପଶିଥ୍‌ବାର ଦେଖୁ ନାଥନନା ବିରକ୍ତ ହୋଇଥିଲା । ତଥାପି ସତୀ ସେମିତି ପାଣି ଭିତରେ ଠିଆ ହୋଇରହିଥିଲା । ନାଥନନାଙ୍କୁ କିଛି ବି କହି ନଥିଲା । ତେଣୁ ନାଥନନା ପ୍ରସ୍ତାବ ଦେଇ କହିଥିଲେ – ‘‘ତୁ ଆସିବୁ ନା, ଫେର୍ ମୁଁ ଯିବି ତୋ ପାଖକୁ ?” ନାଥନନାଙ୍କ ଏଇ ପ୍ରସ୍ତାବ ସତୀକୁ ଅଡ଼ୁଆ ଲାଗିଲା ।

Question 12.
ନାଥନନା କେତେ ମାସ ପରେ କ’ଣ ପାଇଁ ଗାଁକୁ ଆସିଥିଲେ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ନାଥନନା କଟକରେ ରହି ପାଠ ପଢୁଥିଲେ । ପ୍ରାୟ ଛଅମାସ ପରେ ଦଶହରା ଛୁଟି କଟେଇବା ପାଇଁ ସେ ଗାଁକୁ ଆସିଥିଲେ ।

Question 13.
‘ସ୍ତ୍ରୀ ଲୋକଙ୍କର ପୁଣି ଆଖରେ ଏତେ ତେଜ !’ ଏକଥା କାହାକୁ ଲକ୍ଷ୍ୟକରି ସତୀ ଭାବିଥିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ କଇଁଫୁଲ ତୋଳିବା ଯୋଗୁଁ ପାଣିରେ ପଶି ଓଦା ଜୁଡୁବୁଡୁ ହୋଇ ଘରକୁ ଫେରିଥିଲା । ଘରେ ଏକଥା ସତୀ ବୋଉ ନଜରକୁ ଆସିଲାପରେ ସତୀ ବୋଉ ଖୁବ୍ ରାଗରେ ସତୀକୁ ବିରକ୍ତ ହୋଇଥିଲେ । ସତୀ ତା’ ବୋଉକୁ ଲକ୍ଷ୍ୟକରି ସ୍ତ୍ରୀଲୋକର ଆଖରେ ଏତେ ତେଜ ବୋଲି ଭାବିଥିଲା ।

Question 14.
କ’ଣ ପାଇଁ ସତୀ ବୋଉଙ୍କ ରାଗ ଉଭେଇଗଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀର ମନୋମୁଖୀ କାର୍ଯ୍ୟକଳାପ ସତୀ ବୋଉଙ୍କୁ ପସନ୍ଦ ହେଉନଥିଲା । ଖରାବେଳେ ଘରେ ନରହି ଯୋରରେ ପଶି ଓଦା ହୋଇ ଆସିବା ସତୀ ବୋଉଙ୍କୁ କ୍ରୋଧୃତ କରିଥିଲା । ଫଳରେ ସେ ଖୁବ୍ ବିରକ୍ତ ହୋଇ ସତୀକୁ ଟାଣ କଥା କହିଥିଲେ । ଫଳରେ ସତୀ କାନ୍ଦିଥିଲା । ସତୀର କାନ୍ଦ ଦେଖୁ ସତୀବୋଉଙ୍କ ସବୁରାଗ ଉଭେଇଗଲା ।

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 3 ମଲାଜହ୍ନ Question Answer

Question 15.
ଦୁଆରେ ପାଣି ଜମିଗଲେ ବଉଳ ସହ ମିଶି କିଏ କ’ଣ କରେ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ବର୍ଷା ହୋଇ ସତୀଘର ଦୁଆରେ ପାଣି ଜମିଗଲେ ସତୀ ତା’ ବଉଳ ସହ ମିଶି କାଗଜର ଡଙ୍ଗାକରି ସେ ଜମି ରହିଥ‌ିବା ପାଣିରେ ଭସାଏ ।

Question 16.
‘‘ସେମିତ ଡଙ୍ଗା ହୁଏନା ଜମା ।” ଏକଥା କିଏ କାହାକୁ କହିଥିଲେ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ଦିନେ ବର୍ଷାହୋଇ ଛାଡ଼ିଯିବା ପରେ ସତୀ ଓ ତା’ ବଉଳ ମିଶି ଡଙ୍ଗା ତିଆରି କରି ଭସାଉଥିଲେ । ସତୀର ବଉଳର ଭାଇ ନାଥନନା ଏସବୁ ଦେଖ୍ ସତୀର ଡଙ୍ଗା ତିଆରି କରିବା ପ୍ରସଙ୍ଗରେ କହିଥିଲେ ‘ସେମିତି ଡଙ୍ଗା ହୁଏନା ଜମା’।

Question 17.
କାହା ମୁହଁ କାଗଜ ପରି କାହିଁକି ଶେତା ପଡ଼ିଗଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀକୁ କାଗଜ ଡଙ୍ଗା ତିଆରି ଶିଖାଇବା ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ ସତୀର ପିଠି ଉପରେ ଆଉଜି ପଡ଼ି ନାଥନନା କାଗଜ ଡଙ୍ଗାଟିକୁ ପାଣିରୁ ଉଠେଇନେଲେ । ନାଥନନାଙ୍କର ଏପରି ବ୍ୟବହାର ସତୀ ମନରେ ଆଘାତ ଦେଇଥିଲା । ସେ ନାଥନନାଙ୍କୁ ବିରକ୍ତରେ ଟିକେ ଟାଣପଣରେ ଏଗୁଡ଼ିକ ତାକୁ ଭଲଲାଗେ ନାହିଁ କହିଥିଲା । ଏହି କଥା ଶୁଣି ନାଥନନାଙ୍କ ମୁହଁ କାଗଜ ପରି ଶେତା ପଡ଼ିଗଲା ।

Question 18.
ସତୀର ବାପା ନାଥନନାଙ୍କ ଉପରକୁ କାହିଁକି ଚିଡ଼ିଗଲେ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀର ବାପା ସତୀର ବାହାଘର ଏକ ଦରବୁଢ଼ା ମୋଟା କଳା ଲୋକଟା ସହ ଲଗାଇଥିଲେ । ଏକଥା ଉଭୟ ସତୀ ବୋଉ ଓ ନାଥନନାଙ୍କ ପାଇଁ ଗ୍ରହଣ ଯୋଗ୍ୟ ହୋଇନଥିଲା । ନାଥନନା ଏହାର ପ୍ରତିବାଦ କରିଥିଲେ । ସେଥ‌ିପାଇଁ ସତୀର ବାପା ନାଥନନାଙ୍କ ଉପରେ ଚିଡ଼ିଗଲେ ।

Question 19.
କାହା କାହା ଜିଦ୍ ଦେଖ୍ କିଏ ତୁନି ରହିଲେ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀର ବାହାଘରକୁ ନେଇ ସତୀର ବାପା ଓ ନାଥନନାଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ମତାନ୍ତର ଦେଖାଦେଇଥିଲା । ଉଭୟେ ଉଭୟଙ୍କ ଜିଦରେ ଅଟଳ ରହିବା ଦେଖୁ ସତୀବୋଉ ତୁନିହୋଇ ରହିଲେ ।

Question 20.
ସତୀର ବର ଦେଖୁବାକୁ କେମିତି ଥିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀର ବର ଦେଖିବାକୁ ଖୁବ୍ ଅସୁନ୍ଦର ଥିଲା । ବୟସରେ ସେ ସତୀ ବାପାଙ୍କ ବୟସର ଥିଲା । ଦରବୁଢ଼ା ତ୍ରିପଣ୍ଡକଳା ଓ ଖୁବ୍ ମୋଟା ଥିଲା ସତୀର ବର ।

Question 21.
ବର ଦେଖୁ କାହାକୁ କାହିଁକି ଚିଡ଼ିମାଡ଼ିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀର ମନରେ ବାହାଘରକୁ ନେଇ ପ୍ରଥମରୁ କୌତୂହଳ ଥିଲା । ତା’ ବଉଳ ଆସି ସତୀର ବର କିଏ ବୋଲି ଚିହ୍ନାଇ ଦେଲାପରେ ସତୀ ତା’ବରର ରୂପ ଦେଖୁଥିଲା । ତ୍ରିପଣ୍ଡ କଳା, ମୋଟା ଦରବୁଢ଼ା ବର ଦେଖୁ ସତୀକୁ ଚିଡ଼ିମାଡ଼ିଲା ।

Question 22.
କିଏ ବଗୁଲିଆ ଟୋକାଙ୍କ ପରି ଦୌଡ଼ିଆସି କ’ଣ କରୁଥିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସଞ୍ଜ ପବନ ବଗୁଲିଆ ଟୋକାଙ୍କ ପରି ଥରେ ଥରେ ଦୌଡ଼ିଆସି ଜହ୍ନି ଗଛର ରଞ୍ଜାକୁ ଟେକିଦେଇ ପଳାଇ ଯାଉଥୁଲା ଦୂରକୁ ।

Question 23.
ନାଥନନା କାହିଁକି ପାନତକ ଦୁଆରକୁ ଫିଙ୍ଗିଦେଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ନାଥନନା ଘରକୁ ଆସିଲେ ସତୀ ବୋଉ ସତୀକୁ ପାନ ଭାଙ୍ଗିବାକୁ କୁହନ୍ତି । ଥରେ ନାଥନନା ଆସିଲା ପରେ ସତୀ ତାଙ୍କ ପାଇଁ ପାନ ଭାଙ୍ଗିଛି, ହେଲେ ଲାଜ ଓ ଅଭିମାନରେ ନାଥନନାଙ୍କ ହାତକୁ ବଢ଼ାଇ ଦେଇପାରି ନାହିଁ । ଫଳରେ ରାଗରେ ନାଥନନା ପାନତକ ଦୁଆରକୁ ଫିଙ୍ଗିଦେଲେ ।

Question 24.
ଜହ୍ନିଫୁଲକୁ ସତୀ କ’ଣ କ’ଣ ସମ୍ବୋଧନ କରେ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀର ଫୁଲରେ ବଡ଼ ଶରଧା । କୁଆଁର ପୁନେଇଁ ଜହ୍ନରେ ସତୀ ତାଙ୍କ ଅଗଣାରେ ଲାଗିଥିବା ଜହ୍ନିଫୁଲକୁ ଦେଖ୍, ତାକୁ ଜହ୍ନ ରାଇଜର ରାଣୀ ଓ ଚାନ୍ଦର ଭାରିଯା ବୋଲି ସମ୍ବୋଧନ କରେ ।

Question 25.
ନିଶି କିଏ, ସେ ନାଥନନାଙ୍କର କ’ଣ ହେବ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସଙ୍କ ‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଉପନ୍ୟାସରେ ନିଶି ହେଉଛି ନାୟିକା ସତୀର ବଉଳ, ଯିଏ କି ସତୀଠାରୁ ବୟସରେ ଚାରିବର୍ଷ ସାନ । ନିଶି ନାଥନନାଙ୍କର ଭଉଣୀ ।

Question 26.
ସତୀକୁ କେଉଁଠି କାହିଁକି ଲୋଭ ହେଉଥିଲା ରହିବାକୁ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ନାଥନନାଙ୍କ ଘରକୁ ଗୋଟିଏ ପୂଜା ଅବସରରେ ଯାଇଛି । ଖିଆପିଆ ସରିଲା ବେଳକୁ ରାତି ହୋଇଯାଇଛି । କାଲି ସକାଳ ସତୀ ଆଉଥରେ ନାଥନନାଙ୍କୁ ଟିକେ ଦେଖିପାରିବ ଏହି ଲୋଭରୁ ସତୀ ନାଥନନା ତଥା ତା’ ବଉଳ ଘରେ ରହିବାକୁ ଲୋଭ କରିଥିଲା ।

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Question 27.
ସତୀକୁ କେତେବେଳେ କାହିଁକି ସବୁ ଅନ୍ଧାର ଦେଖୁଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀର ବାହାଘର ହୋଇଛି ମୁକୁନ୍ଦପୁରର ଜମିଦାର ନରହରି ମିଶ୍ରଙ୍କ ସହ । ବାହାବେଦୀ ଉପରେ ଓଢ଼ଣା ଭିତରେ ବହୁ କଷ୍ଟରେ ମୁହଁକୁ ଟେକି ବରର ମୁହଁକୁ ଦେଖୁଛି ସତୀ । ପୋଡ଼ା କାଠ ପରି ରଙ୍ଗ, ସେଥ୍ରେ ମୁହଁଯାକ ବସନ୍ତର ଦାଗ ସିଇଁ ହୋଇ ରହିଛି । ଏରୂପ ଦେଖ୍ ସତୀକୁ ସବୁ ଅନ୍ଧାର ଦିଶିଲା ।

Question 28.
କିଏ କାହାର ସଉତୁଣୀ ପୁଅ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ନଟ ସତୀର ସଉତୁଣୀର ପୁଅ । ସତୀ ବାହାହେବା ପୂର୍ବରୁ ସତୀର ସ୍ୱାମୀ ଯାହାକୁ ବିବାହ କରିଥିଲେ ସେ ତା’ର ଏକମାତ୍ର ପୁତ୍ର ନଟକୁ ସ୍ୱାମୀ ଦାୟିତ୍ୱରେ ଛାଡ଼ିଦେଇ ମରିଯାଇଥିଲେ ।

Question 29.
‘ବାପାକୁ ଓଷଦ କରିଛି କୁଆଡ଼େ’! ଏକଥା କିଏ କାହା ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ କହିଥିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ନଟ ଏକଥା ତା’ ନୂଆମା’ ସତୀକୁ ସଉରଭୀ ଦାସୀ ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ କହିଥିଲା । ନଟର ବାପା ତଥା ସତୀର ସ୍ଵାମୀ ଅର୍ଥାତ୍ ଜମିଦାର ନରହରି ମିଶ୍ରଙ୍କର ସଉରଭୀ ଦାସୀ ସହ ପାପ ସଂପର୍କ ଥିଲା । ସଉରଭୀ ଦାସୀ ନରହରି ମିଶ୍ରଙ୍କୁ ଓଷଦ କରି ତା’ ଇଚ୍ଛା ମୁତାବକ କାର୍ଯ୍ୟ କରାଉଛି ବୋଲି ନଟ ଏକଥା କହିଥିଲା ।

Question 30.
ଶାଶୂଘରେ କ’ଣ ଦେଖୁ ସତୀକୁ ଅପମାନ ଲାଗିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ଶାଶୂଘରେ ସୌରଭୀ ଦାସୀ ସହ ସତୀର ସ୍ଵାମୀ ଅର୍ଥାତ୍ ଜମିଦାର ନରହରି ମିଶ୍ରଙ୍କ ଅନୈତିକ ସମ୍ପର୍କକୁ ଦେଖ୍ ସତୀକୁ ଅପମାନ ଲାଗିଲା । ଗୋଟିଏ ଘର ଭିତରେ ସେମାନଙ୍କ କଥାବାର୍ତ୍ତା ଓ ହସାହସି ସତୀ ମନରେ ଆଘାତ ଦେଲା ।

Question 31.
ତିଆଡ଼ି ଘର ନାଥିଆ କେଉଁଠିକୁ କାହିଁକି ଡାକ୍ତର ଆଣିବାକୁ ଯାଇଛି?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ଶାଶୁଘରକୁ ତାଙ୍କ ଘରର ବୁଢ଼ା ଚାକର ଆସିଥିଲା । ସେ ଖବର ଦେଇଥିଲା ଯେ ସତୀଘର ଗାଁରେ ହଇଜା ବ୍ୟାପିଛି । ତିଆଡ଼ି ଘରର ନାଥୁଆ ଏଇ ହଇଜାର ମୁକାବିଲା କରିବା ପାଇଁ କଟକ ଯାଇଛି ଡାକ୍ତର ଆଣିବାକୁ ।

Question 32.
କେଉଁ ଦିନ ସତୀର ଶେଷ ଭରସା ଟିକକ ଚାଲିଗଲା ବୋଲି ସତୀ ଭାବିଥିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ଦରବୁଢ଼ା ଜମିଦାରକୁ ବିବାହ କରିଥିଲେ ବି ତାଙ୍କୁ ସ୍ବାମୀ ଭାବରେ ଗ୍ରହଣ କରିପାରି ନଥିଲା । ଶାଶୂଘରେ କେବଳ ଶାଶୂବୁଢ଼ୀ ସେବାରେ ସେ ଦିନ କାଟୁଥିଲା । ହେଲେ ହଠାତ୍ ଦିନେ ସତୀର ଶାଶୁ ପୁଅର ନିଷ୍ପଭିରେ ଅଭିମାନ କରି ପୁରୀ ଯିବାକୁ ବାହାରିଲେ । ସେଇଦିନ ସତୀର ଶେଷ ଭରସାଟିକକ ଚାଲିଗଲା ବୋଲି ସତୀ ଭାବିଥିଲା ।

Question 33.
ସତୀ କେଉଁମାନଙ୍କ ସହ କ’ଣ ପାଇଁ କପିଳେଶ୍ଵର ମନ୍ଦିର ଯାଇଥିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ନଟର ଜାଆଁଳା ବାଳ ପକେଇବା ପାଇଁ ସ୍ଵାମୀ ଜମିଦାର ନରହରି ମିଶ୍ର, ସଉରଭୀ ଦାସୀ, ନଟ ଓ ବୁଢ଼ୀ ଦାସୀ ଚମ୍ପା ମା’ ସହ ସତୀ କପିଳେଶ୍ଵର ମନ୍ଦିର ଯାଇଥିଲା ।

Question 34.
କପିଳେଶ୍ଵର ମନ୍ଦିରରେ କିଏ କାହିଁକି ହଜିଗଲା ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
କପିଳେଶ୍ଵର ମନ୍ଦିରରେ ନଟର ଜାଆଁଳ ବାଳ ପକାଇବା ଦିନ ପୁଷ୍ୟାଭିଷେକ ଥିଲା । ଫଳରେ ମନ୍ଦିରରେ ପ୍ରବଳ ଭିଡ଼ ହୋଇଥଲା । ଏଇ ଭିଡ଼ ଭିତରେ ସତୀ ଗହଳି ଯୋଗୁଁ ହଜିଗଲା ।

Question 35.
ମନ୍ଦିରରେ ନାଥନନା ଭେଟ ହେଲା ପରେ ସତୀକୁ କେମିତି ଲାଗିଥିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ମନ୍ଦିରରେ ସତୀ ହଜିଯାଇଥିଲା ଅର୍ଥାତ୍ ତା’ର ସ୍ଵାମୀ ଆଉ ଦାସୀଙ୍କଠାରୁ ଦୂରେଇ ଯାଇଥିଲା । ଠିକ୍ ଏଇ ସମୟରେ ମନ୍ଦିର ପ୍ରାଙ୍ଗଣରେ ନାଥନନାଙ୍କୁ ଦେଖୁ ବୁଡ଼ିଯାଇଥବା ଲୋକ ହଠାତ୍ ମାଟି ଛୁଇଁଲା ପରି ତାକୁ ଲାଗିଥିଲା ।

Question 36.
ସାହୁ ଦୋକାନୀ ଆଶ୍ରୟ ଦେବାକୁ କିପରି ରାଜି ହୋଇଥିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ନାଥନନା ଓ ସତୀ ଅନ୍ଧାର ଭିତରେ ମନ୍ଦିର ପ୍ରାଙ୍ଗଣକୁ ଲାଗିକରି ଥବା ଗୁଡ଼ିଆ ଦୋକାନରେ ରାତିଟା କାଟିବାକୁ ଚାହିଁଥିଲେ । ସାହୁ ଦୋକାନୀ ପ୍ରଥମେ ରାଜି ହୋଇ ନାହିଁ; ମାତ୍ର ନାଥନନା ଯେତେବେଳେ ଯୋଡ଼ିଏ ଟଙ୍କା ତା’ ଖଟ ଉପରେ ରଖିଦେଲେ । ସେତେବେଳେ ସାହୁ ଦୋକାନୀ ଆଶ୍ରୟ ଦେବାକୁ ରାଜି ହୋଇଗଲା ।

Question 37.
ନାଥନନା ଶଗଡ଼ଗାଡ଼ିବାଲାକୁ କାହା ଘରକୁ କାହିଁକି ଯିବାକୁ କହିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ସ୍ଵାମୀ ଓ ଦାସୀମାନଙ୍କଠାରୁ ଅଲଗା ହେଲାପରେ ନାଥନନା ହିଁ ଥିଲେ ଏକମାତ୍ର ସାହା ଭରସା । ରାତି ପାହିଗଲା ପରେ ନାଥନନା ସତୀପାଇଁ ଶଗଡ଼ଗାଡ଼ିର ବ୍ୟବସ୍ଥା କରିଥିଲେ । ସତୀକୁ ଠିକ୍‌କ୍ ଶାଶୂଘରେ ପହଞ୍ଚାଇବା ପାଇଁ ଦୃଢ଼ ସଙ୍କଳ୍ପ କରିଥିବା ନାଥନନା ଶଗଡ଼ଗାଡ଼ି ବାଲାକୁ ନରହରି ମିଶ୍ରଙ୍କ ଘରକୁ ଯିବାକୁ କହିଥିଲେ ।

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Question 38.
ସୂତୀକୁ କିଏ କାହିଁକି ସ୍ଵୀକାର ନକରି ଅପମାନିତ କରିଥିଲେ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ବାହାରେ ଗୋଟିଏ ରାତି କଟେଇ ଫେରିଥୁବାରୁ ସତୀର ସ୍ଵାମୀ ଜମିଦାର ନରହରି ମିଶ୍ର ତାଙ୍କୁ ସ୍ବୀକାର ନକରି ଅପମାନିତ କରିଥିଲେ ।

Question 39.
ସତୀକୁ ଅପମାନିତ କରି ତା’ ସ୍ଵାମୀ କ’ଣ କହିଥିଲେ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ନାଥନନାଙ୍କ ସହ ପୁଣି ସ୍ୱାମୀ ଘରକୁ ଫେରିବା ପରେ ତା’ର ସ୍ବାମୀ ତାକୁ କଟୁ ସମାଲୋଚନା କରିଥିଲେ । ସତୀ ଜାଣିଶୁଣି ସେମାନଙ୍କଠାରୁ ଦୂରେଇ କୋଉ ନାଗର ସହ ରାତି ବିତେଇଛି ବୋଲି କହିଥିଲେ । ଆହୁରି ମଧ୍ୟ ସତୀକୁ ନେଇ ସହରର କୌଣସି ବେଶ୍ୟାପଡ଼ାରେ ଛାଡ଼ିଦେବାକୁ ସେ ନାଥନନାଙ୍କୁ କହିଥିଲେ ।

Question 40.
ନାଥନନା ମୁହଁଟା ଦଣ୍ଡକେ କାହିଁକି ବେଦନାରେ ଝାଉଁଳି ପଡ଼ିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀକୁ ତା’ର ସ୍ଵାମୀ ଅସ୍ଵୀକାର କଲାପରେ ସେ ନାଥନନାଙ୍କ ସହ କଟକ ଚାଲିଆସିଥିଲା। ନାନା ଆଶାଆଶଙ୍କାରେ ସତୀର ମନ ଦୁଃଷ୍କୃତ ହୋଇଥିଲା । ଫଳରେ ତା’ ଆଖୁ ଲୁହ ଅମାନିଆ ହୋଇ ଝରିପଡ଼ିଥିଲା । ସତୀର କାନ୍ଦିବା ଦେଖୁ ନାଥନନାଙ୍କର ମୁହଁଟା ଦଣ୍ଡକରେ ବେଦନାରେ ଝାଉଁଳି ପଡ଼ିଥିଲା ।

Question 41.
ସତୀ କାହାକୁ କୋଉ ମିଛ କଥା କହିଥିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀର କାନ୍ଦିବା ଦେଖୁ ନାଥନନା ଏହାର କାରଣ ଜାଣିବାକୁ ଚାହିଁଥିଲେ । ସତୀ ନାଥନନାଙ୍କୁ ପ୍ରକୃତ କଥା ଲୁଚାଇ ତା’ର ମୁଣ୍ଡ ବଥା ହେଉଛି ବୋଲି କହିଥିଲା ।

Question 42.
ନାଥନନା ପୂଝାରୀ କାହିଁକି ଖୋଜୁଥିଲେ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ନାଥନନା ସତୀକୁ ନେଇ କଟକରେ ତାଙ୍କ ପାଖରେ ରଖୁଥିଲେ । ସତୀ ପାଇଁ ତାଙ୍କ ଅନ୍ତରରେ ଥୁଲା ଅଜସ୍ର ଶ୍ରଦ୍ଧା । ତେଣୁ ସତୀକୁ ରୋଷେଇ କରିବାର କଷ୍ଟନଦେବା ପାଇଁ ସେ ପୂଝାରୀ ଖୋଜୁଥିଲେ ।

Question 43.
ପଡ଼ିଶା ସ୍ତ୍ରୀଲୋକର କୋଉ କଥାରେ ସତୀର ଛାତି ସୁଖରେ ପୂରିଉଠିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ନାଥନନା ସତୀ ଯେଉଁ ଭଡ଼ାଘରେ ରହିବାପରେ ତା’ର ପଡ଼ୋଶୀ ସତୀ ସହ ସମ୍ପର୍କ ଯୋଡ଼ିଥିଲା । ପଡ଼ିଶା ସ୍ତ୍ରୀଲୋକଟି ନାଥନନାଙ୍କୁ ସତୀର ସ୍ଵାମୀ ବୋଲି ଭାବି, ତାଙ୍କର ପ୍ରଶଂସା କରିଥିଲା । ତେଣୁ ଏଇ କଥାରେ ସତୀର ଛାତି ସୁଖରେ ପୂରି ଉଠିଥିଲା ।

Question 44.
ନାଥନନା ସତୀକୁ କେଉଁ କଥା ନିଜ ମୁହଁରେ କହିବେ ନାହିଁ ବୋଲି ଭାବିଥିଲେ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
କଟକରେ ନାଥନନାଙ୍କ ପାଖରେ ଥିଲାବେଳେ ସତୀ ବାରମ୍ବାର ନିଜ ଘର ଓ ବାପାବୋଉଙ୍କ କଥା ଜାଣିବାକୁ ଇଚ୍ଛାକରି ସେମାନଙ୍କ କଥା ନାଥନନାଙ୍କୁ ପଚାରୁଥିଲା । ମାତ୍ର ସତୀର ବାପାବୋଉ ହଇଜାରେ ମରିଯାଇଥିବା କଥାଟିକୁ ନାଥନନା ନିଜ ମୁହଁରେ କହିବେ ନାହିଁ ବୋଲି ଭାବିଥିଲେ ।

Question 45.
ନାଥନନାର କେଉଁ ହାତ କେମିତି ପୋଡ଼ିଯାଇଥିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋଷ ଦାସ
ସତୀର ଦେହ ଅସୁସ୍ଥ ହେବାରୁ ନାଥନନା ନିଜ ହାତରେ ରୋଷେଇ କରିଥିଲେ । ହାଣ୍ଡି ଓହ୍ଲାଉ ଓହ୍ଲାଉ ପେଜ ପଡ଼ି ତାଙ୍କର ବାଁ ହାତ ପୋଡ଼ି ଯାଇଥିଲା ।

Question 46.
ଅଜାଣତରେ ସତୀକୁ ପାଖକୁ ଭିଡ଼ିଧରି ନାଥନନା ଚୁମ୍ବନ ଦେବାପରେ ତା’ର କ’ଣ ପ୍ରତିକ୍ରିୟା ସୃଷ୍ଟି ହେଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ନାଥନନା ଅଜାଣତରେ ସତୀକୁ ଭିଡ଼ିଧରି ଚୁମ୍ବନ ଦେବାପରେ ସେ ରହସ୍ୟମୟ ସ୍ପର୍ଶରେ ସତୀର ହୃଦୟ ବିଚିତ୍ର ଛନ୍ଦରେ ବାଜି ଉଠିଲା । ତା’ର ରକ୍ତରେ ଝଡ଼ ବହିଗଲା ।

Question 47.
ନାଥନନା କାହିଁକି ଚାକିରି ଖୋଜୁଥିଲେ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ନାଥନନା ଓ ସତୀ କଟକରେ ଭଡ଼ାଘର ନେଇ ରହିଥିଲେ । କଟକ ସହର ସବୁଜିନିଷ କିଣା । ତେଣୁ ରୋଜଗାର ନକଲେ ଚଳିବେ କେମିତି ! ତେଣୁ ନାଥନନା ଚାକିରି ଖୋଜୁଥିଲେ ।

Question 48.
ସତୀକୁ ନେଇ ଗାଁକୁ ଫେରିଯିବା ପାଇଁ ନାଥନନା ନିଷ୍ପତ୍ତି ନେଲେ କାହିଁକି?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀକୁ ନେଇ କଟକରେ ରହିବା ସମୟରେ ନାଥନନାଙ୍କ ପାଖରେ ଯାହାକିଛି ସଞ୍ଚୟ ଥୁଲା ସବୁ ସରିଯାଇଥିଲା । ଅନ୍ୟପକ୍ଷରେ ରୋଜଗାରର ପନ୍ଥା ବି କିଛି ଯୋଗାଡ଼ ହୋଇପାରିନଥିଲା । ତେଣୁ ନାଥନନା ସତୀକୁ ନେଇ ଗାଁକୁ ଫେରିଯିବାର ନିଷ୍ପତ୍ତି ନେଇଥିଲେ ।

Question 49.
ଗାଁରେ ପହଞ୍ଚିବାପରେ ନାଥନନାଙ୍କ ଘରର ଅବସ୍ଥା କିପରି ଥ‌ିବାର ସତୀ ଦେଖୁଥିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ନାଥନନାଙ୍କ ସହ ଗାଁରେ ପହଞ୍ଚିଲା ପରେ ଦେଖୁଥିଲା ଯେ ନାଥନନାଙ୍କ ଦୁଆର ଭିତରେ ଆଣ୍ଟିଏ ଅରମା ହୋଇଛି, ଯେମିତି ଅନେକ ଦିନହେଲା କେହି ରହୁନାହାନ୍ତି ।

Question 50.
ନାଥନନାଙ୍କ ଘରେ ପହଞ୍ଚି ସତୀ କାହା ବିଷୟରେ ପଚାରିଲା ଓ ସେ କେଉଁଠିକୁ ଯାଇଛନ୍ତି ବୋଲି ନାଥନନା କହିଲେ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ନାଥନନା ଓ ସତୀ ଗାଁକୁ ଫେରିଲା ପରେ ସତୀ ନାଥନନାଙ୍କ ବୋଉ ବିଷୟରେ ପଚାରିଲା ଓ ସେ କାର୍ତ୍ତିକ ମାସରେ ପୁରୀ ତୀର୍ଥରେ ଯାଇଛନ୍ତି ବୋଲି ନାଥନନା କହିଲେ ।

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Question 51.
ଅଚୁତି କିଏ ଓ ସେ କ’ଣ କରୁଥିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ଅଚ୍ୟୁତି ହେଉଛି ସତୀ ଗାଁର ଜଣେ ଲୋକ, ଯିଏ କି ଗାଁ ଚାଟଶାଳୀର ମାଷ୍ଟର । ନାଥନନାଙ୍କ ଅନୁଗ୍ରହରେ ଏଇ ଅଚ୍ୟୁତି ମହାନ୍ତି ଚାଟଶାଳୀରେ ଖଣ୍ଡେ ଚାକିରି ପାଇଥିଲା ।

Question 52.
ଅଚୁତି ମହାନ୍ତି କାହା ହାତରେ କାହା ପାଖକୁ ଚିଠି ପଠାଇଥିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ଅଚ୍ୟୁତି ମହାନ୍ତି ସତୀ ଘରର ପୁରୁଣା ବୁଢ଼ା ଚାକର ସଇତା ହାତରେ ସତୀ ପାଖକୁ ଚିଠିଟିଏ ପଠାଇଥିଲା ।

Question 53.
ଇନ୍ଦ୍ରିୟ ଲାଳସା ଆଗରେ କ’ଣ କ’ଣ ପ୍ରତିଦିନ ବଳି ଦିଆହୁଏ ବୋଲି ସତୀ ଉପଲବ୍ଧି କରିଥିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ଉପଲବ୍ଧି କରିଛି ଯେ ଇନ୍ଦ୍ରିୟ ଲାଳସା ଆଗରେ ପ୍ରତିଦିନ ହଜାର ହଜାର ଗରିବର ସର୍ବସ୍ଵ ଓ ସତୀର ସତୀତ୍ଵ ବଳି ଦିଆହୁଏ ।

Question 54.
କିଏ କାହାକୁ ନିଆଁପାଣି ଅଟକ ରଖୁବାକୁ ପ୍ରଥମେ କହିଥିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ଅଚ୍ୟୁତି ମହାନ୍ତି ଭାଗବତ ଟୁଙ୍ଗୀରେ ବ୍ରାହ୍ମଣମାନଙ୍କୁ ବସାଇ ଲୋକନାଥ ତିଆଡ଼ିକୁ ନିଆଁପାଣି ଅଟକ ରଖୁବାକୁ ପ୍ରଥମେ କହିଥିଲା ।

Question 55.
ସଇତା କାହାକୁ କାହିଁକି ମାରିବାକୁ ବାହାରିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସଇତା ବାଟରୁ ଶୁଣିକରି ଆସିଥିଲା ତା’ ବୁଢ଼ୀ ଅର୍ଥାତ୍ ପ୍ରଥମ ମାଲିକର ଝିଅ ସତୀର ଅପନିନ୍ଦା । ତେଣୁ ସଇତା ତା’ ସତୀ ବିଷୟରେ ଏଣୁ ତେଣୁ ଖରାପକରି କହୁଥ‌ିବା ଅଚୁତି ମହାନ୍ତିକୁ ମାରିବାକୁ ବାହାରିଥିଲା ।

Question 56.
ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ର କ’ଣ ଛୁଇଁ ଶପଥ କଲେ ଏବଂ କ’ଣ କହିଲେ ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ର ଅଚ୍ୟୁତି ମହାନ୍ତିର ପ୍ରରୋଚନାରେ ସତୀର ବିରୋଧ କରି ନିଜ ପଇତା ଛୁଇଁ ଶପଥ କରି କହିଲେ ‘‘ମୁଁ ଯେବେ ବ୍ରାହ୍ମଣ ସନ୍ତାନ ହୋଇଥାଏ, ତେବେ ଏହାର ପ୍ରତିକାର କରିବି ।’’

Question 57.
ସତୀ ନାଥନନାଙ୍କଠାରୁ କାହା ସାଙ୍ଗରେ କୁଆଡ଼େ ଯିବାକୁ ଅନୁମତି ମାଗିଥୁଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ଅନୁଭବ କରିଥିଲା ଯେ ତା’ ଯୋଗୁଁ ଅଯଥାରେ ଅସୁବିଧାରେ ପଡୁଛନ୍ତି ନାଥନନା । ତେଣୁ ସେ ଏହାର ସମାଧାନ ନିମନ୍ତେ ସଇତା ସାଙ୍ଗରେ ସାଇଆଡ଼େ ତଥା ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ରଙ୍କ ଘରକୁ ଯିବାକୁ ଅନୁମତି ମାଗିଥିଲା ।

Question 58.
ସତୀକୁ ନିଜ ଘରେ ଦେଖ୍ ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ରଙ୍କ ସ୍ତ୍ରୀ କ’ଣ କହିଲେ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ରଙ୍କ ଘରକୁ ଯାଇ ପହଞ୍ଚିଲାବେଳକୁ ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ରଙ୍କ ସ୍ତ୍ରୀ, ଯିଏ ସତୀର ପିଲାଦିନ ଅଶୋକା ଥିଲା; ସେ ସତୀକୁ ନଚିହ୍ନିଲା ପରି ହୋଇ ‘ସିଆଡ଼େ ଦୂରେଇ ଯା, ଠାକୁର ଘର ମାରା ହେବ’’ ବୋଲି କହି ଅପମାନିତ କରିଥିଲା ।

Question 59.
ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ରଙ୍କ ଘରୁ ଫେରିବା ପରେ ସତୀର କ’ଣ ଅନୁଭବ ହେଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ରଙ୍କ ଘରୁ ଫେରିଲାବେଳକୁ ଅନୁଭବ କରିଥିଲା ଯେ ଏଇ ଲୋକଗୁଡ଼ାଙ୍କ ପାଖରେ ହୃଦୟର ସମ୍ପର୍କ ବୋଲି କିଛି ନାହିଁ ।

Question 60.
ନାଥନନାଙ୍କୁ ସମାଜ ବାସନ୍ଦରୁ ମୁକାଳିବା ପାଇଁ ସତୀ କେଉଁ ନିଷ୍ପତ୍ତି ନେଇଥିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ନାଥନନାଙ୍କୁ ସମାଜ ବାସନ୍ଦରୁ ମୁକୁଳାଇବା ପାଇଁ ତାଙ୍କୁ ଛାଡ଼ି ନଜଣାଇ କୁଆଡ଼େ ଚାଲିଯିବାକୁ ନିଷ୍ପଭି ନେଇଥିଲା ।

(ଘ) ୩ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ ଓ ଉତ୍ତର । (୩୦ଟି ଶବ୍ଦ ମଧ୍ୟରେ)

Question 1.
ସତୀର ବାପା ତା’ ବୋଉ ଉପରେ ବିରକ୍ତ ହେବାର କାରଣ କ’ଣ ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ଉପନ୍ୟାସର ମୁଖ୍ୟ ଚରିତ୍ର ସତୀ ପିଲାଟି ଦିନରୁ ଅଲିଅଳୀ, ଗେହ୍ଲାରେ ବଢ଼ିଛି । ଗୋଟିଏ ବୋଲି ଝିଅ, ତେଣୁ ବାପା ବୋଉ ତାକୁ କମ୍ ଆକଟ କରିଛନ୍ତି । ହେଲେ ସତୀ ଯେତେବେଳେ କିଶୋର ଅବସ୍ଥାରେ ପହଞ୍ଚିଛି, ସେତେବେଳେ ତା’ର ଏପରି ବୁଲାବୁଲି ଓ ମୁକ୍ତାଚରଣ ତା’ର ବାପା ଅନାଦି ମିଶ୍ରଙ୍କୁ ଭଲ ଲାଗିନାହିଁ । ଅନ୍ୟପଟେ ସତୀର ବାହାଘର ମଧ୍ୟ ଖୋଜିଛନ୍ତି ସତୀର ବାପା । ଏପରି ସମୟରେ ସତୀର ବୁଲାବୁଲିକୁ ଅପସନ୍ଦ କରି ଏବଂ ଏସବୁ ସତୀବୋଉଙ୍କ ଅବହେଳା ବିଚାର କରି ସତୀର ବାପା ତା’ ବୋଉ ଉପରେ ବିରକ୍ତ ହୋଇଛନ୍ତି ।

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Question 2.
ସତୀର ବାହାରେ ବୁଲିବା ପ୍ରସଙ୍ଗରେ ତା’ର ବାପା ତାଙ୍କ ସ୍ତ୍ରୀଙ୍କୁ କ’ଣ କହିଲେ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀର ବାହାରେ ବୁଲିବା ସତୀ ବାପାଙ୍କୁ ଭଲ ଲାଗିନାହିଁ । ଏନେଇ ସେ ସତୀବୋଉଙ୍କୁ ଦୋଷ ଦେଇଛନ୍ତି । ବିରକ୍ତ ହୋଇ କହିଛନ୍ତି, ‘‘ତମ ଆଖୁକି ସୁନ୍ଦର ଦିଶିଲେ ଗାଁ ଲୋକଙ୍କୁ ତ ତା’ ସୁନ୍ଦର ଦିଶୁନାହିଁ । ଘର ଝିଅ, ପର ତ ଆଉ ଆସିବେ ନାହିଁ ଆକଟିବାକୁ । ମୁଁ ଇଆଡ଼େ ବରଘର ଖୋଜା ଲଗେଇଥାଏ, ଝିଅ ସିଆଡ଼େ ଘୋଡ଼ା ପରି ଦାଣ୍ଡହାଟରେ ବୁଲୁଥାଆନ୍ତୁ ।’’

Question 3.
ବାହାଘର କଥାଶୁଣି ସତୀ ଦିନଯାକ କ’ଣ ଭାବିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ବାହାଘର କଥାଶୁଣି ସତୀ ସେ ଦିନଯାକ ଖାଲି ବାହାଘର କଥା ମନେ ପକାଇଲା । ଓଢ଼ଣାପକାଇ କନିଆଁ ହବା, ସମସ୍ତଙ୍କ ଆଗରେ ନଇଁ ନଇଁ ଚାଲିବା କଥା ଭାବିଲା । ଏଇ ବାହାହବା କଥାଟି ଭାରି କୌତୁକ ଲାଗିଲା କିଶୋରୀ ସତୀକୁ । ସତୀକୁ ଲାଗିଲା ବାହାଘର ଯେମିତି ଗୋଟାଏ ଅମୁହାଁ ଦେଉଳ ।

Question 4.
କେଉଁ କଥାସବୁ ମନକୁ ଆସିଥିଲେ ସତୀର ଜୀବନ ଭିନ୍ନ ବାଟରେ ଯାଇପାରିଥା’ନ୍ତା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ବାହାଘର କଥାଶୁଣି ପିଲାଦିନେ ସତୀମନରେ କୌତୁକ ସୃଷ୍ଟି ହୋଇଛି । ତେବେ ଏଇ ବାହାହେବା ଭିତରେ ପୁଣି କେତେ ପରିବର୍ତ୍ତନ, କେତେ ପ୍ରଳୟ କେତେ ସୃଷ୍ଟି ଯେ ଖଞ୍ଜା ହୋଇଛି, ସେଇ କଥା ନାରୀମାନେ ଜାଣନ୍ତି ନାହିଁ ବୋଲି ସତୀ ଭାବିଛି । ପିଲାଦିନେ ଏଇକଥା ସତୀ ମନକୁ ଆସିନଥୁଲା, ଯଦି ଆସିଥାଆନ୍ତା ତେବେ ସତୀର ଜୀବନ ଭିନ୍ନ ବାଟରେ ଯାଇପାରିଥା’ନ୍ତା ବୋଲି ସତୀ ଚିନ୍ତା କରିଛି ।

Question 5.
ଶରତ ଋତୁର ବର୍ଣ୍ଣନା ଉପନ୍ୟାସରେ କିପରି କରାଯାଇଛି ଲେଖ ।
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ଔପନ୍ୟାସିକଙ୍କ ବର୍ଣ୍ଣନାଶୈଳୀ ଖୁବ୍ ଚମତ୍‌କାର । ଔପନ୍ୟାସିକଙ୍କ ଭାଷାରେ ଶରତ ଋତୁ ଖୁବ୍ ମନୋରମ । ନଈ ପଠାରେ କାଶତଣ୍ଡୀ ଫୁଲର ମଉଚ୍ଛବ ବଢ଼ାଇ ଦେଇଛି ଶରତ । ବିଲପଡ଼ିଆରେ ଶୁଖିଲା ନୁଖୁରା ଭୂଇଁ ଉପରେ ପାହାନ୍ତା ପ୍ରହରର ଗଙ୍ଗଶିଉଳି ଶେଯ ପରି ଖୁବ୍ ସୁନ୍ଦର ।

Question 6.
ପାଣିରେ ପଶିଥବାବେଳେ ସତୀ କାହା ଉପରେ କାହିଁକି ରାଗିଗଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ଖୁବ୍ ସ୍ୱାଧୀନଚେତା ଝିଅଟେ, ଗାଁର ଉତ୍ତରପଟେ ତାଙ୍କ ବାଡ଼ି କରଦେଇ ବହି ଯାଇଥିବା ଯୋରରେ ଦିନେ ଖରାବେଳେ କଇଁଫୁଲ ତୋଳିବା ଲୋଭରେ ପାଣି ଭିତରକୁ ପଶିଥିଲା । ଏହି ସମୟରେ ବନ୍ଧ ଉପରୁ ଏସବୁ ଦେଖୁ ନାଥନନା ସତୀକୁ ଡାକିଥିଲେ । ସତୀ ଏପରି ଅବସ୍ଥାରେ ନାଥନନାଙ୍କ ଆବିର୍ଭାବ ପସନ୍ଦ କରିନାହିଁ, ତେଣୁ ସତୀ ସେଇ ପାଣିରେ ପଶିଥିବା ବେଳେ ନାଥନନାଙ୍କ ଉପରେ ରାଗିଗଲା ।

Question 7.
ପାଣିରୁ ଉଠି ଆସିବା ପରେ ନାଥନନାଙ୍କୁ ଦେଖୁ ସତୀ ଲାଜକଲା କାହିଁକି?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
କଇଁଫୁଲ ତୋଳିବା ଆଶାରେ ସତୀ ଯୋରରେ ପଶିଥିଲା । ଏଇ ସମୟରେ ନାଥନନା ଡାକରେ ପାଣିରୁ ଉଠି ଆସିଥିଲା । ଓଦା ହୋଇ ତା’ଦେହରେ ଲୁଗା ଜଡ଼ିଯାଇଥୁଲା ଆଉ ନାଥନନା ତା’ ଦେହକୁ କେମିତି ଗୋଟିଏ ଅଲଗା ଭାବରେ ଚାହିଁଥିଲେ । ତେଣୁ ସତୀ ପାଣିରୁ ଉଠିଆସିବା ପରେ ନାଥନନାଙ୍କୁ ଦେଖ୍ ଲାଜ କଲା ।

Question 8.
ସତୀ ଲୁଗା ଶୁଖାଇଲା ବେଳେ ତା’ବୋଉ କାହିଁକି ବିରକ୍ତ ହେଲେ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ଲାଜରେ ଓଦା ଜଡ଼ସଡ଼ ହୋଇ ଘରକୁ ଫେରିଥିଲା । ଭିତର ଘର ପିଣ୍ଡାରେ ଲୁଗା ଶୁଖାଇଲାବେଳେ ସତୀର ବୋଉ ସତୀକୁ ଦେଖ୍ ପକାଇଲେ । ତାଙ୍କୁ ନଜଣାଇ ଖରାବେଳେ କୁଆଡ଼େ ବୁଲିବାକୁ ପଳେଇଥବାରୁ ସେ କଟମଟ କରି ରାଗରେ ସତୀକୁ ଚାହିଁଲେ । ସତୀ ଫୁଲ ଆଣିବାକୁ ଯାଇଥିବା କଥା କହିବାରୁ ସେ ବିରକ୍ତ ହେଲେ । କାରଣ ସତୀର ବାପାଙ୍କ ତାଗିଦ୍ ଆଉ ସତୀର ବର ଖୋଜା ହେଉଥିଲା । ତେଣୁ ତା’ର ଏପରି ବୁଲିବା ଆଦୌ ଗ୍ରହଣୀୟ ଓ କ୍ଷମଣୀୟ ନୁହେଁ ବୋଲି ସତୀ ବୋଉ ଭାବିଥିଲେ ।

Question 9.
କେଉଁ କାମଟା କରିବା ଦରକାର ଥିଲା ବୋଲି ସତୀ ନିଜ ମନକୁ ବୁଝାଇଛି?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ପ୍ରତି ନାଥନନାଙ୍କ ବ୍ୟବହାର ସତୀକୁ ଟିକେ ଅଲଗା ପ୍ରକାର ଲାଗିଛି। ବରଷା ପାଣିରେ ବଉଳ ସହ କାଗଜ ଡଙ୍ଗା ଭସାଇଲା ବେଳେ ନାଥନନା ସତୀର ପିଠି ଉପରେ ଏକରକମ ଆଉଜି ପଡ଼ିଛନ୍ତି । ଏଇ ଆଚରଣ ସତୀକୁ ଅନ୍ୟାୟ ପରି ବୋଧ ହୋଇଛି । ସେ ନାଥନନାଙ୍କୁ ଟିକେ କଟୁକରି କଥା କହିଛି; କିନ୍ତୁ ଅନ୍ତର୍ମନରେ ନାଥନନାଙ୍କ ପାଇଁ ଯଥେଷ୍ଟ ସ୍ନେହ ସାଇତି ରଖୁଛି । ଏଥିରେ ନାଥନନା ମୁହଁ ଝାଉଁଳି ପଡ଼ିଛି ଓ ସେ ମୁହଁପୋତି ସେଠୁ ଚାଲିଯାଇଛନ୍ତି । ସତୀ ନିଜ ମନକୁ ବୁଝାଇଛି ଯେ ଆଜି ଯାହା କରିଛି, ତାହା ଦରକାର ଥିଲା ।

Question 10.
ସତୀ ବୋଉ ସବୁବେଳେ କାହିଁକି ମୁହଁ ଶୁଖେଇ ବସୁଥୁଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀର ବାପା ଅନାଦି ମିଶ୍ର ସତୀର ବାହାଘର ମୁକୁନ୍ଦପୁରର ଜମିଦାର ଦରବୁଢ଼ା, କଳା, ମୋଟା ନରହରି ମିଶ୍ରଙ୍କ ସହ ଠିକ୍ କରିଥିଲେ । ଜମିଦାର ପ୍ରଥମ ସ୍ତ୍ରୀ ମରିଯାଇଥିଲା ଓ ତା’ର ପ୍ରଥମ ସ୍ତ୍ରୀର ଗୋଟିଏ ପୁଅ ମଧ୍ୟ ଥିଲା । ଏସବୁ ଘଟଣା ଯୋଗୁ ସତୀ ବୋଉ ସତୀର ବାହାଘର ସେଇ ଜମିଦାର ସହ ହେଉ ଏକଥା ଚାହୁଁନଥିଲେ; ହେଲେ ଏହାର ପ୍ରତିବାଦ କରିବାର ସାହସ ମଧ୍ୟ ଜୁଟେଇ ପାରୁନଥିଲେ । ତେଣୁ ନୀରବରେ ସବୁବେଳେ ମୁହଁ ଶୁଖେଇ ବସୁଥିଲେ ।

Question 11.
ସତୀର ବର ବିଷୟରେ ନାଥନନା କାହାକୁ କ’ଣ କହି ବୁଝାଇବାକୁ ଚାହିଁଥିଲେ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀର ବାହାଘର ଜଣେ ଦରବୁଢ଼ା ଜମିଦାର ସହ ସ୍ଥିର ହୋଇଥିଲା । ଏହାକୁ ନାଥନନା ବିରୋଧ କରି ସତୀ ବାପାଙ୍କୁ ବୁଝାଇବାକୁ ଚେଷ୍ଟା କରିଥିଲେ । ନାଥନନା କହିଥିଲେ – ‘‘ବରଟା ବୁଢ଼ା, ସେଥୁରେ ପୁଣି ଦୋଷେଇ । ହେଲା ଏବେ, ସେ ଏ ଗାଁର ଜମିଦାର, ବଡ଼ ଲୋକ; କିନ୍ତୁ ସତୀ ଗୋଡ଼ ଆଙ୍ଗୁଳିକି ଯୋଗ୍ୟ ନୁହେଁ ସେ ।’’

Question 12.
ସତୀ କାହିଁକି ଖିଡ଼ିକଟା ଧଡ଼କରି ବନ୍ଦ କରିଦେଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀର ବାହାଘର ମୁକୁନ୍ଦପୁର ଜମିଦାର ନରହରି ମିଶ୍ରଙ୍କ ସହ ସ୍ଥିର ହୋଇଥିଲା । ବରଯାତ୍ରୀ ଓ ବର ସତୀର ଘରକୁ ଆସିଲା ଦିନ ବଉଳ ସତୀକୁ ତା’ ବର କିଏ ବୋଲି ଚିହ୍ନାଇ ଦେଇଥିଲା । ସତୀ ଖିଡ଼ିକି ବାଟେ ଦେଖୁଥଲା ଯେ ତା’ର ବର ଦରବୁଢ଼ା, ତ୍ରିପଣ୍ଡ କଳା, ଖୁବ୍ ମୋଟା । ସେଥ‌ିରେ ପୁଣି ସୁନାହାର ଆଉ ଖଡ୍ଗ ନାଇ ଅପୂର୍ବ ସୁନ୍ଦର ଦିଶୁଥିଲା । ତେଣୁ ସତୀର ଆଉ ଚାହିଁବାକୁ ମନ ହେଲାନାହିଁ । ତେଣୁ ସେ ଧଡ଼କରି ଖିଡ଼ିକଟା ବନ୍ଦ କରିଦେଲା ।

Question 13.
ସ୍ତ୍ରୀ ଜାତିର କୋଉ ପ୍ରବୃରି କଥା ସତୀ ଭାବିଛି?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ଅନ୍ତର ଭିତରେ ନାଥନନାଙ୍କ ପ୍ରତି ଦୁର୍ବଳତା ଥିଲେ ବି, ସେଇକଥା ବାହାରେ ପ୍ରକାଶ କରିବାକୁ ଦେଇନାହିଁ ସେ । ଯେତିକି ସଂଯମତା ଆଚରଣ କରିବା କଥା ସତୀ ଯଥାସମ୍ଭବ ତାହା କରିଛି । ନାଥନନାଙ୍କ ସହ ମିଶିବାକୁ ଲାଜ କରିଛି । ଆଉ ସ୍ତ୍ରୀ ଜାତିର ପ୍ରବୃତ୍ତି ବିଷୟରେ ଭାବିଛି ଯେ ସ୍ତ୍ରୀ ଜାତିର ଗୋଟିଏ ପ୍ରବୃତ୍ତି, ଯୋଉଠି ଲାଜ କରିବା କଥା ନୁହେଁ, ଲାଜ କଥା ଟିକେ ଅନୁକୂଳ ହେଲେ ସଂସାରଯାକର ଲାଜ ଆସି ସେଠି ଓଜାଡ଼ି ହୋଇପଡ଼େ ।

Question 14.
ସତୀର ଛାତିରେ କାହିଁକି ନାଥନନାଙ୍କ ପାଇଁ ସୁଖର ଜୁହାର ଉତୁରି ଉଠିଲା ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ଘରକୁ ନାଥନନା ଆସିବାର କାରଣ ଭାବେ ସତୀ ଯେତେବେଳେ ଜାଣିଛି ଯେ ତାଙ୍କର ତାହା ପ୍ରତି ଅନୁରାଗ ରହିଛି । ନାଥନନା ସ୍ପଷ୍ଟଭାବରେ ସତୀକୁ କହିଛନ୍ତି ଯେ ସେ କେବଳ ସତୀ ପାଇଁ ତାଙ୍କ ଘରକୁ ଆସୁଛନ୍ତି । ତାଙ୍କର ଏଇ କେଇପଦ କଥାକୁ ସତୀ କେଜାଣି କେତେଥର ମନେ ମନେ ଉଚ୍ଚାରଣ କରିଛି । ତାକୁ ଦେଖୁ ଲୋଭରେ ନାଥନନା ତାଙ୍କ ଘରକୁ ଆସନ୍ତି ତେଣୁ ସତୀ ଛାତିରେ ନାଥନନାଙ୍କ ପାଇଁ ସୁଖର ଜୁହାର ଉତୁରି ଉଠିଲା ।

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 3 ମଲାଜହ୍ନ Question Answer

Question 15.
‘‘ଯେତେ ବେଗି ଏ ଜଞ୍ଜାଳରୁ ଖଲାସ ହେବ ସେତେ ଭଲ ।” ଏକଥାର ତାତ୍ପର୍ଯ୍ୟ ବୁଝାଅ ।
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀର ବାହାଘର ନରହରି ମିଶ୍ରଙ୍କ ସହ ହୋଇଛି । ହେଲେ ପରମ୍ପରା ଅନୁସାରେ ଝିଅ ପରେ ପୁଆଣି ହୋଇ ଶାଶୂଘରକୁ ଯିବ । ତେଣୁ ଏଇ ଝିଅ ବିଦା ପ୍ରସଙ୍ଗରେ ସତୀ ବଉଳ ନିଶିଙ୍କର ବୋଉ ସତୀ ଘରକୁ ଆସି ସତୀବୋଉକୁ ବୁଝେଇଛନ୍ତି ଯେତେ ଶୀଘ୍ର ଝିଅକୁ ବିଦାକରି ଜଞ୍ଜାଳରୁ ଖଲାସ ହେବା ଭଲ ।

Question 16.
ସତୀ କାହିଁକି ଓଦା ନ ବଦଳି ଶୋଇପଡ଼ିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ନାଥନନା ଘରକୁ ଗୋଟିଏ ପୂଜାରେ ଯୋଗଦେବା ପାଇଁ ଯାଇଛି । ଭୋଜିଭାତ ସରୁ ସରୁ ରାତି ଟିକେ ଅଧିକ ହୋଇଯାଇଛି । ଯଦିଓ ସତୀର ଇଚ୍ଛା ନଥ୍‌ଲା ଫେରିବାକୁ ତଥାପି ସତୀ ଫେରିବାକୁ କହିଛି । ବାଟରେ ଫେରିଲାବେଳକୁ ଓଦା ହୋଇଯାଇଛି ବର୍ଷାରେ । ସତୀବୋଉ ଲୁଗା ବଦଳିବାକୁ କହିଥିଲେ ବି ସତୀ ଲୁଗା ବଦଳେଇ ନାହିଁ । କାରଣ ନାଥନନା ଦେହ ଲାଗି ସେ ଲୁଗା ସତୀକୁ ବାସନା ହୋଇଛି । ତେଣୁ ସେ ଲୁଗା ନ ବଦଳାଇ ଶୋଇପଡ଼ିଲା ।

Question 17.
ସ୍ଵାମୀଙ୍କର କେଉଁ କଥା ଶୁଣି ସତୀକୁ ଛୁଞ୍ଚି ଫୋଡ଼ି ହୋଇଗଲା ପରି ଲାଗିଛି?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ନରହରି ମିଶ୍ରଙ୍କୁ ବିବାହ କରିଥିଲେ ବି ଅନ୍ତର୍ମନରେ ତାଙ୍କୁ ସ୍ବାମୀ ଭାବରେ ଗ୍ରହଣ କରି ପାରିନାହିଁ । ସ୍ଵାମୀ ତାକୁ ନିଜ ପାଖକୁ ନେଲାବେଳେ ସେ ବଳପୂର୍ବକ ଦୂରେଇ ଆସିଛି । ସ୍ୱାମୀକୁ ତା’ଦେହ ଛୁଇଁବାକୁ ଦେଇ ନାହିଁ । ଫଳରେ ସ୍ଵାମୀ ଜମିଦାର ନରହରି ମିଶ୍ର ତାକୁ ଘରେ ପୋଇଲୀ କରି ଖଟେଇବାର ଧମକ ଦେଇଛନ୍ତି । ଆଉ ଜଣକୁ ବିବାହ କରି ତାକୁ ଦୂର ଦୂର ମାର୍ ମାର୍ କରି କଷ୍ଟଦେବେ; ଏମିତିକି ତା’ର ଖାଇବା ପିଇବା ବନ୍ଦ କରିଦେବେ ବୋଲି କହିଛନ୍ତି । ଏଇ କଥାଗୁଡ଼ିକୁ ସତୀକୁ ଛୁଞ୍ଚି ଫୋଡ଼ିଲା ପରି ଲାଗିଛି ।

Question 18.
ପ୍ରଥମ ଦେଖାରେ ସତୀ ଶାଶୂଙ୍କର ରୂପ ସତୀକୁ କିପରି ଲାଗିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ଜମିଦାରଙ୍କୁ ବିବାହ କରି ଯେତେବେଳେ ତାଙ୍କ ଘରକୁ ଯାଇଛି, ସେତେବେଳେ ତା’ର ଶାଶୂର ରୂପ ତାକୁ ଚକିତ କରିଦେଇଥିଲା । ସେ ବୁଢ଼ୀ, କିନ୍ତୁ ଏତେ ବୟସର କୌଣସି ଲକ୍ଷଣ ତାଙ୍କ ଦେହରେ ନଥିଲା । ପିଞ୍ଛିପରି ଲମ୍ବା ପତଳା ଦେହ, ସୁନାପରି ଦୂରରୁ ଝଟକୁଥିଲା । ବୁଦ୍ଧି ଆଉ ଦୃଢ଼ତାରେ ମୁହଁଟି ସମୁଜ୍ଜଳ ଦିଶୁଥିଲା ।

Question 19.
ସତୀର ମନ ତା’ ସ୍ଵାମୀ ପ୍ରତି ଘୃଣାରେ ଭରିଗଲା କାହିଁକି?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ସ୍ଵାମୀଠାରୁ କଟୁକଥା ଶୁଣିଥିଲେ ମଧ୍ୟ ଧୈର୍ଯ୍ୟଧରି ଶାଶୁ ସେବାରେ ମନଦେଇ ଦିନ କାଟିଦେବ ବୋଲି ଚିନ୍ତା କରିଥିଲା । ସ୍ଵାମୀକୁ ଧୀରେ ଧୀରେ ଭଲ ପାଇବ ବୋଲି ମନକୁ ବୁଝାଇଥଲା । ହେଲେ ଦିନେ ଦେଖୁଲା ତାଙ୍କ ଘରର ଜଣେ ଦାସୀ ସୌରଭୀ ତା’ ସ୍ଵାମୀ ସାର୍ଟର ବୋତାମ ଖୋଲିଦେଉଛି ଏବଂ ଖୁବ୍ ଖୁସିରେ ହସାହସି ହୋଇ ଗପାଗପି ହେଉଛନ୍ତି । ଏହି ଦୃଶ୍ୟ ଦେଖ୍ ସତୀର ମନ ତା’ ସ୍ଵାମୀ ପ୍ରତି ଘୃଣାରେ ଭରିଗଲା ।

Question 20.
ନଟର କଥା ଶୁଣି ସତୀର ଆଖ୍ ଦି’ଟା ଲୁହରେ ପୂରି ଉଠିଲା କାହିଁକି?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀର ସଉତୁଣୀ ପୁଅ ନଟ । ପିଲାଟି ପ୍ରତି ସତୀ ମନରେ ଅହେତୁକ ଶ୍ରଦ୍ଧା ଓ ସ୍ନେହ ଜାଗି ଉଠିଥିଲା । ଏଇ ନଟଠାରୁ ସତୀ ଶୁଣିବାକୁ ପାଇଥିଲା ଯେ ମା’ଛେଉଣ୍ଡ ପିଲାଟି ପ୍ରତି ଦାସୀ ପୋଇଲି ସଉରଭୀ କିପରି ଅତ୍ୟାଚାର ଓ ଅନ୍ୟାୟ କରିଛନ୍ତି । ଏମିତିକି ଏସବୁ ଜାଣି ସୁଦ୍ଧା ତା’ର ବାପା ଅର୍ଥାତ୍ ଖୋଦ୍ ଜମିଦାର ନରହରି ମିଶ୍ରଙ୍କ ନୀରବତା ଆଉ ଉଦାସୀନତା ସତୀ ମନରେ ଗଭୀର ଆଘାତ ଦେଇଥିଲା । ନଟର ଏଇସବୁ କଥା ଶୁଣି ସତୀର ଆଖୁ ଲୁହରେ ପୂରିଉଠିଲା ।

Question 21.
‘ମୋର ଶେଷ ଅବଲମ୍ବନଟିକକ ଏ ଘରୁ ଗଲା’ – ସତୀ କେବେ କାହିଁକି ଏଇ କଥା କହିଥୁଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ଶାଶୂଘରେ କେବଳ ଶାଶୂ ସେବା କରି ଜୀବନ ବିତେଇ ଦେବ ବୋଲି ଭାବିଥିଲା । ତା’ଶାଶୂଙ୍କର ତା’ପ୍ରତି ଥ‌ିବା ଶ୍ରଦ୍ଧା ଓ ବିଶ୍ୱାସ ତାକୁ ସବୁ ଦୁଃଖକୁ ସାମ୍‌ନା କରିବାର ସାହସ ଦେବ ବୋଲି ସେ ଚିନ୍ତାକରିଥିଲା । ମାତ୍ର ସତୀର ଶାଶୂ ତାଙ୍କ ପୁଅ ଅର୍ଥାତ୍ ଜମିଦାର ନରହରି ମିଶ୍ରଙ୍କ ଉପରେ ଅଭିମାନ କରି ପୁରୀ ଚାଲିଯିବାକୁ ବାହାରିଲେ । ସତୀ ସ୍ଵାମୀଙ୍କର ଅତ୍ୟଧ‌ିକ ସୌରଭୀ ଦାସୀପ୍ରୀତିକୁ ସହ୍ୟ କରିନପାରି ସତୀର ଶାଶୂ ଏହି ନିଷ୍ପଭି ନେଇଥିଲେ । ସେ ଘରୁ ଗଲାଦିନ ସତୀ ଭାବିଲା ତା’ର ଶେଷ ଅବଲମ୍ବନ ଟିକକ ଗଲା ।

Question 22.
ମନ୍ଦିରରେ ସେ ଦିନ ସତୀ ଜୀବନରେ କ’ଣ ସବୁ ଘଟିଗଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ନଟର ଜାଆଁଳା ବାଳ ପକାଇବା ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ ସ୍ବାମୀ ଓ ଅନ୍ୟ ଦୁଇ ଦାସୀଙ୍କ ସହ କପିଳେଶ୍ଵର ମନ୍ଦିର ଯାଇଥିଲା । ପୁଷ୍ୟାଭିଷେକ ଯୋଗୁଁ ମନ୍ଦିରରେ ପ୍ରବଳ ଭିଡ଼ ହୋଇଥିଲା ଓ ଏଇ ଭିଡ଼ରେ ସତୀ ଚମ୍ପାମା’ ବୁଢ଼ୀ ଦାସୀର କାନି ଛାଡ଼ି ସେମାନଙ୍କଠାରୁ ଅଲଗା ହୋଇଯାଇଥିଲା । ଅନ୍ୟ ପକ୍ଷରେ ପ୍ରବଳ ଝଡ଼ବର୍ଷା ଆସିବା କାରଣରୁ ତା’ ସ୍ବାମୀ, ସୌରଭୀ ଓ ଚମ୍ପା ଦାସୀ ନଟକୁ ନେଇ ଡଙ୍ଗାରେ ବସି ଫେରିବାକୁ ପ୍ରସ୍ତୁତ ହୋଇଥିଲେ କିନ୍ତୁ ସତୀ ଡଙ୍ଗା ପାଖରେ ପହଞ୍ଚି ପାରିନଥିଲା । ଗଭୀର ଦୁଃଖ ଓ ହତାଶା ଭିତରେ ଥିଲାବେଳେ ସତୀର ସାହାରା ହେବାକୁ ସେଠାରେ ନାଥନନା ପହଞ୍ଚିଯାଇଥିଲେ । ନାଥନନାଙ୍କୁ ଦେଖୁ ସତୀ ପିଣ୍ଡରେ ପ୍ରାଣ ପଶିଲା ।

Question 23.
‘ଇଏ ଆଉ ମୋ ସ୍ବାମୀ’ – ଏକଥା କିଏ କାହିଁକି ଭାବିଛି?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ଅସହାୟ ଅବସ୍ଥାରେ କପିଳେଶ୍ଵର ମନ୍ଦିରରେ ନାଥନନାଙ୍କୁ ଭେଟିଛି । ତା’ର ଅନ୍ତର୍ମନରେ ସେ ସ୍ଵାମୀ ଜମିଦାର ନରହରି ମିଶ୍ର ଓ ନାଥନନାଙ୍କୁ ତୁଳନା କରିଛି । ଉଭୟ ପୁରୁଷ ଭିତରେ ଥିବା ପାର୍ଥକ୍ୟକୁ ସେ ଅନୁଭବ କରିଛି ସହଜରେ । ତେଣୁ ଏହି ତୁଳନାସ୍ଵରୂପ ସତୀ କହିଛି ଇଏ ଅର୍ଥାତ୍ ନାଥନନା ଓ ମୋ ସ୍ଵାମୀ ଅର୍ଥାତ୍ ନରହରି ମିଶ୍ର ।

Question 24.
ସତୀ ଓଦା ଭୂଇଁରେ ଲଥ୍କରି କାହିଁକି ଶୋଇପଡ଼ିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ କପିଳେଶ୍ଵର ମନ୍ଦିରରେ ତା’ସ୍ଵାମୀ ଓ ଅନ୍ୟମାନଙ୍କଠାରୁ ଅଲଗା ହୋଇ ଅସହାୟ ହୋଇପଡ଼ିଥିଲାବେଳେ ନାଥନନା ହିଁ ତା’ର ସାହା ଭରସା ସାଜିଥିଲେ । ଲାଞ୍ଚଦେଇ ସାହୁ ଦୋକାନୀରେ ରାତି କଟେଇବାର ବ୍ୟବସ୍ଥା କରିଥିଲେ । ସେଇ ଘରେ ସତୀକୁ ଶୋଇବାକୁ କହି ନାଥନନା ଥଣ୍ଡାରେ ବାହାରେ ଶୋଇବାକୁ ଚାଲିଗଲେ । ସତୀ ଚାହୁଁଥିଲା ନାଥନନା ବରଂ ଭିତରେ ଶୁଅନ୍ତୁ ସେ ବାହାରେ ଶୋଇପଡ଼ିବ । ତେଣୁ ଅଭିମାନରେ ବିଛଣାକୁ ଫୋପାଡ଼ି ଦେଇ ସେ ତଳେ ଲଥକରି ଶୋଇପଡ଼ିଲା ।

Question 25.
ସତୀକୁ ତା’ ସ୍ୱାମୀ କାହିଁକି କ’ଣ କହି ସ୍ଵୀକାର କରି ନଥିଲେ?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
କପିଳେଶ୍ଵର ମନ୍ଦିରରେ ସତୀ ଅଲଗା ହୋଇଯିବାରୁ ତା’ ସ୍ଵାମୀ ତାକୁ ଛାଡ଼ି ପଳେଇ ଆସିଥିଲେ । ନାଥନନା ସହ ସେ ତା’ ପରଦିନ ଶଗଡ଼ଗାଡ଼ିରେ ମୁକୁନ୍ଦପୁର ତା’ଶାଶୂଘରକୁ ଫେରିଥିଲା । ହେଲେ ଗୋଟିଏ ରାତି ଜାଣିଶୁଣି କୋଉ ପର ପୁରୁଷ ନାଗର ସହ ବିତେଇଛି ବୋଲି କହି ସତୀର ସ୍ଵାମୀ ତାକୁ ଗ୍ରହଣ କରିବାକୁ ମନା କରିଦେଲେ ଏବଂ ବହୁ ଅପମାନଜନକ କଥା କହି ତାକୁ ସହରର ବେଶ୍ୟା ପଡ଼ାରେ ଛାଡ଼ିଦେବାକୁ ନାଥନନାକୁ କହିଥିଲେ ।

Question 26.
ପୁରୁଷ ଜାତି ଓ ନାରୀ ଜାତି ଭିତରେ ପ୍ରଭେଦକୁ ନେଇ ସତୀ କ’ଣ ଭାବିଥିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ଯେତେବେଳେ ସ୍ଵାମୀଙ୍କଦ୍ବାରା ଅପମାନିତ ହୋଇ ନାଥନନାଙ୍କ ସହ କଟକ ଯାଇଛି ସେତେବେଳେ ଭାବିଛି ଯେ ଏଇ ପୁରୁଷ ଜାତିଟା ସମାଜରେ ମଥା ହୋଇ ଅନେକ ଭୁଲ୍ କରୁଛି ଅଥଚ କେହି ପାଟି ଫିଟାଇବାକୁ ନାହିଁ । ହେଲେ ନାରୀ ଜାତି, ସବୁଠୁ ହତଭାଗ୍ୟ ନିଉଛୁଣା ଏଇ ନାରୀ ଜାତି । ଯୌବନର ଶିଉଳିପରା ବାଟରେ ଚାଲିଲାବେଳେ ଏ ଜାତିର ଟିକେ ଗୋଡ଼ ଥରିବାକୁ ଯେପରି ସମାଜ ଜଗି ବସିଥାଏ, ହଜାରେ ଆଖ୍ ମେଲି ସବୁବେଳେ ।

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Question 27.
କଟକରେ ପହଞ୍ଚିଲାପରେ ସତୀ ମନରେ ନାଥନନାଙ୍କ ପ୍ରତି ରାଗ ଆସିଛି କାହିଁକି?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀକୁ ନେଇ ନାଥନନା କଟକରେ ଏକ ଭଡ଼ାଘରେ ରଖୁଛନ୍ତି । ସତୀ ମନରେ କିନ୍ତୁ ଦେଖାଦେଇଛି ଭାବାନ୍ତର । ସେ ନାଥନନାଙ୍କ ବ୍ୟବହାର ତଥା ଆଚରଣକୁ ନେଇ ଦ୍ବନ୍ଦ୍ବରେ ପଡ଼ିଛି । ସ୍ଵାମୀଙ୍କ ଅସ୍ବୀକାର ସମୟରେ ନାଥନନା କାହିଁକି ତାଙ୍କୁ ହାତଗୋଡ଼ ଧରି ଅନୁରୋଧ କଲେ ନାହିଁ, କାହିଁକି କ୍ଷମା ପ୍ରାର୍ଥନା କରି ସତୀକୁ ତାଙ୍କ ପାଖରେ ଛାଡ଼ିଲେ ନାହିଁ ଏସବୁ ନେଇ ପ୍ରଶ୍ନବାଚୀ ସୃଷ୍ଟି ହୋଇଛି ସତୀ ମନରେ । ତେଣୁ ସେ ନାଥନନାଙ୍କୁ ସନ୍ଦେହ କରି ତାଙ୍କ ଉପରେ ରାଗିଛି ।

Question 28.
ଚାକିରି ନପାଇବା ପୂର୍ବରୁ ଅଚୁତି କ’ଣ କ’ଣ କରୁଥିଲା ।
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ଅଚ୍ୟୁତି ମହାନ୍ତି, ନାଥନନାଙ୍କ ଅନୁଗ୍ରହରୁ ଚାଟଶାଳୀରେ ମାଷ୍ଟର ଚାକିରି ପାଇଥିଲା, ୟାପୂର୍ବରୁ ପାଞ୍ଚବର୍ଷ ଲାଗଲାଗ୍ ବିଦ୍ୟାଦେବୀଙ୍କ ସହ ରୀତିମତ ଯୁଦ୍ଧକରି ଯେତେବେଳେ ନିଜ ଇଲାକାଟାକୁ ଅପର ପ୍ରାଇମେରୀ ସୀମାର ବେଶି ଦୂରକୁ ବଢ଼େଇ ପାରିଲେ ନାହିଁ, ସେତେବେଳେ ବିରକ୍ତ ହୋଇ ପଢ଼ାଛାଡ଼ି ଗାଁ ଭିତରେ କୋଉଠି ତ୍ରିନାଥମେଳା ହେଲା, ଚୌଧୁରୀ ପୋଖରୀରେ କୋଉଦିନ ଜାଲ ପଡ଼ିଲା, କୋଉଦିନ ଖାସି କଟାହେଲା ଏଇ ଖବରନେଇ ବୁଲୁଥିଲେ ।

Question 29.
ସଇତା କାହିଁତ ଗୋଟେ ପଣେ ଥରିବାକୁ ଲାଗିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସଇତା ସତୀ ଘରର ପୁରୁଣା ବୁଢ଼ା ଚାକର । ସତୀର ବାପା ଅନାଦି ମିଶ୍ରଙ୍କ ଲୁଣ ଖାଇ ସେ ଜୀବନ ଧାରଣ କରିଥିଲା । ସତୀକୁ ପିଲାଟି ଦିନରୁ ଚିହ୍ନିଥିଲା । ସତୀ ତା’ର ସ୍ନେହର ବୁଢ଼ୀଡାକରେ ବିହ୍ବଳ ହୋଇଉଠୁଥିଲା । ଏଇ ସତୀ ନାଆଁରେ ଟାଉଟର ଚୋର ଅଚ୍ୟୁତି ମହାନ୍ତି ଗାଁ ଭାଗବତ ଟୁଙ୍ଗୀରେ ଯେତେବେଳେ ଅନେକ କଟୁ କଥା କହିଥିଲା, ସେସବୁକୁ ସେ ବିଶ୍ଵାସ କରିପାରି ନଥିଲା । ସେ ଗାଁବାଲାଙ୍କ କଥାରେ ସତୀ ପରି ଝିଅର ଅବମାନନା ହୋଇଛି ଭାବି ଉତ୍‌କ୍ଷିପ୍ତ ହୋଇଉଠିଥିଲା । ତେଣୁ ସେ ରାଗରେ ଗୋଟେ ପଣେ ଥରିବାକୁ ଲାଗିଲା ।

Question 30.
ସତୀ ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ରଙ୍କ ଘରକୁ କାହିଁକି ଯାଇଥିଲା?
Answer:
ଉପନ୍ୟାସ – ମଲାଜହ୍ନ
ଔପନ୍ୟାସିକ – ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ
ସତୀ ଅନୁଭବ କଲା ଯେ ସେ ନାଥନନାଙ୍କ ସହ ରହିଲେ ନାଥନନା ବହୁତ ହଇରାଣ ହେବେ, ଅନେକ ଅସୁବିଧାରେ ପଡ଼ିବେ । ତେଣୁ ସେ ଏହାର କିଛି ସମାଧାନ କରିବାକୁ ଇଚ୍ଛା କରିଥିଲା । ବ୍ରାହ୍ମଣମାନଙ୍କ ମୁଖ୍ୟ ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ରଙ୍କ କହିବାନୁସାରେ ସତୀକୁ ଯଦି ନାଥନନା ଛାଡ଼ିଦେବେ ତେବେ ପଞ୍ଚଗବ୍ୟ କରି ନାଥନନାଙ୍କୁ ପୁଣି ଜାତିରେ ନିଆଯିବ । ତେଣୁ ନାଥନନାଙ୍କ ତରଫରୁ କ୍ଷମାପ୍ରାର୍ଥନା କରି ସତୀ ନାଥନନାଙ୍କ ଜୀବନରୁ ପଳେଇବା ପୂର୍ବରୁ ସବୁ ଠିକ୍ କରିଦେବା ପାଇଁ ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ରଙ୍କ ପାଖକୁ ଯାଇଥିଲା ।

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ଔପନ୍ୟାସିକଙ୍କ ପରିଚୟ :
ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସ ସାହିତ୍ୟ କ୍ଷେତ୍ରରେ ପରିମାଣାତ୍ମକ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ନୁହେଁ, ବରଂ ଗୁଣାତ୍ମକ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ଯେଉଁ କେତେଜଣ ବିଶିଷ୍ଟ ଔପନ୍ୟାସିକ ଖ୍ୟାତି ଅର୍ଜନ କରିଛନ୍ତି, ସେମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ଜଣେ ଅନନ୍ୟ ପ୍ରତିଭା ଥିଲେ ଉପେନ୍ଦ୍ର କୁମାର ଦାସ । କଟକ ଜିଲ୍ଲାର କୁମୁଡ଼ା ଜୟପୁରର ଏକ ବିଶିଷ୍ଟ ଜମିଦାର ପରିବାରରେ ୧୯୦୧ ମସିହା ଫେବୃୟାରୀ ୨୧ ତାରିଖରେ ଏହି ମହାନ୍ ପ୍ରତିଭାଙ୍କ ଜନ୍ମ ହୋଇଥିଲା ।

ରାୟବାହାଦୁର ରାଜକିଶୋର ଦାସଙ୍କ ଔରସରୁ ଜନ୍ମଗ୍ରହଣ କରିଥିବା ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଥିଲେ ତୃତୀୟ ପୁତ୍ର । ତେବେ ତାଙ୍କର ପିଉସା ଉତ୍କଳ ଗୌରବ ମଧୁସୂଦନ ଦାସଙ୍କ ସାନଭାଇ ଗୋପାଳ ବଲ୍ଲଭ ଦାସ ଉପେନ୍ଦ୍ରଙ୍କୁ ପୋଷ୍ୟପୁତ୍ରଭାବରେ ଗ୍ରହଣ କରିଥିଲେ । ପିଲାଟି ଦିନରୁ ଖୁବ୍ ପ୍ରାଚୁର୍ଯ୍ୟ ଭିତରେ ସେ କାଳ କାଟିଥିଲେ । ଶିକ୍ଷାକ୍ଷେତ୍ରରେ ବି ଜଣେ ସଫଳ ଶିକ୍ଷାବିତ୍ ଥିଲେ ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ । ଛୋଟବେଳୁ ଭଲ ପଢ଼ୁଥ‌ିବା ଏହି ପ୍ରତିଭା ରେଭେନ୍ସା ମହାବିଦ୍ୟାଳୟରେ ସ୍ନାତକୋତ୍ତର ପଢ଼ିବା ପାଇଁ ମଧ୍ୟ ଯାଇଥିଲେ ଏବଂ ଏଇଠାରେ ହିଁ ତାଙ୍କ ଜୀବନରେ ଆସିଥୁଲା ଅନ୍ୟ ଏକ ମୋଡ଼ ।

ଜାତୀୟତାବାଦୀ ଭାବଧାରାରେ ସେ ଅନୁପ୍ରାଣିତ ହୋଇଥିଲେ । ମାତୃଭୂମିର ପରାଧୀନତା ତାଙ୍କୁ ବ୍ୟତିବ୍ୟସ୍ତ କରିଥିଲା । ଫଳତଃ ଗୋପବନ୍ଧୁଙ୍କ ନେତୃତ୍ୱରେ ଓଡ଼ିଶା ମାଟିରେ ଯେଉଁ ଅସହଯୋଗ ଆନ୍ଦୋଳନ ଚାଲିଥିଲା ସେ ନିର୍ଦ୍ଦରେ ସେଇ ଆନ୍ଦୋଳନରେ ଯୋଗ ଦେଇଥିଲେ । ସେତେବେଳକୁ ଉପେନ୍ଦ୍ର ରେଭେନ୍ସାର ଛାତ୍ର । ଫଳତଃ ଏହି ମେଧାବୀ ଛାତ୍ରଟିର ପଢ଼ାଜୀବନ ଆନ୍ଦୋଳନ ପାଇଁ ବ୍ୟାହତ ହୋଇଥିଲା । ପାଠପଢ଼ାରୁ ସିନା ଅବ୍ୟାହତି ନେଇଥିଲେ; ମାତ୍ର ଦେଶ ମାତୃକାର ସେବା, ନିଜ ମାଟିକୁ ପରାଧୀନତାରୁ ମୁକ୍ତି ଦେବାର ଇଚ୍ଛାରେ କିନ୍ତୁ ପୂର୍ଣ୍ଣଚ୍ଛେଦ ପଡ଼ିନଥିଲା । ଅଧିକରୁ ଅଧିକ ସକ୍ରିୟ ସେ ହୋଇଥିଲେ ସ୍ଵାଧୀନତାର ସଂଗ୍ରାମରେ ।

ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ ଏକାଧାରରେ ଥିଲେ ଜଣେ ଔପନ୍ୟାସିକ, ଗାଳ୍ପିକ, କବି, ଶିଶୁ ସାହିତ୍ୟିକ, ସୁଦକ୍ଷ ଚିତ୍ରକର ଏବଂ ସ୍ଵାଧୀନତା ସଂଗ୍ରାମୀ । ତେବେ ଜୀବନକାଳ ମଧ୍ୟରେ ମାତ୍ର ଗୋଟିଏ ଉପନ୍ୟାସ ରଚନା କରି ବି ଜଣେ ସଫଳ ଔପନ୍ୟାସିକ ମୁକୁଟ ପିନ୍ଧୁଥ‌ିବା ଏହି ମହାନ୍ ଔପନ୍ୟାସିକ ଶିଶୁ ସାହିତ୍ୟିକ ଭାବରେ ମଧ୍ୟ ଅନେକ ସୁଖ୍ୟାତି ଲାଭ କରିଛନ୍ତି ।

ସେ କେବଳ ପରାଧୀନତାରେ ବିବ୍ରତ ହୋଇ ସ୍ଵାଧୀନତା ସଂଗ୍ରାମରେ ଯୋଗ ଦେଇନଥିଲେ, ସମାଜର ଯନ୍ତ୍ରଣାକ୍ଳିଷ୍ଟ ଚରିତ୍ରମାନଙ୍କ ଅନ୍ତର୍ବେଦନାରେ ମଧ୍ୟ ଖୁବ୍ ମର୍ମାହତ ହୋଇପଡୁଥିଲେ; ଯାହାର ବାସ୍ତବ ରୂପ ତାଙ୍କ କୃତିଗୁଡ଼ିକରେ ଫୁଟି ଉଠୁଥିଲା । ଜଣେ ଦରଦୀ ମଣିଷ ପରି ଅନ୍ୟର ଦୁଃଖକଷ୍ଟକୁ ନିଜ ଅନ୍ତରରେ ଅନୁଭବି ପାରୁଥିଲେ । ସମାଜରେ ଦୁର୍ବଳମାନଙ୍କୁ, ଦରିଦ୍ର ଜନତାଙ୍କୁ ଯେକୌଣସି ପ୍ରକାରରେ ସାହାଯ୍ୟ କରିବାକୁ ବ୍ୟସ୍ତ ହୋଇପଡୁଥିଲେ ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ, ଯାହା ତାଙ୍କର ଅନ୍ୟତମ ଚମତ୍କାର ଗୁଣ ଥିଲା ।

ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ ଗୋଟିଏ ଧନୀ ପରିବାରରେ ଜନ୍ମଗ୍ରହଣ କରିଥିଲେ ଏବଂ ବିଳାସ ବ୍ୟସନରେ ତାଙ୍କ କୈଶୋର କଟିଥୁଲା, ଖାଲି ସେତିକି ନୁହେଁ ଜଣେ ମେଧାବୀ ଛାତ୍ର ଭାବରେ ମଧ୍ୟ ଖୁବ୍ ପ୍ରତିଷ୍ଠା ପାଇଥିଲେ, ଯଦି ଚାହିଁଥା’ନ୍ତେ ଖୁବ୍ ସୁନ୍ଦର ଭାବେ ଉଚ୍ଚପଦସ୍ଥ କର୍ମଚାରୀ ରୂପେ ନିଯୁକ୍ତ ହୋଇ ସୁଖରେ ଜୀବନ ବିତେଇ ପାରିଥା’ନ୍ତେ; ମାତ୍ର ସେ ସୁଖମୟ ଜୀବନ ଓ ଅଳ୍ପ ଦିନର ଏଇ ଆନନ୍ଦ ଅପେକ୍ଷା ଦେଶସେବା, ଦରିଦ୍ର ଜନତାଙ୍କ ସାହାଯ୍ୟ ସହଯୋଗ ଓ ସାହିତ୍ୟ ସାଧନାକୁ ନିଜ ଜୀବନର ବ୍ରତଭାବରେ ଗ୍ରହଣ କରିନେଇଥିଲେ । ଜଣେ ବିଳାସରେ ବଢ଼ି ଆସୁଥୁବା ଚରିତ୍ରର ଏଭଳି ପଦକ୍ଷେପ ଏତେ ସହଜ ନୁହେଁ । ନିଜର ବ୍ୟକ୍ତିଗତ ସୁଖ ସ୍ଵାଚ୍ଛନ୍ଦ୍ୟକୁ ବଳି ଦେଇ ଅନ୍ୟଲାଗି ନିୟୋଜିତ ହେବାର ମହତପଣିଆ ଗୋଟେ କମ୍ ବଡ଼ କଥା ନୁହେଁ । ତେଣୁ ଏହି ଦୃଷ୍ଟିରୁ ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋର ଦାସ ଅଜସ୍ର ପ୍ରଶଂସାର ପାତ୍ର ନିଶ୍ଚୟ । ଆଭିଜାତ୍ୟ ଜୀବନଶୈଳୀ ଭିତରୁ ବାହାରି ସାଧାରଣ ଜନତାଙ୍କ ପାଇଁ ଚିନ୍ତାକରିବା ହିଁ ତାଙ୍କର ଅସାଧାରଣତା ।

ଜନସେବକ, ଦେଶସେବକ ଓ ମାତୃଭାଷାର ପୂଜକ ଉପେନ୍ଦ୍ରକିଶୋର ନିଜ ସାହିତ୍ୟ ସାଧନାପାଇଁ ମଧ୍ଯ ଓଡ଼ିଆ ପାଠକ ପାଖରେ ଚିର ଅମର ରହିବେ, ଏଥରେ ଦ୍ବିମତ ନାହିଁ । ତାଙ୍କର ବହୁଚର୍ଚ୍ଚିତ ଉପନ୍ୟାସ ‘ମଲାଜହ୍ନ’ ତାଙ୍କୁ ଆଜି ବି ପାଠକ ପାଖରେ ପରିଚିତ କରାଇବାରେ ଖୁବ୍ ସଫଳ ହେଉଛି ।

ଜଣେ ଉଚ୍ଚକୋଟୀର ଶିଶୁ ସାହିତ୍ୟିକ ଭାବରେ ସେ ରଚନା କରିଯାଇଛନ୍ତି ‘ଆଲ୍ଲାଉଦ୍ଦିନ୍’, ‘କାଉଁରୀ ଦେଶର ଗୋରୀ’, ‘ଭୂତକୋଠି’, ‘ଡାଆଣୀ ଆଲୁଅ’, ‘ବାଳୁଆ ବଳିଆ’ ପ୍ରଭୃତି ଶିଶୁ ମନୋରଞ୍ଜନଧର୍ମୀ ଗଳ୍ପମାନ । ମୁଷ୍ଟିମେୟ ସାହିତ୍ୟ ସୃଷ୍ଟି ମଧ୍ୟରେ ସେ ଯେପରି ଲୋକପ୍ରିୟତା ହାସଲ କରିଥିଲେ ଅନ୍ୟ ସାହିତ୍ୟିକମାନଙ୍କ ପାଖରେ ତାହା ଖୁବ୍ କମ୍ ଦେଖୁବାକୁ ମିଳେ ।

ମାତୃଭୂମି ଓ ମାତୃଭାଷାର ସେବାରେ ନିଜକୁ ନିୟୋଜିତ କରି ଦେଇଥ‌ିବା ଏଇ ମହାନ୍ ପ୍ରତିଭା ‘ବାରୁଣୀ’ ନାମକ ଏକ ପତ୍ରିକାର ପରିଚାଳନା ଦାୟିତ୍ଵରେ ମଧ୍ୟ ଥିଲେ ଏବଂ ଏହା ସହିତ ତୂଳୀ ଧରି ନିଜ ଅନ୍ତର୍ଭାବନାର ଚିତ୍ର ଆଙ୍କିବାରେ ତାଙ୍କର ଥିଲା ଅହେତୁକ ଆନ୍ତରିକତା । ତେଣୁ ସେ ଯେ କେବଳ ଜଣେ ନିଷ୍ଠାପର ଦେଶସେବକ ଓ ସୁଦକ୍ଷ ସାହିତ୍ୟ ସାଧକ ଥିଲେ ତାହା ନୁହେଁ, ବରଂ ଜଣେ ଚିତ୍ରକର ଭାବରେ ନିପୁଣ କଳାକାର ଥିଲେ ।

‘ଅତୁଠ ବଣିକ’ ଶୀର୍ଷକ ଗୋଟିଏ ଉପନ୍ୟାସ ଉପେନ୍ଦ୍ର ରଚନା କରିଥିବାର ଚର୍ଚ୍ଚା ହୁଏ । ହେଲେ ଏଯାବତ୍ ଏ ସମ୍ବନ୍ଧରେ କୌଣସି ଯୁକ୍ତିଯୁକ୍ତ ତଥ୍ୟପ୍ରମାଣ ମିଳିପାରି ନାହିଁ । ସମ୍ଭବତଃ କୌଣସି ନା କୌଣସି କାରଣରୁ ଏହା ଲେଖାଯାଇ ନାହିଁ କିମ୍ବା ପ୍ରକାଶ ପାଇପାରି ନାହିଁ । ସ୍ଵଳ୍ପ ସୃଷ୍ଟି ପାଇଁ ହୁଏତ ଲୋକ ତାଙ୍କୁ ପାସୋରି ପକାଇ ପାରନ୍ତି, ମାତ୍ର ସେଇ ସୃଷ୍ଟିଗୁଡ଼ିକର ଗୁଣାତ୍ମକ ମୂଲ୍ୟ ତାଙ୍କୁ ଜଣେ ସଫଳ ସ୍ରଷ୍ଟାର ମର୍ଯ୍ୟାଦା ଦେଉଥ‌ିବ । ବିଳାସ ବ୍ୟସନଠାରୁ ଦୂରରେ ରହି ଏକ ସାଧାରଣ ଜୀବନକୁ ଆପଣେଇ ଥ‌ିବା ଏହି ସାହିତ୍ୟସାଧକ ୧୯୭୨ ମସିହା ଏପ୍ରିଲ ମାସ ୨୦ ତାରିଖରେ କଟକ ତୁଳସୀପୁରସ୍ଥିତ ବାସଭବନରେ ସକଳ କୃତିକୁ ପଛରେ ଛାଡ଼ି ଫେରିଯାଇଥିଲେ ଆରପାରିକୁ ।

ଉପନ୍ୟାସର ସାରକଥା :
‘ମଲାଜହ୍ନ’ ଏକ ସାର୍ଥକ ଉପନ୍ୟାସ । ଉପେନ୍ଦ୍ର କିଶୋରଙ୍କ ଏଇ ଗୋଟିଏ ସୃଷ୍ଟି ହିଁ ତାଙ୍କ ଲେଖକ ଜୀବନର ଅନନ୍ୟ । ସାର୍ଥକତା । ଏକ ସାମାଜିକ କଥାବସ୍ତୁରେ ସୁନ୍ଦର ଚରିତ୍ର ଚିତ୍ରଣ ପାଠକକୁ ବାନ୍ଧିରଖୁଛି ଆଉ ରଖୁବ ମଧ୍ୟ ।

ଗୋଟିଏ ଛୋଟିଆ ଗାଁର ବ୍ରାହ୍ମଣ ଶାସନରେ ଅନାଦି ମିଶ୍ରଙ୍କ ଘର । ତାଙ୍କର ଏକମାତ୍ର ଅଲିଅଳୀ କନ୍ୟାରତନ ସତ୍ୟଭାମା ତଥା ସତୀ । ପିତାମାତାଙ୍କ ସ୍ନେହ ଶ୍ରଦ୍ଧାରେ ପିଲାଟି ଦିନରୁ ସେ ଅଖ୍ୟାତ ପଲ୍ଲୀକୋଳରେ ଖୁବ୍ ଚଳଚଞ୍ଚଳ ଆଉ ମନଲୋଭା ସୌନ୍ଦର୍ଯ୍ୟର ଅଧିକାରଣୀ ସତୀ । ନିଜ ସୁନ୍ଦରତା ନେଇ ସତେ ଯେମିତି ଗୋଟିଏ ପାହାଡ଼ୀ ଝରଣା ପରି କଳକଳ ଝଳଝଳ ଅବିରତ । ସେଇ ସତୀ ଓ ତା’ର ଜୀବନର ଦୁଃଖ ଦରଦଭରା ଘଟଣାବଳୀର ଏକ ମାର୍ମିକ ଶବ୍ଦ ଖେଳ ହିଁ ଉପନ୍ୟାସ ।

ଦୁଷ୍ଟପଣରେ ପାଞ୍ଚଘର ନାଁ ପକାଉଥବା ଟିକେ ଗେହ୍ଲା ଏଇ ସତୀ ବାପା ମା’ଙ୍କ ଶାସନର ଆଢୁଆଳରେ ଗାଁ ଯାକ ବୁଲେ । ଏଗାର (୧୧) ବର୍ଷ ବୟସବେଳକୁ ତା’ ବାପା ମା’ ତାକୁ ବିବାହ ଦେଇ କନ୍ୟାଦାୟରୁ ଖୁବ୍ ଜଲ୍‌ଦି ମୁକ୍ତି ପାଇବାପାଇଁ ବ୍ୟସ୍ତ ହୋଇପଡ଼ିଛନ୍ତି । ତା’ର ଟଙ୍ଗଟଙ୍ଗ ହୋଇ ଗାଁ ଦାଣ୍ଡରେ ବୁଲିବା ବାପାମା’ଙ୍କୁ ଭଲ ଲାଗିନାହିଁ । ତେଣୁ ଏଥରେ ଲାଗିଛି ପ୍ରତିବନ୍ଧକ । ସବୁକଥାରେ ମାର୍ଜିତ ଭାବ ଆଣିବାପାଇଁ ଚାଲିଛି ଆକଟ ଓ ପରାମର୍ଶ ପ୍ରଦାନ । ଫଳରେ ଉପନ୍ୟାସର ମୁଖ୍ୟ ଚରିତ୍ର ତଥା ନାୟିକା ସତ୍ୟଭାମା ଓରଫ୍ ସତୀ ଜୀବନରେ ଆସିଛି ପରିବର୍ତ୍ତନ ।

ଅନ୍ୟପକ୍ଷରେ ସେଇ କ୍ଷୁଦ୍ର ଗାଁର ଅନ୍ଧାରୁଆ ଅପରିଚିତ ସ୍ଥାନରୁ ପରିଚୟର ପ୍ରୟାସରେ ଆଲୋକର ଅନୁସନ୍ଧାନ ନିମନ୍ତେ ସହରକୁ ପଢ଼ିବାକୁ ଯାଇଛି ଲୋକନାଥ ତ୍ରିପାଠୀ ଓରଫ୍ ସତୀର ଅତି ପ୍ରିୟ ନାଥନନା । ପିଲାଟି ଦିନରୁ ସତୀ ଓ ନାଥନନା ଭିତରେ ଅବାରିତ ସମ୍ପର୍କ । ମୁହଁ ଖୋଲି ନ କହିଲେ ବି ଅନ୍ତର ଭିତରେ ଉଭୟ ଉଭୟଙ୍କୁ ମନଭରି ଭଲ ପାଇଛନ୍ତି । ପରସ୍ପର ନିବିଡ଼ ବନ୍ଧନରେ ଆବଦ୍ଧ ହୋଇ ପଡ଼ିଛନ୍ତି ଅନ୍ତର୍ମନରେ ।

ସତ୍ୟଭାମାର ଅନାବିଳ ସ୍ନେହ ଆଦରର ବନ୍ଧୁ ନାଥନନା ତଥା ଲୋକନାଥଙ୍କର ପ୍ରାଣର ପିତୁଳା ସତୀ । ସତୀର ବଉଳ ନିଶିର ବଡ଼ଭାଇ ନାଥନନା ପ୍ରତି ସତୀ ମନରେ ଅହେତୁକ ଦୁର୍ବଳତାକୁ ଔପନ୍ୟାସିକ ଖୁବ୍ ସୁନ୍ଦର ଭାବରେ ଉପସ୍ଥାପିତ କରିଛନ୍ତି । ଅନାଦି ମିଶ୍ର ସତୀର ବାହାଘର ଏକ ରୁଗ୍‌ଣ ବୃଦ୍ଧ ଜମିଦାର ସହିତ କରିଦେବାର ସ୍ଥିର କରିଛନ୍ତି । ନାଥନନା ଅନାଦି ମିଶ୍ରଙ୍କ ନିଷ୍ପତ୍ତିର ପ୍ରତିବାଦ କରିଛି । ତା’ର ସବୁ ଯୁକ୍ତି ସତୀ ବାପାଙ୍କ ପାଖରେ ନିଷ୍ଫଳ ହୋଇଛି ଓ ସତୀ ସେଇ ବୃଦ୍ଧ ଜମିଦାରଙ୍କୁ ବିବାହ କରିବାର ସ୍ଥିର ହୋଇଛି ।

ସତୀ ଜୀବନରେ ଆସିଛି ଦୁଃଖ ଓ ଦୁର୍ଦ୍ଦଶାର ଦିନ । ସତୀ ବୋଉଙ୍କର ନୀରବ ପ୍ରତିବାଦ ତା’ର ପ୍ରିୟ ନାଥନନାଙ୍କ ଉଚ୍ଚାରିତ ଯୁକ୍ତିଧର୍ମୀ ପ୍ରତିବାଦ ଅସଫଳ ହୋଇଛି ଏବଂ ସତୀର ବିବାହ ସେଇ ଦରବୁଢ଼ା କଳା ବସନ୍ତମୁହାଁ ପ୍ରଥମ ପତ୍ନୀହରା ଜମିଦାର ନରହରି ମିଶ୍ରଙ୍କ ସହ ହୋଇଛି । ଜମିଦାର ତା’ର ପ୍ରଥମ ପତ୍ନୀକୁ ହରାଇଛି । ପ୍ରଥମ ପତ୍ନୀର ଗୋଟିଏ ପୁଅ ।

ଜମିଦାର ଘରକୁ ବୋହୂ ହୋଇ ଯାଇଥିବା ସତୀ କିନ୍ତୁ ସେଠାରେ ଖୁସି ହୋଇପାରି ନାହିଁ । ଜମିଦାରଙ୍କ ପରିବାର ସହ ସେ ନିଜକୁ ମିଶାଇ ପାରିନି । ତା’ ଆଖ୍ୟାରେ ଧରାପଡ଼ିଛି ତା’ର ଦରବୁଢ଼ା ଜମିଦାର ସ୍ବାମୀର ଦାସୀ ସୌରଭୀ ସହ ଥିବା ଅନୈତିକ ସମ୍ପର୍କ । ଏମିତି ହୋଇଛି ଯେ ସତୀ ତା’ସ୍ୱାମୀର ପତ୍ନୀତ୍ବକୁ ସ୍ଵୀକାର କରିବାକୁ ଇଚ୍ଛା କରିନାହିଁ । ଯେଉଁଥ୍ପାଇଁ ତାକୁ ଖୁବ୍ ମାନସିକ ତଥା ଶାରୀରିକ ନିର୍ଯାତନା ମିଳିଛି । ସତୀର ମନ ଘୃଣାରେ ଭରିଉଠିଛି । ନିଜ ଭାଗ୍ୟକୁ ନିନ୍ଦାକରି ସତୀ ନାଥନନା କଥା ମନେ ପକାଇଛି ।

ପିଲାଟି ଦିନରୁ ମୁକ୍ତ ଆକାଶର ବିହଙ୍ଗ ପରି ଉଡ଼ି ବୁଲୁଥିବା କିଶୋରୀ ସତୀ ସ୍ଵାମୀ ସଂସାର, ଦାସୀମାନଙ୍କ ଦୌରାତ୍ମ୍ୟର ପଞ୍ଜୁରୀ ଭିତରେ ଅଣନିଃଶ୍ୱାସୀ ହୋଇପଡ଼ିଛି । ସେଇ ସଂସାର ଭିତରୁ ମୁକ୍ତି ପାଇବା ନିମନ୍ତେ ବ୍ୟତିବ୍ୟସ୍ତ ହୋଇଉଠିଛି । ସତୀ ସେଇ ସ୍ଵାମୀ ସଂସାରରେ ତା’ ଦେବୀପ୍ରତିମା ଶାଶୁମା’ ଓ ସଉତୁଣୀର ପୁଅ ନଟ ପ୍ରତି ଆସକ୍ତ ହୋଇ ସେମାନଙ୍କ ପାଇଁ ସବୁ ଦୁଃଖକଷ୍ଟ ମଥାପାତି ସହ୍ୟ କରିନେବାର ପଣ କରିଥିଲେ ବି, ତା’ ମନ କୋଉଠି ନା କୋଉଠି ସୁଯୋଗ ଖୋଜିଛି ମୁକ୍ତି ପାଇଁ ।

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 3 ମଲାଜହ୍ନ Question Answer

ଘଟଣାକ୍ରମେ ଏମିତି ସୁଯୋଗ ଜୁଟିଛି ସତୀ ଭାଗ୍ୟରେ । ଜମିଦାର ନିଜ ପୁତ୍ରସନ୍ତାନ ନଟର ମାନସିକ ପୂରଣ ନିମନ୍ତେ ସପରିବାର କପିଳେଶ୍ଵର ମନ୍ଦିରକୁ ଯାଇଛନ୍ତି । ସେଦିନ ପୁଷ୍ୟାଭିଷେକ କାରଣରୁ ପ୍ରବଳ ଭିଡ଼ ହୋଇଛି । ମାନସିକ କର୍ମ ଓ ଦିଅଁ ଦର୍ଶନାଦି ସମସ୍ତ କାର୍ଯ୍ୟ ସରିଆସିଲାବେଳକୁ ସେଇ ଜନଗହଳିରେ ସତୀ ଅନ୍ୟମାନଙ୍କ ପାଖରୁ ଅଲଗା ହୋଇଯାଇଛି । ଆସନ୍ନ ପ୍ରଳୟଙ୍କରୀ ବର୍ଷା ଓ ପବନରୁ ରକ୍ଷା ପାଇବା ନିମନ୍ତେ ଜମିଦାର, ନଟ, ଦାସୀ ସୌରଭୀ ଓ ଅନ୍ୟମାନେ ତରତର ହୋଇ କପିଳେଶ୍ଵର ମନ୍ଦିରରୁ ବାହାରି ନଦୀପାର ହୋଇଯାଇଛନ୍ତି । ସତୀ କିନ୍ତୁ ଅନୁସରଣ କରି ବିଫଳ ହୋଇ ଫେରିଛି ।

ଏହି ମନ୍ଦିରରେ ହିଁ ସତୀ ଜୀବନରେ ଆସିଛି ଆଉ ଏକ ପରିବର୍ତ୍ତନ । ସ୍ଵାମୀ ଓ ସବାରୀଠାରୁ ଦୂରେଇ ଯାଇଥିବା ଏକଲା ସତୀର ଆକସ୍ମିକ ଭାବରେ ଭେଟ ହୋଇଛି ତା’ର ପ୍ରାଣପ୍ରିୟ ନାଥନନାଙ୍କ ସହ । ଉଭୟେ ମନ୍ଦିରର ଅଦୂରରେ ଜନୈକ ଗୁଡ଼ିଆର ଘରେ ରାତି କଟାଇଛନ୍ତି । ପରଦିନ ସକାଳୁ ନାଥନା ବଳଦଗାଡ଼ିର ବ୍ୟବସ୍ଥା କରି ସତୀକୁ ତା’ର ଶାଶୁଘରେ ପହଞ୍ଚାଇବାକୁ ବାହାରିଛି ହେଲେ ସତୀ ତା’ ଶାଶୁଘରେ ପହଞ୍ଚିଲା ବେଳକୁ ଘଟିଛି ଆଉ ଏକ ଦୁଃଖଦ ଘଟଣା । ସତୀର ସ୍ଵାମୀ ଜମିଦାର ସତୀକୁ କୁଳଟା ବୋଲି କହି ଅପମାନିତ କରିଛି ଏବଂ ଗ୍ରହଣ ନକରି ଫେରିଯିବାକୁ କହିଛି । ଜମିଦାରଙ୍କ ଏପରି ବ୍ୟବହାରରେ ସତୀ ମାନସିକ କ୍ଷେତ୍ରରେ ଭାଙ୍ଗିପଡ଼ିଛି । ନାଥନନା ସତୀର ସ୍ଵାମୀଙ୍କୁ ବହୁତ ବୁଝାଇବାକୁ ଚେଷ୍ଟା କରିଛି ମାତ୍ର ସତୀର ସ୍ଵାମୀ ତାଙ୍କର କୌଣସି କଥାକୁ ଗ୍ରହଣ କରିନାହିଁ । ଫଳରେ ନାଥନନା ସତୀକୁ ନେଇ ରେଳଗାଡ଼ିରେ ବସି କଟକ ଚାଲିଆସିଛି । ସତୀ ଜୀବନରେ ଆସିଛି ଆଉ ଏକ ପରିବର୍ତ୍ତନ ।

କଟକରେ ସେମାନେ ଅବସ୍ଥାନ କରିଛନ୍ତି ଭଡ଼ାଘରେ । ସତୀ ଆଉ ଗୋଟେ ଜୀବନ ଜିଇଁଛି । ନାଥନନାଙ୍କୁ ପାଖକୁ ଚିହ୍ନିଛି । ସେଇଠି ଖବର ପାଇଛି ଗାଁ କଥା, ବାପାମା’ଙ୍କ କଥା । ତା’ଦୁଃଖ କଷ୍ଟ ସୀମା ଲଙ୍ଘନ କରିଛି ଯେତେବେଳେ ସେ ଶୁଣିଛି ତା’ ବାପା ମା’ ଆଉ ଏଇ ସଂସାରରେ ନାହାଁନ୍ତି । ସ୍ଵାମୀଙ୍କଠାରୁ ପରିତ୍ୟକ୍ତ ହୋଇଛି, ପିତୃମାତୃ-ହୀନ ହୋଇଛି, ଜୀବନର ସବୁ ସ୍ଵପ୍ନସମ୍ବଳ ହରାଇ ଏକୁଟିଆ ହୋଇପଡ଼ିଛି ସତୀ । ଦୁଇ ଚାରିଦିନ ନିଜ ଉପରେ ନିୟନ୍ତ୍ରଣ ହରାଇ କାନ୍ଦି କାନ୍ଦି ଦିନ କଟେଇଛି ସତୀ ।

ପରେ ସେ ନିଜର ଆଶା, ଭରସା ଓ ଆଶ୍ରୟସ୍ଥଳ ରୂପେ ନାଥନନାଙ୍କୁ ମନେ ମନେ ସ୍ଥିର କରିନେଇଛି ଏବଂ ତା’ର ଏଇ ଦୁର୍ଦ୍ଦିନରେ ନାଥନନା ବାସ୍ତବିକ ଯେଉଁ ବଦାନ୍ୟ ଦେଖାଇଛନ୍ତି ସେଥ‌ିପାଇଁ ନାଥନନା ପ୍ରତି କୃତଜ୍ଞତାରେ ତା’ର ମନ ଭରିଯାଇଛି । ପରକ୍ଷଣରେ ବିଭିନ୍ନ ଆଶଙ୍କା ଭିତରେ ନାଥନନାଙ୍କ ପ୍ରତି ତା’ର ସନ୍ଦେହ ଆସିଛି । ଘୃଣାରେ ମନ ବିଷାକ୍ତ ହୋଇଉଠିଛି ତା’ର ନାଥନନାଙ୍କ ପ୍ରତି । ସତୀ ଭାବିଛି ନାଥନନା କିଛି ମନ୍ଦ ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟ ରଖ୍ ତାକୁ ଗାଁକୁ ନନେଇ ଏଠି କଟକ ସହରକୁ ନେଇ ଆସିଛନ୍ତି । ତେଣୁ ସେ ବାରମ୍ବାର ଜିଦ୍ କରିଛି ଘରକୁ ଅର୍ଥାତ୍ ଗାଁକୁ ଫେରିଯିବା ପାଇଁ । ଅନ୍ୟ ପକ୍ଷରେ ଆର୍ଥିକ ଅନଟନ ଯୋଗୁଁ ନାଥନନା ବି ବହୁ ଅସୁବିଧାର ସମ୍ମୁଖୀନ ହୋଇ ଶେଷକୁ ଗାଁକୁ ଫେରି ଆସିବାକୁ ବାଧ୍ୟ ହୋଇଛି । ଶେଷରେ ସତୀ ଓ ନାଥନନା ନିଜ ଜନ୍ମଭୂମି ଅର୍ଥାତ୍ ଗାଁକୁ ଫେରିଛନ୍ତି । ଗାଁ ଘରେ ଏକାଠି ରହିଛନ୍ତି । ନାଥନନାଙ୍କ ବୋଉ ପୁରୀକୁ ତୀର୍ଥ ପଳାଇଛନ୍ତି ଏବଂ ତାଙ୍କ ଭଉଣୀ ନିଶି ତଥା ସତୀର ବଉଳ ଶାଶୁଘରକୁ ପଳେଇଥିବାରୁ ନାଥନନାଙ୍କ ଘର ଶୂନ୍ୟ । ଏପରି ସମୟରେ ନାଥନନା ଆଉ ସତୀ ଗୋଟିଏ ଘରେ ଏକାଠି ରହିବା କଥା ସତୀକୁ ଭଲ ଲାଗିନାହିଁ । ଲଜ୍ଜା ସଂକୋଚ ଏବଂ ସର୍ବୋପରି ବାପ ମା’ ଶୂନ୍ୟ ଗାଁ ଭୂଇଁ ସତୀ ପକ୍ଷରେ ଉପଭୋଗ୍ୟ ହୋଇପାରି ନାହିଁ ।

ତେବେ ଏଇଠାରୁ ହିଁ କଥାବସ୍ତୁରେ ଔପନ୍ୟାସିକ ଆଣିଛନ୍ତି ଆଉ ଏକ ପରିବର୍ତ୍ତନ । ଗାଁ ଚାହାଳିର ଶିକ୍ଷକ ଅଚ୍ୟୁତି ମହାନ୍ତି ଖଳ ଚରିତ୍ର ଭାବରେ ଆବିର୍ଭାବ ହୋଇଛନ୍ତି । ଏହି ଟାଉଟରର କୋପଦୃଷ୍ଟି ପଡ଼ିଛି ସତୀ ଓ ନାଥନନାଙ୍କ ଉପରେ । ସ୍ଵାମୀ ପରିତ୍ୟକ୍ତା ସତୀର ପୈତୃକ ସମ୍ପଭିକୁ ହାତେଇବା ପାଇଁ ଅନୁତି ଚକ୍ରାନ୍ତ କରି ଚିଠି ଲେଖୁଛି ସତୀ ନିକଟକୁ । ତେବେ ତା’ର ଏଇ ଚକ୍ରାନ୍ତ ଅସଫଳ ହେବାରୁ ସେ କ୍ରୋଧରେ ସତୀକୁ ହଇରାଣ କରିବା ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟ ନେଇ ଗାଁ ଲୋକଙ୍କୁ ସେମାନଙ୍କ ବିରୋଧରେ ମତେଇଛି ।

ଅଚ୍ୟୁତିର ଏହି କାର୍ଯ୍ୟକଳାପ ପ୍ରତ୍ୟକ୍ଷ ରୂପ ନେଇଛି, ଯେତେବେଳେ ସେ ଗାଁରେ ନାଥନନାଙ୍କୁ ଏକ ଘରକଥା କରିବା ପ୍ରସଙ୍ଗ ଉଠିଛି । ଅଚ୍ୟୁତିର ଷଡ଼ଯନ୍ତ୍ର ଜାଲ ପ୍ରସାରିତ କରିଛି ଗାଁ ମୁଖ୍ୟ ପ୍ରଭାକର ପୁରୋହିତ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ । ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ର, ଅଚୁତି ମହାନ୍ତି ଓ ଗ୍ରାମବାସୀ ଜିଦ୍ କରିଛନ୍ତି ଯଦି ସତୀକୁ ନଛାଡ଼ିବ ତେବେ ନାଥନନାଙ୍କୁ ନିଆଁ ପାଣି ବାସନ୍ଦ କରାଯିବ । ନାଥନନାଙ୍କ ଧୈର୍ଯ୍ୟ ସୀମା ଲଘୁଛି । ସେ ଭୟ ଦେଖାଇବାପାଇଁ ପୋଲିସ୍‌ର ଆଶ୍ରୟ ନେବାକୁ କହିଛନ୍ତି ଏବଂ ଏକପ୍ରକାର ଭୟ ଦେଖାଇ ଗ୍ରାମବାସୀଙ୍କୁ ତଡ଼ିଦେଇଛନ୍ତି ।

କେବଳ ସତୀପାଇଁ ନାଥନନାଙ୍କର ଦୁଃଖ, ଦୁର୍ଗତି, ଗ୍ରାମବାସୀଙ୍କର ନିର୍ମମ ବ୍ୟବହାର, କୁସିତ ବିଦୂପ, ସମାଲୋଚନା ସତୀ ମନରେ ଦାରୁଣ ଆଘାତ ଦେଇଛି । ନିଜକୁ ଅଭିଶପ୍ତ ବୋଲି ଭାବି ସେ ବିବ୍ରତ ହୋଇପଡ଼ିଛି । ଶେଷବେଳକୁ ସତୀ ପ୍ରଭାକର ମିଶ୍ରଙ୍କଠାରୁ ପ୍ରତିଶ୍ରୁତି ନେଇଛି ଯେ ସେ ଚାଲିଗଲେ ଗ୍ରାମବାସୀମାନେ ନାଥନନାଙ୍କୁ ଗ୍ରହଣ କରିବେ । ସତୀ ଚିଠିଟିଏ ଲେଖୁ କୁଆଡ଼େ ଚାଲିଯିବାକୁ ବାହାରିଛି ।

କଠିନ ଶବ୍ଦ ଓ ଏହାର ଅର୍ଥ –

  • ଟିପଣା – ସ୍ମାରକଲିପି, ଜାତକର ସଂକ୍ଷିପ୍ତ ବିବରଣୀ ।
  • ଦୋଭେଇ – ଦୋବେଇ-ଦ୍ଵିତୀୟବାର ବିବାହିତ ପୁରୁଷ ।
  • ହେଜମେଳ – ମିଳାମିଶା, ଘନିଷ୍ଠତା ।
  • ଆଣକାଠି – ଚିତାଲେଖା କାଠି ।
  • ମହତାପ – ଶୁଭ୍ର ଜ୍ୟୋତ୍ସ୍ନା, ଚଉନ୍ଦ୍ରଉଦିଆ ବାଣ ।
  • ଡବଡ଼ବି – ଯେ ସ୍ଥାନ କାଳ ପାତ୍ର ବିଚାର ନକରି ଅନବରତ ଗପେ ।
  • ଦୂରନ୍ତ – ଦୁର୍ବର୍ଷ, ଯାହାକୁ ପ୍ରତିହତ କରିବା କଷ୍ଟସାଧ୍ୟ ।
  • ଅପନ୍ତରା – ଅଗମ୍ୟ ଅଞ୍ଚଳ ।
  • ଟସ୍କର – ତସ୍କର, ଚୋର ।
  • ଫରାକତ – ପ୍ରଶସ୍ତ, ଫର୍ଚ୍ଚା ।
  • ବସନ୍ତରା – ପଣା ସଂକ୍ରାନ୍ତରେ ତୁଳସୀ ଚଉରାରେ ଦିଆଯାଉଥ‌ିବା ସଚ୍ଛିଦ୍ର ଘଡ଼ି ।
  • କୃତାର୍ଥ – କୃତକାର୍ଯ୍ୟ, ସନ୍ତୁଷ୍ଟ ।
  • ଆରଦୋଳି – ଜଞ୍ଜାଳ ।
  • ଅନିର୍ବଚନୀୟ – ବର୍ଣ୍ଣନାତୀତ ।ଙ୍ଗ
  • ଓଳିଗି – ନମସ୍କାର, ପ୍ରଣାମ ।
  • ପଞ୍ଚଗବ୍ଯ – ଗାଈ ମୃତ, ଗୋବର, କ୍ଷୀର, ଘିଅ ଓ ଦହିର ମିଶ୍ରଣ ।
  • ଅବ୍ଯାଜ – ନିଷ୍କପଟ ।
  • ଠଣା – କାନ୍ଥକୁରା, ମାଟିକାନ୍ଥରେ ଛୋଟ ଜିନିଷଟିଏ ରଖୁବାପାଇଁ କରାଯାଇଥିବା ସ୍ଥାନ ବିଶେଷ ।
  • ଦହଗଞ୍ଜ – ହଇରାଣ, କଲବଲ, ଯନ୍ତ୍ରଣାକ୍ତ ।

ନାଟକର ସଂଜ୍ଞା ଓ ସ୍ବରୂପ

ସାହିତ୍ୟର ବିଭିନ୍ନ ବିଭାଗ ମଧ୍ୟରୁ ନାଟକ ଅନ୍ୟତମ । ସାହିତ୍ୟ ରାଜ୍ୟର ଏହା ଏକ ମନୋରମ କଳାକୃତି । ସାହିତ୍ୟକୁ ପ୍ରାଚୀନ କାଳରେ କାବ୍ୟ ଅର୍ଥରେ ଗ୍ରହଣ କରାଯାଉଥିଲା । କାବ୍ୟକୁ ଦୁଇ ଭାଗରେ ବିଭକ୍ତ କରାଯାଇଥିଲା; ଯଥା – ଦୃଶ୍ୟ କାବ୍ୟ ଓ ଶ୍ରାବ୍ୟ କାବ୍ୟ । କାବ୍ୟ, କବିତା, ଉପନ୍ୟାସ ଓ ଗଳ୍ପ ଆଦି ପଢ଼ାଯାଏ, ଶୁଣାଯାଏ; ମାତ୍ର ନାଟକ ଏକାଧାରାରେ ପଢ଼ା, ଶୁଣା ଓ ଦେଖାଯାଇଥାଏ । ଫଳତଃ ନାଟକକୁ ମିଶ୍ରକଳା ନାମରେ ଅଭିହିତ କରାଯାଏ । ଏମିତିରେ ବି ନାଟକକୁ ଏକ ଅଭିନୟ କଳା ମଧ୍ୟ କୁହାଯାଏ । ସୁତରାଂ ଏହା ହିଁ ଦୃଶ୍ୟ କାବ୍ୟ । ଜୀବନର ସୁଖ-ଦୁଃଖ, ହସ- କାନ୍ଦ, ଆନନ୍ଦ-ବିଷଦ, ନିଚ୍ଛକ ରୂପ ବର୍ଷିଳ ହୋଇଥାଏ ନାଟକରେ । ତେଣୁ ନାଟକକୁ ଜୀବନ ମହାନାଟକର ଏକ ପ୍ରତ୍ୟକ୍ଷ କଳା କୁହାଯାଏ । ଜୀବନ ଓ ସମାଜ ନାଟକର କଳେବର ମଧ୍ୟରେ ଫୁଟିଉଠେ । ଏହିସବୁ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ସାହିତ୍ୟରେ ଆଜି ନାଟକର ଭୂମିକା ସ୍ଵତନ୍ତ୍ର ।

ନାଟକର ସଂଜ୍ଞା :
ସାହିତ୍ୟ ଜଗତରେ ନାଟକର ପ୍ରାଚୀନତା ସର୍ବଜନ ସ୍ଵୀକୃତ । ସାହିତ୍ୟର ଅନ୍ୟାନ୍ୟ ବିଭାଗ ପରି ନାଟକର ସଂଜ୍ଞାରେ ମଧ୍ୟ ପ୍ରାଚ୍ୟ ଓ ପାଶ୍ଚାତ୍ୟ ଭେଦରେ ନାନା ମୁନି ନାନା ମତ ଦେଖାଯାଏ । ‘‘କାବ୍ୟଷୁ ନାଟକଂ ରମ୍ୟମ୍’’ – କାବ୍ୟର ବିଭିନ୍ନ ବିଭାଗ ମଧ୍ୟରେ ନାଟକ ହେଉଛି ରମଣୀୟ । ଏହି ରମଣୀୟ କଳାକୁ ନାଟ୍ୟ ସମାଲୋଚକମାନେ ନିଜ ନିଜ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ବିଚାର କରି ଆଲୋଚନା କରିଛନ୍ତି ।

ତେବେ ଭରତମୁନିଙ୍କ ନାଟ୍ୟଶାସ୍ତ୍ରରେ ଉଲ୍ଲେଖ ଅଛି ଯେ ବ୍ରହ୍ମା ଚାରି ବେଦରୁ ଉପାଦାନ ସଂଗ୍ରହ କରି ରଚନା କଲେ ଦୃଶ୍ୟ କାବ୍ୟ ବା ନାଟକ । ରଗ୍‌ବେଦରୁ କଥା, ସାମବେଦରୁ ଗାନ, ଯଜୁର୍ବେଦରୁ କ୍ରିୟା ବା ଅଭିନୟ ଏବଂ ଅଥର୍ବ ବେଦରୁ ରସ – ଏହି ଚାରୋଟି ବିଷୟକୁ ନେଇ ବ୍ରହ୍ମା ରଚନା କଲେ ନାଟକ ।

ପାଣିନୀଙ୍କ ମତରେ ‘ନଟ୍’ ଧାତୁରୁ ନାଟକର ଉତ୍ପତ୍ତି । ନଟ୍ ଧାତୁ ‘ନୃତ୍’ ଧାତୁର ପ୍ରକୃତ ରୂପ । ଏହି ‘ନଟ୍’ ଶବ୍ଦର ପ୍ରକୃତ ଅର୍ଥ ହେଉଛି ‘ଅଙ୍ଗଚାଳନା’ । ନାଟ୍ୟ ଶବ୍ଦଟି ମଧ୍ୟ ‘ନଟ୍’ ଧାତୁରୁ ଉତ୍ପନ୍ନ ଅନ୍ୟ ଏକ ଶବ୍ଦ, ଯାହାର ଅର୍ଥ ହେଉଛି ନଟର କର୍ମ । ତେବେ ‘ନଟ୍’ ଧାତୁରୁ ନାଟ୍ୟ, ନାଟକ ଏବଂ ନଟ ଇତ୍ୟାଦି ଶବ୍ଦ ସୃଷ୍ଟି ହୋଇଛି ।

ଏହି ନାଟକର ସଂଜ୍ଞା ଉଭୟ ପ୍ରାଚ୍ୟ ଓ ପାଶ୍ଚାତ୍ୟ ମନୀଷୀଗଣ ଭିନ୍ନ ଭିନ୍ନ ବାଗରେ ଦେଇ ଆସିଛନ୍ତି । ଇଂରାଜୀ ସାହିତ୍ୟରେ ବ୍ୟବହୃତ ଡ୍ରାମା (Drama) ଶବ୍ଦଟି ଓଡ଼ିଆ ଭାଷାରେ ବ୍ୟବହୃତ ନାଟକର ପାରିଭାଷିକ ଶବ୍ଦ ଭାବରେ ବ୍ୟବହୃତ ହୋଇଥାଏ । ପ୍ରଥମେ ପ୍ରାଚ୍ୟ ସମାଲୋକଗଣଙ୍କ ନାଟକ ସମ୍ବନ୍ଧୀୟ ସଂଜ୍ଞା ବିଚାର କରିବା । ‘ସାହିତ୍ୟ ଦର୍ପଣ’ ଅଳଙ୍କାର ଗ୍ରନ୍ଥରେ ବିଶ୍ଵନାଥ କବିରାଜ କହିଛନ୍ତି – ‘‘ଚିତ୍ରାଭିନେୟଂ ଦୃଶ୍ୟମ୍’’ । ଯାହା ଅଭିନୀତ ହୋଇପାରିବ ତାହା ହିଁ ଦୃଶ୍ୟ କାବ୍ୟ ବା ନାଟକ । ତେବେ ଆଧୁନିକ କାଳଖଣ୍ଡରେ ନାଟକକୁ ଆଉ ଦୃଶ୍ୟକାବ୍ୟର ସୀମା ସରହଦ ମଧ୍ୟରେ ସୀମିତ କରାଯାଉ ନାହିଁ ।

ପ୍ରାଚ୍ୟ ଭୂଖଣ୍ଡର ମନୀଷୀ ଆଳଙ୍କାରିକ ମମ୍ମଟ୍ଟ ନାଟକର ସଂଜ୍ଞା ନିରୂପଣ କରି କହିଛନ୍ତି କାବ୍ୟର ବିଭାବ ଓ ଅନୁଭାବ ଗୀତଯୁକ୍ତ ହୋଇ ନଟଦ୍ଵାରା ଅଭିନୀତ ହେଲେ ତାହା ନାଟକ ହୁଏ । ଯଥା –

‘‘ଅନୁଭାବ ବିଭବାନାଂ ବର୍ଣ୍ଣନା କାବ୍ୟମୁଚ୍ୟତେ
ଚେଷାମେବ ପ୍ରୟୋଗାତ୍ସୁ ନାଟ୍ୟ ଗୀତାଦି ରଞ୍ଜିତଂ ।’’

ଆଚାର୍ଯ୍ୟ ସାଗର ନନ୍ଦୀଙ୍କ ମତରେ ଲୋକଙ୍କ ସୁଖଦୁଃଖ ଅବସ୍ଥାରୁ ସମୁଦ୍‌ଭୂତ ସତ୍ୟାସତ୍ୟର ଅଭିନୟ ହେଉଛି ନାଟକ । ଯଥା –

‘‘ଅବସ୍ଥା ଯାତୁ ଲୋକସ୍ୟ ସୁଖଦୁଃଖ ସମୁଦ୍‌ଭବା
ସତ୍ୟାସତ୍ୟାଭିନୟ ପ୍ରାୱେ ନାଟ୍ୟମିତ୍ୟଭିଧୀୟତେ ।”

ପୁନଶ୍ଚ ଲୋକବୃତ୍ତିକୁ ଯାହା ଅନୁକରଣ କରିଥାଏ, ତାହାକୁ ମଧ୍ୟ ନାଟକ ବୋଲି କୁହାଯାଇଥାଏ । ଆଚାର୍ଯ୍ୟ ଅଭିନବ ଗୁପ୍ତ ନାଟକ ସମ୍ପର୍କରେ କହିଛନ୍ତି ଯେ ନାଟକ ହେଉଛି ଗୋଟିଏ ଦୃଶ୍ୟକାବ୍ୟ ଯାହାକି ପ୍ରତ୍ୟକ୍ଷ କଳ୍ପନା, ଅଧବସାୟ, ସତ୍ୟ ଏବଂ ଅସତ୍ୟର ବିଲକ୍ଷଣ ରୂପ ଧାରଣ କରି ସର୍ବସାଧାରଣଙ୍କୁ ଆନନ୍ଦ ଦାନ କରିଥାଏ । ଗୁପ୍ତଙ୍କ ଭାଷାରେ –

‘‘ପ୍ରତ୍ୟକ୍ଷ କଚ୍ଛାନୁବ୍ୟବସାୟବିଷୋୟୋ ଲୋକ ପ୍ରସିଦ୍ଧ
ସତ୍ୟାସତ୍ୟ ବିଦି ଲକ୍ଷତ୍ରାତ୍ ଯଚ୍ଛଦେବା ଚୌ ଲୋକସଂ ସର୍ବସ୍ୟ
ସାଧାରଣତୟା ସତ୍ତ୍ଵେନ ଭାବ୍ୟମାନଶ୍ଚର୍ଯ୍ୟ ମାଣୋଽର୍ଥେ ନାଟ୍ୟମ୍ ।’’

ସେହିପରି ବାମନ ଆଚାର୍ଯ୍ୟଙ୍କ ମତାନୁଯାୟୀ – ‘‘ଅଭିନୟାତ୍ମକଂ କାବ୍ୟ ନାଟ୍ୟମ୍‌ ’’ ଅର୍ଥାତ୍ ଯାହା ଅଭିନୟ କରାଯାଏ ତାହା ଦୃଶ୍ୟକାବ୍ୟ । ସଂସ୍କୃତ ସାହିତ୍ୟର ଅନ୍ୟତମ ଶ୍ରେଷ୍ଠ କବି କାଳିଦାସଙ୍କ ମତରେ ଶିକ୍ଷିତ ଲୋକଙ୍କ ସନ୍ତୋଷବିଧାନ ଯେଉଁ ଅଭିନୟଦ୍ବାରା ସମ୍ଭବ ହୁଏ, ତାହା ହିଁ ନାଟକ । କାଳିଦାସଙ୍କ ଭାଷାରେ –

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 3 ମଲାଜହ୍ନ Question Answer

‘‘ଆପରିତୋଷାଦ୍ ବିଦୁଷୀ ନ ସାଧୁ ମନୋ ପ୍ରୟୋଗବିଜ୍ଞାନମ୍
ବଳବଦପି ଶିକ୍ଷିତାନାଂ ଆସନ୍ୟ ପ୍ରତ୍ୟୟଂ ଚେତାଃ ।’’

ତେଣୁ ଉପରୋକ୍ତ ପ୍ରାଚ୍ୟ ମନୀଷୀମାନଙ୍କର ନାଟକ ସମ୍ବନ୍ଧୀୟ ସଂଜ୍ଞାଗୁଡ଼ିକୁ ଅନୁଧ୍ୟାନ କଲେ ସହଜରେ ଜଣାଯାଏ ଯେ ଜନସାଧାରଣଙ୍କର ସୁଖଦୁଃଖାଦି ଅବସ୍ଥା ଭେଦର ଅଭିନୟ ଉପଯୋଗ୍ୟ ବାସ୍ତବାଶ୍ରୟୀ କଳାକୃତି ପରିପ୍ରକାଶ ହେଉଛି ନାଟକ । ପ୍ରାଚ୍ୟ ମନୀଷୀଗଣ ନାଟକକୁ କାବ୍ୟର ଏକ ବିଭାଗ ରୂପେ ଗ୍ରହଣ କରିଯାଇଛନ୍ତି, ଯାହା ବର୍ତ୍ତମାନ ଏତେ ଦୂର ଗ୍ରହଣଯୋଗ୍ୟ ମନେହୁଏ ନାହିଁ । ତେଣୁ ପ୍ରାଚ୍ୟ ସାହିତ୍ୟର ମନୀଷୀଗଣଙ୍କ ନାଟକ ସମ୍ପର୍କିତ ସଂଜ୍ଞା ଜାଣିବା ପରେ ପାଶ୍ଚାତ୍ୟ ସାହିତ୍ୟର ବିଦ୍ଵାନ୍‌ଗଣ ନାଟକ ସମ୍ବନ୍ଧରେ ଯେଉଁ ସଂଜ୍ଞାମାନ ପ୍ରଦାନ କରିଛନ୍ତି ତାହାର ବିଚାର ବିଶ୍ଳେଷଣ ଏଠାରେ କରଯାଇପାରେ ।

କେବଳ ପ୍ରାଚ୍ୟ ଆଲୋଚକମାନେ ଯେ ନାଟକକୁ ନେଇ ଅନେକ ସଂଜ୍ଞା ନିର୍ଦ୍ଧାରଣ କରିଯାଇଛନ୍ତି ତାହା ନୁହେଁ; ପାଶ୍ଚାତ୍ୟ ସମାଲୋଚକମାନେ ମଧ୍ୟ ଏ ସମ୍ପର୍କରେ ଅନକେ ତାତ୍ତ୍ଵିକ ତଥ୍ୟ ଉପସ୍ଥାପନ କରିଯାଇଛନ୍ତି । ପାଶ୍ଚାତ୍ୟ ସାହିତ୍ୟରେ ଗ୍ରୀକ୍ ସାହିତ୍ୟାଚାର୍ଯ୍ୟ ଆରିଷ୍ଟୋଟଲ୍ (Aristotle)ଙ୍କ ମତରେ ନାଟକ ହେଉଛି – “Imitation of action of the form of the action.” ଅର୍ଥାତ୍ ନାଟକ ଲୋକବୃତ୍ତର ଅନୁକରଣ । Elizabeth Drew ତାଙ୍କର ‘Discovery of Drama’ ପୁସ୍ତକରେ ନାଟକର ସଂଜ୍ଞା ନିରୂପଣ କରିବାକୁ ଯାଇ ଲେଖିଛନ୍ତି – “Drama is a creation and representation of life in terms of theatre.” ଅର୍ଥାତ୍ ନାଟ୍ୟମଞ୍ଚରେ ଯାହା ଜୀବନର ପ୍ରତିନିଧୃତ୍ଵ କରେ ତାହା ହିଁ ନାଟକ ।

ସେହି ପାଶ୍ଚାତ୍ୟର ଅନ୍ୟତମ ସମାଲୋଚକ ସିସେରୋ (Ciciro)ଙ୍କ ମତରେ, “Drama is the copy of life, a mirror of custom and reflection of truth.” ଅର୍ଥାତ୍ ନାଟକ ହେଉଛି ଜୀବନର ଅନୁକୃତି, ସାମାଜିକ ଚଳଣିର ଦର୍ପଣ ଓ ସତ୍ୟର ପ୍ରତିଫଳନ ।

ସମାଲୋଚକ ଏକ୍ସାରଡାଇସ୍ ନିକଲ (Ellardias Nicoll) ତାଙ୍କର ‘Theory of Drama’ ଗ୍ରନ୍ଥରେ ନାଟକର ସଂଜ୍ଞା ନିରୂପଣ କରିବାକୁ ଯାଇ ଉଲ୍ଲେଖ କରିଛନ୍ତି – “Drama is the art of expressing ideas about life in such a manner as to render the express and capable of interpretation by actors and likely to interest an audience assembled to hear the words and witness the action.”
ଅର୍ଥାତ୍ ଦଳେ ଅଭିନେତା ଅଭିନେତ୍ରୀ ମଞ୍ଚରେ ଦର୍ଶକଙ୍କ ସମ୍ମୁଖରେ ଜୀବନର ନାନା ଭାବ ଭାବନାକୁ ଯେପରି କ୍ରିୟାତ୍ମକ ଭାବରେ ପ୍ରକାଶ କରନ୍ତି ଓ ତାକୁ ଦର୍ଶକ ଦେଖି ଯେପରି ଉତ୍ସାହିତ ହୁଅନ୍ତି ତାହା ହିଁ ନାଟକ ।

ପ୍ରାଚ୍ୟ ଓ ପାଶ୍ଚାତ୍ୟ ଉଭୟ ସାହିତ୍ୟର ବିଦ୍ୱାନ୍‌ମାନଙ୍କଦ୍ୱାରା ନିର୍ମିତ ନାଟକର ବହୁବିଧ ସଂଜ୍ଞାଗୁଡ଼ିକୁ ଅନୁଧ୍ୟାନ କଲାପରେ ଉଭୟ ମଧ୍ୟରେ ଅନେକ ସାମ୍ୟ ରହିଥିବା ପରିଲକ୍ଷିତ ହୁଏ । ଉଭୟ ପ୍ରବୀଣମାନଙ୍କ ସଂଜ୍ଞାରେ ଯାହା ସାମ୍ୟ ପରିଲକ୍ଷିତ ହୁଏ, ସେଗୁଡ଼ିକ ହେଉଛି –

  • ନାଟକ ସହ ଅଭିନୟ ସମ୍ପୃକ୍ତ
  • ନାଟକରେ ସମକାଳୀନ ସମାଜର ଚିତ୍ର ପ୍ରତିଫଳିତ
  • ନାଟକ ଏକ କଳା, ଯେଉଁଥୁରେ ଜୀବନ ପ୍ରତିବିମ୍ବିତ

ଏହି ଦୃଷ୍ଟିରୁ ନାଟକ ହେଉଛି ଅଭିନୟୋପଯୋଗୀ ଏକ କଳାକୃତି, ଯେଉଁଥରେ ମଣିଷର ସୁଖ-ଦୁଃଖ ସହ ସାମାଜିକ ଚଳଣିର ବିଭିନ୍ନ ବିଭାବ ଉଦ୍‌ଭାସିତ ହୋଇଉଠେ । ଦର୍ଶକ ହୃଦୟରେ ଏହା ଗଭୀର ରେଖାପାତ କରେ । ଯୁଗର ପ୍ରବୃତ୍ତିକୁ ଓ ଆଶାଆକାଂକ୍ଷାକୁ ନେଇ ନାଟକ ରଚିତ ହୁଏ । ଗୋଟିଏ ଜାତିକୁ ତା’ର ରଙ୍ଗମଞ୍ଚ ଓ ନାଟକରୁ ସ୍ପଷ୍ଟ ଭାବରେ ଜଣାଯାଏ । ସୁତରାଂ ନାଟକ କେବଳ ଯେ ମନୋରଞ୍ଜନ ପାଇଁ ରଚନା କରାଯାଏ ତାହା ନୁହେଁ; ତାହାକୁ ସମାଜ ତଥା ଜୀବନଶୈଳୀକୁ ପ୍ରଭାବିତ କରାଇବା ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ ମଧ୍ୟ ରଚନା କରାଯାଏ ।

ନାଟକର ସ୍ୱରୂପ :
ସାହିତ୍ୟର ଅନ୍ୟାନ୍ୟ ବିଭାଗ ତୁଳନାରେ ନାଟକର ସ୍ବାତନ୍ତ୍ର୍ୟ ସହଜରେ ଅନୁମେୟ । ଏହା ବ୍ୟତୀତ ଅନ୍ୟାନ୍ୟ ବିଭାଗ ପାଠ୍ୟ, କିନ୍ତୁ ଏହା ଦୃଶ୍ୟ । ଏଠାରେ ପାଶ୍ଚାତ୍ୟ ସମାଲୋଚକ ମର୍‌ଜରୀ ବୋଲ୍ଟଟନ୍‌ (Marjori Boulton) ଙ୍କ ମତକୁ ପ୍ରସଙ୍ଗକ୍ରମରେ ଉପସ୍ଥାପିତ କରିବା ଉଚିତ ମନେହୁଏ । ତାଙ୍କ ମତରେ “It is a literature that walks and talks before our eyes.” ଏହା ସର୍ବଜନବୋଧ ଏବଂ ସଶ୍ରଦ୍ଧ ଲୋକପ୍ରିୟତାର ଅଧିକାରୀ । ଯେହେତୁ ମାନବ ଜୀବନର ନିଖୁଣ ଚିତ୍ରକୁ ଦେଖାଇବାରେ ଏହା ସଫଳ ତେଣୁ ଏହା ସର୍ବାଧ‌ିକ ଲୋକପ୍ରିୟ ତଥା ଗଣମାନସ ଆକୃଷ୍ଟକାରୀ ।

ନାଟକର ଜୀବନ ଜୀବନ୍ତ କଳା । ଏହାର ସାଫଲ୍ୟ ପ୍ରମାଣିତ ହୁଏ ରଙ୍ଗମଞ୍ଚରେ । ନାଟ୍ୟକାର ତେଣୁ ନାଟକ ପାଇଁ ମଞ୍ଚଟିକୁ ଅନୁସରଣ କରେ । ତେଣୁ ନାଟ୍ୟକାର, ଅଭିନେତା ଓ ଦର୍ଶକଙ୍କ ମିଳିତ ସହଯୋଗରେ ହି ନାଟକର ଯଥାର୍ଥ କଳାତ୍ମକ ରୂପ ଫୁଟିଉଠେ ।

ନାଟକର ଶିଳ୍ପଗତ ସୁଷମା ଓ କଳାଗତ କୌଶଳ ସହଜସାଧ୍ୟ ନୁହେଁ, ଖୁବ୍ କଠିନ । ନିଜର ଅନୁଭୂତି ଓ ଅଭିଜ୍ଞତାର ଉପଯୋଗରେ ନାଟ୍ୟକାର ପାଠକର ମନୋରଞ୍ଜନ ପାଇଁ ଯତ୍ନବାନ୍ ହୋଇଥାଏ । ଅନେକ ନିୟମ ଭିତରେ ରହି ନାଟ୍ୟକାର ଏହାର ସଫଳତା ପାଇଁ ଯତ୍ନବାନ୍ ହୋଇଥାଏ । ସାହିତ୍ୟର ଅନ୍ୟ ବିଭାଗ ଅପେକ୍ଷା ନାଟକରେ ଟିକେ ଅଧ‌ିକ ନିୟନ୍ତ୍ରଣ ତଥା ବିଧ୍ଵ ପାଳନ କରିବାକୁ ହୁଏ । କଥାବସ୍ତୁର ବର୍ଣ୍ଣନା, ଚରିତ୍ରର ସଠିକ୍ ଚୟନ, ସଂଳାପର ପ୍ରତୋପଯୋଗିତା, ମଞ୍ଚର ସାର୍ଥକତା ସବୁ ସମ୍ପର୍କରେ ନାଟ୍ୟକାର ଯତ୍ନବାନ୍ ହେବା ଉଚିତ । ଏହିସବୁର ମିଳିତ ସଫଳତା ଉପରେ ନାଟକର ସଫଳତା ନିର୍ଭର କରେ ।

ନାଟକ ହେଉଛି ମୁଖ୍ୟତଃ ଜୀବନର କାହାଣୀ । ସେଥ‌ିରେ ସଫଳତା ଅଛି, ବିଫଳତା ଅଛି, ଆନନ୍ଦ ଅଛି, ବିଷାଦ ଅଛି । ନାଟକ ସହିତ ସମ୍ପୃକ୍ତ ମୁଖ୍ୟ ଚାରିପକ୍ଷ ହେଉଛନ୍ତି ନାଟ୍ୟକାର, ନିର୍ଦ୍ଦେଶକ, ଅଭିନେତା ଏବଂ ଦର୍ଶକ । ଏମାନଙ୍କ ଜୀବନବୋଧର ସୂକ୍ଷ୍ମତାକୁ ନେଇ ନାଟକର ବିସ୍ତାର । ଏହା ଯେତେ ବାସ୍ତବ ହେବ, ନାଟକଟି ସେତେ ରସୋତ୍ତୀର୍ଣ୍ଣ ହୋଇପାରିବ । ପୁଣି ନାଟକ ଶିକ୍ଷାପ୍ରଦ ହେବା ବି ତା’ର ଲୋକପ୍ରିୟତା ଉପରେ ଯଥେଷ୍ଟ ପ୍ରଭାବ ବିସ୍ତାରକାରୀ; ତେଣୁ ନାଟକର ସାରମର୍ମ ତଥୀ କଥାବସ୍ତୁ ଶିକ୍ଷାପ୍ରଦ ହେବା ବାଞ୍ଛନୀୟ ।

ସାହିତ୍ୟର ଅନ୍ୟ ବିଭାଗ ତଥା ଗଳ୍ପ, ଉପନ୍ୟାସ, କବିତା ଆଦି ଅପେକ୍ଷା ନାଟକ ଅଧିକ ପ୍ରଭାବଶାଳୀ । ତେଣୁ ନାଟ୍ୟକାର ଏଥରେ ସମାଜ ସଂସ୍କାର ଓ ସଚେତନତା ସୃଷ୍ଟି ନିମନ୍ତେ ଅଧିକରୁ ଅଧିକ ପ୍ରୟାସ କରିଥାଏ । ଉଚ୍ଚକୋଟୀର ନାଟକ ସମାଜକୁ ମୁଗ୍ଧ କରେ, ଶୃଙ୍ଖଳାରେ ବାନ୍ଧି ଦିଏ, ସାମାଜିକ ମଣିଷକୁ ଉତ୍ତମ ନାଗରିକ ହେବାର ସାହାଯ୍ୟ କରେ । ତେଣୁ ଏ ଧରଣର ନାଟକ ଲୋକପ୍ରିୟ ହେବା ସହ କାଳଜୟୀ ହେବା ସ୍ଵାଭାବିକ ।

ଓଡ଼ିଆ ନାଟକର ବିକାଶଧାରା :
ଭାରତୀୟ ପ୍ରାଚୀନ ସଂସ୍କୃତ ସାହିତ୍ୟରେ ନାଟକ ‘ପଞ୍ଚମବେଦ’ ଭାବରେ ବହୁ ପ୍ରସିଦ୍ଧି ଲାଭ କରିଛି । ଭାସ, କାଳିଦାସ, ବିଶାଖାଦତ୍ତ ଆଦି ମହାନ୍ ନାଟ୍ୟକାରମାନେ ସଂସ୍କୃତରେ ନାଟକ ରଚନା କରି ଲୋକମାନ୍ୟତା ପ୍ରାପ୍ତ ହୋଇଛନ୍ତି । ଓଡ଼ିଶାରେ ଶ୍ରୀଜଗନ୍ନାଥ ନାଟ୍ୟମଣ୍ଡପ ମଧ୍ୟରେ ଅନର୍ଘରାଘବ, ଗୀତଗୋବିନ୍ଦ, ପ୍ରବୋଧ ଚନ୍ଦ୍ରୋଦୟ ଇତ୍ୟାଦି ସଂସ୍କୃତ ନାଟକ ଅଭିନୀତ ହୋଇଥୁବାର ପ୍ରମାଣ ମଧ୍ଯ ସୁଲଭ । ଏଥିସହିତ ୧୮୬୯ ମସିହାରେ ରଘୁନାଥ ପରିଚ୍ଛାଙ୍କ ‘ଗୋପୀନାଥ ବଲ୍ଲଭ’ ନାଟକ ପ୍ରଥମ କରି ଓଡ଼ିଆ ଭାଷାକୁ ନାଟ୍ୟ ମାଧ୍ୟମର ମର୍ଯ୍ୟାଦା ପ୍ରଦାନ କରିଛି । ଓଡ଼ିଶାରେ ବହୁ ପ୍ରାଚୀନ କାଳରୁ ଲୋକ ସଂସ୍କୃତି ଓ ପରମ୍ପରାକୁ କେନ୍ଦ୍ର କରି ପାଲା, ଦାସକାଠିଆ, ସୁଆଙ୍ଗ, ଲୋକନାଟ, ଯାତ୍ରା ଓ ମୋଗଲ ତାମସା ଇତ୍ୟାଦି ଅନୁଷ୍ଠିତ ହୋଇଆସିଛି, ଯାହାକୁ ଓଡ଼ିଶୀ ଯାତ୍ରା-ନାଟକ ପର୍ଯ୍ୟାୟଭୁକ୍ତ କରାଯାଇପାରେ ।

ଓଡ଼ିଆ ଶିଳ୍ପ, କଳା, ସ୍ଥାପତ୍ୟ ଓ ଭାସ୍କର୍ଯ୍ୟର ଦେଶ । ଓଡ଼ିଶାର ପ୍ରତି ମନ୍ଦିର ଗାତ୍ରରେ ଲାସ୍ୟମୟୀ ନର୍ତ୍ତକୀର ଅପୂର୍ବ ନୃତ୍ୟଛଟା । ତେଣୁ ନାଟକର ସ୍ଵରୂପ ଓ ପ୍ରକୃତି ଦୃଷ୍ଟିରୁ ବିଧବଦ୍ଧ ଓଡ଼ିଆ ନାଟକ ଊନବିଂଶ ଶତାବ୍ଦୀର ଶେଷପାଦ ଆଡ଼କୁ ପ୍ରକାଶ ଲାଭ କରିଥିଲେ ମଧ୍ୟ, ଓଡ଼ିଆ ନାଟ୍ୟକଳା ଏକ ଦୀର୍ଘ ପରମ୍ପରାଦ୍ବାରା ସମୃଦ୍ଧ ହୋଇଆସିଛି । ଓଡ଼ିଶାର ପ୍ରତି ପ୍ରସ୍ତର ଖଣ୍ଡ ନାଟକୀୟ ଭଙ୍ଗୀରେ ଲୀଳାଦୀପ୍ତ ଥିଲା । ମନ୍ଦିର ଦୂର୍ଗ, ରାଜପ୍ରସାଦ, ପାହାଡ଼ ପର୍ବତ ଗାତ୍ରରେ ଏଇ ଶିଳ୍ପୀ ସୃଷ୍ଟି କରିଛି ଜୀବନର ନାଟ୍ୟରସ ।

ଓଡ଼ିଶାର ରାଜା, ପ୍ରଜା ସମସ୍ତେ କଳାର ପୂଜାରୀ । ଏଇ କଳା ଚେତନା ହିଁ ଓଡ଼ିଶାର ନାଟ୍ୟକଳାର ବିଚିତ୍ର ପରମ୍ପରା ସୃଷ୍ଟି କରିଛି । ସମୟର ବିବର୍ତ୍ତନରେ ଯୁଗ ରୁଚିର ବିଭିନ୍ନତା ନେଇ ଓଡ଼ିଶାର ନୃତ୍ୟ, ଅଭିନୟ, ପାଲା, ଦାସକାଠିଆ, ଲୋକନାଟ୍ୟ, ଯାତ୍ରା, ଲୀଳା, ସୁଆଙ୍ଗ ଓ ନାଟକ ଆଦି କ୍ରମେ ବିକାଶପଥର ଅଭିଯାତ୍ରୀ ହୋଇପାରିଛି ।

ଆଦିପର୍ବ (୧୮୭୦-୧୯୦୦):
ଓଡ଼ିଆ ନାଟ୍ୟକଳାର ଆଦିପର୍ବ ଥୁଲା ସଂସ୍କୃତ ପ୍ରଭାବିତ । ପ୍ରଥମ ଏଇ ସମୟରେ ଓଡ଼ିଆରେ ସଂସ୍କୃତଧର୍ମୀ ଦୃଶ୍ୟ କାବ୍ୟର ପ୍ରାବଲ୍ୟ ଦେଖା ଦେଇଥିଲା । ଭରତଙ୍କର ନାଟ୍ୟଶାସ୍ତ୍ରରେ ଏ ଶ୍ଳୋକରେ ଓଡ଼ିଶାରେ ନାଟକ ବା ଉଡ୍ର ଦେଶରେ ନାଟକ ଅଭିନୟ ହେବାର ପ୍ରମାଣ ରହିଛି । ଖାରବେଳଙ୍କ ହାତୀଗୁମ୍ଫା ଶିଳାଲେଖରେ ଶିଳାଲେଖରେ ନୃତ୍ୟଶୀଳା ଅଙ୍ଗନାର ଚିତ୍ର ରହିଛି । ଜୟଦେବଙ୍କ ପ୍ରସିଦ୍ଧ ରଚନା ଗୀତଗୋବିନ୍ଦର ସଙ୍ଗୀତ ନୃତ୍ୟ ଇତ୍ୟାଦିର ପ୍ରୟୋଗ ସମ୍ପର୍କୀୟ ଯଥେଷ୍ଟ ପ୍ରମାଣ ରହିଛି ।

ମୁରାରି ମିଶ୍ର ଓ କୃଷ୍ଣ ମିଶ୍ର ପ୍ରମୁଖ ସଂସ୍କୃତ ନାଟ୍ୟକାର ଏଇ ଓଡ଼ିଶା ଭୂମିର ଲେଖକ । ଓଡ଼ିଶାର ବିଭିନ୍ନ ମନ୍ଦିରମାନଙ୍କର ବେଢ଼ା ସଂଲଗ୍ନ ନାଟମଣ୍ଡପ ଓ ନାଟମନ୍ଦିରମାନ ଓଡ଼ିଆ ନାଟ୍ୟକଳା ସମ୍ପର୍କରେ ଦୃଢ଼ ଯୁକ୍ତି ଉପସ୍ଥାପନ କରେ । ଉତ୍କଳ ଭୂମି ବହୁ ପ୍ରାଚୀନ ଲୋକନାଟ୍ୟର ଏକ ସ୍ଵତନ୍ତ୍ର ପୀଠରୂପେ ବିରାଜିତ । ରାମଲୀଳା, କୃଷ୍ଣଲୀଳା, ମୋଗଲତାମସା, ଚଢ଼େୟାନାଟ, ପାଟୁଆନାଟ, ଦଣ୍ଡନାଟ, ଘୋଡ଼ାନାଟ, କଣ୍ଢେଇନାଟ, ପାଲା ଓ ବିଭିନ୍ନ ଲୋକନାଟ୍ୟ ଓଡ଼ିଆ ନାଟ୍ୟକଳାର ବିସ୍ତୃତ ପରିଚୟ ପ୍ରକାଶ କରେ ।

ନ’ ଅଙ୍କ ଦୁର୍ଭିକ୍ଷ, ପରାଧୀନତାର ବନ୍ଧନ, ଭାଷା ବିଲୋପ ଆନ୍ଦୋଳନ ପ୍ରଭୃତି ବିଭିନ୍ନ ପ୍ରକାର ଦୁର୍ବିପାକ ମଧ୍ଯରେ ଓଡ଼ିଆ ଭାଷା ବଞ୍ଚି ରହିଲା ଓ ପରେ ପରେ ଏଥ‌ିରେ ଦେଖାଦେଲା ଗୀତିନାଟ୍ୟ । ୧୮୬୮ ମସହିରେ ରଚିତ ରଘୁନାଥ ପରିଚ୍ଛାଙ୍କର ଗୋପୀନାଟ ବଲ୍ଲଭ ଗୀତିନାଟ୍ୟ ଓଡ଼ିଆ ନାଟ୍ୟ ସାହିତ୍ୟର ଇତିହାସରେ ଏକ ଉଲ୍ଲେଖଯୋଗ୍ୟ ଭୂମିକା ଗ୍ରହଣ କରିଛି । ଏହାପରେ ଜଗନ୍ନାଥ ପାଣି, ଗୋପାଳ ଦାସ, ବୈଷ୍ଣବ ପାଣି ଓ ବାଳକୃଷ୍ଣ ମହାନ୍ତି ପ୍ରଭୃତି ବିଶିଷ୍ଟ ନାଟ୍ୟକାରମାନେ ଗୀତିନାଟ୍ୟର ବଳିଷ୍ଠ ଧାରାକୁ ସମୃଦ୍ଧି କରିଅଛନ୍ତି ।

୧୮୬୮ ମସିହାରେ ଯଦିଓ ‘ଗୋପୀନାଥବଲ୍ଲଭ’ ରଚିତ ହୋଇଛି; ମାତ୍ର ଏହାକୁ ନାଟକ କୁହାଯାଇ ନ ପାରେ । ୧୮୭୬ ମସିହା ଓଡ଼ିଆ ନାଟ୍ୟ ସାହିତ୍ୟରେ ସ୍ମରଣୀୟ ହୋଇ ରହିଛି । ଏଇ ମସିହାରେ ନାଟ୍ୟକାର ଜଗନ୍ମୋହନ ଲାଲାଙ୍କର ପ୍ରଥମ ନାଟକ ‘ବାବାଜୀ’ ଜନ୍ମ ନେଇଥିଲା । ପରେ ପରେ ୧୮୮୭ ବେଳକୁ ଜଗନ୍ମୋହନ ମଧ୍ଯ ‘ସତୀ’ ନାଟକ ରଚନା କଲେ । କିନ୍ତୁ ଏହା ପୂର୍ବରୁ ୧୮୮୦ ମସିହାରେ ନାଟ୍ୟକାର ରାମଶଙ୍କର ରାୟ ‘କାଞ୍ଚି କାବେରୀ’ ନାମକ ନାଟକ ରଚନା କରିଥିଲେ । ଓଡ଼ିଆ ନାଟକ କ୍ଷେତ୍ରରେ ପ୍ରଥମ ଓଡ଼ିଆ ନାଟକ ଅଦ୍ୟାବଧୂ ଏକ ବିବାଦମାନ ସମସ୍ୟା । କେତେଜଣ ଆଲୋଚକ ‘ବାବାଜୀ’ ନାଟକକୁ ପ୍ରଥମ ନାଟକ ଭାବରେ ଗ୍ରହଣ କରନ୍ତି । ମାତ୍ର ‘ବାବାଜୀ’ ନାଟକର କେତେକ ଦୋଷତ୍ରୁଟି ପ୍ରଦର୍ଶନ କରି କେତେଜଣ ଏହାକୁ ପ୍ରଥମ ନାଟକ ଭାବରେ ସ୍ଵୀକୃତି ନ ଦେଇ ରାମଶଙ୍କର ରାୟଙ୍କର ‘କାଞ୍ଚ୍ କାବେରୀ’କୁ ପ୍ରଥମ ନାଟକ ଭାବରେ ମର୍ଯ୍ୟାଦା ଦିଅନ୍ତି । ମାତ୍ର ସମୟ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ଦେଖ‌ିଲେ ଜଗନ୍ମୋହନ ଲାଲାଙ୍କର ‘ବାବାଜୀ’ ନାଟକ ରାମଶଙ୍କରଙ୍କର ‘କାଞ୍ଚି କାବେରୀ’ ନାଟକର ପୂର୍ବସୃଷ୍ଟି ହୋଇଥିବାରୁ ଏହା ଓଡ଼ିଆ ନାଟକ କ୍ଷେତ୍ରରେ ଆଦିସୃଷ୍ଟିର ମର୍ଯ୍ୟାଦା ପାଇବା ଯୁକ୍ତିଯୁକ୍ତ ମନେହୁଏ ।

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‘କାଞ୍ଚି କାବେରୀ’ ପରେ ରାମଶଙ୍କର ବିଷମୋଦକ, ଚୈତନ୍ୟଲୀଳା, ରାମ ବନବାସ, ରାମାଭିଷେକ, କଂସବଧ, ଲୀଳାବତୀ, କାଞ୍ଚନମାଳା, ବନମାଳୀ, ଯୁଗଧର୍ମ, କଳିକାଳ ଓ ବୁଢ଼ାବର ପ୍ରଭୃତି ଚଉଦଖଣ୍ଡ ନାଟକ ରଚନା କରିଛନ୍ତି । ଏହି ସମୟର ଅନ୍ୟତମ ନାଟ୍ୟକାର କାମପାଳ ମିଶ୍ରଙ୍କର ବସନ୍ତ ଲଳିତିକା, ହରିଶ୍ଚନ୍ଦ୍ର, ସୀତା ବିବାହ, ଦୁର୍ଗା, ଶର୍ବରୀ ଇତ୍ୟାଦି ନାଟକଗୁଡ଼ିକ ଗୋଟିଏ ଗୋଟିଏ ସଫଳ ସୃଷ୍ଟି ।

ଏ ସମୟର ଅନ୍ୟତମ ନାଟ୍ୟକାର ହେଉଛନ୍ତି ଭିକାରୀଚରଣ ପଟ୍ଟନାୟକ । ନାଟ୍ୟଧାରାର ଗତାନୁଗତିକ ଶୈଳୀରେ ସେ କଟକ ବିଜୟ, ସଂସାର ଚିତ୍ର, ନନ୍ଦୀକେଶରୀ, ରତ୍ନମାଳୀ, ରାଜା ପୁରୁଷୋତ୍ତମଦେବ, ଯୌତୁକ ଓ ନିରୁପମା ଇତ୍ୟାଦି ନାଟକ ରଚନା କରିଛନ୍ତି ।

ଚିକିଟିର ଯୁବରାଜ ରାଧାମୋହନ ନରେନ୍ଦ୍ର ଦେବ ଏଇ ସମୟରେ ପ୍ରେମ ତରଙ୍ଗ, ପରିମଳା, ପାଣ୍ଡବ ବନବାସ ଓ ପ୍ରକୃତ ପରିଣୟ ଇତ୍ୟାଦି ନାଟକ ସୃଷ୍ଟି କରିଛନ୍ତି । ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟର ସୁପରିଚିତ ସମାଲୋଚକ ପଣ୍ଡିତ ଗୋପୀନାଥ ନନ୍ଦ ସୀତା ବନବାସ, ଜାନକୀ ପରିଣୟ, ଜନ୍ମଭ ରାଘବ, ଦ୍ରୌପଦୀ ହରଣ ଇତ୍ୟାଦି ନାଟକ ରଚନା କରିଛନ୍ତି । ଗୋପୀନାଥଙ୍କ ନାଟ୍ୟଶୈଳୀ ବିଶେଷ ଭାବରେ ସଂସ୍କୃତ ପ୍ରଭାବରେ ପ୍ରଭାବିତ ।

ଏହାଛଡ଼ା ବିଶ୍ଵମୋହନ ରାଚେନ୍ଦ୍ରଦେବ, ବିଶୋର ଚନ୍ଦ୍ର, ରାଜେନ୍ଦ୍ର ଦେବ, ପଦ୍ମନାଭ ନାରାୟଣ ଦେବ ଓ ଗୌରଚନ୍ଦ୍ର ଗଜପତି ଦେବ, ହରିହର ରଥ ଓ ମୃତ୍ୟୁଞ୍ଜୟ ରଥ ପ୍ରମୁଖ ନାଟ୍ୟକାରମାନେ ଏଇ ସମୟରେ ଅନେକ ନାଟକ ରଚନା କରି ଓଡ଼ିଆ ନାଟ୍ୟ ସାହିତ୍ୟକୁ ସମୃଦ୍ଧ କରିଛନ୍ତି । ଏଇ ସମୟର ନାଟକ ପୌରାଣିକ ବିଷୟବସ୍ତୁ ଉପରେ ଆଧାରିତ ଓ ସଙ୍ଗୀତବହୁଳ । ଏଗୁଡ଼ିକରେ ପ୍ରଯୁକ୍ତ ସଂଳାପ ଖୁବ୍ ଦୀର୍ଘ, ମୋଟ ଉପରେ ଐତିହାସିକ ଚେତନା ସମୃଦ୍ଧ ।

ଦ୍ବିତୀୟ ପର୍ବ (୧୯୦୧-୧୯୩୫) :
ବିଂଶ ଶତକର ପ୍ରାରମ୍ଭ ଓଡ଼ିଆ ନାଟକର ବିକାଶ ପଥରେ ପ୍ରକୃତରେ ଉଲ୍ଲେଖଯୋଗ୍ୟ । ଓଡ଼ିଶାରେ ପାଶ୍ଚାତ୍ୟ ଶାସନ ଓ ତହିଁରୁ ମୁକ୍ତିଲାଭ କରିବାପାଇଁ ଓଡ଼ିଶାବାସୀଙ୍କର ଦୁର୍ବାର ବ୍ୟାକୁଳତା ଓଡ଼ିଆଙ୍କ ମନରେ ଜାତୀୟ ଚେତନା ସୃଷ୍ଟି କଲା । କଳା ସ୍ଥାପତ୍ୟରେ ପରିପୂର୍ଣ୍ଣ ଓଡ଼ିଆ ଜାତି ପୁଣି ଥରେ ସ୍ଵାଭିମାନୀ ହୋଇ ଉଠିବାକୁ ଆପ୍ରାଣ ଉଦ୍ୟମ କଲା । ସତ୍ୟବାଦୀର ସାହିତ୍ୟିକ ଗୋଷ୍ଠୀ ଓଡ଼ିଆ ପ୍ରାଣରେ ଜାତୀୟ ଜାଗରଣ ସୃଷ୍ଟି କରିବାପାଇଁ ନେତୃତ୍ଵ ନେଲେ ।

ଏ ଜାତିର ଗୌରବମଣ୍ଡିତ ତେଜୋଦୀପ୍ତ ଇତିହାସକୁ ଏ ଜାତି ସମ୍ମୁଖରେ ଉପସ୍ଥାପନ କରି ଭଗ୍ନହୃଦୟ ଓଡ଼ିଆ ପ୍ରାଣରେ ନୂତନ ଜାତୀୟତାବୋଧ ସଞ୍ଚାର କରିବା ଥିଲା ଏହି ସାହିତ୍ୟିକ ଗୋଷ୍ଠୀର ଆଭିମୁଖ୍ୟ । ଏ ଗୋଷ୍ଠୀର ଅନ୍ୟତମ ବିଶିଷ୍ଟ ସାହିତ୍ୟିକ ଗୋଦାବରୀଶ ମିଶ୍ର ‘ମୁକୁନ୍ଦଦେବ’ ଓ ‘ପୁରୁଷୋତ୍ତମଦେବ’ ନାମକ ଦୁଇଟି ଐତିହାସିକ ନାଟକ ସୃଷ୍ଟି କରି ଜାତୀୟ ଜାଗରଣକୁ ତ୍ବରାନ୍ବିତ କରିପାରିଥିଲେ । ଇତିହାସର ସତ୍ୟ ସହିତ କେତେକ କାଳ୍ପନିକ ଚରିତ୍ର ପରିବେଷଣ କରି ଗୋଦାବରୀଶ ନାଟକକୁ ଜୀବନ୍ତ କରିବାର ପ୍ରଚେଷ୍ଟା କରିଥିଲେ ।

ତାଙ୍କ ପୂର୍ବରୁ ମୋହନସୁନ୍ଦର ଦେବ ଗୋସ୍ୱାମୀ ଓ ଗୋବିନ୍ଦଚନ୍ଦ୍ର ଶୁରଦେଓ ପ୍ରମୁଖ ନାଟ୍ୟକାର ପେଟେଣ୍ଟ ମେଡ଼ିସିନ ଫାର୍ଶ, କୁଳରକ୍ଷା ଫାର୍ଶ, ନରମେଧ ଯଜ୍ଞ, ସାକ୍ଷୀଗୋପାଳ, ନାରକାସୁରବଧ, ରାସଲୀଳା ଓ ଉତ୍କଳ ରମଣୀ ଆଦି ନାଟକ ରଚନା କରିଥିଲେ । ତେଣୁ ପୌରାଣିକତା ଓ ଐତିହାସିକତା ଏ ସମୟର ବିଶେଷତ୍ୱ ।

ଏଇ ସମୟରେ ନାଟ୍ୟକାର ଅଶ୍ବିନୀ କୁମାର ଘୋଷଙ୍କ କୃତିତ୍ୱ ଉଲ୍ଲେଖଯୋଗ୍ୟ । ଓଡ଼ିଶୀ ନାଟ୍ୟଜଗତକୁ ତାଙ୍କର ମହନୀୟ ଅବଦାନ ହେଉଛି ଭୀଷ୍ମ, ସାବିତ୍ରୀ, ହିନ୍ଦୁ ରମଣୀ, କଳାପାହାଡ଼, କୋଣାର୍କ, ପାଇକପୁଅ, ଉତ୍କଳ ଗୌରବ, ଗୋବିନ୍ଦ ବିଦ୍ୟାଧର, କପିଳେନ୍ଦ୍ର ଦେବ, ଭଞ୍ଜ-ଭୁଜଙ୍ଗ ପ୍ରଭୃତି ଅନେକ ନାଟକ । ଓଡ଼ିଆ ନାଟ୍ୟ ଜଗତର ସେ ଜଣେ ଅପ୍ରତିଦ୍ବନ୍ଦୀ ସ୍ରଷ୍ଟା ।

ପରେ ପରେ କାର୍ତ୍ତିକଚନ୍ଦ୍ର ଘୋଷଙ୍କର, ‘ମୀରକାଶିମ’, ‘ବୀର ଅଭିମନ୍ୟୁ’ ପ୍ରଭୃତି ନାଟକ, କାନ୍ତକବି ଲକ୍ଷ୍ମୀକାନ୍ତ ମହାପାତ୍ରଙ୍କର ଶରତ୍‌ରାସ, ବସନ୍ତବିଳାସ, ବରୁଣ ବିଜୟ, କାଳୀୟ ଦଳନ ପ୍ରଭୃତି ଅନେକ ଭକ୍ତି ରସାତ୍ମକ ନାଟକ, ବାଳକୃଷ୍ଣଙ୍କର ‘ଚନ୍ଦ୍ରଗୁପ୍ତ’ ଓ ‘ଶିବଦାସ’, ମାୟାଧର ମାନସିଂହଙ୍କର ରାଜକବି, ଉପେନ୍ଦ୍ର, ପୁଷିତା, ପୂଜାରିଣୀ, ନଷ୍ଟନୀଡ଼, ବାରବାଟୀ, ଦୁର୍ଭିକ୍ଷ ଓ ରାମଚନ୍ଦ୍ର ମହାପାତ୍ରଙ୍କର ସୁଦାମା, ରଘୁ ଅରକ୍ଷିତ ଇତ୍ୟାଦି ନାଟକ ସୃଷ୍ଟି ହୋଇ ଓଡ଼ିଆ ନାଟ୍ୟଜଗତକୁ ସମୃଦ୍ଧି କରିପାରିଛି । ଓଡ଼ିଆ ନାଟକର ଦ୍ବିତୀୟ ପର୍ବରେ ନାଟକଗୁଡ଼ିକର ଶିଳ୍ପକୌଶଳ କ୍ରମଶଃ ମାର୍ଜିତ ରୂପରେଖ ନେଇଥିଲା ଓ ଆଧୁନିକ ପର୍ବ ପାଇଁ ପ୍ରସ୍ତୁତିକରଣ ହିଁ ଏଇ ପର୍ଯ୍ୟାୟରେ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଥିଲା ।

ତୃତୀୟ ପର୍ବ (୧୯୩୬-୧୯୬୦) :
୧୯୩୬ ମସିହାରେ ସ୍ୱତନ୍ତ୍ର ଉତ୍କଳ ପ୍ରଦେଶ ଗଠିତ ହୋଇଥିଲା । ଉତ୍କଳର ଜାତୀୟ ଜୀବନରେ ନୂତନ ଜୀବନର ସଞ୍ଚାର ସମ୍ଭବ ହେଲା । ଓଡ଼ିଶାରେ ବିଭିନ୍ନ ସ୍ଥାନରେ ନିର୍ମିତ ରଙ୍ଗମଞ୍ଚ ନୂତନ ଭାବରେ ଗଠିତ ହେଲା ।

ଏଇ ସମୟରେ ଓଡ଼ିଶା ନାଟ୍ୟଜଗତକୁ କାଳୀଚରଣଙ୍କ ଆଗମନ ଏକ ସ୍ବତନ୍ତ୍ର ପର୍ଯ୍ୟାୟ ସୃଷ୍ଟି କଲା । କାଳୀଚରଣଙ୍କ ପୂର୍ବରୁ ରଚିତ ନାଟକଗୁଡ଼ିକର ଅଭିନୟ ସାଫଲ୍ୟ ନ ଥିଲା । କାଳୀଚରଣ ପ୍ରଥମ କରି ସଫଳ ମଞ୍ଚନାଟ୍ୟ ସୃଷ୍ଟି କରିବାରେ ଆତ୍ମନିୟୋଗ କଲେ । ତାଙ୍କରି ପ୍ରଚେଷ୍ଟାରେ ଏତିକିବେଳକୁ ଓଡ଼ିଶା ଥୁଟର୍ସ ଗଠିତ ହେଲା । ଏଇ ସ୍ଥାୟୀ ରଙ୍ଗମଞ୍ଚରେ ଓଡ଼ିଆ ଅଭିନେତ୍ରୀମାନେ ପ୍ରଥମ ଥର ପାଇଁ ଅଭିନୟର ସୁଯୋଗ ପାଇଲେ ।

କବିଚନ୍ଦ୍ର କାଳୀଚରଣ ଥିଲେ ଏକାଧାରରେ ଅଭିନେତା, ସଙ୍ଗୀତଜ୍ଞ, ନାଟ୍ୟକାର ଓ ନିର୍ଦ୍ଦେଶକ । ଓଡ଼ିଆ ନାଟକକୁ ଦର୍ଶକଙ୍କ ସାମନାରେ ପହଞ୍ଚାଇବାରେ ତାଙ୍କର ଅନନ୍ୟ ଚିନ୍ତାଧାରା ଓ କୌଶଳ ଅବର୍ଣ୍ଣନୀୟ । ତାଙ୍କ ରଚିତ ଭାତ, ଗାର୍ଲସ୍କୁଲ, ରକ୍ତମାଟି, ଫଟାଭୂଇଁ, ହରିଶ୍ଚନ୍ଦ୍ର, ମୃଗୟା, ଶକୁନ୍ତଳା, ଅଭିଯାନ, ରକ୍ତମନ୍ଦାର, ପ୍ରତିଶୋଧ, ଜୟଦେବ, ସାରଳାଦାସ, ଅତିବଡ଼ି ଜଗନ୍ନାଥ ଦାସ ପ୍ରଭୃତି ନାଟକଗୁଡ଼ିକ ତାଙ୍କ ଅମର ପ୍ରତିଭାର ସ୍ମାରକୀ ବହନ କରିଛି । ନୃତ୍ୟ ସଙ୍ଗୀତରେ ଭରା ତାଙ୍କର ନାଟକଗୁଡ଼ିକର ମଞ୍ଚସାଫଲ୍ୟ ତାଙ୍କ କୃତିତ୍ଵର ବିଶେଷତ୍ଵ ।

ଓଡ଼ିଆ ନାଟକରେ ସାମାଜିକ ଚେତନା ସମ୍ପ୍ରସାରଣ କରିବାରେ କାଳୀଚରଣଙ୍କ ଭୂମିକା ଉଲ୍ଲେଖନୀୟ । ତେଣୁ କାଳୀଚରଣଙ୍କ ପରେ ପରେ ଓଡ଼ିଆ ନାଟକରେ ସମସ୍ୟାବହୁଳ ସମାଜ ଜୀବନର ବିଶେଷ ଚିତ୍ର ପ୍ରକାଶିତ ହେଲା । କାଳୀଚରଣଙ୍କ ପରେ କାଳିନ୍ଦୀଚରଣ ପାଣିଗ୍ରାହୀ, ଗୋପାଳ ଛୋଟରାୟ, କମଳଲୋଚନ ମହାନ୍ତି, ଭଞ୍ଜକିଶୋର ପଟ୍ଟନାୟକ, ପ୍ରାଣବନ୍ଧୁ କର ଓ ରାମଚନ୍ଦ୍ର ମିଶ୍ର ପ୍ରମୁଖ ନାଟ୍ୟକାରଗଣ ସାମାଜିକ, ଅର୍ଥନୈତିକ ଓ ରାଜନୈତିକ ସମସ୍ୟାକୁ ନେଇ ବହୁ ନାଟକ ସୃଷ୍ଟି କରିଅଛନ୍ତି ।

୬୦ ପରବର୍ତ୍ତୀ କାଳଖଣ୍ଡରେ ନାଟକ :
ଓଡ଼ିଆ ନାଟକର ୬୦ ପରବର୍ତ୍ତୀ କାଳଖଣ୍ଡରେ ନାଟ୍ୟକାର ମନୋରଞ୍ଜନ ଦାସ ଜଣେ ସଫଳ ସ୍ରଷ୍ଟା । ନାଟ୍ୟକାରଙ୍କର ନବନାଟ୍ୟ ଆନ୍ଦୋଳନର ନାଟକ ଭାବରେ ଆଗାମୀ ଅବରୋଧ, ସାଗର ମନ୍ଥନ, କାଠଘୋଡ଼ା, ବନହଂସ, ଅରଣ୍ୟ ଫସଲ ଓ ଅମତସ୍ୟ ପୁତ୍ର ଇତ୍ୟାଦି ସଫଳ ସୃଷ୍ଟି । ପରୀକ୍ଷାଧର୍ମୀ, ପ୍ରୟୋଗଧର୍ମୀ, ପ୍ରତୀକଧର୍ମୀ ନାଟକ ଆଲୋଚ୍ୟ କାଳରେ ବିପୁଳ ପରିମାଣରେ ସୃଷ୍ଟି ହେବାକୁ ଲାଗିଛି । ନାଟ୍ୟମଞ୍ଚ ଓ ନାଟ୍ୟଶିଳ୍ପରେ ମଧ୍ୟ ବିପୁଳ ପରିବର୍ତ୍ତନ ସଙ୍ଘଟିତ ହେଉଛି । ଆଲୋଚ୍ୟ କାଳରେ ଏଇ ଧରଣର ନାଟକ ରଚନା କରିବାରେ ବିଶ୍ୱଜିତ ଦାସ, ବିଜୟ ମିଶ୍ର, କାର୍ତ୍ତିକଚନ୍ଦ୍ର ରଥ, ବସନ୍ତକୁମାର ମହାପାତ୍ର, ଡକ୍ଟର ରତ୍ନାକର ଚଇନି ଓ ଅକ୍ଷୟ ମହାନ୍ତି ଇତ୍ୟାଦି ନାଟ୍ୟକାରଗଣଙ୍କ କୃତିତ୍ୱ ପ୍ରଶଂସନୀୟ ।

ବିଜୟ ମିଶ୍ରଙ୍କ ‘ଶବବାହନମାନେ’, ବିଶ୍ୱଜିତ ଦାସଙ୍କ ‘ଶୁଣ ସୁଜନେ’, ‘ସମ୍ରାଟ’, ‘ମୃଗୟା’, ‘ନାଲିପାନ ବିବି, କଳାପାନ ଟୀକା’, ବସନ୍ତ ମହାପାତ୍ରଙ୍କ ‘ଜ୍ଵାଳା’, ‘ଶୃଙ୍ଗାରଶତକ’ ଓ ରତ୍ନାକର ଚଇନିଙ୍କ ‘ପୁନଶ୍ଚ ପୃଥ‌ିବୀ’, ‘ରାଜହଂସ’, ‘ ଅପଦେବତା’, ‘ଅଥଚ ଚାଣକ୍ୟ’ ଇତ୍ୟାଦି ନାଟକଗୁଡ଼ିକର ସାରସ୍ୱତ ଜଗତରେ ନୂତନ ଦିହୁଡ଼ି ଜଳାଇ ଦେଇଛନ୍ତି । ଏସବୁ ନାଟକରେ ଅତ୍ୟାଧୁନିକ ମଣିଷର ଅସଙ୍ଗତିବୋଧ, ଅସମାଞ୍ଜସ୍ୟତା ଇତ୍ୟାଦି ଦର୍ଶାଇ ଦିଆଯାଇଛି । କଳେବରରେ ଏଗୁଡ଼ିକ ସଂକ୍ଷିପ୍ତ ହେଲେ ମଧ୍ୟ ଶିଳ୍ପ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ଏଗୁଡ଼ିକ ଉନ୍ନତ ।

ପ୍ରକୃତରେ ଆଧୁନିକ କାଳର ଓଡ଼ିଆ ନାଟକ ଅଧ‌ିକ କେତେ ପାଦ ଆଗେଇପାରିଛି । ଆଧୁନିକ ଜୀବନଯାତ୍ରାର ସଫଳ ରୂପାୟନ ଘଟିଛି । ଅତ୍ୟାଧୁନିକ କାଳର ଓଡ଼ିଆ ନାଟ୍ୟ ସହିତ୍ୟରେ ଅତ୍ୟାଧୁନିକ ଓଡ଼ିଆ ନାଟକ ଆଉ ପାରମ୍ପରିକ ନାଟ୍ୟ ରଚନାରୀତିକୁ ଅନୁସରଣ କରୁନାହିଁ; ବରଂ ପାରମ୍ପରିକ ପଞ୍ଚାଙ୍କ ବିଶିଷ୍ଟ ନାଟ୍ୟ ରଚନାଶୈଳୀକୁ ପରିହାର କରି ଏହା ଗୋଟିଏ ମାତ୍ର ପଟ୍ଟଭୂମି ଉପରେ ପର୍ଯ୍ୟବସିତ ହେଲାଣି । ମଣିଷ ମନର ମାନସିକତାକୁ ନାଟକର ବହୁ କ୍ଷେତ୍ରରେ ହିଁ ଦର୍ଶାଇ ଦିଆଯାଉଛି । ଏହା ବ୍ୟତୀତ ନାନାବିଧ ସାମାଜିକ ସମସ୍ୟା ଓ ମଣିଷ ମନର ନାନାବିଧ ସମସ୍ୟାକୁ ଏଥ‌ିରେ ହିଁ ସ୍ଥାନିତ କରାଯାଇଛି ।

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 3 ମଲାଜହ୍ନ Question Answer

ଉପରୋକ୍ତ ନାଟକଗୁଡ଼ିକରେ ନାଟ୍ୟକାରମାନେ ଜୀବନର ଉଗ୍ର ବାସ୍ତବ ସତ୍ୟର ନଗୁରୂପ ଚିତ୍ରକଳ୍ପ, ପ୍ରତୀକ, ରୂପକଳ୍ପ ଓ ସୂଚନାଧର୍ମୀ ସଂଳାପ ଚାତୁରୀ ମଧ୍ୟରେ ପ୍ରକଟିତ ହୋଇଛି । ସାମ୍ପ୍ରତିକ ମଣିଷର ଉଦାସୀନତା, ହତାଶା, ବିଚ୍ଛିନ୍ନତା ଇତ୍ୟାଦିର ବ୍ୟାଖ୍ୟାକାର ଭାବରେ ଏହି ନାଟ୍ୟକାରମାନେ ବର୍ଣ୍ଣନାତ୍ମକ ଦୀର୍ଘଧର୍ମୀପ୍ରଧାନ ଭାଷା ଓ ସଂଳାପ ଅପେକ୍ଷା ସୂଚନାଧର୍ମୀ ବକ୍ତବ୍ୟପ୍ରଧାନ କ୍ଷୁଦ୍ର ସଂଳାପ ଉପରେ ଗୁରୁତ୍ୱ ଦେଇ ବିଭିନ୍ନ ପରୀକ୍ଷା ନିରୀକ୍ଷା କରିଛନ୍ତି । କାହାଣୀ ବର୍ଣ୍ଣନାର ଊର୍ଦ୍ଧ୍ବରେ ଜୀବନର ସମସ୍ୟା, ଦ୍ବନ୍ଦ ଓ ନିର୍ଦ୍ଦିଷ୍ଟ ସମୟର ଚାପ ଏହି କାଳଖଣ୍ଡର ନାଟକସବୁର ଉପଜୀବ୍ୟ ହୋଇଛି ।

ସମୟର ତାଳେତାଳେ ବଦଳିଛି ମଞ୍ଚକୌଶଳ । ବଦଳିଛି ସଂଳାପ ରଚନାର ଧାରା । କାହାଣୀରେ ଆସିଛି ବିପ୍ଲବ, ସମାଜରୁ ବ୍ୟକ୍ତି ଅନ୍ତର୍ନିହିତ ଭାବଧାରା ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ସବୁକିଛି ରୂପ ନେଇଛି ଖୁବ୍ ଚମତ୍କାର ଢଙ୍ଗରେ । ସାଧାରଣ ଦର୍ଶକର ଇଚ୍ଛାର ସମ୍ମାନ ରଖୁ ରଖୁ ଏଇ ନାଟକ ତା’ର ବିକାଶପଥରେ ଅନେକ ଉତ୍ଥାନ ଓ ପତନ ସହ କେବେକେବେ ବୌଦ୍ଧିକ ସ୍ତରର ଖେଳକସରତକୁ ନିଜ କଳେବର ମଧ୍ୟରେ ସାମିଲ କରିନେଇଛି ତ ପୁଣି କେବେ ଫେରିଛି ସେଇ ଗତାନୁଗତିକ ଧାରାକୁ । ତେବେ ଏତେସବୁ ଭିତରେ ଓଡ଼ିଆ ନାଟକ ଏକ ସୁସ୍ଥଧାରାରେ ବିକାଶପଥରେ ଅଗ୍ରସର ଏକଥା ସ୍ଵୀକାର କରାଯିବାରେ ଅସୁବିଧା ନାହିଁ ।

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 4 ରାଜହଂସ Question Answer

Odisha State Board Plus Two First Year Optional Odia Question Answer Chapter 4 ରାଜହଂସ Textbook Exercise Questions and Answers.

Plus Two First Year Optional Odia Chapter 4 ରାଜହଂସ Question Answer

ପାଠ୍ୟପୁସ୍ତକସ୍ଥ ନମୁନା ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ ଓ ଉତ୍ତର

(କ) ୧ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ସମ୍ଭାବ୍ୟ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ ।

Question 1.
ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କର ମାନସିକ ଚିକିତ୍ସାକେନ୍ଦ୍ର କେଉଁଠି ଅବସ୍ଥିତ?
(କ) ଚନ୍ଦକାରଣ୍ୟ
(ଖ) ଦଣ୍ଡକାରଣ୍ୟ
(ଗ) ଅଭୟାରଣ୍ୟ
(ଘ) ନୈମିଷ୍ଯାରଣ୍ୟ
Answer:
(ଖ) ଦଣ୍ଡକାରଣ୍ୟ

Question 2.
ଡାକ୍ତରଖାନାରେ ମଦ ଆଣି ପିନାକୀକୁ କିଏ ଦେଇଥୁଲା?
(କ) ଅଇଁଠା
(ଖ) ବୀର
(ଗ) ହରି
(ଘ) ନରି
Answer:
(ଗ) ହରି

Question 3.
ମଦ ଖାଇ ମୁଁ ନିଜକୁ ଜଳାଇବାକୁ ଆରମ୍ଭ କରିଥିଲି । ସେଇ ମଦରେ ଜଳିପୋଡ଼ି ଶେଷରେ ମୁଁ ଧ୍ୱଂସ ହୋଇଯିବାକୁ ଚାହେଁ – କିଏ କହିଛନ୍ତି?
(କ) ପିନାକୀ
(ଖ) ଅତୁନୀ
(ଗ) ପ୍ରଫେସର
(ଘ) ହରି
Answer:
(କ) ପିନାକୀ

Question 4.
ଯେଉଁଠି ବିଜ୍ଞାନୀ ତା’ର ନିଜର ସତ୍ତା ହରାଇବସେ, ସେଇଠି ସେ କାହାକୁ ଖୋଜେ?
(କ) ବାପାଙ୍କୁ
(ଖ) ଈଶ୍ବରଙ୍କୁ
(ଗ) ବନ୍ଧୁଙ୍କୁ
(ଘ) ସହକର୍ମୀକୁ
Answer:
(ଖ) ଈଶ୍ବରଙ୍କୁ

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 4 ରାଜହଂସ Question Answer

Question 5.
ପୃଥ‌ିବୀ ବଜାରର ପରିବା କେଉଁଠି ଯାଇ ରନ୍ଧା ହେବ ବୋଲି ପ୍ରଫେସର କହିଛନ୍ତି?
(କ) ମଙ୍ଗଳରେ
(ଖ) ଦୋକାନରେ
(ଗ) ଚନ୍ଦ୍ରରେ
(ଘ) ହିମାଳୟରେ
Answer:
(ଗ) ଚନ୍ଦ୍ରରେ

Question 6.
ଗୁଡ଼ାଏ ଭୋକିଲା ମଣିଷ ଗୋଟାଏ _________________ କୁ ନଷ୍ଟ କରିଦେଇ ପାରନ୍ତି ।
(କ) ଜାତି
(ଖ) ଦେଶ
(ଗ) ସମ୍ପ୍ରଦାୟ
(ଘ) ସଭ୍ୟତା
Answer:
(ଘ) ସଭ୍ୟତା

Question 7.
କେତେ ବର୍ଷ ଭିତରେ ଚନ୍ଦ୍ର ସହିତ ସମସ୍ତ ବାଣିଜ୍ୟିକ ସମ୍ପର୍କ ସ୍ଥାପିତ ହୋଇ ସାରିଥିବ ବୋଲି ପ୍ରଫେସର କହିଥିଲେ?
(କ) ପାଞ୍ଚ ବର୍ଷ
(ଖ) ଦଶ ବର୍ଷ
(ଗ) ପନ୍ଦର ବର୍ଷ
(ଘ) କୋଡ଼ିଏ ବର୍ଷ
Answer:
(ଖ) ଦଶ ବର୍ଷ

Question 8.
ଗୀତା, ବାଇବେଲ୍ ଆଉ କୋରାନ୍‌ରୁ ବିଶ୍ୱାସହୀନ ମଣିଷ କ’ଣ ଖୋଜେ ବୋଲି ପ୍ରଫେସର କହିଛନ୍ତି?
(କ) ଧର୍ମବାଣୀ
(ଖ) ଆଶ୍ଵାସନାର ବାଣୀ
(ଗ) ଶାନ୍ତିର ବାଣୀ
(ଘ) ବିଶ୍ୱାସଘାତକତାର ବାଣୀ
Answer:
(ଘ) ବିଶ୍ୱାସଘାତକତାର ବାଣୀ

Question 9.
କବିର ମନ ବିଷାକ୍ତ ନ ହୋଇ ସବୁବେଳେ କ’ଣ ହେବା ଦରକାର ବୋଲି ଅତନୁ କହିଛି?
(କ) ପ୍ରଫୁଲ୍ଲ
(ଖ) ବିଷାଦଗ୍ରସ୍ତ
(ଗ) ମୋହଗ୍ରସ୍ତ
(ଘ) ହିଂସାଗ୍ରସ୍ତ
Answer:
(କ) ପ୍ରଫୁଲ୍ଲ

Question 10.
ଭୀମ ଡାକ୍ତରଖାନାରେ କାହାକୁ ଦେଖୁ ନୟନା ବୋଲି ଭାବୁଥୁଲା?
(କ) ସାବିତ୍ରୀ
(ଖ) ବେବି
(ଗ) ସିଷ୍ଟର
(ଘ) ରୀତା
Answer:
(କ) ସାବିତ୍ରୀ

Question 11.
ଅତୀତରୁ ବର୍ତ୍ତମାନ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଆମର ଭୂମିକା କେଉଁ ଗତିରେ ଚାଲିବା ଉଚିତ ବୋଲି ଜୟନ୍ତ ଅତନୁକୁ କହିଛି?
(କ) କ୍ଷିପ୍ର
(ଖ) ଧୀର
(ଗ) ସମାନ୍ତରାଳ
(ଘ) ବିଷମ
Answer:
(ଗ) ସମାନ୍ତରାଳ

Question 12.
ନୟନା କେଉଁଠି ଲୁଚିଲେ ମଧ୍ୟ ଭୀମ ତାକୁ ଛାଡ଼ିବ ନାହିଁ?
(କ) ଘରକୋଣରେ
(ଖ) ଡାକ୍ତରଖାନାରେ
(ଗ) ଗଛ ଉହାଡ଼ରେ
(ଘ) ଜଳେ ସ୍ଥଳେ କି ଅବା ଅନଳେ
Answer:
(ଘ) ଜଳେ ସ୍ଥଳେ କି ଅବା ଅନଳେ

Question 13.
ପିନାକୀ ବାବୁ କେଉଁଥିରେ ବିଫଳ ହୋଇ ମଦ ପିଇବା ଆରମ୍ଭ କରିଥିଲେ?
(କ) ଖେଳରେ
(ଖ) ରାଜନୀତିରେ
(ଗ) ପ୍ରେମରେ
(ଘ) ବ୍ୟବସାୟରେ
Answer:
(ଘ) ବ୍ୟବସାୟରେ

Question 14.
ବିଜ୍ଞାନ ଗବେଷଣା ଭ୍ରଷ୍ଟ ହୋଇ କିଏ ପାଗଳ ହୋଇଥିଲା?
(କ) ପ୍ରଫେସର ପରିଜା
(ଖ) ବୀର
(ଗ) ଜୟନ୍ତ
(ଘ) ପିନାକୀ
Answer:
(କ) ପ୍ରଫେସର ପରିଜା

Question 15.
ଆଶାରେ ମଣିଷ ବଞ୍ଚେ । ଆଦିମ ଯୁଗରୁ ମଣିଷ ଆଶାବାଦୀ – କିଏ କହିଛି?
(କ) ହରି
(ଖ) ଜୟନ୍ତ
(ଗ) ରୀତା
(ଘ) ଅତନୁ
Answer:
(ଘ) ଅତନୁ

Question 16.
ମୁଁ ଛୁରୀ କଇଁଚି ଚଳାଇଲି ବୋଲି କ’ଣ ମୋ’ ମନରୁ ମରିଯିବ ବୋଲି ଅତନୁ କହିଛି?
(କ) ପ୍ରେମ
(ଖ) ହିଂସା
(ଗ) ଈର୍ଷା
(ଘ) କ୍ରୋଧ
Answer:
(କ) ପ୍ରେମ

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 4 ରାଜହଂସ Question Answer

Question 17.
ଜଣେ ଦରଦୀ ଲୋକ ପାଖରେ ନିଜ ମନର ବୋଝ ଅଜାଡ଼ି ଦେଲେ ମନଟା ବହୁ ପରିମାଣରେ କ’ଣ ହୋଇଯାଏ?
(କ) ହାଲୁକା
(ଖ) ଦୁଃଖ୍
(ଗ) ଓଜନିଆ
(ଘ) ଗମ୍ଭୀର
Answer:
(କ) ହାଲୁକା

Question 18.
କ’ଣ ଦେଖାଇବା ଡାକ୍ତର ଓ ସେବିକାଙ୍କର ଧର୍ମ?
(କ) ଘୃଣା
(ଖ) ସ୍ନେହ
(ଗ) ପ୍ରେମ
(ଘ) ସେବା ସହାନୁଭୂତି
Answer:
(ଘ) ସେବା ସହାନୁଭୂତି

Question 19.
ଜୟନ୍ତବାବୁ କାହାର ସ୍ଵାମୀ ଅଟନ୍ତି?
(କ) ରୀତା
(ଖ) ସୀତା
(ଗ) ଗୀତା
(ଘ) ମିତା
Answer:
(କ) ରୀତା

Question 20.
କାହା ସ୍ବରରେ ରହିଛି ରୀତାଦେବୀଙ୍କର ଜୀବନ ତନ୍ତ୍ରୀର ଅଜସ୍ର ବ୍ୟାକୁଳତା?
(କ) ଢୋଲ
(ଖ) ହାରମୋନିଅମ୍
(ଗ) ତାବଲା
(ଘ) ଭାଓଲିନ୍
Answer:
(ଘ) ଭାଓଲିନ୍

Question 21.
ରୀତା ଭାଓଲିନ୍‌ର ଛନ୍ଦେ ଛନ୍ଦେ କାହାକୁ ଖୋଜେ?
(କ) କବିତା
(ଖ) ରଚିତା
(ଗ) ବବିତା
(ଘ) ଅର୍ଚ୍ଚିତା
Answer:
(କ) କବିତା

Question 22.
ଆଦର୍ଶଟା କାହାଦ୍ଵାରା ପରିଚାଳିତ ହୁଏ ବୋଲି ବୀରବାବୁ କହିଛନ୍ତି?
(କ) ପୁତ୍ର
(ଖ) ଧର୍ମ
(ଗ) କନ୍ଯା
(ଘ) ପିତା
Answer:
(ଖ) ଧର୍ମ

Question 23.
ଯୁଦ୍ଧଭୂମିରେ ଦିନେ ବୋମାମାଡ଼ର ଶିକାର କିଏ ହୋଇଥିଲେ?
(କ) ସିଷ୍ଟର
(ଖ) ବେବି
(ଗ) ବୀର
(ଘ) ଜୟନ୍ତ
Answer:
(ଗ) ବୀର

Question 24.
ମନସ୍ତାତ୍ତ୍ଵିକ ଚିକିତ୍ସାର ଗବେଷଣା ପାଇଁ ଡକ୍ଟର ଅତନୁ କେଉଁଠାକୁ ଯାଇଥିଲେ?
(କ) ଇଂଲଣ୍ଡ
(ଖ) ଚୀନ
(ଗ) ଆମେରିକା
(ଘ) ଜାପାନ
Answer:
(ଗ) ଆମେରିକା

Question 25.
ସର୍ବଗ୍ରାସୀ ନିଶା ତାକୁ ଯେମିତି କ’ଣ କରିଦେଇଛି ବୋଲି ପିନାକୀ କହିଛି?
(କ) ଭଲ ମଣିଷ
(ଖ) ଦାର୍ଶନିକ
(ଗ) ଗୋଟିଏ ମାଟିର କଣ୍ଢେଇ
(ଘ) ବୈଜ୍ଞାନିକ
Answer:
(ଗ) ଗୋଟିଏ ମାଟିର କଣ୍ଢେଇ

Question 26.
ବ୍ୟୟବସାୟ ତ ଗୋଟାଏ ଜୁଆଖେଳ – ଏକଥା କିଏ କାହାକୁ କହିଛନ୍ତି?
(କ) ଡାକ୍ତର ସିଷ୍ଟରକୁ
(ଖ) ଅତନୁ ପିନାକୀକୁ
(ଗ) ହରି ଜୟନ୍ତକୁ
(ଘ) ରୀତା ସିଷ୍ଟରକୁ
Answer:
(ଖ) ଅତନୁ ପିନାକୀକୁ

Question 27.
କାହାର ଅପରେସନ୍ ପାଇଁ ଡକ୍ଟର ସେନ୍‌ଙ୍କୁ ଡକା ହୋଇଥିଲା?
(କ) ପିନାକୀ
(ଖ) ଜୟନ୍ତ
(ଗ) ରୀତା
(ଘ) ବେବୀ
Answer:
(କ) ପିନାକୀ

Question 28.
ସମସ୍ତେ କେଉଁଠିକି ଆସନ୍ତି କାନ୍ଦି କାନ୍ଦି କିନ୍ତୁ ଗଲାବେଳେ ଯାଆନ୍ତି ହସିହସି?
(କ) ନଈକୁ
(ଖ) ପୋଖରୀକୁ
(ଗ) ସମୁଦ୍ରକୁ
(ଘ) ଅତନୁଙ୍କ ଚିକିତ୍ସା କେନ୍ଦ୍ରକୁ
Answer:
(ଘ) ଅତନୁଙ୍କ ଚିକିତ୍ସା କେନ୍ଦ୍ରକୁ

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 4 ରାଜହଂସ Question Answer

Question 29.
ଅତନୁଙ୍କ ଚାପୁଡ଼ା ମାଡ଼କୁ କିଏ ଆଗାମୀ ସକାଳ ପାଇଁ ପ୍ରାପ୍ୟ ବୋଲି ଧରିନେବ?
(କ) ରୀତା
(ଖ) ବେବି
(ଗ) ଜୟନ୍ତ
(ଘ) ହରି
Answer:
(କ) ରୀତା

Question 30.
ଟିକେ ନିରୋଳାରେ ବସି ପଡ଼ିଲେ କାହାକୁ ରୀତା ବଡ଼ବଡ଼ କଳାକଳା ଆଖୁଗୁଡ଼ାକ ଭୟ ଦେଖାନ୍ତି?
(କ) ଅତନୁକୁ
(ଖ) ସିଷ୍ଟରକୁ
(ଗ) ହରିକୁ
(ଘ) ଜୟନ୍ତକୁ
Answer:
(ଘ) ଜୟନ୍ତକୁ

Question 31.
ମୋର ଯଦି କିଛି ଗୋଟାଏ ହୋଇଯାଏ, ତେବେ ବେବିର ଦାୟିତ୍ଵ କିଏ ବହନ କରିବେ ବୋଲି ପିନାକୀ କହିଛନ୍ତି?
(କ) ଜୟନ୍ତ
(ଖ) ଅତନୁ
(ଗ) ହରି
(ଘ) ସିଷ୍ଟର
Answer:
(ଖ) ଅତନୁ

Question 32.
ପ୍ରଫେସର କହିଛନ୍ତି ଡକ୍ଟର ! ମୋ ଜୀବନଟା ନେଇ ତମେ ______________________ ଦେହରେ ଭରି କରି ଦେଇପାରିବ ।
(କ) ରୀତା
(ଖ) ହରି
(ଗ) ବେବିର ଡାଡ଼ୀ
(ଘ) ଜୟନ୍ତ
Answer:
(ଗ) ବେବିର ଡାଡ଼ୀ

Question 33.
‘ଅମାବାସ୍ୟାର ଚନ୍ଦ୍ର’ ଏକ କେଉଁ ଗ୍ରନ୍ଥ?
(କ) କାବ୍ଯ
(ଖ) ଉପନ୍ୟାସ
(ଗ) ଗଳ୍ପ
(ଘ) ନାଟକ
Answer:
(ଖ) ଉପନ୍ୟାସ

Question 34.
ବେବି କାହାର ଝିଅ?
(କ) ପିନାକୀ
(ଖ) ବୀର
(ଗ) ଜୟନ୍ତ
(ଘ) ଭୀମ
Answer:
(କ) ପିନାକୀ

Question 35.
ପିନାକୀ ବାବୁ ଜଣେ କ’ଣ ଥିଲେ?
(କ) ସାହିତ୍ୟିକ
(ଖ) ରାଜନୀତିଜ୍ଞ
(ଗ) ଗବେଷକ
(ଘ) ବ୍ୟବସାୟୀ
Answer:
(ଘ) ବ୍ୟବସାୟୀ

Question 36.
ଫୁଟନ୍ତା ଫୁଲର ଓଠରେ କ’ଣ ଶୋଭା ପାଏନା?
(କ) ପ୍ରଜାପତି
(ଖ) ଦାରୁଣ ଲୁହର ଧାର
(ଗ) ବର୍ଷା ବିନ୍ଦୁ
(ଘ) କାକର ବିନ୍ଦୁ
Answer:
(ଖ) ଦାରୁଣ ଲୁହର ଧାର

Question 37.
କିଏ ଚାହିଁଲେ ରୀତାର କଣ୍ଠରେ ଲଳିତ ଛନ୍ଦ ଫୁଟାଇ ପାରିବେ?
(କ) ଜୟନ୍ତ
(ଖ) ପ୍ରଫେସର
(ଗ) ବେବି
(ଘ) ଅତନୁ
Answer:
(ଘ) ଅତନୁ

Question 38.
ଦେବ ଭୋଗ୍ୟ କଦଳୀକୁ କିଏ ଖାଇଦେଲା?
(କ) ନରି
(ଖ) ଭୀମ
(ଗ) ହରି
(ଘ) ବୀର
Answer:
(ଘ) ବୀର

Question 39.
ଭୀମ କାହା ପାଇଁ ପାଗଳ ହେଇଚି?
(କ) କବିତା
(ଖ) ନୟନା
(ଗ) ରଚିତା
(ଘ) ସାବିତ୍ରୀ
Answer:
(ଖ) ନୟନା

Question 40.
କିଏ ମିଥ୍ୟାର ଗୋଟାଏ ପ୍ରତିମୂର୍ତ୍ତି ବୋଲି ରୀତା କହିଛନ୍ତି?
(କ) ବେବି
(ଖ) ହରି
(ଗ) ଡାକ୍ତର ଅତନୁ
(ଘ) ଜୟନ୍ତ
Answer:
(ଗ) ଡାକ୍ତର ଅତନୁ

Question 41.
କବିତା ‘ଶତଦଳ’ କେଉଁ ପୁରସ୍କାର ପାଇଁ ମନୋନୀତ ହୋଇଥିଲା?
(କ) ଜ୍ଞାନପୀଠ
(ଖ) ଶାରଳା
(ଗ) ବାଣୀପୀଠ
(ଘ) ସାହିତ୍ୟ ଏକାଡ଼େମୀ
Answer:
(ଗ) ବାଣୀପୀଠ

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Question 42.
କବିତା ‘ଶତଦଳ’ର ପୁରସ୍କାର ରାଶି କେତେ ଟଙ୍କା ଥିଲା?
(କ) ଏକଲକ୍ଷ
(ଖ) ପାଞ୍ଚଲକ୍ଷ
(ଗ) ତିନିଲକ୍ଷ
(ଘ) ଦଶଲକ୍ଷ
Answer:
(କ) ଏକଲକ୍ଷ

Question 43.
କେଉଁ କମିଟି ତରଫରୁ କବି ଜୟନ୍ତଙ୍କୁ ସମ୍ବର୍ଦ୍ଧନା ଦିଆଯିବ?
(କ) ନାଗରିକ କମିଟି
(ଖ) ସାଧାରଣ କମିଟି
(ଗ) ସଦ୍‌ଭାବନା କମିଟି
(ଘ) ବନବାସୀ କମିଟି
Answer:
(କ) ନାଗରିକ କମିଟି

Question 44.
ମୋତେ ବିଦାୟ ଦେବା ପୂର୍ବରୁ ତମେ ନିଜେ ବିଦାୟ ନେଇ ଚାଲିଗଲ – କିଏ କହିଛନ୍ତି?
(କ) ପ୍ରଫେସର
(ଖ) ଜୟନ୍ତ
(ଗ) ସିଷ୍ଟର
(ଘ) ରୀତା
Answer:
(କ) ପ୍ରଫେସର

Question 45.
କବିତା ‘ଶତଦଳ’ କେଉଁ ଭାଷାରେ ଅନୁବାଦ ହୋଇଥିଲା?
(କ) ହିନ୍ଦୀ
(ଖ) ଇଂରାଜୀ
(ଗ) ବଙ୍ଗଳା
(ଘ) ତେଲ୍‌ଗୁ
Answer:
(କ) ହିନ୍ଦୀ

Question 46.
ପାଞ୍ଚ ନମ୍ବର କୋଠରୀରେ କେଉଁ ପେସେଣ୍ଟ୍ ରହୁଥିଲେ?
(କ) ଭୀମ
(ଖ) ପିନାକୀ
(ଗ) ବୀର
(ଘ) ପ୍ରଫେସର ପରିଜା
Answer:
(ଘ) ପ୍ରଫେସର ପରିଜା

Question 47.
ରୋଗ ଉପରେ କ’ଣ ବେଶୀ ପ୍ରଭାବ ପକାଏ ବୋଲି ଅତନୁ କହିଛି?
(କ) ଘର ଚିନ୍ତା
(ଖ) ଗାଁ ଚିନ୍ତା
(ଗ) ସ୍ତ୍ରୀ ଚିନ୍ତା
(ଘ) ମାନସିକ ଚିନ୍ତା
Answer:
(ଘ) ମାନସିକ ଚିନ୍ତା

Question 48.
ଚିକିତ୍ସା କେନ୍ଦ୍ରରୂପୀ ସରୋବରର ରାଜହଂସ କିଏ?
(କ) ପ୍ରଫେସର ପରିଜା
(ଖ) ଡକ୍ଟର ଅତନୁ
(ଗ) ରୀତାଦେବୀ
(ଘ) ଜୟନ୍ତ ବାବୁ
Answer:
(ଖ) ଡକ୍ଟର ଅତନୁ

Question 49.
ବେବିର ସଙ୍ଗୀତଟି ନାଟକର କେଉଁ ସ୍ଥାନରେ ସଂଯୋଜିତ ହୋଇଛି?
(କ) ପ୍ରାରମ୍ଭରେ
(ଖ) ମଧ୍ୟଭାଗରେ
(ଗ) ପ୍ରଥମାର୍ଦ୍ଧରେ
(ଘ) ଶେଷରେ
Answer:
(ଗ) ପ୍ରଥମାର୍ଦ୍ଧରେ

Question 50.
ମଣିଷ ଜୀବନପାଇଁ ହସ ଯେତିକି ଦରକାର ଆଉ କ’ଣ ସେତିକି ଦରକାର?
(କ) ଲୁହ
(ଖ) ଘର
(ଗ) ଗାଡ଼ି
(ଘ) ସମ୍ପରି
Answer:
(କ) ଲୁହ

Question 51.
କିଏ ପୁରାତନକୁ ଧରି ବସି ରହେନା?
(କ) ଗାଳ୍ପିକ
(ଖ) ଗାଣିତିକ
(ଗ) ବିଜ୍ଞାନୀ
(ଘ) ଲେଖକ
Answer:
(ଗ) ବିଜ୍ଞାନୀ

Question 52.
ମଦ୍ୟପର୍ସି ନିଶା ଥ‌ିବା ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ସେ ନିଜକୁ କିପରି ମନେକରେ?
(କ) ସ୍ଥିର
(ଖ) ଶକ୍ତିମାନ
(ଗ) ଅସ୍ଥିର
(ଘ) ଦୁର୍ବଳ
Answer:
(ଖ) ଶକ୍ତିମାନ

Question 53.
ମଦ୍ୟପଠୁଁ ନିଶା ଛାଡ଼ିଗଲାପରେ ସେ କ’ଣ ଅନୁଭବ କରେ?
(କ) ସ୍ଥିର
(ଖ) ଶକ୍ତିମାନ
(ଗ) ଦୁର୍ବଳ
(ଘ) ଅସ୍ଥିର
Answer:
(ଗ) ଦୁର୍ବଳ

Question 54.
କ’ଣ ଦେଖୁ ଜହ୍ନ ରାଇଜର ଲୋକ ଚକିତ ହେବେ ବୋଲି କୁହାଯାଇଛି?
(କ) ଆମ ବୁଦ୍ଧିବଳ ତାକତ
(ଖ) ବଣ ବିଲ ପାହାଡ଼
(ଗ) ନଈ ନାଳ ପୋଖରୀ
(ଘ) ବନ୍ଧ ବାଡ଼ ପାଚେରୀ
Answer:
(କ) ନଈ ନାଳ ପୋଖରୀ

(ଖ) ୧ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ଏକ ବାକ୍ୟରେ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ ।

Question 1.
ରାଜହଂସ କେଉଁ ଧରଣର ନାଟକ?
Answer:
ରାଜହଂସ ଏକ ମନସ୍ତାତ୍ତ୍ଵିକ ନାଟକ ।

Question 2.
କେଉଁ ଚିନ୍ତା ରୋଗ ଉପରେ ବେଶି ପ୍ରଭାବ ପକାଏ?
Answer:
ମାନସିକ ଚିନ୍ତା ରୋଗ ଉପରେ ବେଶି ପ୍ରଭାବ ପକାଏ ।

Question 3.
ନଅ ନମ୍ବର କୋଠରୀରେ କେଉଁ ପେସେଣ୍ଟ ରହୁଥିଲେ?
Answer:
ନଅ ନମ୍ବର କୋଠରୀରେ ପେସେଣ୍ଟ ଭାବରେ ବୀର ନାମକ ଜଣେ ମିଲିଟାରୀ ଅଫିସର ରହୁଥିଲେ ।

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Question 4.
ଯେଉଁଠି ବିଜ୍ଞାନୀ ତା’ର ନିଜ ସତ୍ତା ହରାଇ ବସେ; ସେଇଠି ସେ ଖୋଜେ କାହାକୁ?
Answer:
ଯେଉଁଠି ବିଜ୍ଞାନୀ ତା’ର ନିଜ ସତ୍ତା ହରାଇବସେ, ସେଇଠି ସେ ଖୋଜେ ଈଶ୍ବରଙ୍କୁ ।

Question 5.
ଜ୍ଵଳନ୍ତ ଧୂପକାଠି ଯେମିତି ସାରା କୋଠରୀରୁ ଦୁର୍ବାସନା ଦୂର କରିଦିଏ – ସଙ୍ଗୀତ ସେମିତି ମଣିଷ ମନରୁ କ’ଣ ଦୂର କରେ?
Answer:
ଜ୍ଵଳନ୍ତ ଧୂପକାଠି ଯେମିତି ସାରା କୋଠରୀରୁ ଦୁର୍ବାସନା ଦୂର କରିଦିଏ – ସଂଗୀତ ସେମିତି ମଣିଷ ମନରୁ ରାଗ, ହିଂସା, ବିଦ୍ବେଷ ଦୂର କରେ ।

Question 6.
ପାହାଡ଼ଟା ଦେଖୁବାବୁ କିଭଳି?
Answer:
ପାହାଡ଼ଟା ଦେଖୁବାକୁ ଓଟକୁଜ ଭଳି ଥିଲା ।

Question 7.
କବିତା ‘ଶତଦଳ’ ପୁରସ୍କାର ପାଇଁ ମନୋନୀତ ହେବାର ଖବର ପ୍ରଥମେ ଡକ୍ଟର ଅତନୁ କେଉଁଠୁ ପାଇଥିଲେ?
Answer:
କବିତା ‘ଶତଦଳ’ ପୁରସ୍କାର ପାଇଁ ମନୋନୀତ ହେବାର ଖବର ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ପ୍ରଥମେ ରେଡ଼ିଓରୁ ପାଇଲେ ।

Question 8.
ବାକ୍-ଶକ୍ତିହୀନ ମିଲେଟାରୀ ଅଫିସରଙ୍କ ନାଁ କ’ଣ?
Answer:
ବାକ୍-ଶକ୍ତିହୀନ ମିଲେଟାରୀ ଅଫିସରଙ୍କ ନାମ ବୀର ।

Question 9.
ମଦ୍ୟପାନଜନିତ ବିକାର ପିନାକୀ ବାବୁଙ୍କର କେଉଁ ସ୍ଥିତିକୁ ଇତସ୍ତତଃ କରିଦେଇଛି?
Answer:
ମଦ୍ୟପାନ ଜନିତ ବିକାର ପିନାକୀ ବାବୁଙ୍କର ମାନସିକ ସ୍ଥିତିକୁ ଇତସ୍ତତଃ କରିଦେଇଛି ।

Question 10.
କାହାର ବନ୍ଧେଇ ଫଟୋଧରି ଜୟନ୍ତ ମାନସିକ ଚିକିତ୍ସା କେନ୍ଦ୍ରକୁ ଆସିଥିଲା?
Answer:
ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କ ବନ୍ଧେଇ ଫଟୋଧରି ଜୟନ୍ତ ମାନସିକ ଚିକିତ୍ସାକେନ୍ଦ୍ରକୁ ଆସିଥିଲା ।

Question 11.
ଦେହ ସରୋବର ଛାଡ଼ି କିଏ ଉଡ଼ିଯାଇଛି?
Answer:
ଦେହ ସରୋବର ଛାଡ଼ି ପ୍ରାଣରୂପକ ହଂସ ଉଡ଼ିଯାଇଛି ।

Question 12.
ଗୋଟାଏ ସଭ୍ୟତାକୁ କେଉଁମାନେ ଧ୍ୱଂସ କରି ଦେଇପାରନ୍ତି?
Answer:
ଗୋଟାଏ ସଭ୍ୟତାକୁ କିଛି ଭୋକିଲା ଲୋକ ଧ୍ଵଂସ କରି ଦେଇପାରନ୍ତି ।

Question 13.
ପିନାକୀବାବୁଙ୍କ ଅପରେସନ୍ ପାଇଁ ଡକ୍ଟର ଅତନୁ କେଉଁ ଅଭିଜ୍ଞ ଡାକ୍ତରଙ୍କୁ ଡାକିଥିଲେ?
Answer:
ପିନାକୀବାବୁଙ୍କ ଅପରେସନ୍ ପାଇଁ ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ସ୍ପେଶାଲ ଅଭିଜ୍ଞ ଡାକ୍ତର ସେନ୍‌ଙ୍କୁ ଡାକିଥିଲେ ।

Question 14.
ପ୍ରକୃତ କବି ଧୂର୍ଜଟୀ କିଏ?
Answer:
ପ୍ରକୃତ କବି ଧୂର୍ଜଟୀ ହେଉଛନ୍ତି ଡାକ୍ତର ଅତନୁ।

Question 15.
କ’ଣ ସମ୍ବଳ କରି ଜୟନ୍ତ ରୀତାର ହୃଦୟକୁ ଜୟ କରିବାକୁ ଚେଷ୍ଟା କରିଥିଲା?
Answer:
ଅମାପ ଧନ ଓ ଆଭିଜାତ୍ୟକୁ ସମ୍ବଳ କରି ଜୟନ୍ତ ରୀତାର ହୃଦୟ ଜିତିବାକୁ ଚେଷ୍ଟା କରିଥିଲା ।

Question 16.
ତିନି ନମ୍ବର କୋଠରୀର ପେସେଣ୍ଟ କିଏ?
Answer:
ତିନି ନମ୍ବର କୋଠରୀର ପେସେଣ୍ଟ୍ ଥିଲେ ଜୟନ୍ତଙ୍କ ସ୍ତ୍ରୀ ଓ ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କ ବନ୍ଧୁପତ୍ନୀ ରୀତା ।

(ଗ) ୨ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ଦୁଇଟି ବାକ୍ୟରେ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ । ଲେଖା ଓ ଲେଖକଙ୍କ ପାଇଁ ୧ ନମ୍ବର ଓ ଉତ୍ତର ପାଇଁ ୧ ନମ୍ବର ।

Question 1.
ଛୁରୀ କଇଁଚି ସହିତ କାହାର ସମ୍ପର୍କକୁ ଲୋକସମାଜ ଆଗରେ ଡକ୍ଟର ଅତନୁ ପ୍ରକାଶ କରିବାକୁ ଚାହୁଁ ନଥିଲେ?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ଛୁରୀ କଇଁଚି ସହିତ କାଗଜ କଲମର ସମ୍ପର୍କକୁ ଲୋକ ସମାଜ ଆଗରେ ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ପ୍ରକାଶ କରିବାକୁ ଚାହୁଁନଥିଲେ ।

Question 2.
କବି ହିସାବରେ ଆପଣ ବଡ଼ ହୋଇଛନ୍ତି ନା ଡାକ୍ତର ହିସାବରେ – ଏହାର ତାତ୍ପର୍ଯ୍ୟ କ’ଣ?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ରୀତା ଯେତେବେଳେ ଜାଣିପାରିଛି ଯେ କବି ଧୂର୍ଜଟୀ ପ୍ରକୃତରେ ଜୟନ୍ତ ନୁହେଁ ଡାକ୍ତର ଅତନୁ, ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କୁ ସେତେବେଳେ ପ୍ରଶ୍ନ କରିଛନ୍ତି ଯେ କବି ଭାବରେ ଅତନୁ ବଡ଼ ହୋଇଛନ୍ତି ବା ଡାକ୍ତର ହିସାବରେ ବଡ଼ ହୋଇଛନ୍ତି । କେଉଁ ପରିଚୟ ସର୍ବାଧ‌ିକ ଲୋକପ୍ରିୟ କରାଇଛି ବୋଲି ରୀତା ଅତନୁଙ୍କଠାରୁ ଜିଜ୍ଞାସା କରିଛନ୍ତି ।

Question 3.
ଅତନୁର ବନ୍ଧେଇ ଫଟୋ ଧରି ଚିକିତ୍ସାକେନ୍ଦ୍ରକୁ ଜୟନ୍ତ ଆସିଥୁଲା କାହିଁକି?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ଅତନୁଙ୍କ ରଚିତ କବିତାକୁ ନେଇ ପରିଚିତ ହୋଇଛି ଜୟନ୍ତ । ଶେଷରେ ଜୟନ୍ତ ବୁଝିପାରିଛି ଜୀବନର ପ୍ରକୃତ ସତ୍ୟ । ତେଣୁ ଦୁନିଆ ଆଗରେ ସତ୍ୟ ତଥା ରହସ୍ୟ ଖୋଲି ପ୍ରକୃତ କବିକୁ ପୁରସ୍କୃତ କରାଇବା ପାଇଁ ଜୟନ୍ତ ଅତନୁ ଫଟୋ ବନ୍ଧେଇ ଆଣିଛି । ସେଥ‌ିପାଇଁ ଜୟନ୍ତ ଅତନୁର ବନ୍ଧେଇ ଫଟୋଧରି ଚିକିତ୍ସାକେନ୍ଦ୍ରକୁ ଆସିଥିଲା ।

Question 4.
ମାନସିକ ଦୁଶ୍ଚିନ୍ତାରେ ମଣିଷର ହିତାହିତ ଜ୍ଞାନ ରହେନା କାହିଁକି?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ମାନସିକ ଦୁଶ୍ଚିନ୍ତାରେ ମଣିଷର ମନ ଭାରାକ୍ରାନ୍ତ ହୋଇପଡ଼େ । କେଉଁ କର୍ମ କରିବା ଉଚିତ ଓ କେଉଁଟା ଅନୁଚିତ ତାହା ବୁଝି ହୁଏନା । ତେଣୁ ମଣିଷର ହିତାହିତ ଜ୍ଞାନ ରହେନା ।

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Question 5.
କାହା ପାଖରେ ନିଜ ମନର ବୋଝ ଅଜାଡ଼ି ଦେଲେ–ମନଟା ବହୁତ ପରିମାଣରେ ହାଲୁକା ହୋଇଯାଏ?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ନିଜ ବନ୍ଧୁ ତଥା ପ୍ରିୟ ପରିଜନ, ମନର ମଣିଷ ପାଖରେ ନିଜ ମନର ବୋଝ ଅଜାଡ଼ି ଦେଲେ ମନଟା ବହୁ ପରିମାଣରେ ହାଲୁକା ହୋଇଯାଏ ।

Question 6.
ନାରୀ ତା’ର ପୁରୁଷଠାରୁ କଷଣ ନିର୍ଯାତନା ସହିପାରେ କିନ୍ତୁ ଯେତେବେଳେ ସେ ତା’ ମଥାରୁ ସିନ୍ଦୂର ଯିବାର ଦୁଃସ୍ୱପ୍ନ ଦେଖେ – ସେ କ’ଣ କେବେ ସହିପାରିବ ? କିଏ କେଉଁ ପ୍ରସଙ୍ଗରେ କହିଛି?
Answer:
ନାରୀ ତା’ର ପୁରୁଷଠାରୁ କଷଣ ନିର୍ଯାତନା ସହିପାରେ କିନ୍ତୁ ଯେତେବେଳେ ସେ ମଥାରୁ ସିନ୍ଦୂର ଯିବାର ଦୁଃସ୍ଵପ୍ନ ଦେଖେ ସେ କ’ଣ କେବେ ସହିପାରିବ ? ଏକଥା ସିଷ୍ଟର ହରିକୁ ତା’ର ସ୍ଵାମୀ ପ୍ରସଙ୍ଗରେ କହିଛି ।

Question 7.
କଅଁଳ ଫୁଲ ଓଠରେ ହସ ଦେଖୁବାକୁ ଏ ସଂସାର ଚାହେଁନା । କିଏ କେଉଁ ପ୍ରସଙ୍ଗରେ କହିଛି?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
କଅଁଳ ଫୁଲ ଓଠରେ ହସ ଦେଖ‌ିବାକୁ ଏ ସଂସାର ଚାହେଁନା ଏକଥା ରୀତା, ବେବୀର ବାପା ପିନାକୀର ମୃତ୍ୟୁ ପ୍ରସଙ୍ଗରେ ବେବୀର କାନ୍ଦ ଦେଖି କହିଛି । ଛୋଟ ଝିଅ ଦେବୀ ବହୁତ କାନ୍ଦିଛି ତେଣୁ ଏହି ସଂଳାପ ରୀତାର ।

Question 8.
ଜୀବନ ଆଉ ଜୀବିକା ଏକ ପଲାରେ ତଉଲା ଯାଏନା । ଜୀବନ ନେଇ ଖେଳ ଖେଳିବା ଆମର ଧର୍ମ – କିଏ କାହାକୁ କହିଛି?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ଜୀବନ ଆଉ ଜୀବିକା ଏକ ପଳାରେ ତଉଲା ଯାଏନା । ଜୀବନ ନେଇ ଖେଳ ଖେଳିବା ଆମର ଧର୍ମ – ଏକଥା ପ୍ରଫେସର ପରିଜା ବିଜ୍ଞାନୀର ମହତ୍ତ୍ବ ବୁଝାଇବାକୁ ଯାଇ ଡାକ୍ତରଖାନାର କର୍ମଚାରୀ ହରିକୁ କହିଛନ୍ତି ।

Question 9.
ତ୍ୟାଗ ଅନ୍ତରାଳରୁ ମାନସିକ ଅଶାନ୍ତି ସମସ୍ତ ମନକୁ ସଂକ୍ରମିତ ହୁଏ – କିଏ କେଉଁ ପ୍ରସଙ୍ଗରେ କହିଛି?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ତ୍ୟାଗ ଅନ୍ତରାଳରୁ ମାନସିକ ଅଶାନ୍ତି ସମସ୍ତ ମନକୁ ସଂକ୍ରମିତ ହୁଏ – ଏକଥା ବା ଏ ସଂଳାପ ଜୟନ୍ତଙ୍କର । ତାଙ୍କ ବନ୍ଧୁ ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କ ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ । ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ନିଜ ରଚିତ କବିତା ଜୟନ୍ତଙ୍କ ପରିଚୟରେ ବ୍ୟବହାର କରି ଯେଉଁ ତ୍ୟାଗ କରିଛନ୍ତି ସେହି ପ୍ରସଙ୍ଗରେ ।

Question 10.
କବିର ମନ ବିଷାକ୍ତ ନ ହୋଇ ସବୁବେଳେ ପ୍ରଫୁଲ୍ଲ ହେବା ଦରକାର – କିଏ କାହାକୁ କହିଛି?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
କବିର ମନ ବିଷାକ୍ତ ନ ହୋଇ ସବୁବେଳେ ପ୍ରଫୁଲ୍ଲ ହେବା ଦରକାର – ଏହି ସଂଳାପ ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ତାଙ୍କର ବନ୍ଧୁ ଜୟନ୍ତଙ୍କୁ କହିଛନ୍ତି ।

Question 11.
ସେବା ସହାନୁଭୂତି ଦେଖାଇବା ତ ଡାକ୍ତର ଏବଂ ସେବିକାଙ୍କର ଧର୍ମ – କେଉଁ ପ୍ରସଙ୍ଗରେ କୁହାଯାଇଛି?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ଯେତେବେଳେ ମୂକ ମିଲିଟାରୀ ଅଫିସର ବୀର ସୁସ୍ଥ ହୋଇଯାଇଛି ସେତେବେଳେ ସେ ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ଓ ସିଷ୍ଟରଙ୍କ ପ୍ରଶଂସା କରିଛି ଓ ପ୍ରଶସ୍ତି ଗାନ କରିଛି । ଏହି ପ୍ରସଙ୍ଗରେ ସିଷ୍ଟର କହିଛନ୍ତି – ସେବା ସହାନୁଭୂତି ଦେଖାଇବା ତ ଡାକ୍ତର ଏବଂ ସେବିକାଙ୍କର ଧର୍ମ ।

Question 12.
ମନସ୍ତାତ୍ତ୍ଵିକ ଡାକ୍ତରଙ୍କର ବେଳେବେଳେ ଏମିତି ମାନସିକ ବିପ୍ଳବ ଦେଖାଯାଏ । ଯାହା ଅନ୍ୟମାନଙ୍କ ପ୍ରତି କଠୋର ହୋଇପଡ଼େ – କିଏ କାହାକୁ କହିଛି?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ମନସ୍ତାତ୍ତ୍ଵିକ ଡାକ୍ତରଙ୍କର ବେଳେବେଳେ ଏମିତି ମାନସିକ ବିପ୍ଳବ ଦେଖାଯାଏ । ଯାହା ଅନ୍ୟମାନଙ୍କ ପ୍ରତି ବଡ଼ କଠୋର ହୋଇପଡ଼େ – ଏକଥା ଜୟନ୍ତ ତାଙ୍କ ବନ୍ଧୁ ମନସ୍ତାତ୍ତ୍ଵିକ ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କୁ କହିଛନ୍ତି ।

Question 13.
୧୩। ମୋ ଜୀବନଟା ନେଇ ତମେ ବେବିର ଡାଢ଼ୀ ଦେହରେ ଭର୍ତ୍ତି କରିଦେଇ ପାରିବ? କେଉଁ ପ୍ରସଙ୍ଗରେ କୁହାଯାଇଛି?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ଯେତେବେଳେ ବେବୀର ଡାଡ଼ୀ ପିନାକୀର ମୃତ୍ୟୁ ହୋଇଛି, ଦେବୀର ଲୁହ ଦେଖି ପ୍ରଫେସର ପରିଜା ବେବୀ ଦୁଃଖରେ ମର୍ମାହତ ହୋଇ ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କୁ ନିଜ ଜୀବନର ପ୍ରତିବଦଳରେ ବେବୀ ଡାଡ଼ୀକୁ ବଞ୍ଚେଇବାକୁ କହିଛନ୍ତି । ଏହି ପ୍ରସଙ୍ଗରେ ଉକ୍ତ ସଂଳାପଟି ପ୍ରଫେସର ପରିଜା କହିଛନ୍ତି ।

Question 14.
‘ରାଜହଂସ’ର ନାଟ୍ୟକାରଙ୍କ ନାଁ କ’ଣ? ତାଙ୍କର ଦୁଇଟି ‘ନାଟକ’ର ନାମ ଲେଖ ।
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ରାଜହଂସ ନାଟକର ନାଟ୍ୟକାରଙ୍କ ନାମ ରତ୍ନାକର ଚଇନି । ତାଙ୍କର ଦୁଇଟି ନାଟକର ନାମ ‘ଅସ୍ତରାଗର ଚନ୍ଦ୍ର’ ଓ ‘ଶୂନ୍ୟତାର ଶିଡ଼ି’ ।

(ଘ) ୩ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ । (୩୦ଟି ଶବ୍ଦ ମଧ୍ୟରେ) ଲେଖା ଓ ଲେଖକଙ୍କ ପାଇଁ ୧ ନମ୍ବର ଓ ଉତ୍ତର ପାଇଁ ୨ ନମ୍ବର ।

Question 1.
‘ବସନ୍ତର ଶେଷ ପତ୍ରଧରି ଦୂତ ତା’ର ଚାଲିଯାଇଛି । ତମେ ତାକୁ ହସି ହସି ବିଦାୟ ଦିଅ ବନ୍ଧୁ’ – ଏ ଉକ୍ତିର ତାତ୍ପର୍ଯ୍ୟ କ’ଣ?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ପ୍ରଫେସର ପରିଜାଙ୍କ ଏହି ସଂଳାପର ତାତ୍ପର୍ଯ୍ୟ ହେଉଛି, ବସନ୍ତର ଦୂତ ଅର୍ଥାତ୍‌ ମୁଖ୍ୟ ଚରିତ୍ର ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କ ମୃତ୍ୟୁରେ ଯେତେବେଳେ ଭାବବିହ୍ବଳ ହୋଇଉଠିଛନ୍ତି ତାଙ୍କ ବନ୍ଧୁ ଜୟନ୍ତ, ଠିକ୍ ସେତେବେଳେ ଏହି ସଂଳାପରେ ପ୍ରଫେସର ଅତନୁଙ୍କ ବିଦାୟକୁ ସୂଚିତ କରିଛି । ଜୀବନତମାମ ଯିଏ ଅନ୍ୟମାନଙ୍କ ପାଇଁ ଜିଇଁ ଆସୁଥିଲା ସେହି ଈଶ୍ବରଙ୍କ ଦୂତର ବିଦାୟକୁ ଜୟନ୍ତ ହସି ହସି ଗ୍ରହଣ କରୁ । ମ୍ରିୟମାଣ ନହୋଇ ଜୟନ୍ତ ଏହି ସତ୍ୟ ତଥା ବାସ୍ତବତାକୁ ଗ୍ରହଣ କରୁ ଏହାହିଁ ଥିଲା ସଂଳାପର ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟ ।

Question 2.
କାଲି ଯଦି ଦୁନିଆ ଜାଣିବ ମୁଁ ପ୍ରକୃତରେ କବି ନୁହେଁ – ତେବେ ସମାଜରେ ମୋର ଅବସ୍ଥା କ’ଣ ହେବ? – ଏ କଥା କିଏ, କାହାକୁ କାହିଁକି କହିଛି ?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
କାଲି ଯଦି ଦୁନିଆ ଜାଣିବ ମୁଁ ପ୍ରକୃତରେ କବି ନୁହେଁ – ତେବେ ସମାଜରେ ମୋର ଅବସ୍ଥା କ’ଣ ହେବ ବୋଲି ଜୟନ୍ତ ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କୁ କହିଛନ୍ତି । ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କ ରଚିତ କବିତାର ଶ୍ରେୟ ଏବଂ ପରିଚୟ ନେଇଛି ଜୟନ୍ତ । ପ୍ରକୃତରେ ଜୟନ୍ତ ଜଣେ କବି ନୁହେଁ କି କବିତା ଲେଖୁବା ତାଙ୍କ ଆୟତ୍ତର କାମ ନୁହେଁ । ବୃତ୍ତିରେ ସେ ଜଣେ ବ୍ୟବସାୟୀ, କିନ୍ତୁ ତାଙ୍କରି ଅର୍ଥରେ ଅତନୁ ଆମେରିକାରୁ ଡାକ୍ତରୀ ପଢ଼ି ପାରିଛନ୍ତି । ତେଣୁ ଋଣ ପରିଶୋଧ ନିମନ୍ତେ ଅତନୁ ନିଜ ରଚିତ କବିତାକୁ ଧୂର୍ଜଟୀ ଛଦ୍ମନାମରେ ପ୍ରକାଶିତ କରାଇଛି ଏବଂ ଧୂର୍ଜଟୀ ବୋଲି ଜୟନ୍ତ ପରିଚିତ ହୋଇଛି । ତେଣୁ ଏହି ସତ୍ୟରୁ ଘୋଡ଼ଣି ଉଠିଗଲେ, ବାସ୍ତବ କଥା ଜଣାପଡ଼ିଲେ ଜୟନ୍ତର ସମ୍ମାନ ହାନୀ ହେବ ।

Question 3.
ଆପଣ ନିଜେ ମିଥ୍ୟାର ଗୋଟାଏ ପ୍ରତିମୂର୍ତ୍ତି । ସତ୍ୟର ଅପଳାପ ପାଇଁ ଆପଣ ମିଥ୍ୟାର ଆଶ୍ରୟ ନେଇଛନ୍ତି – କିଏ କାହାକୁ କେଉଁ ପ୍ରସଙ୍ଗରେ କହିଥିଲେ?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
“ଆପଣ ନିଜେ ମିଥ୍ୟାର ଗୋଟିଏ ପ୍ରତିମୂର୍ତ୍ତି । ସତ୍ୟର ଅପଳାପ ପାଇଁ ଆପଣ ମିଥ୍ୟାର ଆଶ୍ରୟ ନେଇଛନ୍ତି ।’’ – ଏହି ସଂଳାପଟି ରୀତା ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କୁ କହିଛି । ରୀତା, ଜୟନ୍ତ ଓ ଅତନୁଙ୍କ କଥାବାର୍ତ୍ତା ଶୁଣିନେଇଛି । ତା’ର ସ୍ୱାମୀ ଜୟନ୍ତ ଯେ ପ୍ରକୃତରେ କବି ନୁହେଁ ଏହି ସତ୍ୟ ତା’ପାଖରେ ଧରା ପଡ଼ିଯାଇଛି । ଯୋଉ କବିତାର ପ୍ରେମରେ ପଡ଼ି ଜୟନ୍ତଙ୍କୁ କବି ବୋଲି ଧରି ନେଇ ସେ ପ୍ରେମ ବିବାହ କରିଛି, ସେଇ ନିଷ୍ପଭି ତା’ର ଭୁଲଥୁଲା ବୋଲି ଗ୍ରହଣ କରି ନେଇଛି । ଏହିସବୁ କଥା ଜାଣିଲା ପରେ ରୀତା ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କୁ ଏଥ‌ିପାଇଁ ଦାୟୀ କରିଛି ଏବଂ ତାଙ୍କୁ ମିଥ୍ୟାର ଗୋଟିଏ ପ୍ରତିମୂର୍ତ୍ତି ବୋଲି ଆକ୍ଷେପ କରିଛି ।

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 4 ରାଜହଂସ Question Answer

Question 4.
ମୋ ଜୀବନ ବିନିମୟରେ ମୁଁ ଚାହେଁ ଏଇ କୋମଳ କଳିକା ମୁହଁରେ ଚେନାଏ ହସ କିଏ କାହାକୁ କେଉଁ ପରିପ୍ରେକ୍ଷୀରେ କହିଥିଲେ?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
‘‘ମୋ ଜୀବନ ବିନିମୟରେ ମୁଁ ଚାହେଁ ଏଇ କୋମଳ କଳିକା ମୁହଁରେ ଚେନାଏ ହସ ।’’ – ଏକଥା ପ୍ରଫେସର ପରିଜା ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କୁ କହିଛନ୍ତି । ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ବହୁତ ଚେଷ୍ଟା କରି ମଧ୍ୟ ବ୍ୟବସାୟୀ ତଥା ମଦ୍ୟପ ପିନାକୀଙ୍କୁ ବଞ୍ଚାଇ ପାରିଲେ ନାହିଁ । ପିନାକୀଙ୍କର ଏକମାତ୍ର ଝିଅ ବେବୀ ବାପାଙ୍କର ମୃତ୍ୟୁ ପରେ ଏକୁଟିଆ ଓ ନିଃସହାୟ ହୋଇଯାଇଛି । ଡାକ୍ତରଖାନାରେ ସମସ୍ତଙ୍କ ପ୍ରିୟ ବେବୀର ଏହି ଅବସ୍ଥା, ପ୍ରଫେସର ପରିଜା ଓ ରୀତାଙ୍କ ମ୍ରିୟମାଣର କାରଣ ପାଲଟିଛି । ପ୍ରଫେସର ପରିଜା ବେବୀକୁ କୋମଳ କଳିକା ବୋଲି ସଂବୋଧନ କରି ଡାକ୍ତରଙ୍କୁ ଅନୁରୋଧ କରିଛନ୍ତି ତାଙ୍କ ଜୀବନର ପ୍ରତିବଦଳରେ ପିନାକୀଙ୍କୁ ବଞ୍ଚେଇବା ପାଇଁ, ଯାହାଫଳରେ ବେବୀ ମୁହଁରେ ଟିକେ ହସ ଫୁଟି ଉଠିବ ।

Question 5.
ମଦ୍ୟପର୍ସି ନିଶାଥ‌ିବା ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ସେ ନିଜକୁ ଶକ୍ତିମାନ ମନେ କରେ । କିନ୍ତୁ ନିଶା ଛାଡ଼ିଗଲା ପରେ ସେ ଭାରି weak feel କରେ – ଏହାର ତାତ୍ପର୍ଯ୍ୟ ଉଲ୍ଲେଖ କର ।
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ମଦ୍ୟପÖ ନିଶାଥ‌ିବା ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ସେ ନିଜକୁ ଶକ୍ତିମାନ ମନେକରେ । କିନ୍ତୁ ନିଶା ଛାଡ଼ିଗଲା ପରେ ସେ ଭାରି week feel କରେ । ଏହାର ତାତ୍ପର୍ଯ୍ୟ ହେଉଛି ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ମାନସିକ ଦୁଶ୍ଚିନ୍ତାକୁ ଗୋଟିଏ ନିଶା ବୋଲି କହିଛନ୍ତି । ସେ ଯେତେବେଳେ ମନ ଉପରେ ସବାର ହୁଏ – ସେତେବେଳେ ହିତାହିତ ଜ୍ଞାନ ମଧ୍ୟ ରହେନା । ଏକଥା ସେ ରୀତାଙ୍କ ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ କହିଛନ୍ତି । ରୀତା ନାନା ଦୁଶ୍ଚିନ୍ତାରେ ପଡ଼ି ଉତ୍ତେଜିତ ହୋଇ ଉଠିଛନ୍ତି । ମାତ୍ର ପରବର୍ତ୍ତୀ ସମୟରେ ରୀତା ଦୁର୍ବଳ ଅନୁଭବ କରିଛନ୍ତି ବୋଲି ଯେତେବେଳେ ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କୁ କହିଛନ୍ତି ଠିକ୍ ସେତିକିବେଳେ ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ଉପରୋକ୍ତ କଥାଟି କହିଛନ୍ତି ।

Question 6.
‘ସରଳ ବନ୍ଧୁତାରେ ତମେ ଦେଖ ଗରଳର ସ୍ଵପ୍ନ । ଗୀତା, ବାଇବେଲ ଆଉ କୋରାରୁ ତମେ ଖୋଜ ବିଶ୍ୱାସଘାତକତାର ବାଣୀ’ – ଏହି ଉକ୍ତିଟି କାହାର, ଏହାର ତାତ୍ପର୍ଯ୍ୟ ଦର୍ଶାଅ ।
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
‘‘ସରଳ ବନ୍ଧୁତାରେ ତମେ ଦେଖ ଗରଳର ସ୍ବପ୍ନ । ଗୀତା, ବାଇବେଲ୍‌ ଆଉ କୋରାନ୍‌ରୁ ତମେ ଖୋଜ ବିଶ୍ୱାସଘାତକତାର ବାଣୀ ।’’ ଏହି ଉକ୍ତିଟି ପ୍ରଫେସର ପରିଜାଙ୍କର । ସେ ନିଜ ଅନୁଭୂତି ଓ ଅଭିଜ୍ଞତାରୁ ଆଜିର ମଣିଷମାନଙ୍କ ଚରିତ୍ର ଅନୁଧ୍ୟାନ ସ୍ଵରୂପ ଏଇ ଉକ୍ତି ବା ସଂଳାପକୁ ହରି ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ କହିଛନ୍ତି । ମଣିଷର ସ୍ବାର୍ଥପରତା ଓ ବିଶ୍ୱାସହୀନତାକୁ ଘୃଣାକରି ସେ ଏକଥା ପ୍ରକାଶ କରିଛନ୍ତି ।

Question 7.
‘ନାରୀ ମାତ୍ରେ ହିଁ ମମତାମୟୀ । ସେମାନେ ଖୁବ୍ ଶୀଘ୍ର ଗୋଟାଏ ଜିନିଷକୁ ଆପଣାର କରି ନିଅନ୍ତି’ – କିଏ କାହାକୁ କେଉଁ ପ୍ରସଙ୍ଗରେ କହିଛି?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
‘‘ନାରୀ ମାତ୍ରେ ହିଁ ମମତାମୟୀ । ସେମାନେ ଖୁବ୍ ଶୀଘ୍ର ଗୋଟାଏ ଜିନିଷକୁ ଆପଣାର କରି ନିଅନ୍ତି ।’’ – ଏ କଥା ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ତାଙ୍କ ବନ୍ଧୁ ଜୟନ୍ତର ପତ୍ନୀ ରୀତାଙ୍କୁ କହିଛନ୍ତି । ରୀତା ଅତନୁଙ୍କ ତତ୍ତ୍ୱାବଧାନରେ ଡାକ୍ତରଖାନାରେ ଚିକିତ୍ସିତ ହେଉଛନ୍ତି । ଡାକ୍ତରଖାନାର ଶାନ୍ତ ପରିବେଶ, ସେଠିକାର ଚରିତ୍ରମାନଙ୍କ ସ୍ନେହ ଶ୍ରଦ୍ଧା, ବେବୀର ଗୀତ ଓ ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କ ଯତ୍ନ ତାଙ୍କୁ ଏକବାରେ ନିଜର କରିନେଇଛି । ଫଳରେ ରୀତା ଚାହିଁଛନ୍ତି ସେଇ ଡାକ୍ତରଖାନାରେ ରହିଯିବା ପାଇଁ । ଏହି ପ୍ରସଙ୍ଗରେ ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ଉପରୋକ୍ତ ସଂଳାପଟି କହିଛନ୍ତି ।

Question 8.
‘ମୁଁ ଇହ ଜନ୍ମରେ ଆଉ ପର ଜନ୍ମରେ ବି ଆପଣଙ୍କର ଋଣୀ ହୋଇ ରହିବି? – କିଏ କାହାକୁ କେଉଁ ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ କହିଛି?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
“ମୁଁ ଇହ ଜନ୍ମରେ ଆଉ ପର ଜନ୍ମରେ ବି ଆପଣଙ୍କ ଋଣୀ ହୋଇ ରହିବି?’’ – ଏ କଥା ମଦ୍ୟପ ବ୍ୟବସାୟୀ ପିନାକୀ ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କୁ କହିଛନ୍ତି । ମଦ୍ୟପ ବ୍ୟବସାୟୀ ପିନାକୀ ବ୍ୟବସାୟରେ କ୍ଷତି ସହି ଅତ୍ୟଧିକ ମଦପିଇ ମାନସିକ ଭାରସାମ୍ୟ ହରାଇଛି । ତା’ର ବଞ୍ଚିବାର ଆଶା କ୍ଷୀଣ ହୋଇଉଠିଛି । ତେବେ ପିନାକୀର ଏକମାତ୍ର ଝିଅ ବେବୀର ଭବିଷ୍ୟତକୁ ନେଇ ପିତା ଆତଙ୍କିତ ହୋଇଉଠିଛି । ପିନାକୀର ମୃତ୍ୟୁ ପରେ ଏଇ ଛୋଟ ଝିଅର କ’ଣ ହେବ, ଏଇ ଚିନ୍ତାରେ ପିନାକୀ ଭୟଭୀତ ହୋଇଛି । ବେବୀର ଅସହାୟତାକୁ ସହ୍ୟ କରି ପାରିନାହିଁ ପିନାକୀ । ଫଳରେ ସେ ତା’ ଝିଅ ଦେବୀର ଦାୟିତ୍ୱ ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କୁ ସମର୍ପିବାକୁ ଚାହିଁଛି । ଯେତେବେଳେ ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ତାଙ୍କୁ ପ୍ରତିଶ୍ରୁତି ଦେଇଛନ୍ତି ବେବୀର ଦାୟିତ୍ଵ ନେବେ ବୋଲି ସେତେବେଳେ ପିନାକୀ ଏକଥା କହିଛନ୍ତି ।

Question 9.
‘ଭୁଲ ଆଡ଼କୁ ଟାଣି ହୋଇ ଯାଇଛୁ ତୁ? ମାନସିକ ରୋଗର ଡାକ୍ତର ହୋଇ ନିଜେ ମାନସିକ ବିପ୍ଳବର ଶିକାର ହୋଇଛୁ’ – ଏହା କେଉଁ ପ୍ରସଙ୍ଗରେ କୁହାଯାଇଛି?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର– ରତ୍ନାକର ଚଇନି
‘ଭୁଲ୍ ଆଡ଼କୁ ଟାଣି ହୋଇ ଯାଉଛୁ ତୁ । ମାନସିକ ରୋଗର ଡାକ୍ତର ହୋଇ ନିଜେ ମାନସିକ ବିପ୍ଳବର ଶିକାର ହୋଇଛୁ ।’ ଜୟନ୍ତର ଅତନୁଙ୍କ ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ ଥିବା ଏହି ସଂଳାପ, ଅତନୁଙ୍କ ମାନସିକ ଦ୍ବନ୍ଦ୍ବ ପ୍ରସଙ୍ଗରେ ଉପସ୍ଥାପିତ । ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କ ରଚିତ କବିତା ତାଙ୍କ ବନ୍ଧୁ ଜୟନ୍ତଙ୍କ ପରିଚୟ ପାଲଟିଛି । ଅଥଚ ଯେତେବେଳେ କବିଙ୍କୁ ସମ୍ମାନ ଓ ପୁରସ୍କାର ଦେବାର ମୁହୂର୍ତ୍ତ ଉପନୀତ ହୋଇଛି ସେତେବେଳେ ଏହି ସମ୍ବାଦ ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ତଥା ପ୍ରକୃତ କବିଙ୍କ ଅନ୍ତର ଭିତରେ ଅଜଣା ଏକ ଆଲୋଡ଼ନ ସୃଷ୍ଟି କରିଛି । ତେଣୁ ଏ କଥାର ଅନୁଭବ କରିପାରି ଜୟନ୍ତ ମନସ୍ତାତ୍ତ୍ଵିକ ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କୁ ଉପରୋକ୍ତ ସଂଳାପଟି କହିଛନ୍ତି ।

Question 10.
‘ଲୁହ ନ ଥିଲେ ହସର ମୂଲ୍ୟ କେହି ବୁଝନ୍ତିନି ବନ୍ଧୁ’ । ମଣିଷ ଜୀବନ ପାଇଁ ହସ ଯେତିକି ଦରକାର ଲୁହ ମଧ୍ଯ ସେତିକି ଦରକାର, – କିଏ କାହାକୁ କେଉଁ ପ୍ରସଙ୍ଗରେ କୁହାଯାଇଛି?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
‘ଲୁହ ନ ଥିଲେ ହସର ମୂଲ୍ୟ କେହି ବୁଝନ୍ତିନି ବନ୍ଧୁ । ମଣିଷ ଜୀବନ ପାଇଁ ହସ ଯେତିକି ଦରକାର ଲୁହ ମଧ୍ୟ ସେତିକି ଦରକାର’ – ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ତାଙ୍କ ବନ୍ଧୁ ଜୟନ୍ତଙ୍କୁ ଏକଥା କହିଛନ୍ତି । ଜୟନ୍ତଙ୍କ ଆକ୍ଷେପମୂଳକ କଥାରେ ମର୍ମାହତ ହୋଇଛନ୍ତି ଅତନୁ । କ୍ଷମା ପ୍ରାର୍ଥନା କରିଛି ଅତନୁ । ଭୁଲ ପାଇଁ ବିନତୀ କରିଛି ଜୟନ୍ତଙ୍କ ପାଖରେ । ଅତନୁ କହିଛି, ସେ କବି ନୁହେଁ – ସେ ଜଣେ ଡାକ୍ତର । ଏହି ଉଚ୍ଚାରଣ ଓ ଅନୁଭବ ଭିତରେ ଅତନୁର ଅନ୍ତରରେ ଉତ୍ତୋଳିତ ହୋଇଛି ଉଦ୍‌ବେଳନ, ଆଖୁରେ ଲୁହ ଜକେଇ ଉଠିଛି । ଏହି ଲୁହ ଦେଖୁ ଯେତେବେଳେ ବନ୍ଧୁ ଜୟନ୍ତ କାରଣ ପଚାରିଛନ୍ତି, ସେତେବେଳେ ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ଉପରୋକ୍ତ ସଂଳାପଟି କହିଛନ୍ତି ।

Question 11.
‘ବିଜ୍ଞାନୀ ପୁରାତନକୁ ଧରି ବସି ରହେନା । ସେ ଚାହେଁ ନୂତନର ଆବିଷ୍କାର’ – ଏ ଉକ୍ତି କିଏ କାହାକୁ ଓ କାହିଁକି କହିଛି?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
‘ବିଜ୍ଞାନୀ ପୁରାତନକୁ ଧରି ବସି ରହେନା । ସେ ଚାହେଁ ନୂତନର ଆବିଷ୍କାର’ – ଏହି ଉକ୍ତି ପ୍ରଫେସର ପରିଜା ସିଷ୍ଟରଙ୍କ ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ କହିଛନ୍ତି । ପ୍ରଫେସର ପରିଜା ଚନ୍ଦ୍ରପୃଷ୍ଠକୁ ଯିବାପାଇଁ ଗବେଷଣାରେ ମଗ୍ନ ଥିଲାବେଳେ ତାଙ୍କର ଜଣେ ବନ୍ଧୁଙ୍କ କୁଚକ୍ରାନ୍ତ ଓ ଅସହିଷ୍ଣୁତାର ଶିକାର ହୋଇ ମାନସିକ ଭାରସାମ୍ୟ ହରାଇଛନ୍ତି । ପ୍ରଫେସର ବେଡ଼ରେ ରେଷ୍ଟ୍ ନେବାପାଇଁ ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ନିର୍ଦ୍ଦେଶ ଦେଇଥିଲେ, ପ୍ରଫେସର ସିଷ୍ଟରଙ୍କ ସହ ଯାଇଥିଲେ ମଧ୍ୟ; ହେଲେ ସିଷ୍ଟର ତାଙ୍କୁ ଯେମିତି ଟିକେ ଛାଡ଼ିକି ଯାଇଛନ୍ତି ସେ ପୁଣି ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କ ପାଖକୁ ଚାଲିଆସି ଯୁକ୍ତି କରିବା ଆରମ୍ଭ କରିଛନ୍ତି । ସିଷ୍ଟର ଫେରିଆସି ଯେତେବେଳେ ତାଙ୍କୁ ନେବାକୁ ଚାହିଁଛନ୍ତି ତଥା ରେଷ୍ଟ୍ ନେବାପାଇଁ ବେଡ଼କୁ ଯିବାପାଇଁ କହିଛନ୍ତି, ଠିକ୍ ସେତିକିବେଳେ ପ୍ରଫେସର ଚୁପ୍‌ଚାପ୍ ଶୋଇବାକୁ ମନାକରି ଦେଇଛନ୍ତି । ବିଜ୍ଞାନୀ ଶିଶୁ ପରି ନୀରବରେ ଶୋଇ ନ ପାରେ ସେ ବିପ୍ଳବ କରିବାକୁ ଚାହେଁ ।

Question 12.
କିଏ କହିଲା ତମେ ନିଃସ୍ଵ? ଲକ୍ଷପତିର କନ୍ୟା-ପୁଣି କୋଟିପତିର ବଧୂ ! କିଏ କାହାକୁ କେଉଁ ପ୍ରସଙ୍ଗରେ କୁହାଯାଇଛି?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
କିଏ କହିଲା ତୁମେ ନିଃସ୍ଵ ? ଲକ୍ଷପତିର କନ୍ୟା – ପୁଣି କୋଟିପତିର ବଧୂ ! – ଏକଥା ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ରୀତାଙ୍କୁ କହିଛନ୍ତି । କବିତାପ୍ରେମୀ ରୀତା ବିବାହ କରିଛି ଜୟନ୍ତଙ୍କୁ । ଜୟନ୍ତ ଯେ ଜଣେ କବି ତାହା ରୀତାପାଇଁ ଥିଲା ଅସଲ ଆକର୍ଷଣ । ବିବାହ ପରେ ରୀତା ବୁଝି ନେଇଛି ଯେ ଜୟନ୍ତ ପ୍ରକୃତରେ ଜଣେ କବି ନୁହେଁ, କବିର ଭାବନା ଓ ଭାବୁକର ହୃଦୟ ତାଙ୍କ ପାଖରେ ନାହିଁ । ଏପରି ଆଘାତରେ ରୀତା ମାନସିକ ଭାରସାମ୍ୟ ହରାଇ ଜୟନ୍ତଙ୍କ ନିକଟରେ ଚିକିତ୍ସିତ ହେଉଛି । କବିତାକୁ ଅହରହ ଖୋଜୁଛି, ବିରହ ବେଦନାରେ ଭାଓଲିନ୍ ବଜାଉଛି । ନିଜକୁ ଏକୁଟିଆ ଓ ନିଃସ୍ଵ ଭାବିଛି । ତେଣୁ ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ତାଙ୍କୁ ବୁଝେଇବା ପାଇଁ ଉପରୋକ୍ତ କଥା କହିଛନ୍ତି ।

Question 13.
‘ମୋର ମନେହୁଏ ଏମିତି ଗୋଟାଏ’ସମୟ ଆସିବ ଯେତେବେଳେ ତୋ ପାଖକୁ ଆଉ ମୋ ହାତ ପାଇବନି ।’ ଏ ଉକ୍ତି କାହାର କେଉଁ ପ୍ରସଙ୍ଗରେ କୁହାଯାଇଛି?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
‘ମୋର ମନେହୁଏ ଏମିତି ଗୋଟିଏ ସମୟ ଆସିବ ଯେତେବେଳେ ତୋ ପାଖକୁ ଆଉ ମୋ ହାତ ପାଇବନି ।’ ଏ ଉକ୍ତି ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ଜୟନ୍ତଙ୍କ ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ କହିଛନ୍ତି । ଜୟନ୍ତଙ୍କ ଅର୍ଥରେ ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ଆମେରିକା ଯାଇ ଡାକ୍ତରୀ ପାଠ ପଢ଼ି ଆସିଛନ୍ତି । ପଇସା ଅଭାବରୁ ପଢ଼ାରୁ ସେ ବଞ୍ଚିତ ହୋଇଥା’ନ୍ତେ, ନିଜ ଡାକ୍ତର ହେବାର ସ୍ବପ୍ନ ଅଧୁରା ରହିଯାଇଥା’ନ୍ତା, ମାତ୍ର ଜୟନ୍ତଙ୍କ ଅର୍ଥ ସାହାଯ୍ୟ ତାଙ୍କୁ ମନସ୍ତାତ୍ତ୍ଵିକ ଡାକ୍ତର କରାଇ ପାରିଛି । ତେଣୁ ଜୟନ୍ତଙ୍କ ଏଇ ସାହାଯ୍ୟ ତଥା ତ୍ୟାଗ ଆଦର୍ଶର ପୁଞ୍ଜି ପ୍ରଦାନ, ଅତନୁଙ୍କ ଦୃଷ୍ଟିରେ ତାଙ୍କୁ ବହୁ ଉଚ୍ଚକୁ ନେଇଯାଇଛି । ତେଣୁ ଜୟନ୍ତଙ୍କ ମହାନତାକୁ ନେଇ ଓ ସେ ଉପରୋକ୍ତ କଥା କହିଛନ୍ତି ।

Question 14.
କବିଙ୍କର କା’ ଯାଇଛି ….. କିନ୍ତୁ କବି ନୁହନ୍ତି । କିଏ କାହା ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ କାହିଁକି କହିଛି
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
କବିଙ୍କର କା ଯାଇଛି ….. କିନ୍ତୁ କବି ନୁହଁନ୍ତି । ରୀତା ଏହି ସଂଳାପ ଅତନୁଙ୍କ ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ କହିଛନ୍ତି । ଜୟନ୍ତ ଓ ଅତନୁଙ୍କ ପରସ୍ପର ମଧ୍ୟରେ ହୋଇଥିବା ବାର୍ତ୍ତାଳାପ ଶୁଣିପାରିଛନ୍ତି ରୀତା । ରୀତା ଜୟନ୍ତଙ୍କ କବିପଣର ଅସଲ ରହସ୍ୟ ଜାଣିପାରିଛନ୍ତି । ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କ ରଚିତ କବିତାକୁ ଜୟନ୍ତଙ୍କୁ କବିର ପରିଚୟ ଓ ପ୍ରତିଷ୍ଠା ଦେଇଛି । ଜୟନ୍ତ ଅସଲରେ ଜଣେ କବି ନୁହେଁ ଏହି ସତ୍ୟକଥା ଜାଣିଲାବେଳକୁ ଜୟନ୍ତ ବିଦାୟ ନେଇଥିଲେ । ଜୟନ୍ତଙ୍କ ବିଦାୟ ପରେ ରୀତା ଆସିଥିବାରୁ ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ଜଣେଇଛନ୍ତି ଯେ କବି ଚାଲିଯାଇଛନ୍ତି । ଏକଥାର ଉତ୍ତରରେ ରୀତା ଉପରୋକ୍ତ ସଂଳାପ କହିଛନ୍ତି ।

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 4 ରାଜହଂସ Question Answer

Question 15.
ଆଶାରେ ହିଁ ମଣିଷ ବଞ୍ଚେ । ଆଦିମ ଯୁଗରୁ ମଣିଷ ଆଶାବାଦୀ । ଏହାର ତାତ୍ପର୍ଯ୍ୟ ଉଲ୍ଲେଖ କର ।
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ଆଶାରେ ହିଁ ମଣିଷ ବଞ୍ଚେ । ଆଦିମ ଯୁଗରୁ ମଣିଷ ଆଶାବାଦୀ । ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ଏହି ସଂଳାପ ଜୟନ୍ତଙ୍କ ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ କହିଛନ୍ତି । ଜୟନ୍ତଙ୍କ ପତ୍ନୀ ରୀତା ମାନସିକ ଭାରସାମ୍ୟ ହରାଇ ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କ ପାଖରେ ଚିକିତ୍ସିତ ହୋଇଛନ୍ତି । ଜୟନ୍ତ ପତ୍ନୀଙ୍କ ସୁସ୍ଥ ହେବାର କୌଣସି ଲକ୍ଷଣ ଦେଖୁପାରି ନାହାନ୍ତି । ତେଣୁ ସେ ଧୈର୍ଯ୍ୟ ହରାଇ ଆଶାଶୂନ୍ୟ ହୋଇପଡ଼ିଛନ୍ତି । ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ତାଙ୍କୁ ବୁଝାଇବା ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ ଉପରୋକ୍ତ ସଂଳାପ କହିଛନ୍ତି ।

Question 16.
ଦେହ ସରୋବର ଛାଡ଼ି ହଂସ ଉଡ଼ିଯାଇଛି ବନ୍ଧୁ । କାହାର ସେ ଅପେକ୍ଷା କରିନି ! ଏହାର ତାତ୍ପର୍ଯ୍ୟ କ’ଣ?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
‘ଦେହ ସରୋବର ଛାଡ଼ି ହଂସ ଉଡ଼ିଯାଇଛି ବନ୍ଧୁ । କାହାର ସେ ଅପେକ୍ଷା କରେନି ।’ ଏହାର ତାତ୍ପର୍ଯ୍ୟ ଏହି ଯେ ଅତନୁଙ୍କ ମୃତ୍ୟୁ ପରେ ଜୟନ୍ତ ଆସି ବ୍ୟସ୍ତ ହୋଇ ସେଠାରେ ପହଞ୍ଚିଛନ୍ତି । ତାଙ୍କ ବନ୍ଧୁର ବିୟୋଗ ଜୟନ୍ତଙ୍କୁ ମର୍ମାହତ କରିଛି । ପ୍ରଫେସର ପରିଜା ଜୟନ୍ତଙ୍କୁ ବାସ୍ତବତା ସଂପର୍କରେ ସଚେତନ କରାଇବାକୁ ଯାଇ ଉପରୋକ୍ତ ସଂଳାପ କହିଛନ୍ତି ।

(ଙ) ୫ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀର ଉତ୍ତର। (୧୫୦ ଶବ୍ଦ ମଧ୍ଯରେ ଉତ୍ତର)

Question 1.
ଏକ ମନସ୍ତାତ୍ତ୍ଵିକ ନାଟକ ଭାବରେ ‘ରାଜହଂସ’ର ମୂଲ୍ୟାୟନ କର ।
କିମ୍ବା, ‘ରାଜହଂସ ଏକ ସଫଳ ମନସ୍ତାତ୍ତ୍ଵିକ ନାଟକ’ – ଏହି ଉକ୍ତିର ଯଥାର୍ଥତା ପ୍ରତିପାଦନ କର ।
କିମ୍ବା, ‘ମନସ୍ତାତ୍ତ୍ଵିକ ନାଟକ ଭାବରେ ରାଜହଂସ ଏକ ସଫଳ ପରୀକ୍ଷା’– ଏହି ଉକ୍ତିଟି ବିଶ୍ଳେଷଣ କର ।
Answer:
ଯଥାର୍ଥରେ ଯାହା ଅଭିନୟ ଉପଯୋଗୀ ତାହା ହିଁ ନାଟକ । ତେବେ ଆଧୁନିକ କାଳଖଣ୍ଡରେ ଏହି ନାଟକ ମଣିଷ ଜୀବନର ଅନ୍ତରଙ୍ଗ ମାନସିକ ଉଦ୍‌ବେଳନ ଓ ସଂଗୁପ୍ତ ଭାବଧାରାକୁ ନିଜ ଭିତରେ ସମାଦୃତ କରି ବେଶ୍ ଚିତ୍ରମୟ ଓ ତାତ୍ପର୍ଯ୍ୟପୂର୍ଣ ହୋଇପାରିଛି । ତେବେ ଏହି କାଳମଣ୍ଡରେ ଯେଉଁମାନଙ୍କ ଲେଖନୀ ଚାଳନା ଉଭୟ ପ୍ରଭାବଶାଳୀ ଓ ବୈଚିତ୍ରପୂର୍ଣ୍ଣ ଥିଲା, ସେମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ଡ. ରତ୍ନାକର ଚଇନି ଅନ୍ୟତମ ପ୍ରଚଣ୍ଡ ପ୍ରତିଭା । ମଣିଷର ବାହ୍ୟ ଆଚରଣ ଅପେକ୍ଷା ମନ ଭିତରର ଚିତ୍ରକୁ ବେଶ୍ ମନୋଜ୍ଞ ଶୈଳୀରେ ପାଠକ ତଥା ଦର୍ଶକ ଆଗରେ ତୋଳିଧରିବାରେ ସେ ଥିଲେ ଜଣେ ଧୂରୀଣ ଶିଳ୍ପୀ । ଏହି ସାର୍ଥକ ଶିଳ୍ପୀଙ୍କ ଅନନ୍ୟ ସୃଷ୍ଟିଗୁଡ଼ିକ ମଧ୍ୟରୁ ‘ଅସ୍ତରାଗର ଚନ୍ଦ୍ର’, ‘ଶେଷଅଶୁ’, ‘କଳଙ୍କିତ ସୂର୍ଯ୍ୟ’, ‘ଶୂନ୍ୟତାର ଶିଡ଼ି’, ‘ପୁନଶ୍ଚ ପୃଥ‌ିବୀ’ ଆଦି ଅନ୍ୟତମ ।

ଆଲୋଚ୍ୟ ରାଜହଂସ ତାଙ୍କର ଏକ ସାର୍ଥକ ମନସ୍ତାତ୍ତ୍ଵିକ ନାଟକ । ମଣିଷ ଓ ମଣିଷଦ୍ବାରା ସୃଷ୍ଟି ହୋଇଥିବା ସମାଜ, ସମସ୍ତ ପ୍ରତ୍ୟକ୍ଷ ବା ପରୋକ୍ଷ ଭାବରେ ମନଦ୍ବାରା ହିଁ ପରିଚାଳିତ । ସମାଜର ନୀତିନିୟମକୁ, ଆଦର୍ଶବୋଧର ପାଳନକୁ ତଥା ଭଦ୍ରତାର ଆଚରଣକୁ ଆଖିଆଗରେ ରଖ୍ ମଣିଷ ସମାଜରେ ତା’ର ବାହ୍ୟ ମନର ପରିଚୟ ଦିଏ । କିନ୍ତୁ ଅନ୍ତର ଭିତରେ ଅଜସ୍ର ଅସନ୍ତୋଷ ସୃଷ୍ଟି ହୁଏ । ଫଳରେ ଅନ୍ତର୍ମନ ଓ ବହିର୍ମନ ମଧ୍ୟରେ ଦେଖାଦିଏ ଦ୍ବନ୍ଦ୍ବ । ଦ୍ବନ୍ଦ୍ବରୁ ସୃଷ୍ଟିହୁଏ ସଂଘର୍ଷ ଓ କ୍ରମେ ମନ ଅସୁସ୍ଥ ହୋଇପଡ଼େ । ସବିଶେଷରେ ମାନସିକ ଭାରସାମ୍ୟ ହରାଏ ମଣିଷ ।

ଏହି ନାଟକରେ ନାଟ୍ୟକାର ଏହିପରି ମାନସିକ ଭାରସାମ୍ୟ ହରାଇଥିବା ଚରିତ୍ରମାନଙ୍କୁ ଚିତ୍ରଣ କରିଛନ୍ତି ଗୋଟିଏ ସେଟ୍ ଉପରେ । ବ୍ୟବସାୟରେ କ୍ଷତି ସହି ମଦ୍ୟପ ପାଲଟି ନିଜ ଭାରସାମ୍ୟ ହରାଇଥିବା ପିନାକୀ, କବିତା ପ୍ରେମରେ କବିଙ୍କୁ ଆପଣାର କରିବା ନିଶାରେ ପ୍ରତାରିତ ହୋଇ ମାନସିକ ଭାରସାମ୍ୟ ହରାଇଥିବା ରୀତା, ବିଜ୍ଞାନୀ ବନ୍ଧୁଙ୍କ ଅସହିଷ୍ଣୁତାର ଶିକାର ହୋଇଥିବା ପ୍ରଫେସର ପରିଜା, ଯୁଦ୍ଧରେ ବାକ୍‌ଶକ୍ତି ହରାଇଥିବା ବୀର, ପ୍ରତାରିତ ଭୀମା ପ୍ରଭୃତି ନିଜ ମାନସିକ ଭାରସାମ୍ୟ ହରାଇଛନ୍ତି, ଏମାନଙ୍କ ସଫଳ ଚରିତ୍ରାୟନ ଉକ୍ତ ନାଟକର କଳାକାରିଗରୀ ।

ରାଜହଂସ ନାଟକରେ ନାଟ୍ୟକାର ଡାକ୍ତର ଚଇନି ବ୍ୟାଧଗ୍ରସ୍ତ ମଣିଷ ମନ ଉପରେ ବିଶେଷ ଗୁରୁତ୍ୱ ଦେଇଛନ୍ତି । ସେ କହନ୍ତି- ‘ଅତ୍ୟାଧୁନିକ ସ୍ଵର ହେଉଛି, ମଣିଷର ସମାଜତତ୍ତ୍ଵ ଓ ମନସ୍ତତ୍ତ୍ଵର ବୈଶିଷ୍ଟ୍ୟ ଉତ୍ତମ ରୂପେ ହୃଦୟଙ୍ଗମ କରିବା ।’ ତେବେ ଏହି ନାଟକରେ ନାଟ୍ୟକାର ଉକ୍ତିଟିକୁ ସାର୍ଥକ କରି ହିଁ ଆଧୁନିକ ମଣିଷର ମନକୁ ଅତି ସୂକ୍ଷ୍ମଭାବରେ ବିଶ୍ଳେଷଣ କରିଛନ୍ତି ।

ରାଜହଂସ ନାଟକର ଚରିତ୍ରଙ୍କ ମନସ୍ତତ୍ତ୍ଵକୁ ଖୁବ୍ ସୁନ୍ଦର ଭାବରେ ଦେଖାଇଛନ୍ତି ନାଟ୍ୟକାର । ମୋଟ ଉପରେ ବିଚାର କଲେ ଯେଉଁ ଚରିତ୍ରମାନଙ୍କୁ ନାଟକରେ ଉପସ୍ଥାପିତ କରିଛନ୍ତି, ସେମାନେ ଚଳନ୍ତି ସମାଜ ଓ ସମୟର କେତୋଟି ବ୍ୟାଧଗ୍ରସ୍ତ ମଣିଷ । ସେମାନଙ୍କ ବିକାରଗ୍ରସ୍ତ ମାନସିକତାକୁ ଚମତ୍କାର ଭାବରେ ଦର୍ଶକ ତଥା ପାଠକ ପାଖରେ ରଖୁଛନ୍ତି ନାଟ୍ୟକାର । ତେଣୁ ରାଜହଂସକୁ ଆମେ ଏକ ସଫଳ ମନସ୍ତତ୍ତ୍ଵ ନାଟକ ଭାବରେ ଗ୍ରହଣ କରିବା ।

Question 2.
‘ରାଜହଂସ’ ନାମକରଣର ସାର୍ଥକତା ପ୍ରତିପାଦନ କର ।
କିମ୍ବା, ନାମକରଣ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ‘ରାଜହଂସ’ର ଯଥାର୍ଥତା ବିଚାର କର ।
Answer:
କୌଣସି ସାହିତ୍ୟ ସୃଷ୍ଟିର ନାମକରଣ ସମୟରେ ସ୍ରଷ୍ଟା ଏହାର ବିଷୟବସ୍ତୁ ଅଥବା ଚରିତ୍ର ଉପରେ ଗୁରୁତ୍ୱ ପ୍ରଦାନ କରି ଏହାର ନାମକରଣ କରିଥା’ନ୍ତି । ପୁଣି କେତେକ ସ୍ଥଳରେ ଆଧ୍ୟାତ୍ମିକ ଭାବାବୋଧକୁ ନେଇ ସ୍ରଷ୍ଟା ମଧ୍ଯ ସୃଷ୍ଟିର ନାମକରଣରେ କିଛି ପରିବର୍ତ୍ତନ ଆଣନ୍ତି । ଅନ୍ୟ କେତେକ କ୍ଷେତ୍ରରେ ନାମକରଣ ମଧ୍ଯ ପ୍ରତୀକଧର୍ମୀ ହୋଇଥାଏ । ଏହି ଦୃଷ୍ଟିରୁ ଡଃ ରତ୍ନାକର ଚଇନିଙ୍କ ‘ରାଜହଂସ’ ନାଟକକୁ ବିଚାର କରାଯାଇପାରେ ।

ରତ୍ନାକର ଚଇନି ଓଡ଼ିଆ ନାଟ୍ୟ ସାହିତ୍ୟ କ୍ଷେତ୍ରରେ ଏକ ବହୁଚର୍ଚ୍ଚିତ ଓ ପରିଚିତ ତଥା ଲୋକପ୍ରିୟ ନାମ । ସଂଳାପର ସୁସଂଯୋଜନା ଓ କାହାଣୀର ନବପରିକଳ୍ପନା ତାଙ୍କ ନାଟକକୁ ଯେତିକି କରିଛି ଲୋକପ୍ରିୟ ସେତିକି କରିଛି ଚିତ୍ତାକର୍ଷକ । ତାଙ୍କର ‘ରାଜହଂସ’, ‘ଶୂନ୍ୟତାର ଶିଡ଼ି’, ‘କଳଙ୍କିତ ସୂର୍ଯ୍ୟ’, ‘ଅସ୍ତରାଗର ଚନ୍ଦ୍ର’ ଆଦି ତାଙ୍କ ପ୍ରତିଭାର ସ୍ବାକ୍ଷର ବହନ କରନ୍ତି ।

‘ରାଜହଂସ’ ନାଟକରେ ନାଟ୍ୟକାର ରତ୍ନାକର ଚଇନି ଆଧୁନିକ ମଣିଷର ଅନ୍ତର୍ମନର ସଂଗୁପ୍ତ ଅବ୍ୟକ୍ତ ଭାବ-ଭାବନା ତଥା କଥାକୁ ଅତି ସୂକ୍ଷ୍ମଭାବରେ ବିଶ୍ଳେଷଣ କରିଅଛନ୍ତି । ନାଟକରେ ବସ୍ତୁନିଷ୍ଠ ନାମକରଣ କରାନଯାଇ ମନସ୍ତାତ୍ତ୍ଵିକ ଚରିତ୍ରକୁ ଆଧ୍ୟାତ୍ମିକ ଭାବରେ ଓ ସ୍ପର୍ଶରେ ରସାଣିତ କରାଯାଇଛି । ଏଥରେ ମନକୁ ହଂସ ସହିତ ତୁଳନା କରାଯାଇଛି । ଆମ ପାରମ୍ପରିକ ବର୍ଣ୍ଣନାରେ ମଧ୍ୟ ମନକୁ ହଂସ ସହ ତୁଳନା କରାଯାଇଛି । ମଣିଷ ସଫଳତା ପାଇବା ପାଇଁ ମନରୂପକ ହଂସକୁ ନିୟନ୍ତ୍ରିତ ତଥା ଅକ୍ତିଆର ଦରକାର ।

‘ରାଜହଂସ’ ସଂପର୍କରେ ‘ପ୍ରଜାତନ୍ତ୍ର’ରେ ଉଲ୍ଲେଖ ଥିଲା ଯେ ‘ମନ ହେଉଛି ସବୁରି ଉପରେ ରାଜା’ । ଯୋଗାଚାରୀ ସାଧକର ସାଧନାରେ ସେଇ ହେଉଛି ହଂସ । ସେଇ ହଂସକୁ ଅକ୍ତିଆର କରିପାରିଲେ ଏବଂ ଚିହ୍ନିପାରିଲେ ସବୁଠୁ ସଫଳତା ସୁନିଶ୍ଚିତ । ସେଇ ହଂସର କାହାଣୀ କହିଛି ନାଟକ ରାଜହଂସ । ହଂସର ରୂପ ଚେତନାକୁ ନେଇ ନାଟକଟିର ନାମକରଣ କରାଯାଇଛି ‘ରାଜହଂସ’ ।

ଏହି ନାଟକର ପ୍ରତ୍ୟେକ ଚରିତ୍ର ଭିତରେ ନାଟ୍ୟକାର ଏହି ମନନିୟନ୍ତ୍ରଣର କଥା ବୁଝାଇବାକୁ ଚାହିଁଛନ୍ତି । ସମସ୍ତଙ୍କ ମନକୁ ସୁନ୍ଦର ଭାବରେ ବିଶ୍ଳେଷଣ କରିପାରୁଥିବା ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ନାଟକର ପରିଣତି ବେଳକୁ ନିଜ ମନକୁ ଅକ୍ତିଆର କରିପାରି ନାହାନ୍ତି । ଫଳତଃ ଆତ୍ମହତ୍ୟା କରିଛନ୍ତି ଅତନୁ । ଟେବୁଲ୍ ଉପରେ କଚାଡ଼ି ହୋଇ ମୃତ୍ୟୁକୁ ବାଛି ନେଇଛନ୍ତି ଅତନୁ । ରାଜହଂସ ଉଡ଼ିଯାଇଛି ଦେହ ରୂପକ ସରୋବର ଛାଡ଼ି ।

Question 3.
ଓଡ଼ିଆ ନାଟ୍ୟ ସାହିତ୍ୟରେ ‘ରାଜହଂସ’ ନାଟକର ସ୍ଥାନ ନିରୂପଣ କର ।
Answer:
ସାହିତ୍ୟର ଅନ୍ୟାନ୍ୟ ବିଭାଗଠାରୁ ନାଟକ ସ୍ବତନ୍ତ୍ର । ଏହା ଏକ ମିଶ୍ର କଳା । ଏହା ଉଭୟ ଦୃଶ୍ୟକାବ୍ୟ ଓ ଶ୍ରାବ୍ୟକାବ୍ୟ ଭାବରେ ସ୍ଵୀକୃତ । ପ୍ରାଚୀନ କାଳରୁ ଆଧୁନିକ କାଳଖଣ୍ଡ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ନାଟକ ଭିନ୍ନ ଭିନ୍ନ ମୋଡ଼ ଦେଇ ଭିନ୍ନ ଭିନ୍ନ ଭାବରେ ରୂପରେ ବଢ଼ିଆସିଛି । ନାଟକର ଏହି ଗତି ତଥା ବିକାଶ ଯାତ୍ରାରେ କେତେ ପରିବର୍ତ୍ତନ ମଧ୍ଯ ସଂଯୋଜିତ ହୋଇଯାଇଛି । ବଦଳିଛି ଏହା ମଞ୍ଚଠାରୁ କଥାବସ୍ତୁ, ଆଙ୍ଗିକଠାରୁ ଆମ୍ବିକ ବିଭବ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ । ଓଡ଼ିଆ ନାଟ୍ୟ ସାହିତ୍ୟରେ ମଧ୍ୟ ଏହି ଧାରା ଦୃଶ୍ୟ ତଥା ସ୍ପଷ୍ଟ ।

ସ୍ଵାଧୀନତା ପରବର୍ତ୍ତୀ ଓଡ଼ିଆ ନାଟ୍ୟ ସାହିତ୍ୟରେ ପରିବର୍ତ୍ତନର ଯେଉଁ ନୂତନ ରଙ୍ଗରୂପ ପାଠକକୁ ପ୍ରଭାବିତ କରେ ସେଥ‌ିରେ ନାଟ୍ୟକାର ରତ୍ନାକର ଚଇନିଙ୍କ ଭୂମିକା ବି ଉଲ୍ଲେଖଯୋଗ୍ୟ । ମଞ୍ଚକୌଶଳରେ ପରୀକ୍ଷାନିରୀକ୍ଷା, ଆଙ୍ଗିକ ସହ ଆପ୍ଲିକ କ୍ଷେତ୍ରରେ ନବନବ ପ୍ରୟୋଗମାନ ଓଡ଼ିଆ ନାଟ୍ୟ ସାହିତ୍ୟକୁ ଖାଲି ଯେ ଲୋକପ୍ରିୟ କରାଇଲା ତାହା ନୁହେଁ; ବରଂ ବିଶ୍ୱ ନାଟ୍ୟସାହିତ୍ୟ କ୍ଷେତ୍ରରେ ଓଡ଼ିଆ ନାଟକର ଏକ ସ୍ଵତନ୍ତ୍ର ପରିଚୟ ସୃଷ୍ଟି କରିପାରିଲା । ଏହି ପରିଚୟ ଶ୍ରେୟ ମଧ୍ଯ ରତ୍ନାକର ଚଇନିଙ୍କର ତାଙ୍କର ଅନନ୍ୟ ନାଟ୍ୟକୃତି ‘ରାଜହଂସ’ର ।

‘ରାଜହଂସ’ ଏକ ମନସ୍ତାତ୍ତ୍ଵିକ ପରୀକ୍ଷାମୂଳକ ନାଟକ । ଓଡ଼ିଆ ନାଟ୍ୟ ସାହିତ୍ୟରେ ଏହା ଏକ ଭିନ୍ନଧର୍ମୀ ନାଟକ । ଗତାନୁଗତିକତାରୁ ମୁକୁଳିଯାଇ ଏହାର କଥାବସ୍ତୁ, ମଞ୍ଚକଳା ଓ ଚରିତ୍ରଚିତ୍ରଣ ଖୁବ୍ ସ୍ୱତନ୍ତ୍ର । ସମାଜ ତତ୍ତ୍ଵକୁ ନେଇ ନାଟକ ଯେତେବେଳେ ଦର୍ଶକ ତଥା ପାଠକକୁ ବାନ୍ଧି ରଖୁବାରେ ବେଶ୍ ସଫଳ ହୋଇଛି ସେତେବେଳେ ମନସ୍ତତ୍ତ୍ଵକୁ ନେଇ ଏଭଳି ନାଟକଟେ ପରିକଳ୍ପନା କରିବା ସାହସିକତାର ପରିଚୟ ।

ମନର ମୂଳେ ଏ ଜଗତ । ପ୍ରାଣୀ ଭିତରେ ସ୍ୱତନ୍ତ୍ର ଓ ଶ୍ରେଷ୍ଠ ପ୍ରାଣୀ ମଣିଷ ଏଇ ମନଦ୍ଵାରା ପରିଚାଳିତ । ମଣିଷର ମନୋଜଗତରେ ଆଲୋଡ଼ିତ ନାନା ଘଟଣାବଳୀ ସମାଜ ଉପରେ ପ୍ରତ୍ୟକ୍ଷ ପରୋକ୍ଷ ଭାବରେ ପ୍ରଭାବ ପକାଇଥାଏ । ଏହି ମନଦ୍ଵାରା ପରିଚାଳିତ ‘ରାଜହଂସ’ ନାଟକର ପ୍ରତ୍ୟେକ ଚରିତ୍ର ଭିନ୍ନ ଓ ପ୍ରଭାବଶାଳୀ ମନେହୁଅନ୍ତି ।

ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ମଦ୍ୟପ ବ୍ୟବସାୟୀ ପିନାକୀ, ପ୍ରଫେସର ପରିଜା, କଳାନୁରାଗୀ ରୀତା, ବ୍ୟବସାୟୀ ଜୟନ୍ତ, ବୀର, ଭୀମା, ହରି, ସବିତା ଆଦି ଚରିତ୍ରମାନଙ୍କ ଚିତ୍ରାୟନ ଓଡ଼ିଆ ନାଟ୍ୟ ସାହିତ୍ୟ କ୍ଷେତ୍ରରେ ‘ରାଜହଂସ’ର ଜୟଗାନ ଗାଉଛି, ଗାଉଥ୍ ମଧ୍ଯ ।

Question 4.
‘ରାଜହଂସ’ ନାଟକରୁ ନାଟ୍ୟକାରଙ୍କ ସୃଷ୍ଟି ଆଭିମୁଖ୍ୟ ଆଲୋଚନା କର ।
Answer:
ସ୍ଵାଧୀନତା ପରବର୍ତ୍ତୀ ଓଡ଼ିଆ ନାଟ୍ୟ ସାହିତ୍ୟ କ୍ଷେତ୍ରରେ ଯେଉଁ କେତେଜଣ ବିଶିଷ୍ଟ ପ୍ରତିଭା ନିଜ ବଳିଷ୍ଠ ଅବଦାନ ବଳରେ ସ୍ଵତନ୍ତ୍ର ଆସନର ଅଧିକାରୀ ହୋଇଛନ୍ତି, ସେମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ନାଟ୍ୟକାର ରନ୍ଧାକର ଚଇନି ଅନ୍ୟତମ । ତାଙ୍କ ରଚିତ ବହୁଚର୍ଚ୍ଚିତ ନାଟକଗୁଡ଼ିକ ମଧ୍ୟରେ ‘ଶେଷଅଶ୍ରୁ’, ‘ରାଜହଂସ’, ‘ଅସ୍ତରାଗର ଚନ୍ଦ୍ର’, ‘ଅସ୍ଥିର ଉପତ୍ୟକା’, ‘ଅଥଚ ଚାଣକ୍ୟ’, ‘ଅନ୍ଧାରର ସୂର୍ଯ୍ୟମୁଖୀ’ ଇତ୍ୟାଦି ବହୁ ଜନଆଦୃତି ଲାଭ କରିପାରିଛି । ପ୍ରଚଳିତ ସମାଜର ରୀତିନୀତି, ଶାସନବ୍ୟବସ୍ଥା, ମଣିଷର ସଂଘର୍ଷମୟ ଜୀବନଚିତ୍ର ତାଙ୍କ ରଚନାରେ ପ୍ରତିଫଳିତ ହୋଇଛି ।

‘ରାଜହଂସ’ ଏକ ମନୋବିଜ୍ଞାନ ଚେତନାସମ୍ବଳିତ ପରୀକ୍ଷାମୂଳକ ନାଟକ । ସମଗ୍ର ନାଟକଟି ଗୋଟିଏ ମାତ୍ର ସେଟ୍‌ରେ ପ୍ରଯୋଜିତ ହୋଇଛି । ଏଥରେ ସାଂପ୍ରତିକ ମଣିଷର ଅବଚେତନ ମନ ଉପରେ ନାଟ୍ୟକାର ଗୁରୁତ୍ବାରୋପ କରିଛନ୍ତି । ଇନ୍ଦ୍ରିୟମାନଙ୍କର ରାଜା ମନ ଚିର ରହସ୍ୟମୟ ଓ ଚଳଚଞ୍ଚଳ । ଯେଉଁ ମନ ମଣିଷକୁ ଅଫୁରନ୍ତ ଆନନ୍ଦ ଓ ଶାନ୍ତି ଦିଏ, ସେଇ ମନ ପୁଣି ଅନ୍ତରରେ ଭରିଦିଏ ଅଶାନ୍ତର ଝଡ଼ । ମନ ସର୍ବଦା ଅବଚେତନ ଯାହା ମଣିଷକୁ ବେଳେବେଳେ ନିଃସ୍ଵ ଓ ଏକାନ୍ତ ଅସହାୟ କରିଦିଏ । ଫଳରେ ଜୀବନ ଦୁର୍ବିସହ ହେବା ସହ ମାନସିକ ବିକୃତି ଦେଖାଦିଏ । ‘ରାଜହଂସ’ ନାଟକରେ ମଣିଷର ଏହି ଅବଚେତନ ମନର କଥାକୁ ଚରିତ୍ର ମାଧ୍ୟମରେ ପରିସ୍ଫୁଟନ କରିବାର ଆଭିମୁଖ୍ୟ ନାଟ୍ୟକାର ପରିପୋଷଣ କରିଛନ୍ତି ।

‘ରାଜହଂସ’ ନାଟକରେ ସଂଯୋଜିତ ବିଭିନ୍ନ ନାରୀ ଓ ପୁରୁଷ ଚରିତ୍ର ମାଧ୍ୟମରେ ସେମାନଙ୍କ ଅବଚେତନ ମନର ଗୂଢ଼ତଥ୍ୟ ପ୍ରକାଶିତ ହୋଇଛି । ସେମାନଙ୍କ ମାନସିକ ବିକୃତିର ପ୍ରକୃତ ରହସ୍ୟ ଉପରୁ ପରଦା ଅପସାରିତ ହୋଇଛି । ପୁରାଣ ଶାସ୍ତ୍ରରେ ମନକୁ ହଂସ ସହ ତୁଳନା କରାଯାଏ । ‘ରାଜହଂସ’ ନାଟକ ମାଧ୍ୟମରେ ଏହି ମନରୂପୀ ଶ୍ରେଷ୍ଠ ହଂସର କାହାଣୀ ଦର୍ଶକ ସମାଜ ଆଗରେ ପ୍ରକାଶ କରିବା ନାଟ୍ୟକାରଙ୍କ ମୁଖ୍ୟ ଆଭିମୁଖ୍ୟ ବୋଲି ଅନୁମାନ କରାଯାଇପାରେ । ମନରୂପକ ରାଜହଂସକୁ ଯେ ନିଜ ଆୟତ୍ତରେ ରଖୁପାରେ, ସେ ହୋଇଯାଏ ପ୍ରତିଷ୍ଠିତ ଓ ସଫଳ, ମାତ୍ର ମନରୂପୀ ରାଜହଂସ ଅଣାୟତ୍ତ ହେଲେ ତା’ଠାରେ ଦେଖାଯାଏ ମାନସିକ ବିକୃତି ।

ନାଟ୍ୟକାର ମନରୂପୀ ରାଜହଂସର ଗୂଢ଼ ରହସ୍ୟକୁ ଅନାବୃତ୍ତ କରିବା ନିମନ୍ତେ ‘ରାଜହଂସ’ ନାଟକରେ ଅନେକ ଚରିତ୍ରର ସଂଯୋଜନା କରିଛନ୍ତି । ଏଥିରେ ନାଟ୍ୟକାର ଜଣେ ଅର୍ଥ ଓ ପ୍ରତିପରିଭ୍ରଷ୍ଟ ସର୍ବହରା ପାଗଳ ମଦ୍ୟପ ବ୍ୟବସାୟୀ ପିନାକୀ, ଜଣେ ବିଜ୍ଞାନ ଗବେଷଣାଭ୍ରଷ୍ଟ ଅର୍ଦ୍ଧପାଗଳ ପ୍ରଫେସର ପରିଜା, ଯୁଦ୍ଧଭୂମିରେ ବୋମାମାଡ଼ରେ ଆହତ ବୀର ନାମକ ଜଣେ ବାକ୍‌ଶକ୍ତିହୀନ ମିଲିଟାରୀ ଅଫିସର, ଜଣେ ବ୍ୟର୍ଥ ପ୍ରେମିକ ଅଭିନେତା ଭୀମ, ଜଣେ କବିତା ଓ କବିତ୍ଵ-ପାଗଳିନୀ ନାରୀ ଚରିତ୍ର ରୀତା, ଲବ୍ଧପ୍ରତିଷ୍ଠିତ ବ୍ୟବସାୟୀ କୋଟିପତି ଜୟନ୍ତ, ସିଷ୍ଟର ଗାୟତ୍ରୀ ଏବଂ ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କ ଚରିତ୍ରର ସମାବେଶ କରିଛନ୍ତି ।

ଏସବୁ ଚରିତ୍ରମାନଙ୍କର ମନଗହନର ଅକୁହା ରହସ୍ୟର ପେଡ଼ିକୁ ନାଟ୍ୟକାର ବଳିଷ୍ଠ ସଂଳାପ ମାଧ୍ୟମରେ ଉନ୍ମୋଚନ କରିଛନ୍ତି । ସେମାନଙ୍କ ମାନସିକ ଅବସାଦ ବା ବ୍ୟାଧର ସମାଧାନ ପାଇଁ ମଧ୍ୟ ଉପାୟ ନିରୂପଣ କରିଛନ୍ତି ।

ଆଧୁନିକ ଜୀବନ ଜଞ୍ଜାଳଗ୍ରସ୍ତ ମଣିଷ ବହୁ ମାନସିକ ଚାପର ବଶବର୍ତ୍ତୀ ହୋଇ ନିଜ ମନର ଗୁମର ମନ ମଧ୍ୟରେ ଚାପି ରଖୁବାକୁ ବାଧ୍ୟ ହେଉଛି, ଯାହାକି ପରବର୍ତ୍ତୀ କାଳରେ ତାକୁ ମାନସିକ ବ୍ୟାଧୂପୀଡ଼ିତ କରିଦେଉଛି । ସେ ସମାଜରେ ପାଗଳରୂପେ ପରିଗଣିତ ହେଉଛି । ଏହି ରହସ୍ୟର ଉନ୍ମୋଚନ ଆଭିମୁଖ୍ୟ ନେଇ ନାଟ୍ୟକାର ସୃଷ୍ଟି କରିଛନ୍ତି ନାଟକ ‘ରାଜହଂସ’ । ନାଟକ ‘ରାଜହଂସ’ ମଧ୍ୟ ତାଙ୍କ ସୃଷ୍ଟି ଆଭିମୁଖ୍ୟକୁ ଯଥାର୍ଥ ରୂପେ ପ୍ରତିପାଦିତ କରିପାରିଛି ।

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 4 ରାଜହଂସ Question Answer

Question 5.
‘ରାଜହଂସ’ ନାଟକର ମଞ୍ଚମୂଲ୍ୟ ବିଚାର କର ।
Answer:
ପ୍ରତ୍ୟେକ ନାଟ୍ୟକୃତିର ଦୁଇଟି ମୂଲ୍ୟ ରହିଥାଏ । ପ୍ରଥମତଃ ସାହିତ୍ୟିକ ମୂଲ୍ୟ ଓ ଅନ୍ୟଟି ମଞ୍ଚମୂଲ୍ୟ । ନାଟକ ଏକ ଦୃଶ୍ୟକାବ୍ୟ ହୋଇଥିବାରୁ ଏହାର ମଞ୍ଚମୂଲ୍ୟ ଉପରେ ବିଶେଷ ଗୁରୁତ୍ୱ ଦିଆଯାଇଥାଏ । ମଞ୍ଚକୁ ଛାଡ଼ି ନାଟକର ଉନ୍ନତି ଅସମ୍ଭବ । ଅନ୍ୟ ଭାବରେ ଉଲ୍ଲେଖ କଲେ ମଧ୍ୟ ଗ୍ରହଣ କରାଯାଏ ଯେ ନାଟକ ହେଉଛି ମଞ୍ଚାଶ୍ରୟୀ କଳା । ଏହି ମଞ୍ଚହିଁ ନାଟକର ପରୀକ୍ଷା ଭୂମି ।

ମଞ୍ଚରୁ ସିଧାସିଧା ଦର୍ଶକ ଜୀବନ କ୍ଷେତ୍ରକୁ ସଂଚରି ଯିବାର ସକଳ କ୍ଷମତା ରଖେ ନାଟକ । ନାଟକର ସଫଳତା ଓ ବିକାଶ ମଧ୍ଯ ମଞ୍ଚ ଉପରେ ନିର୍ଭର କରେ । ପ୍ରତ୍ୟେକ ନାଟକ ଏହି ମଞ୍ଚ ବିନା ଅଧା ଓ ଅଧୁରା । ତେବେ ଏହି ପରିପ୍ରେକ୍ଷୀରେ ଆମେ ‘ରାଜହଂସ’ର ମଞ୍ଚମୂଲ୍ୟକୁ ବିଚାରକୁ ନେଇପାରିବା ।

‘ରାଜହଂସ’ ଏକ ଚମତ୍କାର ମନସ୍ତାତ୍ତ୍ଵିକ ପରୀକ୍ଷାମୂଳକ ନାଟକ । ରତ୍ନାକର ଚଇନିଙ୍କ ଏହା ଏକ ଚର୍ଚ୍ଚିତ ନାଟକ । ସ୍ଵାଧୀନତାର ପରବର୍ତ୍ତୀକାଳ ଖଣ୍ଡରେ ଯେଉଁ ପରୀକ୍ଷାମୂଳକ କଥାବସ୍ତୁ ସମ୍ବଳିତ ନାଟକ ରଚନା କରାଯାଇଥିଲା ସେଗୁଡ଼ିକ ମଧ୍ୟରୁ ‘ରାଜହଂସ’ ଏକ ଅନନ୍ୟ ନାଟ୍ୟଫସଲ । ତେବେ ଏହାର ମଞ୍ଚମୂଲ୍ୟକୁ ନିମ୍ନମତେ ଆଲୋଚନା କରିବା ।

ଓଡ଼ିଆ ନାଟକ କ୍ଷେତ୍ରରେ ‘ରାଜହଂସ’ ଏକ ବଳିଷ୍ଠ ପଦକ୍ଷେପ । ଏହାର କଥାବସ୍ତୁ, ସଂଳାପ, ସଂଯୋଜନା ଓ ଉପସ୍ଥାପନା ସଂପୂର୍ଣ୍ଣ ଭିନ୍ନ ଓ ନୂତନ । ଗୋଟିଏ ଦୃଶ୍ୟସଜ୍ଜାରେ ସମସ୍ତ କଥାବସ୍ତୁକୁ ଏକଜୁଟ କରାଇ ନାଟ୍ୟକାର ରତ୍ନାକର ଚଇନି ନିଜ କଳାନୈପୁଣ୍ୟର ସାର୍ଥକ ପରିଚୟ ପ୍ରଦର୍ଶନ କରିଛନ୍ତି ।

ଗୋଟିଏ ମାତ୍ର ସେଟ୍‌ରେ ସଂପୂର୍ଣ୍ଣ ନାଟକଟିକୁ ଖୁବ୍ ଚମତ୍କାର ଭାବରେ ସଂଯୋଜିତ କରାଯାଇଛି । କଥାବସ୍ତୁଟି କେବଳ ଡାକ୍ତରଖାନାର ସେଟ୍‌ରେ ମୂଳରୁ ଶେଷଯାଏ ସଂଯୋଜିତ କରାଯାଇଛି, ଯାହା ଚଇନିଙ୍କ ଅନ୍ୟ ଏକ କାରିଗରୀ ।

ଗୋଟିଏ ସେଟିଂ ଉପରେ ଦୁଇଟି ଅର୍ଦ୍ଧ ଅର୍ଥାତ୍ ପ୍ରଥମାର୍କ ଓ ଦ୍ବିତୀୟାର୍ଦ୍ଧରେ ଅଳ୍ପ କେତୋଟି ଚରିତ୍ରକୁ ନେଇ ଏହାକୁ ପରିକଳ୍ପନା କରିଛନ୍ତି ନାଟ୍ୟକାର । ତେବେ ରୋଗୀମାନଙ୍କ ପାଇଁ ସ୍ଵତନ୍ତ୍ର କୋଠରୀ ସହ ମୁଖ୍ୟ ମଞ୍ଚ ଅର୍ଥାତ୍ ଡାକ୍ତରଙ୍କ ଚାମ୍ବରର ବର୍ଣ୍ଣନା ରହିଛି । ଡାକ୍ତରଙ୍କ ଚାମ୍ବରରେ ହସ-କାନ୍ଦ, ସୁଖ-ଦୁଃଖ, କ୍ରୋଧ-ବୁଝାମଣା ସବୁକୁ ନାଟ୍ୟକାର ଦର୍ଶକ ତଥା ପାଠକ
ଆଗରେ ତୋଳି ଧରିଛନ୍ତି ।

ବାସ୍ତବିକ ‘ରାଜହଂସ’ର ମଞ୍ଚମୂଲ୍ୟ ଅତ୍ୟନ୍ତ ପ୍ରଶଂସନୀୟ ଓ ଉଚ୍ଚକୋଟୀର ।

Question 6.
‘ରାଜହଂସ’ ନାଟକରୁ ଡକ୍ଟର ଅତନୁଙ୍କ ଚରିତ୍ରର ବୈଶିଷ୍ଟ୍ୟ ଦର୍ଶାଅ ।
କିମ୍ବା, ‘ରାଜହଂସ’ ନାଟକର ମୁଖ୍ୟ ଚରିତ୍ର ଅତନୁଙ୍କ ଚରିତ୍ର ଚିତ୍ରଣ କର ।
କିମ୍ବା, ଅତନୁ ‘ରାଜହଂସ’ ନାଟକର ମୁଖ୍ୟ ଓ କେନ୍ଦ୍ରୀୟ ଚରିତ୍ର – ଏହାରା ଯଥାର୍ଥତା ପ୍ରତିପାଦନ କର ।
Answer:
ଓଡ଼ିଆ ନାଟ୍ୟ ସାହିତ୍ୟାକାଶରେ ଜଣେ ଉଜ୍ଜ୍ଵଳ ନକ୍ଷତ୍ର ଭାବରେ ପ୍ରତିଭାର ସମୂଜ୍ଜ୍ବଳ କିରଣରେ ଓଡ଼ିଆ ନାଟ୍ୟପ୍ରିୟ ଦର୍ଶକ ତଥା ପାଠକକୁ ସର୍ବାଧିକ ଆକର୍ଷଣ କରିବାରେ ସଫଳ ହୋଇଥିବା ଅନ୍ୟତମ ଶ୍ରେଷ୍ଠ ପ୍ରତିଭା ଥିଲେ ଡ. ରତ୍ନାକର ଚଇନି । ସଂଳାପର ସ୍ବତନ୍ତ୍ରତା, କଥାବସ୍ତୁର ନୂତନତା ଓ ଉପସ୍ଥାପନା ତଥା ମଞ୍ଚକୌଶଳର ଅଭିନବତା ତାଙ୍କୁ ସୃଷ୍ଟିଗୁଡ଼ିକୁ ଯେ ଖାଲି ଶ୍ରେଷ୍ଠତାର ମୁକୁଟ ପିନ୍ଧାଇଥିଲା ତାହା ନୁହେଁ; ପରିବର୍ତ୍ତନର ସ୍ଵର ଭିତରେ ଦେଇଥିଲା ଅନନ୍ୟ ପରଚୟ । ତାଙ୍କ ବହୁଚର୍ଚ୍ଚିତ ନାଟକଗୁଡ଼ିକ ମଧ୍ୟରୁ ‘ଅସ୍ତରାଗର ଚନ୍ଦ୍ର’, ‘ଶେଷଅଶ୍ରୁ’, ‘ମଞ୍ଚନାୟିକା’, ‘ଅପଦେବତା’, ‘ଶୂନ୍ୟତାର ଶିଡ଼ି’, ‘ପୁନଶ୍ଚ ପୃଥିବୀ’ ‘ରାଜହଂସ’ ଅନ୍ୟତମ ।

ଆଲୋଚ୍ୟ ‘ରାଜହଂସ’ ରତ୍ନାକର ଚଇନିଙ୍କ ଅନ୍ୟତମ ସାର୍ଥକ ନାଟ୍ୟସୃଷ୍ଟି । ଏହି ନାଟକରେ ମୁଖ୍ୟ ଚରିତ୍ର ଭାବରେ ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କ ଚରିତ୍ରଟି ଚିତ୍ରିତ । ଏହି ଚରିତ୍ରକୁ ଖୁବ୍ ମନୋଜ୍ଞ ଶୈଳୀରେ ଉପସ୍ଥାପିତ କରିଛନ୍ତି ନାଟ୍ୟକାର । ସେ ବୃତ୍ତିରେ ଜଣେ ଡାକ୍ତର ଆଉ ନିଶାରେ ଜଣେ କବି ତଥା ସାହିତ୍ୟିକ । ଏହି ଚରିତ୍ରଟିକୁ କେନ୍ଦ୍ରକରି ସଂପୂର୍ଣ୍ଣ ନାଟକର କଥାବସ୍ତୁ ଗତିଶୀଳ ଏବଂ ଅନ୍ୟାନ୍ୟ ଚରିତ୍ର ଗତି କରିଛନ୍ତି । ସମସ୍ତ ଚରିତ୍ର ଏହି ଚରିତ୍ର ଉପରେ ନିର୍ଭର କରିଛନ୍ତି । ଅତନୁ ଚରିତ୍ର ବିନା ନାଟକ ଓ ଅନ୍ୟ ସମସ୍ତ ଚରିତ୍ର ଅସଂପୂର୍ଣ୍ଣ ହୋଇଯାଇଥାନ୍ତେ ।

ପିଲାଟି ଦିନରୁ ଖୁବ୍ ନିଷ୍ଠାପର, ପରିଶ୍ରମୀ, ମେଧାବୀ ଏଇ ଅତନୁ ଚରିତ୍ର । ଅନେକ ପ୍ରତିକୂଳ ଅବସ୍ଥାରେ କେବେ ପଛେଇ ଯିବା ଶିଖୁ ନଥୁଲା ଏଇ ଅତନୁ ଚରିତ୍ର । ‘ରାଜହଂସ’ର ପ୍ରମୁଖ ନାୟକ ଅତନୁ ଯିଏ ଡାକ୍ତରୀ’ପଢ଼ି କୌଣସି ସରକାରୀ ଚାକିରି ନ କରି, ସେବା ମନୋବୃତ୍ତିରେ ଗୋଟିଏ ଡାକ୍ତରଖାନା ଖୋଲି ନିଷ୍ଠାର ସହ ସେବାରେ ମନୋନିବେଶ କରିଛନ୍ତି ।

ଅତନୁ ଜୀବନରେ କେବଳ ଆଗକୁ ବଢ଼ିବା ଶିଖୁଛି । ଗୋଟିଏ ପରେ ଗୋଟିଏ ପ୍ରତିବନ୍ଧକର ପାହାଡ଼ ଚଢ଼ି ସେ ନିଜ ପ୍ରତିଭାର ପରିଚୟ ପ୍ରଦାନ କରିଛନ୍ତି । ନିଜର ମେଧା ପ୍ରତିଭା ବଳରେ ମନସ୍ତତ୍ତ୍ଵ ସଂପର୍କରେ ଉଚ୍ଚତର ଶିକ୍ଷା ଓ ଉଚ୍ଚତର ଗବେଷଣା କରିବାକୁ ଆମେରିକା ଯାଇଛି । ବନ୍ଧୁଠାରୁ ଅର୍ଥ ସାହାଯ୍ୟ ନେଇଥିଲେ ବି ସେଥ‌ିପାଇଁ ସେ ତା’ର ଅନ୍ୟ ଏକ ପ୍ରତିଭାକୁ ଜୟନ୍ତର ପରିଚୟ ପାଇଁ ସମର୍ପିତ କରିଦେଇଛି ।

ସ୍ଵାଭିମାନୀ ଚରିତ୍ରଟିଏ ଅତନୁ । ବନ୍ଧୁର ସାହାଯ୍ୟର ବୋଝ ସେ ପରିଶୋଧ କରିବାପାଇଁ ଯଥେଷ୍ଟ ତ୍ୟାଗ କରିଛି । ଚିକିତ୍ସା କେନ୍ଦ୍ରରେ ମାନସିକ ବିକାରଗ୍ରସ୍ତ ରୋଗୀମାନଙ୍କର ସେବା କରିଛି ଖୁବ୍ ଆତ୍ମୀୟତାର ସହ । ଅଳ୍ପଦିନ ମଧ୍ୟରେ ଅତନୁ ଜଣେ ଭଲ ଡାକ୍ତର ଭାବରେ ପ୍ରତିଷ୍ଠା ଲାଭ କରିଛି । ଏହି ସୁନାମ ତଥା ଖ୍ୟାତି ତା’ର ଚାରିଆଡ଼େ ବ୍ୟାପୀ ଯାଇଛି । ଏପରିକି ସାରା ଭାରତବର୍ଷର ଚିକିତ୍ସାକେନ୍ଦ୍ରରୁ ହତାଶାରେ ଫେରି ମୂକ ମିଲିଟାରୀ ଅଫିସର ବୀର ଅତନୁଙ୍କ ନିକଟରେ ସୁସ୍ଥ ହୋଇ କଥା କହିପାରିଛି ।

ନାଟ୍ୟକାର ଅତନୁ ଚରିତ୍ରକୁ ଦେବତୁଲ୍ୟ କରି ଗଢ଼ି ତୋଳିଛନ୍ତି । ମାନସିକ ବିଭାଗର ଡାକ୍ତର ଭାବରେ ତାଙ୍କୁ ଦେଇଛନ୍ତି ଅସୀମ ଧୈର୍ଯ୍ୟ ଓ ଅଶେଷ ସ୍ନେହମମତା । ନିଜେ କବି ହୋଇ ମଧ, ଚମତ୍କାର କବିତା ସୃଷ୍ଟି କରିଥିଲେ ମଧ୍ୟ ବନ୍ଧୁ ଲାଗି ତାହାକୁ ବନ୍ଧୁ ନାଁରେ ଉତ୍ସର୍ଗ କରିଦେବା ଖୁବ୍ ବଡ଼ କଥା ! ନାଟକଟିରେ ଆଶାର ଏକ ସକାରାତ୍ମକ ଧୂରୀଣ ବ୍ୟକ୍ତିଭାବେ ରୂପ ନେଇଛନ୍ତି ଅତନୁ, ଯଥାସମ୍ଭବ ଅନ୍ୟମାନଙ୍କୁ ତଥା ରୋଗୀଙ୍କୁ ଆଶା ଅମୃତର ବାଣୀ ଶୁଣାଇଛନ୍ତି । ତଥାପି ରୋଗୀର ମୃତ୍ୟୁରେ ଖୁବ୍ ଭାଙ୍ଗପଡ଼ିଥ‌ିବା ଆତ୍ମଗ୍ଲାନିରେ ମର୍ମାହତ ହୋଇଥିବା ପ୍ରତିଭା, ଡାକ୍ତର ଅତନୁ । କେବେ ନିଷ୍ଠୁରତା ସ୍ପର୍ଶ କରିନି ଅତନୁଙ୍କୁ ।

ରୋଗୀମାନଙ୍କ ପ୍ରତି ସେ ଥିଲେ ଦୟାଶୀଳ । ସେଥ‌ିପାଇଁ ରୋଗୀମାନେ ତାଙ୍କୁ ଦେବତାତୁଲ୍ୟ ଜ୍ଞାନ କରିଥିଲେ । କ୍ରୋଧ କେବେ ତାଙ୍କୁ ନିଷ୍ଠୁର କରାଇପାରି ନଥିଲା । ପିନାକୀଙ୍କୁ କଥା ଦେଇଛନ୍ତି ଯେ ତାଙ୍କ ଛୋଟ ଝିଅ ବେବୀର ଦାୟିତ୍ଵ ନେବେ । ମନଯୋଗ ସହକାର ଅନ୍ୟମାନଙ୍କ ମାନସିକ ରୋଗ ଦୂର କରିପାରୁଥିବା ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ଶେଷରେ ନିଜ ମାନସିକ ଶକ୍ତିର ଅଭାବରୁ ଚାପଗ୍ରସ୍ତ ହୋଇ ଜୀବନ ତ୍ୟାଗ କରିଦେଇଛନ୍ତି ।

ଅତନୁଙ୍କୁ କେନ୍ଦ୍ରୀୟ ଚରିତ୍ର ଭାବରେ ନାଟ୍ୟକାର ଚିତ୍ରଣ କରିବା ସହ ଜଣେ କୃତଜ୍ଞ ମଣିଷ, ପ୍ରତିଭାବନ୍ତ ପୁରୁଷ, ମେଧାବୀ ଛାତ୍ର, ଅନନ୍ୟ କବି, ସ୍ନେହପ୍ରବଣ ଡାକ୍ତର, ଉଚ୍ଚଶିକ୍ଷିତ ବ୍ୟକ୍ତିତ୍ବ ଭାବରେ ଉପସ୍ଥାପିତ କରିଛନ୍ତି । ଅତନୁ ହେଉଛି ଏକମାତ୍ର ଚରିତ୍ର, ଯେଉଁ ଚରିତ୍ରର ପରିଧ୍ ଭିତରେ ହିଁ ନାଟ୍ୟକାର ଅନ୍ୟାନ୍ୟ ଚରିତ୍ରର ଚାରିତ୍ରିକ ମୌଳିକତା ପ୍ରକାଶ କରିଛନ୍ତି ।

Question 7.
‘ରାଜହଂସ’ ନାଟକରୁ ଜୟନ୍ତ ଚରିତ୍ରର ମହତ୍ତ୍ଵ ପ୍ରକାଶ କର ।
କିମ୍ବା, ଜୟନ୍ତ ଚରିତ୍ରର ଭୂମିକା ‘ରାଜହଂସ’ରେ କେତେଦୂର ଗୁରୁତ୍ବପୂର୍ଣ୍ଣ ଆଲୋଚନା କର ।
କିମ୍ବା, ‘ରାଜହଂସ’ ନାଟକରୁ ଜୟନ୍ତର ଚରିତ୍ର ଚିତ୍ରଣ କର ।
Answer:
ପଚାଶ ପରବର୍ତୀ ଓଡ଼ିଆ ନାଟକ କ୍ଷେତ୍ରରେ ଯେଉଁ କେତେଜଣ ବିଶିଷ୍ଟ ପ୍ରତିଭା ସେମାନଙ୍କ ସ୍ୱତନ୍ତ୍ରତାକୁ ନେଇ ସର୍ବାଗ୍ରେ ସ୍ମରଣୀୟ ସେମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ଡ. ରତ୍ନାକର ଚଇନି ଅନ୍ୟତମ ସାର୍ଥକ ସ୍ରଷ୍ଟା । ମନସ୍ତାତ୍ତ୍ଵିକ ପରୀକ୍ଷାମୂଳକ ନାଟକ ରଚନା କ୍ଷେତ୍ରରେ ତାଙ୍କର ଅସାଧାରଣ ପ୍ରତିଭା ତାଙ୍କୁ କେବଳ ଯେ ଓଡ଼ିଆ ପାଠକ ପାଖରେ ସ୍ମରଣୀୟ କରି ରଖୁଛି ତାହା ନୁହେଁ ସମଗ୍ର ଭାରତୀୟ ନାଟ୍ୟ ସାହିତ୍ୟପ୍ରେମୀଙ୍କ ଅନ୍ତରେ ତାଙ୍କୁ ଅମର କରିରଖୁଛି । ତାଙ୍କ ନାଟ୍ୟ ପ୍ରତିଭାର ପରିଚୟ ବହନ କରୁଥିବା ନାଟକଗୁଡ଼ିକ ମଧରୁ ‘ଶେଷଅଶ୍ରୁ’, ‘ଅସ୍ତରାଗର ଚନ୍ଦ୍ର’, ‘ମଞ୍ଚନାୟିକା’, ‘ଅପଦେବତା’, ‘ପୁନଶ୍ଚ ପୃଥ‌ିବୀ’, ‘ଶୂନ୍ୟତାର ଶିଡ଼ି’ ଓ ‘ରାଜହଂସ’ ଆଦି ଅନ୍ୟତମ ।

ଆଲୋଚ୍ୟ ‘ରାଜହଂସ’ ରତ୍ନାକର ଚଇନିଙ୍କ ଏକ ସାର୍ଥକ ମନସ୍ତାତ୍ତ୍ଵିକ ନାଟକ । ଏହାର ମୁଖ୍ୟ ଚରିତ୍ରମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ଜୟନ୍ତ ଅନ୍ୟତମ । ଜୟନ୍ତ ଜଣେ ବିଶିଷ୍ଟ ଧନୀ ଯୁବକ, ଜଣେ କରିତ୍‌କର୍ମା ବ୍ୟବସାୟୀ ଓ ଜଣେ ଆଭିଜାତ୍ୟସଂପନ୍ନ ବ୍ୟକ୍ତିତ୍ଵ । ବନ୍ଧୁ ପାଇଁ ବନ୍ଧୁତାର ମୂଲ୍ୟ ବୁଝିଛି ସେ । ସ୍ତ୍ରୀର ମନକଥା ବୁଝିବାକୁ ଅସଫଳ ହୋଇଥିଲେ ବି ସ୍ତ୍ରୀ ପ୍ରତି ଥିବା କର୍ତ୍ତବ୍ୟବୋଧରୁ ପଛକୁ ଲେଉଟିଯାଇନି ସେ କି ଅବହେଳା କରିନାହିଁ ସେ । ଧନଶାଳୀ ହୋଇଥିଲେ ବି ଧନକୁ ନେଇ ଅଯଥା ଅହଂକାରୀ ନୁହେଁ ସେ । ପ୍ରତିଭାର ବିକାଶ ପାଇଁ ସାହାଯ୍ୟର ହାତ ବଢ଼ାଇଛି ସେ । ବନ୍ଧୁଙ୍କ ପାଇଁ ସାହାଯ୍ୟର ମୂର୍ତ୍ତିଟିଏ ସେ ।

ନାଟ୍ୟକାର ସଂପୃକ୍ତ ନାଟକର ନାଟକୀୟ ଗତିବେଗ; ନାଟକୀୟ ମୁଖ୍ୟ ଘଟଣା ଏବଂ ନାଟକର ଚରିତ୍ରଗୁଡ଼ିକ ପାଇଁ ଏହି ଚରିତ୍ର ତଥା ଜୟନ୍ତଙ୍କୁ ବିଶେଷ ଉପଯୋଗୀ ଚରିତ୍ର ଭାବରେ ହିଁ ଗଠନ କରିଛନ୍ତି । ବୋଧହୁଏ ନାଟକଟିରେ ଜୟନ୍ତ ଚରିତ୍ର ଏପରି ଭାବରେ ଚିତ୍ରିତ ହୋଇ ନ ଥିଲେ ନାଟକର ଗତି ଭିନ୍ନ ଆକାର ଧାରଣ କରିଥାଆନ୍ତା ।

ଜୟନ୍ତର ସାହାଯ୍ୟରେ ଅତନୁ ଆମେରିକା ଯାଇ ମାନସିକ ରୋଗ ବିଷୟରେ ଡାକ୍ତରି ପଢ଼ି ଫେରିଛି । ଅତନୁଙ୍କ ସ୍ଵପ୍ନକୁ ସାକାର କରିବାରେ ଜୟନ୍ତର ଉଦାରତା ଓ ସହଯୋଗିତା ନାଟକର ଅନ୍ୟ ଏକ ସୁସ୍ଥ ଧାରଣା । ଏହି ସାହାଯ୍ୟର ପ୍ରତିଦାନରେ ଅତନୁ ଜୟନ୍ତଙ୍କୁ ନିଜ କବିତାର ପ୍ରଭୁତ୍ୱ ଅର୍ପଣ କରିଛି । ଏଥରେ ଜୟନ୍ତର ନିଜ ଇଚ୍ଛା ଅପେକ୍ଷା ବନ୍ଧୁ ଅତନୁର ଋଣ ପରିଶୋଧର ମାନସିକତାକୁ ସେ ବିଶେଷ ଧ୍ୟାନ ଦେଇଛି ।

ରୀତାକୁ ପତ୍ନୀ ଭାବରେ ପାଇ ଜୟନ୍ତ ଖୁବ୍ ଖୁସିରେ ଥିଲାବେଳେ ନାରୀ ମନସ୍ତତ୍ତ୍ଵ ପାଖରେ ତା’ର ଅବୁଝାପଣ ଖୁବ୍ ବାରି ହୋଇପଡ଼ିଛି । ରୀତା ମାନସିକ ଭାରସାମ୍ୟ ହରାଇଥିଲେ ବି ତା’ର ଚିକିତ୍ସା ଓ ବାରମ୍ବାର ତା’ର ଖବର ବୁଝିବାର ଆଗ୍ରହ ଜୟନ୍ତକୁ ଉତ୍ତମ ସ୍ଵାମୀ ଚରିତ୍ରର ଆଖ୍ୟା ଦେଇଛି । ବାସ୍ତବିକ୍ ଜୟନ୍ତ ଚରିତ୍ର ମହନୀୟ ଦିଗ ପ୍ରତି ନାଟ୍ୟକାର ଖୁବ୍ ସଚେତନ ମନେହୁଅନ୍ତି ।

ପ୍ରକୃତରେ ଜୟନ୍ତ ଥିଲା ନିଃସ୍ୱାର୍ଥପର । ଅତନୁର କବିତ୍ଵକୁ ନେଇ ସେ କଦାପି କବି ହେବାର ସ୍ବପ୍ନରେ ମସ୍‌ଗୁଲ୍ ହୋଇ ନଥିଲା । ସେ ଜାଣିଶୁଣି ଏଭଳି ଏକ ସର୍ତ୍ତ ରଖିବାକୁ ଅତନୁକୁ ବାଧ୍ୟ କରି ନ ଥିଲା । ବନ୍ଧୁ ଅତନୁ ପାଇଁ ଜୟନ୍ତର ତ୍ୟାଗ ଥିଲା ଅତୁଳନୀୟ । ଜୟନ୍ତର ପ୍ରତିଭା ନ ଥିଲା, ହେଲେ ସେ ପ୍ରତିଭାକୁ ସ୍ବୀକାର କରିଥିଲା, ସମ୍ମାନିତ କରିଥିଲା; ଏପରିକି ପ୍ରତିଭାର ବିକାଶ ପାଇଁ ଯଥେଷ୍ଟ ସହାୟକ ହୋଇଥିଲା । ନାଟକର ଶେଷାଶରେ ସେ ଅତନୁକୁ କବିତ୍ବର ଶ୍ରେୟ ଦେବାକୁ ଆସିଛି । ଯାହା ଜୟନ୍ତ ଚରିତ୍ରର ମହନୀୟତାକୁ ପ୍ରତିପାଦିତ କରିଛି ।

ଜୟନ୍ତ ‘ରାଜହଂସ’ ନାଟକର କେନ୍ଦ୍ରୀୟ ଚରିତ୍ର ନୁହେଁ, ଅଥଚ ତାକୁ ବାଦଦେଇ ‘ରାଜହଂସ’ର ସାର୍ଥକତାକୁ ବିଚାର କରି ହେବନାହିଁ । ଉକ୍ତ ନାଟକରେ ଜୟନ୍ତ ଏକ ସ୍ଵତନ୍ତ୍ର ଚରିତ୍ର ।

Question 8.
‘ରାଜହଂସ’ ନାଟକରୁ ରୀତା ଚରିତ୍ର ଆକଳନ କର ।
କିମ୍ବା, ନାଟ୍ୟକାର କିପରି ଜୀବନ୍ତ ଭାବରେ ରୀତା ଚରିତ୍ର ଚିତ୍ରଣ କରିଛନ୍ତି ଆକଳନ କର ।
କିମ୍ବା, ରୀତା ହେଉଛି ଯନ୍ତ୍ରଣାର୍ଦ୍ର ଏକ ଅଭିଲିପି, ଏକ କରୁଣ ଗୀତିକା – ‘ରାଜହଂସ’ ନାଟକରୁ ଏହାର ସତ୍ୟତା ବିଚାର କର ।
Answer:
ସ୍ଵାଧୀନତା ପରବର୍ତ୍ତୀ ଓଡ଼ିଆ ନାଟକ ସାହିତ୍ୟ କ୍ଷେତ୍ରରେ ଯେଉଁ ପରିବର୍ତ୍ତନର ସ୍ଵର ଝକୃତ ହୋଇଥିଲା, ସେଇ ସ୍ଵରର ଅନ୍ୟ ଏକ ସ୍ପଷ୍ଟ ଉଚ୍ଚାରଣ ଡଃ ରତ୍ନାକର ଚଇନି । ପରୀକ୍ଷାପ୍ରବଣତା ଓ ଭିନ୍ନ କରି ଦେଖାଇବାରେ ମାନସିକତା ତାଙ୍କ ନାଟ୍ୟ ସାହିତ୍ୟକୁ ପ୍ରଦାନ କରିଥିଲା ନୂତନ ଦିଗନ୍ତ ତଥା ନବଦିଶା । ଯେଉଁ ସୃଷ୍ଟିଗୁଡ଼ିକ ତାଙ୍କ ନାଟ୍ୟ ପ୍ରତିଭାର ପରିଚୟ ପ୍ରଦାନ କରେ ସେଥୁମଧ୍ୟରୁ ‘ଅସ୍ତରାଗର ଚନ୍ଦ୍ର’, ‘ରାଜହଂସ’, ‘ରଙ୍ଗତରଙ୍ଗ’, ‘ଅନେକ କ୍ୟାକ୍‌ଟସ୍’, ‘କଳଙ୍କିତ ସୂର୍ଯ୍ୟ’, ‘ଶୂନ୍ୟତାର ଶିଡ଼ି’, ‘ଶେଷ ଅଶ୍ରୁ’, ‘ଶୂନ୍ୟପଞ୍ଜୁରି’, ‘ମୁଖା’, ‘ନାଗଫେଣୀ ଋତୁ’ ଇତ୍ୟାଦି ଅନ୍ୟତମ ।

ଆଲୋଚ୍ୟ ‘ରାଜହଂସ’ ତାଙ୍କର ଅନ୍ୟତମ ସଫଳ ସୃଷ୍ଟି । ଏହି ନାଟକରେ ନାୟିକା ଭାବରେ ନାଟ୍ୟକାର ରୀତାର ଚରିତ୍ର ଚିତ୍ରଣ କରିଅଛନ୍ତି । ରୀତା କୌଣସି ଅଭିଜାତ ବଂଶରେ ଜନ୍ମ ନେଇଛି । ସେ ଉଚ୍ଚଶିକ୍ଷିତା, ଖୁବ୍ ସୁନ୍ଦରୀ, କଳା ଓ କବିତା ପ୍ରିୟ । ପିଲାଟି ଦିନରୁ କବିତା ପଢ଼ିବାକୁ ଖୁବ୍ ଭଲ ପାଇଛି ରୀତା । ସଙ୍ଗୀତ ପ୍ରତି ତା’ର ପ୍ରବଳ ଝୁଙ୍କ ଥିଲା । ରୀତାର ଭାଓଲିନ୍ ବଜାଇବାର ସଉକ ବି ତା’ର ସାନ ଭଉଣୀ କବିତା ଯୋଗୁଁ । ହେଲେ ଦିନେ ଅଚାନକ ରୀତାକୁ ଠକିଦେଇ କବିତା କେଉଁଆଡ଼େ ଚାଲିଯାଇଛି । ୟା ପରଠାରୁ ରୀତାଙ୍କ କବିତାକୁ ଭଲପାଇବା ବଢ଼ିଯାଇଛି । ବିଭିନ୍ନ ପତ୍ରପତ୍ରିକାରୁ ସେ ପ୍ରଚୁର କବିତା ପଢ଼ିଛି । କବିତା ପଢ଼ୁ ପଢ଼ୁ କବି ଧୂର୍ଜଟୀଙ୍କ ପ୍ରେମରେ ପଡ଼ିଛି । ଧୂର୍ଜଟୀଙ୍କ ପରିଚୟ ଭାବରେ ସେ ଜୟନ୍ତଙ୍କୁ ବିବାହ କରିଛନ୍ତି । କିନ୍ତୁ ବିବାହ ପରେ ରୀତା ଅନୁଭବ କରିଛି ଯେ ଜୟନ୍ତଙ୍କର କବିସୁଲଭ ଗୁଣାବଳୀ ନାହିଁ । ବ୍ୟବସାୟୀ ହୃଦୟରେ କବିତ୍ୱ ଶୂନ । ଏହା ରୀତାର ମାନସିକ ସ୍ଥିତିକୁ ଦୋହଲାଇ ଦେଇଛି । ମାନସିକ ଭାରସାମ୍ୟ ହରାଇ ରୀତା ଅତନୁଙ୍କ ପାଖରେ ଚିକିତ୍ସିତ ହୋଇଛି ।

ଅତନୁଙ୍କ ଡାକ୍ତରଖାନାରେ ରୀତା ଚରିତ୍ରର ଅନନ୍ୟ ବିଶେଷତ୍ବ ଫୁଟାଇଛନ୍ତି ନାଟ୍ୟକାର । ବେବୀ ପ୍ରତି ଶ୍ରଦ୍ଧା, ଡାକ୍ତରଖାନାର ଅନ୍ୟ ଚରିତ୍ରମାନଙ୍କ ପ୍ରତି ସ୍ନେହ ଓ ଭଲପାଇବା ତା’ର ମହନୀୟତାକୁ ପ୍ରମାଣ କରିଛି । ସେ ପ୍ରକୃତ ସତ୍ୟକୁ ଜାଣିପାରିଛି । ଜାଣିପାରିଛି ଧୂର୍ଜଟୀ ପ୍ରକୃତରେ ଜୟନ୍ତ ନୁହେଁ, ଡାକ୍ତର ଅତନୁ । ସବୁ ବୁଝିସାରିଲା ପରେ ରୀତା ଖୁବ୍ ବ୍ୟସ୍ତ ହୋଇପଡ଼ିଛି । ରୀତା ଏକ ଆଦର୍ଶ ଚରିତ୍ର ଭାବେ ଟଙ୍କା ଓ ପ୍ରତିପରି ଅପେକ୍ଷା କଳାକୁ ଗୁରୁତ୍ଵ ଦେଇଛି । ରୀତା ମତରେ ଅର୍ଥ ଓ ପ୍ରତିପରିଠାରୁ କବିତ୍ଵ ଓ ପ୍ରତିଭା ହେଉଛି ବଡ଼କଥା ।

ରୀତା ଏଇ ନାଟକରେ ହୋଇଛି ଏକ କରୁଣ ଅଭିଲିପି । ଯନ୍ତ୍ରଣାର ଯଉଘରେ ଜଳି ବି ସେ ସତ୍ୟ ଓ କଳାର ପୂଜା କରିଛି । ଏହି ରୀତା ଚରିତ୍ରକୁ ନାଟ୍ୟକାର ଖୁବ୍ ଜୀବନ୍ତ କରି ଗଢ଼ି ତୋଳିଛନ୍ତି ।

ଅତିରିକ୍ତ ଅଭ୍ୟାସ ପ୍ରଶ୍ନୋତ୍ତର

(କ) ୧ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ସମ୍ଭାବ୍ୟ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ ।

Question 1.
‘ରାଜହଂସ’ ନାଟକ କାହାର ରଚନା?
(କ) ରତ୍ନାକର ଚଇନି
(ଖ) ରତ୍ନାକର ପତି
(ଗ) ରତ୍ନାକର ମିଶ୍ର
(ଘ) ରତ୍ନାକର ସାହୁ
Answer:
(କ) ରତ୍ନାକର ଚଇନି

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Question 2.
‘ରାଜହଂସ’ ନାଟକ କେବେ ପ୍ରଥମ ପ୍ରକାଶ ପାଇଥିଲା?
(କ) ୧୯୭୦ ମସିହା
(ଖ) ୧୯୬୯ ମସିହା
(ଗ) ୧୯୮୦ ମସିହା
(ଘ) ୧୯୬୮ ମସିହା
Answer:
(ଖ) ୧୯୬୯ ମସିହା

Question 3.
ଡାକ୍ତର ଅତନୁ କେଉଁ ବିଭାଗର ଡାକ୍ତର?
(କ) ଅସ୍ଥି ବିଭାଗର
(ଖ) ମନସ୍ତାତ୍ତ୍ଵିକ ବିଭାଗ
(ଗ) କର୍ଣ୍ଣ ବିଭାଗ
(ଘ) ଗଳା ବିଭାଗ
Answer:
(ଖ) ମାନସିକ ବିଭାଗ

Question 4.
ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କ ‘ଚିକିତ୍ସାକେନ୍ଦ୍ର’ଟି କେଉଁଠି ଅବସ୍ଥିତ?
(କ) ସମୁଦ୍ରକୂଳରେ
(ଖ) ରାଜରାସ୍ତାରେ
(ଗ) ଜନବସତିର ଅନତିଦୂରରେ
(ଘ) ପାହାଡ଼ ଉପରେ
Answer:
(ଗ) ଜନବସତିର ଅନତି ଦୂରରେ

Question 5.
ଶୀତ କ’ଣ ଧରି ନଇଁଛି?
(କ) କୁହୁଡ଼ି
(ଖ) ଧୂଆଁ
(ଗ) କାକର
(ଘ) ଦଳବଳ
Answer:
(ଘ) ଦଳବଳ

Question 6.
ନାଟକର ମୁଖ୍ୟ ଚରିତ୍ର ଅତନୁ ବୃଦ୍ଧିରେ କ’ଣ?
(କ) ଡାକ୍ତର
(ଖ) ମାଷ୍ଟର
(ଗ) ଲେଖକ
(ଘ) କମ୍ପାଉଣ୍ଡର
Answer:
(କ) ଡାକ୍ତର

Question 7.
ସିଡ଼ିସିଧା କାନ୍ଥରେ କ’ଣ ଲେଖା ହୋଇଛି ?
(କ) Keep Silence
(ଖ) Silence Please
(ଗ) Doctor’s Room
(ଘ) Exam Hall
Answer:
(ଖ) Silence Please

Question 8.
ଡାକ୍ତରଖାନାର ଆଗପଟେ କ’ଣ ଥାଏ?
(କ) ରାଜପଥ
(ଖ) ଜଙ୍ଗଲ
(ଗ) ନଦୀ
(ଘ) ପାହାଡ଼
Answer:
(କ) ରାଜପଥ

Question 9.
ଡାକ୍ତରଖାନର ପଛପଟେ କ’ଣ ଥାଏ?
(କ) ରାଜରାସ୍ତା
(ଖ) ସବୁଜ ଅରଣ୍ୟ
(ଗ) ସମୁଦ୍ର
(ଘ) ଚିଡ଼ିଆଖାନା
Answer:
(ଖ) ସବୁଜ ଅରଣ୍ୟ

Question 10.
ଡାକ୍ତରଖାନାର କୋଠରୀର ମଧ୍ୟ ଭାଗରେ କ’ଣ ଥାଏ?
(କ) ଟେବୁଲ୍ ଫ୍ୟାନ୍
(ଖ) ପାଣି ଡ୍ରମ୍
(ଗ) ଟେବୁଲ୍
(ଘ) ସାଲାଇନ୍ ବୋତଲ
Answer:
(ଗ) ଟେବୁଲ୍

Question 11.
ସିଡ଼ି ଉପରୁ କ’ଣ ଗଡ଼ି ତଳେ ପଡ଼ିଲା?
(କ) ଡବା
(ଖ) ସିରିଞ୍ଜ
(ଗ) କାଚଚ୍ଚାର୍
(ଘ) ବୋତଲ
Answer:
(ଘ) ବୋତଲ

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Question 12.
ହରି କିଏ?
(କ) ସହକାରୀ କର୍ମଚାରୀ
(ଖ) ମୁଖ୍ୟ ନେତା
(ଗ) ରୋଗୀ
(ଘ) ପରୀକ୍ଷା କରିବାବାଲା
Answer:
(କ) ସହକାରୀ କର୍ମଚାରୀ

Question 13.
ପିନାକୀ କିଏ?
(କ) ଜଣେ ଚେଲା
(ଖ) ଜଣେ ରୋଗୀ
(ଗ) ଜଣେ କମ୍ପାଉଣ୍ଡର
(ଘ) ଜଣେ କର୍ମଚାରୀ
Answer:
(ଖ) ଜଣେ ରୋଗୀ

Question 14.
କିଏ ବୋତଲ ଉଠାଇ କାନ୍ଦିଲା?
(କ) ହରି
(ଖ) ଜଣେ କର୍ମଚାରୀ
(ଗ) ପିନାକୀ
(ଘ) ଅତନୁ
Answer:
(ଗ) ପିନାକୀ

Question 15.
ଡାକ୍ତରଖାନାର ମୁଖ୍ୟ ଡାକ୍ତର କିଏ?
(କ) ପିନାକୀ
(ଖ) ହରି
(ଗ) ଜୟନ୍ତ
(ଘ) ଅତନୁ
Answer:
(ଘ) ଅତନୁ

Question 16.
ବୋତଲରେ ଥିବା ତରଳ ପଦାର୍ଥକୁ କିଏ ଚାଟିବାକୁ ଲାଗିଲା?
(କ) ପିନାକୀ
(ଖ) ଅତନୁ
(ଗ) ହରି
(ଘ) ଚାକର
Answer:
(କ) ପିନାକୀ

Question 17.
‘‘ସରିଗଲା ସବୁ’’ ବୋଲି କିଏ କହିଛି?
(କ) ଅତନୁ
(ଖ) ହରି
(ଗ) ପିନାକୀ
(ଘ) କେହି ନୁହେଁ
Answer:
(ଖ) ହରି

Question 18.
କିଏ ଛାତିରେ ବ୍ୟଥା ପାଇ ଚିତ୍କାର କରିଛି?
(କ) ଅତନୁ
(ଖ) ହରି
(ଗ) ପିନାକୀ
(ଘ) ମୀନା
Answer:
(ଗ) ପିନାକୀ

Question 19.
କିଏ ରୋଗ ଉପରେ ବେଶି ପ୍ରଭାବ ପକାଏ?
(କ) କଠୋର କଥା
(ଖ) ଖାଦ୍ୟ
(ଗ) ଦୋଷାରୋପ
(ଘ) ମାନସିକ ଚିନ୍ତା
Answer:
(ଘ) ମାନସିକ ଚିନ୍ତା

Question 20.
ପିନାକୀ କ’ଣ ପିଇବାକୁ ମାଗୁଥୁଲା?
(କ) ମଦ
(ଖ) ପାଣି
(ଗ) ଜୁସ୍
(ଘ) ସିରପ୍
Answer:
(କ) ମଦ

Question 21.
କିଏ ଭାରି ନିଷ୍ଠୁର ବୋଲି ପିନାକୀ କହିଛି?
(କ) ଭଗବାନ
(ଖ) ହରି
(ଗ) ଡାକ୍ତର
(ଘ) ଅତନୁ
Answer:
(ଖ) ହରି

Question 22.
ମଦ ବିନିମୟରେ କିଏ ସବୁ କରିବାକୁ ପ୍ରସ୍ତୁତ ବୋଲି କହିଛି?
(କ) ହରି
(ଖ) ଡାକ୍ତର
(ଗ) ପିନାକୀ
(ଘ) ମଦ୍ୟପ
Answer:
(ଗ) ପିନାକୀ

Question 23.
ହରି କେତେ ଟଙ୍କା ପାଇଁ ପିନାକୀ ମୁହଁରୁ ବୋତଲ ଛଡ଼ାଇ ନେଇଛି?
(କ) ଦଶ ଟଙ୍କା ପାଇଁ
(ଖ) ପଚାଶ ଟଙ୍କା ପାଇଁ
(ଗ) ଶହେ ଟଙ୍କା ପାଇଁ
(ଘ) ପାଞ୍ଚ ଟଙ୍କା ପାଇଁ
Answer:
(ଘ) ପାଞ୍ଚ ଟଙ୍କା ପାଇଁ

Question 24.
ପିନାକୀ କ’ଣ ଚାହେଁ ବୋଲି କହିଛି?
(କ) ମଦ
(ଖ) ମୃତ୍ୟୁ
(ଗ) ନାରୀ
(ଘ) ଜୀବନ
Answer:
(କ) ମଦ

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Question 25.
ମଦ ପିଇଲା ପରେ ପିନାକୀ କାହାକୁ ଭୁଲିଯାଏ?
(କ) ନିଜକୁ
(ଖ) ଦୁନିଆକୁ
(ଗ) କାମକୁ
(ଘ) ପରିବାରକୁ
Answer:
(ଖ) ଦୁନିଆକୁ

Question 26.
କିଏ ଦିନକୁ ହଜାରେ ହଜାରେ ଟଙ୍କାର ଖେଳ ଖେଳିବେ ବୋଲି ଅତନୁ କହିଛନ୍ତି?
(କ) ହରି
(ଖ) ନର୍ସ
(ଗ) ପିନାକୀ
(ଘ) ରୋଗୀମାନେ
Answer:
(ଗ) ପିନାକୀ

Question 27.
କେତେ ନମ୍ବର ପେସେଣ୍ଟ୍ ଭାଓଲିନ୍ ବଢାଇଛି?
(କ) ୧ ନଂ
(ଖ) ୨ ନଂ
(ଗ) ୪ ନଂ
(ଘ) ୩ ନଂ
Answer:
(ଘ) ୩ ନଂ

Question 28.
କାହା ଉପରେ ବିଶେଷ ଲକ୍ଷ୍ୟ ରଖିବାକୁ ଡାକ୍ତରବାବୁ କହିଛନ୍ତି?
(କ) ପ୍ରଫେସର ପରିଜା
(ଖ) ପିନାକୀ
(ଗ) ହରି
(ଘ) ୩ ନଂ ରୋଗୀ
Answer:
(କ) ପ୍ରଫେସର ପରିଜା

Question 29.
ସିଷ୍ଟର ଜଣଙ୍କ ନାମ କ’ଣ?
(କ) ମୀନା
(ଖ) ସାବିତ୍ରୀ
(ଗ) ସାବି
(ଘ) ସର
Answer:
(ଖ) ସାବିତ୍ରୀ

Question 30.
‘‘ମୋତେ କଣ୍ଟ୍ରାଲ୍ ରୁମକୁ ଯିବାକୁ ହେବ ।’’ ବୋଲି କିଏ କହିଛି?
(କ) ଅତନୁ
(ଖ) ସିଷ୍ଟର
(ଗ) ପ୍ରଫେସର ପରିଜା
(ଘ) ରୋଗୀ
Answer:
(ଗ) ପ୍ରଫେସର ପରିଜା

Question 31.
ପୃଥ‌ିବୀ ବଜାରର ପରିବା କୋଉଠି ରନ୍ଧା ହେବ?
(କ) ସହରବଜାରରେ
(ଖ) ରୋଷେଇଶାଳରେ
(ଗ) ତାରାରେ
(ଘ) ଚନ୍ଦ୍ରରେ
Answer:
(ଘ) ଚନ୍ଦ୍ରରେ

Question 32.
ଗବେଷଣା କେଉଁମାନଙ୍କ ଜୀବନ?
(କ) ବୈଜ୍ଞାନିକ
(ଖ) ଡାକ୍ତର
(ଗ) ଲେଖକ
(ଘ) ଅଧ୍ୟାପକ
Answer:
(କ) ବୈଜ୍ଞାନିକ

Question 33.
ସରଳ ବନ୍ଧୁତାରେ କିଏ ଗରଳର ସ୍ବପ୍ନ ଦେଖେ?
(କ) ଚୋର
(ଖ) ମନୁଷ୍ୟ
(ଗ) ଶତ୍ରୁ
(ଘ) ପଶୁ
Answer:
(ଖ) ମନୁଷ୍ୟ

Question 34.
ପ୍ରଫେସର ପରିଜା କେଉଁଠିକୁ ଯିବାକୁ ବାହାରିଛନ୍ତି?
(କ) ଘରକୁ
(ଖ) ବଜାରକୁ
(ଗ) ଚନ୍ଦ୍ରକୁ
(ଘ) ବୁଲିବାକୁ
Answer:
(ଗ) ଚନ୍ଦ୍ରକୁ

Question 35.
“He is a fool.’’ ଏକଥା ପ୍ରଫେସର କାହା ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ କହିଛନ୍ତି?
(କ) ଅତନୁ
(ଖ) ସିଷ୍ଟର
(ଗ) ମୁଖ୍ୟ ଚିକିତ୍ସକ
(ଘ) ହରି
Answer:
(ଘ) ହରି

Question 36.
ପ୍ରଫେସର ଆଉ ସିଷ୍ଟର କେଉଁ ରୁମକୁ ଚାଲିଗଲେ?
(କ) ୫ ନମ୍ବର
(ଖ) ୩ ନମ୍ବର
(ଗ) ୨ ନମ୍ବର
(ଘ) ୧ ନମ୍ବର
Answer:
(କ) ୫ ନମ୍ବର

Question 37.
ତିନି ନମ୍ବର କୋଠରୀର ରୋଗିଣୀ କିଏ?
(କ) ମୀତା
(ଖ) ରୀତା
(ଗ) ରୀନା
(ଘ) ମୀନା
Answer:
(ଖ) ରୀତା

Question 38.
କାହା ମୁହଁରେ ଲକ୍ଷ ଅବସାଦର ବଉଦ?
(କ) ସିଷ୍ଟର
(ଖ) ଅତନୁ
(ଗ) ରୀତା
(ଘ) ହରି
Answer:
(ଗ) ରୀତା

Question 39.
ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କ ବନ୍ଧୁ କିଏ?
(କ) ହରି
(ଖ) ସରିତା
(ଗ) ସାବିତ୍ରୀ
(ଘ) ଜୟନ୍ତ
Answer:
(ଘ) ଜୟନ୍ତ

Question 40.
ଜୟନ୍ତ ଡାକ୍ତରବାବୁଙ୍କ ହାତକୁ କ’ଣ ବଢ଼ାଇ ଦେଇଛନ୍ତି?
(କ) ସିଗାରେଟ୍
(ଖ) ଟଙ୍କା
(ଗ) ପେସ୍‌ସନ୍
(ଘ) ଔଷଧ
Answer:
(କ) ସିଗାରେଟ୍

Question 41.
ଅତନୁ କ’ଣ ଖାଏ ନାହିଁ ବୋଲି ଜୟନ୍ତ ଭୁଲିଯାଉଛି?
(କ) ମଦ
(ଖ) ସିଗାରେଟ୍
(ଗ) ବିଡ଼ି
(ଘ) ଚାଟ୍
Answer:
(ଖ) ସିଗାରେଟ୍

Question 42.
କାହା ମନ ସବୁବେଳେ ପ୍ରଫୁଲ୍ଲ ହେବା ଦରକାର?
(କ) ଡାକ୍ତରଙ୍କର
(ଖ) ରୋଗୀର
(ଗ) କବିର
(ଘ) ମଣିଷର
Answer:
(ଗ) କବିର

Question 43.
କାମ ଭିତରେ କିଏ ଦୁନିଆକୁ ଭୁଲିଯାଏ?
(କ) ଅତନୁ
(ଖ) ଡାକ୍ତରବାବୁ
(ଗ) ହରି
(ଘ) ଜୟନ୍ତ
Answer:
(ଘ) ଜୟନ୍ତ

Question 44.
କାହାକୁ ସବୁକିଛି ବିଷାକ୍ତ ବୋଧ ହୁଏ?
(କ) ଜୟନ୍ତକୁ
(ଖ) ଅତନୁକୁ
(ଗ) ହରିକୁ
(ଘ) ରୋଗୀକୁ
Answer:
(କ) ଜୟନ୍ତକୁ

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Question 45.
ଅତୀତର କ’ଣ ଅତୀତରେ ରହିଯାଉ ବୋଲି ଜୟନ୍ତ କହିଛି?
(କ) ଘଟଣା
(ଖ) ସ୍ମୃତି
(ଗ) କଥା
(ଘ) କାହାଣୀ
Answer:
(ଖ) ସ୍ମୃତି

Question 46.
କାହାକୁ କେହି ଛାଡ଼ି ପାରିବେନି ବୋଲି ଅତନୁ କହିଛନ୍ତି?
(କ) ଚିନ୍ତାକୁ
(ଖ) ବିଶ୍ୱାସକୁ
(ଗ) ଅତୀତକୁ
(ଘ) ନାଟକକୁ
Answer:
(ଗ) ଅତୀତକୁ

Question 47.
କିଏ ଆମେରିକା ଯିବାର ସ୍ଵପ୍ନକୁ ଅଳୀକ ବୋଲି ଭାବିଥିଲେ?
(କ) ଜୟନ୍ତ
(ଖ) ନର୍ସ
(ଗ) ରୀତା
(ଘ) ଅତନୁ
Answer:
(ଘ) ଅତନୁ

Question 48.
କିଏ ସମସ୍ତ ଧନ ନେଇ ମଧ୍ୟ ଶାନ୍ତି ପାଇପାରି ନାହିଁ?
(କ) ଜୟନ୍ତ
(ଖ) ରୀତା
(ଗ) ଅତନୁ
(ଘ) ପିନାକୀ
Answer:
(କ) ଜୟନ୍ତ

Question 49.
ରୀତା କାହାକୁ ବିବାହ କରିଛି?
(କ) ଅତନୁଙ୍କୁ
(ଖ) ଜୟନ୍ତଙ୍କୁ
(ଗ) ପିନାକୀଙ୍କୁ
(ଘ) ହରିଙ୍କୁ
Answer:
(ଖ) ଜୟନ୍ତଙ୍କୁ

Question 50.
ହଠାତ୍ ରୀତା କ’ଣ ବୋଲି ଚିତ୍କାର କରେ?
(କ) ଭୂତ
(ଖ) ସାପ
(ଗ) କବିତା
(ଘ) ରାକ୍ଷସ
Answer:
(ଗ) କବିତା

Question 51.
ଆଦିମ ଯୁଗରୁ ମଣିଷ କ’ଣ?
(କ) ସ୍ଵାର୍ଥପର
(ଖ) ନିଃସଙ୍ଗ
(ଗ) ପରିଶ୍ରମୀ
(ଘ) ଆଶାବାଦୀ
Answer:
(ଘ) ଆଶାବାଦୀ

Question 52.
ରୀତା ଝରକା ଦେଇ କୁଆଡ଼େ ଅନାଇ ରହିଛି?
(କ) ଅରଣ୍ୟ ଆଡ଼େ
(ଖ) ବନ୍ଧ ଆଡ଼େ
(ଗ) ନଦୀ ଆଡ଼େ
(ଘ) ପାହାଡ଼ ଆଡ଼େ
Answer:
(କ) ଅରଣ୍ୟ ଆଡ଼େ

Question 53.
ପ୍ରତ୍ୟେକ ମଣିଷର ପ୍ରାଣରେ କ’ଣ ରହିଛି ବୋଲି ରୀତା କହିଛି?
(କ) ଘୃଣା
(ଖ) ସୌନ୍ଦର୍ଯ୍ୟପ୍ରେମ
(ଗ) ସ୍ନେହ
(ଘ) ପ୍ରତିହିଂସା
Answer:
(ଖ) ସୌନ୍ଦର୍ଯ୍ୟପ୍ରେମ

Question 54.
ଜଙ୍ଗଲକୁ କେଉଁ ଫୁଲର ବାସ୍ନା ଭାସି ଆସିଛି?
(କ) ବଣମଲ୍ଲୀ
(ଖ) ଯୂଇ
(ଗ) ଶାଳ
(ଘ) ରଜନୀଗନ୍ଧା
Answer:
(ଗ) ଶାଳ

Question 55.
କିଏ ନିଜକୁ ବାଥରୁମ୍ ସିଙ୍ଗର କହିଛି?
(କ) ଜୟନ୍ତ
(ଖ) ରୀତା
(ଗ) ହରି
(ଘ) ଅତନୁ
Answer:
(ଘ) ଅତନୁ

Question 56.
ଅତନୁଙ୍କ ଟେବୁଲ ଉପରେ କ’ଣ ଦେଖିଛି ରୀତା?
(କ) କଲମ
(ଖ) ପେପରୱେଟ୍
(ଗ) କବିତା
(ଘ) ପେସେଣ୍ଟ ଲିଷ୍ଟ୍
Answer:
(ଗ) କବିତା

Question 57.
ଧୂର୍ଜଟୀ କିଏ ବୋଲି ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ରୀତାକୁ କହିଛନ୍ତି?
(କ) ଜୟନ୍ତ
(ଖ) ମହାକବି
(ଗ) ଶ୍ରେଷ୍ଠ କବି
(ଘ) ନିଜେ ଅତନୁ
Answer:
(କ) ଜୟନ୍ତ

Question 58.
କିଏ ପାଗଳୀ ଭଳି ପାଟିକରି କୋଠରୀ ଭିତରକୁ ପଳାଇଗଲା?
(କ) ନର୍ସ
(ଖ) ରୀତା
(ଗ) ମିତା
(ଘ) ସିଷ୍ଟର
Answer:
(ଖ) ରୀତା

Question 59.
କବିତାଟି କାହାର ବୋଲି ଡାକ୍ତର ଅତନୁ କହିଛନ୍ତି?
(କ) ଧୂର୍ଜଟୀଙ୍କ
(ଖ) ନିଜର
(ଗ) କବିବରଙ୍କ
(ଘ) ଜୟନ୍ତର
Answer:
(ଘ) ଜୟନ୍ତର

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 4 ରାଜହଂସ Question Answer

Question 60.
ବିଜ୍ଞାନୀ କ’ଣ ଧରି ବସି ରହେ?
(କ) ଗବେଷଣାକୁ
(ଖ) ସମୟକୁ
(ଗ) ପୁରାତନକୁ
(ଘ) ଅତୀତକୁ
Answer:
(କ) ଗବେଷଣାକୁ

Question 61.
ବିଜ୍ଞାନୀ କ’ଣ ଚାହେଁ?
(କ) ନୂତନର ଆବିଷ୍କାର
(ଖ) ଅର୍ଥ
(ଗ) କ୍ଷମତା
(ଘ) ଲାବୋରେଟୋରି
Answer:
(କ) ନୂତନର ଆବିଷ୍କାର

Question 62.
କାହାର ରେଷ୍ଟ ଦରକାର ବୋଲି ଡାକ୍ତର ଅତନୁ କହିଛନ୍ତି?
(କ) ପ୍ରଫେସର ପରିଜାଙ୍କର
(ଖ) ବୈଜ୍ଞାନିକଙ୍କର
(ଗ) ରୀତାଙ୍କର
(ଘ) ରୋଗୀଙ୍କର
Answer:
(କ) ପ୍ରଫେସର ପରିଜାଙ୍କର

Question 63.
କିଏ ଅତନୁଙ୍କୁ ‘ଡକ୍ଟର ଅଙ୍କଲ୍’ ବୋଲି ଡାକିଛି?
(କ) ଦେବୀ
(ଖ) ବେବୀ
(ଗ) ମିଲି
(ଘ) ଝିଅ
Answer:
(ଖ) ବେବୀ

Question 64.
ବେବୀ କାହା ଝିଅ?
(କ) ଡାକ୍ତରଙ୍କର
(ଖ) ନର୍ସଙ୍କର
(ଗ) ଅତନୁଙ୍କର
(ଘ) ପିନାକୀଙ୍କର
Answer:
(ଘ) ପିନାକୀଙ୍କର

Question 65.
ବାହାରୁ କିଏ ପ୍ରବେଶ କରିଛି?
(କ) ବାକ୍‌ଶକ୍ତିହୀନ ମିଲ୍ଟାରୀ ଅଫିସର
(ଖ) ଭୂତ
(ଗ) ସୁସ୍ଥ ଲୋକଜଣକ
(ଘ) ପବନ
Answer:
(କ) ବାକ୍‌ଶକ୍ତିହୀନ ମିଟାରୀ ଅଫିସର

Question 66.
କିଏ ଡାକ୍ତରଖାନାକୁ ଚିଡ଼ିଆଖାନା ବୋଲି କହିଛି?
(କ) ହରି
(ଖ) ଅତନୁ
(ଗ) ନର୍ସ
(ଘ) ରୋଗୀ
Answer:
(କ) ହରି

Question 67.
ଅଫିସର ଜଣଙ୍କ କେତେ ବର୍ଷ ହେଲା କଥା କହିପାରୁ ନାହିଁ?
(କ) ୫ ବର୍ଷ
(ଖ) ୪ ବର୍ଷ
(ଗ) ୧୦ ବର୍ଷ
(ଘ) ୨ ବର୍ଷ
Answer:
(ଖ) ୪ ବର୍ଷ

Question 68.
କ’ଣ ପାଇଁ ଅଫିସରଜଣକ ମୂକ ହୋଇଥିଲେ?
(କ) ଗଣ୍ଡଗୋଳ ପାଇଁ
(ଖ) ଚୋରି ପାଇଁ
(ଗ) ଯୁଦ୍ଧ ପାଇଁ
(ଘ) ମନ୍ଦିର ଭାଙ୍ଗିବା ପାଇଁ
Answer:
(ଗ) ଯୁଦ୍ଧ ପାଇଁ

Question 69.
ସିଷ୍ଟର ରୀତାଙ୍କୁ କ’ଣ ପଢ଼ିବାକୁ ଦେଇଛି?
(କ) କବିତା
(ଖ) ଉପନ୍ୟାସ
(ଗ) ଗପ
(ଘ) ନାଟକ
Answer:
(ଖ) ଉପନ୍ୟାସ

Question 70.
ରୀତା ଭାଓଲିନ୍‌ର ସ୍ଵରେ ସ୍ବରେ କ’ଣ ଗାଇବାକୁ ଚାହେଁ?
(କ) ଗୀତା
(ଖ) ଭାଗବତ
(ଗ) କବିତା
(ଘ) କବିର କଥା
Answer:
(ଗ) କବିତା

Question 71.
କାହାକୁ ବେବୀ ଦିଦି ବୋଲି ଡାକିଛି?
(କ) ରୀତାକୁ
(ଖ) ନର୍ସକୁ
(ଗ) ସାବିତ୍ରୀକୁ
(ଘ) ସିଷ୍ଟରକୁ
Answer:
(କ) ରୀତାକୁ

Question 72.
ରୀତାଙ୍କୁ କେଉଁ ଉପନ୍ୟାସ ପଢ଼ିବାକୁ ଦିଆଯାଇଛି?
(କ) ଅମାବାସ୍ୟାର ଚନ୍ଦ୍ର
(ଖ) ପ୍ରେମିକା
(ଗ) କବିର ବ୍ୟଥା
(ଘ) ଭାଓଲିନ୍
Answer:
(କ) ଅମାବାସ୍ୟାର ଚନ୍ଦ୍ର

Question 73.
କିଏ ଗୀତ ଗାଇବାକୁ ଲାଜ କରିଛି?
(କ) ରୀତା
(ଖ) ବେବୀ
(ଗ) ସିଷ୍ଟର
(ଘ) ଅତନୁ
Answer:
(ଖ) ବେବୀ

Question 74.
କ’ଣ ମଣିଷ ମନରୁ ରାଗ, ହିଂସା, ବିଦ୍ବେଷ ଦୂର କରେ?
(କ) କବିତା
(ଖ) ଗପ
(ଗ) ସଙ୍ଗୀତ
(ଘ) ଉପନ୍ୟାସ
Answer:
(ଗ) ସଙ୍ଗୀତ

Question 75.
ଗୀତର ଶେଷ ପାଦରେ କିଏ ଉଦାସ ବିହ୍ବଳ ହୋଇ ସିଡ଼ିରେ ଦେଖାଦେଲେ?
(କ) ଡାକ୍ତର
(ଖ) ରୋଗୀମାନେ
(ଗ) ପ୍ରଫେସର ପରିଜା
(ଘ) ପିନାକୀ
Answer:
(ଘ) ପିନାକୀ

Question 76.
କାହା ପାଇଁ ସଙ୍ଗୀତର ଭୂମିକା ଗୌଣ ବୋଲି ପ୍ରଫେସର କହିଛନ୍ତି?
(କ) ଡାକ୍ତର ଓ ବିଜ୍ଞାନୀ
(ଖ) ମାଷ୍ଟର ଓ କିରାଣୀ
(ଗ) ନର୍ଭକୀ ଓ କର୍ମୀ
(ଘ) ଦୋକାନୀ ଓ ବ୍ୟବସାୟୀ
Answer:
(କ) ଡାକ୍ତର ଓ ବିଜ୍ଞାନୀ

Question 77.
ସଙ୍ଗୀତ କାହାକୁ ପାଗଳ କରେ?
(କ) ଡାକ୍ତରଙ୍କୁ
(ଖ) ମରଣମୁଖୀ ରୋଗୀକୁ
(ଗ) ନର୍ସକୁ
(ଘ) ପ୍ରଫେସରଙ୍କୁ
Answer:
(ଖ) ମରଣମୁଖୀ ରୋଗୀକୁ

Question 78.
କ୍ଷଣକ ପାଇଁ ଦୁଃଖଯନ୍ତ୍ରଣା ଭିତରେ ରୋଗୀ କ’ଣ ଶୁଣିବାକୁ ଚାହେଁ?
(କ) ସଙ୍ଗୀତ
(ଖ) ଆଶ୍ଵାସନା
(ଗ) ସୁସ୍ଥତାର କଥା
(ଘ) ଭରସା
Answer:
(କ) ସଙ୍ଗୀତ

Question 79.
ସର୍ବଗ୍ରାସୀ ନିଶା କାହାକୁ ମାଟିର କଣ୍ଢେଇ କରିଦେଇଛି?
(କ) ଡାକ୍ତରଙ୍କୁ
(ଖ) ରୋଗୀକୁ
(ଗ) ପିନାକୀକୁ
(ଘ) ହରିକୁ
Answer:
(ଗ) ପିନାକୀକୁ

Question 80.
କିଏ ଆଉ ବଞ୍ଚିବାକୁ ଚାହେଁନା ବୋଲି କହିଛି?
(କ) ପିନାକୀ
(ଖ) ରୋଗୀ
(ଗ) ହରି
(ଘ) ରୀତା
Answer:
(କ) ପିନାକୀ

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Question 81.
କାହାକୁ ଗୋଟିଏ ଜୁଆଖେଳ ବୋଲି ଡାକ୍ତର କହିଛନ୍ତି?
(କ) ଜୀବନକୁ
(ଖ) ବ୍ୟବସାୟକୁ
(ଗ) ରୋଗକୁ
(ଘ) ଡାକ୍ତରଖାନାକୁ
Answer:
(ଖ) ବ୍ୟବସାୟକୁ

Question 82.
କାହା ସକାଶେ ପିନାକୀଙ୍କୁ ବଞ୍ଚିବାକୁ ହେବ ବୋଲି ଅତନୁ କହିଛନ୍ତି?
(କ) ନିଜ ସକାଶେ
(ଖ) ଦୁନିଆ ସକାଶେ
(ଗ) ବେବୀ ସକାଶେ
(ଘ) ଡାକ୍ତରଙ୍କ ସକାଶେ
Answer:
(ଗ) ବେବୀ ସକାଶେ

Question 83.
କିଏ ପିଲାଦିନୁ ମା’କୁ ହରାଇ ପିନାକୀ ପାଖରେ ରହିଛି?
(କ) ସାବିତ୍ରୀ
(ଖ) ସିଷ୍ଟର
(ଗ) ରୀତା
(ଘ) ବେବୀ
Answer:
(ଘ) ବେବୀ

Question 84.
ଗୀତ ଗାଇବାକୁ କିଏ ବ୍ୟାକୁଳ ହୋଇଉଠିଛି?
(କ) ରୀତା
(ଖ) ବେବୀ
(ଗ) ନର୍ସ
(ଘ) ଅତନୁ
Answer:
(କ) ରୀତା

Question 85.
କାହାର ପିଲାଦିନରୁ ସଙ୍ଗୀତ ପ୍ରତି ପ୍ରବଳ ଝୁଙ୍କ୍ ଥିଲା?
(କ) ଅତନୁଙ୍କର
(ଖ) ରୀତାଙ୍କର
(ଗ) ରୋଗୀର
(ଘ) ବେବୀର
Answer:
(ଖ) ରୀତାଙ୍କର

Question 86.
ରୀତାର ସାନ ଭଉଣୀର ନାମ କ’ଣ?
(କ) ମୀତା
(ଖ) ଗୀତା
(ଗ) କବିତା
(ଘ) ସୀତା
Answer:
(ଗ) କବିତା

Question 87.
ରୀତା କବିତା ପଢ଼ୁ ପଢ଼ୁ କାହାକୁ ଭଲପାଇ ବସିଲେ?
(କ) କବିତାକୁ
(ଖ) ଅତନୁକୁ
(ଗ) ପ୍ରଫେସରଙ୍କୁ
(ଘ) କବି ଧୂର୍ଜଟୀଙ୍କୁ
Answer:
(ଘ) କବି ଧୂର୍ଜଟୀଙ୍କୁ

Question 88.
ରୀତାର ସ୍ୱାମୀ କାହାର ବନ୍ଧୁ?
(କ) ଅତନୁଙ୍କର
(ଖ) ରୋଗୀଙ୍କର
(ଗ) ପ୍ରଫେସରଙ୍କର
(ଘ) ହରିଙ୍କର
Answer:
(କ) ଅତନୁଙ୍କର

Question 89.
କାହାକୁ ଚାଲିଯିବା ପାଇଁ ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ବିରକ୍ତରେ କହିଛନ୍ତି?
(କ) ଜୟନ୍ତଙ୍କୁ
(ଖ) ଅନ୍ୟ କର୍ମଚାରୀଙ୍କୁ
(ଗ) ରୀତାଙ୍କୁ
(ଘ) ସିଷ୍ଟରଙ୍କୁ
Answer:
(କ) ଜୟନ୍ତଙ୍କୁ

Question 90.
ଅନ୍ଧାର ଯୋଗୁଁ ଅତନୁ ରାଗରେ କ’ଣ ଫିଙ୍ଗି ଦେଇଛି?
(କ) ଦିଆସିଲି ଖୋଳ
(ଖ) ମହମବତୀ
(ଗ) ନିଜ କଲମ
(ଘ) ଚିକିତ୍ସା ସାମଗ୍ରୀ
Answer:
(କ) ଦିଆସିଲି ଖୋଳ

Question 91.
କିଏ ଗୋଟିଏ ହାତରେ ଦୁଇଟା ପାଚିଲା କଦଳୀ ଓ ଅନ୍ୟ ହାତରେ ପାଣିଜାଳ ଧରିଥୁଲା?
(କ) ଅଇଁଠା ଭାଇନା
(ଖ) ପୂଜକ
(ଗ) ନନା
(ଘ) ସେବକ
Answer:
(କ) ଅଇଁଠା ଭାଇନା

Question 92.
କିଏ କଦଳୀ ଦୁଇଟା ନେଇ ଆସି ଖାଇ ଦେଇଛି?
(କ) ବୀର
(ଖ) ହରି
(ଗ) ରୋଗୀ
(ଘ) ପୂଜକ
Answer:
(କ) ବୀର

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Question 93.
ବୀର ହରି ହାତରେ କ’ଣ ଧରାଇ ଦେଇଛି?
(କ) କଦଳୀ ଚୋପା
(ଖ) କିଛି ଟଙ୍କା
(ଗ) ପୂଜକର ଚାବି
(ଘ) ଡାକ୍ତରଙ୍କ ଚିଠା
Answer:
(କ) କଦଳୀ ଚୋପା

Question 94.
ଅଭିଶାପ ଦେଲେ କ’ଣ ବଦନାମ ହୋଇଯିବ ବୋଲି ହରି କହିଛି?
(କ) ଡାକ୍ତରଖାନା
(ଖ) ପୂଜକ
(ଗ) ବୀରର ଚରିତ୍ର
(ଘ) ହରିର ଭାଗ୍ୟ
Answer:
(କ) ଡାକ୍ତରଖାନା

Question 95.
ଅଇଁଠା ଭାଇନା କାହାକୁ ରାକ୍ଷସ ବୋଲି କହିଛି?
(କ) ରୋଗୀକୁ
(ଖ) ବୀରକୁ
(ଗ) ହରିକୁ
(ଘ) ଅପରାଧୀଙ୍କୁ
Answer:
(ଖ) ବୀରକୁ

Question 96.
ଗୁଡ଼ାଏ ଭୋକିଲା ଲୋକ କ’ଣ ଧ୍ୱଂସ କରିଦେଇ ପାରନ୍ତି?
(କ) ସମାଜ
(ଖ) ସଭ୍ୟତା
(ଗ) ପୃଥ‌ିବୀ
(ଘ) ଜଗତ
Answer:
(ଖ) ସଭ୍ୟତା

Question 97.
କେଉଁ ଯାତ୍ରୀମାନେ ଦୀର୍ଘଦିନ ଧରି ଫଳ ଆହାର କରି କ୍ଳାନ୍ତ ହୋଇପଡ଼ିବେ ବୋଲି ପ୍ରଫେସର କହିଛନ୍ତି?
(କ) ଜୀବନଯାତ୍ରୀମାନେ
(ଖ) ଚନ୍ଦ୍ରଯାତ୍ରୀମାନେ
(ଗ) ରୋଗର ଯାତ୍ରୀମାନେ
(ଘ) ଜଗତଯାତ୍ରୀମାନେ
Answer:
(ଖ) ଚନ୍ଦ୍ରଯାତ୍ରୀମାନେ

Question 98.
‘‘ମୁଁ ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ଆରୋଗ୍ୟ’’ ବୋଲି କିଏ ଖୁସିରେ ପ୍ରକାଶ କରିଛି?
(କ) ପିନାକୀ
(ଖ) ପ୍ରଫେସର ପରିଜା
(ଗ) ବୀର
(ଘ) ରୀତା
Answer:
(ଖ) ପ୍ରଫେସର ପରିଜା

Question 99.
ଡାକ୍ତର ପଢ଼ାରେ ବ୍ୟସ୍ତ ଥିଲାବେଳେ ବାହାରୁ କିଏ ପ୍ରବେଶ କରିଛି?
(କ) ରୋଗୀ
(ଖ) ପ୍ରଫେସର
(ଗ) ଜୟନ୍ତ
(ଘ) ସହକର୍ମୀ
Answer:
(ଗ) ଜୟନ୍ତ

Question 100.
କାହାର ହିନ୍ଦୀ ଅନୁବାଦ ପ୍ରକାଶ ପାଇଛି ବୋଲି ଜୟନ୍ତ ଅତନୁଙ୍କୁ ଜଣାଇଛି?
(କ) ନାଟକର
(ଖ) ଉପନ୍ୟାସର
(ଗ) ବହିର
(ଘ) ଶତଦଳର
Answer:
(ଘ) ଶତଦଳର

Question 101.
ଦୀର୍ଘ ପ୍ରତୀକ୍ଷା ମୋତେ ପାଗଳ କରିଦେବ ବୋଲି କିଏ କହିଛି?
(କ) ଅତନୁ
(ଖ) ଜୟନ୍ତ
(ଗ) ରୀତା
(ଘ) ପ୍ରଫେସର
Answer:
(ଖ) ଜୟନ୍ତ

Question 102.
କାହାକୁ ଦେଖି ଖାଇବା ପଦାର୍ଥଟିକୁ ହରି ପକେଟ୍‌ରେ ଲୁଚାଇଦେଲା?
(କ) ଅତନୁଙ୍କୁ
(ଖ) ଭୀମାକୁ
(ଗ) ନର୍ସଙ୍କୁ
(ଘ) ଡାକ୍ତରଙ୍କୁ
Answer:
(ଖ) ଭୀମାକୁ

Question 103.
ଭୀମାକୁ କିଏ ଛାଡ଼ି ଚାଲିଯାଇଛି?
(କ) ନୟନା
(ଖ) ତା’ ବାପା
(ଗ) ତା’ ଭାଇ
(ଘ) ଗାଁର ଭଉଣୀ
Answer:
(କ) ନୟନା

Question 104.
ହରି କ’ଣ କଞ୍ଚା ଖାଇଦେଇଛି?
(କ) ଫଳ
(ଖ) ଅଣ୍ଡା
(ଗ) ଅମୃତଭଣ୍ଡା
(ଘ) କନ୍ଦମୂଳ
Answer:
(ଖ) ଅଣ୍ଡା

Question 105.
ଭୋଳାନାଥଟିଏ ବୋଲି ହରି କାହାକୁ ଭାବିଛି?
(କ) ଅତନୁଙ୍କୁ
(ଖ) ଭୀମାକୁ
(ଗ) ଅଇଁଠା ଭାଇନାକୁ
(ଘ) ନିଜକୁ
Answer:
(ଗ) ଅଇଁଠା ଭାଇନାକୁ

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Question 106.
ଭୀମାକୁ ଡାକ୍ତର ଅତନୁ କ’ଣ ଦେଇ ଶୁଆଇ ଦେଇଛନ୍ତି?
(କ) ଇଞ୍ଜେକ୍‌ସନ୍
(ଖ) ଔଷଧ
(ଗ) କ୍ୟାପସୁଲ୍
(ଘ) ମରଫିଆ
Answer:
(ଘ) ମରଫିଆ

Question 107.
ମାନସିକ ଦୁଶ୍ଚିନ୍ତା ଗୋଟେ କ’ଣ ବୋଲି ଡାକ୍ତର ଅତନୁ କହିଛନ୍ତି?
(କ) ନିଶା
(ଖ) ରୋଗ
(ଗ) ଅଭିଶାପ
(ଘ) ଗପ
Answer:
(କ) ନିଶା

Question 108.
ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କ ମତରେ ନାରୀ ମାତ୍ରେକେ କ’ଣ?
(କ) ଛଳନାମୟୀ
(ଖ) ମମତାମୟୀ
(ଗ) ସ୍ନେହହୀନା
(ଘ) ଅବୁଝା ଚରିତ୍ର
Answer:
(ଖ) ମମତାମୟୀ

Question 109.
କିଏ ମଣିଷ ନୁହଁନ୍ତି ଦେବତା ବୋଲି ବୀର କହିଛି?
(କ) ସିଷ୍ଟର
(ଖ) ପ୍ରଫେସର
(ଗ) ଡାକ୍ତର ଅତନୁ
(ଘ) ହରି
Answer:
(ଗ) ଡାକ୍ତର ଅତନୁ

Question 110.
କିଏ ଦିନକୁ ପାଞ୍ଚବକ୍ତ ଖାଇବା ଲୋକ?
(କ) ହରି
(ଖ) ଭୀମା
(ଗ) ବୀର
(ଘ) ଅଇଁଠା ଭାଇନା
Answer:
(କ) ହରି

(ଖ) ୧ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ଏକ ବାକ୍ୟରେ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ ।

Question 1.
ଦଣ୍ଡକାରଣ୍ୟର ସବୁଜ ଉପତ୍ୟକାରେ କ’ଣ ନେସିଯାଇଛି?
Answer:
ଦଣ୍ଡକାରଣ୍ୟର ସବୁଜ ଉପତ୍ୟକାରେ ପାଣିଚିଆ କାଳିମା ନେସି ହୋଇ ଯାଇଛି ।

Question 2.
ଚିକିତ୍ସାକେନ୍ଦ୍ରକୁ ଦୂରରୁ ଦେଖିଲେ କ’ଣ ମନେହୁଏ?
Answer:
ଚିକିତ୍ସାକେନ୍ଦ୍ରକୁ ଦୂରରୁ ଦେଖିଲେ ମନେହୁଏ, ତା’ର ଚାରିପଟେ ଘେରିଯାଇଛି ପାତଳ କୁହୁଡ଼ି ।

Question 3.
ଚିକିତ୍ସାକେନ୍ଦ୍ରର ମୁଖ୍ୟ ଡାକ୍ତରଙ୍କ ନାମ କ’ଣ?
Answer:
ଚିକିତ୍ସାକେନ୍ଦ୍ରର ମୁଖ୍ୟ ଡାକ୍ତରଙ୍କ ନାମ ଅତନୁ ।

Question 4.
ବୋତଲଟି ତଳେ ପଡ଼ି କ’ଣ ହେଲା?
Answer:
ସିଡ଼ି ଉପରୁ ଗଡ଼ିଗଡ଼ି ଆସିଥିବା ବୋତଲଟି ତଳେ ପଡ଼ି ଭାଙ୍ଗି ଚୁରମାର ହୋଇଯାଇଥିଲା ।

Question 5.
ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କ ମାନସିକ ଚିକିତ୍ସାକେନ୍ଦ୍ର କେଉଁଠି ଅବସ୍ଥିତ?
Answer:
ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କ ମାନସିକ ଚିକିତ୍ସାକେନ୍ଦ୍ର ଦଣ୍ଡକାରଣ୍ୟର ସବୁଜବଣର ପାହାଡ଼ ପାଦଦେଶରେ ଅବସ୍ଥିତ ।

Question 6.
କିଏ ବୋତଲ ଉଠାଇ କ’ଣ କରିବାକୁ ଲାଗିଲା?
Answer:
ପିନାକୀ ବୋତଲ ଉଠାଇ କାନ୍ଦିବାକୁ ଲାଗିଲା ।

Question 7.
ଝରକା ବାଟେ କ’ଣ ବେଶ୍ ସୁନ୍ଦର ଦିଶିଛି?
Answer:
ଝରକା ବାଟେ ଅସ୍ପଷ୍ଟ ଘୁମନ୍ତ ଅରଣ୍ୟର ଦୃଶ୍ୟ ବେଶ୍ ସୁନ୍ଦର ଦିଶିଛି ।

Question 8.
ହରିର ପରିଚୟ କ’ଣ?
Answer:
ହରି ଚିକିତ୍ସାକେନ୍ଦ୍ରରେ ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କ ପାଖରେ କାମ କରୁଛି ।

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 4 ରାଜହଂସ Question Answer

Question 9.
କିଏ କାହା ବିନିମୟରେ ସବୁ କରିପାରେ ବୋଲି କହିଛି?
Answer:
ପିନାକୀ ମଦ ବିନିମୟରେ ସବୁ କରିପାରେ ବୋଲି କହିଛି ।

Question 10.
କେଉଁ ଚିନ୍ତା ରୋଗ ଉପରେ ବେଶୀ ପ୍ରଭାବ ପକାଏ?
Answer:
ମାନସିକ ଚିନ୍ତା ରୋଗ ଉପରେ ବେଶୀ ପ୍ରଭାବ ପକାଏ ।

Question 11.
ଦୁନିଆକୁ ଭୁଲିଯିବା ପାଇଁ ପିନାକୀ ମଦକୁ କ’ଣ ବୋଲି ଧରିନେଇଛି?
Answer:
ଦୁନିଆକୁ ଭୁଲିଯିବା ପାଇଁ ପିନାକୀ ମଦକୁ ଔଷଧ ବୋଲି ଧରି ନେଇଛି ।

Question 12.
ଦିନରାତି ପିନାକୀ କ’ଣ ଦେଖିବ ବୋଲି ଡାକ୍ତର କହିଛନ୍ତି?
Answer:
ଦିନରାତି ପିନାକୀ ଟଙ୍କାର ସ୍ଵପ୍ନ ଦେଖିବ ବୋଲି ଡାକ୍ତର ଅତନୁ କହିଛନ୍ତି ।

Question 13.
ଡାକ୍ତରଙ୍କର କେଉଁ କଥାରେ ପୂର୍ଣ୍ଣ ବିଶ୍ଵାସ ଅଛି ବୋଲି କହିଛନ୍ତି?
Answer:
ଦିନେ ପିନାକୀ ଭଲ ହୋଇଯିବେ ଏଇ କଥାରେ ଡାକ୍ତରଙ୍କର ପୂର୍ଣ୍ଣ ବିଶ୍ଵାସ ରହିଛି ।

Question 14.
ଜଣେ ମନସ୍ତାତ୍ତ୍ଵିକ ଡାକ୍ତର ପାଖରେ କାମ କରିବାକୁ ହେଲେ କ’ଣ କରିବାକୁ ହୁଏ?
Answer:
ଜଣେ ମନସ୍ତାତ୍ତ୍ଵିକ ଡାକ୍ତର ପାଖରେ କାମ କରିବାକୁ ହେଲେ ରୋଗୀର ମନକୁ ଲକ୍ଷ୍ୟ କରିବାକୁ ହୁଏ ।

Question 15.
ତିନି ନମ୍ବର ପେସେଣ୍ଟ୍ କ’ଣ କରେ?
Answer:
ତିନି ନମ୍ବର ରୁମ୍‌ର ପେସେଣ୍ଟ୍ ରୀତା ଭାଓଲିନ୍ ବଜାଏ ।

Question 16.
ସାବିତ୍ରୀ କିଏ?
Answer:
ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କ ଡାକ୍ତରଖାନାରେ ଚାକିରି କରିଥିବା ସିଷ୍ଟର ହିଁ ସାବିତ୍ରୀ ।

Question 17.
‘ଚୋରି ସପକ୍ଷରେ ପୁଣି ଗୁହାରୀ’ ଏକଥା କିଏ କାହାକୁ କହିଛି?
Answer:
‘ଚୋରି ସପକ୍ଷରେ ଗୁଣି ଗୁହାରୀ’ – ଏକଥା ସାବିତ୍ରୀ ହରିକୁ କହିଛି ।

Question 18.
ବିଜ୍ଞାନୀ କେତେବେଳେ ଈଶ୍ବରଙ୍କୁ ଖୋଜେ?
Answer:
ବିଜ୍ଞାନୀ ଯେତେବେଳେ ତା’ର ନିଜ ସତ୍ତା ହଜାଇ ବସେ; ସେତେବେଳେ ସେ ଈଶ୍ବରଙ୍କୁ ଖୋଜେ ।

Question 19.
ଟିକିଏ ସଜାଗ ନ ହେଲେ କାହା ଅଭିଯାନ ବ୍ୟର୍ଥ ହୋଇଯିବ?
Answer:
ଟିକିଏ ସଜାଗ ନ ହେଲେ ଚନ୍ଦ୍ରଲୋକର ଅଭିଯାନ ବ୍ୟର୍ଥ ହୋଇଯିବ ।

Question 20.
ଚନ୍ଦ୍ରରେ କ’ଣ ନାହିଁ ବୋଲି ହରି କହିଛି?
Answer:
ଚନ୍ଦ୍ରରେ ପବନ ନାହିଁ ବୋଲି ହରି କହିଛି ।

Question 21.
ବୈଜ୍ଞାନିକଙ୍କ ଜୀବନ କ’ଣ ଓ ଧର୍ମ କ’ଣ?
Answer:
ବୈଜ୍ଞାନିକଙ୍କ ଜୀବନ ଗବେଷଣା ଓ ଧର୍ମ ଜୀବନକୁ ନେଇ ଖେଳିବା ।

Question 22.
ମନୁଷ୍ୟ ଅନ୍ୟକୁ କେବଳ କ’ଣ କରି ଜାଣେ?
Answer:
ମନୁଷ୍ୟ ଅନ୍ୟକୁ କେବଳ ଅବିଶ୍ବାସ କରି ଜାଣେ ।

Question 23.
ସରଳ ବନ୍ଧୁତାରେ ମଣିଷ କ’ଣ ଦେଖେ?
Answer:
ସରଳ ବନ୍ଧୁତାରେ ଏଇ ବିଶ୍ଵାସହୀନ ମଣିଷ ଦେଖେ ଗରଳର ସ୍ୱପ୍ନ ।

Question 24.
ଗୀତା, ବାଇବେଲ୍‌, କୋରାନ୍‌ରୁ ଏ ମଣିଷ କ’ଣ ଖୋଜେ?
Answer:
ଗୀତା, ବାଇବେଲ୍, କୋରାନ୍‌ରୁ ଏ ମଣିଷ ଖୋଜେ ବିଶ୍ବାସଘାତକତାର ବାଣୀ ।

Question 25.
କିଛି ସମୟ ପାଇଁ କଣ୍ଟ୍ରୋଲରୁମ୍‌ର ଦାୟିତ୍ଵରେ କିଏ ରହିବ ବୋଲି କହିଛି?
Answer:
କିଛି ସମୟ ପାଇଁ କଣ୍ଟ୍ରୋଲରୁମ୍‌ର ଦାୟିତ୍ଵରେ ସିଷ୍ଟର ସାବିତ୍ରୀ ରହିବ ବୋଲି କହିଛି ।

Question 26.
ପାଞ୍ଚ ନମ୍ବର କୋଠରୀକୁ କିଏ କିଏ ଚାଲିଗଲେ?
Answer:
ପାଞ୍ଚ ନମ୍ବର କୋଠରୀକୁ ସିଷ୍ଟର ସାବିତ୍ରୀ ଓ ପ୍ରଫେସର ପରିଜା ଚାଲିଗଲେ ।

Question 27.
ରୀତାର ପରିଚୟ କ’ଣ?
Answer:
ଗୀତା ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କ ବନ୍ଧୁ ପତ୍ନୀ ତଥା ଜଣେ ସୁନ୍ଦର ଶୁଭ୍ରାଙ୍ଗୀ ଯୁବତୀ ଓ ଚିକିତ୍ସିତ ରୋଗିଣୀ ।

Question 28.
ରୀତା କ’ଣ ଖୋଜିଛି ଓ ସେ କେଉଁ ନମ୍ବର ରୁମ୍ରେ ରହୁଛି?
Answer:
ରୀତା କବିତା ଖୋଜିଛି ଓ ସେ ୩ ନମ୍ବର ରୁମ୍‌ରେ ରହିଛି ।

Question 29.
କିଏ ଲକ୍ଷପତିର କନ୍ୟା ଓ କୋଟିପତିର ବୋହୂ?
Answer:
ରୀତା ହିଁ ଲକ୍ଷପତିର କନ୍ୟା ଓ କୋଟିପତିର ବୋହୂ ।

Question 30.
ରୀତା କେଉଁଥରେ ଭାଓଲିନ୍‌ର କ’ଣ ଦେବାକୁ ଚାହେଁ?
Answer:
ରୀତା ଆଖର ଲୁହରେ ଭାଓଲିନ୍‌ର ସ୍ୱରକୁ ସିକ୍ତ କରିଦେବାକୁ ଚାହେଁ ।

Question 31.
ଜୟନ୍ତର ପରିଚୟ ପ୍ରଦାନ କର ।
Answer:
ଜୟନ୍ତ ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କ ବନ୍ଧୁ ଓ ଜଣେ ଧନୀ ବ୍ୟବସାୟୀ, ଯାହାର ପତ୍ନୀ ରୀତା ।

Question 32.
କେଉଁ କଥା ଭାବିଲେ ଜୟନ୍ତ ଦେହ ଶୀତେଇ ଉଠେ?
Answer:
ଜୟନ୍ତର ପତ୍ନୀ ରୀତା ପାଗଳାମିର କଥା ଭାବିଲେ ଜୟନ୍ତର ଦେହ ଶୀତେଇ ଉଠେ ।

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 4 ରାଜହଂସ Question Answer

Question 33.
ଆଦିମ ଯୁଗରୁ କିଏ ଆଶାବାଦୀ?
Answer:
ଆଦିମ ଯୁଗରୁ ମଣିଷ ଆଶାବାଦୀ, ଆଶାରେ ହିଁ ବଞ୍ଚେ ।

Question 34.
ପାହାଡ଼ଟି କେଉଁ ପରି କାହାକୁ ଅଭିବାଦନ ଜଣାଉଛି?
Answer:
ପାହାଡ଼ଟି ଓଟକୁଜ ଭଳି ମେଞ୍ଚା ମେଞ୍ଚା କାଳିମା ବୋଳି ହୋଇ ସନ୍ଧ୍ୟାକୁ ଅଭିବାଦନ ଜଣାଉଛି ।

Question 35.
ସଙ୍ଗୀତ ମଣିଷ ମନରୁ କ’ଣ ଦୂର କରିପାରେ?
Answer:
ସଙ୍ଗୀତ ମଣିଷ ମନରୁ ଦୂର କରେ ରାଗ, ହିଂସା, ବିଦ୍ବେଷ ।

Question 36.
ବେବୀର ଗୀତରେ କିଏ ତନ୍ମୟ ହୋଇଉଠିଛି?
Answer:
ବେବୀର ଗୀତରେ ପ୍ରଫେସର ପରିଜା ଟିକେ ଭାବବିହ୍ବଳ ହୋଇ ତନ୍ମୟତାର ସହ ଗୀତ ଶୁଣିଛନ୍ତି ।

Question 37.
ଉଜ୍ଜ୍ଵଳ ଭବିଷ୍ୟତରେ କିଏ ସବୁଜ ସମ୍ଭାବନା?
Answer:
ପିନାକୀର ଗୋଟିଏ ସୁନାଝିଅ ଅଛି ଯାହାର ନାଁ ବେବୀ । ଏଇ ବେବୀ ହିଁ ଉଜ୍ଜ୍ଵଳ ଭବିଷ୍ୟତର ସବୁଜ ସମ୍ଭାବନା ।

Question 38.
କବିତା କିଏ, ତା’ର କ’ଣ ହେଲା?
Answer:
କବିତା ରୀତାର ଭଉଣୀ, ଯିଏ ହଠାତ୍ କୁଆଡ଼େ ଚାଲଯାଇଛି ।

Question 39.
ରୀତା କେମିତି ଭଲ ହୋଇଯିବ ବୋଲି କହିଛି?
Answer:
ରୀତା କହିଛି ତା କଣ୍ଠରେ ସୁର ଭରିଦେଲେ ସେ ଆପେ ଆପେ ଭଲ ହୋଇଯିବ ।

Question 40.
ବୀର କିଏ?
Answer:
ବୀର ଜଣେ ରୋଗୀ । ଯିଏ ପୂର୍ବେ ମିଲିଟାରୀ ଅଫିସର ଥିଲା ।

Question 41.
ରୀତା ତାଙ୍କ ବାପାଙ୍କ ଆଗରେ ନିଃସଙ୍କୋଚରେ କ’ଣ କହିଲେ?
Answer:
ରୀତା ତାଙ୍କ ବାପାଙ୍କ ଆଗରେ ନିଃସଙ୍କୋଚରେ ଧୂର୍ଜଟୀଙ୍କୁ ବିବାହ କରିବା କଥା କହିଲେ ।

Question 42.
ଅତନୁ ରାତି ଅନିଦ୍ରା ହୋଇ କ’ଣ ଲେଖୁଥିଲେ?
Answer:
ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ରାତି ଅନିଦ୍ରା ହୋଇ ମେଡ଼ିସିନ୍ ଉପରେ ଥେସିସ୍ ଲେଖୁଥିଲେ ।

Question 43.
ଡାକ୍ତର ସେବିକାଙ୍କ ଧର୍ମ କ’ଣ?
Answer:
ସେବା ସହାନୁଭୂତି ଦେଖାଇବା ଡାକ୍ତର ଓ ସେବିକାଙ୍କ ଧର୍ମ ।

Question 44.
କିଏ କେତେ ବର୍ଷ ସାରା ଭାରତ ବୁଲିଛନ୍ତି ଅର୍ଦ୍ଧପାଗଳ ଭଳି?
Answer:
ମିଲିଟାରୀ ଅଫିସର ବୀର ୪ ବର୍ଷ ସାରା ଭାରତ ବୁଲିଛନ୍ତି ଅର୍ଦ୍ଧପାଗଳ ଭଳି ।

Question 45.
ଅପରେସନ୍ ପାଇଁ କିଏ କାହାକୁ ଡକାଇଛନ୍ତି?
Answer:
ଅପରେସନ୍ ପାଇଁ ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ସ୍ପେଶାଲ ଡାକ୍ତର ସେନ୍‌ଙ୍କୁ ଡକାଇଛନ୍ତି ।

Question 46.
ଆଦର୍ଶଟା କାହାଦ୍ବରା ପରିଚାଳିତ ହୁଏ?
Answer:
ଆଦର୍ଶଟା ଧର୍ମଦ୍ଵାରା ପରିଚାଳିତ ହୁଏ ।

Question 47.
କଅଁଳ ଫୁଲ ଓଠରେ କ’ଣ ଦେଖିବାକୁ ଏ ସଂସାର ଚାହେଁନା?
Answer:
କଅଁଳ ଫୁଲର ଓଠରେ ହସ ଦେଖିବାକୁ ଏ ସଂସାର ଚାହେଁନା ।

Question 48.
କ’ଣ ବ୍ୟର୍ଥ ହୋଇଛି ବୋଲି ଅତନୁ କହିଛନ୍ତି?
Answer:
ପିନାକୀଙ୍କୁ ବଞ୍ଚାଇବା ପାଇଁ ତାଙ୍କର ସକଳ ଚେଷ୍ଟା ବ୍ୟର୍ଥ ହୋଇଛି ବୋଲି ଅତନୁ କହିଛନ୍ତି ।

Question 49.
କାହାର କାନ୍ଦସ୍ଵର ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କ ମନ ଦୋହଲାଇ ଦେଉଥିଲା?
Answer:
ଦେବୀର କାନ୍ଦସ୍ଵର ଅତନୁଙ୍କ ମନ ଦୋହଲାଇ ଦେଉଥିଲା ।

Question 50.
କାହରା ଖିଆପିଆ ଠିକ୍ ରହିନାହିଁ?
Answer:
ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କ ଖିଆପିଆ ଠିକ୍ ରହିନାହିଁ ।

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 4 ରାଜହଂସ Question Answer

Question 51.
‘ଶତଦଳ’ କବିତା କୋଉ ପୁରସ୍କାର ପାଇବ?
Answer:
‘ଶତଦଳ’ କବିତା ବାଣୀପୀଠ ପୁରସ୍କାର ଓ ଏକ ଲକ୍ଷ ଟଙ୍କା ପାଇବ ।

(ଗ) ୨ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ଦୁଇଟି ବାକ୍ୟରେ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ । ଲେଖା ଓ ଲେଖକଙ୍କ ପାଇଁ ୧ ନମ୍ବର ଓ ଉତ୍ତର ପାଇଁ ୧ ନମ୍ବର ।

Question 1.
ଚିକିତ୍ସାକେନ୍ଦ୍ରର ସ୍ଥିତି ସମ୍ପର୍କରେ ଲେଖ ।
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ଚିକିତ୍ସାକେନ୍ଦ୍ରଟି ଦଣ୍ଡକାରଣ୍ୟରେ ଜନବସତିର ଅନତି ଦୂରରେ ଅବସ୍ଥିତ । ପାହାଡ଼ ପାଦଦେଶର ସାମାନ୍ୟ ଉଚ୍ଚରେ ଅବସ୍ଥିତ ।

Question 2.
ଚିକିତ୍ସାକେନ୍ଦ୍ରର ଡାକ୍ତର କିଏ ଓ ସିଏ କେଉଁ ବିଭାଗର ଡାକ୍ତର?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ଚିକିତ୍ସାକେନ୍ଦ୍ରର ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ଓ ସେ ମାନସିକ ରୋଗ ତଥା ମନସ୍ତାତ୍ତ୍ଵିକ ବିଭାଗର ଡାକ୍ତର ।

Question 3.
ହରି ଓ ପିନାକୀର ପରିଚୟ ପ୍ରଦାନ କର ।
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ହରି ଅତନୁବାବୁଙ୍କ ଡାକ୍ତରଖାନାରେ କର୍ମଚାରୀ ଓ ପିନାକୀ ଜଣେ ମଦ୍ୟପ ବ୍ୟବସାୟୀ, ଯିଏ ଅତନୁ ଡାକ୍ତରଙ୍କ ପାଖରେ ଚିକିତ୍ସିତ ହେଉଛି ।

Question 4.
ବୋତଲ କେଉଁଠାରୁ ଆସିଲା ଓ କ’ଣ ହେଲା?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ବୋତଲ ଉପର ମହଲା ଅର୍ଥାତ୍ ପିନାକୀର ରୁମ୍ଭରୁ ପାହାଚ ଦେଇ ଗଡ଼ିଗଡ଼ି ତଳକୁ ଆସିଛି ଓ ତଳେ ପଡ଼ି ଭାଙ୍ଗି ଚୁରମାର୍ ହୋଇଯାଇଛି ।

Question 5.
ବୋତଲରେ ଥ‌ିବା ତରଳ ପଦାର୍ଥକୁ କିଏ କ’ଣ କରିବାକୁ ଲାଗିଲା?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ବୋତଲ ଭାଙ୍ଗି ଚୁମାର ହୋଇଗଲା ପରେ ବୋତଲରେ ଥ‌ିବା ତରଳ ପଦାର୍ଥ ଅର୍ଥାତ୍ ମଦକୁ ପିନାକୀ ଚାଟିବାକୁ ଲାଗିଲା ।

Question 6.
ମୁଁ ଭଲ ହେବାକୁ ଚାହେଁ ନାହିଁ ବୋଲି କିଏ କାହାକୁ କହିଛି?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ଜୀବନ ପ୍ରତି ବିତୃଷ୍ଣା ଆଣିଥ‌ିବା ପିନାକୀ ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କ ଆଗରେ ସେ ଭଲ ହେବାକୁ ଚାହେଁ ନାହିଁ ବୋଲି କହିଛି ।

Question 7.
ମଦ ବିନିମୟରେ ମୁଁ ସବୁ କରିବାକୁ ପ୍ରସ୍ତୁତ ବୋଲି କିଏ କାହାକୁ କହିଛି?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ମଦ୍ୟପ ବ୍ୟବସୟୀ ପିନାକୀ ମଦ ବିନିମୟରେ ସବୁ କରିବାକୁ ପ୍ରସ୍ତୁତ ବୋଲି ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କୁ କହିଛି ।

Question 8.
ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ହରି ଉପରେ କ’ଣ ପାଇଁ ବିରକ୍ତ ହୋଇଛନ୍ତି?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ହରି ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କ ଡାକ୍ତରଖାନାରେ ସହକର୍ମୀ । ସେ ରୋଗୀ ପିନାକୀକୁ ବିଭିନ୍ନ ପ୍ରକାର ଏପଟସେପଟ କଥାବାର୍ତ୍ତା କରିଛି ବୋଲି ଡାକ୍ତର ବିରକ୍ତ ହୋଇଛନ୍ତି ।

Question 9.
କୁଆଡ଼େ ଯିବା କଥା ପ୍ରଫେସର ବଖାଣିଛନ୍ତି?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ପ୍ରଫେସର ପରିଜା ଜଣେ ବିଜ୍ଞାନୀ । ଚନ୍ଦ୍ରକୁ ଯିବାପାଇଁ ସେ ଯନ୍ତ୍ର ଓ ପଥ ପ୍ରସ୍ତୁତ କରୁଛନ୍ତି ଏବଂ ହରି ଆଗରେ ସେ ଏଇ କଥା ବଖାଣିଛନ୍ତି ।

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Question 10.
କେଉଁ କେଉଁଥୁରୁ ମଣିଷ ବିଶ୍ୱାସଘାତକତାର କାହାଣୀ ଖୋଜେ?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ପ୍ରଫେସର ପରିଜା ନିଜ ଅଭିଜ୍ଞତାରୁ ମଣିଷ ସମ୍ପର୍କରେ କୁହନ୍ତି ଯେ ମଣିଷ ଗୀତା, କୋରାନ୍ ଓ ବାଇବେଲ୍‌ରେ ଖୋଜେ ବିଶ୍ୱାସଘାତକତାର କାହାଣୀ ।

Question 11.
ପ୍ରଫେସର ପରିଜାଙ୍କୁ ସିଷ୍ଟର କେମିତି ବୁଝାଇଛନ୍ତି?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ସିଷ୍ଟର ସାବିତ୍ରୀ ଅତନୁଙ୍କ ଡାକ୍ତରଖାନାର ସେବିକା ବା ନର୍ସ । ସେ ପ୍ରଫେସରଙ୍କୁ ବିଶ୍ରାମ ନେବାକୁ ଡାକିନେଇ ନିଜେ ଦାୟିତ୍ଵର ସହ ସବୁ ବୁଝିବେ କହି ବୁଝାଇଛନ୍ତି ।

Question 12.
ରୀତା କିଏ ଓ ସେ କେଉଁ ରୁମ୍ରେ ରୁହେ?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ରୀତା ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କ ବନ୍ଧୁପତ୍ନୀ ଯାହରା ମାନସିକ ବିକାରକୁ ଆରୋଗ୍ୟ କରାଇବାକୁ ଅତନୁ ଚିକିତ୍ସା କରୁଛନ୍ତି ଓ ସେ ଡାକ୍ତରଖାନାର ୩ ନମ୍ବର ରୁମ୍‌ରେ ରୁହେ ।

Question 13.
କାହା ମନ ସବୁବେଳେ କାହିଁକି ପ୍ରଫୁଲ୍ଲ ହେବା ଦରକାର?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ଅତନୁ କହିଛି ଯେ କବିର ମନ ବିଷାକ୍ତ ନ ହୋଇ ସବୁବେଳେ ପ୍ରଫୁଲ୍ଲ ହେବା ଦରକାର । କାରଣ ତାକୁ ବାସ୍ତବତାର ଚିତ୍ର ଆଙ୍କିବାକୁ ହେବ ।

Question 14.
ଅତନୁଙ୍କ ପାଇଁ ଜୟନ୍ତ କ’ଣ କରିଥିଲେ?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ଅତନୁଙ୍କ ପଢ଼ିବା ପାଇଁ ଜୟନ୍ତ ଅର୍ଥ ସାହାଯ୍ୟ କରିଥିଲା । ଯେଉଁ ଅର୍ଥବଳରେ ଅତନୁ ଆମେରିକା ଯାଇ ମାନସିକ ରୋଗ ସମ୍ବନ୍ଧରେ ପାଠପଢ଼ି ଡାକ୍ତର ହୋଇପାରିଥିଲା ।

Question 15.
ଧୀରେ ଧୀରେ ଜୟନ୍ତଙ୍କର କ’ଣ ମନେ ହେଉଥିଲା?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ଧୀରେ ଧୀରେ ଜୟନ୍ତଙ୍କର ମନେ ହୋଇଛି ସେ ଅସହାୟ ହୋଇ ପଡୁଛନ୍ତି । ତାଙ୍କ ସବୁଜ ସଂସାର ଭାଙ୍ଗିରୁଜି ଚୁରମାର ହୋଇଯାଉଛି ।

Question 16.
ଜୟନ୍ତ କିଏ ଓ ତାଙ୍କ ସ୍ତ୍ରୀଙ୍କ ନାମ କ’ଣ?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ଜୟନ୍ତ ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କ ବନ୍ଧୁ, ବୟସ ତିରିଶ କି ବତିଶ । ସେ ଜଣେ ପ୍ରତିଷ୍ଠିତ ବ୍ୟବସାୟୀ ଓ ତାଙ୍କ ସ୍ତ୍ରୀଙ୍କ ନାମ ରୀତା ।

Question 17.
କାହାକୁ କେହି ଭଲ କରିପାରିବେ ନାହିଁ ବୋଲି ପ୍ରଫେସର ପରିଜା କହିଛନ୍ତି?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ମଣିଷ ସମାଜରେ ଥ‌ିବା ହିଂସା, ଦ୍ବେଷ, ପରଶ୍ରୀକାତରତା ଓ ବିଶ୍ୱାସଘାତକତା ନାମୀ ବ୍ୟାଧ‌ି କେହି ଭଲ କରିପାରିବେ ନାହିଁ ବୋଲି ପ୍ରଫେସର କହିଛନ୍ତି ।

Question 18.
କିଏ କାହାକୁ ଦିଦି ବୋଲି ଡାକିଛି?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ପିନାକୀଙ୍କ ଝିଅ ବେବୀ ଡାକ୍ତରଖାନାରେ ଚିକିତ୍ସିତ ହେଉଥ‌ିବା ଅତନୁଙ୍କ ବନ୍ଧୁପତ୍ନୀ ରୀତାକୁ ଦିଦି ବୋଲି ସମ୍ବୋଧନ କରିଛି ବା ଡାକିଛି ।

Question 19.
ସଙ୍ଗୀତ ମନରୁ କ’ଣ ଦୂର କରେ ବୋଲି କିଏ କହିଛି?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ସଙ୍ଗୀତ ପାଖରେ ସମ୍ମୋହନ ଶକ୍ତି ରହିଛି । ସଙ୍ଗୀତ ମନରୁ ରାଗ, ହିଂସା ଓ ବିଦ୍ବେଷ ଦୂର କରେ ବୋଲି ପ୍ରଫେସର ପରିଜା କହିଛନ୍ତି ।

Question 20.
ରୀତାଙ୍କ ଜୀବନରେ କ’ଣ ଘଟିଲା?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ରୀତା ଜଣେ ଲକ୍ଷପତିଙ୍କ ଝିଅ । ଏକମାତ୍ର ଭଉଣୀ କବିତାକୁ ହରାଇ ମର୍ମାହତ ଓ ଏକୁଟିଆ ହୋଇଗଲା ପରେ ପ୍ରଚୁର କବିତା ପଢ଼ିଛନ୍ତି । ସେଇ କବିତା ପଢ଼ୁ ପଢ଼ୁ କବି ଧୂର୍ଜଟୀଙ୍କ ପ୍ରେମରେ ପଡ଼ିଛନ୍ତି । ତେଣୁ ତାଙ୍କୁ ବିବାହ କରିବାକୁ ଚାହିଁଛନ୍ତି ।

Question 21.
ଅଇଁଠା ଭାଇନା କ’ଣ ଧରି ପଶି ଆସିଲା?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର– ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ଅଇଁଠା ଭାଇନା ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କ ଚିକିତ୍ସାଳୟରେ ରୋଷେୟା । ସେ ଗୋଟେ ହାତରେ ଦୁଇଟା ପାଚିଲା କଦଳୀ ଅନ୍ୟ ହାତରେ ପାଣି ଢାଳ ଧରି ପ୍ରବେଶ କରିଛନ୍ତି ।

Question 22.
ହରି ଭାଇନା ଅଇଁଠାକୁ କାହିଁକି ଭୋଳାନାଥଟିଏ କହିଛି?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ହରି ଓ ଅଇଁଠା ଗୋଟିଏ ସ୍ଥାନରେ ରହି ଭିନ୍ନ ଭିନ୍ନ କାମ କରିଛନ୍ତି । ହରି ଅଇଁଠାର ନିରଳସ ଭାବ ଓ ସାଧାରଣ ଆଚରଣ ଯୋଗୁଁ ଭୋଳାନାଥ ବୋଲି କହିଛି ।

Question 23.
କିଏ କାହାର ନବଜନ୍ମଦାତା?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ବୀର ଯୁଦ୍ଧରେ ନିଜର ବାକ୍‌ଶକ୍ତି ହରାଇ ମୂକ ମିଲିଟାରୀ ଅଫିସର ସାଜିଛି । ଭାରତର ଅନେକ ସ୍ଥାନରେ ଚିକିତ୍ସାରେ ବିଫଳ ହୋଇ ସେ ଶେଷକୁ ଅତନୁଙ୍କ ପାଖରେ ସୁସ୍ଥ ହୋଇ କଥା କହିପାରିଛି । ତେଣୁ ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ତା’ର ନବଜନ୍ମଦାତା ।

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 4 ରାଜହଂସ Question Answer

Question 24.
ବୀର କିପରି ଭାବେ କହିବା ଶକ୍ତି ହରାଇଛି?
Answer:
ନାଟକ – ରାଜହଂସ
ନାଟ୍ୟକାର – ରତ୍ନାକର ଚଇନି
ବୀର ଏକ ଯୁଦ୍ଧବେଳେ ବିପକ୍ଷ ଶତ୍ରୁମାନଙ୍କ ବୋମାମାଡ଼ରେ ଆହତ ହୋଇ ନିଜ କହିବା ଶକ୍ତି ହରାଇ ବସିଛି ।

+2 1st Year Odia Optional Chapter 4 ରାଜହଂସ Summary

ନାଟ୍ୟକାର ପରିଚୟ :
ସ୍ଵାଧୀନତା ପରବର୍ତ୍ତୀ ଓଡ଼ିଆ ନାଟ୍ୟ ସାହିତ୍ୟ କ୍ଷେତ୍ରରେ ଯେଉଁ କେତେଜଣ ବଳିଷ୍ଠ ତଥା ବିଶିଷ୍ଟ ପ୍ରତିଭା ନିଜ କାରିଗରୀ ତଥା ଶିଳ୍ପୀତ୍ବର ପରାକାଷ୍ଠାରେ ନାଟ୍ୟସାହିତ୍ୟକୁ ସମୃଦ୍ଧ କରିବା ସହ ନିଜ ପାଇଁ ଏକ ସ୍ବତନ୍ତ୍ର ଆସନ ପ୍ରତିଷ୍ଠା କରିପରିଛନ୍ତି, ସେମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ନାଟ୍ୟକାର ରତ୍ନାକର ଚଇନି ଅନ୍ୟତମ ସାର୍ଥକ ସ୍ରଷ୍ଟା । ଯେତେବେଳେ ସମଗ୍ର ଭାରତବର୍ଷ ସ୍ଵାଧୀନତାର ସୁବର୍ଣ୍ଣ ସକାଳ ପାଇଁ ପରାଧୀନତାର ପାହାନ୍ତି ଭିତରେ ସ୍ୱପ୍ନ ଦେଖୁଥିଲେ, ଠିକ୍ ସେତିକିବେଳେ ଅର୍ଥାତ ୧୯୪୫ ମସିହା ଅଗଷ୍ଟ ୨୫ ତାରିଖରେ ପବିତ୍ର ଗଣେଶ ଚତୁର୍ଥୀ ତିଥ୍ୟରେ ଏଇ ମହାନ୍ ପ୍ରତିଭାଙ୍କ ଜନ୍ମ ହୋଇଥିଲା କଟକ ଜିଲ୍ଲାର ସାଲେପୁର ଥାନା ଅନ୍ତର୍ଗତ ଅରେଇ ଗ୍ରାମରେ । ତାଙ୍କ ପିତାଙ୍କ ନାମ ଥଲା ବ୍ରଜବନ୍ଧୁ ଚଇନି । ଚାରିପୁଅଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ଚଇନି ଥିଲେ ଦ୍ବିତୀୟ ସନ୍ତାନ ।

ବାଲ୍ୟକାଳରୁ ରତ୍ନାକର ଥିଲେ ଦୃଢ଼ମନା ଓ ଉଚ୍ଚାଭିଳାଷୀ । ପ୍ରତିକୁଳ ପରିବେଶରେ ସେ ଆଗକୁ ବଢ଼ିଥିଲେ, ଯଦିଓ ଅନେକ ପ୍ରତିବନ୍ଧକ ଆସି ତାଙ୍କ ଜୀବନପଥ ଅବରୋଧ କରିଥିଲା; ମାତ୍ର ସବୁ ବିପଦକୁ ଖୁବ୍ ସାହସ ଓ ସଫଳତା ସହ ସମ୍ମା କରିଥିଲେ ରତ୍ନାକର ।

ଉଚ୍ଚଶିକ୍ଷା ପାଇଁ କଟକ ଖ୍ରୀଷ୍ଟ କଲେଜକୁ ଆସିଥିଲେ ରତ୍ନାକର । ଅର୍ଥ ଯୋଗାଡ଼ରେ ଅସୁବିଧା ନ ହେଉ, ତେଣୁ ସେ ପ୍ରଜାତନ୍ତ୍ର ପ୍ରଚାର ସମିତିରେ କିଛି ସମୟ ଚାକିରି କରିଥିଲେ । ଏଇଠାରେ ହିଁ ହରେକୃଷ୍ଣ ମହତାବଙ୍କଠାରୁ ଆରମ୍ଭ କରି ଅନ୍ୟ ବିଶିଷ୍ଟ ସାହିତ୍ୟ ପ୍ରତିଭାମାନଙ୍କ ସହ ପ୍ରତ୍ୟକ୍ଷ ସମ୍ପର୍କରେ ଆସିଥିଲେ ରତ୍ନାକର ।

ରେଭେନ୍ସା କଲେଜରୁ ଓଡ଼ିଆ ଭାଷା ସାହିତ୍ୟରେ ଏମ୍.ଏ. ପାଶ୍ କରିବା ପରେ ଓଡ଼ିଶାର ଶିକ୍ଷା ବିଭାଗରେ ଅଧ୍ୟାପକ ଭାବରେ ନିଜର କର୍ମମୟ ଜୀବନ ଆରମ୍ଭ କରିଥିଲେ । ତେବେ ପିଲାଟି ଦିନରୁ ନାଟକ ପ୍ରତି ବେଶ୍ ଦୁର୍ବଳ ଥିବା ରତ୍ନାକର, ନାଟକ ରଚନା ପ୍ରତି ମନୋନିବେଶ କରି ବେଶ୍ ସଫଳ ହୋଇଥିଲେ । ତେବେ ନାଟକ ବ୍ୟତୀତ କବିତା, ଗଳ୍ପ କ୍ଷେତ୍ରରେ ମଧ୍ୟ ରତ୍ନାକର ଚଇନିଙ୍କ ଅନେକ ଦଖଲ ଥିଲା । ଉପନ୍ୟାସ ରଚନାରେ ମଧ୍ୟ ତାଙ୍କର ସ୍ୱତନ୍ତ୍ରତା ଓ କାରିଗରୀ ପ୍ରଭାବିତ କରିବାରେ ବେଶ୍ ସକ୍ଷମ ।

ତେବେ ତାଙ୍କ ରଚନାର ଇତିହାସକୁ ଅନୁଧ୍ୟାନ କଲେ ଏକଥା ସ୍ପଷ୍ଟ ହୁଏ ଯେ ୧୯୬୫ ମସିହା ପରେ ପରେ ତାଙ୍କ ଲେଖାର ମୋଡ଼ ବଦଳି ଯାଇଥିଲା । ୟାପରେ ସେ ଅଧ‌ିକରୁ ଅଧିକ ନାଟକ ଓ ଏକାଙ୍କିକା ପ୍ରତି ମନୋନିବେଶ କରିଥିଲା ପରି ବୋଧହୁଏ । ଔପନ୍ୟାସିକ, କବି, ଗାଳ୍ପିକ ଏସବୁ ଅପେକ୍ଷା ନାଟ୍ୟକାରର ପରିଚୟ ରତ୍ନାକରଙ୍କ ପ୍ରତିଭା ସହ ଠିକ୍ ନ୍ୟାୟ କରିପାରିଛି । ନାଟ୍ୟକାର ଭାବରେ ତାଙ୍କୁ ମିଳିଛି ଯଥେଷ୍ଟ ସମ୍ମାନ ଓ ଅଜସ୍ର ପ୍ରତିଷ୍ଠା । ସେହି ଆତ୍ମ-ବିଶ୍ଵାସରେ ସେ ପାଠକ ତଥା ଦର୍ଶକଙ୍କୁ ଦେଇ ଚାଲିଲେ ଗୋଟିଏ ପରେ ଗୋଟିଏ ସଫଳ ନାଟକ ଓ ଏକାଙ୍କିକା ।

ତାଙ୍କର ପ୍ରଥମ ନାଟକ ‘ଅସ୍ତରାଗର ଚନ୍ଦ୍ର’ ୧୯୬୫ ମସିହାରେ ଆତ୍ମପ୍ରକାଶ କରେ । ୟାପରେ ଆଉ ପଛକୁ ଦେଖିନାହାନ୍ତି ରତ୍ନାକର ଚଇନି । ‘ଶେଷ ଅଶ୍ରୁ’, ‘ରାଜହଂସ’, ‘ମଞ୍ଚ ନାୟିକା’, ‘ପୁନଶ୍ଚ ପୃଥ‌ିବୀ’, ‘ରଙ୍ଗତରଙ୍ଗ’, ‘ଅପଦେବତା’, ‘କଳଙ୍କିତ ସୂର୍ଯ୍ୟ’, ‘ଅନ୍ଧାରର ସୂର୍ଯ୍ୟମୁଖୀ’, ‘ମୁଖା’, ‘ଅନେକ କ୍ୟାକ୍‌ଟସ୍’, ‘ଅସ୍ଥିର ଉପତ୍ୟକା’, ‘ଆସ ବୃନ୍ଦାବନ’, ‘ଅଥଚ ଚାଣକ୍ୟ’, ‘ନାଗଫେଣୀ ଋତୁ’, ‘ଯକ୍ଷ ଚରିତ’, ‘ସୁନାକଳସ’, ‘ଶୂନ୍ୟପଞ୍ଜୁରୀ’, ‘ବ୍ୟାକୁଳ ବସନ୍ତ’, ‘ଆଜି ଶୁକ୍ରବାର’, ‘ଆମେ’, ‘ଖୋଲା ଆକାଶ’, ‘ଶୂନ୍ୟତାର ଶିଡ଼ି’, ‘କନ୍ୟାକୁମାରୀ’, ‘ନିଷ୍ପ୍ରଭ ଆଲୋକ’ ପ୍ରଭୃତି ନାଟକ, ଛୋଟ ନାଟକ, ଏକାଙ୍କିକା ସୃଷ୍ଟି କରି ଓଡ଼ିଆ ନାଟ୍ୟସାହିତ୍ୟକୁ ସେ ଋଦ୍ଧିମନ୍ତ କରିଛନ୍ତି ।

ନାଟ୍ୟକାର ଚଇନି ଜଣେ ନିରବଚ୍ଛିନ୍ନ ସାହିତ୍ୟ ସାଧକ, ସାହିତ୍ୟ ଅଧ୍ୟାପକ, ଔପନ୍ୟାସିକ, କବି ଓ ଗାଳ୍ପିକ । ଏହା ବ୍ୟତୀତ ଜଣେ ପ୍ରଜ୍ଞାଦୀପ୍ତ ଗବେଷକ ଭାବରେ ତାଙ୍କର ଯଥେଷ୍ଟ ସୁଖ୍ୟାତି ରହିଅଛି । ତାଙ୍କର ଗବେଷଣା ପ୍ରସୂତ ଜ୍ଞାନରୁ ଉଉତ୍ପତ୍ତିଲାଭ କରିଛି ଅନେକ ସମାଲୋଚନା ଗ୍ରନ୍ଥ । ପ୍ରକୃତରେ ଓଡ଼ିଆ ନାଟ୍ୟ ସାହିତ୍ୟ କ୍ଷେତ୍ରରେ କେବଳ ନୁହେଁ, ବରଂ ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟର ବିଭିନ୍ନ ବିଭାଗରେ ରତ୍ନାକରଙ୍କ ପ୍ରତିଭା ତାଙ୍କ ମହନୀୟତାକୁ ପ୍ରକାଶ କରିପାରିଛି ।

ନାଟକର ସଂକ୍ଷିପ୍ତ କଥାବସ୍ତୁ :
ନାଟ୍ୟକାର ଡଃ ରତ୍ନାକର ଚଇନିଙ୍କର ଅନେକ ସଫଳ ନାଟ୍ୟକୃତି ମଧ୍ୟରୁ ଆଲୋଚ୍ୟ ‘ରାଜହଂସ’ ହେଉଛି ଅନ୍ୟତମ ପରୀକ୍ଷାମୂଳକ ଓ ମନସ୍ତାତ୍ତ୍ଵିକ ନାଟକ । ଏଥ‌ିରେ ସ୍ରଷ୍ଟା ଯେଉଁ କେତୋଟି ଚରିତ୍ର ନେଇଛନ୍ତି ସେମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ଜଣେ ସର୍ବହରା ମଦ୍ୟପ ବ୍ୟବସାୟୀ, ଜଣେ ଅର୍ଦ୍ଧପାଗଳ ବିଜ୍ଞାନ ଗବେଷକ ପ୍ରଫେସର, ଜଣେ ମୂକ ମିଲିଟାରୀ କର୍ମଚାରୀ, ପ୍ରେମ ପରିତ୍ୟକ୍ତ ଜଣେ ପାଗଳ ଅଭିନେତା ଓ ପ୍ରେମ ପାଗଳିନୀ ଜଣେ ଭାଓଲିନ୍ ବାଦିକା ତଥା କବିତାନୁରାଗୀ ଅନ୍ୟତମ ।

ଏହିସବୁ ଚରିତ୍ରକୁ ନାଟ୍ୟକାର ମନସ୍ତାତ୍ତ୍ଵିକ ଦୃଷ୍ଟିକୋଣରୁ ଉପସ୍ଥାପନ କରିଅଛନ୍ତି । ଏହି ନାଟକର ବିଶେଷତ୍ଵ ଯେ ଏହା ଏକମାତ୍ର ସେଟ୍ ଉପରେ ହିଁ ଆଧାରିତ । ସମ୍ପୃକ୍ତ ନାଟକଟି ୧୯୬୯ ମସିହା ଏପ୍ରିଲ୍ ୨୨ ତାରିଖରେ ପ୍ରଥମ ଥର ପାଇଁ ଅଭିନୀତ ହୋଇ ବେଶ୍ ପ୍ରଶଂସିତ ହୋଇଥିଲା ଓ ସଫଳତା ଲାଭ କରିଥିଲା । ଖାଲି ସେତିକି ନୁହେଁ ୧୯୭୦ ମସିହାରେ ମଧ୍ୟ ଏହା ଗ୍ରନ୍ଥ ଭାବରେ ପ୍ରକାଶ ପାଇ ବେଶ୍ ପାଠକୀୟ ଆଦୃତି ଲାଭ କରିଥିଲା ।

ପୁନଶ୍ଚ ‘ରାଜହଂସ’ ୧୯୭୨ ମସିହାରେ ସର୍ବଭାରତୀୟ ସିଭିଲ୍ ସର୍ଭିସ୍ ନାଟକ ପ୍ରତିଯୋଗିତାରେ ଅଭିନୀତ ହୋଇ ସର୍ବଶ୍ରେଷ୍ଠ ନାଟକ ଭାବରେ ବିବେଚିତ ହୋଇଥିଲା । ‘ରାଜହଂସ’ର ବିଷୟବିନ୍ୟାସ ଆଦୌ ଅତି ନାଟକୀୟ ନୁହେଁ । ମନସ୍ତାତ୍ତ୍ଵିକ ଦୃଷ୍ଟିକୋଣରୁ ଯାହା ବାସ୍ତବ ଜଗତରେ ସତ୍ୟ, ନାଟ୍ୟକାର ଏହି ନାଟକରେ ତାହାକୁ ପ୍ରକାଶ କରିଅଛନ୍ତି ।

ଆମେରିକା ଫେରନ୍ତା ମନସ୍ତାତ୍ତ୍ଵିକ ଡାକ୍‌ର ଅତନୁଙ୍କର ମାନସିକ ଚିକିତ୍ସା କେନ୍ଦ୍ର, ଯାହା ଦଣ୍ଡକାରଣ୍ୟର ଅନତି ଦୂରରେ ଛବିଳ ଆରଣ୍ୟକ ସୁଷମା ଭିତରେ ପ୍ରତିଷ୍ଠିତ ତାହାହିଁ ହେଉଛି ଉକ୍ତ ନାଟକର କ୍ଷେତ୍ରସ୍ଥଳ ।

ଏହି ଚିକିତ୍ସାକେନ୍ଦ୍ରର ମୁଖ୍ୟ ହେଉଛନ୍ତି ଡାକ୍ତର ଅତନୁ । ଏହି କାର୍ଯ୍ୟରେ ତାଙ୍କୁ ସାହାଯ୍ୟ କରିବାକୁ ସିଷ୍ଟର ସାବିତ୍ରୀ, ହରି ଓ ଅଇଁଠା ଭାଇନା ରହିଛନ୍ତି । ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କର ବନ୍ଧୁ ଜୟନ୍ତୁ ଓ ଜୟନ୍ତଙ୍କ ପତ୍ନୀ ରୀତା ମଧ୍ୟ ଏହି ଡାକ୍ତରଖାନାରେ ଅତନୁଙ୍କ ନିକଟରେ ଚିକିତ୍ସିତ ହେଉଛନ୍ତି ।

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 4 ରାଜହଂସ Question Answer

ମଦ୍ୟପ ଓ ବ୍ୟବସାୟୀ ପିନାକୀଙ୍କର କିଶୋରୀ କନ୍ୟା ଦେବୀ ମଧ୍ୟ ଏହି ଡାକ୍ତରଖାନାରେ ଚିକିତ୍ସିତ ତଥା ଉପସ୍ଥିତ ରହିଛି । ଅତନୁ କବି, ମେଧାବୀ ଓ ଦରିଦ୍ର । କବିତା ରଚନା ନିଶା ଥିଲାବେଳେ ଡାକ୍ତରି ତାଙ୍କର ପେସା । ଅତନୁ ଲେଖିଛନ୍ତି ରାଶିରାଶି କବିତା ମାତ୍ର ତାହା ନିଜ ନାଁରେ ପ୍ରକାଶ କରିନାହାନ୍ତି । ପଇସା ଅଭାବରୁ ଆମେରିକା ପଢ଼ିବାକୁ ଯିବା ଅତନୁଙ୍କ ପାଇଁ ଅସମ୍ଭବ ହୋଇ ପଡ଼ିଥିଲାବେଳେ ବନ୍ଧୁ ଜୟନ୍ତ ସହାଯ୍ୟର ହାତ ବଢ଼ାଇଛନ୍ତି ଏବଂ ଅତନୁଙ୍କ ଆମେରିକା ଯିବାର ଓ ସେଠାରେ ମାନସିକ ଚିକିତ୍ସା ଅଧ୍ୟୟନ କରିବାର ସ୍ଵପ୍ନକୁ ସାକାର କରାଇଛନ୍ତି ।

ଅନ୍ୟପକ୍ଷରେ ଅତନୁ ଲେଖୁଥିବା କବିତାସବୁ ଧୂର୍ଜଟୀ ଛଦ୍ମ ନାମରେ ପ୍ରକାଶିତ ହୁଏ ଏବଂ ଏହି ଧୂର୍ଜଟୀ ପରିଚୟ ଜୟନ୍ତ ନେଇ ବେଶ୍ ପ୍ରତିଷ୍ଠା ଲାଭ କରନ୍ତି । ସର୍ଭ ହୁଏ ଅତନୁର ସବୁ କବିତା ଜୟନ୍ତର ପରିଚୟ ହେବ । ଜୟନ୍ତ ବୃତ୍ତିରେ ଜଣେ କୋଟିପତି ବ୍ୟବସାୟୀ ହୋଇ କବିତାର ଧାର ନ ଧରି ବି ଜଣେ କବିର ପରିଚୟ ପାଇଯାଏ; ମାତ୍ର ଅସଲ କବି ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ଅନ୍ତରାଳରେ ରହିଯାଏ ।

ଅତନୁ ଆମେରିକାରୁ ଉଚ୍ଚଶିକ୍ଷା ଲାଭ କରି ଜଣେ ବିଶିଷ୍ଟ ମନସ୍ତାତ୍ତ୍ଵିକ ଡାକ୍ତର ହୋଇ ଫେରିଆସିଛି ଭାରତକୁ ତଥା ଓଡ଼ିଶାକୁ । ସେ କୌଣସି ସରକାରୀ ଡାକ୍ତର ଭାବେ ଚାକିରି ନ କରି ଦଣ୍ଡକାରଣ୍ୟ ନିକଟରେ ଏକ ମାନସିକ ଚିକିତ୍ସା କେନ୍ଦ୍ର ଖୋଲି ଏଠାରେ ସ୍ୱାଧୀନ ଭାବରେ ନିଜର ଡାକ୍ତରି ବ୍ୟବସାୟ ଆରମ୍ଭ କରିଛନ୍ତି । ଅତନୁଙ୍କ ନିଷ୍ଠା ଓ ଆନ୍ତରିକତାପୂର୍ଣ୍ଣ ଉଦ୍ୟମଦ୍ୱାରା ଖୁବ୍ ଶୀଘ୍ର ତାଙ୍କର ଖ୍ୟାତି ବଢ଼େ । ବହୁ ମାନସିକ ବିକାରଗ୍ରସ୍ତ ରୋଗୀ ଏଠାରେ ଚିକିତ୍ସିତ ହେବାକୁ ଆସି ସୁସ୍ଥ ହୋଇ ଫେରନ୍ତି ।

ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ଦେହ ନୁହେଁ ବରଂ ମନକୁ ବିଶ୍ଳେଷଣ କରି ଚିକିତ୍ସା କରନ୍ତି । ଅତନୁ ଜୀବନରେ ଦୁଇଟି କର୍ମ ଗୋଟିଏ ହେଉଛି ରୋଗୀସେବା ଓ ଅନ୍ୟଟି ନିରବଚ୍ଛିନ୍ନ ଭାବରେ କବିତା ରଚନା କରିବା । ଅତନୁର କବିତା କିନ୍ତୁ ଜୟନ୍ତର ସମ୍ପତ୍ତି । କବି ଭାବରେ ପ୍ରତିଷ୍ଠିତ ହୁଏ ଜୟନ୍ତ । ଜୟନ୍ତର ଏଇ ପରିଚୟ ପ୍ରତି ଆକୃଷ୍ଟ ହୋଇ ରୀତା ଜୟନ୍ତକୁ ବିବାହ କରେ ।

ରୀତା ବିବାହ ପରେ ଜାଣିପାରେ ଜୟନ୍ତ କେବଳ ନାମକୁ ମାତ୍ର କବି, କବିତ୍ବର ଅସଲ ଗୁଣ ତାଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ଅନୁପଲବ୍ଧ । ସନ୍ଦେହ ହୁଏ ରୀତାର । ତା’ ମନରେ ପ୍ରଶ୍ନ ଜୟନ୍ତ ଯଦି ସୁକୁମାର କବିତ୍ଵର ଅଧିକାରୀ ତେବେ ଅର୍ଥ ଓ ପ୍ରତିପତ୍ତି ପାଇଁ ଜୟନ୍ତ ଏତେ ଆଶାୟୀ କାହିଁକି ? ଏହି ପ୍ରଶ୍ନର ସମାଧାନ ନ କରିପାରି ରୀତା ମାନସିକ ଭାରସାମ୍ୟ ହରାଇ ଚିକିତ୍ସିତ ହୁଏ ଅତନୁଙ୍କ ପାଖରେ । ତା’ ମନର ନିଭୃତ କାରୁଣ୍ୟକୁ ସେ ଭାଓଲିନ୍‌ର ସୂକ୍ଷ୍ମତନ୍ତ୍ରୀରେ ହିଁ ଧ୍ଵନିତ କରେ । ଜୟନ୍ତର ନାମ ଶୁଣିଲେ ସେ ଅଧିକ କ୍ରୋଧ ପ୍ରକାଶ କରେ । ଜୟନ୍ତର ବାସ୍ତବତାକୁ ନେଇ ରୀତାର କଳ୍ପନା ତଥା ସ୍ଵପ୍ନ ହୁଏ ଆହତ । ସେ ଯେଉଁଥିପାଇଁ ଜୟନ୍ତର ହାତ ଧରିଥିଲା ସେ ଭାବନା ଭାଙ୍ଗି ଚୁମାର ହୋଇଯାଇଛି । ବନ୍ଧୁ ଜୟନ୍ତର ଅନୁରୋଧରେ ଅତନୁ ରୀତାକୁ ବିଶ୍ଳେଷଣ କରିଛି । ଏହି ଚିକିତ୍ସାକେନ୍ଦ୍ରରେ ରୀତାର ମାନସିକ ବିଭ୍ରାନ୍ତିର ସୂତ୍ର ଧରିଛି ଅତନୁ ।

ଅତନୁଙ୍କ ମାନସିକ ଚିକିତ୍ସାକେନ୍ଦ୍ରରେ ଅନ୍ୟତମ ରୋଗୀ ପିନାକୀ, ଯିଏ ବ୍ୟବସାୟରେ ଲକ୍ଷାଧ୍ଵକ ଟଙ୍କା କ୍ଷତି ସହିଲା ପରେ ମାନସିକ ଭାରସାମ୍ୟ ହରାଇଛନ୍ତି । ଏହି ମାନସିକ ବିକଳତାକୁ ଦୂରେଇବାପାଇଁ ସେ ମଦ୍ୟପାନ କରିଛନ୍ତି । ଏମିତିକି ଅତନୁଙ୍କ ମନା କରିବା ସତ୍ତ୍ଵେ ସେ ଡାକ୍ତରଖାନାର ସହକର୍ମଚାରୀ ହରି ହାତରେ ମଗାଇ ପିଇଛନ୍ତି । ଫଳରେ ଅତନୁ ବାଧ୍ୟ ହୋଇ ମାନସିକ ସ୍ଥିରତା ଆଣିବା ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ ପିନାକୀଙ୍କ ପାଇଁ କିଛି ମଦ ଯୋଗାଡ଼ କରିଛନ୍ତି । ଏହି ମଦକୁ ପିଇଲା ପରେ ପିନାକୀ ଖୁବ୍ ଯନ୍ତ୍ରଣା ଅନୁଭବ କରିଛି ।

ଏହି କାରଣରୁ ପିନାକୀ ମରିଯିବାକୁ ଚାହିଁଛି । ଜୀବନପ୍ରତି ବିତୃଷ୍ଣା ଆସିଯାଇଥିବା ପିନାକୀକୁ ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ଆଶ୍ୱାସନା ଦେଇ ବୁଝାଇଛନ୍ତି ଯେ ସେ ଖୁବ୍ ଶୀଘ୍ର ଆରୋଗ୍ୟ ଲାଭ କରିବେ । ପୁଣି ପୂର୍ବପରି ଲକ୍ଷ ଲକ୍ଷ ଟଙ୍କା ରୋଜଗାର କରିବେ । ଫଳରେ ପିନାକୀ ଆଖିରେ ଆଶାର ଇନ୍ଦ୍ରଧନୁ ଝଲସି ଉଠିଛି ।

ଅତନୁଙ୍କ ଚିକିତ୍ସାକେନ୍ଦ୍ରରେ ଆଉ ଜଣେ ରୋଗୀ ପ୍ରଫେସର ପରିଜା, ଯିଏ ଜଣେ ବୈଜ୍ଞାନିକ ତଥା ଗବେଷକ । ଚନ୍ଦ୍ରପୃଷ୍ଠକୁ ଯିବା ନିଜ ଥୁଓରି ସମସ୍ତଙ୍କୁ ଜଣେଇଛନ୍ତି । ଜଣେ ବୟସ୍ତ ଓ ଅଭିଜ୍ଞ ଚରିତ୍ର ଭାବରେ ମଣିଷକୁ ଓ ତା’ର ସଭ୍ୟତା ତଥା ସମାଜକୁ ଦେଖିବାର ଅଭିନବତା ପ୍ରକାଶ ଭିତରେ ନାଟ୍ୟକାର ଅନେକ ତାତ୍ତ୍ଵିକ କଥା ଉଲ୍ଲେଖ କରିଛନ୍ତି । କଥାବସ୍ତୁର ବିକାଶରେ ଏଇ ଚରିତ୍ରର ଭୂମିକା ବେଶ୍ ଗୁରୁତର । ତାଙ୍କର ମାନସିକ ବିକାରକୁ ଅନୁସନ୍ଧାନ କରିଲା ପରେ ଅତନୁ ଜାଣିପାରିଛନ୍ତି ଯେ ପ୍ରଫେସର ଚନ୍ଦ୍ରପୃଷ୍ଠକୁ ଯିବାପାଇଁ ବୈଜ୍ଞାନିକ ଯନ୍ତ୍ର ଉଦ୍‌ଭାବନ କରିଲାବେଳେ ତାଙ୍କର ସହକାରୀ ବନ୍ଧୁଙ୍କ ବିଶ୍ୱାସଘାତକତାର ଶିକାର ହୋଇଛନ୍ତି । ଫଳତଃ ତାଙ୍କର ଏହି ଅବସ୍ଥା ।

ଏହି ନାଟକଟିର ଅନ୍ୟ ଏକ ଚରିତ୍ର ହେଉଛି ବେବୀ, ଯିଏ ମଦ୍ୟପ ବ୍ୟବସାୟୀ ପିନାକୀର ଏକମାତ୍ର ଝିଅ । ସେ ସମସ୍ତ ରୋଗୀଙ୍କ ପ୍ରିୟପାତ୍ରୀ । ଗୀତ ଗାଇବା ଓ ପିଲାଳିଆମିକୁ ନେଇ ସେ ଅନ୍ୟମାନଙ୍କୁ ଆକର୍ଷିତ କରିଛି । ବାପା ପିନାକୀକୁ ଭଲ କରିଦେବାପାଇଁ ସେ ଅତନୁଙ୍କୁ ଅନୁରୋଧ କରିଛି । ଏହି କଥାରେ ଅତନୁ ମଧ୍ଯ ତାକୁ ଆଶ୍ୱାସନା ଦେଇଛନ୍ତି ଯେ ଯେମିତି ହେଲେ ପିନାକୀଙ୍କୁ ରୋଗମୁକ୍ତ କରାଇବେ ।

ଏହାପରେ ଅତନୁଙ୍କର ଚିକିତ୍ସାକେନ୍ଦ୍ରରେ ଆସି ପହଞ୍ଚିଛନ୍ତି ଜଣେ ମୂକ ମିଲିଟାରୀ କର୍ମଚାରୀ ବୀର । ଯୁଦ୍ଧରେ ନିଜ କହିବା ଶକ୍ତି ହରାଇ ସାରା ଭାରତ ବୁଲି ଆସିଛନ୍ତି ବୀର । ଅଥଚ ଅର୍ଦ୍ଧପାଗଳ କହି ଅପନିନ୍ଦାରେ ସେ ଫେରିଛନ୍ତି; ମାତ୍ର ଭଲ ହେବାର ଆଶା ଦେଖିନାହାନ୍ତି । ଯେତେବେଳେ ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କ ପାଖରେ ଚିକିତ୍ସିତ ହୋଇଛନ୍ତି ସେତେବେଳେ ତା’ର ସୁଚିକିତ୍ସାରେ ସେ ଆରୋଗୀ ଲାଭ କରିଛନ୍ତି ।

‘ରାଜହଂସ’ ନାଟକର ପ୍ରଥମାର୍ଦ୍ଧରେ ଶେଷବେଳକୁ ରୀତା ମାନସିକ ବିକାରକୁ ବୁଝିପାରିଛନ୍ତି । ଜୟନ୍ତ ସହ ତାଙ୍କ ସ୍ତ୍ରୀ ରୀତା ସମ୍ପର୍କର ପ୍ରକୃତ ରହସ୍ୟ । ତେବେ ନାଟକର ଦ୍ୱିତୀୟାର୍ଦ୍ଧରେ ହିଁ ଘଟିଛି ଅନେକ ଘଟଣା । ସୁସ୍ଥ ହୋଇଛନ୍ତି ଅନେକ ମାନସିକ ବିକାର ରୋଗୀ । ମୂକ ମିଲିଟାରୀ ଅଫିସର କଥା କହିଛନ୍ତି । ଅର୍ଦ୍ଧପାଗଳ ଅଭିନେତା ଭୀମାର ମାନସିକ ବିକାରକୁ ସିଷ୍ଟରଦ୍ଵାରା ଆରୋଗ୍ୟ ପ୍ରଚେଷ୍ଟା କରାଯାଇଛି ।

ଅନ୍ୟପକ୍ଷରେ ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ବହୁ ଶ୍ରମ ଓ ପ୍ରଚେଷ୍ଟା ବ୍ୟର୍ଥ ହୋଇଛି । ବ୍ୟବସାୟୀ ପିନାକୀଙ୍କୁ ବଞ୍ଚେଇବାରେ ସମର୍ଥ ହୋଇନାହାନ୍ତି । ନିଜକୁ ଦୋଷୀ ବୋଲି ଭାବିଛନ୍ତି ଅତନୁ । ବେବୀଙ୍କୁ ଦେଇଥିବା କଥା ରଖ୍ ନ କାରିବାରୁ ମନେମନେ ଭାଙ୍ଗିପଡ଼ିଛନ୍ତି ଅତନୁ ।

ଅତନୁ ଚରମ ବ୍ୟର୍ଥତାରେ ଯେମିତି ଘୋର ଯନ୍ତ୍ରଣା ଅନୁଭବ କରିଛନ୍ତି । ସମସ୍ତଙ୍କୁ ନିଜଠାରୁ ଦୂରେଇ ନେଇ ସେ ଏକାକୀ ବସି ଚିନ୍ତାମଗ୍ନ ହୋଇଛନ୍ତି । ଏହି ଯନ୍ତ୍ରଣାକ୍ତ ମୂହୂର୍ତ୍ତରେ ତାଙ୍କ ପାଖକୁ ଆସିଛନ୍ତି ବନ୍ଧୁ ଜୟନ୍ତ । ଜୟନ୍ତ ଅତନୁଙ୍କୁ ଜଣାଇଛନ୍ତି ଯେ କବିତା ସଙ୍କଳନ ‘ଶତଦଳ’ ଏଥର ବାଣୀପୀଠ ପୁରସ୍କାର ସ୍ଵରୂପ ଏକ ଲକ୍ଷ ଟଙ୍କା ପାଇଛି । ଜୟନ୍ତ ଅନୁଭବ କରିଛନ୍ତି ଅତନୁ କ୍ରମେ ଅସହିଷ୍ଣୁ ହୋଇପଡୁଛନ୍ତି । ୟାପରେ ଜୟନ୍ତ ଅତନୁ ଓ ତା’ ମଧ୍ୟରେ ଥିବା ସମ୍ବନ୍ଧର ଅତୀତଟାକୁ ଉନ୍ମୋଚନ କରିଛି । ଅତନୁ ଥୁଲା ନିସ୍ଵ ଓ ପରେ କେମିତି ସେ ଏତେ ବାଟ ଆସିଛି ସେକଥା ଜୟନ୍ତ ପ୍ରକାଶ କରିଛି ।

ଅତନୁର ବଡ଼ ପରିଚୟ ସେ ଡାକ୍ତର । ଏଣୁ ଡାକ୍ତର ହୋଇ କବି ହେବା କଥାକୁ କେହି ବିଶ୍ୱାସ କରିବେ ନାହିଁ । ଜୟନ୍ତ ନାଁରେ ତେଣୁ ବାହାରୁଥିବା କବିତା ହିଁ ଲେଖୁଥିଲା ଅତନୁ । ଏ ରହସ୍ୟ କେବଳ ଅତନୁ ଜାଣେ । ଏହି ରହସ୍ୟ ଯଦି ଦୁନିଆ ଜାଣିବ ତେବେ ଜୟନ୍ତର ଅବସ୍ଥା କ’ଣ ହେବ ! ଅତନୁ ଏଥ‌ିରେ କ୍ଷୁଣ୍ଣ ହୋଇଛି, ସେ ଜଣାଇଛି ଯେ ‘ଲୁହ ନ ଥୁଲେ ହସର ମୂଲ୍ୟ କେହି ବୁଝନ୍ତି ନାହିଁ ।’ କିନ୍ତୁ ଜୟନ୍ତ ଜଣାଇଛନ୍ତି ଯେ ଆସନ୍ତାକାଲି ସେ କବି ଭାବରେ ସେ ସମ୍ବନ୍ଧିତ ହେବ ।

ଏହି ସଭାରେ ଜୟନ୍ତ ଗଳାରେ ଅତନୁ ପ୍ରଥମ କରି ଫୁଲହାର ପିନ୍ଧାଇଦେବ । ସ୍ବାମୀ ଭାବରେ ଜୟନ୍ତର ଏହି ବିୟୋତ୍ସବରେ ଯୋଗ ଦେବା ପାଇଁ ଚିକିତ୍ସିତ ହେଉଥ‌ିବା ରୀତାକୁ ସାଙ୍ଗରେ ନେବ ବୋଲି ଜୟନ୍ତ ଅତନୁକୁ ଜଣାଇ ସେଠାରୁ ପ୍ରସ୍ଥାନ କରିଛି ।

ଜୟନ୍ତର କଥା ଶୁଣି ଅତନୁ ବେଶ୍ ବିବ୍ରତ ହୋଇପଡ଼ିଛି । ମାତ୍ର ଏହି ସମୟରେ ସେହି ଘର ଭିତରକୁ ପ୍ରବେଶ କରିଛି ରୀତା । ଅନ୍ତରାଳରୁ ସବୁ ଶୁଣି ବୁଝିପାରିଛି ଅସଲ ରହସ୍ୟ । ତେଣୁ ସେ ଜାଣିନେଇଛି ଯେ ଅସଲ କବି ଜୟନ୍ତ ନୁହେଁ ଡାକ୍ତର ଅତନୁ । ଜୟନ୍ତ କେବଳ ଛଳନା କରିଛି ମିଛ କବି ଭାବରେ । ରୀତା ଅତନୁଙ୍କୁ କବି ବୋଲି ସମ୍ବୋଧନ କରି ତା’ର ଏହି ମାନସିକ ବିକାର ପାଇଁ ସେ ଅତନୁଙ୍କୁ ଦାୟୀ କରିଛି ।

ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ରୀତାକୁ ନୀରବ ରହିବାକୁ ଅନୁରୋଧ କରିଛି । କବି ସେ ନୁହେଁ ବରଂ ଜୟନ୍ତ ବୋଲି ଜଣାଇଛି । ରୀତା କହିଛି, ଏଇ ଦୁନିଆକୁ ଜଣେଇଦେବ ଅସଲ କବି ଧୂର୍ଜଟୀ ଜୟନ୍ତ ନୁହେଁ ବରଂ ଡାକ୍ତର ଅତନୁ । ଫଳରେ ଉତ୍‌କ୍ଷିପ୍ତ ହୋଇ ଡାକ୍ତର ଅତନୁ ରୀତାଙ୍କୁ ଚାପୁଡ଼ା ମାରିଛନ୍ତି । କ୍ଷଣ୍ଢକ ପାଇଁ ଯେମିତି ଦୁହେଁ ସ୍ତବ୍ଧ ହୋଇ ଉଠିଛନ୍ତି । ପରେ ଏପରି ଅପ୍ରୀତିକର ଘଟଣା ହେତୁ ରୀତା ନିକଟରେ କ୍ଷମା ପ୍ରାର୍ଥନା କରିଛନ୍ତି ଅତନୁ ।

ରୀତା ଝଡ଼ବେଗରେ ସେଠାରୁ ପଳାଇ ଯାଇଛନ୍ତି । ରୀତା ଚାଲିଯିବା ପରେ ଅତନୁର ମାନସିକ ବିକୃତି ଦେଖାଦେଇଛି । ଅତନୁର କାନରେ ରୀତା ଓ ଜୟନ୍ତର ପ୍ରତିଟି ସଂଳାପର ସ୍ବର ପ୍ରତିଧ୍ଵନିତ ହେବାକୁ ଲାଗିଲା । ଭାରସାମ୍ୟ ହରାଇ ଟେବୁଲ ଉପରେ ହଠାତ୍ କଚାଡ଼ି ହୋଇପଡ଼ିଛି ଅତନୁ । ଶେଷ ହୋଇଛି ତା’ର ଜୀବନ ।

ପରଦିନ ଏଇ ଖବର ଡାକ୍ତରଖାନାରେ ଶୋକର ବାତାବରଣ ଖେଳାଇ ଦେଇଛନ୍ତି । ପ୍ରଫେସର ପରିଜା ସୁସ୍ଥ ହୋଇ ବିଦାୟ ନେବାକୁ ଆସିଛନ୍ତି । ମାତ୍ର ସମସ୍ତେ ଚକିତ ହୋଇପଡ଼ିଛନ୍ତି ଅତନୁଙ୍କ ମୃତ୍ୟୁରେ ।

ସବୁରି ମନରେ ଭରିଯାଇଛି ଅସମାପ୍ତ ବିଷଣ୍ଣତା । ରୀତା ଅତନୁର ଏପରି ଅବସ୍ଥା ବିଷୟରେ ଜାଣିପାରି କାନ୍ଦିକାନ୍ଦି ଫେରିଯାଇଛି ଏବଂ ଭାଓଲିନ୍‌ରେ ତା’ର ଭରିଦେଇଛି କରୁଣ ସ୍ବର ମୂହଁନା । ଜୟନ୍ତ ଆସିଛି ଏବଂ ତା’ର ବନ୍ଧୁର ଏପରି ଅବସ୍ଥାରେ ମର୍ମାହତ ହୋଇଉଠିଛି । ଜୟନ୍ତ କବି ଧୂର୍ଜଟୀର ଅସଲ ରହସ୍ୟ ଆଜି ଉଦ୍‌ଘାଟିତ କରିଥା’ନ୍ତା ବୋଲି ଚିନ୍ତା କରିଥିଲା ବୋଲି କହିଛି । ଅଥଚ ଅତନୁ ତାକୁ ଠକି ଦେଇ ଚାଲିଗଲା ।

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 4 ରାଜହଂସ Question Answer

ପ୍ରଫେସର କହିଛନ୍ତି ମାନସରୋବର ଛାଡ଼ି ହଂସ ଉଡ଼ିଯାଇଛି । ଡାକ୍ତର ଅତନୁଙ୍କର ଆକସ୍ମିକ ମୃତ୍ୟୁରେ ସମସ୍ତେ ଶୋକାକୁଳିତ ହୋଇଉଠିଛନ୍ତି । ଶୋକ ଓ କାରୁଣ୍ୟ ଭିତରେ ପଡ଼ିଯାଇଛି ‘ରାଜହଂସ’ର ଯବନିକା ।

ନାଟକ ‘ରାଜହଂସ’ରେ ନାଟ୍ୟକାର ମଣିଷ ମନର ଅବଚେତନ ସ୍ତକୁ ବିଶ୍ଳେଷଣ କରିଛନ୍ତି । ଏଥ‌ିରେ ଗ୍ରହଣ କରିଥିବା ମୁଖ୍ୟ ଚରିତ୍ରଗୁଡ଼ିକର ଅବଚେତନ ଚିତ୍ତକୁ ବିଶ୍ଳେଷଣ କରିଛନ୍ତି । ଏମାନଙ୍କ ଭିତରୁ ପିନାକୀବାବୁ ଧନ ହରାଇ ପାଗଳ ହୋଇଛନ୍ତି, ପ୍ରଫେସର ସହକର୍ମୀର ବିଶ୍ଵାସଘାତକତାରେ ପାଗଳ ହୋଇଛନ୍ତି, ମିଲିଟାରୀ ଅଫିସର ଯୁଦ୍ଧରେ ମୁକ ହୋଇଛନ୍ତି, ରୀତା ଓ ଭୀମା ପ୍ରେମର ବ୍ୟର୍ଥତାକୁ ନେଇ ମାନସିକ ଭାରସାମ୍ୟ ହରାଇଛନ୍ତି । ନାଟ୍ୟକାର ଏସବୁ ଚରିତ୍ରକୁ ଅତି ସାବଧାନତାର ସହ ଅବତାରଣ କରିଛନ୍ତି ।

‘ରାଜହଂସ’ ନାଟକରେ ବିଭିନ୍ନ ମଣିଷର ମାନସିକ ବୃତ୍ତିର ସୂକ୍ଷ୍ମାତିସୂକ୍ଷ୍ମ ବିଶ୍ଳେଷଣ କରାଯାଇଛି । ମନ ହେଉଛି ସବୁ ଇନ୍ଦ୍ରିୟମାନଙ୍କ ଉପରେ ରାଜା । ମନ ବି ହଂସ ଓ ପ୍ରାଣ । ମାନସିକ ଚିକିତ୍ସାକେନ୍ଦ୍ର ରୂପ ସରୋବରରେ ମନ ରୂପକ ହଂସ ଖେଳିଛି । ଅତନୁର ଶରୀର ସରରୁ ଉଡ଼ିଯାଇଛି ପ୍ରାଣ ହଂସ । ନାଟ୍ୟକାର ଏହି ନାଟକଟିକୁ ଗୋଟିଏ ସେଟ୍‌ରେ ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛନ୍ତି ।

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 2 ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ Question Answer

Odisha State Board Plus Two First Year Optional Odia Question Answer Chapter 2 ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ Textbook Exercise Questions and Answers.

Plus Two First Year Optional Odia Chapter 2 ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ Question Answer

ପାଠ୍ୟପୁସ୍ତକସ୍ଥ ନମୁନା ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ ଓ ଉତ୍ତର

(କ) ୧ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ସମ୍ଭାବ୍ୟ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ ।

Question 1.
ଧାଡ଼ି ଧାଡ଼ି ଶିବିର କେଉଁଠି ଶୋଭା ପାଉଥିଲା?
(କ) ମହାନଦୀ ତୀରରେ
(ଖ) ଦୟାନଦୀ ତୀରରେ
(ଗ) କୁଶଭଦ୍ରା ତୀରରେ
(ଘ) କାଠଯୋଡ଼ି ତୀରରେ
Answer:
(ଘ) କାଠଯୋଡ଼ି ତୀରରେ

Question 2.
ଶୁଭ୍ର ତନ୍ତୁଗୁଡ଼ିକ କିପରି ଶୋଭା ପାଉଥିଲା?
(କ) ଖଡ଼ି ଶୈଳ ପରି
(ଖ) ହିମ ଶୈଳ ପରି
(ଗ) ତୁଷାର ଶୈଳ ପରି
(ଘ) ବରଫ ଶୈଳ ପରି
Answer:
(କ) ଖଡ଼ି ଶୈଳ ପରି

Question 3.
ବାଦିତ୍ର ଶବ୍ଦରେ କ’ଣ ପ୍ରକମ୍ପିତ ହେଉଥିଲା?
(କ) ଆକାଶ
(ଖ) ପାତାଳ
(ଗ) ଅବନୀ
(ଘ) ସାଗର
Answer:
(ଗ) ଅବନୀ

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Question 4.
ଦାସେରକ ଶବ୍ଦର ଅର୍ଥ କ’ଣ?
(କ) ବାର୍‌ହା
(ଖ) ଭାଲୁ
(ଗ) ଓଟ
(ଘ) ଜିରାଫ୍
Answer:
(ଗ) ଓଟ

Question 5.
କେଉଁଠାରେ ବିପଣି ବସିଥିଲା?
(କ) ମହାନଦୀ ବନ୍ଧରେ
(ଖ) କାଠଯୋଡ଼ି ବନ୍ଧରେ
(ଗ) କୁଆଖାଇ ବନ୍ଧରେ
(ଘ) ବ୍ରାହ୍ମଣୀ ବନ୍ଧରେ
Answer:
(ଖ) କାଠଯୋଡ଼ି ବନ୍ଧରେ

Question 6.
ସ୍କନ୍ଧାବାର କାହାକୁ କହନ୍ତି?
(କ) ଶିବିର
(ଖ) ଛାଉଣୀ
(ଗ) ଖାଦ୍ଯ ଭଣ୍ଡାର
(ଘ) ଘୋଡ଼ାଶାଳ
Answer:
(କ) ଶିବିର

Question 7.
କେଉଁ ସ୍ଥାନଟି ତୁଳସୀ କ୍ଷେତ୍ର ଭାବରେ ପ୍ରସିଦ୍ଧ?
(କ) ଯାଜପୁର
(ଖ) ଭଦ୍ରକ
(ଗ) ବାଲେଶ୍ବର
(ଘ) କେନ୍ଦ୍ରାପଡ଼ା
Answer:
(ଘ) କେନ୍ଦ୍ରାପଡ଼ା

Question 8.
ହଳାୟୁଧ କିଏ?
(କ) ଇନ୍ଦ୍ର
(ଖ) ବରୁଣ
(ଗ) ଜନକ
(ଘ) ବଳରାମ
Answer:
(ଘ) ବଳରାମ

Question 9.
ଅସୁରେଶ୍ଵରର ପ୍ରଧାନ ଦେବୀ କିଏ?
(କ) ବିମଳା
(ଖ) କମଳା
(ଗ) ରାମଚଣ୍ଡୀ
(ଘ) ହରଚଣ୍ଡୀ
Answer:
(ଘ) ହରଚଣ୍ଡୀ

Question 10.
ଶାଳିପୁରର ଆଧୁନିକ ନାମ କ’ଣ?
(କ) ଶାନ୍ତପୁର
(ଖ) ସିଂହପୁର
(ଗ) ସାଲେପୁର
(ଘ) ସୁଜନପୁର
Answer:
(ଗ) ସାଲେପୁର

Question 11.
ବହୁଦ୍ଵାରଶୋଭୀ ପୁର କାହାକୁ କୁହାଯାଇଛି?
(କ) କଟକ
(ଖ) ଭୁବନେଶ୍ବର
(ଗ) ବିଡ଼ାନାସୀ
(ଘ) ଚଉଦ୍ଵାର
Answer:
(ଘ) ଚଉଦ୍ଵାର

Question 12.
କେଉଁ ଶୈଳକୁ ଦର୍ପଣୀର ଦର୍ପ କୁହାଯାଇଛି?
(କ) କପିଳାସ ଶୈଳ
(ଖ) ବିନାୟକ ଶୈଳ
(ଗ) ସପ୍ତଶଯ୍ୟା ଶୈଳ
(ଘ) ସ୍ଵର୍ଣ୍ଣଚୂଡ଼ ଶୈଳ
Answer:
(ଖ) ବିନାୟକ ଶୈଳ

Question 13.
କେଉଁ ସ୍ଥାନରେ ଅଧିକ ଚନ୍ଦନ ବୃକ୍ଷ ଦେଖାଯାଏ?
(କ) ଚଣ୍ଡିଖୋଲ
(ଖ) ଆନନ୍ଦପୁର
(ଗ) ଅଳତୀ
(ଘ) ଯାଜପୁର
Answer:
(ଗ) ଅଳତୀ

Question 14.
ଐରରାଜାଙ୍କ ପ୍ରସିଦ୍ଧ କୀର୍ତ୍ତିରାଜି କେଉଁଠାରେ ଦେଖାଯାଏ?
(କ) ଖଣ୍ଡଗିରି
(ଖ) ଧଉଳିଗିରି
(ଗ) ଲଳିତଗିରି
(ଘ) ପୁଷ୍ପଗିରି
Answer:
(କ) ଖଣ୍ଡଗିରି

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Question 15.
ନିର୍ମଳା ନିର୍ଝର କେଉଁଠାରେ ପ୍ରବାହିତ?
(କ) ଗଜପତି
(ଖ) ଖଲ୍ଲିକୋଟ
(ଗ) ବ୍ରହ୍ମପୁର
(ଘ) କନ୍ଧମାଳ
Answer:
(ଖ) ଖଲ୍ଲିକୋଟ

Question 16.
ମଞ୍ଜୁସାର ମହାଭୂଷା ବୋଲି କେଉଁ ଗିରିକୁ କୁହାଯାଇଛି?
(କ) ମାଲ୍ୟଗିରି
(ଖ) ନୀଳଗିରି
(ଗ) ମହେନ୍ଦ୍ରଗିରି
(ଘ) ମେଘାସନ ଗିରି
Answer:
(ଗ) ମହେନ୍ଦ୍ରଗିରି

Question 17.
ସ୍ଵାହାଙ୍କ ସହଚରୀ ବୋଲି କେଉଁ ଦେବୀଙ୍କୁ କୁହାଯାଇଛି?
(କ) ବିମଳା
(ଖ) କମଳା
(ଗ) ହିଙ୍ଗୁଳା
(ଘ) ତାରା
Answer:
(ଗ) ହିଙ୍ଗୁଳା

Question 18.
କିଏ ରଣସ୍ଥଳକୁ ନିଜ ଅସ୍ଥିରେ ଧବଳ କରିଛି?
(କ) ଅଶ୍ଵବଳ
(ଖ) ଦନ୍ତାବଳ
(ଗ) ସୈନ୍ୟବଳ
(ଘ) ପ୍ରଜାବଳ
Answer:
(ଖ) ଦନ୍ତାବଳ

Question 19.
ଗୋମାୟୁ କାହାକୁ କହନ୍ତି?
(କ) ହାତୀ
(ଖ) ଶାଗୁଣା
(ଗ) ବରାହ
(ଘ) ଶୃଗାଳ
Answer:
(ଘ) ଶୃଗାଳ

Question 20.
ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀଙ୍କର ଦୁର୍ଗର ନାମ କ’ଣ?
(କ) ଚଉଦ୍ଵାର ଗଡ଼
(ଖ) ବିଡ଼ାନାସୀ ଗଡ଼
(ଗ) ଶିଶୁପାଳ ଗଡ଼
(ଘ) କୁଜଙ୍ଗ ଗଡ଼
Answer:
(ଖ) ବିଡ଼ାନାସୀ ଗଡ଼

Question 21.
ରାଜା ଅନଶନ କରି କାହା ଦେଉଳରେ ଅଧ୍ୟା ପଡ଼ିଥିଲେ?
(କ) ଶିବ
(ଖ) ବିଷ୍ଣୁ
(ଗ) ଚଣ୍ଡିକା
(ଘ) ଲକ୍ଷ୍ମୀ
Answer:
(ଗ) ଚଣ୍ଡିକା

Question 22.
ନିୟତି ରୂପେ କାହାର ଇଚ୍ଛା ତ୍ରିଭୁବନରେ ପ୍ରତିଫଳିତ ହୁଏ?
(କ) ମହାଶକ୍ତି
(ଖ) ମହାରୁଦ୍ର
(ଗ) ମହାବ୍ରହ୍ମ
(ଘ) ମହାଲକ୍ଷ୍ମୀ
Answer:
(ଖ) ମହାରୁଦ୍ର

Question 23.
ଶତ୍ରୁ-ଦର୍ପହାରୀ ଜୈତ୍ରମଣିକୁ କେଉଁଠି ପିନ୍ଧିବାକୁ ଚଣ୍ଡିକା ରାଜାଙ୍କୁ କହିଥିଲେ?
(କ) କଣ୍ଠମଣି ରୂପେ
(ଖ) ଶିରୋମଣି ରୂପେ
(ଗ) ହସ୍ତମଣି ରୂପେ
(ଘ) ହୃଦମଣି ରୂପେ
Answer:
(ଖ) ଶିରୋମଣି ରୂପେ

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Question 24.
କେଉଁ ରାଜା ଜୈତ୍ରମଣି ଧାରଣ କରିଥିଲେ?
(କ) ମର୍କତ କେଶରୀ
(ଖ) ଯଯାତି କେଶରୀ
(ଗ) ସୁବର୍ଣ୍ଣ କେଶରୀ
(ଘ) ନୃପକେଶରୀ
Answer:
(ଗ) ସୁବର୍ଣ୍ଣ କେଶରୀ

Question 25.
ବାସୁଦେବ ଚୋରଗଙ୍ଗଙ୍କ ମନ୍ତ୍ରୀ ହେବା ଆଗରୁ କାହାର ମନ୍ତ୍ରୀ ଥିଲେ?
(କ) ଯଯାତି କେଶରୀ
(ଖ) ମର୍କତ କେଶରୀ
(ଗ) ବୀର କେଶରୀ
(ଘ) ସୁବର୍ଣ୍ଣ କେଶରୀ
Answer:
(ଘ) ସୁବର୍ଣ୍ଣ କେଶରୀ

Question 26.
ଚୋରଗଙ୍ଗ ଯେଉଁ ମାତୃ-ପାଦପଦ୍ମକୁ ଜୁହାର କରିଛନ୍ତି ସେ କିଏ?
(କ) ଲକ୍ଷ୍ମୀ
(ଖ) ସରସ୍ଵତୀ
(ଗ) ଜାହ୍ନବୀ
(ଘ) ବିମଳା
Answer:
(ଗ) ଜାହ୍ନବୀ

Question 27.
ପ୍ରଭାତ-ଡଗରା କିଏ ବୋଲି କବି କହିଛନ୍ତି?
(କ) କଜ୍ଜଳପାତି
(ଖ) କୁମ୍ଭାଟୁଆ
(ଗ) କପୋତ
(ଘ) କାକ
Answer:
(କ) କଜ୍ଜଳପାତି

Question 28.
ଛାୟାବାଜି ଭଳି ଗଭୀର କନ୍ଦରା କେଉଁଥରେ ପରିଣତ ହେଲା?
(କ) ଝରଣା
(ଖ) ନଦୀ
(ଗ) ପୁଷ୍କରିଣୀ
(ଘ) ହ୍ରଦ
Answer:
(ଘ) ହ୍ରଦ

Question 29.
ଗଙ୍ଗାଦେବୀ ଜଳରେ ସମାସୀନା ହେଲାବେଳେ ବନଦେବୀଙ୍କର କେଉଁ ବାଦ୍ୟ ବାଜି ଉଠିଥିଲା?
(କ) ବଂଶୀ
(ଖ) ତାପୁରା
(ଗ) ବୀଣା
(ଘ) ଢୋଲ
Answer:
(ଗ) ବୀଣା

Question 30.
ଦ୍ଵାପରର ବୀର ଦେବବ୍ରତ କିଏ?
(କ) ଅର୍ଜୁନ
(ଖ) କର୍ଷ
(ଗ) କୃଷ୍ଣ
(ଘ) ଭୀଷ୍ମ
Answer:
(ଘ) ଭୀଷ୍ମ

Question 31.
ଧର୍ମ ସଂସ୍ଥାପନ କରିବାକୁ କିଏ ଭାଜନ ଅଟେ?
(କ) କର୍ମବୀର
(ଖ) ଧର୍ମବୀର
(ଗ) ଭକ୍ତିବୀର
(ଘ) ଯୁଦ୍ଧବୀର
Answer:
(ଖ) ଧର୍ମବୀର

Question 32.
ଶତ୍ରୁ ପ୍ରତି ପ୍ରୀତିଭାବ କେଉଁ ବଳ ଆଣିଦିଏ?
(କ) ଧର୍ମବଳ
(ଖ) କର୍ମବଳ
(ଗ) ବାହୁବଳ
(ଘ) ପୁଣ୍ଯବଳ
Answer:
(କ) ଧର୍ମବଳ

Question 33.
ଉତ୍କଳ ଭୁବନର ବିଷ୍ଣୁପଦୀ ବୋଲି କେଉଁ ନଦୀକୁ କୁହାଯାଇଛି?
(କ) ବୈତରଣୀ
(ଖ) ଭାର୍ଗବୀ
(ଗ) ଦୟା
(ଘ) ମହାନଦୀ
Answer:
(ଘ) ମହାନଦୀ

Question 34.
ମହାନଦୀ-ଲୀଳା ନିମନ୍ତେ ତୀର୍ଥେଶ କେଉଁ ଦେଶ ଛାଡ଼ି ଦେଇଛନ୍ତି?
(କ) ପୂର୍ବ ଦେଶ
(ଖ) ପଶ୍ଚିମ ଦେଶ
(ଗ) ଉତ୍ତର ଦେଶ
(ଘ) ଦକ୍ଷିଣ ଦେଶ
Answer:
(କ) ପୂର୍ବ ଦେଶ

Question 35.
ସୁକାନ୍ତି-ତନୁଜା କିଏ?
(କ) ଗଙ୍ଗା
(ଖ) ଗୋଦାବରୀ
(ଗ) ମହାନଦୀ
(ଘ) କାବେରୀ
Answer:
(ଗ) ମହାନଦୀ

Question 36.
ଦକ୍ଷିଣରେ ନାବିକମାନଙ୍କଦ୍ଵାରା କିଏ ଅର୍ଚ୍ଚିତା ହୁଅନ୍ତି?
(କ) ତାରାତାରିଣୀ
(ଖ) ଭଗବତୀ
(ଗ) ଚର୍ଚ୍ଚିକା
(ଘ) ଉଗ୍ରତାରା
Answer:
(ଗ) ଚର୍ଚ୍ଚିକା

Question 37.
ତ୍ଵଷାମ୍ପତି କାହାକୁ କୁହାଯାଏ?
(କ) ସୂର୍ଯ୍ୟ
(ଖ) ଚନ୍ଦ୍ର
(ଗ) ସାଗର
(ଘ) ପୃଥ‌ିବୀ
Answer:
(କ) ସୂର୍ଯ୍ୟ

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Question 38.
ପାଶୀର ଅର୍ଥ କ’ଣ?
(କ) ଯମ
(ଖ) କୁବେର
(ଗ) ବରୁଣ
(ଘ) ଗନ୍ଧର୍ବ
Answer:
(ଗ) ବରୁଣ

Question 39.
କେଉଁ ଦେବୀ ଯଜ୍ଞରୁ ସମ୍ଭୂତା ବୋଲି କିମ୍ବଦନ୍ତୀ ଅଛି?
(କ) ଚଣ୍ଡିକା
(ଖ) ବିମଳା
(ଗ) ଲକ୍ଷ୍ମୀ
(ଘ) ବିରଜା
Answer:
(ଘ) ବିରଜା

Question 40.
ଗୋନାସିକା ଗିରିରୁ କେଉଁ ନଦୀ ଜାତ ହୋଇଛି?
(କ) ବ୍ରାହ୍ମଣୀ
(ଖ) ବୈତରଣୀ
(ଗ) ସୁବର୍ଣ୍ଣରେଖା
(ଘ) ବିରୂପା
Answer:
(ଖ) ବୈତରଣୀ

Question 41.
ମେଘାସନ ଶୈଳରେ କିଏ ବାସ କରେ ବୋଲି କବି କହିଛନ୍ତି?
(କ) ବାଦଲ
(ଖ) ଝଟିକା
(ଗ) ପବନ
(ଘ) ବିଜୁଳି
Answer:
(ଖ) ଝଟିକା

Question 42.
ମହାନଦୀର ସହଚରୀ ବୋଲି କବି କାହାକୁ କହିଛନ୍ତି?
(କ) ବୈତରଣୀ
(ଖ) କୁଶଭଦ୍ରା
(ଗ) ବଳାଙ୍ଗୀ
(ଘ) ଚିତ୍ରୋତ୍ପଳା
Answer:
(ଗ) ବଳାଙ୍ଗୀ

Question 43.
କେଉଁମାନେ ସୁବର୍ଣ୍ଣପରାଗ ସୁବର୍ଣ୍ଣତଟିନୀରୁ ସଂଗ୍ରହ କରୁଥିଲେ?
(କ) ଆଦିବାସୀ
(ଖ) ଗ୍ରାମବାସୀ
(ଗ) ଶବର ଯୁବତୀ
(ଘ) ଜୁଆଙ୍ଗଯୁବତୀ
Answer:
(ଗ) ଶବର ଯୁବତୀ

Question 44.
ବ୍ରହ୍ମାଣ୍ଡ ପାବନୀ ବୋଲି କବି କେଉଁ ନଦୀକୁ କହିଛନ୍ତି?
(କ) ବ୍ରାହ୍ମୀ
(ଖ) ବୈତରଣୀ
(ଗ) କାଠଯୋଡ଼ି
(ଘ) ମହାନଦୀ
Answer:
(କ) ବ୍ରାହ୍ମୀ

Question 45.
ପାହାଡ଼ ଉପରେ କୋଚିଲାଖାଇଙ୍କର ରାବ ବନ ମଧ୍ୟରେ କାହାର ପ୍ରଭାବ ପ୍ରଚାର କରିଥିଲା?
(କ) ପ୍ରଭାତ
(ଖ) ମଧ୍ୟାହ୍ନ
(ଗ) ସାୟାହ୍ନ
(ଘ) ରାତ୍ରି
Answer:
(ଖ) ମଧ୍ୟାହ୍ନ

Question 46.
ଉଚ୍ଚତାରେ ସର୍ବଶୈଳକୁ ଲଜ୍ଜା ଦେଇ କିଏ ଶିଖର ଟେକିଛି?
(କ) ସର୍ପେଶ୍ଵର
(ଖ) କପିଳାସ
(ଗ) ବରୁଣେଇ
(ଘ) ସପ୍ତଶଯ୍ୟା
Answer:
(ଘ) ସପ୍ତଶଯ୍ୟା

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Question 47.
କେଉଁ ସ୍ଥାନ ବୌଦ୍ଧ କୀର୍ତ୍ତିରାଜି ମଣ୍ଡିତ ବୋଲି କୁହାଯାଇଛି?
(କ) ଆଠଗଡ଼
(ଖ) ସାରଙ୍ଗଗଡ଼
(ଗ) ପଟିଆ
(ଘ) ନରାଜ
Answer:
(ଘ) ନରାଜ

Question 48.
ଥରେ କାନ୍ତକୁ ଥରେ ମିହିରକୁ ଅନାଇ କାଠଯୋଡ଼ି ନୀରରେ କିଏ ଭାସୁଛି?
(କ) ମାଛରଙ୍କା
(ଖ) ହଂସ
(ଗ) ରଥାଙ୍ଗୀ
(ଘ) ବତକ
Answer:
(ଗ) ରଥାଙ୍ଗୀ

Question 49.
ନବ ନବ ଇନ୍ଦ୍ରଜାଲ ଦେଖାଇ କିଏ କେତେ ପ୍ରକାର ରୂପ ଧାରଣ କରୁଛି?
(କ) ଆକାଶ
(ଖ) ପୃଥ‌ିବୀ
(ଗ) ଚକ୍ରବାଳ
(ଘ) ସାଗର
Answer:
(ଗ) ଚକ୍ରବାଳ

Question 50.
ଚଉଦିଗରେ କ’ଣ ଘୋଟିଲେ ଜଳ ସ୍ଥଳ ଓ ବ୍ୟୋମର ସୀମା ଲିଭିଯାଏ?
(କ) ସୂର୍ଯ୍ୟ କିରଣ
(ଖ) ଚନ୍ଦ୍ର କିରଣ
(ଗ) ଘନ ବାଦଲ
(ଘ) ତିମିର-କାଳିମା
Answer:
(ଘ) ତିମିର-କାଳିମା

Question 51.
ପଟହ-କାହାଳୀ-ତୂରୀ-ଭେରୀ ଶବ୍ଦରେ କାହାର ଗୃହ କମ୍ପି ଉଠୁଛି?
(କ) ମହାଦେବଙ୍କର
(ଖ) ଚଣ୍ଡିକାଙ୍କର
(ଗ) ବିଷ୍ଣୁଙ୍କର
(ଘ) ମଙ୍ଗଳାଙ୍କର
Answer:
(ଖ) ଚଣ୍ଡିକାଙ୍କର

Question 52.
ତରୁପର୍ଣ୍ଣରେ ଦୀପ କାହାକୁ ନିନ୍ଦା କରୁଛି?
(କ) ସୂର୍ଯ୍ୟ
(ଖ) ଚନ୍ଦ୍ର
(ଗ) ଗ୍ରହାଣୁପୁଞ୍ଜ
(ଘ) ତାରାବ୍ରଜ
Answer:
(ଘ) ତାରାବ୍ରଜ

Question 53.
ସମସ୍ତେ ଉତ୍ସବରେ ଭାଗୀ ହୋଇଥିଲାବେଳେ କାହାର ମୁଖ ମଳିନ ଥିଲା?
(କ) ରାଜା
(ଖ) ରାଣୀ
(ଗ) ଜେମା
(ଘ) ପ୍ରଜା
Answer:
(ଗ) ଜେମା

Question 54.
ପୋତପାଳ ଶବ୍ଦର ଅର୍ଥ କ’ଣ?
(କ) ନୌକା
(ଖ) ନାବିକ
(ଗ) ଭେଳା
(ଘ) ବୋଇତ
Answer:
(ଖ) ନାବିକ

Question 55.
ନନ୍ଦିକା କେଉଁ ଗୃହରେ ନିଭୃତରେ ବସି ଯୁଦ୍ଧର ଦୃଶ୍ୟ ଦେଖୁଥିଲା?
(କ) ରଙ୍ଗଶାଳା
(ଖ) ପାକଶାଳା
(ଗ) ଚନ୍ଦ୍ରଶାଳା
(ଘ) ଶୟନଶାଳା
Answer:
(ଗ) ଚନ୍ଦ୍ରଶାଳା

Question 56.
ଶିଖଣ୍ଡୀ-ବାହାନ କାହାକୁ କୁହାଯାଇଛି?
(କ) ଶିବ
(ଖ) ବିଷ୍ଣୁ
(ଗ) କନ୍ଦର୍ପ
(ଘ) କାର୍ତ୍ତିକେୟ
Answer:
(ଘ) କାର୍ତ୍ତିକେୟ

Question 57.
ବୀର ସବୁବେଳେ କିପରି ଯୁଝୁଥାଏ?
(କ) ଖଣ୍ଡାର ଦାଢ଼ରେ
(ଖ) ଭାଗ୍ୟର ଦାଢ଼ରେ
(ଗ) ବିପଦର ଦାଢ଼ରେ
(ଘ) କର୍ମର ଦାଢ଼ରେ
Answer:
(ଗ) ବିପଦର ଦାଢ଼ରେ

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Question 58.
ଚନ୍ଦନ ଗଛରେ କିଏ ବାସ କରେ?
(କ) ଶୁକ
(ଗ) ପନ୍ନଗ
(ଖ) କୋଇଲି
(ଘ) ଗୁଣ୍ଡୁଚି
Answer:
(ଗ) ପନ୍ନଗ

Question 59.
ଚୋରଗଙ୍ଗଙ୍କ ଜନନୀ କିଏ ବୋଲି ନନ୍ଦିକା ଶୁଣିଥିଲେ?
(କ) ଲକ୍ଷ୍ମୀ
(ଖ) ବିମଳା
(ଗ) ଜାହ୍ନବୀ
(ଘ) ବିରଜା
Answer:
(ଗ) ଜାହ୍ନବୀ

Question 60.
ମଶାରି ଭିତରେ ମଶକ ପରି ନନ୍ଦିକାଙ୍କ ମନ କିପରି ଭ୍ରମୁଥୁଲା?
(କ) ଆଶଙ୍କାରେ
(ଖ) ଉତ୍କଣ୍ଠାରେ
(ଗ) ବ୍ୟାକୁଳତାରେ
(ଘ) ଆର୍କରେ
Answer:
(ଘ) ଆର୍ଭରେ

Question 61.
ରାଜାବାଳା ନନ୍ଦିକା କାହା କୋଳରେ ଦୋଳି ଖେଳୁଥିଲେ?
(କ) ଭାବ-ସମୁଦ୍ର
(ଖ) ଭାବ-ସରିତ
(ଗ) ଭାବ-ଊର୍ମି
(ଘ) ଭାବ-ଉଲ୍ଲାସ
Answer:
(ଗ) ଭାବ-ଉର୍ମି

Question 62.
ନନ୍ଦିକାଙ୍କ ପିତା କାହା କଥା ରଖିଲେ ଏତେ ରକ୍ତପାତ ହୋଇନଥାନ୍ତା ବୋଲି ନନ୍ଦିକା ଭାବୁଥିଲେ?
(କ) ଚୋରଗଙ୍ଗଙ୍କର
(ଖ) ରାଣୀଙ୍କର
(ଗ) ମନ୍ତ୍ରୀ ବାସୁଦେବଙ୍କର
(ଘ) ପ୍ରଜାମାନଙ୍କର
Answer:
(ଗ) ମନ୍ତ୍ରୀ ବାସୁଦେବଙ୍କର

Question 63.
ଶାସ୍ତ୍ରମତରେ କାହା ଉପରେ ପିତାଙ୍କର ପୂର୍ବ ଅଧିକାର ଅଛି?
(କ) ପତ୍ନୀ
(ଖ) ପୁତ୍ର
(ଗ) ସୁତା
(ଘ) ଭ୍ରାତା
Answer:
(ଗ) ସୁତା

Question 64.
ଭାଗ୍ୟଦେବୀ ସବୁବେଳେ କାହାର ଅନୁକୂଳ ହୋଇଥା’ନ୍ତି?
(କ) ଧାର୍ମିକର
(ଖ) ଧନୀକର
(ଗ) ଭକ୍ତର
(ଘ) ଉଦ୍‌ଯୋଗୀର
Answer:
(ଘ) ଉଦ୍‌ଯୋଗୀର

Question 65.
ମହୀରେ ମହାବଳୀ କିଏ ବୋଲି କବି କହିଛନ୍ତି?
(କ) ଧର୍ମ
(ଖ) କର୍ମ
(ଗ) ପୁଣ୍ଯ
(ଘ) ପ୍ରେମ
Answer:
(ଘ) ପ୍ରେମ

Question 66.
ପ୍ରେମ ବଳରେ ସୁଭଦ୍ରା କ’ଣ ଲାଭ କରିଥିଲେ?
(କ) ଧନ
(ଖ) ଯଶ
(ଗ) ଦୟିତ
(ଘ) ରାଜ୍ୟ
Answer:
(ଗ) ଦୟିତ

Question 67.
ଦେବୀଦତ୍ତ ମଣିଟି ହସ୍ତଗତ ହେଲେ ନନ୍ଦିକାର ପ୍ରାଣେଶ୍ବର କ’ଣ ହେବେ ବୋଲି ନନ୍ଦିକା ଚିନ୍ତା କରିଛନ୍ତି?
(କ) ଦିଗ୍‌ବିଜୟୀ ବୀର
(ଖ) ମଗଧ ଈଶ୍ବର
(ଗ) ଉତ୍କଳ ଈଶ୍ଵର
(ଘ) ରାଜ ଚକ୍ରବର୍ତ୍ତୀ
Answer:
(ଗ) ଉତ୍କଳ ଈଶ୍ବର

Question 68.
ଖେଳା-ଖଞ୍ଜରୀଟ ଦୃଶା ବୋଲି କବି କାହାକୁ ଉପମା ଦେଇଛନ୍ତି?
(କ) ଗଙ୍ଗା
(ଖ) ସୁଭଦ୍ରା
(ଗ) ଲକ୍ଷ୍ମୀ,
(ଘ) ନନ୍ଦିକା
Answer:
(ଘ) ନନ୍ଦିକା

Question 69.
ବିଡ଼ାନାସୀଗଡ଼ ସୁଡ଼ଙ୍ଗ ଦୁଆର କେଉଁ ଦିଗକୁ ଥିଲା?
(କ) ପୂର୍ବ
(ଖ) ପଶ୍ଚିମ
(ଗ) ଉତ୍ତର
(ଘ) ଦକ୍ଷିଣ
Answer:
(ଘ) ଦକ୍ଷିଣ

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Question 70.
ଶର୍ବରୀଶ ଶବ୍ଦର ଅର୍ଥ କ’ଣ?
(କ) ସୂର୍ଯ୍ୟ
(ଖ) ଚନ୍ଦ୍ର
(ଗ) ତାରା
(ଘ) କୁମୁଦ
Answer:
(ଖ) ଚନ୍ଦ୍ର

Question 71.
ପ୍ରତି ବୀଚି ବକ୍ଷରେ ଚନ୍ଦ୍ରମା-ପଦକ କାହା ସମ ଝକଝକ କରୁଥିଲା?
(କ) ହୀରକ
(ଖ) ସୁବର୍ଣ୍ଣ
(ଗ) କଉସ୍ତୁର
(ଘ) ସ୍ଫଟିକ
Answer:
(ଗ) କଉସ୍ତୁର

Question 72.
ତରୁଶିରରେ ବସି କିଏ ଜ୍ୟୋସ୍ମାମୃତ ସଙ୍ଗେ ପ୍ରେମାମୃତ ପାନ କରୁଥିଲା?
(କ) ହଂସ ହଂସୀ
(ଖ) କପୋତ କପୋତୀ
(ଗ) ଶୁକ ଶାରୀ
(ଘ) ଚକୋର ଚକୋରୀ
Answer:
(ଘ) ଚକୋର ଚକୋରୀ

Question 73.
ଦିଗ ଦିଗନ୍ତରେ କାହାର ସ୍ଵନ ଯାମିନୀର ନୂପୁର-ନିକ୍କଣ ଭଳି ଶୁଭୁଥୁଲା?
(କ) କପୋତ
(ଖ) ଝିଲ୍ଲୀ
(ଗ) ଚକୋର
(ଘ) ପିକ
Answer:
(ଖ) ଝିଲ୍ଲୀ

Question 74.
ଚୋରଗଙ୍ଗଙ୍କର ଲାଳସା କେଉଁଥିପାଇଁ ଥିଲା?
(କ) ରାଜ୍ୟ ଲାଭ ପାଇଁ
(ଖ) ଶତ୍ରୁ ବିଜୟ ପାଇଁ
(ଗ) ଦିଗ୍‌ବିଜୟ ପାଇଁ
(ଘ) ଧର୍ମ ସ୍ଥାପନା ପାଇଁ
Answer:
(ଘ) ଧର୍ମ ସ୍ଥାପନା ପାଇଁ

Question 75.
ଧର୍ମର ସହାୟ କିଏ?
(କ) ଧାର୍ମିକ
(ଖ) ସନ୍ନ୍ୟାସୀ

(ଘ) ବ୍ରହ୍ମାଣ୍ଡ ସାଇଁ
Answer:
(ଘ) ବ୍ରହ୍ମାଣ୍ଡ ସାଇଁ

Question 76.
ଚମୁପତିର ଅର୍ଥ କ’ଣ?
(କ) ରାଜା
(ଖ) ମନ୍ତ୍ରୀ
(ଗ) ସେନାପତି
(ଘ) କଟୁଆଳ
Answer:
(ଗ) ସେନାପତି

Question 77.
ସୁଷମାରେ ରାଜଜେମା କାହାକୁ ନିନ୍ଦା କରୁଥିଲେ?
(କ) ବିକଶିତ ପଦ୍ମକୁ
(ଖ) ଚକ୍ର କିରଣକୁ
(ଗ) ସୁନ୍ଦରୀ ଅପ୍‌ସରାଙ୍କୁ
(ଘ) ଶାରଦୀୟ ଉଷାକୁ
Answer:
(ଘ) ଶାରଦୀୟ ଉଷାକୁ

Question 78.
ଅତ୍ୟକ ଭୂଷଣେ ଶୋଭେ ମତ୍ତକାଶୀ – ଏଠାରେ ମତ୍ତକାଶୀର ଅର୍ଥ କ’ଣ?
(କ) ମତ୍ତହସ୍ତୀ
(ଖ) ଉତ୍ତମା ନାରୀ
(ଗ) ନର୍ତ୍ତକୀ
(ଘ) ଗଣବଧୂ
Answer:
(ଖ) ଉତ୍ତମା ନାରୀ

Question 79.
ରାଜଜେମାଙ୍କର ବଦନମଣ୍ଡଳ କାହାକୁ ଜିଣୁଥିଲା?
(କ) ସକାଳର ପଦ୍ମକୁ
(ଖ) ସନ୍ଧ୍ୟାର କୁମୁଦକୁ
(ଗ) ନିବୋଦିତ ତପନଙ୍କୁ
(ଘ) ଶରଦର ଇନ୍ଦ୍ରଙ୍କୁ
Answer:
(ଘ) ଶରଦର ଇନ୍ଦୁଙ୍କୁ

Question 80.
ଅଥବା ଗଢ଼ିଲେ ଋତୁ ପୁଷ୍ପାକର – ଏଠାରେ ପୁଷ୍ପାକର କାହାକୁ କୁହାଯାଇଛି?
(କ) ଫୁଲ ବଗିଚା
(ଖ) ପୁଷ୍ପ ଚାଙ୍ଗୁଡ଼ା
(ଗ) ବସନ୍ତଋତୁ
(ଘ) କନ୍ଦର୍ପ
Answer:
(ଗ) ବସନ୍ତଋତୁ

Question 81.
ଅପରୂପା ନନ୍ଦିକାଙ୍କୁ ଦେଖୁ ସେ ଦେବୀ କି ମାନବୀ ବୋଲି ଚୋରଗଙ୍ଗଙ୍କର ସଂଶୟ କିଭଳି ଦୂର ହେଲା?
(କ) ସ୍ଵରରୁ
(ଖ) ଚାଲିରୁ
(ଗ) ପଲକ ପାତରୁ
(ଘ) ଛାୟାରୁ
Answer:
(ଘ) ଛାୟାରୁ

Question 82.
ନାରୀକୁଳ ସର୍ବଦା କାହାର ପକ୍ଷପାତୀ ବୋଲି ନନ୍ଦିକା କହିଥିଲା?
(କ) ଧନବାନଙ୍କର
(ଖ) ରୂପବାନଙ୍କର
(ଗ) ବୀରଙ୍କର
(ଘ) ରାଜଚକ୍ରବର୍ତୀଙ୍କର
Answer:
(ଗ) ବୀରଙ୍କର

Question 83.
ଚୈତ୍ରମଣି ବିନିମୟରେ ନନ୍ଦିକା କ’ଣ ଯାଚଜ୍ଞା କରିଥିଲା?
(କ) ଧନ
(ଖ) ମାନ
(ଗ) ପ୍ରେମ
(ଘ) ରାଣୀପଦ
Answer:
(ଗ) ପ୍ରେମ

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Question 84.
‘ନାଭିଗୟା’ର ବର୍ତ୍ତମାନର ନାମ କ’ଣ?
(କ) କଟକ
(ଖ) ବିଡ଼ାନାସୀ
(ଗ) ଭୁବନେଶ୍ବର
(ଘ) ଯାଜପୁର
Answer:
(ଘ) ଯାଜପୁର

Question 85.
ନନ୍ଦିକାର ମୋହପାଶକୁ କିଏ ଛେଦନ କଲା?
(କ) ମନ
(ଖ) ପ୍ରାଣ
(ଗ) ହୃଦୟ
(ଘ) ବିବେକ
Answer:
(ଘ) ବିବେକ

Question 86.
ଅନୁତାପ ଫଣୀ କ’ଣ ଉଗାରି ନନ୍ଦିକାଙ୍କର ମର୍ମସ୍ଥଳକୁ ଦଂଶନ କଲା?
(କ) ବିଷ
(ଖ) ଅନଳ
(ଗ) ଜଳ
(ଘ) ବାୟୁ
Answer:
(ଖ) ଅନଳ

Question 87.
ମୂଳ କାଟିଦେଲେ ବଲ୍ମୀକ ଦୂରନ୍ତ– ଏଠାରେ ବଲ୍ମୀକ କିଏ?
(କ) ମୂଷା
(ଖ) ପିମ୍ପୁଡ଼ି
(ଗ) ଉଇ
(ଘ) ଯୋକ
Answer:
(ଗ) ଉଇ

Question 88.
ସ୍ମୃତିକୁ ଫିଙ୍ଗିପାରିଲେ ମଣିଷ କ’ଣ ଲଭନ୍ତା?
(କ) ସୁଖ
(ଖ) ଶାନ୍ତି
(ଗ) ମୁଭି
(ଘ) ନିସ୍ତାର
Answer:
(ଘ) ନିସ୍ତାର

Question 89.
ନତ ମୁଖୀ ନନ୍ଦିକା କାହାର ଆଶ୍ରୟ ଚାହୁଁଥୁଲା?
(କ) ଆକାଶର
(ଖ) ମହୀର
(ଗ) ପାତାଳର
(ଘ) ସାଗରର
Answer:
(ଖ) ମହୀର

Question 90.
କାହାର ପ୍ରବାହରେ ଉଜାଣି ଭାସିବା ପାଇଁ ପ୍ରାଣୀଜଗତ ଭାଜନ ନୁହଁନ୍ତି?
(କ) ବାୟୁ ପ୍ରବାହ
(ଖ) ମେଘ ପ୍ରବାହ
(ଗ) କାଳ ପ୍ରବାହ
(ଘ) ଜଳପ୍ରବାହ
Answer:
(ଗ) କାଳ ପ୍ରବାହ

Question 91.
ପ୍ରାଣହୀନ ଦୁଃଖ୍ନୀ ନନ୍ଦିକାର ଶରୀର କିପରି ଦେଖାଯାଉଥିଲା?
(କ) ବିପର୍ଯ୍ୟସ୍ତ ପୁଷ୍ପ ପରି
(ଖ) ପର୍ୟୁଷିତ ପଦ୍ମ ପରି
(ଗ) ବୃଚ୍ୟୁତ ଫୁଲ ପରି
(ଘ) ମଥୁତ ପୁଷ୍ପ ପରି
Answer:
(ଖ) ପର୍ୟୁଷିତ ପଦ୍ମ ପରି

Question 92.
ମୃତ୍ୟୁ ପୂର୍ବରୁ ନନ୍ଦିକା ଜୈତ୍ର ମଣିଟିକୁ କେଉଁଠି ରଖୁଥିଲା?
(କ) ହସ୍ତମୁଠାରେ
(ଖ) ଫରୁଆ ଭିତରେ
(ଗ) ପଣନ୍ତର କୋଣରେ
(ଘ) ଶିବିକା ଭିତରେ
Answer:
(ଗ) ପଣନ୍ତର କୋଣରେ

Question 93.
ଶିରରେ କ’ଣ ଘେନି ଯାଉଛି ବୋଲି ନନ୍ଦିକା ତା’ର ପିତାଙ୍କୁ ଲେଖୁଥିଲା?
(କ) ଅନୁତାପ ଭାର
(ଖ) ଗ୍ଳାନି ଭାର
(ଗ) ଲଜ୍ଜା ଭାର
(ଘ) ପାପ ଭାର
Answer:
(ଘ) ପାପ ଭାର

Question 94.
ନିଜ ପିଣ୍ଡର ସତ୍କାର କେଉଁଠି କରାଇବାକୁ ନନ୍ଦିକା ପିତାଙ୍କୁ ଅନୁରୋଧ କରିଥିଲା?
(କ) ଶ୍ମଶାନରେ
(ଖ) ସ୍ଵର୍ଗଦ୍ଵାରରେ
(ଗ) ଦୁର୍ଗ ଭିତରେ
(ଘ) ମାନବ ସଞ୍ଚାର ଶୂନ୍ୟ ଅଞ୍ଚଳରେ
Answer:
(ଘ) ମାନବ ସଞ୍ଚାର ଶୂନ୍ୟ ଅଞ୍ଚଳରେ

Question 95.
ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀ ବିଷାଦରେ ଉଦାସୀ ହୋଇ କେଉଁଠି ବନବାସୀ ହେଲେ?
(କ) ମହାନଦୀ ତୀରରେ
(ଖ) ବ୍ରାହ୍ମଣୀ ତୀରରେ
(ଗ) କୁଶଭଦ୍ରା କୂଳରେ
(ଘ) ଚିତ୍ରୋତ୍ପଳା ତୀରରେ
Answer:
(କ) ମହାନଦୀ ତୀରରେ

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Question 96.
ସୁବର୍ଣ୍ଣପୁର କେଉଁଠି ଅବସ୍ଥିତ?
(କ) ଅଂଶୁପା ହ୍ରଦ ନିକଟରେ
(ଖ) କାଠଯୋଡ଼ି ତୀରରେ
(ଗ) ବିରୂପା ତୀରରେ
(ଘ) ବୈତରଣୀ କୂଳରେ
Answer:
(କ) ଅଂଶୁପା ହ୍ରଦ ନିକଟରେ

Question 97.
ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗ ସେହି ଦେବଦତ୍ତ ମଣିକୁ କେଉଁଠାକୁ ପଠାଇଥିଲେ?
(କ) ନିଜ ରାଜ୍ୟକୁ
(ଖ) ବିରାଜା କ୍ଷେତ୍ରକୁ
(ଗ) ଏକାମ୍ର କ୍ଷେତ୍ରକୁ
(ଘ) ନୀଳାଚଳ ଧାମକୁ
Answer:
(ଘ) ନୀଳାଚଳ ଧାମକୁ

Question 98.
ମହାନଦୀ କେଉଁଠାରେ ବେଣୀମୁକ୍ତ ହୋଇଥିଲା?
(କ) କଟକଠାରେ
(ଖ) ବିଡ଼ାନାସୀଠାରେ
(ଗ) ଚଉଦ୍ଵାରଠାରେ
(ଘ) ସୁବର୍ଣ୍ଣପୁରଠାରେ
Answer:
(ଖ) ବିଡ଼ାନାସୀଠାରେ

(ଖ) ୧ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ଏକ ବାକ୍ୟରେ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ ଓ ଉତ୍ତର

Question 1.
ଧାଡ଼ି ଧାଡ଼ି ହୋଇ ଶୁଭ୍ର ତମ୍ବୁଗୁଡ଼ିକ କିପରି ଶୋଭା ପାଉଥିଲା?
Answer:
ଧାଡ଼ି ଧାଡ଼ି ହୋଇ ଶୁଭ୍ର ତମ୍ବୁଗୁଡ଼ିକ ଖଡ଼ି ଶୈଳ ବା ଚୂନପଥରର ପାହାଡ଼ ଭଳି ଶୋଭା ପାଉଥିଲା ।

Question 2.
ମଲ୍ଲଯୁଦ୍ଧରେ ପ୍ରକମ୍ପିତ ରଙ୍ଗସ୍ଥଳୀକୁ ଦର୍ଶକମାନେ କିପରି ଉପଭୋଗ କରୁଥିଲେ ?
Answer:
ମଲ୍ଲଯୁଦ୍ଧରେ ପ୍ରକମ୍ପିତ ରଙ୍ଗସ୍ଥଳୀକୁ ଦର୍ଶକମାନେ ତାଳି ମାରି ଉପଭୋଗ କରୁଥିଲେ ।

Question 3.
ଦାସେରକ ଗ୍ରୀବାତୋଳି କ’ଣ ଭକ୍ଷଣ କରୁଛି ?
Answer:
ଦାସେରକ ଗ୍ରୀବାତୋଳି ନିମ୍ବଦଳ ଭକ୍ଷଣ କରୁଛି ।

Question 4.
କେଉଁଠାରେ ବିପଣି ବସିଥିଲା?
Answer:
କାଠଯୋଡ଼ି ବନ୍ଧରେ ବିପଣି ବସିଥିଲା ।

Question 5.
କାଠଯୋଡ଼ିରୁ କେଉଁ କେଉଁ ନଦୀ ଜନ୍ମିଛନ୍ତି?
Answer:
କାଠଯୋଡ଼ିରୁ କୁଶଭଦ୍ରା, ଦୟା, ଭାର୍ଗବୀ ଆଦି ନଦୀ ଜନ୍ମିଛନ୍ତି ।

Question 6.
ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କର ସ୍କନ୍ଧାବାର କେଉଁଠାରେ ଶୋଭା ପାଉଥିଲା?
Answer:
ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କର ସ୍କନ୍ଧାବାର କାଠଯୋଡ଼ିର ଉତ୍ତରରେ ଶୋଭାପାଉଥିଲା ।

Question 7.
ତୁଳସୀକ୍ଷେତ୍ରର ପ୍ରଧାନଦେବତା କିଏ?
Answer:
ତୁଳସୀକ୍ଷେତ୍ରର ପ୍ରଧାନ ଦେବତା ହେଉଛନ୍ତି ହଳାୟୁଧ ବା ବଳଦେବ ।

Question 8.
ପ୍ରାଚୀନ କାଳରେ ଉତ୍ତର-କୋଶଳାର ଅବସ୍ଥିତି କେଉଁଠି ଥିଲା?
Answer:
ପ୍ରାଚୀନ କାଳରେ ଉତ୍ତର-କୋଶଳର ଅବସ୍ଥିତି ଚଉଦ୍ଵାରା ବା ଚଉଦ୍ଵାରଠାରେ ଥିଲା ।

Question 9.
ଛତିଆର ଅଧ୍ୟାତ୍ରୀ ଦେବୀ କିଏ ଥିଲେ ?
Answer:
ବଳାରାତିପ୍ରିୟା ବା ଇନ୍ଦ୍ରଙ୍କ ପତ୍ନୀ ଶଳୀଦେବୀ ଛତିଆର ଅଧ୍ୟାତ୍ରୀ ଦେବୀ ଥିଲେ ।

Question 10.
କେଉଁ ଦେବୀଙ୍କଠାରେ ନିତ୍ୟ ବଳିଦାନ କରାଯାଏ?
Answer:
ହରଚଣ୍ଡୀ ଦେବୀଙ୍କଠାରେ ନିତ୍ୟ ବଳିଦାନ କରାଯାଏ ।

Question 11.
ଚିତ୍ରୋତ୍ପଳା କେଉଁ ନଦୀର ଶାଖାନଦୀ?
Answer:
ଚିତ୍ରୋତ୍ପଳା ମହାନଦୀର ଶାଖାନଦୀ ।

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Question 12.
ଚିତ୍ରୋତ୍ପଳା ତୀରରେ କେଉଁ ଦେବୀ ପୂଜା ପାଆନ୍ତି?
Answer:
ଚିତ୍ରୋତ୍ପଳା ତୀରରେ ଭଗବତୀ ଦେବୀ ପୂଜା ପାଆନ୍ତି ।

Question 13.
ଉତ୍କଳର କାଳିନ୍ଦୀ ବୋଲି କବି କାହାକୁ କହିଛନ୍ତି?
Answer:
ଉତ୍କଳର କାଳିନ୍ଦୀ ବୋଲି କବି ସାଳନ୍ଦୀ ନଦୀକୁ କହିଛନ୍ତି ।

Question 14.
ସୋରର ପୂର୍ବରେ ଓ ପଶ୍ଚିମରେ କ’ଣ ଶୋଭା ପାଉଛି?
Answer:
ସୋରର ପଶ୍ଚିମରେ ପର୍ବତ ଓ ପୂର୍ବରେ ପାରାବାର ଶୋଭା ପାଉଛି ।

Question 15.
ମାଧବଙ୍କର ମନ୍ଦିର କେଉଁଠାରେ ପ୍ରତିଷ୍ଠିତ?
Answer:
ପ୍ରାଚୀ ନଦୀ ତୀରରେ ମାଧବାଖ୍ୟ ଗ୍ରାମରେ ମାଧବଙ୍କ ମନ୍ଦିର ପ୍ରତିଷ୍ଠିତ ।

Question 16.
ଧଉଳିର ଦର୍ପଣ ବୋଲି କବି କାହାକୁ କହିଛନ୍ତି?
Answer:
ଦୟାନଦୀକୁ କବି ଧଉଳିର ଦର୍ପଣ ବୋଲି କହିଛନ୍ତି ।

Question 17.
କେଉଁମାନେ ମହାଧନୁର୍ଦ୍ଧାରୀ?
Answer:
କନ୍ଧ ଯୋଧବୃନ୍ଦମାନେ ମହାଧନୁର୍ଦ୍ଧାରୀ ବୋଲି କୁହାଯାଇଛି ।

Question 18.
କେଉଁଠାରେ ଯଥେଷ୍ଟ ପରିମାଣରେ ହରିଦ୍ରା ଉତ୍ପନ୍ନ ହୁଏ?
Answer:
କନ୍ଧମାଳ ପାର୍ବତୀୟ କ୍ଷେତ୍ରମାନଙ୍କରୁ ଯଥେଷ୍ଟ ପରିମାଣରେ ହରିଦ୍ରା ଉତ୍ପନ୍ନ ହୁଏ ।

Question 19.
ରିପୁ କାନନରେ କେଉଁମାନେ ଦାବାନଳ ପରି?
Answer:
ରିପୁ କାନନରେ ତାଳଚେରର ବୀରମାନେ ଦାବାନଳ ପରି ।

Question 20.
ତାଳଚେରର ଆରାଧ୍ୟା ଦେବୀ କିଏ?
Answer:
ହିଙ୍ଗୁଳା ହେଉଛନ୍ତି ତାଳଚେରର ଆରାଧ୍ୟ ଦେବୀ ।

Question 21.
ଢେଙ୍କାନାଳର ନାମକରଣ କିପରି ହୋଇଛି?
Answer:
ଢେଙ୍କା ନାମକ ଜଣେ ଶବର ରାଜାଙ୍କ ନାମରୁ ଢେଙ୍କାନାଳର ନାମକରଣ ହୋଇଛି ।

Question 22.
ଗୃଧ୍ରଙ୍କର ରୁଧର ପାରଣା କେଉଁମାନେ ହେଲେ?
Answer:
ଯୁଦ୍ଧ ଅଶ୍ବଗୁଡ଼ିକ ଗୃଧ୍ରଙ୍କର ରୁଧର ପାରଣା ହେଲେ ।

Question 23.
ଚୋରଗଙ୍ଗଙ୍କର କିଏ ସହାୟ ହୋଇଥିଲେ?
Answer:
ମା’ ଗଙ୍ଗାଦେବୀ ଚୋରଗଙ୍ଗଙ୍କର ସହାୟ ହୋଇଥିଲେ ।

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Question 24.
ଗଙ୍ଗାଙ୍କ ବାକ୍ୟରେ ଦେବ ଚନ୍ଦ୍ରଚୂଡ଼ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କୁ କ’ଣ ପ୍ରଦାନ କରିବାକୁ ଇଚ୍ଛା କରିଥିଲେ?
Answer:
ଗଙ୍ଗାଙ୍କ ବାକ୍ୟରେ ଦେବ ଚନ୍ଦ୍ରଚୂଡ଼ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କୁ ଉତ୍କଳର ମହୁଡ଼ ବା ଉତ୍କଳର ସିଂହାସନ ପ୍ରଦାନ କରିବାକୁ ଇଚ୍ଛା କରିଥିଲେ ।

Question 25.
ଗଡ଼ଦ୍ବାର ରୁଦ୍ଧ କରିବାକୁ ରାଜା ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀକୁ କିଏ ଆଜ୍ଞା ଦେଇଥିଲେ?
Answer:
ଗଡ଼ଦ୍ୱାର ରୁଦ୍ଧ କରିବାପାଇଁ ରାଜା ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀଙ୍କୁ ଦେବୀ ଗଡ଼ଚଣ୍ଡୀ ଆଜ୍ଞା ଦେଇଥିଲେ ।

Question 26.
ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀଙ୍କୁ କିଏ ଚୈତ୍ରମଣି ପ୍ରଦାନ କରିଥିଲେ?
Answer:
ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀଙ୍କୁ ଦେବୀ ଗଡ଼ଚଣ୍ଡୀ ଜୈତ୍ରମଣି ପ୍ରଦାନ କରିଥିଲେ ।

Question 27.
ଚୋରଗଙ୍ଗଦେବ ବିଜନରେ କ’ଣ ମନ୍ତ୍ରଣା କରୁଥିଲେ?
Answer:
ସ୍ବ-ଦେଶକୁ ବାହୁଡ଼ି ଯିବେ ବୋଲି ଚୋରଗଙ୍ଗଦେବ ବିଜନରେ ବସି ମନ୍ତ୍ରଣା କରୁଥିଲେ ।

Question 28.
‘କାଲି ରାତ୍ରିଯାଏ ରହ ଧୈର୍ଯ୍ୟ ଧରି’ – ଏକଥା କିଏ କହିଛନ୍ତି?
Answer:
‘‘କାଲି ରାତ୍ରିଯାଏ ରହ ଧୈର୍ଯ୍ୟ ଧରି—’’ ଏକଥା ଚୋରଗଙ୍ଗଦେବ ତାଙ୍କର ସୈନ୍ୟମାନଙ୍କୁ କହିଛନ୍ତି ।

Question 29.
କୁକ୍‌କୁଟ, କୌଶିକ ଓ ଚଷାପୁଏ ମିଳି କ’ଣ କଲେ?
Answer:
କୁକ୍‌କୁଟ, କୌଶିକ ଓ ଚଷାପୁଏ ମିଳି ତୌର୍ଯ୍ୟତ୍ରିକ କଲେ।

Question 30.
ଜାହ୍ନବୀଙ୍କର ସହଚରୀମାନେ କେଉଁ ବେଶ ଧାରଣ କରିଥିଲେ?
Answer:
ଜାହ୍ନବୀଙ୍କର ସହଚରୀମାନେ ଉତ୍କଳୀୟ ବେଶ ବା ଓଡ଼ିଆଣୀ ବେଶ ଧାରଣ କରିଥିଲେ ।

Question 31.
ଦେବୀ ଜାହ୍ନବୀଙ୍କର କବରୀ କେଉଁଥରେ ଭୂଷିତ ହୋଇଥିଲା?
Answer:
ଦେବୀ ଜାହ୍ନବୀଙ୍କର କବରୀ ଶତଦଳ ବା ପଦ୍ମଫୁଲରେ ଭୂଷିତ ହୋଇଥିଲା ।

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Question 32.
ଜାହ୍ନବୀ ଜଳରେ ସମାସୀନା ହେବାପରେ କାହାର ବୀଣା ବାଜି ଉଠିଲା?
Answer:
ଜାହ୍ନବୀ ଜଳରେ ସମାସୀନା ହେବାପରେ ବନଦେବୀଙ୍କର ବୀଣା ବାଜିଉଠିଲା ।

Question 33.
ଜାହ୍ନବୀଙ୍କୁ ଜଳରେ କେଉଁମାନେ ବେଢ଼ି ରହିଥିଲେ?
Answer:
ଜାହ୍ନବୀଙ୍କୁ ଜଳରେ ହଂସ ଓ ଚକ୍ରବାକମାନେ ବେଢ଼ି ରହିଥିଲେ ।

Question 34.
ତୃଣାହାର ଛାଡ଼ି କେଉଁମାନେ ଉଦ୍‌ଗ୍ରୀବ ହୋଇ ଚାହିଁ ରହିଥିଲେ?
Answer:
ତୃଣାହାର ଛାଡ଼ି ମୃଗ ଓ ମୃଗୀମାନେ ଉଦ୍‌ଗ୍ରୀବ ହୋଇ ଚାହିଁ ରହିଥିଲେ ।

Question 35.
ଦେବୀଙ୍କ ରୂପ କାହାକୁ ଲାଞ୍ଛିତ କରୁଥୁଲା?
Answer:
ଦେବୀଙ୍କ ରୂପ କୋଟି ଦ୍ବିଜରାଜ ଅର୍ଥାତ୍ ଚନ୍ଦ୍ରଙ୍କୁ ଲାଞ୍ଛିତ କରୁଥିଲା ।

Question 36.
ଭୂ-ଭାରତରେ ଦ୍ଵାପର ଯୁଗରେ କିଏ ବୈଷ୍ଣବଧର୍ମ ସ୍ଥାପନ କରିଥିଲେ?
Answer:
ଭୂ-ଭାରତରେ ଦ୍ଵାପର ଯୁଗରେ ବୀର ଦେବବ୍ରତ ବୈଷ୍ଣବ ଧର୍ମ ସ୍ଥାପନ କରିଥିଲେ ।

Question 37.
ପ୍ରଧାନପାଟ ପର୍ବତ କେଉଁଠାରେ ପରିଦୃଶ୍ୟ ହୁଏ?
Answer:
ପ୍ରଧାନପାଟ ପର୍ବତ ସମ୍ବଲପୁର ଜିଲ୍ଲାରେ ପରିଦୃଶ୍ୟ ହୁଏ ।

Question 38.
ଦେବତାଙ୍କୁ କ’ଣ ଜଣା?
Answer:
ଦେବତାଙ୍କୁ କୂଟ ଜଣା ।

Question 39.
ଶତ୍ରୁ ହୋଇବି କିଏ କାହାର ମନ ଚୋରି କଲା?
Answer:
ଶତ୍ରୁ ହୋଇବି ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବ ନନ୍ଦିକାର ମନ ଚୋରି କଲା ।

Question 40.
ପ୍ରଭୁପଣକୁ କିଏ ଭାଜନ ନୁହେଁ?
Answer:
ଯିଏ ଅନ୍ୟର ମନକଥାକୁ ବୁଝିପାରେ ନାହିଁ, ସେ ପ୍ରଭୁପଣକୁ ଭାଜନ ନୁହେଁ ।

Question 41.
ମହାବିଷ୍ଣୁଙ୍କ ସ୍ନାନ ଯୋଗୁଁ କଏ ପୁଣ୍ୟତୋୟା?
Answer:
ମହାବିଷ୍ଣୁଙ୍କ ସ୍ନାନ ଯୋଗୁଁ ବୈତରଣୀ ନଦୀର ଜଳ ପୁଣ୍ୟତୋୟା ହୋଇଛି ।

Question 42.
ଶବର ଯୁବତୀମାନେ କେଉଁଠାରୁ ସୁବର୍ଣ୍ଣପରାଗ ସଂଗ୍ରହ କରନ୍ତି?
Answer:
ଶବର ଯୁବତୀମାନେ ସୁବର୍ଣ୍ଣରେଖା ନଦୀରୁ ସୁବର୍ଣ୍ଣପରାଗ ସଂଗ୍ରହ କରନ୍ତି ।

Question 43.
ରମ୍ଭାଙ୍କ ମନ୍ଦିର କେଉଁ କେଉଁ ନଦୀ ତୀରରେ ଅବସ୍ଥିତ?
Answer:
ରମ୍ଭାଙ୍କର ମନ୍ଦିର ବ୍ରାହ୍ମଣୀ ନଦୀତୀରରେ ଅଛି ।

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Question 44.
ପ୍ରଧାନପାଟ ପ୍ରପାତର ଜଳରାଶି କେଉଁ ନଦୀ ସହିତ ମିଶିଛି?
Answer:
ପ୍ରଧାନପାଟ ପ୍ରପାତର ଜଳରାଶି ବ୍ରାହ୍ମଣୀନଦୀ ସହିତ ମିଶିଛି।

Question 45.
କେଉଁ ସ୍ଥାନ ବୌଦ୍ଧ କିର୍ତ୍ତୀରାଜି ମଣ୍ଡିତ ଅଟେ?
Answer:
ନରାଜ ବୌଦ୍ଧ କିର୍ତ୍ତୀରାଜି ମଣ୍ଡିତ ଅଟେ ।

Question 46.
ସର୍ପେଶ୍ଵର ପର୍ବତର ପୟର କିଏ ଧୌତ କରୁଛି (ସାପୁଆ) ନଦୀ ଧୌତ କରୁଛି ।
Answer:
ସର୍ପେଶ୍ଵର ପର୍ବତର ପୟର ସର୍ପେଶ୍ଵରୀ ୪୭ ।

Question 47.
ଥରେ କାନ୍ତକୁ ଥରେ ମିହିରକୁ ଅନାଇ କିଏ ଭାବୁଛି ?
Answer:
ଥରେ କାନ୍ତାକୁ ଥରେ ମିହିରକୁ ଅନାଇ ରଥାଙ୍ଗୀ ବା ଚକ୍ରବାକୀ ଭାବୁଛି ।

Question 48.
ଉନ୍ନତ ଆନନ୍ଦରେ ଦୁର୍ଗବାସୀ କ’ଣ ରୁଣ୍ଡ କଲେ?
Answer:
ଉନ୍ନତ ଆନନ୍ଦରେ ଦୁର୍ଗବାସୀ ଭୋଗ ରୁଣ୍ଡ କଲେ ।

Question 49.
ଦେବୀଙ୍କ ଛାମୁରେ ଭକ୍ତି ଭାବରେ ରାଜା କ’ଣ କରୁଥିଲେ?
Answer:
ଦେବୀଙ୍କ ଛାମୁରେ ଭକ୍ତି ଭାବରେ ରାଜା ଚାମର ଢାଳୁଥିଲେ ।

Question 50.
ଦେବତାଙ୍କୁ କ’ଣ ଜଣା ଯାହା ମନୁଷ୍ୟକୁ ବଣା କରେ?
Answer:
ଦେବତାଙ୍କୁ ଦେବକୂଟ ଜଣା, ଯାହା ମନୁଷ୍ୟକୁ ବଣା କରେ ।

Question 51.
ଅରି ହୋଇ ବି କିଏ କାହାର ମନ ଚୋରି କରିଛି ।
Answer:
ଅରି ହୋଇ ମଧ୍ୟ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବ ରାଜଜେମା ନନ୍ଦିକାଙ୍କର ମନ ଚୋରି କରିଛନ୍ତି ।

Question 52.
ପ୍ରଭୁପଣକୁ କିଏ ଭାଜନ ନୁହେଁ?
Answer:
ଯିଏ ପରର ମନ (ଅନ୍ୟର ମନ) ବୁଝିପାରେ ନାହିଁ, ସେ ପ୍ରଭୁପଣକୁ ଭାଜନ ନୁହେଁ ।

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Question 53.
ଶାସ୍ତ୍ର ମତରେ କାହା ଉପରେ ପିତାର ପୂର୍ବ ଅଧିକାର ଅଛି?
Answer:
ଶାସ୍ତ୍ର ମତରେ ସୁତା ବା କନ୍ୟା ଉପରେ ପିତାର ପୂର୍ବ ଅଧିକାର ଅଛି ।

Question 54.
ମହୀରେ ମହାବଳୀ କିଏ?
Answer:
ମହୀରେ ମହାବଳୀ ପ୍ରେମ ।

Question 55.
ଯୁଦ୍ଧ ଦିନରୁ ରୁଦ୍ଧ ହୋଇଥିବା ସୁଡ଼ଙ୍ଗର ଦ୍ଵାର କେଉଁ ଦିଗକୁ ଥିଲା?
Answer:
ଯୁଦ୍ଧ ଦିନରୁ ରୁଦ୍ଧ ହୋଇଥିବା ସୁଡ଼ଙ୍ଗର ଦ୍ବାର ଦକ୍ଷିଣ ଦିଗକୁ ଥିଲା ।

Question 56.
ଜ୍ୟୋତ୍ସ୍ନାବାହିନୀ ଯାମିନୀ ଯୋଗୁଁ ଅବନୀ କିଭଳି ଦେଖାଯାଉଛି?
Answer:
ଜ୍ୟୋତ୍ସ୍ନାବାହିନୀ ଯାମିନୀ ଯୋଗୁଁ ଅବନୀ ଶ୍ଵେତଦ୍ୱୀପ ପରି ଦେଖାଯାଉଥିଲା ।

Question 57.
ସୁଷମାରେ ରାଜଜେମା କାହାକୁ ନିନ୍ଦା କରୁଛି?
Answer:
ସୁଷମାରେ ରାଜଜେମା ଶରତକାଳର ଉଷାକୁ ନିନ୍ଦା କରୁଥିଲା ।

Question 58.
ପୂର୍ଣ୍ଣମାସୀ କାହାକୁ ଲୋଡ଼ନ୍ତି?
Answer:
ପୂର୍ଣ୍ଣମାସୀ ଅଳ୍ପ ତାରା ଲୋଡ଼େ ।

Question 59.
ନାରୀକୁଳ ସର୍ବଦା କାହାର ପକ୍ଷପାତୀ?
Answer:
ନାରୀକୁଳ ସର୍ବଦା ବୀରମାନଙ୍କର ପକ୍ଷପାତୀ ।

Question 60.
ନତମୁଖୀ ନନ୍ଦିକା କାହାର ଆଶ୍ରୟ ଚାହୁଁଥିଲା?
Answer:
ନନ୍ଦିକା ନତମୁଖ ହୋଇ ଗର୍ଭରେ ଆଶ୍ରୟ ଚାହୁଁଥିଲା ।

(ଗ) ୨ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ଦୁଇଟି ବାକ୍ୟରେ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ ଓ ଉତ୍ତର । ଲେଖା ଓ ଲେଖକଙ୍କ ପାଇଁ – ୧ ନମ୍ବର ଓ ଉତ୍ତର ପାଇଁ – ୧ ନମ୍ବର ।

Question 1.
ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ କାବ୍ୟଟି କେଉଁ କେଉଁ ବିଦେଶୀ ଗ୍ରନ୍ଥର ଛାୟାରେ ଲିଖ୍ତ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ କାବ୍ୟଟି ଓଭିଡ଼ଙ୍କ ‘ମେଟାମରଫୋସିସ୍’ କାବ୍ୟର ଅଷ୍ଟମ କବିତା ‘ଦି କିଙ୍ଗ୍ ମିନସ୍ ଏଣ୍ଡ ସିଲା’ର କାହାଣୀ ଓ ବାଇରନ୍‌ଙ୍କ ‘ଦି ସିଜ୍ ଅଫ୍ କୋରିନ୍ଥ’ ଗ୍ରନ୍ଥର କଥାବସ୍ତୁର ଛାୟାରେ ଲିଖୁତ ହୋଇଛି ।

Question 2.
କାଠଯୋଡ଼ି କୂଳରେ କ’ଣ ବସିଛି ଓ ଲୋକମାନେ କେଉଁଠି ଠୁଳ ହୋଇଛନ୍ତି ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
କାଠଯୋଡ଼ି କୂଳରେ ବିପଣି ବା ହାଟ ବସିଛି । ଲୋକମାନେ ନଦୀଶଯ୍ୟା, ନଦୀବନ୍ଧ ଏବଂ ନଦୀକୂଳରେ ଠୁଳ ହୋଇଛନ୍ତି ।

Question 3.
ଆଳି କାହିଁକି ପ୍ରସିଦ୍ଧ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ବାଲୁକାପୂର୍ଣ୍ଣ ଆଳିର ସର୍ବପ୍ରଧାନ ଦେବତା ହେଉଛନ୍ତି ବରାହ । ଆଳିର କ୍ଷତ୍ରିୟ-ବୃନ୍ଦମାନେ ମହାବୀର୍ଯ୍ୟଶାଳୀ ଅଟନ୍ତି ।

Question 4.
ଶାଳିପୁର କେଉଁ ନଦୀ କୂଳରେ ଅବସ୍ଥିତ ? ଏଠାରେ କେଉଁ ଦେବୀଙ୍କ ମନ୍ଦିର ଅଛି ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ଶାଳିପୁରର ଆଧୁନିକ ନାମ ସାଲେପୁର, ଏହା ଚିତ୍ରୋତ୍ପଳା ନଦୀ କୂଳରେ ଅବସ୍ଥିତ । ଏଠାରେ ଦେବୀ ଭଗବତୀଙ୍କ ମନ୍ଦିର ଅଛି ।

Question 5.
ଉତ୍ତର-କୋଶଳା କେଉଁ ଅଞ୍ଚଳକୁ କୁହାଯାଉଥିଲା?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ମହାନଦୀର ଉତ୍ତରାଂଶକୁ ଉତ୍ତର କୋଶଳା କୁହାଯାଉଥିଲା । ଚଉଦ୍ଵାର ଆଦି ସ୍ଥାନ ଏହି ଉତ୍ତର କୋଶଳା ଅନ୍ତର୍ଗତ ।

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Question 6.
କବି ଭଦ୍ରକର ବର୍ଣ୍ଣନା କିପରି କରିଛନ୍ତି ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ଭଦ୍ରକ ସହରଟି ସାଳନ୍ଦୀ ନଦୀକୁ ବେଢ଼ିରହିଛି । ଏହି ସାଳନ୍ଦୀ ନଦୀକୁ କବି ଉତ୍କଳର କାଳିନ୍ଦୀ ବା ଯମୁନା ଭାବରେ ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛନ୍ତି ।

Question 7.
ସୋରର ଚିତ୍ର କିପରି ଦିଆଯାଇଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ବାଲେଶ୍ବର ଜିଲ୍ଲାର ଏକ ଅଞ୍ଚଳର ନାମ ସୋର । ଏହି ସୋରର ପଶ୍ଚିମରେ ପର୍ବତ ଓ ପୂର୍ବରେ ପାରାବାର ବା ସାଗର ରହିଛି ।

Question 8.
ଉତ୍କଳ ସାମ୍ରାଜ୍ୟ କାହାକୁ ପ୍ରଦାନ କରିବାକୁ କିଏ ଇଚ୍ଛା କରିଥିଲେ ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ଉତ୍କଳ ସାମ୍ରାଜ୍ୟ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବଙ୍କୁ ପ୍ରଦାନ କରିବାକୁ, ଗଙ୍ଗାଙ୍କ ଆଦେଶରେ ଚନ୍ଦ୍ରଚୂଡ଼ ବା ଶିବ ଇଚ୍ଛା କରିଥିଲେ ।

Question 9.
ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀ କାହିଁକି ଗଡ଼ଦ୍ଵାର ରୁଦ୍ଧ କରିଥିଲେ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ରାଜା ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବ ଗଙ୍ଗାଙ୍କ ବରରେ ବଳୀୟାନ ହୋଇ ଉତ୍କଳକୁ ଆକ୍ରମଣ କଲେ, ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀ ଅନେକ ଚେଷ୍ଟାପରେ ମଧ୍ୟ ଉତ୍କଳର ରକ୍ଷା କରିନପାରି, ଆରାଧ୍ୟା ଦେବୀ ଗଡ଼ଚଣ୍ଡୀଙ୍କ ଶରଣାପନ୍ନ ହେଲେ, ଦେବୀଙ୍କ ଆଦେଶରେ, ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀ ଗଡ଼ଦ୍ଵାର ରୁଦ୍ଧ କରିଥିଲେ ।

Question 10.
ଚଣ୍ଡିକା ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀଙ୍କୁ ସ୍ଵପ୍ନରେ କ’ଣ ଆଜ୍ଞା ଦେଲେ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ଚଣ୍ଡିକା ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀଙ୍କୁ ସ୍ଵପ୍ନରେ ଦେଖାଦେଇ କହିଲେ – ‘ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗ ଗଙ୍ଗାଙ୍କ ଆଶୀର୍ବାଦ ଲାଭକରି ବଳୀୟାର ହୋଇଛି, ତେଣୁ ତାଙ୍କୁ ସମ୍ମୁଖ ଯୁଦ୍ଧରେ ପରାସ୍ତ କରିହେବ ନାହିଁ । ଏପରିକି ଗଙ୍ଗାଙ୍କ ଆଦେଶରେ ମହାକୋପି ଶିବ ମଧ୍ଯ ତାଙ୍କୁ ଉତ୍କଳର ସିଂହାସନ ପ୍ରଦାନ କରିବାପାଇଁ ଇଚ୍ଛାପ୍ରକାଶ କରିଛନ୍ତି । ତେଣୁ ଯୁଦ୍ଧରେ ବିଜୟୀ ଆଶା ତ୍ୟାଗକରି ବିଡ଼ାନାସୀ ଗଡ଼ ମଧ୍ଯରେ ଅବସ୍ଥାନ କର ।

Question 11.
ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀଙ୍କୁ ଜୈତ୍ରମଣି ପ୍ରଦାନ କରି ଚଣ୍ଡିକା କ’ଣ କହିଥିଲେ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀଙ୍କୁ ଜୈତ୍ରମଣି ପ୍ରଦାନକରି ଚଣ୍ଡିକା କହିଲେ – ‘‘ଏହି ମଣି ସର୍ବଦା ଧାରଣ କର । ଏହି ମଣି ଧାରଣ କରିଥିବା ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ, ଶତ୍ରୁ ତୁମର କୌଣସି କ୍ଷତି କରିପାରିବ ନାହିଁ । ପୁନଶ୍ଚ ଗଡ଼ଦ୍ଵାର ରୁଦ୍ଧ କରି ଗଡ଼ ମଧ୍ୟରେ ବାସକର ।’’

Question 12.
ବାସୁଦେବ କିଏ ? ସେ କାହିଁକି ଚୋଳଗଙ୍ଗଙ୍କର ମନ୍ତ୍ରୀତ୍ବ ସ୍ଵୀକାର କରିଥିଲେ ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ବାସୁଦେବ ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀଙ୍କ ମନ୍ତ୍ରୀ ଥିଲେ । କିନ୍ତୁ ବିବାଦ ହେବାରୁ ସେ ତାଙ୍କ ପାଖରୁ ଛାଡ଼ି ଚାଲିଆସି ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କ ମନ୍ତ୍ରୀତ୍ଵ ସ୍ଵୀକାର କରିଥିଲେ ।

Question 13.
କୁଆଁତାରା କିପରି ଶୋଭା ପାଉଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ନୀଳକାନ୍ତି ସ୍ୱରୂପ ଆକାଶରେ କୁଆଁତାରା ବିରାଜମାନ କଲା । ସତେ ଯେପରି ପୂର୍ବ ଆକାଶ ତା’ର ମଥାରେ ରାମାନନ୍ଦୀ ଚିତା ଲଗାଇଛି ।

Question 14.
କୁମ୍ଭାଟୁଆର ବର୍ଣ୍ଣନା କିପରି ଦିଆଯାଇଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
କୁମ୍ଭାଟୁଆ ଡଗର ସାଜି ଜଙ୍ଗଲରେ ନାଗରା ବଜାଇ, ସକାଳ ହେବାର ଖବର ଦେଉଛି ବୋଲି ବର୍ଣ୍ଣନା କରାଯାଇଛି ।

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Question 15.
କେଉଁମାନେ ମିଶି ତ୍ରୈର୍ଯ୍ୟତ୍ମିକ ସମ୍ପାଦନ କଲେ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
କୁକ୍‌କୁଟ, କୌଶିକ ଓ ଚଷାପୁଏ ମିଶି ତ୍ରୈର୍ଯ୍ୟତ୍ରିକ ସମ୍ପାଦନ କଲେ ।,ଗୀତ, ବାଦ୍ୟ ଓ ନୃତ୍ୟର ସମନ୍ଵୟକୁ ଦ୍ରୌର୍ଯ୍ୟତ୍ରିକ କୁହାଯାଏ ।

Question 16.
ନିର୍ଜନ କନ୍ଦରରୁ ପ୍ରବାହିତ ଜଳଧାରାକୁ କବି କିପରି ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛନ୍ତି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ବରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ନିର୍ଜନ କନ୍ଦରରୁ ପ୍ରବାହିତ ଜଳଧାରାକୁ କବି ପୂଜାବେଦୀରୁ କୃପାଝର ବହୁଛି ବୋଲି କହିଛନ୍ତି । ସେଇ ଜଳଧାରା କାଚ ପରି ସ୍ବଚ୍ଛ, ଯେପରି ଦେବତା ତଥା ଦେବ ମନ ପରି ଉଦାର ।

Question 17.
ହ୍ରଦ ମଧ୍ୟରେ କ’ଣ ଶୋଭାପାଉଥିଲା?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ହ୍ରଦର ଉପର ଆସ୍ତରଣରେ ଜଳ-ପୁଷ୍ପ-ଦଳ ଶୋଭା ପାଉଥିଲା । ପଦ୍ମ, କଇଁ, ଧବଳ କଇଁ ପ୍ରଭୃତି ଫୁଲ ସେଇ ହ୍ରଦରେ ଥିଲା ।

Question 18.
କବି ମହାନଦୀକୁ କିପରି ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛନ୍ତି ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
କବି ମହାନଦୀକୁ ଉତ୍କଳ ଭୁବନର ବିଷ୍ଣୁପଦୀ ବା ଗଙ୍ଗା ବୋଲି ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛନ୍ତି । ମହାନଦୀ ହେଉଛି ଉତ୍କଳର ପ୍ରାଣ, ତାହାରି ସକାଶେ ଉତ୍କଳ ଶସ୍ୟଶ୍ୟାମଳା ହୋଇପାରିଛି ।

Question 19.
ବିରଜାଦେବୀଙ୍କର କିପରି ବର୍ଣ୍ଣନା ହୋଇଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ବିରଜାଦେବୀ ପୂର୍ଣ୍ଣିମା ଚନ୍ଦ୍ରର ଜ୍ୟୋତି ପରି ଓ ସେ ଦେବ ଯଜ୍ଞରୁ ସମ୍ଭୂତା ଏବଂ ପରମା ସୁନ୍ଦରୀ ବୋଲି କବି ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛନ୍ତି ।

Question 20.
ବୈତରଣୀର ବର୍ଣ୍ଣନା କିପରି ପ୍ରଦାନ କରାଯାଇଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ବୈତରଣୀ ନଦୀଟି କେନ୍ଦୁଝର ଜିଲ୍ଲାର ଗୋନାସିକା ପର୍ବତରୁ ଜାତ ହୋଇଛି, ଏହାର ଜଳ ଅତ୍ୟନ୍ତ ପବିତ୍ର ଓ ମହାବିଷ୍ଣୁ ଏହି ନଦୀଜଳରେ ସ୍ନାନ କରିଥିବାରୁ ଏହା ପୁଣ୍ୟତୋୟା ହୋଇଛି ବୋଲି କବି ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛନ୍ତି ।

Question 21.
ବ୍ରାହ୍ମଣୀ ନଦୀର କି ବର୍ଣ୍ଣନା ଦିଆଯାଇଛି ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ବ୍ରାହ୍ମଣୀ ନଦୀର ଜଳ ପବିତ୍ରକାରିଣୀ । ଏହି ବ୍ରାହ୍ମଣୀ ନଦୀ ବୈତରଣୀ ସହ ମିଶି ଉତ୍କଳକୁ ଶସ୍ୟଶ୍ୟାମଳା କରୁଛି । ତେଣୁ ରମ୍ଭା ଏହାର କୂଳରେ ଇଚ୍ଛାପ୍ରକାଶ କରି ବାସ କରୁଛନ୍ତି ବୋଲି କବି ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛନ୍ତି ।

Question 22.
ରଚିବେ ଯା’ ତୀରେ ରୁଚିର ନବର
ଦୂର ଭବିଷ୍ୟତେ ତୋର ବଂଶଧର – ଏହାର ଭାବାର୍ଥ ଲେଖ ।
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ପ୍ରଧାନପାଟ ଦେବଗଡ଼ରେ ଅବସ୍ଥିତ । ଦେବଗଡ଼ ବାମଣ୍ଡାର ରାଜଧାନୀ । ଏହି ଭବିଷ୍ୟବାଣୀ ଲକ୍ଷ୍ୟ ହେଉଛି ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବ ବାମଣ୍ଡା ରାଜବଂଶର ଆଦିପୁରୁଷ ଅଟନ୍ତି ।

Question 23.
କେଉଁ ନଦୀ ଉତ୍କଳରେ ପୂଜା ପାଉଛନ୍ତି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ବ୍ରାହ୍ମଣୀ, ବୈତରଣୀ, ସୁବର୍ଷରେଖା, ବୁଢ଼ାବଳଙ୍ଗ ଏହି ଚାରିସଖୀଙ୍କ ସହ ସୁକାନ୍ତି ତନୁଜା ଅର୍ଥାତ୍ ମହାନଦୀ ଉତ୍କଳରେ ପୂଜା ପାଉଛନ୍ତି ।

Question 24.
ଦେବୀଙ୍କ ଆବିର୍ଭାବରେ କେଉଁ ନବତୀର୍ଥ କାହା ନାମାନୁସାରେ ପ୍ରତିଷ୍ଠିତ ହେଲା?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ଦେବୀଙ୍କ ଆବିର୍ଭାବରେ ଯେଉଁ ନବତୀର୍ଥ ପ୍ରତିଷ୍ଠିତ ହେଲା ତାହାର ନାମ ହେଲା ‘ଚୋରଗଙ୍ଗ ଦହ’ ବା ଚୁଡ଼ଙ୍ଗ ଦହ । ଏହା ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବଙ୍କ ନାମାନୁସାରେ ପ୍ରତିଷ୍ଠିତ ହେଲା ।

Question 25.
ନଦୀକୂଳ ବନ୍ଧୁ କିଏ ଓ ସେ କାହିଁକି ପ୍ରତ୍ୟୁତ୍ତର ଦେଲା?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ନଦୀକୂଳ ବନ୍ଧୁ ହେଉଛି ଯାମଘୋଷୀ ନାମକ ଏକ ଜାତିର ପକ୍ଷୀ । ପର୍ବତ ଉପରୁ କୋଚିଲାଖାଇର ରାବ ଶୁଣି ସେ ମଧ୍ଯ ଅନ୍ୟ ପଟରୁ ରାବ ଦେଇଛି । କବି ଏହାକୁ ନଦୀକୂଳ ବନ୍ଧୁ ପ୍ରତ୍ୟୁତ୍ତର ଦେଲା ବୋଲି ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛନ୍ତି ।

Question 26.
କିଏ ଫଗୁଖେଳ ଖେଳୁଛି ଓ କିପରି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ବାରୁଣୀ ରାଣୀ ସ୍ଵର୍ଣ୍ଣ ବେଳ ବା ଲୁଗା ପିନ୍ଧି ସଖୀମାନଙ୍କ ସହ ମିଶି ଫଗୁ ଖେଳୁଛନ୍ତି ବୋଲି କୁହାଯାଇଛି ।

Question 27.
ନୀଳ ପ୍ରାଚୀର ପରି କ’ଣ ଶୋଭାପାଉଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ସାରଙ୍ଗଗଡ଼ରୁ ଆଠଗଡ଼ଯାଏ ଯେଉଁ ଶୈଳଶ୍ରେଣୀ ରହିଛି, ତାହା ନୀଳ ପ୍ରାଚୀର ପରି ଶୋଭାପାଉଛି ବୋଲି କବି ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛନ୍ତି ।

Question 28.
ସପ୍ତଶଯ୍ୟାର ବର୍ଣ୍ଣନା କିପରି ହୋଇଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ସପ୍ତଶଯ୍ୟା ପର୍ବତଟି ଢେଙ୍କାନାଳ ଜିଲ୍ଲାରେ ଅଛି ଓ ଏହା କଟକଠାରୁ ଦେଖାଯାଏ । ଏହି ପାହାଡ଼ ଉଚ୍ଚତାରେ ଅନ୍ୟସବୁ ପାହାଡ଼ମାନଙ୍କୁ ଲଜ୍ଜାଦେଇ ନିଜେ ମୁଣ୍ଡଟେକି ରହିଛି ବୋଲି କବି ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛନ୍ତି ।

Question 29.
ନରାଜ କାହିଁକି ପ୍ରସିଦ୍ଧ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ମହାନଦୀର ଉପର ମୁଣ୍ଡରେ ନରାଜ ପହାଡ଼ ରହିଛି । ଏହା ବୌଦ୍ଧକର୍ଭି ଲାଗି ପ୍ରସିଦ୍ଧ ।

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Question 30.
ସର୍ପେଶ୍ଵର ପର୍ବତ କେଉଁଠି ଅଛି ? ସେଠାରେ କେଉଁ ନଦୀ ପ୍ରବାହିତ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ସର୍ପେଶ୍ଵର ପର୍ବତ ଆଠଗଡ଼ରେ ଅଛି । ସେଠାରୁ ସର୍ପେଶ୍ଵର (ସାପୁଆ) ନଦୀ ପ୍ରବାହିତ ହେଉଛି ।

Question 31.
ରଥାଙ୍ଗୀ ବିଷୟରେ କ’ଣ କୁହାଯାଇଛି ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ପୁରାଣରେ ପ୍ରବାଦ ଅଛି ଯେ, ମହାଲକ୍ଷ୍ମୀଙ୍କ ଅଭିଶାପ ଯୋଗୁଁ ଚକ୍ରବାକ ଓ ଚକ୍ରବାକୀଙ୍କର ଦିନରେ ମିଳନ ଓ ରାତିରେ ବିଚ୍ଛେଦ ହୁଏ । ସନ୍ଧ୍ୟା ହୋଇଆସୁଥିବାରୁ ରଥାଙ୍ଗୀ ବା ଚକ୍ରବାକୀ କାଠଯୋଡ଼ି ପାଣିରୁ ଥରେ ସୂର୍ଯ୍ୟଙ୍କୁ ଓ ଆଉଥରେ ନିଜ କାନ୍ତଙ୍କୁ ଚାହିଁ ଦୁଃଖ ପ୍ରକାଶ କରୁଛି ।

Question 32.
ଗଡ଼ବାସୀ ଜନେ କାହିଁକି ଉଲ୍ଲାସରେ ଗଡୁଛନ୍ତି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ଗୁପ୍ତଚର ଆସି ଖବର ଦେଇଛି ଯେ, ଆଜି ରାତ୍ର ଶେଷ ହେବାମାତ୍ରେ, ଶତ୍ରୁପକ୍ଷ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବ ଉତ୍କଳ ଛାଡ଼ି ପ୍ରତ୍ୟାଗମନ କରିବେ । ତେଣୁ ଗଡ଼ବାସୀମାନେ ଉଲ୍ଲାସରେ ଗଡୁଛନ୍ତି ।

Question 33.
ଚଣ୍ଡିକାଙ୍କ ଗୃହରେ କିପରି ମହୋତ୍ସବ ଲାଗି ରହିଥିଲା ଓ କାହିଁକି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ଚଣ୍ଡିକାଙ୍କ ମନ୍ଦିରରେ ଗଡ଼ବାସୀମାନେ ନୃତ୍ୟ, ଗୀତ, ବାଦ୍ୟର ଆୟୋଜନ କରି ବିଭିନ୍ନ ପ୍ରକାରର ଭୋଗ ଅର୍ପଣ କରୁଛନ୍ତି, ରାଜା ଚାମର ଢାଳୁଛନ୍ତି, ବିଭିନ୍ନ ପ୍ରକାର ବାଦ୍ୟ ଓ ରୋଷଣୀରେ ମନ୍ଦିର ସୁନ୍ଦର ଦେଖାଯାଉଛି, କାରଣ ହେଉଛି ଶତ୍ରୁପକ୍ଷ ରାତିପାହିବା ପରେ ଉତ୍କଳ ଛାଡ଼ି ଚାଲିଯିବେ ଓ ଉତ୍କଳ ପୁନଶ୍ଚ ସ୍ଵାଧୀନ ହୋଇଯିବ ।

Question 34.
କିଏ କାହିଁକି ମୁଖ ମଳିନ କରିଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ଏତେ ଉଲ୍ଲାସ ମଧ୍ୟରେ ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀଙ୍କ ଝିଅ ନନ୍ଦିକାଙ୍କ ମୁଖ ମଳିନ ଦେଖାଯାଉଛି, କାରଣ ସେ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗ ଦେବଙ୍କୁ ଭଲ ପାଉଥିଲେ ଓ ଯେତେବେଳେ ଜାଣିଲେ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗ ଦେବ ଉତ୍କଳ ଛାଡ଼ି ଚାଲିଯିବେ, ସେତେବେଳେ ତାଙ୍କ ମୁଖ ମଳିନ ପଡ଼ିଯାଇଛି ।

Question 35.
ବୃଥା ସେ କୃତ୍ରିମ ଉଲ୍ଲାସେ ପ୍ରୟାସ
ଫୁଟି ବାହାରୁଛି ରୁଦ୍ଧ ଦୀର୍ଘଶ୍ଵାସ–କାହା ବିଷୟରେ କାହିଁକି କୁହାଯାଇଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ଏହା ନନ୍ଦିକା ବିଷୟରେ କୁହାଯାଇଛି । ଗଡ଼ବାସୀମାନେ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କ ସ୍ବରାଜ୍ୟ ପ୍ରତ୍ୟାଗମନରେ ଖୁସି ଥିବାବେଳେ, ନନ୍ଦିକା ଖୁସି ହୋଇପାରୁ ନଥୁଲା, ତେଣୁ ଏପରି କୁହାଯାଇଛି ।

Question 36.
ସମାଧ୍-ତତ୍ପରା ବୋଲି କାହାକୁ କୁହାଯାଇଛି ଓ କାହିଁକି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ସମାଧ୍-ତପୂରା ବୋଲି ବସୁନ୍ଧରାକୁ କୁହାଯାଇଛି । କାରଣ ଅର୍ଦ୍ଧରାତ୍ରରେ ବସୁନ୍ଧରା ନୀରବରେ ଚୁପ୍‌ଚାପ୍ ମଉନାବତୀ ପରି ରହିଥିଲା ।

Question 37.
ଶିଖଣ୍ଡି ବାହନ କିଏ? ଏହା କେଉଁ ପ୍ରସଙ୍ଗରେ କୁହାଯାଇଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ଶିଖଣ୍ଡି ବାହନ ହେଉଛନ୍ତି କାର୍ତ୍ତିକେୟ । ଅଶ୍ଵପୃଷ୍ଠରେ ଖଣ୍ଡା ଧରି ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗ ଯୁଦ୍ଧ କରୁଥିବାବେଳେ ଜେମା ତାଙ୍କର କାନ୍ତି ଦେଖୁ କାର୍ତ୍ତିକେୟଙ୍କୁ ମଧ୍ୟ ନିନ୍ଦା କରିଥିଲା ।

Question 38.
ଅସି-ଲତାବନରେ କିଏ କାହାକୁ ନେଇ ପକାଇଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ବିହି ବା ଭଗବାନ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କୁ ନେଇ ଆସି-ଲତା ବନରେ ପକାଇଛି ।

Question 39.
କିଏ ଦେଖୁଅଛି ଫେଡ଼ି ଭବିତବ୍ୟ?
ହେବ କାଳେ ଶତ୍ରୁ-ଶରର ଶରବ୍ୟ ! – ଏକଥା କିଏ କାହା ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ କହିଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ଏକଥା ନନ୍ଦିକା ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବଙ୍କ ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ କହିଛି ।

Question 40.
ଜାହ୍ନବୀଙ୍କର ହୃଦୟ ବଜ୍ର ପରି ବୋଲି କାହିଁକି କୁହାଯାଇଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବଙ୍କର ମାଆ ହେଉଛନ୍ତି ଜାହ୍ନବୀ । ସେ ଜଣେ ମାଆ ହୋଇ ମଧ୍ୟ କୁମରକୁ ଯୁଦ୍ଧପାଇଁ ପଠେଇ ଦେଇ ନିଜେ ଧୈର୍ଯ୍ୟଧରି ରହିଛନ୍ତି । ତେଣୁ ତାଙ୍କ ହୃଦୟ ବଜ୍ର ପରି ବୋଲି କୁହାଯାଇଛି ।

Question 41.
ଦେବକୂଟ ସିନା ଦେବତାଙ୍କୁ ଜଣା
ମନୁଷ୍ୟତ ତହିଁ ସବୁବେଳେ ବଣା’– ଏକଥା କେଉଁ ପ୍ରସଙ୍ଗରେ କୁହାଯାଇଛି ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ଦେବବ୍ରତ ବା ଭୀଷ୍ମ ମଧ୍ଯ ଗଙ୍ଗାଙ୍କର ପୁତ୍ର ଥିଲେ ଓ ତାଙ୍କୁ ମଧ୍ୟ ଯୁଦ୍ଧରେ ଶୁଆଇ ଦେଇଥିଲେ ଗଙ୍ଗା । ତେଣୁ ସେହି ଦେବବ୍ରତ ଯେହେତୁ ଗଙ୍ଗାଙ୍କର ପୁତ୍ର, ଏହା ଚମତ୍କାର ନୁହେଁ ।

Question 42.
ନନ୍ଦିକାର ମନ କିପରି ବିଚଳିତ ହୋଇଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ମଶାରି ଭିତରେ ମଶକ ଯେପରି ବିଚଳିତ ହୁଏ ଅଥବା ପ୍ରଭଞ୍ଜନ ବଳରେ ତରୁଶାଖା ଯେପରି ବିଚଳିତ ହୁଏ, ସେହିପରି ନନ୍ଦିକାର ମନ ବିଚଳିତ ହୋଇଛି ।

Question 43.
କାହାର ହୃଦୟ ବିପଣିକୁ କିଏ ଲୁଣ୍ଠନ କଲା ଓ କିପରି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ରାଜଜେମା ନନ୍ଦିକାର ହୃଦୟ ବିପଣିକୁ ରାଜା ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବ ଲୁଣ୍ଠନ କରିଛନ୍ତି । ଦୂରରୁ ଆସି କୌଶଳ କ୍ରମରେ ସେ ଏହା କରିଛନ୍ତି ବୋଲି କୁହାଯାଇଛି ।

Question 44.
ଗଲା ହୃଦୟ ନ ଆସିବ ବାହୁଡ଼ି
ପକ୍ଷ ଥିଲେ ଦେହ ଯାଇଥାନ୍ତା ଉଡ଼ି – କିଏ କେଉଁ ପ୍ରସଙ୍ଗରେ କହିଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ଏକଥା ନନ୍ଦିକା କହିଛନ୍ତି । ନନ୍ଦିକା ନିଜର ହୃଦୟକୁ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କୁ ଦାନ କରିଦେଇଛନ୍ତି । ମାତ୍ର ଯେତେବେଳେ ଶୁଣିଛନ୍ତି ଯେ, ସେ ରାତ୍ରି ପାହିବା ମାତ୍ରେ, ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗ ଉତ୍କଳ ଛାଡ଼ି ଚାଲିଯିବେ, ତାଙ୍କ ମନରେ ଦୁଃଖ ହୋଇଛି ଓ ସେ ଏଭଳି ଭାବିଛନ୍ତି ।

Question 45.
ବାସୁଦେବ କାହିଁକି ଦେଶାନ୍ତରୀ ହେଲେ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ବାସୁଦେବ ସୁବର୍ଷକେଶରୀଙ୍କ ନିକଟରେ ମନ୍ତ୍ରୀ ଭାବରେ ଥିଲେ । ସେ ରାଜ୍ୟ ପାଇଁ ଏବଂ ନନ୍ଦିକାଙ୍କ ପାଇଁ ଦେଶାନ୍ତରୀ ହେଲେ ।

Question 46.
କିଏ କାହାର ପୁତ୍ରାଭାବ ପୂରଣ କରିଥାନ୍ତା ବୋଲି ନନ୍ଦିକା ଭାବିଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବଙ୍କୁ ଯଦି ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀ ନିଜର କନ୍ୟା ନନ୍ଦିକାକୁ ପ୍ରଦାନ କରିଥା’ନ୍ତେ, ତେବେ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବ ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀଙ୍କ ପୁତ୍ରାଭାବ ପୂରଣ କରିଥା’ନ୍ତେ ବୋଲି ନନ୍ଦିକା ଭାବିଛନ୍ତି ।

Question 47.
ସୁଭଦ୍ରା ପ୍ରସଙ୍ଗରେ କ’ଣ କୁହାଯାଇଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ନନ୍ଦିକାଙ୍କ ଭାବନାରେ ସୁଭଦ୍ରାଙ୍କ ପ୍ରସଙ୍ଗ ଉତ୍‌ଥାପନ କରିଛନ୍ତି କବି । ଦିନେ ପ୍ରେମ ପାଇଁ ସୁଭଦ୍ରା ନିଜ ବଂଶ ମର୍ଯ୍ୟାଦା, ଭାଇ ଦୁହିଁଙ୍କର ସମ୍ଭ୍ରାନ୍ତକୁ ଭୁଲି, ନିଜର ପ୍ରାଣପ୍ରିୟ ଅର୍ଜୁନଙ୍କ ସହ ଚାଲିଯାଇଥିଲେ ପ୍ରେମର ଜଗତକୁ ।

Question 48.
କ’ଣ କରି ପ୍ରେମିକା କୁଳର ଶ୍ରେଷ୍ଠ ହେବ ବୋଲି ନନ୍ଦିକା ଭାବଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ନନ୍ଦିକା ଚିନ୍ତା କରିଛନ୍ତି ସେ ମଧ୍ୟ ସୁଭଦ୍ରାଙ୍କ ପରି ପ୍ରେମ ଜଗତରେ ନୂଆ ଆଦର୍ଶ ଆଣିବେ । ପିତାଙ୍କର ଜୈତ୍ରମଣିକୁ ହସ୍ତଗତ କରି ପ୍ରେମିକ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କୁ ଦେଇ ତାଙ୍କୁ ଛତ୍ରପତି କରାଇବାକୁ ଚାହିଁଛନ୍ତି । ନିଜ ପ୍ରେମିକକୁ ଛତ୍ରପତି ସଜାଇ ପ୍ରେମିକା କୁଳର ଶ୍ରେଷ୍ଠ ହେବେ ବୋଲି ନନ୍ଦିକା ଭାବିଛନ୍ତି ।

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Question 49.
ନନ୍ଦିକା କିପରି ସୁଡ଼ଙ୍ଗ ଦ୍ବାର ଉନ୍ମୋଚନ କଲା?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ଯେଉଁ ଦ୍ବାରବାଟରେ ରାଣୀମାନେ ସ୍ନାନ କରିବାକୁ ଯାଆନ୍ତି, ସେହି ଦ୍ବାରର କଞ୍ଜୁ ନନ୍ଦିକା ପାଖରେ ରଖୁଥିଲେ । ସେହି କଞ୍ଚ୍ ମାଧ୍ୟମରେ ନନ୍ଦିକା ସୁଡ଼ଙ୍ଗଦ୍ଵାର ଉନ୍ମୋଚନ କଲେ ।

Question 50.
ଜହ୍ନରାତିରେ ଚକୋର-ଚକୋରୀଙ୍କ ବର୍ଣ୍ଣନା କବି କିପରି କରିଛନ୍ତି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
କାବ୍ୟମାନଙ୍କରେ ବର୍ଣ୍ଣନା ଅଛି ଯେ, ଚକୋର ଓ ଚକୋରୀ ରାତ୍ରିରେ ଜ୍ୟୋତ୍ସ୍ନାପାନ କରନ୍ତି । ଜହ୍ନ ରାତିରେ ଚକୋର ଓ ଚକୋରୀ ସେହି ମଧୁର ଜ୍ୟୋତ୍ସ୍ନାକୁ ପାନକରି ଗଛ ଉପରେ ବସି ସଙ୍ଗୀତ-ଗାନ କରୁଛନ୍ତି ବୋଲି କବି ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛନ୍ତି ।

Question 51.
ଭାଗ୍ୟ-ଚକ୍ର କାହାର ବଚସ୍କର ଓ କିପରି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ଭାଗ୍ୟଚକ୍ର ମାତା ଗଙ୍ଗାଙ୍କର ବଚସ୍କର । ମାତାଙ୍କର ମାୟାରେ ସହସ୍ର ଘଟଣା, କ୍ଷଣିକରେ ଉପସ୍ଥିତ ହୋଇ ଦେବଶକ୍ତିକୁ ଅପ୍ରମିତ କରିପାରେ ।

Question 52.
ସର୍ବବାମା ଶିରୋଭୂଷା କିଏ ଓ ତା’ର ଶୋଭା କାହାକୁ ନିନ୍ଦା କରୁଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ — ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ସର୍ବବାମା ଶିରୋଭୂଷା ହେଉଛନ୍ତି ଉତ୍କଳର ରାଜଜେମା ନନ୍ଦିକା ଏବଂ ତାଙ୍କର ଶୋଭା ଶରତ୍‌କାଳର ପ୍ରଭାତକୁ ନିନ୍ଦା କରୁଛି ।

Question 53.
ନନ୍ଦିକାର ଭୂ-ସଂଚାଳନକୁ କିପରି ବର୍ଣ୍ଣନା କରାଯାଇଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ନନ୍ଦିକାର ବଙ୍କିମ ଠାଣି ଏବଂ ତରଙ୍ଗ ଚାହାଣି ଯେପରି ବିଳାସର ଖଣି ସଦୃଶ । ସେହି ଚାହାଣି ସହ ସୁନ୍ଦର ଭୂଲତାର ସୌନ୍ଦର୍ଯ୍ୟକୁ କବି କନ୍ଦର୍ପରୂପୀ କେଳା ସାପ ଖେଳାଉଛି ବୋଲି ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛନ୍ତି ।

Question 54.
ନନ୍ଦିକାର କଟିଶୋଭାକୁ କିପରି ବର୍ଣ୍ଣନା କରାଯାଇଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ନନ୍ଦିକାର କଟି ଶୋଭା ସାକ୍ଷାତ ଅନଙ୍ଗ ପରି ଥିଲା । ଅନଙ୍ଗଙ୍କୁ ଛକି ରହି ଶିବ ଯେପରି ନୃତ୍ୟ କରୁଥିଲେ ।

Question 55.
ନନ୍ଦିକାର ନୀଳ କେଶପାଶର ଶୋଭା କିପରି ବର୍ଣ୍ଣନା କରାଯାଇଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ନନ୍ଦିକାର ନୀଳ ଦୋଳାୟମାନ କେଶପାଶ ଦେଖୁଲେ ଲାଗୁଥିଲା ସତେଯେପରି ଶଶୀ ଦେହରୁ ସୁଧାରାଶି ପାନ କରିବାକୁ ରାହୁ ପଛେ ପଛେ ଧାଇଁ ଆସି ଧରିଛି ।

Question 56.
ଦିବ୍ୟନାରୀଟି ଦେବୀ କି ମାନବୀ, ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବ କିପରି ଜାଣିଲେ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ପ୍ରଥମେ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବ ସଂଶୟରେ ପଡ଼ିଲେ, ସାମ୍‌ନାରେ ଉଭା ହୋଇଥ‌ିବା ନାରୀଟି ଦେବୀ ନା ମାନବୀ । ମାତ୍ର ଚନ୍ଦ୍ରାଲୋକରୁ ସେହି ନାରୀର ଛାଇକୁ ଦେଖୁ ଜାଣିଲେ ସେହି ଦିବ୍ୟନାରୀଟି ମାନବୀ ।

Question 57.
ଅନିଳେ କଦାପି ଟଳେ କି ଅଚଳ? – ଏହା କେଉଁ ପ୍ରସଙ୍ଗରେ କୁହାଯାଇଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
‘ଅନିଳେ କଦାପି ଟଳେ କି ଅଚଳ’ – ପାଖରେ ଅନିନ୍ଦ୍ୟସୁନ୍ଦରୀ ନନ୍ଦିକାକୁ ଦେଖ୍ ମଧ୍ଯ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବ ସ୍ଥିରହୋଇ ରହିଛନ୍ତି । ତେଣୁ ଯେତେ ବେଗରେ ପବନ ହେଲେ ମଧ୍ୟ, ସେ ପର୍ବତକୁ କେବେ ଟଳାଇ ପାରେ ନାହିଁ । ଏଠାରେ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କୁ ପର୍ବତ ସହିତ ତୁଳନା କରାଯାଇଛି ।

Question 58.
ଚୋରଗଙ୍ଗଙ୍କର ହୃଦସର କାହିଁକି ଆଲୋଡ଼ିତ ହେଲା?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ନନ୍ଦିକା ନିଜ ପିତାଙ୍କ ମସ୍ତକରୁ ଜୈତ୍ରମଣି ନେଇ ଚୋରଗଙ୍ଗଙ୍କ ପାଦତଳେ ସମର୍ପି ପ୍ରେମଭିକ୍ଷା କରିଛି । ତେଣୁ ଚୋରଗଙ୍ଗଦେବ ବିସ୍ମିତ ହୋଇଛନ୍ତି ଓ କ୍ରୋଧ ସହକାରେ ଦୁଃଖ କରିଛନ୍ତି ।

Question 59.
ଯଯାତିଙ୍କ ଯଶୋରାଶି କେଉଁଠି ଠୁଳ ହୋଇଛି ଓ କିପରି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ଯଯାତିଙ୍କର ଯଶୋରାଶି ଏକାମ୍ରରେ ଠୁଳ ହୋଇଛି । ଯଯାତିକେଶରୀ ଭୁବନେଶ୍ଵରରେ ଅନେକ ମନ୍ଦିର ନିର୍ମାଣ କରିବା ସହିତ ବୈତରଣୀ ନଦୀ ତୀରରେ ଦଶାଶ୍ବମେଧ ଘାଟ ଓ ଯଜ୍ଞନଗରୀ ନିର୍ମାଣ କରିଥିଲେ ।

Question 60.
ଯଯାତିଙ୍କ କୁଳରେ ନନ୍ଦିକାର ଜନ୍ମକୁ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗ କିପରି ତୁଳନା କରିଛନ୍ତି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ଯଯାତିଙ୍କ କୁଳରେ ନନ୍ଦିକାର ଜନ୍ମକୁ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗ ଦେବବାଣୀ ସହ ଅପଭାଷା ମିଶିବା ଏବଂ ପବିତ୍ର ଭାଗିରଥୀ ସ୍ରୋତରେ ଯେପରି କର୍ମନାଶା ମିଶିବା ସହ ତୁଳନା କରିଛନ୍ତି ।

Question 61.
ନନ୍ଦିକା କେଉଁ ତିନି ମହାପାପ କରିଥିଲେ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ନନ୍ଦିକାର ଦେଶଦ୍ରୋହୀ, ରାଜଦ୍ରୋହୀ ଓ ପିତୃଦ୍ରୋହୀ ଭଳି ତିନି ମହାପାପର ଭାଗିନୀ ବୋଲି କହି ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗ ତାଙ୍କୁ ଶତଧ୍ୟାର କରିଛନ୍ତି ।

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Question 62.
ନନ୍ଦିକାକୁ ତା’ର ଆତ୍ମକୃତ ପାପ କିପରି ପ୍ରତ୍ୟୟ ହେଲା?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ନନ୍ଦିକା ତା’ର ପିତାଙ୍କର ପ୍ରାଣସ୍ୱରୂପ ଜୈତ୍ରମଣି ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କ ପାଦତଳେ ସମର୍ପି ଦେଇ ପ୍ରତିଦାନରେ ପ୍ରେମଭିକ୍ଷା କରିଥିଲା । ମାତ୍ର ବିବେକୀ ପୁରୁଷ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗ କୀର୍ତ୍ତିଶାଳୀ ଯଯାତି କୁଳସମ୍ଭୂତା ନନ୍ଦିକାର ଏତାଦୃଶ ଦେଶଦ୍ରୋହୀ, ରାଜଦ୍ରୋହୀ, ପିତୃଦ୍ରୋହୀ କାର୍ଯ୍ୟକୁ ଧ୍ୟାର କରିଥିଲେ । ତତ୍‌କ୍ଷଣାତ୍ ବିବେକ ଦଂଶନରେ ନନ୍ଦିକା ନିଜ ଆତ୍ମକୃତ ପାପ ବିଷୟରେ ଜାଣିପାରିଲା ।

Question 63.
ନନ୍ଦିକା କାହାକୁ ଆଶ୍ରୟ ମାଗୁଥୁଲା?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ଆତ୍ମକୃତ ପାପ ପ୍ରତ୍ୟୟ ହେଲା ପରେ ତାଙ୍କର ସରାଗ, ରୂପକାନ୍ତି ନିଷ୍ପ୍ରଭ ହୋଇଗଲା । ସେ ନତମୁଖୀ ପୃଥ‌ିବୀକୁ ଅନାଇ ରହିଥିଲେ, ସତେଯେପରି ପୃଥବୀମାତା ଗର୍ଭରେ ଆଶ୍ରୟ ପାଇବାପାଇଁ ତାଙ୍କୁ ନିବେଦନ କରୁଥିଲେ ।

Question 64.
ନନ୍ଦିକା ତାଙ୍କ ପିତାଙ୍କୁ ଚିଠିରେ କ’ଣ ଲେଖୁଲା?
Answer:
କାବ୍ୟ — ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କୁ ରାଜ୍ୟ ସମର୍ପଣ କରି ତାଙ୍କୁ ପୁତ୍ର ଭାବରେ ଗ୍ରହଣ କରିବା ସହିତ, ତାଙ୍କର ଶବକୁ ଏକ ବିଜନ ସ୍ଥାନରେ ସମାଧ୍ ଦେଇ ସେଠାରେ ମନ୍ଦିରଟିଏ ନିର୍ମାଣ କରିବାକୁ ପିତା ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀଙ୍କୁ ନନ୍ଦିକା ଚିଠିରେ ଲେଖୁଥିଲା ।

Question 65.
ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀ ଚୋରଗଙ୍ଗଙ୍କୁ କ’ଣ ସମର୍ପଣ କରି କେଉଁଠିକୁ ଗଲେ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀ ଚୋରଗଙ୍ଗଦେବଙ୍କୁ ଚୈତ୍ରମଣି ସହିତ ରାଜସିଂହାସନ ସମର୍ପଣ କରି ମହାନଦୀ ତୀରରେ ସନ୍ୟାସୀ ଭାବରେ ଜୀବନ ବିତାଇବାକୁ ଚାଲିଗଲେ ।

(ଘ) ୩ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ସଂକ୍ଷିପ୍ତ ଉତ୍ତରମୂଳପ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ ଓ ଉତ୍ତର (୩୦ଟି ଶବ୍ଦ ମଧ୍ଯରେ) ଲେଖା ଓ ଲେଖକଙ୍କ ପାଇଁ – ୧ ନମ୍ବର ଓ ଉତ୍ତର ପାଇଁ – ୨ ନମ୍ବର ।

Question 1.
କାଠଯୋଡ଼ି ତୀରରେ ଚୋରଗଙ୍ଗ ଦେବଙ୍କ ସମରସଜ୍ଜାର ଚିତ୍ର ପ୍ରଦାନ କର ।
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ଚୋରଗଙ୍ଗଦେବ ଦାକ୍ଷିଣାତ୍ୟରୁ ସେନାବାହିନୀ ଧରି ଉତ୍କଳର ରାଜଧାନୀ ବିଡ଼ାନାସୀ ଦୁର୍ଗକୁ ଅବରୋଧ କରିବାପାଇଁ କାଠଯୋଡ଼ି ତୀରରେ ଶିବିର ବସାଇଛନ୍ତି । ଧଳା ତମ୍ବୁର ଶିବିରଗୁଡ଼ିକ କାଠଯୋଡ଼ିଠାରୁ ମହାନଦୀ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଲମ୍ବିଯାଇଛି ଏବଂ ସେଗୁଡ଼ିକ ଧଳା ଚୂନପର୍ବତର ଭ୍ରମ ସୃଷ୍ଟି କରୁଛି । ବିଭିନ୍ନ ପ୍ରକାର ଯୁଦ୍ଧବାଦ୍ୟରେ ପୃଥ‌ିବୀ କମ୍ପି ଉଠୁଛି । କେଉଁଠି ଯୋଦ୍ଧାମାନେ ଲାଖ ବିନ୍ଧୁଛନ୍ତି ତ ଅନ୍ୟ କେଉଁଠି ପାଇକମାନେ ଖଣ୍ଡା ଲଢ଼େଇର ଅଭ୍ୟାସ କରୁଛନ୍ତି । ଅଶ୍ୱାରୋହୀଙ୍କଠାରୁ ଆରମ୍ଭକରି ସୈନିକମାନଙ୍କ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ସମସ୍ତେ ଯୁଦ୍ଧ ପାଇଁ ପ୍ରସ୍ତୁତି ହେଉଛନ୍ତି ।

Question 2.
‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ କାବ୍ୟରେ ଉଷା ବର୍ଣ୍ଣନାର ଚିତ୍ର ବର୍ଣ୍ଣନା କର ।
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ କାବ୍ୟରେ ରାଧାନାଥ ଉଷାର ଚମତ୍କାର ବର୍ଣ୍ଣନା ଆଙ୍କିଛନ୍ତି । ରାଜା ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବ କାଠଯୋଡ଼ିରେ ସ୍ନାନ ସାରି, ମାତା ଗଙ୍ଗାଙ୍କ ପାଦପଦ୍ମ ଧ୍ୟାନକରି ଘୋର ଅରଣ୍ୟ ମଧ୍ୟକୁ ପ୍ରବେଶ କଲାବେଳକୁ ଉଷା ଧରା ପୃଷ୍ଠକୁ ଅବତରଣ କରୁଛି । ଉଷା ଆଗମନର ସମ୍ବାଦ କଜ୍ଜଳପତ୍ରୀ ତା’ର ପବିତ୍ର ନିଃସ୍ଵନ ମାଧ୍ୟମରେ ଜଣାଉଛି । ଧୀରେ ଧୀରେ ଚନ୍ଦ୍ର ଲିଭିଯାଉଛି, ପୂର୍ବ ଆକାଶ ରକ୍ତବର୍ଣ୍ଣ ଧାରଣ କରୁଛି । ଯେପରି ନୀଳ ସମୁଦ୍ର ମଧ୍ୟରେ ଶୁଭ୍ର ଗଙ୍ଗାଜଳ ପ୍ରବେଶ କରେ, ସେହିପରି ନୀଳ ଆକାଶ ବକ୍ଷରେ ଉଷାର ଶୁଭ୍ରାଲୋକର ପ୍ରକାଶ ଘଟିଛି ।

Question 3.
ଗଙ୍ଗାଦେବୀ ଚୋରଗଙ୍ଗଦେବଙ୍କୁ କେଉଁ ଭକ୍ତ ପ୍ରଚାର କରିବାକୁ କହିଛନ୍ତି ଓ କାହିଁକି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ଗଙ୍ଗାଦେବୀ ଚୋରଗଙ୍ଗଦେବ ବୈଷ୍ଣବ ଭକ୍ତି ପ୍ରଚାର କରିବାପାଇଁ କହିଛନ୍ତି । ଶାକ୍ତଧର୍ମ ଅତ୍ୟନ୍ତ ନିଷ୍ଠୁର ଓ ଶାକ୍ତଧର୍ମରେ ଯେଉଁ ପଞ୍ଚମକାର (ମଦ୍ୟ-ମାଂସ-ମତ୍ସ୍ୟ-ମୁଦ୍ରା-ମୈଥୁନ) ରହିଛି, ତାହାକୁ ବୈଷ୍ଣବ ଧର୍ମରେ ନିନ୍ଦା କରାଯାଇଛି । ତେଣୁ ଗଙ୍ଗା ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗକୁ ଶାକ୍ତଧର୍ମକୁ ଉଠାଇ ବୈଷ୍ଣବ ଧର୍ମର ପ୍ରଚାର କରିବା ପାଇଁ କହିଛନ୍ତି ।

Question 4.
ଧର୍ମବୀରର ମହତ୍ତ୍ବ ସମ୍ପର୍କରେ କବି କ’ଣ କହିଛନ୍ତି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ଯୁଦ୍ଧବୀରମାନେ ଧର୍ମବୀର ହୋଇପାରିବେ ନାହିଁ । ଯେପରି କୁଆପଥର କେବେହେଲେ ହୀରା ହୋଇପାରେନା । ଧର୍ମବୀର କେବଳ ଧର୍ମ ସଂସ୍ଥାପନ କରିପାରନ୍ତି ସେମାନଙ୍କ ଯୁଦ୍ଧଭୂମି ହେଉଛି ମନୁଷ୍ୟର ହୃଦୟ । ଧର୍ମବଳ ପାଖରେ ଶତ୍ରୁ ମଧ୍ୟ ମିତ୍ର ପାଲଟି ଯାଏ । ତେଣୁ ସଂସାରରେ ସବୁବେଳେ ଧର୍ମବୀର ହିଁ ବଳୀୟାନ ।

Question 5.
ମହାନଦୀର ବର୍ଣ୍ଣନା କବି ଲେଖନୀରେ କିଭଳି ରୂପ ପାଇଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ବରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
କବିଙ୍କ ଲେଖନୀରେ ମହାନଦୀ ଉତ୍କଳବାସୀଙ୍କ ପାଇଁ ଦେବୀ ପାଲଟିଯାଇଛି । ମହାନଦୀ ବିଷ୍ଣୁପଦୀ ଓ ସୁକାନ୍ତି ଋଷିଙ୍କର କନ୍ୟା । ଏହାର ତୀରରେ ବହୁ ତୀର୍ଥସ୍ଥଳୀ ରହିଛି । ଏହି ତୀର୍ଥସ୍ଥଳୀଗୁଡ଼ିକଦ୍ୱାରା ମହିମାମଣ୍ଡିତା ମହାନଦୀ ପାଇଁ ଉତ୍କଳ ଶସ୍ୟଶ୍ୟାମଳା ହୋଇପାରିଛି ।

Question 6.
ପ୍ରଧାନପାଟର ଚିତ୍ର କିପରି ବର୍ଣ୍ଣନା କରାଯାଇଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ପ୍ରଧାନପାଟ ହେଉଛି ଏକ ଜଳପ୍ରପାତ । ଏହା ସମ୍ବଲପୁରରେ ଅବସ୍ଥିତ । ଏହାର ଜଳଧାର ଉଚ୍ଚ ପାହାଡ଼ କାନ୍ଥରୁ ଯେପରି ସ୍ଵଚ୍ଛ ହୋଇ ଝରୁଥାଏ, ତାହା ଅତ୍ୟନ୍ତ ସୁନ୍ଦର ଦେଖାଯାଏ । ଏହାର ସ୍ବଚ୍ଛ ଜଳକଣା ହୀରାଠାରୁ ଉଜ୍ଜ୍ବଳତର । ଉକ୍ତ ପାହାଡ଼ କାନ୍ଥରୁ ଜଳଧାରା ପଡ଼ୁଥିବାବେଳେ ଯେଉଁ କ୍ଷୁଦ୍ରକ୍ଷୁଦ୍ର ଜଳକଣା ସବୁ ଛିଟିକିପଡ଼େ, ସେଥ‌ିରେ ସୂର୍ଯ୍ୟକିରଣ ପଡ଼ି ଅନବରତ ଇନ୍ଦ୍ରଧନୁ ସୃଷ୍ଟି କରୁଥାଏ । ଏହା ଅତି ମନୋମୁଗ୍ଧକର ଦେଖାଯାଏ ।

Question 7.
ସୁକାନ୍ତି-ତନୁଜାଙ୍କର ଚାରି ସଖୀଙ୍କର ପରିଚୟ ଦିଅ ।
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ସୁକାନ୍ତି ତନୁଜା କହିଲେ ମହାନଦୀକୁ ବୁଝାଏ । ଏହାର ଚାରି ସଖୀମାନେ ହେଲେ ବ୍ରାହ୍ମଣୀ, ବୈତରଣୀ, ସୁବର୍ଣ୍ଣରେଖା, ବୁଢ଼ାବଳଙ୍ଗ ।

CHSE Odisha Class 11 Optional Odia Solutions Chapter 2 ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ

Question 8.
ବିଡ଼ାନାସୀଗଡ଼ରେ କିପରି ଉତ୍ସବ ପାଳିତ ହୋଇଥିଲା?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ବିଡ଼ାନାସୀ ଗଡ଼ର ଗଡ଼ବାସୀମାନେ ଚଣ୍ଡିକାଙ୍କ ମନ୍ଦିରରେ କାହାଳୀ, ତୂରୀ, ଭେରୀ ବଜାଇ ବନ୍ଦନା କରୁଛନ୍ତି । କେଉଁଠି ତୋରଣରେ ସଜାଯାଇଛି ତ ପୁଣି କେଉଁଠି ଧାଡ଼ି ଧାଡ଼ି ହୋଇ ଦୀପାବଳୀ ଜାଳି ପୁରୋହିତମାନେ ମନ୍ତ୍ର ଉଚ୍ଚାରଣ କରୁଛନ୍ତି । ନିଜେ ରାଜା ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀ ମା’ ଚଣ୍ଡିକାଙ୍କ ପାଖରେ ଚାମର ଢାଳୁଛନ୍ତି ଓ ପଟମହିଷୀମାନେ ଅର୍ଘ୍ୟଥାଳି ଧରି ଭକ୍ତିଭାବରେ ବନ୍ଦାପନା କରୁଛନ୍ତି । ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ଗଡ଼ବାସୀମାନେ ଉଲ୍ଲସିତ ହୋଇ ଉତ୍ସବ ପାଳନ କରୁଛନ୍ତି ।

Question 9.
କାବ୍ୟରେ ବର୍ଣ୍ଣିତ ତମିସ୍ରା ରଜନୀର ଚିତ୍ର ପ୍ରଦାନ କର।
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ କାବ୍ୟରେ କବି ଗଡ଼ ମଧ୍ଯରେ ତମିସ୍ରା ରଜନୀର ଚିତ୍ର ପ୍ରଦାନ କରିଛନ୍ତି । ରାତ୍ରି ଏକ ଘଡ଼ି ଗତ ହୁଅନ୍ତେ ଘରେ ଘରେ ପ୍ରଦୀପ ଲିଭିଯିବାରୁ ସର୍ବତ୍ର ଗାଢ଼ ଅନ୍ଧାର ବା ତମସା ଆବୋରି ବସିଲା । ରାତି ଅଧ୍ଵ ଗାଢ଼ତର ହେବାରୁ ନିବିଡ଼ ଅନ୍ଧକାରରେ ରଜନୀ ଆବୃତ ହେଲା । ଦୁଇ ପାର୍ଶ୍ଵର ବଡ଼ ବଡ଼ ଗହଳ ବୃକ୍ଷରାଜି ଭିତରେ ତମିସ୍ର ଯେପରି ନିବିଡ଼ତର ହୋଇଥିଲା । ଅନ୍ଧାର ଗାଢ଼ତର ହୋଇ ବଢୁଥୁଲା, ଯେପରି ସେଥ୍ରେ ସୂଚୀ ବି ଗଳିବ ନାହିଁ । ନିବିଡ଼ ତମସାରେ ବସୁନ୍ଧରା ସାଇଁ ସାଇଁ ଡାକୁଥିଲା । ସତେ ଯେପରି ସେ ସମାଧୂ- ତତ୍ପରା ।

Question 10.
ଚୋରଗଙ୍ଗଙ୍କର ସୌନ୍ଦର୍ଯ୍ୟ କବି କିପରି ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛନ୍ତି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ଚୋରଗଙ୍ଗଙ୍କ ସୌନ୍ଦର୍ଯ୍ୟ ସଂପର୍କରେ କବି ଉଲ୍ଲେଖ କରିଛନ୍ତି – ଚୋରଗଙ୍ଗଙ୍କ ଲଳିତ ମୂର୍ତ୍ତି ଦେଖୁଲେ ହୃଦୟ କରତି ହେଉଥିଲା । ଅଙ୍ଗରେ ବର୍ମ, ଶିରରେ ସ୍ଵର୍ଷ ଶିରଣାସ୍ତ୍ର, ଭୁବନରେ କୃପାଣ ଶୋଭାପାଉଥିଲା । ତାଙ୍କର ରୂପଶୋଭା କାର୍ତ୍ତିକେୟଙ୍କୁ ମଧ୍ୟ ନିନ୍ଦୁଥିଲା ।

Question 11.
ମନ୍ତ୍ରୀ ବାସୁଦେବ ରାଜା ସୁବର୍ଷକେଶରୀଙ୍କୁ କି ମନ୍ତ୍ରଣା ଦେଇଥିଲେ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ମନ୍ତ୍ରୀ ବାସୁଦେବ ରଥ ହେଉଛନ୍ତି ସୁବର୍ଷକେଶରୀଙ୍କ ମନ୍ତ୍ରୀ । ସେ ରାଜାଙ୍କୁ ମନ୍ତ୍ରଣା ଦେଇଛନ୍ତି ଯେ, ରାଜଜେମା ନନ୍ଦିକାଙ୍କୁ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କ ହାତରେ ଟେକିଦେଇ ତାଙ୍କୁ ଜାମାତା ଭାବରେ ଗ୍ରହଣ କରିବାପାଇଁ । ମାତ୍ର ରାଜା ଏଥ‌ିରେ ସମ୍ମତି ପ୍ରକାଶ କରିନାହାନ୍ତି, ନିଜର ଶତ୍ରୁକୁ କନ୍ୟାଦାନ କରିବେ ନାହିଁ ବୋଲି କହିଛନ୍ତି ।

Question 12.
କିଏ ପ୍ରଭୁପଣକୁ ଭାଜନ ନୁହେଁ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ଯେଉଁ ବ୍ୟକ୍ତି ସବୁବେଳେ ନିଜ ବିଷୟରେ ଚିନ୍ତାକରେ, ମାତ୍ର ଅନ୍ୟମାନେ ଯାହା ଭୋଗ କରିବାର କରନ୍ତୁ, ସେ ବିଷୟରେ ତା’ର ଚିନ୍ତା ନଥାଏ । ଅପରର ମନର କଥା ବା ମନର ବେଦନାକୁ ଯିଏ ଜାଣିପାରେ ନାହିଁ; ସେ କେବେହେଲେ ପ୍ରଭୁପଣକୁ ଭାଜନ ନୁହେଁ ବୋଲି କୁହାଯାଇଛି ।

Question 13.
ପ୍ରେମର ଶକ୍ତି ସମ୍ପର୍କରେ କ’ଣ କୁହାଯାଇଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ପ୍ରେମ ହେଉଛି ଏହି ମହୀରେ ସବୁଠାରୁ ବଳୀୟାନ । ଏହା ପ୍ରେମ ହିଁ ଅବଳାକୁ ବୀର କରିପାରେ । ପ୍ରେମ ଉଦ୍‌ଯୋଗ ଦିଏ ପୁଣି ସାହସ ମଧ୍ଯ ଦିଏ । ଅବଶ ଲୋକକୁ ଚଞ୍ଚଳ କରାଇପାରେ ପ୍ରେମ । ସଂସାରରେ ଯେଉଁମାନଙ୍କୁ ଭୀରୁ କହନ୍ତି, ପ୍ରେମର ପ୍ରଭାବରେ ସେମାନେ ବୀର ହୋଇପାରନ୍ତି । ତେଣୁ ପ୍ରେମ ସର୍ବଶକ୍ତିମାନ ବୋଲି କୁହାଯାଇଛି ।

Question 14.
ନନ୍ଦିକାର ଅଭିସାରକାଳୀନ ଜହ୍ନରାତିର ଶୋଭା ବର୍ଣ୍ଣନା କର ।
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ନନ୍ଦିକା ଅଭିସାରକାଳରେ ଆକାଶରେ ଚନ୍ଦ୍ର ଉପରକୁ ଉଠିଛି । ତା’ର ଧବଳ କିରଣରେ ସେ ଚାରିଦିଗକୁ ଧବଳିତ କରିଛି । ବିଭାବରୀ ଯେପରି ତା’ର କବରୀରେ ଧବଳ କୁସୁମଟିଏ ଖୋଷି ଦେଲା ଓ ଅନ୍ଧକାର ସ୍ବରାଜ୍ୟ ପରିତ୍ୟାଗ କଲା । ପର୍ବତକନ୍ଦରରେ ଅନ୍ଧକାର ଆଶ୍ରୟ ନେଇଛି । ଶିବଙ୍କ ଜଟାରୁ ଗଙ୍ଗା ବହିଗଲାପରି ଚନ୍ଦ୍ରରୁ ଜ୍ୟୋତ୍ସ୍ନାର ପ୍ରବାହ ବହିଆସୁଛି । ପୃଥ‌ିବୀ ଶ୍ଵେତଦ୍ବୀପ ଭଳି ମନେହଉଛି । ଚନ୍ଦ୍ରକିରଣ କାଠଯୋଡ଼ି ଜଳରେ ପଡ଼ି କୌସ୍ତୁଭ ମଣିର ଶୋଭା ଧାରଣ କରୁଛି ଏବଂ ଚକୋର ଚକୋରୀ ଗଛର ଡାଳରେ ବସି ସଙ୍ଗୀତର ମଧୁର ମୂର୍ଚ୍ଚନା ତୋଳୁଛନ୍ତି ।

Question 15.
‘ବୀର ପକ୍ଷପାତୀ ସଦା ନାରୀକୁଳ’– ଏହାର ଭାବ ପ୍ରକାଶ କର ।
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
‘ବୀର ପକ୍ଷପାତୀ ସଦା ନାରୀକୁଳ’ ନନ୍ଦିକା ମୁଖରେ କବି ଏହି ଉକ୍ତି ପ୍ରକାଶ କରିଛନ୍ତି । ଏହାର ଭାବାର୍ଥ ହେଉଛି, ଯେ ପ୍ରକୃତରେ ବୀର ନାରୀଜାତି ସର୍ବଦା ସେହି ବୀରର ପକ୍ଷ ନେଇଥାଏ; ଏବଂ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବ ପ୍ରକୃତ ପକ୍ଷେ ଜଣେ ବୀର ବୋଲି ନନ୍ଦିକା ନିଜ ପିତାଙ୍କ ଜୈତ୍ରମଣି ଆଣି ତାଙ୍କ ପାଦତଳେ ସମର୍ପଣ କରିଛି ।

Question 16.
ଦୈବୀଶକ୍ତି ଓ ନିୟତିର ନିର୍ଦ୍ଦେଶ ସମ୍ପର୍କରେ କବିଙ୍କର ସମର୍ଥନକୁ ପ୍ରକାଶ କର ।
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ କାବ୍ୟରେ ଦୈବୀଶକ୍ତି ଓ ନିୟତିର ନିର୍ଦ୍ଦେଶକୁ ଅତି ସହଜ ଓ ସରଳ ଭାବରେ କବି ସମର୍ଥନ କରିଛନ୍ତି । ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବ ଦେବୀ ଗଙ୍ଗାଙ୍କ ଆଦେଶରେ ବୈଷ୍ଣବ ଭକ୍ତ ପ୍ରଚାର ପାଇଁ ଉତ୍କଳ ଅଧିକାର କରିବା ପାଇଁ ଆସିଛନ୍ତି । ସେପଟେ ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀଙ୍କୁ ମଧ୍ଯ ଚଣ୍ଡିକାଦେବୀ ରକ୍ଷା କରିଛନ୍ତି । ମାତ୍ର ସବୁ ପରେ ବି ନିୟତି ନିୟମ ଅନ୍ୟ ପ୍ରକାର ହୋଇଛି, ଶେଷରେ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗ ଉତ୍କଳାଧୀଶ ହୋଇଛନ୍ତି । ତେଣୁ କବି ଲେଖୁଛନ୍ତି ‘‘ଶକ୍ତି ନାହିଁ ବସ କାହାରି ଜଗତ/ନିୟତିକୁ ନେବ ନିଜ ଇଚ୍ଛାମତେ ।’’

Question 17.
ତିରତା ନନ୍ଦିକାର ହତାଶା ଭାବର ଚିତ୍ର ପ୍ରଦାନ କର ।
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ବରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ପ୍ରେମପ୍ରଣଦ୍ମିନୀ ନନ୍ଦିକା ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କ ପାଦତଳେ ଜୈତ୍ରମଣି ଥୋଇଦେଇ ପ୍ରତିବଦଳରେ ପ୍ରେମଭିକ୍ଷା କରିଛି । ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗ ଏଥରେ କ୍ରୋଧୂତ ହୋଇ ଭର୍ସନା କରିଛନ୍ତି । ସେଇ ଭର୍ଜନାରେ ନନ୍ଦିକା ଭାଙ୍ଗିପଡ଼ିଛି । ଯେଉଁ ପୁରୁଷକୁ ଏତେ ଭଲ ପାଇ ସେ ପିତାଙ୍କ ଜୀବନ ତା’ ପାଦତଳେ ସମର୍ପି ଦେଇଥୁଲା ସେ ପୁରୁଷର ତିରସ୍କାରରେ ତା’ର ମୋହ ଭଙ୍ଗ ହୋଇଛି । ବିବେକର ଦଂଶନରେ ସେ ଜାଣିପାରିଛି କେଉଁଟା ଠିକ୍ ଆଉ କେଉଁଟା ଭୁଲ୍ । ଅନୁତାପ ରୂପକ ନିଆଁରେ ସେ ଦଗ୍ଧ ହୋଇ ଦୁଃଖ ପାଇଛି । ସମସ୍ତ ରୂପ ଲାବଣ୍ୟ ତା’ର ମଉଳି ପଡ଼ିଛି ।

Question 18.
ରାଜନନ୍ଦିନୀ ନନ୍ଦିକାର ପ୍ରାଣହୀନ ଶରୀରର ନିଷ୍ପ୍ରଭ କାନ୍ତିର ଚିତ୍ର ପ୍ରଦାନ କର ।
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ରାଜନନ୍ଦିନୀ ନନ୍ଦିକା ଅତ୍ୟନ୍ତ ରୂପବତୀ ଥିଲେ, ମାତ୍ର ଯେଉଁ ଶରୀର ଶୋଭାର ଉଦ୍ୟାନ ଥୁଲା, ମୃତ୍ୟୁ ପରେ ତାହା ଶ୍ମଶାନରେ ପରିଣତ ହୋଇଛି । ଫୁଲଟି ନିଆଁରେ ପୋଡ଼ିଗଲେ ଯେପରି ଦେଖାଯାଏ, ସେପରି ନନ୍ଦିକାର ଶବ ଦେଖାଯାଉଛି । ଶିଖାଟି ଲିଭିଗଲା ପରେ ସଳିତା ଯେପରି ପଡ଼ିରହେ ସେହିଭଳି ନନ୍ଦିକାର ମୃତଦେହ ପଡ଼ିଅଛି । ସୁନ୍ଦର ଆଖ୍ ଦୁଇଟି ବୁଜି ହୋଇଯାଇଛି । ରାଜନନ୍ଦିନୀ ନନ୍ଦିକାର ପ୍ରାଣହୀନ ନିଷ୍ପ୍ରଭ ଶରୀରକୁ ଦେଖୁ ସମସ୍ତେ ବିକଳ ହୋଇ ପଡ଼ୁଥିଲେ ।

Question 19.
ରାଜନନ୍ଦିନୀ ନନ୍ଦିକା ଶିବିକାରେ ଥାଇ ପିତାଙ୍କୁ କ’ଣ ଲେଖୁଥିଲେ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ରାଜନନ୍ଦିନୀ ନନ୍ଦିକା ଶିବିକାରେ ଥାଇ ପିତାଙ୍କ ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ ଶେଷ ପତ୍ରଟିଏ ଲେଖୁଥିଲେ । ସେଥିରେ ସେ ଲେଖୁଥିଲେ – ‘ମୁଁ ଯେଉଁ ପାପ କରିଛି ତା’ର ଭାରକୁ ନେଇ ମୁଁ ଯାଉଛି, ମତେ ଦୁଃସ୍ବପ୍ନ ଭାବି ଭୁଲିଯିବ । ଯାହାଙ୍କୁ ମୁଁ ପ୍ରାଣପତି ବୋଲି ଭାବିଥୁଲି, ତାଙ୍କୁ ପୁତ୍ରସମ ଦେଖୁ । ମୋର ମୃତଦେହକୁ ଏକ ବିଜନ ସ୍ଥାନରେ ସଂସ୍କାର କରି ମନ୍ଦିରଟିଏ ନିର୍ମାଣ କରିବ ।’

Question 20.
ନନ୍ଦିକାର ମୃତ୍ୟୁରେ ବର୍ଣ୍ଣିତ କାରୁଣ୍ୟର ଚିତ୍ର ଅଙ୍କନ କର ।
Answer:
କାବ୍ୟ – ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ
କବି – ରାଧାନାଥ ରାୟ
ନନ୍ଦିକାର ମୃତ୍ୟୁରେ ସମଗ୍ର ବିଡ଼ାନାସୀ ଶୋକରେ ପ୍ଲାବିତ ହୋଇଛି । ନନ୍ଦିକାଙ୍କର ସଖୀମାନେ ବିକଳ ହୋଇ କାନ୍ଦୁଛନ୍ତି । ରାଣୀମାନେ ଅନ୍ତପୁରରେ କାନ୍ଦୁଛନ୍ତି । ସବୁଠାରୁ ହୃଦୟ ବିଦାରକ ଦୁଃଖ ଭୋଗୁଛନ୍ତି ରାଜା ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀ, କାରଣ କନ୍ୟାର ମୃତ୍ୟୁରେ ସେ କାନ୍ଦିପାରୁ ନାହାନ୍ତି, ଅତ୍ୟନ୍ତ ଦୁଃଖରେ ସେ ସ୍ଥାଣୁ ପାଲଟି ଯାଇଛନ୍ତି; ଏବଂ ଏହି ଶୋକର ଛାୟା ସମଗ୍ର ବିଡ଼ାନାସୀବାସୀଙ୍କୁ ମର୍ମାହତ କରିଛି ।

(ଚତ୍) ୫ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ଦୀର୍ଘ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ ଓ ଉତ୍ତର (୧୫୦ ଶବ୍ଦ ମଧ୍ୟରେ) ।

Question 1.
ରାଧାନାଥଙ୍କର ସଫଳ କବିକର୍ମର ନିଦର୍ଶନ ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ – ଆଲୋଚନା କର ।
Answer:
ରାଧାନାଥ ସାହିତ୍ୟ ରଚନା କରିବା ପୂର୍ବରୁ ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟରେ ସଂସ୍କୃତ ପ୍ରଭାବିତ ରୀତି ସାହିତ୍ୟ ପ୍ରଭାବ ବିସ୍ତାର କରିଥିଲା । ସେହି ସମୟର ସାହିତ୍ୟ ମୁଖ୍ୟତଃ ଦରବାରୀ ସାହିତ୍ୟ ଥିଲା । ଇଂରେଜମାନେ ଓଡ଼ିଶା ଅଧିକାର କରିବାପରେ, ଓଡ଼ିଶାର ସାମାଜିକ, ରାଜନୈତିକ ଓ ସାଂସ୍କୃତିକ ଜୀବନରେ ବ୍ୟାପକ ପରିବର୍ତ୍ତନ ଆସିଛି । ଆଧୁନିକ ଶିକ୍ଷାର ପ୍ରସାର ଘଟିଛି, ତା’ ସହିତ ଛାପାଖାନର ମଧ୍ୟ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଛି । ରାଧାନାଥ ସେହି ଆଧୁନିକ ଯୁଗର ପୃଷ୍ଠଭୂମିରେ ଲେଖନୀଚାଳନା କରିଛନ୍ତି । ପାରମ୍ପରିକ ସାହିତ୍ୟକୁ ସେ ନୂଆକରି ତା’ର ରୂପ ପରିବର୍ତ୍ତନ କରିଛନ୍ତି । ଆଳଙ୍କାରିକତାରୁ ସାହିତ୍ୟକୁ ଯଥାସମ୍ଭବ ଦୂରେଇ ରଖ୍ ସାଧାରଣ ମଣିଷ ଭାବରେ ସାହିତ୍ୟର ରୂପକୁ ସଜେଇଛନ୍ତି । ଯାହା ପଣ୍ଡିତମାନଙ୍କଠାରୁ ଆରମ୍ଭ କରି ଅଶିକ୍ଷିତ ଲୋକ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ସମସ୍ତେ ବୁଝିପାରିବେ । ତାଙ୍କର ସାହିତ୍ୟ ସୃଷ୍ଟି ମଧ୍ୟରେ ‘କେଦାରଗୌରୀ’, ‘ଉଷା’, ‘ପାର୍ବତୀ’, ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ’, ‘ଉର୍ବଶୀ’, ‘ମହାଯାତ୍ରା’, ‘ଚିଲିକା’ ଆଦି କାବ୍ୟଗୁଡ଼ିକ ଉଲ୍ଲେଖଯୋଗ୍ୟ ।

ଆଲୋଚିତ ପ୍ରସଙ୍ଗଟି ହେଉଛି ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ କାବ୍ୟର ବୈଚିତ୍ର । ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ କାବ୍ୟଟି କବିଙ୍କର ତୃତୀୟ ସୃଷ୍ଟି । ଉକ୍ତ କାବ୍ୟଟି ୧୮୮୭ ମସିହାରେ ଭିକ୍ଟୋରିଆ ପ୍ରେସ୍‌ରୁ ପ୍ରକାଶିତ ହୋଇଥିଲା । ଏହି କାବ୍ୟଟିର ବର୍ଣନାଶୈଳୀ ସ୍ଵତନ୍ତ୍ର । ଚରିତ୍ରମାନଙ୍କର ଅବତାରଣା ମଧ୍ୟ ସୁନ୍ଦର । ପ୍ରକୃତି ବର୍ଣ୍ଣନା ଜୀବନ୍ତ ଏବଂ ପ୍ରେମର ବର୍ଣ୍ଣନା ମହୀୟାନ । କାବ୍ୟଟିର ବିଷୟବସ୍ତୁ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗ ଦେବଙ୍କ ସମରସଜ୍ଜାରୁ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଛି । ପରେ ପରେ ସୁନ୍ଦର ଭାବରେ କବି ଉତ୍କଳର ବିଭିନ୍ନ ଐତିହାସିକ ସ୍ଥାନ ଓ ତୀର୍ଥ ବିଷୟରେ ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛନ୍ତି । ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ’ କାବ୍ୟର ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀ ଓ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବଙ୍କ ଚରିତ୍ର ମାଦଳାପାଞ୍ଜିରୁ ଆଣିଛନ୍ତି ଓ ସେଥୁରେ ଓଭିଡ୍‌ଙ୍କ ‘ମେଟାମରଫୋସିସ୍’ କାହାଣୀର ନିମସ୍ ଓ ମିନ୍ସଙ୍କୁ ଆରୋପ କରିଛନ୍ତି । ଏହା ପ୍ରାଚ୍ୟ ଓ ପାଶ୍ଚାତ୍ୟର ଏକ ସୁନ୍ଦର ସମନ୍ବୟ ହୋଇପାରିଛି । ନନ୍ଦିକା ଚରିତ୍ରଟି ସମ୍ପୂର୍ଣ କାଳ୍ପନିକ ହେଲେ ମଧ୍ୟ ତା’ର ଅବତାରଣା ଏପରି ଭାବରେ କରିଛନ୍ତି ଯେ, ତାହା ସତ୍ୟ କାହାଣୀ ପରି ପ୍ରତ୍ୟୟମାନ ହୋଇଛି ।

CHSE Odisha Class 11 Optional Odia Solutions Chapter 2 ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ

Question 2.
ରାଧାନାଥଙ୍କର ଏକ ବୈଚିତ୍ରପୂର୍ଣ୍ଣ ସୃଷ୍ଟି ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ – ଆଲୋଚନା କର ।
Answer:
ରାଧାନାଥ ସାହିତ୍ୟ ରଚନା କରିବା ପୂର୍ବରୁ ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟରେ ସଂସ୍କୃତ ପ୍ରଭାବିତ ରୀତି ସାହିତ୍ୟ ପ୍ରଭାବ ବିସ୍ତାର କରିଥିଲା । ସେହି ସମୟର ସାହିତ୍ୟ ମୁଖ୍ୟତଃ ଦରବାରୀ ସାହିତ୍ୟ ଥିଲା । ଇଂରେଜମାନେ ଓଡ଼ିଶା ଅଧିକାର କରିବାପରେ, ଓଡ଼ିଶାର ସାମାଜିକ, ରାଜନୈତିକ ଓ ସାଂସ୍କୃତିକ ଜୀବନରେ ବ୍ୟାପକ ପରିବର୍ତ୍ତନ ଆସିଛି । ଆଧୁନିକ ଶିକ୍ଷାର ପ୍ରସାର ଘଟିଛି, ତା’ ସହିତ ଛାପାଖାନର ମଧ୍ୟ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଛି । ରାଧାନାଥ ସେହି ଆଧୁନିକ ଯୁଗର ପୃଷ୍ଠଭୂମିରେ ଲେଖନୀଚାଳନା କରିଛନ୍ତି । ପାରମ୍ପରିକ ସାହିତ୍ୟକୁ ସେ ନୂଆକରି ତା’ର ରୂପ ପରିବର୍ତ୍ତନ କରିଛନ୍ତି । ଆଳଙ୍କାରିକତାରୁ ସାହିତ୍ୟକୁ ଯଥାସମ୍ଭବ ଦୂରେଇ ରଖ୍ ସାଧାରଣ ମଣିଷ ଭାବରେ ସାହିତ୍ୟର ରୂପକୁ ସଜେଇଛନ୍ତି । ଯାହା ପଣ୍ଡିତମାନଙ୍କଠାରୁ ଆରମ୍ଭ କରି ଅଶିକ୍ଷିତ ଲୋକ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ସମସ୍ତେ ବୁଝିପାରିବେ । ତାଙ୍କର ସାହିତ୍ୟ ସୃଷ୍ଟି ମଧ୍ୟରେ ‘କେଦାରଗୌରୀ’, ‘ଉଷା’, ‘ପାର୍ବତୀ’, ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ’, ‘ଉର୍ବଶୀ’, ‘ମହାଯାତ୍ରା’, ‘ଚିଲିକା’ ଆଦି କାବ୍ୟଗୁଡ଼ିକ ଉଲ୍ଲେଖଯୋଗ୍ୟ ।

ଆଲୋଚିତ ପ୍ରସଙ୍ଗଟି ହେଉଛି ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ କାବ୍ୟର ବୈଚିତ୍ର । ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ କାବ୍ୟଟି କବିଙ୍କର ତୃତୀୟ ସୃଷ୍ଟି । ଉକ୍ତ କାବ୍ୟଟି ୧୮୮୭ ମସିହାରେ ଭିକ୍ଟୋରିଆ ପ୍ରେସ୍‌ରୁ ପ୍ରକାଶିତ ହୋଇଥିଲା । ଏହି କାବ୍ୟଟିର ବର୍ଣନାଶୈଳୀ ସ୍ଵତନ୍ତ୍ର । ଚରିତ୍ରମାନଙ୍କର ଅବତାରଣା ମଧ୍ୟ ସୁନ୍ଦର । ପ୍ରକୃତି ବର୍ଣ୍ଣନା ଜୀବନ୍ତ ଏବଂ ପ୍ରେମର ବର୍ଣ୍ଣନା ମହୀୟାନ । କାବ୍ୟଟିର ବିଷୟବସ୍ତୁ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗ ଦେବଙ୍କ ସମରସଜ୍ଜାରୁ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଛି । ପରେ ପରେ ସୁନ୍ଦର ଭାବରେ କବି ଉତ୍କଳର ବିଭିନ୍ନ ଐତିହାସିକ ସ୍ଥାନ ଓ ତୀର୍ଥ ବିଷୟରେ ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛନ୍ତି । ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ’ କାବ୍ୟର ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀ ଓ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବଙ୍କ ଚରିତ୍ର ମାଦଳାପାଞ୍ଜିରୁ ଆଣିଛନ୍ତି ଓ ସେଥୁରେ ଓଭିଡ୍‌ଙ୍କ ‘ମେଟାମରଫୋସିସ୍’ କାହାଣୀର ନିମସ୍ ଓ ମିନ୍ସଙ୍କୁ ଆରୋପ କରିଛନ୍ତି । ଏହା ପ୍ରାଚ୍ୟ ଓ ପାଶ୍ଚାତ୍ୟର ଏକ ସୁନ୍ଦର ସମନ୍ବୟ ହୋଇପାରିଛି । ନନ୍ଦିକା ଚରିତ୍ରଟି ସମ୍ପୂର୍ଣ କାଳ୍ପନିକ ହେଲେ ମଧ୍ୟ ତା’ର ଅବତାରଣା ଏପରି ଭାବରେ କରିଛନ୍ତି ଯେ, ତାହା ସତ୍ୟ କାହାଣୀ ପରି ପ୍ରତ୍ୟୟମାନ ହୋଇଛି ।

Question 3.
ପ୍ରେମ ଅନ୍ଧ ଅଟେ – ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ’ କାବ୍ୟରୁ ଏହି ଉକ୍ତିର ଯଥାର୍ଥତା ଦର୍ଶାଅ ।
Answer:
ଆଧୁନିକ ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟର ଯୁଗପ୍ରବର୍ତ୍ତକ କବିବର ରାଧାନାଥ ରାୟ ୧୮୪୮ ମସିହାରେ ଜନ୍ମଗ୍ରହଣ କରିଥିଲେ । ତାଙ୍କର ଜନ୍ମ ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟ ଆକାଶରେ ନୂତନ ଆଲୋକ ଚମକାଇ ଥିଲା । କବି ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟରେ ଆଲୋଡ଼ନ ସୃଷ୍ଟି କରିଥିଲେ । ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟରେ ସେ ନୂଆଧାରା ଆଣିଥିଲେ । ରାଧାନାଥଙ୍କ ସ୍ରଷ୍ଟା ମାନସ ଥିଲା ନୂତନତାର ସନ୍ଧାନୀ । ସେ ଥିଲେ ବହୁ ଶାସ୍ତ୍ରବିତ୍ । ପ୍ରାଚ୍ୟ-ପାଶ୍ଚାତ୍ୟ ସାହିତ୍ୟର ସମନ୍ବୟ ତାଙ୍କ ସାହିତ୍ୟର ମୁଖ୍ୟ ବିଷୟ ଥିଲା । ରାଧାନାଥଙ୍କର କାବ୍ୟଗୁଡ଼ିକ ମୁଖ୍ୟତଃ ରୋମାଣ୍ଟିକ୍ । ‘କେଦାରଗୌରୀ’, ‘ଚନ୍ଦ୍ରଭାଗା’, ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ’, ‘ଉଷା’, ‘ପାର୍ବତୀ’, ‘ଉର୍ବଶୀ’ ଇତ୍ୟାଦି କାବ୍ୟଗୁଡ଼ିକ ପ୍ରେମମୂଳକ କାବ୍ୟ । ମାତ୍ର ପ୍ରାୟତଃ ଏହି କାବ୍ୟରେ ନାୟକ -ନାୟିକାଙ୍କର ବିଚ୍ଛେଦ ଘଟିଛି । ତଥାପି ମଧ୍ୟ ପ୍ରେମ ପାଇଁ କାବ୍ୟଗୁଡ଼ିକ ସ୍ମରଣୀୟ । ପ୍ରତ୍ୟେକ କାବ୍ୟରେ କବି ପ୍ରେମର ମହାନତାକୁ ପ୍ରତିପାଦନ କରିଛନ୍ତି ଏବଂ ଏହି ପ୍ରେମ, କିଛି ଜାଣେ ନାହିଁ, କେବଳ ପ୍ରେମ ଛଡ଼ା ଅନ୍ୟସବୁ ଫିକା ଲାଗେ ।

ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ କାବ୍ୟରେ ମଧ୍ୟ ପ୍ରେମର ସୁନ୍ଦର ବର୍ଣ୍ଣନା କରାଯାଇଛି । ପ୍ରେମ ଅନ୍ଧ ଅଟେ– ପ୍ରେମିକା ନନ୍ଦିକା ନିଜର ପ୍ରିୟ ପୁରୁଷ ପାଇଁ କିପରି ପ୍ରେମରେ ଅନ୍ଧ ହୋଇଯାଇଛି; ତାହା ଆଲୋଚନାରୁ ବିଷୟବସ୍ତୁ । ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ କାବ୍ୟର ନାୟକ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବ ଗଙ୍ଗାଙ୍କ ଆଦେଶରେ ଉତ୍କଳରେ ବୈଷ୍ଣବ ଭକ୍ତି ପ୍ରଚାର କରିବା ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ ଉତ୍କଳ ଅଧିକାର କରିବାପାଇଁ କାଠଯୋଡ଼ି ଆରପାରିରେ ଶିବିର ପକାଇ ଅଛନ୍ତି । ସେତେବେଳେ ଉତ୍କଳର ରାଜା ଥିଲେ ସୁବର୍ଷକେଶରୀ । ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀଙ୍କର ଅନିନ୍ଦ୍ୟସୁନ୍ଦରୀ କନ୍ୟାଟିଏ ଥୁଲା, ଯାହାର ନାମ ନନ୍ଦିକା । ରାଜା ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀ ଶତଚେଷ୍ଟା ପରେ ମଧ୍ୟ ଉତ୍କଳକୁ ରକ୍ଷାକରି ପାରିନାହାନ୍ତି, ତେଣୁ ଦେବୀ ଚଣ୍ଡିକାଙ୍କର ଶରଣାପନ୍ନ ହେଇଛନ୍ତି । ଦେବୀ ତାଙ୍କୁ ‘ଜୈତ୍ରମଣି’ ରକ୍ଷାକବଚ ପ୍ରଦାନ କରିଛନ୍ତି । ସେହି ମଣି ସାହାଯ୍ୟରେ ଉତ୍କଳକୁ ରକ୍ଷା କରିଛନ୍ତି ରାଜା । ମାତ୍ର ସୁନ୍ଦରୀ ନନ୍ଦିକା ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବଙ୍କ ପ୍ରେମରେ ପାଗଳୀ ହୋଇଯାଇଛନ୍ତି । ଶେଷରେ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗ ଉତ୍କଳର ବିଡ଼ାନାସି ଗଡ଼କୁ ଭେଦ କରିନପାରି ସ୍ଵରାଜ୍ୟକୁ ଫେରିଯିବାକୁ ବସିଛନ୍ତି ।

ଏହି ଖବରରେ ନନ୍ଦିକା ଭାଙ୍ଗି ପଡ଼ିଛନ୍ତି । ରାତି ଅଧରେ ପ୍ରାଣପ୍ରିୟ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କ କଥା ଭାବି ଭାବି ଅଥୟ ହୋଇଛନ୍ତି । ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗ ତା’ ପିତାଙ୍କ ଶତ୍ରୁ, ତେଣୁ ସେ ଚାହିଁ ମଧ୍ଯ ତାଙ୍କୁ ବିବାହ କରିପାରିବେ ନାହିଁ । ମନେ ମନେ ସୁଭଦ୍ରାଙ୍କ ପ୍ରେମକଥା ଭାବିଛନ୍ତି ନନ୍ଦିକା । ସେହି ମୂହୂର୍ତ୍ତରେ ସେ ସବୁକିଛି ଭୁଲିଯାଇ ନିଜ ପିତାଙ୍କ ଜୈତ୍ରମଣିକୁ ଚୋରାଇ ନେଇ ପ୍ରେମିକଙ୍କୁ ଦେଇ ତାଙ୍କୁ ଏକଚ୍ଛତ୍ରପତି କରାଇବା କଥା ଚିନ୍ତାକରିଛି ଏବଂ ଏହି ପ୍ରେମରେ ପଡ଼ି ସେ ନିଜ ପିତାଙ୍କୁ ମଧ୍ୟ ପାସୋରି ପକାଇଛି । ଶେଷରେ ସେ ତାହାହିଁ କରିଛି, ପିତାଙ୍କ ଜୈତ୍ରମଣିକୁ ହସ୍ତଗତ କରି ଯାଇ ପ୍ରେମିକ ପାଖରେ ପହଞ୍ଚିଯାଇଛି । ନିଜ ପ୍ରେମ ପାଇଁ ସେ ନିଜର ବଂଶ ପରମ୍ପରା, ପିତା-ମାତା ଆଉ ନିଜକୁ ମଧ୍ଯ ପାସୋରି ପକାଇଛି । ପ୍ରକୃତରେ ପ୍ରେମ ଅନ୍ଧ ବୋଲି କବି ନନ୍ଦିକା ମାଧ୍ୟମରେ ସୁନ୍ଦର ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛନ୍ତି । ତେଣୁ ସେ ନନ୍ଦିକା ମୁଖରେ କହିଛନ୍ତି –

‘‘ମହାବଳୀ ପ୍ରେମ ଅଟଇ ମହୀର,
ପ୍ରେମ ସିନା କରେ ଅବଳାକୁ ବୀର,
ପ୍ରେମ ଦିଏ ବୁଦ୍ଧି ଉଦ୍‌ଯୋଗ ସାହସ,
ପ୍ରେମ କରିପାରେ ଅବଶକୁ ବଶ ।’’

ଶେଷରେ ନନ୍ଦିକା ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କ ପାଖରେ ପହଞ୍ଚି, ଜୈତ୍ରମଣିକୁ ତାଙ୍କ ପାଦତଳେ ଥୋଇଦେଇ ପ୍ରେମଭିକ୍ଷା କରିଛି । ସେତେବେଳେ ସେ ନିଜର ଅସ୍ଥିତ୍ଵକୁ ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ଭୁଲିଯାଇଛି । ତେଣୁ ପ୍ରେମ ଅନ୍ଧ ବୋଲି କବି ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛନ୍ତି ।

Question 4.
‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ କାବ୍ୟରୁ ପ୍ରଣୟ ସ୍ନିଗ୍ଧ ଭାବଚେତନାର ଚିତ୍ର ଉପସ୍ଥାପନ କର ।
Answer:
ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟର ଆଧୁନିକ ପର୍ବରେ ଯେଉଁ କେତେଜଣ ପ୍ରଚଣ୍ଡ ପ୍ରତିଭା ସେମାନଙ୍କ ଅନନ୍ୟ ସୃଷ୍ଟିର ପ୍ରତିଦାନରେ ନିଜ ନାମକୁ ସ୍ଵର୍ଣ୍ଣାକ୍ଷରରେ ଅମର କରିଯାଇଛନ୍ତି ସେମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ କବିବର ରାଧାନାଥ ରାୟ ଅନ୍ୟତମ ଯୋଗ୍ଯ କାବ୍ୟଶିଳ୍ପୀ । ତାଙ୍କର କାବ୍ଯସଂପଦ ବହୁ ବୈଚିତ୍ରରେ ପରିପୂର୍ଣ୍ଣ । ଗ୍ରୀକ୍ ସାହିତ୍ୟରୁ କଥାବସ୍ତୁ ଗ୍ରହଣକରି ଉତ୍କଳୀୟ ପରିବେଶରେ ସେ କାବ୍ୟ କୋଣାର୍କ ତୋଳିଛନ୍ତି, ଯାହା ଯେମିତି କାରୁକାର୍ଯ୍ୟପୂର୍ଣ୍ଣ ସେମିତି ଦୀପ୍ତିମୟ । ପୂର୍ବ ପରମ୍ପରାକୁ ଭାଙ୍ଗି ନୂତନତାର ଆବାହନ କରିବାରେ ରାଧାନାଥ ଥିଲେ ଅଗ୍ରଗଣ୍ୟ । ସାହିତ୍ୟକୁ ବିଳାସର ସାମଗ୍ରୀ ନଭାବି ଜୀବନର ପ୍ରତିଛବି ଭାବରେ ଗ୍ରହଣ କରିଛନ୍ତି କବି । ଫଳରେ ରାଧାନାଥଙ୍କ ସାହିତ୍ୟ ମାନବିକ ଆବେଦନ ସୃଷ୍ଟି କରିପାରିଛି ।

‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’, ‘ଚନ୍ଦ୍ରଭାଗା’, ‘କେଦାରଗୌରୀ’ ପରି କାବ୍ୟରେ ଦୁଃଖାନ୍ତକ ପରିଣତି ପାଇଁ ପାଶ୍ଚାତ୍ୟ ସାହିତ୍ୟର ପ୍ରେରଣା ଏବଂ ନିଜ ବ୍ୟକ୍ତିଗତ ଜୀବନର ହତାଶାଭାବ ହିଁ ଅନେକ ପରିମାଣରେ ଦାୟୀ ହୋଇପାରେ । ତାଙ୍କ ଅନନ୍ୟ କାବ୍ୟକୃତି ମଧ୍ୟରୁ ‘ଚିଲିକା’, ‘କେଦାରଗୌରୀ’, ‘ଦରବାର’, ‘ଚନ୍ଦ୍ରଭାଗା’, ‘ଯଯାତିକେଶରୀ’, ‘ଉଷା’, ‘ପାର୍ବତୀ’ ଆଦି ଅନ୍ୟତମ । ଆଲୋଚ୍ୟ ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ କାବ୍ୟର ନାୟକ ନାୟିକା ରାଜବଂଶଜ ହେଲେ ମଧ୍ୟ ସେମାନଙ୍କ ପ୍ରେମ ପ୍ରଣୟ ରୀତିଯୁଗୀୟ ଦେହର ମିଳନରେ ସୀମିତ ନୁହେଁ । ପ୍ରେମ ଏଠାରେ ଦେହାତୀତ । ଅଶ୍ରୁ ଓ ବିରହରେ ଏହା ମହିମାନ୍ଵିତ । ପ୍ରେମର ଛତ୍ରୀ ଉଡ଼ାଇବା ପାଇଁ ନନ୍ଦିକା ସଂକଳ୍ପବଧ । ସେଥିଲାଗି ସେ ସ୍ଥିର କରିଛନ୍ତି –

‘‘ ପ୍ରେମବଳେ ତାଙ୍କୁ କରି ଛତ୍ରପତି
ପ୍ରେମିକାକୁଳେ ମୁଁ ଟେକାଇବି ଛତି ।”

ପ୍ରେମର ବାନା ଉଡ଼ାଇବା ପାଇଁ ନନ୍ଦିକା ପିତାଙ୍କୁ ଶିରରୁ ଜୈତ୍ରମଣି ନେଇ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କୁ ପ୍ରଦାନ କରିଛି । ମାତ୍ର ସେଠାରେ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କ ଦ୍ବାରା ଉପେକ୍ଷିତା ହୋଇ ଆତ୍ମହତ୍ୟାକୁ ଶ୍ରେୟ ମଣିଛି ।

ଦେଶଦ୍ରୋହୀ, ରାଜଦ୍ରୋହୀ, ପିତୃଦ୍ରୋହୀ ହୋଇଥିବାରୁ ଅପରାଧବୋଧ ହେତୁ ନନ୍ଦିକା ମୃତ୍ୟୁର ପଥ ବାଛିବାକୁ ଶ୍ରେୟ ବୋଲି ବିଚାରିଛି । କବିଙ୍କର ଗଭୀର ବିଚାରବୋଧ ହିଁ ଏପରି ଏକ ପରିଣତିର କଳ୍ପନା କରିଛି । ଉତ୍କଳର ପବିତ୍ର କ୍ଷେତ୍ରରେ ଦେଶଦ୍ରୋହୀ ନନ୍ଦିକା ସୃଷ୍ଟି ହେବା ପ୍ରକୃତରେ ବିସ୍ମୟ ବୋଲି ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗ ପ୍ରକାଶ କରିଛନ୍ତି । ତଥାପି କବି ଏପରି ଏକ ପ୍ରେମପ୍ରଣୟମୂଳକ କାବ୍ୟରେ ପ୍ରେମର ଚମତ୍କାର ବର୍ଣ୍ଣନା ତଥା ଗୁଣଗାନକୁ ଅନାଦାର କରିନାହାନ୍ତି, ଅଧୂକନ୍ତୁ ପ୍ରେମର ଶ୍ରେଷ୍ଠତ୍ୱ ଓ ମହିମା ଗାନ କରିଛନ୍ତି । କବିଙ୍କ ଭାଷାରେ –

‘‘ ମହାବଳୀ ପ୍ରେମ ଅଟଇ ମହୀର,
ପ୍ରେମ ସିନା କରେ ଅବଳାକୁ ବୀର
ପ୍ରେମ ଦିଏ ବୁଦ୍ଧି ଉଦ୍‌ଯୋଗ ସାହସ,
ପ୍ରେମ କରିପାରେ ଅବଶକୁ ବଶ ।”

ପ୍ରଣୟମୁଗ୍ଧା ଲଳନା ନନ୍ଦିକା ପ୍ରେମପାଇଁ ହୋଇଛି ଦୁଃସାହସୀ । ଅଥଚ ପ୍ରେମ ପ୍ରଣୟ ମିଳନ ପରିବର୍ତ୍ତେ ଅପମାନ ବରଣ କରି ସେ ବିରହରେ ବେଦନା ଭୋଗିଛି । ପ୍ରଣୟଦଗ୍ଧ ଏକ ନାରୀ ମନର ବେଦନାକୁ କବି ରାଧାନାଥ ଅତି ଚମତ୍କାର ଭାବରେ ପାଠକ ପାଖରେ ତୋଳି ଧରିଛନ୍ତି । ଧର୍ମ, ଯୁଦ୍ଧ ବୀରପଣରେ ପରିଣତି ନ ଆଣି କବି ନିଜ କଳ୍ପନା ଓ ବର୍ଣ୍ଣନାରେ ପ୍ରେମଯୁଦ୍ଧରେ ସମାପ୍ତ କରିଛନ୍ତି । ପ୍ରେମ ପାଗଳିନୀ ନନ୍ଦିକାର ମନ ହୃଦୟ ଭାଙ୍ଗିଯାଇଛି । ପ୍ରେମ ପାଇଁ ସେ ଯେଉଁ ପଦକ୍ଷେପ ନେଇଛି, ସେଥୁରୁ ଆଉ ପଛକୁ ଲେଉଟି ନିର୍ଲଜ ଜୀବନ ଜିଇଁବାକୁ ଇଚ୍ଛା କରିନାହିଁ; ବରଂ ମୃତ୍ୟୁରେ ତା’ର ଭାବନା ଲିପ୍ତ ହେବାକୁ ଛାଡ଼ିଦେଇଛି । ପ୍ରେମ ସ୍ମୃତି ହୋଇ ଝଟକିଛି, ଯାହାକୁ କେବେ ବି ଭୁଲିହେବ ନାହିଁ । କବିଙ୍କ ଭାଷାରେ

“ସ୍ମୃତି ତ କଦାପି ନୁହେଁ ଫିଙ୍ଗିବାର,
ପାରିଲେ ଫିଙ୍ଗି ସେ ଲଭନ୍ତା ନିସ୍ତାର ।’’

ବାସ୍ତବିକ୍ କବିଙ୍କ ରୋମାଣ୍ଟିକ୍ ଦୃଷ୍ଟିଭଙ୍ଗୀ ଓ ପ୍ରେମପ୍ରଣୟର ବର୍ଣ୍ଣନା ଅଦ୍ବିତୀୟ ।

Question 5.
‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ କାବ୍ୟରୁ ରାଧାନାଥଙ୍କର ନୈସର୍ଗିକ ଚେତନାର ଚିତ୍ର ଅଙ୍କନ କର ।
Answer:
ଆଧୁନିକ ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟର ଉନ୍ମେଷ ଲଗ୍ନରେ ଯେଉଁ ସ୍ରଷ୍ଟାଙ୍କର କଳା-କାରିଗରୀ, ପ୍ରତିଭାର ଚମତ୍କାରୀ ତାଙ୍କୁ ସ୍ମରଣୀୟ ଓ ସ୍ବତନ୍ତ୍ର କରି ରଖୁଛି । ସେ ନିଶ୍ଚରେ ନବଚେତନାର ବାର୍ତ୍ତାବହ କବିବର ରାଧାନାଥ ରାୟ । ତାଙ୍କ କାବ୍ୟ କୁସୁମ ଲାଭ କରି ଓଡ଼ିଆ ଭାଷା ସାହିତ୍ୟ ଯେମିତି ହୋଇଛି ବର୍ଣ୍ଣମୟ ସେମିତି ହୋଇଛି ବୈଚିତ୍ରପୂର୍ଣ୍ଣ ।

ତାଙ୍କ କାବ୍ୟଗୁଡ଼ିକ ମଧ୍ୟରୁ ‘ଚନ୍ଦ୍ରଭାଗା’, ‘ଚିଲିକା’, ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’, ‘ମହାଯାତ୍ରା’, ‘ଦରବାର’, ‘କେଦାରଗୌରୀ’, ‘ଯଯାତିକେଶରୀ’, ‘ପାର୍ବତୀ’, ‘ଉଷା’ ଆଦି ଅନ୍ୟତମ । ଆଲୋଚ୍ୟ ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ ତାଙ୍କର ଅନ୍ୟ ଏକ ଚର୍ଚ୍ଚିତ କାବ୍ୟ । ଏହା ୧୮୮୭ ମସିହାରେ ପ୍ରକାଶ ପାଇଥିଲା ।

ପ୍ରାଚ୍ୟ ପାଶ୍ଚତ୍ୟର ଅପୂର୍ବ ମିଳନରେ ରାଧାନାଥଙ୍କ ସୃଷ୍ଟି ଯେମିତି ଲୋକପ୍ରିୟ ହୋଇଥିଲା ସେମିତି ହୋଇଥୁଲା ଚିତ୍ତାକର୍ଷକ । ରାଧାନାଥ ପାଶ୍ଚାତ୍ୟରୁ କଥାବସ୍ତୁ ଗ୍ରହଣ କରିଥିଲେ ମଧ୍ୟ ପ୍ରକୃତିର ଆକର୍ଷଣକୁ ସେ ଏଡ଼ାଇ ଦେଇ ଯାଇନାହାନ୍ତି । ରୀତି ସାହିତ୍ୟର ପ୍ରକୃତି ବର୍ଣ୍ଣନାର ଧାରାରୁ ମୁକୁଳି ଯାଇ ଭିନ୍ନ ଓ ନବ ଭାବନାର ଉଦ୍ରେକ କରାଇଛନ୍ତି ରାଧାନାଥ ରାୟ । ରୀତି ସାହିତ୍ୟରେ ଋତୁ ବର୍ଣ୍ଣନା, ସରୋବର ବର୍ଣ୍ଣନା, ପ୍ରାତ-ସଞ୍ଜର ବର୍ଣ୍ଣନା ଆଦି ବାହ୍ୟ ପ୍ରକୃତିର ବର୍ଣ୍ଣନା ଥିଲା ସେଇ କାଳର କବିମାନଙ୍କ ବର୍ଣ୍ଣନାସ୍ଥଳୀ । ମାତ୍ର ରାଧାନାଥ ରାୟ ପ୍ରକୃତି ବର୍ଣ୍ଣନାରେ ତାହା ମାନବିକ ଗୁଣରେ ବିଭୂଷିତ, ତାହା ଜଡ଼ ନୁହେଁ କି ନିର୍ବାକ୍ ନୁହେଁ । ବାହ୍ୟ ପ୍ରକୃତି ଓ ଅନ୍ତଃପ୍ରକୃତିର ସମନ୍ଵୟରେ କବିଙ୍କ ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ବରୀ’ କାବ୍ୟ ହୋଇଉଠିଛି ପ୍ରାଣବନ୍ତ । ତାଙ୍କ ପ୍ରକୃତି କେବଳ ଭୂଗୋଳର ନିର୍ଜୀବ ବିଷୟ ନୁହେଁ; ବରଂ ବର୍ଣ୍ଣନାର ରସବତା ପାଠକକୁ ଆଲୋଡି଼ତ ଓ ପ୍ରଭାବିତ କରେ ।

ପ୍ରଥମ ସର୍ଗରେ ବିଭିନ୍ନ ସ୍ଥାନର ବର୍ଣ୍ଣନା ଅପୂର୍ବଶ୍ରୀ ଧାରଣ କରିଛି । ସତ୍ତାହୀନ ଜଡ଼ ଜୀବନହୀନ ପ୍ରକୃତି ପ୍ରାଣ ପାଇ ସଚଳ ହୋଇଉଠିଛି ରାଧାନାଥଙ୍କ ବର୍ଣ୍ଣନାରେ । କବିଙ୍କ ଭାଷାରେ –

‘‘ ପରସ୍ପରେ ଭୁଜ ଛନ୍ଦିବାରେ ସଦା
ଚମ୍ପାକୃତ ଯହିଁ ବଳାରି ଶରଧା ।’’
X X X X X
‘‘ କୋଠରଙ୍ଗ ଯହିଁ ବଦନ ବିଜନେ
ଧଉଳି ଦେଖଇ ଦୟା – ଦରପଣେ ।
ରାହାଙ୍ଗ ରଚନ୍ତି ଯହିଁ କେଳି-କଳା
ଇଜଳ-ନିକୁଞ୍ଜେ କଜ୍ଵଳ-କୁନ୍ତଳା ।’’

ସେହିପରି ସପ୍ତକୋଷୀ ଗଣ୍ଡର ବର୍ଣ୍ଣନାରେ କବିଙ୍କ ଲେଖନୀ ସେହିପରି ଜୀବନ୍ତ ହୋଇଉଠିଛି । କବିଙ୍କ ଭାଷାରେ –

‘‘ ସପ୍ତକ୍ରୋଶୀ ଗଣ୍ଡ ରାଜେ ଶୈଳ-କୁଞ୍ଜେ
ସୁଶୀତଳ ତୁଙ୍ଗ ଶୈଳଚ୍ଛାୟା ପୁଞ୍ଜେ
ନିର୍ଜନେ ଦିଅନ୍ତି ବନହୁମାବଳୀ
ଜଳ-ଦେବତାଙ୍କୁ ଯହିଁ ପୁଷ୍ପାଞ୍ଜଳି ।
ତହିଁ ମହାନଦୀ – ପ୍ରବାହେ ନିଦାଘେ
ପ୍ରିୟା-ସଙ୍ଗେ ଖେଳୁଥିଲା ଅନୁରାଗେ ।’’

ଉତ୍କଳର ବିଭିନ୍ନ ନଦନଦୀ, ହ୍ରଦ, ପ୍ରପାତ ବର୍ଣ୍ଣନାରେ ମଧ୍ଯ କବି ଅପୂର୍ବ କଳାକୌଶଳର ପରିଚୟ ଦେଇଛନ୍ତି । ଯାହା ଯେତିକି ବାସ୍ତବ ଚିତ୍ର ବହନ କରୁଛି ସେତିକି ପ୍ରକୃତିକୁ କବିଙ୍କ ଦୃଷ୍ଟିରେ ପାଠକ ପାଖରେ ତୋଳି ଧରିବାରେ ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ’ କାବ୍ୟ ସଫଳ ହେଉଛି । କବିଙ୍କ ବର୍ଣ୍ଣନାରେ ବୈତରଣୀ ଉତ୍କଳର ଗଡ଼ଖାଇ ସଦୃଶ । ବଳାଙ୍ଗୀ ନଦୀ ଉତ୍କଳ ହେମସୀମାନ୍ତ ରୂପିଣୀ ଶୋଭାପାଉଛି । ପ୍ରଧାନପାଟର ବର୍ଣ୍ଣନାରେ କବି ରାଧାନାଥ ରାୟ ଲେଖୁଛନ୍ତି –

‘‘ ପ୍ରଧାନ-ପାଟର ପ୍ରପାତ ଭୀଷଣ
ନିର୍ଜନ ଗହଳେ ଗର୍ଜେ ଅନୁକ୍ଷଣ ।
X X X X
ଯହିଁ କେଳିଲୋଳ-ଜଳଦେବୀ – କେଳି
ଉପୁଯାଏ ଶତ ସଲିଳ-ହାବେଳି ।”

ଦ୍ଵିତୀୟ ସର୍ଗରେ ମଧ୍ୟ କବି ସେହିପରି ସନ୍ଧ୍ୟାର ଅପୂର୍ବ ଶୋଭା ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛନ୍ତି । ଆକାଶ-ପୃଥ‌ିବୀ, ଜଳ-ସ୍ଥଳ, ସ୍ଵର୍ଣ୍ଣାଭରଙ୍ଗ ଧାରଣ କରିଛି ସୂର୍ଯ୍ୟାସ୍ତ ସମୟରେ । ଏହି ସନ୍ଧ୍ୟାର ବର୍ଣ୍ଣନା ଯେମିତି ହୃଦୟସ୍ପର୍ଶୀ ସେମିତି ଭାବଗର୍ଭକ । କବିଙ୍କ ଭାଷାରେ –

‘‘ଚାହୁଁ ଚାହୁଁ ରବି ହେଲେ ଅସ୍ତମିତ,
ପଶ୍ଚିମାଶା ହେଲା କୁଙ୍କୁମେ ଛୁରିତ,
କେତେ ରୂପ ଧରୁଅଛି ଚକ୍ରବାଳ,
ଦେଖାଉଛି ନବ ନବ ଇନ୍ଦ୍ରଜାଲ |
ରକ୍ତ, ପୀତ, ନୀଳେ ଚିତ୍ରକରି ନଭ
ଭିଆଇଛି ନନାବର୍ଷେ ବର୍ଣ୍ଣୋତ୍ସବ ।’

‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ’ ବାସ୍ତବିକ୍ କବିଙ୍କ ପ୍ରକୃତି ବର୍ଣ୍ଣନାର ଏକ ନିଖୁଣ ପରିପାଟୀର ପରିଚୟ । ମାନବିକ ଆବେଦନ, ବାହ୍ୟ ଓ ଅନ୍ତଃ ପ୍ରକୃତିର ସମନ୍ଵୟ ତାଙ୍କ କାବ୍ୟକୁ କରିଛି ବଳିଷ୍ଠ । ପ୍ରକୃତିର ଅପରୂପ ବର୍ଣ୍ଣନରେ ରାଧାନାଥ ଖୁବ୍ ସିଦ୍ଧହସ୍ତ ।

CHSE Odisha Class 11 Optional Odia Solutions Chapter 2 ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ

Question 6.
‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ କାବ୍ୟର ବର୍ଣ୍ଣନା ବିଳାସର ପରିଚୟ ଦିଅ ।
Answer:
ଆଧୁନିକ ସାହିତ୍ୟ କ୍ଷେତ୍ରରେ କବିବର ରାଧାନାଥ ରାୟ ସ୍ବୟଂ ଏକ ବୈଚିତ୍ର କହିଲେ ଅତ୍ୟୁକ୍ତି ହେବନାହିଁ । ପରମ୍ପରା ଓ ଗତାନୁଗତିକ ନିର୍ବାଚନରୁ ମୁକ୍ତହୋଇ ବୈଚିତ୍ରପୂର୍ଣ୍ଣ ପ୍ରକୃତିବର୍ଣ୍ଣନା ଓ ପ୍ରେମମୂଳକ କାବ୍ୟ ରଚନା କରି ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟ ଧାରାରେ ନବଚେତନାର ପ୍ରବାହ କରିଥିଲେ ସେ । ପ୍ରାଚ୍ୟ ଓ ପାଶ୍ଚାତ୍ୟ ସାହିତ୍ୟରୁ ଉପାଦାନ ସଂଗ୍ରହ କରି ଗଢ଼ିଲେ ତାଙ୍କର କାବ୍ୟକୋଣାର୍କ । ତେଣୁ ପ୍ରାଚ୍ୟର ଭିତ୍ତିଭୂମି ଉପରେ ପାଶ୍ଚାତ୍ୟର ପ୍ରଭାବ ତାଙ୍କ ସୃଷ୍ଟିକୁ କରିଛି ଅନନ୍ୟ । ପାଶ୍ଚାତ୍ୟର କଥାବସ୍ତୁକୁ ଉତ୍କଳର କିମ୍ବଦନ୍ତୀ ସହ ମିଶାଇ ଅପୂର୍ବ କଳ୍ପନାଶକ୍ତିର ପ୍ରୟୋଗ ଓ କଳାକୌଶଳର ପ୍ରୟୋଗରେ ଖୁବ୍ ଚମତ୍କାର ସୃଷ୍ଟି ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟ ଭଣ୍ଡାରରେ ସାଇତି ରଖ୍ ଯାଇଛନ୍ତି । ସେହି ସୃଷ୍ଟିଗୁଡ଼ିକ ମଧ୍ୟରୁ ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ବରୀ’ ଅନ୍ୟତମ ସାର୍ଥକ ସୃଷ୍ଟି ।

କଟକର ଉତ୍ତରରେ ମହାନଦୀର ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ ପଠା’ ନାମରେ ଏକ ପଠା ରହିଛି । ଅଂଶୁପା ହ୍ରଦ ନିକଟରେ ଅବସ୍ଥିତ ‘ସୁବର୍ଣ୍ଣପୁର’ ରାଜା ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀଙ୍କ ନାମାନୁସାରେ ନାମିତ ହୋଇଛି ବୋଲି ବିଶ୍ଵାସ ରହିଛି । ଆହୁରି ମଧ୍ୟ ରହିଛି ‘ବୁଡ଼ଙ୍ଗ ଦହ’ ନାମରେ ଏକ ହ୍ରଦ । କିମ୍ବଦନ୍ତୀ ଓ ଲୋକବିଶ୍ୱାସକୁ ନେଇ କବି ଗଢ଼ିଛନ୍ତି ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ କାବ୍ୟ । ନନ୍ଦିକେଶ୍ବରୀ ପଠାର ଏପରି ନାମକରଣ ହେବାରେ ସେ କଳ୍ପନାକୁ ଅଧିକ ଆଶ୍ରୟ କରିଛନ୍ତି । ସେଥ‌ିପାଇଁ ସେ ପାଶ୍ଚାତ୍ୟ ସାହିତ୍ୟର କଥାବସ୍ତୁକୁ ଗ୍ରହଣ କରିଛନ୍ତି ।

ଓଭିଡ୍‌ଙ୍କ ‘ମେଟାମରଫସିସ୍’ କାବ୍ୟମାଳାର ଅଷ୍ଟମ ଆଖ୍ୟାୟିକା “The King Minus and Scylla” ର ଅନୁକରଣରେ ରାଧାନାଥ ରାୟ ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ’ କାବ୍ୟର ପରିକଳ୍ପନା କରିଛନ୍ତି । ରାଜା ମିନସ୍‌ଙ୍କୁ ସେ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବ, ରାଜା ନିସସ୍‌ଙ୍କୁ ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀ ଭାବରେ ବର୍ଣ୍ଣନା କରି ରୁଦ୍ଧ ବିଡ଼ାନାସୀକୁ ସେ ମିଗାରେ ଦୁର୍ଗ ଅବରୋଧ ସହ କଳନା କରିଛନ୍ତି । ନିସ୍‌ସଙ୍କ ରାଜକନ୍ୟା ସିଲା ପରି ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ ମଧ୍ୟ ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀଙ୍କ ଏକମାତ୍ର କନ୍ୟା । ସିଲା ସ୍ଵର୍ଣ୍ଣାଭ କେଶଗୁଚ୍ଛ (purple hair) ଅପହରଣ କରିବାକୁ ରାଧାନାଥ ତାହାକୁ ଜୈନ୍ଦ୍ରମଣି ଅପହରଣ ପ୍ରସଙ୍ଗ ଭାବରେ ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛନ୍ତି । ସିଲା ପରି ନନ୍ଦିକେଶ୍ବରୀ ମଧ୍ୟ ଉପେକ୍ଷିତା ହୋଇ ଆତ୍ମହତ୍ୟା କରିଛି । ସିଲା ସମୁଦ୍ରକୁ ଡେଇଁ ଆତ୍ମହତ୍ୟା କରିଥିଲାବେଳେ ନନ୍ଦିକା ପିତାଙ୍କ ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ ଏକ ହୃଦୟ ବିଦାରକ ପତ୍ର ଲେଖୁ ଆତ୍ମହତ୍ୟା କରିଛନ୍ତି । କବିଙ୍କ ଭାଷାରେ –

‘‘ ଫୁଟିଥିଲା ଯାହା ବାଲ୍ୟରୁ ବଉଳି
ରୂପ-ପୁଷ୍ପ ଗଲା ନିମିଷେ ମଉଳି ।
ମଉଳଇ ନବମାଳିକା ଯେମନ୍ତ,
ମୂଳ କାଟିଦେଲେ ବଲ୍ଲୀକ ଦୂରନ୍ତ।’’

ପିତାଙ୍କ ପାଖକୁ ପ୍ରେରିତ ପତ୍ରରେ କବିଙ୍କ ଭାଷା ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ ଉଲ୍ଲେଖ କରିଛନ୍ତି ।

“ ତାତ ଜୀବଲୀଳା ସରୁଛି ମୋହର,
ଅନ୍ତଃମେ ବନ୍ଦିଲି ତୁମ୍ଭ ଶ୍ରୀପୟର ।
ଶିରେ ଘେନି ଯାଉଅଛି ପାପଭାଗ
ତହିଁ, ଯହିଁ ଚିର-ମୁକ୍ତ କୃପାଦ୍ଵାର।’’

‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ କାବ୍ୟର ସଫଳତା କବିଙ୍କର ବର୍ଣ୍ଣନା ବିଳାସର ଚାତୁର୍ଯ୍ୟ ଉପରେ ନିର୍ଭରଶୀଳ । ପାଶ୍ଚାତ୍ୟ ସାହିତ୍ୟ କଥାବସ୍ତୁ ଆହରଣ କଲେ ମଧ୍ୟ ତାକୁ ଉତ୍କଳୀୟ ପଟ୍ଟଭୂମିରେ ସ୍ଥାନିତ କରି ସେ ତାଙ୍କ କବିତ୍ଵର ସଫଳ ନିଦର୍ଶନ ଦେଇଛନ୍ତି । ପ୍ରକୃତି ବର୍ଣ୍ଣନା, କଥାବସ୍ତୁର ବର୍ଣ୍ଣନା, ସର୍ବୋପରି ସୁସଂଯୋଜନାରେ କବିବରଙ୍କ ଏହି ଅନନ୍ୟ କୃତିଟି ଯେତିକି ବର୍ଣ୍ଣନାଧର୍ମୀ ସେତିକି ଆବେଗଧର୍ମୀ । କବିଙ୍କ ଏହି କଳ୍ପନା ଭ୍ରାନ୍ତପୂର୍ଣ୍ଣ ବୋଲି ହୃଦ୍‌ବୋଧନ ହୁଏନା; ବରଂ କିମ୍ବଦନ୍ତୀର ଅଶ୍ରାରେ କବିଙ୍କ ବର୍ଣ୍ଣନା ବିଳାସରେ ଏହା ଅଭ୍ରାନ୍ତ ମନେହୁଏ । ବାସ୍ତବିକ କବିକଳ୍ପନା ଯୁକ୍ତିସଙ୍ଗତ ଓ ଅଭ୍ରାନ୍ତ ।

Question 7.
‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ କାବ୍ୟରେ ବର୍ଣ୍ଣିତ ମନୋରମ ସାଂଧ୍ଯ ପ୍ରକୃତିର ଚିତ୍ର ପ୍ରଦାନ କର । କିମ୍ବା, ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ କାବ୍ୟରେ ରାଧାନାଥଙ୍କ ପ୍ରକୃତି ଚିତ୍ରଣର ଅଭିନବତା ବର୍ଣ୍ଣନା କର ।
Answer:
ଆଧୁନିକ ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟର ଉନ୍ମେଷ ଲଗ୍ନରେ ଯେଉଁ ସ୍ରଷ୍ଟାଙ୍କର କଳା-କାରିଗରୀ, ପ୍ରତିଭାର ଚମତ୍କାରୀ ତାଙ୍କୁ ସ୍ମରଣୀୟ ଓ ସ୍ବତନ୍ତ୍ର କରି ରଖୁଛି । ସେ ନିଶ୍ଚରେ ନବଚେତନାର ବାର୍ତ୍ତାବହ କବିବର ରାଧାନାଥ ରାୟ । ତାଙ୍କ କାବ୍ୟ କୁସୁମ ଲାଭ କରି ଓଡ଼ିଆ ଭାଷା ସାହିତ୍ୟ ଯେମିତି ହୋଇଛି ବର୍ଣ୍ଣମୟ ସେମିତି ହୋଇଛି ବୈଚିତ୍ରପୂର୍ଣ୍ଣ ।

ତାଙ୍କ କାବ୍ୟଗୁଡ଼ିକ ମଧ୍ୟରୁ ‘ଚନ୍ଦ୍ରଭାଗା’, ‘ଚିଲିକା’, ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’, ‘ମହାଯାତ୍ରା’, ‘ଦରବାର’, ‘କେଦାରଗୌରୀ’, ‘ଯଯାତିକେଶରୀ’, ‘ପାର୍ବତୀ’, ‘ଉଷା’ ଆଦି ଅନ୍ୟତମ । ଆଲୋଚ୍ୟ ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ ତାଙ୍କର ଅନ୍ୟ ଏକ ଚର୍ଚ୍ଚିତ କାବ୍ୟ । ଏହା ୧୮୮୭ ମସିହାରେ ପ୍ରକାଶ ପାଇଥିଲା ।

ପ୍ରାଚ୍ୟ ପାଶ୍ଚତ୍ୟର ଅପୂର୍ବ ମିଳନରେ ରାଧାନାଥଙ୍କ ସୃଷ୍ଟି ଯେମିତି ଲୋକପ୍ରିୟ ହୋଇଥିଲା ସେମିତି ହୋଇଥୁଲା ଚିତ୍ତାକର୍ଷକ । ରାଧାନାଥ ପାଶ୍ଚାତ୍ୟରୁ କଥାବସ୍ତୁ ଗ୍ରହଣ କରିଥିଲେ ମଧ୍ୟ ପ୍ରକୃତିର ଆକର୍ଷଣକୁ ସେ ଏଡ଼ାଇ ଦେଇ ଯାଇନାହାନ୍ତି । ରୀତି ସାହିତ୍ୟର ପ୍ରକୃତି ବର୍ଣ୍ଣନାର ଧାରାରୁ ମୁକୁଳି ଯାଇ ଭିନ୍ନ ଓ ନବ ଭାବନାର ଉଦ୍ରେକ କରାଇଛନ୍ତି ରାଧାନାଥ ରାୟ । ରୀତି ସାହିତ୍ୟରେ ଋତୁ ବର୍ଣ୍ଣନା, ସରୋବର ବର୍ଣ୍ଣନା, ପ୍ରାତ-ସଞ୍ଜର ବର୍ଣ୍ଣନା ଆଦି ବାହ୍ୟ ପ୍ରକୃତିର ବର୍ଣ୍ଣନା ଥିଲା ସେଇ କାଳର କବିମାନଙ୍କ ବର୍ଣ୍ଣନାସ୍ଥଳୀ । ମାତ୍ର ରାଧାନାଥ ରାୟ ପ୍ରକୃତି ବର୍ଣ୍ଣନାରେ ତାହା ମାନବିକ ଗୁଣରେ ବିଭୂଷିତ, ତାହା ଜଡ଼ ନୁହେଁ କି ନିର୍ବାକ୍ ନୁହେଁ । ବାହ୍ୟ ପ୍ରକୃତି ଓ ଅନ୍ତଃପ୍ରକୃତିର ସମନ୍ଵୟରେ କବିଙ୍କ ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ବରୀ’ କାବ୍ୟ ହୋଇଉଠିଛି ପ୍ରାଣବନ୍ତ । ତାଙ୍କ ପ୍ରକୃତି କେବଳ ଭୂଗୋଳର ନିର୍ଜୀବ ବିଷୟ ନୁହେଁ; ବରଂ ବର୍ଣ୍ଣନାର ରସବତା ପାଠକକୁ ଆଲୋଡି଼ତ ଓ ପ୍ରଭାବିତ କରେ ।

ପ୍ରଥମ ସର୍ଗରେ ବିଭିନ୍ନ ସ୍ଥାନର ବର୍ଣ୍ଣନା ଅପୂର୍ବଶ୍ରୀ ଧାରଣ କରିଛି । ସତ୍ତାହୀନ ଜଡ଼ ଜୀବନହୀନ ପ୍ରକୃତି ପ୍ରାଣ ପାଇ ସଚଳ ହୋଇଉଠିଛି ରାଧାନାଥଙ୍କ ବର୍ଣ୍ଣନାରେ । କବିଙ୍କ ଭାଷାରେ –

‘‘ ପରସ୍ପରେ ଭୁଜ ଛନ୍ଦିବାରେ ସଦା
ଚମ୍ପାକୃତ ଯହିଁ ବଳାରି ଶରଧା ।’’
X X X X X
‘‘ କୋଠରଙ୍ଗ ଯହିଁ ବଦନ ବିଜନେ
ଧଉଳି ଦେଖଇ ଦୟା – ଦରପଣେ ।
ରାହାଙ୍ଗ ରଚନ୍ତି ଯହିଁ କେଳି-କଳା
ଇଜଳ-ନିକୁଞ୍ଜେ କଜ୍ଵଳ-କୁନ୍ତଳା ।’’

ସେହିପରି ସପ୍ତକୋଷୀ ଗଣ୍ଡର ବର୍ଣ୍ଣନାରେ କବିଙ୍କ ଲେଖନୀ ସେହିପରି ଜୀବନ୍ତ ହୋଇଉଠିଛି । କବିଙ୍କ ଭାଷାରେ –

‘‘ ସପ୍ତକ୍ରୋଶୀ ଗଣ୍ଡ ରାଜେ ଶୈଳ-କୁଞ୍ଜେ
ସୁଶୀତଳ ତୁଙ୍ଗ ଶୈଳଚ୍ଛାୟା ପୁଞ୍ଜେ
ନିର୍ଜନେ ଦିଅନ୍ତି ବନହୁମାବଳୀ
ଜଳ-ଦେବତାଙ୍କୁ ଯହିଁ ପୁଷ୍ପାଞ୍ଜଳି ।
ତହିଁ ମହାନଦୀ – ପ୍ରବାହେ ନିଦାଘେ
ପ୍ରିୟା-ସଙ୍ଗେ ଖେଳୁଥିଲା ଅନୁରାଗେ ।’’

ଉତ୍କଳର ବିଭିନ୍ନ ନଦନଦୀ, ହ୍ରଦ, ପ୍ରପାତ ବର୍ଣ୍ଣନାରେ ମଧ୍ଯ କବି ଅପୂର୍ବ କଳାକୌଶଳର ପରିଚୟ ଦେଇଛନ୍ତି । ଯାହା ଯେତିକି ବାସ୍ତବ ଚିତ୍ର ବହନ କରୁଛି ସେତିକି ପ୍ରକୃତିକୁ କବିଙ୍କ ଦୃଷ୍ଟିରେ ପାଠକ ପାଖରେ ତୋଳି ଧରିବାରେ ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ’ କାବ୍ୟ ସଫଳ ହେଉଛି । କବିଙ୍କ ବର୍ଣ୍ଣନାରେ ବୈତରଣୀ ଉତ୍କଳର ଗଡ଼ଖାଇ ସଦୃଶ । ବଳାଙ୍ଗୀ ନଦୀ ଉତ୍କଳ ହେମସୀମାନ୍ତ ରୂପିଣୀ ଶୋଭାପାଉଛି । ପ୍ରଧାନପାଟର ବର୍ଣ୍ଣନାରେ କବି ରାଧାନାଥ ରାୟ ଲେଖୁଛନ୍ତି –

‘‘ ପ୍ରଧାନ-ପାଟର ପ୍ରପାତ ଭୀଷଣ
ନିର୍ଜନ ଗହଳେ ଗର୍ଜେ ଅନୁକ୍ଷଣ ।
X X X X
ଯହିଁ କେଳିଲୋଳ-ଜଳଦେବୀ – କେଳି
ଉପୁଯାଏ ଶତ ସଲିଳ-ହାବେଳି ।”

ଦ୍ଵିତୀୟ ସର୍ଗରେ ମଧ୍ୟ କବି ସେହିପରି ସନ୍ଧ୍ୟାର ଅପୂର୍ବ ଶୋଭା ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛନ୍ତି । ଆକାଶ-ପୃଥ‌ିବୀ, ଜଳ-ସ୍ଥଳ, ସ୍ଵର୍ଣ୍ଣାଭରଙ୍ଗ ଧାରଣ କରିଛି ସୂର୍ଯ୍ୟାସ୍ତ ସମୟରେ । ଏହି ସନ୍ଧ୍ୟାର ବର୍ଣ୍ଣନା ଯେମିତି ହୃଦୟସ୍ପର୍ଶୀ ସେମିତି ଭାବଗର୍ଭକ । କବିଙ୍କ ଭାଷାରେ –

‘‘ଚାହୁଁ ଚାହୁଁ ରବି ହେଲେ ଅସ୍ତମିତ,
ପଶ୍ଚିମାଶା ହେଲା କୁଙ୍କୁମେ ଛୁରିତ,
କେତେ ରୂପ ଧରୁଅଛି ଚକ୍ରବାଳ,
ଦେଖାଉଛି ନବ ନବ ଇନ୍ଦ୍ରଜାଲ |
ରକ୍ତ, ପୀତ, ନୀଳେ ଚିତ୍ରକରି ନଭ
ଭିଆଇଛି ନନାବର୍ଷେ ବର୍ଣ୍ଣୋତ୍ସବ ।’

‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ’ ବାସ୍ତବିକ୍ କବିଙ୍କ ପ୍ରକୃତି ବର୍ଣ୍ଣନାର ଏକ ନିଖୁଣ ପରିପାଟୀର ପରିଚୟ । ମାନବିକ ଆବେଦନ, ବାହ୍ୟ ଓ ଅନ୍ତଃ ପ୍ରକୃତିର ସମନ୍ଵୟ ତାଙ୍କ କାବ୍ୟକୁ କରିଛି ବଳିଷ୍ଠ । ପ୍ରକୃତିର ଅପରୂପ ବର୍ଣ୍ଣନରେ ରାଧାନାଥ ଖୁବ୍ ସିଦ୍ଧହସ୍ତ ।

Question 8.
‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ କାବ୍ୟରୁ କବିଙ୍କର ଜାତୀୟତା ଭାବର ପରିଚୟ ଦିଅ ।
Answer:
କବି ରାଧାନାଥ ପରାଧୀନ ଓଡ଼ିଶାରେ ଜନ୍ମଲାଭ କରିଥିଲେ । ତାଙ୍କ ଜନ୍ମର ୪୫ ବର୍ଷ ପୂର୍ବରୁ ୧୮୦୩ ମସିହାରେ ଇଂରେଜ ସରକାର ଓଡ଼ିଶା ଶାସନର ଅଧିକାରୀ ହୋଇସାରିଥିଲେ । ୧୮୧୭ ମସିହାରେ ପାଇକ ବିଦ୍ରୋହ ପରେ ଓଡ଼ିଶା ସ୍ୱତନ୍ତ୍ର ରାଜ୍ୟର ମର୍ଯ୍ୟାଦା ହରାଇ ବସିଲା । ଓଡ଼ିଆଜାତି ଭୀରୁ କାପୁରୁଷ ଭାବରେ ଜୀବନଯାପନ କଲେ । ବନ୍ୟା, ବାତ୍ୟା, ମରୁଡ଼ି ଆଦି ପ୍ରାକୃତିକ ବିପର୍ଯ୍ୟୟ ଓଡ଼ିଶାକୁ ଭାଙ୍ଗିପକାଇଲା । ଏହିପରି ଏକ ଘଡ଼ିସନ୍ଧି ମୁହୂର୍ତ୍ତରେ ରାଧାନାଥ କଲମ ଚାଳନା କରିଛନ୍ତି । ଜଣେ ସଚେତନ କାବ୍ୟପୁରୁଷ ଭାବରେ ସେ ଓଡ଼ିଆ ଜାତିକୁ ଜାଗ୍ରତ କରିବାପାଇଁ ଚେଷ୍ଟା କରିଛନ୍ତି । କାବ୍ୟରେ ଜାତୀୟତାର ସ୍ପର୍ଶ ଅଙ୍କନ କରିଛନ୍ତି ସୁନ୍ଦର ଭାବରେ । କାବ୍ୟଟିରେ ଓଡ଼ିଶାର ଭୌଗୋଳିକ ସୀମାକୁ ସେ ଦର୍ଶାଇଛନ୍ତି ଅତି ସୂକ୍ଷ୍ମ ଭାବରେ ।

ଆଲୋଚ୍ୟ ନନ୍ଦୀକେଶ୍ଵରୀ କାବ୍ୟରେ କବି ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀଙ୍କ ସେନାବାହିନୀରେ ସାରା ଓଡ଼ିଶାର ଛୋଟ ଛୋଟ ରାଜ୍ୟର ସେନାମାନଙ୍କୁ ସାମିଲ କରାଇଛନ୍ତି । ଆଳି, କନିକା, କୁଜଙ୍ଗ, ହରିଶପୁର, ସାଲେପୁର, କେନ୍ଦ୍ରାପଡ଼ା, ନିଆଳି, ଅସ୍ତରଙ୍ଗ, ଚଉଦ୍ଵାର, ଢେଙ୍କାନାଳ, ଦର୍ପଣୀ, ବାଣପୁର, ଖଲ୍ଲିକୋଟ, ମଞ୍ଜୁଷା, ତାଳଚେର ଆଦି ଅଞ୍ଚଳର ସେନାମାନଙ୍କର ବୀରତ୍ଵ ଗାନ କରିବା ସହିତ, ସେହି ଅଞ୍ଚଳର ପ୍ରାକୃତିକ ସୌନ୍ଦର୍ଯ୍ୟକୁ ମଧ୍ୟ ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛନ୍ତି ।

ମହାନଦୀ ଉତ୍କଳକୁ ଧନ୍ୟ କରିଛି । ମହାନଦୀ ସମେତ ଆହୁରି ବ୍ରାହ୍ମଣୀ, ବୈତରଣୀ, ସୁବର୍ଣ୍ଣରେଖା ଓ ବୁଢ଼ାବଳଙ୍ଗ ନଦୀର ବର୍ଣ୍ଣନା ଦେଇଛନ୍ତି । ଏହା ସହିତ ନୀଳମାଧବ, ଭଟ୍ଟାରିକା, ଚର୍ଚ୍ଚିକା, ସିଂହନାଥ ଓ ଧବଳେଶ୍ଵର ଆଦି ଅଧିକାଂଶ ଧାର୍ମିକପୀଠ ମହାନଦୀ ତୀରରେ ଅବସ୍ଥିତ । ଏଇ ନଦୀକୂଳର ତୀର୍ଥ ସ୍ଥାନଗୁଡ଼ିକ ଯେମିତି ପବିତ୍ର ସେମିତି ମଧ୍ଯ ପ୍ରସିଦ୍ଧ ।
କବି କାବ୍ୟରେ ଯେଉଁ ଭୌଗୋଳିକ ସୀମାର ପରିଚୟ ଦେଇଛନ୍ତି, ତା’ର ମୂଳ କାରଣ ହେଉଛି ଜାତୀୟତାବୋଧର ଉଦ୍ରେକ । ଏତେ ପ୍ରଜ୍ଞା, ଏତେ ପ୍ରୌଢ଼ ଓ ଏତେ ସୌନ୍ଦର୍ଯ୍ୟରେ ଭରପୂର ହୋଇଥିବା ଓଡ଼ିଶା କଦାପି କୌଣସି ଗୁଣରେ ଚୂନ ନୁହେଁ ।

କବିବରଙ୍କର ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ କାବ୍ୟଟି ଏକ ସାର୍ଥକ ଓ ସୌନ୍ଦର୍ଯ୍ୟପୂର୍ଣ୍ଣ କାବ୍ୟ ।

Question 9.
ଐତିହାସିକ ସତ୍ୟତା ନୁହେଁ, କଳାତ୍ମକ ଆଭିମୁଖ୍ୟ ହିଁ ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ କାବ୍ୟର ମୂଳାଧାର – ପ୍ରତିପାଦନ କର ।
Answer:
ଆଧୁନିକ ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟରେ ରାଧାନାଥ ହେଉଛନ୍ତି ପ୍ରାତଃ ସ୍ମରଣୀୟ । ସାହିତ୍ୟକୁ ସେ ରୀତି କବିମାନଙ୍କ ପାରମ୍ପରିକ ରଚନାରୁ ମୁକ୍ତ କରି ନୂତନ ମାର୍ଗରେ ନେଇଯାଇଛନ୍ତି । ଉକ୍ତ ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ କାବ୍ୟଟି କବିଙ୍କର ତୃତୀୟ ସୃଷ୍ଟି । କାବ୍ୟଟି ଐତିହାସିକ ପୃଷ୍ଠଭୂମିରେ ରଚିତ, ମାତ୍ର ଏଥୁରେ ଐତିହାସିକ ସତ୍ୟତା ପ୍ରତିପାଦନ କରିବା କବିଙ୍କର ଲକ୍ଷ୍ୟ ନୁହେଁ । ଏହା ଏକ ନିଖୁଣ କଳାତ୍ମକ କାବ୍ୟ; ଯେଉଁଥିରେ କବିଙ୍କର ସୂକ୍ଷ୍ମ ଉପସ୍ଥାପନ ଦେଖିବାକୁ ମିଳିଥାଏ । ମାତ୍ର କବି ଏତେ ସୂକ୍ଷ୍ମ ଭାବରେ ଇତିହାସର ଚରିତ୍ର ସହିତ କାଳ୍ପନିକ ଚରିତ୍ରର ମିଶ୍ରଣ କରିଛନ୍ତି, ତାହା ସତ୍ୟ ଘଟଣା ପରି ପ୍ରତୀୟମାନ ହୋଇଥାଏ ।

ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ କାବ୍ୟଟି ପାଇଁ ମୂଳକଥାବସ୍ତୁ ସେ ଆଣିଛନ୍ତି ଓଭିଡ଼ିଙ୍କ ‘ମେଟାମରଫୋସିସ୍’ କାହାଣୀରୁ ଓ କାବ୍ୟନାୟିକା ନନ୍ଦିକାର ଆତ୍ମହତ୍ୟା ଘଟଣା ପାଇଁ ସେ ବାଇରଙ୍କୁ ଅନୁସରଣ କରିଛନ୍ତି । ଉକ୍ତ ଦୁଇ ବିଦେଶୀ କଥାବସ୍ତୁକୁ ଆଣି ସେ ଓଡ଼ିଶା ଇତିହାସର ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବ ଓ ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀଙ୍କ ସହ ମିଶେଇ ଦେଇଛନ୍ତି । ମାଦଳାପାଞ୍ଜିର ବାସୁଦେବ କାହାଣୀ ଓ କଟକର ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ ପଠା, କାବ୍ୟଟିକୁ ଆହୁରି ସୁନ୍ଦର କରିପାରିଛି । ଚୋରଗଙ୍ଗ ଓ ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀଙ୍କ ଭିଭିଭୂମି ଉପରେ ସେ ମିନ୍ସ ଓ ନିମସ୍‌ଙ୍କ ଯଥାକ୍ରମେ ଆରୋପିତ କରିଛନ୍ତି ଓ ଗ୍ରୀକ୍ କାହାଣୀର ରାଜକୁମାରୀ ସିଲା ପରିବର୍ତ୍ତେ ସେ ନନ୍ଦିକାଙ୍କୁ ଆଣିଛନ୍ତି ଏବଂ ଏହି ନନ୍ଦିକା ଚରିତ୍ରଟି ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ଭାବରେ କାଳ୍ପନିକ ।

ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କୁ ଗଙ୍ଗାଙ୍କର ଆଶୀର୍ବାଦ ହେଉ କିମ୍ବା ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀଙ୍କୁ ଚଣ୍ଡିକାଙ୍କର ଚୈତ୍ରମଣି ଦାନ, କୌଣସିଟିରେ ଆମେ ଇତିହାସର ସତ୍ୟତା ପାଇବା ନାହିଁ । ମାତ୍ର ଏହିସବୁ ପ୍ରସଙ୍ଗ କାବ୍ୟଟିକୁ ଭାବାତ୍ମକ କରିଛି ଓ ଦୈବୀଶକ୍ତିର ଅଲୌକିକତାକୁ ସମର୍ଥନ କରୁଛି । ସେହିପରି ଭାବରେ ନନ୍ଦିକା ପିତାଙ୍କ ଜୈତ୍ରମଣିକୁ ହସ୍ତଗତ କରି ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କୁ ଉତ୍କଳର ଏକଚ୍ଛତ୍ରପତି କରିବା ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ ଯାଇ ପହଞ୍ଚିଛି ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗ ପାଖରେ । ସେ ଜୈତ୍ରମଣିକୁ ତାଙ୍କ ପାତତଳେ ଥୋଇଦେଇ ପ୍ରେମଭିକ୍ଷା କରିଛି । ସେତେବେଳେ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗ କେଶରୀ ବଂଶର କୀର୍ତ୍ତି ବର୍ଣ୍ଣନା କରି ତାକୁ ଭତ୍ସନା କରିଛନ୍ତି । ପୁନଶ୍ଚ, ପିତୃଦ୍ରୋହୀ, ଦେଶଦ୍ରୋହୀ, ରାଜଦ୍ରୋହୀ ଏପରି ତିନୋଟି ପାପରେ ଭାଗିନୀ ବୋଲି କହିଛନ୍ତି । ପୁନଶ୍ଚ ଚୈତ୍ରମଣି ସହ ନନ୍ଦିକାକୁ ଶିବିକାରେ ବିଡ଼ାନାସୀ ପଠାଇ ଦେଉଛନ୍ତି । ନନ୍ଦିକା ପିତାଙ୍କ ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ ପତ୍ରଟିଏ ଲେଖ୍ ଆତ୍ମହତ୍ୟା କରୁଛି ଏବଂ ପତ୍ରରେ ନନ୍ଦିକାର ଅନୁରୋଧ କ୍ରମେ ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କୁ ରାଜ୍ୟ ସମର୍ପଣ କରିଛନ୍ତି । କନ୍ୟାର ଅନ୍ତମ କ୍ରିୟାକରି ସେଠାରେ ମନ୍ଦିରଟିଏ ନିର୍ମାଣ କରୁଛନ୍ତି ଓ ଶେଷରେ ସନ୍ନ୍ୟାସ ଜୀବନ ବିତାଇଛନ୍ତି ।

ଏ ସମସ୍ତ ଘଟଣାରେ କୌଣସି ଐତିହାସିକ ସତ୍ୟନା ନାହିଁ । ମାତ୍ର ଏସବୁ ଘଟଣାକୁ କବି ଏପରି ଭାବରେ ଗୁନ୍ଥିଛନ୍ତି, ଯାହା ପାଠକ ମନରେ ଆନ୍ଦୋଳନ ସୃଷ୍ଟିକରେ । ତେଣୁ ଏହି କାବ୍ୟ ଓ ଐତିହାସିକ ସତ୍ୟତା ନୁହେଁ ବରଂ କଳାତ୍ମକ ଆଭିମୁଖ୍ୟ ହିଁ କାବ୍ୟର ମୂଳଧାରା ।

Question 10.
‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ କାବ୍ୟରୁ କବିଙ୍କ ଭୌଗୋଳିକ ଦୃଷ୍ଟିର ପରିଚୟ ଦିଅ ।
Answer:
ରୀତି ସାହିତ୍ୟ ଛନ୍ଦ ଅଳଙ୍କାର ଶବ୍ଦ କାରିଗରୀପୂର୍ଣ୍ଣ ଧାରାରୁ ଓଡ଼ିଆ କାବ୍ୟକୁ ମୁକୁଳେଇ ନେଇ ନବଚେତନାର ମନ୍ତ୍ରରେ ଦୀକ୍ଷିତ କରିଥିବା ଜଣେ ଅନନ୍ୟ କାବ୍ୟ କଳାକାର ଥିଲେ କବିବର ରାଧାନାଥ ରାୟ । ରାଧାନାଥ ସ୍ବକୀୟ ପ୍ରତିଭାରେ ସ୍ୱୀୟ ପଦାଙ୍କ ଅଙ୍କନ କରି ଅନ୍ୟମାନଙ୍କ ପାଇଁ ଯୁଗପ୍ରବର୍ତ୍ତକ ଆଦର୍ଶ ହୋଇଛନ୍ତି । ତାଙ୍କ କାବ୍ୟକୁସୁମ ଲାଭକରି ଓଡ଼ିଆ କାବ୍ୟମାଳା ଯେମିତି ହୋଇଛି ବର୍ଣ୍ଣମୟ ସେମିତି ହୋଇଛି ସୁରଭିଯୁକ୍ତ । ଏହି କାବ୍ୟକୁସୁମ ମଧ୍ୟରୁ ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ’ ଅନ୍ୟତମ ସାର୍ଥକ କାବ୍ୟକର୍ମ ।

ଏହି ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ’ କାବ୍ୟରୁ ତାଙ୍କର ଉତ୍କଳୀୟ ପ୍ରୀତି ପରିଲକ୍ଷିତ ହୋଇଥାଏ । କିମ୍ବଦନ୍ତୀ, ଲୋକକଥାର ଆଧାରରେ ଲିଖ୍ତ ହେଲେହେଁ କବି ନିଜ ମାତୃଭୂମିର ଜୟଗାନ କରିବାକୁ କୌଣସି ସୁଯୋଗକୁ ହାତଛଡ଼ା କରିନାହାନ୍ତି । ଉତ୍କଳର ଚାରୁଚିତ୍ର, ନଦନଦୀ, ଗିରିକନ୍ଦର, ସାଗରହ୍ରଦ ସମସ୍ତେ କବିଙ୍କ ବର୍ଣ୍ଣନାରେ ମହାନ୍ ହୋଇଯାଇଛନ୍ତି ।

ଦାକ୍ଷିଣାତ୍ୟର ରାଜା ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗ ଉତ୍କଳ ପ୍ରଦେଶ ଅଧିକାର ଆଶାରେ ଏଠାରେ ରହି ବହୁଦିନ ଯୁଦ୍ଧ କରିଛନ୍ତି । ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କୁ ବାଧାଦେବା ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ କେବଳ ସୁବର୍ଷକେଶରୀ ନୁହଁନ୍ତି, ଉତ୍କଳର ଅନ୍ୟ ଅଞ୍ଚଳରୁ ମଧ୍ଯ ବୀର ସୈନ୍ୟମାନେ ଆସି ପ୍ରାଣପାତ କରିଛନ୍ତି । ଏହି ପ୍ରସଙ୍ଗରେ କବି ଉତ୍କଳର ବହୁ ଅଞ୍ଚଳର ନାମ, ସେହି ସ୍ଥାନର ବୈଶିଷ୍ଟ୍ୟ, ସେଠାକାର ଦେବଦେବୀଙ୍କ ପରିଚୟ ମଧ୍ୟ ଦେଇଛନ୍ତି । ଯାହା ତାଙ୍କର ଭୌଗୋଳିକ ଜ୍ଞାନର ଏକ ଅନୁପମ ନିଦର୍ଶନ । ହେନ୍ତାଳବନସ୍ଥ ଅଞ୍ଚଳ, କନିକା, କୁଜଙ୍ଗ, ମରିଚ-ହରିଶପୁର, ଅସ୍ତରଙ୍ଗ ଆଦିର ସୈନ୍ୟମାନେ ଯୁଦ୍ଧରେ ଯୋଗ ଦେଇଛନ୍ତି । ଏହି ସବୁ କ୍ଷେତ୍ରରେ ସୈନ୍ୟମାନେ ମହାବୀର । କବିଙ୍କ ବର୍ଣ୍ଣନାରେ –

“ବରାହ-ପାଳିତ ବାଲିପୂର୍ଣ୍ଣ ଆଳି
କ୍ଷତ୍ରବୃନ୍ଦ ଯା’ର ମହାବୀର୍ଯ୍ୟଶାଳୀ ।’’

କେନ୍ଦ୍ରାପଡ଼ା, ଅସୁରେଶ୍ୱର, ସାଲେପୁର, ଚଉଦ୍ଵାର, ଉତ୍ତରକୋଶଳା, ଛତିଆ, ମହାବିନାୟକ, ଅଳତୀ, ବିରଜାମଣ୍ଡଳ, ଭଦ୍ରକ, ସୋର, ନୀଳଗିରି, ସ୍ଵର୍ଣ୍ଣଚୂଡ଼ ପୁନଙ୍ଗ, ପ୍ରାଚୀ ତୀରବର୍ତ୍ତୀ ଅଞ୍ଚଳ ନିଆଳି, ଧଉଳି, ପାରିକୁଦ, ଦାଣ୍ଡିମାଳ, ଖଣ୍ଡଗିରି, ଖଲ୍ଲିକୋଟ, ମଞ୍ଜୁଷା ଆଦିର ବୀରମାନେ ମାତୃଭୂମି ପାଇଁ ଯୁଦ୍ଧକରି ପ୍ରେତପୁର ଗମନ କରିଛନ୍ତି । କବିଙ୍କ ଭାଷାରେ – “

“ଏହି ଦେଶ ଅନ୍ୟ ଦେଶବାସୀ ଶୂର
କାଠଯୋଡ଼ି-ତୀରେ ଗଲେ ପ୍ରେତପୁର ।’’

ଏସବୁ ଅଞ୍ଚଳ ବ୍ୟତୀତ ଗଡ଼ଜାତର କନ୍ଧ, ଶବରମାନେ ଯୁଦ୍ଧରୁ ବାଦ୍ ଯାଇନାହାନ୍ତି । ରାଧାନାଥ ସେଥ‌ିପାଇଁ ଲେଖୁଛନ୍ତି –

“ମାଲ୍ୟଗିରିବାସୀ ଦୁର୍ଘର୍ଷ ଜୁଆଙ୍ଗ
କେତେ ହେଲେ ରଣଭୂମେ ବିକଳାଙ୍ଗ ।’’

ହରିଦ୍ରା ଏବଂ ହରିତ ଅତ୍ୟଧ୍ଵ ହେଉଥିବା କନ୍ଧମାଳ, ତାଳଚେର, କପିଳାସ ଖୋଲର ଶବର, ଢେଙ୍କାନାଳ, ସପ୍ତକ୍ରୋଶୀ ଆଦି ଅଞ୍ଚଳର ସୈନିକମାନେ ଏଠାରେ ବୀରତ୍ଵର ସହ ଯୁଦ୍ଧକରି ଯୁଦ୍ଧକ୍ଷେତ୍ରରେ ସମାଧ୍ ଲଭିଛନ୍ତି । କବି ଏଠାରେ ଉଭୟ ପକ୍ଷର ସୈନିକମାନଙ୍କର କଥା ଉଲ୍ଲେଖ କରି ଗାଇଛନ୍ତି –

“ ତହିଁ ବେନିପକ୍ଷେ ଋଣଦେବୀଙ୍କର
ସ୍ଵଶିର-କମଳେ ପୁଜିଲେ ପୟର
ଜୀବନେ ହେଲେ ହେଁ ପରସ୍ପରେ ବାଦୀ
ମରଣେ ଲଭିଲେ ଏକତ୍ର ସମାଧ୍ ।’’

କବିଙ୍କ ବର୍ଣ୍ଣନାରେ ଏହି ଉତ୍କଳଭୂମି ବୀରଭୂମି । ଏହାର ସୈନ୍ୟମାନେ ବୀର ସୈନିକ । ମାତୃଭୂମିର ସମ୍ମାନ ପାଇଁ ଜୀବନ ତ୍ୟାଗ କରିବାକୁ ସେମାନେ ପଛାଇନାହାନ୍ତି । ତେବେ ଏହାର କଥାବସ୍ତୁ ବର୍ଣ୍ଣନା ପ୍ରସଙ୍ଗରେ ରାଧାନାଥ ଉତ୍କଳର ନଦନଦୀ, ବଣପାହାଡ଼ ଓ ଦେବଦେବୀଙ୍କର ମଧ୍ୟ ବିସ୍ତୃତ ବିବରଣୀ ପ୍ରଦାନ କରିଛନ୍ତି । ଉତ୍କଳର ମାଟି ପାଣି ପବନର ମହକ ମହକିତ ହୋଇଉଠେ ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ କାବ୍ୟରେ । ଉତ୍କଳର ବିଭିନ୍ନ ସ୍ଥାନର ସୁନ୍ଦର ବର୍ଣ୍ଣନା କବିଙ୍କ ପ୍ରତିଭାର ଜ୍ଵଳନ୍ତ ପ୍ରମାଣ ବହନ କରେ ।
ବାସ୍ତବିକ୍ କବିଙ୍କ ଭୌଗୋଳିକ ଦୃଷ୍ଟିର ଅସାଧାରଣତ ସର୍ବଜନବିଦିତ ।

CHSE Odisha Class 11 Optional Odia Solutions Chapter 2 ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ

Question 11.
କବି କଳ୍ପନାର ଏକ ଅଭ୍ରାନ୍ତ ନିଦର୍ଶନ ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ’ – ଆଲୋଚନା କର ।
Answer:
ଆଧୁନିକ ସାହିତ୍ୟ କ୍ଷେତ୍ରରେ କବିବର ରାଧାନାଥ ରାୟ ସ୍ବୟଂ ଏକ ବୈଚିତ୍ର କହିଲେ ଅତ୍ୟୁକ୍ତି ହେବନାହିଁ । ପରମ୍ପରା ଓ ଗତାନୁଗତିକ ନିର୍ବାଚନରୁ ମୁକ୍ତହୋଇ ବୈଚିତ୍ରପୂର୍ଣ୍ଣ ପ୍ରକୃତିବର୍ଣ୍ଣନା ଓ ପ୍ରେମମୂଳକ କାବ୍ୟ ରଚନା କରି ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟ ଧାରାରେ ନବଚେତନାର ପ୍ରବାହ କରିଥିଲେ ସେ । ପ୍ରାଚ୍ୟ ଓ ପାଶ୍ଚାତ୍ୟ ସାହିତ୍ୟରୁ ଉପାଦାନ ସଂଗ୍ରହ କରି ଗଢ଼ିଲେ ତାଙ୍କର କାବ୍ୟକୋଣାର୍କ । ତେଣୁ ପ୍ରାଚ୍ୟର ଭିତ୍ତିଭୂମି ଉପରେ ପାଶ୍ଚାତ୍ୟର ପ୍ରଭାବ ତାଙ୍କ ସୃଷ୍ଟିକୁ କରିଛି ଅନନ୍ୟ । ପାଶ୍ଚାତ୍ୟର କଥାବସ୍ତୁକୁ ଉତ୍କଳର କିମ୍ବଦନ୍ତୀ ସହ ମିଶାଇ ଅପୂର୍ବ କଳ୍ପନାଶକ୍ତିର ପ୍ରୟୋଗ ଓ କଳାକୌଶଳର ପ୍ରୟୋଗରେ ଖୁବ୍ ଚମତ୍କାର ସୃଷ୍ଟି ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟ ଭଣ୍ଡାରରେ ସାଇତି ରଖ୍ ଯାଇଛନ୍ତି । ସେହି ସୃଷ୍ଟିଗୁଡ଼ିକ ମଧ୍ୟରୁ ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ବରୀ’ ଅନ୍ୟତମ ସାର୍ଥକ ସୃଷ୍ଟି ।

କଟକର ଉତ୍ତରରେ ମହାନଦୀର ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ ପଠା’ ନାମରେ ଏକ ପଠା ରହିଛି । ଅଂଶୁପା ହ୍ରଦ ନିକଟରେ ଅବସ୍ଥିତ ‘ସୁବର୍ଣ୍ଣପୁର’ ରାଜା ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀଙ୍କ ନାମାନୁସାରେ ନାମିତ ହୋଇଛି ବୋଲି ବିଶ୍ଵାସ ରହିଛି । ଆହୁରି ମଧ୍ୟ ରହିଛି ‘ବୁଡ଼ଙ୍ଗ ଦହ’ ନାମରେ ଏକ ହ୍ରଦ । କିମ୍ବଦନ୍ତୀ ଓ ଲୋକବିଶ୍ୱାସକୁ ନେଇ କବି ଗଢ଼ିଛନ୍ତି ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ କାବ୍ୟ । ନନ୍ଦିକେଶ୍ବରୀ ପଠାର ଏପରି ନାମକରଣ ହେବାରେ ସେ କଳ୍ପନାକୁ ଅଧିକ ଆଶ୍ରୟ କରିଛନ୍ତି । ସେଥ‌ିପାଇଁ ସେ ପାଶ୍ଚାତ୍ୟ ସାହିତ୍ୟର କଥାବସ୍ତୁକୁ ଗ୍ରହଣ କରିଛନ୍ତି ।

ଓଭିଡ୍‌ଙ୍କ ‘ମେଟାମରଫସିସ୍’ କାବ୍ୟମାଳାର ଅଷ୍ଟମ ଆଖ୍ୟାୟିକା “The King Minus and Scylla” ର ଅନୁକରଣରେ ରାଧାନାଥ ରାୟ ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ’ କାବ୍ୟର ପରିକଳ୍ପନା କରିଛନ୍ତି । ରାଜା ମିନସ୍‌ଙ୍କୁ ସେ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବ, ରାଜା ନିସସ୍‌ଙ୍କୁ ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀ ଭାବରେ ବର୍ଣ୍ଣନା କରି ରୁଦ୍ଧ ବିଡ଼ାନାସୀକୁ ସେ ମିଗାରେ ଦୁର୍ଗ ଅବରୋଧ ସହ କଳନା କରିଛନ୍ତି । ନିସ୍‌ସଙ୍କ ରାଜକନ୍ୟା ସିଲା ପରି ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ ମଧ୍ୟ ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀଙ୍କ ଏକମାତ୍ର କନ୍ୟା । ସିଲା ସ୍ଵର୍ଣ୍ଣାଭ କେଶଗୁଚ୍ଛ (purple hair) ଅପହରଣ କରିବାକୁ ରାଧାନାଥ ତାହାକୁ ଜୈନ୍ଦ୍ରମଣି ଅପହରଣ ପ୍ରସଙ୍ଗ ଭାବରେ ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛନ୍ତି । ସିଲା ପରି ନନ୍ଦିକେଶ୍ବରୀ ମଧ୍ୟ ଉପେକ୍ଷିତା ହୋଇ ଆତ୍ମହତ୍ୟା କରିଛି । ସିଲା ସମୁଦ୍ରକୁ ଡେଇଁ ଆତ୍ମହତ୍ୟା କରିଥିଲାବେଳେ ନନ୍ଦିକା ପିତାଙ୍କ ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ ଏକ ହୃଦୟ ବିଦାରକ ପତ୍ର ଲେଖୁ ଆତ୍ମହତ୍ୟା କରିଛନ୍ତି । କବିଙ୍କ ଭାଷାରେ –

‘‘ ଫୁଟିଥିଲା ଯାହା ବାଲ୍ୟରୁ ବଉଳି
ରୂପ-ପୁଷ୍ପ ଗଲା ନିମିଷେ ମଉଳି ।
ମଉଳଇ ନବମାଳିକା ଯେମନ୍ତ,
ମୂଳ କାଟିଦେଲେ ବଲ୍ଲୀକ ଦୂରନ୍ତ।’’

ପିତାଙ୍କ ପାଖକୁ ପ୍ରେରିତ ପତ୍ରରେ କବିଙ୍କ ଭାଷା ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ ଉଲ୍ଲେଖ କରିଛନ୍ତି ।

“ ତାତ ଜୀବଲୀଳା ସରୁଛି ମୋହର,
ଅନ୍ତଃମେ ବନ୍ଦିଲି ତୁମ୍ଭ ଶ୍ରୀପୟର ।
ଶିରେ ଘେନି ଯାଉଅଛି ପାପଭାଗ
ତହିଁ, ଯହିଁ ଚିର-ମୁକ୍ତ କୃପାଦ୍ଵାର।’’

‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ କାବ୍ୟର ସଫଳତା କବିଙ୍କର ବର୍ଣ୍ଣନା ବିଳାସର ଚାତୁର୍ଯ୍ୟ ଉପରେ ନିର୍ଭରଶୀଳ । ପାଶ୍ଚାତ୍ୟ ସାହିତ୍ୟ କଥାବସ୍ତୁ ଆହରଣ କଲେ ମଧ୍ୟ ତାକୁ ଉତ୍କଳୀୟ ପଟ୍ଟଭୂମିରେ ସ୍ଥାନିତ କରି ସେ ତାଙ୍କ କବିତ୍ଵର ସଫଳ ନିଦର୍ଶନ ଦେଇଛନ୍ତି । ପ୍ରକୃତି ବର୍ଣ୍ଣନା, କଥାବସ୍ତୁର ବର୍ଣ୍ଣନା, ସର୍ବୋପରି ସୁସଂଯୋଜନାରେ କବିବରଙ୍କ ଏହି ଅନନ୍ୟ କୃତିଟି ଯେତିକି ବର୍ଣ୍ଣନାଧର୍ମୀ ସେତିକି ଆବେଗଧର୍ମୀ । କବିଙ୍କ ଏହି କଳ୍ପନା ଭ୍ରାନ୍ତପୂର୍ଣ୍ଣ ବୋଲି ହୃଦ୍‌ବୋଧନ ହୁଏନା; ବରଂ କିମ୍ବଦନ୍ତୀର ଅଶ୍ରାରେ କବିଙ୍କ ବର୍ଣ୍ଣନା ବିଳାସରେ ଏହା ଅଭ୍ରାନ୍ତ ମନେହୁଏ । ବାସ୍ତବିକ କବିକଳ୍ପନା ଯୁକ୍ତିସଙ୍ଗତ ଓ ଅଭ୍ରାନ୍ତ ।

Question 12.
ଏକ ରୋମାଣ୍ଟିକ୍ କାବ୍ୟ ଭାବରେ ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀର ମୂଲ୍ୟାୟନ କର ।
Answer:
ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟର ଆଧୁନିକ ପର୍ବରେ ଯେଉଁ କେତେଜଣ ପ୍ରଚଣ୍ଡ ପ୍ରତିଭା ସେମାନଙ୍କ ଅନନ୍ୟ ସୃଷ୍ଟିର ପ୍ରତିଦାନରେ ନିଜ ନାମକୁ ସ୍ଵର୍ଣ୍ଣାକ୍ଷରରେ ଅମର କରିଯାଇଛନ୍ତି ସେମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ କବିବର ରାଧାନାଥ ରାୟ ଅନ୍ୟତମ ଯୋଗ୍ଯ କାବ୍ୟଶିଳ୍ପୀ । ତାଙ୍କର କାବ୍ଯସଂପଦ ବହୁ ବୈଚିତ୍ରରେ ପରିପୂର୍ଣ୍ଣ । ଗ୍ରୀକ୍ ସାହିତ୍ୟରୁ କଥାବସ୍ତୁ ଗ୍ରହଣକରି ଉତ୍କଳୀୟ ପରିବେଶରେ ସେ କାବ୍ୟ କୋଣାର୍କ ତୋଳିଛନ୍ତି, ଯାହା ଯେମିତି କାରୁକାର୍ଯ୍ୟପୂର୍ଣ୍ଣ ସେମିତି ଦୀପ୍ତିମୟ । ପୂର୍ବ ପରମ୍ପରାକୁ ଭାଙ୍ଗି ନୂତନତାର ଆବାହନ କରିବାରେ ରାଧାନାଥ ଥିଲେ ଅଗ୍ରଗଣ୍ୟ । ସାହିତ୍ୟକୁ ବିଳାସର ସାମଗ୍ରୀ ନଭାବି ଜୀବନର ପ୍ରତିଛବି ଭାବରେ ଗ୍ରହଣ କରିଛନ୍ତି କବି । ଫଳରେ ରାଧାନାଥଙ୍କ ସାହିତ୍ୟ ମାନବିକ ଆବେଦନ ସୃଷ୍ଟି କରିପାରିଛି ।

‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’, ‘ଚନ୍ଦ୍ରଭାଗା’, ‘କେଦାରଗୌରୀ’ ପରି କାବ୍ୟରେ ଦୁଃଖାନ୍ତକ ପରିଣତି ପାଇଁ ପାଶ୍ଚାତ୍ୟ ସାହିତ୍ୟର ପ୍ରେରଣା ଏବଂ ନିଜ ବ୍ୟକ୍ତିଗତ ଜୀବନର ହତାଶାଭାବ ହିଁ ଅନେକ ପରିମାଣରେ ଦାୟୀ ହୋଇପାରେ । ତାଙ୍କ ଅନନ୍ୟ କାବ୍ୟକୃତି ମଧ୍ୟରୁ ‘ଚିଲିକା’, ‘କେଦାରଗୌରୀ’, ‘ଦରବାର’, ‘ଚନ୍ଦ୍ରଭାଗା’, ‘ଯଯାତିକେଶରୀ’, ‘ଉଷା’, ‘ପାର୍ବତୀ’ ଆଦି ଅନ୍ୟତମ । ଆଲୋଚ୍ୟ ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ କାବ୍ୟର ନାୟକ ନାୟିକା ରାଜବଂଶଜ ହେଲେ ମଧ୍ୟ ସେମାନଙ୍କ ପ୍ରେମ ପ୍ରଣୟ ରୀତିଯୁଗୀୟ ଦେହର ମିଳନରେ ସୀମିତ ନୁହେଁ । ପ୍ରେମ ଏଠାରେ ଦେହାତୀତ । ଅଶ୍ରୁ ଓ ବିରହରେ ଏହା ମହିମାନ୍ଵିତ । ପ୍ରେମର ଛତ୍ରୀ ଉଡ଼ାଇବା ପାଇଁ ନନ୍ଦିକା ସଂକଳ୍ପବଧ । ସେଥିଲାଗି ସେ ସ୍ଥିର କରିଛନ୍ତି –

‘‘ ପ୍ରେମବଳେ ତାଙ୍କୁ କରି ଛତ୍ରପତି
ପ୍ରେମିକାକୁଳେ ମୁଁ ଟେକାଇବି ଛତି ।”

ପ୍ରେମର ବାନା ଉଡ଼ାଇବା ପାଇଁ ନନ୍ଦିକା ପିତାଙ୍କୁ ଶିରରୁ ଜୈତ୍ରମଣି ନେଇ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କୁ ପ୍ରଦାନ କରିଛି । ମାତ୍ର ସେଠାରେ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କ ଦ୍ବାରା ଉପେକ୍ଷିତା ହୋଇ ଆତ୍ମହତ୍ୟାକୁ ଶ୍ରେୟ ମଣିଛି ।

ଦେଶଦ୍ରୋହୀ, ରାଜଦ୍ରୋହୀ, ପିତୃଦ୍ରୋହୀ ହୋଇଥିବାରୁ ଅପରାଧବୋଧ ହେତୁ ନନ୍ଦିକା ମୃତ୍ୟୁର ପଥ ବାଛିବାକୁ ଶ୍ରେୟ ବୋଲି ବିଚାରିଛି । କବିଙ୍କର ଗଭୀର ବିଚାରବୋଧ ହିଁ ଏପରି ଏକ ପରିଣତିର କଳ୍ପନା କରିଛି । ଉତ୍କଳର ପବିତ୍ର କ୍ଷେତ୍ରରେ ଦେଶଦ୍ରୋହୀ ନନ୍ଦିକା ସୃଷ୍ଟି ହେବା ପ୍ରକୃତରେ ବିସ୍ମୟ ବୋଲି ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗ ପ୍ରକାଶ କରିଛନ୍ତି । ତଥାପି କବି ଏପରି ଏକ ପ୍ରେମପ୍ରଣୟମୂଳକ କାବ୍ୟରେ ପ୍ରେମର ଚମତ୍କାର ବର୍ଣ୍ଣନା ତଥା ଗୁଣଗାନକୁ ଅନାଦାର କରିନାହାନ୍ତି, ଅଧୂକନ୍ତୁ ପ୍ରେମର ଶ୍ରେଷ୍ଠତ୍ୱ ଓ ମହିମା ଗାନ କରିଛନ୍ତି । କବିଙ୍କ ଭାଷାରେ –

‘‘ ମହାବଳୀ ପ୍ରେମ ଅଟଇ ମହୀର,
ପ୍ରେମ ସିନା କରେ ଅବଳାକୁ ବୀର
ପ୍ରେମ ଦିଏ ବୁଦ୍ଧି ଉଦ୍‌ଯୋଗ ସାହସ,
ପ୍ରେମ କରିପାରେ ଅବଶକୁ ବଶ ।”

ପ୍ରଣୟମୁଗ୍ଧା ଲଳନା ନନ୍ଦିକା ପ୍ରେମପାଇଁ ହୋଇଛି ଦୁଃସାହସୀ । ଅଥଚ ପ୍ରେମ ପ୍ରଣୟ ମିଳନ ପରିବର୍ତ୍ତେ ଅପମାନ ବରଣ କରି ସେ ବିରହରେ ବେଦନା ଭୋଗିଛି । ପ୍ରଣୟଦଗ୍ଧ ଏକ ନାରୀ ମନର ବେଦନାକୁ କବି ରାଧାନାଥ ଅତି ଚମତ୍କାର ଭାବରେ ପାଠକ ପାଖରେ ତୋଳି ଧରିଛନ୍ତି । ଧର୍ମ, ଯୁଦ୍ଧ ବୀରପଣରେ ପରିଣତି ନ ଆଣି କବି ନିଜ କଳ୍ପନା ଓ ବର୍ଣ୍ଣନାରେ ପ୍ରେମଯୁଦ୍ଧରେ ସମାପ୍ତ କରିଛନ୍ତି । ପ୍ରେମ ପାଗଳିନୀ ନନ୍ଦିକାର ମନ ହୃଦୟ ଭାଙ୍ଗିଯାଇଛି । ପ୍ରେମ ପାଇଁ ସେ ଯେଉଁ ପଦକ୍ଷେପ ନେଇଛି, ସେଥୁରୁ ଆଉ ପଛକୁ ଲେଉଟି ନିର୍ଲଜ ଜୀବନ ଜିଇଁବାକୁ ଇଚ୍ଛା କରିନାହିଁ; ବରଂ ମୃତ୍ୟୁରେ ତା’ର ଭାବନା ଲିପ୍ତ ହେବାକୁ ଛାଡ଼ିଦେଇଛି । ପ୍ରେମ ସ୍ମୃତି ହୋଇ ଝଟକିଛି, ଯାହାକୁ କେବେ ବି ଭୁଲିହେବ ନାହିଁ । କବିଙ୍କ ଭାଷାରେ

“ସ୍ମୃତି ତ କଦାପି ନୁହେଁ ଫିଙ୍ଗିବାର,
ପାରିଲେ ଫିଙ୍ଗି ସେ ଲଭନ୍ତା ନିସ୍ତାର ।’’

ବାସ୍ତବିକ୍ କବିଙ୍କ ରୋମାଣ୍ଟିକ୍ ଦୃଷ୍ଟିଭଙ୍ଗୀ ଓ ପ୍ରେମପ୍ରଣୟର ବର୍ଣ୍ଣନା ଅଦ୍ବିତୀୟ ।

Question 13.
ରାଧାନାଥଙ୍କ ଏକ ବୈଚିତ୍ରପୂର୍ଣ୍ଣ ସୃଷ୍ଟି ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ’ – ଆଲୋଚନା କର ।
Answer:
ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟର ଆଧୁନିକ ପର୍ବରେ ଯେଉଁ କେତେଜଣ ପ୍ରଚଣ୍ଡ ପ୍ରତିଭା ସେମାନଙ୍କ ଅନନ୍ୟ ସୃଷ୍ଟିର ପ୍ରତିଦାନରେ ନିଜ ନାମକୁ ସ୍ଵର୍ଣ୍ଣାକ୍ଷରରେ ଅମର କରିଯାଇଛନ୍ତି ସେମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ କବିବର ରାଧାନାଥ ରାୟ ଅନ୍ୟତମ ଯୋଗ୍ଯ କାବ୍ୟଶିଳ୍ପୀ । ତାଙ୍କର କାବ୍ଯସଂପଦ ବହୁ ବୈଚିତ୍ରରେ ପରିପୂର୍ଣ୍ଣ । ଗ୍ରୀକ୍ ସାହିତ୍ୟରୁ କଥାବସ୍ତୁ ଗ୍ରହଣକରି ଉତ୍କଳୀୟ ପରିବେଶରେ ସେ କାବ୍ୟ କୋଣାର୍କ ତୋଳିଛନ୍ତି, ଯାହା ଯେମିତି କାରୁକାର୍ଯ୍ୟପୂର୍ଣ୍ଣ ସେମିତି ଦୀପ୍ତିମୟ । ପୂର୍ବ ପରମ୍ପରାକୁ ଭାଙ୍ଗି ନୂତନତାର ଆବାହନ କରିବାରେ ରାଧାନାଥ ଥିଲେ ଅଗ୍ରଗଣ୍ୟ । ସାହିତ୍ୟକୁ ବିଳାସର ସାମଗ୍ରୀ ନଭାବି ଜୀବନର ପ୍ରତିଛବି ଭାବରେ ଗ୍ରହଣ କରିଛନ୍ତି କବି । ଫଳରେ ରାଧାନାଥଙ୍କ ସାହିତ୍ୟ ମାନବିକ ଆବେଦନ ସୃଷ୍ଟି କରିପାରିଛି ।

‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’, ‘ଚନ୍ଦ୍ରଭାଗା’, ‘କେଦାରଗୌରୀ’ ପରି କାବ୍ୟରେ ଦୁଃଖାନ୍ତକ ପରିଣତି ପାଇଁ ପାଶ୍ଚାତ୍ୟ ସାହିତ୍ୟର ପ୍ରେରଣା ଏବଂ ନିଜ ବ୍ୟକ୍ତିଗତ ଜୀବନର ହତାଶାଭାବ ହିଁ ଅନେକ ପରିମାଣରେ ଦାୟୀ ହୋଇପାରେ । ତାଙ୍କ ଅନନ୍ୟ କାବ୍ୟକୃତି ମଧ୍ୟରୁ ‘ଚିଲିକା’, ‘କେଦାରଗୌରୀ’, ‘ଦରବାର’, ‘ଚନ୍ଦ୍ରଭାଗା’, ‘ଯଯାତିକେଶରୀ’, ‘ଉଷା’, ‘ପାର୍ବତୀ’ ଆଦି ଅନ୍ୟତମ । ଆଲୋଚ୍ୟ ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ କାବ୍ୟର ନାୟକ ନାୟିକା ରାଜବଂଶଜ ହେଲେ ମଧ୍ୟ ସେମାନଙ୍କ ପ୍ରେମ ପ୍ରଣୟ ରୀତିଯୁଗୀୟ ଦେହର ମିଳନରେ ସୀମିତ ନୁହେଁ । ପ୍ରେମ ଏଠାରେ ଦେହାତୀତ । ଅଶ୍ରୁ ଓ ବିରହରେ ଏହା ମହିମାନ୍ଵିତ । ପ୍ରେମର ଛତ୍ରୀ ଉଡ଼ାଇବା ପାଇଁ ନନ୍ଦିକା ସଂକଳ୍ପବଧ । ସେଥିଲାଗି ସେ ସ୍ଥିର କରିଛନ୍ତି –

‘‘ ପ୍ରେମବଳେ ତାଙ୍କୁ କରି ଛତ୍ରପତି
ପ୍ରେମିକାକୁଳେ ମୁଁ ଟେକାଇବି ଛତି ।”

ପ୍ରେମର ବାନା ଉଡ଼ାଇବା ପାଇଁ ନନ୍ଦିକା ପିତାଙ୍କୁ ଶିରରୁ ଜୈତ୍ରମଣି ନେଇ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କୁ ପ୍ରଦାନ କରିଛି । ମାତ୍ର ସେଠାରେ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କ ଦ୍ବାରା ଉପେକ୍ଷିତା ହୋଇ ଆତ୍ମହତ୍ୟାକୁ ଶ୍ରେୟ ମଣିଛି ।

ଦେଶଦ୍ରୋହୀ, ରାଜଦ୍ରୋହୀ, ପିତୃଦ୍ରୋହୀ ହୋଇଥିବାରୁ ଅପରାଧବୋଧ ହେତୁ ନନ୍ଦିକା ମୃତ୍ୟୁର ପଥ ବାଛିବାକୁ ଶ୍ରେୟ ବୋଲି ବିଚାରିଛି । କବିଙ୍କର ଗଭୀର ବିଚାରବୋଧ ହିଁ ଏପରି ଏକ ପରିଣତିର କଳ୍ପନା କରିଛି । ଉତ୍କଳର ପବିତ୍ର କ୍ଷେତ୍ରରେ ଦେଶଦ୍ରୋହୀ ନନ୍ଦିକା ସୃଷ୍ଟି ହେବା ପ୍ରକୃତରେ ବିସ୍ମୟ ବୋଲି ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗ ପ୍ରକାଶ କରିଛନ୍ତି । ତଥାପି କବି ଏପରି ଏକ ପ୍ରେମପ୍ରଣୟମୂଳକ କାବ୍ୟରେ ପ୍ରେମର ଚମତ୍କାର ବର୍ଣ୍ଣନା ତଥା ଗୁଣଗାନକୁ ଅନାଦାର କରିନାହାନ୍ତି, ଅଧୂକନ୍ତୁ ପ୍ରେମର ଶ୍ରେଷ୍ଠତ୍ୱ ଓ ମହିମା ଗାନ କରିଛନ୍ତି । କବିଙ୍କ ଭାଷାରେ –

‘‘ ମହାବଳୀ ପ୍ରେମ ଅଟଇ ମହୀର,
ପ୍ରେମ ସିନା କରେ ଅବଳାକୁ ବୀର
ପ୍ରେମ ଦିଏ ବୁଦ୍ଧି ଉଦ୍‌ଯୋଗ ସାହସ,
ପ୍ରେମ କରିପାରେ ଅବଶକୁ ବଶ ।”

ପ୍ରଣୟମୁଗ୍ଧା ଲଳନା ନନ୍ଦିକା ପ୍ରେମପାଇଁ ହୋଇଛି ଦୁଃସାହସୀ । ଅଥଚ ପ୍ରେମ ପ୍ରଣୟ ମିଳନ ପରିବର୍ତ୍ତେ ଅପମାନ ବରଣ କରି ସେ ବିରହରେ ବେଦନା ଭୋଗିଛି । ପ୍ରଣୟଦଗ୍ଧ ଏକ ନାରୀ ମନର ବେଦନାକୁ କବି ରାଧାନାଥ ଅତି ଚମତ୍କାର ଭାବରେ ପାଠକ ପାଖରେ ତୋଳି ଧରିଛନ୍ତି । ଧର୍ମ, ଯୁଦ୍ଧ ବୀରପଣରେ ପରିଣତି ନ ଆଣି କବି ନିଜ କଳ୍ପନା ଓ ବର୍ଣ୍ଣନାରେ ପ୍ରେମଯୁଦ୍ଧରେ ସମାପ୍ତ କରିଛନ୍ତି । ପ୍ରେମ ପାଗଳିନୀ ନନ୍ଦିକାର ମନ ହୃଦୟ ଭାଙ୍ଗିଯାଇଛି । ପ୍ରେମ ପାଇଁ ସେ ଯେଉଁ ପଦକ୍ଷେପ ନେଇଛି, ସେଥୁରୁ ଆଉ ପଛକୁ ଲେଉଟି ନିର୍ଲଜ ଜୀବନ ଜିଇଁବାକୁ ଇଚ୍ଛା କରିନାହିଁ; ବରଂ ମୃତ୍ୟୁରେ ତା’ର ଭାବନା ଲିପ୍ତ ହେବାକୁ ଛାଡ଼ିଦେଇଛି । ପ୍ରେମ ସ୍ମୃତି ହୋଇ ଝଟକିଛି, ଯାହାକୁ କେବେ ବି ଭୁଲିହେବ ନାହିଁ । କବିଙ୍କ ଭାଷାରେ

“ସ୍ମୃତି ତ କଦାପି ନୁହେଁ ଫିଙ୍ଗିବାର,
ପାରିଲେ ଫିଙ୍ଗି ସେ ଲଭନ୍ତା ନିସ୍ତାର ।’’

ବାସ୍ତବିକ୍ କବିଙ୍କ ରୋମାଣ୍ଟିକ୍ ଦୃଷ୍ଟିଭଙ୍ଗୀ ଓ ପ୍ରେମପ୍ରଣୟର ବର୍ଣ୍ଣନା ଅଦ୍ବିତୀୟ ।

Question 14.
‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ କାବ୍ୟରୁ ଉତ୍କଳର ବିଭିନ୍ନ ସ୍ଥାନର ପରିଚୟ ଦିଅ ।
Answer:
ରାଧାନାଥ ସାହିତ୍ୟ ରଚନା କରିବା ପୂର୍ବରୁ ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟରେ ସଂସ୍କୃତ ପ୍ରଭାବିତ ରୀତି ସାହିତ୍ୟ ପ୍ରଭାବ ବିସ୍ତାର କରିଥିଲା । ସେହି ସମୟର ସାହିତ୍ୟ ମୁଖ୍ୟତଃ ଦରବାରୀ ସାହିତ୍ୟ ଥିଲା । ଇଂରେଜମାନେ ଓଡ଼ିଶା ଅଧିକାର କରିବାପରେ, ଓଡ଼ିଶାର ସାମାଜିକ, ରାଜନୈତିକ ଓ ସାଂସ୍କୃତିକ ଜୀବନରେ ବ୍ୟାପକ ପରିବର୍ତ୍ତନ ଆସିଛି । ଆଧୁନିକ ଶିକ୍ଷାର ପ୍ରସାର ଘଟିଛି, ତା’ ସହିତ ଛାପାଖାନର ମଧ୍ୟ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଛି । ରାଧାନାଥ ସେହି ଆଧୁନିକ ଯୁଗର ପୃଷ୍ଠଭୂମିରେ ଲେଖନୀଚାଳନା କରିଛନ୍ତି । ପାରମ୍ପରିକ ସାହିତ୍ୟକୁ ସେ ନୂଆକରି ତା’ର ରୂପ ପରିବର୍ତ୍ତନ କରିଛନ୍ତି । ଆଳଙ୍କାରିକତାରୁ ସାହିତ୍ୟକୁ ଯଥାସମ୍ଭବ ଦୂରେଇ ରଖ୍ ସାଧାରଣ ମଣିଷ ଭାବରେ ସାହିତ୍ୟର ରୂପକୁ ସଜେଇଛନ୍ତି । ଯାହା ପଣ୍ଡିତମାନଙ୍କଠାରୁ ଆରମ୍ଭ କରି ଅଶିକ୍ଷିତ ଲୋକ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ସମସ୍ତେ ବୁଝିପାରିବେ । ତାଙ୍କର ସାହିତ୍ୟ ସୃଷ୍ଟି ମଧ୍ୟରେ ‘କେଦାରଗୌରୀ’, ‘ଉଷା’, ‘ପାର୍ବତୀ’, ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ’, ‘ଉର୍ବଶୀ’, ‘ମହାଯାତ୍ରା’, ‘ଚିଲିକା’ ଆଦି କାବ୍ୟଗୁଡ଼ିକ ଉଲ୍ଲେଖଯୋଗ୍ୟ ।

ଆଲୋଚିତ ପ୍ରସଙ୍ଗଟି ହେଉଛି ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ କାବ୍ୟର ବୈଚିତ୍ର । ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ କାବ୍ୟଟି କବିଙ୍କର ତୃତୀୟ ସୃଷ୍ଟି । ଉକ୍ତ କାବ୍ୟଟି ୧୮୮୭ ମସିହାରେ ଭିକ୍ଟୋରିଆ ପ୍ରେସ୍‌ରୁ ପ୍ରକାଶିତ ହୋଇଥିଲା । ଏହି କାବ୍ୟଟିର ବର୍ଣନାଶୈଳୀ ସ୍ଵତନ୍ତ୍ର । ଚରିତ୍ରମାନଙ୍କର ଅବତାରଣା ମଧ୍ୟ ସୁନ୍ଦର । ପ୍ରକୃତି ବର୍ଣ୍ଣନା ଜୀବନ୍ତ ଏବଂ ପ୍ରେମର ବର୍ଣ୍ଣନା ମହୀୟାନ । କାବ୍ୟଟିର ବିଷୟବସ୍ତୁ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗ ଦେବଙ୍କ ସମରସଜ୍ଜାରୁ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଛି । ପରେ ପରେ ସୁନ୍ଦର ଭାବରେ କବି ଉତ୍କଳର ବିଭିନ୍ନ ଐତିହାସିକ ସ୍ଥାନ ଓ ତୀର୍ଥ ବିଷୟରେ ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛନ୍ତି । ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ’ କାବ୍ୟର ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀ ଓ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବଙ୍କ ଚରିତ୍ର ମାଦଳାପାଞ୍ଜିରୁ ଆଣିଛନ୍ତି ଓ ସେଥୁରେ ଓଭିଡ୍‌ଙ୍କ ‘ମେଟାମରଫୋସିସ୍’ କାହାଣୀର ନିମସ୍ ଓ ମିନ୍ସଙ୍କୁ ଆରୋପ କରିଛନ୍ତି । ଏହା ପ୍ରାଚ୍ୟ ଓ ପାଶ୍ଚାତ୍ୟର ଏକ ସୁନ୍ଦର ସମନ୍ବୟ ହୋଇପାରିଛି । ନନ୍ଦିକା ଚରିତ୍ରଟି ସମ୍ପୂର୍ଣ କାଳ୍ପନିକ ହେଲେ ମଧ୍ୟ ତା’ର ଅବତାରଣା ଏପରି ଭାବରେ କରିଛନ୍ତି ଯେ, ତାହା ସତ୍ୟ କାହାଣୀ ପରି ପ୍ରତ୍ୟୟମାନ ହୋଇଛି ।

Question 15.
ପ୍ରଣୟଦଗ୍‌ଧ ଏକ ନାରୀ ମନର ଅବିକଳ ଚିତ୍ର ରାଧାନାଥୀ ଲେଖନୀରେ କିପରି ପ୍ରତିଭାତ ହୋଇଛି, ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ ଅବଲମ୍ବନରେ ଆଲୋଚନା କର ।
Answer:
ରୀତି ସାହିତ୍ୟ ଛନ୍ଦ ଅଳଙ୍କାର ଶବ୍ଦ କାରିଗରୀପୂର୍ଣ୍ଣ ଧାରାରୁ ଓଡ଼ିଆ କାବ୍ୟକୁ ମୁକୁଳେଇ ନେଇ ନବଚେତନାର ମନ୍ତ୍ରରେ ଦୀକ୍ଷିତ କରିଥିବା ଜଣେ ଅନନ୍ୟ କାବ୍ୟ କଳାକାର ଥିଲେ କବିବର ରାଧାନାଥ ରାୟ । ରାଧାନାଥ ସ୍ବକୀୟ ପ୍ରତିଭାରେ ସ୍ୱୀୟ ପଦାଙ୍କ ଅଙ୍କନ କରି ଅନ୍ୟମାନଙ୍କ ପାଇଁ ଯୁଗପ୍ରବର୍ତ୍ତକ ଆଦର୍ଶ ହୋଇଛନ୍ତି । ତାଙ୍କ କାବ୍ୟକୁସୁମ ଲାଭକରି ଓଡ଼ିଆ କାବ୍ୟମାଳା ଯେମିତି ହୋଇଛି ବର୍ଣ୍ଣମୟ ସେମିତି ହୋଇଛି ସୁରଭିଯୁକ୍ତ । ଏହି କାବ୍ୟକୁସୁମ ମଧ୍ୟରୁ ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ’ ଅନ୍ୟତମ ସାର୍ଥକ କାବ୍ୟକର୍ମ ।

ଏହି ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ’ କାବ୍ୟରୁ ତାଙ୍କର ଉତ୍କଳୀୟ ପ୍ରୀତି ପରିଲକ୍ଷିତ ହୋଇଥାଏ । କିମ୍ବଦନ୍ତୀ, ଲୋକକଥାର ଆଧାରରେ ଲିଖ୍ତ ହେଲେହେଁ କବି ନିଜ ମାତୃଭୂମିର ଜୟଗାନ କରିବାକୁ କୌଣସି ସୁଯୋଗକୁ ହାତଛଡ଼ା କରିନାହାନ୍ତି । ଉତ୍କଳର ଚାରୁଚିତ୍ର, ନଦନଦୀ, ଗିରିକନ୍ଦର, ସାଗରହ୍ରଦ ସମସ୍ତେ କବିଙ୍କ ବର୍ଣ୍ଣନାରେ ମହାନ୍ ହୋଇଯାଇଛନ୍ତି ।

ଦାକ୍ଷିଣାତ୍ୟର ରାଜା ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗ ଉତ୍କଳ ପ୍ରଦେଶ ଅଧିକାର ଆଶାରେ ଏଠାରେ ରହି ବହୁଦିନ ଯୁଦ୍ଧ କରିଛନ୍ତି । ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କୁ ବାଧାଦେବା ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ କେବଳ ସୁବର୍ଷକେଶରୀ ନୁହଁନ୍ତି, ଉତ୍କଳର ଅନ୍ୟ ଅଞ୍ଚଳରୁ ମଧ୍ଯ ବୀର ସୈନ୍ୟମାନେ ଆସି ପ୍ରାଣପାତ କରିଛନ୍ତି । ଏହି ପ୍ରସଙ୍ଗରେ କବି ଉତ୍କଳର ବହୁ ଅଞ୍ଚଳର ନାମ, ସେହି ସ୍ଥାନର ବୈଶିଷ୍ଟ୍ୟ, ସେଠାକାର ଦେବଦେବୀଙ୍କ ପରିଚୟ ମଧ୍ୟ ଦେଇଛନ୍ତି । ଯାହା ତାଙ୍କର ଭୌଗୋଳିକ ଜ୍ଞାନର ଏକ ଅନୁପମ ନିଦର୍ଶନ । ହେନ୍ତାଳବନସ୍ଥ ଅଞ୍ଚଳ, କନିକା, କୁଜଙ୍ଗ, ମରିଚ-ହରିଶପୁର, ଅସ୍ତରଙ୍ଗ ଆଦିର ସୈନ୍ୟମାନେ ଯୁଦ୍ଧରେ ଯୋଗ ଦେଇଛନ୍ତି । ଏହି ସବୁ କ୍ଷେତ୍ରରେ ସୈନ୍ୟମାନେ ମହାବୀର । କବିଙ୍କ ବର୍ଣ୍ଣନାରେ –

“ବରାହ-ପାଳିତ ବାଲିପୂର୍ଣ୍ଣ ଆଳି
କ୍ଷତ୍ରବୃନ୍ଦ ଯା’ର ମହାବୀର୍ଯ୍ୟଶାଳୀ ।’’

କେନ୍ଦ୍ରାପଡ଼ା, ଅସୁରେଶ୍ୱର, ସାଲେପୁର, ଚଉଦ୍ଵାର, ଉତ୍ତରକୋଶଳା, ଛତିଆ, ମହାବିନାୟକ, ଅଳତୀ, ବିରଜାମଣ୍ଡଳ, ଭଦ୍ରକ, ସୋର, ନୀଳଗିରି, ସ୍ଵର୍ଣ୍ଣଚୂଡ଼ ପୁନଙ୍ଗ, ପ୍ରାଚୀ ତୀରବର୍ତ୍ତୀ ଅଞ୍ଚଳ ନିଆଳି, ଧଉଳି, ପାରିକୁଦ, ଦାଣ୍ଡିମାଳ, ଖଣ୍ଡଗିରି, ଖଲ୍ଲିକୋଟ, ମଞ୍ଜୁଷା ଆଦିର ବୀରମାନେ ମାତୃଭୂମି ପାଇଁ ଯୁଦ୍ଧକରି ପ୍ରେତପୁର ଗମନ କରିଛନ୍ତି । କବିଙ୍କ ଭାଷାରେ – “

“ଏହି ଦେଶ ଅନ୍ୟ ଦେଶବାସୀ ଶୂର
କାଠଯୋଡ଼ି-ତୀରେ ଗଲେ ପ୍ରେତପୁର ।’’

ଏସବୁ ଅଞ୍ଚଳ ବ୍ୟତୀତ ଗଡ଼ଜାତର କନ୍ଧ, ଶବରମାନେ ଯୁଦ୍ଧରୁ ବାଦ୍ ଯାଇନାହାନ୍ତି । ରାଧାନାଥ ସେଥ‌ିପାଇଁ ଲେଖୁଛନ୍ତି –

“ମାଲ୍ୟଗିରିବାସୀ ଦୁର୍ଘର୍ଷ ଜୁଆଙ୍ଗ
କେତେ ହେଲେ ରଣଭୂମେ ବିକଳାଙ୍ଗ ।’’

ହରିଦ୍ରା ଏବଂ ହରିତ ଅତ୍ୟଧ୍ଵ ହେଉଥିବା କନ୍ଧମାଳ, ତାଳଚେର, କପିଳାସ ଖୋଲର ଶବର, ଢେଙ୍କାନାଳ, ସପ୍ତକ୍ରୋଶୀ ଆଦି ଅଞ୍ଚଳର ସୈନିକମାନେ ଏଠାରେ ବୀରତ୍ଵର ସହ ଯୁଦ୍ଧକରି ଯୁଦ୍ଧକ୍ଷେତ୍ରରେ ସମାଧ୍ ଲଭିଛନ୍ତି । କବି ଏଠାରେ ଉଭୟ ପକ୍ଷର ସୈନିକମାନଙ୍କର କଥା ଉଲ୍ଲେଖ କରି ଗାଇଛନ୍ତି –

“ ତହିଁ ବେନିପକ୍ଷେ ଋଣଦେବୀଙ୍କର
ସ୍ଵଶିର-କମଳେ ପୁଜିଲେ ପୟର
ଜୀବନେ ହେଲେ ହେଁ ପରସ୍ପରେ ବାଦୀ
ମରଣେ ଲଭିଲେ ଏକତ୍ର ସମାଧ୍ ।’’

କବିଙ୍କ ବର୍ଣ୍ଣନାରେ ଏହି ଉତ୍କଳଭୂମି ବୀରଭୂମି । ଏହାର ସୈନ୍ୟମାନେ ବୀର ସୈନିକ । ମାତୃଭୂମିର ସମ୍ମାନ ପାଇଁ ଜୀବନ ତ୍ୟାଗ କରିବାକୁ ସେମାନେ ପଛାଇନାହାନ୍ତି । ତେବେ ଏହାର କଥାବସ୍ତୁ ବର୍ଣ୍ଣନା ପ୍ରସଙ୍ଗରେ ରାଧାନାଥ ଉତ୍କଳର ନଦନଦୀ, ବଣପାହାଡ଼ ଓ ଦେବଦେବୀଙ୍କର ମଧ୍ୟ ବିସ୍ତୃତ ବିବରଣୀ ପ୍ରଦାନ କରିଛନ୍ତି । ଉତ୍କଳର ମାଟି ପାଣି ପବନର ମହକ ମହକିତ ହୋଇଉଠେ ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ କାବ୍ୟରେ । ଉତ୍କଳର ବିଭିନ୍ନ ସ୍ଥାନର ସୁନ୍ଦର ବର୍ଣ୍ଣନା କବିଙ୍କ ପ୍ରତିଭାର ଜ୍ଵଳନ୍ତ ପ୍ରମାଣ ବହନ କରେ ।
ବାସ୍ତବିକ୍ କବିଙ୍କ ଭୌଗୋଳିକ ଦୃଷ୍ଟିର ଅସାଧାରଣତ ସର୍ବଜନବିଦିତ ।

CHSE Odisha Class 11 Optional Odia Solutions Chapter 2 ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ

Question 16.
ଚୋରଗଙ୍ଗଙ୍କର ଚରିତ୍ର ଚିତ୍ରଣ କର ।
Answer:
କବିବର ରାଧାନାଥ ରାୟଙ୍କ ସାହିତ୍ୟ ସୃଷ୍ଟିରେ ଚରିତ୍ରମାନଙ୍କୁ ଲକ୍ଷ୍ୟକଲେ ଦେଖିବା, ସେମାନେ ନିଜ ନିଜ ସ୍ଥାନରେ ପ୍ରଭାବଶାଳୀ । ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ କାବ୍ୟର ଚରିତ୍ରମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ପ୍ରତ୍ୟେକ ଚରିତ୍ର ମଧ୍ୟ ବେଶ୍ ପ୍ରଭାବଶାଳୀ । ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବ ବା ଚୋରଗଙ୍ଗଦେବ ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ କାବ୍ୟର ନାୟକ । ଏକାଧାରରେ ସେ ଜଣେ ବୀର, ବିବେକବାନ୍, ସୌମ୍ୟ, ମାତୃଭକ୍ତ ଓ ସହୃଦୟବାନ୍ ରାଜା । ତାଙ୍କର ଚରିତ୍ର ମଧ୍ୟରେ କବି ଏହାହିଁ ଚିତ୍ରିତ କରିଛନ୍ତି ।

ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବ ଏକ ଐତିହାସିକ ନାମ; ହେଲେ ଉକ୍ତ କାବ୍ୟରେ ତାଙ୍କର ଐତିହାସିକ ଭାବମୂର୍ତ୍ତି ଖୋଜିଲେ ନିରାଶ ହେବାକୁ ପଡ଼େ । କାରଣ କବି ଏଥରେ ଓଭିଡ଼ଙ୍କ ମିନ୍ସ ଚରିତ୍ରର ମିଶ୍ରଣ କରିଛନ୍ତି ।

ମାତୃଭକ୍ତ ଭାବରେ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବଙ୍କ ଚରିତ୍ର ବେଶ୍ ଚର୍ଚ୍ଚିତ । ସେ ହେଉଛନ୍ତି ଗଙ୍ଗାଙ୍କର ପୁତ୍ର, ତେଣୁ ଗଙ୍ଗାଙ୍କ ଆଦେଶ ରକ୍ଷାକରି ସେ ଉତ୍କଳ ଅଧିକାର କରି, ସେଠାରେ ବୈଷ୍ଣବ ଧର୍ମର ସ୍ଥାପନ କରିବାପାଇଁ ଆସିଛନ୍ତି । ମାତ୍ର ଗଡ଼ଚଣ୍ଡୀଙ୍କ ଦୟାରେ ଜୈତ୍ରମଣି ସାହାଯ୍ୟରେ ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀ ବିଡ଼ାନାସୀ ଗଡ଼କୁ ରକ୍ଷା କରିଛନ୍ତି, ତେଣୁ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବ ଶତଚେଷ୍ଟା ପରେ ମଧ୍ୟ ଗଡ଼ ଭେଦ କରି ନପାରି ସ୍ବରାଜ ପ୍ରତ୍ୟାବର୍ତ୍ତନ କରିବାକୁ ଚାହିଁଛନ୍ତି । ଫେରିବା ପୂର୍ବରୁ ଜଙ୍ଗଲ ମଧ୍ୟରେ ଦେବୀ ଗଙ୍ଗାକୁ ଦର୍ଶନ କରିଛନ୍ତି । ପୁନଶ୍ଚ ଦେବୀ ଗଙ୍ଗା ଆଉ ଗୋଟିଏ ରାତି ଅପେକ୍ଷା କରିବାକୁ ପରାମର୍ଶ ଦେଇଛନ୍ତି ଓ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବ ମଧ୍ଯ ତାହା ମାତୃଆଜ୍ଞା ବୋଲି ହୃଦୟଙ୍ଗମ କରି ଅପେକ୍ଷା କରିଛନ୍ତି । ଏଠାରେ ତାଙ୍କ ବ୍ୟକ୍ତିତ୍ଵର ପରାକାଷ୍ଠା ପ୍ରତିଫଳିତ ହୋଇଥାଏ ।

ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କୁ ଜଣେ ସୌମ୍ୟ ସୁନ୍ଦର ବୀର ଭାବରେ କବି ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛନ୍ତି । ସେହି ସୁନ୍ଦର ରୂପରେ ନନ୍ଦିକା ଘାରି ହୋଇଛି । ନିଜର ମନୋପ୍ରାଣକୁ ସେ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କ ପାଖରେ ବିକିଦେଇଛି । ତେଣୁ ତାଙ୍କର ସ୍ଵ-ରାଜ୍ୟ ପ୍ରତ୍ୟାଗମନକୁ ସେ ସହିପାରି ନାହିଁ । ପ୍ରେମରେ ଅନ୍ଧୁଣୀ ହୋଇ ନିଜ ପିତାଙ୍କ ଜୈତ୍ରମଣିକୁ ଅପହରଣ କରି, ସେ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବଙ୍କ ପାଖରେ ପହଞ୍ଚିଛି । ମାତ୍ର ଏଇଠି ହିଁ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କର ଚରିତ୍ର ବିଶେଷ ଭାବରେ ପ୍ରତିଫଳିତ ହୋଇଛି । ସେ ନନ୍ଦିକାକୁ କେବେ ଦେଖୁନଥିଲେ, ତାକୁ ଦେଖୁବାପରେ ଆଶ୍ଚର୍ଯ୍ୟ ହୋଇଛନ୍ତି ଏବଂ ତାଙ୍କ ପାଖରେ ଏତେ ଅନିନ୍ଦ୍ୟ ସୁନ୍ଦରୀକୁ ଦେଖ୍ ମଧ୍ଯ ନିଜ ଚରିତ୍ରର କୌଣସି ସ୍ଖଳନ ଘଟିନାହିଁ । ବରଂ ନନ୍ଦିକାଙ୍କ ମୁଖରୁ ସବୁ ଶୁଣିସାରିବା ପରେ ସେ ଘୃଣା ଆଉ କ୍ରୋଧରେ ଭର୍ସନା କରିଛନ୍ତି । ଜଣେ ନିରପେକ୍ଷ ବ୍ୟକ୍ତିଭାବରେ ସେ ନନ୍ଦିକାର ଏତାଦୃଶ କାର୍ଯ୍ୟକୁ ନିନ୍ଦାକରି ତାଙ୍କ ପୂର୍ବପୁରୁଷ କେଶରୀ ବଂଶର କୀର୍ତ୍ତିକୁ ଦୋହରାଇଛନ୍ତି । ପୁନଶ୍ଚ ରାଜଦ୍ରୋହୀ, ପିତୃଦ୍ରୋହୀ ଓ ଦେଶଦ୍ରୋହୀ ଏହି ତିନିପାପରେ ନନ୍ଦିକା ଭାଗିନୀ ବୋଲି କହିଛନ୍ତି । ଶେଷରେ ସେ ନନ୍ଦିକାକୁ ଜଣେ ମନ୍ତ୍ରୀଙ୍କ ଦ୍ଵାରା ଶିବିକାରେ ବସାଇ ଚୈତ୍ରମଣି ସହିତ ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀଙ୍କ ପାଖକୁ ଫେରାଇ ଦେଇଛନ୍ତି । ସେ ଚାହିଁଥିଲେ ଜୈତ୍ରମଣିଟିକୁ ରଖୁ ଉତ୍କଳକୁ କରାୟତ୍ତ କରିପାରିଥାନ୍ତେ; ମାତ୍ର ସେ ସେପରି କରିନାହାନ୍ତି । ଏଠାରେ ସେ ଜଣେ ବିବେକବାନ୍ ପୁରୁଷ ଭାବରେ ନିଜକୁ ପ୍ରମାଣିତ କରିଛନ୍ତି । ଏହି ମହାନ୍‌ ବ୍ୟକ୍ତିତ୍ୱଙ୍କ ହାତରେ ସୁବର୍ଷକେଶରୀ ନିଜ ଝିଅ ନନ୍ଦିକାର ଅନୁରୋଧ କ୍ରମେ ଜୈତ୍ରମଣି ସହିତ ଉତ୍କଳର ସିଂହାସନ ଅର୍ପଣ କରିଛନ୍ତି । ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବ ସେହି ଚୈତ୍ରମଣିକୁ ଶ୍ରୀକ୍ଷେତ୍ରକୁ ପଠେଇ ଦେଇଛନ୍ତି ଓ ଉତ୍କଳର ସମସ୍ତ ରାଜାମାନେ ଆସି ତାଙ୍କର ବନ୍ଦନା କରିଛନ୍ତି ।

ଏହିଭଳି ଭାବରେ ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ କାବ୍ୟରେ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବଙ୍କର ଚରିତ୍ର ଚିତ୍ରିତ ହୋଇଛି ।

Question 17.
‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ କାବ୍ୟରୁ କବି ପ୍ରତିଭାର ପରିଚୟ ପ୍ରଦାନ କର ।
Answer:
ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟର ଆଧୁନିକ ପର୍ବରେ ଯେଉଁ କେତେଜଣ ପ୍ରଚଣ୍ଡ ପ୍ରତିଭା ସେମାନଙ୍କ ଅନନ୍ୟ ସୃଷ୍ଟିର ପ୍ରତିଦାନରେ ନିଜ ନାମକୁ ସ୍ଵର୍ଣ୍ଣାକ୍ଷରରେ ଅମର କରିଯାଇଛନ୍ତି ସେମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ କବିବର ରାଧାନାଥ ରାୟ ଅନ୍ୟତମ ଯୋଗ୍ଯ କାବ୍ୟଶିଳ୍ପୀ । ତାଙ୍କର କାବ୍ଯସଂପଦ ବହୁ ବୈଚିତ୍ରରେ ପରିପୂର୍ଣ୍ଣ । ଗ୍ରୀକ୍ ସାହିତ୍ୟରୁ କଥାବସ୍ତୁ ଗ୍ରହଣକରି ଉତ୍କଳୀୟ ପରିବେଶରେ ସେ କାବ୍ୟ କୋଣାର୍କ ତୋଳିଛନ୍ତି, ଯାହା ଯେମିତି କାରୁକାର୍ଯ୍ୟପୂର୍ଣ୍ଣ ସେମିତି ଦୀପ୍ତିମୟ । ପୂର୍ବ ପରମ୍ପରାକୁ ଭାଙ୍ଗି ନୂତନତାର ଆବାହନ କରିବାରେ ରାଧାନାଥ ଥିଲେ ଅଗ୍ରଗଣ୍ୟ । ସାହିତ୍ୟକୁ ବିଳାସର ସାମଗ୍ରୀ ନଭାବି ଜୀବନର ପ୍ରତିଛବି ଭାବରେ ଗ୍ରହଣ କରିଛନ୍ତି କବି । ଫଳରେ ରାଧାନାଥଙ୍କ ସାହିତ୍ୟ ମାନବିକ ଆବେଦନ ସୃଷ୍ଟି କରିପାରିଛି ।

‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’, ‘ଚନ୍ଦ୍ରଭାଗା’, ‘କେଦାରଗୌରୀ’ ପରି କାବ୍ୟରେ ଦୁଃଖାନ୍ତକ ପରିଣତି ପାଇଁ ପାଶ୍ଚାତ୍ୟ ସାହିତ୍ୟର ପ୍ରେରଣା ଏବଂ ନିଜ ବ୍ୟକ୍ତିଗତ ଜୀବନର ହତାଶାଭାବ ହିଁ ଅନେକ ପରିମାଣରେ ଦାୟୀ ହୋଇପାରେ । ତାଙ୍କ ଅନନ୍ୟ କାବ୍ୟକୃତି ମଧ୍ୟରୁ ‘ଚିଲିକା’, ‘କେଦାରଗୌରୀ’, ‘ଦରବାର’, ‘ଚନ୍ଦ୍ରଭାଗା’, ‘ଯଯାତିକେଶରୀ’, ‘ଉଷା’, ‘ପାର୍ବତୀ’ ଆଦି ଅନ୍ୟତମ । ଆଲୋଚ୍ୟ ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ କାବ୍ୟର ନାୟକ ନାୟିକା ରାଜବଂଶଜ ହେଲେ ମଧ୍ୟ ସେମାନଙ୍କ ପ୍ରେମ ପ୍ରଣୟ ରୀତିଯୁଗୀୟ ଦେହର ମିଳନରେ ସୀମିତ ନୁହେଁ । ପ୍ରେମ ଏଠାରେ ଦେହାତୀତ । ଅଶ୍ରୁ ଓ ବିରହରେ ଏହା ମହିମାନ୍ଵିତ । ପ୍ରେମର ଛତ୍ରୀ ଉଡ଼ାଇବା ପାଇଁ ନନ୍ଦିକା ସଂକଳ୍ପବଧ । ସେଥିଲାଗି ସେ ସ୍ଥିର କରିଛନ୍ତି –

‘‘ ପ୍ରେମବଳେ ତାଙ୍କୁ କରି ଛତ୍ରପତି
ପ୍ରେମିକାକୁଳେ ମୁଁ ଟେକାଇବି ଛତି ।”

ପ୍ରେମର ବାନା ଉଡ଼ାଇବା ପାଇଁ ନନ୍ଦିକା ପିତାଙ୍କୁ ଶିରରୁ ଜୈତ୍ରମଣି ନେଇ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କୁ ପ୍ରଦାନ କରିଛି । ମାତ୍ର ସେଠାରେ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କ ଦ୍ବାରା ଉପେକ୍ଷିତା ହୋଇ ଆତ୍ମହତ୍ୟାକୁ ଶ୍ରେୟ ମଣିଛି ।

ଦେଶଦ୍ରୋହୀ, ରାଜଦ୍ରୋହୀ, ପିତୃଦ୍ରୋହୀ ହୋଇଥିବାରୁ ଅପରାଧବୋଧ ହେତୁ ନନ୍ଦିକା ମୃତ୍ୟୁର ପଥ ବାଛିବାକୁ ଶ୍ରେୟ ବୋଲି ବିଚାରିଛି । କବିଙ୍କର ଗଭୀର ବିଚାରବୋଧ ହିଁ ଏପରି ଏକ ପରିଣତିର କଳ୍ପନା କରିଛି । ଉତ୍କଳର ପବିତ୍ର କ୍ଷେତ୍ରରେ ଦେଶଦ୍ରୋହୀ ନନ୍ଦିକା ସୃଷ୍ଟି ହେବା ପ୍ରକୃତରେ ବିସ୍ମୟ ବୋଲି ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗ ପ୍ରକାଶ କରିଛନ୍ତି । ତଥାପି କବି ଏପରି ଏକ ପ୍ରେମପ୍ରଣୟମୂଳକ କାବ୍ୟରେ ପ୍ରେମର ଚମତ୍କାର ବର୍ଣ୍ଣନା ତଥା ଗୁଣଗାନକୁ ଅନାଦାର କରିନାହାନ୍ତି, ଅଧୂକନ୍ତୁ ପ୍ରେମର ଶ୍ରେଷ୍ଠତ୍ୱ ଓ ମହିମା ଗାନ କରିଛନ୍ତି । କବିଙ୍କ ଭାଷାରେ –

‘‘ ମହାବଳୀ ପ୍ରେମ ଅଟଇ ମହୀର,
ପ୍ରେମ ସିନା କରେ ଅବଳାକୁ ବୀର
ପ୍ରେମ ଦିଏ ବୁଦ୍ଧି ଉଦ୍‌ଯୋଗ ସାହସ,
ପ୍ରେମ କରିପାରେ ଅବଶକୁ ବଶ ।”

ପ୍ରଣୟମୁଗ୍ଧା ଲଳନା ନନ୍ଦିକା ପ୍ରେମପାଇଁ ହୋଇଛି ଦୁଃସାହସୀ । ଅଥଚ ପ୍ରେମ ପ୍ରଣୟ ମିଳନ ପରିବର୍ତ୍ତେ ଅପମାନ ବରଣ କରି ସେ ବିରହରେ ବେଦନା ଭୋଗିଛି । ପ୍ରଣୟଦଗ୍ଧ ଏକ ନାରୀ ମନର ବେଦନାକୁ କବି ରାଧାନାଥ ଅତି ଚମତ୍କାର ଭାବରେ ପାଠକ ପାଖରେ ତୋଳି ଧରିଛନ୍ତି । ଧର୍ମ, ଯୁଦ୍ଧ ବୀରପଣରେ ପରିଣତି ନ ଆଣି କବି ନିଜ କଳ୍ପନା ଓ ବର୍ଣ୍ଣନାରେ ପ୍ରେମଯୁଦ୍ଧରେ ସମାପ୍ତ କରିଛନ୍ତି । ପ୍ରେମ ପାଗଳିନୀ ନନ୍ଦିକାର ମନ ହୃଦୟ ଭାଙ୍ଗିଯାଇଛି । ପ୍ରେମ ପାଇଁ ସେ ଯେଉଁ ପଦକ୍ଷେପ ନେଇଛି, ସେଥୁରୁ ଆଉ ପଛକୁ ଲେଉଟି ନିର୍ଲଜ ଜୀବନ ଜିଇଁବାକୁ ଇଚ୍ଛା କରିନାହିଁ; ବରଂ ମୃତ୍ୟୁରେ ତା’ର ଭାବନା ଲିପ୍ତ ହେବାକୁ ଛାଡ଼ିଦେଇଛି । ପ୍ରେମ ସ୍ମୃତି ହୋଇ ଝଟକିଛି, ଯାହାକୁ କେବେ ବି ଭୁଲିହେବ ନାହିଁ । କବିଙ୍କ ଭାଷାରେ

“ସ୍ମୃତି ତ କଦାପି ନୁହେଁ ଫିଙ୍ଗିବାର,
ପାରିଲେ ଫିଙ୍ଗି ସେ ଲଭନ୍ତା ନିସ୍ତାର ।’’

ବାସ୍ତବିକ୍ କବିଙ୍କ ରୋମାଣ୍ଟିକ୍ ଦୃଷ୍ଟିଭଙ୍ଗୀ ଓ ପ୍ରେମପ୍ରଣୟର ବର୍ଣ୍ଣନା ଅଦ୍ବିତୀୟ ।

+2 1st Year Odia Optional Chapter 2 ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ Summary

କବି ପରିଚୟ :
ଆଧୁନିକ ଓଡ଼ିଆ କବିତାର ଯୁଗପ୍ରବର୍ତ୍ତକ କବିବର ରାଧାନାଥ ରାୟ ୧୮୪୮ ମସିହା ସେପ୍ଟେମ୍ବର ମାସ ୨୮ ତାରିଖରେ ବାଲେଶ୍ଵର ଜିଲ୍ଲାର କେଦାରପୁର ଗ୍ରାମରେ ଜନ୍ମଗ୍ରହଣ କରିଥିଲେ । ତାଙ୍କର ପିତାଙ୍କ ନାମ ଥିଲା ସୁନ୍ଦରନାରାୟଣ ରାୟ ଓ ମାତାଙ୍କ ନାମ ଥିଲା ତାରିଣୀ ଦାସୀ । ରାଧାନାଥ ରାୟଙ୍କର ସାନଭାଟିଏ ମଧ୍ୟ ଥିଲା ଯାହାଙ୍କ ନାମ ଯଦୁନାଥ ରାୟ । କବିଙ୍କୁ ଯେତେବେଳେ ମାତ୍ର ପାଞ୍ଚ ବର୍ଷ, ସେହି ବୟସରେ ତାଙ୍କର ମାତୃବିୟୋଗ ଘଟିଲା । କିଛିଦିନ ପରେ ସାହି-ପଡ଼ିଶା ଓ ବନ୍ଧୁବାନ୍ଧବଙ୍କ ଅନୁରୋଧ କ୍ରମେ ସୁନ୍ଦରନାରାୟଣ ଯାଜପୁରର ରୂପ ଦାସୀଙ୍କୁ ଦ୍ଵିତୀୟ ବିବାହ କରିଥିଲେ । ରୂପ ଦାସୀଙ୍କ ଗର୍ଭରୁ ସୀତାନାଥ, ହରନାଥ ନାମରେ ଦୁଇଟି ପୁଅ ଓ ସ୍ଵର୍ଣ୍ଣମୟୀ ନାମରେ ଗୋଟିଏ ଝିଅ ଜନ୍ମ ହୋଇଥିଲେ ।
ଶୁଣାଯାଏ କବିଙ୍କର ପୂର୍ବପୁରୁଷ ବଙ୍ଗଦେଶରୁ ଆସି ଓଡ଼ିଶାରେ ବାସ କରୁଥିଲେ । ତାହାଙ୍କ କୌଳିକ ଉପାଧ୍ ଥିଲା ‘ଦେ’ । କୌଣସି ରାଜାଙ୍କଠାରୁ ‘ରାୟ’ ଉପାଧ୍ ପାଇ କୌଳିକ ଉପାଧିକୁ ତାଙ୍କର ପୂର୍ବପୁରୁଷ ଛାଡ଼ି ଦେଇଥିଲେ ।

ଶିକ୍ଷା :
ରାଧାନାଥ ୬ ବର୍ଷ ବୟସରେ ଗାଁ ଚାଟଶାଳୀରେ ବିଦ୍ୟାରମ୍ଭ କରିଥିଲେ । ପିଲାଟି ଦିନରୁ ସେ ମେଧାବୀ ଓ ବୁଦ୍ଧିମାନ ଥିଲେ । ତାଙ୍କୁ ପାଠକୁ ଆଦୌ ମୁଖସ୍ଥ କରିବାକୁ ପଡ଼ୁନଥିଲା । କାରଣ ତାଙ୍କର ମନେରଖୁବା ଶକ୍ତି ପ୍ରଖର ଥିଲା । ରାଧାନାଥ ପିଲାଦିନରୁ ରୁଗ୍‌ଣ ଥିଲେ । କାଶ ଓ ଶ୍ଵାସରୋଗରେ ଆକ୍ରାନ୍ତ ଥିଲେ, ଯାହା ତାଙ୍କ ପଢ଼ିବାରେ ପ୍ରତିବନ୍ଧକ ହେଉଥିଲା । ତେଣୁ ସୁନ୍ଦରନାରାୟଣ ରାଧାନାଥଙ୍କୁ ବାଲେଶ୍ଵର ନେଇ ଆସିଲେ ଏବଂ ଚିକିତ୍ସା କଲେ । ଦେହ ଭଲ ହେଲା ମାତ୍ର ଶ୍ଵାସରୋଗଟି ସାରାଜୀବନ ରହିଗଲା । ରାଧାନାଥ ୧୦ ବର୍ଷ ବୟସରେ ବାଲେଶ୍ଵର ଜିଲ୍ଲାସ୍କୁଲରେ ପ୍ରବେଶ କଲେ, ନିଜର ମେଧାବଳରେ ଶ୍ରେଣୀରେ ସର୍ବୋଚ୍ଚ ସ୍ଥାନ ଅଧିକାର କଲେ । ୧୮୬୪ ମସିହାରେ କଲିକତା ବିଶ୍ବବିଦ୍ୟାଳୟର ଏଣ୍ଟ୍ରାନ୍ସ ପରୀକ୍ଷାରେ ପାସ୍ କଲେ ଓ ପ୍ରେସିଡ଼େନ୍ସି କଲେଜରେ ପଢ଼ିବା ପାଇଁ କଲିକତା ଗଲେ । ସେତେବେଳକୁ ତାଙ୍କର ବୟସ ୧୬ ବର୍ଷ ହୋଇଥିଲା । ଅର୍ଥର ଅଭାବ ଓ ଶାରୀରିକ ଅସୁସ୍ଥତା ହେତୁ ସେଠାରୁ ସେ ଫେରିଆସିଲେ । ଶେଷରେ ରାଧାନାଥ ଦାମୋଦର ଦାସ ନାମକ ଜଣେ ଯୁବକଙ୍କୁ ଭେଟିଲେ । ତାଙ୍କର ବାଲେଶ୍ଵରର ସୁନହଟପଡ଼ାରେ ଗୋଟିଏ ଉପାଦେୟ ପାଠାଗାର ଥିଲା । ସେଠାରେ ରାଧାନାଥ ପଢ଼ିବାକୁ ଲାଗିଲେ ଏବଂ ଘରୋଇ ଛାତ୍ର ଭାବରେ ଏଫ.ଏ. ପାସ୍ କଲେ । ଏହାଛଡ଼ା ସେ ଉର୍ଦୁ, ପାର୍ଶୀ, ସଂସ୍କୃତ, ବଙ୍ଗଳା ଭାଷା ସହିତ ସଙ୍ଗୀତ ମଧ୍ଯ ଶିକ୍ଷା କରିଥିଲେ ।

ବୃତ୍ତି :
କଲିକତାରୁ ପାଠପଢ଼ା ଅଧାରୁ ଛାଡ଼ି ଆସିବା ପରେ ବାପାଙ୍କ ଉପଦେଶ ଅନୁସାରେ ଶିକ୍ଷକତା ବୃତ୍ତିକୁ ଆପଣେଇ ନେଲେ ରାଧାନାଥ । ୩୦ ଟଙ୍କା ବେତନରେ ବାଲେଶ୍ଵର ଜିଲ୍ଲାସ୍କୁଲରେ ତୃତୀୟ ଶିକ୍ଷକ ଭାବରେ ଯୋଗଦେଲେ । ସେଠାରେ ପ୍ରାୟ ୫ ବର୍ଷ କାର୍ଯ୍ୟ କଲାପରେ ପୁରୀ ଜିଲ୍ଲା ସ୍କୁଲକୁ ଦ୍ୱିତୀୟ ଶିକ୍ଷକ ଭାବରେ ବଦଳି ହେଲେ । ପୁରୀରେ ତୃତୀୟ ବର୍ଷ କାର୍ଯ୍ୟ କରୁଥିବା ସମୟରେ କଲେକ୍ଟରୀ ପରୀକ୍ଷା ସକାଶେ ଆଇନ ଅଧ୍ୟୟନ, ଜରିବ ପ୍ରଭୃତି ଶିକ୍ଷାରେ ପରିଶ୍ରମ କରିବାକୁ ପୁନଶ୍ଚ ରୋଗଗ୍ରସ୍ତ ହେଲେ । କିଛିଦିନ ପରେ ସୁସ୍ଥ ହେବାରୁ ବାଙ୍କୁଡ଼ା ଜିଲ୍ଲାସ୍କୁଲରେ ଦ୍ଵିତୀୟ ଶିକ୍ଷକ ରୂପରେ ୬ ମାସ କାର୍ଯ୍ୟ କଲେ । ତା’ପରେ ଡେପୁଟି-ଇନ୍‌ସପେକ୍ଟର ପଦରେ ନିଯୁକ୍ତି ହୋଇ ବାଲେଶ୍ବର ଆସିଲେ । ପାଞ୍ଚ ବର୍ଷ ଡେପୁଟି-ଇନ୍ସପେକ୍ଟର ରହିବା ପରେ ରାଧାନାଥ ଜଏଣ୍ଟ-ଇନ୍‌ସପେକ୍ଟର ପଦକୁ ଉନ୍ନୀତ ହେଲେ । ସେତେବେଳକୁ ତାଙ୍କର ପିତା ଆରପାରିକୁ ଚାଲିଯାଇଥିଲେ । ପରିବାରର ଦାୟିତ୍ଵ ତାଙ୍କ ଉପରେ ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ନ୍ୟସ୍ତ ଥିଲା । ୧୮୯୨ ରେ ରାଧାନାଥ ଇନ୍ସପେକ୍ଟର ପଦକୁ ଉନ୍ନୀତ ହେଲେ । ୧୮୯୬ରେ ସେ ‘ରାୟବାହାଦୂର’ ଉପାଧ୍ଧରେ ଭୂଷିତ ହେଲେ । ୧୯୦୧ରେ ସେ ପ୍ରୋଭିନ୍‌ସିଆଲ ସର୍‌ଭିସ୍ (Provincial Service) ରେ ଶୀର୍ଷସ୍ଥାନ ଅଧିକାର କଲେ ଓ ୧୯୦୩ରେ ସରକାରୀ ଚାକିରିରୁ ଅବସର ଗ୍ରହଣ କଲେ । ଏହିଭଳି ଭାବରେ ତାଙ୍କର ବୃତ୍ତି ଜୀବନ କଟିଥିଲା ।

ରାଧାନାଥଙ୍କ ସାହିତ୍ୟ ସୃଷ୍ଟି :
କବିବର ରାଧାନାଥ ରାୟ ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟର ଚର୍ଚ୍ଚିତ କବିମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ଅନ୍ୟତମ । ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟରେ ରାଧାନାଥ ଏକ ନୂତନ ମୋଡ଼ ବୁଲାଣି ଆଣିଛନ୍ତି । ତେଣୁ ତାକୁ ଯୁଗପ୍ରବର୍ତ୍ତକ ଭାବରେ ଗ୍ରହଣ କରାଯାଏ । କେହି କେହି ଓଡ଼ିଆ ଆଧୁନିକ ସାହିତ୍ୟର ଜନକ ଭାବରେ ପ୍ରତିଷ୍ଠା କରନ୍ତି ରାଧାନାଥଙ୍କୁ । ତାଙ୍କର ରଚନାବଳୀ ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟକୁ ସମୃଦ୍ଧ କରିଛି । କେବଳ ସେତିକି ନୁହେଁ ଓଡ଼ିଆ ଭାଷା ଓ ଜାତୀୟତାର ପୁନର୍ଜାଗରଣରେ ସହାୟକ ହୋଇଛି ତାଙ୍କର ଚିରନ୍ତନ ସୃଷ୍ଟି ।

ରାଧାନାଥ ଲେଖନୀ ଚାଳନା କଲାବେଳକୁ, ଓଡ଼ିଶାର ଅବସ୍ଥା ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ଭାବରେ ଏକ ସନ୍ଧିକ୍ଷଣ ଦେଇ ଗତି କରୁଥିଲା । ରାଜ-ଅତ୍ୟାଚାର, କୁଶାସନ, ବନ୍ୟା ଓ ମରୁଡ଼ି ଇତ୍ୟାଦି କାରଣଗୁଡ଼ିକ ବଳବତ୍ତର ଥିଲା । ସବୁଠାରୁ ବଡ଼ ଦୁଃଖ ଆଣି ଦେଇଥଲା ନ’ଅଙ୍କ ଦୁର୍ଭିକ୍ଷ ୧୮୬୬ରେ । ପରିଶେଷରେ କିଛି ବଙ୍ଗୀୟମାନଙ୍କ ‘ଓଡ଼ିଆ ଭାଷା ବିଲୋପ ଚକ୍ରାନ୍ତ’ ଓଡ଼ିଆମାନଙ୍କର ମେରୁଦଣ୍ଡକୁ ଦୋହଲାଇ ଦେଇଥିଲା । ତେଣୁ ଏହି ସମୟରେ ଓଡ଼ିଆ ଜାତି ଓ ଭାଷାର ଅବସ୍ଥା ଶୋଚନୀୟ ଥିଲା । ତେଣୁ ଓଡ଼ିଆ ଜାତିର ପ୍ରକୃତ ପରିଚୟକୁ ଫେରାଇ ଆଣିବାପାଇଁ ସାହିତ୍ୟ ମଧ୍ଯ ଥିଲା ଏକ ବିରାଟ ମାଧ୍ୟମ ଏବଂ ଯେଉଁ ଯୁଗପୁରୁଷଗଣ ଓଡ଼ିଆ ଜାତିର ପୁନରୁଭ୍ୟୁଦୟରେ ପ୍ରଧାନ ଭୂମିକା ଗ୍ରହଣ କଲେ, ସେମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ରାଧାନାଥ ରାୟ ହେଲେ ଅନ୍ୟତମ ପଟ୍ଟପୁରୋଧା ।

CHSE Odisha Class 11 Optional Odia Solutions Chapter 2 ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ

ରାଧାନାଥ ସାହିତ୍ୟ ରଚନା କଲାବେଳକୁ, ସାହିତ୍ୟ ତାଳପତ୍ରରେ ଆବଦ୍ଧ ନଥିଲା । ସେତେବେଳକୁ ବିଭିନ୍ନ ପତ୍ରିକା ଛପା ହେଲାଣି । ସାହିତ୍ୟର ପରିସର ବୃଦ୍ଧି ହେଲାଣି । ସେ ଥିଲେ ବହୁ ଶାସ୍ତ୍ରଦର୍ଶୀ । ବିଭିନ୍ନ ଭାଷା ତାଙ୍କୁ ଜଣାଥିଲା, ସଂସ୍କୃତଠାରୁ ଆରମ୍ଭ କରି ଇଂରାଜୀ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ସବୁ ସାହିତ୍ୟ ସେ ପଢ଼ିଥିଲେ । ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟରେ ଉନବିଂଶ ଶତାବ୍ଦୀର ଅର୍ଦ୍ଧାଧିକ କାଳ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ କାବ୍ୟଯୁଗ ଓ ସଙ୍ଗୀତଯୁଗର ପ୍ରଭାବ ଥିଲା । ମାତ୍ର ପାଶ୍ଚାତ୍ୟ ଶିକ୍ଷା, ସଭ୍ୟତା ଓ ସଂସ୍କୃତିର ସଂସର୍ଗ ଚିନ୍ତନ ପ୍ରଚଳିତ ସାହିତ୍ୟଧାରାକୁ ଏକ ନୂତନ ରୂପ ଦେଲା । ରାଧାନାଥ ସେହି ନୂତନ ଧାରାକୁ ନିଜ ସାହିତ୍ୟରେ ପ୍ରତିଫଳିତ କଲେ । ଏହି ଦୃଷ୍ଟିକୋଣରୁ ରାଧାନାଥଙ୍କୁ ‘ଯୁଗପ୍ରବର୍ତ୍ତକ’ କାବରେ ଅଭିହିତ କରାଯାଏ । ପ୍ରଧାନତଃ ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟ ଥିଲା ଦରବାରୀ ସାହିତ୍ୟ । ସେଥୁରୁ ସେ ସାହିତ୍ୟକୁ ମୁକ୍ତ କରିଛନ୍ତି ଓ ନୂତନ ରୂପ ଦେଇଛନ୍ତି । ରାଧାନାଥ ଥିଲେ ବହୁପାଠୀ । ହୋମର, ସ୍କଟ, ୱାଡ଼ସ୍ୱାର୍ଥ, ବାଇରନ୍, କୀଟସ୍, ମିଲଟନ, ସେକ୍‌ସପିଅର, ଟେନିସନ୍, ଗ୍ରୀକ୍‌କବି ଓଭିଡ଼୍ ଆଦି ପାଶ୍ଚାତ୍ୟ ସାହିତ୍ୟିକଙ୍କ ସାହିତ୍ୟ ପଢ଼ିବା ସହିତ ପ୍ରାଚ୍ୟ ସାହିତ୍ୟ ଜଗତର ବାଲ୍ମୀକି, ବ୍ୟାସ, ଭବଭୂତି, କାଳିଦାସ, ଶ୍ରୀହର୍ଷ, ମାଇକେଲ ମଧୁସୂଦନ, ପ୍ରେମଚନ୍ଦ, ଉପେନ୍ଦ୍ର ଭଞ୍ଜ ଆଦି ସ୍ରଷ୍ଟାମାନଙ୍କର ସାହିତ୍ୟକୁ ସେ ଗଭୀର ଭାବରେ ଅଧ୍ୟୟନ କରିଥିଲେ ।

ରାଧାନାଥଙ୍କ ସାହିତ୍ୟର ପ୍ରଧାନ ବିଶେଷତ୍ଵ ହେଲା, ସେ ପାଶ୍ଚାତ୍ୟ ସାହିତ୍ୟରୁ କଥାବସ୍ତୁ ଆହରଣ କରି ତାକୁ ଓଡ଼ିଶାର ଚରିତ୍ରମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ପରିବେଷଣ କରିଛନ୍ତି । ପୂର୍ବରୁ ଯେପରି କାବ୍ୟମାନଙ୍କରେ ମଙ୍ଗଳାଚରଣର ଅବତାରଣା କରାଯାଉଥିଲା ତାକୁ ସେ ଛାଡ଼ିଯାଇଛନ୍ତି । ସିଧାସଳଖ କଥାବସ୍ତୁର ଆରମ୍ଭ କରିବାପାଇଁ ଯତ୍ନଶୀଳ ହୋଇଛନ୍ତି । ଯେତେ ସମ୍ଭବ ସହଜ ଓ ସରଳ ଭାଷାରେ କାବ୍ୟ ଲେଖିବାରେ ସିଦ୍ଧହସ୍ତ ଥିଲେ ରାଧାନାଥ । ନାରୀ ଚରିତ୍ରମାନେ ଅବଳା କିମ୍ବା ଦୁର୍ବଳା ନୁହଁନ୍ତି, ସେମାନଙ୍କୁ ସେ ଏକ ସ୍ବତନ୍ତ୍ର ସ୍ଥାନର ଅଧିକାରୀଣୀ କରିଛନ୍ତି । ରାଧାନାଥଙ୍କ ସାହିତ୍ୟରେ ନାରୀ ଚରିତ୍ର ଏକ ନୂତନ ପରିଚୟ ସୃଷ୍ଟି କରନ୍ତି । ଏହାର ଉଦାହରଣରେ ଆମେ ‘ଉଷା’ଙ୍କୁ ବୀରାଙ୍ଗନା, ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ’କୁ ଅନ୍ଧାର ରାତିରେ ଏକା ଏକା ଯିବାର ସାହସ ଓ ପାର୍ବତୀର ପ୍ରତିବାଦ କରିବାର ଶକ୍ତିକୁ ଦେଖୁଥାଉ । ତାଙ୍କ କାବ୍ୟମାନଙ୍କରେ ପ୍ରକୃତିର ସୌନ୍ଦର୍ଯ୍ୟକୁ ଉପଭୋଗ କରିହୁଏ । ଉତ୍କଳର ପ୍ରକୃତିକୁ ସେ ସୁନ୍ଦରଭାବରେ ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛନ୍ତି । ମହେନ୍ଦ୍ରରୁ ମେଘାସନ ଯାଏ ସବୁ ପାହାଡ଼, ସବୁ ନଦୀ, ବଣ, ବିଭିନ୍ନ ମନ୍ଦିର ଓ ଅଧ୍ତ୍ରୀ ଦେବଦେବୀଙ୍କର ମହିମାକୁ ପ୍ରସଙ୍ଗ କ୍ରମେ ସୁନ୍ଦର ରୂପ ପ୍ରଦାନ କରିଛନ୍ତି । ପୁନଶ୍ଚ ଉତ୍କଳର ଅତୀତ କୀର୍ତ୍ତିଗୁଡ଼ିକୁ ବର୍ଣନା କରିଛନ୍ତି । ଅତୀତର ଗୌରବକୁ ବର୍ଣ୍ଣନା କରି ନବ୍ୟ ଉତ୍କଳୀୟମାନଙ୍କ ମନରେ ଜାତୀୟତାବୋଧକୁ ସେ ଜାଗ୍ରତ କରିପାରିଥିଲେ ।

ଯଥା – ‘‘ଗୋଦାବରୀଠାରୁ ଗଙ୍ଗାଯାଏ ବ୍ୟାପୀ,
କୀର୍ତିମାଳା ଯା’ର ବିରାଜେ ଅଦ୍ୟାପି ।
ଏକାମ୍ରେ କୋଣାର୍କେ ଯା କୀର୍ତି ଭାସ୍ବର
ଯୋଗ୍ୟ ପୁତ୍ର ତୁମ୍ଭେ ସେହି ଉତ୍କଳର ।’’ – (ଦରବାର)

ରାଧାନାଥ ଯେମିତି ଥିଲେ ଭାବପ୍ରବଣ ଓ ସୌନ୍ଦର୍ଯ୍ୟାନୁରାଗୀ, ସେମିତି ଥିଲେ ଜଣେ ସ୍ବାଭିମାନୀ ନାଗରିକ ଓ ବୌଦ୍ଧିକ ବ୍ୟକ୍ତି । ସେ ସେହି ସମୟର ସାଂସ୍କୃତିକ ଓ ପ୍ରଶାସନିକ ଅବସ୍ଥା ଦେଖୁ କ୍ଷୁବ୍ଧ ହେବା ସହିତ ଓଡ଼ିଆମାନଙ୍କର ମୂର୍ଖତା, ସ୍ବାର୍ଥପରତା ଓ ତୋଷାମଦ ପ୍ରକୃତି ପାଇଁ ଦୁଃଖ ପ୍ରକାଶ କରୁଥିଲେ । ତେଣୁ ନିଜର ‘ଦରବାର’ କାବ୍ୟରେ ସେ ଓଡ଼ିଆମାନଙ୍କୁ ବିଦ୍ରୁପ କରିବା ସହିତ ସଚେତନ କରାଇଛନ୍ତି ।

ତାଙ୍କର ପ୍ରତ୍ୟେକଟି କୃତିର ତାତ୍ପର୍ଯ୍ୟ ରହିଛି । ପୁନର୍ଜାଗରଣର ପ୍ରଧାନ ବିନ୍ଧାଣି ଓ ଆଧୁନିକ ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟର ସୁଯୋଗ୍ୟ ପଥପ୍ରଦର୍ଶକ ଭାବରେ ସେ ଚିରସ୍ମରଣୀୟ ।

ସୃଷ୍ଟି-ସମ୍ଭାର :
ରାଧାନାଥ ପ୍ରଥମେ ବଙ୍ଗଳା ଭାଷାରେ କବିତା ଲେଖୁଥିଲେ ଯେଉଁଗୁଡ଼ିକ ‘କବିତାବଳୀ’ ଗ୍ରନ୍ଥରେ ସଂକଳିତ । ଏହାପରେ ସେହି ସମୟର ଆବଶ୍ୟକତା ଓ ଭୂଦେବ ମୁଖୋପାଧ୍ୟାୟଙ୍କ ପରାମର୍ଶରେ ଓଡ଼ିଆରେ କାବ୍ୟକବିତା ରଚନା କଲେ । ସଂସ୍କୃତ ଭାଷାରେ ମଧ୍ୟ ରାଧାନାଥ କବିତା ଲେଖୁଥିଲେ ।
ରାଧାନାଥଙ୍କ ରଚନାବଳୀଗୁଡ଼ିକୁ ନିମ୍ନୋକ୍ତ ଭାବରେ ବିଭକ୍ତ କରାଯାଇପାରେ –
(୧) ବଙ୍ଗଳା ରଚନା :

  • କବିତାବଳୀ (୧ମ – ୧୮୬୮)
  • କବିତାବଳୀ (୨ୟ – ୧୮୭୨)
  • ଲେଖାବଳୀ – ୧୮୭୯

(୨) ଅନୁବାଦ :

  • ମେଘଦୂତ (ପୂର୍ବମେଘ, ଉତ୍ତରମେଘ) – ୧୮୭୩
  • ତୁଳସୀ ସ୍ତବକ – ୧୮୯୪
  • ଇତାଲୀୟ ଯୁବା (ଉପନ୍ୟାସ)

(୩) କାବ୍ୟ-କବିତା :

  • ଓଡ଼ିଆ କବିତାବଳୀ – (୧ମ-୧୮୭୬)
  • ଓଡ଼ିଆ କବିତାବଳୀ – (୨ୟ-୧୮୮୫)
  • କେଦାରଗୌରୀ – ୧୮୮୬
  • ଚନ୍ଦ୍ରଭାଗା – ୧୮୮୬
  • ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ – ୧୮୮୭
  • ଉଷା – ୧୮୮୮
  • ପାର୍ବତୀ – ୧୮୯୦
  • ଚିଲିକା (ଖଣ୍ଡକାବ୍ୟ) – ୧୮୯୧
  • ମହାଯାତ୍ରା – ୧୮୯୨
  • ଯଯାତିକେଶରୀ – (୧୮୯୪-୯୫)
  • ଉର୍ବଶୀ – (୧୮୯୫)
  • ଦରବାର – (୧୮୯୪-୯୭)
  • ଦଶରଥ ବିୟୋଗ
  • ସାବିତ୍ରୀ ଚରିତ୍ର
  • ମହେନ୍ଦ୍ରଗିରି

(୪) ଗଦ୍ୟରଚନା :

  • ବିବେକୀ
  • ଅପରିପକ୍ବତା
  • ବୋଝ ବୋହିବା
  • ଇତାଲୀୟ ଯୁବ
  • ‘ଉର୍ବଶୀ’ କାବ୍ୟର ଉପସଂହାର
  • ଭ୍ରମଣକାରୀର ପତ୍ର
  • ବାମଣ୍ଡା
  • ଲହଡ଼ା ଏବଂ କେନ୍ଦୁଝର
  • ସାର୍ ରାଜା ବାସୁଦେବ ସୁଢ଼ଳଦେବ
  • ଉତ୍କଳ ସାହିତ୍ୟର ଉନ୍ନତି
  • ପାର୍ବତୀ କାବ୍ୟର ଉପସଂହାର
  • ସାର୍ ବାସୁଦେବ ସୁଢ଼ଳଦେବଙ୍କ ବିୟୋଗରେ ରାଧାନାଥଙ୍କ ଶୋକ ‘ଇତ୍ୟାଦି’

(୫) ସଂସ୍କୃତ ରଚନା :

  • ଭାରତ ଗୀତିକା
  • ଧବଳେଶ୍ଵର ସ୍ତୋତ୍ରମ୍
  • ଶ୍ରୀ କାଳିକା ସ୍ତୁତି

(୬) ପାଠ୍ୟପୁସ୍ତକ :

  • ବ୍ୟାକରଣ ପ୍ରବେଶ
  • ବ୍ୟାକରଣ ପରିଚୟ
  • ପଣକିଆ ବୋଧନୀ

(୭) ଅନ୍ୟାନ୍ୟ କେତେକ କୃତି :

  • ବାଣହରଣ
  • ଶ୍ମଶାନ ଦୃଶ୍ୟ
  • ଦୁର୍ଯ୍ୟୋଧନଙ୍କର ରକ୍ତନଦୀ ସନ୍ତରଣ
  • ସତୀପ୍ରତି ସତୀଦ୍ରୋହୀ ପତିର ଉକ୍ତି
  • ପ୍ରତାପରୁଦ୍ରଦେବ
  • ଯୁଧ୍ର ପ୍ରତି ବ୍ୟାସ
  • ସତ୍ୟବାଦୀ
  • ପୁଲବାଣୀ

କାବ୍ୟର ସାରକଥା :
ରାଧାନାଥ ରାୟଙ୍କର ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ କାବ୍ୟଟି ୧୮୮୭ ମସିହାରେ ପ୍ରକାଶିତ ହୁଏ । ସୋମବଂଶୀ ରାଜତ୍ଵ ପରେ ଓଡ଼ିଶାରେ ଗଙ୍ଗବଂଶ ରାଜତ୍ଵର ପ୍ରତିଷ୍ଠା କିପରି ହେଲା, ତାହା ଏହି କାବ୍ୟରେ ବର୍ଣ୍ଣନା କରାଯାଇଛି । ଉତ୍କଳ ଓ ଗଙ୍ଗ ବାହିନୀର ସମରସଜ୍ଜା ବର୍ଣ୍ଣନାରୁ ‘ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ’ କାବ୍ୟର କଥାବସ୍ତୁ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଛି । ଦାକ୍ଷିଣାତ୍ୟର ଚୋଳଗଙ୍ଗ ଦେବ ସେନାବାହିନୀ ଧରି ଉତ୍କଳର ରାଜଧାନୀ କଟକ ନିକଟରେ ପହଞ୍ଚିଛନ୍ତି । କଟକର ଦକ୍ଷିଣ ପାର୍ଶ୍ଵସ୍ଥ କାଠଯୋଡ଼ି ନଦୀର ଅପରପାର୍ଶ୍ବରେ ସେ ଶିବିର ସ୍ଥାପନ କରିଛନ୍ତି । ସେତେବେଳେ ଉତ୍କଳର ନରପତି ଥିଲେ ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀ । ରାଜା ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବ ଦେବୀ ଗଙ୍ଗାଙ୍କଠାରୁ ବରପ୍ରାପ୍ତ ହୋଇ ଶାକ୍ତଧର୍ମକୁ ବିଲୋପ କରି ବୈଷ୍ଣବ ଧର୍ମର ପ୍ରତିଷ୍ଠା ପାଇଁ ଉତ୍କଳ ଆକ୍ରମଣ କରିଛନ୍ତି । ଉତ୍କଳ ବାହିନୀ ମଧ୍ୟ ଶତ୍ରୁମାନଙ୍କର ମୁକାବିଲା କରିଛନ୍ତି । ଓଡ଼ିଶାର ବିଭିନ୍ନ ଅଞ୍ଚଳରୁ ସୈନ୍ୟମାନେ ଆସି ସମ୍ମୁଖ ଯୁଦ୍ଧରେ ଯୋଗ ଦେଇଛନ୍ତି । ମାତ୍ର ପରାକ୍ରମୀ ଗଙ୍ଗବାହିନୀ ନିକଟରେ ଉତ୍କଳ ଅଧ୍ଵରଙ୍କର ସେନାବାହିନୀ ଓ ସମସ୍ତ ଯୁଦ୍ଧକୌଶଳ ହାରମାନିଛି । ରାଜା ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀ ଉପାୟଶୂନ୍ୟ ହୋଇ ଗଡ଼ଚଣ୍ଡିଙ୍କ ନିକଟରେ ଅଧ୍ୟା ପଡ଼ିଛନ୍ତି । ଦେବୀ ରାଜାଙ୍କୁ ଗଡ଼ଦ୍ଵାର ରୁଦ୍ଧ କରିବାପାଇଁ ଆଦେଶ ଦେଇଛନ୍ତି । ପୁନଶ୍ଚ ଜୈତ୍ରମଣିଟିଏ ପ୍ରଦାନ କରିଛନ୍ତି । ଏହି ମଣି ଯେତେ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ରାଜାଙ୍କ ପାଖରେ ଥ‌ିବା ଶତ୍ରୁ କୌଣସି କ୍ଷତି କରିପାରିବ ନାହିଁ । ରାଜା ଏହି ମଣିକୁ ଧାରଣ କରି ଗଡ଼ ମଧ୍ଯରେ ନିରାପଦରେ ଅବସ୍ଥାନ କଲେ ।

ଶତ ଚେଷ୍ଟାପରେ ମଧ୍ୟ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବ ଉତ୍କଳର ରାଜାଙ୍କୁ ହରାଇ ପାରିନାହାନ୍ତି କମ୍ବା ଗଡ଼କୁ ଭେଦକରି ପାରନାହାନ୍ତି । ତେଣୁ ସେ ଉତ୍କଳ ବିଜୟ ଆଶା ମନରୁ ତୁଟାଇ ଦେଇଛନ୍ତି । ସୈନ୍ୟଗଣ ସ୍ବଦେଶ ଫେରିଯିବା ପାଇଁ ବ୍ୟସ୍ତ ହୋଇଯାଇଛନ୍ତି । ରାଜା ସେମାନଙ୍କୁ ପ୍ରଭାତି ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଅପେକ୍ଷା କରିବାକୁ ଆଦେଶ ଦେଇଛନ୍ତି । ସେହି ରାତ୍ରରେ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗ କାଠଯୋଡ଼ିର ଅପର ପାର୍ଶ୍ଵରେ ଜଙ୍ଗଲ ମଧ୍ୟରେ ଇଷ୍ଟଦେବୀ ଗଙ୍ଗାଙ୍କୁ ମଧ୍ୟ ଦର୍ଶନ କରିଛନ୍ତି । ଗଙ୍ଗା ମଧ୍ଯ ସକାଳ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଅପେକ୍ଷା କରିବାପାଇଁ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କୁ କହିଛନ୍ତି ।

ଏପଟେ ଶତ୍ରୁଶିବିରର ସ୍ୱରାଜ୍ୟ ପ୍ରତ୍ୟାବର୍ତ୍ତନ ଖବର ଗୁପ୍ତଚର ଆଣି ଗଡ଼ ମଧ୍ଯରେ ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀଙ୍କ ପାଖରେ ପ୍ରକାଶ କରିଛନ୍ତି । ତେଣୁ ଗଡ଼ବାସୀମାନେ ଆନନ୍ଦ ଉଲ୍ଲାସରେ ମାତିଯାଇଛନ୍ତି । ଗଡ଼ଚଣ୍ଡିଙ୍କ ମନ୍ଦିରରେ ମହାସମାରୋହରେ ପୂଜାର ଆୟୋଜନ କରାଯାଇଛି । ସାରା ପୁରର ନରନାରୀମାନେ ନୃତ୍ୟଗୀତ ଓ ବାଦ୍ୟ ମଧ୍ୟରେ ଆନନ୍ଦିତ ହୋଇଛନ୍ତି । ଏତେ ଆନନ୍ଦ ମଧ୍ୟରେ ରାଜନଗରରେ ଜଣେ ମାତ୍ର ଖୁସି ହୋଇପାରୁ ନାହାନ୍ତି, ସେହେଲେ ସୁବର୍ଣ୍ଣ କେଶରୀଙ୍କ ଏକମାତ୍ର କନ୍ୟା ରାଜନନ୍ଦିନୀ ନନ୍ଦିକା । ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବଙ୍କୁ ନନ୍ଦିକା ପ୍ରେମ କରୁଥିଲେ । ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗ ମଧ୍ୟ ନନ୍ଦିକାଙ୍କୁ ବିବାହ କରିବାପାଇଁ ମନ୍ତ୍ରୀ ବାସୁଦେବ ରଥଙ୍କଦ୍ୱାରା ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀଙ୍କ ପାଖକୁ ପ୍ରସ୍ତାବ ପଠାଇଥିଲେ । ହେଲେ, ସେ ନିଜ ଶତ୍ରୁକୁ କନ୍ୟାଦାନ କରିବେ ନାହିଁ ବୋଲି ମନା କରିଥିଲେ । ମାତ୍ର ନନ୍ଦିକା ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କ ରୂପରେ ପାଗଳିନୀ ହୋଇପଡ଼ିଥିଲେ । ରାଜନନ୍ଦିନୀ ଉତ୍ସବ ଶେଷରେ ଅନ୍ତଃପୁରକୁ ଫେରିଛନ୍ତି । ହେଲେ ତାଙ୍କ ମନରେ ପ୍ରାୟପ୍ରିୟ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କ ଭାବନା ଆହୁରି ଦୃଢ଼ୀଭୂତ ହୋଇଛି । ନଗରରେ ସମସ୍ତେ ଶୋଇଗଲା ପରେ ମଧ୍ୟ ସେ ଶୋଇ ପାରିନାହାନ୍ତି । ନିଜର ପିତାଙ୍କୁ ମଧ୍ୟ ମନେମନେ ତିରସ୍କାର କରିଛନ୍ତି । ତାଙ୍କ ଆଖ୍ ସାମନାରେ ନାଚିଯାଇଛି ସୁଭଦ୍ରାଙ୍କର ପ୍ରତିଛବି । କିପରି ସୁଭଦ୍ରା ନିଜ ବଂଶ ମର୍ଯ୍ୟାଦାକୁ ଭୁଲିଯାଇ ପ୍ରାଣପ୍ରିୟ ଅର୍ଜୁନଙ୍କ ସାଙ୍ଗରେ ଚାଲିଯାଇଥିଲେ ପ୍ରେମର ଜଗତକୁ । ପରିଶେଷରେ ସେ ନିଜକୁ ଆୟତ୍ତରେ ରଖ୍ଯାରି ନାହାନ୍ତି ।

ସେ ମଧ୍ୟ ସୁଭଦ୍ରାଙ୍କ ପଦାଙ୍କ ଅନୁସରଣ କରିଛନ୍ତି । ପ୍ରେମର ଜଗତରେ ଏକ ନୂଆ ଆଦର୍ଶ ସୃଷ୍ଟି କରିବାପାଇଁ ଚେଷ୍ଟା କରିଛନ୍ତି । ନିସ୍ତବ୍ଧ ରାତ୍ରିରେ ସେ ନିଜ ପିତାଙ୍କର ଅମୋଘ ଅସ୍ତ୍ର ସେହି ଚୈତ୍ରମଣିକୁ ହସ୍ତଗତ କରି ପ୍ରାଣପ୍ରିୟ ପୁରୁଷ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବଙ୍କ ଶିବରରେ ପ୍ରବେଶ ହୋଇଛନ୍ତି । ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବଙ୍କ ସମ୍ମୁଖରେ ଉଭାହୋଇଛନ୍ତି ଉତ୍କଳର ରାଜନନ୍ଦିନୀ ନନ୍ଦିକା । ନିଜର ପରିଚୟ ଦେଇ ସେହି ଜୈତ୍ରମଣିଟିକୁ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବଙ୍କ ପାଦତଳେ ଥୋଇଦେଇଛନ୍ତି ଓ ପ୍ରତିଦାନରେ ସ୍ଵପ୍ରେମର ନିବିଡ଼ତା ଦର୍ଶାଇ ପ୍ରେମର ସହକାରେ ତାଙ୍କୁ ଗ୍ରହଣ କରିବାକୁ ନିବେଦନ କରିଛନ୍ତି । ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବ ଆଶ୍ଚର୍ଯ୍ୟଚକିତ ହୋଇଯାଇଛନ୍ତି । ମାତ୍ର ନନ୍ଦିକା ଯେଉଁ ଆଶା ଭରଷା ନେଇ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବଙ୍କ ପାଖକୁ ଯାଇଥିଲେ, ତା’ର ଫଳ ଓଲଟା ହେଲା । ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବ ତାଙ୍କୁ ଗ୍ରହଣ କରିବା ବଦଳରେ ଭର୍ସନା କରିଛନ୍ତି । ସେ ନନ୍ଦିକାଙ୍କୁ ଦେଶଦ୍ରୋହୀ, ରାଜଦ୍ରୋହୀ ଓ ପିତୃ ଦ୍ରୋହୀ ଏଭଳି ତିନୋଟି ମହାପାପର ଭାଗିନୀ କହି ସ୍ଵାକ୍କାର କରିଛନ୍ତି । ନନ୍ଦିକା ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଙ୍କର ଏହି ବ୍ୟବହାରରେ ମର୍ମାହତ ହୋଇଛନ୍ତି । ସମଗ୍ର ଦୁନିଆ ତାଙ୍କୁ ଅନ୍ଧକାରମୟ ଦେଖାଯାଇଛି । ନିଜେ ନିଜର ଭୁଲ୍ ବୁଝିପାରି ଅନୁତାପ ଅଗ୍ନିରେ ଜଳିଯାଇଛନ୍ତି ।

CHSE Odisha Class 11 Optional Odia Solutions Chapter 2 ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ

ଏଣେ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବ ମନ୍ତ୍ରୀଙ୍କଦ୍ଵାରା ଏକ ସୁନ୍ଦର ଶିବିକାରେ ଜୈତ୍ରମଣି ସହ ନନ୍ଦିକାକୁ ବିଡ଼ାନାସୀ ଗଡ଼କୁ ପଠାଇ ଦେଇଛନ୍ତି । ପ୍ରଭାତ ହୋଇଆସୁଥିଲା । ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀ ଦୂତ ମୁଖରୁ ସମସ୍ତ କଥା ଶୁଣି ବିଷାଦଗ୍ରସ୍ତ ହୋଇପଡ଼ିଛନ୍ତି । ସମ୍ରାଟ ସୁବର୍ଷକେଶରୀ ସଖୀମାନଙ୍କୁ ଯଥାଶୀଘ୍ର ଶିବିକାରୁ କନ୍ୟାକୁ ଆଣିବାପାଇଁ ଆଦେଶ ଦେଇଛନ୍ତି । ମାତ୍ର ସେତେବେଳକୁ ସବୁ ଶେଷ ହୋଇସାରିଛି । ନନ୍ଦିକା ପିତାଙ୍କ ନାମରେ ଚିଠିଟିଏ ଲେଖୁ ଆତ୍ମହତ୍ୟା କରିଛନ୍ତି ।

ଚିଠିଟିକୁ ପାଠ କରିସାରି ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀ ମର୍ମାହତ ହୋଇପଡ଼ିଲେ । ନନ୍ଦିକାର ଅନୁରୋଧ କ୍ରମେ ବିଜନ ପଠାରେ ତା’ର ଶେଷକୃତ୍ୟ ସମାପନ କରି ସେଠାରେ ମନ୍ଦିରଟିଏ ନିର୍ମାଣ କରାଇଲେ । ତତ୍‌ପରେ ଜୌତ୍ରମଣିଟିକୁ ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବଙ୍କୁ ପ୍ରଦାନ କରିବା ସହ ସାମ୍ରାଜ୍ୟ ମଧ୍ୟ ପ୍ରଦାନ କରିଛନ୍ତି ଓ ମହାନଦୀ କୂଳରେ ସନ୍ନ୍ୟାସୀ ଜୀବନ ଅତିବାହିତ କରିଛନ୍ତି । ନନ୍ଦିକା ସମାଧ୍ ଉପରେ ନିର୍ମିତ ହୋଇଥିବା ମନ୍ଦିର ପଠାର ନାମ ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ ଭାବରେ ନାମିତ ହୋଇଛି ଏବଂ ମହାନଦୀ କୂଳରେ ରାଜା ସନ୍ନ୍ୟାସୀ ଜୀବନ କଟାଇଥବା ସ୍ଥାନଟି ଏବେ ସୁବର୍ଣ୍ଣପୁର ନାମରେ ପରିଚିତ । ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗ ଦେବ ଉତ୍କଳର ସମ୍ରାଟ ହୋଇଛନ୍ତି ଓ ସେହି ଚୈତ୍ରମଣିକୁ ନୀଳାଚଳ ନାଥ ଜଗନ୍ନାଥଙ୍କ ନିକଟକୁ ପଠାଇ ଦେଇଛନ୍ତି । ଏହାହିଁ ହେଉଛି ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ କାବ୍ୟର ସଂକ୍ଷିପ୍ତ କଥାବସ୍ତୁ ।

ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ କାବ୍ୟର ସିଦ୍ଧାନ୍ତ :
ରାଧାନାଥ ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ କାବ୍ୟ ପାଇଁ ଯେଉଁ କଥାବସ୍ତୁ ଗ୍ରହଣ କରିଛନ୍ତି, ତାହା ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣଭାବରେ କଳ୍ପନାପ୍ରସୂତ ନୁହେଁ । ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ କାବ୍ୟରେ ଯେଉଁ ଚରିତ୍ରମାନଙ୍କର ଚିତ୍ରଣ କରାଯାଛି ଯଥା – ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗଦେବ, ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀ ଓ ବାସୁଦେବ ରଥ ଇତ୍ୟାଦି ଓଡ଼ିଶାର ଇତିହାସରେ କେଶରୀ ବଂଶର ପତନ ଓ ଗଙ୍ଗବଂଶର ଆରମ୍ଭ ସମୟର ଚରିତ୍ର । ଏମାନଙ୍କୁ ମାଦଳାପାଞ୍ଜି ସମେତ ଇତିହାସ ଗ୍ରନ୍ଥ ମଧ୍ୟରେ ସ୍ୱୀକାର କରନ୍ତି । ମାତ୍ର କାବ୍ୟନାୟିକା ନନ୍ଦିକା ଚରିତ୍ରଟି ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ଭାବରେ କଳ୍ପନିକ ।

ଓଭିଡ଼ଙ୍କ ‘ମେଟାମରଫୋସିସ୍’ର କାବ୍ୟମାଳାର ଅଷ୍ଟମ ଆଖ୍ୟାୟିକା ‘King Minus and Scylla’ ଓ ବାଇରନ୍‌ଙ୍କ ‘Siege of Corinth’ରୁ କଥାବସ୍ତୁ ଓ ବର୍ଣ୍ଣନାଶୈଳୀକୁ ଆହରଣ କରି ଓଡ଼ିଶା ଇତିହାସର ଚରିତ୍ରମାନଙ୍କ ଉପରେ ଆରୋପିତ କରିଛନ୍ତି । ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ କାବ୍ୟର ମୂଳ ଉତ୍ସ ଓଭିଡ଼ଙ୍କ ‘ମେଟାମରଫୋସିସ୍’ରୁ ଆଣିଛନ୍ତି ଏବଂ କାବ୍ୟନାୟିକା ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ ଆତ୍ମହତ୍ୟା ଘଟଣା ପାଇଁ କବି ବାଇରଙ୍କୁ ଅନୁସରଣ କରିଛନ୍ତି । ଏହି ଦୁଇଟି ବିଦେଶୀ ରଚନାରୁ କଥା ମୂଳକୁ ଆହରଣ କରି କବି ତାକୁ ଓଡ଼ିଶା ଇତିହାରେ ସମୀକରଣ କରିଛନ୍ତି । ମଦଳାପାଞ୍ଜିର ବାସୁଦେବ ରଥ କାହାଣୀ ଓ କଟକର ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ ପଠା କାବ୍ୟର କାହାଣୀକୁ ଆହୁରି ଚମତ୍କାର କରିଛି । ମାଦଳା ପାଞ୍ଜିର ଚୋଡ଼ଗଙ୍ଗ ଦେବ ଓ ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀଙ୍କ ଭିତ୍ତିଭୂମି ଉପରେ ସେ ମିନ୍ସ ଓ ନିମସ୍ତଙ୍କ ଆରୋପ କରିଛନ୍ତି । ଗ୍ରୀକ୍ କାହାଣୀର ରାଜକୁମାରୀ ସିଲା ପରିବର୍ତ୍ତିତ ହୋଇଛି ରାଜକୁମାରୀ ନନ୍ଦିକା
ଭାବରେ ।

ପରିଶେଷରେ ଏତିକି କୁହାଯାଇପାରେ, ରାଧାନାଥଙ୍କ ପ୍ରତ୍ୟେକ ସାହିତ୍ୟସୃଷ୍ଟି ପ୍ରାଚ୍ୟ ଓ ପାଶ୍ଚାତ୍ୟଧାରାର ଏକ ସମୀକରଣ ଏବଂ ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ ଏହି ମିଶ୍ରଧାରାର ସ୍ଵତନ୍ତ୍ର ସୃଷ୍ଟି ।

ଉପନ୍ୟାସର ସଂଜ୍ଞା ଓ ସ୍ବରୂପ

ସାହିତ୍ୟ ଚିର ପ୍ରବହମାନ । ଏହି ସ୍ରୋତରେ ସମୟକ୍ରମେ କେତେ କେତେ ନବ ତରଙ୍ଗମାନ ସୃଷ୍ଟି ହୋଇଛି । ଏହି ତରଙ୍ଗ ସାହିତ୍ୟ ପ୍ରବାହଧାରାକୁ ଯେମିତି ପ୍ରଭାବିତ କରିଛି ସେମିତି କରିଛି ବୈଚିତ୍ରମୟ । ଏହି ତରଙ୍ଗମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ଉପନ୍ୟାସ ଅନ୍ୟତମ । ସାହିତ୍ୟର ଚିତ୍ରିତ କଳେବର ମଧ୍ୟରେ ଏକ ବୈଚିତ୍ରପୂର୍ଣ୍ଣ ମନନଶୀଳ ଗଦ୍ୟାତ୍ମକ କଳା ହିଁ ଉପନ୍ୟାସ । ଏହା ମାନବ ଜୀବନର ତଥା ସମାଜର ଏକ ବାସ୍ତବ ଅନୁକୃତି । ଜୀବନାନୁଭୂତିର ରସାଳ ଆଲେଖ୍ୟ ଓ ଯୁଗଯନ୍ତ୍ରଣାର ରୂପ ଏଥିରେ ଅଭିବ୍ୟଞ୍ଜିତ । କଥା ସାହିତ୍ୟର ଏହି ଅନନ୍ୟ ଗଦ୍ୟଶିଳ୍ପ ବିଭାଗଟି ପାଠକଙ୍କୁ ନିଜ ପ୍ରତି ଖୁବ୍ ଆକର୍ଷିତ କରାଇ ପାରିଛି । ସମୟକ୍ରମେ ବିଭିନ୍ନ ସ୍ତରରେ କଥା ସାହିତ୍ୟର ରୂପାନ୍ତର ଘଟିଛି । ଆଧୁନିକ କାଳଖଣ୍ଡରେ ପାଶ୍ଚାତ୍ୟ ସାହିତ୍ୟର ପ୍ରଭାବରେ ଉପନ୍ୟାସ ଏକ ନୂତନ ଗଦ୍ୟଶିଳ୍ପ ଭାବରେ ଏହି ରୂପାନ୍ତରର ଏକ ବଳିଷ୍ଠ ଉଦାହରଣ କହିଲେ ଅତ୍ୟୁକ୍ତି ହେବ ନାହିଁ । ତେବେ ଏହି ଉପନ୍ୟାସର ସଂଜ୍ଞା ସମ୍ପର୍କରେ ନାନା ମୁନି ନାନା ମତ ନ୍ୟାୟରେ ବହୁ ସମାଲୋଚକ ନିଜ ନିଜ ମତ ପ୍ରଦାନ କରିଛନ୍ତି ।

ପାଶ୍ଚାତ୍ୟ ସମାଲୋଚକମାନଙ୍କଠାରୁ ପ୍ରାଚ୍ୟ ସମାଲୋଚକମାନଙ୍କ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ‘ଉପନ୍ୟାସ’ର ସଂଜ୍ଞା ନିର୍ଦ୍ଧାରଣ କରିବାରେ ପ୍ରୟାସ କରିଛନ୍ତି । ତେବେ ଉପନ୍ୟାସର ଏକ ନିର୍ଦ୍ଦିଷ୍ଟ ସ୍ଵୟଂସମ୍ପୂର୍ଣ ସଂଜ୍ଞା ନିଶ୍ଚିତ ହୋଇପାରି ନାହିଁ । ତେବେ ଏହି ‘ଉପନ୍ୟାସ’ର ବ୍ୟୁତ୍ପତ୍ତିଗତ ଅର୍ଥ ହେଉଛି – ‘ଉପ + ନି + ଅସ୍ + ଘଞ୍ଚ୍’ । ଏହାର ଅର୍ଥ ପାଖକୁ ଆଣିବା ତେଣୁ କୌଣସି ଅର୍ଥ ବା ଅଭିପ୍ରାୟକୁ ପାଖକୁ ଆଣି ବର୍ଣ୍ଣନା କରିବା ହିଁ ଉପନ୍ୟାସ । ନାଟ୍ୟଶାସ୍ତ୍ରର ପ୍ରଣେତା ଭରତମୁନିଙ୍କଠାରୁ ଆରମ୍ଭ କରି ସଂସ୍କୃତ ସାହିତ୍ୟ ପରମ୍ପରାନୁମୋଦିତ ଅନ୍ୟାନ୍ୟ ଆଚାର୍ଯ୍ୟମାନଙ୍କଦ୍ୱାରା ଉପନ୍ୟାସ ବିଭିନ୍ନ ଅର୍ଥରେ ପ୍ରଯୁକ୍ତ ହୋଇଥିଲେ ହେଁ, ଯୁକ୍ତିଯୁକ୍ତ ଭାବରେ ଉପସ୍ଥାପିତ ତଥା ପାଠକକୁ ଆମୋଦିତ କରୁଥ‌ିବା ରଚନା ଉପନ୍ୟାସ ଭାବରେ ଗୃହୀତ ହୋଇଆସୁଛି ।

ଇଂରାଜୀ ‘NOVEL’ (ନଭେଲ୍) ଶବ୍ଦକୁ ଓଡ଼ିଆରେ ଉପନ୍ୟାସ ଭାବରେ ଗ୍ରହଣ କରାଯାଇଛି । ତେବେ ଏହି ନଭେଲ୍ ସମ୍ପର୍କରେ Huttonଙ୍କ ମତ ହେଉଛି – ‘‘A novel is a work of fiction containing a good story and well-drawn character.” ଅର୍ଥାତ୍ ‘‘ଉପନ୍ୟାସ ଯଥାର୍ଥତଃ ଏକ ସୁନ୍ଦର କାହାଣୀ ଓ ସୁନ୍ଦର ଚରିତ୍ର ଚିତ୍ରଣର ଚିତ୍ରଶାଳା ।’’

ଗୋଟିଏ କଳ୍ପିତ ବା ସତ୍ୟ ଘଟଣାକୁ ବାସ୍ତବତାର ସ୍ପର୍ଶ ଦେଇ ନିଜସ୍ବ ଶୈଳୀ ଓ ଭାଷା ପ୍ରୟୋଗ ମାଧ୍ୟମରେ କଳାତ୍ମକ ଭାବରେ ପରିପ୍ରକାଶ ହେଲେ ତାହା ଉପନ୍ୟାସ ହୋଇଥାଏ । ଏହା ଏକ କର୍ମବିବର୍ତ୍ତନଶୀଳ ସାରସ୍ଵତ କଳା । କାହା ମତରେ ଏହା ଜୀବନର ଗୋପନ ଅଂଶକୁ ପାଠକ ପାଖରେ ଚିତ୍ର ଧର୍ମତାନୁସାରେ ତୋଳିଧରେ । ହିନ୍ଦୀ ସାହିତ୍ୟର ପ୍ରଖ୍ୟାତ କଥାକାର ତଥା ଔପନ୍ୟାସିକ ପ୍ରେମଚାନ୍ଦ ଉପନ୍ୟାସ ସମ୍ପର୍କରେ ଉଲ୍ଲେଖ କରିଛନ୍ତି ଯେ ‘‘ଯେ ଉପନ୍ୟାସ ମାନବଜୀବନକା ଚିତ୍ରମାତ୍ର ସମଝତା ହୁଁ । ମାନବ ଚରିତ୍ରତାର ପ୍ରକାଶ ଡାଇନା ଔର ଉସ୍କୋ ରହସ୍ୟାକା ଖୋନା ହି ଉପନ୍ୟାସକ୍ରା ମୂଲ୍ ତତ୍ତ୍ଵ ହୈ I’’

ତେବେ ଉପନ୍ୟାସର ସଂଜ୍ଞା ଦେବାକୁ ଯାଇ ସମାଲୋଚନା କ୍ଷେତ୍ରରେ ଏପରି ଅନେକ ସଂଜ୍ଞା ଉପନ୍ୟାସ ନିମନ୍ତେ ନିର୍ଦ୍ଧାରିତ ହୋଇ ରହିଛି । ତେବେ ଆଜି ଉପନ୍ୟାସର ସଂଜ୍ଞା ଯାହା ହେଉନା କାହିଁକି ଏହା ଯେ କେବଳ କଳ୍ପନାର ନ୍ୟାସ ନୁହେଁ, ଅଧୂକନ୍ତୁ ବାସ୍ତବତାର ନ୍ୟାସ, ଏହା ସର୍ବଜନସ୍ଵୀକୃତ । କୌଣସି ଗଳ୍ପକୁ ଦୀର୍ଘ କରିଦେଲେ ତାହା ଉପନ୍ୟାସ ହୋଇଯିବ ନାହିଁ । ଠିକ୍ ସେମିତି କୌଣସି ଉପନ୍ୟାସକୁ ମଧ୍ଯ କ୍ଷୁଦ୍ର କରିଦେଲେ ତାହା ଗଳ୍ପ ହୋଇଯିବ ନାହିଁ ।

ସୁତରାଂ ଉପନ୍ୟାସ ସାହିତ୍ୟର ଏକ ସ୍ଵତନ୍ତ୍ର କଳା । ସାହିତ୍ୟର ଅନ୍ୟ କିଛି ବିଭାଗ ପରି ଏହା ହୁଏତ ରୀତିସିଦ୍ଧ, ନୀତିଧର୍ମୀ ବା ଶିକ୍ଷାପ୍ରଦ ନହୋଇପାରେ; ମାତ୍ର ଏହା ଆନନ୍ଦପ୍ରଦାୟକ ଏବଂ ଅନୁଭୂତିବ୍ୟଞ୍ଜକ ଆବେଗଧର୍ମୀ କଳା । ବିଭିନ୍ନ ଉପାଦାନ ସମନ୍ବୟରେ ଏହି ସାରସ୍ଵତ ଶିଳ୍ପକଳାର ବୈଶିଷ୍ଟ୍ୟ ଲକ୍ଷଣୀୟ ଏବଂ ଏହା ମଧ୍ୟ ଏକ ମିଶ୍ର କଳା । ନାଟକ, କ୍ଷୁଦ୍ରଗଳ୍ପ, ପ୍ରବନ୍ଧ, କାବ୍ୟକବିତା ଇତ୍ୟାଦି ସାହିତ୍ୟିକ କଳାକର୍ମଠାରୁ କେତେକ ଉପାଦାନ ଗ୍ରହଣ କରି ଉପନ୍ୟାସ ହୋଇଥାଏ ବର୍ଲିଳ । ଉପନ୍ୟାସ ସହିତ କ୍ଷୁଦ୍ରଗଳ୍ପ, କାବ୍ୟ, ନାଟକରେ ଥିବା ସାମ୍ୟ ଓ ବୈଷମ୍ୟରୁ ଉପନ୍ୟାସର ସ୍ଵରୂପ ସମ୍ପର୍କୀୟ ଧାରଣା ଅଧିକ ପ୍ରକାଶିତ ହୋଇଥାଏ । ଏଥୁରୁ ସ୍ପଷ୍ଟ ପ୍ରତିପାଦିତ ହୁଏ ଯେ, ଉପନ୍ୟାସ ଏକ ସାହିତ୍ୟିକ କଳା ଭାବରେ ନିତ୍ୟ ନୂତନତାର ଦ୍ୟୋତକ ।

ଉପନ୍ୟାସର ସଂଜ୍ଞାକୁ ନେଇ କେତେକ ପାଶ୍ଚାତ୍ୟ ମତକୁ ନିମ୍ନରେ ଉପସ୍ଥାପନ କରାଯାଇଛି ।
Oxford Junior Encyclopaedia 16 “The novel is a long prose story that is largely imaginary.” ଅର୍ଥାତ୍ ଉପନ୍ୟାସ ହେଉଛି ଗଦ୍ୟରେ ଲିଖ୍ତ ଏକ ଦୀର୍ଘ କଳ୍ପନାପ୍ରସୂତ ଗଳ୍ପ ।

ସେହିପରି ସମାଲୋଚକ Henry Jamesଙ୍କ ମତରେ – “A novel is in its broadest definition a personal, a direct impression of life.” ଅର୍ଥାତ୍ ଉପନ୍ୟାସ ବ୍ୟକ୍ତିଗତ ଓ ପ୍ରତ୍ୟକ୍ଷ ଜୀବନର ନିଚ୍ଛକ ପ୍ରତିଛବି ।

Huttonଙ୍କ ମତରେ ଉପନ୍ୟାସ ଯଥାର୍ଥତଃ ଏକ କାହାଣୀ ଯେଉଁଥରେ ସୁନ୍ଦର ଚିତ୍ରିତ ଚରିତ୍ରର ସମନ୍ଵୟ ହୋଇଥାଏ । ତାଙ୍କ ଭାଷାରେ “A novel is a work of fiction containing a good story and well-drawn character.”

H.G. Wells 16 – A novel is a kind of luckybag into which anything may be poured.’ ଅର୍ଥାତ୍ ଉପନ୍ୟାସ ଏପରି ଏକ ସୌଭାଗ୍ୟ ମୁଣା ବା ଥଳି, ଯାହା ଭିତରେ ଯେକୌଣସି ଦ୍ରବ୍ୟ ରଖାଯାଇପାରେ ।

N. Elizabeth ତାଙ୍କ ଭାଷାରେ ମତ ଦେଇ ‘The Novel and the Society’ ଗ୍ରନ୍ଥରେ ଉଲ୍ଲେଖ କରିଛନ୍ତି – “The novel may be defined as a prose form which recreates life in time or space or in the two elements together.” ଅର୍ଥାତ୍ ଉପନ୍ୟାସ ସ୍ଥାନ ବା କାଳ ବା ଉଭୟର ସମନ୍ୱୟରେ ଗଠିତ ଏକ ଗଦ୍ୟଶିଳ୍ପ ଭାବରେ ଗୃହୀତ ହୋଇପାରେ, ଯେଉଁଥ‌ିରେ ଜୀବନକୁ ନୂତନ ଢଙ୍ଗରେ ତିଆରି କରାଯାଇପାରିବ ।

ଉପନ୍ୟାସର କଳା ସମ୍ପର୍କରେ ‘କଲିନ୍ ଉଇଲସନ୍’ (Colin Wilson) ତାଙ୍କ ‘The Craft of the Novel’ ଗ୍ରନ୍ଥରେ ଉଲ୍ଲେଖ କରିଛନ୍ତି – “The novel is an attempt to create a mirror in which the novelist will be able to see his own face. It is fundamentally an attempt of a self creation”. ଅର୍ଥାତ୍ । ଉପନ୍ୟାସ ତା’ର ମାନସ ମନ୍ଦିରରେ ଏପରି ଏକ ଦର୍ପଣ ନିର୍ମାଣ କରେ ଯେଉଁଥରେ ଔପନ୍ୟାସିକ ନିଜର ପ୍ରତିଛବି ଅବଲୋକନ କରିପାରେ । ନିଜ ସୃଷ୍ଟିରେ ମଧ୍ଯ ନିଜକୁ ସେ ଦେଖିପାରେ ।

ସମାଲୋଚକ Relph Fox ତାଙ୍କ ଅଭିମତ ପ୍ରଦାନ କରି କହନ୍ତି – “The novel is the most important gift of Bourgeois Capitalist Civilization to the world’s imaginative culture. The novel is a great adventure in its discovery of man, ଅର୍ଥାତ୍ ଉପନ୍ୟାସ ହେଉଛି ବିଶ୍ଵ ବକ୍ଷରେ କଳାକୃଷ୍ଟିକୁ ପୁଞ୍ଜିବାଦୀ ସଭ୍ୟତାର ଚରମ ଅବଦାନ ।

Trollope ଉପନ୍ୟାସର ସଂଜ୍ଞା ଦେବାକୁ ଯାଇ କହିଛନ୍ତି ଯେ ସାଧାରଣ ମଣିଷର ଜୀବନଯାତ୍ରାକୁ ହାସ୍ୟ କରୁଣ ରସ ମଧ୍ୟରେ ବ୍ୟକ୍ତ କରିବାକୁ ଉପନ୍ୟାସ ହିଁ ସମର୍ଥ ହୋଇଥାଏ । ତାଙ୍କ ଭାଷାରେ – “A novel should give a picture of common life enlivened by humour and sweetened by pathos.”

ସେହିପରି ପ୍ରଖ୍ୟାତ ଇଂରାଜୀ ସମାଲୋଚକ Wallter Allen ତାଙ୍କ ‘The English Novel’ ପୁସ୍ତକରେ ଉପନ୍ୟାସ ସମ୍ପର୍କରେ କହିଛନ୍ତି – “We find there a close imitation of man and manners. We see the very web and texture of society as it really exist and we meet it when we come into the world.” ଅର୍ଥାତ୍ ସାମାଜିକ ଜୀବନର ବାସ୍ତବ ରୂପରେଖ ଲୋକଚରିତ୍ରର ଅଧ୍ୟୟନ, ଅନୁଶୀଳନ, ଦୈନନ୍ଦିନ ଜୀବନର ଘଟଣାବଳୀ ଉପନ୍ୟାସରେ ରୂପାନ୍ତରିତ ।

“The Growth of English Novel” ଗ୍ରନ୍ଥରେ E.A. Baker ଯଥାର୍ଥରେ ଲେଖୁଛନ୍ତି – “……. the inter pretation of human lite by means of fictions, prose in narrative.” ଅର୍ଥାତ୍ ଉପନ୍ୟାସ ହେଉଛି ମାନବ ଜୀବନର ଅଭିବ୍ୟକ୍ତି ।

କେବଳ ପାଶ୍ଚାତ୍ୟ ସମାଲୋଚକମାନେ କାହିଁକି ପ୍ରାଚ୍ୟ ସମାଲୋଚକମାନେ ମଧ୍ୟ ଉପନ୍ୟାସର ସଂଜ୍ଞା ଦେବାକୁ ଯାଇ ଖୁବ୍ ଚମତ୍କାର କଥା ଉଲ୍ଲେଖ କରିଯାଇଛନ୍ତି । ‘କାବ୍ୟାଳଙ୍କାର’ ଗ୍ରନ୍ଥର ୨୬୧ ପୃଷ୍ଠାରେ ଉଲ୍ଲେଖ ରହିଛି ‘‘ ଉପନ୍ୟାସ ମନ୍ୟସ୍ୟୟଦର୍ଥ ସ୍ୟାଦିଶାତଃ’। ବଙ୍ଗଳାର ପ୍ରଖ୍ୟାତ ସମାଲୋଚକ ସରୋଜ ବନ୍ଦୋପାଧ୍ୟାୟ ତାଙ୍କ ‘ବାଂଲା ଉପନ୍ୟାସର କାଳାନ୍ତର’ ଗ୍ରନ୍ଥରେ ଲେଖୁଛନ୍ତି – ‘ନାଟ୍ୟକାରଙ୍କୁ କେବଳ ନାଟକ ଜାଣିଲେ ଚଳେ । କବିଙ୍କୁ କବିତା, କିନ୍ତୁ ଔପନ୍ୟାସିକ ଜାଣନ୍ତି ଯେ, ଜୀବନ କେବଳ ନାଟକ କିମ୍ବା କବିତା ନୁହେଁ । ସେ ଜାଣନ୍ତି ଯେ ଜୀବନ ନାଟକ, କାବ୍ୟ, କାହାଣୀ ହୁଏତ ଆହୁରି ଅନେକ କିଛି । ଉପନ୍ୟାସ ସର୍ବଗ୍ରାସୀ, ଉପନ୍ୟାସକାର ସର୍ବଚାରୀ ।’’ (ପୃ-୧୧)

ଓଡ଼ିଆ ଭାଷା ସାହିତ୍ୟ କ୍ଷେତ୍ରରେ ମଧ୍ୟ ଉପନ୍ୟାସର ସଂଜ୍ଞା ଅନେକ ସମାଲୋଚକମାନଙ୍କଦ୍ୱାରା ନିର୍ଦ୍ଧାରଣ କରାଯାଇଛି । ସମାଲୋଚକ ଡଃ ଶ୍ରୀନିବାସ ମିଶ୍ର ତାଙ୍କ ‘ଆଧୁନିକ ଓଡ଼ିଆ ଗଦ୍ୟସାହିତ୍ୟ’ ଗ୍ରନ୍ଥରେ ଲେଖୁଛନ୍ତି – “‘ମହାକାବ୍ୟର ବିଲୟ ପରେ ଆଧୁନିକ କାଳରେ ଯୁଗୀୟ ‘ଏପିକ୍‌’ ହିଁ ଉପନ୍ୟାସ । x x x x ଏହା ସଭ୍ୟତାର ନବ ଅଧ୍ୟାୟର ଅନିବାର୍ଯ୍ୟ ପ୍ରକାଶ ବାହକ । ସମକାଳୀନ ସମାଜ ଜୀବନର ବାସ୍ତବ ଓ ବିଶ୍ବସ୍ତ ଶିଳ୍ପକର୍ମ ଉପନ୍ୟାସ ମଧ୍ୟରେ ମାନବିକ ଅନୁଭୂତି ଓ ଅଭିଜ୍ଞତାର ବିଚିତ୍ରରୂପ ଅଙ୍କିତ ହୁଏ ।’’

ଅଧ୍ୟାପକ ତାରିଣୀ ଚରଣ ଦାସ ଉପନ୍ୟାସ ସମ୍ପର୍କରେ ମତ ଦେଇଛନ୍ତି ଯେ ‘‘ଗଦ୍ୟ ମାଧ୍ୟମକୁ କେନ୍ଦ୍ରକରି ଜୀବନ ଓ ଜଗତର ବିଶ୍ଳେଷଣ କରୁଥିବା କଳାତ୍ମକ ରଚନାର ନାମ ହିଁ ଉପନ୍ୟାସ ।”

ଅଧ୍ୟାପକ ବ୍ରହ୍ମାନନ୍ଦ ସିଂହ ଯଥାର୍ଥରେ କହିଛନ୍ତି – ‘‘ଉପନ୍ୟାସ ଏପରି ଏକ କଳା, ଯେଉଁଥରେ ମନୁଷ୍ୟ ପ୍ରବୃତ୍ତିର ଟିକିନିଖ୍ ବର୍ଣ୍ଣନା ସୁଖ ସମୃଦ୍ଧିର ବିଭିନ୍ନ ଦିଗ, ଜ୍ଞାନ ଓ ହାସ ପରିହାସର ଜୀବନ୍ତ ଚିତ୍ର, ସହଜ ସ୍ବଚ୍ଛନ୍ଦ ଭାଷାରେ ସମଗ୍ର ପୃଥ‌ିବୀକୁ ଜଣାଇ ଦିଆଯାଏ । ଫଳତଃ ମାନବ ଅନ୍ତରର ସତ୍ୟତା ପ୍ରକାଶ କରିବାରେ ଓ ସମାଜ ଗଠନ କରିବାରେ ଏହା ବହୁ ସହାୟକ ହୋଇଥାଏ ।’’ (ତୃତୀୟ ନୟନ, ଅଧ୍ୟାପକ ବ୍ରହ୍ମାନନ୍ଦ ସିଂହ, ପୃ-୨)

ସେହିପରି ଡଃ କୃଷ୍ଣଚରଣ ବେହେରା ତାଙ୍କ ‘କଥାସାହିତ୍ୟ’ ଗ୍ରନ୍ଥରେ ଲେଖୁଛନ୍ତି – ‘‘ଉପନ୍ୟାସ ମଣିଷର ବାସ୍ତବ ଓ ପୂର୍ଣାଙ୍ଗ ଜୀବନର କାଳ୍ପନିକ ଗଦ୍ୟକାହାଣୀ । ସାଧାରଣତଃ ଏହା ମଣିଷ ଜୀବନ ଅଥବା ସମାଜର ଏକ ଅଖଣ୍ଡ ପରିପୂର୍ଣ୍ଣ ଚିତ୍ର ପ୍ରଦାନ କରିଥାଏ । ଲେଖକର ବ୍ୟକ୍ତିଗତ ଦୃଷ୍ଟିଭଙ୍ଗୀ ଓ ଜୀବନାନୁଭୂତି ଏହା ମଧ୍ୟରେ ପରୋକ୍ଷ ଭାବରେ ପ୍ରକାଶିତ ହୋଇଥାଏ । ସ୍ୱାଭାବିକ ଭାବରେ ଗଳ୍ପ କଥନ, ଚରିତ୍ର ଚିତ୍ରଣ, ଦୃଶ୍ୟ ଘଟଣାଦି ବର୍ଣ୍ଣନା ମାଧ୍ୟମରେ ଉପନ୍ୟାସର ଏହିସବୁ ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟ ସାଧୁତ ହୋଇଥାଏ ।’’

ଅଧ୍ୟାପକ ଡଃ ପଠାଣି ପଟ୍ଟନାୟକ ‘‘ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସ ସାହିତ୍ୟ ପରିଚୟ’’ ପୁସ୍ତକରେ ଲେଖୁଛନ୍ତି – ‘‘ଉପନ୍ୟାସ ଏହି ମାଟିଗୋଡ଼ି ସଂସାରର କାହାଣୀକୁ ରୂପାୟିତ କରେ । ସାହିତ୍ୟ ସଂସାରରେ ଉପନ୍ୟାସ ଅତ୍ୟନ୍ତ ଜୀବନଧର୍ମୀ ହୋଇଥିବାରୁ ତାହା ଅତ୍ୟନ୍ତ ଲୋକପ୍ରିୟ ଏବଂ ପ୍ରଭାବଶାଳୀ କଳାଭାବରେ ଗୃହୀତ ହୋଇଅଛି ।’’(ପୃ-୩)

ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସର ବିକାଶଧାରା

ଆଧୁନିକ କାଳଖଣ୍ଡରେ ଏକ ସ୍ଵତନ୍ତ୍ର ସାରସ୍ୱତ ଶିଳ୍ପ-କଳାଭାବରେ ଆବିର୍ଭାବ ହୁଏ ଉପନ୍ୟାସର । ପାଶ୍ଚାତ୍ୟ ସାହିତ୍ୟର ସର୍ବପ୍ରଥମ ଉପନ୍ୟାସ ପ୍ରକାଶ ପାଏ ୧୭୪୦ ମସିହାରେ । ରିଚାର୍ଡ଼ସନ୍‌ଙ୍କ ଉପନ୍ୟାସ ‘ପାମେଲା’ ହିଁ ଥିଲା ଇଂରାଜୀ ସାହିତ୍ୟର ପ୍ରଥମ ଉପନ୍ୟାସ । ଏହାର ଏକ ଶତାବ୍ଦୀ ପରେ ଅର୍ଥାତ୍ ଉନବିଂଶ ଶତକରେ ଭାରତୀୟ ସାହିତ୍ୟରେ ଉପନ୍ୟାସ ସୃଷ୍ଟି ଲାଭକଲା ।

ତେବେ ଓଡ଼ିଶା କ୍ଷେତ୍ରରେ ଏହା ଆଉଟିକେ ବିଳମ୍ବରେ ହୋଇଥିଲା । ଓଡ଼ିଶାରେ ଇଂରାଜୀ ଭାଷାର ପ୍ରସାର ଓ ମୁଦ୍ରାଯନ୍ତ୍ରର ପ୍ରତିଷ୍ଠା ଏବଂ ପତ୍ରପତ୍ରିକାରେ ପ୍ରକାଶ ଫଳରେ ଏକ ପ୍ରକାର ନୂଆ ଚେତନାର ଉନ୍ମେଷ ହେଲା । ତେବେ ବିଚାରକଲେ ଏକଥା ସ୍ପଷ୍ଟ ଅନୁମେୟ ହୁଏ ଯେ ଉପନ୍ୟାସ ଏଇ ନବ ଚେତନାର ସଫଳ ରୂପାୟନ । ଏଇଠାରୁ ହିଁ ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସ ସୃଷ୍ଟିର ସମ୍ଭାବନାମୟ ଯାତ୍ରା ପ୍ରାରମ୍ଭ ହୁଏ । ତେବେ ଏହି ଆଦ୍ୟ ତଥା ପ୍ରାରମ୍ଭିକ ପର୍ଯ୍ୟାୟରେ ଓଡ଼ିଆ ଭାଷାର କିଛି ଉପନ୍ୟାସ ପୂର୍ବରୂପ ପାଇବା ପୂର୍ବରୁ ରହିଯାଇଛନ୍ତି । ଯଥା— ‘ସୌଦାମିନୀ’, ‘ଅନାଥନୀ’, ‘ମଠର ସମ୍ବାଦ’, ‘ଉନ୍ମାଦିନୀ’ ପ୍ରଭୃତି । ଏଗୁଡ଼ିକ ପ୍ରକାଶ ପାଉଥିବା ପତ୍ରିକାର ଅଳ୍ପାୟୁଷ ଏଗୁଡ଼ିକ ଅସମ୍ପୂର୍ଣ ରଖିଦେଇଥିଲେ ।

ଉପରୋକ୍ତ ଅସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ଉପନ୍ୟାସର ରଚନାର ପ୍ରୟାସ ପରେ ୧୮୮୮ ମସିହାରେ ଉମେଶ ଚନ୍ଦ୍ର ସରକାର ରଚନା କଲେ ‘ପଦ୍ମମାଳୀ’ । ଏହା ହିଁ ଥିଲା ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟର ପ୍ରଥମ ଉପନ୍ୟାସ । ଏହାପରେ ରାମଶଙ୍କର ରାୟଙ୍କ ପୂର୍ଣ୍ଣାଙ୍ଗ ଉପନ୍ୟାସ ‘ବିବାସିନୀ’ ପ୍ରକାଶ ପାଇଲା । ୧୮୯୮ ମସିହାରେ ରଚିତ ହେଲା ଆଦିବାସୀ ଜୀବନ ଉପରେ ଆଧାରିତ ପ୍ରଥମ ଉପନ୍ୟାସ ‘ଭୀମାଭୂୟାଁ’ । ୧୯୦୮ରେ ପ୍ରକାଶିତ ଏହି ଉପନ୍ୟାସ ଓଡ଼ିଆ ଭାଷାର ତୃତୀୟ ପୂର୍ଣ୍ଣାଙ୍ଗ ଉପନ୍ୟାସ ।

CHSE Odisha Class 11 Optional Odia Solutions Chapter 2 ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ

ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସ ରଚନାର ଏକ ସୁସ୍ଥ ବାତାବରଣ ସୃଷ୍ଟି ହୋଇ ଆସିଲାବେଳକୁ ଆବିର୍ଭାବ ହୁଏ ଓଡ଼ିଆ କଥାଜଗତର ସମ୍ରାଟ ବ୍ୟାସକବି ଫକୀରମୋହନ ସେନାପତିଙ୍କର । ୧୯୦୨ରେ ପ୍ରକାଶ ପାଇଲା ତାଙ୍କର ପ୍ରଥମ ଉପନ୍ୟାସ ‘‘ଛ’ମାଣ ଆଠଗୁଣ୍ଠ’’ । ଏହାପରେ ୧୯୦୩ରେ ‘ଲଛମା’, ୧୯୧୩ରେ ‘ମାମୁ’ ଓ ୧୯୧୫ ମସିହାରେ ‘ପ୍ରାୟଶ୍ଚିତ୍ତ’ ପ୍ରକାଶିତ ହୋଇ ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସ ଭଣ୍ଡାରକୁ ପରିପୁଷ୍ଟ କରିବା ସହ ଉପନ୍ୟାସ ରଚନା କ୍ଷେତ୍ରରେ ଉତ୍ସାହ ଭରିଦେଲା ।

ତେବେ ଏହି ଉନ୍ମେଷ କାଳରେ ଆଉ କିଛି ବଳିଷ୍ଠ ଉପନ୍ୟାସ ମଧ୍ୟ ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସ କଳେବରକୁ ବହୁବର୍ଷା କରିଥିଲା । ଔପନ୍ୟାସିକମାନେ ବିଭିନ୍ନ ପତ୍ରପତ୍ରିକାରେ ଉପନ୍ୟାସ ରଚନା ନିମନ୍ତେ ମନବଳେଇ ନୂତନ ଉପନ୍ୟାସମାନ ଓଡ଼ିଆ ପାଠକମାନଙ୍କୁ ଉପହାର ଆକାରରେ ଦେଇଥିଲେ । ଏମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ କବିଶେଖର ଚିନ୍ତାମଣି ମହାନ୍ତି, ନନ୍ଦକିଶୋର ବଳ, ଚିନ୍ତାମଣି ଆଚାର୍ଯ୍ୟ ଦୟାନିଧୁ ମିଶ୍ର ଆଦି ଅନ୍ୟତମ ।

କବିଶେଖର ଚିନ୍ତାମଣି ମହାନ୍ତିଙ୍କ ‘ବୁଲାଫକୀର’, ‘ରୁପାଚୁଡ଼ି’, ‘ଟଙ୍କାଗଛ’, ‘ଯୁଗଳମଠ’, ‘ଶନିସପ୍ତା’, ‘ରକ୍ତଦାନ’ ପ୍ରଭୃତି କେତୋଟି ଉଲ୍ଲେଖନୀୟ ଉପନ୍ୟାସ ବେଶ୍ ପ୍ରଭାବଶାଳୀ ହୋଇଥିଲା । ପୁଣି ନନ୍ଦକିଶୋର ବଳଙ୍କ ‘କନକଲତା’, ତାରିଣୀ ଚରଣ ରଥଙ୍କ ‘ଅନ୍ନପୂର୍ଣ୍ଣା’, ଚିନ୍ତାମଣି ଆଚାର୍ଯ୍ୟଙ୍କ ‘ସଫଳସ୍ଵପ୍ନ’, ଦୟାନିଧୁ ମିଶ୍ରଙ୍କ ‘ମାନଭଞ୍ଜନ’, ଚନ୍ଦ୍ରମଣି ଦାସଙ୍କର ‘ସୁରେଖା’, କାମପାଳ ମିଶ୍ରଙ୍କ ‘ଅମ୍ବିକା’, ଅଶ୍ବିନୀକୁମାର ଘୋଷଙ୍କ ‘ବୁଢ଼ା ଚାଚା’, ଗୋବିନ୍ଦ ତ୍ରିପାଠୀଙ୍କ ‘ଗୁଇନ୍ଦା ଗଦାଧର’ ପ୍ରଭୃତି ଉପନ୍ୟାସ ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସର ଆଦ୍ୟକାଳରେ ବେଶ୍ ପ୍ରଭାବିତ କରିଥିଲା ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସ ପାଠକକୁ ।

ଏହିସବୁ ଉପନ୍ୟାସ ରଚନା ଥିଲା ୧୯୨୦ ମସିହା ପୂର୍ବବର୍ତ୍ତୀ । ତେବେ ଏହାପରେ ସାହିତ୍ୟ କ୍ଷେତ୍ରରେ ଆସିଛି ଆଲୋଡ଼ନ । ବିଶ୍ବଯୁଦ୍ଧର ପରୋକ୍ଷ ପ୍ରଭାବ ସାହିତ୍ୟକ୍ଷେତ୍ରକୁ ସଂକ୍ରମିତ ହୋଇଛି । ସମାଜ ସଚେତନତା, ରାଜନୈତିକ କୁସଂସ୍କାର, ବିଦ୍ରୋହ ମନୋବୃତ୍ତି, ପ୍ରତିବାଦର ଆହ୍ଵାନ ମଣିଷର ଅନ୍ତଃମନରେ ସମ୍ପୃକ୍ତ ରହସ୍ୟର ଝଲକ ସାହିତ୍ୟ ମାଧ୍ୟମରେ ଦେଇ ଉପନ୍ୟାସ କ୍ଷେତ୍ରକୁ ହୋଇଆସିଛି । କୁନ୍ତଳାକୁମାରୀ, ବୈଷ୍ଣବଚରଣ ଦାସ, ରାମଚନ୍ଦ୍ର ଆଚାର୍ଯ୍ୟ, ଗୋଦାବରୀଶ ମହାପାତ୍ର, ରାମପ୍ରସାଦ ସିଂ, କମଳାକାନ୍ତ ଦାସ ପ୍ରଭୃତି ସେଇ ସମୟରେ ଉପନ୍ୟାସ ସାହିତ୍ୟର ମଙ୍ଗ ଧରିଥିଲେ ।

କୁନ୍ତଳାକୁମାରୀଙ୍କ ‘ଭ୍ରାନ୍ତି’, ‘ନଅତୁଣ୍ଡୀ’, ‘କାଳିବୋହୂ’, ‘ପରଶମଣି’, ‘ରଘୁ ଅରକ୍ଷିତ’ ଆଦି ଉପନ୍ୟାସ ଏହି କାଳଖଣ୍ଡରେ ବେଶ୍ ପାଠକୀୟତା ହାସଲ କରିଥିଲା । ଏହି ସମୟରେ ଦୟାନିଧି ମିଶ୍ରଙ୍କ ‘ସଂଯୁକ୍ତା’, ‘ରାଣାପ୍ରତାପ ସିଂହ’, ‘ମାନଭଞ୍ଜନ’, ‘ପୁନର୍ଜନ୍ମ’, ‘ନୟନତାରା’, ଉପେନ୍ଦ୍ରକିଶୋର ଦାସଙ୍କ ‘ମଲାଜହ୍ନ’, ମୃତ୍ୟୁଞ୍ଜୟ ରଥଙ୍କ ‘ଅଭୂତ ପରିଣାମ’ ଗୋଦାବରୀଶ ମିଶ୍ରଙ୍କ ‘ପଟାନ୍ତର’, ‘ଅଭାଗିନୀ’, ‘ନିର୍ବାସିତ’, ଗୋଦାବରୀଶ ମହାପାତ୍ରଙ୍କ ‘ରାଜଦ୍ରୋହୀ’, ‘ବନ୍ଦୀର ମାୟା’, ‘ପ୍ରେମପଥେ’, ‘ବିଦ୍ରୋହ’, ‘ରକ୍ତପାତ’, ‘ବୀରଯୁବକ’, କମଳାକାନ୍ତ ଦାସଙ୍କ ‘ବୋଉ’, ‘ଆଶ୍ରିତ’, ‘ଭାଉଜବୋଉ’, ‘ଜୀବନ ସଉଦା’, ‘ଚବିଶ ନମ୍ବର କେବିନ୍’, ‘ସାରଦୀନାନୀ’, ‘ମନର ଦାଉ’ ଏବଂ ‘ମଣିଷର ଦାବୀ’, ‘ବୈଷ୍ଣବଚରଣ ଦାସଙ୍କ ‘ମନେମନେ’, ଲକ୍ଷ୍ମୀକାନ୍ତ ମହାପାତ୍ରଙ୍କ ‘କଣାମାମୁ’, ହରେକୃଷ୍ଣ ମହତାବଙ୍କ ‘ପ୍ରତିଭା’, ଟାଉଟର’, ‘ଅବ୍ୟାପାର’, ‘ନୂତନ ଧର୍ମ’, ଅନନ୍ତପ୍ରସାଦ ପଣ୍ଡାଙ୍କ ‘ଭାଗ୍ୟଚକ୍ର’, ଚକ୍ରଧର ମହାପାତ୍ରଙ୍କ ‘ବଳାଙ୍ଗୀ’, ରାମଚନ୍ଦ୍ର ଆଚାର୍ଯ୍ୟଙ୍କ ‘ବୀରାଙ୍ଗନା’, ‘ବୀର ଓଡ଼ିଆ’, ‘ପୀୟୂଷ ପ୍ରବାହ’, ‘କମଳ କୁମାରୀ’, ‘ପ୍ରଣୟପ୍ରବାହ’, ‘ପଦ୍ମିନୀ’, କାଳିନ୍ଦୀଚରଣ ପାଣିଗ୍ରାହୀଙ୍କ ‘ମାଟିର ମଣିଷ’, ‘ଲୁହାର ମଣିଷ’, ‘ଆଜିର ମଣିଷ’, ‘ମୁକ୍ତାଗଡ଼ରେ କ୍ଷୁଧା’ ‘ଅମରଚିତା’, ସବୁଜ ସାହିତ୍ୟିକ ଗୋଷ୍ଠୀଙ୍କ ‘ବାସନ୍ତି’, ରାମପ୍ରସାଦ ସିଂହଙ୍କ ‘ଅଗ୍ନିପଥେ’ ‘ପୂଜାର ବଳୀ’, ‘ପ୍ରତିହିଂସା’, ‘ମରୁର ସାଥୀ’, ‘ଛିନ୍ନମସ୍ତା’, ‘ଯୁଗାନ୍ତର’, ‘ସମାପ୍ତି’, ‘ହୋମଶିଖା’, ‘ମରୀଚିକା’, ଜଗତବନ୍ଧୁ ମହାପାତ୍ରଙ୍କ ‘ମଣିକାଞ୍ଚନ’, ‘ଭଙ୍ଗାସଂସାର’, ‘ବିସର୍ଜନ’, ‘ପକେଟମାର୍’, ସୀତାଦେବୀ ଖାଡ଼ଙ୍ଗାଙ୍କ ‘ପୋଷ୍ୟପୁତ୍ର’, ଚିନ୍ତାମଣି ମିଶ୍ରଙ୍କ ‘ପଞ୍ଚପତ୍ରୀ’, ‘କାଳର ନିଷ୍ପତ୍ତି’, ‘ଅକାଳଚଡ଼କ’, ‘ଜଗୁଆ ମା’ ଆଦି ଉପନ୍ୟାସ ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସ ସାହିତ୍ୟର ପରିପୁଷ୍ପ କରିବା ସହ ପ୍ରଦାନ କରିଥିଲେ ଏକ ସୁଭବିଷ୍ୟ । ସ୍ଵାଧୀନତା ପୂର୍ବବର୍ତ୍ତୀ କାଳଖଣ୍ଡରେ ଏହି ଉପନ୍ୟାସ ଓ ଔପନ୍ୟାସିକ ପାଠକ ମହଲରେ ନିଜର ଏକ ସ୍ବତନ୍ତାସନ ଜାହିର କରିପାରିଥିଲେ ।

ସ୍ଵାଧୀନତା ପୂର୍ବବର୍ତୀ ଉପନ୍ୟାସ ସାହିତ୍ୟ କ୍ଷେତ୍ରରେ ଆଉକିଛି ଔପନ୍ୟାସିକ ମଧ୍ୟ ନିଜର ସ୍ଥିତିକୁ ବେଶ୍ ମଜବୁତ୍ କରି ଗଢ଼ି ତୋଳିଛନ୍ତି, ସେମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ଔପନ୍ୟାସିକ କାହ୍ନୁ ଚରଣ ମହାନ୍ତି ଅନ୍ୟତମ । ତାଙ୍କର ଅଜସ୍ରାସ୍ରାବୀ ଲେଖନୀ ବହୁ ଉପନ୍ୟାସ ସୃଷ୍ଟି କରିଛି । ‘ବାଲିରାଜା’, ‘ପଳାତକ’, ‘ତଥାସ୍ତୁ’, ‘ହା ଅନ୍ନ’, ‘ଶାସ୍ତି’, ‘ବଜ୍ରବାହୁ’, ‘ଜେଉଡେଉକା’, ‘ସ୍ଵପ୍ନ ନା ସତ୍ୟ’, ‘ତୁଣ୍ଡବାଇଦ’, ‘କା’, ‘ଝଞ୍ଜା’, ‘ଅଦେଖାହାତ’, ‘ପ୍ରତୀକ୍ଷା’ ଆଦି ସାର୍ଥକ ଉପନ୍ୟାସ ଔପନ୍ୟାସିକ କାହ୍ନୁ ଚରଣ ମହାନ୍ତିଙ୍କ ପ୍ରତିଭାର ସ୍ବାକ୍ଷର ବହନ କରେ ।

ଏହି ସମୟରେ ଅନ୍ୟ ଶ୍ରେଷ୍ଠ ଔପନ୍ୟାସିକମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ରାଜକିଶୋର ପଟ୍ଟନାୟକ, ଗୋପୀନାଥ ମହାନ୍ତି, ନିତ୍ୟାନନ୍ଦ ମହାପାତ୍ର ପ୍ରଭୃତି ନିଜ ଶ୍ରେଷ୍ଠତ୍ୱ ପ୍ରତିପାଦିତ କରିଯାଇଛନ୍ତି । ତାଙ୍କ ଅମୂଲ୍ୟ ଉପନ୍ୟାସଗୁଡ଼ିକ କେବଳ ଯେ ପାଠକର ପ୍ରିୟ ହୋଇଥିଲା ତାହା ନୁହେଁ, ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସ ସାହିତ୍ୟ-ଧାରାକୁ ଦେଇଥିଲା ନୂତନ ଦିଗଦର୍ଶନ । ରାଜକିଶୋର ପଟ୍ଟନାୟକଙ୍କ ‘ପଞ୍ଜୁରୀ ପକ୍ଷୀ’, ‘ସିନ୍ଦୂରଗାର’, ‘ସପନ କୁହୁଡ଼ି’, ‘ଅସରନ୍ତି’, ‘ସ୍ମୃତିର ମଶାଣି’, ‘ଭଙ୍ଗାମେଘ’, ‘ବିରହିଣୀ’, ‘ଚଲାବାଟ’, ‘ଅଷ୍ଟମୀ ଚାନ୍ଦ’, ‘କଜ୍ଵଳଗାର’, ‘ପ୍ରୀତିର ବଣିକ’, ‘ଜୀବନସନ୍ଧ୍ୟା’, ‘କଳାପରଦା’, ‘ସକାଳ କୁହୁଡ଼ି’, ‘ସଞ୍ଜବତୀ’, ‘ପ୍ରୀତିର କଜ୍ଜ୍ବଳ’ ଆଦି ଉପନ୍ୟାସ ତାଙ୍କୁ ସ୍ମରଣୀୟ କରି ରଖୁବ ।

ସେହିପରି ଗୋପୀନାଥ ମହାନ୍ତିଙ୍କ ‘ମନ ଗହୀରର ଚାଷ’, ‘ଦାଦିବୁଢ଼ା’, ‘ପରଜା’, ‘ହରିଜନ’, ‘ଅମୃତ ସନ୍ତାନ’, ‘ରାହୁର ଛାୟା’, ‘ଦାନାପାଣି’, ‘ଶିବଭାଇ’, ‘ଲୟ ବିଲୟ’, ‘ମାଟିମଟାଳ’, ‘ଅପହଞ୍ଚ’, ‘ଆକାଶ ସୁନ୍ଦରୀ’ ‘ଅନଳାନଳ’, ‘ସପନମାଟି’, ‘ଶରତବାବୁଙ୍କ ଗଳି’, ‘ଦିଗବିହୁଡ଼ି’ ଆଦି ଅନ୍ୟତମ ସାର୍ଥକ ଉପନ୍ୟାସାବଳୀ, ଯାହା ପାଠକଙ୍କୁ ଆଜି ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ପ୍ରଭାବିତ କରିଆସିଛି ।

ଔପନ୍ୟାସିକ ନିତ୍ୟାନନ୍ଦ ମହାପାତ୍ରଙ୍କ ଉପନ୍ୟାସ ମଧ୍ଯ ସ୍ଵାଧୀନତା ପୂର୍ବବର୍ତ୍ତୀ କାଳଖଣ୍ଡରେ ବେଶ୍ ପ୍ରଭାବଶାଳୀ ଥିଲା । ତାଙ୍କ ‘ହିଡ଼ମାଟି’, ‘ଭଙ୍ଗାଡ଼ିହ’, ‘ଜିଅନ୍ତା ମଣିଷ’, ‘ଭୁଲ’ ଆଦି ଉପନ୍ୟାସ ପାଠକର ହୃଦୟକୁ ସ୍ପର୍ଶ କରିପାରିଥିଲା । ତେବେ ଏହି ସ୍ଵାଧୀନତା ପୂର୍ବବର୍ତ୍ତୀ କାଳରେ ରଚିତ ଉପନ୍ୟାସଗୁଡ଼ିକ ଉଭୟ ପରିମାଣାତ୍ମକ ଗୁଣାତ୍ମକ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ଥିଲେ ସ୍ଵତନ୍ତ୍ର ।
ସ୍ଵାଧୀନତା ପୂର୍ବବର୍ତ୍ତୀ ଓଡ଼ିଶାର ସାମାଜିକ, ସାଂସ୍କୃତିକ, ରାଜନୀତିକ ଓ ମାନସିକ ମୂଲ୍ୟବୋଧ, ଶୋଷଣ, ଅତ୍ୟାଚାର ଇତ୍ୟାଦି ବିଭିନ୍ନ ସମସ୍ୟା ଓ ପରିସ୍ଥିତି ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସ ସାହିତ୍ୟରେ ରୂପନେଇଛି । ଓଡ଼ିଆ ଔପନ୍ୟାସିକମାନେ ବିଶ୍ବ ସାହିତ୍ୟ ସହ ତାଳଦେଇ ଜାତୀୟତାବାଦୀ ଚେତନା, ଆଦର୍ଶବାଦୀ ଚେତନା ସମ୍ବଳିତ ମାନବବାଦର ବାସ୍ତବଧର୍ମୀ ଶବ୍ଦଜ୍ଞାନ କରିଛନ୍ତି ସ୍ଵାଧୀନତାର ପୂର୍ବ କାଳଖଣ୍ଡରେ । ତେବେ ସାମଗ୍ରିକ ସମାଜବୋଧ ଓ ଗଣଚେତନା ଉପରେ ପର୍ଯ୍ୟବସିତ ସ୍ଵାଧୀନତା ପୂର୍ବବର୍ତୀ ଉପନ୍ୟାସ ସାହିତ୍ୟ ।

ସ୍ଵାଧୀନତା ପରବର୍ତ୍ତୀ କାଳରେ କିନ୍ତୁ ଗଣଚେତନା, ସାମାଜିକ ଚେତନା ଅପେକ୍ଷା ବ୍ୟଭିଚେତନାଧର୍ମିତାକୁ ତଥା ‘ଜଣ’ ବୋଧ (Individualistic Idea) କୁ ପ୍ରାଧାନ୍ୟ ମିଳିଛି । ଅର୍ଥନୈତିକ ଅସ୍ୱଚ୍ଛଳତା, ରାଜନୀତିକ ପ୍ରତାରଣା, ଆଧୁନିକ ମଣିଷର ଅସହାୟତା ତଥା ବିଚ୍ଛିନ୍ନ ବ୍ୟକ୍ତିସତ୍ତାକୁ ନେଇ ଉପନ୍ୟାସର କଥାବସ୍ତୁ ଗତି କରିଛି । ଔପନ୍ୟାସିକ ସମାଜ ଅପେକ୍ଷା ନିଜ ସମ୍ମୁଖର ବ୍ୟକ୍ତିସତ୍ତା ଏବଂ ତତ୍‌ସମ୍ପର୍କିତ ଜୀବନାନୁଭୂତିକୁ ନେଇ ଉପନ୍ୟାସ କଳ୍ପନା କରିଛି ସ୍ଵାଧୀନତା ପରବର୍ତ୍ତୀ କାଳଖଣ୍ଡରେ । ସ୍ଵାଧୀନତା ପରବର୍ତ୍ତୀ ସମସ୍ୟାବହୁଳ ଜୀବନଧାରା, ସାମାଜିକ ସମ୍ପର୍କହୀନତା ଓ ରାଜନୀତି ପ୍ରଭାବିତ ଆର୍ଥନୀତିକ ସଙ୍କଟବୋଧ ସ୍ରଷ୍ଟାକୁ ଗଣଚେତନାରୁ ଦୂରେଇ ଆଣିଛି ଓ ଏକକ ବୋଧସମ୍ପନ୍ନ ବ୍ୟକ୍ତିସତ୍ତା
ନିକଟରେ ପହଞ୍ଚାଇ ଦେଇଛି ।

ସୁରେନ୍ଦ୍ର ମହାନ୍ତି, ଗୋକୁଳାନନ୍ଦ ମହାପାତ୍ର, ମହାପାତ୍ର ନୀଳମଣି ସାହୁ, ବିଭୂତି ପଟ୍ଟନାୟକ, ପ୍ରତିଭା ରାୟ, ଗୋବିନ୍ଦ ଦାସ, ବଳରାମ ପଟ୍ଟନାୟକ, ଚନ୍ଦ୍ରଶେଖର ରଥ, କଣ୍ଡୁରୀ ଚରଣ ଦାସ, ସାତକଡ଼ି ହୋତା, ଗାୟତ୍ରୀ ବସୁମଲ୍ଲିକ୍, ନୃସିଂହ ଚରଣ ପଣ୍ଡା, ଶାନ୍ତନୁ ଆଚାର୍ଯ୍ୟ, କୃଷ୍ଣପ୍ରସାଦ ମିଶ୍ର, ଯମେଶ୍ବର ତ୍ରିପାଠୀ, ଅବନୀ କୁମାର ବରାଳ, ଶ୍ରୀନିବାସ ଉଦ୍‌ଗାତା, ବୀଣା ମହାପାତ୍ର, ଦେବ୍ରାଜ ଲେଙ୍କା, ବ୍ରଜମୋହନ ମହାନ୍ତି, ଅନାଦି ସାହୁ, କଳ୍ପନା କୁମାରୀ ଦେବୀ, ରଘୁନାଥ ମହାପାତ୍ର, ଗଣେଶ୍ୱର ମିଶ୍ର, ହୃଷିକେଶ ପଣ୍ଡା, ଭାସ୍କର ଜେନା, ଅଜୟ ସ୍ୱାଇଁ, ପଦ୍ମଜ ପାଳ ଆଦି ସ୍ରଷ୍ଟା ଏହି କାଳଖଣ୍ଡରେ ନିଜର ସ୍ଵାତନ୍ତ୍ର୍ୟକୁ ପ୍ରମାଣିତ କରିଛନ୍ତି । ଏହାର ଅର୍ଥ ନୁହେଁ, ସ୍ଵାଧୀନତା ପୂର୍ବରୁ ଲେଖୁ ଆସୁଥ‌ିବା ଔପନ୍ୟାସିକମାନେ ଲେଖା ବନ୍ଦ କରିଦେଇଛନ୍ତି; ବରଂ ସେମାନେ ମଧ୍ୟ ନବୀନ ପ୍ରତିଭାମାନଙ୍କୁ ପ୍ରଭାବିତ କରିବାରେ ସଫଳହୋଇ ନୂତନ ଉପନ୍ୟାସମାନ ସୃଷ୍ଟି କରିଛନ୍ତି ।

ଔପନ୍ୟାସିକ ସୁରେନ୍ଦ୍ର ମହାନ୍ତି ଏହି କାଳଖଣ୍ଡରେ ରାଜନୈତିକ, ଐତିହାସିକ ଓ ସାମାଜିକ ଘଟଣାବଳୀକୁ ଆଧାର କରି ବହୁ ଉପନ୍ୟାସ ଲେଖୁଛନ୍ତି । ସେଗୁଡ଼ିକ ମଧ୍ୟରୁ ‘ଅନ୍ଧଦିଗନ୍ତ’, ‘ନୀଳଶୈଳ’, ‘ଅଚଳାୟତନ’, ‘ବଧୂ ଓ ପ୍ରିୟା’, ‘ହଂସଗୀତ’, ‘ନିଳାଦ୍ରିବିଜୟ’, ‘ନେତି ନେତି’, ‘କୃଷ୍ଣାବେଣୀର ସନ୍ଧ୍ୟା’, ‘ଆଜିବକର ଅଟ୍ଟହାସ୍ୟ’ ଆଦି ଅନ୍ୟତମ, ସେହିପରି ଗୋକୁଳାନନ୍ଦ ମହାପାତ୍ରଙ୍କ ‘ଚନ୍ଦ୍ରର ମୃତ୍ୟୁ’, ‘ସ୍ଫୁଟନିକ୍’, ‘କୃତ୍ରିମ ଉପଗ୍ରହ’, ‘ପୃଥ‌ିବୀ ବାହାରେ ମଣିଷ’, ‘ଉଡ଼ନ୍ତା ଥାଳିଆ’ ଆଦି ଉପନ୍ୟାସ, ମହାପାତ୍ର ନୀଳମଣି ସାହୁଙ୍କ ‘ଧରା ଓ ଧାରା’, ‘ତାମସୀ ରାଧା’, ‘ହଂସ ମିଥୁନ’; ଗୋବିନ୍ଦ ଦାସଙ୍କ ‘ଅମାବାସ୍ୟାର ଚନ୍ଦ୍ର’, ‘ସୂର୍ଯ୍ୟାସ୍ତ’, ‘ଲାସୁ’, ଚନ୍ଦ୍ରଶେଖର ରଥଙ୍କ ‘ଯନ୍ତ୍ରାରୂଢ଼’, ‘ଅସୂର୍ଯ୍ୟ ଉପନିବେଶ’, ‘ନବଜାତକ’, କଣ୍ଡୁରୀ ଚରଣ ଦାସଙ୍କ ‘ରକ୍ତତାଣ୍ଡବ’, ‘କାଳରାତ୍ରିର ସଇତାନ୍’, ‘ଲାଲ୍‌ରୀ’, ‘ନିହତ ନାୟିକା’; ସାତକଡ଼ି ହୋତାଙ୍କ ‘ବ୍ୟାକୁଳ ହୃଦୟ’, ‘ଅନେକ ଦିଗନ୍ତ’, ‘ସ୍ୱପ୍ନଶିଉଳି’, ‘ଅଶାନ୍ତ ଅରଣ୍ୟ’, ‘ଅସମୟ’ ‘ଏତେ ସ୍ଵପ୍ନ ଏତେ ଆଲୋକ’ ଆଦି ଉପନ୍ୟାସ ବେଶ୍ ସ୍ମରଣୀୟ ।

ଉତ୍ତର ପଚାଶ ଉପନ୍ୟାସ ବିକାଶ ପର୍ବରେ ଆଉ ଜଣେ ପ୍ରତିଭାବାନ୍‌ ଔପନ୍ୟାସିକ ହେଉଛନ୍ତି ବିଭୂତି ପଟ୍ଟନାୟକ । ଅନେକଗୁଡ଼ିଏ ଉପନ୍ୟାସ ରଚନା କରି ସେ ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସ ସାହିତ୍ୟକୁ ବହୁ ବର୍ଷରେ ବର୍ଷମୟ କରିଅଛନ୍ତି । ତାଙ୍କର ‘ପ୍ରେମିକା’, ‘ଦିନ ଯାଏ ଚିହ୍ନ ରହେ’, ‘ତୁମେ ତୃଷ୍ଣାର ଜଳ’, ‘ଟୋପାଏ ସିନ୍ଦୁର ଦିଟୋପା ଶଙ୍ଖା’, ‘କେଶବତୀ କନ୍ୟା’ ‘ବଧୂ ନିରୁପମା’, ‘ଚପଳଛନ୍ଦା’, ‘ସୁଲତାନା’, ‘ଓଦାମାଟିର ସ୍ୱର୍ଗ’, ‘ବନ୍ଦୀ ଯାଯାବର’, ‘ଅସବର୍ଣ୍ଣ’, ‘ଦେବକୀର କାରାବାସ’, ‘ନାୟିକାର ନାମ ଶ୍ରାବଣୀ’, ‘ସତୀ ଅସତୀ’, ‘ଘନ କୁହୁଡ଼ିର ଦିନ’, ‘ଅଶୋକ ବନର ସୀତା’, ‘ଦଗ୍ଧ ଫୁଲବନ’, ‘ସୁଲୋଚନା’, ‘ଛବିର ମଣିଷ’, ‘ଅଶ୍ୱମେଧର ଘୋଡ଼ା’, ‘ବିଦାୟବେଳା’, ‘ଶେଷବସନ୍ତ’, ‘ପରପୁରୁଷ’, ‘ଅଦିନ ଶ୍ରାବଣ’, ‘ପ୍ରିୟବାନ୍ଧବୀ’, ‘ଛାୟା ଚନ୍ଦ୍ରିକା’, ‘ଏଇ ଗାଁ ଏଇ ମାଟି’, ‘ପ୍ରିୟପୁରୁଷ’, ‘ଖେଳଘର ଭାଙ୍ଗିଗଲା’, ‘ମନ ଭଲ ନାହିଁ’, ‘ଆଗ୍ନେୟଗିରିରେ ବଣଭୋଜୀ’ ଆହୁରି ଅନେକ ଉପନ୍ୟାସ ଏହା ପ୍ରମାଣ କରେ ।

ତେବେ ଏଇ ସମୟରେ ଆଉ ଜଣେ ବିଶିଷ୍ଟ ପ୍ରତିଭା ତଥା ଅନନ୍ୟ ଔପନ୍ୟାସିକା ଥିଲେ ପ୍ରତିଭା ରାୟ । ତାଙ୍କର ଅନେକଗୁଡ଼ିଏ ଉପନ୍ୟାସ ଖାଲି ପାଠକର ପ୍ରିୟ ଯେ ହୋଇରହିଛି, ତାହା ନୁହେଁ; ବରଂ ଚର୍ଚ୍ଚାର କେନ୍ଦ୍ରବିନ୍ଦୁ ପାଲିଟିଛି । ଏହି ଔପନ୍ୟାସିକାଙ୍କ ‘ଦୁଇଟି ଢେଉ’, ‘ବର୍ଷା-ବସନ୍ତ-ବୈଶାଖ’, ‘ଅରଣ୍ୟ’, ‘ଉପନାୟିକା’, ‘ନିଷିଦ୍ଧ ପୃଥ‌ିବୀ’, ‘ପରିଚୟ’, ‘ପୁଣ୍ୟତୋୟା’, ‘ଅପରିଚିତା’, ‘ମେଘମେଦୁର’, ‘ଆଶାବରୀ’, ‘ଅୟଆରମ୍ଭ’, ‘ନୀଳତୃଷ୍ଣା’, ‘ସମୁଦ୍ରର ସ୍ଵର’, ‘ଶିଳାପଦ୍ମ’, ‘କଇଁଚର ସପନ’, ‘ଦେହାତୀତ’, ‘କୁଳର ନିଆଁ’, ‘ନଦୀ ନିସ୍ତରଙ୍ଗ’, ‘ଯାଜ୍ଞସେନୀ’, ‘ଡାଳିମ୍ବ ଫୁଲର ହସ’, ‘ଆଦିଭୂମି’, ‘ଉତ୍ତରମାର୍ଗ’, ‘ମହାମୋହ’ ଆଦି ଉପନ୍ୟାସ ତାଙ୍କ ପ୍ରତିଭାର ପରିଚୟ ବହନ କରେ ।

ସେହିପରି ଗାୟତ୍ରୀ ବସୁମଲ୍ଲିକଙ୍କ ‘କାବେରୀ’, ‘ଓଏସିସ୍’, ‘ମରୁଝର’, ‘ମାଧବୀର ମଧୁରାତ୍ରି’, ‘ସୂର୍ଯ୍ୟୋପରାଗ’, ‘ମୃଗତୃଷ୍ଠାର ଇତିକଥା’,,‘ସାତ ସାଗର ତେର ନଈ’, ‘ନୃସିଂହ ଚରଣ ପଣ୍ଡାଙ୍କ ‘ଚଣ୍ଡାଶୋକ’, ‘ଧର୍ମାଶୋକ’, ‘ମେଷପାଳକ’, ‘ଖାରବେଳ’, ‘ସପ୍ତସିନ୍ଧୁ’, ଶାନ୍ତନୁ ଆଚାର୍ଯ୍ୟଙ୍କ ‘ନରକିନ୍ନର’, ‘ଶତାବ୍ଦୀର ନଚିକେତା’, ‘ତିନୋଟି ରାତିର ସକାଳ’, ‘ଦକ୍ଷିଣାବର୍ତ୍ତ’, ‘ଯାତ୍ରାର ପ୍ରଥମ ପାଦ’, ‘ଶକୁନ୍ତଳା’, ‘ତୃଷ୍ଣା’, କୃଷ୍ଣପ୍ରସାଦ ମିଶ୍ରଙ୍କ ‘ମୃଗତୃଷ୍ଣା’, ‘ସିଂହକଟି’, ‘ନେପଥ୍ୟ’, ‘ଯମେଶ୍ଵର ତ୍ରିପାଠୀଙ୍କ ‘ମିଥୁନଲଗ୍ନ’, ‘ସେକାଳ ଏକାଳ ଅନ୍ୟକାଳ’, ‘ମାଳବିକାର ସ୍ବପ୍ନ’ ‘ଝଡ଼ ଓ ନୀଡ଼’, ‘ସଞ୍ଜ ସକାଳ’, ‘ଚିତ୍ତ ଚକୋରୀ ଝୁରେ’, ଅବନିକୁମାର ବରାଳଙ୍କ ‘ଅପରାହ୍ନର ଛାୟା’, ‘ମଞ୍ଚକନ୍ୟାର କାହାଣୀ’, ‘ସଂଳାପ ନିର୍ଜନତାର’, ‘ପ୍ରେମର ଅନ୍ଵେଷଣରେ ଗୋଟିଏ ତରୁଣୀ’, ଶ୍ରୀନିବାସ ଉଦ୍‌ଗାତାଙ୍କ ‘ନୀଳନୟନ ତଳେ’, ‘ଶେଷରାତ୍ରି ପ୍ରଥମ ସକାଳ’, ‘ଶିଳାର ସ୍ଵପ୍ନ’, ‘କାନ୍ତା’, ବୀଣା ମହାପାତ୍ରଙ୍କ ‘ଅଙ୍ଗେ ଅଙ୍ଗେ ରଙ୍ଗ ଲାଗେ’, ‘ଏଇ ଜହ୍ନରାତି’, ‘ମନମୟୂରୀ’, ‘ସୁବର୍ଣ୍ଣ ସୀତା’, ‘ନୀଳଝରଣା’, ‘ଜୀବନରଙ୍ଗ’, ଦେବ୍ରାଜ ଲେଙ୍କାଙ୍କ ‘ଜୋକର’, ‘ଖେଳ’, ‘ଅନ୍ଧମୁହାଣୀ’, ‘ପ୍ରେମ ନଗରର ଅନେକ କଥା’, ‘ଦୂର ପୃଥ‌ିବୀର ତାରା’, ‘ଅନ୍ଵେଷ’, ‘ଅନ୍ଵେଷଣ’ ଆଦି ଉପନ୍ୟାସଗୁଡ଼ିକ ଔପନ୍ୟାସିକ ଦକ୍ଷତାକୁ ପ୍ରମାଣ କରିଛନ୍ତି ।

ଅନ୍ୟ ଯେଉଁସବୁ ଉପନ୍ୟାସ ଓ ଔପନ୍ୟାସିକ ଏହି କାଳଖଣ୍ଡରେ ଚର୍ଚ୍ଚାରେ ଥିଲେ, ସେମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ବ୍ରଜମୋହନ ମହାନ୍ତିଙ୍କ ‘ବିହୁଏ ନିଆଁ’, ‘ତକ୍ଷକ ମୁଁ କୃଷ୍ଣ’, ‘ମୃତନଦୀର ଢେଉ’, ‘ଅନ୍ଧ ପୃଥ‌ିବୀ’, ‘ଲଳିତା ଲବଙ୍ଗଲତା’, କଳ୍ପନାକୁମାରୀ ଦେବୀଙ୍କ ‘ପଞ୍ଚପୁଷ୍ପ’, ‘ପ୍ରଜାପତିର ମନ’, ‘ଦିନାନ୍ତର ରଙ୍ଗ’ ରଘୁନାଥ ମହାପାତ୍ରଙ୍କ ‘ପ୍ରଥମ ପ୍ରତିଶ୍ରୁତି’, ‘ଧୂସର ମାଟି ଓ ସବୁଜ ଶସ୍ୟ’, ଅନାଦି ସାହୁଙ୍କ ‘ମୁଣ୍ଡ ମେଖଳା’, ‘ଜଙ୍ଗଲୀ ସହର’, ‘କ୍ଷଣଭଙ୍ଗୁର’, ‘ଶରସଜ୍ଜା’, ଗଣେଶ୍ବର ମିଶ୍ରଙ୍କ ‘ସାମୁଦ୍ରିକ’, ‘ଆରୋହୀ’, ‘ନେତା’ ହୃଷିକେଶ ପଣ୍ଡାଙ୍କ ‘ଶୂନ୍ୟ ସଙ୍ଗେ ସାମୟିକ ସନ୍ଧି’, ‘ହରିଣ ପିଠରେ ଅଜଣା ସୂର୍ଯ୍ୟାସ୍ତକୁ’, ‘ସୁନାପୁଟର ଲୋକେ’, ‘ସୁବର୍ଣ୍ଣ ଦ୍ୱୀପ’, ‘ଶୃତ ୧୯୯୪’, ‘ହସ ଓ ଇତିହାସ’, ଭାସ୍କର ଜେନାଙ୍କ ‘ଅନୁତପ୍ତ ଅନ୍ଧକାର’, ‘ଅବ୍ୟକ୍ତ ଅଭିମାନ’, ‘ଅବୁଝା ପୃଥିବୀ’, ‘ସମୟ ଅସମୟ’, ‘ନୀରବ ସୂର୍ଯ୍ୟାସ୍ତ’, ‘କାଗଜଫୁଲ’, ‘ରଙ୍ଗୀନ ସମୁଦ୍ର’, ‘ବିଷଣ୍ଣ ଅରଣ୍ୟ’, ପଦ୍ମଜ ପାଳଙ୍କ ‘ଦୁର୍ଗ ପତନର ବେଳ’, ‘ଆମ ସମୟର ଦୁଃଖ’, ‘ପାପ ପରି ନିଜର’, ‘ଗଣ୍ଡ ଭୈରବ’ ଆଦି ଉପନ୍ୟାସ ଅନ୍ୟତମ ।

CHSE Odisha Class 11 Optional Odia Solutions Chapter 2 ନନ୍ଦିକେଶ୍ୱରୀ

ସ୍ଥୂଳତଃ ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସର ସ୍ଵାଧୀନତା ପରବର୍ତ୍ତୀ କାଳରେ ଘଟିଛି ଅନେକ ପରିବର୍ତ୍ତନ । ଉଭୟେ ଆଙ୍ଗିକ ଓ ଆମ୍ବିକ କ୍ଷେତ୍ରରେ ଆସିଛି ନବ ନବ ପ୍ରୟୋଗଶୈଳୀ । କେବେ କେବେ ଏଇ ପରୀକ୍ଷା ପ୍ରବଣତା ପାଠକ ପାଖରେ ଅବୋଧ ହୋଇଛି ତ କେବେ କେବେ ବେଶ୍ ଗ୍ରହଣଯୋଗ୍ୟ ହୋଇଛି । ତେବେ ଯାହାହେଉ ଏକଥା ଆମମାନଙ୍କୁ ସ୍ଵୀକାର କରିବାକୁ ହେବ ଯେ ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସର ସ୍ତର କାଳକ୍ରମେ ସମ୍ପ୍ରସାରିତ ହୋଇଛି । ବହୁ ପତ୍ରପତ୍ରିକାରେ ଏଯାବତ୍ ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସ ସେମାନଙ୍କ ଯାତ୍ରା ଅବ୍ୟାହତ ରଖୁଛି । ବିଶ୍ଵ ଉପନ୍ୟାସ ସାହିତ୍ୟ ସହ ତାଳଦେଇ ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସ ସାହିତ୍ୟ ମଧ୍ଯ ଆଗେଇ ଯିବାର ପଣ ବାନ୍ଧିଲାଣି ।

ସଂକ୍ଷେପରେ ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସର ବିକାଶଧାରାକୁ ଉପରୋକ୍ତ କ୍ରମେ ଆଲୋଚନା କରାଗଲା । ମୋଟାମୋଟି ଭାବରେ ଓଡ଼ିଆ ପାଠକପାଠିକାଙ୍କ ଇଚ୍ଛାକୁ ଆଖ୍ୟାଗରେ ରଖୁ ଓଡ଼ିଆ ଉପନ୍ୟାସ ଗତିକରିଛି ।

କଠିନ ଶବ୍ଦ ଓ ଏହାର ଅର୍ଥ :

  • କେତନ – ପତାକା ।
  • ସମୀରଣ – ପବନ ।
  • ବାଦିତ୍ର – ବାଦ୍ୟ, ବାଜା ।
  • ଦାସେରକ – ଉଷ୍ଟ୍ର, ଓଟ।
  • ବିପଣି – ହାଟ, ବଜାର ।
  • ସ୍କନ୍ଧାବାର – ତମ୍ବୁ, ଶିବିର ।
  • ତାଳୀବନ – ହେନ୍ତାଳ ବନ ।
  • ବରାହ – ଆଳିର ସର୍ବପ୍ରଧାନ ଦେବତା ।
  • ତୁଳସୀକ୍ଷେତ୍ର – କନ୍ଦରପଡ଼ା, ଲଳିତଗିରି ବାସୀ କନ୍ଦରାସୁରକୁ ସଂହାର କରି ବଳରାମ ତାହାର କନ୍ୟା ତୁଳସୀକୁ ବିବାହ କରିଥିବାର ସ୍ଥାନୀୟ କିମ୍ବଦନ୍ତୀ ଅଛି । ଏହି ହେତୁରୁ କନ୍ଦରପଡ଼ାର ଅନ୍ୟତମ ନାମ ତୁଳସୀକ୍ଷେତ୍ର । ବଳଦେବ କେନ୍ଦ୍ରାପଡ଼ାର ପ୍ରଧାନ ଦେବତା ।
  • ଚଣ୍ଡୀ – ଅସୁରେଶ୍ଵରର ପ୍ରଧାନ ଦେବତା ହରଚଣ୍ଡୀ । ଏଠାରେ ପ୍ରାୟ ପ୍ରତ୍ୟହ ବଳିଦାନ ହୁଏ । ଏପରି ବଳିଦାନ ଓଡ଼ିଶାରେ ଅନ୍ୟତ୍ର ଦେଖାଯାଏ ନାହିଁ ।
  • ଶାଳିପୁର — (ଆଧୁନିକ ନାମ ସାଲେପୁର)ରେ ପ୍ରବାହିତ ମହାନଦୀର ଶାଖା ଚିତ୍ରୋତ୍ପଳା ତୀରରେ ଭଗବତୀଙ୍କ ମନ୍ଦିର ପ୍ରତିଷ୍ଠିତ ।
  • ପୂତ – ପବିତ୍ର ।
  • ଉତ୍ତରକୋଶଳା – ପ୍ରାଚୀନ କାଳରେ ମହାନଦୀର ଉତ୍ତରାଂଶ ଉତ୍ତର କୋଶଳା ନାମରେ ଅଭିହିତ ହେଉଥିଲା ।
  • ବଳାରାତିପ୍ରିୟା – ଶଚୀ ଛତିଆର ଅଧ୍ୟାତ୍ରୀ ଦେବୀ ଥିଲେ ।
  • ଟଙ୍କିଳ – ଟାଙ୍ଗରା/ପାହାଡ଼ିଆ ।
  • ଆଳତୀ — ଆଳତୀରେ ଅଦ୍ୟାପି ଚନ୍ଦନ ବୃକ୍ଷ ଦେଖାଯାଏ ।
  • ଅମ୍ବରେ — ଆକାଶରେ ।
  • ସ୍ବର୍ଣ୍ଣଚୂଡ଼ – ପ୍ରଚଳିତ ନାମ ସୁନହଟ୍ ।
  • ଛୁରୀଅନା – ପୁନଙ୍ଗରେ ଅନେକ ଛୁରୀଅନା ବୃକ୍ଷ ଦେଖାଯାଏ ।
  • ମାଧବାଖ୍ୟ ଗ୍ରାମ – ପ୍ରାଚୀ ତୀରବର୍ତ୍ତୀ ମାଧବ ଗ୍ରାମ ଯେଉଁଠାରେ ମାଧବଙ୍କର ମନ୍ଦିର ପ୍ରତିଷ୍ଠିତ ।
  • ତରକେ – ଭୟ ଦେଖାଏ ।
  • ଧଉଳି – ଦୟାନଦୀ ତୀର ରେ ଅବସ୍ଥିତ ଐତିହାସିକ ପର୍ବତ ।
  • ରଙ୍ଗଣ – କାଠରଙ୍ଗଣୀ ପୁଷ୍ପ ।
  • ଐର-ଯଶ – ଖଣ୍ଡଗିରିର ଗୁମ୍ଫାମାନ ଐରରାଜା ଖାରବେଳଙ୍କ ପ୍ରଧାନ କୀର୍ତ୍ତି ଯାହା ତାଙ୍କର ଯଶ ପ୍ରଚାର କରେ ।
  • ନିର୍ମଳା ନିର୍ଝର – ଖଲିକୋଟ ରାଜଧାନୀର ଅଦୂରବର୍ତ୍ତୀ ଝରଣା ଯାହାର ଜଳ ସ୍ଵାସ୍ଥ୍ୟକର ବୋଲି ପ୍ରସିଦ୍ଧ ।
  • ମହେନ୍ଦ୍ର – ଓଡ଼ିଶାର ସର୍ବୋଚ୍ଚ ପର୍ବତ । କୁଳାଚଳ ମଧ୍ୟରେ ଏହା ପରିଗଣିତ ।
  • ମାଲ୍ୟଗିରି – ଉତ୍କଳର ସର୍ବୋଚ୍ଚ ପବର୍ତ, ଲହଡ଼ାରେ ଅବସ୍ଥିତ ।
  • ହରିଦ୍ରା – ହଳଦି, କନ୍ଧମାଳରେ ପାର୍ବତୀୟ କ୍ଷେତ୍ର ମାନଙ୍କରୁ ହରିଦ୍ରା ଯଥେଷ୍ଟ ପରିମାଣରେ ଉତ୍ପନ୍ନ ହୁଏ ।
  • ହିଙ୍ଗୁଳା – ହିଙ୍ଗୁଳାଦେବୀ ତାଳଚେରରେ ପ୍ରଧାନ ଦେବତା ।
  • ଢେଙ୍କା – ଢେଙ୍କା ନାମକ ଶବର ରାଜା ଯାହାଙ୍କ ନାମରୁ ଢେଙ୍କାନାଳ ନାମ ହୋଇଛି ।
  • ସାତକୋଶିଆ ଗଣ୍ଡ – ଦଶପଲ୍ଲା ଓ ବଉଦର ଅନ୍ତର୍ଗତ । ବଡ଼ମୂଳ ଘାଟୀ ଏହି ଗଣ୍ଡର ପୂର୍ବ ସୀମା । ଏହି ଗଣ୍ଡ ଗୋଟିଏ ପ୍ରଧାନ ଦୃଶ୍ୟସ୍ଥଳ ।
  • ଗୋମାୟୁ – ଶୃଗାଳ, ବିଲୁଆ।
  • କେଶରୀ – ସିଂହ ।
  • ଦୁର୍ନିବାର – ଯାହାକୁ ବାଧା ଦେବା ଦୁଃସାଧ୍ୟ ।
  • ଦାବବହ୍ନି – ବନାଗ୍ନି ।
  • ଚନ୍ଦ୍ରଚୂଡ଼ – ଶିବ ।
  • ବାସୁଦେବ – ବାସୁଦେବ ନାମକ ଜଣେ ଉତ୍କଳୀୟ ବ୍ରାହ୍ମଣ ଚୋର ଗଙ୍ଗଙ୍କର ମନ୍ତ୍ରୀତ୍ଵ ସ୍ଵୀକାର କରିଥିଲେ । ପ୍ରଥମେ ସୁବର୍ଷ କେଶରୀଙ୍କ ମନ୍ତ୍ରୀ ଥାଇ ତାହାଙ୍କ ସହିତ ବିବାଦ ହେବାରୁ ତାଙ୍କୁ ଛାଡ଼ି ପଳାଇ ଆସିଲେ ଏବଂ ଚୋରଗଙ୍ଗଙ୍କୁ ଉତ୍କଳୀୟ ସିଂହାସନରେ
  • ବସାଇବାର ତାଙ୍କର ଲକ୍ଷ୍ୟ ଥିଲା ।
  • ସିକତା – ବାଲୁକା ।
  • ମାତୃପାଦପଦ୍ମ – ଗଙ୍ଗାଦେବୀ ଚୋର ଗଙ୍ଗଙ୍କର ଜନନୀ, ଏହି କିମ୍ବଦନ୍ତୀ ଉତ୍କଳ ଇତିହାସରେ ପ୍ରସିଦ୍ଧ ।
  • ଅସିହସ୍ତେ – ଖଣ୍ଡା ହାତରେ ଧରି ।
  • ବନସ୍ପତି – ବଡ଼ ବଡ଼ ବୃକ୍ଷ ।
  • ପର୍ବତ-ମେଖଳେ – ପର୍ବତର ମଧ୍ୟଭାଗରେ ।
  • ଅରାବଳୀ – ଆର୍ଦ୍ରବଳୀ; କାଳପୁରୁଷ ନକ୍ଷତ୍ରପୁଞ୍ଜ ।
  • କୌଶିକ – ପେଚା ।
  • ଚଷାପୁଅ – ପକ୍ଷୀବିଶେଷ ।
  • ତ୍ରୈର୍ଯ୍ୟତ୍ରିକ – ନୃତ୍ୟ-ଗୀତ-ବାଦ୍ୟର ସମନ୍ଵୟ ।
  • ଛାୟାବାଜି – କୁହୁକ ।
  • ତାମରସ – ପଦ୍ମ ।
  • କହ୍ଲାର – ଧଳାକଇଁ, ପାଣିଶିଉଳି ।
  • ବର୍ତ୍ତ – ମୟୂର ।
  • ବିହଙ୍ଗ – ପକ୍ଷୀ ।
  • କାକଳି – ପକ୍ଷୀ କୂଜନ ।
  • ଦ୍ବିଜରାଜ – ଚନ୍ଦ୍ର ।
  • ମୟୂଖ – ଜ୍ୟୋତି / କିରଣ ।
  • ପାର୍ବତୀ – ପାର୍ବତୀ (ଶକ୍ତି) ଗଙ୍ଗାଙ୍କର ସପତ୍ନୀ ।
  • ଦେବବ୍ରତ – ଭୀଷ୍ମ ।
  • କରକା – କୁଆପଥର ।
  • ବିଷ୍ଣୁପଦୀ – ଗଙ୍ଗା ।
  • ତୀର୍ଥେଶ – ସମୁଦ୍ର ।
  • ମହେନ୍ଦ୍ର – ଓଡ଼ିଶାର ପର୍ବତମାଳା ମହେନ୍ଦ୍ରଗିରିର ଅଂଶୀଭୂତ ।
  • ସୁକାନ୍ତି – ମୁନି ବିଶେଷ ।
  • ଶ୍ରୀନୀଳମାଧବ – ଖଣ୍ଡପଡ଼ା ଅନ୍ତର୍ଗତ ମହାନଦୀ-ତୀରବର୍ତୀ ସୁପ୍ରସିଦ୍ଧ କଣ୍ଟିଲୋ-ପାଟଣାର ଗୋଟିଏ ପର୍ବତ-ଶିଖରରେ ନୀଳ ମାଧବ-ମନ୍ଦିର ପ୍ରତିଷ୍ଠିତ ।
  • ଭଟ୍ଟାରିକା – ବଡ଼ାମ୍ବା ରାଜ୍ୟରେ ପ୍ରତିଷ୍ଠିତ ; ଏହାଙ୍କର ଅପର ନାମ ବୃହଦମ୍ବା ।
  • ଚର୍ଚ୍ଚିକା – ବାଙ୍କିର ପ୍ରଧାନ ଦେବୀ ।
  • ଧବଳଈଶ୍ବର – ମହାନଦୀର ସ୍ରୋତ ମଧ୍ୟରେ ପର୍ବତ ଶୃଙ୍ଗ ରେ ସିଂହ ନା ଥ ଏବଂ ଧବଳେଶ୍ଵରଙ୍କ ମନ୍ଦିର ପ୍ରତିଷ୍ଠିତ ।
  • ଦ୍ବିଷାମ୍ପତି – ସୂର୍ଯ୍ୟ ।
  • ବର୍ଷୀ – ରାସ୍ତା ।
  • ପାଶୀ – ବରୁଣ ।
  • ସୌଦାମିନୀ – ବିଜୁଳି ।
  • ମହାଦେବୀ – ବିରଜା ଦେବୀ, ସେ ଯଜ୍ଞରୁ ସମ୍ଭୂତା ବୋଲି କିମ୍ବଦନ୍ତୀ ଅଛି ।
  • ଗୋନାସିକା – କେନ୍ଦୁଝର ଅନ୍ତର୍ଗତ ଭୂୟାଁପୀଢ଼ରେ ଗୋନାସିକା ପର୍ବତ ଅବସ୍ଥିତ । ଏହି ପର୍ବତରୁ ବୈତରଣୀ ନଦୀ ଜାତ ହୋଇଛି ।
  • ମହାବରାହ – ମହାବରାହନାଥ ଯାଜପୁରର ପ୍ରସିଦ୍ଧ ଦେବତା ।
  • ମେଘାସନ – ମେଘାସନ ଗିରି ଓଡ଼ିଶାର ଦ୍ଵିତୀୟ ଉଚ୍ଚ ପର୍ବତ, ମୟୂରଭଞ୍ଜରେ ଅବସ୍ଥିତ । ଏହା ଶିମୂଳିପାଳ ପର୍ବତର ପ୍ରଧାନ ଶିଖର । ଶିମୂଳି ପାଳ ପର୍ବତରୁ ବଳାଙ୍ଗୀ ଜାତ ।
  • ଝଟିକା – ଝଡ଼ ।
  • ରମ୍ଭା – ବାମଣ୍ଡା ରାଜ୍ୟ ଅନ୍ତର୍ଗତ ବ୍ରାହ୍ମଣୀ ତୀରବର୍ତୀ ‘ବାରକୂଟ’ ଗ୍ରାମରେ ରମ୍ଭାଙ୍କ ମନ୍ଦିର ଅଛି ।
  • ପ୍ରଧାନପାଟ – ପ୍ରଧାନପାଟର ପ୍ରପାତ ବାମଣ୍ଡା ରାଜଧାନୀ ଦେବଗଡ଼ ନିକଟବର୍ତୀ ।
  • ଭୃଗୁ – ପର୍ବତର ଢାଲୁ ପ୍ରଦେଶ ।
  • ବଂଶଧର – ବଂଶର ଦାୟାଦ, ବାମଣ୍ଡାର ରାଜଧାନୀ ଦେବଗଡ଼ । ଚୂଡ଼ଙ୍ଗ ଦେବ ବାମଣ୍ଡା ରାଜବଂଶର ଆଦିପୁରୁଷ ଅଟନ୍ତି ।
  • ସୁକାନ୍ତି-ତନୁଜା – ମହାନଦୀ ।
  • ଚୂଡ଼ଙ୍ଗ ଦହ – ଏହି ହ୍ରଦ କଟକରୁ ୪ କ୍ରୋଶ ଦୂରବର୍ତ୍ତୀ ସାରଙ୍ଗଗଡ଼ ନିକଟସ୍ଥ ଅରଣ୍ୟ ମଧ୍ୟରେ ଅବସ୍ଥିତ । ଏହା ଅତ୍ୟନ୍ତ ଗଭୀର ଏବଂ ଏହାର ଜଳ ନିର୍ମଳ । କେହି କେହି କହନ୍ତି ଯେ, ଏହା ମଧ୍ଯରେ ଗଙ୍ଗାଦେବୀଙ୍କର ମନ୍ଦିର ଅଛି ଏବଂ ବିଗତ ନଅଙ୍କରେ କିଞ୍ଚିତ୍ ଜଳ
  • ଶୁଷ୍କ ହୋଇଯିବାରୁ ଉକ୍ତ ମନ୍ଦିରର ଚୂଡ଼ା ଦୃଷ୍ଟିଗୋଚର ହୋଇଥିଲା ।
  • ତଡ଼ିତ – ବିଜୁଳି ।
  • ଅମ୍ବରେ – ଆକାଶରେ । ତରଣି – ସୂର୍ଯ୍ୟ ।
  • ଅଚଳେ – ପାହାଡ଼ ଉପରେ ।
  • ନଦୀକୂଳ ବନ୍ଧୁ ଯାମଘୋଷୀ ପକ୍ଷୀ ।
  • ପ୍ରଦୋଷ – ସନ୍ଧ୍ୟା ।
  • ଦେବୀଦ୍ବାର – ଡମପଡ଼ା ଅନ୍ତର୍ଗତ ପ୍ରସିଦ୍ଧ ପର୍ବତମାଳା । ଏହା କଟକର ଦକ୍ଷିଣ-ପଶ୍ଚିମ ପଟରେ ଅବସ୍ଥିତ ।
  • ବାରୁଣୀ – ପଶ୍ଚିମ ।
  • ସ୍ଵର୍ଣ୍ଣବେଳ – ସୁନାର ବସ୍ତ୍ର ।
  • ସପ୍ତଶଯ୍ୟା – ସପ୍ତଶଯ୍ୟା ପର୍ବତ ଢେଙ୍କାନାଳ ଅନ୍ତର୍ଗତ । କଟକର ପଶ୍ଚି ମରେ ଯେଉଁ ପର୍ବତମାନ ଦୃଷ୍ଟ ହୁଅନ୍ତି, ସେମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ସପ୍ତଶଯ୍ୟା ପର୍ବତ ସର୍ବୋଚ୍ଚ ।
  • ଗ୍ରହରାଜ – ସୂର୍ଯ୍ୟ ।
  • ନରାଜ – ନରାଜର ବୌଦ୍ଧକୀର୍ତ୍ତି ଇତିହାସ-ପ୍ରସିଦ୍ଧ ।
  • ସର୍ପେଶ୍ବର – ସର୍ପେଶ୍ଵର ପର୍ବତ ଆଠଗଡ଼ର ଅନ୍ତର୍ଗତ । ନରାଜର ବିପରୀତ ପାର୍ଶ୍ଵରେ ଅବସ୍ଥିତ ଆଠଗଡ଼ର ପ୍ରଧାନତମ ନଦୀ ସର୍ପେଶ୍ୱରୀ (ସାପୁଆ) ଏହି ପର୍ବତ ତଳେ ମହାନଦୀରେ ମିଳିଅଛି ।
  • ରଥାଙ୍ଗୀ – ଚକ୍ରବାକୀ ।
  • ମିହିର – ସୂର୍ଯ୍ୟ ।
  • ପଟିଆ – ଏହି ରାଜ୍ୟ କଟକରୁ ୩ କୋଶ ଦକ୍ଷିଣରେ ଅବସ୍ଥିତ । ଏହାର ପର୍ବତ ଏବଂ କାନନ ବେଷ୍ଟିତ ଦହମାନ ଅତି ରମଣୀୟ। ଏହି ଦହ ମାନ ଙ୍କର ପଦ୍ମପତ୍ର, ପଦ୍ମପୁଷ୍ପ ଏବଂ ଶିଙ୍ଗଡ଼ା ପ୍ରଭୃତି କଟକ କୁ ଯଥେଷ୍ଟ ପରିମାଣରେ ଆମଦାନୀ ହୁଏ ।
  • ଛୁରିତ – ଲିପ୍ତ । ପଶ୍ଚିମ ଆକାଶ କୁଙ୍କୁମ ବର୍ଣ୍ଣ ଧାରଣ କଲା ।
  • ତିମିର – ଅନ୍ଧକାର ।
  • ଚନ୍ଦ୍ରୋଦୟା – ଚନ୍ଦ୍ରଦୀପ ।
  • କୈରବ – କୁମୁଦ ।
  • ଗିର – କଥା ।
  • ଗୁଢ଼ଚାର – ଗୁପ୍ତଚର ।
  • ସରଣୀ – ରାସ୍ତା; ପଥ ।
  • ମହିଷୀ – ରାଣୀ ।
  • ନବକିଶଳୟ – ନୂଆ କଅଁଳ ପତ୍ର ।
  • ମୁକୁଳ – କଢ଼ି ।
  • କେଶରିପ୍ରବୀର – ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀ ଶ୍ରେଷ୍ଠ ରାଜା ।
  • ଯାମିନୀ – ରାତ୍ରି ।
  • ବନସ୍ପତି – ବଡ଼ ବଡ଼ ବୃକ୍ଷ ।
  • ତମିସ୍ର – ଗାଢ଼ ଅନ୍ଧକାର ।
  • ପୋତପାଳ – ନାବିକ ।
  • ହର୍ମ୍ଯ – ଉଚ୍ଚତମ ପ୍ରାସାଦ ।
  • ମାରେ – କନ୍ଦର୍ପରେ; କାମପୀଡ଼ାରେ ।
  • ବାଜି – ଅଶ୍ବ ।
  • ଶିଖଣ୍ଡି ବାହନ – କାର୍ତ୍ତିକେୟ; ମୟୂର ବାହନ ।
  • ପୁଷ୍ପଧନୁଷ୍ପାଣି – କାମଦେବ ।
  • ଲୋଳ – ଆନ୍ଦୋଳିତ ।
  • କଳଧୌତେ – ସୁନାରେ ।
  • ତ୍ରାସ – ଭୟ ।
  • ପନ୍ନଗ – ସର୍ପ ।
  • ଚୋରଗଙ୍ଗ – ଗଙ୍ଗାଙ୍କର ପୁତ୍ର ବୋଲି ଇତିହାସ ଅସମର୍ଥିତ ଏକ କିମ୍ବଦନ୍ତୀ ଅଛି ।
  • ପବି – ବଜ୍ର
  • ଆଶୁଗ – ଶର (ଭୀଷ୍ମଙ୍କ ଶର ଶଯ୍ୟା ଉପାଖ୍ୟାନ ମହାଭାରତରେ ବଣ୍ଠିତ) ।
  • ପ୍ରଭଞ୍ଜନ – ପବନ ।
  • ଅରାତି – ଶତ୍ରୁ ।
  • ଅର୍ଗଳା – ମାନ୍ଦା, ବରଣମାଳା ।
  • ଅରି – ଶତ୍ରୁ ।
  • ଅଶନି – ବଜ୍ର ।
  • ଭିକ୍ଷା ବ୍ୟବସାୟୀ – ଭିକାରି ।
  • ସୁତା – କନ୍ୟା ।
  • ଉଦ୍‌ଯୋଗୀ – ଉଦ୍ୟମଶୀଳ ।
  • ଦୟିତ – ପତି ।
  • ନିଗଡ଼ – ବନ୍ଧନ ।
  • ଚୋରବର – ଚୋରଗଙ୍ଗ ବର ହୁଅନ୍ତେ ।
  • ଖଞ୍ଜରୀଟ – ଖଞ୍ଜନ ପକ୍ଷୀ ବା କଜଳପାତି ପକ୍ଷୀ ।
  • ରାଜସଙ୍ଗେ – ରାଜପୁରେ ।
  • ନ୍ଯାସ – ଫେରାଇ ନେବାର ସର୍ତ୍ତରେ ଦିଆଯାଇଥିବା ।
  • ପର୍ବ-ଶର୍ବରୀଶ-ମୁଖୀ – ପୂର୍ଣ୍ଣଚନ୍ଦ୍ରମୁଖୀ ।
  • ସାଧ୍ବସ – ଭୟ, ସମ୍ଭମ ।
  • ଫୁଲଧନୁ — କନ୍ଦର୍ପ ।
  • କାଠଯୋଡ଼ି – ମହାନଦୀର ଶାଖାନଦୀ ; କାଠଯୋଡ଼ିର ପଥରବନ୍ଧ ମରକତ କେଶରୀଙ୍କର ସର୍ବପ୍ରଧାନ କୀର୍ତ୍ତି ।
  • ରାଜହଂସବନ – ରାଜହଂସବନ କଟକର ପୂର୍ବବର୍ତୀ । ପୂର୍ବକାଳରେ ଏହା ଗୋଟିଏ ବୃହତ୍ ବନ ଥିଲା ।
  • ଅତଣ୍ଡି – ଶୁଭ୍ର-ପତ୍ରବିଶିଷ୍ଟ ବନଲତା ବିଶେଷ ।
  • ଧୂର୍ଜଟି – ମହାଦେବ ।
  • କଉସ୍ତୁଭ – ବିଷ୍ଣୁଙ୍କର ବକ୍ଷରେ ଶୋଭାପାଉଥ‌ିବା ମଣି ।
  • ସୈକତ – ବାଲୁକା ।
  • ଚକୋର – ପାପି ଆ ପକ୍ଷୀର ସଂସ୍କୃତ ନାମ ଚକୋର ।
  • ବିଭାବରୀ – ରାତି ।
  • ଭୀମ – ଭୟଙ୍କର, ନିଷ୍ଠୁର ।
  • ବଚସ୍କର – କଥା ବା ଆଦେଶର ପୂର୍ବ ଅଧୀନ ।
  • ଅମ୍ବୁରାଶି – ସମୁଦ୍ର ।
  • ଅକୂପାର – ସାଗର ।
  • ଚମୁପତି – ସେନାପତି ।
  • ମତ୍ତକାଶୀ – ଉତ୍ତମା ରମଣୀ ।
  • ଶରଦିନ୍ଦୁ – ଶରତ ଋତୁର ଜହ୍ନ ।
  • ମାର — କନ୍ଦର୍ପ ।
  • ଗାରୁଡ଼ିଆ – କେଳା, ଗାରିଡ଼ି ମନ୍ତ୍ର ଜାଣିଥ‌ିବା ବ୍ୟକ୍ତି ।
  • ଅହି – ସାପ ।
  • ଉରସିଜ – ସ୍ତନ ।
  • ରମ୍ଭା-ଉରୁ – କଦଳୀ ବୃକ୍ଷ ସଦୃଶ ଜାନୁ ।
  • ଆଲାନ – ଗଜ ବନ୍ଧନ ସ୍ତମ୍ଭ ।
  • ଦ୍ବିରଦ – ହସ୍ତୀ ।
  • ନିକଷ – କଷଟି ପଥର ।
  • ବିରଞ୍ଚ୍ – ବ୍ରହ୍ମା ।
  • ପୁଷ୍ପାକାର – ବସନ୍ତ ।
  • କ୍ଷୀରୋଦ ନନ୍ଦିନୀ – ଲକ୍ଷ୍ମୀ ।
  • କୁସୁମ ଶର — କନ୍ଦର୍ପ ।
  • ମନୋଜ – କନ୍ଦର୍ପ, କାମଦେବ ।
  • ଅନିଳେ – ପବନରେ ।
  • ଆଶ୍ରୟ – ଅଭିପ୍ରାୟ ।
  • ନାଭିଗୟା – ବୈତରଣୀ ନଦୀ ତୀର ସ୍ଥିତ ‘ଯାଜପୁର’ ନଗର ଯଯାତି କେଶରୀ କର୍ତ୍ତୃକ ସଂସ୍ଥାପିତ । ଏହାର ପୌରାଣିକ ନାମ ନାଭିଗୟା ।
  • ଏକାମ୍ରେ – ଭୁବନେଶ୍ଵରରେ ।
  • କାଠଯୋଡ଼ି-ରୋଧ – ମରକତ କେଶରୀଙ୍କ ପ୍ରଧାନ କୀର୍ତ୍ତି କଟକ ନଗର କୁ ବେଢ଼ିଥ‌ିବା ମହାନଦୀ ଓ କାଠଯୋଡ଼ିର ପଥର ବନ୍ଧ ।
  • କର୍ମନାଶ – ସୁକର୍ମକୁ ନାଶ କରୁଥ‌ିବା ଏକ ଅପବିତ୍ର ନଦୀ ।
  • କରଣିରେ – ଗୋଟିଏ କାର୍ଯ୍ୟରେ ।
  • ଉତ୍ତରଳ – ଉତୁରିବା ।
  • ପୟଃ – ଜଳ । ଫୁଟୁଥ‌ିବା ଜଳରେ ତୈଳ ପକାଇଲେ ତାହାର ସ୍ତ୍ରୀତାବସ୍ଥା କମିଯାଏ ।
  • ଫଣୀ – ସର୍ପ ।
  • ବଲ୍ମୀକ – ଉଚ୍ଚ ।
  • ଉଜାଣି – ସ୍ରୋତର ପ୍ରତିକୂଳରେ ।
  • ବାଷ୍ପପୂର – କୋହ ।
  • ବଡ଼ଭି – ରାଜାପ୍ରାସାଦ ।
  • ଚତ୍ବରେ – ଚଉତରା ; ପ୍ରାଙ୍ଗଣ ।
  • ଆଳୀଏ – ସଖୀମାନେ ।
  • ଚେଡ଼ୀ – ଦାସୀ ।
  • ତରାସେ – ଭୟରେ ।
  • ଉତ୍ତାନ – ଚିତ୍ ହୋଇ ଶୋଇବା ।
  • ପର୍ୟ୍ଯୁଷିତ – ବାସି ।
  • କାଳ-ହୁତାଶନ – କାଳଅଗ୍ନି ।
  • ଫେଇ – ଖୋଲି ।
  • କୁଳପାଂଶୁଳା – କୁଳ କଳଙ୍କିନୀ ।
  • ଶୋଚି – ଭାବି; ଚିନ୍ତାକରି ।
  • ସଞ୍ଚାର – ଗତାଗତ, ଯା-ଆସ ।
  • ନିଶାମୁଖେ – ସନ୍ଧ୍ୟାରେ ।
  • ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ ପଠା – ନନ୍ଦିକେଶ୍ଵରୀ ପଠା କଟକର ଉତ୍ତରରେ ମହାନଦୀ ମଧ୍ଯରେ ଅବସ୍ଥିତ ।
  • ସୁବର୍ଣ୍ଣପୁର – ଅଂଶୁପା ହ୍ରଦର ନିକଟରେ ‘ସୁବର୍ଣ୍ଣ ପୁର’ ଅବସ୍ଥିତ । ଏହା ସୁବର୍ଣ୍ଣକେଶରୀଙ୍କ ନାମାନୁ ସାରେ କଥ୍ ହୋଇ ଆସୁଅଛି ବୋଲି ବିଶ୍ଵାସ ।
  • ନୀଳାଚଳେ – ଶ୍ରୀକ୍ଷତ୍ର ପୁରୀକୁ ।
  • ମହାନଦୀ ମୁକ୍ତ-ବେଣୀ – ବିଡ଼ାନାସିଠାରେ ମହାନଦୀ ବେଣୀମୁକ୍ତ ହୋଇ ଦୁଇଭାଗରେ ବିଭକ୍ତ ହୋଇ କାଠଯୋଡ଼ି ଓ ମହାନଦୀରେ ବିଭକ୍ତ ।

+2 1st Year Optional Odia Solutions Chapter 1 ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ Question Answer

Odisha State Board Plus Two First Year Optional Odia Question Answer Chapter 1 ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ Textbook Exercise Questions and Answers.

Plus Two First Year Optional Odia Chapter 1 ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ Question Answer

ପାଠ୍ୟପୁସ୍ତକସ୍ଥ ନମୁନା ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ ଓ ଉତ୍ତର

(କ) ୧ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ସମ୍ଭାବ୍ୟ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ।

Question 1.
ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ ଖଡ଼ଗର ନାମ କ’ଣ?
(କ) ସୁଦର୍ଶନ
(ଖ) ନନ୍ଦକ
(ଗ) ମାଧବ
(ଘ) ବକାରି
Answer:
(ଖ) ନନ୍ଦକ

Question 2.
ଦୁର୍ମିଳା ନନ୍ଦନ କାହାକୁ କୁହାଯାଇଛି?
(କ) ନନ୍ଦ
(ଖ) ବସୁଦେବ
(ଗ) କୃଷ୍ଣ
(ଘ) କଂସ
Answer:
(ଘ) କଂସ

Question 3.
କଂସର ମାତାଙ୍କ ନାମ କ’ଣ?
(କ) ଯଶୋଦା
(ଖ) ଇନ୍ଦୁମତୀ
(ଗ) ଦେବକୀ
(ଘ) ପୂତନା
Answer:
(ଖ) ଇନ୍ଦୁମତୀ

Question 4.
ଉଗ୍ରସେନ କେଉଁ ରାଜ୍ୟର ରାଜା ଥିଲେ?
(କ) ମଥୁରା
(ଖ) ଗୋପ
(ଗ) ସୌଭ
(ଘ) ଦ୍ଵାରକା
Answer:
(କ) ମଥୁରା

CHSE Odisha Class 11 Optional Odia Solutions Chapter 1 ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ

Question 5.
କାରଣ-ସଲିଳ-ବିହାରୀ ବୋଲି କାହାକୁ କୁହାଯାଇଛି?
(କ) ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ
(ଖ) କଂସକୁ
(ଗ) ନନ୍ଦଙ୍କୁ
(ଘ) ଅକୃରଙ୍କୁ
Answer:
(କ) ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ

Question 6.
ବିଶ୍ୱକର୍ମା କିଏ?
(କ) ବିଶ୍ଵନିୟନ୍ତା
(ଖ) ଦେବଶିଳ୍ପୀ
(ଗ) ବିଶ୍ଵକର୍ତ୍ତା
(ଘ) ଦାନବ ଶିଳ୍ପୀ
Answer:
(ଖ) ଦେବଶିଳ୍ପୀ

Question 7.
ବିରଞ୍ଚ୍ କିଏ?
(କ) ବିଷ୍ଣୁ
(ଖ) ବ୍ରହ୍ମା
(ଗ) ମହେଶ୍ଵର
(ଘ) ବିଶ୍ୱକର୍ମା
Answer:
(ଖ) ବ୍ରହ୍ମା

Question 8.
କବିଙ୍କର ଦରିଦ୍ର ଜୀବନ କାହିଁକି ହୋଇଛି?
(କ) ଧନବିନେ
(ଖ) ଭଦ୍ଭାବିନେ
(ଗ) ପ୍ରାଚୁର୍ଯ୍ୟବିନେ
(ଘ) ଐଶ୍ବର୍ଯ୍ୟବିନେ
Answer:
(ଖ) ଭଲ୍ଲିବିନେ

Question 9.
ପାପଅନଳ କ’ଣ ଦହନ କରେ?
(କ) ଘରଦ୍ବାର
(ଖ) ବଣପାହାଡ଼
(ଗ) ପିଣ୍ଡ-କାଷ୍ଠ
(ଘ) ଗାଁଗଣ୍ଡା
Answer:
(ଗ) ପିଣ୍ଡ-କାଷ୍ଠ

Question 10.
ଶୁକମୁନି କେଉଁ ରାଜାଙ୍କୁ କୃଷ୍ଣଚରିତ ଭାଗବତ ଶୁଣାଇଥିଲେ?
(କ) କଂସ
(ଖ) ନନ୍ଦ
(ଗ) ପରୀକ୍ଷିତ
(ଘ) ଉଗ୍ରସେନ
Answer:
(ଗ) ପରୀକ୍ଷିତ

Question 11.
ମହୀକୁ ରକ୍ଷା କରିବାପାଇଁ ବ୍ରହ୍ମାଙ୍କ ସମେତ ସର୍ବଦେବତା କେଉଁଠାରେ ଭଗବାନଙ୍କୁ ଗୁହାରି ଜଣାଇଥିଲେ?
(କ) କ୍ଷୀର ସାଗର ତଟେ
(ଖ) ହିମାଳୟ ପାଦ ତଳେ
(ଗ) ବୈକୁଣ୍ଠ ପୁରରେ
(ଘ) ଇନ୍ଦ୍ରଭୁବନରେ
Answer:
(କ) କ୍ଷୀର ସାଗର ତଟେ

Question 12.
ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ଜନ୍ମ ହୋଇ କେତେ ଦିନ ପରେ ପୂତନାକୁ ମାରିଥିଲେ?
(କ) ବାର ଦିନରେ
(ଖ) ସାତ ଦିନରେ
(ଗ) ନଅ ଦିନରେ
(ଘ) ଏକୋଇଶି ଦିନରେ
Answer:
(ଖ) ସାତ ଦିନରେ

Question 13.
ନନ୍ଦରାଜାଙ୍କୁ କିଏ ହରଣ କରିନେଇଥିଲେ?
(କ) ଇନ୍ଦ୍ର
(ଖ) ବରୁଣ
(ଗ) ଯମ
(ଘ) ସୂର୍ଯ୍ୟ
Answer:
(ଖ) ବରୁଣ

Question 14.
ଇନ୍ଦ୍ର ସହିତ ବିବାଦବେଳେ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ କେଉଁ ପର୍ବତ ତୋଳି ଧରିଥିଲେ?
(କ) ଗନ୍ଧମାର୍ଦ୍ଦନ
(ଖ) ହିମାଳୟ
(ଗ) ଗୋବର୍ଦ୍ଧନ
(ଘ) ମୈନାକ
Answer:
(ଗ) ଗୋବର୍ଦ୍ଧନ

Question 15.
କଂସର ମନ୍ତ୍ରୀ କିଏ?
(କ) ଉଗ୍ରସେନ
(ଖ) ଅକ୍ରୂର
(ଗ) ଉଦ୍ଧବ
(ଘ) ଉପନନ୍ଦ
Answer:
(ଖ) ଅକ୍ରୂର

Question 16.
କଂସର ବଇରୀ ନନ୍ଦନନ୍ଦନ ବୋଲି କିଏ କହିଯାଇଥିଲେ?
(କ) ମୁନିବର ନାରଦ
(ଖ) ବଶିଷ୍ଠ
(ଗ) ବିଶ୍ଵାମିତ୍ର
(ଘ) ବ୍ରହ୍ମା
Answer:
(କ) ମୁନିବର ନାରଦ

CHSE Odisha Class 11 Optional Odia Solutions Chapter 1 ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ

Question 17.
କେଉଁଠାରେ ଥିବା ଅଗ୍ନିକଣା ମନ୍ଦ ପବନରେ ବଳିଷ୍ଠ ହୋଇଉଠେ?
(କ) ଘର ଭିତରେ
(ଖ) ଚୁଲି ଭିତରେ
(ଗ) ଭସ୍ମକୁଢ଼ରେ
(ଘ) ଅରଣ୍ୟ ଭିତରେ
Answer:
(ଗ) ଭସ୍ମକୁଢ଼ରେ

Question 18.
ସ୍ଵପ୍ନ ସତ୍ୟ ନୋହେ ବୋଲି କଂସ କେଉଁପରି ଜାଣିଲା?
(କ) ଏହା ବେଦ ଭାଷଇ
(ଖ) ଏହା ଋଷିଆଜ୍ଞା
(ଗ) ଏହା ରାଜାଙ୍କ ଆଦେଶ
(ଘ) ଈଶ୍ୱରଙ୍କ ଇଚ୍ଛା
Answer:
(କ) ଏହା ବେଦ ଭାଷଇ

Question 19.
ସଫଳାସୁତ କିଏ?
(କ) ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ
(ଖ) ବଳରାମ
(ଗ) ଅକ୍ରୂର
(ଘ) ଉଦ୍ଧବ
Answer:
(ଗ) ଅକ୍ରୂର

Question 20.
ଜଳଦତନୁ କାହାକୁ କୁହାଯାଇଛି?
(କ) ମେଘ ପରି ଦେହ ଯାହାଙ୍କର
(ଖ) ଜଳ ପରି ଶରୀର ଯାହାର
(ଗ) ଆକାଶ ପରି ଦେହ ଯାହାର
(ଘ) ନଦୀ ପରି ଶରୀର ଯାହାର
Answer:
(କ) ମେଘ ପରି ଦେହ ଯାହାଙ୍କର

Question 21.
ରାମ କୃଷ୍ଣ ଗୋପପୁରରେ ଅକୃରଙ୍କୁ ଦେଖ୍ କ’ଣ ପଚାରିବେ?
(କ) ବିଶ୍ଵାସକଥା
(ଖ) କଂସଙ୍କ ଖବର
(ଗ) ମଥୁରା ଖବର
(ଘ) ଧନୁଯାତ୍ରା କଥା
Answer:
(କ) ବିଶ୍ୱାସକଥା

Question 22.
ଶ୍ରୀପତିଙ୍କୁ ଦେଖ‌ିଲେ ଅକୁରଙ୍କର କ’ଣ ଛିନ୍ନ ହେବ?
(କ) ଭବବନ୍ଧ
(ଖ) ମଥୁରାର ମାୟା
(ଗ) ଗୋପର ଆସକ୍ତି
(ଘ) ବୈକୁଣ୍ଠ ଲାଭର ଆଶା
Answer:
(କ) ଭବବନ୍ଧ

Question 23.
ଆକୁଳ ହୋଇ ଶୂନ୍ୟକୁ କିଏ କୋଳ କରୁଥିଲେ?
(କ) କଂସ
(ଖ) ଅକ୍ରୂର
(ଗ) ଉଦ୍ଧବ
(ଘ) ବସୁଦେବ
Answer:
(ଖ) ଅକ୍ରୂର

Question 24.
ଅକ୍ରୂର ଗୋପସୀମାନ୍ତରେ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ କ’ଣ କରୁଥିବାର ଦେଖିଲେ?
(କ) ଗାବ ଦୋହନ
(ଖ) ଗୋପାଳ ମେଳେ କ୍ରୀଡ଼ା
(ଗ) ଗୋପୀମାନଙ୍କ ସହିତ କଥାବାର୍ତ୍ତା
(ଘ) ଗୋ ଚାରଣ
Answer:
(କ) ଗାବ ଦୋହନ

Question 25.
ରୋହିଣୀବଳା କିଏ?
(କ) ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ
(ଖ) ବଳରାମ
(ଗ) ଅକ୍ରୂର
(ଘ) ନନ୍ଦ
Answer:
(ଖ) ବଳରାମ

Question 26.
କଂସ ଲେଖୁଥିବା ପତ୍ରକୁ ମନ୍ତ୍ରୀ କେଉଁଠି ଧାରଣ କଲେ?
(କ) ଗଳାରେ ଲମ୍ବାଇଲେ
(ଖ) ଅଣ୍ଟାରେ ଖୋସିଲେ
(ଗ) କାଖରେ ଜାକିଲେ
(ଘ) ମୁଣ୍ଡରେ ବାନ୍ଧିଲେ
Answer:
(କ) ଗଳାରେ ଲମ୍ବାଇଲେ

Question 27.
କଂସ କେଉଁ ଅବସ୍ଥାରେ ପତ୍ର ଲେଖୁଥିଲା?
(କ) ମହାରୋଷ ହୋଇ
(ଖ) ଖୁସୀ ହୋଇ
(ଗ) ଦୁଃଖରେ ପଡ଼ି
(ଘ) ନିଦ୍ରାରେ ଥାଇ
Answer:
(କ) ମହାରୋଷ ହୋଇ

Question 28.
କଂସର ଆଦେଶରେ ନନ୍ଦରାଜା ମଥୁରାକୁ କେବେ ଆସିବେ?
(କ) ତତକାଳେ
(ଖ) ଦିନେ ପରେ
(ଗ) ଦୁଇଦିନ ପରେ
(ଘ) ସୁବିଧା ହେଲେ
Answer:
(କ) ତତକାଳେ

Question 29.
ବିଧାଘାତରେ କଂସ କ’ଣ ଚୂନା କରିପାରେ?
(କ) ଚତ୍ରକୂଟ କୁଧର
(ଖ) ମେରୁପର୍ବତ
(ଗ) ହିମାଳୟ ପର୍ବତ
(ଘ) ନନ୍ଦର ମେରୁଦଣ୍ଡ
Answer:
(କ) ଚତ୍ରକୂଟ କୁଧର

Question 30.
କଂସର ଦାନୀପଣ ସହିତ କିଏ ସମକକ୍ଷ?
(କ) ସୁନାସୀର
(ଖ) କର୍ଷ
(ଗ) ହରିଶ୍ଚନ୍ଦ୍ର
(ଘ) ବଳି
Answer:
(କ) ସୁନାସୀର

CHSE Odisha Class 11 Optional Odia Solutions Chapter 1 ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ

Question 31.
କଂସର ଧାର୍ମିକପଣ ସହିତ କିଏ ସମାନ?
(କ) ଯୁଧ୍ର
(ଖ) କେହି ନୁହେଁ
(ଗ) ବସୁଦେବ
(ଘ) ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ
Answer:
(ଖ) କେହି ନୁହେଁ

Question 32.
କଂସର ଶଶୁରଙ୍କ ନାମ କ’ଣ?
(କ) ଉଗ୍ରସେନ
(ଖ) ଜରାସନ୍ଧ
(ଗ) ଦକ୍ଷ
(ଘ) ବ୍ରହ୍ମା
Answer:
(ଖ) ଜରାସନ୍ଧ

Question 33.
କିଏ କଂସର ସଖା ଥିଲା?
(କ) ବୀରକେଶୀ
(ଖ) ଅଘା
(ଗ) ବକା
(ଘ) ଧେନୁକା
Answer:
(କ) ବୀରକେଶୀ

Question 34.
ନନ୍ଦ ଯଦି ଶିରୀଷ କୁସୁମ ହୁଏ ତେବେ କଂସର ଭୂମିକା କ’ଣ ହେବ?
(କ) ମହାପ୍ରଳୟ ବରଷା
(ଖ) ଶାଗୁଣା ପକ୍ଷୀ
(ଗ) ମହୁମାଛି
(ଘ) ମାଳି
Answer:
(କ) ମହାପ୍ରଳୟ ବରଷା

Question 35.
ଅକ୍ରୂର କାହାକୁ ନେବାପାଇଁ ଗୋପପୁର ଆସିଥିଲେ?
(କ) ରାମକୃଷ୍ଣ
(ଖ) ନନ୍ଦ ଯଶୋଦା
(ଗ) ଦେବକୀ ବସୁଦେବ
(ଘ) ନନ୍ଦ ବସୁଦେବ
Answer:
(କ) ରାମକୃଷ୍ଣ

Question 36.
ସାୟକ ପୂଜା କିଏ କରିଥିଲା?
(କ) ନନ୍ଦ
(ଖ) ଅକ୍ରୂର
(ଗ) କଂସ
(ଘ) ଗୋପୀମାନେ
Answer:
(ଗ) କଂସ

Question 37.
କଂସ କାହାକୁ ଚିଟାଉ ଲେଖୁଥିଲା?
(କ) ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ
(ଖ) ବଳରାମ
(ଗ) ନନ୍ଦ
(ଘ) ବସୁଦେବ
Answer:
(ଗ) ନନ୍ଦ

Question 38.
କଂସର ଆଜ୍ଞା ପ୍ରମାଣେ ନନ୍ଦ ନଆସିଲେ କଂସ କ’ଣ କରିବ?
(କ) ନନ୍ଦକୁ କାରାଗାରରେ ରଖୁବ
(ଖ) ଦେଶାନ୍ତର କରିବ
(ଗ) କାନ୍ଧ ଛେଦନ କରିବ
(ଘ) ଅପମାନିତ କରିବ
Answer:
(ଗ) କାନ୍ଧ ଛେଦନ କରିବ

Question 39.
କଂସର ବଳବୀର୍ଯ୍ୟ ଅଇରି କୁଳକୁ କିଭଳି ଥୁଲା?
(କ) କେତୁ
(ଖ) ରାହୁ
(ଗ) ସୁନାସୀର
(ଘ) କୁବେର
Answer:
(କ) କେତୁ

Question 40.
କଂସର କୋପରେ ମହୀର ଅବସ୍ଥା କ’ଣ ହୁଏ?
(କ) ଦୋହଲି ଉଠଇ
(ଖ) ଭାଙ୍ଗି ପଡ଼େ
(ଗ) ଖଣ୍ଡ ଖଣ୍ଡ ହୋଇଯାଏ
(ଘ) ବିବର୍ଣ୍ଣ ହୋଇଯାଏ
Answer:
(କ) ଦୋହଲି ଉଠଇ

Question 41.
କଂସର କୋପରେ କିଏ ଥରହର ହୁଏ?
(କ) ମେରୁ
(ଖ) ଗନ୍ଧମାର୍ଦ୍ଦନ
(ଗ) ଗୋବର୍ଦ୍ଧନ
(ଘ) ବିନ୍ଧ୍ୟପର୍ବତ
Answer:
(କ) ମେରୁ

Question 42.
ଅଇରି ଉରସଲ-ବାନା କିଏ ବହନ କରୁଥିଲା?
(କ) ନନ୍ଦ
(ଖ) ବସୁଦେବ
(ଗ) ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ
(ଘ) କଂସ
Answer:
(ଘ) କଂସ

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Question 43.
କଂସର ପାଣ୍ଡିତ୍ୟରେ କିଏ ହାରିଯାଏ?
(କ) ନାରଦ
(ଖ) ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ
(ଗ) ଦେବଗୁରୁ
(ଘ) ମହେଶ୍ବର
Answer:
(ଗ) ଦେବଗୁରୁ

Question 44.
କଂସର ‘ରଡ଼ିଗୋଟାକେ’ର ପରିଣତି କ’ଣ?
(କ) ତିନିପୁରର ସର୍ବଜନ୍ତୁ ମରିବେ
(ଖ) ମହୀ ଦୋହଲି ଉଠିବ
(ଗ) ମଥୁରାପୁରା ଧ୍ଵଂସ ହେବ
(ଘ) ବୈକୁଣ୍ଠପୁର ଭାଙ୍ଗିଯିବ
Answer:
(କ) ତିନିପୁରର ସର୍ବଜନ୍ତୁ ମରିବେ

Question 45.
ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ ମଥୁରା ଯିବା କଥା ଶୁଣି ଗୋପୀମାନେ କେତେ ସଂଖ୍ୟାରେ ମେଳି ହୋଇ ବିଚାର କରୁଥିଲେ?
(କ) ପାଞ୍ଚ ସାତ
(ଖ) ଛଅ ନଅ
(ଘ) ବାର ପନ୍ଦର
(ଗ) ଦଶ ବାର
Answer:
(କ) ପାଞ୍ଚ ସାତ

Question 46.
ଏଣୀଦୃଶା କହିଲେ କ’ଣ ବୁଝାଏ?
(କ) ମୀନ ନୟନୀ
(ଖ) ହରିଣ ନୟନା
(ଗ) ମୟୂର ଆଖ୍
(ଘ) ପଦ୍ମଲୋଚନା
Answer:
(ଖ) ହରିଣ ନୟନା

Question 47.
ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ମଥୁରା ଚାଲିଗଲେ ଗୋପୀମାନେ ସ୍ତିରୀହତ୍ୟା ଦୋଷ କାହାକୁ ଦେବେ?
(କ) ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ
(ଖ) ବଳରାମଙ୍କୁ
(ଗ) ଅକ୍ରୁରଙ୍କୁ
(ଘ) କଂସକୁ
Answer:
(ଘ) କଂସକୁ

Question 48.
ଭୋଜପତି କିଏ?
(କ) ନନ୍ଦ
(ଖ) ବସୁଦେବ
(ଗ) ଅକ୍ରୂର
(ଘ) କଂସ
Answer:
(ଘ) କଂସ

Question 49.
ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ମଥୁରା ଚାଲିଗଲେ ଭୂମିର ଅବସ୍ଥା କ’ଣ ହେବ?
(କ) ଅଙ୍ଗ ଅଶୋଭା ଦିଶିବ
(ଖ) ବନ୍ଧ୍ୟା ପାଲଟି ଯିବ
(ଗ) ଦୁଇଫାଳ ହୋଇଯିବ
(ଘ) ଶୂନ୍ୟରେ ମିଳାଇ ଯିବ
Answer:
(କ) ଅଙ୍ଗ ଅଶୋଭା ଦିଶିବ

Question 50.
ମଥୁରାରେ ଧନୁଉତ୍ସବ ଦେଖ୍ କେତେଦିନ ପରେ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ଲେଉଟି ଆସିବେ ବୋଲି ଗୋପୀମାନଙ୍କୁ କହିଲେ?
(କ) ପାଞ୍ଚ ସାତ ଦିନ
(ଖ) ଦୁଇ ଚାରି ଦିନ
(ଗ) ଦିନେ ଦୁଇଦିନ
(ଘ) ଦଶବାର ଦିନ
Answer:
(ଖ) ଦୁଇ ଚାରି ଦିନ

Question 51.
ପ୍ରଭୁ ଚକ୍ରପାଣି କାହା ଘରେ ଜନ୍ମ ହେବେ ବୋଲି ଦେବତାମାନଙ୍କୁ କହିଥିଲେ?
(କ) ନନ୍ଦ ଘରେ
(ଖ) ବସୁଦେବ ଘରେ
(ଗ) କଂସ ଘରେ
(ଘ) ଉଗ୍ରସେନ ଘରେ
Answer:
(ଖ) ବସୁଦେବ ଘରେ

Question 52.
ପୃଥ୍ବୀ ହିତରେ ଭଗବାନ କେଉଁ ଶୟନ ତେଜିଥିଲେ?
(କ) ନାଗଶୟନ
(ଖ) ବୈକୁଣ୍ଠ ଶୟନ
(ଗ) ପଦ୍ମ ଶୟନ
(ଘ) ଲକ୍ଷ୍ମୀଙ୍କ ଅଙ୍କ ଶୟନ
Answer:
(କ) ନାଗଶୟନ

Question 53.
କଳି-କଳୁଷ-ରୋଗକୁ କ’ଣ ଔଷଧ ବୋଲି କୁହାଯାଇଛି?
(କ) କୃଷ୍ଣ ଚରିତ
(ଖ) କଂସ ଚରିତ
(ଗ) ବସୁଦେବ ଚରିତ
(କ) କୃଷ୍ଣ ଚରିତ
Answer:
(ଘ) ଉଦ୍ଧବ ଚରିତ

Question 54.
କୃଷ୍ଣ ଚରିତ ଭାଗବତ ଶୁଣି କିଏ ଉଷତ ହୋଇଥିଲେ?
(କ) କଂସରାଜା
(ଖ) ପରୀକ୍ଷିତ ରାଜା
(ଗ) ଯୁଧୃଷ୍ଠିର ରାଜା
(ଘ) ଧୃତରାଷ୍ଟ୍ର ରାଜା
Answer:
(ଖ) ପରୀକ୍ଷିତ ରାଜା

Question 55.
ଗୋରୁ ବ୍ରାହ୍ମଣଙ୍କୁ କିଏ କଷଣ ଦେଇଥିଲା?
(କ) କୃଷ୍ଣ
(ଖ) ବଳରାମ
(ଗ) କଂସ
(ଘ) ବସୁଦେବ
Answer:
(ଗ) କଂସ

Question 56.
ପିତାମହ କିଏ?
(କ) ବ୍ରହ୍ମା
(ଖ) ଉଗ୍ରସେନ
(ଗ) ନନ୍ଦ
(ଘ) କଂସ
Answer:
(କ) ବ୍ରହ୍ମା

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Question 57.
କେଉଁ ସାଗରରେ ଭଗବାନ ଅନନ୍ତଶୟନ କରିଥିଲେ?
(କ) କ୍ଷୀର ସାଗରରେ
(ଖ) ମହୁ ସାଗରରେ
(ଗ) ଘୃତ ସାଗରରେ
(ଘ) ଅମୃତ ସାଗରରେ
Answer:
(କ) କ୍ଷୀର ସାଗରରେ

Question 58.
ବେଦବର କିଏ?
(କ) ବ୍ରହ୍ମା
(ଖ) ବିଷ୍ଣୁ
(ଗ) ଉଦ୍ଧବ
(ଘ) ନାରଦ
Answer:
(କ) ବ୍ରହ୍ମା

Question 59.
କୁବେର କୁମାରଙ୍କୁ କିଏ ତାରଣ କରିଥିଲେ?
(କ) ବସୁଦେବ
(ଖ) ଯଶୋଦା
(ଗ) ବଳରାମ
(ଘ) ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ
Answer:
(ଘ) ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ

Question 60.
ନନ୍ଦରାଜାଙ୍କୁ କିଏ ହରଣ କରିନେଇଥିଲା?
(କ) ଯମ
(ଖ) ଇନ୍ଦ୍ର
(ଗ) ବରୁଣ
(ଘ) ଗନ୍ଧର୍ବ
Answer:
(ଗ) ବରୁଣ

Question 61.
ଇନ୍ଦ୍ର ବିବାଦରେ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ କେଉଁ ପର୍ବତକୁ ତୋଳି ଧରିଥିଲେ?
(କ) ଗନ୍ଧମାର୍ଦ୍ଦନ
(ଖ) ଗୋବଦ୍ଧନ
(ଗ) କୈଳାସ
(ଘ) ହିମାଳୟ
Answer:
(ଖ) ଗୋବର୍ଦ୍ଧନ

Question 62.
ଗୋରୁ ବ୍ରାହ୍ମଣ ରକ୍ଷଣେ କିଏ ଜାତ ହୁଅନ୍ତି?
(କ) କଂସ
(ଖ) ଭଗବାନ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ
(ଗ) ବ୍ରହ୍ମା
(ଘ) ମହେଶ୍ବର
Answer:
(ଖ) ଭଗବାନ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ

Question 63.
ଶ୍ରୁତି ସ୍ମୃତିକୁ କିଏ ଗୋଚର ନୁହନ୍ତି?
(କ) ମଣିଷ
(ଖ) ପୃଥ‌ିବୀ
(ଗ) ଭଗବାନ
(ଘ) ପର୍ବତ
Answer:
(ଗ) ଭଗବାନ

Question 64.
‘କୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ଭଜିଲେ ତରିବା’ କଥା କବି କେଉଁଠାରୁ ଶୁଣିଲେ?
(କ) ସୁଜ୍ଞଜନଙ୍କ ମୁଖରୁ
(ଖ) ପାଲାକାରଙ୍କଠାରୁ
(ଗ) ପୌରାଣିକମାନଙ୍କଠାରୁ
(ଘ) ଗାଁ ଗହଳରୁ
Answer:
(କ) ସୁଵଜନଙ୍କ ମୁଖରୁ

Question 65.
କଂସ ଜନ୍ମ, ମରଣ ଭାଗବତର କେଉଁ ସ୍କନ୍ଧରେ ବର୍ଣ୍ଣିତ ହୋଇଛି?
(କ) ୧ମ
(ଖ) ୨ୟ
(ଗ) ୫ମ
(ଘ) ୧୦ମ
Answer:
(ଘ) ୧୦ମ

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Question 66.
କାଳୀୟ ନାଗକୁ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ କେଉଁଠାରେ ଦଳନ କରିଥିଲେ?
(କ) କାଳିନ୍ଦୀ ହ୍ରଦରେ
(ଖ) ଚିଲିକା ହ୍ରଦରେ
(ଗ) ମାନସରୋବରରେ
(ଘ) ଯମୁନା ଜଳରେ
Answer:
(କ) କାଳିନ୍ଦୀ ହ୍ରଦରେ

Question 67.
କଂସର ମନ୍ତ୍ରୀ କିଏ ଥିଲେ?
(କ) ଅକ୍ରୂର
(ଖ) ଉଦ୍ଧବ
(ଗ) ଉଗ୍ରସେନ
(ଘ) ନାରଦ
Answer:
(କ) ଅକ୍ରୂର

Question 68.
କୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ମାରିବା ପାଇଁ ପୂତନା କେଉଁଠାରେ ବିଷ ଭରିଥିଲା?
(କ) ସ୍ତନରେ
(ଖ) ଓଠରେ
(ଗ) ଜିହ୍ନାରେ
(ଘ) ହସ୍ତରେ
Answer:
(କ) ସ୍ତନରେ

Question 69.
ବ୍ୟାଧ୍ୟାକୁ ହେଳା କଲେ କ’ଣ ହୁଏ?
(କ) ପରାଣେ ମାରଇ
(ଖ) ମୋକ୍ଷ ଦିଏ
(ଗ) ମୁକ୍ତି ଦିଏ
(ଘ) ଭଲ ହୋଇଯାଏ
Answer:
(କ) ପରାଣେ ମାରଇ

Question 70.
ଭସ୍ମକୁଢ଼ରେ କ’ଣ ଥାଇ ମନ୍ଦ ପବନରେ ବଳିଷ୍ଠ ହୋଇଥାଏ?
(କ) ପାଉଁଶ
(ଖ) ଅଗ୍ନିକଣା
(ଗ) ଅଙ୍ଗାର
(ଘ) ଜଳନ୍ତା ନିଆଁ
Answer:
(ଖ) ଅଗ୍ନିକଣା

Question 71.
କଂସରାଜା କେଉଁଥରେ ପଡ଼ି ମୋହ ହୋଇଲା?
(କ) ସଂସାର ଚକ୍ରରେ
(ଖ) କାଳ ଚକ୍ରରେ
(ଗ) ବିଷୟ ଚକ୍ରରେ
(ଘ) ଘଟଣା ଚକ୍ରରେ
Answer:
(ଖ) କାଳ ଚକ୍ରରେ

Question 72.
କଂସରାଜାକୁ କ’ଣ ସବୁ ବିଷ ସମାନ ଲାଗୁଥିଲା?
(କ) ଶାସନ କାର୍ଯ୍ୟ
(ଖ) ରାଜଭୋଗ
(ଗ) ସ୍ନାନ ମାର୍ଜନ ଶୟନ ଭୋଜନ
(ଘ) ଧନୁଯାତ୍ରା ପ୍ରସଙ୍ଗ
Answer:
(ଗ) ସ୍ନାନ ମାର୍ଜନ ଶୟନ ଭୋଜନ

Question 73.
କଂସ ଡଗର ବୋଲି କାହାକୁ କୁହାଯାଇଛି?
(କ) ଉଦ୍ଧବ
(ଖ) ଅକ୍ରୂର
(ଗ) ନାରଦ
(ଘ) ବସୁଦେବ
Answer:
(ଖ) ଅକ୍ରୂର

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Question 74.
‘ଜଳଦତନୁ’ ବୋଲି କାହାକୁ କୁହାଯାଇଛି?
(କ) ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ
(ଖ) ଉଦ୍ଧବକୁ
(ଗ) ଅକ୍ରୂରକୁ
(ଘ) କଂସକୁ
Answer:
(କ) ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ

Question 75.
ଶତପତ୍ର କହିଲେ କ’ଣ ବୁଝାଏ?
(କ) ମନ୍ଦାର
(ଖ) ପଦ୍ମ
(ଗ) ନାରିକେଳ
(ଘ) ଛଣ
Answer:
(ଖ) ପଦ୍ମ

Question 76.
ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କର ପରିଧାପନ କ’ଣ ଥିଲା?
(କ) ନୀଳବସନ
(ଖ) ପୀତବସନ
(ଗ) କୃଷ୍ଣବସନ
(ଘ) ଲାଲବସନ
Answer:
(ଖ) ପୀତବସନ

Question 77.
ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ ନାସାର ସୁଷମା କାହା ସହିତ ତୁଳନୀୟ?
(କ) ତିଳ କୁସୁମ
(ଖ) ଚମ୍ପାଫୁଲ
(ଗ) ମନ୍ଦାର ଫୁଲ
(ଘ) ଅଶୋକ ଫୁଲ
Answer:
(କ) ତିଳ କୁସୁମ

Question 78.
ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ ଅଧର’ରଙ୍ଗର ତୁଳନା କିଏ?
(କ) ପଦ୍ମଫୁଲ
(ଖ) ପାରିଜାତ
(ଗ) କଇଁଫୁଲ
(ଘ) ଗୋଲାପ ଫୁଲ
Answer:
(ଖ) ପାରିଜାତ

Question 79.
ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ ଦନ୍ତଶ୍ରେଣୀର ଉପମା କିଏ?
(କ) ଡାଳିମ୍ବବୀଜ
(ଖ) କାଇଁଚ
(ଗ) ଗଙ୍ଗଶିଉଳି
(ଘ) ମଲ୍ଲୀଫୁଲ
Answer:
(କ) ଡାଳିମ୍ବବୀଜ

Question 80.
‘ଘନେ ଅଙ୍ଗିର’ କହିଲେ କ’ଣ ବୁଝାଯାଏ?
(କ) ମେଘରେ ବିଜୁଳି
(ଖ) ମେଘ ଭିତରେ ତାରା
(ଗ) ମେଘ ଭିତରେ ସୂର୍ଯ୍ୟ
(ଘ) ମେଘ ଭିତରେ ଚନ୍ଦ୍ର
Answer:
(କ) ମେଘରେ ବିଜୁଳି

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Question 81.
ଅକୃରଙ୍କ ବିଚାରରେ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ ରୋମମୂଳରେ କ’ଣ ସବୁ ନିବାସ କରିଛନ୍ତି?
(କ) ବ୍ରହ୍ମାଣ୍ଡମାଳ
(ଖ) ଫୁଲମାଳ
(ଗ) ରତ୍ନମାଳ
(ଘ) ମଣିମାନେ
Answer:
(କ) ବ୍ରହ୍ମାଣ୍ଡମାଳ

Question 82.
ନନ୍ଦରାଜା ପାଖକୁ କିଏ ଚିଟାଉ ଲେଖୁଥିଲା?
(କ) ବସୁଦେବ
(ଖ) କଂସ
(ଗ) ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ
(ଘ) ବଳରାମ
Answer:
(ଖ) କଂସ

Question 83.
କଂସ ରାଣ ଦେଲେ କିଏ ଭୟ କରେ?
(କ) ପଶୁପତି
(ଖ) ଜନ୍ତୁପତି
(ଗ) ଖଗପତି
(ଘ) ମୃଗପତି
Answer:
(ଖ) ଜନ୍ତୁପତି

Question 84.
ପଣ୍ଡିତ ପଣେ ଦେବଗୁରୁ କାହାଠାରୁ ହାରିଯାଏ ବୋଲି ଚିଟାଉରେ ଲେଖାଥିଲା?
(କ) କଂସ
(ଖ) ଚାଲୁର
(ଗ) ମୁଷ୍ଟିକ
(ଘ) ଅଘା
Answer:
(କ) କଂସ

Question 85.
ପ୍ରଜାପାଳନରେ କଂସର ଭୂମିକା କିଭଳି ଥିଲା ବୋଲି ଚିଟାଉରେ ଉଲ୍ଲେଖ ଥିଲା?
(କ) ତାତ
(ଖ) ମାତ
(ଗ) ଭ୍ରାତ
(ଘ) ଖୁଡୁତା
Answer:
(କ) ତାତ

Question 86.
ଅଷ୍ଟଭୁଜ କିଏ?
(କ) ବିଷ୍ଣୁ
(ଖ) ବ୍ରହ୍ମା
(ଗ) ମହେଶ୍ଵର
(ଘ) କଂସ
Answer:
(ଖ) ବ୍ରହ୍ମା

Question 87.
କିଏ କଂସର ହନ୍ତକାର ନୁହେଁ?
(କ) ଚାଣୁର
(ଖ) ମୁଷ୍ଟିକ
(ଗ) ଅଘା
(ଘ) ଉଗ୍ରସେନ
Answer:
(ଘ) ଉଗ୍ରସେନ

Question 88.
ଅକ୍ରୁର କେଉଁଭଳି କୃଷ୍ଣପ୍ରେମରେ ମଜି ଯାଇଥିଲା?
(କ) ଜଳେ ଲବଣ
(ଖ) କ୍ଷୀରେ ପାଣି
(ଗ) ପାଣିରେ ଚିନି
(ଘ) କ୍ଷୀରରେ ଚିନି
Answer:
(କ) ଜଳେ ଲବଣ

Question 89.
‘ତ୍ରିଯାଦବେ’ ବୋଲି କାହାଙ୍କୁ କୁହାଯାଇଛି?
(କ) କଂସ, ନନ୍ଦ, ବସୁଦେବ
(ଖ) ଉଦ୍ଧବ, ଅକ୍ରୂର, କୃଷ୍ଣ
(ଗ) ବଳରାମ, କୃଷ୍ଣ, ଅକ୍ରୂର
(ଘ) କୃଷ୍ଣ, ବଳରାମ, କଂସ
Answer:
(ଗ) ବଳରାମ, କୃଷ୍ଣ, ଅକ୍ରୂର

Question 90.
ଅକ୍ରୁରଙ୍କ ଭାବନାରେ ଯାଦବକୁଳ କାଳଅନଳ କିଏ?
(କ) ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ
(ଖ) ବଳରାମ
(ଗ) କଂସ
(ଘ) ଅକ୍ରୂର
Answer:
(ଗ) କଂସ

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Question 91.
‘ଶାରଙ୍ଗପାଣି’ ବୋଲି କାହାକୁ କୁହାଯାଇଛି?
(କ) ବଳରାମ
(ଖ) ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ
(ଗ) କଂସ
(ଘ) ଇନ୍ଦ୍ର
Answer:
(ଖ) ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ

Question 92.
‘ସାୟକ ପୂଜା’ର ଅର୍ଥ କ’ଣ?
(କ) ଧନୁଯାତ୍ରା
(ଖ) ତୀର ପରୀକ୍ଷା
(ଗ) ଖଡ଼ଗ ପୂଜା
(ଘ) ବୀର ପୂଜା
Answer:
(କ) ଧନୁଯାତ୍ରା

Question 93.
‘ଏଣୀଦୃଶା’ କହିଲେ କାହାକୁ ବୁଝାଯାଏ?
(କ) ପୂତନା
(ଖ) ମୃଗୁଣୀ
(ଗ) ହରିଣୀ
(ଘ) ଗୋପୀ
Answer:
(ଘ) ଗୋପୀ

Question 94.
‘ଅକ୍ରୂର ହସ୍ତରେ ଯେଣୁ ବେନି ଚକ୍ଷୁ ଦେବା’ । ଏଠାରେ ବେନି ଚକ୍ଷୁର ତାତ୍ପର୍ଯ୍ୟ କ’ଣ?
(କ) ନନ୍ଦ, ବସୁଦେବ
(ଖ) କୃଷ୍ଣ, ବଳରାମ
(ଗ) ଉଦ୍ଧବ, ଅକ୍ରୂର
(ଘ) ଉଗ୍ରସେନ, କଂସ
Answer:
(ଖ) କୃଷ୍ଣ, ବଳରାମ

Question 95.
‘ମଧୁପୁର’ କେଉଁଟି?
(କ) ଗୋପପୁର
(ଖ) ମଥୁରାପୁର
(ଗ) ଅଳକାପୁର
(ଘ) ବୈକୁଣ୍ଠପୁର
Answer:
(ଖ) ମଥୁରାପୁର

Question 96.
ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ମଥୁରାପୁର ଯିବା କଥା ଶୁଣି ଗୋପୀଙ୍କର ମନ ମୀନ କେଉଁଠାରେ ବୁଡ଼ିଗଲା?
(କ) ଚିନ୍ତା-ରତ୍ନାକରରେ
(ଖ) ଆନନ୍ଦ ସାଗରରେ
(ଗ) କ୍ଷୀର ସମୁଦ୍ରରେ
(ଘ) କାଳିନ୍ଦୀ ହ୍ରଦରେ
Answer:
(କ) ଚିନ୍ତା-ରତ୍ନାକରରେ

Question 97.
ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ମଥୁରା ଚାଲିଗଲେ ଗୋପୀମାନେ କେଉଁଠାରେ ଜୀବନ ହାରିବେ ବୋଲି କହିଛନ୍ତି?
(କ) ଯମୁନା ଗଣ୍ଡେ
(ଖ) ହିମାଳୟରେ
(ଗ) କାଳିନ୍ଦୀ ହ୍ରଦରେ
(ଘ) ମହୋଦଧୂରେ
Answer:
(କ) ଯମୁନା ଗଣ୍ଡେ

Question 98.
କରୀନ୍ଦ୍ର ଗମନା କାହାକୁ କୁହାଯାଇଛି ?
(କ) ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ
(ଖ) ବଳରାମ
(ଗ) ଗୋପୀ
(ଘ) ଅକ୍ରୂର
Answer:
(ଗ) ଗୋପୀ

Question 99.
କଂସ ନାମରେ ଗୋପୀମାନେ ଯଦି ପ୍ରାଣ ହରାଇବେ ତେବେ କଂସ କେଉଁ ଦୋଷ ପାଇବ?
(କ) ନରହତ୍ଯା
(ଖ) ବ୍ରହ୍ମହତ୍ଯା
(ଗ) ସ୍ତିରୀହତ୍ଯା
(ଘ) ଶିଶୁହତ୍ଯା
Answer:
(ଗ) ସ୍ତିରୀହତ୍ୟା

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Question 100.
କେଉଁଟି ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସଙ୍କ ରଚନା?
(କ) ମନବୋଧ ଚଉତିଶା
(ଖ) ମଧୁପ ଚଉତିଶା
(ଗ) ମୃଗୁଣୀ ସ୍ତୁତି
(ଘ) ବଟଅବକାଶ
Answer:
(କ) ମନବୋଧ ଚଉତିଶା

(ଖ) ୧ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ଏକ ବାକ୍ୟରେ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ।

Question 1.
‘ମିଥ୍ୟା ନୁହଇ ପ୍ରମାଣ ବଚନ’ ବୋଲି କେଉଁଠି ଲେଖାଯାଇଛି?
Answer:
‘ମିଥ୍ୟା ନୁହଇ ପ୍ରମାଣ ବଚନ’ ବୋଲି ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସଙ୍କ ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ କାବ୍ୟର ପ୍ରଥମ ଛାନ୍ଦରେ ଲେଖାହୋଇଛି।

Question 2.
ନରକ ଅସୁରକୁ କିଏ ବିନାଶ କରିଥିଲେ?
Answer:
ନରକ ଅସୁରକୁ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ବିନାଶ କରିଥିଲେ।

Question 3.
ଶ୍ରୁତି ସ୍ମୃତିକୁ କିଏ ଗୋଚର ନୁହନ୍ତି?
Answer:
ଶ୍ରୁତି ସ୍ମୃତିକୁ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ଗୋଚର ନୁହଁନ୍ତି।

Question 4.
ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ଭଗବାନଙ୍କ ଆଜ୍ଞାରେ ବ୍ରହ୍ମା କେତେଗୋଟି ଭୁବନ ରଚନା କରିଛନ୍ତି?
Answer:
ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ଭଗବାନଙ୍କ ଆଜ୍ଞାରେ ବ୍ରହ୍ମା ଚଉଦଗୋଟି ଭୁବନ ରଚନା କରିଛନ୍ତି।

Question 5.
କ’ଣ ବିନା କବିଙ୍କର ଦରିଦ୍ର ଜୀବନ ହୋଇଛି?
Answer:
ଭକ୍ତି ବିନା କବିଙ୍କ ଜୀବନ ଦରିଦ୍ର ହୋଇଛି।

Question 6.
ନିଶିଦିବସେ ଯେ ହରି ଭଜନ୍ତି ତାଙ୍କର କ’ଣ ହୁଏ?
Answer:
ନିଶିଦିବସେ ଯେ ହରି ଭଜନ୍ତି ତାଙ୍କର ସଂସାରର ପାପତାପ ନାଶ ହୁଏ।

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Question 7.
କଳି-କଳୁଷ-ରୋଗକୁ ଔଷଧ ବୋଲି କାହାକୁ କୁହାଯାଇଛି?
Answer:
କଳି-କଳୁଷ-ରୋଗକୁ ଔଷଧ ବୋଲି କୃଷ୍ଣଚରିତ ରୂପକ ଅମୃତମୟ କଥାକୁ କୁହାଯାଇଛି।

Question 8.
ବଛା ବାଳକମାନଙ୍କୁ ବିଧାତା ହରିନେଲା ପରେ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ କ’ଣ କଲେ?
Answer:
ବଛା ବାଳକମାନଙ୍କୁ ବିଧାତା ହରି ନେଲାପରେ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ନିଜ ଶରୀରରୁ ବଛା ବାଳକମାନଙ୍କୁ ଜାତ କରାଇ ବ୍ରହ୍ମାଙ୍କ ମାୟାଙ୍କୁ ଖଣ୍ଡନ କରିଥିଲେ।

Question 9.
କୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ମାରିବା ପାଇଁ ପୁତନା କେଉଁ ଉପାୟ କରିଥିଲା?
Answer:
କୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ମାରିବା ପାଇଁ ପୁତନା ନିଜ ସ୍ତନାଗ୍ରରେ ବିଷ ବୋଳି ତାଙ୍କୁ କ୍ଷୀର ପାନ କରାଇଥିଲା।

Question 10.
ବ୍ୟାଧ୍ୟାକୁ ହେଳା କଲେ କ’ଣ ହୁଏ?
Answer:
ବ୍ୟାଧ୍ୟାକୁ ହେଳା କଲେ ମୃତ୍ୟୁର କାରଣ ହୁଏ।

Question 11.
ଭସ୍ମକୁଢ଼ରେ ଥ‌ିବା ଅଗ୍ନିକଣା କିପରି ବଳିଷ୍ଠ ହୁଏ?
Answer:
ଭସ୍ମକୁଢ଼ରେ ଥ‌ିବା ଅଗ୍ନିକଣା ମନ୍ଦପବନରେ ବଳିଷ୍ଠ ହୁଏ।

Question 12.
ଅକୂରଙ୍କର ନାସାଦ୍ବାରା କିପରି ଆନନ୍ଦ ଲାଭ କରିବେ?
Answer:
ଅକ୍ରୂରଙ୍କର ନାସାଦ୍ଵାରା ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ ଶରୀରର ଗନ୍ଧ ପାଇ ଆନନ୍ଦ ଲାଭ କରିବ।

Question 13.
କଂସ ଯଦି କୋପ କରେ ତେବେ କ’ଣ ହୁଏ?
Answer:
କଂସ କୋପ କଲେ ପୃଥ‌ିବୀ ଦୋହଲି ଉଠେ ଓ ମେରୁ ପର୍ବତ ଥରହର ହୁଏ।

(ଗ) ୨ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ଦୁଇଟି ବାକ୍ୟରେ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ । ଲେଖା ଓ ଲେଖକଙ୍କ ପାଇଁ ୧ ନମ୍ବର ଓ ଉତ୍ତର ପାଇଁ ୧ ନମ୍ବର ।

Question 1.
କଂସ କିପରି ବ୍ରହ୍ମାଣ୍ଡକୁ ମୋର କରିପାରିଥିଲା?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
କଂସର ବଳ ବୀର୍ଯ୍ୟ ଓ ପ୍ରତାପରେ ସମଗ୍ର ବିଶ୍ବବ୍ରହ୍ମାଣ୍ଡ ଥରହର ହେଉଥିଲେ। କୌଣସି ଯୋଦ୍ଧା କଂସ ସହ ଯୁଦ୍ଧ କରିବାକୁ ସାହସ କରିପାରୁନଥିଲେ। ତେଣୁ ବିନା ଯୁଦ୍ଧରେ ଯୋଦ୍ଧାମାନଙ୍କୁ ପରାଜିତ କରି କଂସ ବ୍ରହ୍ମାଣ୍ଡକୁ ମୋର କରିପାରିଥିଲା।

Question 2.
କଂସର ହନ୍ତକାରମାନଙ୍କ ନାମ କ’ଣ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
କଂସର ହନ୍ତକାରମାନଙ୍କ ନାମ ହେଲା ଶୂର, ନାରକା ବ୍ୟୋମା, ଅଘା, ପ୍ରଳମ୍ବା, କଦମ୍ବା, ମୁଷ୍ଟିକ, ଶଲ୍ୟ ଦୃବିନ୍ଦ, ଚାଣୁର ଇତ୍ୟାଦି।

Question 3.
ଶିରୀଷ -କୁସୁମ-ପ୍ରସଙ୍ଗରେ କ’ଣ କୁହାଯାଇଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
ଶିରୀଷ କୁସୁମ ଅତ୍ୟନ୍ତ କୋମଳ । ଏପରି କୋମଳ ଯେ ଶିରୀଷ-ପାତର ଭାରା ସହି ନପାରି ନଷ୍ଟ ହୋଇଯାଏ। ଅର୍ଥାତ୍ ମହାପ୍ରଳୟର ପ୍ରହାର ସହି ନପାରି ନଷ୍ଟ ହୋଇଯାଏ । ସେହିପରି କଂସ ନିଜକୁ ମହାପ୍ରଳୟଙ୍କରୀ ବର୍ଷା କହି ନନ୍ଦଙ୍କୁ ଶିରୀଷ ଫୁଲ ସହ ତୁଳନା କରିଛନ୍ତି।

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Question 4.
କଂସର ଆଜ୍ଞା ପ୍ରମାଣେ ନନ୍ଦ ନ ଆସିଲେ କଂସ କ’ଣ କରିବ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
କଂସର ଆଜ୍ଞା ପ୍ରମାଣେ ନନ୍ଦ ନ ଆସିଲେ କଂସ ଅତିମାତ୍ରାରେ କ୍ରୋଧାନ୍ଵିତ ହୋଇ ନନ୍ଦର ସ୍କନ୍ଧ ଛେଦନ କରିବ।

Question 5.
କଂସର ବଳବୀର୍ଯ୍ୟ କିପରି ବର୍ଷିତ ହୋଇଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
କଂସର ବଳବୀର୍ଯ୍ୟ ଆଇରି କୁଳ ନିମନ୍ତେ କେତୁ ବା ଧୂମକେତୁ ସଦୃଶ ଥିଲା ବୋଲି ବର୍ଣ୍ଣିତ ହୋଇଛି।

Question 6.
କଂସ କୋପକଲେ ମହୀର ଅବସ୍ଥା କିପରି ହୁଏ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
କଂସ କୋପ କଲେ ମହୀ ଅର୍ଥାତ୍ ପୃଥ‌ିବୀର ଅବସ୍ଥା ସଂକଟାପନ୍ନ ହୁଏ। ମହୀ ଥରି ଉଠେ ଅର୍ଥାତ୍ ଦୋହଲି ଉଠେ ଏବଂ ମେରୁ ପର୍ବତ ଥରହର ହୁଏ।

Question 7.
ମେରୁ କେତେବେଳେ ଥରହର ହୁଏ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
ଯେତେବେଳେ କଂସ କୋପ କରେ ଅଥବା କ୍ରୋଧ କରେ ସେତେବେଳେ ମେରୁ ଥରହର ହୁଏ।

Question 8.
ବିଧାଘାତରେ କଂସ କ’ଣ କରିପାରେ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
ବିଧାଘାତରେ କଂସ ଚିତ୍ରକୂଟ ପର୍ବତକୁ ଚୂନା କରିପାରେ।

Question 9.
କଂସ ବିଧାଘାତର ଭୟାବହତା କିଭଳି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
କଂସର ବିଧାଘାତ ଭୟଙ୍କର ଥୁଲା, ଯାହାଦ୍ୱାରା ସେ ଚିତ୍ରକୂଟ ପର୍ବତକୁ ଚୂନା କରିଦେଉଥଲା।

Question 10.
ଅଇରି ଉରସଲ-ବାନାର ପ୍ରାସଙ୍ଗିକତା କ’ଣ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
କଂସ ଶତ୍ରୁକୁଳର ବକ୍ଷ ଭେଦକାରୀ ତୀକ୍ଷ୍ଣ ଅସ୍ତ୍ର କୁନ୍ତ ସଦୃଶ ଥ‌ିବାରୁ ତା’ର ବାନା ବା ପତାକାକୁ ଭରସଲ-ବାନା ବୋଲି କୁହାଯାଇଛି।

Question 11.
କଂସ ତା ଚିଟାଉରେ ନିଜ ପଣ୍ଡିତ ପଣ ସମ୍ପର୍କରେ କ’ଣ ଲେଖୁଥିଲା?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
କଂସ ତା’ର ଚିଟାଉରେ ନିଜ ପଣ୍ଡିତପଣ ଦେଖାଇ କହିଛି ଯେ ସେ ପଣ୍ଡିତପଣରେ ଦେବଗୁରୁ ବୃହସ୍ପତିକୁ ହରାଇ ଦେଇପାରେ।

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Question 12.
କଂସର ରଡ଼ି ଗୋଟାକେ କେଉଁ ଅବସ୍ଥା ସୃଷ୍ଟି ହେବ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
କଂସର ରଡ଼ି ଗୋଟାକରେ ତ୍ରିପୁରରେ ଥିବା ସର୍ବପ୍ରାଣୀ ମୃତ୍ୟୁବରଣ କରିବେ।

୩ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ। (୩୦ଟି ଶବ୍ଦ ମଧ୍ୟରେ) ଲେଖା ଓ ଲେଖକଙ୍କ ପାଇଁ ୧ ନମ୍ବର ଓ ଉତ୍ତର ପାଇଁ ୨ ନମ୍ବର।

Question 1.
କଂସକୁ କ’ଣ ଓ କାହିଁକି ବିଷ ସମାନ ଲାଗୁଥିଲା?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
କଂସକୁ ସ୍ନାନ, ମାର୍ଜନ, ଭୋଜନ ଓ ଶୟନ ସବୁକିଛି ବିଷପରି ଲାଗୁଥିଲା । କାରଣ ଦେବକୀଙ୍କ ଅଷ୍ଟମ ଗର୍ଭରୁ ଜାତ ସନ୍ତାନ ହାତରେ ତା’ର ମୃତ୍ୟୁ ଘଟିବ ବୋଲି ମୁନିବର ନାରଦଙ୍କ ମୁଖରୁ ସେ ଶୁଣିଥିଲା । ତେଣୁ ସେ ଭୟଭୀତ ହୋଇ ପଡ଼ିଥିଲା।

Question 2.
ସ୍ଵପ୍ନ ସତ୍ୟ ନୁହେଁ ବୋଲି କଂସ କେତେବେଳେ ଓ କାହିଁକି ମନେକଲା?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
ଦେବକୀଙ୍କ ଅଷ୍ଟମ ଗର୍ଭରୁ ଜାତ ସନ୍ତାନ ତା’ର ମୃତ୍ୟୁର କାରଣ ହେବ ବୋଲି ଜାଣିବା ପରେ କଂସକୁ କିଛି ଭଲ ଲାଗୁନଥିଲା । ସେ ଯେଉଁ ଦିଗକୁ ଚାହୁଁଥିଲା ତାକୁ କେବଳ କୃଷ୍ଣରୂପ ଦୃଶ୍ୟ ହେଉଥିଲା । ଶୋଇବା ସମୟରେ ନାନାଦି ଭୟଙ୍କର ଅଶୁଭସୂଚକ ସ୍ଵପ୍ନ ଦେଖି ଚମକି ପଡୁଥିଲା । ନିଦ୍ରାଭଙ୍ଗ ହେବା ପରେ କଂସ ଉଠିପଡ଼ି ଏସବୁ ସ୍ଵପ୍ନକୁ ମିଥ୍ୟା ମନେ କଲା, କାରଣ ସ୍ଵପ୍ନ ସତ୍ୟ ନୁହେଁ ବୋଲି ବେଦରେ କୁହାଯାଇଛି ।

Question 3.
ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ମାରିବା ପାଇଁ କଂସ କେଉଁମାନଙ୍କୁ ପଠାଇଥିଲା?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
ମହାପ୍ରତାପୀ କଂସ ଦେବକୀର ଅଷ୍ଟମ ଗର୍ଭରୁ ଜାତ ସନ୍ତାନ ତା’ର ଚିରଶତ୍ରୁ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ଗୋପପୁରେ ନନ୍ଦରାଜା ଘରେ ଥିବା କଥା ଜାଣିବା ପରେ ତାଙ୍କୁ ମାରିବାପାଇଁ ପ୍ରଥମେ ପୁତନା ରାକ୍ଷସୀକୁ ପଠାଇଥିଲା । ପରେ କଂସ ନିଜର ଅନୁଚର ତୃଣା, ଶକଟା, ବକା, ଅଘା ଆଦିଙ୍କୁ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ମାରିବା ପାଇଁ ପଠାଇଥିଲା।

Question 4.
କୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ମାରିବାପାଇଁ ଅକ୍ରୂର ପାଖରେ କଂସ କେଉଁ ଉପାୟ ବାଢ଼ିଥିଲା?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
କଂସ କୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ମାରିବା ପାଇଁ ଅନେକ ରାକ୍ଷସଙ୍କୁ ପଠାଇଥିଲେ ମଧ୍ୟ କେହି ସଫଳ ହୋଇନଥିଲେ। ଫଳରେ କଂସାସୁର କୃଷ୍ଣ ବଧ ନିମନ୍ତେ ଭିନ୍ନ ବ୍ୟୁହ ରଚନା କରି ଅକୁରଙ୍କୁ ପଠାଇବା ପାଇଁ ମନସ୍ଥ କରିଥିଲା। କୃଷ୍ଣ ବଳରାମଙ୍କୁ ଧନୁଯାତ୍ରା ଦେଖାଇବା ଆଳରେ ଏକ ବର୍ଷର ଧାର୍ଯ୍ୟ ରାଜଦେୟ ସହିତ ସଙ୍ଗରେ ଘେନି ଆସିବାକୁ ସେ ଅକ୍ରୂରକୁ କହିଥିଲା।

Question 5.
କଂସ ସ୍ଵପ୍ନରେ କ’ଣ ଦେଖୁଲା?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
ମୃତ୍ୟୁ ଭୟରେ ଖୁବ୍ ଆତଙ୍କିତ କଂସ ଶେଶଇପଡ଼ି ସ୍ବପ୍ନ ଦେଖିଲା ଯେ ତା’ର ତତଲା ନିଶ୍ଵାସ ଶଙ୍ଖଶବ୍ଦ ପରି ଶୁଭିଛି। ସେ ସ୍ଵପ୍ନରେ ନାନା ଭୟଙ୍କର ଦୃଶ୍ୟରୂପ ଦେଖୁଥିଲା; ଯଥା – ସେ ମଇଁଷି ଉପରେ ମନ୍ଦାରମାଳ ପକାଇ ଯାଉଛି। ଚାରିଦିଗରେ ଶାଗୁଣା, ଶୃଗାଳ, ଶୂନ, ବିରାଡ଼ି, ପେଚାଙ୍କ ଶବ୍ଦ ଶୁଣାଯାଇଛି।

Question 6.
ଅକ୍ରୂର ଗୋପକୁ ଯିବା ପାଇଁ କିପରି ପ୍ରସ୍ତୁତ ହେଲା?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
କଂସ କୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ଆଣିବା ପାଇଁ ଅକ୍ରୂରକୁ ପଠାଇଥିଲେ। ତେଣୁ ଅକ୍ରୂର ପ୍ରାତକାଳରୁ ଉଠି ନିତ୍ୟକର୍ମ ସାରି ବାହାରିଲା। ରଥରେ ଅଶ୍ବ ଯୋଚି ଲଗାମ ଧରି ଯା’ ବୋଲି କହିଲା। ତତ୍‌କ୍ଷଣାତ୍‌ ସେ ମଥୁରା ସୀମା ପାର ହୋଇଗଲା।

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Question 7.
କଂସଡଗର ନିଜ ପିତାମାତଙ୍କୁ କାହିଁକି ଧନ୍ୟ ଧନ୍ୟ ବୋଲି କହିଲା?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
କଂସଡଗର ଅକ୍ରୂର ବଳରାମ ଓ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ଗୋପରୁ ମଥୁରାକୁ ଆଣି କଂସ ନିକଟରେ ହାଜର କରାଇବା ପାଇଁ ରଥ ଚଢ଼ି ବାହାରିଲା । ମନେମନେ ସେ ବିଚାର କଲେ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ତା’ର’ ରଥରେ ବିଜେ କରିବେ, ଏହା ଅତି ଚମତ୍କାର କଥା। ମନରେ ଭାବିଛି ଆଜି ଧନ୍ୟ ହୋଇଗଲା ସେ। ତା’ର ପିତାମାତା ତା’ପରି ପୁଅକୁ ଜନ୍ମ ଦେଇଥ‌ିବାରୁ ସେ ପିତାମାତାଙ୍କୁ ଧନ୍ୟ ଧନ୍ୟ ବୋଲି କହିଲା।

Question 8.
ଅକୃରଙ୍କର ବେନିଶ୍ରବଣ କିପରି ସର୍ବ ଦୋଷ ତେଜିବେ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
ଅକ୍ରୂର ମନରେ ଆନନ୍ଦ ଭରି ଯାଇଛି, ଯେତେବେଳେ ସେ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ବଳରାମଙ୍କୁ ଆଣିବା ପାଇଁ ଗୋପପୁର ନିମନ୍ତେ ଯାତ୍ରା କରିଛି । ନିଜ ପିତାମାତାଙ୍କୁ ଧନ୍ୟ ଧନ୍ୟ କହି ତା’ର ଏଇ ଜନ୍ମ ସାର୍ଥକ ହେଲା ବୋଲି ବିଚାର କରିଛି । ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ଓ ବଳରାମଙ୍କୁ ଦର୍ଶନ କରି ତା’ର ଚକ୍ଷୁ ଧନ୍ୟ ହେବ। ଯେତେବେଳେ ଗୋପପୁରରେ ସେ ପହଞ୍ଚିବେ, ସେତେବେଳେ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ‘ଅକ୍ରୂର ଆସ’ ବୋଲି ଡାକିବେ। ଏହା ଅକ୍ରୂରର ଦୁଇ ଶ୍ରବଣେନ୍ଦ୍ରୟର ସକଳ ଦୋଷ ହରଣ କରିନେବ।

Question 9.
ଅକୃରଙ୍କର ଅଙ୍ଗ କିପରି ନିର୍ମଳ ହେବ ବୋଲି ସେ ମନେ କରିଛନ୍ତି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
ଅକ୍ରୂର ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ବଳରାମଙ୍କୁ ଆଣିବା ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ ଗୋପପୁର ଗମନ କରିଛି। ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ନେଇ ତାଙ୍କ ମନରେ ଅନେକ ଭାବନା ସୃଷ୍ଟି ହୋଇଛି । କଂସ ଏହି ଦାୟିତ୍ୱ ତାଙ୍କୁ ଦେଇଥ‌ିବାରୁ ସେ ନିଜକୁ ଧନ୍ୟ ମନେକରିଛି । ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ତୁଣ୍ଡରୁ କଥା ଶୁଣି ତା’ର ଶ୍ରବଣଇନ୍ଦ୍ରିୟ ଓ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ ଅଙ୍ଗର ମହକରେ ନାସା ଇନ୍ଦ୍ରିୟ ଧନ୍ୟ ହେବ। ତା’ପରେ ପ୍ରଭୁ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ଯଦି ତା’କୁ କୋଳ କରନ୍ତି ତେବେ ତା’ର ଅଙ୍ଗ ନିର୍ମଳ ହେବ ବୋଲି ସେ ମନେକରିଛି।

Question 10.
ଅକ୍ରୂର କଂସରାଜାଙ୍କୁ କାହିଁକି ଧନ୍ୟବାଦ ଦେଉଥିଲେ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
କଂସ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ବଳରାମଙ୍କୁ ମଥୁରାକୁ ନିମନ୍ତ୍ରଣ କରି ଆଣିବାପାଇଁ ଅକ୍ରୂରକୁ ପଠାଇଛି । ଅକୁରଙ୍କ ପାଇଁ ଏହା ମହାସୁଯୋଗ ପାଲଟିଛି । ପ୍ରଭୁ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ଦର୍ଶନ କରିବା, ତାଙ୍କ ଶ୍ରୀତୁଣ୍ଡରୁ ଅମୃତ ସମାନ କଥା ଶ୍ରବଣ କରିବା ଏମିତିକି ତାଙ୍କ ଶ୍ରୀଅଙ୍ଗ ସ୍ପର୍ଶ କରିବାର ସୁଯୋଗ ମିଳିବା ଯୋଗୁ ଅକ୍ରୂର କଂସରାଜାଙ୍କୁ ଧନ୍ୟବାଦ ଦେଉଥିଲା।

Question 11.
ଅକ୍ରୂର ଗୋପ ଯିବା ବାଟରେ ଥ‌ିବା ବାଲିକୁଦରେ କ’ଣ ସବୁ ଦେଖୁଲା?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
ଅକ୍ରୂର କଂସାଦେଶରେ ମଥୁରାରୁ ଗୋପପୁର ଯାତ୍ରା କରିଛି। ଗୋପପୁର ଯିବା ବାଟରେ ବାଲିକୁଦ ଦେଖୁଲା। ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ବଳରାମଙ୍କ ଦର୍ଶନରେ ଆତ୍ମବିଭୋର ହୋଇ ଉଠିଥ‌ିବା ଅକ୍ରୂର ସେଇ ବାଲିକୁଦ ଉପରେ ଚକ୍ର, ପାଦପଦ୍ମ, ଧ୍ଵଜ, ଅଙ୍କୁଶ ଆଦିର ଚିହ୍ନ ମଧ୍ଯ ପଡ଼ିଥିବାର ଦେଖିଲା। ସେ ରଥରୁ ଓହ୍ଲାଇ ସେଇ ବାଲିକୁ ନେଇ ନିଜ ମଥାରେ ଲଗାଇଲା।

Question 12.
କିଏ କାହାକୁ ଓ କାହିଁକି ‘ମୁଁ ହୀନ ମୂଢ଼ ପାପିଷ୍ଠ ରାଢ଼’ ବୋଲି କହିଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
ଅକ୍ରୂର ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ଆଣିବା ଲାଗି ମଥୁରାରୁ ଗୋପପୁରକୁ ଯାଇଛି । ରାସ୍ତାରେ ରଥ ନେଇ ଗଲାବେଳେ କୃଷ୍ଣ ଦର୍ଶନର ଅନେକ କଥା ଚିନ୍ତାକରି ଭାବବିହ୍ବଳ ହୋଇଉଠିଛନ୍ତି । ରାସ୍ତାରେ ବାଲିଗଦାରେ ଶଙ୍ଖ, ଚକ୍ର, ଗଦା, ପଦ୍ମ ଚିହ୍ନ ଦେଖ୍ ଭାବରେ ଗଦ୍‌ଗଦ୍ ହୋଇ ସେଇ ବାଲିକୁ ମଥାରେ ଲଗାଇଛି। ତା’ର ଭାବାନ୍ତର ହୋଇଛି ସତରେ ସେ କ’ଣ କୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ଚର୍ମଚକ୍ଷୁରେ ଦର୍ଶନ କରିପାରିବ ? ଏଇ ପ୍ରଶ୍ନ ସେ ନିଜ ମନକୁ ମନ ପଚାରିଚାଲିଛି ଏବଂ ନିଜକୁ ହୀନ ମୂଢ଼ ପାପିଷ୍ଠ ବୋଲି କହିଛି।

Question 13.
ବେନି ଭାଇ ଅକ୍ରୁରଙ୍କ ଅଙ୍ଗରେ କ’ଣ ଲେପନ କରୁଥିଲେ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
ଅକ୍ରୂର ଗୋପପୁରରେ ପହଞ୍ଚିଲା ପରେ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ ମାୟା ଯୋଗୁ ସେ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ଚିହ୍ନିପାରି ନାହାନ୍ତି। ଅକ୍ରୂର ରଥଚଢ଼ି ଆସିଲାବେଳେ ମନରେ ଯାହାସବୁ ଚିନ୍ତା କରିଥିଲେ ଭାବଗ୍ରାହୀ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ତାଙ୍କ ସହ ସେହିସବୁ କରିଲେ। ଖାଇବାକୁ ଦେଇସାରି ପାନଭାଙ୍ଗି ଦେଇଗଲେ। ବେନିଭାଇ ଅକ୍ରୁରଙ୍କ ଦେହରେ ବା ଅଙ୍ଗରେ ବାସଚନ୍ଦନ ଲେପନ କରୁଥିଲେ।

Question 14.
କଂସ କାହା ପ୍ରତି ନିଶାମଣି ବୋଲି ଚିଟାଉରେ ଲେଖୁଥିଲା?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
କଂସ ଅକ୍ରୂର ହାତରେ ନନ୍ଦଙ୍କ ନିକଟକୁ ଏକ ଚିଟାଉ ପ୍ରେରଣ କରିଥିଲା, ଯେଉଁଥିରେ ସେ ନିଜ ଆତ୍ମବଡ଼ିମା ଗାନ କରିଥିଲା। ଏଇ ଚରାଚର ସଂସାରରେ କେହି ତା’ର ସରି ନୁହେଁ ବୋଲି କହିଥିଲା। ସେଇ ଚିଟାଉରେ ଲେଖୁଥୁଲା ଯଦି ଯାଦବ ବଂଶ କୁମୁଦ ବନ ହୁଅନ୍ତି, ତେବେ ସେ ନିଶାମଣି ସଦୃଶ ଅଟନ୍ତି।

CHSE Odisha Class 11 Optional Odia Solutions Chapter 1 ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ

Question 15.
କଂସ କିପରି ଯୋଦ୍ଧାମାନେ ଜିଣିଥିଲା ବୋଲି କହିଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
କଂସ ନିଜ ଆତ୍ମବଡ଼ିମା ଗାନ କରି ନନ୍ଦରାଜାଙ୍କ ନିକଟକୁ ଚିଟାଉ ପଠାଇଛି, ଯେଉଁଥରେ ସେ ନିଜ ଶ୍ରେଷ୍ଠତା ନିଜେ ଗାନ କରିଛି । ସେ ଘୋଷଣା କରି ଲେଖୁଛି, ସେ ଏପରି ଜଣେ ଯୋଦ୍ଧା ଯେ ଅନ୍ୟ ଯୋଦ୍ଧାମାନେ ତା’ସହ ଯୁଦ୍ଧ କରିବା ପୂର୍ବରୁ ତା’ର ବଶତା ସ୍ବୀକାର କରିଥା’ନ୍ତି। ଅନ୍ୟ ଯୋଦ୍ଧାମାନେ ଭୟରେ ତା’ସହ ସନ୍ଧି କରି ପରାଜୟ ସ୍ୱୀକାର କରିଥାନ୍ତି। ତେଣୁ ଯୁଦ୍ଧ ନକରି ମଧ୍ଯ ଯୋଦ୍ଧାମାନ ଜିଣିଥିଲା ବୋଲି ସେ କହିଛି।

Question 16.
କଂସର ରଡ଼ିଗୋଟାକେ କି ଅବସ୍ଥା ହେବ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
ନନ୍ଦରାଜାଙ୍କ ନିକଟକୁ ପଠାଇଥିବା ଚିଟାଉରେ କଂସ ଲେଖିଛି ଯେ ତା’ର ରଡ଼ି ଗୋଟାକରେ ତିନିପୁରରେ ଅର୍ଥାତ୍ ସ୍ଵର୍ଗପୁର, ମର୍ତ୍ତ୍ୟପୁର ଓ ପାତାଳପୁରରେ ଯେତେକ ଜୀବଜନ୍ତୁ ଅଛନ୍ତି, ସମସ୍ତେ ମରିବେ ।

Question 17.
ରାମକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ଅକ୍ରୂର ସହିତ ପଠାଇଦେବା ପାଇଁ କଂସ କାହିଁକି ଲେଖୁଥିଲା?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
କଂସ ନନ୍ଦଙ୍କ ନିକଟକୁ ପଠାଇଥିବା ଚିଟାଉରେ ରାମକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ଅକ୍ରୂର ସହ ପଠାଇବାକୁ ଲେଖୁଥିଲା। କାରଣ ନନ୍ଦରାଜାର ଏଇ ଦୁଇ ବାଳକ କେତେ ବଡ଼ ହେଲେଣି ଏହା ସେ ଦେଖିବାକୁ ଚାହୁଁଛି। ଏହା ବ୍ୟତୀତ ବଳରାମ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ଅକୃରଙ୍କ ସହ ମଥୁରା ଆସିଲେ ଏଠାରେ ବଡ଼ଲୋକଙ୍କ ସହ ମିଶିବାର ସୁଯୋଗ ପାଇବେ ଏବଂ ତାଙ୍କ ମନରୁ ସମସ୍ତ ଭୟ ଦୂରହେବ।

Question 18.
ଯେତେବେଳେ ଗୋପ ତେଜି ଯିବେ ନାରାୟଣ, ସେତେବେଳେ କ’ଣ ହେବ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
ଅକ୍ରୁରଙ୍କ ସହ ଯେତେବେଳେ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ବଳରାମ ଗୋପପୁର ଛାଡ଼ି ମଥୁରା ଯିବେ ସେତେବେଳେ ଏଇ ସମ୍ବାଦ ସମଗ୍ର ଗୋପନଗରରେ ଦୁଃଖର ଲହରୀ ଖେଳାଇଦେବ। ସକଳ ହୃଦୟରେ ବେଦନାର ଛାୟା ଘୋଟିଯିବ। ଯିଏ ସାରା ଗୋପପୁରର ପ୍ରାଣ, ତାଙ୍କ ବିନା ଗୋପପୁରର ଅବସ୍ଥା ମ୍ରିୟମାଣ ହୋଇଯିବ।

Question 19.
କାଲିଠାରୁ ଅନ୍ଧ ହୋଇଯିବା ବୋଲି ଗୋପୀ ଜଣକ କାହିଁକି କହିଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
କୃଷ୍ଣଙ୍କ ଗୋପପୁରରୁ ବିଦାୟ ପରେ ଗୋପୀ ଗୋପାଳୁଣୀ କିପରି ଜୀବନ ଧାରଣ କରିବେ ଭାଳି ହୋଇଛନ୍ତି। କୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ନିଜ ଜୀବନ ପ୍ରଶ୍ଵାସ ଧରି ନେଇଥିବା ଗୋପୀମାନେ ଜୀବନ ଜିଇଁବାର ଆଶା ହରାଇଛନ୍ତି। ସେଇ ଗୋପୀମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ଜଣେ ଗୋପୀ କହିଛି ଯେ କୃଷ୍ଣଙ୍କ ବିଦାୟ ପରେ କାଲିଠାରୁ ସେ ରୋଦନ କରି କରି ନିଜର ଦୃଷ୍ଟିଶକ୍ତି ହରାଇ ଅନ୍ଧ ହୋଇଯିବ।

Question 20.
କାଲିଠାରୁ କୁମୁଦ ମରିବେ ବୋଲି କହିବାର ତାତ୍ପର୍ଯ୍ୟ କ’ଣ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ ମଥୁରା ଯାତ୍ରା ଗୋପୀମାନଙ୍କୁ ଭାବବିହ୍ବଳ କରିପକାଇଛି। ସେମାନେ ଜଡ଼ ପ୍ରାୟ ପାଲଟି ଯାଇଛନ୍ତି । କାଲିଠାରୁ ଅର୍ଥାତ୍ କୃଷ୍ଣଙ୍କ ବିଦାୟ ପରଠାରୁ କୁମୁଦ ମରିବେ। କାରଣ କୁମୁଦ ରମଣ କୁମୁଦକୁ ଯିବେ, ଅର୍ଥାତ୍ କୁମୁଦରମଣ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ କୁମୁଦକୁ ଅର୍ଥାତ୍ ଦକ୍ଷିଣ-ପଶ୍ଚିମସ୍ଥ ମଥୁରା ନଗରୀକୁ ଯିବେ। ତେଣୁ କୁମୁଦରୂପୀ ଗୋପୀମାନେ ମରିବେ।

୫ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ। (୧୫୦ଟି ଶବ୍ଦ ମଧ୍ଯରେ ଉତ୍ତର)।

Question 1.
‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ କାବ୍ୟର ନାମକରଣର ଯଥାର୍ଥତା ଦର୍ଶାଅ।
କିମ୍ବା, ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ କାବ୍ୟ ଏକ ସଫଳ ପୌରାଣିକ କାବ୍ୟ ଆଲୋଚନା କର ।
Answer:
ରୀତିଯୁଗୀୟ କାବ୍ୟ ପରମ୍ପରାରେ ଭକ୍ତକବି ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସଙ୍କର ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ ଏକ ବ୍ୟତିକ୍ରମ। ଏହା ବୈଷ୍ଣବ ଭକ୍ତିରସାତ୍ମକ କାବ୍ୟ। ଭାଗବତରେ ବିଷୟବସ୍ତୁ ଆଧାରରେ ଏହା ରଚିତ ହୋଇଥିଲେ ହେଁ, ଏଥରେ ଶୁଦ୍ଧାରାଗାନୁଗା ଭକ୍ତି ଉପରେ ଗୁରୁତ୍ବ ଆରୋପ କରାଯାଇଅଛି। ଏହି କାବ୍ୟରେ ମଥୁରାଧୂପତି ଯଦୁରାଜ କଂସର ବିନାଶ ଓ ମଥୁରାର ମଙ୍ଗଳ ବିଧାନ ମୁଖ୍ୟ ପ୍ରତିପାଦିତ ବିଷୟ। କଂସ ବ୍ରହ୍ମାବରରେ ବଳୀୟାନ, ସେ ଅତ୍ୟାଚାରୀ ଓ ସ୍ଵେଚ୍ଛାଚାରୀ, ଦେବତାମାନଙ୍କୁ ସେ ପାଦତଳେ ଖଟାଏ। ସମସ୍ତେ ତାଙ୍କୁ ଭୟ କରନ୍ତି। ଏପରିକି ନିଜର ପିତା ଉଗ୍ରସେନ ମଧ୍ଯ ତାଙ୍କୁ ଭୟରେ ସିଂହାସନ ଛାଡ଼ିଦେଇ ସାମାନ୍ୟ କଟୁଆଳ ରୂପେ କାର୍ଯ୍ୟକଲେ । ସେ ପୁଣି ଶୂନ୍ୟବାଣୀ ଶୁଣି ନିଜର ଭଉଣୀ ଦେବକୀ ଓ ଭିଣୋଇ ବସୁଦେବଙ୍କୁ ବନ୍ଦୀଶାଳାରେ ରଖୁଲା। ସେମାନଙ୍କର ଜନ୍ମିତ ସନ୍ତାନମାନଙ୍କୁ ନିର୍ମମ ଭାବରେ ହତ୍ୟାକଲା। ଅଷ୍ଟମ ଗର୍ଭରେ ଜନ୍ମନେଲେ ଭଗବାନ୍ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ। ବସୁଦେବ ତାଙ୍କୁ ଆଣି ଗୋପପୁରରେ ନନ୍ଦରାଣୀ ଯଶୋଦାଙ୍କ କୋଳରେ ଶୁଆଇଦେଇ ତାଙ୍କର ସତ୍ୟଜାତ କନ୍ୟାକୁ ନେଇଗଲେ। କଂସ ସେଇ କନ୍ୟାକୁ ଶିଳା ଉପରେ କଚାଡ଼ିଲା ମାତ୍ରେ ସେଇ କନ୍ୟା ଆକାଶମାର୍ଗକୁ ଚାଲିଯାଇ କଂସର ମୃତ୍ୟୁ ଅବଶ୍ୟମ୍ଭାବୀ ବୋଲି ଘୋଷଣା କଲା । ତତ୍‌ପରେ କଂସ ନାନା ଉପାୟରେ ଚେଷ୍ଟାକଲା ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ଓ ବଳରାମକୁ ମାରିବାପାଇଁ। ପୁତନା, ଅଘା, ବକା, ଶକଟା, ଧେନୁକା, ତୃଣା ଆଦି କେତେ ଅସୁରଙ୍କୁ ପଠାଇଲା। ମାତ୍ର ସମସ୍ତେ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ ହାତରେ ମଲେ। ମଥୁରାର ଦୁଷ୍ଟ ଅସୁରମାନଙ୍କୁ ଗୋଟି ଗୋଟି କରି ମାରିଦେଲେ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ। ଏଥିରେ କଂସ ଚିନ୍ତାରେ ପଡ଼ିଗଲା, ସେ କ’ଣ କରିବ? କିପରି କୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ମାରିବ। ଅନ୍ୟପକ୍ଷରେ ଦେବତାମାନେ ଭଗବାନଙ୍କୁ ପ୍ରାର୍ଥନା କଲେ –

ଅତି ଆରତେ ଡାକଛି ଅମର ।
ଦେବ ରକ୍ଷାକର ମହୀ ତୋହର ॥
ଯେବେ ନ ରଖୁବ ନାଶ ଗଲୁଟି ।
ଦୈତ୍ୟ ସ୍ଵର୍ଗ ଭୁବନ କଲା ଲୁଟି ॥
ଗୋରୁ ବ୍ରାହ୍ମଣ ସୁଜନ ନାଶିଲା ।
ମହା ଅଧର୍ମେ ମହୀକି ଗ୍ରାସିଲା ॥

ସେଦିନ ଭଗବାନ୍ ଦେବତାମାନଙ୍କୁ ନିଜେ ବସୁଦେବଙ୍କ ଘରେ ଜନ୍ମହୋଇ କଂସକୁ ବିନାଶ କରିବେ ବୋଲି କହି ବିଦା କରିଥିଲେ। କଂସ ମଧ୍ଯ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ବିନାଶ କରିବାକୁ ଉଦ୍ୟମ କରି ବ୍ୟର୍ଥ ହେଲାପରେ ଅକ୍ରୂରକୁ ପଠାଇଛି ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ଓ ବଳରାମଙ୍କୁ କୌଶଳ କରି ମଥୁରାକୁ ନେଇଆସିବା ଲାଗି। ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ଓ ବଳରାମ ମଥୁରାକୁ ଆସିଲେ। ପ୍ରଥମେ ସେ କଂସର ଅସୁର ରଜକକୁ ହତ୍ୟା କଲେ। ତା’ପରେ ସେମାନେ ନିଧନ କଲେ କୁବଳୟା ହସ୍ତୀକୁ। ତା’ପରେ ମୁଷ୍ଟିକ ଓ ଚାଣୁରକୁ ବେନିଭାଇ ହତ୍ୟା କଲେ। ପରିଶେଷରେ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ଗଲେ କଂସ ନିକଟକୁ। କଂସ ମଞ୍ଚାରୁ ଡେଇଁପଡ଼ି ମୃତ୍ୟୁବରଣ କଲା। ଦୁଷ୍ଟ ରାକ୍ଷସର ମୃତ୍ୟୁ ହେଲା। ଦେବତାମାନେ ଖୁସିରେ ପୁଷ୍ପ ବୃଷ୍ଟି କଲେ, ଗନ୍ଧର୍ବମାନେ ଗୀତ ଗାଇଲେ। କିନ୍ନରଗଣ ନୃତ୍ୟକଲେ। ଅଗ୍ନି ଶିଖା ତୋଳି ଉଠିଲା। ପବନ ଖୁସିରେ ବହିଗଲା। ମଥୁରା ହେଲା ଶାନ୍ତ। ସ୍ଵର୍ଗ, ମର୍ତ୍ତ୍ୟ, ପାତାଳ ହେଲା ଶାନ୍ତ। ମଥୁରାବାସୀ ଆନନ୍ଦ ପ୍ରକାଶ କଲେ। ସମସ୍ତେ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ଘେନି ଆନନ୍ଦ ଉଲ୍ଲାସରେ ଖୁସି ମନାଇଲେ। ଏହି ଦୃଷ୍ଟିରୁ ଦେଖ‌ିଲେ କବି ଏହି ବିଷୟଟିର ନାମ ରଖୁଥିଲେ ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’। ଏହି କାବ୍ୟରେ କଂସର ବିନାଶ ଫଳରେ ମଥୁରାର ମଙ୍ଗଳ ହୋଇଛି ସତ; କିନ୍ତୁ କବି ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ ଏହି ଗ୍ରନ୍ଥରେ ଶୁଦ୍ଧାଭକ୍ତି, ଗୋପିପ୍ରେମ ଓ ଉଦ୍ଧବଙ୍କ ଭକ୍ତିଭାବକୁ ବ୍ୟକ୍ତ କରିଅଛନ୍ତି। କୃଷ୍ଣଙ୍କ ପ୍ରତି ଗୋପୀମାନଙ୍କର ଆକୁଳତା ଯେପରି ଏହି କାବ୍ୟରେ ବର୍ଣ୍ଣିତ ତାହା ଏକାନ୍ତ ହୃଦ୍ୟ। ଏହା ସତ୍ତ୍ୱେ କବି ଯେପରି ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ ନାମକରଣ କରିଛନ୍ତି ତାହା ଯଥାର୍ଥ ଅଟେ।

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Question 2.
ଅକ୍ରୂରଙ୍କ ଗୋପଯାତ୍ରାକାଳୀନ ଦୃଶ୍ୟ ବର୍ଣ୍ଣନା କର।
କିମ୍ବା, ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ କାବ୍ୟରେ ଅକ୍ରୂର ଚରିତ୍ରର ଉପଯୋଗିତା ବିଚାର କର।
Answer:
‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ କାବ୍ୟରେ ଅକ୍ରୂର ଚରିତ୍ର ଏକ ଅନବଦ୍ୟ ଚରିତ୍ର। ଏହି ଚରିତ୍ର ଅବଲମ୍ବନରେ ଭକ୍ତକବି ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ ନିଜର ଭକ୍ତି ଭାବନାକୁ ପ୍ରକାଶ କରିଛନ୍ତି। ଅକ୍ରୂର ମଥୁରାପତି କଂସାସୁରର ମନ୍ତ୍ରୀ। ସେ କଂସକୁ ମନ୍ତ୍ରଣା ଦେବା ମାଧ୍ୟମରେ କଂସର ପତନ ଚାହିଁଛନ୍ତି। ସେ ପୁଣି କୃଷ୍ଣଗତ ପ୍ରାଣ, କଂସର ଅତ୍ୟାଚାରକୁ ସେ ବରଦାସ୍ତ କରିପାରି ନାହାଁନ୍ତି। ତେଣୁ ସେ କୌଶଳ କରିଛନ୍ତି କଂସର ନିଧନ ପାଇଁ। କଂସର ମନରେ ଦାରୁଣ ଦୁଃଖ ସୃଷ୍ଟି ହୋଇଛି। କୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ମାରିବାର ସକଳ ଚେଷ୍ଟା ବ୍ୟର୍ଥ ହୋଇଛି। ପୁତନା, ଶକଟା, ଧେନୁକା, ତୃଣା, ବକା, ଅଘା ଆଦି ଅସୁରମାନଙ୍କୁ ନିଧନ କରି ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ଗୋପପୁରରେ ରହିଥା’ନ୍ତି। ଏହି କାରଣରୁ କଂସ ଘୋର ଚିଷ୍ଠିତ। କଂସ ମନ୍ତ୍ରୀ ଅକ୍ରୂରକୁ ଡାକି କହିଛନ୍ତି ଯେ ରାମକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ଯେକୌଣସି ମତେ ମଥୁରାକୁ ନେଇ ଆସିବାକୁ। ସେ କହିଛନ୍ତି –

‘‘ମୋର ବିଶ୍ବାସ ତୁ, ଏଣୁ କହୁଛି ।
ଆଣି ଦେବୁ ନନ୍ଦର ବେନି ବଛି ।।
X X X X
ମୋହ ଛାମୁରେ କରାଇବୁ ଭେଟ ।
ବଳେ ଧରି ମାରିବି ନନ୍ଦ ଚାଟ ।।’’

ଅକ୍ରୂର ଏହି କଥା ଶୁଣି ଆନନ୍ଦିତ ହୋଇଛନ୍ତି। କଂସର ଦୁର୍ବଳତାକୁ ସେ ଉପଲବ୍ଧି କରିଛନ୍ତି। ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ମଥୁରାକୁ ଆଣିବାକୁ ହେବ। ଅକ୍ରୂର ରଥସଜାଇ କୃଷ୍ଣଦର୍ଶନ ଆଶାରେ ଉତ୍ପନ୍ନ ହୋଇ ଗୋପପୁରକୁ ବାହାରି ପଡ଼ିଛନ୍ତି। କେତେ ଆକାଙ୍‌କ୍ଷା ନେଇ ସେ ଗମନକଲେ ବ୍ରଜପୁରକୁ। ଭଗବାନ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ସେ ଦେଖ‌ିବେ, କୋଟି ଜନ୍ମ ତାଙ୍କର ସାର୍ଥକ ହେବ। କବିଙ୍କ ଭାଷାରେ –

‘‘କଂସଡ଼ଗର କରେ ବିଚାର ଧନ୍ୟ ହୋଇଲା ଆଜ।
ଧନ୍ୟ ମୋ ତାତ ଧନ୍ୟ ମୋ ମାତ ଦେଖୁ ଦେବରାଜ॥
ଧନ୍ୟରେ ନେତ୍ର ହେବ ପବିତ୍ର ଚାହିଁ ଜଳଦତନୁ।
ଗୋପାଳ ମେଳେ ନନ୍ଦର କୋଳେ ବସି ଯେ ଥିବେ କାହୁ॥’’

କେତେ ବାସନା ତାଙ୍କ ମନରେ ଜାଗିଉଠିଛି। ତାଙ୍କୁ ରାମକୃଷ୍ଣ ପ୍ରେମରେ ଆଲିଙ୍ଗନ କରିବେ। ଏହିପରି ନାନା ଚିନ୍ତାକରି ଯାଉ ଯାଉ ପଥ ମଧ୍ଯରେ ବାଲିକୁଦ ଉପରେ ସେ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ ଧ୍ଵଜ, ଅଙ୍କୁଶ, ଚକ୍ର ଓ ପଦଚିହ୍ନ ଦେଖ‌ିଲେ। ତାଙ୍କର ଅନ୍ତର ଢଳଢଳ ହୋଇଉଠିଲା। ସେ ରଥରୁ ଡେଇଁ ପଡ଼ିଲେ। ସେଇ ବାଲିକୁ ନେଇ ସେ ଦେହସାରା ବୋଲିହେଲେ। ନୟନରୁ ଝରିପଡ଼ିଲା ପ୍ରେମାଶ୍ରୁ। କବି ଏ ପ୍ରସଙ୍ଗରେ ଲେଖିଛନ୍ତି –

‘‘ଆନନ୍ଦ ହୋଇ ରଥରୁ ଡେଇଁ ଶିରେ ନିଉଡ଼େ ବାଲି ।
ହା କୃଷ୍ଣ ବୋଲି ନ ପାରେ ଚାଲି, ନୟନୁ, ଅଶ୍ରୁ ଗଳି ॥
କହି ହୁଡ଼ଇ, ଉଠି ପଡ଼ଇ, ଗଡ଼ଇ ପାଦ ପରେ ।
ଶୂନ୍ୟକୁ କୋଳ କରି ଆକୁଳ, କମ୍ପଇ ପ୍ରେମଭରେ ॥’’

ଅକ୍ରୂରର ଏହା ଭାବାନ୍ତର ନୁହେଁ ସତେ ଯେମିତି ଏହା ହେଉଛି କବିଙ୍କର ଅନ୍ତରର କଥା। ଅକ୍ରୁର ଚରିତ୍ର ସହିତ ସେ ଏକାମ୍ ହୋଇ ଯାଇଛନ୍ତି। ଅକ୍ରୂର ଗୋପଦାଣ୍ଡରେ ପ୍ରବେଶ କରି ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ଚିହ୍ନିପାରି ନାହାଁନ୍ତି। ମାୟାଧର ମାୟା କରିଦେଲେ ଗୋପର ସମସ୍ତ ଗୋପାଳ ବାଳକ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ ପରି ଦେଖାଯାଉଛନ୍ତି। ଘୋର ଚିନ୍ତାରେ ପଡ଼ିଗଲେ ଅକ୍ରୂର। ତା’ପରେ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ମାୟା ସମ୍ବରଣ କଲେ। ଅକୁରଙ୍କୁ ସେ ଆଲିଙ୍ଗନ କଲେ। ରାମ ଓ କୃଷ୍ଣ ଅକୁରଙ୍କର ସେବା କରିଛନ୍ତି। ଅକୁରଙ୍କର ପାଦ ଚାପି ନେଇଛନ୍ତି। ଏହି ଅବସରରେ ଅକ୍ରୂର ତାଙ୍କର ମନକଥା କହିଛନ୍ତି।

‘‘ପାରିଲେ ରଖ, ହେଲି ନିରେଖ କଂସର ଦର୍ପ ହରି।
ଏହି ବିଷୟ ଆସିଛି ମୁହିଁ, ପଚାରୁ ଭଙ୍ଗୀ କରି॥’’

ଏହାପରେ ଅକୁରଙ୍କୁ ସାନ୍ତନା ଦେଇଛନ୍ତି କୃଷ୍ଣ । ନନ୍ଦର ନିକଟରେ ଅକ୍ରୂର କଂସର ଚିଟାଉ ଉପସ୍ଥାପିତ କରିଛି। ତା’ପରେ ଅକ୍ରୂର ରାମକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ସାଥ୍‌ରେ ବସାଇ ମଥୁରା ଅଭିମୁଖେ ଯାତ୍ରା କରିଛନ୍ତି। ବାଟରେ ଯମୁନା ଜଳରେ ସ୍ନାନ କଲାବେଳେ ଜଳ ମଧ୍ୟରେ ସେ ରାମକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ଦେଖୁ ବିସ୍ମିତ ହୋଇଛନ୍ତି। ଜଳରୁ ଉଠି ସେ ପୁଣି ଦେଖୁଛନ୍ତି ରଥରେ ବିଦ୍ୟମାନ ରାମକୃଷ୍ଣ। ଅତଏବ ଉକ୍ତ କାବ୍ୟରେ ଅକ୍ରୂର ଚରିତ୍ରର ବିଶେଷ ଭୂମିକା ରହିଛି।

Question 3.
କଂସ ଲେଖୁଥ‌ିବା ଚିଟାଉର ଭାବଧାରା ବିଶ୍ଳେଷଣ କର।
Answer:
ଓଡ଼ିଆ ଭକ୍ତି ସାହିତ୍ୟ ପରମ୍ପରାରେ ଯେଉଁ କେତେଜଣ ବିଶିଷ୍ଟ ପ୍ରତିଭା ନିଜ ନାମକୁ ରୀତିସାହିତ୍ୟ ଧାରାରେ ସ୍ଵର୍ଣ୍ଣାକ୍ଷରରେ ଲିପିବଦ୍ଧ କରିଯାଇଛନ୍ତି, ସେମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ କବି ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ ଅନ୍ୟତମ ପ୍ରଚଣ୍ଡ ପ୍ରତିଭା । ସହଜ ସରଳ ‘ଭାଷାଶୈଳୀ, ସରଳ ଭକ୍ତିରସାତ୍ମକ ଭାବଧାରା ତାଙ୍କ ସୃଷ୍ଟିଗୁଡ଼ିକୁ ସାର୍ଥକ କରିରଖୁଛି। ସେଇ ସବୁ ଅମୂଲ୍ୟ କୃତିଗୁଡ଼ିକ ମଧ୍ୟରୁ ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ ଅନ୍ୟତମ। ଏଇ ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ କାବ୍ୟରେ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ, ନନ୍ଦ, ଯଶୋଦା, ଗୋପୀଗୋପାଳୁଣୀ ଓ କଂସ ଚରିତ୍ର ସଂପର୍କରେ ଆଲୋକପାତ କରାଯାଇଛି। କଂସର ମୃତ୍ୟୁ ଏହାର ମୁଖ୍ୟ କଥାବସ୍ତୁ। କଂସର ଅହଂ, ତା’ର ଗର୍ବଭାବକୁ ଚୂର୍ଣ୍ଣ କରି ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ମର୍ତ୍ତ୍ୟରେ ସତ୍ୟ-ଧର୍ମ ଓ ପରମ୍ପରାକୁ ବିନାଶ ହେବାରୁ ଉଦ୍ଧାର କରିଥିଲେ।

ମଥୁରା ନରପତି ଉଗ୍ରସେନଙ୍କ ରାଣୀ ଇନ୍ଦୁମତୀଙ୍କୁ ଅଭିଶପ୍ତ ବିଦ୍ୟାଧର ଦୁର୍ମିଳା ରାକ୍ଷସ ଛଦ୍ମବେଶରେ ରମଣ କରିବାରୁ କଂସର ଜନ୍ମ ହୋଇଥିଲା ଏବଂ ଅସୁର ସନ୍ତାନ ହେତୁ ତା’ର ପ୍ରକୃତି ମଧ୍ଯ ରାକ୍ଷସ ପରି ହୋଇଥିଲା। ଯୁବ ଅବସ୍ଥାରେ ସେ ତ୍ରିଭୁବନ ପ୍ରକମ୍ପିତ କରିଲା। ସୁର, ନର, କିନ୍ନର ସଭିଙ୍କୁ ଦାସ ପରି ଖଟାଇଲା। ଆଭିଜାତ୍ୟ ଓ କୌଳିନ ଦୃଷ୍ଟିରୁ କେହି କଂସର ସମକକ୍ଷ ହୋଇନାହାନ୍ତି। ତେବେ ଏହି କଂସ ଧନସଂପରି, କ୍ଷମତା ଏବଂ ଐଶ୍ବର୍ଯ୍ୟର ବିଳାସ ମଧ୍ୟରେ ପାଲଟି ଯାଇଛି ବିକ୍ରମଶାଳୀ।

ଏହି ବିକ୍ରମଶାଳୀ ମହାପ୍ରତାପୀ ରାଜା କଂସର ମୃତ୍ୟୁ ଦେବକୀଙ୍କ ଅଷ୍ଟମ ସନ୍ତାନଦ୍ୱାରା ହେବ ବୋଲି ନାରଦ କହିଥିଲେ। ତେଣୁ କଂସ ଦେବକୀଙ୍କ ସନ୍ତାନମାନଙ୍କୁ ଗୋଟେ ଗୋଟେ କରି ହତ୍ୟା କରିଛି। ହେଲେ ବିଧୁ ନିର୍ଦ୍ଦେଶରେ ଦେବକୀଙ୍କ ଅଷ୍ଟମ ସନ୍ତାନ ଗୋପପୁର ନନ୍ଦ ଯଶୋଦାଙ୍କ ସନ୍ତାନ ହୋଇ ବଢ଼ିଛି। ଏହି ଖବର କଂସକୁ ପ୍ରାପ୍ତ ହେଲାପରେ କଂସ ବହୁ ଅସୁରଙ୍କୁ ପଠାଇଛି ନନ୍ଦସୁତ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ବଧ କରିବା ନିମନ୍ତେ। ସମସ୍ତେ ଅସଫଳ ହେବାପରେ ଏକ ଚକ୍ରାନ୍ତ ରଚି ନନ୍ଦସୁତ ବଳରାମ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ମଥୁରାକୁ ନିମନ୍ତ୍ରିତ କରାଇଛି । କଂସ ତା’ର ମନ୍ତ୍ରୀ ଅକ୍ରୂରକୁ ଗୋପପୁର ପଠାଇଛି ଏବଂ ତାଙ୍କରି ହାତରେ ନନ୍ଦରାଜାଙ୍କ ନିକଟକୁ ଏକ ଚିଟାଉ ପଠାଇଛି।

ଏହି ଚିଟାଉରେ ନନ୍ଦରାଜାଙ୍କୁ କଂସ ନିଜର ବଡ଼ପଣ ଦେଖାଇ ଅନେକ କଥା ଲେଖୁଛନ୍ତି। ବିନା ଯୁଦ୍ଧରେ କିପରି ଶତ୍ରୁମାନେ କଂସର ବଶତା ସ୍ଵୀକାର କରନ୍ତି, ତା’ର ରଡ଼ି ଶୁଣି ତ୍ରିଭୁବନ କିପରି ଥରି ଉଠେ ତାହାକୁ ଉଲ୍ଲେଖ କରିଛି। ଜଣେ ଅଭିଜ୍ଞ କୂଟନୀତିଜ୍ଞ ପରି ସେ ଚିଟାଉରେ ନନ୍ଦସୁତମାନଙ୍କୁ ଅର୍ଥାତ୍ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ବଳରାମଙ୍କୁ ଦର୍ଶନ କରିବା କଥା ନନ୍ଦ ନିକଟକୁ ଲେଖୁ ପଠାଇଛନ୍ତି । ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ବଳରାମ ମଥୁରା ଗଲେ ବିଜ୍ଞଜନଙ୍କ ସହ ମିଶି ପରିଚିତ ହୋଇ ନିର୍ଭୟରେ କିପରି ରହିବେ ଏକଥା ଉଲ୍ଲେଖ କରିବା ପଛରେ ତା’ର ଚତୁରତା ବାରି ହୋଇପଡ଼େ।

‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ କାବ୍ୟର ନାୟକ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ହେଲେ ହେଁ କଂସାସୁର ହେଉଛି ପ୍ରତିନାୟକ। ଏହି ପ୍ରତି ନାୟକ ସହିତ ସଂଘର୍ଷ ହେଲେ ସିନା ନାୟକର ବ୍ୟକ୍ତିତ୍ଵ ପ୍ରକଟିତ ହେବ! କଂସ ନନ୍ଦଙ୍କ ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ ପଠାଇଥିବା ଚିଟାଉରୁ ହିଁ ତା’ର ଚରିତ୍ର ବିଷୟରେ ଧାରଣା ପାଠକ ନିକଟରେ ସ୍ପଷ୍ଟ ହୋଇଉଠିଛି । କଂସକୁ ପାପର ପ୍ରତୀକ ଭାବରେ ଗ୍ରହଣ କରି ଏହାର ବିନାଶ ସାଧନକରି ସତ୍ୟର ପ୍ରତିଷ୍ଠା କରାଇବା ହିଁ ଲେଖକ ତଥା କବି ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସଙ୍କ କଳ୍ପିତ-କଳ୍ପନା ହୋଇଥିଲେ ସୁଦ୍ଧା କଂସ ଯେ ଜଣେ ରାଜନୀତିଜ୍ଞ, ବିକ୍ରମଶାଳୀ ବୀର, ସୁଚତୁର ରାଜପୁରୁଷ ଏବଂ ଧୈର୍ଯ୍ୟବାନ୍ ଶାସକ ଏଥ‌ିରେ ସନ୍ଦେହର ଅବକାଶ ନାହିଁ। ବାସ୍ତବିକ ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ର କଂସ ଚରିତ୍ର ଚିତ୍ରଣ ଓ ଚିଟାଉରେ କଂସର ବର୍ଣ୍ଣନା ବେଶ୍ ତାତ୍ପର୍ଯ୍ୟପୂର୍ଣ୍ଣ।

Question 4.
କଂସ ଚିଟାଉରୁ ତା’ର ଅହଂକାରର ସ୍ଵରୂପ ନିର୍ଣ୍ଣୟ କର।
Answer:
ଓଡ଼ିଆ ଭକ୍ତି ସାହିତ୍ୟ ପରମ୍ପରାରେ ଯେଉଁ କେତେଜଣ ବିଶିଷ୍ଟ ପ୍ରତିଭା ନିଜ ନାମକୁ ରୀତିସାହିତ୍ୟ ଧାରାରେ ସ୍ଵର୍ଣ୍ଣାକ୍ଷରରେ ଲିପିବଦ୍ଧ କରିଯାଇଛନ୍ତି, ସେମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ କବି ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ ଅନ୍ୟତମ ପ୍ରଚଣ୍ଡ ପ୍ରତିଭା । ସହଜ ସରଳ ‘ଭାଷାଶୈଳୀ, ସରଳ ଭକ୍ତିରସାତ୍ମକ ଭାବଧାରା ତାଙ୍କ ସୃଷ୍ଟିଗୁଡ଼ିକୁ ସାର୍ଥକ କରିରଖୁଛି। ସେଇ ସବୁ ଅମୂଲ୍ୟ କୃତିଗୁଡ଼ିକ ମଧ୍ୟରୁ ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ ଅନ୍ୟତମ। ଏଇ ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ କାବ୍ୟରେ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ, ନନ୍ଦ, ଯଶୋଦା, ଗୋପୀଗୋପାଳୁଣୀ ଓ କଂସ ଚରିତ୍ର ସଂପର୍କରେ ଆଲୋକପାତ କରାଯାଇଛି। କଂସର ମୃତ୍ୟୁ ଏହାର ମୁଖ୍ୟ କଥାବସ୍ତୁ। କଂସର ଅହଂ, ତା’ର ଗର୍ବଭାବକୁ ଚୂର୍ଣ୍ଣ କରି ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ମର୍ତ୍ତ୍ୟରେ ସତ୍ୟ-ଧର୍ମ ଓ ପରମ୍ପରାକୁ ବିନାଶ ହେବାରୁ ଉଦ୍ଧାର କରିଥିଲେ।

ମଥୁରା ନରପତି ଉଗ୍ରସେନଙ୍କ ରାଣୀ ଇନ୍ଦୁମତୀଙ୍କୁ ଅଭିଶପ୍ତ ବିଦ୍ୟାଧର ଦୁର୍ମିଳା ରାକ୍ଷସ ଛଦ୍ମବେଶରେ ରମଣ କରିବାରୁ କଂସର ଜନ୍ମ ହୋଇଥିଲା ଏବଂ ଅସୁର ସନ୍ତାନ ହେତୁ ତା’ର ପ୍ରକୃତି ମଧ୍ଯ ରାକ୍ଷସ ପରି ହୋଇଥିଲା। ଯୁବ ଅବସ୍ଥାରେ ସେ ତ୍ରିଭୁବନ ପ୍ରକମ୍ପିତ କରିଲା। ସୁର, ନର, କିନ୍ନର ସଭିଙ୍କୁ ଦାସ ପରି ଖଟାଇଲା। ଆଭିଜାତ୍ୟ ଓ କୌଳିନ ଦୃଷ୍ଟିରୁ କେହି କଂସର ସମକକ୍ଷ ହୋଇନାହାନ୍ତି। ତେବେ ଏହି କଂସ ଧନସଂପରି, କ୍ଷମତା ଏବଂ ଐଶ୍ବର୍ଯ୍ୟର ବିଳାସ ମଧ୍ୟରେ ପାଲଟି ଯାଇଛି ବିକ୍ରମଶାଳୀ।

ଏହି ବିକ୍ରମଶାଳୀ ମହାପ୍ରତାପୀ ରାଜା କଂସର ମୃତ୍ୟୁ ଦେବକୀଙ୍କ ଅଷ୍ଟମ ସନ୍ତାନଦ୍ୱାରା ହେବ ବୋଲି ନାରଦ କହିଥିଲେ। ତେଣୁ କଂସ ଦେବକୀଙ୍କ ସନ୍ତାନମାନଙ୍କୁ ଗୋଟେ ଗୋଟେ କରି ହତ୍ୟା କରିଛି। ହେଲେ ବିଧୁ ନିର୍ଦ୍ଦେଶରେ ଦେବକୀଙ୍କ ଅଷ୍ଟମ ସନ୍ତାନ ଗୋପପୁର ନନ୍ଦ ଯଶୋଦାଙ୍କ ସନ୍ତାନ ହୋଇ ବଢ଼ିଛି। ଏହି ଖବର କଂସକୁ ପ୍ରାପ୍ତ ହେଲାପରେ କଂସ ବହୁ ଅସୁରଙ୍କୁ ପଠାଇଛି ନନ୍ଦସୁତ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ବଧ କରିବା ନିମନ୍ତେ। ସମସ୍ତେ ଅସଫଳ ହେବାପରେ ଏକ ଚକ୍ରାନ୍ତ ରଚି ନନ୍ଦସୁତ ବଳରାମ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ମଥୁରାକୁ ନିମନ୍ତ୍ରିତ କରାଇଛି । କଂସ ତା’ର ମନ୍ତ୍ରୀ ଅକ୍ରୂରକୁ ଗୋପପୁର ପଠାଇଛି ଏବଂ ତାଙ୍କରି ହାତରେ ନନ୍ଦରାଜାଙ୍କ ନିକଟକୁ ଏକ ଚିଟାଉ ପଠାଇଛି।

ଏହି ଚିଟାଉରେ ନନ୍ଦରାଜାଙ୍କୁ କଂସ ନିଜର ବଡ଼ପଣ ଦେଖାଇ ଅନେକ କଥା ଲେଖୁଛନ୍ତି। ବିନା ଯୁଦ୍ଧରେ କିପରି ଶତ୍ରୁମାନେ କଂସର ବଶତା ସ୍ଵୀକାର କରନ୍ତି, ତା’ର ରଡ଼ି ଶୁଣି ତ୍ରିଭୁବନ କିପରି ଥରି ଉଠେ ତାହାକୁ ଉଲ୍ଲେଖ କରିଛି। ଜଣେ ଅଭିଜ୍ଞ କୂଟନୀତିଜ୍ଞ ପରି ସେ ଚିଟାଉରେ ନନ୍ଦସୁତମାନଙ୍କୁ ଅର୍ଥାତ୍ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ବଳରାମଙ୍କୁ ଦର୍ଶନ କରିବା କଥା ନନ୍ଦ ନିକଟକୁ ଲେଖୁ ପଠାଇଛନ୍ତି । ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ବଳରାମ ମଥୁରା ଗଲେ ବିଜ୍ଞଜନଙ୍କ ସହ ମିଶି ପରିଚିତ ହୋଇ ନିର୍ଭୟରେ କିପରି ରହିବେ ଏକଥା ଉଲ୍ଲେଖ କରିବା ପଛରେ ତା’ର ଚତୁରତା ବାରି ହୋଇପଡ଼େ।

‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ କାବ୍ୟର ନାୟକ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ହେଲେ ହେଁ କଂସାସୁର ହେଉଛି ପ୍ରତିନାୟକ। ଏହି ପ୍ରତି ନାୟକ ସହିତ ସଂଘର୍ଷ ହେଲେ ସିନା ନାୟକର ବ୍ୟକ୍ତିତ୍ଵ ପ୍ରକଟିତ ହେବ! କଂସ ନନ୍ଦଙ୍କ ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ ପଠାଇଥିବା ଚିଟାଉରୁ ହିଁ ତା’ର ଚରିତ୍ର ବିଷୟରେ ଧାରଣା ପାଠକ ନିକଟରେ ସ୍ପଷ୍ଟ ହୋଇଉଠିଛି । କଂସକୁ ପାପର ପ୍ରତୀକ ଭାବରେ ଗ୍ରହଣ କରି ଏହାର ବିନାଶ ସାଧନକରି ସତ୍ୟର ପ୍ରତିଷ୍ଠା କରାଇବା ହିଁ ଲେଖକ ତଥା କବି ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସଙ୍କ କଳ୍ପିତ-କଳ୍ପନା ହୋଇଥିଲେ ସୁଦ୍ଧା କଂସ ଯେ ଜଣେ ରାଜନୀତିଜ୍ଞ, ବିକ୍ରମଶାଳୀ ବୀର, ସୁଚତୁର ରାଜପୁରୁଷ ଏବଂ ଧୈର୍ଯ୍ୟବାନ୍ ଶାସକ ଏଥ‌ିରେ ସନ୍ଦେହର ଅବକାଶ ନାହିଁ। ବାସ୍ତବିକ ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ର କଂସ ଚରିତ୍ର ଚିତ୍ରଣ ଓ ଚିଟାଉରେ କଂସର ବର୍ଣ୍ଣନା ବେଶ୍ ତାତ୍ପର୍ଯ୍ୟପୂର୍ଣ୍ଣ।

Question 5.
ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ କାବ୍ୟ ଅବଲମ୍ବନରେ ଭକ୍ତଚରଣଙ୍କ ଭକ୍ତିମତା ନିରୂପଣ କର।
କିମ୍ବା, ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ କାବ୍ୟର ଦ୍ଵିତୀୟ ଛାନ୍ଦ ଅବଲମ୍ବନରେ ଅକୁରଙ୍କ ଭକ୍ତି ଭାବନାର ପରିଚୟ ଦିଅ।
Answer:
‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ କାବ୍ୟ ହେଉଛି କବି ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସଙ୍କର ସର୍ବଶ୍ରେଷ୍ଠ କୃତି। ଭଗବାନ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କର ଲୀଳାମୟ ଜୀବନର ଏହା ଏକ ରସମୟ ଅଭିବ୍ୟକ୍ତି। ଏହି କାବ୍ୟରେ ଅକୁରଙ୍କ ଚରିତ୍ର ଏକ ଅନବଦ୍ୟ ସୃଷ୍ଟି। ଅକ୍ରୂର ହେଉଛନ୍ତି ମଥୁରା ନରପତି କଂସର ମନ୍ତ୍ରୀ। ସେ ଭକ୍ତ। ସେ ଜାଣେ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ହିଁ ସ୍ୱୟଂ ଭଗବାନ୍। କଂସଙ୍କର ମନ୍ତ୍ରୀ ହେଲେବି ସେ କଂସଙ୍କର କାର୍ଯ୍ୟ କଳାପରେ ଅସନ୍ତୁଷ୍ଟ। ସେ ଚାହେଁ କଂସର ବିନାଶ, ମାତ୍ର ଏଥିପାଇଁ ସେ ଅକ୍ଷମ। ବାହାରକୁ ସେ କଂସର ବିଶ୍ବାସୀ, କିନ୍ତୁ ମନଭିତରେ ସେ କଂସର ମୃତ୍ୟୁ କାମନା କରନ୍ତି। କଂସ ଯେତେବେଳେ ଜାଣିଲା ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ଗୋପପୁରରେ ନନ୍ଦରାଜାଙ୍କ ଘରେ ବଢୁଛନ୍ତି, ସେତେବେଳେ ସେ ତାଙ୍କୁ ମାରିବାକୁ ନାନା ଉପାୟ କଲା। ମାତ୍ର ତା’ର ସକଳ ଉଦ୍ୟମ ବିଫଳ ହେଲା। ସେ ଯେତେ ଅସୁରଙ୍କୁ ପଠାଇଲା ସମସ୍ତେ ମଲେ। ଏଣୁ ସେ ବ୍ୟସ୍ତ ହୋଇପଡ଼ିଲା। ଅବଶେଷରେ ମନ୍ତ୍ରୀ ଅକ୍ରୁରଙ୍କୁ ପାଖକୁ ଡାକି ନିଜର ମନୋଭାବ ବ୍ୟକ୍ତ କଲା –

‘‘ନନ୍ଦନନ୍ଦନ ମୋହର ବଇରୀ।
ତାକୁ କେମନ୍ତେ ପକାଇବି ମାରି ।।’’

ଶେଷରେ ରାମକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ଆଣିବା ପାଇଁ ଅକ୍ରୁରଙ୍କୁ ରଥ ନେଇ ଗୋପପୁରକୁ ଯିବାକୁ ସେ ଆଦେଶ ଦେଲା। ରାମକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ସେ ଆଣି ନିଜ ହାତରେ ମାରି ଶାନ୍ତି ଲାଭକରିବ ବୋଲି କହିଲା। ଅକ୍ରୁରଙ୍କୁ ସେ ବିନୀତ ହୋଇ କୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ମଥରାପୁର ଆଣିବାକୁ କହିଲା। ପ୍ରକୃତରେ ଅକ୍ରୂର ଏପରି ଏକ ସୁଯୋଗର ଅପେକ୍ଷା କରିଥିଲେ। ଏତେଦିନ ତାଙ୍କ ଜୀବନ ଧନ୍ୟ ହେଲା। ସେ ନିଜେ ଦେଖୁବେ ଭଗବାନ୍ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ। ତାଙ୍କ ଜନ୍ମ ସାର୍ଥକ ହେବ। କଂସର ହେବ ବିନାଶ। ସକାଳୁ ସେ ରଥ ପ୍ରସ୍ତୁତ କରି ଗୋପକୁ ଯିବାକୁ ବାହାରିଲେ। କୃଷ୍ଣ ଦର୍ଶନ ଆଶା ତାଙ୍କର ବଳବତ୍ତର ହୋଇଉଠିଲା। ଚକ୍ଷୁ ପଲକମାତ୍ରେ ସେ ମଥୁରା ସୀମା ଅତିକ୍ରମ କରିଗଲେ। ବାଟରେ ସେ ମନେମନେ ଚିନ୍ତା କରୁଥା’ନ୍ତି –

‘‘କଂସଡଗର କରେ ବିଚାର ଧନ୍ୟ ହୋଇଲି ଆଜ ।
ଧନ୍ୟ ମୋ ତାତ ଧନ୍ୟ ମୋ ମାତ ଦେଖୁବି ଦେବରାଜ ॥
ଧନ୍ୟ ମୋ ନେତ୍ର ହେବ ପବିତ୍ର ଚାହିଁ ଜଳଦତନୁ ।
ଗୋପାଳ ମେଳେ ନନ୍ଦର କୋଳେ ବସି ୟେ ଥିବେ କାହୁ ॥
ଦୂରୁ ଅନାଇ ଡାକିବେ ଦୁଇ-ଭାଇ ଅକ୍ରୁର ଆସ ।
ସେ ବାଣୀ ଶୁଣି ଶ୍ରବଣ ବେନି ତେଜିବେ ସର୍ବ ଦୋଷ ॥’’

ଅକ୍ରୁର ଭକ୍ତ, ତାଙ୍କ ମନ ଓ ହୃଦୟ କୃଷ୍ଣ ଅନୁରକ୍ତ। ସେ ଭାବୁଥା’ନ୍ତି ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କର ନବୀନ ଘନକାନ୍ତି ଦେଖୁ ତାଙ୍କର ଆଖ୍ ପବିତ୍ର ହେବ। ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କର ମଧୁମୟ ବାଣୀ ଶୁଣି ତା’ର କର୍ଣ୍ଣ ଧନ୍ୟ ହେବ। ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ ଶରୀରର ସୁଗନ୍ଧ ଲାଭକରି ତାଙ୍କର ନାସା ପବିତ୍ର ହେବ। ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ଯେତେବେଳେ ତାଙ୍କୁ କୋଳ କରିବେ ସେତେବେଳେ ତାଙ୍କର ଅଙ୍ଗ ନିର୍ମଳ ହୋଇଯିବ। ମନେ ମନେ ସେ କଂସକୁ ପ୍ରଶଂସା କଲେ ତାଙ୍କୁ ପଠାଇଥିବା ହେତୁ । ସେ ଏଥର ଭାବିଲେ –

‘‘ପାଇବି ଗତି ଦେଖୁ ଶ୍ରୀପତି ଛେଦିବି ଭବବନ୍ଧ ।
ସ୍ନେହରେ କରି ବ୍ରଜବିହାରୀ କର ଦେବ ମୋକନ୍ଧ ॥’’

ଅକ୍ରୁରଙ୍କ ମନ ଭିତରେ ଆଉ କୌଣସି ଭାବନା ନାହିଁ । କେବଳ କୃଷ୍ଣଦର୍ଶନ ଆଶାରେ ସେ ଅଧୀର । ରଥରେ ଯାଉ ଯାଉ ବାଟରେ ବାଲିକୁଦ ପଡ଼ିଲା। ସେଠି ସେ ଦେଖିଲେ ଭଗବାନଙ୍କ ପାଦ ଚିହ୍ନ ପଡ଼ିଛି। ସେ ତତ୍‌କ୍ଷଣାତ୍‌ ରଥରୁ ଡେଇଁପଡ଼ି ଦେହସାରା ବାଲି ବୋଳିହୋଇ କାନ୍ଦି କାନ୍ଦି ମୁର୍ଚ୍ଛା ହୋଇପଡ଼ିଲେ । ଅଳ୍ପ ଅଳ୍ପ ଚାହିଁ ପୁଣି ନୟନ ମୁଦ୍ରିତ କରିନେଲେ। ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ ସେ ଆର୍ଭକଣ୍ଠରେ ଡାକଦେଲେ। ସତେ କ’ଣ ସେ କରୁଣାମୟ ଭଗବାନ୍ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ଦେଖ‌ିବେ । ସତେ କ’ଣ ତାଙ୍କର ଜୀବନ ଧନ୍ୟ ହେବ। କବି ଅକ୍ରୁରଙ୍କର ଏହି ଭକ୍ତି ଭାବବିହ୍ବଳ ଅବସ୍ଥାକୁ ଚମତ୍କାର ଭାବରେ ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛନ୍ତି –

‘‘ଆନନ୍ଦ ହୋଇ ରଥରୁ ଡେଇଁ ଶିରେ ନିଉଡ଼େ ବାଲି ।
ହା କୃଷ୍ଣ ବୋଲି ନ ପାରେ ଚାଲି, ନୟନୁ ଅଶ୍ରୁ ଗଳି ॥
କହି ହୁଡ଼ଇ, ଉଠି ପଡ଼ଇ, ଗଡ଼ଇ ପାଦ ପରେ ।
ଶୂନ୍ୟକୁ କୋଳ କରି ଆକୁଳ, କମ୍ପଇ ପ୍ରେମଭରେ ॥’’

ବାସ୍ତବିକ ଉକ୍ତ କବିତାରେ ଅକୃରଙ୍କର ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ଭକ୍ତିର ଯଥାର୍ଥ ଭାବ ନିହିତ । ସେ କଂସର ମନ୍ତ୍ରୀ ହୋଇ ମଧ୍ଯ କଂସର ଅନ୍ୟାୟ-ଅନାଚାର ଓ ଅତ୍ୟାଚାରକୁ ପ୍ରଶ୍ରୟ ଦେଇନାହାନ୍ତି । ସେ କୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ପରମାତ୍ମା ଭାବରେ ଜାଣନ୍ତି । ତେଣୁ ସେ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ କରୁଣାଲାଭ କରି ଧନ୍ୟ ହୋଇଅଛନ୍ତି । କବି ଏହି ଚରିତ୍ରକୁ ସୁନ୍ଦର ଭାବରେ ରୂପାୟନ କରିଅଛନ୍ତି ।

CHSE Odisha Class 11 Optional Odia Solutions Chapter 1 ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ

Question 6.
ଏକ କୃଷ୍ଣରସାଶ୍ରିତ କାବ୍ୟ ଭାବରେ ‘ମଥୁରା ମଙ୍ଗଳ’ର ସାର୍ଥକତା ନିରୂପଣ କର।
Answer:
ବୈରାଗୀଚରଣ ପଟ୍ଟନାୟକରୁ ଯେଉଁ ଅଲୌକିକ ପ୍ରତିଭାର ରୂପନ୍ତରଣରେ ଆବିର୍ଭାବ ହୋଇଥଲେ ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟର ଅନନ୍ୟ କବି ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ, ସେଇ ଅଲୌକିକତାର ଏକ ଜ୍ଵଳନ୍ତ ରୂପଭାବରେ ପ୍ରକଟିତ ହୋଇଥିଲା କାବ୍ୟ ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ ଓଡ଼ିଆ କୃଷ୍ଣ ସାହିତ୍ୟ କ୍ଷେତ୍ରରେ ଏକ ଅଦ୍ବିତୀୟ ଓ ଅନୁପମ କାବ୍ୟ ଏହି ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’। ଭକ୍ତି ରସାତ୍ମକ ଭାବ ଓ ସତ୍ୟ- ଧର୍ମର ପ୍ରତିଷ୍ଠାର ଜୟଗାନ କରୁଥିବା ଏହି କାବ୍ୟ ଏଯାବତ୍ ତା’ର ଲୋକପ୍ରିୟତାକୁ ଅକ୍ଷୁଣ୍ଣ ରଖୁଛି। ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ କାବ୍ୟର ନାୟକ ଶିରୋମଣି ହେଉଛନ୍ତି ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ । ସଂସ୍କୃତ କାବ୍ୟ ପରମ୍ପରାନୁଯାୟୀ ସ୍ୱୟଂ ଭଗବାନ ବୋଲି ଚିତ୍ରିତ ହୋଇଆସୁଥ‌ିବା ଏହି ମହାନାୟକ ହେଉଛନ୍ତି ଅବ୍ୟକ୍ତ ନିରାକାର ଏବଂ ପରଂବ୍ରହ୍ମ । ଇଚ୍ଛାମୟ ପୁରୁଷ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ଯେକୌଣସି ରୂପ ନେଇପାରନ୍ତି । ସେ ଜଣେ ଅଲୌକିକ ପୁରୁଷ, ତାଙ୍କ ଚରିତ୍ରରେ ଦେବତ୍ୱର ସୀମା ନାହିଁ । ତାଙ୍କର ଅଲୌକିକତା ସଂପର୍କରେ ଅତି ସଂକ୍ଷେପରେ କୁହାଯାଇପାରେ –

‘‘ସୁଜନ ବାନ୍ଧବ, ଦୁର୍ଜନ ଯମ
ଶରଣ ତାରଣ କାମିନୀ କାମ ।
ରୂପ ଅରୂପ ନାନାଗତି ହୋଏ
ଯା ନାମେ ଅଶେଷ କଳୁଷ ଦହେ ।’’

ସେହି ନନ୍ଦସୁତ ଗୋଲୋକସୁନ୍ଦର ହଟିଆ ନାଗର ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ବାଲ୍ୟକାଳରୁ ତୁଳସୀ ଦୁଇପତ୍ରରୁ ବାସେ ନ୍ୟାୟରେ ଦୁଷ୍ଟ ନବାରି ସନ୍ଥ ପାଇଛନ୍ତି । ପୁତନାର ପ୍ରାଣନେବାଠାରୁ ବକାଶୁର ବଧ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ବନ ଅନଳକୁ ଶୋଷିବାଠାରୁ ଗିରି ଗୋବର୍ଦ୍ଧନ ଉତ୍ତୋଳନ କରିବା ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ସବୁ ବର୍ଣ୍ଣନା ଭିତରେ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ ମହନୀୟତା ପରିସ୍ପଷ୍ଟ । ମଥୁରା ଯାତ୍ରା କାଳରେ ଅକ୍ରୁରଙ୍କୁ ମାୟା ପ୍ରଦର୍ଶନ, ବିନାଯୁଦ୍ଧରେ କଂସ ପରି ପ୍ରତାପୀ ରାକ୍ଷସର ମୃତ୍ୟୁ, ଏସବୁ ଗ୍ରନ୍ଥରେ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କର ଅଲୌକିକ ଅସାଧାରଣ ଶକ୍ତିର ପରିଚୟ ମିଳେ । ଗୋପୀଗୋପାଳୁଣୀଙ୍କ ଜୀବନଠାରୁ ଅଧିକ ସ୍ନେହଶ୍ରଦ୍ଧା ପ୍ରୀତି ପ୍ରଦାନ ମଧ୍ୟ ଏହି ଅଲୌକିକତାର ଏକ ଏକ ନମୁନା । ଫଳରେ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ ମଥୁରାଗମନ ବଡ଼ ଅସହ୍ୟ ହୋଇଉଠିଛି ଗୋପୀମାନଙ୍କ ପାଇଁ । ବାସ୍ତବିକ ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ କାବ୍ୟରେ କୃଷ୍ଣଙ୍କ ଚରିତ୍ର ଚିତ୍ରଣ ଅଦ୍ବିତୀୟ ।

Question 7.
‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ର ପ୍ରଥମ ଛାନ୍ଦ ଅବଲମ୍ବନରେ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ ମହିମା ବର୍ଣ୍ଣନା କର।
Answer:
ମଧ୍ଯକାଳୀନ ଓଡ଼ିଆ କାବ୍ୟଧାରାର ଅନନ୍ୟ ପ୍ରମୁଖ କାବ୍ୟକର୍ତ୍ତା ଥିଲେ ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ର ରଚୟିତା କବି ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ । ଭକ୍ତଚରଣ ଥିଲେ ନିଷ୍ଠାପର ବୈଷ୍ଣବ, ତାଙ୍କ ବୈଷ୍ଣବୀୟ ଭାବସତ୍ତାର ସୁନ୍ଦର ପ୍ରତିବିମ୍ବନ ହେଉଛି କାବ୍ୟ ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ । ପରମ୍ପରାକୁ ମାନ୍ୟତା ପ୍ରଦାନ କରି କବି ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ, କାବ୍ୟର ପ୍ରଥମ ଛାନ୍ଦରେ ତାଙ୍କର ଉପାସ୍ୟ ପ୍ରଭୁ କୃଷ୍ଣଙ୍କ ମହିମା ପ୍ରଖ୍ଯାପନ କରିବାରେ ଅସାମାନ୍ୟ ସଫଳତା ଅର୍ଜନ କରିଛନ୍ତି । ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ କାବ୍ୟର ପ୍ରଥମ ଛାନ୍ଦରେ ପ୍ରଥମେ କବି କୃଷ୍ଣପ୍ରଶସ୍ତି ଗାନ କରିଛନ୍ତି । ତାଙ୍କ ମତରେ କୃଷ୍ଣ ହେଉଛନ୍ତି ଗୋକୁଳ-ସୁନ୍ଦର ଗୋବିନ୍ଦ, ସେ ନନ୍ଦକଧାରୀ, ସେ ମାଧବ, ଦାମୋଦର, କଂସାରି, ଦଇତାରି, ଅନନ୍ତ ବ୍ରହ୍ମାଣ୍ଡବିହାରୀ, ସେ ହିରଣ୍ୟାରି, ବକାରି, ନରକାରି, ମୁରାରି । ସେ ବ୍ରଜଚନ୍ଦ୍ରମା, ନନ୍ଦ-ନନ୍ଦନ-ଆନନ୍ଦକନ୍ଦ, ଗୋପିଜନବଲ୍ଲଭ ସର୍ବକାରଣର କାରଣ ଗୋକୁଳ ଚନ୍ଦ୍ରମା । ସକଳ ଆତ୍ମାରେ ବିଚରଣ କରୁଥିବା ହେତୁ ସେ ହେଉଛନ୍ତି ଆତ୍ମାରାମ, ତାଙ୍କର ଆଦି-ମଧ୍ଯ -ଅନ୍ତ ସବୁକାଳରେ ଅଗୋଚର । ସେଇ ନିରାକାର, ନିରାଧାର, ନିରାମୟ ପରମପୁରୁଷଙ୍କ ଆଜ୍ଞାରେ ସ୍ରଷ୍ଟାପୁରୁଷ ବ୍ରହ୍ମା ସୃଜିଛନ୍ତି ଚତୁର୍ଦ୍ଦଶ ଭୁବନ; ଏଥ‌ିରେ ଇନ୍ଦ୍ର, ଚନ୍ଦ୍ର, ସୂର୍ଯ୍ୟ କେବଳ ସେଇ ପରମପୁରୁଷଙ୍କ ଆଜ୍ଞାରେ ଆତଜାତ ହୁଅନ୍ତି । କବିଙ୍କ ଭାଷାରେ-

ସେ ଆଦି ଅନାଦି ନିରାକାର । ଶ୍ରୁତି-ସୁମୃତିକି ନାହିଁ ଗୋଚର ।।
ତୋର ଆଜ୍ଞା ଶିରେ ଧରି ବିରଞ୍ଚ । ଚତୁର୍ଦ୍ଦଶ ଭୁବନ ଅଛି ରଞ୍ଚି ।।
ଇନ୍ଦ୍ର ଚନ୍ଦ୍ର ସୂର୍ଯ୍ୟ ଆଦି ଦେବତା । ତୋର ସର୍ଜିଲାରୁ ଏହି ବକତା ।।

କୃଷ୍ଣଙ୍କର ନାମୋଚ୍ଚାରଣରେ ପ୍ରାପ୍ତ ହୁଏ ଅସୀମ ଭକ୍ତ । ସକଳ ପାପ-ସନ୍ତାପରୁ ମିଳେ କେବଳ ମୁକ୍ତି । ତାଙ୍କ ଚରିତ ଗାନ, ପଠନ, ଶ୍ରବଣଦ୍ୱାରା ଅନେକ ସନ୍ତପ୍ତ ବ୍ୟକ୍ତି ପାଇଛନ୍ତି ମୁକ୍ତି । କଳି-କଳୁଷ ବ୍ୟାଡ୍ ଉପଶମ କରିବା ନିମିତ୍ତ କୃଷ୍ଣ ଚରିତ ହେଉଛି ମହୋର୍ଷେଧ୍ । କବିଙ୍କ ଭାଷାରେ –

କୃଷ୍ଣ ଚରିତ ଅମୃତ ବାରାଧ୍ । କବି-କଳୁଷ-ରୋଗକୁ ଔଷଧ ।

ପ୍ରଥମ ଛନ୍ଦର ଶେଷାଶରେ କବି ଭକ୍ତଚରଣ, କୃଷ୍ଣଙ୍କ ଭୋଜବଂଶ ଅବତଂସ ଦ୍ରୁମିଲାନନ୍ଦନ କଂସଙ୍କ ନିଧନ ପ୍ରସଙ୍ଗରେ ଚମତ୍କାର ବର୍ଣ୍ଣନା ପ୍ରଦାନ କରିଛନ୍ତି । ଏଥିପାଇଁ ସେ ଭାଗବତର କଂସବଧ ବୃତ୍ତାନ୍ତକୁ ଆଧାର କରି, କଂସ ପ୍ରତାପରୁ ମହୀଭାରାକୁ ଉଦ୍ଧାର କରିବାପାଇଁ କୃଷ୍ଣ କିପରି ଅବତାର ଗ୍ରହଣ କଲେ ତାହା ଅତି ସୁନ୍ଦର ଓ ସାବଲୀଳ ଶୈଳୀରେ ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଅଛନ୍ତି।

Question 8.
ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ ମଥୁରା ଯାତ୍ରାକାଳୀନ ଦୃଶ୍ୟ ବର୍ଣ୍ଣନା କର।
Answer:
ମଧ୍ଯକାଳୀନ ଓଡ଼ିଆ କାବ୍ୟ ସାହିତ୍ୟର ପ୍ରମୁଖ କାବ୍ୟକର୍ତ୍ତା ଅନାସକ୍ତ ବୈଷ୍ଣବ କବି ଭକ୍ତଚରଣଙ୍କ ଅସାମାନ୍ୟ କୃଷ୍ଣଭକ୍ତିର ଅସାଧାରଣ ପରିଚୟ ହେଉଛି କାବ୍ୟ ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ । ଶଂସିତ କାବ୍ୟରେ କବି ବହୁଚର୍ଚ୍ଚିତ ଜନପ୍ରିୟ ପୁରାଣ ଆଖ୍ୟାନ କଂସବଧ ପ୍ରସଙ୍ଗକୁ ଗ୍ରହଣ କରିଛନ୍ତି । ପ୍ରବଳପ୍ରତାପୀ ଦୂରାଚାରୀ କଂସ ପ୍ରତାପରେ ସମଗ୍ର ଧରାବାସୀ ଗଭୀର ଦୁଃଖ ଓ ଯାତନାରେ ପୀଡ଼ିତ ହେବାପରେ ସେମାନଙ୍କୁ ଉଦ୍ଧାର କରିବାକୁ ଅବତାରୀ ପୁରୁଷ ଆଦି-ଅନ୍ତଚ୍ୟୁତ ଅଚ୍ୟୁତ କୃଷ୍ଣ ବ୍ରଜପୁରରେ ନନ୍ଦ-ମନ୍ଦିରରେ ବ୍ରଜଲୀଳା ଆରମ୍ଭ କରନ୍ତି ।
ଦେବକୀନନ୍ଦନ କୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ବଧ କରିବାପାଇଁ ପାପିଷ୍ଠ ମଥୁରାପତି ମାତୁଳ କଂସ କପଟରେ ମନ୍ତ୍ରୀ ଅକୁରଙ୍କୁ ଦୂତକରି ବ୍ରଜପୁରକୁ ପ୍ରେରଣ କରନ୍ତି । ବ୍ରଜପୁରରେ ଅକୁରଙ୍କ ଉପସ୍ଥିତି ସମସ୍ତଙ୍କୁ ଆଚମ୍ବିତ କରେ, ସବୁରି ମନରେ ସଂଶୟ । ସମ୍ବାଦ ପ୍ରସରିଯାଏ, ବ୍ରଜବାସୀଙ୍କର ଏକାନ୍ତ ପ୍ରିୟତମ ରାମ-କୃଷ୍ଣ-ମଥୁରା ଯାତ୍ରା କରିବେ । ଏହି ସମ୍ବାଦ ଶ୍ରବଣରେ ମର୍ମାହତ ହୋଇଉଠିଛି ସମଗ୍ର ଗୋପପୁର । ପଥେ-ଘାଟେ ଚର୍ଚ୍ଚା, ଆଲୋଚନା, ଆଲୋଡ଼ା, ଖେଦ, ସନ୍ତାପ ଆଉ ବିଚଳନ ।
କୃଷ୍ଣଙ୍କ ମଥୁରାଯାତ୍ରା ପ୍ରସଙ୍ଗରେ ସମସ୍ତେ ଚକିତ, ଗଭୀର ଭାବରେ ଦୁଃଖାଭିଭୂତ । ସତେ ଯେମିତି ଗୋପରେ ଅକାଳ ବଜ୍ରପାତ ଘଟିଛି । କବିଙ୍କ ଭାଷାରେ –

‘‘ଶୁଣି ଗୋପପୁରଜନେ ହୋଇଲେ ଆରତ
ବଜ୍ର ବାଜି ଥାବର ହୁଅଇ ଯେହ୍ନେ ପାତ ।’’

ମେଳି ମେଳି ହୋଇ ଗୋପୀମାନେ ବିଚାର କରୁଥିଲେ, କୃଷ୍ଣ ତାଙ୍କର ପ୍ରାଣ, ପ୍ରାଣ ଚାଲିଗଲେ ସେମାନେ ଜୀବନ ଜିଇଁବେ କିପରି? ତେଣୁ

‘‘ନିଶ୍ଚେ ହୋଇବ ମରଣ
ଯେତେବେଳେ ଗୋପ ତେଜି ଯିବେ ନାରାୟଣ ।’’

କୃଷ୍ଣଙ୍କ ମଥୁରାଯାତ୍ରା ପ୍ରସଙ୍ଗ ସମସ୍ତଙ୍କ ହୃଦୟକୁ ମଥୁ କରିଦେଲା, ଏହା ଶୁଣିବା ମାତ୍ରେ କେହି କେହି ପ୍ରାଣ ବିସର୍ଜନ କରିବାର ପ୍ରତିଜ୍ଞା କଲେ, ସବୁରି ଚକ୍ଷୁ ଲୋତକାପ୍ଲତ, ଅବାରିତ ବାରିଧାରା ଭଳି କେହି କେହି ଢାଳୁଥୁଲେ ଅଶ୍ଳୀଳ ଅର୍ଘ୍ୟ । ସମସ୍ତେ ସନ୍ତାପିତ, ଦୁଃଖ-ସନ୍ତାପର ଚରମ ମୁହୂର୍ଭ ଯେମିତି ସମଗ୍ର ଗୋପକୁ ଆଚ୍ଛନ୍ନ ଆଉ ଉଚ୍ଛନ୍ନ କରୁଥିଲା । କୃଷ୍ଣଙ୍କ ମଥୁରା ଯାତ୍ରାକାଳୀନ ଦୃଶ୍ୟାଙ୍କନରେ କବିଙ୍କର ବର୍ଣ୍ଣନା ଅତ୍ୟନ୍ତ ବେଦନାରୁଣ ଅବସ୍ଥା ସୃଷ୍ଟି କରିଛି । ସତେଯେମିତି ସମଗ୍ର ଗୋପଦାଣ୍ଡରେ ପ୍ରବାହିତ ହୋଇଛି ଶୋକ-କାରୁଣ୍ୟର ଉଜାଣି ଯମୁନା ।

Question 9.
ରାମକୃଷ୍ଣଙ୍କ ମଥୁରା ଯାତ୍ରା ସମୟରେ ଗୋପୀମାନଙ୍କ ଅବସ୍ଥା ବର୍ଣ୍ଣନା କର।
Answer:
ଅସାଧାରଣ ଭକ୍ତିମତ୍ତା ଓ କୃଷ୍ଣିକପ୍ରାଣତାର ରସବାନ ଅଭିବ୍ୟକ୍ତି କବି ଭକ୍ତଚରଣଙ୍କର ଅନନ୍ୟ ଭକ୍ତି ଅର୍ଘ୍ୟ ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’। ଶଂସିତ କାବ୍ୟର ଚତୁର୍ଥ ଛନ୍ଦରେ କବି କୃଷ୍ଣଙ୍କର ମଥୁରା ଯାତ୍ରାର ପ୍ରାକ୍ ସୂଚନାରେ କୃଷ୍ଣଗତପ୍ରାଣା ଗୋପୀମାନଙ୍କର ଶୋକ-କାରୁଣ୍ୟର ସନ୍ତାପିତ ମୁହୁର୍ଭକୁ ଅତି ସୁନ୍ଦର ଓ ମନୋଜ୍ଞ ଭାବରେ ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛି। ଭୋଜବଂଶ ଅବତଂସ ଦ୍ରୁମିଲାସୁତ କଂସଙ୍କ ମନ୍ତ୍ରୀ ଅକ୍ରୁରଙ୍କ ରଥ ଗୋପଦାଣ୍ଡରେ ନନ୍ଦ-ମନ୍ଦିର ଅଭିମୁଖୀ ହେବାପରେ ସମଗ୍ର ବ୍ରଜଭୂମିରେ ପରିଲକ୍ଷିତ ହୋଇଛି ଅକାଳ ବଜ୍ରପାତର ଦାରୁଣ ଓ ଶୋକଦ ପରିସ୍ଥିତି । ସବୁରି ଭିତରେ ବିଷଣ୍ଣତା ଆଉ ବ୍ୟାକୁଳତା । କୃଷ୍ଣ ଗୋପୀନାଥ, ଗୋପାଙ୍ଗନାମାନେ କୃଷ୍ଣଗତପ୍ରାଣା । ସେ ମଥୁରା ଚାଲିଗଲେ ପ୍ରାଣଶୂନ୍ୟ ହୋଇଯିବେ ଗୋପୀମାନେ । ରାମକୃଷ୍ଣ ସେମାନଙ୍କ ବେନି ନେତ୍ର, ଉଭୟ ମଥୁରାଗଲେ ସେମାନେ ଚକ୍ଷୁଶୂନ୍ୟ ହେବେ । କୃଷ୍ଣ ପ୍ରୀତି-ପାଗଳିନୀ ଗୋପାଙ୍ଗନାମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ କେହି କେହି ଗଭୀର ଦୁଃଖରେ କେବଳ ଅଶୁମୁଞ୍ଚନ କରିବାକୁ ଲାଗିଲେ । କେହି କେହି କୃଷ୍ଣବିହୀନ ଜୀବନକୁ ଯମୁନା ଜଳରେ ଝାସ ଦେବାର ଯୋଜନା କଲେ । କଂସଦ୍ଵାରା କୃଷ୍ଣ ନୀତ ହେଉଥିବାରୁ, କୃଷ୍ଣଙ୍କ ବିହୁନେ ବଞ୍ଚିବା ଅସମ୍ଭବ ହେଉଥ‌ିବାରୁ କେହି କେହି ନିଶ୍ଚିତ ମରଣର ଉଦ୍‌ଘୋଷଣା କରି, କଂସ ନାରୀହତ୍ୟା ଦୋଷର ମହାପାତକରେ ପାତକୀ ହେବ ବୋଲି ଦୃଢ଼ ଚେତାବନୀ ଶୁଣାଇଛନ୍ତି ।

‘‘କେ ବୋଲେ, ଯମୁନାଗଣ୍ଡେ ଜୀବନ ହାରିବା
ଦାରୁଣ କଂସ ନୃପତି ନାମରେ ମରିବା ।
ସ୍ତିରୀହତ୍ୟା ଦୋଷ ପାଉ,
ସୁଖ ଶିରୀ ଛାଡ଼ି ନିଜ ଜୀବନ ହରାଉ।’’

କୃଷ୍ଣଙ୍କ ମଥୁରାଯାତ୍ରା ପରିପ୍ରେକ୍ଷୀରେ ଚତୁରୀ ଗୋପାଙ୍ଗନାମାନଙ୍କ ଆତୁରତା ହେଉଥୁଲା ତୀବ୍ରତର। କେହି କେହି ଗୋପୀ କୃଷ୍ଣ ମଥୁରା ଯାତ୍ରା ନକରନ୍ତୁ, ଗୋପରେ ରହନ୍ତୁ, ଏଥ‌ିପାଇଁ ନିଜର ମୃତ୍ୟୁ ହେଉ ବୋଲି ସଂକଳ୍ପ କରୁଥିଲେ। ସମଗ୍ର ଗୋପାଙ୍ଗନାମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ସୃଷ୍ଟି ହୋଇଥିଲା ଏକାନ୍ତ ଶୋକ-ସନ୍ତୁଳିତ-ସନ୍ତପ୍ତ ପରିସ୍ଥିତି । କିଏ ଏଇ ବେଦନାରେ ହୃଦରେ କରାଘାତ କରୁଥାଏ ତ, କିଏ ପୁଣି ଭାରସାମ୍ୟ ହରାଇ ଭୂମିଗତା ହେଉଥାଏ। ‘ହା ଗୋବିନ୍ଦ’ ଶବ୍ଦ ଉଚ୍ଚାରଣ କରି କିଏ ପୁଣି ମୂର୍ତ୍ତିତା ହେଉଥାଏ। ଗୋପାଙ୍ଗନାମାନଙ୍କ ଶୋକ-ସନ୍ତାପିତ ଅବସ୍ଥାର ଭାବୋଚ୍ଛାସକୁ ଭକ୍ତ କବି ଭକ୍ତଚରଣ ଅତି ଚମତ୍କାର ତଥ୍ୟ ଅନ୍ତରଙ୍ଗ ଶୈଳୀରେ ବର୍ଣ୍ଣନା କରି, ଭାବଗ୍ରାହୀଙ୍କ ପ୍ରତି ଭାବପ୍ରବଣା ଗୋପୀମାନଙ୍କର ଭାବସାବଲ୍ୟ ପ୍ରକାଶ କରିଛନ୍ତି।

CHSE Odisha Class 11 Optional Odia Solutions Chapter 1 ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ

Question 10.
‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ କାବ୍ୟଟି ଭକ୍ତି ଓ ସଙ୍ଗୀତର ସମନ୍ବିତ ଆଧାର ଆଲୋଚନା କର । କିମ୍ବା, ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ କାବ୍ୟରୁ କବିଙ୍କର କବିତ୍ବ ଓ ବର୍ଣ୍ଣନା ନୈପୁଣ୍ୟର ପରିଚୟ ପ୍ରଦାନ କର?
Answer:
ରୀତିଯୁଗର ଅନ୍ୟତମ ବିଶିଷ୍ଟ କବି ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ। ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ ତାଙ୍କର ଅନନ୍ୟ ସୃଷ୍ଟି। ଏହି କାବ୍ୟରେ ବର୍ଣ୍ଣିତ ହୋଇଛି ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କର ଅଲୌକିକ ଲୀଳାର କମନୀୟ ଅଭିବ୍ୟକ୍ତି। ଏଥ‌ିରେ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ ଜନ୍ମ, କୈଶୋର କଳା, ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ ପ୍ରତି ଯଶୋଦାଙ୍କର ବାତ୍ସଲ୍ୟଭାବ, ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ଓ ଗୋପାଙ୍ଗନାମାନଙ୍କର ପ୍ରେମଲୀଳା, ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ ମଥୁରାଗମନ, ଅକ୍ରୁରଙ୍କ କୃଷ୍ଣଭକ୍ତି, ମଥୁରାରେ କୃଷ୍ଣଙ୍କର ଅବସ୍ଥାନ, କଂସ ବିନାଶ, କଂସ ରାଣୀମାନଙ୍କର ଶୋକ, ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ ବିଚ୍ଛେଦରେ ଗୋପାଙ୍ଗନାମାନଙ୍କର ଗଭୀର ଦୁଃଖ, ଉଦ୍ଧବ ଓ ଗୋପାଙ୍ଗନାଙ୍କର ଉକ୍ତି ପ୍ରତ୍ଯୁକ୍ତି ଏବଂ ପ୍ରେମଭକ୍ତିର ଶ୍ରେଷ୍ଠତ୍ୱ ପ୍ରତିପାଦନ ଇତ୍ୟାଦି ବିବିଧ ପ୍ରସଙ୍ଗ ରସାଳଭାବରେ ବର୍ଣ୍ଣିତ । ବୈଷ୍ଣବ ଭକ୍ତି ଓ ପ୍ରେମତତ୍ତ୍ଵ ଏଥରେ ରୂପାୟନ କରାଯାଇଥିଲେ ମଧ୍ୟ କବି ରୀତିଯୁଗର କାବ୍ୟାଦର୍ଶକୁ ଏଥ‌ିରେ ଅନୁସରଣ କରିଛନ୍ତି । ବିଭିନ୍ନ ଛାନ୍ଦ ଓ ରାଗରାଗିଣୀ, ଆଳଙ୍କାରିକ ଶବ୍ଦ ସଂଯୋଜନା, ଶୃଙ୍ଗାର ରସ ପ୍ରାଧାନ୍ୟ, ଅନ୍ୟାନ୍ୟ ରସଗୁଡ଼ିକର ଆନୁଷଙ୍ଗିକ ପ୍ରୟୋଗ, ବିଭିନ୍ନ ଅଳଙ୍କାରର ବ୍ୟବହାର ଏହି କାବ୍ୟରେ ଦେଖିବାକୁ ମିଳେ । ଏହି କାବ୍ୟର ଆରମ୍ଭରେ କବି ‘ଆଦୌ ଆଶା ନମସ୍କ୍ରିୟ ।’ ରୀତିରେ ଇଷ୍ଟସ୍ତୁତି ଓ ବସ୍ତୁନିର୍ଦେଶ କରିଅଛନ୍ତି; ଯଥା –

ଜୟ ଗୋବିନ୍ଦ ଗୋକୁଳ-ସୁନ୍ଦର ।
ଜୟ ରାମ-ଅନୁଜ ଦାମୋଦର ।।
ଜୟ କଂସାରି ଜଗତ-ତାରଣ ।
ଜୟ ମାଧବ ନନ୍ଦକ-ଧାରଣ ।।

ଶ୍ରୀମଦ୍‌ଭାଗବତର ଦଶମ ସ୍କନ୍ଧର କଥାବସ୍ତୁକୁ ଗ୍ରହଣ କରି କବି କାବ୍ୟର ବିଷୟବସ୍ତୁ ଅବତାରଣା କରିଅଛନ୍ତି । ଏହାପରେ କବି କଂସର ଅତ୍ୟାଚାରରେ ଧରଣୀର ଦୁଃଖ, ବ୍ରହ୍ମାଦି ଦେବତାମାନଙ୍କର ନାରାୟଣଙ୍କୁ ସ୍ତୁତି, ନାରାୟଣଙ୍କର କୃଷ୍ଣ ଅବତାର, ଗୋପପୁରରେ ଅବସ୍ଥାନ, କଂସ ପଠାଇଥିବା ଅସୁରମାନଙ୍କ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ ହାତରେ ନିଧନ, କଂସର ଭାଳେଣି, ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ମଥୁରା ଆଣିବାକୁ ମନ୍ତ୍ରୀ ଅକୃରଙ୍କୁ ପ୍ରେରଣ ଆଦି ଘଟଣାକୁ ଚମତ୍କାର ଭାବରେ ରୂପାୟନ କରିଅଛନ୍ତି । ଏହାପରେ ଅକ୍ରୂର ଯାଇଛନ୍ତି ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ଆଣିବାପାଇଁ। କବି ଯେପରି ଭାବରେ ଅକ୍ରୂରଙ୍କର କୃଷ୍ଣଭକ୍ତିଙ୍କୁ ରୂପାୟନ କରିଅଛନ୍ତି ସେଥ‌ିରୁ କବିଙ୍କର କୃଷ୍ଣଭକ୍ତି ଜଣାଯାଇଥାଏ । ଅକ୍ରୂର ଗୋପଦାଣ୍ଡରେ ପହଞ୍ଚି ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ ଗୋଦୋହନ କରୁଥିବା ଦେଖୁଥିଲେ। କବି ଲେଖୁଛନ୍ତି –

‘ଦେଖୁଲା ଗୋଟେ ଗୋପାଳ ମେଣ୍ଟ ଗାବ ଦୁହନ୍ତି ହରି ।
ନୀଳଜୀମୃତ-ବରନ ଦୀତ-ବସନ ବିଦୁପରି ॥
ଶିରେ ତ୍ରିମୁଣ୍ଡୀ କି ଅବା ମଣ୍ଡି ଥୋଇଛି ଇନ୍ଦ୍ରଧନୁ ।
ଭ୍ରମର ଶ୍ରେଣୀ ଚୁମ୍ବନ୍ତି ଜାଣି ସୁଗନ୍ଧ ଗନ୍ଧ ଯେଣୁ ॥
ଅଳକାପନ୍ତି ଝଳି ଦିଶନ୍ତି ଭୁଲତା ପୁଷ୍ପଚାପ ।
ନୟନ ବାଣ ଅଞ୍ଜନ ଗୁଣ କର୍ଷ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତେ ଧାପ ॥’’

ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କର ରୂପକାନ୍ତି କବିଙ୍କର ଲେଖନୀରେ ଜୀବନ୍ତ ହୋଇଉଠିଛି । ବର୍ଣ୍ଣନା ଯେପରି ସ୍ଵାଭାବିକ ସେହିପରି ଏକାନ୍ତ ରସମୟ । ପୁଣି ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କର ପରୀକ୍ଷା, ଅକୃରଙ୍କ ଦୁଃଖ ଓ ଅବଶେଷରେ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କର ଅକୃରଙ୍କୁ ଗୃହକୁ ନେବା, ତାଙ୍କର ଆତିଥ୍ୟ ସତ୍କାର କରିବା ଓ କଂସର ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟ ସମ୍ପର୍କରେ ଅକ୍ରୂର କହିବା ଆଦି ଘଟଣା ବେଶ୍ ଚିତ୍ତାକର୍ଷକ ହୋଇଅଛି । କବି ଏହି ପ୍ରସଙ୍ଗରେ କଂସର ଗୋଟିଏ ଚିଠିର ଅବତାରଣା କରିଅଛନ୍ତି । ଏହି ଚିଠିରେ କଂସର ସାମ-ଦାନ-ଦଣ୍ଡ ଭେଦନୀତିରେ ପରିଚୟ ନିହିତ । କଂସ ଚିଠିରେ ନନ୍ଦରାଜାଙ୍କୁ ଧମକ ଦେଇଛି ।

‘‘କେବଳ ଶିରୀଷ-କୁସୁମକୁ ମହା-ପ୍ରଳୟ ବରଷା ଲୋଡ଼ି ।
ସେହି ପ୍ରାୟେ ମୁହିଁ, ସେହି ପ୍ରାଏ ତୁହି, ଶିଶିରେ ଯେ ଯିବୁ ସଢ଼ି ॥”

ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ-ବଳରାମଙ୍କ ସହିତ ମଥୁରାକୁ ବାହାରିଲେ । ଏହି ସମ୍ବାଦ ଗୋପପୁରରେ ବ୍ୟାପିଗଲା । ଜନନୀ ଯଶୋଦା ମଧ୍ୟ ବିକଳ ବିଳାପ କରିବାକୁ ଲାଗିଲେ ।

ଆରେ ବାବୁ ଶ୍ୟାମଘନ ତୁ ଗଲେ ମଧୁଭୁବନ
କାହା ମୁଖ ଅନାଇ ବଞ୍ଚିବି
ହେବ ଦଶ ଦିଗ ଶୂନ୍ଯ ଅସ୍ଥିର ହେବ ଜୀବନ
ନିଶି ଦିବସରେ ଝୁରୁଥିବିରେ ଜୀବଧନ।

ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ମଥୁରାକୁ ଗଲେ ଗୋପପୁରବାସୀ କିପରି ବଞ୍ଚିବେ ଏହିକଥାକୁ ସେମାନେ ଚିନ୍ତା କରିଛନ୍ତି । କବି ଯେପରି ଭାବରେ ବିଷୟବସ୍ତୁର ଉପସ୍ଥାପନ କରିଛନ୍ତି ତାହା ଏକାନ୍ତ ତାତ୍ପର୍ଯ୍ୟପୂର୍ଣ୍ଣ । ଅତଏବ ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ କାବ୍ୟରୁ କବିଙ୍କର ବର୍ଣ୍ଣନା ନୈପୁଣ୍ୟର ଯଥାର୍ଥ ପରିଚୟ ମିଳିଥାଏ।

ଅଭ୍ୟାସ ପାଇଁ ଅତିରିକ୍ତ ପ୍ରଶ୍ନୋତ୍ତର

(କ) ୧ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ସମ୍ଭାବ୍ୟ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ ।

Question 1.
ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ କେଉଁ ଯୁଗର କବି?
(A) ସବୁଜ ଯୁଗ
(B) ରୀତି ଯୁଗ
(C) ସାରଳା ଯୁଗ
(D) ସତ୍ୟବାଦୀ ଯୁଗ
Answer:
(B) ରୀତି ଯୁଗ

Question 2.
ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ କାହାର ଶତ୍ରୁ?
(A) ଶକଟାର
(B) ହିରଣ୍ୟକଶିପୁର
(C) ଅଘାସୁରର
(D) କଂସର
Answer:
(D) କଂସର

Question 3.
‘ମଥୁରା ମଙ୍ଗଳ କାବ୍ୟ’ରେ କେଉଁ କାବ୍ୟରେ ପ୍ରଭାବ ପଡୁଛି?
(A) ଭାଗବତ
(B) କୀଚକବଧ
(C) ମହାଭାରତ
(D) ଚିଲିକା
Answer:
(A) ଭାଗବତ

Question 4.
‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ କାବ୍ୟରେ କେତୋଟି ଛାନ୍ଦ ଅଛି?
(A) ୧୫
(B) ୨୦
(C) 99
(D) ୩୦
Answer:
(D) ୩୦

Question 5.
ନିମ୍ନୋକ୍ତ କେଉଁଟି ଭକ୍ତଚରଣଙ୍କ ରଚିତ କାବ୍ୟ?
(A) ଚିଲିକା
(B) ରସକଲ୍ଲୋଳ
(C) କୀଚକବଧ
(D) ଗୋପମଙ୍ଗଳ
Answer:
(D) ଗୋପମଙ୍ଗଳ

Question 6.
ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ କାହା କୋଳରେ ଜନ୍ମଗ୍ରହଣ କରିଥିଲେ?
(A) ଯଶୋଦା
(B) ପାର୍ବତୀ
(C) ଉର୍ମିଳା
(D) ଦେବକୀ
Answer:
(D) ଦେବକୀ

Question 7.
ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ମଥୁରାପୁରକୁ ନେବାପାଇଁ କିଏ ଆସିଥିଲା?
(A) ଉଦ୍ଧବ
(B) କଂସ
(C) ଅଘାସୁର
(D) ଅକ୍ରୂର
Answer:
(D) ଅକ୍ରୂର

Question 8.
‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ କାବ୍ୟର ରଚୟିତା କିଏ?
(A) ରାଧାନାଥ ରାୟ
(B) ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
(C) ଉପେନ୍ଦ୍ରନାଥ ଦାସ
(D) ସାରଳା ଦାସ
Answer:
(B) ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ

Question 9.
କବି ଭକ୍ତଚରଣଙ୍କ ସମୟସୀମା କେବେ?
(A) ୧୮୦୫–୧୯୦୦
(B) ୧୫୫୦–୧୬୬୦
(C) ୧୯୦୦–୨୦୧୦
(D) ୧୭୮୦–୧୮୫୫
Answer:
(D) ୧୭୮୦–୧୮୫୫

Question 10.
ଭକ୍ତଚରଣଙ୍କ ପିତୃଦତ୍ତ ନାମ କ’ଣ ଥିଲା?
(A) ବାବାଜୀ ଚରଣ ପଟ୍ଟନାୟକ
(B) ସିଦ୍ଧେଶ୍ଵର ପରିଡ଼ା
(C) ସୀତାକାନ୍ତ ପଟ୍ଟନାୟକ
(D) ବୈରାଗୀ ଚରଣ ପଟ୍ଟନାୟକ
Answer:
(B) ସିଦ୍ଧେଶ୍ଵର ପରିଡ଼ା

Question 11.
କେଉଁ ଦୀକ୍ଷା ଗ୍ରହଣ କରିବା ପରେ ତାଙ୍କ ନାମ ହେଲା ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ ହୋଇଥିଲା?
(A) ଗୌଡ଼ୀୟ ଦୀକ୍ଷା
(B) ଶୈବ ଦୀକ୍ଷା
(C) ବୈଷ୍ଣବ ଦୀକ୍ଷା
(D) ମନଃଦୀକ୍ଷା
Answer:
(C) ବୈଷ୍ଣବ ଦୀକ୍ଷା

Question 12.
କବି ଭକ୍ତଚରଣ ଜନ୍ମ ସମୟ କେବେ?
(A) ୧୭୮୦
(B) ୧୮୫୦
(C) ୧୭୯୦
(D) ୧୯୩୦
Answer:
(A) ୧୭୮୦

Question 13.
କବି ଭକ୍ତଚରଣ କେଉଁ ଜିଲ୍ଲାରେ ଜନ୍ମଗ୍ରହଣ କରିଥିଲେ?
(A) କଟକ
(B) ପୁରୀ
(C) ଖୋର୍ଦ୍ଧା
(D) ସମ୍ବଲପୁର
Answer:
(B) ପୁରୀ

Question 14.
ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ଜନ୍ମସ୍ଥାନ କେଉଁଠି?
(A) ମଥୁରାପୁର
(B) ଯମୁନାକୂଳ
(C) ଗୋପପୁର
(D) ଅଯୋଧ୍ୟା
Answer:
(A) ମଥୁରାପୁର

Question 15.
ରାମକୃଷ୍ଣ କିଏ?
(A) ଅର୍ଜୁନ-କୃଷ୍ଣ
(B) ବଳରାମ-ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ
(C) କୃଷ୍ଣ-କଂସ
(D) ଅଭିମନ୍ୟୁ-ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ
Answer:
(B) ବଳରାମ-ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ

Question 16.
‘କୁଧର’ ଶବ୍ଦର ଅର୍ଥ କ’ଣ?
(A) ପର୍ବତ
(B) ମନ୍ଦଲୋକ
(C) କୃଷ୍ଣ
(D) ଭଲଲୋକ
Answer:
(A) ପର୍ବତ

(ଖ) ୧ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ଏକ ବାକ୍ୟରେ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ ।

Question 1.
‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ କାବ୍ୟର ରଚୟିତା କିଏ ? ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟରେ ସେ କେଉଁ ଯୁଗର କବି?
Answer:
‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ କାବ୍ୟର ରଚୟିତା ହେଉଛନ୍ତି ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ । ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟରେ ସେ ହେଉଛନ୍ତି ରୀତିଯୁଗର କବି ।

Question 2.
ଭକ୍ତଚରଣ କେଉଁ ଧର୍ମର ଉପାସକ ଥିଲେ?
Answer:
ଭକ୍ତଚରଣ ଗୌଡ଼ୀୟ ବୈଷ୍ଣବ ଧର୍ମର ଉପାସକ ଥିଲେ ।

Question 3.
ଭକ୍ତଚରଣ କାହାକୁ ପୂଜା କରୁଥିଲେ ?
Answer:
ଭକ୍ତଚରଣ ବୃନ୍ଦାବନ ଚନ୍ଦ୍ରଙ୍କୁ ପୂଜା କରୁଥିଲେ ।

Question 4.
ଭକ୍ତଚରଣଙ୍କ ରଚିତ ଦୁଇଟି ଗ୍ରନ୍ଥର ନାମ ଲେଖ ।
Answer:
ଭକ୍ତଚରଣଙ୍କ ରଚିତ ଦୁଇଗୋଟି ଗ୍ରନ୍ଥ ହେଉଛି – କଳାକଳେବର ଚଉତିଶା, ମନବୋଧ ଚଉତିଶା ।

Question 5.
‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ କାବ୍ୟରେ କେତୋଟି ଛାନ୍ଦ ରହିଛି?
Answer:
‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ କାବ୍ୟରେ ୩୦ଟି ଛାନ୍ଦ ରହିଛି ।

Question 6.
କାବ୍ୟ ଆରମ୍ଭରେ କବି କାହାର ବନ୍ଦନା କରିଛନ୍ତି?
Answer:
କାବ୍ୟ ଆରମ୍ଭରେ କବି ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କର ବନ୍ଦନା କରିଛନ୍ତି ।

Question 7.
କବି କାହାକୁ ଅମୃତ ବାରାଧ୍ ବୋଲି କହିଛନ୍ତି?
Answer:
କବି କୃଷ୍ଣ ଚରିତକୁ ଅମୃତ ବାରାଧ୍ ବୋଲି କହିଛନ୍ତି ।

Question 8.
କଳି-କଳୁଷ ରୋଗର ଔଷଧ କ’ଣ?
Answer:
କୃଷ୍ଣ ଚରିତ ପଠନ, ଶ୍ରବଣ, ଲିଖନ ହେଉଛି କଳି-କଳୁଷ ରୋଗର ଔଷଧ ।

Question 9.
ଭାଗବତରେ କୃଷ୍ଣ ଚରିତ ପ୍ରସଙ୍ଗ କିଏ କାହାକୁ ଶୁଣାଇଛନ୍ତି?
Answer:
ଭାଗବତରେ କୃଷ୍ଣଚରିତ ଶୁକମୁନି ପରୀକ୍ଷିତ ରାଜାଙ୍କୁ ଶୁଣାଇଛନ୍ତି ।

Question 10.
ଭାଗବତର କେଉଁ ସ୍କନ୍ଧରେ କଂସର ଜନ୍ମ-ମରଣ ପ୍ରସଙ୍ଗ ବର୍ଣ୍ଣିତ ହୋଇଛି?
Answer:
ଭାଗବତର ଦଶମ ସ୍କନ୍ଧରେ କଂସର ଜନ୍ମ-ମରଣ ପ୍ରସଙ୍ଗ ବର୍ଣ୍ଣିତ ହୋଇଛି ।

Question 11.
କଂସର ପିତା ଓ ମାତାଙ୍କ ନାମ କ’ଣ?
Answer:
କଂସର ପିତାଙ୍କ ନାମ ଦୁର୍ମିଳାସୁର ଓ ମାତାଙ୍କ ନାମ ଇନ୍ଦୁମତୀ ।

Question 12.
କୃଷ୍ଣ ଗୋପପୁରରେ କେଉଁ କେଉଁ ଅସୁରମାନଙ୍କୁ ବିନାଶ କରିଥିଲେ ।
Answer:
କୃଷ୍ଣ ଗୋପପୁରରେ ପୁତନା, ତୃଣା, ଶକଟା, ବକା, ଅଘା ଆଦି ଅସୁରମାନଙ୍କୁ ବିନାଶ କରିଥିଲେ ।

Question 13.
ନନ୍ଦରାଜାଙ୍କୁ କିଏ ହରଣ କରି ନେଇଥିଲେ?
Answer:
ନନ୍ଦରାଜାଙ୍କୁ ବରୁଣ ହରଣ କରି ନେଇଥିଲେ ।

Question 14.
କଂସ ରାଜାର ମନ୍ତ୍ରୀଙ୍କ ନାମ କ’ଣ?
Answer:
କଂସ ରାଜାର ମନ୍ତ୍ରୀଙ୍କ ନାମ ଅକ୍ରୂର ।

Question 15.
‘ଭସ୍ମ କୋଷରେ ଅଗ୍ନିକଣା ଥାଇ, ମନ୍ଦ ପବନେ ବଳିଷ୍ଠ ହୁଅଇ’ – ଏକଥା କିଏ କାହାକୁ କହିଛି?
Answer:
ଏକଥା କଂସରାଜା ମନ୍ତ୍ରୀ ଅକୃରଙ୍କୁ କହିଛନ୍ତି ।

Question 16.
କଂସ ଅକ୍ରୂର ହାତରେ ନନ୍ଦଙ୍କ ପାଖକୁ କ’ଣ ପଠାଇଥିଲା?
Answer:
କଂସ ଅକ୍ରୁର ହାତରେ ନନ୍ଦଙ୍କ ପାଖକୁ ‘ଆଜ୍ଞାପତ୍ର’ ଲେଖୁ ପଠାଇଥିଲା ।

Question 17.
ଗୋପରୁ କୃଷ୍ଣ ବଳରାମଙ୍କୁ ଆଣିବା ପାଇଁ କଂସ କାହାକୁ ପଠାଇଥିଲା?
Answer:
ଗୋପରୁ କୃଷ୍ଣ-ବଳରାମଙ୍କୁ ଆଣିବା ପାଇଁ ମନ୍ତ୍ରୀ ଅକ୍ରୂରକୁ ପଠାଇଥିଲା ।

Question 18.
ସଫଳାସୁତ କିଏ ? ସେ କ’ଣ ଦେଖିବାକୁ ଉଚ୍ଛନ୍ନ ହେଲା?
Answer:
ସଫଳାସୁତ ଅକ୍ରୂର । ସେ କୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ଦେଖିବା ପାଇଁ ଉଚ୍ଛନ୍ନ ହେଲା ।

Question 19.
ଅକ୍ରୁର ଯିବାବେଳେ କ’ଣ ଶୋଭା ପାଉଥିଲା?
Answer:
ଅକ୍ରୂର ଯିବାବେଳେ ରହୁବର ବା ରଥଶ୍ରେଷ୍ଠ ଶୋଭା ପାଉଥିଲା ।

Question 20.
କଂସର ଡଗର କିଏ? ସେ କେଉଁଠିକି ଯାଇଛି?
Answer:
କଂସର ଡଗର ଅକ୍ରୂର । ସେ ଗୋପପୁରକୁ ଯାଇଛି ।

Question 21.
ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ କେଉଁଠି ବସିଥ‌ିବେ ବୋଲି ଅକୃର ଭାବିଛି?
Answer:
ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ଗୋପାଳମାନଙ୍କ ମେଳରେ ନନ୍ଦଙ୍କ କୋଳରେ ବସିଥିବେ ବୋଲି ଅକ୍ରୂର ଭାବିଛି ।

Question 22.
ଅକ୍ରୁରଙ୍କୁ ଦୂରରୁ ଅନାଇ କିଏ ଡାକିବେ?
Answer:
ଅକ୍ରୂରଙ୍କୁ ଦୂରରୁ ଅନାଇ ରାମ-କୃଷ୍ଣ ଦୁଇଭାଇ ତାଙ୍କୁ ଡାକିବେ।

Question 23.
ଅକ୍ଟର ଆଖୁବୁଜି କାହାର ଲୀଳା ସ୍ମରଣ କରିଛି?
Answer:
ଅକ୍ରୂର ଆଖିବୁଜି ଗୋବିନ୍ଦଙ୍କ ଲୀଳା ସ୍ମରଣ କରିଛି ।

Question 24.
ଶରୀର ଗନ୍ଧ ପାଇ କ’ଣ ଆନନ୍ଦ ହେବ?
Answer:
ଶରୀର ଗନ୍ଧ ପାଇ ନାସାଦ୍ବାରା ଆନନ୍ଦ ହେବ ।

Question 25.
ଅକ୍ରୁର କାହାର ଭାଇ?
Answer:
ଅକ୍ରୂର କୃଷ୍ଣଙ୍କ ପିତା ବସୁଦେବଙ୍କ ଭାଇ ଅଟନ୍ତି ।

(ଗ) ୨ ନମ୍ବର ବିଶିଷ୍ଟ ଦୁଇଟି ବାକ୍ୟରେ ଉତ୍ତରମୂଳକ ପ୍ରଶ୍ନବଳୀ । ଲେଖା ଓ ଲେଖକଙ୍କ ପାଇଁ ୧ ନମ୍ବର ଓ ଉତ୍ତର ପାଇଁ ୧ ନମ୍ବର ।
(ଉତ୍ତର ଲେଖିବାବେଳେ ଲେଖା ଓ ଲେଖକଙ୍କ ନାମ ଉଲ୍ଲେଖ କରିବାକୁ ପଡ଼ିବ ।)

Question 1.
ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ଦେଖ୍ ଅକୃରଙ୍କର କ’ଣ ହେବ ବୋଲି ସେ ଭାବିଛନ୍ତି ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ଦେଖ୍ ତାଙ୍କର ମୁକ୍ତି ହୋଇଯିବ, ସେ ପରମଗତି ଲାଭ କରିବେ ଏବଂ ଭବ ବନ୍ଧନରୁ ସବୁଦିନ ପାଇଁ ଛେଦ କରିବେ ବୋଲି ଅକ୍ରୂର ଭାବିଛନ୍ତି ।

Question 2.
ଅକୃରଙ୍କୁ ଦେଖ୍ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ କାହିଁକି ମାୟା ରଚନା କରିଥିଲେ ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
ଅକୂରଙ୍କୁ ଦେଖୁ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ତାଙ୍କ ଭକ୍ତିଭାବର ପରିଚୟ ପାଇବାପାଇଁ ମାୟା ରଚନା କରିଥିଲେ ।

Question 3.
ଅକ୍ରୂର ପ୍ରଥମେ କାହିଁକି କୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ଚିହ୍ନି ପାରିଲେ ନାହିଁ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
ଅକ୍ରୂରଙ୍କୁ ଦେଖ୍ କୃଷ୍ଣ ମାୟା ରଚନା କଲେ । ସମସ୍ତ ଗୋପାଳମାନଙ୍କର ସମ ଭୂଷଣ, ସମ ଗମନ, ସମ ଚାହାଁଣିକୁ ଦେଖ୍ ଅକ୍ରୂର ପ୍ରଥମେ କିଏ ରାମ ଓ କିଏ କୃଷ୍ଣ ବୋଲି ଚିହ୍ନି ପାରିଲେ ନାହିଁ ।

Question 4.
କୃଷ୍ଣ ଅକୃରଙ୍କୁ କି କି ଦ୍ରବ୍ୟ ଖାଇବାକୁ ଦେଇଥିଲେ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
କୃଷ୍ଣ ଅକ୍ରୁରଙ୍କୁ ବିଭିନ୍ନ ପୁରଦିଆ ପିଠା, ସର, ଲବଣୀ ଆଦି ଖାଇବାକୁ ଦେଇଥିଲେ ।

Question 5.
ରାମକୃଷ୍ଣ ଅକୃରଙ୍କର କିପରି ସେବା କରିଥିଲେ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
ରାମକୃଷ୍ଣ ଆନନ୍ଦରେ ଅକୃରଙ୍କୁ ଘରକୁ ଡାକିନେଇ ପାଦଧୋଇ ବିବିଧ ପୁରଦିଆ ପିଠା, ସର, ଲବଣୀ ଖାଇବାକୁ ଦେଲେ । ଦେହରେ ବାସଚନ୍ଦନ ଲେପନ କରି ରତ୍ନ ପଲଙ୍କରେ ଝୀନବସନ ପାରିଦେଇ ତହିଁ ଉପରେ ପୁଷ୍ପ ବିଞ୍ଚି ତାଙ୍କ ଶେଶଇବା ବ୍ୟବସ୍ଥା କରିଥିଲେ । ଅକ୍ରୂର ଶୟନ କରିବା ପରେ ତାଙ୍କର ପାଦ ଚାପିଥିଲେ । ଏହିପଟି ରାମକୃଷ୍ଣ ଅକୃରଙ୍କର ସେବା କରିଥିଲେ ।

Question 6.
କୃଷ୍ଣଙ୍କ ଦନ୍ତର କାନ୍ତି କିପରି ଥୁଲା ଓ ତାହା କାହାକୁ ନିନ୍ଦା କରୁଥିଲା ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
କୃଷ୍ଣଙ୍କ ଦନ୍ତର କାନ୍ତି ଡାଳିମ୍ବ ମଞ୍ଜି ସଦୃଶ ଥିଲା ଓ ତାହା ଚନ୍ଦ୍ରକୁ ନିନ୍ଦା କରୁଥିଲା ।

Question 7.
କୃଷ୍ଣଙ୍କ ଶିରର ତ୍ରିମୁଣ୍ଡୀ କିପରି ଶୋଭା ପାଉଥିଲା?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
କୃଷ୍ଣଙ୍କ ଶିରର ତ୍ରିମୁଣ୍ଡି ଇନ୍ଦ୍ରଧନୁ ସଦୃଶ ଶୋଭା ପାଉଥିଲା ।

Question 8.
‘କାହାର ଧନ ଜୀବନ ଚିର ନୋହି ହୋଇବ ହୀନ’ – ଏକଥା କିଏ, କାହାକୁ ଓ କାହିଁକି କହିଛନ୍ତି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
ଏକଥା କୃଷ୍ଣ ଅକୃରଙ୍କୁ କଂସର ଦୌରାମ୍ୟକୁ ଲକ୍ଷ୍ୟକରି କହିଛନ୍ତି ।

Question 9.
କଂସର ଆଜ୍ଞାପତ୍ର କାହାକୁ ଦେବାପାଇଁ କୃଷ୍ଣ ଅକୃରଙ୍କୁ କହିଛନ୍ତି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
କଂସର ଆଜ୍ଞାପତ୍ର ପିତା ନନ୍ଦକୁ ଦେବାପାଇଁ କୃଷ୍ଣ ଅକୃରଙ୍କୁ କହିଛନ୍ତି ।

Question 10.
କବି କାହିଁକି ନିରାଶ ହୋଇଛନ୍ତି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
କବି ସାଧୁ ସଙ୍ଗ ନପାଇ ନିରାଶ ହୋଇଛନ୍ତି ।

Question 11.
କଂସ ଚିଠିରେ କ’ଣ ଲେଖୁଛି?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
କଂସ ଅତିମାତ୍ରାରେ କ୍ରୋଧାନ୍ଵିତ ହୋଇ ନନ୍ଦରାଜାଙ୍କୁ ଚିଠିରେ ଲେଖିଛି ଯେ ମୋର ଆଜ୍ଞା ମୁତାବକ ତତ୍‌କାଳେ ମଥୁରାକୁ ଆସିବୁ, ନଚେତ୍ ତୋର ସ୍କନ୍ଧ ଛେଦନ କରିବି ।

Question 12.
କଂସର ଅତି ଶକ୍ତିଶାଳୀ ବୀର କେଉଁମାନେ ବୋଲି ପୁରାଣରେ ବର୍ଣ୍ଣିତ ହୋଇଅଛି ।
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
ନାରକା, ବ୍ୟୋମ, ଅଘା, ପ୍ରଳମ୍ବା, କଦମ୍ବା, ଦୁର୍ବିନ୍ଦ ପ୍ରଭୃତି ଅସୁରମାନେ କଂସର ଅତି ଶକ୍ତିଶାଳୀ ବୀର ବୋଲି ପୁରାଣରେ ବର୍ଣ୍ଣିତ ହୋଇଛି ।

Question 13.
କଂସର ମନ୍ତ୍ରୀ ଅକ୍ରୂର କାହିଁକି ଭ୍ରମରେ ପଡ଼ିଥିଲା?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
କୃଷ୍ଣ ମାୟା ରଚିବାରୁ ଗୋପବାଳକମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ କିଏ କୃଷ୍ଣ ଓ କିଏ ବଳରାମ ଜାଣିନପାରି କଂସର ମନ୍ତ୍ରୀ ଭ୍ରମରେ ପଡ଼ିଥିଲା ।

Question 14.
୧୪। ଜ୍ଞାନୀମାନଙ୍କ ମୁହଁରୁ କବି କ’ଣ ଶୁଣୁଥିଲେ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
କୃଷ୍ଣନାମ ଭଜନ କଲେ ଜୀବନରେ ମୁକ୍ତି ମିଳେ ବୋଲି କବି ଜ୍ଞାନୀମାନଙ୍କ ମୁହଁରୁ ଶୁଣିଥିଲେ ।

Question 15.
କଂସର ଅତ୍ୟାଚାରରେ ଅତିଷ୍ଠ ହୋଇ ଦେବଗଣ କାହାକୁ ଗୁହାରି ଜଣାଇଥିଲେ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
କଂସର ଅତ୍ୟାଚାରରେ ଅତିଷ୍ଠ ହୋଇ ଦେବଗଣ କ୍ଷୀର ସାଗରରେ ନଗଶୟନ କରିଥିବା ବିଷ୍ଣୁଙ୍କ ପାଖରେ ଗୁହାରି କରିଥିଲେ ।

Question 16.
ଅକ୍ରୂର କ’ଣ ସାଜିଲା ଓ ସେଥ‌ିରେ କ’ଣ ଯୋଚିଲା ?
Answer:
କାବ୍ୟ – ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
କବି – ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ
ଅକ୍ରୂର ରଥ ସାଜିଲା ଓ ସେଥୁରେ ଅଶ୍ବ ଯୋଚିଲା ।

+2 1st Year Odia Optional Chapter 1 ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ Summary

ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ କବି ପରିଚୟ
ରୀତିଯୁଗୀୟ ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟରେ ଯେଉଁ କେତେଜଣ କବି କାବ୍ୟ ରଚନାକରି ଓଡ଼ିଆ ପୁରାଣ ସାହିତ୍ୟକୁ ସମୃଦ୍ଧ ଓ ବଳିଷ୍ଠ କରି ଯାଇଛନ୍ତି ତନ୍ମଧ୍ୟରୁ ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ର କବି ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ ଅନ୍ୟତମ । ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟରେ ସେ ହେଉଛନ୍ତି ଅନୁରାଗ ଓ ବିରାଗର କବି । କବିଙ୍କ ରଚିତ ‘ମନବୋଧ ଚଉତିଶା’ରେ ଜୀବନର ଅନ୍ତଦୃଷ୍ଟି, ଦୈହିକ ଭୋଗତୃଷ୍ଠା ଓ ସାଂସାରିକ ଲାଳସା ପ୍ରତି ବୈରାଗ୍ୟଭାବ ପାଠକ ପ୍ରାଣକୁ ଯେଭଳି ବିରାଗବ୍ୟଞ୍ଜିତ କରେ, ‘କଳା କଳେବର ଚଉତିଶା’ରେ ଗୋପୀମାନଙ୍କର କୃଷ୍ଣପ୍ରେମ ଓ କୃଷ୍ଣଙ୍କ ପ୍ରତି ଅତ୍ୟଧ‌ିକ ଆସକ୍ତି ପାଠକକୁ ଅନୁରୂପ ଭାବରେ ପ୍ରେମ ଅନୁରାଗୀ କରାଇଥାଏ । ଭକ୍ତଚରଣ ଥିଲେ ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟରେ ଭକ୍ତିବାଦର ପ୍ରଚାରକ । ତାଙ୍କର ଜନ୍ମ ବିଷୟରେ ଜାଣିବା ଏବେବି ରହସ୍ୟମୟ । କିମ୍ବଦନ୍ତୀ ଅନୁସାରେ ତାଙ୍କର ପିତୃଦତ୍ତ ନାମ ଥିଲା ବୈରାଗୀଚରଣ ପଟ୍ଟନାୟକ । ଜାତିରେ ସେ ଥିଲେ କରଣ । ସେ ବୈଷ୍ଣବ ଧର୍ମରେ ଦୀକ୍ଷିତ ହେବାପରେ ତାଙ୍କର ନାମ ରଖାଗଲା ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ । ଖୋର୍ଦ୍ଧା ରାଜା ଦିବ୍ୟସିଂହ ଦେବଙ୍କର ସେ ଥିଲେ ସମସାମୟିକ । ଖୋର୍ଦ୍ଧା ଜିଲ୍ଲାର ସୁନାଖଳାରେ (ସାନପଦର ଗ୍ରାମରେ) ଏବେ ସୁଦ୍ଧା ତାଙ୍କର ଏକ ମିଠ ଅଛି ।

କେହି କେହି ସମାଲୋଚକ ତାଙ୍କର ଜନ୍ମ ୧୭୨୯ ମସିହାରେ ଖୋର୍ଦ୍ଧା ଜିଲ୍ଲା ସାନପଦର ଗ୍ରାମରେ ହୋଇଥିଲା ବୋଲି ଉଲ୍ଲେଖ କରିଛନ୍ତି । ସେ ଯାହା ହେଉନା କାହିଁକି ୧୮୧୩ ମସିହା କାର୍ତ୍ତିକ ଶୁକ୍ଳ ଏକାଦଶୀ ଦିନ ୮୪ ବର୍ଷ ବୟସରେ ସୁନାଖଳାଠାରୁ ସଂକୀର୍ତ୍ତନ କରି ପୁରୀ ଯିବା ବାଟରେ ତାଙ୍କର ମହାପ୍ରୟାଣ ହୋଇଥିଲା । ପ୍ରକୃତରେ କହିବାକୁ ଗଲେ ଭକ୍ତଚରଣ ଥିଲେ ଜଣେ ପ୍ରକୃତ ଭକ୍ତ । କିନ୍ତୁ ଆଶ୍ଚର୍ଯ୍ୟର କଥା ଯେ ସେ ଖାଲିପାଦରେ ଭାରତର ବିଭିନ୍ନ ତୀର୍ଥ ସ୍ଥାନରୁ ଚାଲିଚାଲି ଯାଇଥିଲେ । ଖୋର୍ଦ୍ଧା, ବାଣପୁର, ଦଶପଲ୍ଲା ଓ ରାଜସୁନାଖଳାଠାରେ ସେ ଚାରୋଟି ମଠ ସ୍ଥାପନ କରିଥିଲେ । ଯେତେବେଳେ ସେ ଗୌଡ଼ପଡ଼ା ମଠାରେ ଅବସ୍ଥାନ କରୁଥିଲେ, ସେତେବେଳେ ସେ ବୃନ୍ଦାବନଚନ୍ଦ୍ରଙ୍କୁ ଉପାସନା କରୁଥିଲେ । ସେଠାକାର ରାଜକର୍ମଚାରୀମାନେ ତାଙ୍କ ସହିତ ଶତ୍ରୁତା ଆଚରଣ କରି ତାଙ୍କର ଉପାସ୍ୟ ଦେବତାଙ୍କୁ ନଦୀଗର୍ଭକୁ ପକାଇ ଦେଇଥିଲେ । ଭକ୍ତଚରଣଙ୍କୁ ସ୍ୱପ୍ନାଦେଶ ହେଲା ଯେ ସେହି ବିଗ୍ରହକୁ ନେଇ ସୁନାଖଳାରେ ପୂଜା କରିବେ । ତେଣୁ ଭକ୍ତଚରଣ ରାଜସୁନାଖଳାରେ ବୃନ୍ଦାବନଚନ୍ଦ୍ରଙ୍କୁ ସ୍ଥାପନ କରି ପୂଜା କଲେ । ଭକ୍ତଚରଣ ଏକାଧାରରେ ଥିଲେ ଭକ୍ତ, କବି ଓ ଚିକିତ୍ସକ ।

ଭକ୍ତଚରଣ ବହୁ କାବ୍ୟ, କବିତା, ଚଉତିଶା ଆଦି ରଚନା କରିଥିଲେ । ତାଙ୍କର ବହୁଜନାଦୃତ ଗ୍ରନ୍ଥ ହେଉଛି ‘‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’’ । ଏତଦ୍‌ବ୍ୟତୀତ ସେ ମଧ୍ଯ ‘ଗୋପମଙ୍ଗଳ’, ‘ମନଃଶିକ୍ଷା’, ‘କଳାକଳେବର ଚଉତିଶା’, ‘ମନବୋଧ ଚଉତିଶା’ ଆଦି କାବ୍ୟକବିତା ରଚନା କରିଥିଲେ । ରଚନା କ୍ରମ ଦୃଷ୍ଟିରୁ କବିଙ୍କ ‘ମନବୋଧଚଉତିଶା’କୁ ପ୍ରାଥମିକ ସ୍ତରର ରଚନା ଭାବରେ ସ୍ବୀକୃତି ଦିଆଯାଏ । ବୈରାଗ୍ୟ, ସାଂସାରିକ ଧର୍ମ ପ୍ରତି ଅନାସକ୍ତିଜନିତ ଅନୁଭବରୁ ଏହି କବିତାର ସୃଷ୍ଟି । ଏଥରେ କବି ଦର୍ଶାଇଛନ୍ତି ଯେ, ଏ ସଂସାର ଅନିତ୍ୟ, ଦେହ ଅନିତ୍ୟ, ସଂପଦ ଅନିତ୍ୟ । ବଞ୍ଚୁଥିଲା ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ମଣିଷ ମଣିଷକୁ ପଚାରେ, ସ୍ତ୍ରୀ ତା’ର ସ୍ୱାମୀକୁ ଭଲପାଏ, ଜ୍ଞାତି କୁଟୁମ୍ବ ପଚାରନ୍ତି । କିନ୍ତୁ ମରିଗଲେ ମଣିଷକୁ କେହି ପଚାରନ୍ତି ନାହିଁ । ମୃତ୍ୟୁପରେ ତାକୁ କେହି ଛୁଇଁବେ ନାହିଁ । ତା’ପାଇଁ ଦରକାର ହେବ ମାତ୍ର ଛଅ ଖଣ୍ଡ କାଠ । ସେଥ‌ିପାଇଁ କବି ଲେଖୁଛନ୍ତି –

‘‘ଛଅ ଖଣ୍ଡ କାଠ ହେବ ତୋ ପାଇଁ ଲୋଡ଼ା
ଛୁଇଁବେ ନାହିଁ ତୋତେ ବୋଲିବେ ମଡ଼ା ।’’ (ମନବୋଧ ଚଉତିଶା)
ପୁଣି ସେ ଲେଖୁଛନ୍ତି ଯେ –
‘‘ଖଣ୍ଡି ଯେ ଖଣ୍ଡି ତୋର
ପିଞ୍ଜରା କାଠି
ଖାଉଣ ଥିବେ ଶ୍ଵାନ
ଶୃଗାଳ ବାଣ୍ଟି ଯେ ।
ଗଲେଣି ତୋ ସଙ୍ଗତୁ
ଯେତେକ ଜନ
ଗଣ୍ଠିରେ ବାନ୍ଧିନେଲେ
କେ କେତେ ଧନ ରେ ।”
ତେଣୁ ସେ କହିଛନ୍ତି ବାରମ୍ବାର ଭଗବାନ ନାମ ନେବାକୁ ବାରମ୍ବାର କହୁଥିଲେ । ତାଙ୍କ ମତରେ –
‘‘କହଇ ମନ ଆରେ ମୋ ବୋଲ କର
କଳା ଶ୍ରୀମୁଖ ବାରେ ଦେଖୁବା ଚାଲ ରେ
କେତେ ଦିନକୁ ମନ ବାନ୍ଧିବୁ ଆଣ୍ଟ
କି ଘେନି ଯିବୁ ତୋ’ର ଛୁଟିଲେ ଘଟ ରେ ।’’

ଅନ୍ୟ କବିମାନଙ୍କ ଅପେକ୍ଷା ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ କିଛିଟା ବାସ୍ତବବାଦୀ ଥିଲେ । ମୃତ୍ୟୁ, ସଂସାର, ଜନ୍ମ, ଦେହ-ଦେହାନ୍ତ ପ୍ରତି କବି ଯଥେଷ୍ଟ ସଚେତନ ଥିଲେ । ତାଙ୍କର କବିତା ପଢ଼ିଲେ ଯେ କେହି ସାଂସାରିକ ଲୋକ ମନରେ ଭରିଯାଏ ବୈରାଗ୍ୟର ସନ୍ଦେଶ । ଅତଏବ ଭକ୍ତଚରଣଙ୍କ କବିତାରେ ଭକ୍ତି ଭାବନାରେ ସ୍ରୋତ କୂଳ ଲଙ୍ଗିଛି ସତ୍ୟ; – କିନ୍ତୁ ଉତ୍ତୁଙ୍ଗ ସାମାଜିକ ଜୀବନ ପ୍ରବାହରେ ଏହା ହୋଇଛି ମର୍ମରିତ ।

ଗୌଡ଼ୀୟ ବୈଷ୍ଣବଧର୍ମରେ ଦୀକ୍ଷିତ ହେବାପରେ କବି ଭକ୍ତଚରଣଙ୍କ ଜୀବନ କୃଷ୍ଣ ପ୍ରେମାନୁରାଗରେ ରଞ୍ଜିତ ହୋଇ ଯାଇଥିଲା । ଜଣେ ସଫଳ ବୈଷ୍ଣବ ଭାବରେ ତାଙ୍କୁ ଚାରିଦିଗ ଦେଖାଯାଉଥିଲା କୃଷ୍ଣମୟ । ଶୟନ, ସପନ, ଜାଗରଣ ସବୁଥ୍ରେ ଯେପରି ତାଙ୍କର ହେଉଥୁଲା ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ ସାକ୍ଷାତ୍‌କାର । ଦେହ, ମନ, ପ୍ରାଣକୁ ସେ କୃଷ୍ଣ ପଦାରବିନ୍ଦରେ ସମର୍ପିତ କରି ଦେଉଥିଲେ । ଏହି ଐକାନ୍ତିକ କୃଷ୍ଣ ଆତ୍ମିକତାରୁ ଜନ୍ମ ନେଲା ‘‘କଳାକଳେବର ଚଉତିଶା’’ । କୃଷ୍ଣ ଗୋପପୁରକୁ ଆନନ୍ଦ ଉତ୍ସାହରେ ଭରି ଦେଉଥିଲେ । ବିଷୟବାସନା ବ୍ୟସ୍ତ, ଅର୍ଥ ଉପାର୍ଜନନିରତ ଗୋପିନୀମାନଙ୍କ ଜୀବନରେ କୃଷ୍ଣ ଭରି ଦେଉଥ୍ଲେ ପ୍ରେମ ଓ ପ୍ରଣୟର ଅନୁରାଗ । ଗୋପୀଗଣ ଭୁଲିଥିଲେ ତାଙ୍କ ବ୍ୟବସାୟ, ଜାତି, କୁଳ, ଗୋତ୍ର, ବଂଶାଭିମାନ; ଏପରିକି କୃଷ୍ଣ ପାଇଁ ବି ଭୁଲି ଥିଲେ ମଧ୍ୟ ଆପଣାର ପ୍ରିୟତମ ଗୋପାଳମାନଙ୍କୁ । ଏବେ ସେହି କୃଷ୍ଣ ସେମାନଙ୍କୁ ଛାଡ଼ି ଚାଲିଯିବେ ମଧୁପୁରୀକୁ । କଂସର ମନ୍ତ୍ରୀ ଅକ୍ରୂର ଆସିଛନ୍ତି କୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ନେଇଯିବା ପାଇଁ ଏ ସମ୍ବାଦ ଗୋପୀମାନେ ଶୁଣିଛନ୍ତି । ପ୍ରଥମେ ସେମାନେ ଏ କଥାକୁ ବିଶ୍ୱାସ କରିପାରି ନାହାଁନ୍ତି । ନିଷ୍ଠୁର ସତ୍ୟକୁ ମୁହାଁମୁହିଁ କରିବାର ସାହାସ ନାହିଁ । ପରସ୍ପର ମଧ୍ୟରେ ପଚରାପଚରି ହେଉଛନ୍ତି ଯେ ସତରେ କ’ଣ କୃଷ୍ଣ ଆମ୍ଭକୁ ଛାଡ଼ି ଚାଲିଯିବେ । ଗୋପୀମାନଙ୍କ ମୁଖରେ କୃଷ୍ଣ ରୂପର ମଞ୍ଜୁଳ ବର୍ଣନା ‘କଳାକଳେବର ଚଉତିଶା’କୁ ଏକାନ୍ତ ଲୋକପ୍ରିୟ କରିଛି । ମନୋହର ଲୋକ ସଙ୍ଗୀତର ସ୍ଵରରେ ଏହା ଆଜି ମଧ୍ୟ ଓଡ଼ିଆ ପ୍ରାଣକୁ ମୁଗ୍ଧ କରେ । ଗୋପୀମାନେ କହୁଛନ୍ତି –

‘‘ଖସି ପଡୁଛି କି ଆକାଶୁ
କିବା ଗଙ୍ଗା-ଯମୁନା,
କ୍ଷୀର ସଙ୍ଗେ ପ୍ରାଣ ଶୋଷିଲେ
ନାଶ ଗଲା ପୁତନା ।
X X X X X X X
ଜହର ସଙ୍ଗତେ ମହୁରା
ଆସି ହେଲା ନିରତ,
ଯୁବତୀ କୁଳକୁ ଦଇବ
କଳା ଏ ହନ୍ତସନ୍ତ |
ଝରିପଡ଼ୁଛି କି ଝୁଣ୍ଟିଆ
ଝସ କେତନ ଘାତେ
ଝାଳ ବିନ୍ଦୁ ବିନ୍ଦୁ ଶ୍ରୀମୁଖ
ବୋହୂ ଅଛି ନିରତେ ।
ନୟନ ଉପରେ ଭୂଲତା
କିଏ କାମ କମାଣ
ନୁହଁନ୍ତି ଏ ପୋଏ କାହାରି
ସବୁ ଗୋପୀଙ୍କ ପ୍ରାଣ ।’’

‘‘କଳାକଳେବର ଚଉତିଶା’’ ରଚନାରେ କବିଙ୍କ ସଫଳତା ତାଙ୍କୁ ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ ସୃଷ୍ଟି ପାଇଁ ପ୍ରେରଣା ଯୋଗାଇଛି । କୃଷ୍ଣଙ୍କର ଜନ୍ମପରେ ମଥୁରାର ମଙ୍ଗଳ ପାଇଁ ତାଙ୍କର ମଧୁପୁର ଯାତ୍ରା ଓ ଦୁରାଚାରୀ କଂସକୁ ସବୁ ନିପାତ କରିବାର କଥାବସ୍ତୁକୁ ଭିଭିକରି ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ କାବ୍ୟ ରଚିତ । ‘ମଥୁରା’ ରାଜ୍ୟର ମଙ୍ଗଳ କାମନା ପାଇଁ ବିଷୟ ହୋଇଥିବାରୁ ଏହାର ନାମକରଣ ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ କରାଯାଇଛି । ସରଳ ଲୋକକଥ୍ତ ଗ୍ରାମ୍ୟଭାଷା ସହିତ ଶାସ୍ତ୍ରୀୟ ଶବ୍ଦର ମଣିକାଞ୍ଚନ ଯୋଗରେ ଏହି କାବ୍ୟ ଏକାନ୍ତ ଶ୍ରୁତିମଧୁର ହୋଇପାରିଛି । ଭାଷ୍ୟ ପ୍ରୟୋଗରେ ଭକ୍ତଚରଣଙ୍କର ନିଷ୍ଠା ଯେକୌଣସି ପାଠକଠାରେ ଭାବ ତନ୍ମୟତା ସୃଷ୍ଟିକରେ । ମଥୁରା ରାସ୍ତାରେ ମଦନମୋହନ ରୂପ ଧାରଣ କରି କୃଷ୍ଣ କଂସର ରାଜସଭାକୁ ଯାଉଥିବାବେଳର ଗୋଟିଏ ଦୃଶ୍ୟର ବର୍ଣ୍ଣନାରୁ ଦୃଷ୍ଟାନ୍ତ ସ୍ଵରୂପ ନିଆଯାଇପାରେ –

‘‘ବାବୁ ସେ ନବ ନାଗର କାହୁ
ଦେଖୁ ପାଶୋରିବ କାହାର ମନୁ ।
ଶିଶୁଙ୍କୁ ଦିଶନ୍ତି ଶିଶୁ ପରାୟେ
ନାରୀଙ୍କ ଦୃଷ୍ଟିକୁ ମଦନରାୟେ ।
ବୃଦ୍ଧଙ୍କୁ ବାଳକ ସ୍ଵଭାବ ମତି
ଜ୍ଞାନୀଙ୍କି ନିର୍ଗୁଣ ରୂପ ଶ୍ରୀପତି ।
ଭକ୍ତକୁ ନନ୍ଦ-ନନ୍ଦନ ପରା
ନାନା ରୂପ ଧରେ ନନ୍ଦର ଧରା ।’’

ଭକ୍ତକବିଙ୍କର ଅନ୍ତର ଥୁଲା ଭକ୍ତିରେ ନିତ୍ୟ ଢଳଢଳ । ବୃନ୍ଦାବନଚନ୍ଦ୍ରଙ୍କୁ ସେ ପୂଜା କରୁଥିଲେ । ସେ ଥିଲେ ବୈଷ୍ଣବ । ସାଧୁସନ୍ଥଙ୍କ ପ୍ରତି ତାଙ୍କର ଥିଲା ବହୁ ଆଦର । ଭକ୍ତଚରଣ ଯେ କେବଳ କବି ଏକଥା ନୁହେଁ, କବିରାଜି ଶାସ୍ତ୍ରରେ ମଧ୍ୟ ତାଙ୍କର ନିପୁଣତା ଥିବା କଥା ତାଙ୍କ ଲିଖିତ ‘ମନଃଶିକ୍ଷା’ ଓ ବୈଦ୍ୟଶାସ୍ତ୍ରରୁ ସ୍ପଷ୍ଟ ଅନୁମତି ହୁଏ । କବିଙ୍କ ରଚିତ ଗ୍ରନ୍ଥଗୁଡ଼ିକ ହେଲା –

  • ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ
  • ଗୋପମଙ୍ଗଳ
  • ମନବୋଧ ଚଉତିଶା
  • କଳାକଳେବର ଚଉତିଶା
  • ମନଃଶିକ୍ଷା
  • ବୈଦ୍ୟଶାସ୍ତ୍ର ଇତ୍ୟାଦି

କବିଙ୍କର ସାଧନାର ପୀଠ ଥୁଲା ରାଜସୁନାଖଳା ମଠ । ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ କାବ୍ୟଟି ଜୀବନର ଶେଷ ପାଦରେ ରଚନା କରିଥିବାରୁ ରାଜସୁନାଖଳା ମଠରେ ଏହାର ଆରମ୍ଭ ଓ ଶେଷ ହୋଇଥିଲା ବୋଲି ମନେହୁଏ । ଏହା ପୂର୍ବରୁ ସେ ‘କଳାକଳେବର ଚଉତିଶା’, ‘ମନବୋଧ ଚଉତିଶା’ ଓ ‘ମନଃଶିକ୍ଷା’ ରଚନା କରିଥିଲେ । କଥ୍ତ ଅଛି ଯେ– ଦୁଇଟି ବୈଦ୍ୟଶାସ୍ତ୍ର ଗ୍ରନ୍ଥ ଓ ‘ଗୋପମଙ୍ଗଳ’ କାବ୍ୟ ମଧ୍ୟ ରଚନା କରିଥିଲେ । କିନ୍ତୁ ଏହା ଅଦ୍ୟାବଧୂ ବି ଦୁଷ୍ଟ୍ରାପ୍ୟ । କବିଙ୍କ ‘କଳାକଳେବର ଚଉତିଶା’ ଓ ‘ମନବୋଧ ଚଉତିଶା’ର ଅପୂର୍ବ ସାଙ୍ଗୀତିକତା ପାଠକ ଓ ଶ୍ରୋତାଙ୍କୁ ମୁଗ୍ଧ କରିରଖେ । ଭକ୍ତଚରଣ – ଭକ୍ତ, ବୈଷ୍ଣବ – ପୁଣି ସେ କବି । ଗୋଟିଏ ମଣିଷର ତିନୋଟି ବୃତ୍ତି । ସଂସାରର ହିତ ଏ ବୃତ୍ତିସମୂହର ଧର୍ମ । ‘‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’’ କାବ୍ୟରେ ଗୋପାଙ୍ଗନାମାନେ ଭକ୍ତିମାର୍ଗର ଅଧିକାରିଣୀ, କୃଷ୍ଣ ସେମାନଙ୍କର ଆରାଧ୍ୟ ଦେବତା । ଲୌକିକ ଚରିତ୍ର ନେଇ ପ୍ରକଟିତ କୃଷ୍ଣ ତାଙ୍କର ସାକାର ବ୍ରହ୍ମ । ସେ ଗୋପୀମାନଙ୍କର ସୁଖ-ଦୁଃଖ ସହିତ ସଂଶ୍ଳିଷ୍ଟ । ଗୋପୀମାନଙ୍କ ସଗୁଣ ପ୍ରେମଭକ୍ତି ତାଙ୍କ ଭକ୍ତିର ଆଧାର । ପ୍ରେମରେ ଆବେଶିତ ମନହିଁ ମଣିଷକୁ ପ୍ରଭୁଙ୍କ ନିକଟତର କରାଏ । ଶେଷରେ ଉପାସ୍ୟ ଓ ଉପାସକର ଏକୀକରଣ ହୋଇଥାଏ ଯେତେବେଳେ ଦୁହେଁ ଅଭିନ୍ନ, ପ୍ରେମରେ ଅତୀନ୍ଦ୍ରିୟତା ସେତେବେଳେ ପ୍ରେମ ପ୍ରେମିକକୁ ଯୁଗବଥ ଶାଶ୍ୱତ ଓ ମହାନ୍
କରେ ।

ଭକ୍ତଚରଣ ଅବତାରୀ କୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ଏହି ରୂପରେ ଦେଖୁଛନ୍ତି ଓ ତା’ର ପ୍ରତିଷ୍ଠା ମଧ୍ଯ ଚାହିଁଛନ୍ତି, ଠିକ୍ ଚୈତ୍ୟନଙ୍କ ପରି । ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ରେ ଉଦ୍ଧବ ଜ୍ଞାନମାର୍ଗୀ ଓ ଗୋପାଙ୍ଗନାମାନେ ପ୍ରେମ ମାର୍ଗର ପଥକ । ଦୁଇଟିର ଦ୍ବନ୍ଦ୍ବ ମଧ୍ୟରେ ପ୍ରେମମାର୍ଗର ବିଜୟବାର୍ତ୍ତା ଭକ୍ତଚରଣ ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ରେ ଶୁଣାଇଛନ୍ତି । ନତମସ୍ତକ ହୋଇ ଉଦ୍ଧବ ଗୋପୀମାନଙ୍କ ପ୍ରେମଭକ୍ତିକୁ ସ୍ଵୀକାର କରିନେଇଛନ୍ତି । ଦର୍ଶନର ନିଗୂଢ଼ ତତ୍ତ୍ଵରାଜିରୁ ସେ ସହଜ, ସରଳ ଓ ବୋଧଗମ୍ୟ ଭାଷାରେ ବ୍ୟାଖ୍ୟା କରିଛନ୍ତି । ସେଥ‌ିରେ ଅଯଥା ପାଣ୍ଡିତ୍ୟ ଓ କ୍ଳିଷ୍ଟତା ନାହିଁ । ଜୀବ ଓ ବ୍ରହ୍ମକୁ ସେ ପୃଥକ୍ ପୃଥକ୍ ଭାବରେ ଦେଖୁଛନ୍ତି । ଅର୍ଥାତ ଜୀବର ବ୍ରହ୍ମ ସହିତ ମିଶ୍ରଣକୁ ସେ ସ୍ଵୀକାର କରିନାହାଁନ୍ତି, କିନ୍ତୁ ତାଙ୍କର ଏକ ମନନଶୀଳ ବ୍ୟକ୍ତି ଯେ ସେ ଜୀବ ପ୍ରତି ଦୟା ପ୍ରଦର୍ଶନ କରିବାକୁ ଚାହିଁଛନ୍ତି ।

ପୂର୍ବଭାଷା :
‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ ପୂର୍ବରୁ କୃଷ୍ଣ-ବିଷୟକ କାହାଣୀକୁ ଆଧାର କରି ଓଡ଼ିଶାରେ ବହୁ କାବ୍ୟକବିତା ରଚିତ ହୋଇଛି । କିନ୍ତୁ ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ ଓଡ଼ିଆ କାବ୍ୟଧାରାରେ ସ୍ବାତନ୍ତ୍ର୍ୟ ରକ୍ଷା କରିଥାଏ । କୃଷ୍ଣବିଷୟକ ଗୀତିକବିତା—ଚଉତିଶା ଏବଂ କାବ୍ୟ ମଧ୍ୟରେ ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ ଥିଲା ଏକ ଯୋଗସୂତ୍ର ସମ୍ପାଦକ କାବ୍ୟ । ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ ଅନ୍ୟାନ୍ୟ କୃଷ୍ଣବିଷୟକ କାବ୍ୟଠାରୁ ସ୍ୱତନ୍ତ୍ର, ବ୍ୟତିକ୍ରମ ଓ ଅନନ୍ୟ ମଧ୍ଯ । ପ୍ରସଙ୍ଗତଃ ଭାଗବତ ବ୍ୟତୀତ ଉପର୍ୟ୍ୟକ୍ତ ଗ୍ରନ୍ଥଗୁଡ଼ିକ ସହ ଏକ ତୁଳନାତ୍ମକ ବିଶ୍ଳେଷଣ କରିପାରିବା । କୃଷ୍ଣକଥା ଆଲୋଚନା ହେଲେ ଓଡ଼ିଶାର ଜନମାନସରେ ଏକ ଉନ୍ମାଦନା ସୃଷ୍ଟି ହୁଏ । ସେଥ‌ିପାଇଁ ଓଡ଼ିଆରେ କୁହାଯାଇଛି ଯେ ଓଡ଼ିଶାର ପ୍ରତ୍ୟେକ ଜନସାଧାରଣ କୃଷ୍ଣଭକ୍ତିକୁ ନିଜର ମାନସିକ ଓ କୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ପ୍ରତ୍ୟକ୍ଷ ଦେବତା ବୋଲି କୁହନ୍ତି । କହିବାକୁ ଗଲେ ଯେଉଁ କେତେଜଣ କବି ତାଙ୍କର ମନନଶୀଳ ଭାବରେ ଓଡ଼ିଆ ସାହିତ୍ୟରେ କୃଷ୍ଣଭକ୍ତି ରସାତ୍ମକ କାବ୍ୟ ରଚନା କରିଛନ୍ତି ତନ୍ମଧ୍ୟରୁ ଭକ୍ତଚରଣଙ୍କ ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ ଏକ ଭିନ୍ନ ଧରଣର ଲିଖୁ କାବ୍ୟ ।

ତିରିଶ ଛାନ୍ଦରେ ବିଷୟ ବିନ୍ୟାସ ଘଟିଛି । ଶୁଦ୍ଧାଭତ୍ତିର ଉପାସକ କବି କାହାଣୀରେ ନୂତନତା ସୃଷ୍ଟିକରି ନାହାଁନ୍ତି; ମାତ୍ର ନିଜର ଭକ୍ତିପୁଷ୍ପରେ କାବ୍ୟମନ୍ଦିର ନିର୍ମାଣ କରି ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ସେଥ‌ିରେ ସ୍ୱୟଂ ପରମବ୍ରହ୍ମରୂପେ ସ୍ଥାପନ କରିଛନ୍ତି । କବି ନିଜର ଭକ୍ତପ୍ଲାବିତ ହୃଦୟର ଅନୁଭବ ଓ କଳ୍ପନାର ଅରୁଣିମାରେ ବିଚିତ୍ର ସ୍ପନ୍ଦନ ସୃଜିଛନ୍ତି । ନିଜସ୍ଵ ଧର୍ମମିତ ଓ ବିଶ୍ଵାସର ଶ୍ରେଷ୍ଠତା ପ୍ରତିପାଦନ ପାଇଁ ତାଙ୍କର ଚରମ ଆକାଂକ୍ଷା । ସୃଷ୍ଟି ଭିତରେ ତାହାର ପ୍ରତିଫଳନ ଓ ପ୍ରତିପାଦନ ଏପରି ଘଟିଛି ଯେ ପାଠକ କବିର ସ୍ୱତନ୍ତ୍ର ଧାରଣା ଓ କୃଷ୍ଣ-କାହାଣୀକୁ ସ୍ଵତନ୍ତ୍ର କରି ବୁଝିବାକୁ ଅବସର ପାଏ ନାହିଁ । ମଥୁରାର ମଙ୍ଗଳ କାମନା ଏ କାବ୍ୟର ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟ ନୁହେଁ । ଏହା ହୋଇଥିଲେ ବାଲ୍ୟଲୀଳାର ବର୍ଣ୍ଣନା ଅଧିକ ସ୍ଥାନ ପାଇଥା’ନ୍ତା ଓ କଂସ ନିଧନରେ ଗ୍ରନ୍ଥର ପରିସମାପ୍ତି ଘଟିଥା’ନ୍ତା । ଧନୁଯାତ୍ରା ଉତ୍ସବକୁ କୃଷ୍ଣ-ବଳରାମଙ୍କୁ ନିମନ୍ତ୍ରଣ କରି ନେବାଠାରୁ ବିଷୟର ଉପସ୍ଥାପନ ହୋଇଛି । ଅକ୍ରୂର ଗୋପପୁରରୁ କୃଷ୍ଣ-ବଳରାମଙ୍କୁ ମଥୁରା ଆଣିବା ସମ୍ବାଦରେ ଆର୍ଭ-ଆକୁଳ ଗୋପନାରୀ ଓ ଯଶୋଦାଙ୍କର ବିଳାପ ବର୍ଣ୍ଣନା ପାଞ୍ଚଟି ଛାନ୍ଦରେ ସ୍ଥାନ ପାଇଛି । ପରବର୍ତ୍ତୀ ସାତଟି ଛାନ୍ଦରେ ଉଦ୍ଧବ ଗୋପୀମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ଉକ୍ତି-ପ୍ରତ୍ୟୁକ୍ତି – ଜ୍ଞାନ ଓ ଶ୍ରଦ୍ଧାଭତ୍ତିର ବର୍ଣ୍ଣନା ଭିତରେ କାବ୍ୟର ପରିସମାପ୍ତି ଘଟିଛି ।

ବିଷୟ ବିନ୍ୟାସରେ କବି କୁଶଳୀ-କବି ପ୍ରତିଭାର ପରିଚୟ ଦେଇଛନ୍ତି । ଡଃ ନଟବର ସାମନ୍ତରାୟଙ୍କ ଉକ୍ତିଟି ଏଠାରେ ସ୍ମରଣୀୟ – ‘‘ସମଗ୍ର ଓଡ଼ିଆ ବୈଷ୍ଣବ ସାହିତ୍ୟ ମଧ୍ଯରେ ସୃଷ୍ଟିର ଏପରି ସୁମଧୁର ପରିକଳ୍ପନା ଏକାନ୍ତ ଦୁର୍ଲଭ’’। ଡଃ ସାମନ୍ତରାୟ ପୁନଶ୍ଚ କହିଛନ୍ତି – ‘‘କବିଙ୍କର ପ୍ରକୃତ ସୃଷ୍ଟି ଲକ୍ଷ୍ୟ ହେଉଛି କାବ୍ୟର ପରିସୀମା ମଧ୍ୟରେ ଗୋପୀଭାବର ଚିରନ୍ତନ, ଶାଶ୍ୱତ ମହିମା ପ୍ରଖ୍ଯାପନ କରିବା ।’’

ଡଃ ସାମାନ୍ତରାୟଙ୍କ ଉପର୍ୟ୍ୟନ୍ତ ମତ ‘‘କବିର ଏଇ ମୌଳିକ ନିର୍ମାଣ ପ୍ରତିଭା’’ ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ର ବିଷୟ ସଜ୍ଜୀକରଣ ପଶ୍ଚାତ୍‌ରେ ନିହିତ ରହିଛି । ଏକବିଂଶ ଓ ଦ୍ୱାବିଂଶ ଛାନ୍ଦରେ ଯୁଦ୍ଧର ବର୍ଣ୍ଣନା ଏବଂ ଦ୍ୱାବିଂଶ ଛାନ୍ଦର ମାତ୍ର ଦୁଇଟି ପଦରେ ( ଷୋଡ଼ଶ ଓ ସପ୍ତଦଶ) କଂସ ମୃତ୍ୟୁର ସୂଚନା କବି ମନୋଜ୍ଞ ଚିତ୍ର ଭିତରେ ଉପସ୍ଥାପନ କରିଛନ୍ତି । ଏହି କେତୋଟି ଛାନ୍ଦ ବ୍ୟତୀତ ସମଗ୍ର ଗ୍ରନ୍ଥରେ ଶୁଦ୍ଧାଭକ୍ତିର ରସ ପ୍ଲାବନ ଘଟିଛି । ଛାନ୍ଦାନୁସାରେ ବିଷୟବସ୍ତୁର ବିଭାଜନ କଲେ ସ୍ପଷ୍ଟ ଅନୁଭବ କରିହେବ କବିଙ୍କର ଲକ୍ଷ୍ୟ ।

  • ଛାନ୍ଦ ୧-୩ – ଧନୁଯାତ୍ରା ପାଇଁ ନିମନ୍ତ୍ରଣ, ଅକ୍ରୂରଙ୍କ ଗୋପ ଗମନ, କଂସର ଚିଟାଉ ।
  • ଛାନ୍ଦ ୪-୯ – ଗୋପାଙ୍ଗନା ଓ ଯଶୋଦା ବିଳାପ | ଗୋପପୁର ବର୍ଣ୍ଣନା ।
  • ଛାନ୍ଦ ୧୦-୧୧ – ପଥରେ ଅକ୍ରୂରର ଭ୍ରାନ୍ତି ଓ ତା’ର ନିରାକରଣ ଏବଂ ଭକ୍ତିର ସାଯୁଜ୍ୟ ଦର୍ଶନ ।
  • ଛାନ୍ଦ ୧୨ – କଂସର ମନ୍ତ୍ରଣା ।
  • ଛାନ୍ଦ ୧୩-୧୭ – ମଥୁରାରେ ପ୍ରବେଶ ଓ ମଥୁରା ନଗରବାସୀଙ୍କର ଆନନ୍ଦ ବର୍ଣ୍ଣନା (ରଜକ, କୁବ୍‌ଜା, ସୁଦାମା ମାଳୀର ସୁଦେଶ ଓ ରାତ୍ରିଯାପନ)
  • ଛାନ୍ଦ ୧୮-୨୨ – ଧନୁଯାତ୍ରାରେ ପ୍ରବେଶ, ମଲ୍ଲମାନଙ୍କ ସହିତ ଯୁଦ୍ଧ ବର୍ଣ୍ଣନା, କଂସର ମୃତ୍ୟୁ ।
  • ଛାନ୍ଦ ୨୩ – ଶୋକାଉଁ କଂସ ରମଣୀଙ୍କର ବର୍ଣ୍ଣନା ଓ କୃଷ୍ଣଙ୍କର ଛଦ୍ମ ଶୋକ ।
  •  ଛାନ୍ଦ ୨୪-୩୦ · ଉଦ୍ଧବର ଗୋପ ଗମନ, ଗୋପୀମାନଙ୍କ ସହ ଆଳାପ, ଭକ୍ତର ମାହାତ୍ମ୍ୟ କଥନ ଓ ମଥୁରା ପ୍ରତ୍ୟାବର୍ତ୍ତନ ପରେ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ଗୋପପୁର ସମ୍ବାଦ କଥନ ।

ଆଠଟି ପର୍ଯ୍ୟାୟରେ କାବ୍ୟକର୍ମକୁ ବିଭକ୍ତ କରାଯାଇଛି । ପ୍ରଥମ ଛାନ୍ଦରେ ବିଷୟ ସମ୍ଭାବନା ସହିତ କଂସର ମୃତ୍ୟୁ ଭୟାର୍ତ୍ତ ବିକାରଗ୍ରସ୍ତ ମନର ମନୋରମ ବର୍ଣ୍ଣନା ରହିଛି । କଂସବଧ ମାଧ୍ୟମରେ ମଥୁରା ମଙ୍ଗଳର ସ୍ଥୂଳ ଇଙ୍ଗିତ ହୁଏତ ଥାଇପାରେ । ମାତ୍ର ଅବଶିଷ୍ଟ ୨୭ଟି ଛାନ୍ଦ ଭିତରେ କବିଙ୍କର ଭକ୍ତି ବିଚ୍ଛୁରିତ ହୋଇଛି । ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ ପ୍ରତି ଉଭୟ ଗୋପ ଓ ମଥୁରାର ନରନାରୀମାନଙ୍କ ଭିତରେ ଥ‌ିବା ଅକୃତ୍ରିମ ପ୍ରେମର ବର୍ଣ୍ଣନା ଏହି ୨୭ଟି ଛାନ୍ଦ ମଧ୍ୟରେ ସୂକ୍ଷ୍ମାକାରେ କଥିତ । ମନେହୁଏ, ଗୋପୀଭାବ ଓ ସେ ଭାବର ମହିମା ପ୍ରଖ୍ଯାପନ ଭକ୍ତକବି ମଥୁରାମଙ୍ଗଳରେ ଚାହିଁଛନ୍ତି । ଅକୃତ୍ରିମ ପ୍ରେମହିଁ ମଥୁରାକୁ ମଙ୍ଗଳଦାନ କରିଛି । ଶାନ୍ତ ବା ଭକ୍ତି ରସର ପ୍ରାଧାନ୍ୟ କାବ୍ୟଟିର ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟକୁ ସ୍ପଷ୍ଟ କରିଦେଇଛି ବୋଲି କୁହାଯାଇପାରେ ।

ପ୍ରଥମ, ଦ୍ଵିତୀୟ, ତୃତୀୟ ଓ ଚତୁର୍ଥ ଛାନ୍ଦର ସାରକଥା :
କବି ଭକ୍ତଚରଣ ଥିଲେ ଗୌଡ଼ୀୟ ବୈଷ୍ଣବ ଧର୍ମର କବି । ତେଣୁ ସେ କାବ୍ୟର ଆରମ୍ଭରେ ତାଙ୍କ ଆରାଧ୍ୟ ଦେବତା ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କର ବନ୍ଦନା କରିଛନ୍ତି । ଏ ପ୍ରକାର ବନ୍ଦନା କରିବା ପ୍ରାଚୀନ କାବ୍ୟର ଆଦର୍ଶ ଥିଲା । କବି ନିଜର କାବ୍ୟ ଆରମ୍ଭ କରିବା ବେଳେ ମଙ୍ଗଳାଚରଣରେ କୃଷ୍ଣଙ୍କର ବନ୍ଦନା କରିଛନ୍ତି । ଏହା ମଧ୍ୟ ପାଠକ ଓ ଶ୍ରୋତାଙ୍କ ମନରେ ଭକ୍ତିଭାବ ସୃଷ୍ଟି କରେ । କୃଷ୍ଣ ଥିଲେ କବିଙ୍କର ଆରାଧ୍ୟ ଦେବତା । ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ସେ ପରମ ଆରାଧ୍ୟ ଦେବତା ବୋଲି ସ୍ମରଣ କରିଛନ୍ତି । ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ହେଉଛନ୍ତି ଶ୍ରେଷ୍ଠ ଦେବତା । ଏହି ସଂସାରରେ ସୃଷ୍ଟି ଓ ପାଳନ ପାଇଁ ସେ ଜନ୍ମଗ୍ରହଣ କରିଛନ୍ତି । ତାଙ୍କର ଲୀଳାଖେଳା ମୂଳରେ ଜଗତର କଲ୍ୟାଣସାଧନ ହେଉଛି ଏକମାତ୍ର ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟ । କବି ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ ଲେଖୁଛନ୍ତି –

‘‘ଜୟ ଯାଦବ-ବରଜଚନ୍ଦ୍ରମା ।
ଜୟ ସର୍ବ କାରଣ ବିଶ୍ୱକର୍ମା ॥
ନାନା ରୂପ, ଅରୂପ ତୁହି ହଉ ।
ପ୍ରାଣିମାନଙ୍କ ହିତେ ଦେହ ବହୁ ॥
ଗୋରୁ ବ୍ରାହ୍ମଣ ରକ୍ଷଣେ ତୋ ଜାତ ।
କେହି ନ ଜାଣେ ଆଦି ମଧ୍ଯ ଅନ୍ତ ॥
ସର୍ବ ଆତ୍ମାରେ ତୁହି ଆତ୍ମ ରାମ ।
ତୋର ବିହୁନେ ନାହିଁ କର୍ମକର୍ମ ॥’’

ପ୍ରଥମ ଛାନ୍ଦରେ କବି ସେହି ଲୀଳାମୟ ପୁରୁଷ କୃଷ୍ଣଙ୍କର ବନ୍ଦନା କରିଛନ୍ତି । ସେ ହେଉଛନ୍ତି ସ୍ୱୟଂ ଭଗବାନ ଏବଂ ସମସ୍ତ ଐଶ୍ବର୍ଯ୍ୟମୁକ୍ତ । ‘କୃଷ୍’ ଶବ୍ଦର ଅର୍ଥ ଭୂବା ବା ସତ୍, ‘ଶ’ଶବ୍ଦର ଅର୍ଥ ନିବୃତ୍ତି ବା ଚିଦାନନ୍ଦ । ଏହି ଦୁଇ ଶବ୍ଦର ଯୋଗରେ ‘କୃଷ୍ଣ’ ଶବ୍ଦର ଉତ୍ପତ୍ତି । ଅତଏବ‘କୃଷ୍ଣ’ ଶବ୍ଦର ଅର୍ଥ ସଚ୍ଚିଦାନନ୍ଦ, ଈଶ୍ବର, ଅନାଦି ଅନନ୍ତକାଳରୁ ବିଦ୍ୟମାନ, ଜ୍ଞାନମୟ ଓ ଆନନ୍ଦସ୍ଵରୂପ । ତେଣୁ ଏହି ସମଗ୍ର ଭାବକୁ ‘କୃଷ୍ଣ’ ଏହି ଗୋଟିଏ ଶବ୍ଦରେ ‘ଅଭିହିତ’ କରାଯାଇଛି । ସେହି ଭଗବାନ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ କବିଙ୍କର ଦୃଷ୍ଟିରେ ‘ସର୍ବକାରଣ କର୍ତ୍ତା ବିଶ୍ଵକର୍ମା’ ସର୍ବ ଆତ୍ମାରେ ସେ ଆତ୍ମାରାମ । ସେ ହେଉଛନ୍ତି ସୃଷ୍ଟିର ସର୍ବଶ୍ରେଷ୍ଠ କର୍ତ୍ତା । ତାଙ୍କ ବିନା ଗତି ନାହିଁ । ତେଣୁ କବି ସେହି ଲୀଳାମୟ ପୁରୁଷ ଭଗବାନଙ୍କ ପାଦତଳେ ମନୋପ୍ରାଣକୁ ଢାଳି ଦେଇଛନ୍ତି ।

କୃଷ୍ଣ ନାମକୁ କବି ଜପାମାଳି ରୂପେ ଗ୍ରହଣ କରିଛନ୍ତି । ତାଙ୍କ ମତରେ କୃଷ୍ଣ ଚିନ୍ତା ହେଉଛନ୍ତି ସୃଷ୍ଟିର ସର୍ବଶ୍ରେଷ୍ଠ କର୍ତ୍ତା । ତାଙ୍କ ବିନା ଏ ସଂସାରର ମୂଲ୍ୟ ନାହିଁ । ତାଙ୍କ ବିନା
ହେଉଛି ସଂସାରର ଶ୍ରେଷ୍ଠ ଚିନ୍ତା । ସେ ଏ ଭବସାଗରରୁ ମୁକ୍ତି ହେବା ସମ୍ଭବ ନୁହେଁ । ଏହିପରି ପୂର୍ବକାଳରେ ମୁନିଋଷିମାନେ ତରିଯାଇଛନ୍ତି । ପୁରାଣରେ ମଧ୍ଯ ଲେଖାଅଛି ଯେ ଯେଉଁମାନେ ଦିନରାତି ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ ନାମ ସ୍ମରଣ କରନ୍ତି ସେମାନେ ସବୁ ପାପରୁ ମୁକ୍ତି ପାଆନ୍ତି । କବି ଆଜି ବିଚାର କରିଛନ୍ତି – ସଂସାରରେ ଧନ, ଜନ, ଜୀବନ ଚିର ନୁହେଁ । ପାପପଙ୍କିଳ ଦୁନିଆରେ ମୋହମାୟାରେ ପଡ଼ି କବି ଅନେକ ପାପକର୍ମ କରିଯାଇଛନ୍ତି । ଦିନୁ ଦିନ ଆୟୁଷ ତାଙ୍କର କ୍ଷୀଣ ହେବାର ଲାଗିଛି । ସେହି ପାପପଙ୍କରୁ ଉଦ୍ଧାର ପାଇବାପାଇଁ କବି କୃଷ୍ଣ ଚରିତ ବର୍ଣନା କରିବାକୁ ମନ ବଳାଇଛନ୍ତି । ଗୀତରେ ସେ ବର୍ଣ୍ଣନା କରିବେ ଭଗବାନଙ୍କର ଅଲୌକିକ ଲୀଳାକୁ । ଏଥିପାଇଁ ତାଙ୍କର ଆରାଧ୍ୟ ଦେବତା କୃଷ୍ଣ ତାଙ୍କୁ ସହାୟ ହୁଅନ୍ତୁ ବୋଲି କବି ପ୍ରାର୍ଥନା କରି ଲେଖୁଛନ୍ତି –

‘‘କୃଷ୍ଣ ଚରିତ ଅମୃତ ବାରାଧୁ ।
କଳି-କଳୁଷ-ରୋଗକୁ ଔଷଧୂ ॥
ତହୁଁ କିଛି ପ୍ରସଙ୍ଗରେ କହିବି ।
ଦୁଷ୍ଟ ପାତକଭାରାକୁ ଦହିବି ॥
ଗୀତ କରି ରଚିବି ହାରିଲୀଳା ।
ଦୟା କରି ହେ ସ୍ଵାମୀ ନନ୍ଦବଳା ॥
ଯେଉଁ ରୂପେ କଂସ କେଶୀ ବଧୂ ।
ଏଥୁ ପରେ ନାନୀ ଦୁଷ୍ଟ ସାଧୂ ||
ତାହା କହିବାକୁ ମୋ’ର ବିଚାର ।
ରାଗବନ୍ଧରେ କରିବି ପ୍ରଚାର ||
ମୋର ହୃଦରେ ବସି ଦିଅ କହି ।
ଭକ୍ତଚରଣ ଏତକ ମାଗଇ ॥’’

କୃଷ୍ଣ-ଚରିତ ଶ୍ରବଣ କରିବାପାଇଁ କବି ସୁଜନମାନଙ୍କୁ କହିଛନ୍ତି । କୃଷ୍ଣଚରିତ ସମ୍ପର୍କରେ ଶୁକଦେବ ରାଜା ପରୀକ୍ଷିତକୁ କହିଛନ୍ତି । ଏକଥା ଭାଗବତର ଦଶମ ସ୍କନ୍ଧରେ ଉଲ୍ଲେଖ ଅଛି । ସେହିକଥାକୁ ଅବଲମ୍ବନ କରି ଏବଂ କଂସର ଜନ୍ମ, ମରଣକୁ ନେଇ କବି ଭକ୍ତଚରଣ ଦାସ ରଚନା କରିଛନ୍ତି ‘ମଥୁରାମଙ୍ଗଳ’ କାବ୍ୟ । ସତେଯେପରି ଏହି କାବ୍ୟଟି ମଥୁରାର ମଙ୍ଗଳ ପାଇଁ ଉଦ୍ଦିଷ୍ଟ ଥିଲା ।

ଦ୍ଵାପର ଯୁଗରେ ଦୁର୍ମିଳାନନ୍ଦନ କଂସ ମଥୁରା ରାଜା ଉଗ୍ରସେନଙ୍କ ରାଣୀ ଇନ୍ଦୁମତୀଙ୍କ ଗର୍ଭରୁ ଜନ୍ମ ନେଲା । ବ୍ରହ୍ମାଙ୍କ ବଳରେ ବଳୀୟାର ହୋଇ ସେ ଗୋରୁ, ବ୍ରାହ୍ମଣମାନଙ୍କୁ ବହୁ କଷଣ ଦେଲା । ସ୍ବର୍ଗ, ମର୍ତ୍ତ୍ୟ, ପାତାଳ ତିନିପୁରକୁ ଥରହର କଲା । ଭୟରେ ଦେବତାମାନେ ଆସି ତା’ର ପାଦତଳେ ଶରଣ ପଶିଲେ । ଧର୍ମକୁ ନାଶ କରି କଂସ ଅଧର୍ମ କାର୍ଯ୍ୟ କରିଚାଲିଲା । ଜୀବମାନଙ୍କୁ ଅଶେଷ ନିର୍ଯାତନା ଦେଲା । ଦିନୁଦିନ ତା’ର ଅତ୍ୟାଚାର ବଢ଼ିଚାଲିଲା । ଦେବତାମାନେ ଆଉ ସହ୍ୟ କରିପାରିଲେ ନାହିଁ । ସମସ୍ତେ ଯାଇ ଇନ୍ଦ୍ରଙ୍କ ପାଖରେ ପହଞ୍ଚିଲେ । ଇନ୍ଦ୍ର ମଧ୍ୟ କ’ଣ କରିବେ ଚିନ୍ତା କରିପାରିଲେ ନାହିଁ । ବ୍ରହ୍ମାଙ୍କଠାରୁ ସନ୍ଦେଶ ପାଇ ଇନ୍ଦ୍ରଙ୍କ ସହିତ ଦେବଗଣ ଯାଇ କ୍ଷୀର ସାଗରରେ ଅନନ୍ତ ଶୟନ କରିଥିବା ଭଗବାନ ବିଷ୍ଣୁଙ୍କ ନିକଟରେ ପହଞ୍ଚିଲେ । ଅତି ଆକୁଳରେ ଦେବଗଣ ଭଗବାନ୍ ବିଷ୍ଣୁଙ୍କୁ ସ୍ତୁତି କଲେ ଏବଂ କଂସର ଅନ୍ୟାୟ ଅତ୍ୟାଚାର ସମ୍ବନ୍ଧରେ ଜଣାଇଲେ ।

ଭଗବାନ୍ ବିଷ୍ଣୁ ହେଉଛନ୍ତି ଦୟାର ସାଗର । ଦେବତାମାନଙ୍କର କଥାକୁ ସେ ହୃଦୟଙ୍ଗମ କଲେ । ଅଳ୍ପଦିନ ପରେ ସେ କଂସକୁ ମାରିବେ । କୃଷ୍ଣ ଅବତାର ନେଇ ସେ ବସୁଦେବଙ୍କ ଘରେ ଦେବକୀଙ୍କ ଗର୍ଭରୁ ଅଷ୍ଟମ ସନ୍ତାନରୂପେ ଜନ୍ମନେବେ । ଏକଥା ଶୁଣି ଦେବଗଣ ଆନନ୍ଦ ମନରେ ପ୍ରତ୍ୟାବର୍ତ୍ତନ କଲେ । କିଛିଦିନ ପରେ ଭଗବାନ ବିଷ୍ଣୁ ଦେବକୀଙ୍କର ଗର୍ଭରେ ଆସି ବାସ କଲେ । ଦଶମାସ ଦଶଦିନ ହେବାରୁ କୃଷ୍ଣରୂପରେ ସେ ଜନ୍ମନେଲେ । କଂସର ଭୟରେ ସେହି ରାତିରେ ବସୁଦେବ ବନ୍ଦୀଗୃହରୁ କୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ନେଇ ଗୋପପୁରରେ ନନ୍ଦରାଣୀ ଯଶୋଦାଙ୍କ କୋଳରେ ଛାଡ଼ିଦେଇ ଆସିଲେ । ଏକଥା କଂସ ଜାଣିପାରିଲେ ନାହିଁ । ଗୋପପୁରରେ ନନ୍ଦ ଯଶୋଦାଙ୍କ କୋଳରେ କୃଷ୍ଣ ଶୁକ୍ଳପକ୍ଷ ଚନ୍ଦ୍ରପରି ଦିନକୁ ଦିନ ବଢ଼ିବାକୁ ଲାଗିଲେ । ସାତଦିନରେ,ସେ କଂସ ପଠାଇଥିବା ପୁତନାକୁ ନାଶ କଲେ । ଏହାପରେ ତୃଣା, ଶକଟା, ବକା, ଅଘା ଆଦି ଅସୁରମାନଙ୍କୁ ବଧ କଲେ । କାଳିନ୍ଦୀ ହ୍ରଦରେ କାଳୀନାଗ ଦମନ କଲେ । କ୍ରମେ ଗୋପପୁରରେ ଏହିରୂପେ ପ୍ରଭୁ ଲୀଳା ଆରମ୍ଭ କଲେ ।

ଏକଦା କ୍ରୋଧବଶତଃ ବରୁଣ ଆସି ନନ୍ଦରାଜାଙ୍କୁ ହରଣ କରିନେଇଥିଲେ । ତାଙ୍କ ହସ୍ତରୁ କୃଷ୍ଣ ନନ୍ଦଙ୍କୁ ଉଦ୍ଧାର କରି ଆଣିଥିଲେ । ପୁଣି ଇନ୍ଦ୍ର କୋପକରି ସାତଦିନ ବ୍ୟାପି ଗୋପପୁରରେ ବର୍ଷା କରାଇଥିଲେ । କୃଷ୍ଣ ନିଜ କାଣି ଆଙ୍ଗୁଠିରେ ଗିରି ଗୋବଦ୍ଧନକୁ ଟେକି ଇନ୍ଦ୍ରଙ୍କ କୋପରୁ ଗୋପବାସୀଙ୍କୁ ଉଦ୍ଧାର କଲେ । ବୃନ୍ଦାବନ ହେଲା ତାଙ୍କ ଖେଳଭୂମି । ଗୋପବାଳାମାନଙ୍କୁ ନେଇ ସେହି ବୃନ୍ଦାବନରେ ସେ ନିତ୍ୟ ନିବାସ କଲେ । ଗୋପୀମାନଙ୍କ ସହ ଅନେକ ଖେଳକୌତୁକରେ ରତ ହେଲେ । ଯମୁନା ଜଳରେ ସ୍ନାନ କରୁଥିବାବେଳେ ସେ ଗୋପୀମାନଙ୍କର ବସ୍ତ୍ରକୁ ଚୋରାଇ ନେଇ ଗୋପୀମାନଙ୍କ ସହ ରାସକ୍ରୀଡ଼ାରେ ନିମଗ୍ନ ରହିଲେ । ପୁଣି ନିଜର ବାହୁବଳରେ କେଶୀ ପିଣ୍ଡକୁ ମତ୍ତନ କଲେ । ଯେତେ ଅସୁର ଥିଲେ ସମସ୍ତଙ୍କୁ ବଧ କରି ଧର୍ମପାଳନ କଲେ । ତାହା ଶୁଣି କଂସ ଭୟରେ ଥରହର ହେଲା । କେଉଁ ଉପାୟରେ ସେ ତା’ର ଶତ୍ରୁକୁ ମାରିବ ସେହି ଚିନ୍ତାରେ ଘାରିହେଲା । ମନ୍ତ୍ରୀ ଅକ୍ରୂରକୁ ଡକାଇ ପରାମର୍ଶ ଲୋଡ଼ିଲା । ନାରଦ କହିଯାଇଥିବା କଥା ଅକ୍ରୂରକୁ ଜଣାଇଲା । ଦେବକୀର ଅଷ୍ଟମଗର୍ଭରେ ଜାତ ହୋଇଥ‌ିବା ସନ୍ତାନ ଗୋପପୁରରେ ବଢ଼ୁଛି । ସେହି ନନ୍ଦସୁତ କୃଷ୍ଣ ତା’ପାଇଁ କାଳ ହୋଇ ରହିଛି । ତାକୁ ମାରିବାପାଇଁ ସେ କୌଶଳକରି ପୁତନା, ତୃଣା, ଶକଟା, କେଶୀ, କଦମ୍ବା, ଧେନୁକା, ବ୍ୟୋମା, ବସା, ଅଘା ଆଦି ଅସୁରମାନଙ୍କୁ ପଠାଇଥିଲା । ସମସ୍ତେ ସେଇ କୃଷ୍ଣ ହାତରେ ମଲେ । ନିରୁପାୟ ହୋଇ କଂସ ବସିରହିଛି । ବିଶ୍ଵାସୀ ମନ୍ତ୍ରୀ ଅକ୍ରୂରର ପରାମର୍ଶ ଲୋଡ଼ିଛି । କାଲି ପ୍ରଭାତରେ ଗୋପପୁର ଯାଇ କୃଷ୍ଣ-ବଳରାମଙ୍କୁ କୌଣସି ପ୍ରକାରରେ ମଥୁରାକୁ ଆଣିବାକୁ କହିଛି । ଏହିଠାରେ ସେ ଦୁଇଭାଇଙ୍କୁ ହତ୍ୟାକରି ଆନନ୍ଦରେ ଅନ୍ନଜଳ ଭକ୍ଷଣ କରିବ । ତା’ର ମୃତ୍ୟୁ ଯେ କୃଷ୍ଣ ହାତରେ ସେ ଏ କଥା ଜାଣିପାରି କହିଛି –

‘‘ଶୂନ୍ୟ ମଣ୍ଡଳେ ମେଘ ପ୍ରକାଶଇ ।
ଛିଦ୍ର ହୋଇ ବହୁତ ବରଷଇ ॥
ଭସ୍ମ କୁଢ଼ରେ ଅଗ୍ନିକଣା ଥାଇ ।
ମନ୍ଦ ପବନେ ବଳିଷ୍ଠ ହୁଅଇ ॥
କାଳେ ସଂସାର କରଇ ଦହିଜ ।
ସେହି ପ୍ରକରେ ନନ୍ଦର ତନୁଜ ॥
ତାକୁ ବେଳହୁଁ ଉପାଏ ମାରିବା ।
ନ ମାଇଲେ କାଳେ ଆପେ ମାରିବା ॥’’

ନିଜ ମରଣଭେଦ ମନ୍ତ୍ରୀ ଅକୃରଙ୍କୁ କଂସ ଜଣାଇଛି । ଅତି ବିକଳ ହୋଇ ଅକୁରଙ୍କ ହାତଧରି ଉପାୟ ବତାଇ ଦେଇଛି । କ୍ରମେ ରାତ୍ରି ପ୍ରବେଶ ହୋଇଛି । କଂସ ଆଜ୍ଞାପତ୍ର ଲେଖୁଛି । ଅକ୍ରୂର ହସ୍ତରେ ତାହାକୁ ପ୍ରଦାନ କରିଛି । ଅକ୍ରୂର ଆଜ୍ଞାପତ୍ରକୁ ଗଳାରେ ଲମ୍ବାଇ ଗୋପପୁରକୁ ଗମନ କରିଛନ୍ତି । ସେଥ‌ିପାଇଁ କଂସ ଧନୁଯାତ୍ରାର ବନ୍ଦୋବସ୍ତ କରିଛି । ସେହିପରି ଭାବରେ ଦ୍ଵିତୀୟ ଛାନ୍ଦରେ କବି ଅକୁରଙ୍କ ଗୋପପୁର ଗମନ ଓ କୃଷ୍ଣଦର୍ଶନ ପ୍ରସଙ୍ଗ ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛନ୍ତି । ରାତି ପାହି ସକାଳ ହୋଇଛି । ଅକ୍ରୂର ଗୋପପୁରକୁ ଗମନ କରିଛି । କୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ଦର୍ଶନ କରିବାପାଇଁ ଅକ୍ରୂରର ମନ ଉଚ୍ଛନ୍ନ ହୋଇଉଠିଛି । ସେ ମନେ ମନେ ଚିନ୍ତା କରୁଥାଏ ଯେ ତା’ର ଜୀବନ ଧନ୍ୟ ହୋଇଛି । ତା’ର ପିତା ମାତା ଧନ୍ୟ । ସେ ଆଜି ଦେବରାଜ କୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ଦେଖୁବ । ସେ ପହଞ୍ଚିଲାବେଳକୁ କୃଷ୍ଣ ଯାଇ ନନ୍ଦ ଯଶୋଦାଙ୍କ କୋଳରେ ବସିଥିବେ । ଅକ୍ରୁର ଯାଇ ପହଞ୍ଚିଯିବ ସେଠାରେ । ଦୁଇଭାଇ ଦୂରରୁ ଦେଖୁ ‘ଆସ ଆସ’ ବୋଲି ଡାକିବେ । ସେହି ଅମୃତମୟ ବାଣୀ ଶୁଣି ତାଙ୍କର ସବୁ ଦୋଷ ଖଣ୍ଡିତ ହୋଇଯିବ ।

କବି ଲେଖନୀରେ – କଂସଡଗର କରେ ବିଚାର ଧନ୍ୟ ହୋଇଲା ଆଜ ।
ଧନ୍ୟ ମୋ ତାତ ଧନ୍ୟ ମୋ ମାତ ଦେଖୁ ଦେବରାଜ ॥

କୃଷ୍ଣଙ୍କୁ ଦେଖୁଲେ ପରବର୍ତ୍ତୀ ଅବସ୍ଥାରେ କ’ଣ କ’ଣ ଘଟିବ ତାହା ଅକ୍ରୂର ମନେମନେ ବିଚାର କରିଛନ୍ତି । ଶେଷରେ ଅକ୍ରୁରଙ୍କ ମନକଥାକୁ ବୁଝିପାରିଛନ୍ତି କୃଷ୍ଣ । ମଥୁରା ଯିବାପାଇଁ ସେ ସମ୍ମତି ଜଣାଇଛନ୍ତି । ଚିଟାଉ ନେଇ ପିତା ନନ୍ଦଙ୍କୁ ଦେବାପାଇଁ କହିଛନ୍ତି । ଅକ୍ରୁର ନନ୍ଦରାଜାଙ୍କୁ ଚିଟାଉ ଦେଇଛନ୍ତି । ନିଦ୍ରାରୁ ଉଠି ରାଜା ନନ୍ଦ କଂସର ଆଜ୍ଞା ପତ୍ରିକାକୁ କାତର ଚିତ୍ତରେ ପାଠ କରିଛନ୍ତି।

ସେହିପରି ତୃତୀୟ ଛାନ୍ଦରେ ନନ୍ଦଙ୍କ ନିକଟକୁ କଂସ ଲେଖୁଥ‌ିବା ଆଜ୍ଞାପତ୍ରର ବିଷୟବସ୍ତୁ ବର୍ଷିତ ହୋଇଅଛି । କଂସ ଲିଖ୍ ଆଜ୍ଞାପତ୍ରର ବିଷୟବସ୍ତୁ ଏହି ଯେ ଇନ୍ଦ୍ର, ଚନ୍ଦ୍ର ଆଦି ଦେବତା ତା’ର ବଶ୍ୟତା ସ୍ୱୀକାର କରିଅଛନ୍ତି । ନନ୍ଦ ଯେ କେତେକାଳ ଧରି କଂସ ପ୍ରତି ଅବଜ୍ଞାଭାବ ପୋଷଣ କରିଆସିଛନ୍ତି, ସେଥ୍ପାଇଁ କଂସ କୁପିତ ହୋଇ ନନ୍ଦଙ୍କୁ ଉପହାରଦ୍ରବ୍ୟ ସହିତ ଆସି ତା’ ନିକଟରେ କ୍ଷମାଭିକ୍ଷା କରିବାପାଇଁ ନିର୍ଦ୍ଦେଶ ଦେଇଛନ୍ତି । ଧନୁ ଉତ୍ସବ ଦେଖିବାପାଇଁ କୃଷ୍ଣ-ବଳରାମଙ୍କୁ ସଙ୍ଗରେ ଆଣି ଆସିବାପାଇଁ ମଧ୍ଯ କଂସ ନିର୍ଦ୍ଦେଶ ଦେଇଛନ୍ତି । ନନ୍ଦ ଏହି ଆଜ୍ଞାପତ୍ର ପାଠ କରି ଦୁଃଖ୍ତ ହୋଇ ମଥୁରାଯାତ୍ରା ବିଷୟ ଗୋପପୁରରେ ଘୋଷଣା କରିଛନ୍ତି ଏବଂ ଅକ୍ରୁରଙ୍କୁ ଆଦର ସହିତ ସତ୍କାର କରିଅଛନ୍ତି ।

ସେହିପରି ଚତୁର୍ଥ ଛାନ୍ଦରେ ଧନୁ ଉତ୍ସବ ଦେଖୁବା ନିମିତ୍ତ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ଓ ବଳରାମ ମଥୁରାପୁର ଯିବାକଥା ଶୁଣି ଗୋପୀମାନେ ଅତ୍ୟନ୍ତ ଦୁଃଖୁତା ଓ ଉତ୍କଣ୍ଠିତା ହୋଇପଡ଼ିଛନ୍ତି । ସେମାନେ ନନ୍ଦଙ୍କ ମନ୍ଦିରରେ ପ୍ରବେଶ କରି ଦେଖ‌ିଲେ ଯେ ମଥୁରାପୁର ଯାତ୍ରାଲାଗି ନନ୍ଦମନ୍ଦିର ପ୍ରାଙ୍ଗଣରେ ସମ୍ଭାରସଜ୍ଜା ଚାଲିଅଛି । ଗୋପୀମାନେ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କର ମଥୁରାଗମନ କଥା ଜାଣିପାରି ତାଙ୍କ ବିରହରେ ଅସହ୍ୟ ହୋଇପଡ଼ିଛନ୍ତି । ଏହି ଛାନ୍ଦର କଥାବସ୍ତୁ ମୁଖ୍ୟତଃ ଭାଗବତରୁ ଗୃହୀତ ହୋଇଅଛି । ଏହି ଛାନ୍ଦର ପଦଲାଳିତ୍ୟ ଓ ସଙ୍ଗୀତ ମୁଗ୍ଧକର ହୋଇଅଛି । ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ମଥୁରାକୁ ଚାଲିଗଲେ ଗୋପବାସୀଙ୍କ ଅବସ୍ଥା କିପରି ଶୋଚନୀୟ ହୋଇପଡ଼ିବ ତାହା ସୁନ୍ଦର ଭାବରେ କବି ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛନ୍ତି ।

କବିଙ୍କ ଭାଷାରେ – ‘‘କେ ବୋଲଇ, କାଲିଠାରୁ କୁମୁଦ ମରିବେ ।
କୁମୁଦ-ରମଣ ଯେଣୁ କୁମୁଦକୁ ଯିବେ ।
ଅନ୍ଧକାରକୁ ବାଢ଼ିବ ।
ସତେ କି ଚନ୍ଦ୍ରମା ଚନ୍ଦ୍ରମଣିକି ଛାଡ଼ିବ ।”

କଠିନ ଶବ୍ଦ ଓ ଏହାର ଅର୍ଥ :

ପ୍ରଥମ ଛାନ୍ଦ

  • ଅନୁଜ – ସାନଭାଇ, ଯେ ଶେଷରେ ଜାତ।
  • ତାରଣ – ଉଦ୍ଧାରକର୍ତ୍ତା।
  • ଜୟ – ୧ମ ପଦଠାରୁ ୭ମ ପଦ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ କବି ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ ର ଜୟଗାନ କରିଥିବାରୁ ଏଠାରେ ‘ଜୟ’ ଶବ୍ଦର ଅର୍ଥ ନମସ୍କାର।
  • କଂସାରି – କଂସର ଶତ୍ରୁ।
  • ରମାରମଣ – ଲକ୍ଷ୍ମୀପତି ।
  • ଦଇତାରି – ଅସୁରମାନଙ୍କ ଶତ୍ରୁ ।
  • ଅନନ୍ତ – ଯାହାର ଅନ୍ତ ନାହିଁ ।
  • ନନ୍ଦକ – ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ ଖଡ଼ଗ ।
  • ଅନାଦି – ଯାହାର ଆରମ୍ଭ ନାହିଁ କି ଶେଷ ନାହିଁ ।
  • ଅଖେଳବିହାରୀ – ସର୍ବବ୍ୟାପୀ ।
  • ପଙ୍କଜ – ଯେ ପଙ୍କରୁ ଜାତ, ପଦ୍ମ।
  • ପୟର – ପାଦ ।
  • ପ୍ରୟୋଜନ – ଆବଶ୍ୟକ ।
  • ସୁଜନ – ପଣ୍ଡିତ ।
  • ତରି ଅଛନ୍ତି – ମୁକ୍ତି ପାଇଛନ୍ତି ।
  • ନିଶି – ରାତି ।
  • ଭବ – ସଂସାର ।
  • ତେଜନ୍ତି – ପରିତ୍ୟାଗ କରନ୍ତି ।
  • ପୀତବାସ – ହଳଦିଆ ବସ୍ତ୍ର ଯେ ପରି ଧାନ କରନ୍ତି ।
  • ବକାରି – ବକାସୁରର ଶତ୍ରୁ।
  • ନରକ – ପ୍ରାଗ୍ ଜ୍ୟୋତି ଷପୁରର ରାକ୍ଷସରାଜ ।
  • ଯାତନା – କଷ୍ଟ ।
  • ବାରିଧ୍ – ସାଗର ।
  • ଉସତ – ଆନନ୍ଦ ।
  • ଦୁର୍ମୂଲା ନନ୍ଦକ – କଂସ ।
  • ସୁନାସୀର – ଇନ୍ଦ୍ର ।
  • କାଳୀ – କାଳୀ ନାଗ ।
  • ବିବାଦ – କଳହ ।
  • ନିବାସ – ବାସ ।
  • ସନ୍ତାପ – ଦୁଃଖ ।
  • କଳୁଷ – ପାପ ।
  • ସୁରଗଣ – ଦେବଗଣ
  • ଉଦରେ – ଗର୍ଭରେ ।
  • ଦେହୀ – ଶରୀର ।
  • ବଇରୀ – ଶତ୍ରୁ ।
  • ଭାଳଇ – ଚିନ୍ତା କରଇ ।
  • ଭସ୍ମକୁଢ଼ – ପାଉଁଶ ।
  • ମନ୍ଦ – ଧୀର ।
  • ଦହିଜ – ଦହ୍ୟ, ଦଗ୍‌ଧ ।
  • ତନୁଜ – ପୁତ୍ର ।
  • ବେନିକର – ଦୁଇହାତ ।
  • ବେନିଭାଇ – ଦୁଇଭାଇ (କୃଷ୍ଣ ଓ ବଳରାମ) ।
  • ବିନତି – ଅନୁରୋଧ ।
  • କବରୀ – ଜୁଡ଼ା, ଖୋସା ।
  • ଗୃଧ୍ର – ଭାବ ।
  • ସ୍ବନ – ଶାଗୁଣା ।
  • ମାର୍ଜାର – ବିରାଡ଼ି (ମଞ୍ଜାରି) ।
  • ଉଦେ – ଉଦିତ ହୁଏ ।
  • ଭାନୁ – ସୂର୍ଯ୍ୟ ।
  • ଯାଦବ – ଯଦୁବଂଶରେ ଜାତ ।
  • ଚତୁର୍ଦ୍ଦଶ ଭୁବନ – ଚଉଦ ଭୁବନ (ଅତଳ, ବିତଳ ସୁତଳ, ରସାତଳ, ତଳାତଳ, ମହାତଳ, ପାତାଳ, ଭୂ, ଭୂଦଃ, ସ୍ୱ, ମହାଃ, ଜନଃ, ତପଃ, ସତ୍ୟ) ।
  • ବକତା – ବ୍ୟକ୍ତ ।
  • ସର୍ବକରତା – ଯେ ସବୁ କରିଛନ୍ତି ।
  • ବ୍ଯତ୍ରକେ – ବ୍ୟତୀତ ।
  • ମୋହରେ – ମୋତେ ।
  • ପଙ୍କଜପୟରେ – ପଦ୍ମପାଦରେ ।
  • ପ୍ରମାଣ ବଚନ – ସିଦ୍ଧ ବଚନ ।
  • ଭବକଳୁଷ ସନ୍ତାପ – ସଂସାରର ପାପତାପ ।
  • କେଶୀ – କଂସର ଅନୁଚର ।
  • ସାଧୁକ – ନାଶ କଲ ।
  • ରାଜନ – ପରୀକ୍ଷିତ ।
  • ଉଷତ – ଆନନ୍ଦିତ ।
  • ବେଦବର – ବ୍ରହ୍ମା ।
  • ଦୈତ – କଂସ ।
  • ନାଗଶୟନ – ଅନନ୍ତଶଯ୍ୟା ।
  • ଚନ୍ଦ୍ରମା ପକ୍ଷ – ଶୁକ୍ଳପକ୍ଷ ।
  • ପୁତନା – ଅଘା ଓ ବକାସୁରର ଭଉଣୀ ।
  • ବେନି ବଛି – ଦୁଇପୁଅ ।
  • ବର୍ତ୍ତନ ବସାଣ – ଧାର୍ଯ୍ୟ ହୋଇଥିବା ରାଜ୍ୟବୃତ୍ତି ।
  • ଝାଇଁ – ତତଲା ।

ଦ୍ବିତୀୟ ଛାନ୍ଦ

  • ଆଶେ – ଆଶାରେ ।
  • ସଫଳାସୁତ – ଅକ୍ରୂର ।
  • ହେଜିଲା – ଭାବିଲା ।
  • ବାଗ ଦଉଡ଼ି – ଲଗାମ ।
  • ଉଚ୍ଛନ୍ନ – ଚଞ୍ଚଳ ।
  • ଚକ୍ଷୁ ମଟକେ – ଆଖୁପିଛୁଳାକେ ।
  • ଅତି ଛଟକେ – ଅତି ଶୀଘ୍ର ।
  • ରହୁବର – ରଥଶ୍ରେଷ୍ଠ ।
  • ବଳି – ଅତିକ୍ରମ କରି ।
  • ଦେବଙ୍କ ରାଜେ – ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ।
  • ତାତ – ପିତା ।
  • ମଧୁପୁର – ମଥୁରା ।
  • ଡଗର – ଦୂତ ।
  • ଜଳଦ ତନୁ – ନୂଆ ମେଘ ପରି ଯାହାର ଶରୀର ।
  • ନାସାଦ୍ବାର – ନାସାରନ୍ଧ୍ର ।
  • ପେଷିଲା – ପଠାଇଲା ।
  • ଶ୍ରୀପତି – କୃଷ୍ଣ ।
  • ଭବବନ୍ଧନ – ସଂସାର ବନ୍ଧନ ।
  • ବ୍ରଜବିହାରୀ – ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ।
  • ଭାଳି – ଚିନ୍ତା କରି ।
  • ଧ୍ବଜ – ପତାକା ।
  • ଚକ୍ରାଦି – ଚକ୍ର ଆଦି ଅଷ୍ଟାଦଶ ଚିହ୍ନ ।
  • ଶିରେ – ମୁଣ୍ଡରେ ।
  • କହି ହୁଡ଼ଇ – କେହୁ କହୁ ଭୁଲିଯିବା ।
  • ଗଡ଼ଇ ପାଦ ପରେ – ପାଦତଳେ ଗଡ଼ିଯିବା ।
  • ଶୂନ୍ୟକୁ କୋଳ କରି – ଶୂନ୍ୟକୁ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ଭାବି ବାହୁ ବିସ୍ତାରକରି, ଆଲିଙ୍ଗନ କରି
  • ମନେ ହେଜଇ – ମନରେ ଚିନ୍ତା କରିବା ।
  • ବାତୁଳ ହୋଇ – ଉନ୍ମାଦ ହୋଇ ।
  • ଗୋପୀମୋହନ – ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ।
  • ଆରତ – ଆତୁର ।
  • ଅଙ୍କୁଶ – ଆଙ୍କୁଡ଼ି ।
  • ନିଉଡ଼େ – ବୋଳେ ।
  • ରାଢ଼ – କୃପଣ ।
  • ଗୋପମାର୍ଗ – ବ୍ରଜଦାଣ୍ଡ ।
  • ଦ୍ରହାସେ – ମନ୍ଦହାସରେ, ଅଳ୍ପ ଅଳ୍ପ ହସି ।
  • ସୀମାନ୍ତରେ – ଶେଷଭାଗରେ ।
  • ଜୀମୂତ – ମେଘ ।
  • ବିଦ୍ୟୁ – ବିଜୁଳି ।
  • ତ୍ରିମୁଣ୍ଡୀ – ଫୁଲ ଖୋସା ହୋଇଥିବା ଜୁଡ଼ା ।
  • ତିଳକୁସୁମ – ରାଶିଫୁଲ ।
  • ପାରିଜାତ – ସ୍ବର୍ଗମନ୍ଦାର ।
  • ଶତପତ୍ର – ପଦ୍ମ ।
  • ରଦନ ତେଜ – ଦନ୍ତର କାନ୍ତି ।

ତୃତୀୟ ଛାନ୍ଦ

  • ଅଇରିକୁଳକୁ କେତୁ – ଶତ୍ରୁକୁଳକୁ ଧୂମକେତୁ।
  • ରଣରାଜପୁତ୍ରେ – ରଣପ୍ରିୟ ରାଜପ୍ରତୁମାନେ ମୋର ପ୍ରତିଜ୍ଞାରେ ରଣତେଜି ମୃତ୍ୟୁ ଲଭନ୍ତି ।
  • ଜନ୍ତୁ ପତି – ଯମ ।
  • କୁଧର – ପର୍ବତ ।
  • ଅଇରି – ଶତ୍ରୁ ।
  • ଉର – ଛାତି ।
  • ଶଲ – କୁନ୍ତ ।
  • ବ୍ରଜସେହ୍ନା – ଦୁର୍ଭେଜ୍ୟ ସାଞ୍ଜୁବିଶେଷ ।
  • ସୁନାସୀର – ଇନ୍ଦ୍ର ।
  • ଜଳଧୂ – ସମୁଦ୍ର ।
  • ଦେବଗୁରୁ – ବୃହସ୍ପତି ।
  • ବିଧ – ବ୍ରହ୍ମା ।
  • ତାତ – ବ୍ରହ୍ମା ।
  • ମୂଳ – ପ୍ରଧାନ କଥା ।
  • କଟକାଇ – ଯୁଦ୍ଧ ଆୟୋଜକ କଲେ ବା ସୈନ୍ୟ ସହିତ ଗଡ଼ ଆକ୍ରମଣ କଲେ ।
  • ଯାଦବକୁଳ – ଯଦୁବଂଶ ।
  • କୁମୁଦବନ – କଇଁସମୂହ ।
  • ନିଶାମଣି – ଚନ୍ଦ୍ର ଚନ୍ଦ୍ର କଇଁମାନଙ୍କୁ ପ୍ରଫୁଲ୍ଲିତ କଲା ପରି ମୁଁ ଯଦୁବଂଶର ଆନନ୍ଦଦାତା ଅଟେ ।
  • ସହିବା ପଣେ – ସହିଷ୍ଣୁତାରେ ।
  • ଅଷ୍ଟଭୂଜ – ବ୍ରହ୍ମା ।
  • ଧାପ – ରଣଯାତ୍ରା ।
  • ଜରାସନ୍ଧ – ମଗଧର ରାଜା ।
  • ହନ୍ତକାର – ଘାତକ ।
  • ମହାପ୍ରଳୟ ବରଷା – ସଂବର୍ଭମେଘ ।
  • ସମ୍ଭାର – ଦ୍ରବ୍ଯାପହାର ।
  • ଗୋଟିକା, ଅଧାମ – ମିଷ୍ଟାନ୍ନ ବିଶେଷ ।
  • ପରଚେ – ଚିହ୍ନା, ପରିଚୟ ।
  • ଶିରୀପତି – କୃଷ୍ଣ ।
  • ପରିଜନ – ଭୃତ୍ୟ ।
  • ଗୋପସାଇଁ – ଗେପରାଜା, ନନ୍ଦ ।

ଚତୁର୍ଥ ଛାନ୍ଦ

  • ସାୟକ – ଶର।
  • ସାୟକ ପୂଜା – ଧନୁପୂଜା ।
  • ଥାବର – ସ୍ଥାବର, ପର୍ବତବୃକ୍ଷାଦି ।
  • ପାତ – ବିନାଶ, କ୍ଷୟ ।
  • ଗୋଈ – ଗୋପୀ ।
  • ଏଣୀଦୃଶା – ମୃଗନୟନା ।
  • ବେନିଚକ୍ଷୁ – ଏଠାରେ କୃଷ୍ଣଚନ୍ଦ୍ର ଓ ବଳରାମ ।
  • ମୁକୁଦ ମରିବେ – କଇଁସବୁ ମରିବେ ।
  • କୁମୁଦରମଣ – ଚନ୍ଦ୍ର ।
  • କୁମୁଦ – ନୈର୍ଗତ କୋଣ ।
  • କରୀନ୍ଦ୍ର ଗମନା – କଂସ ।
  • ଆୟୁନେଉ – ଆମ୍ଭଙ୍କୁ ମାରୁ ।
  • ଲୀଳା – କୃଷ୍ଣଙ୍କ ଖେଳ କଉତୁକ ।
  • ବାହୁନି – ଉଚ୍ଚସ୍ୱରରେ ବର୍ଣନା କରି ।
  • କୋଡ଼େ – ମାରେ ।
  • ସ୍ଥକିତ – ଥର ।
  • ଭଙ୍ଗାଇ – ନିଷେଧ କରି, ଭାଙ୍ଗୁଣିଆ କରି ।
  • ସାରଣୀ – ଜଣେ ଗୋପୀ ।
  • ପ୍ରତିବାଣୀ – ପ୍ରତ୍ୟୁତ୍ତର ।
  • ମଧୁପୁର – ମଥୁରା ।
  • ଭେଳିକି – କୁହୁକ, ଭୋଜବିଦ୍ୟା ।
  • ହେମମାଳା – ଗଜରାଜ ଗତି ।
  • ଭେଳା – ଆଶ୍ରା ବା ଆଶ୍ରୟ ।
  • ଧାତା ଛାଡ଼ିଲା – ଦଇବ ଛାଡ଼ିଲା, ବିହି ବାମ ହେଲା ।
  • ନିୟତ – ନିଶ୍ଚୟ ।
  • ଗୋରସରେ – ଦୁଧରେ ।
  • ବରଜ – କୃଷ୍ଣଚନ୍ଦ୍ର ।
  • ବରଜ ଚତୁରୀ – ଗୋପୀ ।
  • ବରଗିଛି – ପଠାଇଛି ।
  • ରମଣ – କାନ୍ତ, ଗୋପୀରମଣ ଅର୍ଥରେ ।
  • ଚିନ୍ତାରତ୍ନାକରେ – ଚିନ୍ତାରୂପ ସମୁଦ୍ରରେ ।
  • ମନମୀନ – ମନରୂପ ମାଛ ବୁଡ଼ିଗଲା ।
  • କାରୁଣ – କାରୁଣ୍ୟ, ରୋଦନ ।